जानें क्या है अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि का इतिहास, कब और कैसे शुरू हुआ यह महोत्सव
आज देशभर में शिवरात्रि महोत्सव मनाया जा रहा है। इस पर्व को भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। देवों की भूमि हिमाचल में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यहां हर गांव व हर कस्बे और शहर में इसे मनाया जाता है। हिमाचल में मंडी में मनाये जाने वाले शिवरात्रि महोत्सव को अंतरराष्ट्रीय दर्जा मिला हुआ है। अपने 81 मंदिरों से त्योहार में आमंत्रित देवताओं और देवियों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए मंडी शहर को 'पहाड़ियों की वाराणसी' यानी छोटी काशी का खिताब मिला है। मंडी में मनाये जाने वाले शिवरात्रि महोत्सव के विषय में अनेक मान्यताएं हैं।
एक मान्यता के अनुसार मंडी के राजा शिवमान सिंह की मृत्यु के समय उसका बेटा ईश्वरी सेन केवल पांच वर्ष का था। सन 1788 में 5 वर्ष की आयु में ही ईश्वरी सेन को मंडी राज्य का राजा नियुक्त कर दिया गया। कांगड़ा के राजा संसार चंद ने इस बात का फायदा उठाया और मंडी पर आक्रमण कर दिया और ईश्वरी सेन को कांगड़ा ले गया। वहां 12 वर्ष तक नादौन में बंदी बनाकर रखा। सन् 1806 में गोरखों ने ईश्वरी सेन को आजाद करवाया। कहा जाता है कि राजा ईश्वरी सेन शिवरात्रि के कुछ दिन पहले ही लंबी कैद से मुक्त होकर मंडी वापस लौटे थे। इसी खुशी में ग्रामीण भी अपने देवताओं को राजा से मिलाने के लिए मंडी नगर की ओर चल पड़े। राजा व प्रजा ने मिलकर यह जश्न मेले के रूप में मनाया। महाशिवरात्रि का पर्व भी इन्हीं दिनों था तथा इस तरह से शिवरात्रि पर हर वर्ष मेले की परंपरा शुरू हो गई।
भूतनाथ मंदिर के निर्माण की कहानी
भूतनाथ मंदिर, भगवान शिव की अभिव्यक्ति की मूर्ति के साथ, 1520 के दशक का एक प्राचीन मंदिर, मंडी का पर्याय है। यह शहर के मध्य में है। नंदी, शिव की सवारी, अलंकृत दोहरे धनुषाकार प्रवेश द्वार से देवता का सामना करती है। शिवरात्रि का त्योहार इस मंदिर का प्रमुख आयोजन है, जो मंदिर में सात दिन तक मनाया जाता है। भूतनाथ मंदिर के निर्माण के बारे में एक किंवदंती बताई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि, 1526 में, राजा अजबर सेन ने मंडी के एक जंगल में एक गाय द्वारा अपनी इच्छा से एक विशेष पत्थर पर दूध चढ़ाने की कहानी सुनी थी। ऐसा कहा जाता है कि राजा के सपने में भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने उस स्थान पर दबे हुए शिव लिंग को बाहर निकालने का निर्देश दिया। इसके बाद, राजा को संकेतित स्थान पर शिव लिंग मिला, जिसे उन्होंने 1526 में एक मंदिर में स्थापित किया, उसी स्थान पर जहां यह पाया गया था। उन्होंने इसे भूतनाथ मंदिर कहा और मंडी में शिवरात्रि उत्सव मनाने की शुरुआत की। इस घटना के साथ-साथ, राजा ने अपनी राजधानी भिउली से मंडी स्थानांतरित कर दी।
शिवरात्रि में माधोराय ही क्यों करते हैं शोभा यात्रा का नेतृत्व
कहा जाता है कि मंडी के पहले राजा बाणसेन शिव भक्त थे, जिन्होंने अपने समय में शिव महोत्सव मनाया। राजा अजबर सेन ने 1527 में मंडी कस्बे की स्थापना की और भूतनाथ में विशालकाय मंदिर निर्माण के साथ-साथ शिवोत्सव मनाया। राजा अजबर सेन के समय यह उत्सव एक या दो दिन ही मनाया जाता था। परंतु राजा सूरज सेन (1664-1679) के समय इस उत्सव को नया आयाम मिला। ऐसा माना जाता है कि राजा सूरज सेन के 18 पुत्र थे जो उसके जीवनकाल में ही मर गए। उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने एक सुनार 'भीमा' से एक चांदी की प्रतिमा बनवाई जिसे माधोराय नाम दिया गया। राजा ने अपना साम्राज्य माधोराय को दे दिया। इसके बाद शिवरात्रि में माधोराय ही शोभा यात्रा का नेतृत्व करने लगे। राज्य के समस्त देव शिवरात्रि में आकर पहले माधोराय व फिर राजा को हाजिरी देने लगे।