शिलाई : कद तो बढ़ा पर हर्षवर्धन की चिंता भी बढ़ी होगी !
बीते दिनों डिप्टी सीएलपी लीडर बनने के बाद शिलाई विधायक हर्षवर्धन चौहान अपने क्षेत्र में पहुंचे तो उत्साहित समर्थकों ने उन्हें भावी मुख्यमंत्री करार देते हुए जमकर नारेबाजी की। निसंदेह पांच बार के विधायक हर्षवर्धन कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार है और कांग्रेस के आधा दर्जन से ज्यादा भावी मुख्यमंत्रियों में एक नाम उनका भी है। इधर हर्षवर्धन को पार्टी ने प्रमोट किया तो उधर इसी दौरान हाटी समुदाय को लेकर भाजपा ने बड़ी जीत हासिल कर ली। दशकों से लंबित हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने की मांग पर पार्टी ने एक सकारात्मक कदम बढ़ाया। यदि आचार सहिंता लगने से पहले भाजपा इस मुद्दे पर निर्णायक स्थिति में पहुंच सकी तो, निसंदेह इस मुद्दे का सीधा इम्पैक्ट इस बार के चुनाव में दिखेगा। ऐसे में कद बढ़ने के बावजूद हर्षवर्धन के लिए चुनावी डगर कठिन हो सकती है।
गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा मिलने को लेकर कई दशकों से हाटी समुदाय के लोग संघर्ष कर रहे है। चुनावी फिजा के समय ही नेताओं द्वारा इस मुद्दे को खूब हवा दी जाती है, लेकिन नतीजों के बाद कुछ नहीं होता। ये मसला 154 पंचायतों से सीधे जुड़ा है। इसके दायरे में शिलाई विधानसभा क्षेत्र की सभी पंचायतें आती है, यानी इस बार के चुनाव में शिलाई सीट पर इसका पूरा इम्पैक्ट देखने को मिल सकता है। चुनाव से पहले यदि इसकी नोटिफिकेशन जारी हो जाती है तो भाजपा के लिए हाटी का मुद्दा संजीवनी साबित हो सकता है।
कांग्रेस का गढ़ रही है शिलाई सीट :
इतिहास पर नज़र डाले तो 1972 से लेकर 1985 तक शिलाई सीट पर कांग्रेस का ही कब्ज़ा रहा है। 1990 में सत्ता परिवर्तन हुआ और जनता दल के जगत सिंह नेगी ने कांग्रेस के हर्षवर्धन चौहान को हरा कर शिलाई सीट पर कब्ज़ा किया। 1993 से 2007 तक कांग्रेस के हर्षवर्धन चौहान ने इस सीट पर सत्ता का सुख भोगा। 2007 के चुनाव में तो भाजपा के बलदेव तोमर की जमानत तक जब्त हुई। पर 2012 के चुनाव आए तो भाजपा ने फिर बलदेव तोमर पर भरोसा जताया और तोमर ने हर्षवर्धन चौहान को परास्त कर शिलाई सीट पर कमल खिलाया। इसके बाद 2017 के चुनाव में हर्षवर्धन चौहान ने फिर जीत दर्ज कर शिलाई सीट कांग्रेस की झोली में डाली।