रामपुर: ध्वस्त होते -होते बच गया कांग्रेस का किला
रामपुर निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस का अभेद गढ़ रहा है। देश में आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव को छोड़ दिया जाएं, तो यहां हमेशा कांग्रेस का परचम लहराया है। वहीं भाजपा की बात करें तो 1980 में पार्टी की स्थापना के बाद से 9 चुनाव हुए है, लेकिन पार्टी को कभी यहां जीत का सुख नहीं मिला। पर बीते कुछ चुनाव के नतीजों पर नजर डाले तो कांग्रेस और वीरभद्र परिवार के इस गढ़ में पार्टी की जीत का अंतर कम जरूर हुआ है। 1990 की शांता लहर में भी कांग्रेस के सिंघीराम यहाँ से 11856 वोट से जीते थे, लेकिन 2017 आते -आते ये अंतर 4037 वोटों का रह गया। 1993 में कांग्रेस यहाँ 14478 वोट से जीती तो 1998 में जीत का अंतर 14565 वोट था। जबकि 2003 के चुनाव में ये अंतर बढ़कर 17247 हो गया। तीनों मर्तबा यहाँ से सिंघी राम ही पार्टी प्रत्याशी थे। 2007 में कांग्रेस ने यहाँ से प्रत्याशी बदला और नंदलाल को मैदान में उतारा। नंदलाल को जीत तो मिली लेकिन अंतर घटकर 6470 वोट का रह गया। 2012 में नंदलाल 9471 वोट से जीते तो 2017 में अंतर 4037 वोट का रहा।
इस बार भाजपा ने रामपुर विधानसभा क्षेत्र में टिकट बदल युवा चेहरे कौल सिंह नेगी को मैदान में उतारा था जबकि कांग्रेस ने भारी विरोध के बावजूद वर्तमान विधायक नंदलाल पर ही दांव खेला। नंदलाल को लेकर क्षेत्र में एंटी इंकम्बेंसी दिखी है, मगर उनके प्रचार का ज़िम्मा खुद राज परिवार ने संभाला था। उधर कौल नेगी ने भी प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कौल नेगी इस सीट पर कमल तो नहीं खिला पाए लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी को जबरदस्त टक्कर दे कर जीत के अंतर को न के बराबर साबित किया। इस चुनाव में नन्द लाल मात्र 567 वोट से जीत दर्ज कर गए।