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हरियाणा के गुरुग्राम से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। गुरुवार सुबह 25 वर्षीय जूनियर इंटरनेशनल टेनिस प्लेयर राधिका यादव की उसके पिता दीपक यादव ने गोली मारकर हत्या कर दी। वारदात गुरुग्राम के सेक्टर 57 स्थित सुशांत लोक फेज़-2 में उनके घर पर हुई, जब राधिका रसोई में खाना बना रही थी। परिजनों के अनुसार, पिछले करीब 15 दिनों से घर में तनाव का माहौल था। राधिका और उसके पिता के बीच रोज झगड़े हो रहे थे। मामला टेनिस एकेडमी को लेकर था, जिसे राधिका ने हाल ही में शुरू किया था। पिता दीपक यादव ने इस एकेडमी में लगभग सवा करोड़ रुपये का निवेश किया था, लेकिन एक महीने बाद ही वह इसे बंद करवाना चाहते थे। गुरुवार की सुबह भी इसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हुई। गुस्से में आकर दीपक ने अपनी लाइसेंसी .32 बोर की पिस्टल से राधिका को तीन गोलियां मार दीं। राधिका रसोई में खून से लथपथ गिर गई। दीपक के भाई कुलदीप यादव ने बताया कि गोली चलने की आवाज सुनकर जब वे ऊपर पहुंचे, तो राधिका की लाश रसोई में पड़ी थी और पिस्टल ड्राइंग रूम में रखी थी। उन्होंने तुरंत अपने बेटे के साथ राधिका को अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस पूछताछ में दीपक यादव ने हत्या की बात स्वीकार की है। उसने बताया कि लोग उसे ताने मारते थे कि वह बेटी की कमाई खा रहा है। ये बातें उसे चुभती थीं। जब राधिका ने उसकी बात नहीं मानी और एकेडमी बंद करने से इनकार कर दिया, तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाया और गोली मार दी। राधिका यादव एक काबिल टेनिस खिलाड़ी थीं। उनका जन्म 23 मार्च 2000 को हुआ था। उन्होंने कई नेशनल और इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में भाग लिया और ITF महिला युगल में 113वीं सर्वोच्च रैंकिंग हासिल की थी। AITA की अंडर-18 और महिला वर्ग में भी वे शीर्ष 100 खिलाड़ियों में शामिल रहीं। उन्होंने हाल ही में चोट के चलते सक्रिय खेल से दूरी बनाकर एकेडमी शुरू की थी, जहां वे बच्चों को टेनिस सिखाती थीं। राधिका ने स्कॉटिश हाई इंटरनेशनल स्कूल से पढ़ाई की और 2018 में कॉमर्स में 12वीं पास की। खेल और पढ़ाई के साथ उन्होंने आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की थी, लेकिन यह आत्मनिर्भरता उनके पिता को बर्दाश्त नहीं हुई। फिलहाल पुलिस ने आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया है और मामले की जांच जारी है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
खराहल घाटी में देवता की अनुमति के बिना रोपवे निर्माण का आरोप, धरना प्रदर्शन जारी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की खराहल घाटी में प्रस्तावित बिजली महादेव रोपवे को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। रोपवे निर्माण के लिए इन दिनों क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की जा रही है, जिसके खिलाफ स्थानीय ग्रामीणों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यह परियोजना देवता की मर्जी के खिलाफ चलाई जा रही है और यह सीधे तौर पर प्रकृति और आस्था दोनों के साथ खिलवाड़ है। वीरवार को ग्रामीणों ने धारठ क्षेत्र में जाकर पेड़ों की कटाई रोक दी और निर्माण स्थल पर धरना दिया। पूर्व भाजपा नेता और एचपीएमसी के पूर्व उपाध्यक्ष राम सिंह भी प्रदर्शनकारियों के साथ धरने में शामिल हुए। उन्होंने कहा: “जब स्थानीय जनता विरोध कर रही है और भगवान बिजली महादेव ने भी देव वाणी में रोपवे निर्माण से मना किया है, तो सरकार किसके दबाव में काम कर रही है? अगर समय रहते इस परियोजना को नहीं रोका गया, तो सिर्फ खराहल ही नहीं, कुल्लू की जनता भी सड़कों पर उतरकर विरोध करेगी।” वन विभाग और ग्रामीणों में हुई तीखी बहस धरने के दौरान वन कटान कर रही टीम और ग्रामीणों के बीच कहासुनी भी हुई। ग्रामीणों ने साफ शब्दों में कहा कि सरकार अगर उनकी बात नहीं सुनेगी, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। लगातार हो रहे हैं प्रदर्शन बुधवार को भी रामशिला में स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और प्रशासन से मांग की कि रोपवे निर्माण कार्य को तुरंत रोका जाए। ग्रामीणों ने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर भी आपत्ति जताई है और पर्यावरणीय संतुलन को लेकर चिंता जताई है। अब तक प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। लेकिन जिस तरह से जनविरोध बढ़ रहा है, उससे साफ है कि अगर सरकार ने समय रहते संवाद नहीं किया, तो यह मामला और बड़ा रूप ले सकता है।
हर बरसात एक नई आफत क्यों हिमाचल पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ खो चूका है। हर साल बरसात आती है और हिमाचल को गहरे ज़ख्म दे जाती है। न जाने कितने परिवार उजड़ गए, न जाने कितने लोग बेघर हो गए, न जाने कितने लोगों की हस्ती खेलती ज़िन्दगी वीरान हो गई। पुल टूट गए, सड़कें तबाह हो गई, पूरे पूरे बाज़ार रौद्र रूप धारण कर नदियां निगल गई। गांवों के नाम मिट गए, कई शहरों के नक्शे बदल गए। हालात ऐसे हैं कि हिमाचल का दर्द अब शब्दों में समाना मुश्किल हो गया है, क्योंकि ये पीड़ा एक बार की नहीं, यह हर साल की कहानी बन चुकी है। लेकिन क्या हिमाचल हमेशा से ऐसा था? क्या इस देवभूमि पर आपदा ऐसे ही बरसती रही है? नहीं, हिमाचल हमेशा ऐसा नहीं था। यह देवभूमि सदियों से अपनी शांत प्राकृतिक छवि, स्थिरता और संतुलित जीवनशैली के लिए जानी जाती रही है। हां, हिमालयी भूगोल के कारण यहां भूस्खलन और भूकंप जैसी आपदाओं की आशंका हमेशा बनी रही है, लेकिन पहले इन घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता सीमित थी। बीते कुछ वर्षों में जिस तरह हर मानसून के साथ तबाही का पैमाना बढ़ता गया है, वैसा पहले नहीं देखा गया। 2017–2022 में हिमाचल में हर मानसून में औसतन ₹1,000 करोड़ का सालाना नुकसान हुआ । जब कि 2023 की तबाही अकेले पिछले पाँच साल के कुल नुकसान का लगभग 8.5 गुना थी। अकेले 2023 के मानसून में हिमाचल में 400 से अधिक लोगों की जान गई, 2,500 से अधिक घर पूरी तरह तबाह हो गए और 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ। हिमाचल प्रदेश में 2024 के मानसून के दौरान भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने व्यापक तबाही मचाई। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के अनुसार, 27 जून से 2 अक्टूबर 2024 तक कुल 101 आपदाजनक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 54 बादल फटने, 47 भूस्खलन, 122 घरों का नुकसान और 149 मवेशियों की मौत शामिल है। इस दौरान राज्य को लगभग ₹1,360 करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ। बात 2025 कि करें तो अब तक 85 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 34 लोग लापता हैं और 129 लोग घायल हुए हैं। मंडी जिला, विशेष रूप से थुनाग, बगसेयड़ और करसोग-गोहर क्षेत्र, सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। यहां 404 घर पूरी तरह से नष्ट हो गए, जबकि 751 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। व्यावसायिक संपत्तियों में भी भारी नुकसान हुआ है, जिसमें 233 दुकानें और फैक्ट्रियां शामिल हैं। सार्वजनिक निर्माण विभाग के अनुसार, कुल्लू, मंडी और चंबा जिलों में 10 पुल बह गए हैं। आर्थिक नुकसान का अनुमान ₹541 करोड़ है। बरसात में हिमाचल को अब ज़्यादा नुकसान क्यों हो रहा है? प्रश्न यह है कि हिमाचल में अब बरसात के दौरान तबाही इतनी ज़्यादा क्यों हो रही है? हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन योजना (HPSDMP) के अनुसार, पिछले सौ वर्षों में प्रदेश का औसत सतही तापमान 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस तापमान वृद्धि से वर्षा और तापमान के पैटर्न में बदलाव आया है, जिससे बादल फटना, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, हिमस्खलन और जंगलों में आग जैसी चरम घटनाएं अधिक बार और अधिक तीव्रता से हो रही हैं। रिपोर्ट बताती है कि शिमला में पिछले 20 वर्षों में तापमान में तेज़ बढ़ोतरी हुई है, ब्यास नदी में मानसूनी जल प्रवाह में गिरावट आई है, जबकि चिनाब और सतलुज में सर्दियों के दौरान जल प्रवाह बढ़ा है। इसके साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार तेज़ हुई है, जो अपने साथ नई आपदाओं को जन्म दे रही है। पर्यावरणविद बताते हैं कि हिमाचल में तापमान की वृद्धि मैदानों से भी अधिक है। जहाँ पहले समुद्रतल से 3000 फीट ऊँचाई तक बर्फबारी होती थी, अब वह 5000 फीट के ऊपर ही देखने को मिलती है। पहले जो बारिश सप्ताह भर तक धीरे-धीरे होती थी, वह अब कम समय में तीव्र रूप से होती है। इसका सीधा परिणाम है ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी और भारी बारिश, दोनों मिलकर फ्लैश फ्लड और भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ा रहे हैं। एक और चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि अब बरसात की कुल मात्रा तो पहले जैसी ही है, लेकिन बरसात के दिनों की संख्या में भारी गिरावट आई है। यानी अब कम दिनों में अधिक तीव्र बारिश हो रही है। जब भारी वर्षा थोड़े समय में होती है, तो वह क्लाउड बर्स्ट और फ्लैश फ्लड जैसी आपदाओं का रूप ले लेती है। पहाड़ी राज्यों में, जहां ज़मीन की पकड़ कमजोर होती है और ढलानों पर बसे इलाके होते हैं, ऐसी बारिश बड़ी तबाही का कारण बनती है। इसके अलावा, बेतरतीब निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, वनों की कटाई और खनन जैसी मानवीय गतिविधियों ने इस संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है। यह भी जानना ज़रूरी है कि मौसम विभाग के पास अब एक सुदृढ़ अर्ली वार्निंग सिस्टम है, जो किसी भी क्षेत्र के लिए 5 से 7 दिन पहले अलर्ट जारी कर देता है। ये अलर्ट रंग-कोड (रेड, ऑरेंज, येलो) के रूप में जारी किए जाते हैं, ताकि यह समझा जा सके कि किस क्षेत्र में कितना खतरा है। इसके साथ ही “इंपैक्ट-बेस्ड फोरकास्ट” भी जारी किया जाता है, जिसमें बताया जाता है कि मौसम का संभावित असर किस प्रकार का होगा। इसके बावजूद जब लोग, स्थानीय प्रशासन या संस्थाएं इन चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लेतीं, तो तबाही टालना मुश्किल हो जाता है। इसलिए चेतावनी के साथ कार्रवाई भी उतनी ही ज़रूरी है। हिमाचल की त्रासदी अब केवल प्राकृतिक नहीं रही। यह अब एक मिश्रण है ......... जलवायु परिवर्तन, अवैज्ञानिक विकास, प्रशासनिक लापरवाही और जन-जागरूकता की कमी का। अगर हम अब भी नहीं चेते, तो हर साल यह तबाही और गहराती जाएगी और हिमाचल की यह देवभूमि, विनाश की स्थली में बदल जाएगी।
हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले में आज सुबह भूकंप के झटके महसूस किए गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (NCS) के मुताबिक, रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 3.5 मापी गई और इसकी गहराई 5 किलोमीटर थी। यह झटके सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर दर्ज किए गए। स्थानीय लोगों के अनुसार, धरती तीन बार कांपी, जिससे घबराकर लोग घरों से बाहर निकल आए। हालांकि झटकों की तीव्रता कम होने की वजह से ज़्यादातर लोगों को इसका अहसास नहीं हुआ और किसी भी तरह के जान-माल के नुकसान की सूचना नहीं है। गौरतलब है कि चंबा जिला भूकंपीय दृष्टि से भारत के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल है। यह क्षेत्र सिस्मिक ज़ोन-5 में आता है, जहां समय-समय पर भूकंप के हल्के-फुल्के झटके महसूस होते रहते हैं। भूकंप क्यों आता है? धरती की बाहरी परत कई टेक्टोनिक प्लेट्स से बनी होती है, जो लगातार हिलती-डुलती रहती हैं। जब ये प्लेट्स आपस में टकराती हैं या एक-दूसरे के ऊपर-नीचे खिसकती हैं, तो ज़मीन के अंदर तनाव पैदा होता है। एक समय के बाद यह तनाव ऊर्जा के रूप में बाहर निकलता है, जिससे धरती हिलती है और भूकंप आता है।
हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड के अस्तित्व और कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर बुधवार को धर्मशाला कॉलेज ऑडिटोरियम में बिजली महापंचायत का आयोजन किया गया। बिजली बोर्ड कर्मचारियों, इंजीनियरों, पेंशनरों और आउटसोर्स कर्मियों की संयुक्त कार्रवाई समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कांगड़ा ज़िले से हज़ारों कर्मचारियों और जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह समिति की सातवीं जिला स्तरीय महापंचायत थी, जिसका उद्देश्य बोर्ड को निजीकरण से बचाना और कर्मचारियों से जुड़ी मांगों को सरकार तक पहुंचाना था। निजीकरण के खिलाफ एकजुट हुआ बिजली विभाग महापंचायत में संयोजक इंजीनियर लोकेश ठाकुर और सह संयोजक हीरा लाल वर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार जहां ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है, वहीं प्रदेश सरकार की नीतियों के कारण बिजली बोर्ड बदहाली की कगार पर है। उन्होंने कहा कि देशभर में बिजली कर्मचारियों और अभियंताओं ने केंद्र की नीतियों के विरोध में हड़ताल की है। संयुक्त समिति का कहना है कि बिजली कंपनियों के निजी हाथों में जाने से—कर्मचारियों की सेवा शर्तें और सामाजिक सुरक्षा प्रभावित होगी, उपभोक्ताओं पर बिजली दरों का बोझ बढ़ेगा, और सेवाओं की गुणवत्ता गिरेगी l समिति ने यह भी चेताया कि बोर्ड में कर्मचारियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। एक समय में 43,000 कर्मचारियों वाला बोर्ड अब सिर्फ 13,000 नियमित कर्मचारियों के सहारे चल रहा है। इसके बावजूद बोर्ड प्रबंधन कर्मचारियों को "सरप्लस" बताकर अन्य विभागों में भेजने में लगा है, जो स्थिति को और बिगाड़ सकता है। प्रदर्शन के बाद रैली, डीसी के माध्यम से सीएम को सौंपा ज्ञापन महापंचायत के बाद सैकड़ों कर्मचारियों और पेंशनर्ज़ ने रैली निकालते हुए उपायुक्त कार्यालय तक मार्च किया। यहां उन्होंने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा और अपनी मांगें रखीं। ये है मांगें बिजली बोर्ड में पैरा टी-मेट की भर्ती बंद हो, खाली पदों पर नियमित भर्ती शुरू की जाए मई 2003 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन प्रणाली दी जाए पेंशनरों की दो साल से लंबित बकाया राशि, लीव इनकैशमेंट और ग्रेच्युटी का भुगतान जल्द किया जाए आउटसोर्स कर्मचारियों को स्थायी किया जाए बोर्ड की संरचना से छेड़छाड़ (संचार व सिस्टम प्लानिंग विंग) का विरोध उपकेंद्रों का संचालन संचार विंग को देने का विरोध बोर्ड कर्मचारियों के लिए केंद्र के वेतनमान लागू करने की सिफारिशों का विरोध, क्योंकि इससे मौजूदा वेतन घट जाएगा इस मौके पर ई. विकास गुप्ता, ई. ए.एस. गुप्ता, चंद्र सिंह मंडयाल, दलीप डटवालिया, कुलदीप खरवाड़ा, कामेश्वर दत्त शर्मा, मनोहर धीमान, सुबीर सपहिया, पंकज राणा, मनोज सूद और विनोद कुमार समेत कई वरिष्ठ कर्मचारी और संगठन प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
श्रीखंड महादेव यात्रा शुरू: भोलेनाथ के भक्तों का पहला जत्था रवाना, 18,570 फीट की कठिन चढ़ाई से गुजरेंगे श्रद्धालु
हिमाचल प्रदेश की सबसे कठिन धार्मिक यात्राओं में से एक, श्रीखंड महादेव यात्रा आज से औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। बुधवार सुबह 5 बजे श्रद्धालुओं का पहला जत्था भगवान शिव के दर्शन के लिए रवाना हुआ, जो 12 जुलाई को श्रीखंड की चोटी तक पहुंचेगा। इसके बाद हर दिन 800 श्रद्धालुओं के जत्थे यात्रा पर भेजे जाएंगे। श्रीखंड यात्रा को दुनिया की सबसे कठिन धार्मिक यात्राओं में गिना जाता है। इस यात्रा में श्रद्धालुओं को 32 किलोमीटर का कठिन और दुर्गम ट्रैक पैदल तय करना होता है। रास्ते में चार ग्लेशियर, खड़ी चट्टानें और कई संकरे मोड़ हैं। समुद्र तल से 18,570 फीट की ऊंचाई पर स्थित श्रीखंड महादेव की चोटी तक पहुंचने में श्रद्धालुओं को कई बार ऑक्सीजन की कमी का भी सामना करना पड़ता है, खासकर पार्वती बाग के आगे। पंजीकरण और फिटनेस टेस्ट अनिवार्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने इस बार यात्रा पर सख्ती से नियम लागू किए हैं। यात्रा से पहले ऑनलाइन पंजीकरण (शुल्क ₹250) और मेडिकल फिटनेस टेस्ट अनिवार्य किया गया है। अब तक 5,000 से अधिक श्रद्धालु ऑनलाइन पंजीकरण करवा चुके हैं। पांच बेस कैंप, चिकित्सा सुविधा और लंगर व्यवस्था कुल्लू प्रशासन और श्रीखंड ट्रस्ट समिति द्वारा सिंहगड़, थाचरू, कुनशा, भीम द्वार और पार्वती बाग में पांच बेस कैंप स्थापित किए गए हैं। यहां श्रद्धालुओं के ठहरने, भोजन और स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था की गई है। हर कैंप में मेडिकल स्टाफ, ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां, पुलिस और रेस्क्यू टीमें तैनात की गई हैं। जगह-जगह ट्रस्ट की ओर से लंगर भी लगाए गए हैं। धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथा मान्यता है कि श्रीखंड महादेव की चोटी पर स्वयं भगवान शिव का वास है। यहां 72 फीट ऊंचा एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जिसकी परिक्रमा और पूजा करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव से वरदान पाकर अहंकारी भस्मासुर जब उन्हें ही भस्म करने दौड़ा, तो भगवान शिव श्रीखंड की ओर भागे। अंततः भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में भस्मासुर को नृत्य करवा कर उसका अंत किया। यह स्थान उसी कथा से जुड़ा हुआ माना जाता है। रास्ते में क्या-क्या देख सकते हैं? इस रोमांचक यात्रा के दौरान श्रद्धालु थाचड़ू, भीम द्वार, नैन सरोवर, भीम बही, बराटी नाला और पार्वती बाग जैसे मनोरम और आध्यात्मिक स्थलों से गुजरते हैं। पार्वती बाग में फूलों की महक, हिमालयी जड़ी-बूटियों की खुशबू और प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देता है।
6 नवंबर से बेसंगठन हैं कांग्रेस, जल्द होने हैं पंचायत चुनाव करीब एक साल पहले हिमाचल प्रदेश में उपचुनाव हुए और कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की थी। पुरे प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल दिखा। तब कई माहिरों ने कहा कि जो 1985 के बाद नहीं हुआ, मुमकिन है 2027 में हो। मुमकिन है सुखविंद्र सिंह सुक्खू , वीरभद्र सिंह के बाद रिपीट करने वाले पहले सीएम बन जाएं। पर अब उक्त तमाम माहिर चुप्पी ओढ़े है और इसका सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस का संगठन, जो आठ महीने से है ही नहीं। चुनाव के नतीजे संगठन की मेहनत और सरकारों के कामकाज से तय होते है। अब सत्ता का करीब आधा रास्ता ही तय हुआ है और चुनावी चश्मे से मौजूदा सरकार के कामकाज का विशलेषण करना जल्दबाजी होगा। पर संगठन का क्या ? पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष का क्या ? झंडे उठाने वाले आम कार्यकर्ताओं से लेकर पीसीसी चीफ, कैबिनेट मंत्री और अब तो खुद मुख्यमंत्री भी संगठन में देरी को नुकसानदायक मान रहे है। फिर ये देरी क्यों , ये समझ से परे है। मान लेते है मसला पीसीसी चीफ पद अटका हैं, और खींचतान के चलते आलाकमान निर्णय नहीं ले पा रहा , लेकिन क्या ज़िलों अध्यक्षों और प्रदेश के महत्वपूर्ण पदों पर भी नियुक्तियां नहीं की जा सकती थी। इसी साल के अंत में पंचायत चुनाव होने हैं, नई गठित नगर निगमों के चुनाव भी अपेक्षित हैं। ऐसे में आठ महीने से पार्टी का बगैर संगठन होना समझ से परे हैं। इस बीच संगठन के गठन को लेकर अब भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं हैं। कार्यकर्ताओं की हताशा लाजमी हैं और धैर्य धरे बड़े नेताओं के पास सिर्फ एक ही जवाब हैं, 'जल्द होगा'।
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