सोलन : कई पदाधिकारी, पार्षद रहे नदारद, कहीं ये अंतर्कलह कांग्रेस को ले न बैठे !
कई पदाधिकारी, पार्षद रहे नदारद, कहीं ये अंतर्कलह कांग्रेस को ले न बैठे !
- सोलन में रोजगार संघर्ष यात्रा निकालने वाली कांग्रेस खुद दिखी संघर्षरत
सोलन कांग्रेस की रोजगार संघर्ष यात्रा में पार्टी के कई चेहरे नहीं दिखे जिनमें शहरी कांग्रेस अध्यक्ष भी शामिल है। संगठन के कई पूर्व पदाधिकारी भी इस आयोजन से दूर दिखे। इत्तेफ़ाक़ की बात है इन सभी को रविवार को ही निजी आवश्यक काम था। दूसरा इत्तेफ़ाक़ ये है कि ये सभी सुखविंद्र सिंह सुक्खू के समर्थक माने जाते है। अब जब नेता ही मौजूद नहीं थे तो जाहिर है इनके समर्थक भी मुश्किल ही इस संघर्ष में पहुंचे हो।
सोलन शहर में कांग्रेस की ये संघर्ष यात्रा निकली जहाँ नगर निगम पर कांग्रेस का कब्ज़ा है। नगर निगम में कांग्रेस के 9 पार्षद है पर इस आयोजन में सिर्फ चार दिखे। पांच पार्षद संघर्ष यात्रा में संघर्ष करने ही नहीं पहुंचे। ऐसे में सोलन निर्वाचन क्षेत्र में फिर अपनी जीत का दावा करने वाली कांग्रेस को इस संदर्भ में आत्ममंथन जरूर करना होगा। माहिर मान रहे है कि बीते कुछ वक्त में कसौली कांग्रेस में जो एक्शन दिखा है, रविवार को सोलन में उसका रिएक्शन देखने को मिला है। हालात ये ही रहे तो इसका खमियाजा कांग्रेस के साथ -साथ कर्नल धनीराम शांडिल को भी भुगतना पड़ सकता है।
हालांकि इस रोजगार संघर्ष यात्रा में कांग्रेस भीड़ जुटाने में कामयाब रही। खास बात ये है कि सिर्फ सोलन निर्वाचन क्षेत्र ही नहीं अन्य तीन -चार निर्वाचन क्षेत्रों के लोग भी इसमें शामिल हुए। बहरहाल जैसे तैसे कांग्रेस ने ठीक ठाक भीड़ तो जुटा ही ली। यहाँ गौर करने लायक बात ये भी है कि रमेश ठाकुर, रमेश चौहान और सुरेंद्र सेठी जैसे होलीलॉज के करीबी वरिष्ठ नेता मोर्चा संभाले हुए थे, सो पार्टी की लाज बचना तो लाजमी था।
कर्नल दमदार, पर स्थिति विकट:
दस साल से विधायक होने के बावजूद कर्नल धनीराम शांडिल को लेकर सोलन निर्वाचन क्षेत्र में कोई विरोधी लहर नहीं दिखती। कहीं कम तो कहीं ज्यादा, पर कर्नल ने समूचे निर्वाचन क्षेत्र में काम जरूर किया है। इस पर उनकी ईमानदार छवि उन्हें और मजबूत करती है। इसमें भी कोई संशय नहीं है की सोलन निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के पास कर्नल से बेहतर कोई विकल्प नहीं दिखता। बावजूद इसके कर्नल की राह मुश्किल हो सकती है। एक और जहाँ कंडाघाट के वरिष्ठ नेता और होलीलॉज के करीबी रमेश ठाकुर के साथ कर्नल शांडिल के सियासी मतभेद पूरी तरह सुलझे हुए नहीं दिख रहे, वहीँ कर्नल के शागिर्दों में अधिकांश सुखविंद्र सिंह सुक्खू के निष्ठावान है। यानी खतरा है कि ऊपरी स्तर पर अगर कांग्रेस की अंतर्कलह की चक्की तेज हुई, तो कर्नल बेवजह न पीस जाएं। हालांकि कर्नल शांडिल बेहद अनुभवी नेता है और गुटबाजी से भी दूर। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि वो इस स्थिति से कैसे निपटते है।