कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने जो बुरी यादें लोगो को दी वो धुंधलाई भी नहीं थी कि कोरोना का नया और अधिक संक्रामक वैरिएंट सामने आ गया। कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) ने एक बार फिर दुनिया में सनसनी फैला दी है। अब तक 20 से अधिक देशों में इसके मामले पाए जाने की पुष्टि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस वैरिएंट को वैरिएंट ऑफ कन्सर्न की लिस्ट में रखा गया है। बताया जा रहा है कि ओमिक्रॉन डेल्टा वैरिएंट से भी ज्यादा संक्रामक है। एक्सपर्ट्स का कहना है की ओमिक्रॉन मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज थैरेपी, वैक्सीनेशन या नेचुरल इंफेक्शन से होने वाले इम्यून रिस्पॉन्स को भी बेअसर कर सकता है। अब तक हुए अध्ययनों के आधार पर दावा किया जा रहा है कि कोरोना के इस वैरिएंट में 32 से अधिक म्यूटेशन देखे गए हैं जो इसे अब तक का सबसे संक्रामक वैरिएंट बनाते हैं। सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में देखे गए कोरोना के इस वैरिएंट ने तेजी से अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने इस नए वेरिएंट को B.1.1.529 यानी ओमिक्रॉन नाम दिया है। सबसे पहले कहाँ मिला ओमिक्रोन सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने अपने देश में इस नए वेरिएंट के होने की पुष्टि की थी। बाद में इजराइल और बेल्जियम में भी यह नया वेरिएंट पाया गया। इसके अलावा बोत्सवाना और हांगकांग ने भी अपने यहां वेरिएंट के मौजूद होने की पुष्टि की। भारत में भी इस वैरिएंट के मामले सामने आ चुके है। वैज्ञानिकों को ऐसे मिला ओमिक्रॉन दक्षिण अफ्रीका की सबसे बड़ी निजी टेस्टिंग लैब लांसेट की विज्ञान प्रमुख रकेल वियाना के लिए वह जिंदगी का सबसे बड़ा झटका था। उनके सामने कोरोनावायरस के आठ नमूनों के विश्लेषण थे, और इन सभी में अत्याधिक म्यूटेशन नजर आ रहा था, खासकर उस प्रोटीन की मात्रा तो बहुत ज्यादा बढ़ी हुई थी जिसका इस्तेमाल वायरस इंसान के शरीर में घुसने के लिए करता है। रकेल वियाना के अनुसार उसे देखकर उन्हें बड़ा झटका लगा था। उन्होंने पूछा भी कि कहीं प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई है लेकिन जल्दी ही वो झटका एक गहरी निराशा में बदल गया क्योंकि उन नमूनों के बहुत गंभीर नतीजे होने वाले थे। इसके बाद वियाना ने जोहानिसबर्ग स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्यूनिकेबल डिजीज (NICD) स्थित अपने एक सहयोगी वैज्ञानिक डेनियल एमोआको को फोन किया। एमोआको जीन सीक्वेंसर हैं। 20-21 नवंबर को एमोआको और उनकी टीम ने वियाना के भेजे आठ नमूनों का अध्ययन किया। उन सभी में समान म्यूटेशन पाई गई। कितना घातक है ओमिक्रोन वैज्ञानिक अध्ययनों में इस बात का खुलासा हुआ है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट सबसे घातक डेल्टा वेरिएंट से भी खतरनाक है। चिंता की बात यह है कि जो लोग कोविड टीकाकरण की दोनों खुराक ले चुके हैं, वह भी इस वेरिएंट की चपेट में आ सकते हैं। अब तक के वैज्ञानिक विश्लेषण से यह भी पता चला है कि नया वेरिएंट डेल्टा सहित किसी भी अन्य वेरिएंट की तुलना में तेजी से फैल रहा है। ओमिक्रॉन वेरिएंट में अब तक K417N, E484A, P681H और N679K जैसे म्यूटेशनों का पता चला है जो रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को पूरी तरह से तोड़ देते हैं। ऐसे में लोगों को अधिक सावधान रहने की जरूरत है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इसे 'वैरिएंट ऑफ कन्सर्न' माना है और पिछले सभी वेरिएंट से ज्यादा तेजी से फैलने वाला बताया है। उन लोगों को भी यह संक्रमित कर सकता है जो पहले संक्रमित हो चुके हैं या वैक्सीन लगवा चुके हैं। हो सकता है कि स्थिति गंभीर भी कर दे। साइंटिस्ट भी अभी इस बात को लेकर दुविधा में है कि इस नए वेरिएंट के खिलाफ वैक्सीन कितना असर करेगी। ओमीक्रोन के स्पाइक प्रोटीन में 32 से ज्यादा म्यूटेशन्स हैं और ACE2 रिसेप्टर, जिसके रास्ते संक्रमण व्यक्ति को संक्रमित करता है, उसमें 10 से ज्यादा म्यूटेशन्स हैं। डेल्टा वेरिएंट के महज 2 म्यूटेशन थे। कम म्यूटेशन के बाद भी डेल्टा ने सेकंड वेव के दौरान कहर बरपाया था। ऐसे में ओमीक्रोन 10 वैरिएंट के साथ स्थिति को और खराब कर सकता है। WHO के अनुसार, शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट से लोगों में रीइंफेक्शन का खतरा भी बढ़ सकता है। यानी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके लोग भी इस नए वैरिएंट की चपेट में आ सकते हैं। इस पर अभी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। अधिक जानकारी मिलने में थोड़ा समय लग सकता है। तब तक लोगों को संभलकर रहने की सलाह दी गयी है। कैसे होता है वायरस का म्यूटेशन? एक वायरस का पहला काम किसी के शरीर में प्रवेश के बाद खुद को जीवित रखना होता है और नेचर के हिसाब से वो शरीर में जाकर अपने आकार को बदलता है। वायरस अपना स्वरूप बदलते रहते हैं, जिसके कारण उनके नए-नए वेरिएंट बनते रहते हैं। आमतौर पर नए स्ट्रेन या वेरिएंट के काम करने के तरीके में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आता। एक बार होस्ट यानी किसी शरीर में पहुंचने के बाद वायरस तेजी से अपने आरएनए की कॉपी बनाने लगता है, जिससे कि उसकी संख्या बढ़ती रहती है। कई बार जब वायरस अपनी संख्या बढ़ा रहा होता है तो उसमें गलती से या रेंडमली आरएनए के कॉपी ने गड़बड़ी आ जाती है, इसे ही वैज्ञानिक म्यूटेशन कहते हैं। इसके कारण उसका स्वरूप बदल जाता है और एक नया स्ट्रेन सामने आ जाता है। SARS-CoV-2 पहली बार पहचाने जाने के बाद से लगातार खुद को बदल रहा है। ओमीक्रोन जिसे पहले B.1.1.1.529 के रूप में जाना जाता है। ये इस वायरस का तेरवां प्रकार है। वायरस के आनुवंशिक कोडिंग में कुछ त्रुटियों के कारण म्यूटेशन होता है। आमतौर पर यह स्थिति तब आती है जब वायरस रेप्लीकेट कर रहा होता है। कभी-कभी आनुवंशिक कोड में ये परिवर्तन वायरस में एक प्रोटीन को बदल देते हैं जिससे वायरस की प्रकृति में बदलाव आ जाता है। यही कारण है कि म्यूटेशन के बाद वायरस अधिक संक्रामक और घातक हो जाते हैं। वैज्ञानिक मानते है कि ओमिक्रॉन के मामले में भी संभवत: ऐसा ही कुछ हुआ होगा। इसलिए पड़ा ओमीक्रोन नाम कोरोना वायरस में अब तक कई म्युटेशन हो चुके है और ओमीक्रोन SARS-CoV-2 का 13वां वैरिएंट है। कोरोना के वैरिएंट्स का नाम आसान बनाने के लिए उन्हें ग्रीक लेटर्स के हिसाब से बुलाया जाता है। जैसे अल्फा, बीटा, गामा व डेल्टा। कोरोना वायरस के नए वैरिएंट का नाम ओमिक्रॉन रखा गया है। ग्रीक अक्षरों में यह 15वें नंबर पर आता है। कोरोना के 12 वैरिएंट मौजूद हैं। यानी ये 13वां होना चाहिए था। मू (Mu) वैरिएंट के बाद 13वें नंबर पर नू (Nu) या 14वें नंबर पर शी (Xi) नाम देना चाहिए था। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस दक्षिण अफ्रीका से निकले नए वैरिएंट का नाम 15वें ग्रीक अक्षर ओमिक्रॉन (Omicron) पर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता तारिक जसारेविक के अनुसार नू (Nu) और शी (Xi) बेहद कॉमन अक्षर हैं। कई देशों में इनका उपयोग नाम के आगे या पीछे होता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि शी (Xi) अक्षर का उपयोग इसलिए नहीं किया गया क्योंकि यह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) का नाम है। WHO का नियम है कि वायरस का नाम किसी व्यक्ति, संस्था, संस्कृति, समाज, धर्म, व्यवसाय या देश के नाम पर नहीं दिया जाता है, ताकि किसी की भावना आहत न हो। जहां तक बात रही नू (Nu) अक्षर इंग्लिश के न्यू (New) शब्द से मिलता-जुलता है। इनका उच्चारण भी लगभग एक जैसा है। लोग उच्चारण के समय कन्फ्यूज न हो इसलिए इस 13वें ग्रीक अक्षर का उपयोग कोरोना के नए वैरिएंट का नाम देने में नहीं किया गया,क्योंकि लोग न्यू वैरिएंट और नू वैरिएंट में कन्फ्यूज हो सकते हैं। कितनी असरदार है वैक्सीन? लैंसेट की एक हालिया रिसर्च में सामने आया है कि अप्रैल-मई 2021 में भारत में कोविड की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार डेल्टा वेरिएंट पर कोविशील्ड वैक्सीन काफी प्रभावी रही थी। इस रिसर्च के मुताबिक पूरी तरह वैक्सीनेटेड लोगों पर वैक्सीन की एफिकेसी 63 फीसदी रही, जबकि डेल्टा से होने वाली मध्यम से गंभीर बीमारी के खिलाफ वैक्सीन की एफिकेसी 81 फीसदी रही। वहीं, ओमिक्रॉन पर मौजूदा वैक्सीनों के असर को लेकर फिलहाल कोई रिसर्च मौजूद नहीं है, लेकिन इस वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक म्यूटेशन की वजह से इस पर मौजूदा वैक्सीनों के बहुत कम प्रभावी रहने की आशंका है। अधिकतर वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ ही एंटीबॉडीज तैयार करती हैं, लेकिन ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन में तेज म्यूटेशन की क्षमता से मौजूदा वैक्सीन इसके खिलाफ बेअसर हो सकती हैं। हालांकि ओमिक्रॉन पर मौजूदा वैक्सीन की एफिकेसी के आकलन को लेकर रिसर्च जारी है और इस नए वैरिएंट पर वैक्सीन कितनी कारगर होगी, इसके बारे में कुछ दिनों में पता चल पाएगा। क्या RT-PCR से पता चला पाएगा? वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने बताया है कि इस वैरिएंट को लेकर एक अच्छी बात ये है कि दुनिया में इस्तेमाल किए जा रहे RT-PCR टेस्ट के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है। हालाँकि कई वैज्ञानिकों का मानना है की RT-पीसीआर से इसका पता लगा पाना बेहद कठिन है। वैज्ञानिकों के मुताबिक आरटी-पीसीआर टेस्ट से ही इस बात की पुष्टि हो सकती है कि व्यक्ति को संक्रमण है या नहीं, लेकिन ये टेस्ट यह पता नहीं लगा सकता कि रोगी को कोरोना वायरस का कौन सा वेरिएंट है। इसका पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग स्टडी करनी होगी। लेकिन यहां पर भी एक पेंच है। सभी संक्रमित नमूनों को जीनोम अनुक्रमण के लिए नहीं भेजा जाता है, क्योंकि यह एक धीमी, जटिल और महंगी प्रक्रिया है। आम तौर पर सभी सकारात्मक नमूनों का केवल एक बहुत छोटा सा हिस्सा लगभग 2 से 5 प्रतिशत ही जीनोम के लिए भेजा जाता है। ये है लक्षण ओमिक्रॉन के लक्षण के बारें में WHO का कहना है कि अभी तक किसी तरह के खास लक्षण सामने नहीं आए हैं, लेकिन साउथ अफ्रीका की डॉ. एंजेलिक कोएट्जी जिसने सबसे पहले COVID-19 ओमीक्रोन वैरिएंट को रिपोर्ट किया था उनके अनुसार ओमिक्रॉन के “असामान्य लेकिन हल्के” लक्षण देखे जा रहे हैं। डॉ. एंजेलिक कोएट्जी का कहना है कि ओमिक्रॉन के लक्षण डेल्टा से अलग हैं। कोरोना के दूसरी वैरिएंट से इंफेक्ट होने पर स्वाद और सूंघने की क्षमता पर असर पड़ता था, लेकिन ओमिक्रॉन के मरीजों में ये लक्षण नहीं देखा जा रहा है। साथ ही गले में खराश तो रहती है, लेकिन कफ की शिकायत देखने को नहीं मिल रही है। बचाव वैक्सीनेशन जरूर करवाएं जरूरी है कि हर कोई अपना वैक्सीनेशन करवाएं। भारत में बड़ी ही तेजी से वैक्सीनेशन अभियान चलाया जा रहा है। ऐसे में जरूरत है कि हर कोई कोरोना वैक्सीन लगवाए और अपने घर-परिवार या दोस्तों को इस बारे में बताए। कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण जरूरी है। ऑमिक्रोन से दूरी, मास्क है जरूरी कोरोना की पहली लहर के साथ ही विशेषज्ञों और डॉक्टर्स ने ये साफ कर दिया था कि मास्क बेहद जरूरी है। घर से बाहर जाते समय, दफ्तर में, बाजार में, किसी से मिलते समय आदि। मतलब हमें खुद भी मास्क पहनना है और बच्चों को भी पहनाना है। हो सके तो एक सर्जिकल और दूसरा कपड़े वाला मास्क पहनकर आप डबल मास्किंग भी कर सकते हैं। सामाजिक दूरी बनाकर रखें कोरोना के इस नए वैरिएंट से बचना है, तो हर किसी को पहले की तरह ही एक-दूसरे से सामाजिक दूरी बनाकर रखनी पड़ेगी। बेवजह घर से बाहर जाने से बचें, भीड़ वाली जगहों से खुद को दूर रखें, दुकान पर भीड़ करने से बचें, दफ्तर जा रहे हैं तो अलग रहें आदि। हैंड हाइजीन का ख्याल रखें हमें अपने हाथों को साबुन और सैनिटाइजर से साफ करते रहना चाहिए। पानी और साबुन से 20 मिनट तक अपने हाथों को धोएं, घर में जाते समय सैनिटाइजर करें, घर जाकर नहाना भी एक बेहतर विकल्प है आदि। India News | Corona Update | Himachal Pradesh
हरियाणा में बेकाबू डेंगू ने इस बार सात साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। 2015 के बाद पहली बार डेंगू के केसों की संख्या 10 हजार पार पहुंच गई है। गंभीर बात ये है कि राज्य में अभी भी केस थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। रोजाना औसतन 150 नए केस सामने आ रहे हैं। हरियाणा के सात जिले डेंगू के हॉटस्पॉट बने हैं। इनमें फतेहाबाद, पंचकूला, हिसार, सिरसा, सोनीपत, कैथल और अंबाला जिले शामिल हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में अब तक 80814 लोगों के सैंपल लिए जा चुके हैं। रोजाना 500 लोगों के सैंपल लिए जा रहे हैं। मरीजों की बात करें तो अब तक प्रदेश में डेंगू से चार मरीजों की जान जा चुकी है। इनमें पंचकूला, फतेहाबाद, हिसार और नूंह में एक एक मरीज की मौत दर्ज की गई है। जबकि 348 मरीज अस्पतालों में दाखिल हैं।
केरल के वायनाड में नोरोवायरस की पुष्टि हुई है। वायनाड जिले के एक पशु चिकित्सा महाविद्यालय के 11 छात्रों में नोरोवायरस की सूचना मिली है। केरल के स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने शुक्रवार को लोगों को सतर्क रहने के लिए कहा है और नोरोवायरस के बाद दिशानिर्देश जारी किए है। बताया जा रहा है कि यह एक अत्यधिक संक्रामक पेट की बग है। इसकी वजह से व्यक्ति में कई लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं। जानकारी के मुताबिक ये बीमारी दूषित पानी और दूषित भोजन के जरिए फैलती है। ये पशुजनित बीमारी है। दो सप्ताह पहले वायनाड जिले के विथिरी के पास पुकोडे में एक पशु चिकित्सा कॉलेज के 13 छात्रों में दूषित पानी और भोजन के माध्यम से फैलने वाली एक पशु जनित बीमारी नोरोवायरस की सूचना मिली थी। केरल के स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने कहा कि वर्तमान में चिंता का कोई कारण नहीं है, लेकिन सभी को सतर्क रहना चाहिए। सुपर क्लोरीनीकरण सहित गतिविधियां चल रही हैं। पेयजल स्रोतों को स्वच्छ बनाने की जरूरत है। बता दें कि नोरोवायरस गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारी का कारण बनता है, जिसमें पेट और आंतों की परत की सूजन, गंभीर उल्टी और दस्त शामिल हैं। नोरोवायरस स्वस्थ लोगों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करता है लेकिन यह छोटे बच्चों, बुजुर्गों में गंभीर हो सकता है। नोरोवायरस आसानी से संक्रमित लोगों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से या दूषित सतहों को छूने से फैलता है। यह पेट के कीड़े वाले किसी व्यक्ति द्वारा तैयार या संभाला हुआ भोजन खाने से भी फैल सकता है। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के मल और उल्टी से फैल सकता है। दस्त, पेट दर्द, उल्टी, मतली, उच्च तापमान, सिरदर्द और शरीर में दर्द नोरोवायरस के कुछ सामान्य लक्षण हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि तीव्र उल्टी और दस्त से निर्जलीकरण और आगे की जटिलताएं हो सकती हैं।
यूपी के कानपुर में जीका वायरस की तबाही थमने का नाम नहीं ले रही है। जानकारी के मुताबिक, जिले में 16 और नए मरीज मिले हैं. कानपुर में अब तक जीका वायरस के 105 मरीज सामने आ चुके हैं। बढ़ते जीका वायरस के मामलों के मद्देनजर हालातों का जायजा लेने के सीएम योगी आदित्यनाथ भी आज कानपुर के दौरे पर रहेंगे।
बीते 24 घंटो में देश में कोरोना के 10,929 मामले सामने आए हैं। इसी के साथ पिछले 24 घंटे में 392 लोगों की कोविड-19 के कारण जान चली गई। इसके साथ ही देश में कोरोना से ठीक होने वाले लोगों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिसके बाद रिकवरी रेट बढ़कर 98.23 फीसद तक पहुंच गया है। मार्च 2020 के बाद यह सर्वाधिक रिकवरी रेट है। पिछले 24 घंटे में देश में 12,509 लोग कोरोना संक्रमण से ठीक हुए हैं। इसके साथ ही कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर 3,37,37,468 तक पहुंच गई है। देश में अब कुल 1,46,950 सक्रिय मामले रह गए है।
बीते 24 घंटो में देश में 12729 नए मामले सामने आये है। कोरोना का खतरा थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते 24 घंटों में देश में कोरोना से 221 लोगो कि मौत हुई है। देश में कोरोना से हुई कुल मौतों का आंकड़ा 4,59,873 पहुंच गया है। वहीं अब तक कुल 3,37,24,959 लोग ठीक भी हुए है। देश में कोरोना वैक्सीनेशन का कुल आंकड़ा 1,07,70,46,116 (1.07 करोड़) हो चूका है। देश में फिलहाल कोरोना रिकवरी रेट 98.23 फीसदी है, जो मार्च 2020 के बाद से सबसे अधिक है। देश में रोज़ाना पॉजिटिविटी रेट 1.90 फीसदी है, जो पिछले 32 दिनों से 2 प्रतिशत से कम है। वहीं कोरोना का साप्तहिक पॉजिटिव रेट 1.25 प्रतिशत है, जो 42 दिनों से 2 फीसदी से कम है। देश में अब तक 61.30 करोड़ कोरोना सैंपल टेस्ट किए गए हैं।
डेंगू के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 9 राज्यों में डेंगू के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए हाई लेवल टीम भेजी है। इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश हरियाणा, केरल, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर हैं। ये हाई लेवल टीम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पब्लिक हेल्थ में मदद करेंगी। इसी महीने 1 नवंबर को दिल्ली में डेंगू की स्थिति पर समीक्षा बैठक के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया के निर्देशों के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय को उन सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मदद करने का निर्देश दिया जहां डेंगू के मामले अधिक हैं। देश भर में फिलहाल कुल 1,16,991 डेंगू के मामले रिपोर्ट हुए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल की इसी अवधि के दौरान मामलों की संख्या की तुलना में अक्टूबर में कुछ राज्यों में काफी ज्यादा मामले दर्ज किए गए है। वहीं इसी साल में कुल 15 राज्य और संघ राज्य क्षेत्र अपने अधिकतम मामलों की रिपोर्ट कर रहे हैं। 31अक्टूबर तक देश के कुल डेंगू मामलों में इन राज्यों का योगदान 86 फीसदी है। इसे देखते हुए NVBDCP, NCDC और क्षेत्रीय कार्यालयों के विशेषज्ञों वाली केंद्रीय टीमों को उन 9 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भेजा गया है, जो सितंबर की तुलना में अक्टूबर में अधिक मामले दर्ज कर रहे हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में इस साल डेंगू से मौत का पहला मामला सामने आया है। अब तक यहां डेंगू के कुल 723 मामले सामने आ चुके हैं। नगर निकाय की ओर से सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि इस साल, दिल्ली में सामने आए डेंगू के कुल मामलों में से इस महीने 16 अक्टूबर तक 382 मामले सामने आए। दिल्ली में इस साल नौ अक्टूबर तक डेंगू के कुल 480 मामले ही सामने आए थे। नगर निकाय की ओर से मच्छर जनित बीमारियों के संबंध में सोमवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मौसम में 16 अक्टूबर तक डेंगू से एक व्यक्ति की मौत हुई और कुल 723 मामले सामने आए। इस अवधि में 2018 के बाद से ये सर्वाधिक मामले हैं। इस साल सितंबर में 217 मामले सामने आए थे, जोकि पिछले तीन सालों में इस अवधि में सामने आए सर्वाधिक मामले थे। 2016 और 2017 में डेंगू के कारण 10-10 मौतें हुई थीं। वहीं 2018, 2019 और 2020 में 4, 2 और 1 मौत हुई थी।
आगरा जिले में जानलेवा बुखार का कहर थम नहीं रहा। बुखार की चपेट में आने से मासूम बच्चे जान गंवा रहे हैं। आगरा के फतेहाबाद तहसील क्षेत्र में मंगलवार को बुखार से सात बच्चों की मौत से इलाके में सनसनी फैल गई है। इसमें फतेहाबाद में एक बच्ची, डौकी में दो बच्चियां और धनौली में दो बच्चियां, पिनाहट और बरहन के एक-एक बच्चे शामिल हैं। बरहन के बुर्ज अतिबल में एक महिला की भी मौत हुई है। लगातार बढ़ रहे मामलो से आम जनता परेशान है और प्रशासन को भी इस विषय पर गंभीरता से गौर करने कि आवश्यकता है।
दिल्ली में डेंगू के मामले लगातर बढ़ते ही जा रहे हैं। सोमवार को दिल्ली में यह आंकड़ा 300 के पार चला गया है। नगर निगम की ओर से पिछले हफ्ते 68 नए मामले दर्ज किए गए हैं। जिसके बाद दो अक्टूबर तक दिल्ली में डेंगू का मामला बढ़कर 341 हो गया। पिछले महीने के मुकाबले अगर देखा जाए तो इस हफ्ते डेंगू के मामले में 63.6 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है। सितम्बर महीने में 217 केस दर्ज किए गए थे। इस साल सितंबर महीने में डेंगू के जो मरीज सामने आए हैं वह पिछले तीन साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आमतौर पर देखा जाता है कि डेंगू के मामले जुलाई-अगस्त से सामने आते हैं और मिड अक्टूबर तक पिक पर पहुंचने के बाद कम हो जाता है। हालांकि, इस बार दिल्ली एनसीआर में पिछले महीने तक भारी बारिश के कारण डेंगू के मरीज बढ़ते जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में बनी कोरोना पॉजिटिव मरीजों के उपचार में सहायक एक दवा समेत नौ दवाओं के सैंपल फेल हो गए हैं। इनमें सात दवाएं सोलन और दो सिरमौर में बनी हैं। वहीं, प्रदेश की नौ समेत देश में बनी कुल 37 दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रक संगठन के अगस्त के ड्रग अलर्ट में ये दवाएं मानकों पर सही नहीं पाई गई हैं। इन दवाओं में अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों को दी जाने वाली दवा, सूखी खांसी, अल्सर, कोलेस्ट्रोल, एलर्जी, सूजन, तनाव दूर करने की दवा शामिल है। अगस्त में कुल 1245 दवाओं के सैंपल लिए थे, जिनमें 1207 सैंपल मानकों पर खरे उतरे, जबकि 37 दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं l सोलन जिले के आंजी स्थित मैक्स रिलीफ हेल्थ केयर में कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल में दी जाने वाली दवा फैवीमैक्स के दो सैंपल, कालाअंब स्थित डिजिटल विजन कंपनी के सूखी खांसी की दवा कपसेट सीरप, बरोटीवाला क्षेत्र की एक्टीनोवा कंपनी में अल्सर की दवा रेनीटीडाईन, बद्दी के थाना क्षेत्र में गल्फा लैबोरेटरी कंपनी की कोलेस्ट्रोल की दवा एटोरवेस्टाटिन टैबलेट, मानपुरा औद्योगिक क्षेत्र की अल्ट्रा ड्रग कंपनी में एलर्जी की दवा डोवल सेट एम, झाड़माजरी स्थित विनस बायोसाइंसेस में तैयार होने वाली सूजन दूर करने की दवा वेटनेकॉन, कालाअंब के खैरी स्थित पुष्कर फार्मा कंपनी की गाय व भैंस का दूध उतारने की दवा ओक्सीटोसिन और परवाणू की क्लीविस लाइफ साइंस कंपनी की तनाव दूर करने की दवा बुफिटिप-150 ईआर के सैंपल फेल हुए हैं। ड्रग कंट्रोलर नवनीत मरवाह ने बताया कि सैंपल फेल होने वाले उद्योगों को नोटिस जारी कर दिए हैं। बाजार से स्टॉक हटाने के लिए निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री क्षय रोग निर्वान योजना के अंतर्गत अब टीबी के मरीज़ों का सीटी और एमआरआई निशुल्क होगा। इलाज के लिए कई मरीजों को सीटी स्कैन और एमआरआई लिखा जाता है। लेकिन टेस्ट की कीमत कई बार मरीज़ को अदा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। लेकिन लोगों इस समस्या से निजात मिल गई है। इस योजना के तहत मरीज़ों को निशुल्क जाँच का लाभ मिल पाएगा।
मानसून के दौरान बेंगलुरु में डेंगू के मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ा है। मई के महीने में यहां डेंगू के 102 केस सामने आए थें जबकि मानसून की शुरुआत के बाद अगस्त तक इनकी संख्या बढ़कर 1,304 पर पहुंच गई है। कवल अगस्त के महीने में ही यहां डेंगू के 677 नए मामले सामने आए हैं जो कि मई के मुकाबले छह गुना अधिक हैं। हलांकि बैंगलोर महानगर पालिका (BBMP)के अधिकारियों के मुताबिक, फिलहाल यहां डेंगू को लेकर ज्यादा खतरा नहीं पैदा हुआ है और हालात काबू में हैं। वहीं एक्स्पर्ट्स के मुताबिक, जिन लोगों को कोरोना हुआ है वो डेंगू के चलते गंभीर रूप से बीमार पड़ सकते हैं।
कोरोना के बाद अब पश्चिम बंगाल के परगना जिले में डायरिया का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। यहां के कमरहट्टी में गुरुवार को डायरिया से दो लोगों की मौत हो गई। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक करीब 300 लोग संक्रमण से ग्रसित हैं। बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की ओर से इलाके में मेडिकल कैंप लगाया गया है और लोगों को ओआरएस के पैकेट बांटे जा रहे हैं। सागर दत्ता मेडिकल कॉलेज के मुताबिक 297 मरीज अभी तक इलाज के लिए पहुंच चुके हैं, जिसमें से 150 लोग अस्पताल में भर्ती हैं। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि सभी मरीजों के सैंपल लेकर विस्तृत जांच के लिए भेजे गए हैं। इनमें से तीन लोगों में कालरा की पुष्टि हुई है। बीमारी फैलने के बाद वरिष्ठ डॉक्टरों की टीम ने अस्पताल और क्षेत्र का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने वॉटर सप्लाई को दुरुस्त करने व क्लोरोनाइजेश के आदेश दिए। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कमराहट्टी में तीन मेडिकल कैंप लगाए गए हैं, जहां पर 16 हजार से ओआरएस पैकेट व दवाईयां बांटी जा रही हैं।
कोरोना के बाद निपाह वायरस के बढ़ते खतरे के बीच भारत को बड़ा हथियार मिला है। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया की ओर से निपाह वाायस की जांच के लिए गोवा की मोल्बियो डायग्नोस्टिक की टेस्ट किट को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है। ट्रूनेट नाम की यह टेस्ट किट से आरटीपीसीआर प्लेटफार्म पर आधारित है। निपाह वायरस की जांच के लिए अनुमोदित यह भारत की पहली टेस्ट किट है। गौरतलब है कि केरल के कोझिकोड के अलावा भारत में निपाह वायरस के तीन मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। सबसे पहले 2001 में सिलीगुड़ी में यह वायरस मिला था, इसके बाद 2007 में पंश्चिम बंगाल और केरल के कोझिकोड और मल्लपुरम में 2018 में यह संक्रमण सामने आया था।
दिल्लीः हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर ने बुधवार को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया से मुलाकात की। सीएम ने कार्यालय की ओर से जारी वक्तव्य के मुताबिक मांडविया को राज्य की संपूर्ण पात्र आबादी, कोविड-19 रोधी टीके की पहली खुराक टीकाकरण पूरा करने की सफलता से अवगत करावाया। ठाकुर ने कहा कि "राज्य ने 103 प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है" जिसमें प्रवासी मजदूर और पर्यटक भी शामिल हैं। ठाकुर ने केंद्रीय मंत्री को यह भी बताया कि राज्य सरकार 30 नवंबर तक पात्र आबादी को टीके की दूसरी खुराक देने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए काम कर रही है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बुधवार को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया से मुलाकात की और उनसे राज्य के लिए 'दवाइयों के विशाल फॉर्मा पार्क' को मंजूरी देने का आग्रह किया। तत्पश्चात सीएम ने कहा कि हिमाचल प्रदेश एशिया में फार्मास्यूटिकल हब है और 'दवाइयों के विशाल फॉर्मा पार्क' को मंजूरी देने से राज्य में औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही साथ लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
शिमला: बीते दिन आईजीएमसी शिमला में स्क्रब टाईफस से 19 वर्षीय युवती की मौत हो गई। युवती मंडी जिले की रहने वाली थी। युवती को पिछले महीने आईजीएमसी शिमला में उपचार के लिए लाया गया था। युवती का लगातार चिकित्सकों की निगरानी में उपचार चल रहा था, लेकिन गंभीर अवस्था के चलते लड़की की मौत हो गई। बता दें कि अस्पताल में इस बीमारी से यह पहली मौत है। वंही अस्पताल में युवती की मौत के बाद से हड़कंप मच गया।
भारत में बीते 24 घंटो में 34 हज़ार नए मामले दर्ज किए गए है। देश में कोरोना में मामलो में कभी बढ़ोतरी होती है तो कभी गिरावट आती है। बीते 24 घंटों में 375 लोगों की कोरोना के कारण मौत भी हुई है और मौत के आंकड़ों में 11 दिन बाद गिरावट देखने को मिली है। बीते कल से रोजाना 400 से अधिक लोगो को कोरोना से जान गवानी पड़ी थी। लेकिन फिलहाल राहत की बात यह है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। देश में कोरोना से अब तक 4 लाख से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। वहीं 36 हजार से ज्यादा मरीजों को अस्पतालों से छुट्टी मिल गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय की माने तो कोरोना से स्वस्थ होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है। हालांकि, देश के कुछ राज्यों जैसे केरल और महाराष्ट्र में अब भी कोरोना के नए मामले ज्यादा हैं। केरल में रोजना 15 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में भी पांच हजार से ज्यादा कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं।
भारत में डेल्टा वैरिएंट की मौजूदगी सबसे ज्यादा है, जिस कारण टीकाकरण के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं। डेल्टा दिन प्रतिदिन भारत में फैलता जा रहा है। भारत से अभी तक 72 हजार से अधिक सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग हुई है जिनमें 20 हजार से ज्यादा सैंपल में डेल्टा वैरिएंट मिल चुका है। मिली जानकारी के अनुसार देश में अब तक 72 हज़ार सैंपल में से 30 हज़ार अधिक में कोरोना के गंभीर वैरिएंट मिल चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 20 हज़ार से अधिक में डेल्टा वैरिएंट मिला है। डेल्टा से ही निकले कप्पा और डेल्टा-15 हज़ार से अधिक सैंपल में मिला है। इनके अलावा 4 हज़ार से अधिक में एल्फा, 218 में बीटा और दो सैंपल में गामा वैरिएंट मिला है। इन्साकॉग के अनुसार अब तक डेल्टा वैरिएंट में ही 13 म्यूटेशन हो चुके हैं जिनमें से पांच भारत में भी हैं। अमेरिका, ब्रिटेने व चीन सहित दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में डेल्टा वैरिएंट की वजह से ही महामारी फिर बढ रही है। भारत में डेल्टा से जुड़े एवाई.1, एवाई.2, एवाई.3 (डेल्टा प्लस) के नए मामले बीते जुलाई में महाराष्ट्र में देखे गए हैं। हालांकि इस समय इनमें से किसी भी म्यूटेशन का असर डेल्टा की तरह देखने को नहीं मिला है। इन्साकॉग ने एक रिपोर्ट में ब्रिटेन का हवाला देते हुए कहा कि 6.7 करोड़ की आबादी वाले देश में अब तक 18 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और यहां 1.20 लाख लोग वैक्सीन लेने के बाद संक्रमित हुए हैं।
हिमाचल प्रदेश के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कोरोना के बीच करीब दो साल बाद फिर किडनी ट्रांसप्लांट शुरू होगा। 23 अगस्त को दो मरीजों का यहां किडनी ट्रांसप्लांट किया जाएगा। आईजीएमसी प्रबंधन ने ट्रांसप्लांट की तैयारियां शुरू की दी हैं। कार्यवाहक प्राचार्य का पदभार संभाल रहे डॉ. दलीप गुप्ता ने किडनी ट्रांसप्लांट की पुष्टि की है। आईजीएमसी में शिमला, निरमंड और चंबा के रोगियों के किडनी ट्रांसप्लांट किए जाने थे, लेकिन रिपोर्ट को लेकर आने वाली समस्या के चलते शिमला के मरीज का ट्रांसप्लांट रोक दिया गया है। वंही, आईजीएमसी में किडनी ट्रांसप्लांट से पहले मरीजों के अलावा सभी डॉक्टरों, स्टाफ सदस्यों के भी कोरोना टेस्ट किए जाएंगे। अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट मरीजों का एक महीने से उपचार चल रहा है। बताया जा रहा है कि सभी मरीजों के उपचार संबंधी खर्च सरकार उठाएगी।
शुक्रवार को देश में कोरोना के मामले 40 हजार के पार मामले दर्ज किये गए है। देश में पिछले 24 घंटे में 40,120 नए मामले सामने आये और 585 लोगों की मौत हुई है। देश में अब कुल सक्रिय मामलें की 3,85,227 हो गए है। इसी के साथ पिछले 24 घंटे में कोरोना से 42,295 मरीज ठीक भी हुए हैं। पूरे देश में कुल 3,13,02,345 लोग करोना से ठीक हो चुके हैं। यदि रिकवरी रेट की भी बात की जाए तो अभी तक की सबसे ज्यादा 97.46% रिकवरी रेट दर्ज की गई है। पिछले 24 घंटे में वैक्सीन की 57,31,574 डोज लगी है। अब तक कुल वैक्सीनेशन 52,95,82,956 हो चुका है। रोजाना पोजिटिविटी दर 2.04% है। पिछले 19 दिनों से यह 3 प्रतिशत से नीचे है। वहीं साप्ताहिक पोजिटिविटी दर 5 प्रतिशत से नीचे 2.13% बनी हुई है।
केरल के बाद अब महाराष्ट्र में भी जीका वायरस ने दस्तक दे दी है। पुणे में जीका वायरस संक्रमण का पहला मामला मिला है। 50 साल की एक महिला की टेस्ट रिपोर्ट शुक्रवार को यह मामला सामने आया है। रिपोर्ट के मुताबिक, वह जीका संक्रमण के अलावा चिकनगुनिया से भी पीड़ित थी। अधिकारियों ने जानकारी देते हुए बताया कि मामला मिला है लेकिन लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि संक्रमित पाई गई महिला मरीज पूरी तरह से ठीक हो गई है। उसमें और उसके परिवार के सदस्यों में कोई लक्षण नहीं हैं।
कोरोना संक्रमण के बीच जीवाणुजनित संक्रमण के मामले भी सामने आ रहे हैं। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल शिमला में स्क्रब टाइफस के चार मरीज मिले हैं। अस्पताल में मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर जनक राज ने कहा कि यह इन्फैक्टेट चिग्गर्स के काटने से फैलता है। स्क्रब टायफस के ज्यादातर मरीज पहाड़ी इलाकों में ही पाए जाते हैं। यह एक जीवाणुजनित संक्रमण है, जिससे लोगों की मौत तक हो जाती है। इसके कुछ लक्षण चिकनगुनिया जैसे होते हैं। स्वास्थ्य जानकारों के मुताबिक, इससे बचने के लिए कपड़ों और बिस्तरों पर परमेथ्रिन और बेंजिल बेंजोलेट का छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही, अगर किसी में स्क्रब टायफस के लक्षण पाए जाते हैं तो उसे फौरन डॉक्टर्स की सलाह के लिए लेकर जाना चाहिए ताकि उसकी सही समय पर इलाज शुरू कर जान बचाई जा सके। यह बीमारी खासतौर से गांवों के इलाकों में होती है और मुख्य वजह पशुओं के संपर्क मं रहने के कारण यह बीमारी आती है। गांवों के अंदर पशुओं के नोहरे और झाड़ियों वाले इलाकों में स्क्रब टायफस ज्यादा फैलती है।
केरल में गुरुवार को जीका वायरस से तीन और लोग संक्रमित पाए गए हैं। इसके साथ ही कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि तीन मामले तिरुवनंतपुरम के हैं। संक्रमितों में मेडिकल कॉलेज के पास का 27 वर्षीय निवासी, 38 वर्षीय पेट्टा निवासी और अनायरा का तीन साल का बच्चा शामिल है। राज्य में कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 44 हो गई, जबकि छह मरीजों का इलाज चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मरीजों को अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया है और फिलहाल सभी की हालत स्थिर है। जीका के लक्षण बुखार, स्किन पर चकत्ते और जोड़ में दर्द समेत डेंगू के समान होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, जीका वायरस से संक्रमित अधिकतर लोगों में लक्षण नहीं होता, लेकिन उनमें से कुछ को बुखार, मांसपेशी और जोड़ का दर्द, सिर दर्द, बेचैनी, फुन्सी और कन्जंक्टिवाइटिस की समस्या हो सकती है। ये लक्षण आम तौर से 2-7 दिनों तक रहते हैं। वर्तमान में जीका वायरस संक्रमण का इलाज या रोकथाम करने के लिए कोई वैक्सीन नहीं है। जीका वायरस संक्रमण को सिर्फ मच्छरों के काटने से बचकर ही रोका जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश में करीब 19 दिन बाद आज से 18 से 44 आयु वर्ग के युवाओं को दोबारा कोरोना वैक्सीन लगना शुरू हो गया है । 19 जुलाई से प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे ने सूबे के 700 सेंटरों पर 18 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए कोविड वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। स्वास्थ्य विभाग के पास एक सप्ताह के लिए पांच लाख वैक्सीन का कोटा है। सोमवार से सूबे के 700 केंद्रों में सुबह 10:00 से शाम 5:00 बजे तक टीका लगाया जाएगा। हर दिन 75000 लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया है। रविवार को सीएमओ और बीएमओ कार्यालय से वैक्सीनेटर सप्लाई सौंप दी गई है। शहरी क्षेत्रों में स्लॉट बुकिंग पर ही वैक्सीन लगाई जाएगी। इसके लिए एक दिन पहले ही स्लॉट की बुकिंग होगी। यह बुकिंग दोपहर 12:00 से 1:00 बजे तक होगी। स्वास्थ्य विभाग ने 2500 स्वास्थ्य कर्मियों की फील्ड ड्यूटियां भी लगाई हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य में 30 जून से युवाओं का टीकाकरण अभियान रुका हुआ था। राज्य के पास पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन नहीं थी। अब 5 लाख से ज्यादा वैक्सीन डोज उपलब्ध होने पर यह अभियान शुरू हो रहा है।
केरल में जीका वायरस का खौफ बढ़ता ही जा रहा है। अब पांच नए मामले सामने आए हैं, जिसके बाद राज्य में जीका वायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 28 हो गई है। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि केरल के अनायरा में दो, कुन्नुकुझी-पट्टम-पूर्वी किले में एक-एक व्यक्ति जीका वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। उन्होंने लोगों से सतर्क रहने का आग्रह किया क्योंकि राज्य में जीका वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है।
देश में अभी हालही में कोरोना संक्रमण की रफ़्तार हल्की धीमी हुई ही थी कि अब भारत में एक नए वायरस ने दस्तक दे दी है . केरल में कोरोना संक्रमण के बाद अब जीका वायरस से संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं जिससे राज्य के सामने नई परेशानी खड़ी हो सकती है. इसे देखते हुए राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने कहा कि पूरे केरल में अलर्ट जारी कर दिया गया है. फिलहाल केरल में चार नए जीका वायरस संक्रमण के मामले सामने आने के बाद कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 23 हो गई है. वहीं चारों नए मामले तिरुवनंतपुरम से सामने आए हैं. उन्होंने कहा है कि जीका वायरस एडीज मच्छर के काटने से फैलता है, फिलहाल तिरुवनंतपुरम और ऐसे जिले जहां पिछले कुछ वर्षों में डेंगू की कई घटनाएं हुई हैं, वहीं इसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं.
देश में कोरोना के बीच अब जीका वायरस ने चिंता बढ़ा दी है। इस वायरस के बढ़ते मामलों के बीच केरल में अलर्ट की स्थिति बन गई है। अभी तक केरल में इस वायरस की चपेट में करीब 18 लोग आ चुके हैं। केरल के दौरे पर गई दिल्ली एम्स की टीम के जीका वायरस को लेकर देश के दूसरे राज्यों को भी सावधान किया है। इस चेतावनी के बाद राजधानी दिल्ली और मुंबई समेत देश के कई बड़े शहरों को अलर्ट पर कर दिया गया है। केरल के पड़ोसी राज्यों को भी इसे लेकर अलर्ट किया गया है। मच्छरों के काटने से होने वाली इस बीमारी के पहले मामले की पुष्टि केरल में गुरुवार को हुई थी। लेकिन 48 घंटों के भीतर ही वायरस के मामलों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज हुई है। जिसने राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है। जीका का पहला मामला 24 साल की गर्भवती महिला में सामने आया था लेकिन शुक्रवार को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने 13 और मामलों की पुष्टि की है। मतलब ये कि 48 घंटे के भीतर ही जीका वायरस से पीड़ित 14 मरीजों की पहचान हो चुकी है। कोरोना की वजह से राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले ही चरमराई हुई है। ऐसे में जीका के मामलों का बढ़ना केरल सरकार के लिए मुसीबत बन सकता है। हालांकि, राहत की बात ये है कि जीका, कोरोना की तरह जानलेवा नहीं है।
देश में कोविड की दूसरी लहर के बीच बुधवार को कोविड-19 के नए मामलों में वृद्धि दर्ज की गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार बुधवार को भारत में पिछले 24 घंटे में 43,733 नए मामले सामने आए हैं. इस दौरान, 930 लोगों की मौत हुई है। कोरोना से मौतों के आंकड़े में वृद्धि हुई है जबकि यह आंकड़ा मंगलवार को 553 पर था। कोविड से अब तक 4,04,211 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। वहीं रिकवरी रेट की बात की जाए तो रिकवरी रेट 97.18 प्रतिशत पर है और साप्ताहिक संक्रमण दर 2.39 फीसदी पर है ,जबकि दैनिक पॉजिटिविटी रेट 2.29 फीसद है, जो लगातार 16 दिन से तीन प्रतिशत के नीचे बना हुआ है। इसी के साथ वैक्सीनेशन अभियान के तहत, अब तक देश में वैक्सीन की कुल 36.13 करोड़ खुराक दी जा चुकी है. इसमें पहला और दूसरा दोनों डोज दोनों शामिल है। पिछले 24 घंटे में 36,05,998 डोज दी गई हैं। टेस्टिंग की बात की जाए तो यह बढ़कर 42.33 करोड़ पर पहुंच गया है।
Covid-19 के दैनिक मामलों में मंगलवार को बड़ी गिरावट देखने को मिली थी। लेकिन बुधवार को एक बार फिर से Covid-19 के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया की पिछले 24 घंटों में देश में Covid के 45951 नए मामले सामने आये हैं, जबकि Covid के कारण 817 मरीजों की मौत हुई है। इसके अलावा बीते 24 घंटों में 60729 मरीज ठीक भी हुए हैं और इसी के साथ रिकवर मरीजों की संख्या बढ़कर 2,94,27,330 हो गई हैं। नए मामले सामने आने के बाद देश में कोरोना के कुल मामले अब 3,03,62,848 हो गए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि देश में कोरोना वायरस से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और रिकवरी रेट इस समय 96.92 फीसदी है। रिकवरी रेट बढ़ने से देश में एक्टिव मामलों की संख्या में कमी आई है और वर्तमान में एक्टिव मामलें 5,37,064 बचे हैं। इसके अलावा देशभर में चल रहे टीकाकरण अभियान के तहत अभी तक कोरोना वायरस वैक्सीन की कुल 33,28,54,527 डोज दी जा चुकी हैं।
केंद्र सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों द्वारा सीधे टीका खरीदने पर अहम कदम उठाये है। जिसमे हर महीने वैक्सीन खरीदने की सीमा को तय किया गया है। केंद्र ने इस मामले को लेकर SOP भी जारी कर दी है। ये नई व्यवस्था 1 जुलाई से लागू हो जाएगी। वैक्सीन के आवंटन का फॉर्मूला जारी करते हुए केंद्र ने आदेश जारी किया है, इन आदेशों के अनुसार अस्पताल ने एक हफ्ते में जितना टीकाकरण किया है उससे उसका रोजाना का औसत निकालकर अस्पताल को टीके का आवंटन किया जाएगा और जितनी संख्या आएगी उससे अधिकतम दुगना टीके ही प्राइवेट अस्पताल खरीद सकते हैं। हालांकि पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी। इसके अलावा जो अस्पताल पहली बार टीके के अभियान में शामिल हो रहे हैं उन्हें अस्पताल में मौजूद बिस्तर के आधार पर टीके का आवंटन किया जाएगा।
Covid-19 claimed ten more lives in Himachal Pradesh, taking the death toll due to the disease to 3,423, while 239 fresh cases pushed the infection count to 2,00,282, according to the information provided by department of health and family welfare Himachal Pradesh . The active cases have now dipped to 2990. The overall recoveries so far has reached 1,93,850 with 432 patients getting cured of the infection in the past 24 hours .
हिमाचल प्रदेश में शनिवार को दो और ब्लैक फंगस के मरीजों ने दम तोड़ दिया। मिला जानकारी के मुताबिक शिमला के आईजीएमसी अस्पताल में दो मरीजों की मौत हुई है। शिमला के लक्कड़ बाजार की रहने वाली महिला और हमीरपुर के व्यक्ति ने दम तोड़ा है। आईजीएमसी के एमएस डॉ. जनक राज ने इस मामले की पुष्टि की हे। गौरतलब है कि प्रदेश में अब तक ब्लैक फंगस से चार मरीजों की मौत हो चुकी है। 28 मई को हमीरपुर और सोलन के दो मरीजों ने आईजीएमसी अस्पताल में ब्लैक फंगस से जान गवाई थी।
काेराेना की तीसरी लहर आने की स्थिति से निपटने के लिए हिमाचल प्रदेश पूरी तरह से तैयार है। स्वास्थ्य विभाग के एक प्रवक्ता ने बताया कि कोविड राज्य सरकार महामारी की संभावित तीसरी लहर के दृष्टिगत बच्चों की सुरक्षा और बच्चों के कोविड मामलों के लिए व्यवस्था करने को प्राथमिकता दे रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों की चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था के लिए पिछले मई महीने ही ज़िलों और मेडिकल काॅलेजों को पहले ही प्रोटोकाॅल भेजा जा चुका है। इस महामारी के दौरान बच्चों की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करने के दृष्टिगत स्वास्थ्य विभाग प्रभावी कदम उठा रहा है। प्रवक्ता ने बताया कि यह सुनिश्चित किया जा रहा है, कि एसएनसीयू, पीडियाट्रिक एचडीयू, एनआईसीयू, पीआईसीयू को प्राथमिकता के आधार पर कार्यशील किया जाए। सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों, मेडिकल काॅलेजों के प्रधानाचार्यो और जिला अस्पतालों, नागरिक अस्पतालों और मेडिकल काॅलेजों के चिकित्सा अधीक्षकों को निर्देश दिए गए है कि वे समर्पित कोविड अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं में वृद्धि करके या उपलब्ध सुविधाओं में बिस्तरों को चिह्नित कर बाल चिकित्सा वार्ड और नवजात इकाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करें। इन बिस्तरों को केंद्रीय ऑक्सीजन आपूर्ति भी सुनिश्चित की जाए। वर्तमान में प्रदेश में 16 स्वास्थ्य संस्थानों में 224 एसएनसीयू बिस्तर उपलब्ध हैं। इसके अलावा, डीडीयू शिमला, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नालागढ़ और जिला कांगड़ा के नागरिक अस्पताल नूरपुर व जोनल अस्पताल धर्मशाला में चार नवजात स्थिरीकरण (स्टेबलाइजेशन) इकाईयों को जल्द ही बीमार नवजात देखभाल इकाईयों के रूप में स्तरोन्नत किया जाएगा। राज्य में सात बाल रोग उच्च निर्भरता इकाइयां (पीडियाट्रिक हाई डिपेन्डेन्सी यूनिट) भी हैं, जिनमें 34 बिस्तर उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि सभी स्तरों पर नवजात और बाल रोगियों के लिए एक उपयुक्त आपातकालीन जांच क्षेत्र और उपचार सेवाएं सृजित करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि उपचार से संबंधित सभी आवश्यक सुविधाएं जैसे उपचार में उपयोग होने वाली वस्तुएं, ऑक्सीजन स्पोर्ट, रेफरल स्पोर्ट, टेलीमेडिसिन सुविधा आदि सुनिश्चित की जा रही हैं। बाल रोग विशेषज्ञों, चिकित्सा अधिकारियों, बाल चिकित्सा देखभाल के लिए तैनात की जाने वाली नर्सों आदि के लिए भी अस्पताल प्रभारी द्वारा योजना तैयार की जाएगी। विभाग ने एसएनसीयू में सभी अक्रियाशील उपकरणों को जल्द से जल्द क्रियाशील करने के भी निर्देश दिए हैं। कोविड प्रभावित लोगों के लिए मनो-सामाजिक सहायता हेल्पलाइन स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंस (एनआइएमएचएएनएस) बंगलुरु के सहयोग से 24 घंटे चलने वाली मनो-सामाजिक (साइकोसोशल) स्पोर्ट हेल्पलाइन (80-46110007) की स्थापना की है। इस हेल्पलाइन के माध्यम से 19 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। विभाग ने सभी उपायुक्तों और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज बंगलुरु के नंबर 80-46110007 का प्रचार-प्रसार करें। यह मानसिक हेल्पलाइन कोविड मरीजों, उनके परिवारों और आम लोगों को भी मानसिक और मनो-सामाजिक सहायता प्रदान करने में सहयोग करेगी। तनाव व परेशानी का कम करने में मिलेगी सहायता स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और तनाव व परेशानी को कम करने के लिए, सलाह व दिशा-निर्देश देने वाले ऑडियो-वीडियो और शिक्षाप्रद प्रचार-प्रसार सामग्री तैयार की गई है। एनएचएम के निदेशक डा. निपुण जिंदल ने बताया कि यह वैश्विक महामारी न केवल एक गंभीर चिकित्सा चिंता का विषय है, बल्कि यह लोगों में कई मानसिक स्वास्थ्य और मनो-सामाजिक परेशानियों को भी लेकर आई है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर लोग अनेक प्रकार के भावनात्मक और व्यवहारिक मुद्दों के साथ-साथ तनाव, चिंता और भय का भी सामना कर रहे हैं। उन्होंने आग्रह किया है कि किसी भी मनो-सामाजिक सहायता की आवश्यकता होने पर, जरूरतमंद लोगों को हेल्पलाइन-104 या मनो-सामाजिक हेल्पलाइन की सहायता प्राप्त करनी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश एनीमिया नियंत्रण में देशभर में अग्रणी राज्यों में शामिल है। राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक 2020-21 की राष्ट्रीय रैंकिंग में प्रदेश ने 57.1 स्कोर के साथ तीसरा स्थान हासिल किया है। राज्य सरकार प्रदेश में एनीमिया मुक्त कार्यक्रम के अन्तर्गत रणनीति तैयार कर कार्य कर रही है और प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने की दिशा में कारगर कदम उठाए गए हैं। बच्चों को एनीमिया मुक्त करने के लिए रोग निरोधी आयरन और फाॅलिक एसिड की खुराक प्रदान की जा रही है। स्कूल जाने वाले बच्चों की नियमित रूप से डीवर्मिंग की जा रही है। मृदा संचारित कृमि का प्रसार 3 वर्षों में 29 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत हो गया है, जो कार्यक्रम की प्रभावशीलता और कार्यान्वयन को दर्शाता है। लोगों को एनीमिया के बारे में जागरूक करने के लिए वर्ष भर जागरूकता अभियान चलाने के अतिरिक्त इस अभियान के अन्तर्गत एनीमिया परीक्षण और उपचार पर भी विशेष बल दिया जा रहा है। सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयरन और फाॅलिक एसिड फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का अनिवार्य प्रावधान किया गया है। राज्य सरकार द्वारा एनीमिया के प्रसार को कम करने के लिए बनाई गई व्यापक रणनीति के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक के स्कोर कार्ड में हिमाचल प्रदेश वर्ष 2018-19 में 18वें स्थान पर था, लेकिन सरकार के निरंतर प्रयासों से इस रैंकिंग में सुधार हुआ है और हिमाचल प्रदेश अब देश भर में तीसरें स्थान पर पहुंच गया है। वर्तमान में भारत एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में एनीमिया वाले देशों में से एक है। देश की लगभग 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, पांच वर्ष से कम उम्र के 59 प्रतिशत बच्चे, 54 प्रतिशत किशोरियां और 53 प्रतिशत गैर-गर्भवती गैर-स्तनपान करवाने वाली महिलाएं एनीमिक हैं। गर्भावस्था के दौरान एनीमिया प्रसवोत्तर रक्तस्राव, न्यूरल ट्यूब दोष, जन्म के समय कम वजन, समय से पहले जन्म, मृत जन्म और मातृ मृत्यु से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में एनीमिया से जुड़ी माॅबिडिटी और मृत्यु दर जोखिम इस स्वास्थ्य समस्या के समाधान के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है। एनीमिया की व्यापकता में कमी से मातृ एवं शिशु जीवित रहने की दर में सुधार लाया जा सकता है। 2005 से 2015 तक एनीमिया की कमी में धीमी वर्ष 2005 से 2015 तक एनीमिया की कमी में धीमी प्रगति यानी एक प्रतिशत सालाना से भी कम को देखते हुए भारत सरकार ने समग्र पोषण के लिए प्रधानमंत्री की व्यापक योजना के तहत एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) कार्यक्रम शुरू किया है और प्रति वर्ष 3 प्रतिशत एनीमिया को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस कार्यक्रम में 6-59 महीने के बच्चों, किशोरों, 15-49 वर्ष की प्रजनन आयु की महिलाओं के आयु वर्ग को शामिल किया गया हैं। एनीमिया मुक्त भारत का उद्देश्य सभी हितधारकों को ट्रिपल सिक्स (6-6-6) रणनीति रणनीति को लागू कर 6 लक्षित लाभार्थी, 6 इंटरवेंशन और 6 संस्थागत तंत्रों के माध्यम से निवारक और उपचारात्मक तंत्र प्रदान करना है। राज्य सरकार द्वारा प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने के उद्देश्य से विभिन्न स्थानों पर इस संबंध में जागरूकता अभियान चला कर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा हैं। प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने में राज्य सरकार के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक में प्रदेश को अग्रणी स्थान प्राप्त होना राज्य सरकार के सफल प्रयासों को इंगित करता है।
आयुष विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा आर्ट ऑफ लिविंग व योग भारती की सहभागिता से कोविड-19 रोगियों के लिए आयुष के माध्यम से कल्याणकारी कार्यक्रम स्वास्थ्य परिवार, कल्याण व आयुष मंत्री डॉ. राजीव सहजल द्वारा संपूर्ण प्रदेश के लिए आरंभ किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य कोविड-19 से संक्रमित रोगियों को आयुष पद्धतियों के समग्र स्वास्थ्य जीवन शैली दृष्टिकोण के माध्यम से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ पहुंचाना है। आयुष विभाग के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में रोगियों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए मंत्री स्वयं लाइव योग सत्रों में वर्चुअल माध्यम से जुड़कर संक्रमितों से संवाद स्थापित कर उनका कुशल क्षेम जान रहे हैं तथा उन्हें आयुष चिकित्सा पद्धति अपनाकर स्वास्थ्य जीवन शैली जीने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं आयुष मंत्री राजीव सहजल अपने इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के माध्यम से कोविड-19 के विरुद्ध इस युद्ध में जुटे आयुष चिकित्सा प्रदाताओं का उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर रहे हैं एवं आयुष चिकित्सा प्रदाताओं के साथ स्वयं कोविड संक्रमित के घर जाकर हाल-चाल जान रहे हैं तथा उनका हौंसला बढ़ा रहे हैं। मंत्री व्यक्तिगत तौर पर संक्रमित रोगियों के घर जाकर कोविड केयर किट का वितरण कर रहे हैं, जिसमें संक्रमितों को अन्य सामग्रियों के साथ-साथ आयुष काढ़ा, चवनप्राश तथा कबाशीर कुडिनीर आयुष दवा प्रदान की जा रही है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक आयुष घरद्वार कार्यक्रम का दृष्टिकोण आयुष के सिद्धांतों के अनुरूप स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रिकवरी दर को बढ़ाना, रोगियों के जीवन स्तर में सुधार करना तथा अस्पताल में भर्ती की जरूरत दर को घटाना है। इसके साथ-साथ कोविड-19 से मृत्यु दर को कम करना तथा संक्रमण दर को भी कम करना है तथा कोविड-19 के गंभीर दुष्प्रभावों को रोकने व शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर बीमारी से उभरने के बाद बेहतर पुनर्वास सुनिश्चित करना है। कोविड-19 महामारी के इस दौर में मानव सेवा में आयुष चिकित्सा पद्धति महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। बताया गया कि अपने दृष्टिकोण के अनुरूप आयुष विभाग द्वारा मई माह में लगभग एक हजार वर्चुअल समूह बनाकर 20 हजार से ज्यादा कोविड-19 रोगियों को इस कार्यक्रम के माध्यम से सेवाएं प्रदान की है। आयुष विभाग का यह महत्वाकांक्षी तथा जन कल्याणकारी कार्यक्रम प्रदेश में पिछले कुछ समय से लगातार घट रही कोविड संक्रमण दर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। मरीजाें काे सोशल मीडिया से जोड़ा गया आयुष विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक आयुष चिकित्सा अधिकारियों तथा आयुष स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा विभिन्न सोशल मीडिया में जिसमें व्हाट्सएप, जूम इत्यादि पर वर्चुअल समूह बनाए गए हैं तथा गृह एकांतवास, समर्पित कोविड केयर सेंटर, समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र आदि में रह रहे रोगियों को पूरे प्रदेश में इससे जोड़ा गया है। आर्ट ऑफ लिविंग तथा योग भारती के लगभग 300 प्रशिक्षकों की सहायता से इन वर्चुअल समूहों में लाइव सेशन अथवा ऑडियो विजुअल उपकरणों के माध्यम से योग, प्राणायाम, स्वास्थ्य क्रियाओं व अभ्यास, ध्यान, योग व निद्रा आदि का अभ्यास रोगियों को करवाया जा रहा है। कार्यक्रम के तहत तनाव को कम करने, मन को शांत रखने तथा भय को कम करने के तरीके से रोगियों को अवगत करवाया जा रहा है। रोगी कोविड संक्रमण के पश्चात क्या करें, क्या न करें इस संबंध में भी जानकारी प्रदान की जा रही है। आयुष चिकित्सकों तथा आयुष स्वास्थ्य प्रदाताओं द्वारा रोगियों के स्वास्थ्य की निरंतर देखभाल की जा रही है तथा आवश्यक होने पर शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य परामर्श भी प्रदान किया जा रहा है। इसके साथ-साथ आहार-विहार संबंधित दिशा-निर्देश भी रोगियों को दिए जा रहे हैं ताकि वे शीघ्र स्वास्थ्य लाभ पा सके। आयुष सिद्धांतों के अनुरूप खुशहाल व समग्र स्वास्थ्य जीवन शैली अपनाकर सुखी स्वस्थ जीवन जीने व आयुष चिकित्सा पद्धति एवं घरेलू उपचारों को अपनाकर प्रकृति से जुड़े रहने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। काेराेना पाॅजिटिव मरीज उत्साह के साथ जुड़ रहे कोविड संक्रमण से जूझ रहे रोगी भरपूर उत्साह के साथ इस कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं तथा विभिन्न जानकारियों से लाभ अर्जित कर अपने रोग के प्रति सचेत हो कर स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। कोविड के विरुद्ध इस लड़ाई में आयुष विभाग संपूर्ण तत्परता और निरंतरता के साथ मानव सेवा में जुड़ा रहेगा। आयुर्वेद विभाग में तैनात चिकित्सक व अन्य कर्मचारी सक्रिय तौर पर अपनी सेवाएं समर्पित कोविड केयर केन्द्रों एवं कोविड केयर स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रदान कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा होम आईसोलेशन में रह रहे रोगियों का स्वास्थ्य परीक्षण तथा स्वास्थ्य स्थिति को जांचा जा रहा है। सैंपल लेने तथा एक्टिव केस फाइंडिंग में आयुर्वेद चिकित्सक कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त गत वर्ष के दौरान विभिन्न बैरियर पर कोविड जांच के लिए आयुर्वेद विभाग का स्टाफ तैनात किया गया था वहीं काॅन्टैक्ट ट्रैसिंग टीम ने भी आयुर्वेद के अधिकारी व कर्मचारी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। आयुर्वेद विभाग द्वारा राजकीय राजीव गांधी स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय पपरोला जिला कांगड़ा को समर्पित कोविड स्वास्थ्य केन्द्र बनाया गया है, जिसमें कोविड रोगियों के लिए 100 बिस्तरों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। इसके अतिरिक्त शिमला स्थित क्षेत्रीय आयुर्वेद अस्पताल को समर्पित कोविड स्वास्थ्य केन्द्र बनाया गया है, जिसमें 50 बिस्तरों की उपलब्धता है, जिसे शत-प्रतिशत रूप से आयुर्वेद विभाग के स्टाफ द्वारा संचालित किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश में कोरोना के मरीजों की संख्या कम होने लगी है। 13 मई को जो संख्या 40006 से थी, वह अब 16989 के आसपास रह गई है। इनमें से करीब 1000 मरीज अस्पतालों में उपचाराधीन हैं, जबकि करीब 85 फीसदी से ज्यादा मरीज होम आइसोलेट हैं। अस्पतालों में भी मरीजों के ठीक होने की दर बढ़ी है। इसी को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश सरकार ने मेडिकल कॉलेजों और बड़े अस्पतालों में रूटीन के ऑपरेशन शुरू करने के निर्देश दिए हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते बीते एक माह से 2000 से अधिक ऑपरेशनों को टाला गया है। हालांकि प्रदेश में मौत के मामलों का कम न होना सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। मरने वालों का आंकड़ा 3000 से पार हो गया है। जिला कांगड़ा में सबसे ज्यादा 900 संक्रमितों की मौत हुई है। दूसरे नंबर पर शिमला जिला है, जहां 550 मरीजों की मौत हुई है। कांगड़ा जिले में 38 दिन बाद 300 से कम 297 नए मरीज सामने आए हैं, जबकि 27 दिन बाद सबसे कम 11 मौतें हुई हैं।स्वास्थ्य विभाग की टेक्निकल कमेटी ने कोरोना से मौतों को लेकर सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है। अस्पतालों में कोरोना मरीज कम होने पर सरकार ने गंभीर मरीजों के ऑपरेशन करने के साथ रूटीन पथरी, पित्त की पथरी, घुटनों के ऑपरेशन आदि करने को कहा है। डॉक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे मरीजों को ऑपरेशन की तिथियां देते रहें। अस्पतालों में अभी इमरजेंसी के ऑपरेशन ही किए जा रहे थे। स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि प्रदेश में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को कोरोना मरीजों के उपचार में लगाया गया है, लेकिन अब मामले कम हो रहे हैं।
दुनियाभर में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इसकी जांच के लिए काफी भीड़ देखी जा रही है। कोरोना की दूसरी लहर में वायरस के म्यूटेशन के कारण कई लोगों के आरटी-पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट भी गलत आ रही है। इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए वैज्ञानिकों ने परीक्षण की एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से सिर्फ तीन घंटे में कोरोना का पता लगाया जा सकेगा। इस परीक्षण में सिर्फ गरारे के माध्यम से कोरोना का पता लगाया जा सकेगा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इसे मंजूरी भी दे दी है। ग्रामीण क्षेत्र, जहां लोगों को कोरोना की जांच के लिए काफी परेशान होना पड़ता है, विशेषज्ञ ऐसे स्थानों के लिए इस परीक्षण विधि को वरदान के तौर पर देख रहे हैं। सलाइन गार्गल आरटी-पीसीआर विधि नागपुर स्थित नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनईईआरआई) के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 की जांच के लिए 'सलाइन गार्गल आरटी-पीसीआर विधि' विकसित की है। जिससे तीन घंटे के भीतर परिणाम प्राप्त किया जा सकेगा। अधिकारियों ने बताया कि यह किट सरलता और तेजी से कोरोना का पता लगाने में सहायक होगी। एनईईआरआई में इनवायरमेंटल वायरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ कृष्णा खैरनार बताते हैं कि आरटी-पीसीआर के स्वाब टेस्टिंग में काफी समय लग जाता था, यह नई तकनीकि इस मायने में काफी बेहतर मानी जा सकती है। इसमें सैंपल टेस्टिंग के तीन घंटे के भीतर कोरोना का पता चल सकेगा। कैसी की जाएगी जांच डॉ कृष्णा खैरनार बताते हैं कि इस टेस्ट किट में सलाइन यु्क्त एक ट्यूब होगी। कोरोना की जांच के लिए इस सलाइन को मुंह में डालकर 15 सेकंड तक गरारा करना होगा। इसके बाद उसी ट्यूब में गरारे को थूक कर जांच के लिए दे देना होगा। लैब में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बफर के साथ इसे मिश्रित करके 30 मिनट तक रखा जाएगा। आरटी-पीसीआर परीक्षण के लिए आरएनए प्राप्त करने के लिए इस मिश्रण को छह मिनट के लिए 98 डिग्री पर गर्म किया जाएगा। इसी आधार पर व्यक्ति में कोरोना के मामले की पुष्टि की जाएगी।डॉ कृष्णा खैरनार कहते हैं कि इस परीक्षण तकनीक को देश में तमाम प्रयोगशालाओं के साथ साझा कर दिया गया है।
कोविन पोर्टल की शुरुआत वैक्सीन लेने वालों की सहूलियत के लिए हुई थी लेकिन जब से 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए वैक्सीनेशन शुरू हुआ है तब से हर दिन हजारों लोग कोविन पोर्टल पर वैक्सीन के लिए स्लॉट बुक करने के लिए जाते हैं और खाली हाथ लौट आते हैं। लोगों की इस समस्या को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने बड़ा फैसला लिया है। मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि 18-44 आयु वर्ग के लोग अब बिना अप्वाइंटमेंट किसी भी सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर पर रजिस्ट्रेशन और अप्वाइंटमेंट ले सकते हैं। इसकी शुरुआत आज यानी 24 मई से हो गई है। अब ऑनसाइन रजिस्ट्रेशन की भी सुविधा 18 साल से 44 साल की उम्र के वैक्सीनेशन के लिए अब ऑनसाइट रजिस्ट्रेशन की भी सुविधा होगी। अब 18 से 44 साल के लोग सीधे वैक्सीनेशन सेंटर्स पर जाकर वैक्सीन ले सकते हैं, हालांकि कोविन पोर्टल (Cowin.gov.in) पर पहले से रजिस्ट्रेशन कराना होगा। मंत्रालय ने कहा है कि अब 18-44 साल वालों को वैक्सीन लगवाने के लिए ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट लेने की जरूरत नहीं है। यदि आपने पहले से ही रजिस्ट्रेशन करवा लिया है तो अच्छी बात है, वरना आपको वैक्सीनेशन सेंटर पर ही रजिस्ट्रेशन करना होगा और उसके बाद आपको अप्वाइंटमेंट और वैक्सीन मिलेगी। मंत्रालय ने कहा है कि ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट के दौरान कई जगहों से वैक्सीन बर्बाद होने की भी रिपोर्ट मिली है जिसके बाद यह फैसला लिया गया है। मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सूचित कर दिया है। अलग-अलग राज्यों के निर्णय के बाद ही वहां ऑनसाइट रजिस्ट्रेशन और अप्वाइंटमेंट मिल पाएगा। यानी आखिरी फैसला राज्य सरकार के हाथों में है। मंत्रालय की ओर से साफतौर पर कहा गया है कि यह सुविधा फिलहाल केवल सरकारी वैक्सीनेशन केंद्र पर ही उपलब्ध है। कैसे मिलेगी ऑनसाइट वैक्सीन रोजना जब लोगों को टीका देने का समय खत्म हो जाएगा या दिन के अंतिम समय में जो वैक्सीन बच जाएगी, उसे ऑनसाइट व्यवस्था के तहत लोगों को दी जाएगी, जिससे कि टीके की बर्बादी ना हो। इस नई व्यवस्था का जिक्र कोविन प्लेटफॉर्म पर किया जा रहा है। फिलहाल नई सुविधा सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर्स पर ही होगी।
कोरोना संक्रमण की समय पर जांच ही संक्रमण से लड़ने में कारगर हैं। बढ़ते आकड़ों के बीच लोगों को कोरोना जांच कराने में दिक्कतें आ रहीं हैं। कोरोना का संक्रमण है या नहीं इसकी जांच के लिए अब लोगों को बार-बार लैब जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब घर बैठे ही कोरोना की जांच खुद कर सकते हैं। इस समस्या से बड़ी निजात देते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने बीते बुधवार को घर में ही कोविड जांच के लिए ‘कोविसेल्फ’ किट को मंजूरी दे दी है। इस जांच किट के जरिये अब कोई भी घर बैठे ही कोरोना संक्रमण की जांच कर सकता है। जानकारी के मुताबिक, कोविसेल्फ नाम की यह टेस्ट किट एक रैपिड एंटीजेन टेस्ट (आरएटी) किट है। बहुत जल्द कोविसेल्फ किट देश की 7 लाख से ज्यादा दवा दुकानों पर मिलेगी । आईसीएमआर ने कोविसेल्फ को लेकर एक एडवाईजरी भी जारी की है। इसमें किट को इस्तेमाल करने से लेकर तमाम दिशा निर्देश मौजूद हैं, जिसे आपको जानना बेहद जरूरी भी है। आईसीएमआर के दिशा निर्देशों के मुताबिक, घर पर कोरोना जांच किट कोविसेल्फ किट का इस्तेमाल उन्हीं लोगों को करना चाहिए, जिनमें कोविड-19 के लक्षण हैं या फिर वे किसी लैब द्वारा कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आए हों। इस जांच किट इस्तेमाल बार-बार और बिना सोचे समझे न करें।आईसीएमआर ने कहा कि घर पर जांच के लिए किट में दी गई गाइडलाइंस को ध्यानपूर्वक और आवश्यक रूप से पढ़ें, उसके बाद ही जांच करें। मोबाइल एप की सहायता लें सरकार की ओर से कोविसेल्फ मोबाइल एप गूगल प्ले स्टोर और एपल एप स्टोर पर मौजूद हैं। आईसीएमआर के मुताबिक घर पर रैपिड एंटीजन टेस्ट एक मोबाइल एप के जरिए संपन्न होगा। एक कंपनी एप को डेवलप कर दिया है, जबकि अन्य तीन कंपनियां भी इस पर काम कर रही हैं। पहले आपको किसी दवा दुकान से टेस्ट किट खरीदना होगा। उसके बाद मोबाइल एप को डाउनलोड करना होगा। फिर टेस्ट करना होगा और टेस्ट की फोटो (किट सहित) इस एप पर अपलोड करना होगा। आपका डेटा रहेगा सुरिक्षत आपके मोबाइल फोन पर मौजूद ऐप का डाटा एक सुरक्षित सर्वर पर रहेगा, जो आईसीएमआर की कोविड-19 टेस्टिंग पोर्टल से जुड़ा है, जहां सभी डाटा को स्टोर किया जाएगा। एडवाइजरी में कहा गया है कि मरीज की जानकारी की पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी। जांच में पॉजिटिव आने पर क्या करें ? आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के मुताबिक, कोविसेल्फ टेस्ट किट की जांच में जो लोग पॉजिटिव पाए जाते हैं, उन्हें वास्तव में कोरोना पॉजिटिव ही समझा जाए। ऐसे में उन्हें दोबारा टेस्ट करवाने की जरूरत नहीं है। वहीं पॉजिटिव आने वाले सभी लोगों को होम आइसोलेशन में रहने और आईसीएमआर एवं स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइंस के तहत जारी कोरोना नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है। वहीं ऐसे लोग जिनमें कोरोना के लक्षण हैं और वे कोविसेल्फ किट की जांच में निगेटिव आए हैं, उन्हें आरटी-पीसीआर कराना चाहिए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि माना जाता है कि कम वायरस लोड के कारण रैपिड एंटीजेन टेस्टिंग के जरिए कुछ मामलों में इसकी पुष्टि नहीं हो पाती है।
कोरोना और फंगस की चौतरफा मार के बीच हैप्पी हाइपोक्सिया भी डॉक्टरों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। हैप्पी हाइपोक्सिया ने हर किसी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है, ये कोरोना से संक्रमित हुए लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इसमेंं एकाएक ऑक्सीजन का लेवल घटने से कई मरीजों की मौत हो रही है। आइए जानते हैं कि आखिर ये हैप्पी हाइपोक्सिया क्या है। हैप्पी हाइपोक्सिया क्या है? डॉक्टर्स कहते हैं कि हैप्पी हाइपोक्सिया कोरोना का एक नया लक्षण है। इसमें संक्रमित हुए व्यक्ति को खांसी, बुखार और सांस फूलने की समस्या नहीं होती है, लेकिन अचानक ऑक्सीजन लेवल गिरने लगता है और इस वजह से मरीज की जान खतरे में पड़ सकती है। ऐसे पहचान सकते हैं इस बीमारी को विशेषज्ञ कहते है कि अगर आप में हैप्पी हाइपोक्सिया का कोई लक्षण नहीं है, और आप इसे पहचानना चाहते हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं कि एक सांस में एक से 30 तक गिनती करें। अगर इस दौरान आपको सांस लेने में दिक्कत आ रही है, तो आपको अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। चेक करते रहें ऑक्सीजन लेवल हैप्पी हाइपोक्सिया के कारण फेफड़ों में खून की नसों में थक्के जम जाते हैं, जिसकी वजह से फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होती और खून में ऑक्सीजन सैचुरेशन कम होने लगता है। मरीज ठीक होता है, लेकिन अचानक उसका ऑक्सीजन लेवल 70 से 80 प्रतिशत हो जाता है और सांसें उखड़ने लगती हैं। ऐसे में मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। वहीं, कोरोना से संक्रमित हुए लोगों को दिन में दो-तीन बार ऑक्सीजन सैचुरेशन चेक करना चाहिए। इन अंग को ज्यादा प्रभावित करती है ये बीमारी यहां आपको बता दें कि हाइपोक्सिया दिमाग, दिल, किडनी समेत कई अन्य प्रमुख अंगों के काम को प्रभावित करता है। वहीं, डॉक्टर्स मानते हैं कि युवाओं की इम्यूनिटी मजबूत होती है, जिसकी वजह से उनमें लक्षण काफी हल्के नजर आते हैं और युवा इनको नजरअंदाज करते हैं। ऐसे में अगर आपके शरीर का ऑक्सीजन सैचुरेशन 94 प्रतिशत से कम है और आपको कोई दिक्कत नहीं हो रही है तो ये हाइपोक्सिया है। ऐसे में युवा लोग इसे नजरअंदाज न करें।
कोरोना महामारी के बीच ब्लैक फंगस के बाद अब व्हाइट फंगस की दस्तक से मुश्किलें बढ़ गई हैं। व्हाइट फंगस को चिकित्सकीय भाषा में कैंडिडा कहते हैं। ये फंगस फेफड़ों के साथ रक्त में घुसने की क्षमता रखता है। रक्त में पहुंचने पर इसे कैंडिडिमिया कहते हैं। व्हाइट फंगस इसलिए अधिक खतरनाक है क्योंकि शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है। हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह ब्लैक फंगस जैसी जानलेवा नहीं है। यह चर्म रोग से संबंधित सामान्य बीमारी है, जिसका इलाज पूरी तरह से संभव है। इस बीमारी से फेफड़े अथवा शरीर के आंतरिक हिस्से में घातक संक्रमण की बात अबतक नहीं सुनी गई है। फेफड़ों तक पहुंचे, तो इसे लंग बॉल कहते हैं। सीटी स्कैन जांच में फेफड़ों के भीतर यह गोल-गोल दिखाई देता है। कोरोना से सर्वाधिक नुकसान फेफड़ों को हो रहा है। व्हाइट फंगस भी फेफड़ों पर हमला करता है। अगर कोरोना मरीजों में इसकी पुष्टि हुई, तो जान को खतरा बढ़ सकता है। शरीर के हर अंग पर असर संभव डॉक्टर्स बताते है की ये फंगस त्वचा, नाखून, मुंह के भीतरी हिस्से, आमाशय, किडनी, आंत व गुप्तागों के साथ मस्तिष्क को भी चपेट में ले सकता है। मरीज की मौत ऑर्गन फेल होने से हो सकती है। जो ऑक्सीजन या वेंटीलेटर पर हैं, उनके उपकरण जीवाणु मुक्त होने चाहिए जो ऑक्सीजन फेफड़े में जाए वह फंगस से मुक्त होनी चाहिए। नवजात शिशु में भी संभव व्हाइट फंगस में चेस्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। यह नवजात शिशु में भी हो सकता है। चिकित्सकों के मुताबिक जिन मरीज का रैपिड एंटीजन और आरटी पीसीआर नेगेटिव है उन्हें भी फंगस का टेस्ट कराना चाहिए। ब्लैक फंगस से लक्षण होते हैं थोड़ा अलग -संक्रमण जोड़ों तक पहुंच गया तो आर्थराइटिस जैसी तकलीफ महसूस होगी, चलने-फिरने में दिक्कत संभव। - मस्तिष्क तक पहुंचा तो सोचने विचारने की क्षमता पर असर, सिर में दर्द या अचानक दौरा आने लगेगा। -त्वचा पर छोटा और दर्द रहित गोल फोड़ा जो संक्रमण की चपेट में आने के एक से दो सप्ताह में हो सकता है। - व्हाइट फंगस फेफड़ों में पहुंच गया तो खांसी, सांस में दिक्कत, सीने में दर्द और बुखार भी हो सकता है।
देश में कोविड-19 महामारी के बीच हाल के दिनों में म्यूकोरमाइकोसिस (जिसे ब्लैक फंगस के नाम से भी जाना जाता है) के मामलों में भी तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। हिमाचल में भी ब्लैक फंगस अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चूका है। कैंसर के समान घातक इस संक्रमण को लेकर डॉक्टर विशेष सावधानी बरतने की अपील कर रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि म्यूकोरमाइकोसिस के कारण होने वाली मृत्यु दर 50 से 60 फीसदी तक हो सकती है, यानी इस संक्रमण से ग्रसित 100 में से लगभग 60 लोगों को मौत का खतरा रहता है। कोविड से ठीक हो रहे मरीजों (विशेषकर डायबिटिक) में म्यूकोरमाइकोसिस के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं। संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच लोगों के मन में इससे संबंधित कई तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं। ऐसा ही एक सवाल है कि क्या कोरोना की तरह ब्लैक फंगस का संक्रमण भी एक व्यक्ति से दूसरे को हो सकता है? डॉक्टरों के मुताबिक ऐसा नहीं है। कितना संक्रामक है ब्लैक फंगस ? ब्लैक फंगस संक्रमण के बारे में आईजीएमसी के एमएस डॉ जनक राज कहते हैं कि इस संक्रमण के मामले काफी दुर्लभ होते हैं। हमारे वातावरण में यह फंगस हमेशा से मौजूद रहे हैं लेकिन इनका असर सिर्फ उन्हीं लोगों पर ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है। यह संक्रमण सामान्य तौर पर एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। अनियंत्रित शुगर लेवल और ब्लड कैंसर के रोगी विशेषकर जो कीमोथेरपी ले रहे हैं, उनमें इस संक्रमण का खतरा अधिक होता है। घरों में भी मौजूद हो सकता है फंगस ब्लैक फंगस संक्रमण की प्रकृति और इसकी मौजूदगी के बारे में डॉ सचिन बताते हैं कि यह फंगस घरों में भी हो सकता है। खराब हो रही सब्जियों, मिट्टी और फ्रिज में यह फंगस मौजूद हो सकता है। इसलिए इन सभी को अच्छी तरह से साफ-सफाई करके खाना बेहद जरूरी होता है। इसके साथ सभी को व्यक्तिगत स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। सब्जियों को अच्छे से धोकर ही उपयोग में लाएं, घरों में जो सब्जियां खराब हो रही हैं उन्हें तुरंत फेंक दें। किन्हें विशेष सावधान रहना चाहिए? फंगल संक्रमण किसी भी इम्यूनो-कंप्रोमाइज यानी कि जिसकी इम्यूनिटी कमजोर होती है, उसे हो सकता है। म्यूकोरमाइकोसिस का खतरा कोविड संक्रमित रह चुके डायबिटिक रोगियों को ज्यादा होता है। इसकी वजह ऐसे रोगियों के ब्लड शुगर का अनियंत्रित स्तर माना जाता है। कोविड के इलाज के समय स्टेरॉयड्स भी दी जाती हैं, जोकि शुगर को बढ़ा देती हैं इसलिए इन रोगियों में भी खतरा हो सकता है।
देश में कोरोना के बाद महामारी के बाद अब ब्लैक फंगस कहर बरपा रही है। देशभर में महामारी घोषित हो चुकी ब्लैक फंगस बीमारी की दवा अब हिमाचल प्रदेश के फार्मा हब बद्दी में बन रही है। औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन की यूनाइटेड बायोटेक कंपनी ब्लैक फंगस के लिए एम्फोटेरिसिन-बी दवा का निर्माण कर रही है। हालांकि पहले कंपनी इस दवा को विदेशों में निर्यात करती थी, जबकि अब इसे देश में इस्तेमाल करने के लिए कंपनी को दवा बनाने का लाइसेंस मिल गया है। जल्द ही कंपनी देश और राज्य के लिए ब्लैक फंगस की दवा तैयार करना शुरू कर देगी। प्रदेश के फार्मा हब बीबीएन ने देश और प्रदेश में कोरोना वायरस से संबंधित आवश्यक दवाएं उपलब्ध करवाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बीबीएन के फार्मा उद्योग दवा उत्पादन से जुड़ी स्वदेशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपनी ओर से ऑक्सीजन प्लांट, ऑक्सीजन सिलिंडर, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर, आवश्यक दवाएं, मास्क और सैनिटाइजर जैसा उपयोगी सामान भी प्रदेश सरकार को प्रदान किया है। इससे प्रदेश में कोरोना मरीजों के इलाज में गुणात्मक सुधार हुआ है। महामारी के शुरुआती दिनों में अधिकतर इस्तेमाल की गई पैरासिटामोल, अजिथ्रोमायसीन, हाइड्रोक्लोरोक्वीन और फैवीपीरावीर जैसी दवाओं का उत्पादन यहीं हुआ। यहां से आवश्यक दवाओं की आपूर्ति पूरे देश में हो रही है। डॉक्टर रेडी और जुवनैइट फार्मा जैसे बड़े दवा उत्पादक घराने कोरोना से संबंधित दवाओं के उत्पादन के लिए लोन लाइसेंस के आधार पर भी काम कर रहे हैं। अब ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल की जा रही दवा भी देश के सबसे बड़े फार्मा हब बीबीएन में बन रही है।
कोरोना के कहर के बीच देश में म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस तेजी से पांव पसार रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में से ब्लैक फंगस के अब तक 8,848 मामले सामने आए हैं और 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इसी बीच कई राज्यों ने ब्लैक फंगस को महामारी भी घोषित कर दिया है। वहीं कोरोना के बाद अब ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों के चलते इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटी-फंगल दवा एम्फोटेरिसिन-बीकी डिमांड भी बढ़ रही है। इसी दौरान सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एम्फोटेरिसिन-बी की कुल 23,680 अतिरिक्त वायल आवंटित किए गए हैं। रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौडा ने इस बात की जानकारी दी है।
कोरोना काल में एमबीबीएस की कक्षाएं शुरू करने के बाद अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कोठीपुरा प्रदेश के लोगों के लिए टेलीमेडिसिन सेवाएं शुरू करने जा रहा है। इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर शनिवार को शिमला से ऑनलाइन करेंगे। सेवा शुरू होने के बाद संस्थान के 50 सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक प्रदेश के लोगों का टेलीमेडिसिन यानी दूर चिकित्सा सेवा के माध्यम से उपचार करेंगे। एम्स के उप निदेशक डॉ. सुखदेव नाग्याल ने बताया कि शुक्रवार को एम्स के करीब 50 चिकित्सकों को ई-संजीवनी पर प्रशिक्षण दिया गया। यह भारत सरकार का प्रमुख टेलीमेडिसिन प्लेटफार्म है। चिकित्सकों को सिखाया गया कि कैसे इसे ऑपरेट करना है। किस तरह मरीजों को सेवाएं देनी हैं। इस प्लेटफार्म पर सेवाएं देने वाले सभी चिकित्सक सुपर स्पेशलिस्ट हैं। कोविड काल में पैरा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति सहित अन्य औपचारिकताएं पूरी न होने से बिलासपुर के कोठीपुरा में निर्माणाधीन एम्स में ऑफलाइन ओपीडी भले ही शुरू न हो पाई हो, लेकिन लोगों को आसानी से उपचार उपलब्ध करवाने के लिए टेलीमेडिसिन सेवा शुरू की जा रही है। लोगों को अब स्वास्थ्य संबंधित परेशानी आने पर ऑनलाइन अनुभवी और विशेषज्ञ चिकित्सक उपचार देंगे। मरीज को ई-संजीवनी पर पंजीकरण करवाना होगा। उसके बात अपने आप आगे की प्रक्रिया पूरी होगी और बीमारी से संबंधित डॉक्टर की ओपीडी में केस दिया जाएगा। कोरोना कर्फ्यू में अब इस सेवा के जरिये मरीज घर बैठे ही सामान्य बीमारियों के संबंध में डॉक्टरों से सलाह ले सकते हैं। जनरल मेडिसन, गायनी, ईएनटी, दंत रोग, शिशु विशेषज्ञ, नेत्र, हड्डी और त्वचा सहित अन्य विशेषज्ञ टेलीमेडिसिन के जरिये लोगों का इलाज करेंगे।
कोरोना संक्रमण की समय पर जांच ही संक्रमण से लड़ने में कारगर हैं। बढ़ते आकड़ों के बीच लोगों को कोरोना जांच कराने में दिक्कतें आ रहीं हैं। कोरोना का संक्रमण है या नहीं इसकी जांच के लिए अब लोगों को बार-बार लैब जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब घर बैठे ही कोरोना की जांच खुद कर सकते हैं। इस समस्या से बड़ी निजात देते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने बीते बुधवार को घर में ही कोविड जांच के लिए ‘कोविसेल्फ’ किट को मंजूरी दे दी है। इस जांच किट के जरिये अब कोई भी घर बैठे ही कोरोना संक्रमण की जांच कर सकता है। जानकारी के मुताबिक, कोविसेल्फ नाम की यह टेस्ट किट एक रैपिड एंटीजेन टेस्ट (आरएटी) किट है। बहुत जल्द कोविसेल्फ किट देश की 7 लाख से ज्यादा दवा दुकानों पर मिलेगी । आईसीएमआर ने कोविसेल्फ को लेकर एक एडवाईजरी भी जारी की है। इसमें किट को इस्तेमाल करने से लेकर तमाम दिशा निर्देश मौजूद हैं, जिसे आपको जानना बेहद जरूरी भी है। आईसीएमआर के दिशा निर्देशों के मुताबिक, घर पर कोरोना जांच किट कोविसेल्फ किट का इस्तेमाल उन्हीं लोगों को करना चाहिए, जिनमें कोविड-19 के लक्षण हैं या फिर वे किसी लैब द्वारा कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आए हों। इस जांच किट इस्तेमाल बार-बार और बिना सोचे समझे न करें।आईसीएमआर ने कहा कि घर पर जांच के लिए किट में दी गई गाइडलाइंस को ध्यानपूर्वक और आवश्यक रूप से पढ़ें, उसके बाद ही जांच करें। मोबाइल एप की सहायता लें : सरकार की ओर से कोविसेल्फ मोबाइल एप गूगल प्ले स्टोर और एपल एप स्टोर पर मौजूद हैं। आईसीएमआर के मुताबिक घर पर रैपिड एंटीजन टेस्ट एक मोबाइल एप के जरिए संपन्न होगा। एक कंपनी एप को डेवलप कर दिया है, जबकि अन्य तीन कंपनियां भी इस पर काम कर रही हैं। पहले आपको किसी दवा दुकान से टेस्ट किट खरीदना होगा। उसके बाद मोबाइल एप को डाउनलोड करना होगा। फिर टेस्ट करना होगा और टेस्ट की फोटो (किट सहित) इस एप पर अपलोड करना होगा। आपका डेटा रहेगा सुरिक्षत : आपके मोबाइल फोन पर मौजूद ऐप का डाटा एक सुरक्षित सर्वर पर रहेगा, जो आईसीएमआर की कोविड-19 टेस्टिंग पोर्टल से जुड़ा है, जहां सभी डाटा को स्टोर किया जाएगा। एडवाइजरी में कहा गया है कि मरीज की जानकारी की पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी। जांच में पॉजिटिव आने पर क्या करें ? आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के मुताबिक, कोविसेल्फ टेस्ट किट की जांच में जो लोग पॉजिटिव पाए जाते हैं, उन्हें वास्तव में कोरोना पॉजिटिव ही समझा जाए। ऐसे में उन्हें दोबारा टेस्ट करवाने की जरूरत नहीं है। वहीं पॉजिटिव आने वाले सभी लोगों को होम आइसोलेशन में रहने और आईसीएमआर एवं स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइंस के तहत जारी कोरोना नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है। वहीं ऐसे लोग जिनमें कोरोना के लक्षण हैं और वे कोविसेल्फ किट की जांच में निगेटिव आए हैं, उन्हें आरटी-पीसीआर कराना चाहिए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि माना जाता है कि कम वायरस लोड के कारण रैपिड एंटीजेन टेस्टिंग के जरिए कुछ मामलों में इसकी पुष्टि नहीं हो पाती है।
उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र समेत देश भर के कई राज्यों में ब्लैक फंगस (म्यूकोर्मिकोसिस) का कहर बढ़ता जा रहा है। इन राज्यों में ब्लैक फंगस के केस काफी तेजी से बढ़ रहे है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत म्यूकोर्मिकोसिस को महामारी घोषित करने की अपील की है। साथ ही इससे निपटने के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों में सभी सुविधाएं मजबूत करने की अपील की है। तेलंगाना और राजस्थान ने तो इसे महामारी घोषित कर दिया है।
देश में कोरोना की स्थिति अभी भी भयावह बनी हुई है। वंही, अब कोरोना की चुनौती के बीच ब्लैक फंगस बीमारी ने चिंता बढ़ा दी है। देश के कई राज्यों में इस बीमारी के मरीज़ों की संख्या बढ़ने लगी है। केवल राजस्थान में ही ब्लैक फंगस के 700 से अधिक केस सामने ऐसे हैं, ऐसे में राज्य सरकार सचेत हो गई है। राजस्थान में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया गया है, जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अधिकारियों को जरूरी एक्शन लेने के निर्देश दिए हैं। पूरे प्रदेश में कुल 700 केस हैं,जबकि सिर्फ एक ही अस्पताल में ब्लैक फंगस के 100 से अधिक मरीज़ भर्ती हैं। वंही अगर महाराष्ट्र की बात करें तो वंहा ब्लैक फंगस के करीब दो हज़ार से अधिक केस दर्ज किए गए हैं। महाराष्ट्र ने केंद्र से अपील की है कि तुरंत उन्हें दवाइयां मुहैया कराई जाए। महाराष्ट्र के हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बारामती में म्युकरमाइकोसिस जांच कैंप लगाए गए हैं, जहां 400 लोगों की जांच हुई जिनमें 16 लोग संक्रमित निकले। अगर राजधानी दिल्ली की बात करें तो तो सर गंगाराम अस्पताल में ब्लैक फंगस से सबसे ज्यादा 40 केस सामने आए हैं, मैक्स अस्पताल में 25 केस सामने आए हैं। जबकि एम्स में करीब 20 और मूलचंद अस्पताल में ब्लैक फंगस का एक केस आया है।
कोरोना वायरस महामारी के बीच बिहार में इन दिनों ब्लैक फंगस के मामलों में तेजी देखी जा रही है। इस बीच अब व्हाइट फंगस के मामले मिलने से भी हड़कंप मचा गया है। बिहार की राजधानी पटना में व्हाइट फंगस के चार मरीज सामने आए हैं। संक्रमित मरीजों में पटना के एक फेमस स्पेशलिस्ट भी शामिल हैं। यह बीमारी ब्लैक फंगस से भी ज्यादा खतरनाक बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि व्हाइट फंगस से भी कोरोना की तरह फेफड़े संक्रमित होते हैं। वहीं शरीर के दूसरे अंग जैसे नाखून, स्किन, पेट, किडनी, ब्रेन, प्राइवेट पार्ट्स और मुंह के अंदर भी संक्रमण फैल सकता है। पटना में अब तक व्हाइट फंगस के चार मरीज सामने आ चुके हैं। PMCH के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर एसएन सिंह ने यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि चार मरीजों में कोरोना जैसे लक्षण दिख रहे थे लेकिन उनको कोरोना था ही नहीं। उनके सभी टेस्ट नेगेटिव थे। टेस्ट करवाने पर इस बात का खुलासा हुआ कि वे व्हाइट फंगस से संक्रमित हैं। हालांकि राहत की बात ये है कि एंटी फंगल दवा देने से ही चारों मरीज ठीक हो गए। डॉक्टर्स के मुताबिक, व्हाइट फंगस से भी फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं। HRCT करवाने पर कोरोना जैसा ही संक्रमण दिखाई देता है। डॉक्टर्स का कहना है कि अगर एचआरसीटी में कोरोना के लक्षण दिखाई देते हैं तो व्हाइट फंगस का पता लगाने के लिए बलगम कल्चर की जांच जरूरी है। उन्होंने बताया कि व्हाइट फंगस का कारण भी ब्लैक फंगस की तरह की इम्युनिटी कम होना ही है। उन लोगों में इसका खतरा ज्यादा रहता है जो डायबिटीज के मरीज हैं, या फिर लंबे समय तक स्टेरॉयड दवाएं ले रहे हैं।