स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए आमदनी का जरिया बन रहा रोडोडेंड्रॉन
( words)
राजकीय पुष्प बुरांश अब लोगों के लिए रोजगार का बेहतर जरिया बन रहा है। उच्च हिमालयी क्षेत्र के साथ ही ऊंचाई वाले इलाकों में खिलने वाले बुरांश फॉरेस्ट अथवा वन पंचायत के जंगलों में ही अधिक होता है। समुद्र तल से 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले बुरांश का वैज्ञानिक नाम रोडोडेंड्रॉन है। मार्च- अप्रैल के महीने में बुरांश के पेड़ों पर खिले लाल फूल आकर्षण का केंद्र बन जाते है। बुरांश न केवल देखने में आकर्षक है, बल्कि इसमें औषधीय गुणों के चलते कुछ लोगों के लिए अब यह आमदनी का जरिया भी बना चुका है।
महिलाओं को दिया जाता है प्रशिक्षण
विकास खंड संगड़ाह की 30 स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए बुरांश के जंगल आमदनी का जरिया बन चुके हैं। इन महिलाओं द्वारा रोडो जूस, जैम व स्क्वैश आदि प्रोडक्ट गत वर्ष से बाजार मे बेचे जा रहे है। पंचायत समिति संगड़ाह के अध्यक्ष मेलाराम शर्मा का कहना है कि इन महिलाओं को समिति द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जाता है और बुरांश से बने उत्पादों के लिए एक दुकान भी निशुल्क उपलब्ध करवाई गई है। जिला सिरमौर के राजगढ़ में मौजूद उद्यान विभाग के जूस प्लांट अथवा फैक्ट्री में हर साल 20 से 40 क्विंटल बुरांश का जूस निकाला जाता है। संगड़ाह के आधा दर्जन किसान हर साल क्षेत्र के जंगलों से वन विभाग की अनुमति से बुरांश निकालकर इसे उद्यान विभाग अथवा संबंधित उद्योगों को बेचते हैं।
प्रतिवर्ष 20 से 40 क्विंटल निकाला जाता है जूस
उद्यान विभाग विषयवाद विशेषज्ञ के पद से सेवानिवृत्त हुए यूएस तोमर का कहना है कि जिला सिरमौर के राजगढ़ में मौजूद जूस प्लांट में हर साल 20 से 40 क्विंटल बुरांश के फूलों की जरूरत रहती है। क्षेत्र में बुरांश के उत्पादों से संबंधित कोई बड़ा उद्योग लगने की सूरत में यह सैंकड़ों किसान परिवारों की आय अथवा आजीविका का साधन बन सकता है। हृदय रोग, कैंसर, खून संबंधी बीमारियों तथा पेट के रोगों के लिए बुरांश का जूस अचूक औषधि समझा जाता है, जिसके चलते यह सामान्य जूस से काफी महंगा है।
औषधीय गुणों के साथ बुरांश का आर्थिकी महत्व
बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इन पंखुड़ियों का उपयोग सर्दी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और बुखार को दूर करने के लिए किया जाता है। स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल स्क्वैश और जैम बनाने में करते हैं। साथ ही इसकी चटनी को आज भी ग्रामीण इलाकों में पसंद किया जाता है इसके अलावा बुरांश के पेड़ की लकड़ी को भी उपयोग में लाया जाता है। इसकी लकड़ी ईंधन के रूप में और कोयला बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। लकड़ी का उपयोग टूल-हैंडल्स, बॉक्स, पैक-सैडल्स, पोस्ट, प्लाईवुड बनाने के लिए किया जाता है।
बुरांश का जंगल पर्यटकों के लिए बनता है सेल्फी पॉइंट
जिला सिरमौर के उपमंडल संगड़ाह के सदाबहार हिमालई जंगलों में बुरांश बहुतायत हिस्से में पाया जाता है तथा जंगल दूर से देखने पर रेड रोज गार्डन जैसे प्रतीत होते हैं। संगड़ाह से गत्ताधार, नौहराधार, हरिपुरधार व राजगढ़ की ओर जाने वाली सड़कों पर सैकड़ों हेक्टेयर भूमि में बुरांश के जंगल फैले हुए है। यहाँ पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ व दिल्ली आदि से आने वाले पर्यटकों के लिए यह जंगल आकर्षण का केंद्र रहता है हैं। सैलानियों के अलावा कईं पर्यावरण प्रेमी भी बुरांश के साथ सेल्फी लेते नज़र आते है।
राजकीय पुष्प बुरांश अब लोगों के लिए रोजगार का बेहतर जरिया बन रहा है। उच्च हिमालयी क्षेत्र के साथ ही ऊंचाई वाले इलाकों में खिलने वाले बुरांश फॉरेस्ट अथवा वन पंचायत के जंगलों में ही अधिक होता है। समुद्र तल से 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले बुरांश का वैज्ञानिक नाम रोडोडेंड्रॉन है। मार्च- अप्रैल के महीने में बुरांश के पेड़ों पर खिले लाल फूल आकर्षण का केंद्र बन जाते है। बुरांश न केवल देखने में आकर्षक है, बल्कि इसमें औषधीय गुणों के चलते कुछ लोगों के लिए अब यह आमदनी का जरिया भी बना चुका है।
महिलाओं को दिया जाता है प्रशिक्षण
विकास खंड संगड़ाह की 30 स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए बुरांश के जंगल आमदनी का जरिया बन चुके हैं। इन महिलाओं द्वारा रोडो जूस, जैम व स्क्वैश आदि प्रोडक्ट गत वर्ष से बाजार मे बेचे जा रहे है। पंचायत समिति संगड़ाह के अध्यक्ष मेलाराम शर्मा का कहना है कि इन महिलाओं को समिति द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जाता है और बुरांश से बने उत्पादों के लिए एक दुकान भी निशुल्क उपलब्ध करवाई गई है। जिला सिरमौर के राजगढ़ में मौजूद उद्यान विभाग के जूस प्लांट अथवा फैक्ट्री में हर साल 20 से 40 क्विंटल बुरांश का जूस निकाला जाता है। संगड़ाह के आधा दर्जन किसान हर साल क्षेत्र के जंगलों से वन विभाग की अनुमति से बुरांश निकालकर इसे उद्यान विभाग अथवा संबंधित उद्योगों को बेचते हैं।
प्रतिवर्ष 20 से 40 क्विंटल निकाला जाता है जूस
उद्यान विभाग विषयवाद विशेषज्ञ के पद से सेवानिवृत्त हुए यूएस तोमर का कहना है कि जिला सिरमौर के राजगढ़ में मौजूद जूस प्लांट में हर साल 20 से 40 क्विंटल बुरांश के फूलों की जरूरत रहती है। क्षेत्र में बुरांश के उत्पादों से संबंधित कोई बड़ा उद्योग लगने की सूरत में यह सैंकड़ों किसान परिवारों की आय अथवा आजीविका का साधन बन सकता है। हृदय रोग, कैंसर, खून संबंधी बीमारियों तथा पेट के रोगों के लिए बुरांश का जूस अचूक औषधि समझा जाता है, जिसके चलते यह सामान्य जूस से काफी महंगा है।
औषधीय गुणों के साथ बुरांश का आर्थिकी महत्व
बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इन पंखुड़ियों का उपयोग सर्दी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और बुखार को दूर करने के लिए किया जाता है। स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल स्क्वैश और जैम बनाने में करते हैं। साथ ही इसकी चटनी को आज भी ग्रामीण इलाकों में पसंद किया जाता है इसके अलावा बुरांश के पेड़ की लकड़ी को भी उपयोग में लाया जाता है। इसकी लकड़ी ईंधन के रूप में और कोयला बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। लकड़ी का उपयोग टूल-हैंडल्स, बॉक्स, पैक-सैडल्स, पोस्ट, प्लाईवुड बनाने के लिए किया जाता है।
बुरांश का जंगल पर्यटकों के लिए बनता है सेल्फी पॉइंट
जिला सिरमौर के उपमंडल संगड़ाह के सदाबहार हिमालई जंगलों में बुरांश बहुतायत हिस्से में पाया जाता है तथा जंगल दूर से देखने पर रेड रोज गार्डन जैसे प्रतीत होते हैं। संगड़ाह से गत्ताधार, नौहराधार, हरिपुरधार व राजगढ़ की ओर जाने वाली सड़कों पर सैकड़ों हेक्टेयर भूमि में बुरांश के जंगल फैले हुए है। यहाँ पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ व दिल्ली आदि से आने वाले पर्यटकों के लिए यह जंगल आकर्षण का केंद्र रहता है हैं। सैलानियों के अलावा कईं पर्यावरण प्रेमी भी बुरांश के साथ सेल्फी लेते नज़र आते है।