फटा पोस्टर और निकल आए ' वीरभद्र '
फटा पोस्टर और निकला हीरो, शिमला में जीएस बाली की फोटो वाला पोस्टर फटा और कांग्रेस के सियासी चलचित्र के लीड हीरो फिर निकल कर सुर्ख़ियों में आ गए। फिर वीरभद्र सिंह लाइमलाइट में है और उनके समर्थक उनकी ताकत का एहसास करवा रहे है। उम्र बेशक 87 साल है लेकिन समर्थकों के लिए तो मानो अब भी वीरभद्र सिंह ही कांग्रेस है। निसंदेह इतनी बड़ी फैन फॉलोइंग हिमाचल में कभी किसी नेता की नहीं रही। खेर पोस्टर प्रकरण के बीच वीरभद्र सिंह फिर हिट और फिट साबित हुए है, पर इस एक पोस्टर ने हिमाचल कांग्रेस की एकजुटता के दावों का तिया पांचा कर दिया है। वीरभद्र समर्थक लाल है और दो टूक सन्देश दे रहे है कि आत्ममुग्ध नेता किसी मुगालते में न रहे, बगैर राजा के आशीर्वाद 2022 में सत्ता का वनवास ख़त्म नहीं होगा। इस एक पोस्टर ने ऐसा बवाल मचाया है कि मजबूती के दावे कर रही कांग्रेस मजबूर दिखने लगी है। माजरा दरअसल यूं है कि 21 मई को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की पुण्यतिथि पर कांग्रेस कोरोना रिलीफ कमेटी द्वारा राहत कार्य अभियान का आगाज़ किया गया जिसके प्रभारी पूर्व मंत्री जी एस बाली है। ये वो कमेटी है जिसे कोरोना काल में आमजन को राहत पहुंचाने के लिए बनाया गया है। ये कमेटी कितनी राहत पहुंचाती है ये तो वक्त ही बताएगा पर फिलहाल इसके एक पोस्टर से आफत जरूर आ गई है और आफत टूटी है खुद कांग्रेस पर।
दरअसल, शिमला में इस रिलीफ कमेटी के कुछ होर्डिंग लगाए गए जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गाँधी के साथ रिलीफ कमेटी के प्रभारी जी एस बाली की बड़ी फोटो लगी थी। बाली इस होर्डिंग में एक किस्म से पोस्टर बॉय थे। इसमें सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, राजीव शुक्ला, कुलदीप राठौर और मुकेश अग्निहोत्री को भी जगह दी गई। पर इस पोस्टर में 6 दफे मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह को जगह नहीं मिली, सो बवाल तो मचना ही था। वीरभद्र सिंह के समर्थकों ने पोस्टर फाड़ दिए और सोशल मीडिया पर वीरभद्र सिंह के समर्थन में एक के बाद एक सैकड़ों पोस्ट डलने का सिलसिला शुरू हो गया। किसी ने सवाल किया की इस पोस्टर पर वीरभद्र सिंह क्यों नहीं है, किसी ने इसे नेताओं की संक्रिण मानसिकता कहा, तो कुछ ने तो ये तक लिख डाला की हमारे लिए कांग्रेस का मतलब सिर्फ और सिर्फ राजा वीरभद्र सिंह है। पोस्टर एपिसोड के बाद वीरभद्र सिंह के पुत्र और शिमला ग्रामीण विधायक विक्रमादित्य सिंह ने एक फेसबुक पोस्ट की जिसमें उन्होंने लिखा कि 'तस्वीर कागज़ के पन्नों से ज्यादा दिल में अच्छी लगती है।' उनकी इस पोस्ट को भी इसी प्रकरण से जोड़कर देखा जा रहा है।
अर्से से वीरभद्र ही पोस्टर बॉय, 8 चुनाव में रहे फेस
2022 में सत्ता वापसी के ख्वाब संजोए बैठी कांग्रेस के सामने फिलवक्त सबसे बड़ा सवाल ये ही है कि पार्टी का चेहरा कौन होगा ? पिछले आठ विधानसभा चुनाव पार्टी ने वीरभद्र सिंह के चेहरे पर लड़े है। पर 2022 के चुनाव आते - आते वीरभद्र 88 पार कर चुके होंगे और इस पर उनकी सेहत भी नासाझ है। ऐसा नहीं है वीरभद्र का स्थान लेने को कोई तैयार नहीं है, असल समस्या ये है कि तैयार तो बहुत है पर उन जैसा तिलिस्म अब तक कोई नहीं दिखा पाया। पार्टी में एक से बढ़कर एक बयानवीर तो है पर ऐसा कोई नहीं जो पुरे प्रदेश में असरदार हो। मुख्यमंत्री पद के ये तमाम चाहवान सक्रीय तो है पर अपने निर्वाचन क्षेत्र तक, या ज्यादा से ज्यादा 2 -4 निर्वाचन क्षेत्रों में इनका असर दिखता है। शायद ही ऐसा कोई नेता हो जिसका प्रभाव 5 निर्वाचन क्षेत्रों में भी हो। अब अर्से से कांग्रेस के पोस्टर बॉय रहे वीरभद्र सिंह का स्थान लेना है तो इन नेताओं को अपनी जमीन पकड़ भी साबित करनी होगी।
सियासी अदा : लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं
वीरभद्र सिंह का हर बयान सुर्खियां लुटता हैं। बीते दिनों जब कुनिहार में उन्होंने कहा की वे 2022 का चुनाव नहीं लड़ेंगे तो प्रदेश कांग्रेस की जान मानो हलक में आ गई हो। खेर इसके बाद वीरभद्र ने यू टर्न लिया और कहा वे चुनाव लड़ेंगे भी, लड़वाएंगे भी और जनता चाहेगी तो सातवीं बार सीएम बनने को तैयार हैं। वीरभद्र का हर बयान किसी को सुकून देता हैं तो किसी की नींद चुरा लेता हैं। यही तो उनकी सियासी अदा है, लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं।
नई नहीं है पोस्टर की राजनीति
पोस्टर की राजनीति कांग्रेस में नई बात नहीं है। अर्से से प्रदेश कांग्रेस में पोस्टर की राजनीति होती आ रही है। एक वक्त पर वीरभद्र सिंह के साथ विद्या स्टोक्स की फोटो न लगने पर बवाल होता था तो अब वीरभद्र सिंह ही कांग्रेस के पोस्टर से गायब है।
सियासी पैंतरा या अब वीरभद्र जरूरी नहीं
इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी को मानो सांप सूंघ गया हो। कांग्रेस ने पोस्टर फाड़ने वाले देवन भट्ट और दीपक खुराना को प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर 15 दिन में जवाब मांगा है। दरअसल पोस्टर में राजीव गांधी का चित्र भी था जिसके चलते ये कार्रवाई करना पार्टी की मजबूरी बन गई। पर असल सवाल ये है कि क्या इन पोस्टर्स को लगवाने से पहले पीसीसी से स्वीकृत करवाया गया था। वीरभद्र सिंह को पोस्टर में स्थान न देना किसी का सियासी पैंतरा था या कांग्रेस समझती है की उनके लिए अब वीरभद्र जरूरी नहीं है।