सुरेश भारद्वाज को क्यों भेजा गया कसुम्पटी, मास्टर स्ट्रोक या भूल ?
भाजपा का मास्टरस्ट्रोक या सबसे बड़ी भूल? आखिर क्यों बदला गया मंत्री सुरेश भारद्वाज का निर्वाचन क्षेत्र ? शिमला शहरी सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने वाले भारद्वाज को आखिर कसुम्पटी क्यों भेजा गया ? क्या कसुम्पटी में पार्टी को दमदार चेहरे की थी दरकार, या फिर कुछ और है माजरा ?
जब भाजपा ने प्रत्याशियों की सूची जारी की, तो दो मंत्रियों का टिकट बदल देना आसानी से किसी के गले से नहीं उतरा। जिन दो मंत्रियों के हलके बदले गए है उनमें मंत्री सुरेश भारद्वाज भी शामिल थे। शिमला शहरी सीट से सुरेश भारद्वाज चार बार विधायक रहे है पिछले तीन चुनाव भारद्वाज लगातार जीते है। सबसे पहले 1990 में भारद्वाज शिमला शहर से विधायक बने उसके बाद लगातार 2007 से 2017 तक भारद्वाज ने शिमला शहरी सीट पर राज किया। इसके बावजूद भी भाजपा ने भारद्वाज को कसुम्पटी ट्रांसफर कर दिया। कुछ लोग मानते है कि इस बदलाव का कारण कसुम्पटी में लगातार हार रही भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करना है, तो कुछ का मानना है कि भारद्वाज को लेकर शिमला शहरी में पर्याप्त एंटी इंकम्बेंसी का अंदेशा भाजपा को था और इसलिए भाजपा ने यहाँ किसी नए चेहरे को उतारना वाजिब समझा।
बहरहाल अब मतदान हो चुका है और अब कसुम्पटी में भारद्वाज का सीधा मुकाबला कांग्रेस के अनिरुद्ध सिंह से है। वही अनिरुद्ध सिंह जो इस बार जीत की हैट्रिक लगाने को आश्वस्त दिख रहे है और उनके समर्थक लगातार उन्हें मंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे है। अब कसुम्पटी में अनिरुद्ध सिंह जीत की हैट्रिक लगाते है या सुरेश भारद्वाज अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रख पाते है, ये तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अतीत पर निगाह डालें तो कसुम्पटी में भाजपा के लिए राह आसान नहीं दिख रही है। आखिरी बार रूप दास कश्यप ने यहां 1998 में भाजपा को जीत दिलाई थी, लेकिन 2003 में रूप दास कश्यप करीब तीन हजार वोट के अंतर से हार गए। तब निर्दलीय सोहन लाल ने जीत दर्ज की थी। ये आखिरी मौका था जब भाजपा कुसुम्पटी में मुकाबले में दिखी। इसके बाद हुए तीन चुनाव में भाजपा तीन उम्मीदवार बदल चुकी है और तीनों बार पार्टी को शिकस्त ही मिली है। 2007 में पार्टी ने तरसेम भारती को टिकट दिया, लेकिन भारती करीब साढ़े सात हजार मतों के अंतर से हारे। 2012 में भाजपा ने प्रेम सिंह को और 2017 में विजय ज्योति को मैदान में उतारा और दोनों करीब दस हजार के अंतर से हारे। इन दोनों ही मौकों पर कांग्रेस के अनिरुद्ध सिंह का कसुम्पटी में शानदार प्रदर्शन रहा। लगातार 10 साल तक विधायक रहने के बाद भी अनिरुद्ध सिंह को लेकर कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं दिख रही है। कसुम्पटी में अनिरुद्ध सिंह का सरल स्वभाव लोगों को पसंद है और वे लगातार जनता के बीच भी रहे है। अनिरुद्ध ने इस बार भी चुनाव पूरे दमखम से लड़ा है और कांग्रेस इस क्षेत्र में सहज दिखाई दे रही है।
उधर सुरेश भारद्वाज को लेकर विरोध के स्वर भी उठते रहे है। हालांकि समय रहते पार्टी द्वारा बगावत को तो साध लिया गया, लेकिन भीतरघात की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसे में अब अगर कसुम्पटी में भाजपा बेहतर नहीं कर पाती है तो टिकट आवंटन को लेकर तो सवाल उठेंगे ही, साथ ही सुरेश भारद्वाज की साख भी यहां दांव पर लगी हुई है।