क्या गहलोत को घर में बाँधने में चूक गई भाजपा ?
गहलोत के सामने नहीं उतरे केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत
कांग्रेस के प्रचार का लीड फेस है गहलोत
सरदारपुरा सीट पर 25 साल से गहलोत का कब्ज़ा
भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित हुई है ये सीट
क्या डार्क हॉर्स साबित होंगे राठौर ?
राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अर्से बाद ऐसा माहौल है कि बड़े बड़े सियासी माहिर भी भविष्यवाणी करने से बच रहे है। 25 साल से राजस्थान में सत्ता रिपीट नहीं हुई है और इस बार सीएम अशोक गहलोत दावा कर रहे है कि उनका जादू चलेगा और सरकार रिपीट होगी। सत्तापक्ष कांग्रेस की तरफ से चुनाव प्रचार का जिम्मा भी गहलोत संभाल रहे है और लीड फेस भी गहलोत ही है। ऐसे में कयास लग रहे थे कि गहलोत को घेरने के लिए भाजपा उनकी सीट सरदारपुरा से हेवी वेट कैंडिडेट दे सकती है, और इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर नाम था केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का। शेखावत भाजपा से आधा दर्जन सीएम पद के दावेदारों की लिस्ट में भी है और ऐसे में उनका विधानसभा चुनाव लड़ने के भी कयास थे। अगर शेखावत सरदारपुरा से चुनाव लड़ते तो सम्भवतः गहलोत को अपनी होम सीट पर घेरने की नीति पर भाजपा आगे बढ़ सकती थी, पर ऐसा हुआ नहीं। पार्टी ने यहाँ से महेंद्र सिंह राठौर को टिकट दिया है। राठौर जोधपुर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष है और वर्तमान में जयनारायण विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी। चुनाव में कौन हल्का और कौन भारी, ये तो जनता तय करती है लेकिन निसंदेह गजेंद्र सिंह शेखावत अगर मैदान में होते तो ये मुकाबला हाई प्रोफाइल जरूर हो जाता। बहरहाल राठौर डार्क हॉर्स है या नहीं, ये तो नतीजे तय करेंगे।
उधर जानकारी के मुताबिक गहलोत अपनी सीट पर बेहद सीमित प्रचार करेंगे और उनका अधिकांश वक्त प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में प्रचार में ही गुजरेगा। कांग्रेस ने भले ही अभी सीएम फेस की घोषणा न की हो लेकिन गहलोत ये खुलकर कह रहे है कि सीएम पद उन्हें छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं है। इशारा साफ़ है कि गहलोत खुद को सीएम फेस घोषित कर चुके है। गहलोत अपनी सरकार की जन योजनाओं के बूते जनता के बीच दमदार तरीके से अपनी बात भी रख रहे है और अपने चिर परिचित अंदाज में भाजपा को घेर भी रहे है। राजस्थान कांग्रेस में गहलोत निसंदेह सबसे लोकप्रिय नेता है और उनका ताबड़तोड़ प्रचार अभियान भाजपा के लिए सिरदर्द जरूर है। 200 में से डेढ़ सौ से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में गहलोत की जनसभाएं होनी है, जो बताता है कि कांग्रेस का प्रचार अभियान किस कदर गहलोत पर टिका है। ऐसे में माहिर मान रहे है कि अगर सरदारपुरा से भाजपा हेवी राइट कैंडिडेट यानी गजेंद्र सिंह शेखावत को मैदान में उतरती तो सम्भवतः गहलोत सरदारपुरा सीट पर कुछ वक्त अधिक देते। पर होम सीट पर गहलोत को बाँधने की रणनीति पर भाजपा आगे नहीं बढ़ी है।
अब बात करते है सरदारपुरा सीट की। 1998 में सीएम बनने के बाद पहली बार उपचुनाव में इस सीट से अशोक गहलोत जीते थे और तब से लगातार पांच चुनाव जीत चुके है। इस बार भी गहलोत अगर जीत जाते है तो इस सीट पर उनकी डबल हैट्रिक होगी। जाहिर है ये सीट भाजपा के लिए बिलकुल भी आसान नहीं रहने वाली है। कांग्रेस के इस अभेद किले को भाजपा ढाई दशकों से भेद नहीं पाई है। भाजपा पहले भी गहलोत के खिलाफ चेहरे बदलने की रणनीति पर काम कर चुकी है, पर हाथ केवल मायूसी ही लगी है। इस बार फिर भाजपा ने नया चेहरा उतारा है और पार्टी को बड़े उलटफेर की उम्मीद होगी। अब सरदारपुरा में गहलोत का तिलिस्म बरकरार रहेगा या प्रोफेससर साहब उलटफेर कर पाएंगे ये देखना रोचक होगा।