क्या सिर्फ हंगामा खड़ा करना ही विपक्ष का मकसद है ?
क्या हंगामा खड़ा करना ही मकसद है ? विधानसभा मानसून सत्र में लगातार वॉकआउट कर रहे विपक्ष को देखकर फिलवक्त ऐसा ही लग रहा है। यूँ तो ये सत्र बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि बजट सत्र के बाद यह साल का दूसरा सत्र है। पर इस सत्र में विपक्ष कमजोर दिख रहा है, अब तक खुद के द्वारा भेजे गए सवालों काे पूछने में भी विपक्ष बैकफुट पर दिखा है। दाे अगस्त से मानसून सत्र शुरू हुआ और पहले दिन सदन के दिवंगत नेताओं काे श्रद्धांजलि दी गई। उसके बाद सत्र के दूसरे दिन से विपक्ष ने हंगामा करना शुरू कर दिया जो लगातार दो दिनों तक चला। हैरानी की बात है कि विपक्ष ने ऐसे सवाल दागे थे, जाे सही मायने में जनहित के लिए थे, लेकिन तीन और चार अगस्त काे प्रश्नकाल के दौरान ही उनके सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। विपक्ष हंगामा करके प्रश्नकाल के बाद फिर से सदन में वापस आता रहा, यानी जनहित जिन सवालों पर सरकार को घेरे जाना चाहिए था उन्हें उठाने के तय वक्त को विपक्ष ने हंगामे में जाया कर दिया। ऐसे में ज़ाहिर है कि विपक्ष अपनी ज़िम्मेवारियों काे निभाने में पूरी तरह से विफल साबित हुआ है।
ये जानना भी जरूरी है कि विपक्ष ने वॉकआउट किस मुद्दे पर किया। तीन अगस्त को सत्र में प्रश्नकाल शुरु हाे रहा था। इस बीच कांग्रेस ने पूर्व सांसद स्व. रामस्वरूप शर्मा के निधन की जांच सीबीआई से करवाने काे लेकर हंगामा किया। इस दौरान किन्नौर के विधायक जगत नेगी ने सांसद रामस्वरूप शर्मा की मौत की सीबीआई जांच का मामला सदन में उठाया और नियम 67 के तहत चर्चा की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि रामस्वरूप शर्मा के बेटे जांच की मांग उठा चुके हैं। मौत के चार महीने पश्चात भी फॉरेंसिक की रिपोर्ट नहीं आई है। हंगामे के बीच मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि यह मामला दिल्ली में घटित हुआ था और यह प्रदेश सरकार के विशेषाधिकार का नहीं है, दिल्ली की क्राइम ब्रांच इस मामले की जांच कर रही है। सीएम ने स्पष्टीकरण दिया कि रामस्वरूप का परिवार उनसे मिला भी है, लेकिन उन्होंने जांच की मांग नहीं की। यही नहीं, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि यह मामला नियम 67 के तहत नहीं उठाया जा सकता इसलिए इस पर चर्चा नहीं की जा सकती। इसके बाद भी विपक्ष सदन में नारेबाजी करता रहा। जैसे ही प्रश्नकाल शुरू हुआ कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष सहित पुरे विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया।
इसके बाद अगले दिन चार अगस्त को विपक्ष एक बार फिर से काम राेकाे प्रस्ताव लाया और बेरोजगारी व भर्तियों को लेकर सदन में हंगामा कर दिया। नियम-67 के तहत उठाए गए इस मुद्दे को इंद्र दत्त लखनपाल ने उठाया और विधानसभा अध्यक्ष की ओर से चर्चा की मंजूरी न दिए जाने के विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट किया गया। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि इस मामले पर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, आशा कुमारी, इंद्र दत्त लखन पाल और राजेंद्र राणा की ओर से नियम-67 के तहत चर्चा मांगी गई, लेकिन यह मामला इस परिधि में नहीं आता है। इसलिए इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती। ऐसे में अब तक हुए सत्र के दो महत्वपूर्ण दिन कांग्रेस के हंगामे की भेंट चढ़ गए।
संसद में भी इतर नहीं स्थिति
सिर्फ प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्ष की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। 19 जुलाई से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र में पेगासस, कृषि कानूनों, पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों को लेकर विपक्ष लगातार हंगामा और वॉकआउट कर रहा है। इन मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने दोनों ही सदनों में 'काम रोको प्रस्ताव' भी पेश किए। इस हंगामे के कारण सदन की कार्रवाई सुचारु रूप से नहीं चल पा रही। मिली जानकारी के अनुसार हंगामे के चलते 19 जुलाई से 1 अगस्त तक संसद में संभावित 107 घंटों में से सिर्फ 18 घंटे काम हुआ। इसके चलते करदाताओं के करीब 133 करोड़ रुपए बर्बाद हुए है। इस सत्र में एक अगस्त तक 89 घंटे बर्बाद हुए। जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा में तय समय में से 21 फीसदी काम हुआ, जबकि लोकसभा में सिर्फ 13 फीसदी काम हुआ। इसका अगला हफ्ता भी लगभग ऐसे ही बीता और आगामी आखरी हफ्ते में भी आसार कुछ ऐसे ही लग रहे है। सरकार और विपक्ष दोनों ही हंगामें के लिए एक दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे है, कारण कोई भी हो संसद में काम न होने से करदाताओं के करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे है। विपक्ष पहले ही दिन से पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार इसे मुद्दा ही नहीं मान रही है। अभी तक केवल राज्यसभा में कोविड-19 के मुद्दे पर एक चर्चा हो सकी है, लेकिन लोकसभा में एक भी बहस नहीं हुई है। हंगामे के बीच सरकार लगातार अपने विधेयकों को बिना चर्चा के पारित भी करा रही है जिस पर निसंदेह विपक्ष को कुछ समय बाद ऐतराज़ होगा।