तो भाई की जगह ले सकता है भाई !
तो भाई को हटाकर भाई चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है। सोलन निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का ताजा हाल ये ही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहाँ ससुर दामाद आमने -सामने थे। वहीं 2022 में भाजपा टिकट के लिए दो भाइयों में मुकाबला देखने को मिल सकता है। पिछला चुनाव लड़ चुके डॉ राजेश कश्यप जहां चुनाव के लिए तैयार दिख रहे है, वहीं उनके बड़े भाई और दो बार सांसद रहे वीरेंद्र कश्यप भी चुनाव लड़ने से इंकार नहीं कर रहे। फर्स्ट वर्डिक्ट के साथ विशेष बातचीत में वीरेंद्र कश्यप ने कहा कि उनकी निजी इच्छा नहीं है किन्तु यदि पार्टी कहती है तो वे तैयार है।
विदित रहे कि वीरेंद्र कश्यप के विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर काफी वक्त से कयास लग रहे है। दरअसल भाजपा का ही एक गुट डॉ राजेश कश्यप को पसंद नहीं करता। ऐसे में माहिर मानते है कि विरोधी वीरेंद्र कश्यप की एंट्री की बिसात पर डॉ राजेश कश्यप का पत्ता काटने से गुरेज नहीं करेंगे। हालांकि इसमें कोई संशय नहीं है कि फिलहाल तो भाजपा में डॉ राजेश कश्यप का ही सिक्का चल रहा है। पर पल -पल बदलती राजनीति में कुछ भी मुमकिन है।
वहीं हाल फिलहाल ही वीरेंदर कश्यप को भाजपा ने एक झटका भी दिया है। दरससल राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के लिए भाजपा ने डॉ सिकंदर कुमार को प्रत्याशी घोषित कर दिया है और इस घोषणा ने कई नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है। इनमे से एक नाम है प्रो वीरेंद्र कश्यप का भी है । प्रो वीरेंद्र कश्यप ने भी टिकट माँगा था लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। वीरेंद्र कश्यप वर्ष 2009 और 2014 में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे है लेकिन पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद कयास लग रहे थे कि वीरेंद्र कश्यप को प्रदेश की सियासत में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। 2019 में प्रदेश अध्यक्ष के पड़ के लिए भी उनका नाम चर्चा में रहा लेकिन तब कश्यप रेस में डॉ राजीव बिंदल से पिछड़ गए। इसके बाद वर्ष 2020 में जब स्वास्थय घोटाले के बाद डॉ राजीव बिंदल ने इस्तीफा दिया तब फिर प्रो वीरेंद्र कश्यप क नाम अध्यक्ष पड़ के लिए उछला लेकिन ताजपोशी हुई सुरेश कश्यप की। अब राज्यसभा के लिए भी पार्टी ने वीरेंद्र कश्यप को तवज्जो नहीं दी है। अब पार्टी विधानसभा में किस भाई को चुनती है और किसे नहीं ये देखना दिलचस्ब होगा।