भरपूर प्रयास पर प्रतिकूल कयास, इस पर बाहर आया नए जिलों का जिन्न
कांगड़ा,15 विधानसभा क्षेत्रों वाला वो जिला जो हिमाचल में सत्ता का रुख तय करता है। इतिहास तस्दीक करता है कि जिसने कांगड़ा फ़तेह किया प्रदेश की सत्ता भी उसी को मिलती है और ये सिलसिला 1985 से चला आ रहा हैं। अब 2022 विधानसभा चुनाव नजदीक है और अभी से सियासत पुरे शबाब पर है। इससे पहले जिला कांगड़ा की फतेहपुर सीट पर उपचुनाव भी होना है। जाहिर है सभी राजनैतिक दलों ने अभी से कांगड़ा में कदमताल शुरू कर दी है। विशेषकर सत्तारूढ़ भाजपा तो काफी वक्त पहले से कांगड़ा के सियासी समीकरण साधकर चलने का प्रयास करती दिखी है। पर राजनीति में सिर्फ प्रयास करना काफी कहाँ होता है। तमाम प्रयासों के बीच प्रतिकूल कयास भी लग रहे है और काट- छाट की खबरें आना भी शुरू हो गई है। नूरपुर विधायक और तेजतर्रार मंत्री राकेश पठानिया के खिलाफ उन्हीं के निर्वाचन क्षेत्र के भीतर से आवाज उठती दिख रही है, तो सुलह में थप्पड़ कांड ने कांग्रेस को बैठे बिठाये मुद्दा दे दिया। कुछ समय पूर्व धर्मशाला विधायक विशाल नेहरिया निजी कारणों से चर्चा में रहे तो ज्वालामुखी तो सरकार गठन के बाद से ही लावा उगल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के गृह क्षेत्र पालमपुर में भाजपा खेमों में बंटी है तो फतेहपुर में भी स्थिति इतर नहीं है। कमोबेश पुरे जिला का हाल ऐसा ही है।
इस बीच एक और नया शिगूफा छीड़ा है, वो है नए ज़िलों के गठन का। बीते दिनों पालमपुर से कांग्रेस विधायक आशीष बुटेल ने पालमपुर को जिला बनाने की मांग क्या की, नए ज़िलों के गठन का जिन्न मानो बाहर आ गया। अब नूरपुर को जिला बनाने की मांग ने भी तूल पकड़ लिया है, तो धरातल स्तिथि ये है कि देहरा का दावा भी नकारा नहीं जा सकता। हालांकि अब तक सरकार की ओर से इस बाबत कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है लेकिन बताया जा रहा है कि अंदरखाते भाजपा संगठन व सरकार में इसके लिए मंथन कर रहे है। एक तबका मानता है कि नए जिले बनाने का सियासी पैंतरा जिला कांगड़ा में भाजपा का मास्टर स्ट्रोक हो सकता है। पर बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार जिला कांगड़ा को चार हिस्सों में बांटने की स्थिति में है ? भाजपा को ये भी जहन में रखना होगा कि मांग तीन नए ज़िलों की है, एक या दो नए ज़िले बनाने की स्थिति में फायदे से ज्यादा सियासी नुक्सान भी हो सकता है। और तीन नए ज़िले बनाने की वित्तीय हैसियत फिलवक्त सरकार की दिख नहीं रही। बाकी सियासी अरमान पुरे करने की खातिर ऋण का बोझ बढ़ाने का विकल्प जरूर सरकार के सामने रहेगा।
कांग्रेस की स्थिति भी सुखदायी नहीं
जिला कांगड़ा में कांग्रेस की स्थिति भी सुखदायी नहीं है। संगठन का हाल किसी से छुपा नहीं है और बड़े चेहरों के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ी है। ये अंतर्कलह ही 2017 में पार्टी को भारी पड़ी थी। तब वीरभद्र कैबिनेट के दो बड़े चेहरे यानी सुधीर शर्मा और जीएस बाली अपनी सीट तक नहीं बचा पाए थे। पालमपुर सहित एकाध हलका छोड़ दिया जाए तो अधिकांश क्षेत्रों में अब भी जमीनी स्थिति में कुछ ख़ास बदलाव नहीं दिखता। कांग्रेसी शायद सरकार विरोधी लहर और पांच साल में सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज के भरोसे सत्ता सुख के स्वपन देख रहे है। पर न तो इतनी प्रबल सत्ता विरोधी लहर दिख रही है और न ही पांच साल में सत्ता परिवर्तन थ्योरी ब्रह्म सत्य है।
वजन के साथ रसूख भी कम होगा
एक तबका कांगड़ा को विभाजित कर नए ज़िलों के गठन के विरोध में भी है। ये लोग मानते है की अगर 15 विधानसभा हलकों का वजन कम हो गया तो कांगड़ा का सियासी रसूख भी बरकरार नहीं रहेगा। वहीँ सरकार यदि कांगड़ा में नए ज़िलों के गठन को हरी झंडी देती है तो मंडी के सुंदरनगर और शिमला के महासू को जिला घोषित करने की मांग भी उठेगी।