जाते-जाते बहुत निकले आश्रय के दिल के मलाल
बड़े दुखी होकर आश्रय आखिरकार कांग्रेस से निकले, जाते हुए बहुत निकले दिल के मलाल लेकिन फिर भी कम निकले....आखिरकार आश्रय शर्मा ने कांग्रेस को अलविदा कह ही दिया। वैसे जिस दिन अनिल शर्मा ने भाजपा के साथ रहने का ऐलान कर दिया था, उसी दिन ये तय हो गया था कि आश्रय भी जल्द कांग्रेस को अलविदा कह देंगे और हुआ भी ऐसा ही। जाते-जाते आश्रय अपनी दिल की भड़ास भी निकाल कर गए। उनके चुनाव लड़ने से लेकर अब तक कांग्रेस में उनपर क्या बीती,आश्रय ने प्रेस कांफ्रेंस में तमाम सितम बयां किये। इस 'दर्द-ए-आश्रय' के एपिसोड में वीरभद्र सिंह, कौल सिंह ठाकुर और कांग्रेस के तमाम वो नेता जो आश्रय के अनुसार उनके साथ नहीं खड़े थे, उन सभी का ज़िक्र हुआ। विशेषकर आश्रय ने वीरभद्र सिंह परिवार और कौल सिंह को लेकर भड़ास निकाली।
अपने विदाई भाषण में आश्रय ने कहा कि पंडित सुखराम की आखिरी इच्छा थी कि उनकी अंतिम सांस उस पार्टी में निकले जहाँ उन्होंने ताउम्र काम किया है, इसलिए 2019 में वे कांग्रेस में वापस आएं। आशर्य ने ये भी कहा कि जब कांग्रेस के तमाम दिग्गज लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे तो राहुल गाँधी ने पंडित सुखराम से उन्हें चुनाव लड़ाने का आग्रह किया। फिर आश्रय ने वीरभद्र सिंह और ठाकुर कौल सिंह पर उनके विरोध में चुनाव में काम करने का आरोप भी जड़ा। साथ ही एक ऑडियो टेप का हवाला देकर वीरभद्र सिंह परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा दिए। बहरहाल आश्रय का कांग्रेस में 'आश्रय' ठीक उसी तरह समाप्त हुआ, जैसा अपेक्षित था।
पुराना है आने -जाने का ये सिलसिला
एक दल से दूसरे में आने जाने का सुखराम परिवार का सिलसिला पुराना है। पहले पंडित सुखराम ने कांग्रेस छोड़कर हिमाचल विकास कांग्रेस बनाई थी जिसके चलते 1998 में कांगेस की सत्ता वापसी नहीं हो सकी थी। पांच साल भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में रहने के बाद सुखराम परिवार कांग्रेस में लौट आया और 2017 तक कांग्रेस में रहा। पर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2017 में पंडित सुखराम का परिवारकांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुआ था। अनिल शर्मा ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत के बाद उन्हें प्रदेश सरकार में ऊर्जा मंत्री का पद मिला था। पर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पंडित सुखराम और आश्रय शर्मा ने कांग्रेस में वापसी कर ली थी, जबकि अनिल शर्मा भाजपा में रह गए थे। इसके बाद आश्रय ने कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। इसके चलते अनिल शर्मा को मंत्रीपद से हाथ धोना पड़ा था और अनिल शर्मा भाजपा में होकर भी एक किस्म से भाजपा में नहीं थे। इस बीच बीती 24 तारीख को अनिल शर्मा ने भाजपा के साथ आगे बढ़ने का फैसला लिया था और उनके बेटे आश्रय ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया।