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आजादी के बाद, साल 1947 से लेकर 1956 तक पंजाब यूनिवर्सिटी का कैंपस सोलन में था। ब्रिटिश हुकूमत के जाने के बाद सोलन का कैंटोनमेंट एरिया खाली था और वहीं करीब नौ साल पंजाब यूनिवर्सिटी चली। यह क्षेत्र करीब आठ किलोमीटर में फैला था। दरअसल, पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना 1882 में लाहौर में हुई थी और यह ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत में खोली गई चौथी यूनिवर्सिटी थी। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के वक्त यूनिवर्सिटी का भी विभाजन हुआ और इसे दो भागों में बाँट दिया गया; यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब लाहौर और पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ को कुछ सालों के लिए सोलन के कैंटोनमेंट एरिया में स्थापित किया गया। फिर 1956 से इसे चंडीगढ़ शिफ्ट करने का काम शुरू हो गया। 1958 से 1960 के बीच में चंडीगढ़ स्थित मौजूदा कैंपस बनकर पूरी तरह तैयार हो रहा था और तब से पंजाब यूनिवर्सिटी इसी कैंपस से चल रही है। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन होने तक पंजाब यूनिवर्सिटी के रीजनल सेंटर रोहतक, शिमला और जालंधर में चलते रहे। वहीं, 1971 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अस्तित्व में आने से पहले हिमाचल के कई कॉलेज पंजाब यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड रहे।
हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित जटोली शिव मंदिर को एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है। समुद्र तल से लगभग 1,855 मीटर (करीब 6,086 फीट) की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर अपने स्थापत्य, धार्मिक महत्त्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र बन चुका है। स्थान और पहुँच जटोली मंदिर, सोलन शहर से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और सड़क मार्ग से यहाँ तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के निकट तक वाहन सुविधा उपलब्ध है। स्थापना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस मंदिर की स्थापना का श्रेय श्रीश्री 1008 स्वामी कृष्णा नंद परमहंस महाराज को जाता है, जो वर्ष 1946 में इस क्षेत्र में आए थे। उस समय यह स्थान एक घना जंगल हुआ करता था। परमहंस महाराज को यह स्थान तपस्या के लिए उपयुक्त प्रतीत हुआ, और उन्होंने यहाँ रहकर साधना आरंभ की। दिन में वह कुंड के पास ध्यान करते और रात को एक गुफा में विश्राम करते थे। समय के साथ स्थानीय लोग उनके दर्शन के लिए आने लगे। क्षेत्र में जल संकट को देखते हुए परमहंस महाराज ने भगवान शिव की आराधना करते हुए जलधारा के लिए तप किया। कुछ ही समय बाद मंदिर परिसर में एक जलधारा फूट पड़ी, जो आज भी 'शिव कुंड' के रूप में निरंतर बहती है। निर्माण और वास्तुकला जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य वर्ष 1980 में प्रारंभ हुआ। इसे दक्षिण भारत की द्रविड़ स्थापत्य शैली में निर्मित किया गया है। मंदिर के निर्माण में लगभग 33 वर्ष का समय लगा और इसे वर्ष 2013 में आम श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। मंदिर की शिखर ऊँचाई लगभग 122 फीट है, जिससे यह एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है। निर्माण कार्य में पारंपरिक पत्थरों, लकड़ी और आधुनिक तकनीकों का समन्वय किया गया है। मंदिर की बाहरी दीवारों और स्तंभों पर बारीक नक्काशी की गई है, जो इसकी शिल्पकला की श्रेष्ठता को दर्शाती है। मंदिर की विशेषताएँ तीन मंजिला संरचना: मंदिर तीन स्तरों पर बना है। प्रथम तल पर शिवलिंग और जल कुंड, द्वितीय तल पर ध्यान कक्ष, और तृतीय तल पर मुख्य शिखर स्थित है। शिव कुंड: परिसर में मौजूद जलधारा से निर्मित यह कुंड एक प्रमुख आकर्षण है। इसका पानी साल भर बहता रहता है और इसे पवित्र माना जाता है। आसपास का वातावरण: मंदिर चारों ओर से पहाड़ियों और देवदार के वृक्षों से घिरा है, जो इसे एक शांत और ध्यानयोग्य स्थल बनाता है। धार्मिक आयोजन: महाशिवरात्रि, श्रावण मास और अन्य शिवोत्सवों पर यहाँ विशेष पूजा-अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। वर्तमान स्थिति और सामाजिक योगदान आज जटोली मंदिर हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बन चुका है। यह न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि स्थानीय पर्यटन को भी प्रोत्साहित कर रहा है। मंदिर ट्रस्ट द्वारा धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया जाता है। मंदिर परिसर में जल, स्वच्छता और यात्रियों की मूलभूत सुविधाओं की उचित व्यवस्था की गई है।
जब शहरों की चकाचौंध थमती है, और प्रकृति अपने मौन संगीत में लिपटी होती है, तब हिमाचल के शांत और ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र वह ख़ामोश मंच बन जाते हैं जहाँ रात का आसमान खुलकर अपनी कहानियाँ कहता है। टिमटिमाते तारे, आकाशगंगा की चमकती धाराएँ और ब्रह्मांड के अनगिनत रहस्य, ये सब कुछ खुली आँखों से देखने का सौभाग्य बहुत कम जगहों पर मिलता है, और हिमाचल उनमें सबसे ऊपर है। देवभूमि अब ‘स्टारगैज़िंग’ यानी तारों को निहारने की अद्भुत कला के लिए खगोल प्रेमियों का नया तीर्थ बन रहा है। यहाँ की पर्वतीय रातें सिर्फ ठंडी नहीं होतीं, वे ब्रह्मांड का खुला द्वार बन जाती हैं। यही नहीं, स्पीति घाटी को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स (Indian Institute of Astrophysics – IIA) ने अंतरिक्ष के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में मान्यता दी है। यह घाटी खगोलीय वेधशाला के लिए एक आदर्श स्थान है क्योंकि यहाँ की मौसम की स्थिति, उच्च ऊँचाई और कम प्रदूषण वाले वातावरण के कारण आकाश को बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। स्टारगैज़िंग, यानी तारों को ध्यानपूर्वक देखना और उनका अनुभव लेना, केवल वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। इसमें हम तारों की चाल, उनके समूहों, आकाशगंगा और ग्रहों का अवलोकन करते हैं। यह प्रक्रिया हमें न केवल ब्रह्मांड को देखने, बल्कि उसमें अपनी जगह को समझने का अवसर देती है। आजकल स्टारगैज़िंग को खगोल पर्यटन (Astro Tourism) के रूप में बढ़ावा मिल रहा है, जहाँ लोग रातभर खुले आसमान के नीचे तारे देखना, उन्हें कैमरे में क़ैद करना और ब्रह्मांड से जुड़ना पसंद कर रहे हैं। स्पीति: जहाँ रातें सितारों से बातें करती हैं लाहौल-स्पीति ज़िला, विशेषकर काजा, हिक्किम, लांगज़ा और किब्बर जैसे गाँव, आज देश-विदेश के खगोलप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। इन गाँवों की ख़ासियत है .. वातावरण की नमी लगभग शून्य होना, अत्यधिक ऊँचाई और नगण्य प्रकाश प्रदूषण। ऐसे में यहाँ का आसमान रात के समय आकाशगंगा (Milky Way), प्लेइडीज़, ओरायन बेल्ट और कभी-कभी उल्कापिंडों (shooting stars) से सजा नज़र आता है। हिक्किम का डाकघर, जो दुनिया का सबसे ऊँचाई पर स्थित पोस्ट ऑफिस है, अब ‘स्टारगैज़िंग पोस्ट’ के रूप में लोकप्रिय होता जा रहा है। चंद्रताल: ब्रह्मांड को प्रतिबिंबित करती झील समुद्र तल से 14,100 फीट की ऊँचाई पर बसी चंद्रताल झील, अपने अर्धचंद्राकार आकार और दर्पण-सी शांति के कारण प्रसिद्ध है। रात को जब पूरा ब्रह्मांड इस झील की सतह पर प्रतिबिंबित होता है, तो वह दृश्य अविस्मरणीय होता है। यहाँ मोबाइल नेटवर्क नहीं चलता, लेकिन सितारों से कनेक्शन की ऐसी स्थायी रेखा बनती है, जो हर स्क्रीन से कहीं ज़्यादा गहरी और शुद्ध होती है। छितकुल और ट्रियुंड: जहाँ तारे ज़मीन से उतरते हैं किन्नौर का छितकुल — यानी भारत का आख़िरी गाँव — अब स्टारगैज़िंग के लिए एक शांत और सुंदर विकल्प बनकर उभरा है। यहाँ के खुले मैदानों से आकाशगंगा को निहारना आत्मा के लिए ध्यान जैसा अनुभव देता है। वहीं धर्मशाला के पास ट्रियुंड ट्रेकिंग पॉइंट पर अगर आप एक रात टेंट में बिताएँ, तो आपको तारे ज़मीन पर उतरते हुए महसूस होंगे। इसके अलावा, नाको (किन्नौर), करज़ोक (त्सो मोरीरी के पास), केलांग (लाहौल), भरमौर (चंबा), और रोहतांग दर्रे के आसपास के क्षेत्र भी स्टारगैज़िंग के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं। इन क्षेत्रों में ट्रैकिंग और खगोल पर्यटन को जोड़कर स्थानीय लोगों ने ‘एस्ट्रो होमस्टे’ जैसी पहल भी शुरू की है। स्टारगैज़िंग के लिए एक स्पष्ट रात, बिना चाँद की रातें (अमावस्या), ऊँचाई वाला क्षेत्र, कम रोशनी वाला वातावरण, और अधीरता से दूर एक शांत मन बेहद ज़रूरी है। कुछ लोग स्टार मैप ऐप्स या दूरबीन का सहारा लेते हैं, जबकि कुछ बस खुली आँखों से इस अलौकिक दृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहते हैं। हिमाचल में इसका आदर्श समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर तक होता है। स्टारगैज़िंग ने खोले रोज़गार के द्वार घाटी और आसपास के इलाक़ों में स्टारगैज़िंग रोज़गार का ज़रिया बनता जा रहा है। जैसे-जैसे स्टारगैज़िंग डॉक्यूमेंट्री और प्रोफेशनल टाइमलैप्स वीडियो की माँग बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्थानीय लोगों की भूमिका भी अहम होती जा रही है। एक पेशेवर खगोलीय वीडियो शूट की क़ीमत लाखों में होती है। इसमें हाई-एंड कैमरा, ड्रोन, लोकेशन शूट, टीम खर्च और एडिटिंग शामिल होते हैं। अब बाहरी शूटिंग टीमें जब इन दूरदराज़ घाटियों में आती हैं, तो स्थानीय लोग उन्हें गाइड, पोर्टर, टैक्सी ड्राइवर, होमस्टे और खानपान की सेवाएँ देते हैं। इससे उनकी आमदनी में सीधा इज़ाफा हो रहा है।
"डगशाई जेल की दीवारें मानो आज भी अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी कह रही हों। जेल में बनी कालकोठरी बेहद भयानक है, यहाँ का घुप अंधेरा आज भी शरीर में सिरहन ला देता है। ब्रिटिश शासन में इस जेल में न जाने कितने कैदियों को प्रताड़ित किया जाता था। न जाने कितने आज़ादी के मतवालों को यहाँ अमानवीय दंड दिए गए। यहाँ कैदियों के माथे को गर्म सलाखों से दागा जाता था। इसलिए इसे 'दाग-ए-शाही' सज़ा कहा जाता था। 'दाग-ए-शाही' नाम से ही दागशाई नाम की उत्पत्ति हुई और फिर इसे डगशाई कहा जाने लगा।" हिमाचल प्रदेश के सोलन ज़िले की डगशाई जेल के साथ एक अनूठा इतिहास जुड़ा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस जेल में दो दिन बिताए थे। गांधी आयरिश नागरिकों की गिरफ्तारी के बाद जेल में बंद आयरिश कैदियों से मिलने आए थे। गांधीजी की यात्रा के दौरान अंग्रेजों ने उनके रहने की व्यवस्था कैंटोनमेंट इलाके में की थी, लेकिन उन्होंने डगशाई जेल में ही रहने की मांग की थी। दिलचस्प बात ये है कि बापू के हत्यारे गोडसे इस जेल का आख़िरी कैदी था। महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को शिमला में ट्रायल के दौरान डगशाई जेल लाया गया था। गोडसे को जेल के मुख्य द्वार के प्रवेश द्वार के बगल वाली कोठरी नंबर छह में रखा गया था, जहाँ आज भी दीवार पर गोडसे की फोटो टंगी हुई है। डगशाई जेल अब म्यूज़ियम बन गई है। महात्मा गांधी जिस कोठरी में रुके थे, वहाँ आज भी गांधीजी की एक तस्वीर, एक चरखा और एक गद्दा रखा हुआ है। आज भी हज़ारों लोग इस जेल को देखने आते हैं। जेल म्यूज़ियम में घूमने से आज़ादी से पहले के काले इतिहास को क़रीब से जाना जा सकता है। ब्रिटिश शासन में इस जेल में कैदी को जेल की कोठरी के दो दरवाज़ों के बीच खड़ा किया जाता था। दोनों दरवाज़ों को बंद करने के बाद यह सुनिश्चित किया जाता था कि कैदी कई घंटों तक बिना आराम किए इन दो दरवाज़ों के बीच रहे। इस जेल में कैदी का एक कार्ड भी बनाया जाता था। इस कार्ड में कैदी का पूरा विवरण लिखा होता था, जिसमें उसका नाम, रंग, देश, अपराध, कारावास की अवधि और फ़ैसले की तारीख़ शामिल होती थी।
"जब भी भारत के लोग राष्ट्रगान की धुन सुनकर सावधान खड़े होते हैं, तो हमें इसे कलमबद्ध करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर ज़ेहन में आते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हमारे राष्ट्रगान 'जन गण मन...' की धुन हिमाचल प्रदेश में जन्मे एक गोरखा राम सिंह ठाकुर ने तैयार की थी। ये हर हिमाचली के लिए गौरव का संदर्भ है।" "आज़ादी के मौके पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इस मौके पर कैप्टन राम सिंह के नेतृत्व में INA (इंडियन नेशनल आर्मी) के ऑर्केस्ट्रा ने लाल क़िले पर 'शुभ सुख चैन की बरखा बरसे...' गीत की धुन बजाई थी।" नेता जी ने दिया था अपना वायलिन आज़ाद हिंद फ़ौज में रहते हुए जब कैप्टन राम सिंह की नेताजी सुभाष चंद्र बोस से पहली बार मुलाक़ात हुई, तो उन्होंने उनके सम्मान में मुमताज़ हुसैन के लिखे एक गीत को अपनी धुन देकर तैयार किया। ये गीत था... 'सुभाष जी, सुभाष जी, वो जाने हिंद आ गए'। तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें अपना पसंदीदा वायलिन उपहार में दिया और राम सिंह को ये ज़िम्मेदारी दी कि वह ऐसे गीत बनाएं जो उनकी सेना का हौसला बनाए रखें और देशवासियों के दिलों में जोश भर दें। 2002 में हुआ देहांत, हिमाचल में उपेक्षित और गुमनाम सेना से रिटायरमेंट के बाद यूपी सरकार ने सम्मान के तौर पर उन्हें पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने कैप्टन राम सिंह को आजीवन लखनऊ में ही रहने के लिए बंगला आवंटित किया था। 2002 में कैप्टन राम सिंह ने लखनऊ में ही अंतिम सांस ली। पर ये विडंबना का विषय है कि आज मौजूदा वक्त में राष्ट्रगान की धुन के रचयिता अपने ही प्रदेश हिमाचल में उपेक्षित और गुमनाम हैं।
मानसून सीजन के दौरान प्रदेश में अभी भी 235 सड़कें, 163 बिजली ट्रांसफार्मर और 174 पेयजल योजनाएं ठप हैं। मानसून सीजन के दौरान प्रदेश को 692 करोड़ का नुकसान हो चुका है। जिला मंडी सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। मानसून सीजन में सामान्य से 37 फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई है। 20 जून से सात जुलाई तक प्रदेश में 197.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज हुई। इस अवधि में 144 मिलीमीटर बारिश को सामान्य माना गया है। चंबा, किन्नौर, लाहौल-स्पीति में सामान्य से कम और शेष जिलों में अधिक बारिश दर्ज हुई। बिलासपुर में सामान्य से 59, हमीरपुर में 87, कांगड़ा में 45, कुल्लू में 36, मंडी में 111, शिमला में 96, सिरमौर में 62, सोलन में 50 और ऊना में 105 फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई। उधर, 30 जून से सात जुलाई तक एक सप्ताह के दौरान प्रदेश में सामान्य से 43 फीसदी अधिक बारिश हुई। मंडी में सामान्य से 198, ऊना में 192, शिमला में 176 फीसदी अधिक बारिश रिकॉर्ड हुई।
हिमाचल में बीते सप्ताह भारी नुकसान पहुंचाने के बाद मानसून की रफ्तार कुछ कमजोर हो गई है। प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में हल्की बारिश के पूर्वानुमान के साथ 13 जुलाई तक मौसम साफ रहने की संभावना है। सोमवार को लगातार दूसरे दिन भी प्रदेश के अधिकांश जिलों में धूप खिली। सिर्फ कांगड़ा में बूंदाबांदी हुई। राजधानी शिमला सहित प्रदेश में कई जगह सोमवार को दिन भर मौसम साफ रहा। धूप खिलने से अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के अनुसार 8, 9 और 10 जुलाई को राज्य के कई स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश और 11, 12 और 13 जुलाई को कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा होने का पूर्वानुमान है। ऊना, बिलासपुर, सोलन और सिरमौर के कुछ क्षेत्रों में बारिश का येलो अलर्ट भी जारी हुआ है। मंगलवार को बिलासपुर, चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर, सोलन और ऊना जिलों के कुछ जलग्रहण क्षेत्रों और आसपास के क्षेत्रों में हल्की से मध्यम बाढ़ की संभावना है। इस बीच, रविवार रात को बीबीएमबी में 58, नंगल डैम में 56, बरठीं में 44.6, ऊना में 43.0, श्री नयना देवी में 36.4 और गोहर में 29 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है।
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