क्या सुक्खू फार्मूला पर दोबारा लौटेगा कांग्रेस का संगठन ?

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव होने की चर्चा है। चर्चा है कि एक बार फिर कांग्रेस संगठन के 'सुक्खू फार्मूला' पर लौटने जा रही है। अलबत्ता संगठन की कमान प्रतिभा सिंह के हाथ में हो, लेकिन माना जा रहा है कि संगठन का ढांचा सीएम सुक्खू की मर्जी के मुताबिक बदलने जा रहा है।
वर्तमान के शह-मात के खेल को समझना है तो बात अतीत से शुरू करनी होगी। तब सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री नहीं थे, हिमाचल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। उन्होंने तय किया कि बीजेपी की तर्ज पर कांग्रेस में संगठनात्मक जिलों की संख्या बढ़ाकर 17 कर देनी चाहिए। तब कांग्रेस की राजनीति में वीरभद्र सिंह का बोलबाला था, जो उस वक्त सीएम भी थे। वीरभद्र सिंह इसके खिलाफ थे, खासतौर पर कांगड़ा को चार हिस्सों में बांटने के। कांगड़ा का सबसे बड़ा चेहरा, यानी जी.एस. बाली भी वीरभद्र सिंह से इत्तेफाक रखते थे। लेकिन दिग्गजों की राय दरकिनार कर आलाकमान ने सुक्खू की सुनी और कांग्रेस में संगठनात्मक जिलों की संख्या बढ़ाकर 17 कर दी गई। कांगड़ा को चार जिले और मंडी व शिमला को दो-दो संगठनात्मक जिलों में बांट दिया गया। तब कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को यह फैसला रास नहीं आया। नतीजतन, जब साल 2019 में कुलदीप राठौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने तो फिर संगठनात्मक जिलों और ब्लॉकों की संख्या घटा दी गई। अब वक्त ने फिर करवट ली है। सुक्खू अब प्रदेश अध्यक्ष तो नहीं, मगर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। सीधे कहें तो प्रदेश कांग्रेस के सर्वेसर्वा वही दिखते हैं। ऐसे में फिर सुगबुगाहट है कि कांग्रेस संगठन के ढांचे में बदलाव होगा और एक बार फिर कांग्रेस 'सुक्खू फार्मूला' पर लौटने जा रही है।
वर्तमान में, हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के 13 संगठनात्मक जिले हैं, जबकि बीजेपी के 17 संगठनात्मक जिले हैं। कांग्रेस भी अब इसी तर्ज पर 17 संगठनात्मक जिले बनाना चाहती है। कांगड़ा को फिर कांगड़ा, नूरपुर, पालमपुर और देहरा जिलों में बांटा जा सकता है, जबकि मंडी में सुंदरनगर को अलग संगठनात्मक जिला बनाया जा सकता है। साथ ही, मंडलों की संख्या में भी भारी इजाफा हो सकता है।
इसके पीछे मुख्य दो तर्क हैं—एक, माइक्रो मैनेजमेंट को और मजबूत करना, और दूसरा, अधिक से अधिक लोगों को पद देकर एडजस्ट करना। हालांकि इसमें सबकी सहमति नहीं दिखती। कांग्रेस के ही कुछ नेता दबे सुर में इसका विरोध भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि बीजेपी की नकल करना कांग्रेस के लिए मुफीद नहीं होगा, क्योंकि बीजेपी कैडर बेस्ड पार्टी है, उसकी कार्यप्रणाली अलग है। कांग्रेस को जिले विभाजित कर कुछ भी नहीं मिलने वाला।
बहरहाल, कोई यथास्थिति बनाए रखना चाहता है और किसी को बदलाव की दरकार है। इन दोनों के बीच कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो चाहते हैं कि जो भी हो, जल्द हो। अब क्या होगा और कब, इसका इंतजार बना हुआ है।