रोहड़ू में अब भी वीरभद्र फैक्टर सबसे असरदार
** त्रिकोणीय मुकाबले में मोहन लाल ब्राक्टा जीत को लेकर आश्वस्त
रोहड़ू विधानसभा सीट, वो सीट है जो वीरभद्र सिंह की कर्मभूमि के नाम से जानी जाती है। रोहड़ू सीट पर हमेशा वीरभद्र सिंह का प्रभाव रहा है। बीते चालीस वर्षों में भाजपा यहां सिर्फ एक बार जीती है, वो भी केवल 2009 के उपचुनाव में। आज भी इस सीट पर स्व वीरभद्र सिंह से बड़ा और असरदार कोई नाम नहीं दिखता। अब उनके बाद उनके परिवार के लिए भी रोहडू वालों के दिल में विशेष स्थान दिखता है। निसंदेह वीरभद्र फैक्टर अब भी रोहड़ू में बड़ा असर रखता है और कांग्रेस के मोहन लाल ब्राक्टा होलीलॉज के बेहद करीबी माने जाते है। ऐसे में जाहिर है कि इस बार भी वीरभद्र फैक्टर यहां ब्राक्टा के लिए संजीवनी साबित हो सकता है। भाजपा से शशि बाला एक बार फिर मैदान में है, लेकिन इस बार भी उनकी डगर कठिन नज़र आ रही है। उधर बतौर निर्दलीय मैदान में रहे राजेंद्र धीरटा की परफॉर्मेंस पर भी इस बार निगाह रहेगी।
बड़ा दिलचस्प है रोहड़ू का इतिहास:
रोहड़ू का इतिहास बड़ा दिलचस्प रहा है। यहां वीरभद्र सिंह ने 1990 से लेकर 2007 तक लगातार पांच बार जीत दर्ज की। इसके बाद ये सीट आरक्षित हो गई और वीरभद्र ने 2012 का चुनाव शिमला ग्रामीण से लड़ा। रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र आरक्षित होने के बाद कांग्रेस ने यहां मोहन लाल ब्राक्टा को टिकट दिया और वे रिकार्ड मत लेकर जीते। 2017 में भी रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा की ही जीत हुई। बीते चालीस साल में भाजपा यहां सिर्फ एक बार जीती है, वो भी केवल 2009 के उपचुनाव में। दरअसल 2009 के लोकसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह मंडी से जीतकर सांसद बन गए और रोहड़ू में उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में भाजपा में खुशीराम बालनाहटा विजयी रहे थे। उपचुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मनजीत सिंह ठाकुर को हराया था, पर उपचुनाव के दौरान लोगों से किए वादे भाजपा पूरा नहीं कर सकी और 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले खुशी राम बालनाटाह तथा उनके समर्थकों ने भी भाजपा से किनारा कर लिया।
अब इस बार फिर रोहड़ू में भाजपा की राह मुश्किल दिख रही है। मोहन लाल ब्राक्टा को लेकर क्षेत्र में कोई ख़ास एंटी इंकम्बेंसी भी नहीं दिखी है और यदि इस बार फिर वीरभद्र फैक्टर चलता है तो जाहिर है कि इसका सीधा लाभ ब्राक्टा को मिल सकता है। बहरहाल रोहड़ू में किसकी जीत होती है इसके लिए 8 दिसंबर का इंतजार है।