ऐसा खिलवाड़ जर्मनी के साथ किसी ने नहीं किया ...
यूँ ही मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर नहीं कहते
15 अगस्त 1936. बर्लिन आलंपिक का फाइनल मुकाबला भारत और जर्मनी के बीच खेला जा रहा था. बर्लिन का हॉकी स्टेडियम खचाखच भरा था. करीब 50 हज़ार दर्शक और उन दर्शकों में से एक था जर्मनी का तानाशाह हिटलर. इससे पूर्व, ओलंपिक के एक अभ्यास मैच में जर्मनी से भारत की टीम 4-1 से हार चुकी थी. टीम उस हार से आहत थी और फाइनल को बदले का दिन मुकरर्र किया गया था .
खेर, मुकाबला शुरू हुआ और पहले हाफ में दोनों ही टीमों ने शानदार खेल दिखाया. जैसे - तैसे हाफ टाइम तक भारत एक गोल से आगे था. पर टीम के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के मन में कुछ और ही चल रहा था. हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के इरादे कुछ और ही थे. हाफ टाइम के बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकाले और शुरू हुई हॉकी की जादूगरी. भारत ने एक के बाद एक कई गोल दागे और जर्मनी पस्त हो गया. छह गोल खाने के बाद जर्मन बोखला गए. उनके गोलकीपर की हॉकी स्टिक से ध्यानचंद का दांत टूट गया, पर हौंसला बरकरार रहा. इसके बाद ध्यानचंद ने जर्मन टीम के साथ वो किया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. ध्यानचंद ने टीम को निर्देश दिए कि अब कोई गोल न किया जाए बल्कि जर्मन खिलाड़ियों को ये बताया जाए कि हॉकी खेली कैसे जाती है. इसके बाद भारतीय टीम बार-बार गेंद को जर्मनी की डी में ले जाती और फिर गेंद को बैक पास कर देती. जर्मन टीम को समझ में ही नहीं आया कि उनके साथ हुआ क्या. जर्मन टीम के साथ इस तरह का खिलवाड़, वो भी ओलम्पिक फाइनल में सिर्फ मेजर ध्यानचंद ही कर सकते थे. इस मुकाबले में भारत ने जर्मनी को 8-1 से मात दी, जिनमे से तीन गोल ध्यानचंद ने किए थे.
इस मुकाबले से जुड़ा एक और वाक्या है. कहा जाता है कि हिटलर ध्यानचंद से इतना प्रभावित हुए कि उनसे जर्मनी की ओर से खेलने को कहा. इसके बदले उन्हें जर्मन सेना में ऊँचे पद का प्रलोभन भी दिया गया. तब ध्यानचंद ने हिटलर से कहा, 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है.'
तोड़ कर देखी गई हॉकी स्टिक
मेजर ध्यानचंद के लिए कहा जाता है कि जब वो खेलते थे, तो मानो गेंद स्टिक पर चिपक जाती थी. हॉलैंड में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई. दरअसल , लोगों को लगता था कि उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक है . इसी तरह जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई. पर ध्यानचंद तो जादूगर थे , हॉकी के ऐसे जादूगर जैसा न कभी कोई हुआ और न कोई होगा.
राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है 29 अगस्त
वर्ष 1905 में 29 अगस्त के दिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म हुआ था. इसीलिए 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर हर वर्ष खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन अवार्ड और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं.