शिमला : उपचुनाव नतीजों में कांग्रेस की ताकत सिद्ध हुए है कुलदीप सिंह राठौर
उपचुनाव नतीजों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर के खिलाफ उठती रही आवाजों पर फिलवक्त विराम लगा दिया है। क्यूकी जिसे सब कम आंकते थे वो अव्वल भी आ सकता है, यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। इसके अलावा कुछ भाजपाई तो उन्हें लेकर उल जुलूल बयान भी देते थे कि कांग्रेस के भीतर भी उन्हें बदलने को लेकर लगातार अटकलें लग रही थी। कभी सत्ता के गुरूर में चूर होकर कोई उन्हें मंद बुद्धि का मालिक कहता रहा है, तो कभी संगठन की सर्जरी के नाम पर अपने भी निशाना साधते रहे। पर अब उपचुनाव नतीजों के बाद बदली राजनैतिक फिजा में राठौर का सियासी वजन इतना बढ़ गया है कि उन्हें हिलाना मुश्किल होगा। दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर कयासों का सिलसिला जारी रहा। कई बड़े नेता अपने बड़े सियासी अरमानों के साथ संगठन की सरदारी पर नजर गड़ाए दिख रहे थे। सत्ता वापसी की स्थिति में संगठन की सरदारी से सीएम की कुर्सी का फासला कम हो सकता है, ये थ्योरी कई चाहवानों को प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए प्रेरित करती रही। जाहिर है कि प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर रहते हुए नेता अपने निष्ठावानों को टिकट देने में भी अपनी चला सकते है। ऐसे में माना जाता रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर कई नेता नजरें जमाएं बैठे है, पर इस स्थिति में भी कुलदीप राठौर जैसे -तैसे अपनी जगह बचा कर आगे बढ़ते रहे और अब जब उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आये है तो राठौर को भी जीत का क्रेडिट मिलना जायज है। अगर कुलदीप सिंह राठौर की सबसे बड़ी ताकत उनका किसी गुट में ना होना माना जाये तो गलत नहीं होगा। उनकी अब तक की कार्यशैली से तो ऐसा ही दिखता है। जब उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान मिली तो उन्हें एक बड़े नेता का करीबी माना जाता था। पर इसके बावजूद राठौर हिमाचल कांग्रेस के सबसे दमदार नेता रहे वीरभद्र सिंह की गुड बुक्स में थे। ये उनकी बड़ी सफलता है कि उनके अब तक के कार्यकाल में कांग्रेस के भीतर खुलकर उनके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठी है, जबकि प्रदेश कांग्रेस कई गुटों में विभाजित रही है। बल्कि राठौर के होने से बंटी हुई कांग्रेस एकसाथ दिखने लगी है। ऐसे में शायद ही पार्टी आलाकमान उन्हें हटाकर गुटबाजी बढ़ाने का जोखिम ले।