सत्ता के सोलह श्रृंगार की राह में रोड़ा न बन जाएँ ये सोलह सीटें
वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने है और दोनों मुख्य राजनैतिक दल अभी से मिशन रिपीट और मिशन डिलीट की कवायद में जुट गए है। इस पर आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी खिचड़ी में तड़का लगा दिया है। आप से इतर भी दोनों राजनैतिक दलों और सत्ता के सोलह श्रृंगार के बीच सोलह विधानसभा सीटें ऐसी है जो राह में रोड़ा बन सकती है। 2003 से लेकर 2017 तक हुए चार विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो इन 16 पर हर पांच वर्ष के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। यहाँ कभी कांग्रेस, कभी भाजपा तो कभी अन्य काबिज हुए है। हालांकि इनमें से कुछ ऐसी सीटें भी है जहां दल भले ही बदले हो लेकिन चेहरा एक ही रहा है।
वर्तमान स्थिति की बात करें तो इन 16 सीटों में से 12 पर भाजपा काबिज है, जबकि 4 पर कांग्रेस के विधायक है। गगरेट, सुलह, धर्मशाला, बिलासपुर, आनी, नूरपुर, सुंदरनगर, चौपाल, दून, भरमौर, लाहौल स्पीति और करसोग में इस वक्त भाजपा के विधायक है, तो जुब्बल कोटखाई, कांगड़ा, कुल्लू और नालागढ़ में कांग्रेस काबिज है। 2017 विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा के पास इन सोलह में से 13 सीटें थी, पर उपचुनाव में हार के बाद जुब्बल कोटखाई सीट अब कांग्रेस के पास है। वहीं 2019 में धर्मशाला सीट पर भी उपचुनाव हुआ है लेकिन उक्त सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। यहाँ नालागढ़ ऐसी सीट है जहां 2003 और 2007 में भाजपा काबिज हुई लेकिन 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। इसके बाद 2012 में भाजपा और 2017 में कांग्रेस को जीत मिली।
जुब्बल कोटखाई : एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा
जुब्बल कोटखाई प्रदेश का इकलौता निर्वाचन क्षेत्र क्षेत्र है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह। लम्बे समय तक इस सीट पर ठाकुर रामलाल की तूती बोलती थी और उनके निधन के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में उनके पोते रोहित ठाकुर को भी यहाँ की जनता का प्यारा मिला। पर 2007 में पूर्व बागवानी मंत्री रहे नरेंद्र बरागटा ने पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर जनता ने कांग्रेस के रोहित ठाकुर को विजयी बनाया, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर नरेंद्र बरागटा ने जीत हासिल की। 5 जून 2021 को नरेंद्र बरागटा का निधन हुआ और तदोपरांत 30 अक्टूबर 2021 को जुब्बल कोटखाई सीट पर हुए उपचुनाव में रोहित ठाकुर को तीसरी बार जीत मिली। इस वर्ष के अंत में फिर विधानसभा चुनाव होने है और इस दफा जुब्बल कोटखाई की कुर्सी पर कौन सा दल काबिज होता है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। वहीं चेतन बरागटा की भाजपा में घर वापसी और आप में जाने की अटकलों ने अभी से इस क्षेत्र में सियासत गरमा गई है।
चौपाल : यहाँ निर्दलियों को भी मिलता रहा है प्यार
चौपाल सीट के पिछले चार चुनावों के नतीजों का आंकलन किया जाए तो इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के साथ - साथ निर्दलियों का सिक्का भी चला है। कभी यहां बीजेपी की उम्मीदवार की जीत हुई, कभी कांग्रेस की, तो कभी निर्दलियों-बागियों ने दोनों का खेल बिगाड़ा। 2003 के विधानसभा चुनाव में सुभाष चंद मंगलेट ने इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में सुभाष चंद मंगलेट ने कांग्रेस पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2012 में निर्दलीय बलबीर वर्मा ने सुभाष चंद मंगलेट को हराया। 2017 में बलबीर वर्मा भाजपा में शामिल हुए और पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। यानी 2003 और 2007 का चुनाव मंगलेट बतौर निर्दलीय और फिर कांग्रेस के टिकट पर जीते। इसी तरह बलबीर वर्मा ने 2012 में बतौर निर्दलीय और 2017 में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की।
दून : फिर दिलचस्प मुकाबला तय
दून विधानसभा क्षेत्र में जनता कब किस पर मेहरबान हो ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन पिछले चार चुनावों में इस सीट पर निरंतर सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है। 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस के लज्जा राम ने 17297 मतों के साथ जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में यहां सत्ता परिवर्तन हुआ और भाजपा से विनोद कुमारी ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी रामकुमार ने भाजपा के निर्दलीय रहे दर्शन सिंह को हरा कर जीत हासिल की और यह सीट कांग्रेस के नाम हुई। 2017 के चुनाव में भाजपा ने परमजीत सिंह पम्मी पर दांव खेला और यह सीट भाजपा के नाम रही। दिलचस्प बात ये है कि पम्मी कांग्रेस से भाजपा में आये थे। अब 2022 में भी यहां दिलचस्प मुकाबला तय दिख रहा है। वहीं कई नेताओं के आप में जाने की अटकलों से भी यहाँ सियासी पारा हाई है।
बिलासपुर : 2003 से परिवर्तन की प्रथा कायम
बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में 2003 के विधानसभा चुनाव में तिलक राज ने जीत दर्ज कर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली तो 2007 के चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा इस सीट पर भाजपा को काबिज करवाने में कामयाब रहे। 2012 के चुनाव में कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने भाजपा के सुरेश चंदेल को पटखनी देकर जीत दर्ज की थी। 2017 के लिए कांग्रेस ने फिर बंबर ठाकुर पर दांव लगाया और भाजपा ने सुभाष ठाकुर पर, लेकिन सुभाष ठाकुर इस सीट पर फ़तेह हासिल करने में कामयाब रहे। 2003 से परिवर्तन की प्रथा इस सीट पर कायम है।
गगरेट : कुलदीप की हैट्रिक के बाद से लगातार परिवर्तन
गगरेट सीट पर 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कुलदीप कुमार ने जीत की हैट्रिक पूरी की थी। पर इसके बाद गगरेट सीट पर समीकरण बदले और 2007 में भाजपा से बलबीर सिंह ने सत्ता का सुख भोगा। 2012 में फिर चेहरे बदले और इस सीट पर कांग्रेस के राकेश कालिया ने कब्ज़ा जमाया। 2017 के चुनाव में राजेश ठाकुर ने गगरेट सीट फिर भाजपा के नाम की। इस सीट पर निरंतर राजनैतिक दलों की चल रही अदला बदली के बीच 2022 का चुनाव रोचक होना तय माना जा रहा है।
सुलह : कांग्रेस -भाजपा दोनों के खाते में दो - दो जीत
सुलह विधानसभा क्षेत्र में पिछले चार चुनाव के नतीजों पर गौर करे तो दो बार भाजपा व 2 बार कांग्रेस ने इस सीट पर सत्ता का सुख भोगा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में जगजीवन पाल ने जीत दर्ज कर ये सीट कांग्रेस के नाम की, तो 2007 के विधानसभा चुनाव में विपिन सिंह परमार ने भाजपा का झंडा लहराया। 2012 के चुनाव में फिर जगजीवन पाल ने इस सीट पर बाजी मारी और ये सीट कांग्रेस के नाम की। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में विपिन सिंह परमार फिर भाजपा टिकट पर जीते। यानी पिछले चार चुनावो में इस सीट पर दोनों ही राजनैतिक दल बराबरी पर रहे है।
धर्मशाला : उपचुनाव में भाजपा के पास ही रही सीट
धर्मशाला सीट पर 1990 से लेकर 1998 तक भाजपा का ही राज रहा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चंद्रेश कुमारी पर दांव खेला और लम्बे अंतराल के बाद इस सीट पर जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा ने इस सीट पर बाज़ी मारी और किशन कपूर यहाँ से विधायक बने। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सुधीर शर्मा को मैदान में उतारा और सीट अपने नाम की। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर किशन कपूर ने फिर इस सीट को भाजपा की झोली में डाला। लोकसभा चुनाव 2019 में किशन कपूर ने बाज़ी मारी और सांसद बने जिसके बाद 2019 में धर्मशाला में उपचुनाव हुए और इस सीट पर भाजपा के ही विशाल नेहरिया ने जीत दर्ज की। दिलचस्प बात ये है कि उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त हुई थी। वहीं तब दूसरे नंबर पर रहने वाले राकेश चौधरी अब आप में शामिल हो चुके है।
काँगड़ा : लम्बे वक्त से चल रहा भाजपा का वनवास
काँगड़ा विधानसभा क्षेत्र में पिछले चार चुनाव के नतीजों पर नजर डाले तो इस सीट पर निरंतर सत्ता परिवर्तन हुआ है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सुरिंदर कुमार ने जीत दर्ज की। 2007 के चुनाव में बीएसपी पार्टी के संजय चौधरी को जनता ने स्वीकार किया और काँगड़ा सीट बीएसपी पार्टी की हुई। 2012 के विधानसभा चुनाव में चौधरी सुरेंदर कुमार को हरा कर निर्दलीय मैदान में उतरे पवन काजल ने ये सीट अपने नाम की। इस बाद काजल कांग्रेस ने शामिल हुए। 2017 के चुनाव में पवन कुमार काजल कांग्रेस में शामिल हुए और काँगड़ा सीट फिर कांग्रेस की झोली में आई। बेशक काजल लगातार दो चुनाव जीतने में कामयाब रहे हो लेकिन पार्टी सिंबल के लिहाज से देखा जाएं तो यहां पिछले चार चुनाव से परिवर्तन होता आ रहा है।
भरमौर : एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे भरमौरी
भरमौर विधानसभा गद्दी जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इस कारण भरमौर को गद्देरण भी कहा जाता है। भरमौर विधानसभा क्षेत्र में लगातार सत्ता की कुर्सी पर राजनीतिक दलों की अदला बदली रही है। पिछले चार चुनाव की बात की जाए तो 2003 के चुनाव में ठाकुर सिंह भरमौरी ने जीत दर्ज कर सत्ता की कुर्सी पर कांग्रेस को बैठाया। 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तुलसी राम ने भरमौर सीट भाजपा के नाम की। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ठाकुर सिंह भरमौरी पर दांव खेला तो भाजपा ने जिया लाल को मैदान में उतारा। भरमौरी ने 2012 में सीट पर जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के जिया लाल ने फिर इस सीट से चुनाव लड़ा और ये सीट भाजपा की झोली में गई। लगातार चार चुनावों में इस सीट पर सत्ता परिवर्तन रहा है।
लाहौल स्पीति : कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा
लाहौल स्पीति विधानसभा सीट हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। इस बार लाहौल स्पीति विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता तय करेगी लेकिन पिछले चार चुनावों का आकलन किया जाये तो इस सीट पर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा ने सत्ता का सुख भोगा है। 2003 में कांग्रेस के रघबीर सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2007 में डॉ राम लाल मार्कंडा ने भाजपा का झंडा लहराया तो 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने नए चेहरे रवि ठाकुर को मैदान में उतार कर लाहौल स्पीति की कुर्सी अपने नाम की। 2017 के विधानसभा चुनाव में डॉ राम लाल मारकंडा ने न केवल इस सीट पर जीत दर्ज की बल्कि मंत्री पद हथियाने में भी कामयाब रहे। हालाँकि अब कयास ये भी लग रहे है कि आप भी इस निर्वाचन क्षेत्र में कई नेताओं से संपर्क में है।
कुल्लू : यहां लगातार हो रहा है परिवर्तन
कुल्लू विधानसभा क्षेत्र में इस बार सत्ता का सुख किसे मिलेगा ये तो जनता तय करेगी, लेकिन पिछले कुछ चुनाव के नतीजों को देखे तो इस सीट पर निरंतर दलों की अदला बदली देखने को मिली है। 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो ये सीट कांग्रेस के हाथ लगी है। 2007 में वर्तमान में शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने ये सीट भाजपा की झोली में डाली। 2012 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और इस सीट को एचएलपी ने अपने नाम किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर इस सीट पर कांग्रेस के सुंदर सिंह ठाकुर ने जीत दर्ज कर ये सीट कांग्रेस की झोली में डाली।
आनी : बारी -बारी कांग्रेस और भाजपा
आनी विधानसभा क्षेत्र में 2003 के चुनाव में कांग्रेस के ईश्वर दास इस सीट से विधायक बने। 2007 में इस सीट पर किशोरी लाल ने भाजपा का परचम लहराया। 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर जनता ने सत्ता में कांग्रेस को बैठाया और कांग्रेस के खूब राम ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और आनी सीट पर भाजपा के किशोरी लाल ने जीत दर्ज की। अब 2022 के चुनाव में सत्ता का सुख किसे मिलता है यह देखना रोचक होगा।
करसोग : 1990 से लगातार हो रहा परिवर्तन
करसोग विधानसभा क्षेत्र ऐसी सीट जहाँ हर पांच वर्ष बाद जनता ने विधायक की कुर्सी पर अलग अलग राजनैतिक दलों को मौका दिया। करसोग सीट पर 1990 से लेकर अब तक ऐसी कोई पार्टी नहीं रही है जिसने लगातार दो चुनाव जीते हो। विशेष तौर पर पिछले चार चुनाव की बात करे तो 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मस्त राम ने यहाँ जीत दर्ज की, जिसके बाद 2007 के चुनाव में फिर बदलाव आया और सत्ता की कुर्सी पर निर्दलीय उम्मीदवार हीरा लाल ने राज किया। 2012 के चुनाव में मनसा राम ने फिर एक बार कांग्रेस का परचम लहराया। 2017 के विधानसभा चुनाव में हीरा लाल भाजपा में शामिल हुए और करसोग की सीट भाजपा के नाम हुई।
सुंदरनगर : हर पांच में बदलाव कर रही सुंदरनगर की जनता
सुंदरनगर विधानसभा सीट के पिछले कुछ चुनावों पर नज़र डाले तो जनता का हर पांच वर्ष बाद विधायक से मोह भंग हुआ है। 1990 से लेकर अब तक इस सीट पर सत्ता का सुख भोगने के लिए कोई भी पार्टी रिपीट नहीं कर पाई है। पिछले चार चुनावों की बात की जाए तो 2003 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सोहन लाल ठाकुर ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 2007 के चुनाव में फिर बदलाव हुआ सुंदरनगर की जनता भाजपा के रूप सिंह पर मेहरबान हुई। 2012 में फिर विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता का सुख भोगा और 2017 में भाजपा ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। इस बार सुंदरनगर की सीट पर कौन विराजमान होता है और परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे ये तो जनता ही तय करेगी। फिलवक्त इस सीट पर चली आ रही सत्ता परिवर्तन की प्रथा के अनुसार भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ सकती है।
नूरपुर : लगातार जीतने में कोई कामयाब नहीं
नूरपुर निर्वाचन क्षेत्र में 1996 में हुए उपचुनाव के बाद से ही इस सीट पर शासन के लिए लगातार परिवर्तन देखने को मिला है। पिछले चार चुनाव के नतीजों पर गौर फरमाएं तो यहाँ की जनता ने हर पांच वर्ष में बदलाव किया है। 2003 के विधानसभा चुनाव में सत महाजन ने कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलाई। 2007 के विधानसभा चुनाव में राकेश पठानिया आज़ाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और जीत का परचम लहराया। 2012 में कांग्रेस ने अजय महाजन पर दांव खेला और जनता ने कांग्रेस पार्टी पर विश्वास जताया। 2017 के विधानसभा चुनाव में राकेश पठानिया भाजपा में शामिल हुए और मंत्री पद हासिल करने के साथ इस सीट पर भाजपा की जीत हुई लेकिन इस बार नतीजे किस पार्टी के पक्ष में होंगे ये कहना मुश्किल है।
नालागढ़ : हरिनारायण सैणी के बाद कोई नहीं जीता लगातार दो चुनाव
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश की वो सीट जहाँ पर ज्यादातर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है, लेकिन वर्ष 1998 में पहली बार यहां से भाजपा जीती। तब से तत्कालीन विधायक ने तीन बार जीत दर्ज कर यहां से लगातार जीते, लेकिन उसके बाद यह सीट फिर से कांग्रेस के हाथों में चली गई। 1998 में पहली बार भाजपा को जीत मिली और पूर्व विधायक स्व. हरिनारायण सैणी की जीत का यह रथ वर्ष 2003, 2007 में जारी रहा। हरिनारायण सैणी के निधन के बाद 2011 में नालागढ़ सीट पर उपचुनाव हुए। 2011 के उपचुनाव में समीकरण बदले और तब सत्तारूढ़ दल भाजपा इस सीट पर रिपीट नहीं कर पाई और यह सीट फिर से कांग्रेस के हाथों में आई। तब यहां से लखविंदर राणा ने जीत दर्ज की। 2012 के विधानसभा चुनाव में केएल ठाकुर ने फिर भाजपा का परचम लहराया। 2017 में कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा ने फिर जीत हासिल की। वहीं बीते दिनों कांग्रेस नेता और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष धर्मपाल चौहान के आप में जाने के बाद ही इस क्षेत्र के समीकरण बदलते दिख रहे है। दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही दलों के कई ने नेता भी आप के संपर्क में बताएं जा रहे है।
दिग्गजों की साख भी दांव पर
जिन 16 विधानसभा सीटों पर लगातार परिवर्तन हो रहा है उनमें से दो विधानसभा सीटें ऐसी भी है जहाँ मौजूदा सरकार के मंत्रियों की साख भी दांव पर है। नूरपुर विधानसभा क्षेत्र से वन मंत्री राकेश पठानिया और लाहौल स्पीति से तकनीकी शिक्षा मंत्री रामलाल मार्कंडेय के सामने अपनी सीट बरकरार रखने की चुनौती होगी। नूरपुर में 1996 से ही हर पांच वर्ष में सत्ता की कुर्सी पर कभी भाजपा, कभी कांग्रेस तो कभी निर्दलियों का राज़ रहा है। ऐसे में लम्बे समय से चले आ रहे इस सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज में वन मंत्री राकेश पठानिया का बड़ा इम्तिहान होना है। लाहौल स्पीति से तकनीकी शिक्षा मंत्री रामलाल मारकंडा भी इस फेहरिस्त में शामिल है। मंडी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद कई मंत्रियों की साख दांव पर थी इसमें मंत्री रामलाल मारकंडा भी चर्चा में रहे। 1998 से लगातार लाहौल स्पीति की सीट पर दलों की अदला बदली रही है। ऐसे में मारकंडा पर निसंदेह सबकी निगाहें रहने वाली है। दो कैबिनेट मंत्रियों के अलावा विधानसभा स्पीकर व जयराम सरकार में ही स्वास्थ्य मंत्री रह चुके विपिन सिंह परमार के सामने भी खुद को साबित करने की चुनौती होगी। परमार भी उन नेताओं की लिस्ट में शामिल है जो एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे है।