पंजाब में लगाए थे दस साल, हिमाचल में चंद महीनों में कैसे होगा कमाल !
( words)
करीब दस साल जमीनी मेहनत करने के बाद और कांग्रेस की अंतर्कलह की बिसात पर जब पंजाब में आम आदमी पार्टी को शानदार जीत मिली, तो पार्टी की नजरें पडोसी प्रदेश हिमाचल पर आकर टिक गई। आनन -फानन में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के दो शानदार कार्यक्रम भी हिमाचल में करवा दिए गए और कांग्रेस-भाजपा से कुछ नेता-कार्यकर्ता भी इम्पोर्ट कर पार्टी कुछ हद तक माहौल बनाने में कामयाब दिखी। शुरुआत बेहतर थी और लगने लगा कि अलबत्ता आप आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार न बना पाएं, लेकिन दमदार उपस्थिति जरूर दर्ज करवाएगी। पर करीब बीते एक माह में पार्टी हिमाचल में पटरी से उतरी दिखी है। व्यवस्था परिवर्तन कर नया हिमाचल बनाने का दावा करने वाली आप करीब डेढ़ माह में अपना प्रदेश संग ठन तक नहीं बना पाई। एकाध प्रवक्ता रोजाना पत्रकार वार्ताएं जरूर कर रहे है लेकिन क्या लोग उन्हें गंभीरता से ले रहे है, बहरहाल ये बड़ा सवाल है। पेपर लीक प्रकरण जैसे अस्थायी मुद्दे को छोड़ दे तो प्रदेश के उन बड़े मुद्दों को पार्टी छूने में असफल रही है, जो यहां सत्ता परिवर्तन की बिसात बनते है। शायद पार्टी अब तक ये समझ ही नहीं पा रही कि हिमाचल प्रदेश में दिल्ली मॉडल के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। हिमाचल में जीतना है तो हिमाचल के मुद्दों की बात करनी होगी।
निसंदेह पंजाब की भगवंत मान सरकार का प्रदर्शन भी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर होगा। प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्र पंजाब की सीमा पर है। कई क्षेत्रों में बोली-भाषा और रीति -रिवाज भी पंजाब जैसा है। वहीं हिमाचल में हुकूमत के कई निर्णय भी पंजाब की तर्ज पर लिए जाते है, मसलन कर्मचारियों का वेतनमान। ऐसे में यदि भगवंत मान सरकार का जादू पंजाब में चला तो असर हिमाचल में भी दिखेगा। पर अब पंजाब सरकार कोई बड़ा जादू करती नहीं दिख रही। गायक और कांग्रेस नेता सिद्धू मुसेवाला की हत्या के बाद पंजाब की कानून व्यवथा पर भी सवाल उठ रहे है। यदि मान सरकार वहां ठीक नहीं करती है तो यहाँ हिमाचल में भी इसका प्रतिकूल असर पड़ना जायज है, हालांकि अभी भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी है।
इस बीच दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर ईडी की कार्रवाई भी आप के लिए बड़ा झटका साबित हुई है। पिछले कई महीनों से जैन लगातार हिमाचल के दौरे कर रहे थे और हिमाचल में पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार थे। पर अब जैन ईडी की हिरासत में है और हिमाचल में पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं दिख रहा। उधर जैन की गिरफ्तारी पर विपक्षी भी आप की स्वच्छ और ईमानदार छवि पर सवाल उठा रहे है।
नहीं शामिल हुआ कोई बड़ा चेहरा :
चर्चा थी कि कई सियासी शूरवीर आम आदमी पार्टी के सम्पर्क में है। इनमें दोनों ही दलों के नेता शामिल बताये जा रहे थे। एक मंत्री, पूर्व मंत्री और कई विधायकों -पूर्व विधायकों को लेकर भी कयास लग रहे थे। पर अब तक पार्टी पहली पंक्ति के किसी भी नेता को साथ जोड़ने में कामयाब नहीं रही। पार्टी के पास हिमाचल प्रदेश में कोई फेस नहीं है और बगैर फेस पार्टी शायद ही बेहतर कर पाएं।
ग्राउंड रियलिटी :
जानकार मान रहे है कि दोनों ही दलों के असंतुष्ट नेता भी फ़िलहाल आप में जाने से कतरा रहे है। संभवतः टिकट आवंटन के बाद जरूर नाराज और बागी नेता आप में जाते दिखे, लेकिन ऐसा हुआ भी तो इसका व्यापक असर होना मुश्किल होगा। वर्तमान में नादौन, कसौली, ज्वालामुखी और पांवटा साहिब जैसे चंद निर्वाचन क्षेत्रों में जरूर स्थानीय नेताओं के दम पर पार्टी टिकी हुई है, लेकिन प्रदेश में आलाकमान का न होना पार्टी की बड़ी कमजोरी साबित हो रहा है।
निसंदेह पंजाब की भगवंत मान सरकार का प्रदर्शन भी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर होगा। प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्र पंजाब की सीमा पर है। कई क्षेत्रों में बोली-भाषा और रीति -रिवाज भी पंजाब जैसा है। वहीं हिमाचल में हुकूमत के कई निर्णय भी पंजाब की तर्ज पर लिए जाते है, मसलन कर्मचारियों का वेतनमान। ऐसे में यदि भगवंत मान सरकार का जादू पंजाब में चला तो असर हिमाचल में भी दिखेगा। पर अब पंजाब सरकार कोई बड़ा जादू करती नहीं दिख रही। गायक और कांग्रेस नेता सिद्धू मुसेवाला की हत्या के बाद पंजाब की कानून व्यवथा पर भी सवाल उठ रहे है। यदि मान सरकार वहां ठीक नहीं करती है तो यहाँ हिमाचल में भी इसका प्रतिकूल असर पड़ना जायज है, हालांकि अभी भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी है।
इस बीच दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर ईडी की कार्रवाई भी आप के लिए बड़ा झटका साबित हुई है। पिछले कई महीनों से जैन लगातार हिमाचल के दौरे कर रहे थे और हिमाचल में पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार थे। पर अब जैन ईडी की हिरासत में है और हिमाचल में पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं दिख रहा। उधर जैन की गिरफ्तारी पर विपक्षी भी आप की स्वच्छ और ईमानदार छवि पर सवाल उठा रहे है।
नहीं शामिल हुआ कोई बड़ा चेहरा :
चर्चा थी कि कई सियासी शूरवीर आम आदमी पार्टी के सम्पर्क में है। इनमें दोनों ही दलों के नेता शामिल बताये जा रहे थे। एक मंत्री, पूर्व मंत्री और कई विधायकों -पूर्व विधायकों को लेकर भी कयास लग रहे थे। पर अब तक पार्टी पहली पंक्ति के किसी भी नेता को साथ जोड़ने में कामयाब नहीं रही। पार्टी के पास हिमाचल प्रदेश में कोई फेस नहीं है और बगैर फेस पार्टी शायद ही बेहतर कर पाएं।
ग्राउंड रियलिटी :
जानकार मान रहे है कि दोनों ही दलों के असंतुष्ट नेता भी फ़िलहाल आप में जाने से कतरा रहे है। संभवतः टिकट आवंटन के बाद जरूर नाराज और बागी नेता आप में जाते दिखे, लेकिन ऐसा हुआ भी तो इसका व्यापक असर होना मुश्किल होगा। वर्तमान में नादौन, कसौली, ज्वालामुखी और पांवटा साहिब जैसे चंद निर्वाचन क्षेत्रों में जरूर स्थानीय नेताओं के दम पर पार्टी टिकी हुई है, लेकिन प्रदेश में आलाकमान का न होना पार्टी की बड़ी कमजोरी साबित हो रहा है।
दोनों के समीकरण बिगाड़ सकती है आप :
बेशक आगामी विधानसभा चुनाव में आप सरकार बनांने की दौड़ में नहीं दिख रही लेकिन पार्टी की मौजूदगी दोनों ही दलों का गणित जरूर बिगाड़ सकती है। उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के समीकरण खराब किये थे, जिससे भाजपा का मिशन रिपीट सफल हो पाया। पर हिमाचल में पार्टी किसके समीकरण ज्यादा खराब करेगी, ये फिलहाल विश्लेषण का संदर्भ है।
बेशक आगामी विधानसभा चुनाव में आप सरकार बनांने की दौड़ में नहीं दिख रही लेकिन पार्टी की मौजूदगी दोनों ही दलों का गणित जरूर बिगाड़ सकती है। उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के समीकरण खराब किये थे, जिससे भाजपा का मिशन रिपीट सफल हो पाया। पर हिमाचल में पार्टी किसके समीकरण ज्यादा खराब करेगी, ये फिलहाल विश्लेषण का संदर्भ है।