कई ऐतिहासिक फैसलों का गवाह रहा सोलन का दरबार हॉल आज उचित संरक्षण के लिए तरस रहा है। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि जिस ईमारत में कभी बघाट रियासत का दरबार सजता था, वहां आज लोक निर्माण विभाग सोलन के अधीक्षण अभियंता का दफ्तर है। इसी दरबार हॉल में हिमाचल का नामकरण हुआ था और इसी दरबार हॉल में बघाटी राजा दुर्गा सिंह ने 28 रियासतों के राजाओं को राज -पाट छोड़ प्रजामण्डल में विलय होने के लिए मनाया था। बावजूद इसके किसी भी हुकूमत ने अब तक इसे हेरिटेज तक घोषित करने की जहमत नहीं उठाई। हालांकि वर्ष 2015 में बघाटी सामाजिक संस्था सोलन की मांग पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दरबार हॉल को धरोहर संग्रहालय बनाने की घोषणा की थी। योजना थी कि इसे संग्रहालय के तौर पर विकसित किया जाएगा तथा बघाट व आसपास के क्षेत्रों की संस्कृति से संबंधित दुर्लभ वस्तुओं को इस हॉल में प्रदर्शित किया जाएगा। तब जिला भाषा एवं संस्कृति विभाग को योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए थे। आदेशानुसार विभाग ने रिपोर्ट भी बनाई और सरकार को भेजी भी। किंतु इसके बाद इस संदर्भ में कुछ नहीं हुआ। दरबार हॉल को हेरिटेज घोषित करने की आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी ही नहीं हुई। आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा ने सुझाया था नाम बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह संविधान सभा के चेयरमैन थे और उन्हें प्रजामण्डल का प्रधान भी नियुक्त किया गया था। उनकी अध्यक्षता में 28 जनवरी 1948 को दरबार हॉल में हिमाचल प्रदेश के निर्माण हेतु एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। इस बैठक में डॉ यशवंत सिंह परमार व स्वतंत्रता सैनानी पदमदेव की उपस्तिथि को लेकर भी तरह-तरह की कहनियां है। कहा जाता है कि डॉ परमार वर्तमान उत्तराखंड राज्य का जौनसर-बाबर क्षेत्र का कुछ हिस्सा भी हिमाचल प्रदेश में मिलाना चाहते थे, किन्तु राजा दुर्गा सिंह इससे सहमत नहीं थे। साथ ही डॉ परमार प्रदेश का नाम हिमालयन एस्टेट रखना चाहते थे जबकि राजा दुर्गा सिंह की पसंद का नाम हिमाचल प्रदेश था। ये नाम संस्कृत के विद्वान आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा ने सुझाया था जो राजा दुर्गा सिंह को बेहद भाया। अंत में राजा दुर्गा सिंह की चली और नए गठित राज्य का नाम हिमाचल प्रदेश ही रखा गया। 28 रियासत के राजाओं ने जब एक स्वर में प्रांत का नाम हिमाचल प्रदेश रखने की आवाज बुलंद की तो डॉ. परमार ने भी इस पर हामी भर दी। एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को मंजूरी के लिए भेजा गया। सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया। लचर व्यवस्था की बलि चढ़ रही राजसी शान-ओ-शौकत का गवाह रही इमारत मौजूदा समय में दरबार हॉल का इस्तेमाल लोक निर्माण विभाग कर रहा है। ऐतिहासिक दरबार हॉल में जर्जर दीवारें अपनी अनदेखी की कहानी बयां कर रही हैं। सोचने वाली बात तो ये है की जिलाभर के सरकारी भवनों को बनाने और रखरखाव करने वाले लोक निर्माण विभाग का कार्यालय इस जर्जर भवन में चल रहा है। दरबार हॉल को उचित पहचान दिलाना तो दूर इस स्थान का अस्तित्व तक खतरे में है। दरबार हॉल में राजशाही के दौर की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद हैं। आज भी दरबारी द्वार पर की गई बेहद सुंदर नकाशी को देखा जा सकता है। आज भी ये दरबार हॉल अपनी खूबसूरती और अपने शानदार इतिहास का लोहा ना सिर्फ सोलन बल्कि समूचे प्रदेश में कायम करता है। पर विडम्बना ये हैं कि राजसी शान-ओ-शौकत का गवाह रही यह इमारत आज धीरे-धीरे लचर व्यवस्था की बलि चढ़ रही है।
टीम जयराम में चंबा ज़िले काे वो स्थान नहीं मिला जिसकी अपेक्षा थी। पिछली बार यानी 2017 के विधानसभा चुनाव में इस जिले की 5 में से 4 सीटाें पर भाजपा काबिज हुई, लेकिन एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया। यहां सिर्फ हंसराज काे विधानसभा में डिप्टी स्पीकर की कुर्सी दी गई। हालांकि भाजपा के सत्ता में आते ही संभावनाएं जताई जा रही थी कि चंबा जिला से किसी एक विधायक को मंत्रीमंडल में जगह मिलेगी, मगर ऐसा नहीं हाे पाया। चम्बा को डिप्टी स्पीकर पद से ही संतुष्ट हाेना पड़ा। भटियात विधानसभा से भाजपा विधायक विक्रम जरयाल काे कैबिनेट मंत्री बनाने की चर्चाएं शुरु से ही थी। पर शुरुआत में उन्हें जगह नहीं मिली। इसके बाद अनिल शर्मा के इस्तीफे, विपिन सिंह परमार के विधानसभा अध्यक्ष बनने और किशन कपूर के सांसद बनने के चलते 2019 में तीन मंत्रिपद खाली हो गए। पिछले साल मंत्रीमंडल विस्तार में भी जरयाल का नाम काफी आगे था, लेकिन शायद जयराम ठाकुर की सियासी गणित में वे फिट नहीं बैठे। जरियाल को कैबिनेट में स्थान नहीं मिला। गाैरतलब है कि पिछली कांग्रेस सरकार में ठाकुर सिंह भरमाैरी काे मंत्री पद मिला था। उससे पहले धूमल सरकार में तुलसीराम शर्मा काे विधानसभा स्पीकर बनया गया था। पर चार सीट जीतने के बावजूद जयराम सरकार में चम्बा को अपेक्षित स्थान नहीं मिला। स्थानीय राजनीति में कांग्रेस ने भी इस मसले पर खूब चुटकी ली है और ये 2022 में महत्वपूर्ण फैक्टर बन सकता है। अब देखना है कि अगले साल हाेने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी किसके पास जाएगी और चंबा काे मंत्रीमंडल में स्थान मिलेगा या नहीं ? पर उससे पहले चम्बा किसके साथ जाता है, ये देखना भी रोचक होगा। आखिरकार राजनीतिक पिच पर भी सफल हुए पवन नैयर चंबा सदर से भाजपा विधायक पवन नैयर ने क्रिकेट की पिच से राजनीतिक सफर तय किया है। हालांकि वे इससे पूर्व कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ते रहे, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई। यही वजह है कि 2017 के चुनाव में दल बदल लिया और विधानसभा में भी पहुंचे। बता दें कि पवन नैयर अपने समय के हिमाचल से रणजी खिलाड़ी रह चुके हैं। वर्तमान में वे हिमाचल प्रदेश टेबल टेनिस एसाेसिएशन के प्रेसिडेंट भी हैं। आशा ने बचाई कांग्रेस की लाज, नहीं ताे क्लीन स्वीप पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस विधायक आशा कुमारी ने 2017 में कांग्रेस की लाज बचाई। पांच में चार सीटाें पर भाजपा का कब्जा रहा, जबकि डलहाैजी सीट पर जीत दर्ज कर आशा कुमारी ने कांग्रेस काे क्लीन स्वीप से बचा लिया। यह बात अलग है कि 2012 में वीरभद्र सरकार में आशा कुमारी काे कैबिनेट में जगह नहीं दी गई थी, फिर भी उन्हाेंने अपनी सीट कायम रखने में सफलता हासिल की। ये हैं चंबा जिले के माननीय हंसराज -डिप्टी स्पीकर हिमाचल विधानसभा विक्रम सिंह जरयाल- भाजपा विधायक जिया लाल- भाजपा विधायक पवन नैयर- भाजपा विधायक आशा कुमारी- कांग्रेस विधायक
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस 135 साल की हो चुकी है। आजादी के बाद पहली बार 1951-52 के पहले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उतरी। ये चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस ने लड़ा था और उस वक्त कांग्रेस का चुनाव चिंह पंजा नहीं था बल्कि दो बैलों की जोड़ी थी। तब किसानों और ग्रामीण भारत को जहन में रखकर कांग्रेस ने ये चुनाव चिन्ह चुना था, ताकि बैलों के जरिए वोटरों से कनेक्ट किया जा सके। पर तब से अब तक कांग्रेस कई बार अपना चुनाव चिन्ह बदल चुकी है। 1952 में कांग्रेस ने भारी बहुमत से चुनाव जीता और इसके बाद 1957, 1962 के चुनाव में भी पार्टी विजयी रही। इस दौरान पंडित नेहरू के निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने पर उनकी ताशकंद में हुई मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी की बतौर प्रधानमंत्री एंट्री हुई। तब कांग्रेस का नियंत्रण के कामराज के नेतृत्व एक सिंडीकेट के हाथों में था। इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाए जाने के खिलाफ कांग्रेस में एक गुट मजबूत होता जा रहा था। यानी इंदिरा की एंट्री के बाद कांग्रेस की लोकप्रियता में गिरावट और विभाजन का दौर शुरू हो गया था। 1967 के आमचुनाव में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली और पार्टी 520 में 283 सीटें जीत पाई जो उसका सबसे खराब प्रदर्शन था। किसी तरह इंदिरा प्रधानमंत्री तो बनी रहीं लेकिन कांग्रेस की अंर्तकलह खुलकर सामने आ गई और आखिरकार 1969 में कांग्रेस टूट गई। मूल कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बनाई। हालांकि तब अधिकांश सांसद इंदिरा के साथ थे। कांग्रेस टूटने के साथ पार्टी के चुनाव चिन्ह पर कब्जे को लेकर भी विवाद शुरू हो गया। कांग्रेस में दो गुट बने, कांग्रेस (ओ) यानि कांग्रेस ओरिजनल और कांग्रेस (आर)। ये दोनों गुट दोनों बैलों की जोड़ी के चुनाव चिंह पर अपना दावा जता रहे थे। मामला भारतीय चुनाव आयोग के पास पहुंचा तो उसने बैलों की जोड़ी का कांग्रेस का सिंबल कांग्रेस (ओ) को दिया। और इंदिरा के कब्जे वाली कांग्रेस के लिए गाय-बछड़ा का चुनाव चिन्ह मिला। इसके बाद1971 के आम चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस (आर) गाय - बछड़ा चुनाव चिन्ह के साथ लोकसभा चुनावों में उतरी और उसे 352 सीटें हासिल हुईं। वहीं कांग्रेस के दूसरे गुट को महज 16 सीटें मिलीं। इन नतीजों ने इंदिरा की कांग्रेस ने असली कांग्रेस का रूतबा दिया। इसके बाद इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगा दिया और 1977 का आम चुनाव आते-आते कांग्रेस की स्तिथि बदतर हो गई। 1977 के आम चुनाव में भी कांग्रेस का सिंबल गाय - बछड़ा ही था और इस चुनाव में इंदिरा गांधी को बुरी शिकस्त मिली। कांग्रेस में एक बड़े गुट को लगने लगा कि इंदिरा अब खत्म हो चुकी है, लिहाजा फिर कांग्रेस में फिर इंदिरा गांधी के खिलाफ विद्रोह की स्थिति बन आई। राजनैतिक हालात को भांपते हुए इंदिरा गाँधी ने जनवरी 1978 में कांग्रेस को फिर तोड़ते हुए नई पार्टी बनाई, जिसे कांग्रेस (आई) का नाम दिया। इंदिरा ने इसे असली कांग्रेस बताया। यानी कांग्रेस फिर दो हिस्सों में विभाजित हो गई। इस विभाजन के बाद इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग से नए चुनाव चिन्ह की मांग की। दरअसल तब गाय-बछड़े का चुनाव चिन्ह देशभर में कांग्रेस के लिए नकारात्मक चुनाव चिन्ह के रूप में पहचान बन गया था। विरोधी गाय को इंदिरा और बछड़े को संजय गांधी करार दे रहे थे माना जाता है कि इंदिरा खुद अब चुनाव चिंह से छुटकारा चाहती थीं। सो जब उन्होंने कांग्रेस को 1978 में तोड़ा तो चुनाव आयोग ने इस सिंबल को फ्रीज कर दिया। इसके बाद इंदिरा की कांग्रेस को हाथ का सिंबल मिला जो हिट साबित हुआ। 1980 के चुनाव में इंदिरा भारी बहुमत से चुनाव जीतकर फिर सत्ता में लौटीं। तब से अब तक कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ ही है। इंदिरा ने क्यों चुनाव हाथ का चुनाव चिन्ह कांग्रेस के वर्तमान चुनाव चिन्ह की कहानी भी दिलचस्प है। 1977 में देश से इमरजेंसी खत्म होने के बाद रायबरेली से इंदिरा गांधी चुनाव हार गई। इसके बाद इंदिरा कांचि कामकोटि के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से मिलने गईं। कहते है वह काफी देर तक शंकराचार्य से अपनी बात कहती रहीं। पर शंकराचार्य ने उनकी एक भी बात का जवाब नहीं दिया। अंततः इंदिरा ने विदा होने से पहले हाथ जोड़ कर जैसे ही अपना सिर उनके आगे झुकाया शंकराचार्य ने दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। बताते हैं कि गांधी ने तत्काल इसी हाथ (पंजा) को अपना चुनाव चिन्ह बनाने का फैसला कर लिया। इंदिरा और शंकराचार्य की इस मुलाकात के बारे में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन भास्करराव ने भी अपनी जीवनी में बहुत विस्तार से उल्लेख किया है। उनके अनुसार यह 1978 की बात है। उस समय आंध्र समेत चार राज्यों का चुनाव हो रहे थे। गांधी ने उस समय कांग्रेस-आई की स्थापना की थी और उन्हें चुनाव आयोग में अपना चुनाव चिन्ह बताना था। आंध्र के दौरे पर गई गांधी ने शंकराचार्य से मिलने की इच्छा जताई थी। शंकराचार्य उस समय मदनपल्लै में थे। गांधी भास्कर राव के साथ मदनपल्लै गई। उन्होंने शंकराचार्य से आशीर्वाद मांगा। साथ ही, पार्टी सिंबल के लिए सुझाव भी। शंकराचार्य ने दाहिना हाथ हिलाया। गांधी ने इसे उनका इशारा मान कांग्रेस के झंडे में पंजे को शामिल करने का निर्देश दे दिया। यही बाद में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बन गया। वहीं इसको लेकर एक कहानी और भी है। कहते है हार के बाद इंदिरा गाँधी भी उत्तर प्रदेश के देवरिया में देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। बाबा का आशीर्वाद देने का तरीका निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो जाता था। पर बाबा ने इंदिरा को हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया। कहते है ये बाबा का इशारा था जिसे इंदिरा समझ गई और वहां से लौटने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा ही तय किया। अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक का सिंबल था हाथ कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का सिंबल पहले चुनाव में अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक (रुईकर ग्रुप) के पास था। किन्तु उसके बाद से इसका इस्तेमाल किसी पार्टी ने नहीं किया था। इसी लिए ये सिंबल कांग्रेस को मिल पाया।
2017 के विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने सत्ता पर कब्जा कर लिया, मगर सत्ता की चाबी हमीरपुर से छिन गई, इसका दुख कई भाजपाईयाें काे अब तक भी है। पूर्व मुखमंत्री एयर पार्टी के सीएम फेस प्रेम कुमार धूमल भी हारेंगे ऐसा किसी ने भी साेचा नहीं था, लेकिन वाेटर्स ने कर दिखाया। यही नहीं, बल्कि पांच में से भाजपा काे मात्र दाे ही सीटाें से संतुष्ट हाेना पड़ा। धूमल हारे ताे मंडी की किस्मत चमक गई और सीएम का सिंहासन जयराम ठाकुर काे मिल गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में जिला हमीरपुर की सुजानपुर सीट से कांग्रेस के राजेंद्र राणा बनाम प्रेम कुमार का चुनावी घमासान संभवतः प्रदेश के सियासी इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला है। यानी यहां राजेंद्र राणा हीराे बन गए और वहां जयराम ठाकुर राज्य के मुखिया। तब धूमल की सीट बदलकर उन्हें सुजानपुर से क्यों मैदान में उतारा गया, इसे लेकर अब भी तरह -तरह की बातें होती है। उधर 2017 के चुनावी नतीजे पर गाैर करते हुए भाजपा और कांग्रेस दाेनाें ने भीतरखाते अभी से ही रणनीति तैयार कर दी है। ऐसे में देखना है कि 2022 के चुनाव में हमीरपुर और खासतौर से सुजानपुर की सियासत में कौन चमकता है। वर्तमान सरकार में जिला हमीरपुर से काेई मंत्री नहीं है। यहां से सिर्फ पूर्व विधायक विजय अग्निहाेत्री काे हिमाचल परिवहन निगम में उपाध्यक्ष की कुर्सी साैंपी गई है। पूर्व मंत्री स्व.आईडी धीमान के गृह क्षेत्र से पिछली बार उपचुनाव में उनके बेटे डा.अनिल धीमान काे जीत मिली थी ताे 2017 के चुनाव में यहां कमलेश कुमारी काे मैदान में उतारा गया और वह जीत भी गई। वहीं हमीरपुर सीट से नरेंद्र ठाकुर भाजपा के विधायक हैं। कभी दो महिला नेताओं की होती थी चर्चा, अब दोनों गायब जिला हमीरपुर से दाे दिग्गज महिला नेताओं का सियासी वजन बीते कुछ समय में हल्का हुआ है। महिला कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिता वर्मा और पूर्व विधायक उर्मिल ठाकुर प्रदेश की सक्रीय राजनीति से गायब हाेती नजर आ रही हैं। एक समय था जब हमीरपुर शहर में अनिता वर्मा और उर्मिल ठाकुर के आमने -सामने वाले मकान में कमल और हाथ चुनाव चिन्ह वाले झंडे दिखाई देते थे। दोनों के बीच जबरदस्त घमासान देखने को मिलता था, मगर इन दिनों ऐसा कुछ नहीं हैं। एक सुक्खू, जिन्हें कभी नहीं मिला सत्ता का सुख कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू की किस्मत में कभी भी सत्ता का सुख नहीं रहा। पिछली सरकार में पीसीसी चीफ की कमान संभाले हुए थे, 2017 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और सुक्खू जीत गए। ऐसा ही 2007 के चुनाव में हुआ। उस समय भी उन्हें विपक्ष में ही रहना पड़ा। पिछली बार पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और सुक्खू में तकरार आम बात रही। मीडिया में भी एक-दूसरे के खिलाफ दोनों की बयानबाजी सुर्ख़ियों में रही। ये हैं हमीरपुर जिले से माननीय -सुखविंद्र सिंह सुक्खू - नादाैन से कांग्रेस विधायक -इंद्रदत्त लखनपाल -बड़सर से कांग्रेस विधायक -राजेंद्र राणा -सुजानपुर से कांग्रेस विधायक -नरेंद्र ठाकुर -हमीरपुर से भाजपा विधायक -कमलेश कुमारी -भाेरंज से भाजपा विधायक
हिमाचल प्रदेश में सत्ता सुख उसी राजनैतिक दल का नसीब होता हैं जिसपर जिला कांगड़ा की कृपा बरसती हैं। इतिहास भी इस बात की तस्दीक करता हैं कि प्रदेश की सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर गुजरता हैं। जो कांगड़ा फ़तेह नहीं कर पाता उसे सत्ता हासिल नहीं होती। वर्ष 1985 से ये सिलसिला चला आ रहा हैं। 1985, 1993, 2003 और 2012 में कांग्रेस पर कांगड़ा का वोट रुपी प्यार बरसा तो सत्ता भी कांग्रेस को ही मिली। वहीं 1990, 1998, 2007 और 2017 में कांगड़ा में भाजपा इक्कीस रही और प्रदेश की सत्ता भी भाजपा को ही मिली। यानी 1985 से 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता में जिला कांगड़ा का तिलिस्म बरकरार रहा हैं। इससे पहले 1982 के चुनाव में भाजपा को 10 सीटें मिली थी लेकिन प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी थी। जिला कांगड़ा का सियासी मिजाज समझना बेहद मुश्किल हैं। कांगड़ा वालों ने मौका पड़ने पर किसी को नहीं बक्शा, चाहे मंत्री हो या मुख्यमंत्री। जो मन को नहीं भाया उसे कांगड़ा वालों ने घर बैठा दिया। अतीत पर नज़र डाले तो 1990 में जब भाजपा-जनता दल गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुआ तब शांता कुमार ने जिला कांगड़ा की दो सीटों से चुनाव लड़ा था, पालमपुर और सुलह। जनता मेहरबान थी शांता कुमार को दोनों ही सीटों पर विजय श्री मिली थी। पर 1993 का चुनाव आते -आते जनता का शांता सरकार से मोहभंग हो चूका था। नतीजन सुलह सीट से चुनाव लड़ने वाले शांता कुमार खुद चुनाव हार गए। वहीँ पिछले चुनाव में वीरभद्र कैबिनेट के दो दमदार मंत्री सुधीर शर्मा और जीएस बाली को भी हार का मुँह देखना पड़ा। वर्ष कुल सीट कांग्रेस भाजपा अन्य 1985 16 11 3 2 1990 16 1 12 3 ( जनता दल जिसका भाजपा के साथ गठबंधन था ) 1993 16 12 3 1 1998 16 5 10 1 2003 16 11 4 1 2007 16 5 9 2 2012 15 10 3 2 2017 15 3 11 1 2017 में मिले थे चार मंत्रिपद, अब तीन मंत्री 2017 के विधानसभा चुनाव में जिला कांगड़ा की 15 में से 11 सीटें भाजपा के खाते में आई थी। सरकार गठन के बाद जिला को चार कैबिनेट मंत्री पद मिले। विपिन सिंह परमार को स्वास्थ्य, किशन कपूर और खाद्य आपूर्ति, सरवीण चौधरी को शहरी विकास और विक्रम सिंह को उद्योग मंत्रालय मिला। यानी जयराम कैबिनेट में जिला कांगड़ा को दमदार महकमे मिले। इसके बाद 2019 में किशन कपूर सांसद बनकर लोकसभा चले गए। जबकि विपिन सिंह परमार से मंत्री पद लेकर उन्हें माननीय विधानसभा स्पीकर बना दिया गया। तदोपरांत 2020 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में सरवीण चौधरी से शहरी विकास जैसा महत्वपूर्ण महकमा लेकर उन्हें सामजिक न्याय मंत्रालय का ज़िम्मा दे दिया गया। वंही राकेश पठानिया की कैबिनेट में वन, युवा एवं खेल मंत्री के तौर पर एंट्री हुई। विक्रम सिंह ही एकमात्र ऐसे मंत्री है जो शुरू से जयराम कैबिनेट में बने हुए है और जिनका वजन भी बढ़ा है। मंत्रिमंडल विस्तार में उनके पोर्टफोलियो में परिवहन जैसा महत्वपूर्ण महकमा भी जोड़ दिया गया। वर्तमान में तीन मंत्रिपद और विधानसभा स्पीकर का पद कांगड़ा के हिस्से में है। सियासी माहिर मानते है की स्वास्थ्य और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय छीनने की टीस जरूर कही न कही कांगड़ा में मन में रह सकती है। मिशन 2022 में क्या ध्वाला के लिए जगह होगी ज्वालामुखी के विधायक रमेश चंद ध्वाला के ज़िक्र के बिना कांगड़ा में भाजपा का सियासी जोड़ भाग अधूरा है। कांगड़ा में भाजपा का बड़ा ओबीसी चेहरा माना जाने वाले ध्वाला को कैबिनेट रैंक तो मिली लेकिन पद नहीं। इतना ही नहीं पार्टी संगठन के साथ उनकी खींचतान भी जगजाहिर है। कई मौकों पर ध्वाला ने खुलकर अपनी ही सरकार काे घेरने से भी गुरेज नहीं किया। हालांकि अब तक ध्वाला सीएम के खिलाफ खुलकर बोलने से बचते दिखे है, पर उनके मन की टीस साफ दिखती है। 2022 आते-आते ध्वाला की ज्वाला और भड़कती है या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा। इसी तरह क्या भाजपा की 2022 योजना में उनके लिए स्थान है या नहीं, ये भी बड़ा सवाल है। कांग्रेस: एकजुट रहकर ही 2022 फ़तेह संभव कांगड़ा में कांग्रेस की बात करें तो हालहीं में हुए दो नगर निगमों के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है। पालमपुर में कांग्रेस को शानदार जीत मिली तो धर्मशाला में भी मामला ठीक ठाक रहा। अब फतेहपुर में उप चुनाव होना है जिसके लिए भी पार्टी तैयार दिख रही है। खासबात ये है कि पिछले चुनाव में धराशाई होने वाले कांग्रेसी दिग्गज भी अब वापस मुख्यधारा में दिख रहे है। पर पार्टी के दो बड़े नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई हमेशा ही पार्टी की परेशानी बढ़ाती रही है। इन दो ब्राह्मण नेताओं की खींचतान से न सिर्फ पार्टी का नुक्सान हुआ है बल्कि इन दिग्गजों की निजी साख भी धूमिल हुई है। ऐसे में 2022 फ़तेह करने के लिए जरूरी है कि पार्टी एकजुट रहे।
दयाल प्यारी को कांग्रेस पर प्यार क्या आया पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र में राजनैतिक हलचल तेज हो गई। दयाल प्यारी की कांग्रेस में एंट्री के साथ ही उनके 2022 में कांग्रेस उम्मीदवार होने के कयास भी लगने लगे हैं। दयाल प्यारी भी जमकर मैदान में डटी हैं, पर शायद कांग्रेस के एक गुट को उनका आना रास नहीं आ रहा। अभी मुख़ालफ़त भीतरखाते हैं पर चुनाव नजदीक आते-आते कांग्रेस की ये अंतर्कलह उजागर होने के पुरे आसार दिख रहे हैं। हालांकि एक तबका ऐसा भी हैं जो दयाल प्यारी की एंट्री को कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं मानता l पच्छाद में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर हार की हैट्रिक लगा चुके है। मुसाफिर के लगातार तीन बार हारने के बाद कोंग्रेसियों को भी पच्छाद में संभावनाएं नज़र आना बंद हो गई थी, मगर दयाल प्यारी के आते ही अब इस खेमे को पच्छाद में संभावनाएं भी दिखती है और उम्मीद का ऑक्सीजन भी मिल गया है। बहरहाल दयाल प्यारी के आने से पच्छाद कांग्रेस में खूब हलचल हैं। सिरमौर भाजपा के विभिन्न पदों पर रहीं पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष दयाल प्यारी ने अप्रैल में ही कांग्रेस का हाथ थामा है। दरअसल, सुरेश कश्यप के सांसद बनने के बाद 2019 में हुए पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव में भाजपा ने दयाल प्यारी को टिकट नहीं दिया था। अंत तक ये कयास लग रहे थे की भाजपा दयाल प्यारी को ही टिकट देगी। दयाल प्यारी और उनके समर्थक भी आश्वस्त थे, मगर अंत में टिकट मिला रीना कश्यप को। टिकट न मिलने पर दयाल प्यारी ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ा और 11,651 मत हासिल कर अपना सियासी वजन दिखा दिया। दयाल प्यारी तीसरे नंबर पर रही थी मगर यहां गौर फरमाने वाली बात तो ये है कि भाजपा में बगावत के बावजूद भी कांग्रेस के गंगू राम मुसाफिर को पच्छाद में जीत नहीं मिली थी। ऐसे में अब दयाल प्यारी के कांग्रेस में शामिल होने से पच्छाद कांग्रेस की राजनीति में उलटफेर संभावित हैं। निसंदेह दयाल प्यारी की ज़मीनी पकड़ मज़बूत है और उनके बेबाक अंदाज़ के चलते वे लोकप्रिय भी है। वहीं कांग्रेस यहाँ हार की हैट्रिक लगा चुकी हैं जिसके बाद पार्टी 2022 में दयाल प्यारी पर दांव खेल सकती हैं। प्रत्याशी का चुनाव होगा टेढ़ी खीर गंगू राम मुसाफिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है। भले ही वो पिछले तीन चुनाव हारे है मगर 1982 के बाद से 2007 तक गंगू राम मुसाफिर ने निरंतर 7 बार पच्छाद विधानसभा सीट से चुनाव जीते भी थे। 30 साल तक लगातार विधायक रहने के बाद 2012 में वर्तमान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने उन्हें हराया था। गंगू राम मुसाफिर तीन दशक तक पच्छाद के विधायक रहे है, निसंदेह क्षेत्र में अब भी उनका जनाधार बरकरार है। अब 2022 में मुसाफिर या दयाल प्यारी में से किसी एक को चुनना कांग्रेस के लिए किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं होने वाला। पहली बार 2012 में मिली भाजपा को जीत पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा को पहली बार 2012 में जीत मिली। तब सुरेश कश्यप ने यहाँ भाजपा को जीत दिलवाई थी। इसके बाद 2017 में सुरेश कश्यप लगातार दूसरी बार जीते। 2019 में सुरेश कश्यप लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए जिसके बाद पच्छाद में उपचुनाव हुआ। इस उप चुनाव में भाजपा ने रीना कश्यप को टिकट देकर सबको चौंका दिया, जबकि दयाल प्यारी और आशीष सिक्टा टिकट के प्रबल दावेदार थे। हालांकि उपचुनाव में भाजपा की रीना कश्यप को जीत मिली। अब सुरेश कश्यप सांसद होने के साथ-साथ प्रदेश भजपा अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में 2022 में पच्छाद सीट भाजपा को जितवाना उनके लिए भी प्रतिष्ठता का सवाल होगा।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने कहा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष से दिल्ली पुलिस की पूछताछ पर कांग्रेस की राजनीति शर्मनाक है। उन्होंने कहा दिल्ली पुलिस ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर चल रही जाँच में कोविड -19 दवाओं की अवैध खरीद और वितरण के आरोपों को लेकर 14 मई 2021 को युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बी से पूछताछ की। पुलिस पहले ही इस मामले में कुछ AAP और भाजपा नेताओं से पूछताछ कर चुकी है । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा सांसद गौतम गंभीर , भाजपा नेता हरीश खुराना , आप विधायक दिलीप पांडेय सहित कई लोगों से दिल्ली पुलिस अब तक पूछताछ कर चुकी है । कांग्रेस पार्टी ने यूथ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बी से पूछताछ पर नाराजगी जताई एवं कोविड-19 सहायता वितरित करने के लिए किसी की जाँच करने की उपयुक्तता पर सवाल उठाया । कांग्रेस का आरोप राजनीति से प्रेरित हैं क्योंकि ये पूछताछ दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर हो रहा है, कांग्रेस द्वारा पूछताछ पर लगाए गए आरोप एक तरह से अदालत के आदेश की अवमानना है। उन्होंने कहा दिल्ली पुलिस द्वारा पूछताछ दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार की जा रही है , जिसने उन्हें COVID - 19 दवाओं के कथित अवैध वितरण में राजनेताओं की संलिप्तता की जाँच करने के लिए कहा है । हृदुआ फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ . दीपक सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी , जिसमें कथित ' मेडिकल माफिया - राजनेता गठजोड़ ' और राजनेताओं द्वारा कोविड दवाओं के अवैध वितरण की सीबीआई जाँच की माँग की गई थी । याचिकाकर्ता ने गंभीर , श्रीनिवास , साथ ही भाजपा नेताओं सुजय विखे , गौतम गंभीर और शिरीष चौधरी , कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी वाड्रा और कांग्रेस विधायक मुकेश शर्मा , एनसीपी नेता शरद पवार और रोहित पवार का उल्लेख किया था । इसमें उनके द्वारा वितरित किए गए रेमडेसिविर का उदाहरण दिया गया था । उन्होंने कहा याचिका में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून , 1980 के अनुसार कोविड -19 दवाओं की कालाबाजारी में लिप्त होने और विधायकों और सांसदों को अयोग्य ठहराने के लिए ऐसे व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए भी अपील की गई थी । अदालत ने 4 मई को एफआईआर और सीबीआई जाँच की याचिका को खारिज कर दिया था , लेकिन दिल्ली पुलिस से इस मुद्दे की जाँच करने के लिए कहा था । अदालत ने पुलिस से कहा था कि राजनेताओं द्वारा कथित तौर पर सीधे रेमडेसिविर की खरीद और उन्हें कोविड -19 मरीजों को वितरित करने के मामलों पर ध्यान दें और यदि कोई अनियमितता मिलती है तो प्राथमिकी केस दर्ज करे । अदालत ने राज्य को एक सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और मामले को सुनवाई के लिए 17 मई को सूचीबद्ध किया ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को एक ऑनलाइन किसान इवेंट को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के कारण देशवासी जिस दर्द से गुज़र रहे हैं, उसे वे भी महसूस कर रहे हैं। देश में कोरोना का कहर लगातार जारी है और इस बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साढ़े नौ करोड़ से ज्यादा किसानों के खातों में 19,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि ट्रांसफर की। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को संबोधित किया और इसी मौके पर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हिम्मत रखने को भी कहा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना महामारी देश का एक अदृश्य दुश्मन है, जो बहरुपिया भी है, इससे हम सबको मिलकर लड़ना होगा। पीएम मोदी ने कहा कि भारत हार ना मानने वाला देश और मुझे पूरा यकीन है कि भारत इस महामारी का डटकर सामना करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना वायरस परीक्षा ले रहा है लेकिन हम हारेंगे नहीं। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस महामारी के दौरान देशवासी जिन तकलीफों से गुजर रहे हैं, मुझे उसका एहसास है। उन्होंने कहा कि सरकार सभी गतिरोधों को दूर करने में जुटी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बीते कुछ समय से जो कष्ट देशवासियो ने सहा है,अनेको लोग जिस दर्द से गुजरे है, तकलीफ से गुजरे है वो मैं भी उतना ही महसूस कर रहा हूं। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने जानकारी दी कि देश में ऑक्सीजन प्लांट लग रहे हैं और जल्द ही हालात पर काबू पा लिया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देशभर के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीकाकरण किया जा रहा है। इसलिए जब भी आपकी बारी आए तो टीका जरूर लगाएं। ये टीका हमें कोरोना के विरुद्ध सुरक्षा कवच देगा, गंभीर बीमारी की आशंका को कम करेगा। प्रधानमंत्री ने कहा, 'ऑक्सीजन रेल ने कोरोना के खिलाफ बहुत बड़ी ताकत दी है। देश के दूरदराज के हिस्सों में यह विशेष ट्रेनें ऑक्सीजन पहुंचाने में जुटी हैं। ऑक्सीजन टैंकर ले जाने वाले ड्राइवर बिना रुके काम कर रहे हैं।'प्रधानमंत्री ने कहा कि संकट के समय दवाइयां और जरूरी वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी में भी कुछ लोग अपने निहित स्वार्थ के कारण लगे हुए हैं। इसे मानवता के खिलाफ बताते हुए उन्होंने राज्य सरकारों से ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा।
कोरोना मैनेजमेंट पर मोदी सरकार को घेर रही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भाजपा ने जवाब दिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार को कहा कि आज के हालात में कांग्रेस की करनी से हैरान नहीं हूं, दुखी हूं। उन्होंने कहा कि एक ओर उनकी पार्टी के कुछ मेंबर्स लोगों की मदद करने का काम कर रहे हैं तो वहीं, दूसरी ओर उनके वरिष्ठ नेताओं की फैलाई नकारात्मकता से ये सराहनीय काम धूमिल हो रहा है। जेपी नड्डा ने कहा कि ये खत गहरी पीड़ा और दुख के साथ लिख रहा हूं। मैंने कभी ऐसा पत्र नहीं लिखा है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के मेंबर्स भ्रम फैला रहे हैं, उनके मुख्यमंत्री ऐसा कर रहे हैं उसके बाद मुझे यह खत लिखना पड़ा। जिस वक्त भारत कोरोना महामारी के साथ पूरी ताकत से लड़ रहा है, उस वक्त कांग्रेस की टॉप लीडरशिप को लोगों को गुमराह करना और झूठा डर फैलाना बंद कर देना चाहिए। गौरतलब है कि एक दिन पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी ने कहा था कि मोदी सरकार कोरोना काल में फेल हो गई। CWC में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया था।
प्रदेश की जयराम सरकार और भाजपा संगठन में जिला सिरमौर खूब चमक रहा है। मात्र पांच विधानसभा सीटाें वाले इस ज़िले में भाजपा ने 2017 में तीन सीटें ही जीती थी, पर सरकार और संगठन दोनों में सिरमौर का जलवा दिखा है। वर्तमान में जिला सिरमौर से एक मंत्री तो है ही, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद भी सिरमौर से है। 2017 के चुनाव में नाहन, पांवटा साहिब और पच्छाद सीट पर भाजपा की जीत हुई ताे नाहन विधायक डा. राजीव बिंदल काे विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी मिली। 2019 में डॉ राजीव बिंदल ने स्पीकर पद से इस्तीफा दिया और उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिल गई। पर पिछले साल यानी काेविड-19 के दाैरान स्वास्थ्य विभाग में घाेटाले के चलते डा. बिंदल काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। पर पार्टी ने उनका रिप्लेसमेंट भी सिरमौर से ही ढूंढा। सांसद सुरेश कश्यप काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ज़िम्मा मिल गया। सिरमौर काे तवज्जो मिलने का सिलसिला ज़ारी रहा और पिछले साल मंत्रिमंडल विस्तार में पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुखराम चाैधरी काे मंत्री की कुर्सी मिल गई। यहीं से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिला सिरमौर काे सरकार और संगठन में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। बिंदल चले गए ताे सुखराम चाैधरी की हुई एंट्री 2017 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लाैटी तो संभावनाएं जताई जा रही थी कि डा.बिंदल काे कैबिनेट में जगह मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्हें विधानसभा में स्पीकर की कुर्सी दे दी गई। फिर वे प्रदेश अध्यक्ष रहे। पर वक्त बदला और डॉ बिंदल न सरकार में है और न संगठन में, लेकिन सिरमौर काे जगह दिलाने में उनका काफी याेगदान रहा। दरअसल, माना जाता है कि संतुलन बनाये रखने के लिए ही सुखराम चाैधरी को कैबिनेट में एंट्री मिली। पहली बार सिरमौर से सांसद पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे सुरेश कश्यप काे भाजपा ने 2019 में लाेकसभा चुनाव के मैदान में उतारा और वे जीत भी गए। शिमला संसदीय क्षेत्र से पहली बार सिरमौर का कोई नेता सांसद बना। उसके बाद हुए उपचुनाव में संगठन ने एक युवा महिला नेता काे टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप काे पच्छाद उपचुपनाव में जीत मिली। क्या सिरमौर भी रखेगा 2022 में ख्याल बेशक भाजपा ने सरकार और संगठन में जिला सिरमौर का पूरा ख्याल रखा है पर सिरमौर भाजपा का कितना ख्याल रखेगा इसका पता 2022 में ही चलेगा। पच्छाद क्षेत्र से भाजपा की फायर ब्रांड नेता रही दयाल प्यारी अब कांग्रेस में शामिल हो चुकी है। यहाँ से कांग्रेस के लिए हार की हैट्रिक लगा चुके वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर की जगह पार्टी 2022 में दयाल प्यारी को मौका दे सकती है। वैसे भी पच्छाद में भाजपा की स्तिथि कमजोर हुई है, जिला परिषद् और स्थानीय निकाय के नतीजे भी इसकी तस्दीक करते है। कमोबेश ऐसा ही हाल मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पावंटा साहिब का है। यहाँ अभी से भीतरखाते मंत्री की मुख़ालफ़त का बंदोबस्त दिखने लगा है। नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन इसमें कोई शक-ओ-शुबह नहीं है कि मौजूदा स्तिथि में वे हाशिए पर ही है। रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्ज़ा है और 2022 में भी यहाँ जबरदस्त मुकाबला होना तय है।
2022 के विधानसभा चुनाव में राज्य सचिवालय का सबसे फेमस कमरा नंबर 202 क्या फिर एक मंत्री के सियासी अरमानों की बलि लेगा ? क्या जयराम सरकार में आईटी मिनिस्टर डा. रामलाल मारकंडेय अगले साल चुनाव जीत पाएंगे या फिर मनहूस कमरे का ग्रहण लगेगा? ये बड़े सवाल है और इस कमरे पर बवाल है। जनाब ये कमरा नम्बर 202 है ही ऐसा, सत्तालोभी नेता इसका नाम सुनते ही भागे भागे फिरते है। दरअसल, राज्य सचिवालय में मंत्रियाें काे हर दफे कमरे अलॉट होते हैं, जिसको जो मिला वो उसमे खुश, लेकिन यहां एक कमरा ऐसा भी है जिसमें बैठने के लिए कोई भी मंत्री तैयार नहीं होता। प्रदेश सचिवालय में सभी मंत्रियों के इन कमरों से ही प्रदेश सरकार का कामकाज कैबिनेट मंत्री संभालते हैं। इन कमरों में कमरा नंबर 202 वो कमरा है जिसमें बैठने वाला मंत्री चुनाव हारता है। ये हम नही पिछले चुनाव के नतीजे बताते है और हिमाचल के सियासी गलियारों में भी ये बात आम है। पिछले चुनाव के नतीजों पर गाैर करें ताे 2012 में जब वीरभद्र सरकार बनी तो ये कमरा शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा को मिला, और 2017 का चुनाव सुधीर शर्मा हार गए। सुधीर शर्मा इसी कमरे में बैठते थे। हालांकि उस वक्त सुधीर शर्मा बार-बार यही कहते थे कि ये सबकुछ अन्धविश्वास है, ऐसा कुछ नहीं हाेगा, मगर हुआ तो वो जो सोचा न था। इस कमरे में मंत्री बनने पर जगत प्रकाश नड्डा, आशा कुमारी और नरेंद्र बरागटा भी बैठे है और ये तीनों तत्कालीन मंत्री रहते हुए अगला चुनाव हार गए। हालांकि इसके बावजूद सियासत में इन नेताओं का दबदबा बना रहा। जगत प्रकाश नड्डा इस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जबकि आशा कुमारी एआईसीसी सचिव के साथ पंजाब कांग्रेस की प्रभारी हैं। नड्डा का केंद्र में दबदबा है और आशा कुमारी के पंजाब कांग्रेस के प्रभारी रहते हुए पार्टी को सत्ता मिली। गौरतलब है कि वर्ष 1998 से 2003 तक तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री एवं भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस कमरे में बैठे। नड्डा दाे बार राज्य सरकार में मंत्री रहने के अलावा प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं। हालांकि राज्य में स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद वे वर्ष 2003 में चुनाव हार गए थे। जीत हुई पर कैबिनेट में नहीं मिल पाई जगह 2012 के चुनाव में आशा कुमारी जीत कर विधानसभा पहुंची, लेकिन वीरभद्र सिंह के कैबिनेट में उन्हें जगह नहीं मिल पाई। इसी तरह से पूर्व बागवानी मंत्री नरेंद्र बरागटा 2017 का चुनाव जीत कर आए ताे जयराम सरकार में मंत्री पद नसीब नहीं हुआ। उन्हें चीफ व्हिप की कुर्सी दी गई, वह भी डेढ़ साल बाद। वर्ष 2002 के चुनाव में आशा कुमारी को भी शिक्षा मंत्री बनने के बाद यही कमरा मिला था, लेकिन वे 2007 में विधानसभा चुनाव हार गई थीं। जेपी नड्डा और आशा कुमारी के बाद यही कमरा नरेंद्र बरागटा को 2007 में बागवानी मंत्री बनने पर आबंटित हुआ और 2012 का विधानसभा चुनाव हार गए। उसके बाद सुधीर शर्मा को शहरी विकास मंत्री बनने पर ये कमरा मिला था, जो चुनाव हार गए हैं। अभी डा. रामलाल मारकंडा निपटा रहे हैं कामकाज प्रदेश की जयराम सरकार में आईटी मिनिस्टर डा. रामलाल मारकंडा कमरा नंबर 202 में बैठकर सरकार का कामकाज निपटा रहे हैं। अब देखना है की अगले साल हाेने वाले चुनाव में क्या डा. मारकंडा चुनाव जीत पाते हैं या फिर इतिहास बरकरार रहेगा?
'औरों के ख़यालात की लेते हैं तलाशी और अपने गरेबान में झाँका नहीं जाता', मुज़फ़्फ़र वारसी का ये शेर कांग्रेस के मौजूदा हालात पर बिलकुल सटीक बैठता है। बंगाल में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला पर पार्टी को ख़ुशी इस बात की है कि भाजपा 77 पर सिमित रह गई। देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी का मनोबल गिर चूका है और कांग्रेस की मानसिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो स्वयं की जीत के बनिस्पत भाजपा की हार में अपनी ख़ुशी तलाश रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व में न धार दिख रही है और न ही नई सोच, फिर भी परिवर्तन को पार्टी तैयार नहीं है। रही सही कसर चापलूसों की फ़ौज पूरा कर देती है। अशरफ़ मालवी ने कहा था कि 'हुकूमत से एजाज़ अगर चाहते हो, अंधेरा है लेकिन लिखो रोशनी है', कांग्रेस में भी ऐसा ही है। पार्टी में भविष्य देखना है तो अँधेरे को रोशनी कहना ही पड़ेगा। पर सवाल ये है कि ऐसा कब तक चलेगा। कब तक पार्टी हकीकत को अनदेखा करती रहेगी। ये सिर्फ कांग्रेस का आंतरिक मसला नहीं है, देश के लोकतंत्र के लिए भी एक मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है। निसंदेह कांग्रेस की जड़ गहरी है, हिली जरूर है पर अभी उखड़ी नहीं है। कांग्रेस को जरूरत है वक्त रहते आत्ममंथन की। कांग्रेस का एक बड़ा तबका मानता है कि संगठनात्मक तौर पर कांग्रेस को दोबारा खड़ा करने की सख्त आवश्यकता है। मौजूदा स्तिथि में एक ही रास्ता है की पार्टी में हर स्तर पर लोकतांत्रिक तरीक़े से संगठनात्मक चुनाव करवाकर नेतृत्व चुना जाए। राष्ट्रीय स्तर से बूथ स्तर तक संगठनात्मक चुनाव हो, राज्य स्तर पर भी पार्टी मजबूत हो और मुद्दा आधारित राजनीति के मार्ग पर पार्टी आगे बढ़े। कई बड़े नेता सार्वजानिक तौर पर इसकी वकालत कर चुके है। कई युवा नेता भी खुलकर लोकतांत्रिक तरीक़े से संगठनात्मक चुनाव करवाने के पक्ष में अपनी बात रखते रहे है। न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि प्रदेश में भी इसकी मांग उठती रही है। हालहीं में हिमाचल प्रदेश के युवा नेता और शिमला ग्रामीण विधायक विक्रमादित्य सिंह ने इस मसले पर अपनी राय रखी। विक्रमादित्य इससे पहले भी संगठनात्मक चुनाव करवाने के पक्ष में बोलते रहे है। कांग्रेस को कामराज प्लान की दरकार तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के एक नेता को लगा कि पार्टी कमज़ोर होती जा रही है और इसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक दिन वो देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिले और कहा कि वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते है। वो नेता थे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के कामराज। जब पंडित नेहरू ने कामराज से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा की कांग्रेस के सब बुजुर्ग नेताओं में सत्ता लोभ घर कर रहा है, उन्हें वापस संगठन में लौटना चाहिए और लोगों से मिलना जुलना चाहिए। भारतीय राजनीती के इतिहास में इस योजना को कामराज प्लान के नाम से जाना जाता है। इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और इनके अलावा लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एसके पाटिल जैसे नेताओं ने भी पद त्यागे थे। अगर आज की बात करे तो भले ही अब भी कुछ राज्य में कांग्रेस की सरकार है मगर कांग्रेस की कुव्वत अब पुरे देश में कुछ खास नहीं रही। अपना अस्तित्व ढूंढ़ती आज की कांग्रेस को कामराज जैसे नेताओ की ज़रूरत है जो सत्ता का लालच छोड़ कर पार्टी का संगठन मजबूत करने में अपना योगदान दें। वर्तमान परिवेश की बात करें तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंद्र सिंह और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ऐसे चेहरे है जो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का नेतृत्व करने का मादा रखते है। गहलोत तो 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी अपनी क्षमता का लोहा मनवा चुके है। वहीँ कई राज्यों में बेशक कांग्रेस सत्ता में नहीं है लेकिन सत्ता स्वपन ने ही नेताओं में रार डाली हुई है। ये बिखराव और अंतर्कलह ही पार्टी की बड़ी कमजोरी है। यदि ऐसे बुजुर्ग नेता युवाओं को आगे लाकर खुद पार्टी के संगठन में काम करते है तो निसंदेह पार्टी की काया पलट सकती है। देश में हाल : यूपी, बंगाल, बिहार में मुख्य विपक्षी दल भी नहीं है कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में तो अब कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल तक नहीं रही। दक्षिण में भी पार्टी की स्तिथि ठीक नहीं है। कांग्रेस का जमीनी स्तर पर संगठन या तो नदारद है, या कमजोर पड़ चुका है। हर स्तर पर आत्ममंथन की जरूरत है। हालहीं में केरल में कांग्रेस गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा, तमिलनाडु में गठबंधन की जीत पूरी तरह से डीएमके की ही जीत है। पुडुचेरी और आसाम भी पार्टी हारी है। पिछले वर्ष हुए बिहार चुनाव में तो कांग्रेस के साथ गठबंधन का खमियाजा आरजेडी को भुगतना पड़ा था। राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब में जरूर अब भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री है। महाराष्ट्र, झारखण्ड और तमिलनाडु में गठबंधन की सरकार है पर इनमें कांग्रेस की हैसियत कुछ ख़ास नहीं दिखती। मध्य प्रदेश में आपसी खींचतान से कांग्रेस सत्ता गवां चुकी है तो राजस्थान में बमुश्किल सत्ता बची है। इसी तरह कर्नाटक में भी गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। हिमाचल: लचर संगठन से पार्टी लाचार, वीरभद्र का अब भी विकल्प नहीं देश के मुकाबले हिमाचल में कांग्रेस की स्तिथि बेहतर दिखती है लेकिन 2022 में बगैर वीरभद्र सिंह अब भी कांग्रेस सरकार की कल्पना गले से नहीं उतरती। बढ़ती उम्र और खराब सेहत ने वीरभद्र सिंह को काफी सिमित कर दिया है, पर उनका विकल्प अब भी कांग्रेस के पास नहीं दिख रहा। बीते साढ़े तीन साल में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का दायरा सिमित ही दिखा हैं। कौल सिंह ठाकुर और सुधीर शर्मा जैसे कई वरिष्ठ नेता पिछला चुनाव हारने के बाद मानो किसी योजना के तहत हाशिए पर धकेल दिए गए है। कांग्रेस का प्रदेश संगठन लचर हैं। प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर तो मानो बंद कमरे से पत्रकार वार्ता करके ही अपनी सियासी गाड़ी धकेलना चाहते है। हालांकि नगर निगम चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन ने कुछ आस जरूर जगाई है पर विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टी को दमदार चेहरे और नेतृत्व की जरुरत है, जो फिलहाल नहीं दिखता। पांच साल की सत्ता परिवर्तन थ्योरी के आधार पर ही सत्ता में वापसी मुश्किल होगी।
शिमला: कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने कोरोना कर्फ्यू के बाद आज से प्रदेश में पूर्ण बंदी, जिसके तहत सार्वजनिक बसों की आवाजाही पर पूर्ण रोक कर दी गई है पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सरकार नींद में अपनी सुविधा अनुसार फैसले ले रही है। सरकार को लोगों की कोई चिंता नही है। सरकार के पास कोई स्पष्ट नीति न होने की वजह से आज प्रदेश में लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया है। इसका सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ रहा है जो दैनिक आधार पर दिहाड़ी या अन्य छोटा मोटा कामकाज कर अपनी रोजीरोटी कमाते है, व अपने परिवार का लालन पालन करते है। सरकार की ऐसे लोगों पर कोई भी दया दृष्टि नही हो रही है। राठौर ने कहा कि भाजपा सरकार पूरी तरह असंवेदनशील हो गई है। प्रदेश में बढ़ते कोरोना के मामलों से लोगों में भय फैलता जा रहा है। प्रदेश सामुदायिक संक्रमण की ओर बढ़ गया है। प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में इसके बढ़ते मामलों से लोगों में भय फैलना शुरू हो गया है। कोरोना संक्रमित लोगों को अस्पतालों में बेड तक नही मिल रहे है। ऑक्सीजन, रेगुलेटर, वेन्टीलेटर के अभाव में अस्पतालों में लोग परेशान है। राठौर ने कहा है कि सरकार ने किसी भी वर्ग को अबतक कोई भी राहत नही दी है। सरकारी स्तर पर कोई भी ऐसा राहत शिविर स्थापित नही किया है जिससे गरीब व जरुरत मंद लोगों को कोई सहायता मिल सकें। राठौर ने कहा है कि कांग्रेस ने सभी जिलों व ब्लॉकों में गांधी हेल्पलाइन, सहायता केंद्र स्थापित कर दिए है जो लोगों की किसी भी प्रकार की सेवा के प्रति समर्पित है। कांग्रेस के सभी नेता, कार्यकर्ता एकजुट होकर इस विपदा के समय लोगों की सहायता कर रहें है। राठौर ने भाजपा को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि न तो उनकी सरकार ने कोई अपना राहत केंद्र स्थापित किया है और न ही उनकी पार्टी भाजपा ने लोगों की सहत्यार्थ कोई हाथ बढ़ाया है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ने इस विपदा के समय अपने सभी राजनैतिक कार्यक्रम स्थागित कर जनसेवा का संकल्प लिया है जिसे वह तन,मन,धन से पूरा कर रही है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी के उस ट्यूट पर जिसमें उन्होंने मोदी सरकार के कोरोना वेक्सिनेशन को लेकर 35 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया था उसमें से अभी तक केवल 4,744 करोड़ खर्च कर पाने को मोदी सरकार की सबसे बड़ी नाकामी बताते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने कहा है कि सरकार ने आज देश में अपनी नाकामी से इस महामारी का गम्भीर संकट खड़ा कर दिया है।उन्होंने कहा है कि कोरोना को लेकर सरकार गम्भीर नही है और इसकी कथनी और करनी में दिन रात का अंतर साबित हो गया है। राठौर ने कहा है कि राहुल गांधी को इस समय देश की चिंता है और इसी चिंता के चलते वह सरकार को इस महामारी के प्रति सचेत करते रहें, पर मोदी सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नही दिया और आज देश विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है जहां हर रोज हजारों लोग इस महामारी की चपेट में आकर मौत का शिकार बन रहे है।आज देश मे ओक्ससीज की भारी कमी के साथ आवश्यक दवाओ की कालाबाजारी हो रही है। राठौर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश मे एक मई से 18 साल से ऊपर सभी को वेक्सिन उपलब्ध करवाने की घोषणा की थी,जो हवा हवाई साबित हुई है। हिमाचल में मुख्यमंत्री को अभी पता ही नही है कि यह कब शुरू होगी,क्योंकि प्रदेश के अस्पतालों में पर्याप्त वेक्सिन ही उपलब्ध नही है। राठौर ने कहा कि राहुल गांधी ने वेक्सिन की कमी बारे सचेत करते हुए सरकार को इसे तुरंत विदेशों से मंगवाने की बात कही थी पर उस समय भी नजर अंदाज कर दिया गया,परिणामस्वरूप आज देश मे वेक्सिन की कमी हो गई है।उन्होंने कहा कि सरकार वेक्सिनेशन के नाम पर देश को गुमराह करने का पूरा प्रयास कर रही है।उन्होंने कहा कि सरकार कोरोना से लोगों की रक्षा करने में पूरी तरह विफल हो गई है और अपनी विफलता छुपाने के लिए वह लोगों की जान से खेल रही है।
सुजानपुर ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन ज्योति प्रकाश व जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष लेखराज ठाकुर ने सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा व प्रदेश कांग्रेस मीडिया के चेयरमैन अभिषेक राणा के खिलाफ बयान बाजी करने वाले भाजपा नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि ऐसे नेताओं को पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए और फिर टीका टिप्पणी करनी चाहिए। आज यहां जारी एक बयान में इन दोनों नेताओं ने कहा कि बयानबाजी करने वाले भाजपाइयों की असलियत सुजानपुर हलके की जनता से छुपी हुई नहीं है और सुजानपुर की जनता यह भली-भांति जानती है कि सेना में भर्ती करवाने के नाम पर गरीब लोगों के साथ कौन लूट घसीट कर रहा है और अपने रेस्टोरेंट में अवैध तरीके से शराब परोसने का कारोबार कौन लोग राजनीतिक संरक्षण में कर रहे हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि अगर विधायक राजेंद्र राणा और अभिषेक राणा मोदी शासन में देश भर में ऑक्सीजन सिलेंडर व अस्पतालों में बेड की कमी से निरंतर हो रही मौतों को लेकर आम आदमी की पीड़ा जाहिर कर रहे हैं तो भाजपाइयों के पेट में मरोड़ किस लिए उठ रहे हैं। इन नेताओं ने कहा कि कि अगर देश की अर्थव्यवस्था पताल में चली जाने, बेरोजगारी से युवाओं में हाहाकार मचने और कमरतोड़ महंगाई की चक्की में आम आदमी के पिसने की पीड़ा को अगर राजेंद्र राणा व अभिषेक राणा आवाज दे रहे हैं तो भाजपाइयों को सांप क्यों सूंघ रहा है। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि क्या भाजपा नेता चाहते हैं कि मोदी सरकार की तरह विपक्ष के लोग भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध लें और देश में मची त्राहि-त्राहि पर अपनी आवाज ना उठाएं। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि राजेंद्र राणा का सामाजिक कार्यों में क्या योगदान है और किस तरह वह दिन रात अपने इलाके की जनता के सुख दुख में शामिल रहते हैं, इस बात को सुजानपुर की जनता ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की जनता जानती है। उन्होंने कहा कि राजेंद्र राणा परिवार ने अपना जीवन गरीबों को समर्पित कर रखा है लेकिन दूसरी तरफ भाजपा के लोग सिर्फ भाषण बाजी और जुमलेबाजी में ही यकीन रखते हैं। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि जिन भाजपाइयों ने अखबारों में राजेंद्र राणा के खिलाफ टीका टिप्पणी की है, उनकी असलियत और किरदार इलाके की जनता भलीभांति जानती है। ऐसे लोग बयानबाजी करके जनता के बीच हंसी का पात्र बन रहे हैं।
युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव अखिल अग्रिहोत्री ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार से धरना प्रदर्शन किया है, यह कोरोना काल में नियमों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि जब शादी भी अनुमति के साथ हो रही है, तो यह बताया जाना चाहिए कि किस प्रशासन ने भाजपा को धरने प्रदर्शन करने की इजाजत दी। उन्होंने कहा कि क्या यह भाजपा के कार्यकर्ता कोरोना फ्री हैं? या सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है ? उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में सरकार बनी है। निश्चित रूप से किसी भी प्रकार से हिंसा नहीं होनी चाहिए। सब को न्याय भी मिलना चाहिए, लेकिन भाजपा मौतों पर भी राजनीति कर रही है, इससे साफ जाहिर होता है कि कहीं ना कहीं षड्यंत्र में भाजपा शामिल है। अखिल ने अरोप लगाते हुए कहा कि जनता ने भाजपा को सत्ता से दूर रखा है, तो भाजपा ने मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए हिंसा का सहारा लिया है। उन्होंने पश्चिम बंगाल ही हिंसा को भी भाजपा प्रायोजित करार देते हुए कहा कि भाजपा को इतने तामझाम के बाद बंगाल में मिली हार बर्दाश्त नहीं हो रही हैं। उन्होंने कहा कि जिला ऊना में जिस प्रकार से भाजपा कार्यकर्ता बिना परमिशन के धरने दे रहे है, ऐसे में जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाते हुए कार्रवाई करनी चाहिए
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य प्रदेश मामलों के प्रभारी राजीव शुक्ला ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर से विचार विमर्श के बाद मंडी लोक सभा व फतेहपुर विधानसभा उप चुनाव के लिए पार्टी पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए है। कांग्रेस महासचिव रजनीश किमटा ने बताया कि मंडी लोकसभा उप चुनाव के लिए प्रतिपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री, पूर्व मंत्री विधायक श्रीमती आशा कुमारी, विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू,प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष गंगू राम मुसाफिर को पार्टी पर्यवेक्षक बनाया गया है। इसी तरह फतेहपुर विधानसभा उप चुनाव के लिए पूर्व मंत्री जी.एस. बाली,प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष चंद्र कुमार व विधायक राजेंद्र राणा को पार्टी पर्यवेक्षक बनाया गया है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने वर्चुअल माध्यम से मंडी जिले के सुंदरनगर में 12 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित मातृ एवं शिशु अस्पताल का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने शिमला से सुंदरनगर के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि इस अस्पताल को वर्तमान राष्ट्रीय भाजपा अध्यक्ष और तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने वर्ष 2017 में राज्य के लिए स्वीकृत किया था और पिछले तीन वर्षो के दौरान इस परियोजना के कार्य में तेज़ी लाने के उपरान्त आज जनता को समर्पित किया गया है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण राज्य सरकार इस अस्पताल को वर्चुअल माध्यम से लोगों को समर्पित करने के लिए मजबूर हुई। इस अस्पताल का उपयोग समर्पित कोविड-19 अस्पताल के रूप में किया जाएगा और यह जिले के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करेगा। नेरचैक मेडिकल कालेज को कोविड-19 अस्पताल के रूप में समर्पित किया गया है और अतिरिक्त 100 बिस्तरों की क्षमता वाले प्री-फैब्रिकेटिड अस्पताल का कार्य भी कुछ दिनों में पूरा हो जाएगा। नागरिक अस्पताल सुंदरनगर को 150 बिस्तर वाले अस्पताल में स्तरोन्नत किया गया है और यह क्षेत्र के लोगों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान कर रहा है। राज्य सरकार अस्पताल में लिफ्ट और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अतिरिक्त धन उपलब्ध करवाएगी। उन्होंने कहा कि कोविड-19 मामलों की संख्या में वृद्धि चिंता का विषय है। राज्य सरकार ने प्रदेश में आने वाले लोगों से 72 घंटे पहले किए गए आरटीपीसीआर परीक्षण की रिपोर्ट अनिवार्य रूप से साथ लाने और उन्हें चौदह दिनों की अवधि के लिए अपने निवास स्थान पर होम आईसोलेशन में रहने का आग्रह किया है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में सभी मानक संचालन प्रक्रियाओं और दिशा-निर्देशों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने और उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई आरंभ करने का आग्रह किया ताकि इस महामारी को फैलने से रोका जा सके।
हिमाचल की कर्मचारी राजनीति के कई दिग्गज असली सियासी पटल पर भी अपनी किस्मत आजमाते रहे है। कुछ सफल हुए कुछ नहीं। जल्द मंडी संसदीय क्षेत्र का उप चुनाव होना हैं, और इस चुनाव में हिमाचल की कर्मचारी राजनीति के एक धुरंधर के भी चुनावी समर में उतरने के कयास हैं। माना जा रहा है कि कर्मचारी नेता एनआर ठाकुर भाजपा से टिकट के चाहवान है। हालांकि खुद एनआर ठाकुर खुलकर इस मसले पर नहीं बोल रहे पर उनके समर्थक सोशल मीडिया पर उन्हें टिकट देने की खूब पैरवी कर रहे है। स्वास्थ्य शिक्षक और अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष एनआर ठाकुर पिछले 30 सालों से कर्मचारी राजनीति में है। उन्होंने कर्मचारी राजनीति में रहते हुए 18 चुनाव लड़े है और अपना वर्चस्व कायम रखने में हमेशा कामयाब रहे। एन आर ठाकुर अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के तीनों बड़े पदों पर रहे है, पहले साल 2000 में चुनाव जीतकर वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनें, उसके बाद महामंत्री और फिर प्रदेश अध्यक्ष। 13 अन्य संस्थाओं से भी जुड़े हैं और कर्मचारियों में खासी पकड़ रखते है। ठाकुर संघ की पृष्ठ्भूमि से भी है। यानी ठाकुर का बायोडाटा तो ठीक-ठाक है, लेकिन बायोडाटा के साथ-साथ राजनीति में आलाकमान के आशीर्वाद की भी जरूरत होती है। अब ठाकुर को आशीर्वाद मिलता है या नहीं ये देखना दिलचस्प होगा। क्या तीसरी दफा जोखिम लेगी भाजपा ? नगर निगम चुनाव में लगे झटके के बाद भाजपा के लिए मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव बेहद ख़ास है, या यूं कहे की साख का सवाल है। नगर निगम चुनाव में भाजपा सिर्फ मंडी में ही अच्छा परफॉर्म कर पाई थी। अब उपचुनाव है, यदि मंडी में पार्टी ठंडी पड़ गई तो सरकार और संगठन पर तो सवाल उठेंगे ही भाजपा के भीतर भी सियासी बवंडर तय है। इतिहास पर नज़र डाले तो मंडी संसदीय क्षेत्र में इससे पहले भाजपा दो कर्मचारी नेताओं को टिकट दे चुकी है, 1984 में व 1996 में और दोनों ही मर्तबा भाजपा को शिकस्त मिली। ऐसे में बड़ा सवाल ये ही है कि क्या पार्टी तीसरी दफा जोखिम लेगी ? मधुकर और अदन सिंह ठाकुर लड़ चुके है मंडी से चुनाव मंडी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो प्रदेश कर्मचारी महासंघ में अध्यक्ष के पद पर रह चुके फायर ब्रांड कर्मचारी नेता मधुकर और ठाकुर अदन सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा था। इन दोनों ने हिमाचल की राजनीति के चाणक्य पंडित सुखराम के खिलाफ चुनाव लड़ा। हालांकि दोनों को ही चुनावों में सफलता नहीं मिली थी, लेकिन संसदीय क्षेत्र के चुनाव में कर्मचारी नेताओं ने दिग्गज नेता को टक्कर दी थी। मधुकर ने 1984 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, तो वहीं अदन सिंह ठाकुर ने 1996 में भाजपा के ही टिकट पर चुनाव लड़ा था। विस चुनाव में भी रही है कर्मचारी नेताओं की धाक -रणजीत सिंह ठाकुर और चौधरी विद्यासागर रहे हैं मंत्री ऐसा नहीं है कर्मचारी नेताओं पर खेला गया हर दांव उल्टा पड़ा हो ,लोकसभा न सही पर विधानसभा चुनाव में कर्मचारी नेताओं ने खुद को साबित किया है। राज्य की कर्मचारी राजनीति में सक्रिय रहे ठाकुर रणजीत सिंह 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर बमसन से चुनाव लड़े और तत्कालीन मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए । वहीं कर्मचारी नेता चौधरी विद्यासागर कांगड़ा जिले के कांगड़ा निर्वाचन हलके से भाजपा टिकट पर चार बार चुनाव जीते और प्रदेश कैबिनेट का हिस्सा बने । चौधरी विद्या सागर 1982, 1985,1990 और 1998 में चुनाव जीते हैं । अर्की के पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा भी कर्मचारी राजनीति सक्रिय रह चुके हैं। वह महासंघ में संयुक्त सचिव भी रहे हैं। वर्तमान में खादी बोर्ड के उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम गुलेरिया भी कर्मचारी नेता रहे है। हालांकि गुलेरिया चुनावी राजनीति से अब तक दूर है। ये नाम भी चर्चा में मंडी उप चुनाव में भाजपा टिकट के लिए महेश्वर सिंह का नाम भी चर्चा में है। महेश्वर सिंह 1989 , 1998 और 1999 में मंडी से सांसद रह चुके है। महेश्वर सिंह के अतिरक्त अभिनेत्री कंगना रनौत के नाम के भी चर्चे आम है। कंगना खुद सोशल मीडिया पर हिमाचल से चुनाव न लड़ने की बात कह चुकी है। इसी तरह जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह की बेटी वंदना गुलेरिया और पूर्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर का नाम भी सुर्ख़ियों में है। ऐसे में भाजपा किसी पुराने चेहरे पर भरोसा जताती है या किसी नए चेहरे पर दांव खेलती है, इस पर सबकी नज़र है।
- अनुशासन है नहीं, पर सपना है 2022 में शासन पाने का 2022 में सोलन निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा का चेहरा कौन होगा ये तो समय के गर्भ में छीपा है, किन्तु सोलन भाजपा में अभी से जड़ खुदाई शुरू हो गई है। नगर निगम में हार का ठीकरा दोनों गुट एक दूसरे पर फोड़ रहे है, बड़े नेता बेशक चुप है, लेकिन कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर भड़ास निकाल रहे है। अनुशासन है नहीं, पर सपना है 2022 में शासन पाने का। बदलते समीकरणों के बीच चेहरे की जंग अभी से प्रखर होती दिख रही है। किस ओर जा रही है सोलन भाजपा की सियासत, क्या बन सकते है समीकरण ये जानने - समझने के लिए बात 2017 के चुनाव से शुरू करनी होगी। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सोलन निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा टिकट के लिए सिर्फ दो नाम चर्चा में थे, एक कुमारी शीला और दूसरा तरसेम भारती। थोड़ी बहुत कोशिश हीरानंद कश्यप भी करते रहे पर वो कभी रेस में दिखे नहीं। पर चुनाव से ठीक पहले डॉ राजेश कश्यप पैराशूट से आए और टिकट ले गए। कहते है टिकट दिलाने वाले थे डॉ राजीव बिंदल। इस टिकट ने तरसेम भारती और कुमारी शीला के अरमान कुचल दिए थे। रोचक बात ये है कि बिंदल के चहेते भी तब शीला के साथ खड़े दिखे थे, मंशा दिलासा देना था या बहलाना, इसे लेकर सबका अपना -अपना विश्लेषण है। खैर डॉ राजेश कश्यप चुनाव हार गए, पर कहते है चुनाव में बिंदल के कुछ ख़ास लोगों ने उनके पक्ष में काम नहीं किया। सो तभी से बिंदल गुट और उनके बीच एक खाई बन गई। आहिस्ता-आहिस्ता कश्यप सोफत गुट के नजदीकी हो गए। वहीं महेंद्र नाथ सोफत जिनका डॉ राजीव बिंदल के साथ मनभेद जगजाहिर है। 2017 से अब तक 40 माह में डॉ राजीव बिंदल का सियासी सफर किसी रोलर कोस्टर के सफर जैसा रहा है। सो जब - जब बिंदल अर्श पर सोलन में उनकी टीम भी फ्रंट फुट पर और जैसे ही बिंदल फर्श पर उनकी टीम भी हाशिए पर। इस सब के बीच डॉ राजेश कश्यप जमे रहे और भाजपा के प्राइम फेस बने भी रहे। नगर निगम चुनाव में भी बेशक प्रभारी डॉ राजीव बिंदल थे लेकिन जो भाजपाई जीते है उनमे से अधिकांश डॉ राजेश कश्यप के करीबी माने जाते है। अब जो बात निकल कर आ रही है वो आने वाले समय में सोलन भाजपा की सियासत को नई दिशा दे सकती है। दरअसल कुछ लोगों को अब तरसेम भारती के चेहरे में भाजपा का ग्लो दिख रहा है और इनमें वो लोग भी शामिल है जिन्हें 2017 तक तरसेम भारती फूटी आंख नहीं सुहाते थे। यानी वक्त, परिस्थिति और मौके के हिसाब से अब एक नया गठबंधन आकार ले सकता है ताकि डॉ राजेश कश्यप को साधा जा सके। अब ये गठबंधन जन्म लेता है या इसकी भ्रूण हत्या हो जाती है ये देखना रोचक होगा। शीला जीत जाती तो और बात होती जिला परिषद् चुनाव में सलोगड़ा वार्ड से कुमारी शीला भाजपा उम्मीदवार थी। लगातार तीन चुनाव जीत चुकी कुमारी शीला जीत का चौका लगाने का दावा कर रही थी, लेकिन जनता का आशीर्वाद उन्हें नहीं मिला। ये हार कुमारी शीला के लिए बड़ा झटका है। शायद यही कारण है कि डॉ राजेश के विरोधी अब कुमारी शीला की जगह तरसेम भारती में संभावना तलाश रहे है। निसंदेह, शीला अगर जीत जाती तो शायद 2022 में कुछ और बात होती। बहरहाल शीला अब भी डटी है और 2022 में ऊंट किस करवट बैठता है ये देखना रोचक होगा। नगर निगम में नहीं चला तरसेम का जादू नगर निगम चुनाव में तरसेम भारती ने वार्ड 7 में जमकर प्रचार किया। तरसेम भारती के करीबी बादल नाहर की पत्नी सोना नाहर वहां से चुनाव लड़ रही थी। पर इस पुरे चुनाव में भाजपा कभी भी मजबूत नहीं दिखी। तरसेम भारती का प्रचार यहां पूरी तरह बेअसर दिखा। कांग्रेस ने बागी के मैदान में होने के बावजूद यहां शानदार जीत दर्ज की। यानी तरसेम की पोलिटिकल मैनेजमेंट का जनाजा हालही में हुए सोलन नगर निगम चुनाव में निकल चूका है। पर हर दिन की तरह हर चुनाव भी नया होता है। बिंदल के खासमखास भी हारे चुनाव जानकार मानते है कि भाजपा बेशक नगर निगम हार गई लेकिन डॉ राजेश कश्यप ने इस हार के बावजूद ज्यादा नहीं खोया। दरअसल भाजपा ने डॉ राजीव बिंदल को प्रभारी बनाया था और यदि बिंदल का जादू चल जाता तो जाहिर है 2022 के टिकट वितरण में भी उनकी दखल ज्यादा होती। पर नगर निगम जीतना तो दूर बिंदल के कई खासमखास चुनाव में बुरी तरह हारे। इस हार का ठीकरा भी विरोधी बिंदल के सर ही फोड़ रहे है। 2022 में फिर पैराशूट लैंड हुआ तो 2012 से 2017 तक कई नेता टिकट के लिए जमीनी काम करते रहे। पर भाजपा आलाकमान ने इन सबके अरमान कुचल दिए और पैराशूट कैंडिडेट उतार दिया। 2022 में टिकट को लेकर भी तमाम दावेदारों में मन में ये भय जरूर होगा। न जाने ऐन मौके पर किसकी एंट्री हो जाए।
- 2017 में दो बार के विधायक का टिकट काटा, फिर अनदेखी भी हुई - ठगा सा महसूस कर रहा है भाजपा का पुराना कार्यकर्ता अर्की निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा का हाल फिलहाल ठीक नहीं दिख रहा है। दो नेताओं के बीच बढ़ती खींचतान और वर्चस्व की लड़ाई में पार्टी फंसी हुई है। क्षेत्र में नेतृत्व और चेहरे को लेकर लगातार सवाल उठ रहे है। दरअसल, 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो बार विधायक रहे गोविन्द राम शर्मा का टिकट काट कर रतन सिंह पाल को टिकट दिया था। इसके बाद से ही अर्की भाजपा में विभाजन स्पष्ट देखा जा सकता है। खेर 2017 में सरकार बनी तो उम्मीद थी कि गोविन्द राम को पार्टी कोई महत्वपूर्ण पद या ज़िम्मेदारी देगी, पर ऐसा भी हुआ नहीं। इसका असर अर्की भाजपा के बड़े खेमे में दिखता है। गोविन्द राम से जुड़ा पुराना कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस करता है। उधर, गोविन्द राम अब तेवर बदल चुके है। वे 2022 के लिए अभी से खुलकर अपना दावा ठोक रहे है। उनके साथ भाजपा का एक बड़ा गुट दिख रहा है और जैसे - जैसे 2022 नजदीक आ रहा है उनके समर्थकों का कुनबा भी बढ़ता दिख रहा है। वैसे भी 2017 से ही भाजपा के लिए अर्की में कुछ ख़ास अच्छा नहीं हुआ है। हालहीं में हुए नगर पंचायत चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। बीडीसी पर भी कांग्रेस का कब्ज़ा रहा। वहीं जिला परिषद् में भी टिकट वितरण को लेकर सवाल उठे। जिला परिषद् के डुमैहर कुनिहार वार्ड से पार्टी के बागियों ने जीत दर्ज की। बहरहाल, रतन सिंह पाल बेशक फ्रंट फेस बने हुए है पर गोविन्द राम की पकड़ पर कोई संशय नहीं है। अर्की में दो बार कमल खिला चुके है गोविंद राम कांग्रेस के गढ़ रहे अर्की में लम्बे समय बाद 2007 में गोविन्द राम शर्मा ने कमल खिलाया था। 2012 में शर्मा लगातार दूसरी बार जीते। बावजूद इसके 2017 में उनका टिकट काट दिया गया। हालांकि जानकार मानते है कि 2017 में शर्मा भाग्यशाली रहे क्योंकि अर्की से कांग्रेस टिकट पर खुद वीरभद्र सिंह ने चुनाव लड़ा था। अब तक खरे नहीं उतरे पाल अर्की नगर पंचायत में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी। जिला परिषद् चुनाव में पार्टी ने अमर सिंह ठाकुर और आशा परिहार का टिकट काटा था जो भारी भूल साबित हुआ। आखिरकार ये दो चेहरे ही अध्यक्ष पद पर पार्टी का कब्ज़ा करवाने में निर्णायक सिद्ध हुए। माना जाता है कि अर्की भाजपा में फिलवक्त रतन सिंह पाल की खूब चल रही है, पर चुनावी समर में पाल अब तक कुछ कमाल नहीं कर सके है। सोलन नगर निगम चुनाव में भी रतन सिंह पाल को वार्ड 17 का प्रभारी बनाया गया था। प्रत्याशी चयन में भी उनकी राय को तवज्जो दी गई पर वार्ड 17 में भाजपा तीसरे स्थान पर रही। मैं आश्वस्त, 2022 में मुझे मिलेगा टिकट: गोविन्द राम गोविन्द राम शर्मा 2022 के लिए अभी से हुंकार भर चुके है। शर्मा आश्वस्त है कि पार्टी उन्हें टिकट देगी और वे चुनाव जीतेंगे भी। निसंदेह उन्हें दरकिनार करना भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला। शर्मा कहते है 2017 में उन्होंने टिकट भी छोड़ा और पूरी शिद्दत से पार्टी के लिए काम करते आ रहे है। अब पार्टी के आशीर्वाद से 2022 में वे ही कमल खिलाएंगे।
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में सेक्रेटरी, पूर्व में वीरभद्र की टीम में मिनिस्टर और हमेशा हंसते-हंसते राजनीति करने वाले कांग्रेस नेता ने अगले साल हाेने वाले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए चाराें तरफ सियासी फील्ड सजा दी है। प्रदेश की जयराम सरकार के कार्यकाल काे माेदी की कठपुतली बताते हुए अपने दम पर निर्णय लेने में नाकाम सीएम करार देने वाले सुधीर नगर निगम चुनाव में हार काे हार नहीं मान रहे। जनता के बीच, जनता के लिए और जनता द्वारा उठाई गई आवाज काे बुलंद करने में सुधीर काेई कमी नहीं छोड़ रहे। पूर्व की वीरभद्र सरकार में शहरी विकास मंत्री के पद पर रहते धर्मशाला काे नगर निगम और स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलवाने में सुधीर शर्मा का ही हाथ रहा। कई मुद्दों पर अपने विचार पूर्व मंत्री ने फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया से सांझा किये। पेश है बातचीत के मुख्य अंश ... जयराम सरकार के अब तक के कार्यकाल काे सुधीर शर्मा ने विक्रम के कंधाे पर कई बेताल करार दिया है। वे कहते है जयराम सरकार अपनों की मारी है और सरकार की मति भ्रमित हो चुकी है। उनका दावा है कि अगले साल हाेने वाले चुनाव में भाजपा काे जनता बाहर का रास्ता दिखा देगी और कांग्रेस सत्ता में आएगी। सुधीर शर्मा कहते हैं कि हिमाचल में जाे विकास कांग्रेस ने किया उसमें भाजपा रंगराेगन कर रही है। जयराम सरकार साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है, लेकिन आज तक एक भी निर्णय अपने दम पर नहीं लिया। मिशन -2022 यानी अगले साल हाेने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पूर्व मंत्री कहते है, कांग्रेस भी तैयार है, वे भी तैयार है और जनता भी जयराम सरकार को विदा करने को तैयार है। सुधीर का कहना है कि जयराम सरकार निर्णय लेने में नाकाम सरकार है, प्रदेश को कर्ज में डुबोने वाली सरकार है और जन विरोधी सरकार है। प्रदेश का हर वर्ग सरकार से खफा है, चाहे व्यापारी हो या कर्मचारी। कर्मचारी वर्ग पर बात आगे बढ़ाते हुए सुधीर कहते है कि "कर्मचारियों को याद है कि भाजपा ने विपक्ष में क्या -क्या वादे किए थे, झूठे प्रलोभन दिए थे और आज वही भाजपाई सरकार कर्मचारियों के विरुद्ध तुगलकी फरमान ज़ारी कर रही है। इस सरकार का काउंट डाउन शुरू हो चुका है। "सुधीर का कहना है कि काेविड काल में भी सीएम जयराम ठाकुर पिछले साल से लेकर अब तक पीएम माेदी के निर्णय काे ही फाॅलाे कर रहे हैं। उनका कहना है कि " सरकार को चाहिए कि वे समझे हिमाचल की क्या स्थिति है और उसके अनुरूप फैसले ले। देखा देखी में निर्णय लेकर जनता को परेशान करने से कुछ नहीं होगा। " कोरोना की बिगड़ती स्थिति पर उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए आम जनता से अपील की है कि " खुद ही बच सकते हो तो बचो, हालात है डराने वाले, तमाशबीन बन गए है सभी हुकूमत चलाने वाले ..." 2017 के बाद क्याें उलटी बह रही विकास की गंगा ? सुधीर शर्मा ने कहा कि ठीक चुनाव से पहले ऐसा क्या हो गया जो धर्मशाला पर भाजपा सरकार इतनी मेहरबान हो रही है? धर्मशाला स्मार्ट सिटी और धर्मशाला नगर निगम कांग्रेस सरकार की देन हैं। 2017 के बाद धर्मशाला में विकास की गंगा क्यों उलटी बहने लगी? भाजपा के एक कैबिनेट मंत्री भी यहीं से थे तब ये सौग़ात और घोषणाओं का पिटारा कहां गुम हो गया था, भाजपा सरकार का तो हाल ‘थोथा चना बाजे घना’ जैसा है, नगर निगम चुनावों से पहले धर्मशाला पर इस तरह प्यार बरसाने का कारण जनता समझती है। सुधीर शर्मा की माने ताे धर्मशाला विधानसभा और नगर निगम में जो भी विकास कार्य हुए हैं या चल रहे हैं वो कांग्रेस सरकार की देन हैं। धर्मशाला विधानसभा के लिए भाजपा सरकार का रवैया शुरू से ही उदासीन रहा है। सरकार बनने के तीन बरस पूरे हो जाने पर भी हिमाचल सरकार ने कभी धर्मशाला के विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया। उल्टे जो विकास कार्य चल रहे थे वो भी अधर में झूल रहें हैं, जो विकास की लहर कांग्रेस ने 2012 से 2017 के बीच में क्षेत्र के लिए लाई उसका ही परिणाम है की आज सबके सामने है। पक्की सड़कें, स्मार्ट सीटी, नगर निगम, ओपन जिम, फुटपाथ, पार्क, सुचारू बिजली व्यवस्था (स्ट्रीट लाईट), पार्किंग, कई उठाउ पेय जल योजनाओं को अमली जामा पहनाया गया, ये कांग्रेस सरकार की ही देन है। भाजपा सरकार आते ही क्षेत्र के विकास कार्यों को ठण्डे बस्ते में बंद कर दिया गया, और धर्मशाला मात्र भाजपा के बड़े नेताओं को खुश करने के लिए कार्यक्रम आयोजन स्थल बन कर ही रह गया। पूर्व मंत्री ने कहा कि जहाँ एक तरफ़ सरकार का कर्तव्य क्षेत्र का विकास और जनता की समस्याओं का निदान करना होना चाहिए था वहीं सरकार ने धर्मशाला को संगठनात्मक आयोजनों की कर्म भूमि बना कर झूठे विकास की उपलब्धियों का चोला पहनाना आरंभ कर दिया। चुनाव आते ही घोषणाओं का पिटारा खोलना जयराम सरकार के लिए नई बात नहीं हैं, यह तो भाजपा की प्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं, जैसे इनकी केंद्र सरकार भी करती है। चाहे वो विधानसभा के हो, पंचायत या निकाय चुनाव हो, घोषणाओं का ढोल वहां बजाना इस सरकार की पुरानी आदत है। कांग्रेस के करवाये कार्यों का श्रेय लेना भाजपा की पुरानी आदत है। जयराम सरकार को दूसरी राजधानी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, आइटी पार्क व प्रदेश फ़ुटबाल अकादमी और धर्मशाला बस टर्मिनल बारे अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में.. - सुधीर बोले, अगले साल चुकता करेंगे हिसाब नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की हार पर सुधीर शर्मा का कहना है कि वहां कोई नहीं जीता। नगर निगम चुनाव में कांग्रेस के पास 5, भाजपा के पास 8 और अन्य के पास 4 सीटें थी। इन चुनाव में कांग्रेस मात्र 88 वाेटाें से भाजपा से पीछे रही। इसका हिसाब अब अगले साल चुकता करेंगे। पूर्व मंत्री ने अपने ही अंदाज में कहा कि " गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले। " भ्रष्टाचार नहीं है तो काेविड फंड का हिसाब क्यों नहीं देती सरकार एआईसीसी के सचिव एवं पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने काेविड फंड काे सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बताया। उन्हाेंने कहा कि भाजपा सरकार कोविड-19 स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स फण्ड में आम जनता सामाजिक संस्थाओं और मंदिरों से मिले लगभग 81 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं देती कि उस पैसे को कोरोना महामारी से लड़ने और मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने इक्विपमेंट्स लेने के लिए सरकार ने कहां-कहां खर्च किया? सुधीर शर्मा ने कहा कि पिछले साल कोविड-19 फंड का हिसाब दिए बिना आज फिर से कर्मचारियाें से दाे दिन की सैलरी मांग रही है। यही नहीं, बल्कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने 5.10 लाख रूपये प्रति घण्टे की दर से नया हेलीकाॅप्टर में सफर करने जा रही है, जाे काेराेना काल में सबसे बड़ी गलती साबित हाेगी। आज प्रदेश हजाराें कराेड़ के कर्ज तले डूब चुका है इसकी प्रदेश सरकार को कोई चिंता नहीं हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश हर दिन कर्जे के बोझ तले डूबा जा रहा है। सरकार में हुआ घोटाला और संगठन पर गिरी थी गाज सुधीर कहते है कि पिछले साल काेविड-19 के दाैरान सेनेटाइजर घाेटाला, हेल्थ डिपार्टमेंट में पीपीई किट घाेटाला और काेविड केयर फंड में भी भ्रष्टाचार काे देखते हुए भाजपा संगठन में फेरबदल हुआ था। ऐसा पहली बार हुआ कि सरकार में हुए घोटाले की गाज किसी राजनैतिक दल के संगठन पर गिरी हो। सुधीर का कहना है की हिमाचल की जनता सब जानती है, जिन्होंने कोविड काल में भी भ्रष्टाचार करने से गुरेज नहीं किया उन्हें 2022 में जनता मुकम्मल जवाब देगी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी पर चुनाव आयोग ने प्रचार करने पर 24 घंटे की रोक लगा दी है। ममता बनर्जी 12 रात आठ बजे से 13 अप्रैल रात आठ बजे तक प्रचार नहीं कर सकतीं। पाबंदी लगाए जाने के निर्वाचन आयोग के फैसले के विरोध में ममता बनर्जी शहर के बीचों बीच धरने पर बैठ गईं हैं। पिछले महीने चोटिल होने के कारण मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर बैठकर कोलकाता के मायो रोड पहुंचीं और उन्होंने परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास बैठकर धरना शुरू कर दिआ। इस दौरान ममता बनर्जी के साथ तृणमूल का कोई नेता या समर्थक नहीं था। चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी के केंद्रीय बलों के खिलाफ बयानों और कथित धार्मिक प्रवृत्ति वाले एक बयान के कारण 24 घंटे तक उनके चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी है। इसकी निंदा करते हुए ममता बनर्जी ने आयोग के इस फैसले को असंवैधानिक एवं अलोकतांत्रिक कहा है जिसके खिलाफ वह मंगलवार को करीब 11 बजकर 40 मिनट पर शहर में धरना देने पहुंची। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी रात आठ बजे के बाद बारासात और बिधाननगर में दो रैलियों को संबोधित करेंगी। वहीं, ममता बनर्जी के धरने पर बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि वे चुनाव को बाधित करने का प्रयास कर रही हैं। चुनाव आयोग को निशाना बना रही हैं। केंद्रीय बलों पर हमला कराया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी ममता बनर्जी की है। वे आयोग का निर्णय न मानकर आंदोलन कर रही हैं। एक सीएम को यह शोभा नहीं देता।
पश्चिम बंगाल में चौथे चरण के मतदान के बीच भी कई जगहों से हिंसक झड़प की खबरें सामने आई हैं। कूचबिहार के सितालकुची में बीजेपी और टीएमसी के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। झड़प में कई लोग घायल हो गए। इस दौरान बूथ नंबर 285 में मतदान केंद्र के बाहर बम फेंके गए और गोलीबारी हुई। फायरिंग में वोट डालने आए एक युवक की मौत हो गई। इस घटना के बाद पुलिस ने लाठीचार्ज कर हालात पर काबू पाया। जानकारी के अनुसार घटना स्थल से कई क्रूड बम भी बरामद किए गए। युवक की मौत के बाद टीएमसी ने बीजेपी पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। बीजेपी ने ऐसे आरोपों से इनकार कर दिया है। वहीं, चुनाव के चौथे चरण के दौरान हुगली में बीजेपी उम्मीदवार लॉकेट चटर्जी की कार पर भी हमला किया गया। हमले में बीजेपी उम्मीदवार की कार के शीशे टूट गए। उन्होंने इस हमले का आरोप टीएमसी के लोगों पर लगाया है।
सोलन नगर निगम में कब्ज़ा जमाने के बाद कांग्रेस में मेयर व डिप्टी मेयर पद के लिए मंथन शुरू हो गया है। मेयर पद अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित है सो जाहिर है ऐसे में पूनम ग्रोवर ही पार्टी की पहली पसंद होगी। पूनम वरिष्ठ तो है ही उन्होंने इस चुनाव में पवन गुप्ता को पटकनी दी है। जिसके बाद उनका मेयर बनना तय माना जा रहा है। वहीँ डिप्टी मेयर पद के लिए कई नाम सामने आ रहे है लेकिन सबसे अधिक चर्चा में है अभय शर्मा का नाम। इसके कई कारण है। दरअसल अभय ने वार्ड 11 में लम्बे समय बाद पार्टी को जीत दिलवाई है। ये पूर्व नगर परिषद् अध्यक्ष देवेंदर ठाकुर का गृह वार्ड है और अभय का मुकाबला उनके पुत्र अभिषेक ठाकुर से था। अभय की जीत पूनम ग्रोवर की जीत से किसी भी संदर्भ में कम नहीं है। इस जीत ने कांग्रेस को उक्त क्षेत्र विशेष में मजबूत तो किया ही है, लम्बे समय बाद अभय के रूप में पार्टी को एक दमदार युवा चेहरा भी मिला है। निसंदेह अभय इस समय कांग्रेस के राइजिंग स्टार है, अब पार्टी उन्हें डिप्टी मेयर बनाकर प्रोत्साहित करती है या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा। युथ अभय के साथ, 2022 में हो सकता है फायदा वार्ड 11 में मिली शानदार जीत के बाद अभय रातों रात सोलन की राजनीति में युथ स्टार बन गए है। उनकी सोच, उनकी सादगी और संवाद का तरीका उन्हें सीधे जनता से कनेक्ट करता है। ऐसे में अभय को आगे लाकर कांग्रेस 2022 के लिहाज से भी अपनी जड़े मजबूत कर सकती है। अभय भाजपा के युथ वोट में सेंध लगाने का काम भी कर सकते है। शांडिल के प्रोत्साहन से लड़ा चुनाव, शहरी कांग्रेस भी साथ अभय शर्मा को सोलन विधायक कर्नल धनीराम शांडिल का आशीर्वाद प्राप्त है। उनके प्रोत्साहित करने पर ही अभय राजनीति में आए है। इसके अलावा शहरी कांग्रेस भी अभय के साथ बताई जा रही है। जगजाहिर है कि निगम चुनाव में शहरी कांग्रेस का जलवा खूब देखने को मिला है। अब अंदर कि खबर ये है कि शहरी कांग्रेस भी अभय को आगे लाना चाहती है। बहरहाल कांग्रेस के पास युवा अभय शर्मा को बड़ी ज़िम्मेदारी देकर युथ को लुभाने का अवसर है, अब कांग्रेस क्या फैसल लेती है इसका सबको इंतज़ार रहेगा।
नगर निगम सोलन के चुनाव में भाजपा द्वारा अपनी तमाम ताकत झोंक दिए जाने के बावजूद जिस तरह कांग्रेस ने धमाकेदार जीत अर्जित की है, उससे राजनीतिक पर्यवेक्षक भी सुजानपुर के विधायक व सोलन चुनाव के प्रभारी राजेंद्र राणा की सियासी मैनेजमेंट व उनके द्वारा रचे गए चक्रव्यूह के कायल हो गए हैं। राजेंद्र राणा को कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सोलन नगर निगम के चुनाव की कमान सौंपी गई थी और जिस तरह राणा ने सोलन में डेरा डालकर तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को एकजुट करके भाजपा के खिलाफ व्यूह रचना रची, उसकी काट भाजपा नहीं ढूंढ पाई। खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इन चुनावों के दौरान लगातार सोलन के तीन दौरे किए और राजनीतिक मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले अपने दिग्गज नेता राजीव बिंदल को फ्री हैंड देकर यहां के दंगल को जीतने की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन कांग्रेस के चुनाव प्रभारी राजेंद्र राणा व स्थानीय कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल की जुगलबंदी ने भाजपा को दिन में तारे दिखा दिए। इस चुनाव में कर्नल धनीराम शांडिल्य की साख व राजेंद्र राणा की मैनेजमेंट स्किल दांव पर लगी थी। भाजपा सोलन नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने के दावे कर रही थी। लेकिन राजेंद्र राणा ने जो चक्रव्यूह रचा और जिस तरह सोलन से जुड़े जमीनी मुद्दों को उठाकर भाजपा को आक्रामक तरीके से घेरना शुरू किया, उससे न केवल कांग्रेसी वर्करों का हौसला बढ़ा बल्कि मतदाताओं में भी उन मुद्दों का खासा असर दिखा। भाजपा ने सोलन के पूर्व विधायक व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल के चुनावी प्रबंधन के सहारे सोलन में धमाकेदार जीत अर्जित करने का ख्वाब संजोया था। लेकिन राजेंद्र राणा की मैनेजमेंट के आगे न केवल बिंदल बुरी तरह चित हो गए बल्कि उनके सबसे करीबी व खासमखास माने जाने वाले बाघाट बैंक के अध्यक्ष पवन गुप्ता चुनाव हार गए। सोलन में कांग्रेस की जीत को लेकर सोशल मीडिया पर भी लोग मजेदार टिप्पणियां दर्ज कर रहे हैं। कई लोगों ने यह कहकर चुटकी ली है कि सुजानपुर में राजेंद्र राणा ने पहले अपने गुरु पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को उनके घर में शिकस्त देकर उनके मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब चूर कर दिया और अब सोलन में पूर्व मुख्यमंत्री के चेले और भाजपा के दिग्गज मैनेजमेंट गुरु माने जाने वाले राजीव बिंदल को भी उन्हीं के घर में धूल चटा दी है। निश्चित रूप से कांग्रेस की इस जीत से कांग्रेस आलाकमान में सुजानपुर के विधायक व प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष राजेंद्र राणा का सियासी कद बढ़ गया है।
बांग्लादेश दौरे को लेकर तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आचार संहिता के उलंघन का आरोप लगाया है। पार्टी के नेताओं ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि पीएम मोदी ने मतुआ समुदाय के मंदिर ओराकांडी जाकर आचार संहिता का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के मंदिरों में जाने का एकमात्र मकसद मतदाताओं को प्रभावित करना था। वहीं, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने साथ पश्चिम बंगाल से सांसद शांतनु ठाकुर को ले गए थे, जो किसी भी सरकारी पद पर नहीं हैं। टीएमसी ने पीएम मोदी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग की है।
असम विधानसभा चुनाव के लिए आज पहले चरण का मतदान हो रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असम की जनता से कॉंग्रेस को वोट देने की अपील की। पूर्व प्रधानमंत्री ने असम के लोगों से कहा कि उन्हें ऐसी सरकार चुननी चाहिए जो संविधान और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बनाए रखें। उन्होंने कहा की समाज को धर्म, संस्कृति और भाषा के आधार पर विभाजित किया जा रहा है। पूर्व पीएम ने एक वीडियो मैसेज के ज़रिए असम की जनता से कहा,'आज, मैं आप ही में से एक बोल रहा हूँ। एक बार फिर से, विधानसभा चुनाव में मतदान करने का समय आ गया है। आपको समझदारी से मतदान करना चाहिए। मैं आपसे कांग्रेस पार्टी को वोट देने की अपील करता हूँ। डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि असम पिछले कई सालों से मेरा दूसरा घर रहा है। यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि मैंने 28 सालों (1991 से 2019) तक राज्यसभा में असम का प्रतिनिधित्व किया। असम के लोगों ने ही मुझे पांच वर्ष केंद्रीय वित्त मंत्री और 10 साल के लिए प्रधानमंत्री के रूप में काम करने में सक्षम बनाया । बता दें कि असम में कांग्रेस बीजेपी से सत्ता वापिस पाने की कोशिश कर रही है। मनमोहन सिंह असम चुनावों के लिए एक स्टार प्रचारक हैं, लेकिन स्वास्थ्य कारणों और कोविड-19 बंदिशों के चलते प्रचार करने में सक्षम नहीं है।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने सोलन जिले के बद्दी में भाजपा आईटी विभाग की राज्य कार्यकारी समिति की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा का आईटी विभाग वास्तव में प्रदेश सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों, उपलब्धियों आदि का प्रभावी ढ़ग से प्रचार प्रसार कर राज्य में राज्य सरकार के साथ-साथ भाजपा को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और राज्य भाजपा की उपलब्धियों के प्रसार के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए और विपक्ष के झूठे प्रचार का जवाब देना चाहिए। जय राम ठाकुर ने कहा कि 11 जिला परिषदों में से 9 में भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने विजय हासिल की जबकि कांग्रेस केवल दो जिला परिषद ही जीत पाई। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि नगर निगम चुनावों में और उसके बाद 2022 के विधान सभा चुनावों में भी कांग्रेस को उसकी असली जगह दिखाई जाए। उन्होंने कहा कि विपक्ष के झूठे प्रचार का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए सोशल मीडिया सबसे सशक्त माध्यम है। उन्होंने कहा कि आज राष्ट्र का नेतृत्व सशक्त नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे है, जो विश्व नेता के रूप में उभरे हैं।मुख्यमंत्री ने राज्य भाजपा आईटी विभाग से 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए ग्राम सभा से विधानसभा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए और अधिक समर्पण के साथ कार्य करने का आग्रह किया। इस अवसर पर ग्रामीण विकास और पंचायती राज और पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर, स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. राजीव सैजल, विधायक दून परमजीत सिंह पम्मी, भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष पुरूषोतम गुलेरिया, पूर्व विधायक विनोद चंदेल और केएल ठाकुर भी रहे उपस्थित ।
विधानसभा में कांग्रेस द्वारा राज्यपाल की गाड़ी रोकने व धक्का मुक्की करने पर भाजपा अर्की मंडल ने भराड़ीघाट में मुकेश अग्निहोत्री का पुतला फूंका। इस घटना पर अर्की मंडल अध्यक्ष डीके उपाध्याय ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कांग्रेस ज्यादा न उछले अपनी हद में रहे। इस तरह की हरकतों का अंजाम बुरा होगा। इस मौके पर अर्की मंडल के समस्त पदाधिकारी व युवा मोर्चा अर्की के अध्यक्ष सहित अन्य सहयोगी मौजूद रहे।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन विपक्ष के हंगामे के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सुरक्षा कर्मियों सहित मंत्रियों के साथ बैठक आयोजित की और दोबारा से सदन बुलाया। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सदन के स्थगित होने के बाद सदन बुलाया गया हो। इस सदन का गौरवमयी इतिहास रहा है। लेकिन आज की घटना इतिहास में कभी नहीं हुई। सीएम ने कहा कि नेतृत्व विफल हुआ इसी वजह से लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत लड़ने की क्षमता नहीं है। राज्यपाल के साथ ऐसा व्यवहार दुर्भाग्यपूर्ण है। सीएम ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जमीन पर रहिये वरना जमीन में गाड़ देती है जनता।
शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र शुरू होते ही को विपक्ष ने हंगामा कर दिया। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने 11 बजे अभिभाषण पढ़ना शुरू किया और 11:14 पर कांग्रेस विधायकों ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी। राज्यपाल ने 11:16 पर अभिभाषण को खत्म कर दिया। इस बीच नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने महंगाई का सवाल उठाया साथ ही अभिभाषण को भी जूठा करार दिया। बजट सत्र में पहली बार ऐसा हुआ है कि अभिभाषण के दौरान इतना बड़ा हंगामा हुआ हो। वहीं जब राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय राजभवन जाने लगे तो इस दौरान विधानसभा के काउंसिल चैंबर गेट पर राज्यपाल की गाड़ी के आगे खड़े होकर कांग्रेस दल ने नारेबाजी की। मामला इतना गरमा गया कि विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज और कांग्रेस विधायकों के बीच धक्कामुकी हो गई। कांग्रेस के पांच विधायको को पूरे सत्र के लिए बर्खास्त कर दिया गया है। जिनमें नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, सतपाल रायज़ादा, हर्षवर्दन, विनय कुमार, सुंदर सिंह शामिल है
हिमाचल प्रदेश में नगर निगम चुनाव का बिगुल बज चुका है, सभी पार्टिओं ने आगामी चुनाव के लिए कमर कस ली है। कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर हिमाचल के प्रभारी राजीव शुक्ला ने भी चार नगर निगमों के पर्यवेक्षक तैनात कर दिए हैं। इनके साथ सदस्य भी लगाए गए हैं। राजेंद्र राणा को सोलन नगर निगम का पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। हर्षवर्धन चौहान और केवल सिंह पठानिया सदस्य बनाए गए है । जीएस बाली को मंडी नगर निगम का पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। विक्रमादित्य सिंह, सुंदर सिंह और विनोद सुल्तानपुरी सदस्य लगाए गए हैं। कौल सिंह को पालमपुर नगर निगम का पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। रामलाल ठाकुर, इंद्र दत्त लखनपाल और जगत सिंह सदस्य लगाए गए हैं। सुखविंद्र सिंह सुक्खू को धर्मशाला नगर निगम का पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। कुलदीप कुमार, चंद्र कुमार और राजेश धर्माणी सदस्य लगाए गए हैं। ये पर्यवेक्षक नगर निगम चुनाव को लेकर लगाए हैं। इन्हें लोकल कमेटियां बनाने का अधिकार भी दिया गया है।
बजट की खबर ...... -चुनावी साल का बजट देखना, अभी क्यों निराश होना ! -अभी चुनावी राज्यों को मिला है, अगले साल हिमाचल को भी मिलेगा -बेवजह हंगामा कर रहा नादान विपक्ष ! बजट आखिर आज आ ही गया. वित्त मंत्री का बजट भाषण खत्म होते ही हिमाचल में कांग्रेस का सरकार पर अटैक शुरू हो गया. विपक्ष कह रहा है कि हिमाचल प्रदेश को इस बजट से कुछ नहीं मिला. बजट में न बागवानों के लिए कुछ खास है और न ही पर्यटन के लिए. विपक्ष डबल इंजन की सरकार को लेकर खूब चुटकी ले रहा है. उनके अनुसार हिमाचल प्रदेश इस बजट के बाद ठगा सा महसूस कर रहा है. कितना नादान है हमारा विपक्ष. भाई जब चुनाव 2022 में है तो हिमाचल को 2021 के बजट में कुछ खास क्यों मिलेगा. न जाने क्यों विपक्ष बेवजह सरकार को घेरने पर लगा है. तो क्या हुआ कोरोना ने बागवानी और पर्यटन की भी कमर तोड़ी है, तो क्या हुआ कोल्ड चेन बागवानों के लिए अति महत्वपूर्ण है, तो क्या हुआ फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स स्थापित करने की सख्त दरकार है, तो क्या हुआ पर्यटन को पंख लगने के लिए आधरभूत सुविधाओं को मजबूत किया जाना चाहिए, ये सब तभी मिलेगा न जब चुनाव नजदीक आएंगे. अब केंद्र सरकार अभी कैसे दे देती ये सब. पिछले चुनाव से पहले भी तो दिए थे 69 एनएच, ये अलग मसला है बाद में कैंसिल कर दिए. हम तो यही कहेंगे जरा एक साल इंतजार कीजिये जनाब अगले बजट में जरूर हिमाचल की सुध ली जाएगी. दरअसल राजनैतिक परंपरा ही कुछ ऐसी है. कोई भी पार्टी सत्ता में हो ऐसा ही करती है. अब इसी बजट को देख लीजिये. पश्चिम बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु में जल्द विधानसभा चुनाव है, देखिये इन्हें कितना कुछ मिला है. बाकी इतना भी निराशावादी नहीं होना चाहिए. बजट सरकारी कंपनियों की सेल भी लाया है. पुरे पौने दो लाख करोड़ का विनिवेश होगा. बहुत कुछ बिकने वाला है भाई. आप भी बतौर निवेशक खरीद सकते है. आपको बताते है क्या-क्या बिकने वाला है? BPCL, एअर इंडिया, कॉनकोर और SCI के विनिवेश पर जल्द मुहर लग सकती है. सरकार LIC का आईपीओ भी लाने वाली है. इसके अलावा IDBI में भी विनिवेश होगा. अब इन बड़ी सरकारी कंपनियों के हिस्सेदार तो हिमाचल वासी भी बन सकते हैं. हैं ना बहुत कुछ हिमाचल के लिए !
हिमाचल पूर्ण राज्यत्व की स्वर्ण जयन्ति पर प्रदेश वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं
पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस विधायक वीरभद्र सिंह ने गुरुवार को सोलन में अगला विधानसभा चुनाव न लड़ने का एलान किया था जिसे सुन सभी दंग रह गए थे, लेकिन इसके कुछ देर बाद ही उन्होंने अपना बयान बदलते हुए चुनाव लड़ने की बात कही थी। वीरभद्र के बयानों का दौर अब भी बरक़रार है और आज उन्होंने कुठाड़ में कहा कि आज वो अगला चुनाव भी लड़ेंगे और कांग्रेस को जिताएंगे भी। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कुठाड़ में हो रही पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि वो कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते रहेंगे और वो 2022 का चुनाव लड़ेंगे भी और कांग्रेस को जिताएंगे भी और यदि जनता का साथ रहा तो अगली बार मुख्यमंत्री बन हिमाचल की बागडोर भी संभालेंगे। वीरभद्र सिंह इन दिनों सोलन जिला के कुठाड़ स्थित अपने ससुराल में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। गुरुवार को वीरभद्र सिंह कुनिहार में पंचायत प्रतिनिधियों के शपथ समारोह में शिरकत करने आए थे। उन्होंने जिप चुनाव में डुमैहर और दाड़ला से पार्टी प्रत्याशियों की कम मतों से हार पर कहा कि पार्टी में गद्दार घुस आए हैं, उनका पर्दाफाश किया जाए। यहां वीरभद्र सिंह के चुनाव न लड़ने का एलान करने के बाद एक बार तो प्रदेशभर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हड़कंप मच गया, लेकिन इसके बाद वीरभद्र सिंह के कुठाड़ राजमहल लौटते ही जिला सोलन सहित शिमला, रोहड़ू और रामपुर से सैकड़ों समर्थक भी वहां पहुंच गए। समर्थकों ने उनसे मुलाकात कर अगला विधानसभा चुनाव लड़कर जनता की सेवा करने का आग्रह किया। अपने समर्थकों की जिद के बाद वीरभद्र सिंह ने थोड़ा समय पहले चुनाव न लड़ने के अपने बयान से पलटते हुए कहा कि अगर जनता ने चाहा तो वह अपना फैसला बदलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
वीरभद्र सिंह ने 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है। कुनिहार दौरे के दौरान मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा की वह अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे पर उन्हें कांग्रेस पार्टी से प्यार है। वह कांग्रेसी हैं और मरते दम तक कांग्रेसी रहेंगे। उन्होंने कहा कि पार्टी में गद्दारी को बर्दाश्त मत करो। गद्दार पार्टी में रहते हुए पार्टी को कमजोर करते हैं। गद्दारों को बाहर का रास्ता दिखाना ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कांग्रेसी बनते हैं और अपने स्वार्थ के लिए कांग्रेस को हराते हैं। एक गद्दार आगे चल कर गद्दारों की फौज पैदा करेगा। इसलिए गद्दारों से प्रार्थना है कि आपको कांग्रेस में नहीं रहना है तो छोड़कर चले जाएं। कांग्रेस में रहकर जो पार्टी की पीठ पर छूरा मार रहे हैं, उनका कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है। इससे अच्छा नए लोग आएं। वीरभद्र सिंह आज कुनिहार में नवनिर्वाचित कांग्रेस समर्थित प्रधानों, उपप्रधानों व बीडीसी सदस्यों को शपथ ग्रहण समारोह के उपरांत आशीर्वाद देने पहुचे थे। कुनिहार पहुंचने पर कांग्रेस प्रदेश सचिव राजेंद्र ठाकुर व अन्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा विधायक वीरभद्र सिंह का जोरदार स्वागत किया गया।
आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि पार्टी हिमाचल उतराखंड समेत छः राज्यों में चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी आगामी दो वर्षों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी लगातार देश भर में कदम बढ़ा रही है। इसी के चलते पार्टी दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने की तैयारी में लग गई है।
औरों के ख़यालात की लेते हैं तलाशी और अपने गिरेबान में झाँका नहीं जाता मुज़फ्फर वारसी का ये शेर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप के मौजूदा हालत पर बिलकुल सटीक बैठता है। बात-बात पर अन्य पार्टियों को आइना दिखने वाले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को जिला परिषद् चुनाव में जनता ने आइना दिखा दिया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप के अपने ही गृह क्षेत्र की दो जिला परिषद् सीटों परे भाजपा हार गई है। यूँ तो कश्यप के गृहक्षेत्र पच्छाद में 15 वार्ड सदस्यों वाली पंचायत समिति में भाजपा ने सबसे अधिक सीटें जीतने का दावा किया है लेकिन, जिला परिषद के दो वार्डों में भाजपा बुरी तरह हारी है। यहां एक वार्ड में कांग्रेस ने परचम लहराया, जबकि दूसरे में निर्दलीय ने बाजी मारी। सुरेश कश्यप के अपने वार्ड बागपशोग में भाजपा समर्थित उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रही जबकि नारग के जिला परिषद् वार्ड पर प्रदेश निर्माता यशवंत सिंह परमार के पोते आनंद परमार की जीत हुइ है। दोनों ही जिला परिषद् वार्डस में भाजपा समर्थितों उम्मीदवारों को मुँह की खानी पड़ी। इससे साफ़ होता है की भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप की अपने गढ़ में कितनी पकड़ है। गौरतलब है कि भाजपा समर्थित उम्मीदवारों को जीताने के लिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप, स्थानीय विधायक रीना कश्यप और विपणन बोर्ड के अध्यक्ष बलदेव भंडारी स्वयं मैदान में उतरे थे लेकिन तीन नेताओं की रणनीति भी काम नहीं आई।
हिमाचल प्रदेश में जिला परिषद और पंचायत समिति वार्ड सदस्यों का चुनाव नतीजे देर रात को घोषित किए गए। प्रदेश भर के कुल 80 ब्लाक मुख्यालयों में सुबह आठ बजे से जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के वोटों की गिनती शुरू हो गई थी। कई जगह मतगणना शनिवार सुबह करने का फैसला लिया गया है। प्रदेश को जिप के 239 और बीडीसी के 1638 नए सदस्य मिलेंगे। जिला परिषद परिणाम सिरमौर बनकला निर्मला देवी (भाजपा) कालाअंब पुष्पा देवी (भाजपा) ददाहू सुरेंद्र सिंह (भाजपा) बाग पशोग नीलम शर्मा (निर्दलीय) नारग आनंद परमार (कांग्रेस) शिलांजी सतीश ठाकुर (भाजपा) देवठी मझगांव विनय भगनाल (कांग्रेस) संगड़ाह सीमा कनियाल (भाजपा) नौहराधार पृथ्वीराज (कांग्रेस) कांडो भटनोल विद्या देवी (कांग्रेस) गवाली चमेली देवी (कांग्रेस)
जिला परिषद् बिलासपुर सहित जिला की 4 पंचायत विकास समितियों के चुनाव के बाद मतगणना सुबह 8 बजे शुरू हो गई थी। बैलेट पेपर पर मतों की गणना का कार्य काफी मुश्किल भरा रहा। जिसके चलते देर रात तक आधे नतीजे ही घोषित किए गए थे। सदर बीडीसी के वार्ड नंबर-9 छकोह व वार्ड नंबर-12 घ्याल में जीत का अंतर मात्र 16 वोटों का रहा, जिसके चलते दोनों वार्डों में गिनती को लेकर खूब गर्मा-गर्मी देखने को मिली। वंही सबसे कड़ा व रोचक मुकाबला में देखने को मिला। यहाँ हार जीत का अंतर मात्र 4 वोटों का रहा। विजेता संतोष चंदेल को 542 वोट मिले वंही उपविजेता रहे जगदीश को 538 मत मिले।
हिमाचल के रामपुर ब्लॉक से जिला परिषद् के वार्ड नंबर-2 झाकड़ी वार्ड से CPI समर्थित कविता कंटु ने जीत हासिल की है। कविता कंटु अभी महज 25 साल की है। उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस और भाजपा संबंधी थे। वह कई सालों से राजनीती करते आ रहे है, और उनमें से कुछ प्रत्याशी प्रधान भी रहे है। पहली बार राजनीती में उत्तरी कविता ने इन सभी प्रत्याशियों को हार का मुँह दिखाया है। कविता ने 4561 मत लेकर 13 वोटों से जीत हासिल की। बता दें की कविता कंटू अपने माता पिता की इकलौती संतान है। उन्होंने इतिहास विषय में एमफील की हुई है, और साथ ही यूजीसी की नेट की परीक्षा भी उत्तीर्ण की है। पढ़ाई के साथ-साथ वे छात्र राजनीती में भी सक्रीय रही है।
पिहड बेहडलु पंचायत से बीडीसी सदस्य के लिए ग्रामीणो ने क्षेत्र की बागडोर युवा प्रत्याशी के हाथों में दी है। इन दोनों पंचायतों से बीडीसी सदस्य के लिए करसल गांव निवासी मधु देवी ने जीत हासिल की है। मधु मात्र 22 वर्ष की है और एमकॉम की पढ़ाई कर रही है। वह लडभड़ोल पंचायत में सबसे काम उम्र की बीडीसी सदस्य बनी है।
हिमाचल प्रदेश में जिला परिषद और पंचायत समिति वार्ड सदस्यों का चुनाव नतीजे देर रात को घोषित किए गए। प्रदेश भर के कुल 80 ब्लाक मुख्यालयों में सुबह आठ बजे से जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के वोटों की गिनती शुरू हो गई थी। कई जगह मतगणना शनिवार सुबह करने का फैसला लिया गया है। प्रदेश को जिप के 239 और बीडीसी के 1638 नए सदस्य मिलेंगे। जिला परिषद परिणाम कांगड़ा वार्ड विजयी 1 डमटाल राहुल पठानिया(भाजपा) 2 लोहारपुरा अपर्णा (भाजपा) 3 पुंदर वार्ड हरदीप सिंह (कांग्रेस ) 4 भली वार्ड नर्मदा ठाकुर 5 भत्तला रितिका शर्मा 6 तलाडा जगदीश सिंह 10 खोली वार्ड कुलभाष चंद बीजेपी 11 हलेडकलां वार्ड अंजना कुमारी बीजेपी 12 बाघणी रविंदर कुमार 14 कबाड़ी चंचला देवी 15 झिकला मंगला देवी (भाजपा) 17 अवैरी नीलम देवी 18 कुदैल अनिल कुमार 19 गुनेहड़ पवन देवी 22 चौबीन अंकुश ठाकुर 25 बारी ध्रुव सिंह 28 नौरा संतोष कुमार 29 सुलह रूप रेखा 30 उस्तेहड़ विनय 33 कुल्थी सुषमा देवी 34 तियारा वार्ड रमेश सिंह बराड (बीजेपी) 43 नगरोटा सुरिया बिना धीमान 47 स्थान संजीव कुमार 48 मैरा वार्ड लक्ष्य ठाकुर 49 भरमाड सुखविंदर कुमार 50 नेरना शेर सिंह 52 बडूखर नैंसी धधोच 54 इंदौरा प्रवीण कुमार फतेहपुर के मैरा वार्ड से जवाली विधायक अर्जुन ठाकुर के बेटे लक्ष्य ठाकुर ने तीन पूर्व कांग्रेसियों की तिगड़ी का खेल बिगाड़कर जीत दर्ज की है। नूरपुर विकास खंड जिला परिषद वार्ड पुंदर में कांग्रेस समर्थित हरदीप सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी रविंद्र चौधरी को 1054 मतों के अंतर से हराया है। हरदीप सिंह 8231 वोट मिले, जबकि रविंद्र चौधरी 7177 प्राप्त हुए।
पंचायत चुनावो में सबसे बड़ी सीट मानी जाने वाली जिला विकास परिषद् में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है, वही भाजपा ने शानदार जीत हासिल की है। मंडी जिला की 36 सीटों में से 30 पर भाजपा ने अपना कब्ज़ा किया है, जबकि कांग्रेस प्रतय्क्ष रूप से एक ही सीट जीत पाई है। वंही माकपा और भाकपा के तीन प्रत्याशी ने जिला परिषद के चुनाव में सफलता प्राप्त की। इसके आलावा 12 आज़ाद प्रत्याशी भी अपनी जीत सुनिश्चित कर पाए है, इनमें 3 भाजपा समर्थित और 2 कांग्रेस समर्थित बताये जा रहे है। इन आंकड़ों को भी अगर देखा जाये तो कांग्रेस की झोली में सर्फ 4 ही सीटें आ रही है।
हिमाचल प्रदेश में जिला परिषद और पंचायत समिति वार्ड सदस्यों का चुनाव नतीजे देर रात को घोषित किए गए। प्रदेश भर के कुल 80 ब्लाक मुख्यालयों में सुबह आठ बजे से जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के वोटों की गिनती शुरू हो गई थी। कई जगह मतगणना शनिवार सुबह करने का फैसला लिया गया है। प्रदेश को जिप के 239 और बीडीसी के 1638 नए सदस्य मिलेंगे। कुल्लू जिला परिषद परिणाम धाउगी विभा सिंह चायल पूर्ण ठाकुर मौहल गुलाब सिंह बाड़ी देविंद्र सिंह जरड़ भुटी आशा दलाश पंकज वशिष्ठ मीना डुघीलग दीपिका बरशैणी रेखा ज्येष्ठा रुकमणि लराकेलो अरुणा नसोगी बीर सिंह कोठीचैहणी मान सिंह लझेरी जीवन
हिमाचल निर्माता डॉ वाईएस परमार के पोते ने नारग वार्ड से जिला परिषद् का चुनाव जीत लिया है। परमार ने शानदार जीत दर्ज करते हुए सुभाष शर्मा को हरा दिया है। कांग्रेस प्रत्याशी आनंद परमार को 7395 मत हासिल हुए। लम्बे समय तक परमार के परिवार से कोई भी राजनीती में सक्रिय नहीं था। इस बात पर सबकी नज़रे टिकी हुई थी कि तीसरी पीढ़ीआनंद परमार जीत हासिल करते है या नहीं।
हिमाचल प्रदेश में जिला परिषद और पंचायत समिति वार्ड सदस्यों का चुनाव नतीजे शुक्रवार को घोषित किए गए। प्रदेश भर के कुल 80 ब्लाक मुख्यालयों में सुबह आठ बजे से जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के वोटों की गिनती शुरू हो गई थी। कई जगह मतगणना शनिवार सुबह करने का फैसला लिया गया है। प्रदेश को जिप के 239 और बीडीसी के 1638 नए सदस्य मिलेंगे। जिला परिषद ऊना के 17 वार्डों के नतीजे घोषित हो गए हैं। इस बारे में जानकारी देते हुए जिला निर्वाचन अधिकारी एवं उपायुक्त ऊना राघव शर्मा ने बताया कि जिप वार्ड 1 मुबारिकपुर से कुलदीप कुमार विजयी रहे, उन्हें 6870 वोट मिले, सुनीश को 5006 वोट व अमन कुमार को 4479 वोट प्राप्त हुए हैं। जिप वार्ड 2 कुठेहड़ा खैरला से रजनी कुमारी 7669 मत लेकर विजयी रहीं जबकि ऊषा कालिया को 7026 मत प्राप्त हुए। जिप वार्ड 3 ठठल से सतीश कुमार विजय रहे, उन्हें 7292 मत मिले और सरवन सिंह को 4022 मत प्राप्त हुए। जिप वार्ड 4 दियाड़ा से नरेश कुमारी 10846 वोट लेकर विजय रही, जबकि सीमा को 10680 वोट प्राप्त हुए। जिप वार्ड 5 मुच्छाली से सत्या देवी विजय रही हैं, उन्हें 11326 वोट मिले और उर्मिला देवी को 7860 वोट प्राप्त हुए। वार्ड 6 मोमन्यार से कृष्ण पाल विजय रहे, उन्हें 10069 वोट मिले जबकि रणबीर सिंह को 5137 वोट प्राप्त हुए। बसाल अप्पर जिप वार्ड 7 से 9,211 मत लेकर उर्मिला देवी चुनाव जीत गई जबकि मोनिका को 6,286 व अंजना रानी को 1,817 वोट प्राप्त हुए हैं। वार्ड 8 टब्बा से अशोक कुमार विजय रहे, उन्हें 9483 वोट मिले व अभिनव कुमार को 8494 वोट प्राप्त हुए। जिप वार्ड 9 बहडाला से गुलजार सिंह विजय रहे, उन्हें 6675 वोट मिले, मनजीत पाल को 5490 तथा राजिंद्र कुमार को 5205 वोट प्राप्त हुए। वार्ड 10 रायपुर सहोड़ा से नीलम कुमारी विजय रही, उन्हें 10300 वोट मिले तथा रानो देवी को 7910 वोट प्राप्त हुए। जिप वार्ड 11 ललड़ी से कमल किशोर विजय रहे, उन्हें 8364 वोट मिले जबकि अनीता रानी को 5209 वोट प्राप्त हुए। जिप वार्ड 12 पालकवाह से नरेश कुमारी विजय रही हैं, उन्हें 9806 मत मिले तथा रानो देवी को 6915 मत प्राप्त हुए। हरोली वार्ड 13 से रमा कुमारी विजयी रही, उन्हें 9039 वोट मिले तथा शशि को 7615 वोट प्राप्त हुए। पंडोगा वार्ड 14 से ओंकार को 8040 वोट लेकर जीत मिली जबकि अमितपाल को 4500 वोट प्राप्त हुए। अम्बोटा वार्ड 15 से रजनी बाला विजयी रही हैं, उन्हें 9,661 मत मिले जबकि पिंकी देवी को 7,363 वोट मिले। जिप वार्ड 16 संघनेई से संगीता देवी ने चुनाव में जीत दर्ज की उन्हें 6281 वोट मिले, रेखा ठाकुर को 4745 वोट तथ रजनी देवी को 3162 वोट प्राप्त हुए। भंजाल लोअर वार्ड 17 से चैतन्य शर्मा विजय रहे, उन्हें 14789 वोट मिले जबकि विश्वदीप सिंह को 2806 वोट प्राप्त हुए।
कांग्रेस के दिग्गज नेता कौल सिंह ठाकुर की बेटी ने लगातार चौथी बार जीत हासिल कर रिकॉर्ड कायम किया है। चम्पा ठाकुर ने अभी तक जितने भी जिला परिषद् के चुनाव लड़े है वो सभी अलग अलग क्षेत्र से लड़े है, और किसी भी चुनाव में उन्हें हर का मुँह नहीं देखना पड़ा। इस बार चम्पा ठाकुर ने स्योग वार्ड से जिला परिषद का चुनाव लड़ा। उनका मुकाबला यहां दया देवी से हुआ। चम्पा ठाकुर ने 2389 मतों से जीत दर्ज की। चम्पा देवी ने स्योग वार्ड जनता का आभार व्यक्त किया, वंही पिता कौल सिंह ने अपनी बेटी की जीत के लिए बधाई दी। बता दें कि मंडी जिला से अभी तक चम्पा ठाकुर को छोड़ कर किसी भी प्रत्याशी ने लगातार अलग-अलग वार्ड से जीत दर्ज नहीं की है। इसी के आधार पर ये मना जा रहा की उन्होंने पंचायत चुनावों में रिकॉर्ड कायम किया है।
हिमाचल प्रदेश में जिला परिषद और पंचायत समिति वार्ड सदस्यों का चुनाव नतीजे शुक्रवार को घोषित किए गए। प्रदेश भर के कुल 80 ब्लाक मुख्यालयों में सुबह आठ बजे से जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के वोटों की गिनती शुरू हो गई थी। कई जगह मतगणना शनिवार सुबह करने का फैसला लिया गया है। प्रदेश को जिप के 239 और बीडीसी के 1638 नए सदस्य मिलेंगे। शिमला में कांग्रेस का दबदबा 1. त्यावल ज्यूरी से चंद्र प्रभा (कांग्रेस) 2. झाकड़ी से कविता 13 वोट से जीती (माकपा) 3. नरैण से त्रिलोक चंद (कांग्रेस) 4. बगलती से हुकुम चंद (कांग्रेस) 5. सीमा रणटाडी से उर्मिला(भाजपा) 6. खशधार से मोनिता चौहान(कांग्रेस) 7. अढ़ाल से सुरेंद्र सिंह (कांग्रेस) 8. टिक्कर से भारती जनारथा (निर्दलीय) 9. सरस्वती नगर से कौशल मुंगटा (कांग्रेस) 10. बढ़ाल से विशाल (माकपा) 11. कलबोग अनिल काल्टा (भाजपा) 12. सरांह-परिणाम आना बाकी 13. मझौली-परिणाम आना बाकी 14. पौड़िया-परिणाम आना बाकी 15. घोड़ना-परिणाम आना बाकी 16. देवरी-वोटिंग जारी 17. केलवी-वोटिंग जारी 18. बल्देआं से रीना (कांग्रेस) 19. बसंतपुर से चुन्नी लाल (माकपा) 20. कुमारसैन से उज्जवल सेन (कांग्रेस) 21. भुट्टी से सुभाष (आजाद) 22. चमियाणा से लता वर्मा (कांग्रेस) 23. जुन्गा से संतोष शर्मा (कांग्रेस) 24. हलोग धामी से प्रभा वर्मा (कांग्रेस)