पवित्रता सिद्ध करने को दिए प्राण और बन गई 'हत्या देवी'
** साल में केवल एक बार ही खोले जाते हैं इस मंदिर के द्वार
देवभूमि हिमाचल प्रदेश में कई रहस्मयी मंदिर हैं, जिससे लोगों का भरोसा जुड़ा है, आस्था जुड़ी है। ऐसा ही एक मंदिर है, हिमाचल के जिला मंडी में स्थित माता हत्या देवी मंदिर। इस मंदिर के द्वार साल में केवल एक बार ही खोले जाते हैं। मंडी जिला का नाम रियासत काल में सुकेत था। इस रियासत को बंगाल के राजा रूपसेन के तीन बेटों में से एक वीरसेन ने बसाया था। सुकेत को ही मंडी का उद्गम भी कहा जाता है। 765 ईसी से लेकर 1248 तक सुकेत रियासत की राजधानी पांगणा रही। मनोरम पहाड़ों के बीच बसे सुंदर छोटे से गांव पागंणा में ही महामाया देवी कोट का मंदिर है। यहां दशकों से लोग हत्या देवी की पूजा पूरी श्रद्धा से करते हैं। हत्या देवी की एक गांव पर असीम कृपा है, जबकि एक अन्य गांव के लोग यहां जाने से भी डरते हैं।
कहते हैं सुकेत रियासत के राजा रामसेन की बेटी यानि राजकुमारी चंद्रावती बचपन से ही शिव पार्वती की अनन्य भक्त थी। सर्दियों के मौसम में राजकुमारी चंद्रावती सुंदरनगर स्थित महल में सहेलियों के साथ खेल रही थी। खेलते समय उनकी एक सहेली पुरुष रूप धारण किए थी। इसी दौरान राज पुरोहित उस कक्ष से गुजरा और उन्हें प्रतीत हुआ कि चंद्रावती किसी युवक के साथ खेल रही है। वे तुरंत राजा के पास गए और उन्हें पूरी बात बता दी, जिससे राजा क्रोधित हो गए। लोकलाज की चिंता से राजा ने राजकुमारी चंद्रावती को पांगणा भेज दिया। चंद्रावती ने खुद को पवित्र साबित करने के लिए रती नाम का विषैला बीज एक शिला पर पीसकर खा लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। कहा जाता है की यह शिला आज भी पांगणा में यथास्थिती मौजूद है।
राजकुमारी के प्राण त्यागने के बाद देवी चद्रावंती उसी रात राजा रामसेन के स्वप्न में आई और उन्हें पूरी बात सुनाई। उन्होंने राजा रामसेन से कहा कि मेरे मृत शरीर को महामाया देवी कोट मंदिर पांगणा के परिसर में दबाया जाए। फिर छह माह बाद शरीर को दोबारा से जमीन से बाहर निकालना। अगर मैं पवित्र हूं तो मेरा शरीर उस समय भी पूरी तरह से यथावत रहेगा और यदि पवित्र नहीं तो यह पूरी तरह से गल कर सड़ जाएगा। यदि शरीर सुरक्षित रहे तो आप इसका विधि-विधान से अंतिम संस्कार चंदपुर में करना। अगली सुबह राजा ने राज पुरोहित सहित रियासत के ज्योतिषियों को बुलाया और अपने सपने के बारे में बताया। ज्योतिषियों के परामर्श पर राजा तुरंत पांगणा के लिए रवाना हुए। स्वपन के अनुसार ही वहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि चंद्रावती ने आत्महत्या कर ली है। इसके बाद राजा ने चंद्रावती के कहे अनुसार उनके शरीर को महामाया मंदिर के परिसर में ही दबा दिया। इसके छह माह के बाद जब राजा व अन्य लोगों ने वहीं पहुंचकर वह जमीन खोदी और देखा की राजकुमारी का शरीर पूरी तरह से सुरक्षित था। अत: सिद्ध हो गया कि चंद्रावती पवित्र थी और पुरोहित की बात गलत थी। राजा को अपने किए का घोर पछतावा हुआ और राजकुमारी चंद्रावती की इच्छा के अनुसार उनके शव को पांगणा के समीप चंदपुर स्थान पर अंतिम संस्कार किया गया। इसी स्थान पर शिव-पार्वती का मंदिर भी बनाकर शिवलिंग की स्थापना की गई, जिसे आज दक्षिणेश्वर महादेव के नाम से जाता जाता है।
मंदिर में प्रवेश नहीं करते पुरोहित के वंशज
राजकुमारी की सत्यता प्रमाणित होने के उपरांत राजा रामसेन उन्माद से पीड़ित हो गए और उनकी इससे मौत हो गई। मगर इससे पहले उन्होंने झूठी शिकायत करने वाले पुरोहित को सजा के तौर पर राजधानी से बाहर निकालकर चुराग नामक स्थान पर भेज दिया, जहां पर पानी से लेकर हर वस्तु का अभाव था। पुरोहित के वशंज आज इस क्षेत्र में लठूण कहे जाते हैं। कहते हैं आज तक पुरोहित के वशंज माता के कोप के डर से महामाया देवी कोट मंदिर में प्रवेश नहीं करते। उन्हें डर है कि कहीं देवी चंद्रावती उनके पूर्वजों द्वारा किए गए कृत्य की सजा उन्हें न दें।
नवरात्रों में भी नहीं खुलता मंदिर
दशकों से महामाया देवी कोट मंदिर पांगणा के भवन के भूतल भाग में वामकक्ष यानि बाईं तरफ बने मंदिर में देवी चंद्रावती की हत्यादेवी के रूप में पूजा की जाती है। हालांकि यह मंदिर साल भर बंद ही रहता है और विशेष उपलक्ष्य में ही इसे खोला जाता है। ये पुजारी पर ही निर्भर करता है। हालांकि मंदिर में नवरात्रों में अन्य देवी देवताओं की पूजा 9 दिन तक नियमित रूप से होती है, पर इसे नवरात्रों में भी नहीं खोला जाता। आज भी सुकेत राजवंश पर देवी की अपार कृपा है।