सोलन में किसके सर सजेगा जीत का ताज ,ससुर या फिर दामाद
रिश्ते-नाते अपनी जगह है और सियासत अपनी जगह। कुछ ऐसा ही सूरत ए हाल सोलन सदर सीट का है। यहां चुनावी दंगल में इस बार भी ससुर दामाद आमने सामने है। कांग्रेस से डॉ कर्नल धनीराम शांडिल और भाजपा से डॉ राजेश कश्यप मैदान में है। गौरतलब है कि 2017 में भी मुख्य मुकाबला ससुर-दामाद के बीच ही देखने को मिला था तब ससुर ने दामाद को पटखनी दे कर जीत हासिल की थी जबकि इस बार दामाद जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे है। खैर जीत का ताज किसके सर सजता है ये तो नतीजे आने के बाद ही पता लगेगा। बहरहाल सोलन में इस बार कड़ा मुकाबला तय है।
सोलन का इतिहास भी बेहद रोचक रहा है। वर्ष 2000 में सोलन विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ था। तब अप्रत्याशित तौर पर पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत का टिकट काट कर भाजपा ने डॉ राजीव बिंदल को टिकट दिया था, और पहली बार बिंदल विधायक बने थे। इसके बाद डॉ बिंदल ने 2003 और 2007 में भी जीत दर्ज की। 2007 से 2012 तक बिंदल मंत्री भी रहे और सोलन की राजनीति में उनका खूब डंका बजा। लेकिन 2012 में सोलन सीट आरक्षित हो गई तो डॉ राजीव बिंदल नाहन चले गए। इसके बाद से सोलन में भाजपा दो चुनाव हार चुकी है और दोनों बार कांग्रेस के कर्नल धनीराम शांडिल विधायक बने। 2012 में उन्होंने भाजपा की कुमारी शीला को हराया, तो 2017 में अपने दामाद और भाजपा उम्मीदवार डॉ राजेश कश्यप को। इस बार फिर ससुर- दामाद में मुकाबला हुआ है और कांटे की टक्कर में कुछ भी मुमकिन है।
यूं तो सोलन भाजपा में गुट विशेष और डॉ राजेश कश्यप के बीच के मतभेद जगजाहिर है, लेकिन इस बार बाहरी तौर पर पार्टी एकजुट दिखी है। अब अगर ज्यादा भीतरघात नहीं हुआ है तो भाजपा यहाँ जीत का सूखा समाप्त कर सकती है। यहाँ डॉ राजेश कश्यप के लगातार पांच साल फील्ड में सक्रिय रहने का लाभ भी भाजपा को मिल सकता है। उधर कांग्रेस की बात करे तो लगातार दो चुनाव जीतने के बाद कर्नल शांडिल इस बार जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है। ओपीएस और कर्नल की क्लीन इमेज के बूते पार्टी फिर जीत को लेकर आश्वस्त है।