•   Tuesday Jul 08
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When Punjab University Was Once in Solan
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कभी सोलन में थी पंजाब यूनिवर्सिटी

आजादी के बाद, साल 1947 से लेकर 1956 तक पंजाब यूनिवर्सिटी का कैंपस सोलन में था। ब्रिटिश हुकूमत के जाने के बाद सोलन का कैंटोनमेंट एरिया खाली था और वहीं करीब नौ साल पंजाब यूनिवर्सिटी चली। यह क्षेत्र करीब आठ किलोमीटर में फैला था। दरअसल, पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना 1882 में लाहौर में हुई थी और यह ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत में खोली गई चौथी यूनिवर्सिटी थी। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के वक्त यूनिवर्सिटी का भी विभाजन हुआ और इसे दो भागों में बाँट दिया गया; यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब लाहौर और पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ को कुछ सालों के लिए सोलन के कैंटोनमेंट एरिया में स्थापित किया गया। फिर 1956 से इसे चंडीगढ़ शिफ्ट करने का काम शुरू हो गया। 1958 से 1960 के बीच में चंडीगढ़ स्थित मौजूदा कैंपस बनकर पूरी तरह तैयार हो रहा था और तब से पंजाब यूनिवर्सिटी इसी कैंपस से चल रही है। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन होने तक पंजाब यूनिवर्सिटी के रीजनल सेंटर रोहतक, शिमला और जालंधर में चलते रहे। वहीं, 1971 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अस्तित्व में आने से पहले हिमाचल के कई कॉलेज पंजाब यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड रहे।

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जटोली : एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित जटोली शिव मंदिर को एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है। समुद्र तल से लगभग 1,855 मीटर (करीब 6,086 फीट) की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर अपने स्थापत्य, धार्मिक महत्त्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र बन चुका है। स्थान और पहुँच जटोली मंदिर, सोलन शहर से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और सड़क मार्ग से यहाँ तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के निकट तक वाहन सुविधा उपलब्ध है। स्थापना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस मंदिर की स्थापना का श्रेय श्रीश्री 1008 स्वामी कृष्णा नंद परमहंस महाराज को जाता है, जो वर्ष 1946 में इस क्षेत्र में आए थे। उस समय यह स्थान एक घना जंगल हुआ करता था। परमहंस महाराज को यह स्थान तपस्या के लिए उपयुक्त प्रतीत हुआ, और उन्होंने यहाँ रहकर साधना आरंभ की। दिन में वह कुंड के पास ध्यान करते और रात को एक गुफा में विश्राम करते थे। समय के साथ स्थानीय लोग उनके दर्शन के लिए आने लगे। क्षेत्र में जल संकट को देखते हुए परमहंस महाराज ने भगवान शिव की आराधना करते हुए जलधारा के लिए तप किया। कुछ ही समय बाद मंदिर परिसर में एक जलधारा फूट पड़ी, जो आज भी 'शिव कुंड' के रूप में निरंतर बहती है। निर्माण और वास्तुकला जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य वर्ष 1980 में प्रारंभ हुआ। इसे दक्षिण भारत की द्रविड़ स्थापत्य शैली में निर्मित किया गया है। मंदिर के निर्माण में लगभग 33 वर्ष का समय लगा और इसे वर्ष 2013 में आम श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। मंदिर की शिखर ऊँचाई लगभग 122 फीट है, जिससे यह एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है। निर्माण कार्य में पारंपरिक पत्थरों, लकड़ी और आधुनिक तकनीकों का समन्वय किया गया है। मंदिर की बाहरी दीवारों और स्तंभों पर बारीक नक्काशी की गई है, जो इसकी शिल्पकला की श्रेष्ठता को दर्शाती है। मंदिर की विशेषताएँ तीन मंजिला संरचना: मंदिर तीन स्तरों पर बना है। प्रथम तल पर शिवलिंग और जल कुंड, द्वितीय तल पर ध्यान कक्ष, और तृतीय तल पर मुख्य शिखर स्थित है। शिव कुंड: परिसर में मौजूद जलधारा से निर्मित यह कुंड एक प्रमुख आकर्षण है। इसका पानी साल भर बहता रहता है और इसे पवित्र माना जाता है। आसपास का वातावरण: मंदिर चारों ओर से पहाड़ियों और देवदार के वृक्षों से घिरा है, जो इसे एक शांत और ध्यानयोग्य स्थल बनाता है। धार्मिक आयोजन: महाशिवरात्रि, श्रावण मास और अन्य शिवोत्सवों पर यहाँ विशेष पूजा-अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। वर्तमान स्थिति और सामाजिक योगदान आज जटोली मंदिर हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बन चुका है। यह न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि स्थानीय पर्यटन को भी प्रोत्साहित कर रहा है। मंदिर ट्रस्ट द्वारा धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया जाता है। मंदिर परिसर में जल, स्वच्छता और यात्रियों की मूलभूत सुविधाओं की उचित व्यवस्था की गई है।

तारे ज़मीं पर: स्टारगैज़िंग के लिए क्यों सबसे खास है हिमाचल
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तारे ज़मीं पर: स्टारगैज़िंग के लिए क्यों सबसे है हिमाचल

जब शहरों की चकाचौंध थमती है, और प्रकृति अपने मौन संगीत में लिपटी होती है, तब हिमाचल के शांत और ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र वह ख़ामोश मंच बन जाते हैं जहाँ रात का आसमान खुलकर अपनी कहानियाँ कहता है। टिमटिमाते तारे, आकाशगंगा की चमकती धाराएँ और ब्रह्मांड के अनगिनत रहस्य, ये सब कुछ खुली आँखों से देखने का सौभाग्य बहुत कम जगहों पर मिलता है, और हिमाचल उनमें सबसे ऊपर है। देवभूमि अब ‘स्टारगैज़िंग’ यानी तारों को निहारने की अद्भुत कला के लिए खगोल प्रेमियों का नया तीर्थ बन रहा है। यहाँ की पर्वतीय रातें सिर्फ ठंडी नहीं होतीं, वे ब्रह्मांड का खुला द्वार बन जाती हैं। यही नहीं, स्पीति घाटी को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स (Indian Institute of Astrophysics – IIA) ने अंतरिक्ष के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में मान्यता दी है। यह घाटी खगोलीय वेधशाला के लिए एक आदर्श स्थान है क्योंकि यहाँ की मौसम की स्थिति, उच्च ऊँचाई और कम प्रदूषण वाले वातावरण के कारण आकाश को बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। स्टारगैज़िंग, यानी तारों को ध्यानपूर्वक देखना और उनका अनुभव लेना, केवल वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। इसमें हम तारों की चाल, उनके समूहों, आकाशगंगा और ग्रहों का अवलोकन करते हैं। यह प्रक्रिया हमें न केवल ब्रह्मांड को देखने, बल्कि उसमें अपनी जगह को समझने का अवसर देती है। आजकल स्टारगैज़िंग को खगोल पर्यटन (Astro Tourism) के रूप में बढ़ावा मिल रहा है, जहाँ लोग रातभर खुले आसमान के नीचे तारे देखना, उन्हें कैमरे में क़ैद करना और ब्रह्मांड से जुड़ना पसंद कर रहे हैं। स्पीति: जहाँ रातें सितारों से बातें करती हैं लाहौल-स्पीति ज़िला, विशेषकर काजा, हिक्किम, लांगज़ा और किब्बर जैसे गाँव, आज देश-विदेश के खगोलप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। इन गाँवों की ख़ासियत है .. वातावरण की नमी लगभग शून्य होना, अत्यधिक ऊँचाई और नगण्य प्रकाश प्रदूषण। ऐसे में यहाँ का आसमान रात के समय आकाशगंगा (Milky Way), प्लेइडीज़, ओरायन बेल्ट और कभी-कभी उल्कापिंडों (shooting stars) से सजा नज़र आता है। हिक्किम का डाकघर, जो दुनिया का सबसे ऊँचाई पर स्थित पोस्ट ऑफिस है, अब ‘स्टारगैज़िंग पोस्ट’ के रूप में लोकप्रिय होता जा रहा है। चंद्रताल: ब्रह्मांड को प्रतिबिंबित करती झील समुद्र तल से 14,100 फीट की ऊँचाई पर बसी चंद्रताल झील, अपने अर्धचंद्राकार आकार और दर्पण-सी शांति के कारण प्रसिद्ध है। रात को जब पूरा ब्रह्मांड इस झील की सतह पर प्रतिबिंबित होता है, तो वह दृश्य अविस्मरणीय होता है। यहाँ मोबाइल नेटवर्क नहीं चलता, लेकिन सितारों से कनेक्शन की ऐसी स्थायी रेखा बनती है, जो हर स्क्रीन से कहीं ज़्यादा गहरी और शुद्ध होती है। छितकुल और ट्रियुंड: जहाँ तारे ज़मीन से उतरते हैं किन्नौर का छितकुल — यानी भारत का आख़िरी गाँव — अब स्टारगैज़िंग के लिए एक शांत और सुंदर विकल्प बनकर उभरा है। यहाँ के खुले मैदानों से आकाशगंगा को निहारना आत्मा के लिए ध्यान जैसा अनुभव देता है। वहीं धर्मशाला के पास ट्रियुंड ट्रेकिंग पॉइंट पर अगर आप एक रात टेंट में बिताएँ, तो आपको तारे ज़मीन पर उतरते हुए महसूस होंगे। इसके अलावा, नाको (किन्नौर), करज़ोक (त्सो मोरीरी के पास), केलांग (लाहौल), भरमौर (चंबा), और रोहतांग दर्रे के आसपास के क्षेत्र भी स्टारगैज़िंग के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं। इन क्षेत्रों में ट्रैकिंग और खगोल पर्यटन को जोड़कर स्थानीय लोगों ने ‘एस्ट्रो होमस्टे’ जैसी पहल भी शुरू की है। स्टारगैज़िंग के लिए एक स्पष्ट रात, बिना चाँद की रातें (अमावस्या), ऊँचाई वाला क्षेत्र, कम रोशनी वाला वातावरण, और अधीरता से दूर एक शांत मन बेहद ज़रूरी है। कुछ लोग स्टार मैप ऐप्स या दूरबीन का सहारा लेते हैं, जबकि कुछ बस खुली आँखों से इस अलौकिक दृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहते हैं। हिमाचल में इसका आदर्श समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर तक होता है। स्टारगैज़िंग ने खोले रोज़गार के द्वार घाटी और आसपास के इलाक़ों में स्टारगैज़िंग रोज़गार का ज़रिया बनता जा रहा है। जैसे-जैसे स्टारगैज़िंग डॉक्यूमेंट्री और प्रोफेशनल टाइमलैप्स वीडियो की माँग बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्थानीय लोगों की भूमिका भी अहम होती जा रही है। एक पेशेवर खगोलीय वीडियो शूट की क़ीमत लाखों में होती है। इसमें हाई-एंड कैमरा, ड्रोन, लोकेशन शूट, टीम खर्च और एडिटिंग शामिल होते हैं। अब बाहरी शूटिंग टीमें जब इन दूरदराज़ घाटियों में आती हैं, तो स्थानीय लोग उन्हें गाइड, पोर्टर, टैक्सी ड्राइवर, होमस्टे और खानपान की सेवाएँ देते हैं। इससे उनकी आमदनी में सीधा इज़ाफा हो रहा है।

Dagshai Jail: Where Both Gandhi and Godse Were Once Held
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डगशाई जेल: जहाँ गांधी और गोडसे दोनों रहे

"डगशाई जेल की दीवारें मानो आज भी अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी कह रही हों। जेल में बनी कालकोठरी बेहद भयानक है, यहाँ का घुप अंधेरा आज भी शरीर में सिरहन ला देता है। ब्रिटिश शासन में इस जेल में न जाने कितने कैदियों को प्रताड़ित किया जाता था। न जाने कितने आज़ादी के मतवालों को यहाँ अमानवीय दंड दिए गए। यहाँ कैदियों के माथे को गर्म सलाखों से दागा जाता था। इसलिए इसे 'दाग-ए-शाही' सज़ा कहा जाता था। 'दाग-ए-शाही' नाम से ही दागशाई नाम की उत्पत्ति हुई और फिर इसे डगशाई कहा जाने लगा।" हिमाचल प्रदेश के सोलन ज़िले की डगशाई जेल के साथ एक अनूठा इतिहास जुड़ा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस जेल में दो दिन बिताए थे। गांधी आयरिश नागरिकों की गिरफ्तारी के बाद जेल में बंद आयरिश कैदियों से मिलने आए थे। गांधीजी की यात्रा के दौरान अंग्रेजों ने उनके रहने की व्यवस्था कैंटोनमेंट इलाके में की थी, लेकिन उन्होंने डगशाई जेल में ही रहने की मांग की थी। दिलचस्प बात ये है कि बापू के हत्यारे गोडसे इस जेल का आख़िरी कैदी था। महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को शिमला में ट्रायल के दौरान डगशाई जेल लाया गया था। गोडसे को जेल के मुख्य द्वार के प्रवेश द्वार के बगल वाली कोठरी नंबर छह में रखा गया था, जहाँ आज भी दीवार पर गोडसे की फोटो टंगी हुई है। डगशाई जेल अब म्यूज़ियम बन गई है। महात्मा गांधी जिस कोठरी में रुके थे, वहाँ आज भी गांधीजी की एक तस्वीर, एक चरखा और एक गद्दा रखा हुआ है। आज भी हज़ारों लोग इस जेल को देखने आते हैं। जेल म्यूज़ियम में घूमने से आज़ादी से पहले के काले इतिहास को क़रीब से जाना जा सकता है। ब्रिटिश शासन में इस जेल में कैदी को जेल की कोठरी के दो दरवाज़ों के बीच खड़ा किया जाता था। दोनों दरवाज़ों को बंद करने के बाद यह सुनिश्चित किया जाता था कि कैदी कई घंटों तक बिना आराम किए इन दो दरवाज़ों के बीच रहे। इस जेल में कैदी का एक कार्ड भी बनाया जाता था। इस कार्ड में कैदी का पूरा विवरण लिखा होता था, जिसमें उसका नाम, रंग, देश, अपराध, कारावास की अवधि और फ़ैसले की तारीख़ शामिल होती थी।

This Son of Himachal Composed the Tune of 'Jana Gana Mana
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हिमाचल के इस सपूत ने किया था 'जन-गण-मन...' को संगीतबद्ध

"जब भी भारत के लोग राष्ट्रगान की धुन सुनकर सावधान खड़े होते हैं, तो हमें इसे कलमबद्ध करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर ज़ेहन में आते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हमारे राष्ट्रगान 'जन गण मन...' की धुन हिमाचल प्रदेश में जन्मे एक गोरखा राम सिंह ठाकुर ने तैयार की थी। ये हर हिमाचली के लिए गौरव का संदर्भ है।" "आज़ादी के मौके पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इस मौके पर कैप्टन राम सिंह के नेतृत्व में INA (इंडियन नेशनल आर्मी) के ऑर्केस्ट्रा ने लाल क़िले पर 'शुभ सुख चैन की बरखा बरसे...' गीत की धुन बजाई थी।" नेता जी ने दिया था अपना वायलिन आज़ाद हिंद फ़ौज में रहते हुए जब कैप्टन राम सिंह की नेताजी सुभाष चंद्र बोस से पहली बार मुलाक़ात हुई, तो उन्होंने उनके सम्मान में मुमताज़ हुसैन के लिखे एक गीत को अपनी धुन देकर तैयार किया। ये गीत था... 'सुभाष जी, सुभाष जी, वो जाने हिंद आ गए'। तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें अपना पसंदीदा वायलिन उपहार में दिया और राम सिंह को ये ज़िम्मेदारी दी कि वह ऐसे गीत बनाएं जो उनकी सेना का हौसला बनाए रखें और देशवासियों के दिलों में जोश भर दें। 2002 में हुआ देहांत, हिमाचल में उपेक्षित और गुमनाम सेना से रिटायरमेंट के बाद यूपी सरकार ने सम्मान के तौर पर उन्हें पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने कैप्टन राम सिंह को आजीवन लखनऊ में ही रहने के लिए बंगला आवंटित किया था। 2002 में कैप्टन राम सिंह ने लखनऊ में ही अंतिम सांस ली। पर ये विडंबना का विषय है कि आज मौजूदा वक्त में राष्ट्रगान की धुन के रचयिता अपने ही प्रदेश हिमाचल में उपेक्षित और गुमनाम हैं।

Himachal: 235 roads still damaged in the state, this much damage has been done
In Himachal

प्रदेश में अभी भी 235 सड़कें बंद , इतना हुआ नुकसान

मानसून सीजन के दौरान प्रदेश में अभी भी 235 सड़कें, 163 बिजली ट्रांसफार्मर और 174 पेयजल योजनाएं ठप हैं। मानसून सीजन के दौरान प्रदेश को 692 करोड़ का नुकसान हो चुका है। जिला मंडी सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। मानसून सीजन में सामान्य से 37 फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई है। 20 जून से सात जुलाई तक प्रदेश में 197.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज हुई। इस अवधि में 144 मिलीमीटर बारिश को सामान्य माना गया है। चंबा, किन्नौर, लाहौल-स्पीति में सामान्य से कम और शेष जिलों में अधिक बारिश दर्ज हुई। बिलासपुर में सामान्य से 59, हमीरपुर में 87, कांगड़ा में 45, कुल्लू में 36, मंडी में 111, शिमला में 96, सिरमौर में 62, सोलन में 50 और ऊना में 105 फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई। उधर, 30 जून से सात जुलाई तक एक सप्ताह के दौरान प्रदेश में सामान्य से 43 फीसदी अधिक बारिश हुई। मंडी में सामान्य से 198, ऊना में 192, शिमला में 176 फीसदी अधिक बारिश रिकॉर्ड हुई। 

Himachal: In the coming days, the weather in the state will be clear and the sun will shine
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हिमचाल : आगामी दिनों में प्रदेश में मौसम रहेगा साफ, खिली रहेगी धुप

हिमाचल में बीते सप्ताह भारी नुकसान पहुंचाने के बाद मानसून की रफ्तार कुछ कमजोर हो गई है। प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में हल्की बारिश के पूर्वानुमान के साथ 13 जुलाई तक मौसम साफ रहने की संभावना है। सोमवार को लगातार दूसरे दिन भी प्रदेश के अधिकांश जिलों में धूप खिली। सिर्फ कांगड़ा में बूंदाबांदी हुई। राजधानी शिमला सहित प्रदेश में कई जगह सोमवार को दिन भर मौसम साफ रहा। धूप खिलने से अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के अनुसार 8, 9 और 10 जुलाई को राज्य के कई स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश और 11, 12 और 13 जुलाई को कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा होने का पूर्वानुमान है। ऊना, बिलासपुर, सोलन और सिरमौर के कुछ क्षेत्रों में बारिश का येलो अलर्ट भी जारी हुआ है। मंगलवार को बिलासपुर, चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर, सोलन और ऊना जिलों के कुछ जलग्रहण क्षेत्रों और आसपास के क्षेत्रों में हल्की से मध्यम बाढ़ की संभावना है। इस बीच, रविवार रात को बीबीएमबी में 58, नंगल डैम में 56, बरठीं में 44.6, ऊना में 43.0, श्री नयना देवी में 36.4 और गोहर में 29 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है।  

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'चंद्र ग्रहण' नहीं, सियासी आसमान साफ है!

In Politics
No 'Chandra Grahan', the political sky is clear chandra kuma neeraj bharti

बेटा, पिता के कहने से बाहर या ‘गुड कॉप बैड कॉप’ गेमप्लान? चंद्र कुमार बोले: "बेटा नौजवान है, उसकी पोस्ट्स को ज़्यादा सीरियसली न लें"   कल खबर आई कि सुक्खू सरकार पर 'चंद्र ग्रहण' लग सकता है, आज मालूम हुआ सियासी आसमान बिल्कुल साफ है ! चौधरी चंद्र कुमार और नीरज भारती, हिमाचल की सियासत में बाप बेटे की ये जोड़ी अक्सर सुर्खियों में रहती है। बीती रात नीरज भारती ऐलान करते हैं कि उनके पिताजी कल मंत्री पद से इस्तीफ़ा देंगे, हालांकि बाद में आश्वासन मिलने का ऐलान भी कर देते हैं। सवाल उठे, बवाल मचा और आज खुद मंत्री चौधरी चंद्र कुमार मीडिया से मुखातिब हुए, डैमेज कंट्रोल किया गया और चौधरी साहब ने कहा कि "बेटा नौजवान है, आवेश में आकर बातें कह देता है.. उसकी पोस्ट्स को ज़्यादा सीरियसली न लें।" अब यहां थोड़ी असमंजस है। जनता और पार्टीजन सब कंफ्यूज हैं, सवाल उठना लाजमी है कि यह असली नाराज़गी है या कोई स्क्रिप्टेड सियासी प्लॉट ? क्या वाकई बाप बेटे के बीच संवाद की कमी है ? क्या वाकई बेटा पिता के कहने से बाहर है, या फिर ये सब एक सोची समझी 'प्रेशर पॉलिटिक्स' है? कुछ सियासी पंडितों को तो यह ‘गुड कॉप बैड कॉप’ का गेमप्लान लगता है, जहां एक नेता सरकार की नब्ज़ पर उंगली रखता रहता है और दूसरा सब बढ़िया है कहकर माहौल लाइट कर देता है। खैर जो भी है, ये तो ये दोनों बेहतर जानते हैं, लेकिन जो बात जहां तक पहुंचनी चाहिए, पहुंच ही जाती है। खैर, मौजूदा प्रकरण में क्या हुआ, अब आपको वो बताते हैं। रविवार शाम, पूर्व सीपीएस नीरज भारती ने फेसबुक पर ताबड़तोड़ पोस्टों की बौछार कर दी। पहली पोस्ट में उन्होंने लिखा: "कल चौधरी चंद्र कुमार इस्तीफ़ा देंगे। अगर काम दलालों के होंगे तो फिर मंत्री रहकर क्या फ़ायदा?" इसके कुछ घंटे बाद उन्होंने दूसरा पोस्ट किया: "फिलहाल चौधरी साहब को आश्वासन मिल गया है। कल मुख्यमंत्री से बातचीत होगी, फिर देखा जाएगा।" नीरज भारती यहीं नहीं रुके। अगली पोस्ट में उन्होंने तीखे लहजे में सवाल उठाया: "वो कहते हैं कि मैंने अपने पिता से कह दिया है कि भाजपाइयों के ही काम होने हैं तो आप इस्तीफ़ा दे दो मंत्री पद से, विधायक बेशक बने रहो। या फिर अपने विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से पूछ लो कि विधायक भी रहना है या नहीं। अगर हमारी ही सरकार में कुछ दलाल पैसे लेकर भाजपाइयों के काम करवा रहे हैं और आप चुप हैं... तो इस्तीफ़ा देना ही बेहतर है।" इन पोस्ट्स ने राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया, लेकिन खुद चौधरी चंद्र कुमार ने सभी अटकलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा: "इस्तीफ़ा देने की कोई नौबत नहीं है। मामला केवल कुछ ट्रांसफरों को लेकर था, जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से करने से परहेज़ करता हूं।" उन्होंने नीरज की पोस्ट्स पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा: "वो नौजवान हैं, कुछ बातें उन्हें आहत कर देती हैं। इन बातों को ज़्यादा सीरियसली न लें। मुख्यमंत्री से मेरी बातचीत होगी और मसले हल कर लिए जाएंगे।" वैसे आपको याद दिला दें कि वही चौधरी चंद्र कुमार हैं जिन्होंने संगठन गठन पर हो रहे विलंब को लेकर सबसे पहले पार्टी को आइना दिखाया था, संगठन को 'पैरालाइज़्ड' कहा था। अलबत्ता, इस बार मोर्चा नीरज ने संभाला हो लेकिन नाराज़गी तो चंद्र कुमार की भी झलकती रही है। लब्बोलुआब ये है कि भले ही सरकार की सेहत को इससे कोई खतरा न हो, लेकिन 'ऑल इज़ नॉट वेल इन कांग्रेस' ! कांग्रेस सरकार के रहते काम किसके हो रहे हैं और किसके नहीं,ये तो सवाल है ही।

मोदी की स्वास्थ्य गारंटी : आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन से जुड़े 56.67 करोड़ लोग

In Health
guarantee: 56.67 crore people connected to Ayushman Bharat Digital Mission

पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साल 2021 में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की शुरुआत की थी। मोदी के नेतृत्व में ही 2021-2022 से 2025-2026 तक 5 वर्षों के लिए 1,600 करोड़ रुपये की डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम बनाने के लिए आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन शुरू किया गया था। इसकी वजह से पीएम मोदी के गारंटी का भी असर देखने को साफ मिला और इस योजना के तहत 29 फरवरी, 2024 तक 56.67 करोड़ लोगों के आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन ने लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में भी प्रगति की है। 29 फरवरी, 2024 तक, 27.73 करोड़ महिलाएं और 29.11 करोड़ पुरुषों को आभा कार्ड से लाभ हुआ है। वहीं 34.89 करोड़ से अधिक स्वास्थ्य दस्तावेजों को इससे जोड़ा गया है। क्या है आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन  आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन का उद्देश्य देश में यूनिफाइड डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की मदद करने के लिए जरूरी आधार तैयार करना है। इससे सीमित इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता खोलने के लिए ऑफलाइन मोड को मदद पहुंचती है। इसके अलावा भारत सरकार ने स्वास्थ्य सुविधा के लिए आभा ऐप और आरोग्य सेतु जैसे विभिन्न एप्लिकेशन भी लॉन्च किए गए हैं, जो आम लोगों को मदद पहुंचाती है। आभा ऐप एक प्रकार का डिजिटल स्टोरेज है, जो किसी भी व्यक्ति के मेडिकल दस्तावेजों का रखने का काम आता है। इस ऐप के जरिए मरीज रजिस्टर्ड स्वास्थ्य पेशेवरों से संपर्क भी कर सकते हैं।    भारत में बीजेपी की मोदी सरकार ने बीते 10 सालों के अपनी सरकार में कई सारे मील के पत्थर हासिल किया है। इन 10 सालों में पीएम मोदी के विजन ने भारत को अगले 23 साल बाद यानी साल 2047 तक विकसित भारत बनाने के ओर मजबूती से कदम भी बढ़ा लिया है। पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने देश के हित में जो भी फैसले लिए है, उनमें से हेल्थ सेक्टर को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का प्रयास किया गया है।        

हिमाचल : प्रदेश में विद्यार्थियों की शून्य संख्या वाले 103 स्कूल होंगे बंद, सीएम ने दी मंजूरी

In Education
Himachal: 103 schools with zero number of students in the state will be closed, CM gave approval

प्रदेश में विद्यार्थियों की कम संख्या वाले 618 स्कूल बंद, मर्ज और डाउन ग्रेड होंगे। शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने मंजूरी दे दी है। प्रदेश में विद्यार्थियों की शून्य संख्या वाले 103 स्कूल बंद होंगे। दस बच्चों की संख्या वाले 443 स्कूल मर्ज किए जाएंगे और 75 स्कूलों का दर्जा घटाया जाएगा। मर्ज होने वाले स्कूलों के विद्यार्थियों का चार से पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले अधिक दाखिलों वाले स्कूलों में समायोजन किया जाएगा। शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने बताया कि मुख्यमंत्री से मंजूरी मिल गई है और विभाग जल्द इस की अधिसूचना जारी करेगा। वही 618 स्कूल मर्ज, डाउन ग्रेड और बंद करने से 1,120 शिक्षक सरप्लस होंगे। इन शिक्षकों को अन्य आवश्यकता वाले स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा। विद्यार्थियों की शून्य संख्या वाले 72 प्राइमरी, 28 मिडल और 3 उच्च स्कूल डिनोटिफाई (बंद) करने का फैसला लिया गया। 203 प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं, जहां विद्यार्थियों की संख्या पांच से उससे कम है। इन स्कूलों को दो किलोमीटर के दायरे में आने वाले अन्य स्कूलों में मर्ज किया जाएगा। पांच से कम विद्यार्थियों की संख्या वाले 142 प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं, जिनके दाे किलोमीटर के दायरे में अन्य स्कूल नहीं हैं। इन्हें तीन किलाेमीटर की दूरी पर मर्ज किया जाएगा। 92 मिडल स्कूलों में दस या उससे कम विद्यार्थी हैं, इन्हें तीन किमी, बीस विद्यार्थियों की संख्या वाले सात हाई स्कूलों को चार किलोमीटर के दायरे में मर्ज किया जाएगा। विद्यार्थियों की कम संख्या वाले 75 उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों का दर्जा कम किया जाएगा। रोहित ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में 100 विद्यार्थियों की संख्या वाले कॉलेजों को भी मर्ज किया जाएगा। जनजातीय और दुर्गम क्षेत्रों में स्थित कॉलेजों के लिए विद्यार्थियों की संख्या 75 रखी गई है। कई कॉलेजों में बीते कुछ वर्षों से नामांकन बहुत कम हो रहे हैं। ऐसे कॉलेजों को आगे चलाना अब आसान नहीं है। ऐसे में शिक्षा निदेशालय से कॉलेज मर्ज करने के लिए प्रस्ताव मांगा गया है।  

धर्मशाला को मिली 3 IPL मैचों की मेजबानी

In Sports
DHRAMSHALA-TO-HOST-THREE-IPL-MATCHES-IN-2025

 बीसीसीआई द्वारा इंडियन प्रीमियर लीग के 18वें सीजन आईपीएल-2025 के शैड्यूल का ऐलान कर दिया गया है।  एचपीसीए स्टेडियम धर्मशाला को 3 आईपीएल मैचों की मेजबानी करने का मौका मिला है।  धर्मशाला स्टेडियम में 4 मई को  पंजाब किंग्स की टीम लखनऊ सुपर जायंट्स के साथ अपना लीग मैच खेलेगी, जबकि 8 मई को पंजाब का मुकाबला दिल्ली कैपिटल्स के साथ होगा। ये दोनों ही मुकाबले शाम साढ़े 7 बजे शुरू होंगे। वहीं 11 मई को दोपहर साढ़े 3 बजे पंजाब की टीम मुंबई इंडियंस के खिलाफ स्टेडियम में उतरेगी। आईपीएल  चेयरमैन अरुण धूमल ने बीते दिनों बिलासपुर में आयोजित सांसद खेल महाकुंभ के शुभारंभ पर ही धर्मशाला स्टेडियम को आईपीएल के 3 मैचों की मेजबानी के संकेत दे दिए थे। अब इस पर आधिकारिक मुहर लग चुकी है। आईपीएल 2024 में धर्मशाला को मिले थे दो मैच वर्ष 2024 में धर्मशाला में पंजाब किंग्स की टीम के दो मैच चेन्नई सुपर किंग्स और रायल चैलेंजर बेंगलुरु से हुए थे। पहला मुकाबला पांच मई को भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की चेन्नई सुपर किंग्स के साथ हुआ था। नौ मई को पंजाब का मुकाबला आरसीबी के साथ खेला गया था।

स्टीव जॉब्स से विराट कोहली तक, नीम करोली बाबा के आश्रम में सब नतमस्तक

In First Blessing
NEEM-KARORI-BABA

  नीम करोली बाबा के आश्रम में स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग को मिली आध्यात्मिक शान्ति भारत में कई ऐसे पावन तीर्थ हैं, जहां पर श्रद्धा एवं भक्ति के साथ जाने मात्र से व्यक्ति के समस्त मनोरथ पूरे हो जाते हैं। ऐसा ही एक पावन तीर्थ देवभूमि उत्तराखंड की वादियों में है, जिसे लोग 'कैंची धाम' के नाम से जानते हैं। कैंची धाम के नीब करौरी बाबा (नीम करौली) की ख्याति विश्वभर में है। नैनीताल से लगभग 65 किलोमीटर दूर कैंची धाम को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाला व्यक्ति कभी भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता। यहां पर हर मन्नत पूर्णतया फलदायी होती है। यही कारण है कि देश-विदेश से हज़ारों लोग यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं। बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर अरबपति-खरबपति तक शामिल हैं। बाबा के इस पावन धाम में होने वाले नित-नये चमत्कारों को सुनकर दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाबा नीब करौरी के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है। इनके अलावा हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, एप्पल के फाउंडर स्टीव जाब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग जैसी बड़ी विदेशी हस्तियां बाबा के भक्त हैं।  कुछ माह पूर्व स्टार क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के यहां पहुंचते ही इस धाम को देखने और बाबा के दर्शन करने वालों की होड़ सी लग गई। 1964 में बाबा ने की थी आश्रम की स्थापना  नीम करोली बाबा या नीब करोली बाबा की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में की जाती है। इनका जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर जिला फ़िरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। कैंची, नैनीताल, भुवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बाबा नीब करौरी ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी। बाबा नीम करौरी 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिल कर यहां आश्रम बनाने का विचार किया। इस धाम को कैंची मंदिर, नीम करौली धाम और नीम करौली आश्रम के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में बसा एक छोटा सा आश्रम है नीम करोली बाबा आश्रम। मंदिर के आंगन और चारों ओर से साफ सुथरे कमरों में रसीली हरियाली के साथ, आश्रम एक शांत और एकांत विश्राम के लिए एकदम सही जगह प्रस्तुत करता है। यहाँ कोई टेलीफोन लाइनें नहीं हैं, इसलिए किसी को बाहरी दुनिया से परेशान नहीं किया जा सकता है। श्री हनुमान जी के अवतार माने जाने वाले नीम करोरी बाबा के इस पावन धाम पर पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन हर साल 15 जून को यहां पर एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। यहां इस दिन इस पावन धाम में स्थापना दिवस मनाया जाता है। कई चमत्कारों के किस्से सुन खींचे आते है भक्त  मान्यता है कि बाबा नीम करौरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं। हालांकि वह आडंबरों से दूर रहते थे। न तो उनके माथे पर तिलक होता था और न ही गले में कंठी माला। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपना पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे श्री हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे। बाबा नीब करौरी के इस पावन धाम को लेकर तमाम तरह के चमत्कार जुड़े हैं। जनश्रुतियों के अनुसार, एक बार भंडारे के दौरान कैंची धाम में घी की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह जल घी में बदल गया। ऐसे ही एक बार बाबा नीब करौरी महाराज ने अपने भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी बनाकर, उसे उसकी मंजिल तक पहुंचवाया। ऐसे न जाने कितने किस्से बाबा और उनके पावन धाम से जुड़े हुए हैं, जिन्हें सुनकर लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के दुनियाभर में 108 आश्रम  बाबा नीब करौरी को कैंची धाम बहुत प्रिय था। अक्सर गर्मियों में वे यहीं आकर रहते थे। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। उस मन्दिर में हनुमान की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यहां बाबा नीब करौरी की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है। बाबा नीब करौरी महाराज के देश-दुनिया में 108 आश्रम हैं। इन आश्रमों में सबसे बड़ा कैंची धाम तथा अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी स्थित टाउस आश्रम है। स्टीव जॉब्स को आश्रम से मिला एप्पल के लोगो का आईडिया ! भारत की धरती सदा से ही अध्यात्म के खोजियों को अपनी ओर खींचती रही है। दुनिया की कई बड़ी हस्तियों में भारत भूमि पर ही अपना सच्चा आध्यात्मिक गुरु पाया है। एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स 1974 से 1976 के बीच भारत भ्रमण पर निकले। वह पर्यटन के मकसद से भारत नहीं आए थे, बल्कि आध्यात्मिक खोज में यहां आए थे। उन्हें एक सच्चे गुरु की तलाश थी।स्टीव पहले हरिद्वार पहुंचे और इसके बाद वह कैंची धाम तक पहुंच गए। यहां पहुंचकर उन्हें पता लगा कि बाबा समाधि ले चुके हैं। कहते है कि स्टीव को एप्पल के लोगो का आइडिया बाबा के आश्रम से ही मिला था। नीम करौली बाबा को कथित तौर पर सेब बहुत पसंद थे और यही वजह थी कि स्टीव ने अपनी कंपनी के लोगों के लिए कटे हुए एप्पल को चुना। हालांकि इस कहानी की सत्यता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जुकरबर्ग को मिली आध्यात्मिक शांति, शीर्ष पर पहुंचा फेसबुक  बाबा से जुड़ा एक किस्सा फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने 27 सितंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बताया था, तब पीएम मोदी फेसबुक के मुख्यालय में गए थे। इस दौरान जुकरबर्ग ने पीएम को भारत भ्रमण की बात बताई। उन्होंने कहा कि जब वे इस संशय में थे कि फेसबुक को बेचा जाए या नहीं, तब एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स ने इन्हें भारत में नीम करोली बाबा के स्थान पर  जाने की सलाह दी थी। जुकरबर्ग ने बताया था कि वे एक महीना भारत में रहे। इस दौरान वह नीम करोली बाबा के मंदिर में भी गए थे। जुकरबर्ग आए तो यहां एक दिन के लिए थे, लेकिन मौसम खराब हो जाने के कारण वह यहां दो दिन रुके थे। जुकरबर्ग मानते हैं कि भारत में मिली अध्यात्मिक शांति के बाद उन्हें फेसबुक को नए मुकाम पर ले जाने की ऊर्जा मिली। बाबा की तस्वीर को देख जूलिया ने अपनाया हिन्दू धर्म  हॉलिवुड की मशहूर अदाकारा जूलिया रॉबर्ट्स ने 2009 में हिंदू धर्म अपना लिया था। वह फिल्म ‘ईट, प्रे, लव’ की शूटिंग के लिए भारत आईं थीं। जूलिया रॉबर्ट्स ने एक इंटरव्यू में यह खुलासा किया था कि वह नीम करौली बाबा की तस्वीर से इतना प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाने का फैसला कर डाला। जूलिया इन दिनों हिन्दू धर्म का पालन कर रही हैं।    

पाताल भुवनेश्वर मंदिर: रहस्य, आस्था और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम

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Patal Bhuvaneshwar Temple: A wonderful confluence of mystery, faith and spirituality

  क्या आपने कभी कल्पना की है कि कहीं ऐसा स्थान भी हो सकता है, जहां सृष्टि के अंत का रहस्य छिपा हो? कोई ऐसा मंदिर, जहां चारों धामों के दर्शन एक ही स्थान पर संभव हों? उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर मंदिर ऐसा ही एक रहस्यमयी और दिव्य स्थल है, जो हर भक्त को आस्था, रहस्य और आध्यात्मिकता की गहराइयों से जोड़ता है। यह मंदिर एक गुफा के भीतर स्थित है, जिसे प्राचीन काल से चमत्कारी और गूढ़ माना गया है। गुफा में प्रवेश करते ही ऐसा लगता है मानो आप किसी अद्भुत आध्यात्मिक संसार में प्रवेश कर चुके हों। मान्यता है कि यहां भगवान शिव के साथ-साथ 33 कोटि देवी-देवताओं का वास है। यहां स्थित भगवान गणेश का कटा हुआ मस्तक स्वयं में एक रहस्य है, जो इस स्थान की अलौकिकता को और भी गहरा बनाता है। यहां स्थित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि वह निरंतर बढ़ रहा है, और जिस दिन वह गुफा की छत से टकराएगा, उस दिन प्रलय होगा। यह धारणा श्रद्धालुओं को एक अकल्पनीय आध्यात्मिक अनुभव और चेतना की गहराई से जोड़ती है।गुफा के भीतर चार रहस्यमयी द्वार मानव जीवन के चार प्रमुख पड़ावों का प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि रावण की मृत्यु के बाद पाप द्वार और महाभारत युद्ध के बाद रण द्वार बंद हो गए। अब केवल धर्म द्वार और मोक्ष द्वार खुले हैं, जो जीवन के सत्य और मोक्ष के मार्ग की ओर संकेत करते हैं। पौराणिक इतिहास की दृष्टि से इस मंदिर का उल्लेख त्रेता युग में मिलता है। सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले इस गुफा की खोज की थी। कहा जाता है कि पांडवों ने भी यहां भगवान शिव के साथ चौपड़ खेला था। बाद में 819 ईस्वी में जगत गुरु शंकराचार्य ने इस स्थल की पुनः खोज की और यहां पूजा आरंभ की। कैसे पहुंचे पाताल भुवनेश्वर? यह दिव्य स्थल पिथौरागढ़ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, जबकि सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है। सड़क मार्ग से यह स्थान सुगम रूप से जुड़ा हुआ है और उत्तराखंड के खूबसूरत पर्वतीय रास्तों से होकर गुज़रता है, जो यात्रा को और भी आनंददायक बना देता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि रहस्य और आध्यात्मिकता के अनूठे संगम के कारण भी यह स्थल भक्तों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पाताल भुवनेश्वर की इस अद्भुत गुफा में जाकर आप स्वयं उस दिव्यता और रहस्यमय ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं, जो सदियों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती आ रही है।

"देवस्थान को पर्यटन स्थल नहीं बनने देंगे": बिजली महादेव रोपवे के खिलाफ स्थानीय विरोध चरम पर

In News
Won’t Let a Sacred Site Turn into a Tourist Spot

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'बिजली महादेव रोपवे' को लेकर कुल्लू में विरोध तेज़ हो गया है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (HPTDC) के पूर्व चेयरमैन राम सिंह ने इस परियोजना के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलते हुए कहा है कि "यह प्रोजेक्ट किसी भी कीमत पर नहीं बनने दिया जाएगा।" राम सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बिजली महादेव सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि लोगों की आस्था का केंद्र है। उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय जनता और देव परंपरा की स्पष्ट नाराज़गी के बावजूद कुछ जन प्रतिनिधि इस परियोजना को आगे बढ़ा रहे हैं।   उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जो जन प्रतिनिधि पहले विरोध कर रहे थे, वे अब समर्थन में क्यों खड़े हैं। राम सिंह का कहना है कि रोपवे परियोजना पर्यावरण के लिए भी खतरा है...अब तक 72 पेड़ काटे जा चुके हैं और कुल 206 पेड़ काटने की अनुमति दी गई है।   विवाद की जड़ में क्या है? 274 करोड़ की लागत से बनने वाला यह रोपवे कुल्लू के मोहल से लेकर बिजली महादेव मंदिर तक बनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आधुनिक परिवहन सुविधा देना है। हालांकि, स्थानीय लोगों और देव समाज से जुड़े संगठनों का तर्क है कि यह रोपवे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि देव परंपराओं में भी हस्तक्षेप करेगा।   शिलान्यास के बाद बढ़ा विरोध यह विवाद कोई नया नहीं है। पिछले डेढ़ दशक से इस परियोजना को लेकर विरोध होता रहा है। लेकिन बीते 5 मार्च 2025 को जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इसका शिलान्यास किया, तो विरोध की आवाज़ और तीखी हो गई।   कुछ दिन पहले इस प्रोजेक्ट से जुड़ा एक और विवाद तब सामने आया जब पूर्व सांसद और भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भूमि पूजन में शामिल हुए। उनकी तस्वीर वायरल होने पर उन्होंने सफाई दी कि "मैं हमेशा इस प्रोजेक्ट के विरोध में था और रहूंगा।"   क्या है आगे की राह? प्रशासन की ओर से अभी तक इस बढ़ते विरोध पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन एक तरफ जहां केंद्र और राज्य सरकारें इसे विकास का जरिया बता रही हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय देव समाज, पर्यावरण प्रेमी और कुछ राजनीतिक हस्तियां इसे आस्था और प्रकृति के खिलाफ कदम मान रही हैं। अब देखना यह है कि क्या सरकार इस विरोध को सुनकर कोई समाधान निकालती है या फिर परियोजना को हर हाल में आगे बढ़ाने की कोशिश जारी रखती है।

एअर इंडिया के विमान की थाईलैंड में इमरजेंसी लैंडिंग: बम होने की सूचना, 156 यात्री थे सवार

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हाल ही में अहमदाबाद में हुए भीषण विमान हादसे के ठीक बाद, एअर इंडिया को एक और चुनौती का सामना करना पड़ा जब फुकेट से दिल्ली आ रही उसकी एक फ्लाइट (AI-379) में बम होने की सूचना के बाद फुकेट इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आपात लैंडिंग कराई गई। विमान में सवार सभी 156 यात्री और चालक दल के सदस्य सुरक्षित बताए जा रहे हैं। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने फ्लाइट ट्रैकर 'फ्लाइट्रेडर24' के हवाले से बताया कि एअर इंडिया की इस फ्लाइट ने फुकेट एयरपोर्ट से भारतीय समयानुसार सुबह 9.30 बजे (स्थानीय समयानुसार दोपहर 2.30 बजे) उड़ान भरी थी। हालांकि, बम की धमकी मिलने के बाद विमान ने अंडमान सागर के ऊपर एक बड़ा चक्कर लगाया और लगभग 20 मिनट बाद सुरक्षित रूप से फुकेट में ही आपात लैंडिंग कर ली। सभी यात्रियों और क्रू सदस्यों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है। 'नेशन थाईलैंड' की रिपोर्ट के अनुसार, बम की धमकी मिलते ही फुकेट एयरपोर्ट ने तुरंत अपना एयरपोर्ट कंटिन्जेंसी प्लान (ACP) सक्रिय कर दिया। एयरपोर्ट अधिकारियों ने कहा कि धमकी को लेकर सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं और विस्तृत जानकारी मिलने पर अपडेट दिया जाएगा। यह घटना ऐसे समय में हुई है जब एअर इंडिया पहले से ही अहमदाबाद में हुए दुखद विमान हादसे के बाद सुर्खियों में है। कल अहमदाबाद विमान हुआ था हादसा  यह उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया का विमान AI-171, जो 12 जून को अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़ान भर रहा था, टेक-ऑफ के दो मिनट बाद ही क्रैश हो गया था। यह विमान अहमदाबाद के बी.जे. मेडिकल कॉलेज हॉस्टल पर गिरा था, जहां उस समय 50 से अधिक लोग मौजूद थे। इस भीषण हादसे में अब तक 265 लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं। इनमें से 241 मृतक विमान में सवार यात्री और क्रू मेंबर्स थे, जबकि 5 शव उस मेडिकल हॉस्टल से मिले हैं जिस पर विमान गिरा था। हॉस्टल में मारे गए लोगों में 4 एमबीबीएस छात्र और एक डॉक्टर की पत्नी शामिल हैं। दुर्घटनाग्रस्त हुए बोइंग 787 ड्रीमलाइनर फ्लाइट AI-171 में 169 भारतीय, 53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली और एक कनाडाई नागरिक सहित कुल 230 यात्री सवार थे। इनमें 103 पुरुष, 114 महिलाएं, 11 बच्चे और 2 नवजात शामिल थे, जबकि 12 क्रू मेंबर्स थे। दुखद रूप से, इस हादसे में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी शामिल थे, जबकि चमत्कारिक रूप से केवल एक यात्री की जान बच पाई थी। 

पांगी - हिमाचल की सबसे खतरनाक सड़क से जुड़ा गांव

In International News

पांगी - हिमाचल की सबसे खतरनाक सड़क से जुड़ा गांव **सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा - यहाँ हर व्यवस्था बेहाल **आरोप : HRTC बस ड्राइवर करते है मनमर्ज़ी, डिपू से नहीं मिलता पूरा राशन **सड़क बंद हो तो कंधे पर उठा कर ले जाते है मरीज़ **मुख्यमंत्री के दौरे के बाद जगी उम्मीद

शायरी के बादशाह कहलाते है वसीम बरेलवी, पढ़े उनके कुछ चुनिंदा शेर

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  वसीम बरेलवी उर्दू के बेहद लोकप्रिय शायर हैं। उनकी ग़ज़लें बेहद मक़बूल हैं जिन्हें जगजीत सिंह से लेकर कई अजीज़ गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। वसीम बरेलवी अपनी शायरी और गजल के जरिए लाखों दिलों पर राज करते हैं। कोई भी मुशायरा उनके बगैर पूरा नहीं माना जाता।     18 फरवरी 1940 को वसीम बरेलवी का जन्म बरेली में हुआ था।  पिता जनाब शाहिद हसन  के रईस अमरोहवी और जिगर मुरादाबादी से बहुत अच्छे संबंध थे। दोनों का आना-जाना अक्सर उनके घर पर होता रहता था। इसी के चलते वसीम बरेलवी का झुकाव बचपन से शेर-ओ-शायरी की ओर हो गया। वसीम बरेलवी ने अपनी पढ़ाई बरेली के ही बरेली कॉलेज से की। उन्होंने एमए उर्दू में गोल्ड मेडल हासिल किया। बाद में इसी कॉलेज में वो उर्दू विभाग के अध्यक्ष भी बने।  60 के दशक में वसीम बरेलवी मुशायरों में जाने लगे। आहिस्ता आहिस्ता ये शौक उनका जुनून बन गया। पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर   अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे   जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता     आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है   ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी   ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम' अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं   जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता     जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो     कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता                         उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए       दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता     वो मेरे सामने ही गया और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया   अपने अंदाज़ का अकेला था इसलिए मैं बड़ा अकेला था  

जयसिंहपुर: लोअर लंबागांव की बेटी अलीशा बनी ऑडिट इंस्पेक्टर

In Job
Jaisinghpur: Lower Lambagaon's daughter Alisha becomes audit inspector

जयसिंहपुर विधानसभा के अंतर्गत आने वाले लोअर लंबागांव की अलीशा ने हिमाचल प्रदेश एलाइड सर्विसेज की परीक्षा पास कर प्रदेश का नाम रोशन किया है । अलीशा का चयन ऑडिट इंस्पेक्टर के पद हुआ है। अलीशा ने बाहरवीं ऐम अकादमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल जयसिंहपुर से की है। उसके बाद अलीशा ने गवर्नमेंट डिग्री कालेज धर्मशाला से ग्रेजुएशन की । अलीशा के पिता सुमन कुमार हिमाचल पुलिस में कार्यरत हैं और माता स्नेहलता गृहिणी हैं। अलीशा के पिता सुमन कुमार ने बेटी की उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि यह परिवार के लिए गौरव का क्षण है। वही अलीशा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता पिता व गुरुजनों को दिया है।

कभी सोलन में थी पंजाब यूनिवर्सिटी

In Banka Himachal
When Punjab University Was Once in Solan

आजादी के बाद, साल 1947 से लेकर 1956 तक पंजाब यूनिवर्सिटी का कैंपस सोलन में था। ब्रिटिश हुकूमत के जाने के बाद सोलन का कैंटोनमेंट एरिया खाली था और वहीं करीब नौ साल पंजाब यूनिवर्सिटी चली। यह क्षेत्र करीब आठ किलोमीटर में फैला था। दरअसल, पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना 1882 में लाहौर में हुई थी और यह ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत में खोली गई चौथी यूनिवर्सिटी थी। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के वक्त यूनिवर्सिटी का भी विभाजन हुआ और इसे दो भागों में बाँट दिया गया; यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब लाहौर और पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ को कुछ सालों के लिए सोलन के कैंटोनमेंट एरिया में स्थापित किया गया। फिर 1956 से इसे चंडीगढ़ शिफ्ट करने का काम शुरू हो गया। 1958 से 1960 के बीच में चंडीगढ़ स्थित मौजूदा कैंपस बनकर पूरी तरह तैयार हो रहा था और तब से पंजाब यूनिवर्सिटी इसी कैंपस से चल रही है। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन होने तक पंजाब यूनिवर्सिटी के रीजनल सेंटर रोहतक, शिमला और जालंधर में चलते रहे। वहीं, 1971 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अस्तित्व में आने से पहले हिमाचल के कई कॉलेज पंजाब यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड रहे।

मुलाक़ात हुई न जाने क्या बात हुई ...नड्डा और धूमल की गुप्त मंत्रणा ने मचाई हलचल

In Siyasatnama
JP NADDA AND DHUMAL MEETING

 लम्बे समय तक हिमाचल में भाजपा की राजनीति का केंद्र रहे समीरपुर में खुद भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा पहुंचे, तो सियासी हलचल मचना तो लाजमी था। ये कोई आम औपचारिक मुलाकात होती तो बात न होती, लेकिन बंद कमरे में जेपी नड्डा और प्रेम कुमार धूमल के बीच लगभग 35 मिनट गुफ्तगू हुई, तो सियासी गलियारों में चर्चा तो होनी ही थी। इस बारे में कोई अधिकारिक जानकारी तो बाहर नहीं आई, लेकिन इस मंत्रणा को को आगामी संगठनात्मक बदलावों और प्रदेश भाजपा की आगामी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।  दरअसल, हिमाचल प्रदेश में भाजपा को लगातार शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है। 2021 के उपचुनाव से शुरू हुआ पराजय का रथ अब तक नहीं थमा। माहिर इसका एक बड़ा कारण धूमल कैंप  की उपेक्षा मानते रहे है। वहीँ, बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष जो जेपी नड्डा दिल्ली तक फ़तेह कर गए, घर में उनके प्रभाव पर भी खूब सवाल उठे है। कभी धूमल कैबिनेट में मंत्री रहे नड्डा को भी इल्म है कि हिमाचल की राजनैतिक जमीन में धूमल के प्रभाव की जड़े बेहद गहरी है।   धूमल पार्टी के सच्चे और अनुशासित सिपाही रहे है, कभी खुलकर नाराजगी नहीं जताई लेकिन उनके ख़ास माने जाने वाले कई नेता एक एक कर दरकिनार दीखते है। बलदेव शर्मा हो, रमेश चंद ध्वाला, राम लाल मार्कण्डेय या वीरेंदर कँवर; पिछले साल उपचुनाव में इन तमाम नेताओं  के टिकट काटे गए। उक्त तमाम सीटें भाजपा हारी। वहीँ धूमल के गृह क्षेत्र की सीट सुजानपुर में तो उनके शागिर्द कैप्टेन रंजीत सिंह राणा कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंच गए। ये फेहरिस्त लम्बी है, और अब भी ऐसी कई सीटें ही जहाँ धूमल के निष्ठावान नेता दरकिनार दीखते है और बड़ा फर्क भी डाल सकते है। माहिर मानते है की नड्डा और धूमल की मुलकात में संभव है इसे लेकर भी चर्चा हुई हो। संभव है भाजपा मध्यम मार्ग अपनाती दिखे।  

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