टोक्यो ओलम्पिक : किसी ने पदक जीता, किसी ने दिल
टोक्यो ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन इस बार बेहतर रहा। कुछ खिलाड़ियों ने मेडल जीते तो कुछ ने दिल। विशेष रहा 41 साल बाद राष्ट्रीय खेल हॉकी में पदक मिलना। पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता, पर अर्से बाद मिला ये कांस्य सोने से कम नहीं है। वहीं महिला हॉकी टीम पहली बार सेमीफाइनल तक पहुंची। टीम पदक तो नहीं जीत पाई पर दिल जीतने में कामयाब रही। भारतीय वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत को पहला सिल्वर मेडल दिलाया। चानू ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल पाने वाली पहली भारतीय एथलीट बनी। इसके बाद स्टार बैडमिंटन खिलाडी पीवी सिंधु ने कांस्य पदक जीता। सिंधु ओलम्पिक में लगातार दो मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी। ओलंपिक खेलों में पहली बार भाग ले रही भारत की युवा महिला बॉक्सर लवलीना बोर्गोहेन ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम कर देश का सिर ऊंचा किया। वहीँ भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ने भारत को सिल्वर मेडल दिलाया।
नीरज चोपड़ा : अमिट है इस गोल्ड की चमक
भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने इस टोक्यो ओलंपिक्स ने इतिहास रचा है। उन्होंने जैवलिन थ्रो में गोल्ड जीता है। उनका सर्वश्रेष्ठ थ्रो 87.58 मीटर का रहा। ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत को 13 साल बाद दूसरा गोल्ड मिला। यह ओलंपिक एथलेटिक्स में भारत का पहला पदक है, इससे उन्होंने भारत का एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक जीतने का पिछले 100 साल से भी अधिक का इंतजार समाप्त कर दिया। नीरज को ओलंपिक से पहले ही पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था और इस 23 वर्षीय एथलीट ने अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करते हुए क्वालीफिकेशन में अपने पहले प्रयास में 86.59 मीटर भाला फेंक कर शीर्ष पर रहकर फाइनल में जगह बनायी थी। हरियाणा के पानीपत जिले के खांद्रा गांव में एक छोटे से किसान के घर पर 24 दिसंबर 1997 को नीरज का जन्म हुआ था। नीरज ने अपनी पढ़ाई चंडीगढ़ से की। नीरज ने 2016 में पोलैंड में हुए IAAF वर्ल्ड U-20 चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फेंककर गोल्ड जीता था, जिसके बाद उन्हें आर्मी में जूनियर कमिशनड ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति मिली थी।
2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में नीरज ने 88.06 मीटर का थ्रो कर गोल्ड मेडल जीता था। नीरज पहले भारतीय हैं जिन्होंने एशियन गेम्स में गोल्ड जीता है। 2018 में एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में शानदार प्रदर्शन करने के बाद नीरज कंधे की चोट का शिकार हो गए। इस वजह से वो काफी वक्त तक खेल से दूर रहे। 2019 तो उनके लिए और भी खराब रहा और उसके बाद कोरोना के कारण कई इवेंट रद्द हो गए। इसके बाद वापसी करते हुए इसी साल मार्च में हुई इंडियन ग्रांड प्रिक्स में नीरज ने 88.07 मीटर का थ्रो कर अपना ही नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया था। अब नीरज ने ओलम्पिक गोल्ड जीतकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है।
बजरंग पुनिया : दबाव में निखरने वाले पहलवान है बजरंग
टोक्यो ओलंपिक में बजरंग पुनिया ने कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल जीता है। उन्होंने कजाकिस्तान के रेसलर डाउलेट नियाजबेकोव को एकतरफा मुकाबले में 8-0 से हरा दिया। सेमीफाइनल मुक़ाबले में बजरंग पूनिया भले रंग में नहीं दिखे थे लेकिन अंतिम मुक़ाबले में उन्होंने शुरुआत से ही बढ़त बनाए रखी। बजरंग पूनिया बीते सात आठ सालों से भारत के वैसे पहलवान रहे हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल स्तर पर लगातार और निरंतरता के साथ कामयाबी हासिल की है। यही वजह है कि टोक्यो में उन्हें भारत के लिए सबसे सशक्त दावेदार माना जा रहा था। रवि दहिया के मेडल जीतने के बाद उनके ऊपर कामयाबी का दबाव भी बढ़ा होगा, लेकिन वे दबाव में निखरने वाले पहलवान रहे हैं। अपने मेंटर योगेश्वर दत्त की तरह चैंपियन बनने का सपना उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में मेडल हासिल करके पूरा किया।
मीराबाई चानू : 'डिड नॉट फिनिश' से सिल्वर मेडल तक का सफर
भारतीय वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत को पहला सिल्वर मेडल दिलाया है। चानू ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल पाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं। उन्होंने 49 किलोग्राम भार में यह पदक जीता है। चानू ने कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। 2016 रियो ओलंपिक में बेहद खराब प्रदर्शन से लेकर टोक्यो ओलंपिक में मेडल तक चानू का सफ़र ज़बरदस्त रहा है। मणिपुर की राजधानी इंफाल की रहने वाली मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को इम्फाल में हुआ था। 26 वर्षीय मीराबाई चानू को बचपन में तीरंदाजी का शौक था और वो इसी में अपना करियर भी बनाना चाहती थी। लेकिन 8वीं कक्षा के बाद उनका झुकाव वेटलिफ्टिंग की ओर बढ़ा और फिर उन्होंने इसी में आगे बढ़ने का फैसला किया। दरअसल इम्फाल की वेटलिफ्टर कुंजरानी को प्रेरणा मानकर चानू भी भारोत्तोलन में दिलचस्पी लेने लगी।
मणिपुर की मीराबाई चानू ने यकीनन भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय पटल पर रौशन कर दिया है। वे पहले भी कई बार अपनी काबिलियत के दम पर देश को फ़र्क़ करने का मौका दे चुकी हैं लेकिन उनके लिए ये मुकाम हासिल करना इतना आसान नहीं था। अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा है। इस पूरे सफर के दौरान चानू को उनके परिवार का पूरा सहयोग मिला। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद उनके माता-पिता ने हर कठिनाई का सामना करते हुए चानू की आहार संबंधी जरूरतों से लेकर कई अन्य जरूरते पूरी की। उसी का नतीजा है कि चानू लगातार अपने परिवार और देश का नाम ऊंचा कर रही हैं।
ओलंपिक जैसे मुकाबले में अगर आप दूसरे खिलाड़ियों से पिछड़ जाएँ तो एक बात है, लेकिन अगर आप अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाएँ तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने वाली घटना हो सकती है। 2016 में भारत की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के लिए ऐसा ही हुआ था। ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सिर्फ़ दूसरी खिलाड़ी थी जिनके नाम के आगे ओलंपिक में लिखा गया था 'डिड नॉट फिनिश'। जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं, उस दिन ओलंपिक में जैसे उनके हाथ बर्फ़ की तरह जम गए थे। उस समय भारत में रात थी, तो बहुत कम भारतीयों ने वो नज़ारा देखा। सुबह उठ जब भारत के खेल प्रेमियों ने ख़बरें पढ़ीं तो मीराबाई रातों रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र में विलेन बन गईं। नौबत यहां तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े। इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जबरदस्त वापसी की। मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलो वर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल।
ट्रक ड्राइवरों को दिए तोहफे
मीराबाई की मां सैखोम ओंगबी टोम्बो देवी गांव में चाय की दुकान चलाती हैं। एथम मोइरंगपुरेल इलाके से आने वाले ट्रक उनके गांव से जब गुजरते थे तो ड्राइवर उनकी दुकान पर चाय पीने रुकते थे। इस दौरान वह मीराबाई को फ्री में इम्फाल तक ले जाया करते थे जहाँ वो ट्रेनिंग करती थी। पदक जीतने के बाद चानू ने इन ट्रक ड्राइवरों का पता लगाया और उन्हें तोहफे दिए।
पीएम मोदी ने की चानू की मदद
चानू की जीत के बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री ने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीराबाई चानू को पदक जीतने में मदद की है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने उन्हें इलाज के लिए अमेरिका भेजा था। सीएम ने ट्वीट कर कहा, 'जब चानू ने मुझे इस बारे में बताया तो मैं हैरान रह गया था। उन्होंने बताया कि अगर पीएम ने उन्हें मांसपेशियों के ऑपरेशन और प्रैक्टिस के लिए अमेरिका नहीं भेजा होता तो वो ये पदक नहीं जीत पाती। उनका कहना था कि 'चानू को बैक पेन था और इसकी खबर जब पीएम मोदी को मिली। इसके बाद पीएम ने खुद इलाज और ट्रेनिंग का खर्चा उठाते हुए चानू को अमेरिका भेजा।
पीवी सिंधु : भारत की पहली दो ओलंपिक पदक जीतने वाली महिला
भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक अपने नाम किया है। पीवी सिंधु ने चीन की हे बिंग जियाओ को हराकर टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता है। पीवी सिंधु भारत की पहली दो ओलंपिक पदक जीतने वाली महिला बन गई है। इससे पहले सिंधु ने 2016 में रियो ओलंपिक में रजत पदक अपने नाम किया था। सिंधु का यह लगातार दूसरा ओलंपिक मेडल है।
टोक्यो ओलंपिक में बैडमिंटन के खेल में कांस्य पदक दिलाने वाली पीवी सिंधु को करियर में तीन कोच मिले। पहले पुलेला गोपीचंद थे, जिनका सिंधु के करियर को आकार देने में बड़ा योगदान रहा है। उन्हीं की कोचिंग में सिंधु ने रियो ओलंपिक्स में रजत पदक जीता था। दूसरी कोच दक्षिण कोरिया की किम जी ह्युन थीं, जिन्होंने 2019 में निजी कारणों से इस्तीफा दे दिया। ह्युन के जाने के बाद पुरुष कोच पार्क तेई सेंग उन्हें ट्रेनिंग देने लगे। पार्क भी दक्षिण कोरिया से हैं। वे 2004 के एथेंस ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल खेल चुके हैं। 2002 में उन्होंने बुसान में खेले गए एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था। वे 2013 से 2018 के बीच कोरियाई टीम के नेशनल कोच रह चुके हैं। उन्होंने हैदराबाद के गाचीबावली स्टेडियम में सिंधु को ट्रेनिंग देना शुरू की थी। पार्क की खासियत यह है कि वह प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी की स्ट्रैटजी को बखूबी समझ लेते हैं।
टोक्यो 2020 ओलंपिक में उनके प्रदर्शन से उत्साहित राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने निरंतरता, समर्पण और उत्कृष्टता का एक नया पैमाना स्थापित करने के लिए उनकी सराहना की। प्रधानमंत्री मोदी ने भी सिंधु को उनकी ओलंपिक जीत पर बधाई दी और उन्हें भारत के सबसे उत्कृष्ट ओलंपियनों में से एक के रूप में सम्मानित किया। वह 2016 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी थीं और उन्हें फोर्ब्स में 2018 और 2019 में सबसे अधिक भुगतान पाने वाली महिला एथलीटों के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया था। पीवी सिंधु का जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में पीवी रमना (पिता) और पी विजया (मां) के घर हुआ था। उनके माता-पिता राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खिलाड़ी रहे हैं। जुलाई 2013 से, पीवी सिंधु भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) के साथ हैदराबाद कार्यालय में असिस्टेंट स्पोर्ट्स मैनेजर के रूप में कार्यरत हैं।
कब जीता कौन-सा मेडल
- ओलिंपिक: 2016 में सिल्वर मेडल, 2020 में ब्रॉन्ज मेडल
- विश्व चैंपियनशिप: 2019- गोल्ड मेडल, 2018- सिल्वर मेडल, 2017- सिल्वर मेडल, 2014- ब्रॉन्ज मेडल, 2013- ब्रॉन्ज मेडल
- एशियाई खेल: 2018- सिल्वर मेडल, 2014- महिला टीम ब्रॉन्ज मेडल
- राष्ट्रमंडल खेल: 2018- सिल्वर मेडल, 2018- मिश्रित टीम गोल्ड मेडल, 2014- ब्रॉन्ज मेडल
- एशियाई चैंपियनशिप: 2014- ब्रॉन्ज मेडल
- बीडब्ल्यूएफ विश्व टूर फाइल्स/बीडब्ल्यूएफ सुपर सीरीज फाइनल्स: 2018- चैंपियन, 2017 रनरअप
- इंडिया ओपन सुपर सीरीज: 2017- चैंपियन, 2018- रनरअप
- चीन सुपर सीरीज प्रीमियर: 2016 में चैंपियन
- कोरिया ओपन सुपर सीरीज: 2017 में चैंपियन
लवलीना : 2012 से नहीं ली एक भी दिन छुट्टी
ओलंपिक खेलों में पहली बार भाग लेने वाली भारत की युवा महिला बॉक्सर लवलीना बोर्गोहेन ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम कर देश का सिर ऊंचा किया है। असम की 23 वर्षीय लवलीना बॉक्सिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। लवलीना असम के गोलाघाट जिले के बड़ा मुखिया गांव की रहने वाली हैं। 23 वर्षीय लवलीना का जन्म 2 अक्टूबर 1997 को हुआ था। वर्ल्ड चैंपियनशिप में लवलीना दो बार पदक जीत चुकी हैं। शुरुआत में लवलीना का रुझान किक-बॉक्सिंग की तरफ था। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के बॉक्सिंग ट्रायल के दौरान कोच पदुम बोरो की नजर लवलीना के खेल पर पड़ी, जिन्होंने 2012 में उन्हें कोचिंग देना शुरू किया था। बाद में उन्होंने भारत के मुख्य महिला बॉक्सिंग कोच शिव सिंह से सीखना शुरू किया।
मैरीकॉम को अपना आदर्श मानने वाली लवलीना ने ओलंपिक के लिए काफी मेहनत की थी। आपको जानकर हैरत होगी कि ओलंपिक में मेडल जीतने के लिए लवलीना ने साल 2012 से एक भी दिन की छुट्टी नहीं ली। इस बात का खुलासा खुद लवलीना ने मेडल जीतने के बाद किया। उन्होंने कहा कि वो साल 2012 से लगातार मेहनत कर रही हैं। वो अपनी फैमिली, मित्रों से काफी दूर रही हैं और उन्होंने अपना मनपसंद खाना भी लंबे वक्त से नहीं खाया है। मात्र 9 साल की उम्र में बॉक्सिंग शुरू करने वाली लवलीना ओलंपिक मेडल जीतने वालीं तीसरी भारतीय हैं। उनसे पहले विजेंदर सिंह (2008 ) और एम सी मैरीकॉम (2012) ये कारनामा कर चुके हैं।
रवि कुमार दहिया: आसान नहीं था छत्रसाल स्टेडियम से ओलंपिक तक का सफर
टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ने भारत को सिल्वर मेडल दिलाया है। फाइनल के कड़े मुकाबले में रवि रूसी पहलवान जावुर युगुऐव से हार गए थे। वह कुश्ती में भारत के लिए व्यक्तिगत सिल्वर मेडल जीतने वाले दूसरे भारतीय पहलवान है। टोक्यो ओलंपिक 2020 में सिल्वर मेडल जीतने पर हरियाणा सरकार ने उन्हें पुरस्कार देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रवि दहिया को 4 करोड़ रुपये इनाम के रूप में देने की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही, रवि दहिया के सोनीपत स्थित नाहरी गांव में एक इनडोर स्टेडियम बनाने का भी ऐलान किया गया है।
रवि दहिया के लिए दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम से ओलंपिक तक का सफर आसान नहीं था। इसके पीछे उनके पिता की बहुत मेहनत छिपी है। रवि दहिया का जन्म 1997 में हरियाणा के सोनीपत जिले के नहरी गांव में हुआ था। उनके पिता एक भूमिहीन किसान थे, जो बटाई की जमीन पर खेती किया करते थे। 10 साल की उम्र से ही रवि ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग शुरू कर दी थी। उन्होंने 1982 के एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले सतपाल सिंह से ट्रेनिंग ली है। रवि दहिया के पिता राकेश चाहते थे कि बेटा पहलवान बने। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने अपने बेटे की ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं आने दी। पिता राकेश हर रोज अपने गांव से छत्रसाल स्टेडियम तक की 40 किलोमीटर की दूरी तय कर रवि तक दूध और फल पहुंचाते थे। बेटे रवि को किसी बात की कमी ना हो इसके लिए पिता दिन रात मेहनत करते थे।
रवि का सबसे पहला कमाल 2015 जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैम्पियनशिप में देखने को मिला था जब उन्होंने 55 किलो कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता लेकिन सेमीफाइनल में उन्हें चोट लग गई थी। फिर 2017 के सीनियर नेशनल्स में लगी चोट ने उन्हें फिर परेशान किया। इस कारण उन्हें कुछ समय मैट से दूर रहना पड़ा। रवि को पूरी तरह से ठीक होने में करीब एक साल लग गया था। फिर वापसी करते हुए रवि ने 2018 वर्ल्ड अंडर 23 रेसलिंग चैम्पियनशिप में 57 किलो कैटेगरी में सिल्वर पर कब्जा जमाया। उन्होंने 2019 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप के सिलेक्शन ट्रायल में सीनियर रेसलर उत्कर्ष काले और ओलंपियन संदीप तोमर को हराया। कोरोना से पहले मार्च में दिल्ली में हुई एशियन रेसलिंग चैम्पियनशिप में उन्होंने गोल्ड जीता है।
हॉकी: ये तांबा सोने से कम नहीं है
वर्ष 1928 में भारतीय हॉकी पुरुष टीम ने ओलंपिक में अपने स्वर्ण पदक का अभियान एम्सटर्डम ओलंपिक से शुरू किया था। उस दौर में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का पूरे विश्व में डंका बजता था। मेजर ध्यानचंद का जादू ऐसा चला कि 1928 से 1936 तक देश ने इन खेलों में गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगा दी थी। राष्ट्रीय खेल हाकी में भारत ने लगातार 10 पदक जीते थे लेकिन 1980 में मास्को ओलिंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद से भारतीय हाकी टीम को पदक जीतने के लिए 41 साल तक इंतजार करना पड़ा। अब टोक्यो में कांस्य जीतकर भारतीय हाकी कांस्य पदक जीतने में कामयाब रही है। इस जीत से पुरे देश में ख़ुशी की लहर है। यूं तो 41 साल के बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक खेलों में पदक जीता है। पर भारतीय हॉकी टीम के लिए इन खेलों में ये 12वां पदक है और ये तीसरा कांस्य पदक है।
भारत ने इससे पहले साल 1980 के ओलंपिक खेलों में पदक जीतने का मौका मिला था। उस समय भारत ने गोल्ड मेडल जीता था। भारत से ज्यादा गोल्ड मेडल हॉकी के खेल में कोई भी टीम नहीं जीत पाई है। यहां तक कि पुरुषों के खेल में भारत सबसे ज्यादा ओलंपिक पदक जीतने वाला देश है। भारत ने हॉकी के खेल में सबसे पहले 1928 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया था। नीदरलैंड्स में हुए ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। 1928 के बाद अमेरिका में 1932 में और 1936 में जर्मनी में हुए ओलंपिक खेलों में भारत ने स्वर्ण पदक जीता था। 1940 और 1944 में होने वाले ओलंपिक खेलों को द्वितीय विश्व युद्ध के कारण रद्द करना पड़ा था। आजादी के बाद पहली बार देश ने 1948 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया और फिर से दिखा दिया कि ओलंपिक के हॉकी खेल में असली स्टार भारत ही है। भारत ने इंग्लैंड में हुए 1948 के ओलंपिक, 1952 में फिनलैंड ओलंपिक और फिर 1957 में ऑस्ट्रेलिया में हुए ओलंपिक खेलों में भी गोल्ड मेडल जीतकर भारत ने फिर से हैट्रिक लगाई।
इसके बाद 1960 में इटली में हुए ओलंपिक खेलों में भारत को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था और देश को पहली बार हॉकी के खेल में रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। हालांकि, जापान में हुए 1964 के ओलंपिक खेलों में देश ने हॉकी के खेल में फिर से गोल्ड मेडल हासिल किया, लेकिन 1968 में मैक्सिको और 1972 में जर्मनी में हुए ओलंपिक खेलों में भारत को कांस्य पदक ही मिला था। पर इसके बाद 1976 में कनाडा में हुए ओलंपिक खेलों में भारत सातवें स्थान पर रहा था। आखिरी बार 1980 में सोवियत संघ में हुए ओलंपिक खेलों में भारत ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था और अब 2021 में भारतीय टीम कांस्य पदक जीतने में कामयाब रही।
हारकर भी दिल जीत गई बेटियां
भारतीय महिला हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक तो हासिल नहीं कर सकी, लेकिन उन्होंने जिस दिलेरी से ग्रेट ब्रिटेन जैसी मजबूत टीम से संघर्ष किया, वह भुलाए नहीं भूलेगा। भारत को इस मुकाबले में 3-4 से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन भारतीय महिला टीम का यह प्रदर्शन काबिल ए तारीफ़ है। जिस टीम के बारे में क्वार्टर फ़ाइनल में स्थान बनाने में भी संशय व्यक्त किया जा रहा था, उस टीम ने ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को हराकर ना सिर्फ सेमीफ़ाइनल में स्थान बनाया बल्कि आख़िर तक अपनी लड़ाई जारी रखी। इस ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन से भारतीय टीम बिग लीग टीमों में अपना नाम शुमार कराने में सफल हो गई है। वह नई रैंकिंग में छठे स्थान पर आ सकती है। हार के बावजूद भी भारत में लोग महिला टीम के प्रदर्शन से बेहद उत्साहित हैं। लोगों का कहना है कि बेटियों का वहां तक पहुंचना ही प्रेरणादायक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा था, "इस टीम पर गर्व है। हम टोक्यो 2020 में अपनी महिला हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन को हमेशा याद रखेंगे। हम महिला हॉकी में एक पदक से चूक गए लेकिन यह टीम न्यू इंडिया की भावना को दर्शाती है। टोक्यो 2020 में उनकी सफलता अधिक बेटियों को हॉकी के लिए प्रेरित करेगी।" हरियाणा के सीएम एमएल खट्टर ने कहा कि वे ओलंपिक महिला हॉकी टीम के नौ सदस्यों को 50-50 लाख रुपये का पुरस्कार देंगे जो हरियाणा से हैं। उन्होंने कहा, "मैं भारतीय टीम को टोक्यो ओलंपिक में उनके सराहनीय प्रदर्शन के लिए बधाई देता हूं।"