कांग्रेस के लिए आगे कुआँ और पीछे खाई
विधानसभा चुनाव के रण में भारतीय जनता पार्टी वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को फेस बना कर आगे बढ़ रही है। यूँ तो भाजपा में और भी कई कद्दावर नेता है मगर जयराम के आगे किसी अन्य को अब तक तवज्जो नहीं दी गई। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की तैयारी में है। कलह को साधने के लिए ये कांग्रेस का रामबाण जरूर हो सकता है, मगर ये भी सत्य है की बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के सरकार चुनना जनता के लिए आसान नहीं होता। जनता को ये मालूम नहीं कि अगर वो कांग्रेस को सत्ता में लाती है तो सरकार की चाबी किस नेता के हाथ में होगी। हिमाचल के सियासी इतिहास पर भी नज़र डाले तो अधिकांश मौकों पर राजनैतिक दलों ने चेहरे सामने रखकर चुनाव जीते है। पर कांग्रेस फिलहाल ऐसी स्थिति में नहीं दिखती। यदि पार्टी कोई एक चेहरा आगे लाती है तो भीतरघात और अंतर्कलह का खतरा बढ़ा जायेगा, और नहीं लाती है तो भी पार्टी को सत्ता में लाना आसान नहीं होगा। यानी आगे कुआँ और पीछे खाई।
कांग्रेस करीब चार दशक बाद बिना वीरभद्र सिंह के चुनावी मैदान में उतर रही है। उनके रहते हुए कोंग्रस आलाकमान ने भले ही उन्हें चेहरा घोषित किया हो या नहीं, लेकिन जनता के बेसह उन्हें लेकर हमेशा स्पष्ट स्तिथि रही। 1985 से लेकर 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनावों में से पांच में वीरभद्र सिंह सीटिंग सीएम थे और कांग्रेस के रिवाज के मुताबिक उन्हीं के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया। 1993 में अपने सियासी तिलिस्म से वीरभद्र सिंह ने पंडित सुखराम को मात दे सीएम की कुर्सी कब्जाई, तो 2003 में विधायकों की परेड करवा विद्या स्टोक्स के अरमानो पर पानी फेर दिया। हालांकि तब भी आम जनता के बेसह वे ही कांग्रेस का मुख्य चेहरा थे। जबकि 2012 में तो वीरभद्र सिंह ने ऐसे तेवर दिखाए कि पार्टी को उन्हीं के नाम पर चुनाव लड़ने को विवश होना पड़ा। अब 37 साल बाद बिना वीरभद्र सिंह के चुनाव में उतर रही कांग्रेस का अलसी इम्तिहान है।