सर्व स्वीकार्य चेहरा सोलन भाजपा की जरूरत !
2012 के विधानसभा चुनाव से पहले सोलन निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित हो गया और इस सीट पर जीत की हैट्रिक बना चुके डॉ राजीव बिंदल को नाहन का रुख करना पड़ा। तब से अब तक करीब एक दशक बीत चूका है और सोलन भाजपा को एक अदद चेहरे की जरूरत है जो स्वीकार्य भी हो और सबको साथ लेकर आगे भी बढ़ सके। वर्तमान में डॉ राजेश कश्यप इसी जद्दोजहद में है कि वो अपने पाँव भी मजबूत कर सके और 2022 में फिर कमल खिला सके। पर हाल और हालात दोनों खराब दिख रहे है। अलबत्ता डॉ कश्यप विरोधी खेमे को चित करने में कुछ सफल जरूर हुए है पर फिलवक्त जमीनी स्तर पर न डॉ कश्यप का जादू चला रहा है और न ही भाजपा ज्यादा आशावान दिख रही है। ऐसा ही हाल रहा तो 2022 में नतीजा भाजपा को बेहाल करने वाला होगा।
वर्तमान में भाजपा की धरातल स्थिति समझने के लिए वर्ष 2012 से पूरा घटनाक्रम समझना होगा। डॉ राजीव बिंदल के उपरांत भाजपा ने 2012 में एक जमीनी कार्यकर्ता और जिला परिषद अध्यक्ष रही कुमारी शीला को मैदान में उतारा था, लेकिन शीला का जादू नहीं चला। चुनाव हारने के बाद कुमारी शीला ने वैसी सक्रियता भी नहीं दिखाई जिसके बूते उनकी राह 2017 में आसान होती। वहीं इस बीच टिकट की चाह में तरसेम भारती भी सोलन में अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करते रहे। थोड़ी बहुत कोशिश हीरानंद कश्यप भी करते रहे पर वो कभी रेस में दिखे नहीं। पर 2017 पार्टी ने सबको दरकिनार कर एक पैराशूट उम्मीदवार को अपना आशीर्वाद दे दिया और वो उम्मीदवार थे आईजीएमसी में सेवाएं दे चुके डॉ राजेश कश्यप। डॉ कश्यप ने वीआरएस लिया और राजनीति के अखाड़े में कूद गए। माना जाता है कि उन्हें टिकट दिलाने वाले थे डॉ राजीव बिंदल। इस टिकट ने तरसेम भारती और कुमारी शीला के अरमान कुचल दिए और कुमारी शीला ने खुलकर नाराज़गी व्यक्त की। पर दिलचस्प बात ये है कि तब बिंदल के कई चहेते कुमारी शीला के साथ खड़े दिखे। आखिरकार हुआ वहीँ जो अपेक्षित था, डॉ राजेश कश्यप चुनाव हार गए।
कहा गया कि चुनाव में बिंदल के कुछ ख़ास लोगों ने उनके पक्ष में काम नहीं किया और तभी से बिंदल गुट और उनके बीच एक मतभेद बनते गए। अब डॉ कश्यप सोफत गुट के नजदीकी है और सोलन भाजपा दो गुटों में विभाजित। डॉ राजेश कश्यप 2022 के लिए अभी से मैदान में है, पर पार्टी की अंतर्कलह उन्हें स्थापित नहीं होने दे रही। विरोधी कह रहे है की जब 2017 में अंतिम क्षणों में नया चेहरा आ गया तो 2022 में भी सब मुमकिन है। ऐसी स्थिति में यदि डॉ कश्यप का जलवा जमीनी स्तर पर नहीं दिखा तो उनकी उम्मीदवारी पर भी संकट की स्थिति है। ऐसा इसलिए भी है क्यों की इसी वर्ष हुए जिला परिषद् और नगर निगम चुनाव में भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा है। इस पर विकास कार्यों की गति भी मंद है। सो कश्यप को खुद को साबित करना होगा।
जिला परिषद और नगर निगम में मिली शिकस्त
सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत 4 जिला परिषद् वार्ड आते है, दो पूर्ण और 2 आंशिक। 14 पंचायतों वाला सलोगड़ा वार्ड और 20 पंचायतों वाला सिरिनगर वार्ड पूरी तरह सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत आते है। जबकि सपरून वार्ड की 4 और कुनिहार वार्ड की 6 पंचायतें सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती है। जिला परिषद् में इन चारों ही वार्डों में भाजपा समर्थित प्रत्याशियों को पराजय मिली थी। इसके बाद नगर निगम चुनाव में भी भजपा को हर का सामना करना पड़ा।
संगठन भी नहीं दिख रहा प्रभावी
भाजपा सोलन मंडल की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे है। भाजपा में फिलवक्त प्रभावी नेतृत्व ही नहीं दिख रहा है। जिला परिषद और नगर निगम चुनाव में भी संगठन की कमजोरी खुलकर दिखी। तब कमजोर दिखने वाला कांग्रेस का संगठन भी भाजपा की तुलना में ज्यादा आक्रामक दिखा था।
डॉ कश्यप नहीं तो कौन ?
जिला परिषद् चुनाव में सलोगड़ा वार्ड से कुमारी शीला भाजपा उम्मीदवार थी। पर लगातार तीन चुनाव जीत चुकी कुमारी शीला को यहाँ हार का सामना करना पड़ा, जो व्यक्तिगत तौर पर उनके लिए बड़ा झटका है। उसके बाद भी कुमारी शीला ज्यादा सक्रीय नहीं दिखी। ऐसा ही हाल तरसेम भारती का है। ऐसे में अगर डॉ राजेश कश्यप नहीं तो कौन, ये बड़ा सवाल है। क्या फिर 2022 से पहले सोलन भाजपा की सियासत में कोई नई एंट्री होने वाली है।