किन्नौर में दिखा ट्रेलर, पूरी फिल्म से कांग्रेस को बचना होगा
' न टिकट को लेकर कलह और न मुख्यमंत्री की कुर्सी का मोह, बस फिक्र है कि पहले पहले सत्ता का वनवास खत्म हो। हाथ का निशान सबसे ऊपर होगा और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा'... ये तो हुई उस दावे की बात जो लगातार कांग्रेस के दिग्गज दोहरा रहे है। कार्यकर्ताओं को भी एकता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और जनता के सामने एकजुटता के कसीदे पढ़े जा रहे है। अब बात करते है संभावित स्थिति की जिसके रुझान अभी से आने शुरू हो गए है। हालात दरअसल कुछ ऐसे बनते दिख रहे है कि भाजपा से लोहा लेने से पहले कांग्रेस का मुकाबला कांग्रेस से होता दिख रहा है। ऐसा कई निर्वाचन क्षेत्रों में होता प्रतीत हो रहा है।
बीते दिनों प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह जब किन्नौर पहुंची तो स्थानीय विधायक और युवा कांग्रेस के समर्थक उनके सामने ही आपस में लड़ पड़े। लड़ाई इतनी ज़यादा बढ़ गई पुलिस को बीच में दखल देना पड़ा। किन्नौर विधायक जगत सिंह नेगी ने मंच से अपने सम्बोधन में यूथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष निगम भंडारी और यूथ किन्नौर कांग्रेस की जमकर खरी खोटी सुनाई, उन्हें भाजपा की बी टीम तक कह दिया, उन्हें फर्जीवाड़े का अध्यक्ष बताया। दरअसल जगत सिंह होलीलॉज के करीबी है तो निगम भंडारी सुक्खू गुट के। वैसे ये पहली दफा नहीं है जब ऐसा कुछ कांग्रेस के बीच गठित हुआ हो। बीते दिनों नालागढ़ में भी इस तरह की झलकियां देखने को मिल चुकी है, जहाँ कई नेता अभी से टिकट को लेकर आक्रामक दिख रहे है। इसे अनुशासनहीनता समझ लीजिये या नेताओं का अहम, जो भी हो ये कांग्रेस की एकजुटता की पोल तो खोल ही रहा है। अगर पार्टी ऐसी स्थिति से नहीं बच पाई तो सत्ता वापसी मुश्किल होगी।
क्या कारगर होगा महा कार्यकारिणी का फार्मूला ?
कांग्रेस द्वारा गुटबाजी या संभावित बिखराव के डर से हिमाचल जैसे छोटे से प्रदेश में जंबो कार्यकारिणी का गठन किया गया है, मगर पार्टी आपसी कलह संभाल पाती है या नहीं, इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। पार्टी ने हर धड़े को खुश रखने के मकसद से महा कार्यकारिणी तो बनाई है, मगर नेता संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे। डर है कि जिनकी रूचि सत्ता में है, पार्टी उन्हें संगठन में एडजस्ट कर संभावित भीतरघात और विद्रोह नहीं थाम पायेगी।
पुराणी रवायत से बचना होगा :
हिमाचल कांग्रेस में अपने समर्थकों को जीतवाने के साथ -साथ विरोधियों को सेट करने की पुरानी रवायत चली आ रही है। अगर ये सिलसिला जारी रहता है तो सत्ता वापसी की डगर मुश्किल हो सकती है। हालांकि पार्टी के तमाम बड़े नेता सामूहिक लीडरशिप की बात बार -बार दोहरा रहे है। पर ये भी सत्य है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए आलाकमान के आशीर्वाद के साथ -साथ संख्या बल भी अहम् होगा। इसी निजी संख्या बल के फेर में कहीं पार्टी जादुई आंकड़े से पीछे न रह जाए, असल डर इसी बात का है।