प्रदेश के युवा खेल व वन मंत्री राकेश पठानिया के विवादित बयान के बाद स्थानीय ही नहीं, बल्कि पुरे प्रदेश की राजनीति में तूफान आ गया है। इस बयान से भाजपा की छवि पर संकट के बादल मंडराने लगे है। राकेश पठानिया ने गोलवां में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि विधानसभा सत्र में कांग्रेसी बार-बार एक ही मुद्दे को लेकर वाकआउट कर रहे थे और उसका मुद्दा मात्र यह था कि पूर्व सांसद रामस्वरूप शर्मा की मौत कैसे हुई। उन्होंने आगे कहा कि क्या रामस्वरूप शर्मा कांग्रेसियों के बाप लगते हैं। इस बयान के वायरल होते ही सियासी गलियारों में भूचाल सा आ गया है। पठानिया का ये बयान किसी के भी गले से नीचे नहीं उतर रहा। इस बयान पर मौके का पूरा फायदा उठाते हुए कांग्रेसियों ने मंत्री राकेश पठानिया को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेसी नेताओं सहित जनता में भी पठानिया के प्रति रोष है। पठानिया के इस बयान पर कांग्रेस के संगठनात्मक जिला नूरपुर के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक अजय महाजन ने कहा कि युवा खेल एवं वन मंत्री राकेश पठानिया का बयान उनकी सत्ता का गुरूर है। उन्होंने कहा कि वन मंत्री राकेश पठानिया अपनी मर्यादा को भूल चुके हैं तथा इस तरह के बयान दे रहे हैं। इस प्रकार की असभ्य भाषा को कांग्रेस सहन नहीं करेगी। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री चौधरी चंद्र कुमार ने चेताया कि मंत्री राकेश पठानिया मर्यादा में रहकर बयानबाजी करें। उन्होंने कहा कि मंत्री सत्ता के नशा में चूर होकर मर्यादाओं को भूल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वन मंत्री राकेश पठानिया इस विवादित बयान को लेकर माफी मांगें अन्यथा उनके खिलाफ मोर्चा खोला जाएगा।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने हाल ही में भाजपा की दुखती रग पर हाथ रखने वाला ब्यान दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को पूछने से पहले जयराम बताएं उनका नेता कौन है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के जाने के बाद हिमाचल कांग्रेस में चल रहे शीर्ष नेतृत्व के अभाव पर भाजपाई खूब चुटकी ले रहे थे। खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी कई बार सार्वजानिक मंच से ये कहा है कि कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व की कमी है। भाजपा नेताओं के इन व्यंग्यों पर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का पलटवार आया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बिसात किसी और ने बिछाई थी और लाटरी किसी और की लग गई। कांग्रेस को पूछने से पहले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बताएं कि उनका नेता कौन है। मंडी के विपाशा सदन में आयोजित युवा कांग्रेस के राज्यस्तरीय सम्मेलन एवं श्रद्धांजलि समारोह में नेता प्रतिपक्ष ने चुटकी लेते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को सलाह दी कि उनका एक साल का कार्यकाल बाकी बचा है, इसमें कुछ कर लें अन्यथा यात्रा शुरू हो चुकी है। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि हिमाचल आज जिस मुकाम पर है उसमें पूर्व मुख्यमंत्री डा. वाई एस परमार व वीरभद्र सिंह का सबसे बड़ा योगदान है। इस दौरान उन्होंने मंडी के सांसद रामस्वरूप शर्मा की आत्महत्या का मसला भी उठाया। उन्होंने कहा कि पंडित रामस्वरूप ने फंदा क्यों लगाया था, प्रदेश सरकार यह नहीं बता रही है। सरकार सीबीआई जांच करवाने से कतरा रही है। मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता को बताएं कि रामस्वरूप मौत मामले की सीबीआइ जांच होगी या नहीं? उन्होंने कहा कि कांग्रेस सत्ता में आने पर इस मामले की सीबीआई जांच करवाएगी। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की प्रतिमा शिमला के रिज पर लगेगी या नहीं, सरकार इस संबंध में भी स्थिति स्पष्ट करे। इस दौरान मुकेश अग्निहोत्री ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पर भी तंज कसते हुए कहा कि यात्राओं से आशीर्वाद व विकास नहीं होगा। मुख्यमंत्री कौन होगा, यह नारों से तय नहीं होगा, यह प्रदेश की जनता तय करेंगी। चुनाव लड़ने वालों को गर्दन नीचे करके चलना होगा, किसी को कम आंकना भूल होगी। केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे विनिवेश पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 70 साल में क्या किया, यह भाजपा को मत बताना, नहीं तो सब बेच डालेगी।
प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफ प्रेम कुमार धूमल के एक्टिव होने के बाद पिछले चुनाव में उन्हें पटकनी देने वाले राजिंदर राणा भी प्रोएक्टिव हो गए है। विधानसभा क्षेत्र के दौरों ने गति पकड़ ली है और जन संपर्क अभियान भी ज़ोर शोर से चल रहा है। हालाँकि धूमल की लगातार बढ़ती सक्रियता के बाद अब ये जनसम्पर्क और मीठा स्वभाव राणा की नैया पार लगाता है या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर मेहनत पूरी की जा रही है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा लगातार सक्रीय है और कई कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे है। सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र के ऊटपुर में महिला मंडलों के लिए आयोजित सम्मान समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि वे राजनीति नहीं समाजसेवा करने आए हैं। राणा ने सुजानपुर को अपना परिवार बताया और क्षेत्र के विकास में कोई कसर न छोड़ने की प्रतिबद्धता भी दोहराई। पहले प्रथम पंक्ति में थे, अब पीछे दौड़ रहे राणा पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में मुख्य चेहरे को लेकर जंग छिड़ी हुई है। उनके जाने बाद कोंग्रेसियों की दबी हुई महत्वकांक्षाएं अब साफ़ तौर पर बाहर आ रही है। इस रेस में कई नेता है, कुछ प्रथम पंक्ति में है बाकि पीछे दौड़ रहे है। सबका लक्ष्य एक ही है हिमाचल के मुख्यमंत्री की कुर्सी। कुछ समय पहले तक राजिंदर राणा भी प्रथम पंक्ति के नेताओं में से एक माने जा रहे थे। जिस तरह राजिंदर राणा ने बतौर चुनाव प्रभारी सोलन नगर निगम चुनाव में लुप्त हुई कांग्रेस को दोबारा उठाकर जीत हासिल करवाई, सब राणा के कायल हो गए। प्रदेश की राजनीति में उनकी सक्रियता देखने वाली थी। मगर फिर एक छोटी सी भूल ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। सोलन के जीते हुए पार्षदों के बीच चल रही उठापठक सुलझाने राणा दोबारा सोलन आए, मगर फिर उनके बुलाने पर अधिकतर पार्षद नहीं पहुंचे और भ्रम टूट गया। मुख्यमंत्री की रेस का तो फिलवक्त मालूम नहीं मगर धूमल के दोबारा सक्रीय होने के बाद राणा के विधानसभा हलके में भी उनके लिए खतरा बढ़ गया है। अब राणा दोबारा कोई चमत्कार कर ज़बरदस्त वापसी कर पाते है या नहीं इसपर सबकी निगाहें टीकी हुई है।
हिमाचल के शिमला में कांग्रेस उपाध्यक्ष और शिमला जिला के प्रभारी गंगू राम मुसाफिर ने बेरोजगारी को लेकर प्रदेश की जयराम सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि बीजेपी और महंगाई दोनों सगी बहने हैं जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है तभी से महंगाई चरम सीमा पर है। पेट्रोल-डीजल दाल व तेल के दाम आसमान छू रहे हैं। इससे आम आदमी का जीना दुर्भर हो गया है। मुसाफिर ने कहा कि जब से केंद्र में मोदी और प्रदेश में जयराम ठाकुर की सरकार बनी है महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि बढ़ती महंगाई ने गरीब जनता का जीना मुश्किल कर दिया है। भाजपा की सरकार ने वीरभद्र सरकार के समय में गरीब जनता के लिए शुरू की गई सस्ते राशन प्रणाली को भी खत्म कर दिया है। आज जनता बीजेपी के शासन से त्रस्त है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आगामी उपचुनाव और 2022 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस भाजपा की सरकार को सत्ता से उखाड़ फेकेंगी जिसके लिए कांग्रेस ने रणनीति बनाना अभी से शुरू कर दिया है। बूथ स्तर पर काम कर कांग्रेस के हर छोटे बड़े नेता को तैयार किया जा रहा है। इस भाजपा के पास कोई भी स्कोप नहीं बचेगा और सत्ता में कांग्रेस की वापसी होगी। हिमाचल की जनता महंगाई बढ़ाने वाली नहीं बल्कि महंगाई घटाने वाली सरकार चाहती है।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने आरोप लगाया कि प्रदेश की जयराम सरकार करुणामूलक आश्रितों के साथ भेदभाव कर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जानबूझकर ऐसे लाेगाें के साथ अन्याय कर रही है। मुकेश अग्निहाेत्री ने कहा कि करूणामूलक याेजना के तहत अभी तक भी हजाराें आश्रितों के केस सरकार के पास लंबित हैं। बावजूद इसके सरकार सबका साथ, सबका विकास की माला जप रही है। करूणामूलक आश्रितों के प्रदर्शन से भी सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि जयराम सरकार को इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। मुकेश ने बढ़ती महंगाई पर भी सरकार पर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकार के डबल इंजन पटरी से उतर चुके है। वहीँ राज्य सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक बीते 7 मार्च 2019 की संशोधित नीति को लागू किया जा रहा है। पहले 50 वर्ष आयु की लिमिट रखी गई थी। इसमें मानवीय दृष्टिकोण नहीं था इसलिए संशोधन किया कि यदि अंतिम दिन भी किसी कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उसके परिजन भी करुणामूलक आधार पर नौकरी के पात्र होंगे। दूसरा आय सीमा को 2.5 लाख किया है। जुलाई 2019 तक 4 हज़ार 40 मामले थे और 2779 पेंडिंग एप्पलीकेशन ही बची हैं। इसमें 5 प्रतिशत टोटल वेकेंसी को बढ़ाने की बात है। बताया गया कि प्रदेश सरकार आने वाले समय में इसकी गंभीरता को देखते हुए एक कमेटी बनाएगी। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उसमें सभी बातों पर विचार किया जाएगा। कुछ मामले हाईकोर्ट में गए हैं, एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिवार की पेंशन को भी जोड़ा जाए। इन सभी बातों पर कमेटी कार्य करेगी।
युवा कांग्रेस ने चारा घोटाले समेत सीएजी रिपोर्ट के तहत लगे आरोपों के खिलाफ जयराम सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस को जयराम सरकार के खिलाफ एक एजेंडा मिल गया है। इसके मद्देनजर युवा कांग्रेस जिला शिमला ने माेर्चा खाेल दिया है। जिला युवा कांग्रेस शिमला शहरी के उपाध्यक्ष संदीप चौहान व शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष धर्मेन्द्र वर्मा के नेतृत्व में पशुपालन विभाग में हुए चारा घोटाले, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में करोड़ों के तथाकथित घोटालें व अन्य विभागों में हुए घोटालों के विरोध में उपयुक्त के माध्यम से राज्यपाल काे भी ज्ञापन साैंप दिया। प्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव राहुल चौहान ने कहा कि कैग की ऑडिट रिपाेर्ट बहुत चौंकाने वाली है, जिसमें सरकार की निगरानी में अफसरों की मिलीभगत से कई घोटालें होने की बात सामने आई है। इनमें पशुपालन विभाग में 99.71 लाख का गवन, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में 1.13 करोड़ का घोटाला और 1.62 करोड़ खर्च कर स्कूल बर्दी परीक्षण लेब को अनुचित लाभ पहुंचाना जैसे मुख्य घोटालों के साथ अन्य कई तरह की आर्थिक अनियमितताएं सरकार के द्वारा की गई है। उन्होंने कहा कि जिसमें पहले से ही कर्जे पर डूबी हुई सरकार द्वारा जानबूझ कर 437 करोड़ का टैक्स ना वसूलना एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इस भ्रष्टाचार में संलिप्त इस प्रदेश सरकार ने सारे हिमाचल वासियों को शर्मसार किया है। युवा कांग्रेस ने हैरानी जताते हुए कहा कि भ्रष्टाचार में संलिप्त दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के बजाए मुख्यमंत्री सरकार की छवि बचाने के लिए कैग की ऑडिट रिपाेर्ट पर उंगली उठा रहे हैं कि कैग के अधिकारियों ने शब्दों का सही ढ़ंग से प्रयोग नही किया है। राहुल ने कहा कि मुख्यमंत्री का कैग के अधिकारियों के विरुद्ध इस तरह की बयानबाजी साफ दर्शाती है कि भाजपा सरकार का अब सरकारी संस्थाओं पर से भी विश्वास उठ गया है। युवा कांग्रेस ने इन सभी घोटालों को लेकर राज्यपाल को जिलाधीश के माध्यम से ज्ञापन सौंपते हुए मांग की है कि इस सरकार पर मुकदमा दर्ज किया जाएं और इनमें शामिल असली गुनहगारों तक पहुंचने के लिये इसकी जांच सीबीआई से करवाई जाएं ताकि घोटालों के पीछे छिपे असली लोगों और सरकार का सच सबके सामने आये और उन्हे कड़ी से कड़ी सजा मिलें।
हिमाचल प्रदेश के मंडी सदर से भाजपा के विधायक एवं पूर्व मंत्री अनिल शर्मा ने हाल ही में वीडियो जारी किया है। अनिल शर्मा ने स्थानीय मुद्दे पर चर्चा करने के साथ साथ शिमला ग्रामीण से विधायक विक्रमादित्य पर भी खूब कटाक्ष किए है। उन्होंने कहा कि विक्रमादित्य सिंह शिमला से यह कह रहे हैं कि शहर में पार्किंग बनाने के लिए और भी स्थान हैं। विक्रमादित्य सिंह मंडी आकर बताएं कि कहां पर पार्किंग बनाई जा सकती है। पूर्व मंत्री अनिल शर्मा ने कहा है कि यू-ब्लॉक परिसर में पार्किंग निर्माण के वे पक्षधर हैं, लेकिन स्कूल के साथ बन रहे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का वे भी पूरी तरह से विरोध करते हैं। पूर्व में मंत्री रहते उन्होंने ही यू-ब्लॉक में भव्य पार्किंग का प्रपोजल तैयार किया था, लेकिन उसमें शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का कोई जिक्र नहीं था। सोशल मीडिया पर अपने ऊपर लग रहे आरोपों का भी अनिल शर्मा ने वीडियो संदेश जारी करके जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि पार्किंग और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाने वाला ठेकेदार उनका रिश्तेदार है, लेकिन उसके साथ बिजनेस वाली कोई बात नहीं है। यदि कोई इस तरह की बात साबित कर दे तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। अनिल शर्मा ने कहा कि इस निर्माण में लोग यह कह रहे हैं कि दाल में कुछ काला है और काला क्या है, इस पर सीएम जयराम ठाकुर की बेहतर ढंग से बता सकेंगे। आखिर सरकार क्यों किसी तंग जगह पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाने पर तुली हुई है। अनिल शर्मा ने कहा कि शहर में दो स्थान इसके लिए चिन्हित किए गए थे, लेकिन एनजीटी के निर्देशों के बाद वहां पर कार्य आगे नहीं बढ़ सका। शर्मा ने सरकार से मांग उठाई है कि यू-ब्लाक स्कूल का जो भवन तोड़ा गया है, वहां पर सबसे पहले स्कूल का भवन ही बनाया जाए और उसके बाद पार्किंग का कार्य शुरू किया जाए। उन्होंने कहा कि बाद में स्कूल तक जाने के लिए रास्ता व सड़क नहीं बचेगा। ऐसे में इन दोनों की भी उचित व्यवस्था की जाए। उन्होंने कहा कि इस निर्माण को लेकर भविष्य में लोग सीएम और स्थानीय विधायक से कई सवाल पूछेंगे, ऐसे में ऐसा कोई काम न किया जाए, जिससे लोगों में गलत संदेश जाए।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने केंद्र की माेदी सरकार के खिलाफ माेर्चा खाेलदिया है। देश में बढ़ती महंगाई काे लेकर आज पूरा भारत आहात हैं। इसके मद्देनजर पीसीसी चीफ कुलदीप सिंह राठाैर ने केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर के हिमाचल दाैरे काे लेकर जंग छेड़ दी। राठाैर ने कहा कि एक तरफ सरकार यात्रा निकालते हुए जनता का आशीर्वाद मांग रही है तो दूसरी तरफ जनता को मंहगाई का तोहफा दिया जा रहा है। उन्होंने कहा प्रदेश सरकार ने अपने चार साल के कार्यकाल में ऐसा कोई कार्य नहीं किया कि उसे जनता का आशीर्वाद मिल सके। राठौर ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की जनविरोधी नितियों के चलते पैट्रोल-डीजल के दामों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही घरेलू गैस सिलैंडर और खाद्ध वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे है तथा हर वर्ग बढ़ती मंहगाई से आज त्रस्त है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में आगामी मंडी लोकसभा और तीन विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए जन आर्शिवाद यात्रा शुरु की गई है, लेकिन इसका कोई लाभ सत्ताधारी दल को मिलने वाला नहीं है। उपचुनाव में जनता सरकार को सबक सिखाने का मन बना चुकी है। राठौर ने कहा कि यह यात्रा उस समय शुरु की गई है, जब प्रदेश में कोरोना के मामले बढ़ रहे है। ऐसे में यदि आगामी दिनों में कोरोना विस्फोट होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी। राठौर ने कहा कि कैग की रिपोर्ट से सरकार की कार्यप्रणाली की पोल खुल गई है। पशु चारा घोटाला की फेहरिस्त में अब हिमाचल भी शामिल हो गया है। अफसर पशुओं के चारे में घोटाला कर रहे है और सरकार मूक दर्शक बनी हुई है। उन्होंने कहा कि ये आरोप कांग्रेस नहीं लगा रही है बल्कि इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ है और इसे भारत सरकार मान्यता देती है। उन्होंने कहा कि कोरोना की तीसरी संभावित लहर का खतरा बना हुआ है जबकि सरकार कोरोना प्रोटोकाल का फोलो नहीं कर रही है। मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में नियमों की अनदेखी हो रही है। अफसरों काे ताश के पत्तों की तरह फैंटा जा रहा कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि प्रदेश सरकार अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह फैंट रहे है। सरकार मुख्य सचिव तक को कई दफा बदल चुकी है। तबादलो की लंबी-लंबी सूची जारी हो रही है। उन्होंने कहा कि जहां-जहां उपचुनाव होने है, वहां जिला उपायुक्तों के माध्यम से राशि आंबटित की जा रही है जबकि अन्य जिलों में राशि जारी नहीं हो रही है। निष्क्रिय पदाधिकारी होगें बाहर, बिलासपुर से शुरु आत कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि जिला बिलासपुर की कार्यकारणी काफी लंबी थी और पदाधिकारी संगठन के कार्यक्रमों और बैठकों में भाग नहीं ले रहे थे। ऐसे में जिला से मिली रिपोर्ट के आधार पर कार्यकारणी को भंग किया गया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कुछ अन्य जिलों की कार्यकारणी में भी फेरबदल हो सकता है। राठौर ने कहा कि पदाधिकारियों को संगठन की गतिविधियों में सक्रीय रुप से भाग लेना होगा। ऐसा नहीं होता तो उचित कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि उपचुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निष्क्रिय पदाधिकारियों के स्थान पर भी नहीं चहेरों को आगे लाया जाएगा। पार्टी विधानसभा चुनाव में एक सशक्त और सक्रीय टीम के साथ मैदान में उतरेगी। पार्टी नेताओं के नारे लगाना गलत नहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठाैर ने कहा कि पार्टी नेताओं के नारे लगाना गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी पार्टी में प्रतिद्धंवता रहती है। ऐसे में कई दफा सर्मथक अपने नेता के पक्ष में नारे भी लगाते है, जिसे गलत ढग़ से नहीं देखा जाना चाहिए। राठौर ने कहा कि बेनामी पत्र जारी करने वाले बेनकाब होने चाहिए। उन्होंने कहा कि चाहे सत्तापक्ष और या विपक्ष, ओच्छी राजनीति कर नेताओं के चरित्र हनन का प्रयास करने से जुड़े ऐसे मामलों को सरकार गंभीरता से ले और ऐसी मानसिंकता वालों पर कड़ी कार्रवाई हो। राठौर ने कहा कि उनके मंडी दौरे से लौटने के बाद एक फर्जी पत्र जारी हुआ, जिसका कोई आधार नहीं है।
समर्थकों को आशा भी हैं और महिला नेताओं में प्रतिभा भी, तो क्या आने वाले समय में हिमाचल की पहली महिला मुख्यमंत्री के इंतज़ार पर विराम लग सकता हैं ? ये वो सियासी पहेली हैं जिसे बुझना मुश्किल है। दिन प्रति दिन हिमाचल की सियासत बदलती जा रही है। बस इतना समझ लीजिये की कल सियासत में भी मोहब्बत थी अब मोहब्बत में भी सियासत है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में सर्वमान्य चेहरे की जंग ने तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बनती जा रही है। कई भावी मुख्यमंत्री अभी से दिख रहे है। मुख्यमंत्री पद पर ज़िलों का दावा भी आने लगा हैं। अब यहां कई शगूफों में से एक शगूफा प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री मिलने का भी है। हिमाचल कांग्रेस की दो कद्दावर महिला नेता भी चर्चा में है, जिन्हें सत्ता वापसी की स्थिति में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। इसमें पहली है पूर्व मंत्री व डलहौज़ी से विधायक आशा कुमारी और दूसरी है पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह। प्रदेश की सियासत में महिला नेताओं का योगदान असरदार रहा है मगर अब तक प्रदेश को महिला मुख्यमंत्री नहीं मिली है। अब इन दोनों नेताओं के बढ़ते कद ने प्रदेश में पनपती पहली महिला मुख्यमंत्री की उम्मीद को और भी तेज़ कर दिया है। हालांकि अभी इब्तिदा है, पर आगे -आगे क्या होता है ये देखना रोचक होने वाला है। आशा पर टिकी समर्थकों की आशा पूर्व मंत्री और डलहौज़ी विधायक आशा कुमारी को सत्ता वापसी की स्थिति में सीएम पद का दावेदार माना जा रहा है। समर्थक अभी से उन्हें प्रदेश की भावी सीएम और प्रदेश की होने वाली पहली महिला मुख्यमंत्री करार देने लगे है। चलिए समर्थकों की अपनी भावनाएं है लेकिन सियासी वजन भी तोला जाये तो हिमाचल कांग्रेस में मौजूदा महिलाओं में आशा कुमारी सबसे अनुभवी चेहरे के तौर पर खड़ी दिखती हैं। आशा कुमारी निसंदेह तेजतर्रार भी है और अच्छी वक्ता भी। सदन में भी सक्रिय दिखती है और जब शिमला में होती है तो सरकार को घेरने में भी पीछे नहीं रहती। इस पर गांधी परिवार से उनकी नजदीकी भी उनका दावा जरूर मजबूत करेगी। आशा कुमारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव और पंजाब की एआईसीसी प्रभारी भी रह चुकी है। वह कई अन्य राज्यों की भी सहप्रभारी रही है। 6 बार डलहौज़ी से विधायक और इसी के साथ वह 2003 से 2005 तक राज्य की शिक्षा मंत्री भी रही है। पर अतीत के कई विवाद आशा कुमारी का पीछा आसानी से नहीं छोड़ेगे। इस पर पार्टी में व्याप्त अंतर्कलह भी उनके रास्ते में आएगी। आशा कुमारी की पूर्व में वीरभद्र सिंह के साथ भी खींचतान दिखती रही, मगर मौजूदा समय में उनके जाने से पहले आशा कुमारी पूर्णतः उन्ही के समर्थन में दिख रही थी। खुद वीरभद्र सिंह उन्हें अपनी बेटी समान करार देते थे। मगर अब बदली राजनीतिक फिजा में आशा कुमारी और होलीलॉज के ताल्लुकात काफी कुछ तय कर सकते है। बात करें आशा कुमारी की सर्व स्वीकार्यता की तो फिलवक्त उनकी स्थिति भी नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री जैसी है, शिमला और अपने जिले में तो ठीक है पर पूरे प्रदेश में उन्हें अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करनी होगी। आशा में उनके समर्थकों को खूब आशा दिख रही है, ऐसे में आने वाले वक्त में उनकी असल परीक्षा होनी है। होलीलॉज के निष्ठावानों को प्रतिभा सिंह से आस कयास थे कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद होलीलॉज का तिलिस्म ध्वस्त हो जाएगा। वीरभद्र परिवार के वर्चस्व पर एक बड़ा और गहरा संकट खड़ा हो जाएगा, मगर अब तक ऐसा होता नहीं दिख रहा है। जिस तरह विक्रमादित्य अपने पिता की सियासी विरासत को संभाल रहे है, परिपक्वता दिखा रहे है, ऐसे में विरोधियों का सुकून निश्चित तौर पर तार-तार हो रहा है । इस पर वीरभद्र सिंह की पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह की सक्रीय सियासत में वापसी भी लगभग तय मानी जा रही है। मंडी संसदीय क्षेत्र में उपचुनाव होने है और प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलों ने ही न सिर्फ भाजपा का सुकून चुराया लिया है बल्कि कहीं - कहीं कांग्रेस में भी ऐसे ही हाल है। प्रतिभा सिंह दो बार मंडी से सांसद रह चुकी है। हालांकि वे पिछले कुछ समय से चुनावी राजनीति से दूर रही है मगर इस बार उनका कमबैक अभी से लाइमलाइट में हैं। उनके पास दूसरा विकल्प अर्की उपचुनाव भी हैं, जहां से वे विधानसभा पहुँचने का मार्ग चुन सकती हैं। अगर प्रतिभा सिंह उपचुनाव में जीत जाती है तो निसंदेह होलीलॉज के निष्ठावान उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहेंगे। प्रतिभा सिंह 2004 में मंडी सीट से पहली बार जीतकर लोकसभा पहुंची थी। तब उन्होंने भाजपा नेता महेश्वर सिंह को चुनाव हराया था। इसके बाद 2013 में वे दोबारा सांसद बनी और तब उनके सामने थे प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में वे राम स्वरुप शर्मा से हार भी गई थी। लोकसभा से तो प्रतिभा सिंह का पुराना नाता है मगर अब तक वे विधानसभा चुनाव के मैदान में नहीं उतरी है, जो कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी और उनके बीच का फासला बढ़ा सकता है। हिमाचल भाजपा में भी कई महिला नेताओं ने अपना वर्चस्व बरकरार रखा है। सबसे पहली है सरवीण चौधरी जो वर्तमान में शाहपुर से विधायक भी है और हिमाचल कैबिनेट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री भी। सरवीण चौधरी 1992 से सक्रिय राजनीति में है और चौथी बार विधायक बनी है। वह 2008 से 2013 तक धूमल कैबिनेट में भी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रह चुकी है। दूसरी है इंदु गोस्वामी। हिमाचल में वर्ष 1998 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम की सदस्य रह चुकी राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद सियासी ध्रुव के रूप में चमकती रही है। 2022 के विस चुनाव से पहले दिल्ली हाईकमान इंदु गोस्वामी को लगातार पदोन्नति दे रहा है। वर्ष 2017 में इंदु को प्रदेश महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया। 2020 में राज्यसभा सांसद और अब विधानसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में उन्हें पदोन्नति दी गई। जानकार इसे सोची समझी सियासत का नाम दे रहे है। यहाँ ये भी याद रखना जरूरी हैं कि स्वास्थ्य घोटाले के बाद जब डॉ राजीव बिंदल को प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी तो इंदु अध्यक्ष पद कि प्रबल दावेदार थी। एक मर्तबा तो वरिष्ठ भाजपा नेता ने उन्हें ट्वीट कर बधाई भी दे डाली थी, पर सियासी गृह दशा बदली और अध्यक्ष पद इंदु के हाथ आते -आते रह गया। पर इसके बाद भी इंदु का रसूख कायम हैं। वीरभद्र का तिलिस्म और सीएम बनते-बनते रह गई मैडम स्टोक्स ! प्रदेश की सियासत में नारी शक्ति का असर कभी फीका नहीं रहा। हालाँकि हिमाचल के सियासी क्षितिज पर बेहद कम महिलाएं अब तक अपना नाम चमकाने में कामयाब रही और शायद इसका बड़ा कारण ये है कि प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक दलों ने कभी महिलाओं पर ज्यादा भरोसा जताया ही नहीं। पर कई चेहरे ऐसे है जिनके बगैर हिमाचल की सियासी कहानी अधूरी हैं। कई महिलाएं न सिर्फ विधानसभा में जनता की आवाज बनी, बल्कि मंत्री भी रही। देश की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर भी हिमाचल प्रदेश से ही सांसद थी। वहीँ प्रदेश की सियासत में एक मौका ऐसा भी आया जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स मुख्यमंत्री बनते बनते रह गई। दरअसल वर्ष 2003 में कांग्रेस की हिमाचल की सत्ता में वापसी हुई थी। 1998 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के मिशन रिपीट के अरमान पर पानी फेर दिया था फिर जब 2003 में मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो ठियोग विधायक और कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष विद्या स्टोक्स ने वीरभद्र को चुनौती दे दी। प्रदेश में माहौल बना की शायद मैडम स्टोक्स सोनिया गांधी से अपनी नज़दीकी के बूते सीएम बनने में कामयाब हो जाए। बताया जाता हैं कि तब मैडम स्टोक्स ने दिल्ली दरबार में विधायकों के समर्थन का दावा भी पेश कर दिया था। विद्या दिल्ली में थी और वीरभद्र सिंह ने शिमला में अपना तिलिस्म साबित कर दिया। दरअसल तभी शिमला में वीरभद्र सिंह ने मीडिया के सामने अपने 22 विधायकों की परेड करा कर अपनी ताकत और कुव्वत का अहसास आलाकमान को करवा दिया। इसके बाद जो परेड में शामिल नहीं हुए उनमे से भी अधिकांश होलीलॉज दरबार में पहुंच गए। सो वीरभद्र सिंह पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए और प्रदेश को महिला सीएम मिलने का इंतज़ार खतम नहीं हो सका। आठ बार विधायक बनी विद्या स्ट्रोक्स वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स कांग्रेस से आठ बार विधायक चुनी गई। उनका रिकॉर्ड कोई दूसरी महिला नेता नहीं तोड़ पाई है। स्ट्रोक्स पहली बार 1974 में विधायक बनी थी। वह विधानसभा की अध्यक्ष भी रहीं है और नेता विपक्ष भी बनी। स्ट्रोक्स 1974, 1982, 1985, 1990,1998, 2003, 2007 व 2012 में विधायक रही। वर्तमान में पांच महिला विधायक 2017 के विधानसभा चुनाव में चार महिलाओं ने जीत दर्ज की। भाजपा टिकट पर शाहपुर सीट से सरवीण चौधरी, भोरंज से कमलेश कुमारी और इंदाैरा से रीता देवी विधायक बन कर विधानसभा पहुंची थी, जबकि कांग्रेस की आशा कुमारी डलहौजी से चुनाव जीत कर विधायक बनी थी। इसके बाद 2019 में उपचुनाव में पच्छाद से भाजपा की रीता कश्यप जीत हासिल कर विधायक बनी। उपचुनाव में दिखेगी महिला शक्ति ! जल्द हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना हैं। माना जा रहा हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रतिभा सिंह मंडी संसदीय क्षेत्र या अर्की विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतरेगी। अगर वो जीत दर्ज करती हैं तो संसद या विधानसभा में महिला नुमाइंदो की संख्या में इजाफा करेगी। इसी तरह भजपा से भी कई महिलाएं टिकट की दौड़ में हैं। जुब्बल कोटखाई विधानसभा उप चुनाव के लिए नीलम सरैक टिकट की मजबूत दावेदार हैं। वहीँ मंडी से पायल वैद्य भी टिकट की दौड़ में हैं। 1998 में जीती थी सबसे अधिक 6 महिलाएं हिमाचल प्रदेश के इतिहास पर नज़र डाले तो 1998 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 6 महिअलों ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस की विप्लव ठाकुर, मेजर कृष्णा मोहिनी, विद्या स्ट्रोक्स, आशा कुमारी और भाजपा की उर्मिल ठाकुर और सरवीण चौधरी ने जीत दर्ज की। हालांकि बाद में भाजपा नेता महेंद्र नाथ सोफत की याचिका पर सोलन का चुनाव सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द घोषित कर दिया गया जहाँ से पहले मेजर कृष्णा मोहिनी को विजेता घोषित किया गया था। वहीं 1998 में परागपुर में हुए उप चुनाव में निर्मला देवी ने जीत दर्ज की। सरला शर्मा से सरवीण चौधरी तक प्रदेश में 1972 में पहली बार सरला शर्मा मंत्री बनी। फिर 1977 में श्यामा शर्मा मंत्री रही। उसके बाद आशा कुमारी, विप्लव ठाकुर, चंद्रेश कुमारी, विद्या स्टोक्स मंत्री रही। वहीं वर्तमान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री सरवीण चौधरी इससे पहले धूमल सरकार में भी मंत्री रह चुकी है। सिर्फ तीन महिलाएं पहुंची लोकसभा लोकसभा की बात करें तो वर्ष 1952 में राजकुमारी अमृत कौर प्रदेश की पहली महिला सांसद बनी। इसके बाद चंद्रेश कुमारी वर्ष 1984 में कांगड़ा से सांसद चुनी गई। वहीँ प्रतिभा सिंह मंडी सीट से दो बार लोकसभा सांसद रही है। वे वर्ष 2004 और 2013 के उप चुनाव में विजेता रही। 1956 में लीला देवी बनी थी राज्यसभा सांसद अपर हाउस राज्यसभा की बात करें तो आज तक हिमाचल प्रदेश की कुल 7 महिलाएं राज्यसभा में पहुँच सकी है। सबसे पहले वर्ष 1956 में कांग्रेस नेता लीला देवी राज्यसभा के लिए चुनी गई। इसके बाद 1968 में सत्यावती डांग, 1980 में उषा मल्होत्रा, 1996 में चंद्रेश कुमारी, 2006 व 2014 में विप्लव ठाकुर को कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा भेजा। वहीं भाजपा से 2010 में बिमला कश्यप व 2020 में वर्तमान राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी राज्यसभा पहुंची।
जो अपेक्षित था, वो ही हुआ। कैबिनेट में प्रमोशन के बाद पहली बार हिमाचल पहुंचे अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा में शक्ति और भक्ति दोनों दिखे। धूमल पुत्र के स्वागत सत्कार में उमड़ी भीड़ से फिर साबित हो गया की हिमाचल भाजपा के सबसे बड़े धड़े की आस्था अब भी समीरपुर दरबार में ही है। इसे सियासी मजबूरी समझे या कुछ और, मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक हर कोई अनुराग के स्वागत के लिए तत्पर रहा। इस यात्रा में कई रोचक झलकियां दिखी। कहीं पुराने विरोधियों ने अनुराग के समर्थन में नारे लगाए तो कहीं अपनों के चेहरों पर भी नूर कुछ कम सा दिखा। 2017 में प्रो. प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद से जो निष्ठावान कोप भवन में दिख रहे थे, वे अब नई ऊर्जा के साथ मैदान में है। जो सियासी परिस्तिथि देख पाला बदल गए थे उन्हें भी अब दोबारा सोचना पड़ रहा है। तो कुछ ऐसे भी है जो कहीं के नहीं रहे थे, अब फिर से धूमल परिवार की छत्रछाया में पहुँचते दिख रहे है। ये ही राजनीति है, हर पल बदलती सियासी ग्रह दशा कब क्या करवा दे, कोई नहीं जानता। बहरहाल, सियासी क्षितिज में अनुराग का सितारा खूब चमक रहा है। केंद्र में अनुराग के बढ़े कद और हिमाचल में धूमल की बढ़ती सक्रियता ने हिमाचल भाजपा की सियासी गणित पूरी तरह बदल दी है। इसका असर कई कुंडलियों पर पड़ना तय है। उधर, प्रो धूमल के निष्ठावान अब अनुराग ठाकुर में भविष्य देख रहे है। फिलवक्त इन निष्ठावानों की तमन्ना ये ही है कि 2017 में जो नहीं हुआ वो 2022 में हो जाए। जो कहीं के नहीं रहे वो भी अब यहां के होंगे 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद धूमल के कई समर्थकों को जयराम मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। पर दिलचस्प बात ये है कि धूमल की कोप दृष्टि से चलते भी कई नाम मंत्रिमंडल से कट गए थे। माना जाता है इनमें एक ऐसे नेता भी थे जो जयराम और शांता कुमार की गुड बुक्स में तो कभी थे ही नहीं, पर विधानसभा चुनाव से पहले धूमल के प्रति भी निष्ठावान नहीं थे। सो धूमल के असर ने इन्हें पूरी तरह बेअसर कर दिया। प्रो धूमल के लिए नारे लगाने वाले ये नेता अब अनुराग का राग अलापने लगे है। बदली स्थिति - परिस्थिति में जानकार मानते है कि जो कहीं का भी नहीं था, वो भी अब यहीं का होना चाहता है, यानी समीरपुर दरबार में शरण चाहता है। पर अब सिर्फ इनके चाहने से क्या होगा कौन इधर, कौन उधर, कौन किधर...सब कंफ्यूज कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर, क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या...कौन इधर है, कौन उधर है, कौन किधर है, हिमाचल भाजपा में सब कंफ्यूजन है। दरअसल, जयराम राज में धूमल कैंप के कई नेता हालात से समझौता कर पाला बदल गए और जिन्होंने नहीं बदला वो हाशिये पर ही रहे। हालांकि चंद ऐसे भी है जिन्हें संतुलन साधने के लिए सरकार में एडजस्ट किया गया। माहिर मानते है कि अब भाजपा के भीतर फिर से हावी होती दिख रही धूमल-अनुराग लहर में निष्ठा बदल चुके नेताओं को सोचना पड़ सकता है। वहीँ सरकार में बैठे कुछ नेता भी तेवर के जेवर पहन सकते है। इन सबके बीच आम कार्यकर्त्ता कंफ्यूज है। धूमल कैंप की शक्ति का सूचकांक बढ़ता जायेगा या सीएम गुट का मास्टर स्ट्रोक अभी बाकी है, ये फिलवक्त सबसे बड़ा सवाल है। धूमल विरोधियों को सत्य तो स्वीकारना होगा सियासी चश्मे से देखे तो अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा धूमल गुट का शक्ति प्रदर्शन भी था। विरोधियों को ये सत्य स्वीकारना होगा कि धूमल गुट का जो जलवा इस जन आशीर्वाद यात्रा में दिखा वैसा क्रेज 2017 के बाद कभी नहीं दिखा। अब कारण चाहे बेहतर इवेंट मैनेजमेंट हो या जन समर्थन, ये विश्लेषण का विषय है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, अप्रैल में हुए नगर निगम चुनाव में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने वार्ड -वार्ड घूमकर प्रचार किया था और कई स्थानों पर मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों का हाल किसी से छिपा नहीं है। जानकार मानते है कि उस चुनाव में सीएम को सीधे तौर पर वार्डों की गलियों में घुमाकर रणनीतिकारों ने बना बनाया भ्रम ध्वस्त कर दिया। और तभी से आम कार्यकर्ता के मन में भी संशय उत्पन्न हुआ। जयराम अब तक हिट, अब होगा असल इम्तिहान 2017 में जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री जरूर बने लेकिन अब तक का उनका कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा है। कभी भाजपा में हावी गुटबाजी, तो कभी कोरोना काल ने उनका जमकर इम्तिहान लिया। इस पर खुद को सर्वमान्य नेता साबित करने की उनकी जद्दोजहद अब भी जारी है। पर तमाम चुनौतियों के बावजूद अब तक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अधिकांश मोर्चों पर हिट साबित हुए है। पहले 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। तदोपरांत पच्छाद और धर्मशाला में हुए उपचुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज की। फिर इसी साल जनवरी में हुए पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में भी भाजपा इक्कीस रही। हालांकि इसके बाद हुए चार नगर निगम चुनाव में उन्हें पहला झटका लगा, जहाँ कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया। पर असल परीक्षा तो अभी शेष है। चार अनचाहे उपचुनाव भाजपा के साथ -साथ खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का भी इम्तिहान लेंगे। जानकार मानते है कि यहाँ परिणाम प्रतिकूल रहा तो पार्टी के भीतर भी खुलकर विरोध की स्थिति आ सकती है। सत्ता-संगठन में जयराम की जय बीते साढ़े तीन साल में तीन नेता भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाल चुके हैं। पहले थे सतपाल सिंह सत्ती जिनका कार्यकाल 2019 में पूरा हुआ। इसके बाद माननीय विधानसभा अध्यक्ष बना दिए गए डॉ राजीव बिंदल किसी तरह 2019 के अंत में प्रदेश अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए। पर कोरोना काल में स्वास्थ्य घोटाले के बाद नैतिकता के आधार पर बिंदल को पड़ छोड़ना पड़ा। फिर कमान मिली शिमला सांसद सुरेश कश्यप को। माहिर मानते है की बतौर प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप की तैनाती सीएम जयराम ठाकुर का मास्टर स्ट्रोक रहा है। अब सत्ता के साथ -साथ संगठन की डोर भी अप्रत्यक्ष तौर पर जयराम ठाकुर के हाथ में ही है। कोई इसे बेहतर तालमेल के तौर पर देखता है, तो कोई सत्ता द्वारा संगठन के हाईजैक के तौर पर। पर जो भी हो संगठन में सीएम जयराम ठाकुर का भरपूर असर दिखता है। शांता गुट अब एक किस्म से जयराम गुट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के निर्णय लेनी की क्षमता को लेकर भी सवाल उठते रहे है और उनके कैबिनेट में तथाकथित सुपर सीएम होने पर भी विरोधी चुटकी लेते रहे है। पर उनका अब तक का कार्यकाल बेदाग़ रहा है। एकाध मामलों को छोड़ दे तो सरकार भी बेदाग़ है, कोई बड़ा आरोप न तो सरकार पर है और न ही खुद सीएम पर। आम जन के बीच मुख्यमंत्री का ये सरल व्यक्तित्व और ईमानदार छवि उनकी असल ताकत है जिसका तोड़ विरोधियों के पास नहीं है। इस पर हिमाचल भाजपा का शांता गुट अब एक किस्म से जयराम गुट हो चूका है। जयराम ठाकुर बेशक अपना अलग मजबूत धड़ा बनाने में कामयाब नहीं हो सके लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के निष्ठावानों के बुते उनकी ताकत कमतर भी नहीं है।
कुल्लू : हिमाचल प्रदेश में होने वाले उपचुनावों में चारों सीटें कांग्रेस पार्टी जीतेगी और भाजपा को इन चुनावों में पूरी तरह से शिकस्त दी जाएगी। यह बात कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने जिला मुख्यालय कुल्लू में पत्रकारों को संबोधित करते हुए दी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में एक लोकसभा सीट और 3 विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं जिसके लिए कांग्रेस पार्टी पूरी रणनीति बनाने में जुट गई है। उन्होंने कहा कि चुनावों के दृष्टिगत वह मंडी जिला का दौरा कर चुके हैं और अब कुल्लू जिला का दौरा कर रहे हैं। इस दौरान आनी बंजार विधानसभा क्षेत्रों में वह कार्यकारिणी की बैठक ले चुके हैं और रविवार को जिला मुख्यालय कुल्लू में कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई, जिसमें उप चुनावों को जीतने के लिए कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ चर्चा की गई और पार्टी को मजबूत करने पर बल दिया गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से चुनाव जीतने में सक्षम है और भाजपा को इन चुनावों में पूरी तरह से पछाड़ा जाएगा। राठौर ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार से आम जनमानस पूरी तरह से तंग आ चुके हैं। मंहगाई आसमां छू रही है डिपो से राशन गायब हो रहा है और जनता को राहत देने के लिए यह सरकार कुछ नहीं कर रही है ऐसे में इन उपचुनाव में भाजपा का जीतना नामुमकिन है। इस दौरान उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में फोरलेन प्रभावितों को चार गुना मुआवजा देने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद यह सरकार अपना वादा भूल गई है। लिहाजा कांग्रेस पार्टी इन उप चुनावों में भाजपा को हर मोर्चे पर गिराने वाली है। प्रदेश अध्यक्ष से बात करना हर कार्यकर्ता का हक : प्रदेश कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने आनी दौरे के दौरान कार्यकर्ताओं की नाराजगी को लेकर मीडिया कर्मियों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा कि हर कार्यकर्ता और पदाधिकारी प्रदेश अध्यक्ष से बात कर सकता है लेकिन इस प्रकरण में गुटबाजी जैसा कोई भी पहलू नहीं है। उन्होंने कहा कि काग्रेस पार्टी एकजुट है और हर कार्यकर्ता और पदाधिकारी पार्टी को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने इस दौरान पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं का आवाहन करते हुए कहा कि वह पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करें ताकि कांग्रेस पार्टी और मजबूत होकर आगे बढ़ सके। इस मौके पर उनके साथ कुल्लू सदर के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर, जिला कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष बुद्धि सिंह ठाकुर, पूर्व मंत्री सत्य प्रकाश ठाकुर सहित कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पदाधिकारी व कार्यकर्ता मौजूद रहे।
कर्नल एक्शन में है और विरोधी टेंशन में है। फिलवक्त सोलन कांग्रेस का सूरत ए हाल कुछ ऐसा ही है। इसी वर्ष के शुरुआत में जिला परिषद चुनाव हुए थे और तभी से सोलन विधायक कर्नल धनीराम शांडिल ने आक्रामक रुख इख्तियार किया हुआ है। पहले जिला परिषद चुनाव में अपनी इच्छा अनुसार टिकट आवंटन कर अपनी ताकत मनवाई। हालांकि नतीजे मनमाफिक नहीं रहे पर सियासी चश्मे से देखे तो कर्नल की नज़र जिला परिषद् पर कम और 2022 पर ज्यादा थी। इसके बाद अप्रैल में हुए नगर निगम सोलन के चुनाव में भी कर्नल का जादू खूब चला। खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सोलन के वार्ड - वार्ड घूमे, बावजूद इसके सोलन नगर निगम पर कांग्रेस का कब्ज़ा हुआ। अब कर्नल के तेवर फिर बदले-बदले से है। कर्नल शांडिल समस्त निर्वाचन क्षेत्र में निरंतर दौरे कर रहे है और 2022 के लिए अपनी जमीन मजबूत भी। सोलन में कांग्रेस की राजनीति की बात करें तो लम्बे वक्त से मुख्य तौर पर यहां पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह गुट का ही बोलबाला रहा। पर कर्नल धनीराम शांडिल दिल्ली आलाकमान में अपनी पहुंच और पकड़ की बदौलत वीरभद्र सिंह के दौर में भी अपनी जगह बनाये रखने में कामयाब रहे। हालांकि राजा गुट के साथ उनकी खींचतान किसी से छुपी नहीं रही, पर इसमें कोई संशय नहीं है कि उन्होंने कभी भी राजा गुट के आगे हथियार नहीं डाले। अब वीरभद्र सिंह नहीं है और आने वाला वक्त उनके निष्ठावानों की कड़ी परीक्षा लेगा। जो लोग कर्नल शांडिल की खुलकर मुखालफ़त करते रहे है उनके राजनैतिक भविष्य को लेकर भी कयास लगने शुरू हो गए है। ऐसे में सोलन कांग्रेस की राजनीति में कई दिलचस्प उतार -चढ़ाव देखने को मिल सकते है। न काहू से दोस्ती न काहू से बैर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर सवाल उठ रहे है। पार्टी में कई वरिष्ठ नेता है जो नेतृत्व करने का मादा रखते है और कर्नल शांडिल भी उनमें से एक है। शांडिल दो बार शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे है, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रहे है और वर्तमान में दूसरी दफा सोलन निर्वाचन क्षेत्र से विधायक है। पर उनकी असल ताकत उनका बेदाग़ राजनैतिक करियर है। जब प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी तब भाजपा कांग्रेस के मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चार्ज शीट लेकर आई थी, उक्त चार्ज शीट में भी शांडिल का नाम नहीं था। यानी विरोधी भी शांडिल की ईमानदारी पर कभी सवाल नहीं उठा पाए। एक बात और कर्नल शांडिल के पक्ष में जाती है, वो है उनकी गुटबाजी से दुरी। प्रदेश कांग्रेस में कई धड़े है और शांडिल किसी भी गुट में शामिल नहीं है। यानी न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। शांडिल का कोई विकल्प नहीं इन दिनों सोलन में कर्नल शांडिल के विरोधियों ने एक नया शगूफा छेड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि 2022 के लिए शहर की सियासत के एक चेहरे को तैयार करने की जद्दोजहद ज़ारी है। पर हकीकत ये है कि फिलवक्त सोलन कांग्रेस ने ऐसा कोई चेहरा नहीं दिखता जो कर्नल शांडिल का विकल्प बन सके। हालांकि विकल्प न होना कांग्रेस के लिए एक बेहतर स्थिति नहीं है, पर निजी तौर पर बात करें ये बात कर्नल शांडिल को और मजबूत करती है। ब्लॉक और शहरी इकाई में शांडिल के निष्ठावान सोलन में कांग्रेस के संगठन की बात करें तो फिलहाल मंडल और शहर में कर्नल शांडिल की ही पकड़ है। दोनों की कमान कर्नल के निष्ठावानों के हाथ में है। हालांकि जिला संगठन और कर्नल शांडिल के बीच की खींचतान काफी वक्त से चर्चा में है। वैसे कांग्रेस के जिला संगठन की सक्रियता को लेकर भी सवाल उठ रहे है। ऐसे में आगामी वक्त में फेरबदल के कयास भी लग रहे है। विभाजित भाजपा, लाभ कर्नल को आपसी खींचतान के चलते सोलन भाजपा गुटों में विभाजित है जिसका सीधा लाभ कर्नल शांडिल को मिलता दिख रहा है। न कांग्रेस में कर्नल शांडिल का कोई विकल्प है और न ही फिलहाल भाजपा इतनी मजबूत दिख रही है कि शांडिल के लिए कोई बड़ी चुनौती पेश कर सके। हकीकत ये है कि भाजपा की स्थिति 2017 के मुकाबले भी कमजोर दिखती है। हालाँकि चुनाव में अभी एक साल से अधिक का वक्त है और ऐसे में उम्मीद है कि अभी सोलन की राजनीति कई दिलचस्प मोड़ लेगी।
बुधवार को लोकसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई। ओम बिरला के अनुसार संसद के मॉनसून सत्र की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल पा रही थी। दरअसल, विपक्ष पेगासस जासूसी कांड, कृषि कानून, बेरोजगारी, महंगाई के मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरता रहा और संसद में हंगामा होता रहा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सत्र में कार्यवाही अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रही। निरंतर व्यवधान के कारण महज 22 प्रतिशत उत्पादकता रही। सत्र के दौरान संविधान के 127वें संशोधन विधेयक सहित कुल 20 विधेयक पारित किए गए। 66 प्रश्नों के मौखिक उत्तर दिए गए। सदस्यों ने नियम 377 के अधीन 331 मामले भी उठाए। इस दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि जो पार्टी दो वर्ष तक अपना अध्यक्ष न चुन पाए, जिसके सांसद अपनी ही सरकार के बिल फाड़ दें, जो पार्टी सदन न चलने दें, जो सड़क पर भी करने में लोग शर्म महसूस करते हैं वो सदन में किया जाए, सोचिए लोकतंत्र को कितना शर्मसार करने का काम किया जा रहा। देश की जनता ने जिन्हें सांसद बनाकर भेजा है अपने मुद्दे उठाने के लिए वे फाइलें फेंके, हंगामा करें, करोड़ों रुपये सदन चलाने के लिए खर्च किए जाते हैं लेकिन जब चर्चा होती है तो ये लोग भाग नहीं लेते। बीते कल जो राज्यसभा में हुआ, पहले मंत्री का बयान फाड़ दिया गया। फिर टेबल पर चढ़कर राज्यसभा अध्यक्ष की चेयर पर फाइल फेंकी गई, ये शर्मनाक है। राज्यसभा में विपक्षी सांसदों की तरफ से हंगामा करने वाले सांसदों के खिलाफ मामले को संसद की एथिक्स समिति के पास भेजा जा सकता है। सरकार चाहती है कि राज्यसभा में हंगामा करने के दोषी सांसदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
जयराम कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल फिलवक्त जिला सोलन से सबसे दमदार चेहरा है। सैजल उन नेताओं में से है जिनकी इमेज मिस्टर क्लीन की है, यही कारण है कि पिछले वर्ष हुए कैबिनेट विस्तार में सैजल का कद बढ़ाया गया था। तब सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय देख रहे सैजल को स्वास्थ्य महकमे का प्रभार दिया गया। वजह साफ़ थी, कोरोना काल में हुए स्वास्थय घोटाले के चलते जयराम सरकार की खूब किरकिरी हुई थी। तब स्वास्थ्य मंत्रालय स्वयं मुख्यमंत्री देख रहे थे और सरकार की इमेज बचाये रखने के लिए नैतिकता के आधार पर पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल को इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद सरकार ने डॉ राजीव सैजल को स्वास्थ्य मंत्री बनाया। पर इतना महत्वपूर्ण महकमा देख रहे डॉ राजीव सैजल को चुनाव में बड़ी ज़िम्मेदारी देने से सरकार-संगठन बचते दिख रहे है। पहले सोलन नगर निगम चुनाव में उन्हें सह प्रभारी बनाया गया और अब अर्की में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भी डॉ सैजल सह प्रभारी है। सोलन नगर निगम चुनाव के वक्त भी सैजल समर्थकों में मायूसी थी और अब भी उनके समर्थकों में नाराज़गी दिख रही है। हालाँकि खुद डॉ राजीव सैजल हसंते हुए समर्थको को एक ही संदेश दे रहे है कि पार्टी में पद को नहीं बल्कि किये गए कार्य को तवज्जों दी जाती है। बहरहाल मंत्री कुछ भी कहे पर अर्की उपचुनाव में उन्हें सह प्रभारी बनाये जाने से उनके समर्थक निराश है, ये अलग बात है कि सैजल के चेहरे पर इस बार भी शिंकज नहीं दिखाई दे रही है। हमेशा की तरह मंत्री डॉ राजीव सैजल का यही कहना होता है कि पार्टी सर्वोपरि है, हम पार्टी से है पार्टी हमसे नहीं। सोलन में नहीं चला जादू, अब अर्की की ज़िम्मेदारी डॉ राजीव बिंदल की बात करें तो बेशक डॉ राजीव सैजल के मुकाबले उनका अनुभव भी अधिक है और संगठन में काम करने का तरीका भी, पर बिंदल सोलन नगर निगम चुनाव में खुद को साबित नहीं कर पाए थे। सोलन में बिंदल की अच्छी पकड़ मानी जाती है बावजूद इसके नगर निगम चुनाव में उनके अपनी कई करीबी हार गए थे। यूं तो खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी सोलन में वार्ड -वार्ड घूमे थे लेकिन हार का ठीकरा भी बिंदल के सिर फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। ऐसे में अर्की का प्रभार फिर बिंदल को दिया गया है। आखिर बिंदल पर ये मेहरबानी क्यों कसौली निर्वाचन क्षेत्र लम्बे वक्त तक कांग्रेस का गढ़ रहा। 2007 में इस सीट को भाजपा की झोली में डालने वाले डॉ राजीव सैजल ही थे। जीत की हैट्रिक लगा चुके सैजल लगातार अपनी काबिलियत सिद्ध करते आ रहे है। बेशक डॉ राजीव बिंदल की जिला सोलन में अच्छी पकड़ रही है पर फिलवक्त सैजल ही पार्टी का प्राइम फेस है। ऐसे में बिंदल को प्रभारी और सैजल को सह प्रभारी बनाने की रणनीति समझ से परे है। ऐसा इसलिए भी है क्यों कि दोनों एक गुट से नहीं आते। जब जयराम राज में बिंदल पूरी तरह हाशिय पर है तो चुनाव में प्रभार की मेहरबानी क्यों ? अर्की में भाजपा अभी से अंतर्कलह से ग्रस्त है, तो क्या अर्की में बिंदल की तैनाती के मायने कुछ और है, ये यक्ष प्रश्न है !
न कांग्रेस और न ही भाजपा, फतेहपुर में आग दोनों तरफ लगी है। अंतर्कलह के मर्ज से कोई अछूता नहीं है, दोनों ओर अंदरूनी खींचतान प्रखर है। भाजपा के भीतर अबकी बार चक्की पार का नारा बुलंद हो रहा है, तो कांग्रेस में परिवारवाद के खिलाफ रैली - प्रदर्शन अभी शुरू हो चुके है। अब जो दल अंतर्कलह और बगावत को साध लेगा, ये तय है कि उपचुनाव में वो बेहतर करेगा। इस उपचुनाव में नज़र हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संस्थापक डॉ राजन सुशांत पर भी होगी जिनके लिए ये चुनाव करो या मरो से कम नहीं होने वाला। ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबला तो तय है ही, और यदि कांग्रेस-भाजपा का अंतर्कलह नहीं थमता तो संभवतः बागी उम्मीदवारों की मौजूदगी इस मुकाबले को और दिलचस्प बना देगी इसी बेतहाशा अंतर्कलह और खींचतान के बीच विशेषकर तीन नेताओं के लिए ये उपचुनाव उम्मीदों का उपचुनाव है। पहले है भवानी सिंह पठानिया, जो कॉर्पोरेट जगत की नौकरी छोड़कर अपने पिता स्व सुजान सिंह पठानिया की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए फतेहपुर लौट आये है। दूसरे है कृपाल सिंह परमार जो पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके है और ऐसे में उपचुनाव की हार उनके राजनैतिक जीवन पर ग्रहण साबित हो सकती है। तीसरा नाम है डॉ राजन सुशांत का जो नई पार्टी बनाकर 2022 में सभी 68 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान तो कर चुके है, पर यदि फतेहपुर में वे खुद अच्छा नहीं कर पाते है तो सवाल तो उठेंगे ही। बहरहाल इनमें से किस एक नेता की विधानसभा पहुंचने की उम्मीद फतेहपुर उपचुनाव में पूरी होती है या फिर किसी अन्य चेहरे की एंट्री नया ट्विस्ट लाती है, ये देखना बेहद रोचक होने वाला है। 7 बार विधायक स्व.पठानिया पूर्व मंत्री एवं फतेहपुर से कांग्रेस विधायक स्व. सुजान सिंह पठानिया 1977 से लेकर 2017 तक सात बार विधायक रहे। वह 1977, 1990, 1993, 2003 में ज्वाली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर आए। उसके बाद 2009 के उप चुनाव में भी ज्वाली से जीते थे। बदले परिसीमन के बाद वर्ष 2012 और 2017 के चुनाव में वे फतेहपुर सीट से जीते। सुजान सिंह पठानिया वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी माने जाते थे। वीरभद्र सरकार में वह दो बार प्रदेश के मंत्री भी रहे हैं। 1977 में सुजान सिंह पठानिया ने जनता पार्टी में शामिल होने के लिए सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। 1980 में सुजान सिंह पठानिया कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पिछला उपचुनाव जीती थी कांग्रेस करीब 12 साल बाद एक बार फिर फतेहपुर में उप चुनाव होने जा रहा हैं। इससे पहले 2009 में तत्कालीन विधायक डॉ राजन सिंह सुशांत के सांसद बनने के चलते उप चुनाव हुआ था। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रो प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। बावजूद इसके भाजपा उप चुनाव हार गई थी और सुजान सिंह पठानिया के दम पर कांग्रेस ने कमाल कर दिखाया था। भवानी या फिर कोई और, स्थिति पेचीदा फतेहपुर उपचुनाव में कांग्रेस दोराहे पर हैं। पार्टी सुजान सिंह पठानिया के पुत्र भवानी को टिकट देती हैं तो वंशवाद के नाम पर हल्ला मच जायेगा और परिवार से बाहर जाती हैं तो सहानुभूति कम हो सकती हैं और जिताऊ फैक्टर से समझौता करना पड़ सकता है। हालांकि फिलवक्त फतेहपुर उपचुनाव के लिए कांग्रेस से भवानी पठानिया का नाम आगे बताया जा रहा है, यानी एक बार फिर कांग्रेस परिवारवाद की नाव से चुनावी भवसागर पार करने का इरादा बना चुकी है। पर पार्टी में निशावर सिंह, सूरजकांत, चेतन चंबियाल, रीता गुलेरिया जैसे कई जमीनी नेता वंशवाद के खिलाफ मोर्चा खोल चुके है। बीते दिनों भवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ पार्टी के कई नेताओं -कार्यकर्ताओं ने खुलकर प्रदर्शन भी किया। वहीँ एक गुट खुलकर जय भवानी के नारे लगा रहा है। ऐसे में इस अंतर्कलह से जूझकर उपचुनाव जीतना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। ये देखना भी रोचक होगा कि पार्टी किसे टिकट देती है, भवानी पर भरोसा जताया जाता है या किसी अन्य कार्यकर्ता को मौका दिया जाता है। 'कृपाल' या 'अबकी बार चक्की पार' वैसे भाजपा की तरफ से फतेहपुर में सिर्फ कृपाल परमार ही फेस नहीं है, कृपाल के साथ-साथ यहां से प्रदेश भाजपा कार्यसमिति सदस्य बलदेव ठाकुर भी राजनीतिक सरगर्मियों को बढ़ाए हुए हैं। कृपाल परमार वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। बलदेव ठाकुर 2012 में भाजपा की टिकट से चुनाव लड़े लेकिन वह भी जीत हासिल नहीं कर सके थे । 2017 में बलदेव ठाकुर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ बतौर आजाद उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे और इसका फायदा कांग्रेस को मिला। अब फिर भाजपा के सामने 2017 की स्थिति है, कृपाल परमार पर पार्टी मेहरबान लग रही है और एक बार फिर वे भाजपा टिकट के सबसे मजबूत दावेदार दिख रहे हैं। हालांकि टिकट पर कोई निर्णय नहीं हुआ और सिर्फ कयास लग रहे है, बावजूद इसके परमार विरोधी खेमा अभी से एक्शन में है। विरोधी उन्हें बाहरी करार देकर उनके टिकट में रोड़ा अटकाने की फ़िराक में है। बीते दिनों मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम से पूर्व 'अबकी बार चक्की पार' के पोस्टर भी लग चुके है। ऐसे में भाजपा के लिए प्रत्याशी का चुनाव और उसके बाद की संभावित स्थिति से निपटना आसान नहीं होने वाला। पीएम मोदी की रैली भी रही थी बेअसर 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फतेहपुर से कृपाल परमार को टिकट दिया था, पर तब बागी हुए बलदेव ठाकुर और राजन सुशांत ने पुरा खेल बिगाड़ दिया था। तब खुद पीएम मोदी ने फतेहपुर में जनसभा की थी लेकिन बाजी कांग्रेस मार ले गई। अब फिर भाजपा पर दबाव है। 2007 का विधानसभा चुनाव छोड़ दे तो फतेहपुर का वोटर अर्से से भाजपा पर मेहरबान नहीं दिखा है। संभावित बगावत साधने को जद्दोजहद शुरू संभावित बगावत साधने को भाजपा ने जद्दोजहद शुरू कर दी है। बीते दिनों प्रदेश सरकार ने बोर्ड -निगमों में रिक्त चल रहे पदों पर तीन नियुक्तियां की है जिनमें से एक फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में है, तो एक नजदीक लगते ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में। भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के भरयाल गांव निवासी ओमप्रकाश चौधरी को प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम कांगड़ा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जबकि जवाली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता संजय गुलेरिया को नेशनल सेविंग स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। ब्राह्मण प्लस कर्मचारी फैक्टर और आशावान दिख रहे डॉ राजन सुशांत ! पांच बार के विधायक और एक मर्तबा सांसद रहे डॉ राजन सुशांत का राजनीतिक सफर भाजपा से राह अलग करने के बाद हिचकोले खा रहा है। भाजपा छोड़ने के बाद राजन सुशांत पहले आम आदमी पार्टी में गए और अब हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संस्थापक है। राजन सुशांत एलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 2022 में सभी 68 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और आजकल वे पुरे प्रदेश में घूमकर अपनी जमीन तैयार करने में जुटे हैं। पर इस बीच उनके अपने गृह क्षेत्र फतेहपुर में उप चुनाव आ गया। अब बड़ा विज़न लेकर जनता के बीच घूम रहे डॉ राजन सुशांत को पहले खुद को घर में साबित करना होगा। पर ये स्थिति उनके लिए बड़ी पेचीदा हैं, अगर चुनाव लड़े और हार गए तो भी समस्या और न लड़े तो भी सवाल तो उठेंगे ही। बहरहाल माना जा रहा है कि डॉ राजन सुशांत चुनाव लड़ेंगे, पर यदि प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो सवाल उन पर ही नहीं उनकी पार्टी के भविष्य पर भी उठेंगे। गौरतलब है कि डॉ राजन सुशांत खुद फतेहपुर से 2017 का चुनाव लड़े थे लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया था। तब उनकी जमानत जब्त हो गई थी पर अब स्थिति थोड़ी बदली जरूर है। फतेहपुर निर्वाचन क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की बड़ी तादाद है, ऐसे में यदि अन्य दल राजपूत उम्मीदवारों को टिकट देते है तो राजन सुशांत को ब्राह्मण वोट से खासी आस होगी। साथ ही लगातार कर्मचारियों के मुद्दे उठाकर भी राजन सुशांत नए समीकरण साधने की कोशिश में है। यानी ब्राह्मण प्लस कर्मचारी फैक्टर के सहारे इस उपचुनाव में नई एक्शन देखने को मिल सकती है। माहिर मानते है यदि कांग्रेस और भाजपा से बागी मैदान में होंगे, तो डॉ राजन सुशांत को इसका भरपूर लाभ मिल सकता है। अजब राजनीति : परिवारवाद पर 'कांग्रेस' विरुद्ध 'कांग्रेस' फतेहपुर कांग्रेस में फिलवक्त हाई वोल्टेज ड्रामा जारी है। उपचुनाव में टिकट को लेकर कार्यकर्ता आपस में लड़ रहे है। यहां कुछ समय पहले तक टिकट का पहला दावेदार पूर्व विधायक सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया का माना जा रहा था। परन्तु अब समीकरण बदल गए है। फतेहपुर कांग्रेस के एक गुट ने परिवारवाद का मुद्दा उठाकर उपचुनाव में भवानी सिंह पठानिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यह गुट भवानी को छोड़कर किसी भी अन्य स्थानीय नेता या कार्यकर्ता को प्रत्याशी घोषित करने की पैरवी कर रहा है। 'कार्यकर्ता को सम्मान दो', 'कार्यकर्ता को टिकट दो' के नारे के साथ ये कांग्रेसी सड़क पर उतर आए है। इस गुट में स्थानीय कांग्रेस नेता निशवार ठाकुर, चेतन चंबियाल, रीता गुलेरिया और राघव पठानिया मुख्य तौर पर सामने आये है। इनका कहना है कि भवानी सिंह पठानिया पैराशूट उम्मीदवार है और उनकी जमीनी पकड़ नहीं है। उन्होंने कभी पार्टी का झंडा तक नहीं उठाया और अब अचानक टिकट के लिए सामने आ गए। ऐसे में पार्टी उनके स्थान पर किसी आम कार्यकर्ता को टिकट दे जिसने पार्टी के लिए अपना पसीना बहाया हो। उधर भवानी सिंह पठानिया मैदान में डटे हुए है। भवानी का कहना है कि वे लोगों के कहने पर राजनीति में आये है। स्थानीय कांग्रेस के चार बड़े चेहरों ने बेशक उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया हो लेकिन बावजूद इसके भवानी को साथ और समर्थन की कमी नहीं दिख रही। 'जय भवानी' का नारा अभी से फतेहपुर में बुलंद है और समर्थक भवानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते दिख रहे है। ऐसे में भवानी तमाम विरोध के बावजूद टिकट के प्रबल दावेदार है। अब भाजपाई क्या करें ? कांग्रेस में परिवारवाद पर जंग छिड़ी है, पर भाजपाई खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे। माजरा यूँ है कि जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में भाजपा भी स्व.नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा को टिकट दे सकती है। ऐसे में यदि भाजपाई फतेहपुर में कांग्रेस के परिवारवाद पर सवाल उठाएंगे तो जुब्बल कोटखाई में क्या जवाब देंगे। जिस तरह फतेहपुर में कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है उसी तर्ज पर जुब्बल कोटखाई में नीलम सरैक सहित कई नेता बरागटा परिवार के खिलाफ मुखर है।
2012 के विधानसभा चुनाव से पहले सोलन निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित हो गया और इस सीट पर जीत की हैट्रिक बना चुके डॉ राजीव बिंदल को नाहन का रुख करना पड़ा। तब से अब तक करीब एक दशक बीत चूका है और सोलन भाजपा को एक अदद चेहरे की जरूरत है जो स्वीकार्य भी हो और सबको साथ लेकर आगे भी बढ़ सके। वर्तमान में डॉ राजेश कश्यप इसी जद्दोजहद में है कि वो अपने पाँव भी मजबूत कर सके और 2022 में फिर कमल खिला सके। पर हाल और हालात दोनों खराब दिख रहे है। अलबत्ता डॉ कश्यप विरोधी खेमे को चित करने में कुछ सफल जरूर हुए है पर फिलवक्त जमीनी स्तर पर न डॉ कश्यप का जादू चला रहा है और न ही भाजपा ज्यादा आशावान दिख रही है। ऐसा ही हाल रहा तो 2022 में नतीजा भाजपा को बेहाल करने वाला होगा। वर्तमान में भाजपा की धरातल स्थिति समझने के लिए वर्ष 2012 से पूरा घटनाक्रम समझना होगा। डॉ राजीव बिंदल के उपरांत भाजपा ने 2012 में एक जमीनी कार्यकर्ता और जिला परिषद अध्यक्ष रही कुमारी शीला को मैदान में उतारा था, लेकिन शीला का जादू नहीं चला। चुनाव हारने के बाद कुमारी शीला ने वैसी सक्रियता भी नहीं दिखाई जिसके बूते उनकी राह 2017 में आसान होती। वहीं इस बीच टिकट की चाह में तरसेम भारती भी सोलन में अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करते रहे। थोड़ी बहुत कोशिश हीरानंद कश्यप भी करते रहे पर वो कभी रेस में दिखे नहीं। पर 2017 पार्टी ने सबको दरकिनार कर एक पैराशूट उम्मीदवार को अपना आशीर्वाद दे दिया और वो उम्मीदवार थे आईजीएमसी में सेवाएं दे चुके डॉ राजेश कश्यप। डॉ कश्यप ने वीआरएस लिया और राजनीति के अखाड़े में कूद गए। माना जाता है कि उन्हें टिकट दिलाने वाले थे डॉ राजीव बिंदल। इस टिकट ने तरसेम भारती और कुमारी शीला के अरमान कुचल दिए और कुमारी शीला ने खुलकर नाराज़गी व्यक्त की। पर दिलचस्प बात ये है कि तब बिंदल के कई चहेते कुमारी शीला के साथ खड़े दिखे। आखिरकार हुआ वहीँ जो अपेक्षित था, डॉ राजेश कश्यप चुनाव हार गए। कहा गया कि चुनाव में बिंदल के कुछ ख़ास लोगों ने उनके पक्ष में काम नहीं किया और तभी से बिंदल गुट और उनके बीच एक मतभेद बनते गए। अब डॉ कश्यप सोफत गुट के नजदीकी है और सोलन भाजपा दो गुटों में विभाजित। डॉ राजेश कश्यप 2022 के लिए अभी से मैदान में है, पर पार्टी की अंतर्कलह उन्हें स्थापित नहीं होने दे रही। विरोधी कह रहे है की जब 2017 में अंतिम क्षणों में नया चेहरा आ गया तो 2022 में भी सब मुमकिन है। ऐसी स्थिति में यदि डॉ कश्यप का जलवा जमीनी स्तर पर नहीं दिखा तो उनकी उम्मीदवारी पर भी संकट की स्थिति है। ऐसा इसलिए भी है क्यों की इसी वर्ष हुए जिला परिषद् और नगर निगम चुनाव में भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा है। इस पर विकास कार्यों की गति भी मंद है। सो कश्यप को खुद को साबित करना होगा। जिला परिषद और नगर निगम में मिली शिकस्त सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत 4 जिला परिषद् वार्ड आते है, दो पूर्ण और 2 आंशिक। 14 पंचायतों वाला सलोगड़ा वार्ड और 20 पंचायतों वाला सिरिनगर वार्ड पूरी तरह सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत आते है। जबकि सपरून वार्ड की 4 और कुनिहार वार्ड की 6 पंचायतें सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती है। जिला परिषद् में इन चारों ही वार्डों में भाजपा समर्थित प्रत्याशियों को पराजय मिली थी। इसके बाद नगर निगम चुनाव में भी भजपा को हर का सामना करना पड़ा। संगठन भी नहीं दिख रहा प्रभावी भाजपा सोलन मंडल की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे है। भाजपा में फिलवक्त प्रभावी नेतृत्व ही नहीं दिख रहा है। जिला परिषद और नगर निगम चुनाव में भी संगठन की कमजोरी खुलकर दिखी। तब कमजोर दिखने वाला कांग्रेस का संगठन भी भाजपा की तुलना में ज्यादा आक्रामक दिखा था। डॉ कश्यप नहीं तो कौन ? जिला परिषद् चुनाव में सलोगड़ा वार्ड से कुमारी शीला भाजपा उम्मीदवार थी। पर लगातार तीन चुनाव जीत चुकी कुमारी शीला को यहाँ हार का सामना करना पड़ा, जो व्यक्तिगत तौर पर उनके लिए बड़ा झटका है। उसके बाद भी कुमारी शीला ज्यादा सक्रीय नहीं दिखी। ऐसा ही हाल तरसेम भारती का है। ऐसे में अगर डॉ राजेश कश्यप नहीं तो कौन, ये बड़ा सवाल है। क्या फिर 2022 से पहले सोलन भाजपा की सियासत में कोई नई एंट्री होने वाली है।
विधानसभा मानसून सत्र की पांच बैठकाें के दौरान विपक्ष की भूमिका पर सदन के नेता एवं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कांग्रेस को आइना दिखाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस वक्त कांग्रेस के पास न तो नेता है और न ही नेतृत्व जिस कारण उन्हें विधानसभा की परंपरा और कार्रवाई के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं। विपक्ष ने तो वॉकआउट करने की रस्म बना ली है। सदन की गरिमा को विपक्ष भूल गया है। जानबूझकर विधानसभा की कार्यवाही में विघ्न डाला जाता है। अकारण ही सदन की कार्यवाही को बाधित करना कांग्रेस की एक आदत बन चुकी है। कांग्रेसी विधायक केवल विधानसभा में खबर बनाने के लिए आते हैं, इसलिए वॉकआउट करते हैं, कांग्रेस का यही रवैया बन चुका है सिर्फ दो विस क्षेत्रों में नौकरियां, श्वेत पत्र जारी हो : मुकेश मानसून सत्र के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र सिराज से और मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र धर्मपुर से 6 हजार लोगों को सरकारी क्षेत्र में रोजगार दिए गए हैं, जबकि प्रदेश के अन्य विधानसभा क्षेत्रों को नजरअंदाज किया गया है। यह युवाओं के साथ धोखा है। प्रदेश में भारी संख्या में बेरोजगार है जिन्हें मौका मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि नौकरियों के संदर्भ में सरकार श्वेत पत्र जारी करे, अन्यथा कांग्रेस अदालत का दरवाजा खटखटाएगी। जनहित के मुद्दों पर मैं कांग्रेस के साथ: सिंघा माकपा विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि जयराम सरकार आज आर एंड पी रूल को नजरअंदाज कर रही है। व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए आउटसोर्सिंग के माध्यम से बैकडोर भर्तियां की जा रही है जो कि सही नहीं है। यह संविधान की उल्लंघना है इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जनहित के मुद्दों पर वे कांग्रेस के साथ है। वहीँ मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि सरकार के विभिन्न उपक्रमों में आउटसोर्स पर भर्तियां हो रही हैं।
हाल बेहाल है। बादस्तूर बरसते तीखे विपक्षी बाणों से तो जयराम सरकार किसी तरह बच रही थी मगर अब तो अपने भी शोले बरसाने लगे है। सरकार के अपने भी अब बैरी होते दिख रहे है जिसकी कुछ झलक विधानसभा के इस मानसून सत्र में देखने को मिल रही है। जैसा की लगभग तय था ये मानसून सत्र भी हंगामों से भरा हुआ है। विपक्ष असली मुद्दों को उठाने से इतर हर छोटे बड़े सवाल पर वॉकआउट करता रहा और सवालों का जवाब देने से सरकार बचती रही। मगर इस बार विपक्ष के साथ-साथ अपनों ने भी सरकार को घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ी। डॉ राजीव बिंदल ने इस सरकार की दुखती रग इन्वेस्टर मीट का मसला छेड़ दिया। सरकार की तारीफ करते -करते बिंदल इन्वेस्टर मीट का जख्म भी कुरेद गए। तो वहीँ ध्वाला की रेत बजरी भी सरकार की झोली में जा गिरी। सियासी पंडितों का मानना है की पुराने ज़ख्मों से उभरी इस टीस का असर सियासी ग्रह दशा पर असर जरूर डालेगी। यहां खास बात ये है कि इन दोनों ही नेताओं के निशाने पर उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर रहे। इसके पीछे कोई विशेष कारण है या ये सिर्फ एक इत्तेफ़ाक़ है, कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे अगर जयराम सरकार के साढ़े तीन साल पर नज़र डाले तो जहां रमेश चंद ध्वाला और राजीव बिंदल को कैबिनेट से बाहर रखा गया, तो वहीँ बिक्रम ठाकुर का रूतबा बढ़ता गया। उद्योग एवं खनन मंत्री बिक्रम ठाकुर पर इन्वेस्टर मीट को लेकर सवाल उठ रहे थे और पिछले साल कैबिनेट विस्तार से पहले कैबिनेट में उनका वजन कम होने के कयास थे। पर हुआ उलट, कैबिनेट विस्तार के बाद बिक्रम ठाकुर को परिवहन विभाग भी मिल गया। अब ऐसे बिक्रम ठाकुर के मंत्रालयों पर इन दो सियासी सूरमाओं के सवालों के कई मायने है। बिंदल के तीखे सवाल ज़रूर चुभेंगे इस बार सदन में डॉक्टर राजीव बिंदल ने ग्लोबल इन्वेस्टर मीट और ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी को लेकर अपनी ही सरकार पर सवालों के तीर दागे। उन्होंने पूछा कि इन्वेस्टर मीट और इसकी ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी के बाद प्रदेश में कितने लोगों को उद्योगों में प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा ? तीन साल में संभावनाओं के अनुरूप प्रदेश सरकार कितनी आगे बढ़ी? एक वर्ष में कितने रोजगार बढ़ने की उम्मीद है ? प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर इस्तीफ़ा देने के बाद हाशिये पर गए बिंदल के ये सवाल सरकार को जरूर चुभे होंगे। वैसे इसमें कोई संशय नहीं है कि बीत साढ़े तीन साल में बिंदल को सेटल करने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी गई है। पहले 5 बार के विधायक और एक बार मंत्री रह चुके बिंदल को कोई मंत्री पद नहीं दिया गया और माननीय विधानसभ अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, मगर बिंदल के सितारे फिर डूबे और स्वास्थ्य घोटाले के चलते बतौर प्रदेश अध्यक्ष भी इस्तीफ़ा देना पड़ा। तब से बिंदल एक किस्म से दरकिनार है। ध्वाला बरसे और विपक्ष ने तालियां बजाई रमेश चंद ध्वाला की बात करें तो इस बार ध्वाला ने भी मानसून सत्र में जिला कांगड़ा के स्टाेन क्रशर बंद हाेने पर सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि सरकार अगर इतने कड़े नियम कानून बनाएगी तो क्रेशर मालिक काम नहीं करेंगे। हावी होती अफसरशाही पर भी ध्वाला मुखर हुए। ध्वाला ने सरकार पर वार किया और विपक्ष ने तालियां बजाना शुरू कर दिया। रमेश धवाला ने जयराम सरकार से साफ़-साफ़ ये भी कह दिया की वे भ्रष्टाचार का साथ नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि मैं एक संघर्षशील नेता हूं, लेकिन सरकार में बैठे अफसर इसे नहीं जानते। ये पहली बार नहीं है जब सरकार के खिलाफ ध्वाला मुखर हुए हो। ध्वाला भले ही ये कहते है की उनको मंत्री पद का कोई लालच, कोई इच्छा नहीं है, कोई मलाल नहीं है मगर उनके एक्शन और रिएक्शन दोनों ही कुछ और इशारा करते है। कार्यकर्त्ता की उपेक्षा, धन्ना सेठों का ख्याल भाजपा में असंतोष टॉप टू बॉटम दिख रहा है। ऐसा नहीं है कि बड़े चेहरे ही खफा दिख रहे है, आम कार्यकर्त्ता भी ख़ास खुश और उत्साहित नहीं है। मसलन हालहीं में मनोनीत पार्षदों की तैनाती में जिस तरह से पार्टी के आम कार्यकर्त्ता की उपेक्षा कर धन्ना सेठों का ख्याल रखा गया है उससे आम कार्यकर्त्ता हतोत्साहित है। इसी तरह अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में गुटबाजी चरम पर है। कई ज़िलों में तो संगठन भी लाचार दिख रहा है। जिला संगठनो की कमान ऐसे नेताओं के हाथ में दिख रही है जिनकी पकड़ न के बराबर है। ये असंतोष बरकरार रहा तो मिशन रिपीट का सपना पूरा होना मुश्किल है।
क्या हंगामा खड़ा करना ही मकसद है ? विधानसभा मानसून सत्र में लगातार वॉकआउट कर रहे विपक्ष को देखकर फिलवक्त ऐसा ही लग रहा है। यूँ तो ये सत्र बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि बजट सत्र के बाद यह साल का दूसरा सत्र है। पर इस सत्र में विपक्ष कमजोर दिख रहा है, अब तक खुद के द्वारा भेजे गए सवालों काे पूछने में भी विपक्ष बैकफुट पर दिखा है। दाे अगस्त से मानसून सत्र शुरू हुआ और पहले दिन सदन के दिवंगत नेताओं काे श्रद्धांजलि दी गई। उसके बाद सत्र के दूसरे दिन से विपक्ष ने हंगामा करना शुरू कर दिया जो लगातार दो दिनों तक चला। हैरानी की बात है कि विपक्ष ने ऐसे सवाल दागे थे, जाे सही मायने में जनहित के लिए थे, लेकिन तीन और चार अगस्त काे प्रश्नकाल के दौरान ही उनके सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। विपक्ष हंगामा करके प्रश्नकाल के बाद फिर से सदन में वापस आता रहा, यानी जनहित जिन सवालों पर सरकार को घेरे जाना चाहिए था उन्हें उठाने के तय वक्त को विपक्ष ने हंगामे में जाया कर दिया। ऐसे में ज़ाहिर है कि विपक्ष अपनी ज़िम्मेवारियों काे निभाने में पूरी तरह से विफल साबित हुआ है। ये जानना भी जरूरी है कि विपक्ष ने वॉकआउट किस मुद्दे पर किया। तीन अगस्त को सत्र में प्रश्नकाल शुरु हाे रहा था। इस बीच कांग्रेस ने पूर्व सांसद स्व. रामस्वरूप शर्मा के निधन की जांच सीबीआई से करवाने काे लेकर हंगामा किया। इस दौरान किन्नौर के विधायक जगत नेगी ने सांसद रामस्वरूप शर्मा की मौत की सीबीआई जांच का मामला सदन में उठाया और नियम 67 के तहत चर्चा की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि रामस्वरूप शर्मा के बेटे जांच की मांग उठा चुके हैं। मौत के चार महीने पश्चात भी फॉरेंसिक की रिपोर्ट नहीं आई है। हंगामे के बीच मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि यह मामला दिल्ली में घटित हुआ था और यह प्रदेश सरकार के विशेषाधिकार का नहीं है, दिल्ली की क्राइम ब्रांच इस मामले की जांच कर रही है। सीएम ने स्पष्टीकरण दिया कि रामस्वरूप का परिवार उनसे मिला भी है, लेकिन उन्होंने जांच की मांग नहीं की। यही नहीं, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि यह मामला नियम 67 के तहत नहीं उठाया जा सकता इसलिए इस पर चर्चा नहीं की जा सकती। इसके बाद भी विपक्ष सदन में नारेबाजी करता रहा। जैसे ही प्रश्नकाल शुरू हुआ कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष सहित पुरे विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया। इसके बाद अगले दिन चार अगस्त को विपक्ष एक बार फिर से काम राेकाे प्रस्ताव लाया और बेरोजगारी व भर्तियों को लेकर सदन में हंगामा कर दिया। नियम-67 के तहत उठाए गए इस मुद्दे को इंद्र दत्त लखनपाल ने उठाया और विधानसभा अध्यक्ष की ओर से चर्चा की मंजूरी न दिए जाने के विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट किया गया। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि इस मामले पर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, आशा कुमारी, इंद्र दत्त लखन पाल और राजेंद्र राणा की ओर से नियम-67 के तहत चर्चा मांगी गई, लेकिन यह मामला इस परिधि में नहीं आता है। इसलिए इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती। ऐसे में अब तक हुए सत्र के दो महत्वपूर्ण दिन कांग्रेस के हंगामे की भेंट चढ़ गए। संसद में भी इतर नहीं स्थिति सिर्फ प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्ष की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। 19 जुलाई से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र में पेगासस, कृषि कानूनों, पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों को लेकर विपक्ष लगातार हंगामा और वॉकआउट कर रहा है। इन मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने दोनों ही सदनों में 'काम रोको प्रस्ताव' भी पेश किए। इस हंगामे के कारण सदन की कार्रवाई सुचारु रूप से नहीं चल पा रही। मिली जानकारी के अनुसार हंगामे के चलते 19 जुलाई से 1 अगस्त तक संसद में संभावित 107 घंटों में से सिर्फ 18 घंटे काम हुआ। इसके चलते करदाताओं के करीब 133 करोड़ रुपए बर्बाद हुए है। इस सत्र में एक अगस्त तक 89 घंटे बर्बाद हुए। जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा में तय समय में से 21 फीसदी काम हुआ, जबकि लोकसभा में सिर्फ 13 फीसदी काम हुआ। इसका अगला हफ्ता भी लगभग ऐसे ही बीता और आगामी आखरी हफ्ते में भी आसार कुछ ऐसे ही लग रहे है। सरकार और विपक्ष दोनों ही हंगामें के लिए एक दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे है, कारण कोई भी हो संसद में काम न होने से करदाताओं के करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे है। विपक्ष पहले ही दिन से पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार इसे मुद्दा ही नहीं मान रही है। अभी तक केवल राज्यसभा में कोविड-19 के मुद्दे पर एक चर्चा हो सकी है, लेकिन लोकसभा में एक भी बहस नहीं हुई है। हंगामे के बीच सरकार लगातार अपने विधेयकों को बिना चर्चा के पारित भी करा रही है जिस पर निसंदेह विपक्ष को कुछ समय बाद ऐतराज़ होगा।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने प्रदेश की जयराम सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हालांकि विभिन्न मामलों पर वे निरंतर सरकार काे घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन आने वाले दिनों में उपचुनाव भी होने हैं, सो अग्निहोत्री टॉप गियर में दिख रहे है। मुकेश अग्निहोत्री ने आरोप लगाया कि जयराम सरकार ने हिमाचल काे शिखर से सिफर तक पहुंचा दिया। उन्होंने कहा कि हिमाचल का विकास प्रदेश निर्माता डॉ. परमार और आधुनिक हिमाचल के निर्माता वीरभद्र सिंह कांग्रेस की देन है, जिसे संजोकर रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि जयराम राज में प्रदेश का विकास सिर्फ सराज तक ही सिमट कर रह गया। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भाजपा के दिवंगत सांसद रामस्वरूप शर्मा आत्महत्या मामले की जांच सीबीआई से करवाने की भी मांग की है। उन्होंने कहा कि सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि अगर परिवार चाहेगा तो जांच सीबीआई से करवाई जाएगी लेकिन अब तक ऐसा क्यों नहीं हुआ ? मुकेश ने कहा कि अब परिवार भी चाह रहा है तो इसकी जांच सीबीआई से ही करानी चाहिए। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में होने वाले चार उप चुनाव से पहले सरकार आनन-फानन में घाेषणाएं कर रही है। प्रदेश की जनता सब जानती है कि इस वक्त केंद्र और प्रदेश की सरकार कितने पानी में हैं। मुकेश की माने ताे ठीक उप चुनाव से पहले लोकलुभावन भाषण देने से भाजपा को जीत नहीं मिलने वाली। सराज से आगे नहीं बढ़ पाए सीएम नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सिराज से आगे नहीं बढ़ पाए और सिर्फ विधायक की भूमिका में ही हैं। विकास के लिए आने वाले बजट और नौकरियों की बंदरबांट हो रही है। उन्होंने सीएम से पूछा कि हवाई अड्डे के लिए जमीन कब फाइनल होगी और कब हवाई अड्डा बनकर तैयार होगा। भाजपा के मेनिफेस्टो में फैक्टर टू लागू करने की बात कही गई है मगर आज तक फोरलेन प्रभावितों को चार गुना मुआवजा नहीं मिला है। चारों उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों की होगी जीत नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने दावा किया कि प्रदेश में होने वाले चार उपचुनाव पर कांग्रेस की जीत हाेगी। उन्होंने कहा कि अर्की और फतेहपुर विधानसभा सीट पहले ही कांग्रेस के पास थी। अब जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र और मंडी संसदीय सीट पर भी जीत हमारी हाेगी। मुकेश ने आरोप लगाया कि भाजपा के कार्यकर्ता से लेकर पदाधिकारी सरकार से खुश नहीं हैं। यही वजह है कि बीते दिनों कुछ लाेगाें काे मनाने के लिए बोर्ड एवं निगमों में डेढ़ साल के लिए पद सौंपा गया।
मोदी सरकार की आरक्षण नीति से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप काफी उत्साहित हाे गए हैं। उन्होंने कहा कि समाज के कमजोर वर्गों के हित में नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लिया है जिसमे अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट एवं दंत चिकित्सा शिक्षा के लिए ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। इस निर्णय से हजारों छात्रों को लाभ प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रही है, जो कि भारत में बहुत तेजी से चल रहा है। अब तक देशभर में 45 करोड़ से अधिक टीके लगाए गए। सुरेश कश्यप ने कहा कि 18 से 44 वर्ष की आयु के 18.16 करोड़ से अधिक युवाओं को टिके लग गए है। भारत में एक दिन में 66 लाख लोगों को टीके लगे जो अपने आप में ऐतिहासिक है। यह अभियान केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से ही संभव था। आज भारत पूरे देश भर में कई बड़े देशों से टीकाकरण अभियान में आगे चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, वह दुनिया में मिसाल बनी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि दुनिया के बड़े-बड़े देश जिनकी स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी थी वो भी अपने आप को कोरोना के सामने असहाय महसूस करते हुए देखे गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कोविड-19 के दौरान 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना' के तहत अब तक राज्यों को 400 लाख टन खाद्यान्न वितरण के लिए दिया गया। ई-पाॅस मशीनाें से पारदर्शिता बढ़ी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने कहा कि केंद्र सरकार ने ई-पाॅस मशीनों के इंस्टालेशन से पारदर्शिता सुनिश्चित की है, व इसका लाभ गरीबों को मिला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों के जीवन पर महामारी के बोझ को कम करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को नवंबर तक बढ़ाने की घोषणा की, जिसका लाभ 80 करोड़ लोगों को हाेगा। भारत सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न का वितरण समयबद्ध रूप से किया जाएगा। इसी तरह से हिमाचल की जयराम सरकार ने भी काेराेना काल के बावजूद हर सेक्टर के विकास काे गति दी।
प्रदेश में होने वाले चार उप चुनावाें से पहले जयराम सरकार ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। हालांकि इन क्षेत्रों में विकास कार्य पहले से ही प्रस्तावित थे, लेकिन उपचुनाव से पहले शिलान्यास एवं उद्घाटन सरकार और संगठन के लिए काफी मायने रखते है। मंडी संसदीय क्षेत्र सीएम जयराम ठाकुर का अपना गृह जिला है और इसके तहत 17 विधानसभा क्षेत्र आते है। ऐसे में सीएम मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में जनता काे कई सौगात देकर लाैटे है। सीएम करसोग से लेकर नाचन, सुंदरनगर, द्रंग सहित मंडी जिला के कई विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। बीते दिनों उन्होंने लाहौल-स्पीति के काजा का भी दौरा करना था, लेकिन खराब मौसम के कारण उन्होंने वहां के विकास कार्यों का शिलान्यास एवं उद्घाटन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से किया। इसी तरह बीते दिनों जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र के दौरे के दौरान जयराम ठाकुर ने वहां के लिए एसडीएम कार्यालय खोलने की भी घोषणा की थी, जो काफी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। इस दौरान पहले उन्होंने लोगों से भाजपा का विधायक बनाने का वादा लिया फिर एसडीएम कार्यालय खोलने की घोषणा की। जयराम ठाकुर ने खड़ापत्थर में जिलास्तरीय स्वर्ण जयंती ग्राम स्वराज सम्मेलन के दौरान पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी एकजुटता का पाठ पढ़ाया। उपचुनाव से पहले सीएम का जुब्बल-काेटखाई दौरा काफी अहम माना जा रहा था। एक ही चुनावी हलके में दो एसडीएम आफिस खोलने की घोषणा को उपचुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। सरकार ने कोटखाई में खंड विकास कार्यालय, टिक्कर में अग्निशमन उपकेंद्र, कलबोग में उपतहसील खोलने और उपतहसील सावड़ा और पुलिस स्टेशन सावड़ा को एचपी पावर कार्पोरेशन के नए भवन में स्थानातंरित करने की घोषणा की थी। इसी तरह से सीएम जयराम ठाकुर ने जिला कांगड़ा के फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में भी कई शिलान्यास एवं उद्घाटन भी किए। चारों उपचुनाव पर कब्जा जमाने की तैयारी राज्य में होने वाले चार उप चुनाव पर कब्जा जमाने के लिए सरकार और संगठन ने पूरी तैयारी कर ली है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर समेत अन्य मंत्री और संगठन की ओर से प्रदेश प्रभारी, सह प्रभारी समेत प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने मोर्चा संभाल लिया है। यहां तक कि राज्य सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान भी चार हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं के वर्चुअल माध्यम से लोकार्पण और शिलान्यास किए। बताया गया कि आने वाले दिनों में सीएम जयराम ठाकुर किन्नौर, रामपुर, आनी सेमत मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले अन्य क्षेत्रों का भी दाैरा करेंगे। उपचुनाव भी जीतेंगे और 2022 में भी जीतेंगे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कहते हैं कि पहले भी हम जीते हैं और 2022 में भी जीतेंगे। उससे पहले प्रदेश में होने वाले उप चुनावाें में भी भाजपा की जीत हाेगी। हाल ही में कुल्लू दौरे के दौरान सीएम ने कार्यकर्ताओं से कहा था कि मंडी लोकसभा उपचुनाव में जीत का अंतर कम नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि सभी विधानसभा क्षेत्रों के नेताओं को कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। सीएम जयराम ठाकुर ने भाजपा पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को निर्देश दे चुके हैं कि मंडी लोकसभा उपचुनाव में केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं को जनता के बीच लेकर जाएं और पूर्व कांग्रेस सरकार से तुलना कर जनता को जागरूक करें।
2022 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-कांग्रेस को फतेहपुर उपचुनाव के इम्तिहान से भी गुजरना होगा। इस अनचाहे उप चुनाव से जो सियासी बवंडर बनता दिख रहा है उससे निकल पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा, विशेषकर भाजपा के लिए। यूँ तो भाजपा के पास सत्ता भी हैं, संगठन भी हैं और साधन भी हैं, पर अंतर्कलह और संभावित बगावत भाजपा को बेचैन कर रहे है। 2017 चुनाव में यहां से भाजपा ने कृपाल परमार को टिकट दिया था, पर तब बागी हुए बलदेव ठाकुर और राजन सुशांत ने पुरा खेल बिगाड़ दिया था। खुद पीएम मोदी ने यहां जनसभा की थी लेकिन तब बाजी कांग्रेस मार ले गई। अब फिर भाजपा के सामने 2017 की स्थिति है, कृपाल परमार पर पार्टी मेहरबान लग रही है और एक बार फिर वे भाजपा टिकट के सबसे मजबूत दावेदार दिख रहे हैं। हालांकि टिकट पर कोई निर्णय नहीं हुआ और सिर्फ कयास लग रहे है, बावजूद इसके परमार विरोधी खेमा अभी से एक्शन में है। विरोधी उन्हें बाहरी करार देकर उनके टिकट में रोड़ा अटकाने की फ़िराक में है। बीते दिनों मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम से पूर्व 'अबकी बार चक्की पार' के पोस्टर भी लग चुके है। ऐसे में भाजपा के लिए प्रत्याशी का चुनाव और उसके बाद की संभावित स्थिति से निपटना आसान नहीं होने वाला। कांग्रेस की बात करें तो फतेहपुर में अर्से से स्व. सुजान सिंह पठानिया ही पार्टी का चेहरा रहे है। उनके रहते यहां से कोई और चेहरा नहीं उभरा। पार्टी में विवेक पधेरिया, निशावर सिंह, सूरजकांत, चेतन चंबियाल, वासु सोनी, रीता गुलेरिया जैसे कई नेता जरूर है पर फिलवक्त प्राइम फेस भवानी सिंह पठानिया ही बने हुए है, जो स्व. सुजान सिंह पठानिया के पुत्र है। अच्छी खासी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर भवानी अपने पिता की राजनेतिक विरासत को बढ़ाने फतेहपुर लौट आये है और मैदान में ठीके हुए है। दिलचस्प बात ये है कि वंशवाद के टैग के बावजूद भवानी ने बहुत कम समय में पार्टी के एक बड़े तबके को अपने साथ करने में सफलता हासिल कर ली है। परिवारवाद के नाम पर अब भी कुछ नेता उनके विरोध में है पर ये विरोध रंग लाता नहीं दिख रहा। ऐसे में भवानी का टिकट फिलहाल पक्का माना जा रहा है। बाकी सियासत में कुछ भी मुमकिन है। हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के मुखिया डॉ राजन सुशांत एलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 2022 में सभी 68 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पर इस बीच उनके अपने गृह क्षेत्र फतेहपुर में उप चुनाव आ गया है। पांच बार के विधायक डॉ राजन सुशांत फतेहपुर से 2017 का चुनाव भी लड़े थे लेकिन तब जनता ने उन्हें नकार दिया था। अब फिर डॉ राजन सुशांत पूरी ऊर्जा के साथ मैदान में है। फतेहपुर निर्वाचन क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की बड़ी तादाद है, ऐसे में यदि अन्य दल राजपूत उम्मीदवारों को टिकट देते है तो राजन सुशांत को ब्राह्मण वोट से खासी आस रहेगी। साथ ही लगातार कर्मचारियों के मुद्दे उठाकर भी राजन सुशांत नए समीकरण साधने की कोशिश में है। निश्चित तौर पर डॉ राजन सुशांत की मौजूदगी इस उपचुनाव को और दिलचस्प बनाएगी। पिछला उप चुनाव हारी थी भाजपा करीब 12 साल बाद एक बार फिर फतेहपुर में उप चुनाव होने जा रहा हैं। इससे पहले 2009 में तत्कालीन विधायक डॉ राजन सिंह सुशांत के सांसद बनने के चलते उप चुनाव हुआ था। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रो प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। बावजूद इसके भाजपा उप चुनाव हार गई थी और सुजान सिंह पठानिया के दम पर कांग्रेस ने कमाल कर दिखाया था। बोर्ड निगमों में पद देकर मैनेज होगी बगावत प्रदेश के निगमों व बोर्डों में कई ऐसे पद हैं जहां पर सरकार उपचुनाव को जहाँ में रखकर नियुक्तियां कर सकती है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। बीते दिनों सरकार ने तीन नियुक्तियां की है जिनमें से एक फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में है तो एक नजदीक लगते ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में। भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के भरयाल गांव निवासी ओमप्रकाश चौधरी को प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम कांगड़ा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जबकि जवाली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता संजय गुलेरिया को नेशनल सेविंग स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। प्रदेश सरकार के लिए भी आगामी उपचुनाव प्रतिष्ठता का प्रश्न है, ऐसे में सरकार बोर्ड निगमों में खाली चल रहे पदों पर जल्द और नियुक्तियां कर सकती है।
2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है और कसौली निर्वाचन क्षेत्र की राजनीति अब भी सुस्त। विशेषकर कांग्रेस की बात करें तो लगातार तीन चुनाव हारने के बाद भी पार्टी अब तक स्लीपिंग मोड में ही है। अगर परवाणु को छोड़ दिया जाए तो बीते साढ़े तीन साल में पार्टी हर जगह पार्टी बैकफुट पर दिखी है। वहीँ तीन बार के विधायक डॉ राजीव सैजल का कद और पद दोनों बढ़ चुके है। थोड़े बहुत गिले शिकवे है भी तो मंत्री अपने सरल व्यवहार से हर समस्या का समाधान कर लेते है। ऐसे में सुस्त दिख रही कांग्रेस अगर वक्त रहते चुस्त नहीं हुई तो देर हो जाएगी। 2007 का विधानसभा चुनाव 36 साल के डॉ राजीव सैजल का पहला चुनाव था। उनका सामना था रघुराज से जो कसौली से पहले ऐसे नेता थे जिन्हे मंत्री पद मिला था, पर वह जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे। जनता ने नए और कम अनुभवी डॉ राजीव सैजल पर वोटों का प्यार बरसाया। डॉ राजीव सैजल लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद अब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बन चुके है। 2007 से अब तक सैजल ही कसौली की सियासत के सुलतान है। उधर बीते दो चुनाव में डॉ राजीव सैजल को कड़ी टक्कर देने वाले कांग्रेस नेता विनोद सुलतानपुरी अब भी अपनी जमीन मजबूत करने की जद्दोजहद में है। माहिर मानते है कि आम जनता से सुलतानपुरी की दुरी और कांग्रेस का भीतरघात पिछले चुनावों में उन पर भारी पड़ा। 2022 नजदीक है पर अब भी सुल्तानपुरी टॉप गियर में नहीं दिख रहे। हालांकि कांग्रेस में उनके विरोधी खेमे का दमखम भी अब पहले जैसा नहीं दिखता। विशेषकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के उपरांत समीकरण अब तेजी से बदल सकते है। ऐसे में सुल्तानपुरी किस तरह इस स्थिति में अपनी जड़े मजबूत करते है, ये देखना रोचक होगा। कसौली कांग्रेस में कुछ तो पक रहा है पिछले कुछ समय से कसौली कांग्रेस का एक खेमा चेहरा बदलने को लेकर लामबंद होता दिख रहा है। हालांकि अभी तक इनकी मांग सोशल मीडिया से आगे नहीं बढ़ी है और न ही ये लोग जमीनी स्तर पर ज्यादा सक्रीय दिख रहे है, पर जाहिर है कुछ न कुछ जरूर पक रहा है। ऐसे में आगामी दिनों में कसौली कांग्रेस की राजनीति रोचक होने वाली है। कई नेताओं की हसरत मन में ही रह गई कसौली निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में से है जो हमेशा आरक्षित रहे है। ऐसे में कई कद्दावर नेताओं की विधायक-मंत्री बनने की हसरत कभी पूरी नहीं हुई। कुछ की उम्र संगठन की सेवा में बीत गई, तो कुछ को सत्ता सुख के नाम पर बोर्ड-निगमों में एडजस्ट कर दिया गया। माना जाता है कि सामान्य वर्ग के आने वाले कई नेताओं ने कई मौकों पर अपनी पार्टी प्रत्याशी की राह कठिन करी ताकि उनकी कुव्वत बनी रहे। कांग्रेस की अंतर्कलह सैजल के लिए संजीवनी 2007 में अपने पहले चुनाव में डॉ राजीव सैजल ने 6374 वोट से शानदार जीत दर्ज की थी। पर अगले दोनों चुनाव में डॉ राजीव सैजल बमुश्किल अपनी सीट बचा पाए। 2012 में वे महज 24 वोट से जीते तो 2017 में अंतर 442 वोट का रहा। इन दोनों ही मौकों पर कांग्रेस की अंतर्कलह उनके लिए संजीवनी सिद्ध हुई।
इनाम का पता नहीं पर हार का पर्चा फिर फट सकता है, हाशिये पर चल रहे डॉ राजीव बिंदल की स्थिति फिलवक्त कुछ ऐसी ही लग रही है। भाजपा के इन वरिष्ठ नेता को न सरकार में ज़िम्मेदारी मिल रही है और न ही संगठन में, बस चुनाव लड़वाने का प्रभार मिलता जा रहा है। प्रभार भी ऐसे चुनाव लड़वाने का, जहां पार्टी की डगर कठिन होती है। पहले सोलन नगर निगम चुनाव का प्रभारी बनाया गया और अब अर्की उपचुनाव का। सोलन में भी अंदरूनी अंतर्कलह और खींचतान के चलते पहले से पार्टी बैकफुट पर थी और अर्की में भी यदि बगावत के सुर इसी तरह प्रखर रहे तो कोई चमत्कार ही पार्टी की नाव पार लगा सकता है। फर्क इतना है कि सोलन में पार्टी के दो गुटों में से एक गुट बिंदल के निष्ठावानों का ही है, जबकि अर्की की राजनीति में डॉक्टर साहब की सीधी दखल नहीं है। ऐसे में अर्की में शायद बिंदल सोलन से ज्यादा असरदार दिखे। यहां एक बात पर गौर करना भी जरूरी है, यदि सोलन नगर निगम भाजपा जीत भी जाती तो शायद क्रेडिट मुख्यमंत्री के तूफानी दौरों को मिलता, जहां उन्होंने वार्ड -वार्ड छान मारा था। वहीं हार के बाद मुख्यमंत्री के जनाधार पर तो सवाल उठे ही, पर खुलकर ये भी कहा जाने लगा कि डॉ बिंदल का जादू अब फीका पड़ चुका है। दरअसल बिंदल के बेहद करीबी माने जाने वाले नेता भी चुनाव हार गए थे। नतीजन फिलवक्त नगर निगम चुनाव के बाद अब सोलन में बिंदल गुट हाशिए पर है और विरोधी गुट हावी। अब डॉ राजीव बिंदल को पार्टी के फिर एक बेहद मुश्किल चुनौती दे दी है, यहां बिंदल के लिए खुद को साबित करना मुश्किल होने वाला है। इसमें कोई संशय नहीं है कि डॉ राजीव बिंदल संगठन के भी डॉक्टर है, अपने लम्बे राजनीतिक सफर में उन्होंने कई मौकों पर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। उनकी जमीनी पकड़ और पॉलटिकल मैनेजमेंट को लेकर कोई सवाल नहीं है, पर जो अर्की भाजपा की वर्तमान स्थिति है उसमें जीत हासिल करना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं है। जीत के लिए परिस्थितिओं को अनुकूल बनाना बेहद जटिल नज़र आ रहा है। ये कठिनाईयां चुनावी प्रतिद्वंदियों की बदौलत नहीं बल्कि पार्टी की आपसी अंतर्कलह का नतीजा है। अर्की में पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा और पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रतन सिंह पाल के बीच टिकट को लेकर जंग चल रही है। इस जंग की ज्वाला फिलहाल शांत होती नहीं दिख रही। पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा अब खुलकर अपनी नाराज़गी जाहिर कर रहे है। दरअसल 2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा की जगह टिकट रतन सिंह पाल को दिया गया। रतन सिंह पाल 2017 का चुनाव हार गए लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें हिमाचल प्रदेश कॉपरेटिव डेवलपमेंट फेडरेशन का चेयरमैन बनाया गया। संगठन में भी रतन सिंह पाल को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष का दायित्व मिला जबकि दूसरी ओर पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा को पूरी तरह से साइड लाइन कर दिया गया। अब अर्की उपचुनाव से पहले ही गोविन्द राम शर्मा मैदान में है और पार्टी से टिकट की मांग कर रहे है। दोनों ही नेता सेटल होने के मूड में नहीं है। जो अंतर्कलह अर्की भाजपा में दिख रही है उसमें जीत की उम्मीद धुंधली है और अब ऐसे में बिंदल के हाथों इस डूबती नाव का पतवार थमा दिया गया है। वक्त रहते यदि बगावत नहीं साधी गई तो अनुकूल नतीजे की अपेक्षा बेमानी ही होगी। डॉ सैजल पर भी उम्मीदों का बोझ भाजपा की ओर से अर्की उपचुनाव के लिए डॉ राजीव बिंदल को प्रभारी व स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल को सह प्रभारी नियुक्त किया गया है। दो डॉक्टरों की ये जोड़ी सोलन नगर निगम चुनाव में फेल हो चुकी है। वहीं डॉ राजीव सैजल का जादू परवाणु नगर परिषद चुनाव में भी नहीं दिखा था। ऐसे में जाहिर है जिला के इकलौते मंत्री होने के नाते अर्की में उन पर भी काफी दबाव होगा। कांग्रेस के संभावित भीतरघात से भाजपा को रहेगी उम्मीद यदि प्रतिभा सिंह अर्की से चुनाव नहीं लड़ती है तो टिकट के मुख्य दावेदारों में संजय अवस्थी का नाम सबसे आगे दिख रहा है। उनके अतिरिक्त वीरभद्र परिवार के करीबी राजेंद्र ठाकुर भी टिकट के दावेदार है। इन दोनों में भी टिकट को लेकर खींचतान है। माना जा रहा है कि वीरभद्र सिंह का परिवार राजेंद्र ठाकुर की पैरवी कर सकता है, हालांकि अंतिम निर्णय पार्टी आलाकमान ही लेगा। उधर संजय अवस्थी आलाकमान में अच्छी पैठ रखते है जिसके बूते उनका दावा कम नहीं आंका जा सकता। ऐसे में यक्ष प्रश्न ये ही है कि इनमें से जिसका भी टिकट कटेगा क्या वो दूसरे के साथ खड़ा होगा ? कांग्रेस की इसी संभावित अंतर्कलह और भीतरघात पर भाजपा की उम्मीद भी टिकी होगी।
'एक था राजा', स्व वीरभद्र सिंह को समर्पित ये उस खबर की कटिंग है जिसे प्रतिभा सिंह ने बीते दिनों सोशल मीडिया पर शेयर किया था। पर अब बदले राजनीतिक समीकरणों में खबर भी बदल गई है और हेडलाइन भी। सियासी चश्मे से देखे तो अब खबर और हैडलाइन दोनों कुछ इस तरह है, 'एक था राजा, पर क्या रानी का दौर आएगा ? ' वीरभद्र सिंह हिमाचल की सियासत के भी राजा थे और अब उनकी राजनैतिक विरासत को संभालने के लिए नज़रें उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह पर टिकी है। वीरभद्र सिंह के निष्ठावान और समर्थक खुलकर अब प्रतिभा सिंह को मजबूत करते दिख रहे है। कयास लग रहे है कि उपचुनाव से प्रतिभा सियासी कमबैक करेगी और समर्थकों का प्रयास है कि वीरभद्र सिंह के बाद जो स्थान रिक्त है उसे परिवार के भीतर से ही भरा जा सके। हालांकि लोकतंत्र में कौन किसका स्थान भरता है ये जनता ही तय करती है। प्रतिभा सिंह करीब तीन साल बाद सोशल मीडिया पर फिर सक्रिय हुई है। ये तय माना जा रहा है कि सोशल मीडिया की तरह ही वे राजनीति में भी अब सक्रिय होने जा रही है और उपचुनाव भी लड़ेगी। परिवार भी इसके संकेत दे चुका है। माहिर मानते है कि परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिए प्रतिभा सिंह का कमबैक करना मजबूरी भी है। यूं तो वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी राजनीति में है और वर्तमान में शिमला ग्रामीण से विधायक भी, पर न विक्रमादित्य सिंह के पास अधिक तजुर्बा है और न ही फिलवक्त उनसे शह और मात की राजनीति में उनसे उनके पिता समान अपेक्षा की जा सकती है। ऐसे में जानकार विक्रमादित्य सिंह के पांव मजबूत करने के लिहाज से भी उनकी माता प्रतिभा सिंह का सक्रिय होना बेहद जरूरी मान रहे है। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की बात करें तो 6 दशक की राजनीति में वीरभद्र सिंह के आगे कभी कोई नहीं ठहरा। कई नेताओं के अरमानों पर वीरभद्र सिंह पानी फेरते रहे। उनके सियासी कद के आगे विरोधियों की तमाम आवाजें दब कर रह गई। पर अब वीरभद्र सिंह नहीं रहे और ऐसे में दबी रही आवाजें भी खूब बुलंद होगी। पार्टी के भीतर व्यापक फेरबदल तय दिख रहा है और ऐसे में वीरभद्र सिंह के परिवार के लिए आगे की राह बेहद मुश्किल होनी है। विक्रमादित्य सिंह की बात करें तो अब तक उनकी सबसे बड़ी ताकत ये ही रही है कि वे वीरभद्र सिंह के पुत्र है, वर्तमान में भी वे सहानुभूति की लहर पर सवार है, पर राजनीति की मैराथन में अब उन्हें हर कदम पर अपनी काबिलियत सिद्ध करनी होगी। हालांकि बतौर विधायक वे बेहतर ही दिखे है पर अब उनसे उम्मीद कहीं ज्यादा होने वाली है। ऐसे में उनकी माता प्रतिभा सिंह भी यदि सक्रिय राजनीति में रहती है तो निसंदेह विक्रमादित्य की जमीन ठोस होगी। 1962 में वीरभद्र सिंह पहली बार सांसद बने थे, तब से अब तक बुशहर रियासत की सियासत में भरपूर भागीदारी रही है। सिर्फ आपातकाल के दौरान 1977 से 1980 तक ही ऐसा वक्त आया है जब बुशहर रियासत से कोई संसद या विधानसभा में न रहा हो। इन तीन वर्षों को छोड़ कर खुद वीरभद्र सिंह किसी न किसी सदन का हिस्सा रहे है। वहीं उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी मंडी सीट से दो बार सांसद रही है। होली लॉज का सियासी रसूख बरकरार रखना चुनौती कहते है ना, मन के लड्डू छोटे क्यों, छोटे हैं तो फीके क्यों ? स्व वीरभद्र सिंह के समर्थक और निष्ठावान इसी प्रयास में है कि प्रतिभा सिंह सक्रिय राजनीति में जबरदस्त कमबैक करें और 2022 आते -आते प्रदेश कांग्रेस की राजनीति को टेकओवर कर ले। कुछ समर्थक तो अभी से प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के तौर पर उनके नाम को हवा देने में लगे है। पर प्रदेश कांग्रेस में आधा दर्जन से अधिक ऐसे कद्दावर नेता है जो दशकों से निरंतर पार्टी के लिए काम कर रहे है। उनकी जमीनी पकड़ बेशक वीरभद्र सिंह के मुकाबले नहीं है पर इतनी भी ढीली नहीं है कि सियासत का केंद्र अब भी होली लॉज ही बना रहे। इन नेताओं की पकड़ इतनी ढीली भी नहीं लगती कि स्व वीरभद्र सिंह के नाम पर ही उनका परिवार राजनीति के क्षितिज पर पहुंच जाएं। यानी होली लॉज का तिलिस्म बरकरार रखना भी चुनौती होगा। बहरहाल अभी नज़रें होली लॉज पर टिकी है ,पर होली लॉज का सियासी रसूख बरकरार रहता है या नहीं, ये देखना अब दिलचस्प होगा। परिवार के साथ वीरभद्र सिंह का नाम तो है, पर अब राह बेहद मुश्किल होगी। निसंदेह आने वाला वक्त वीरभद्र सिंह के परिवार का जमकर इम्तिहान लेगा और यहाँ से भविष्य की दिशा और दशा भी तय होगी।
प्रदेश में चार उपचुनाव होने है और वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रदेश के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए है, विशेषकर आगामी उपचुनाव के लिहाज से। सहानुभूति फैक्टर अभी से हावी दिखने लगा है। नतीजन जिस मंडी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को उम्मीदवार नहीं मिलता दिख रहा था अब वहां प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलों ने भाजपा का चैन छीन लिया है। सांसद बनने का ख्वाब देख रहे नेता ये ही चाह रहे है कि प्रतिभा सिंह अर्की का रुख करें। उधर अर्की भाजपा में भी स्थिति इतर नहीं है। अंतर्कलह ने पहले ही पार्टी की कमर तोड़ कर रख दी है और ऐसे में यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ती है तो डगर निसंदेह और मुश्किल होने वाली है। प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलों ने न सिर्फ भाजपा का सुकून चुराया है बल्कि कहीं-कहीं कांग्रेस में भी ऐसे ही हाल है। अर्की उपचुनाव में कांग्रेस टिकट के चाहवानों की धड़कनें तेज है। इन्हें डर सता रहा है कि अगर प्रतिभा सिंह अर्की से चुनाव लड़ने का मन बना लेती है तो इनके अरमानों पर पानी फिर जायेगा। दूसरी तरफ मंडी संसदीय क्षेत्र में स्थिति विपरीत है। यहाँ कई नेताओं को लग रहा होगा कि काश प्रतिभा सिंह यहां से चुनाव लड़ ले तो उनके सर से बला टले। यही राजनीति है, हर पल नए समीकरण। इस बीच सहानुभूति के रथ पर सवार हुई कांग्रेस भी विजय श्री की आस में है। हालांकि असल फैसला तो मतदाता को करना है, पर ये कहा जा सकता है कि अब माहौल बनाने में कांग्रेस काफी हद तक सफल हुई है। उधर, उपचुनाव में खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर भी दबाव होगा। मंडी सहित चार उपचुनावों में नतीजे प्रतिकूल रहे तो पार्टी के भीतर अनुराग का राग बुलंद हो सकता है। मंडी संसदीय उपचुनाव कांग्रेस के लिए इज़्ज़त बचाने तो भाजपा के लिए वर्चस्व बरकरार रखने की जंग होगी। मंडी में कांग्रेस की जो स्थिति थी उसे देखते हुए भाजपा काफी आश्वस्त दिख रही थी। कौल सिंह ठाकुर मंडी संसदीय क्षेत्र का उप चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके थे। वीरभद्र सिंह का परिवार उप चुनाव लड़ने में रूचि नहीं दिखा रहा था। पार्टी टिकट पर पिछले चुनाव हार चुके आश्रय शर्मा भी उपचुनाव को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं दिख रहे। साफ़ तौर पर कांग्रेस में चुनाव लड़ने को कोई बड़ा नेता तैयार नहीं था और भाजपा में टिकट की जंग शुरू हो गई थी। परन्तु वीरभद्र सिंह के निधन के उपरांत जैसे ही प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट तेज़ हुई है, परिस्थितियां बदल गई है। कांग्रेस भी सशक्त नज़र आ रही है और भाजपा भी हल्की घबराहट के बाद अब प्रो एक्टिव हो गई है। बहरहाल कांग्रेस प्रतिभा सिंह के भरोसे उम्मीद में है तो भाजपा भी निरंतर मैदान में डटी हुई है। 2019 : कांग्रेस भी हारी, सुखराम परिवार को भी लगा झटका वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो मंडी संसदीय सीट से भाजपा ने पंडित रामस्वरूप का टिकट बरकरार रखा था। वहीं 2017 में कांग्रेस को झटका देकर भाजपा में आए पंडित सुखराम अपने पोते आश्रय को सांसद बना देखना चाहते थे। इसी अरमान के साथ दादा - पोता कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने आश्रय को टिकट भी दे दिया, पर हुआ वहीँ जो तमाम राजनीतिक पंडित मानकर चल रहे थे। 4 लाख 5 हज़ार 459 वोट के अंतर से आश्रय बुरी तरह चुनाव हार गए। शायद भाजपा ने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी जीत का अंतर इतना विशाल होगा। 2019 के लाेकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस काे मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली हर विधानसभा सीट पर पराजित किया था। उस चुनाव में रामस्वरूप शर्मा को 6 लाख 47 हजार 189 मत पड़े थे जबकि कांग्रेस के आश्रय शर्मा को 2 लाख 41 हजार 730 मत मिले थे। यहां तक कि जिन विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के विधायक थे, वहां पर भी कांग्रेस के आश्रय काे बढ़त नहीं मिल पाई थी। यानी किन्नौर, कुल्लू और रामपुर विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के नुमाइंदे होने पर भी जनता ने कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताया था। इस हार के बाद से ही मंडी में कांग्रेस कभी भी प्रभावशाली नहीं दिखी। कमोबेश ऐसा ही हाल आश्रय शर्मा का भी है। पांच साल में दस गुना बढ़ा था हार का अंतर 2014 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस उम्मीदवार थी और उस चुनाव में उन्हें करीब 40 हज़ार वोटों से शिकस्त मिली थी। जबकि 2019 में आश्रय शर्मा 4 लाख से भी अधिक वोटों से हारे थे। यानी 2014 में जो अंतर करीब 40 हज़ार था वो पांच साल में 10 गुना बढ़कर करीब चार लाख हो गया। कई दिग्गज धराशाई हुए है मंडी में इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर में वीरभद्र सिंह मंडी से करीब 36 हजार वोट से चुनाव हार गए थे। 1989 में पंडित सुखराम करीब 28 हज़ार वोट से चुनाव हारे। उन्हें महेश्वर सिंह ने चुनाव हराया था। इसके बाद 1991 में महेश्वर सिंह को पंडित सुखराम ने परास्त किया। 1998 में महेश्वर सिंह ने प्रतिभा सिंह को चुनाव हराया। 1999 में महेश्वर ने कौल सिंह ठाकुर को हराया। महेश्वर सिंह इसके बाद 2004 में प्रतिभा सिंह से और 2009 में वीरभद्र सिंह के सामने चुनाव हार गए। वर्तमान में सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 2013 के उप चुनाव में प्रतिभा सिंह से हारे। वहीं 2014 के आम चुनाव में प्रतिभा सिंह को रामस्वरूप शर्मा ने हराया। दिग्गज कर्मचारी नेता भी लड़ चुके है चुनाव मंडी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो प्रदेश कर्मचारी महासंघ में अध्यक्ष के पद पर रह चुके फायर ब्रांड कर्मचारी नेता मधुकर और ठाकुर अदन सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा था। इन दोनों ने हिमाचल की राजनीति के चाणक्य पंडित सुखराम के खिलाफ चुनाव लड़ा। हालांकि दोनों को ही चुनावों में सफलता नहीं मिली थी, लेकिन संसदीय क्षेत्र के चुनाव में कर्मचारी नेताओं ने दिग्गज नेता को टक्कर दी थी। मधुकर ने 1984 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जबकि अदन सिंह ठाकुर ने भी भाजपा के ही टिकट पर 1996 में चुनाव लड़ा था माकपा भी आजमाएगी किस्मत मंडी संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए माकपा भी तैयार है। इस बार माकपा का कोई एक दिग्गज भी मंडी की सियासी रणभूमि में अपनी ताकत आज़माएंगा। पिछली बार यानी लाेकसभा आम चुनाव में इस सीट पर माकपा नेता एवं अधिवक्ता दलीप कायथ मैदान में उतरे थे, लेकिन वे बुरी तरह हार गए थे। अब एक बार फिर उपचुनाव के लिए माकपा में भी टिकट की जंग शुरु हाे चुकी है। सुगबुगाहट है जोगिंदर नगर विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाले कुशाल भारद्वाज और रामपुर विधानसभा क्षेत्र के दलीप कायथ में से किसी एक नेता काे टिकट मिल सकता है। संभावनाएं जताई जा रही है दलीप कायथ फिर से मैदान में उतर सकते हैं। गौरतलब है की 2019 के लोकसभा चुनाव में माकपा के दलीप कायथ काे सिर्फ 14 हजार 838 मत मिले थे। भले ही माकपा काे हार मिली हाे मगर हौसला बरकरार है। खास बात तो ये है की इससे पहले माकपा की तरफ से जब भी मंडी लोकसभा का चुनाव लड़ा गया पार्टी तीसरे नंबर पर ही रही। भाजपा : बदले समीकरण में उम्मीदवार का चयन चुनौती भाजपा की बात करें तो यह सीट विशेषकर दो नेताओं के लिए प्रतिष्ठता का सवाल बन चुकी है। पहले है जगत प्रकाश नड्डा जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उनके प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव में मनमाफिक नतीजे नहीं आये तो सवाल उठना लाज़मी है। दूसरे है मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, मंडी जिनका अपना गृह जिला है। जाहिर है ऐसे में उप चुनाव की ये सियासी परीक्षा किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। मंडी संसदीय सीट से पूर्व सांसद एवं पूर्व विधायक महेश्वर सिंह और सैनिक कल्याण बाेर्ड के चेयरमैन ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर के नाम चर्चा में है। मंडी से यदि प्रतिभा सिंह सिंह मैदान में होती है तो भाजपा सरकार में दाे मंत्रियाें में से किसी एक काे भी मंडी संसदीय सीट से उपचुनाव लड़ने के लिए मना सकती है। मगर सवाल ये भी है कि क्या सरकार किसी मंत्री काे संसद पहुंचा कर उपचुनाव का रिस्क लेना चाहेगी। खबर ये भी है कि मंत्री महेंद्र सिंह अपनी बेटी वंदना गुलेरिया के लिए भी टिकट की पैरवी कर सकते है, जो वर्तमान में जिला परिषद सदस्य है। इनके अलावा कर्मचारी नेता एन आर ठाकुर व राजेश शर्मा, तथा त्रिलोक जम्वाल के नाम भी चर्चा में है। प्रभारी और सह प्रभारी ही तो नहीं होंगे उम्मीदवार भाजपा ने जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर काे उपचुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त किया है, जबकि शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर काे सह प्रभारी बनाया गया है। हालंकि बदले समीकरण के बाद चर्चा ये भी है कि कहीं ऐसा न हो कि भाजपा की उम्मीदवार की तलाश प्रभारी या सह प्रभारी पर जाकर ही ठहरे। संभावित: मंडी से ही हुंकार भरेगी प्रतिभा सिंह प्रतिभा सिंह यदि चुनाव लड़ती है तो वीरभद्र सिंह के परिवार के लिए भी ये चुनाव वर्चस्व बरकरार रखने की चुनौती है। उनके पास दो विकल्प होंगे, मंडी और अर्की। पर जानकार मान रहे है की प्रतिभा सिंह मंडी से मैदान में उतरेंगी। दरअसल अर्की में कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है और एक गुट विशेष प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारने का पक्षधर है। जबकि अन्य एक अन्य गुट संजय अवस्थी के साथ दिख रहा है। इस स्थिति में वीरभद्र परिवार का सब कुछ दांव पर होगा। खुदा न खास्ता प्रतिभा सिंह अर्की से मैदान में उत्तरी और नतीजा प्रतिकूल रहा तो वर्चस्व भी धुंधला जायेगा। वहीँ प्रतिभा सिंह यदि मंडी संसदीय क्षेत्र से मैदान में होती है तो उन्हें बुशहर रियासत के दायरे में आने वाले क्षेत्रों से अच्छी सहानुभूति मिल सकती है, विशेषकर रामपुर, किन्नौर, आनी, करसोग और सिराज में। 2014 की मोदी लहर में भी प्रतिभा सिंह मंडी से करीब 40 हजार वोट से ही हारी थी जो अंतर आश्रय शर्मा के उम्मीदवार रहते 2019 में करीब चार लाख पहुंच गया था। ऐसे में सहानुभूति के रथ पर सवार होकर प्रतिभा सिंह 2014 के 40 हजार के अंतर को पट सकती है। बावजूद इसके अगर नतीजा उनके पक्ष में नहीं भी आता है तो भी उन्हें आश्रय शर्मा की तरह एकतरफा हार मिलेगी, ऐसा नहीं लगता। सो प्रतिभा सिंह के लिए मंडी उप चुनाव लड़ना नपातुला जोखिम है। वहीँ यदि प्रतिभा सिंह मंडी से चुनाव नहीं लड़ती है तो कौल सिंह ठाकुर कांग्रेस की पसंद हो सकते है। बताया जा रहा है कि बीते दिनों फीडबैक लेने मंडी पहुंची चार सदस्य वाली कमेटी के सामने भी दो ही नाम आये है, प्रतिभा सिंह और कौल सिंह। हालांकि जानकार कौल सिंह की प्राथमिकता 2022 का विधानसभा चुनाव ही मान रहे है। सरकार बनने की स्थिति में वे सीएम पद के दावेदार भी हो सकते है, ऐसे में वे मंडी उपचुनाव लड़ेंगे ऐसा मुश्किल लगता है। फीका पड़ा पंडित सुखराम एंड फैमिली का वर्चस्व अर्से तक मंडी की सियासत में पंडित सुखराम एंड फैमिली का वर्चस्व रहा है। पर पंडित जी 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। अनिल शर्मा फिर विधायक भी बन गए और जयराम कैबिनेट में मंत्री भी। तदोपरांत पोते आश्रय को सांसद बनाने के लिए सुखराम और उनके पोते आश्रय 2019 में कांग्रेस में वापस लौट गए और अनिल शर्मा भाजपा में बने रहे। ये कदम भारी पड़ा, आश्रय तो बुरी तरह चुनाव हारे ही, उनके पिता अनिल शर्मा का मंत्री पद भी गया। अब कहने को तो अनिल भाजपा में बने हुए है लेकिन जानकार मानते है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से उनकी औपचारिक विदाई भी तय है। बाकी राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। कांग्रेसी विधयकों के क्षेत्र में भी भाजपा थी हावी 2019 के लाेकसभा चुनाव पर नज़र डाले तो भाजपा ने कांग्रेस काे मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली हर विधानसभा सीट पर पराजित किया था। उस चुनाव में रामस्वरूप शर्मा को 6 लाख 47 हजार 189 मत पड़े थे। वहीँ आश्रय को 2 लाख 41 हजार 730 मत मिले थे। यहां तक कि जिन विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के विधायक थे, वहां पर भी कांग्रेस के आश्रय काे बढ़त नहीं मिल पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बढ़त विधानसभा क्षेत्र भाजपा को बढ़त पांगी-भरमौर 19726 लाहौल स्पीति 3962 मनाली 16863 कुल्लू 24385 बंजार 21973 आनी 24569 करसोग 26860 सुंदरनगर 23427 नाचन 26395 सराज 37147 द्रंग 25517 जोगिंद्रनगर 36292 मंडी 27491 बल्ह 33168 सरकाघाट 31021 रामपुर 11550 किन्नौर 7048 17 विधानसभा क्षेत्रों का बनेगा रिपोर्ट कार्ड मंडी संसदीय क्षेत्र में 17 विधानसभा क्षेत्र आते है। जाहिर है ऐसे में दोनों मुख्य राजनीतिक दलों का सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में इम्तिहान होगा। ये हिमाचल की कुल 68 विधानसभा सीटों का 25 फीसदी है। ऐसे में 2022 से पहले मंडी संसदीय उपचुनाव में बेहतर करने का दबाव दोनों राजनीतिक दलों पर होगा। जीत मिले या हार, पर विश्लेषण सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों का होना है। जाहिर है स्थानीय नेताओं पर भी बेहतर करने का दबाव रहेगा। फिलवक्त इन 17 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ किन्नौर, रामपुर और कुल्लू में ही कांग्रेस के विधायक है। 2022 के लिए कांग्रेसी की कितनी तैयारी है, इसकी झलक भी लोकसभा उपचुनाव में देखने को मिलेगी। चुनाव के बाद सभी सम्बंधित विधानसभा क्षेत्रों का रिपोर्ट कार्ड बनना भी तय है। वर्ष सांसद पार्टी 1971 वीरभद्र सिंह कांग्रेस 1977 गंगा सिंह भारतीय लोक दल 1980 वीरभद्र सिंह कांग्रेस 1984 पंडित सुखराम कांग्रेस 1989 महेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी 1991 पंडित सुखराम कांग्रेस 1996 पंडित सुखराम कांग्रेस 1998 महेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी 1999 महेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी 2004 प्रतिभा सिंह कांग्रेस 2009 वीरभद्र सिंह कांग्रेस 2013 प्रतिभा सिंह कांग्रेस 2014 राम स्वरुप शर्मा भारतीय जनता पार्टी 2019 राम स्वरुप शर्मा भारतीय जनता पार्टी बीते पांच दशक में मंडी लोकसभा सीट पर 1971 से अब तक हुए 13 लोकसभा चुनाव और एक उप चुनाव हुआ है जिसमें कांग्रेस को उप चुनाव सहित 8 में जीत मिली है और ये सभी जीत पंडित सुखराम, वीरभद्र सिंह और वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के नाम दर्ज है। यानी 50 साल से मंडी में कांग्रेस की सियासत सिर्फ दो परिवारों के भरोसे चली है। इस मर्तबा भी कांग्रेस की उम्मीद प्रतिभा सिंह पर ही टिकी है।
बुधवार को भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा के कर कमलों द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्वयं सेवक अभियान का केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली में शुभारम्भ हुआ। राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्वयं सेवक अभियान के दृष्टिगत आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में देश भर के 33 प्रातों/केन्द्र शासित प्रदेशों के 121 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। एक दिवसीय यह प्रशिक्षण वर्ग पांच सत्रों में आयोजित किया गया। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा ने इस अवसर पर बोलते हुए भाजपा का आहवान किया कि हमें देश के दो लाख गांव में चार लाख हैल्थ वालिंटियर तैयार करने हैं और जो किसी भी संभावित कोविड वेव से समाज को जागरूक करने, समाज सेवा करने के लिए तत्पर हों। उन्होंने कहा कि भाजपा के लिए सेवा ही संगठन है और हम सब इसी विचारधारा एवं दृष्टिकोण के साथ राष्ट्र सेवा में कार्यरत हैं। विधायक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्षा डा. राजीव बिन्दल जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्वयं सेवक अभियान के संयोजक भी हैं ने प्रशिक्षण वर्ग में कहा कि हमें गांव स्तर पर बनाए जाने वाले स्वास्थ्य सवयं सेवकों को कोविड-19 के प्रति पूर्ण रूपेण जानकार बनाना है ताकि वे अपने गांव, अपने मोहल्ले में आने वाले क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक कर सकें। डा. बिन्दल ने कहा कि हमारा संगठन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा राष्टीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा के मागदर्शन में इस लक्ष्य को पूरा करेगा और कोरोना को हरा कर ही हम दम लेंगे। देश भर से पधारे 33 प्रांतों/केन्द्र शासित प्रांतों के 121 प्रतिनिधियों ने प्रशिक्षण शिविर में अपने सुझाव और विचार भी व्यक्त किए। प्रशिक्षण शिविर में सभी प्रतिनिधियों को कोरोना की संभावित तीसरी वेव के दृष्टिगत प्रभावितों की सहायता और जानकारी प्रदान करने सम्बन्धी महत्पूर्ण और लाभाकारी जानकारी उपलब्ध करवाई गई है।
4 उपचुनाव की चुनौती, एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटें। धुंदला भविष्य पर बेजोड़ तमक। हाल फिलहाल हिमाचल के सियासी मौसम का मिजाज़ कुछ ऐसा ही है। उपचुनाव की तिथि घोषित भले ही न हुई हो मगर कच्चे पक्के वादों की बरसात शुरू हो गई है। बात जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र की करें तो स्थिति कमोबेश ये ही नज़र आ रही है। पूर्व विधायक स्व. नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद इस क्षेत्र में नेताओं की दिलचस्पी बढ़ गई है। उपचुनाव नज़दीक है, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर समेत कई मंत्री इस क्षेत्र का दौरा कर बड़ी घोषणाएं कर चुके है और गुपचुप बैठकों में मंत्रणा भी जारी है। यहां कांग्रेस भी पीछे नहीं दिख रही, प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भाजपा सरकार पर ताबड़तोड़ हमले शुरू हो चुके है, साढ़े तीन साल का हिसाब मांगा जा रहा है। विस क्षेत्र की नज़रअंदाजी, सरकार की ढुलमुल व्यवस्था के कारण रुके विकास कार्य, और बेरोज़गारी महंगाई जैसे आम मुद्दे, जनता को सब कुछ याद दिलाया जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक्शन मोड में है, मगर यहां वोट रुपी जनता के प्यार से पहले, टिकट रुपी पार्टी का आशीर्वाद किसे मिलने वाला है, ये यक्ष प्रश्न है। नरेंद्र बरागटा ने खिलाया दो बार कमल जुब्बल - कोटखाई वो विधानसभा क्षेत्र है जहां कमल खिलाना बड़े -बड़े दिग्गजों के लिए कभी एक सपना सा हुआ करता था। इस विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ तो कहा ही जाता है मगर जुब्बल - कोटखाई को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. ठाकुर रामलाल का गढ़ कहना भी गलत नहीं होगा। ठाकुर रामलाल कुल नौ मर्तबा जुब्बल कोटखाई से विधायक रहे है। उनके निधन के बाद दो बार इस विधानसभा क्षेत्र की कमान उनके पोते रोहित ठाकुर भी संभाल चुके है। अब तक भाजपा को यहां केवल दो ही बार जीत मिल पाई है। कांग्रेस के इस गढ़ में कमल खिलाने वाले नेता थे पूर्व विधायक नरेंद्र बरागटा। वर्ष 2003 में बरागटा ने इस विस क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा मगर वे जीत नहीं पाए। इसके बाद विपक्ष में रहते हुए वे पांच साल जुब्बल - कोटखाई की आवाज बने रहे। नतीजन 2007 में उन्हें जुब्बल - कोटखाई की जनता ने वोट रुपी आशीर्वाद दिया और पहली बार इस सीट पर भाजपा विजयी हुई। 2017 में भी इस विधानसभा क्षेत्र से नरेंद्र बरागटा ही जीते। उनके निधन के बाद अब उपचुनाव होना है समीकरण बदल गए है। चेतन या कोई और, मंथन जारी जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में भाजपा की तरफ से टिकट के लिए कई चाहवान है पर मुख्यतः तीन नाम चर्चा में है। सबसे पहले है पूर्व विधायक स्व. नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा। चेतन प्रदेश भाजपा आईटी सेल के प्रमुख है, पार्टी से जुड़े हुए ज़रूर है मगर जमीन के बनिस्पत वर्चुअल राजनीति में ज्यादा सक्रीय रहे है। ऐसे में टिकट की उनकी दावेदारी पूरी तरह से पिता की सियासी विरासत के नाम पर ही है। फिलहाल चेतन ब्रागटा पूरी तरह एक्शन मोड में दिख रहे है। जुब्बल कोटखाई में किसी मंत्री का दौरा हो या मुख्यमंत्री का, तसवीरें ये बयां करती है की चेतन को पूरी तवज्जो दी जा रही है। दूसरा नाम है नीलम सरैक का। नीलम जो तीन बार इस क्षेत्र से जिला परिषद की सदस्य रह चुकी है और पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में एक है। नीलम ने टिकट की दावेदारी ठोकी है और वे परिवारवाद और व्यक्तिवाद के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है। नीलम ने ये स्पष्ट कर दिया है की वे बरागटा परिवार नहीं, बल्कि कमल के फूल यानी भाजपा के साथ है। नीलम 1997 से संगठन के लिए काम कर रही हैं और उनके तेवर देखकर फिलवक्त तो ये बिलकुल नहीं लगता की वो किसी भी सूरत में कदम पीछे लेंगी। टिकट इस जंग में तीसरा नाम है डा. सुशांत देष्ठा का है। देष्ठा छात्र राजनीति से उभरे हुए नेता है और पूर्व में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सचिव भी रह चुके है। फिलवक्त भजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवार का चयन होगा और साथ ही पार्टी को संभावित बगावत भी साधनी होगी। आपसी सामंजस्य बैठाना चुनौती भाजपा ने शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज को जुब्बल कोटखाई उपचुनाव के लिए प्रभारी बनाया है। मंत्री सुरेश भारद्वाज और स्व नरेंद्र बरागटा की आपसी खींचतान किसी से छिपी नहीं रही है। बरागटा परिवार का आरोप रहा है पिछले तीन साल में जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र में सरकार और संगठन के कार्यों में सुरेश भारद्वाज लगातार दखल देते रहे हैं। हालांकि राजनीति में इस तरह की खींचतान कोई बड़ा मसला नहीं है और स्वयं नरेंद्र बरागटा अब नहीं रहे है और संभवतः इस खींचतान पर भी विराम लगे। फिर भी बरागटा परिवार और उनके समर्थकों के साथ सामंजस्य बैठाने का गणित हल करना सुरेश भारद्वाज के लिए भी कड़ी चुनौती होगा। वंशवाद पर भाजपा अब मौन फतेहपुर में कांग्रेस स्व सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद जब उनके पुत्र भवानी सिंह पठानिया राजनीति में आये तो भाजपा ने वंशवाद को बिसात बना कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया। पर अब नरेन्द्र बरागटा के निधन के बाद भाजपा वंशवाद पर मौन है। जगजाहिर है की नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा भी टिकट की दौड़ में है। हालांकि चेतन पहले से भाजपा में सक्रीय है लेकिन सवाल ये है कि यदि वे स्व. नरेंद्र बरागटा के पुत्र न होते तो भी क्या वे टिकट के प्रबल दावेदार होते ? 1990 में चुनाव हार गए थे वीरभद्र 1983 में हिमाचल की सियासत में टिम्बर घोटाले के चलते बवाल मचा था। इसी बवाल में मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल की कुर्सी चली गई और वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने। 1985 में वीरभद्र सरकार ने रिपीट किया और 1990 में वीरभद्र सिंह हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में उतरे। उस चुनाव में वीरभद्र दो सीटों से लड़े, रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई। रोहड़ू में तो वीरभद्र जीत गए लेकिन जुब्बल कोटखाई में करीब पंद्रह सौ वोट से हार गए। दिलचस्प बात ये है की वीरभद्र सिंह को हराने वाले थे वहीं ठाकुर रामलाल उन्हें हटाकर वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे। दरअसल मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ठाकुर रामलाल को अंधेरा प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया था और प्रदेश की राजनीति से एक किस्म से वे दूर हो गए थे। धीरे -धीरे ठाकुर रामलाल और कांग्रेस के बीच भी खाई बनती गई और ठाकुर रामलाल जनता दल में शामिल हो गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में ठाकुर रामलाल ने जनता दल से टिकट पर जुब्बल कोटखाई से चुनाव लड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को परास्त करके अपनी पकड़ का लोहा मनवाया। दो मुख्यमंत्री देने वाला इकलौता निर्वाचन क्षेत्र जुब्बल कोटखाई को कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक माना जाता रहा है। कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह यहाँ से विधायक रह चुके है। ये हिमाचल की इकलौती सीट है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, और दोनों कांग्रेसी ही थे। ठाकुर रामलाल दो बार मुख्यमंत्री रहे है और दोनों बार वे जुब्बल कोटखाई से ही विधायक थे। वहीँ 1985 में मुख्यमंत्री बने वीरभद्र सिंह भी तब जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट से जीतकर ही विधानसभा पहुंचे थे। रोहित का टिकट लगभग तय कांग्रेस की बात करें तो मुख्य तौर पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल के पोते और जुब्बल कोटखाई से दो बार विधायक रहे रोहित ठाकुर ही टिकट के प्रबल दावेदार दिख रहे है। रोहित 2003 और 2012 में जुब्बल कोटखाई से विधायक रहे है। रोहित ठाकुर ही वो नेता जिन्होंने साल 2003 में पूर्व विधायक स्व नरेंद्र बरागटा को हराया था। 2017 में भी रोहित ठाकुर मात्र 1062 वोटो से हारे थे। ऐसे में टिकट के लिए उन्हें किसी अन्य चेहरे से फिलहाल चुनौती मिलती नहीं दिख रही। 2003 से सत्ता के साथ जुब्बल-कोटखाई जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र की जनता 2003 से ही सत्ता के साथ चलती आ रही है। वर्तमान में भाजपा की सरकार है ताे भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते, 2012 में कांग्रेस की सरकार में कांग्रेस के रोहित ठाकुर और उससे पहले 2007 में भाजपा की सरकार थी ताे भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते थे। इसी तरह 2003 के चुनाव में रोहित ठाकुर को जनता का आशीर्वाद मिला। जयराम राज में नहीं मिला मंत्री पद भारतीय जनता पार्टी में स्व नरेंद्र बरागटा के कद का अंदाजा इसी बात से पता चलता है कि 1998 में पहली बार विधायक बनते ही उन्हें धूमल सरकार में बागवानी राज्य मंत्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। इसके बाद प्रेम कुमार धूमल की सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट दर्जा दिया गया। बागवानी विभाग के अलावा तकनीकी शिक्षा विभाग का जिम्मा दिया गया था। 2012 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर राजीव बिंदल के त्यागपत्र देने के बाद स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा भी उन्हें सौंपा गया था। 2017 में नरेंद्र बरागटा तीसरी बार विधायक बने और प्रदेश में जयराम सरकार बनी। भाजपा की बदली हुई सियासत ने उन्हें मंत्रिपद से तो वंचित रखा गया, लेकिन उन्हें पूरी तरह दरकिनार करना भी मुमकिन नहीं था, सो उन्हें मुख्य सचेतक बनाकर कैबिनेट दर्जा दिया गया। बागवानों की आवाज थे बरागटा सत्ता में हाे या फिर विपक्ष में, स्व. बरागटा प्रदेश के बागवानों के हर मसले की आवाज बने। विधानसभा सदन से लेकर केंद्र सरकार तक बागवानों की आवाज बुलंद करने में उन्होंने कोई कमी नहीं छाेड़ी। वर्तमान जयराम सरकार में वे मुख्य सचेतक थे और विधानसभा के हर सत्र में वो बागवानों के हितों की बात करते दिखते थे। सेब पर कमीशन हाे या फिर फसल बीमा कंपनियों की ओर से भ्रष्टाचार का मसला, इन सभी एजेंडों पर स्व. बरागटा ने सरकार के समक्ष ठोक-बजा कर बागवानों का पक्ष रखा। यहां तक की देश की विभिन्न मंडियों में बिकने वाले विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का मुद्दा भी स्व. बरागटा उठाते रहे। 1998 की धूमल सरकार में बागवानी मंत्री रहते हुए नरेंद्र बरागटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष भी ये मामला उठाया था, ताकि प्रदेश के बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। इसके बाद अगली धूमल सरकार में भी वे बागवानी मंत्री थे और यूपीए सरकार के सामने ये विषय रखा। जब भी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते बागवानों की फसल नष्ट होती, ताे उस समय एक ही नेता सामने आता रहा, वह थे नरेंद्र बरागटा। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद स्व. बरागटा ने प्रदेश सरकार से मांग की थी कि वह तुरंत सेब क्षेत्रों में टीमें भेजे और बागवानों किसानों को तुरंत मुआवजा प्रदान करे। अपनी ही सरकार को आईना दिखाते हुए उन्होंने कहा था कि केवल आकलन करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि पिछले साल हुए नुकसान पर भी सरकार केवल आकलन ही करती रह गई थी।
साढ़े तीन साल का कार्यकाल और 6 उपचुनाव। 2017 में भाजपा की सरकार बनी जरूर मगर इस सरकार ने अब तक सत्ता सुख के साथ -साथ निरंतर चुनौतियों का सामना किया है। जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी भले ही आराम से मिल गई हो मगर उसके बाद से उनके लिए कुछ भी आसान नहीं रहा। एक किस्म से भाग्य और काबिलियत की कॉकटेल ने उन्हें सीएम तो बना दिया पर उसके बाद भाजपा में बढ़ी गुटबाज़ी और कोरोना काल ने उनका जमकर इम्तिहान लिया। खुद को सर्वमान्य नेता साबित करने की उनकी जद्दोजहद हमेशा जारी रही है। विरोधी हर मोड़ पर उन्हें सेटल करने की फिराक में रहे, पर जयराम ठाकुर हर चुनौती का डट कर सामना करते रहे। हर मोड़ पर खुद को साबित किया। उनके कार्यकाल में पहले भाजपा ने लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप किया, फिर पच्छाद और धर्मशाला में हुए उपचुनाव में शानदार जीत दर्ज की। तदोपरांत इसी साल जनवरी में हुए पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा। पर फिर सरकार ने पार्टी सिंबल पर नगर निगम चुनाव करवाने की सियासी भूल कर दी। भूल हुई तो खामियाजा भी भुगतना ही था, नगर निगम चुनाव में कांग्रेस भाजपा से इक्कीस साबित हुई। इस आंशिक जीत से जहां कांग्रेस में जान फूंक गई, वहीं जयराम विरोधियों को भी मौका मिल गया। इन साढ़े तीन सालों में काफी सियासी खींचतान देखने को मिली पर अपने शांत और सहज अंदाज से जयराम ठाकुर ने सभी विरोधियों को पटखनी दी। पर अब अनचाहे ही 4 उपचुनाव आ गए जो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए सबसे बड़ी चुनौती होंगे। जयराम ठाकुर पर आगामी चारों उपचुनाव किसी भी हालत में जीतने का दबाव है। हर कदम फूंक फूंक रखा जा रहा है। यहाँ कुछ भी प्रतिकूल रहा तो हार का ठीकरा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सर ही फूटेगा। ऐसी परिस्थिति में पार्टी के भीतर उनके विरोधियों के सुर तेज होना स्वाभाविक होगा। दूसरी तरफ अनुराग ठाकुर का निरंतर बढ़ता कद जयराम ठाकुर के समक्ष विराट चुनौती है। हालही में मोदी कैबिनेट में अनुराग को राज्य मंत्री से प्रमोट करके कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। केंद्र की सियासत में अनुराग ठाकुर का कद बढ़ते ही धूमल समर्थक भी प्रोएक्टिव दिख रहे है। जाहिर है लम्बे समय से हाशिये पर चल रहे धूमल समर्थकों की महत्वकांक्षाएं अब दोबारा बढ़ने लगी है। अब धूमल के निष्ठावानों को अनुराग में भावी सीएम दिखने लगा है। ऐसे में जानकार मानते है कि यदि उपचुनाव के इम्तिहान में जयराम फेल हुए तो अनुराग की प्रदेश की राजनीति में एंट्री संभव है। शांत पड़े थे विरोधी, पर अब स्तिथि अलग 2017 में सत्ता मिलने का बाद मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने के साथ- साथ संभावित कैबिनेट भी बदल गया था। जयराम कैबिनेट में धूमल गुट के कई बड़े चेहरों को जगह नहीं मिली थी। फिर निगम और बोर्डों की नियुक्ति में भी धूमल गुट हाशिये पर ही रहा। बदलती सियासत में कई नेताओं ने तो निष्ठा बदल ली लेकिन अधिकांश तटस्थ रहे। इस बीच जयराम ठाकुर सरकार के मुखिया तो रहे ही, संगठन पर भी उनका असर दिखने लगा। संगठन पर जयराम की पकड़ तब और मज़बूत हो गई जब तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल ने स्वास्थ्य घोटाले के चलते इस्तीफा दिया और सुरेश कश्यप ने संगठन के अध्यक्ष के रूप में कमान संभाली। शांत स्वभाव के जयराम की सियासी सूझबुझ के आगे विरोधी शांत पड़ गए। आहिस्ता - आहिस्ता बेहद नियोजित ढंग से भाजपा का टीम प्ले, वन मैन शो बन गया, और किसी को खबर भी नहीं हुई। मगर अब स्थिति अलग है। विशेषकर आसाम और उत्तराखंड में पार्टी आलाकमान के साहसिक निर्णयों से सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि मिशन रिपीट के लिए पार्टी हिमाचल में भी हरसंभव निर्णय ले सकती है। साथ -साथ पर दूर - दूर बाहरी तौर पर भाजपा भले ही एकजुट दिखती हो मगर कई घाव अब भी हरे है, जो गिले शिकवे मिटने नहीं देते। कई मौके ऐसे आये है जहां अनुराग ठाकुर और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बीच की दूरी स्पष्ट दिखी। पहले डॉ राजीव बिंदल की बतौर प्रदेश अध्यक्ष ताजपोशी में, जब सीएम हाथ बढ़ाते रह गए और जाने -अनजाने अनुराग आगे बढ़ गए। दूसरा जब सेंट्रल यूनिवर्सिटी धर्मशाला के मुद्दे पर एक समारोह में अनुराग ने खुलकर प्रदेश सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाये। यानी झलकियों में ही सही तल्खियां दिखती आ रही है। इस्तेमाल होगा असम फार्मूला ! पार्टी आलाकमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से संतुष्ट बताया जाता है, विशेषकर उनकी क्लीन इमेज और शांत स्वभाव उनकी सबसे बड़ी ताकत है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का आशीर्वाद भी जयराम को प्राप्त है। आमजन के बीच भी सीएम की स्वच्छ छवि है, बावजूद इसके भाजपा का एक गुट विशेष अभी से अनुराग का राग गाने लगा है। ऐसे में पल-पल बदलती सियासत में ऊंट किस करवट बैठेगा इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। जानकार मानते है कि उत्तराखंड की तर्ज पर सीएम बदलने का फार्मूला हिमाचल में नहीं लागू होगा क्यों कि खुले तौर पर जयराम ठाकुर को लेकर कोई असंतोष नहीं है। पर मुमकिन है कि पार्टी असम की तरह ही बगैर सीएम फेस घोषित करें चुनाव में उतरे, ऐसे में सस्पेंस बरकरार रखकर दोनों गुटों की खींचतान और संभावित भीतरघात को कम किया जा सकेगा। जो हाशिये पर रहे, अब खतरा न बन जाएं जयराम कैबिनेट में कई बड़े चेहरों को स्थान नहीं दिया गया, तो कुछ को उम्मीद से कम मिला। माना जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रो प्रेमकुमार धूमल से नजदीकी इन्हें भारी पड़ी। इन तमाम चेहरों की अनदेखी भाजपा के लिए खतरा बन सकती है। मसलन पहले डॉ राजीव बिंदल को माननीय विधानसभा अध्यक्ष बनाकर मंत्रिमंडल से बाहर रखा गया। फिर जैसे - तैसे बिंदल प्रदेश अध्यक्ष बने तो उन्हें स्वास्थ्य घोटाले के नाम पर इस्तीफा देना पड़ा। फिलवक्त बिंदल हाशिये पर है। इसके अलावा रमेश चंद ध्वाला को भी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला। स्व नरेंद्र बरागटा को भी मंत्री पद नहीं दिया गया था। ऐसा ही एक नाम चंबा जिले के भटियात से विधायक बिक्रम सिंह जरयाल का है जिन्हें हालहीं में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सरकारी मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चम्बा जिला की पांच में से चार सीटों पर कब्जा किया था। तब बिक्रम सिंह जरयाल को मंत्रिपद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था लेकिन प्रो प्रेमकुमार धूमल के खुद चुनाव हारने के बाद समीकरण बदल गए और जयराम राज में जरयाल अब तक हाशिये पर ही दिखे। इसी तरह दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रो प्रेम कुमार धूमल के गृह जिला हमीरपुर को भी जयराम कैबिनेट में स्थान नहीं मिला था। अब भोरंज विधायक कमलेश कुमारी को उप मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया है। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। अब सरकार निगम बोर्डों में कुछ नेताओं को एडजस्ट करके स्तिथि बैलेंस करने का फार्मूला जरूर तलाश रही है लेकिन ये कितना कारगार होगा ये देखना रोचक होगा।
प्रदेश भाजपा में नाराज चल रहे कुछ नेताओं के कारण उपचुनाव से पहले घमासान होना तय लग रहा है। हिमाचल में चार उपचुनाव होने है और हर चुनाव क्षेत्र में भाजपा नेताओं के बीच अंतर्कलह चरम पर है। एक टिकट के लिए कई नेता आवाज़ बुलंद कर रहे है, जो कहीं न कहीं भाजपा के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। सरकार और संगठन दोनों इस संभावित घमासान काे थामने का मार्ग तलाश रहे है। ऐसे में नाराज नेताओं काे बाेर्ड एवं निगमों में कुर्सी देकर मनाने की कवायद शुरू हो गई है। साढ़े तीन साल से कई बोर्ड एवं निगमों में उपाध्यक्षाें के पद खाली चल रहे हैं, जिन्हें भरने की अब सरकार ने सुध ली है। रूठे अपनों को मनाने के इस फार्मूला पर सरकार और संगठन दोनों मुहर लगा चुके है। बताया जा रहा है कि हाल ही में दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस विषय को हाईकमान के समक्ष रखा था जिस पर हाईकमान की तरफ से भी सहमति जताई गई है। ऐसे में पार्टी व सरकार द्वारा असन्तुष्ट और सरकार बनने से अब तक हाशिये पर रहे भाजपा नेताओं को बोर्डों और निगमों में नियुक्तियां देने का आगाज हो चूका है। अब कौन रूठा मानता है और कौन नहीं, ये देखना दिलचस्प होने वाला है। सितम्बर में संभावित उप चुनाव को लेकर सभी चार निर्वाचन क्षेत्रों में कई भाजपा नेताओं ने अभी से तेवर दिखाना शुरू कर दिए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन से खाली हुई अर्की विधानसभा सीट से पूर्व भाजपा विधायक गोविंद राम शर्मा के प्रखर तेवर के बाद सरकार व संगठन में यह बात साफ हो गई है कि अपने लोगों को ज्यादा दिनों तक नाराज रखना उपचुनाव में नुकसान का सबब होगा। गोविंद राम शर्मा से पहले जुब्बल कोटखाई से भाजपा की नेत्री नीलम सरैक भी टिकट की मांग कर चुकी है और उनके तेवर भी बगावती लग रहे है। इसी तरह मंडी संसदीय सीट पर कुल्लू से भाजपा के वरिष्ठ नेता महेश्वर सिंह भी टिकट के चाहवान हैं और उन पर भी सबकी नजर टिकी है। वहीं फतेहपुर में भी पूर्व में प्रत्याशी रहे कृपाल सिंह परमार के खिलाफ अभी से कुछ नेता लामबंद होते दिख रहे है। ऐसे में बोर्ड निगमों में नियुक्ति देकर सरकार इन तमाम चाहवानों और असंतुष्ट नेताओं को साधने का प्रयास कर सकती है। साढ़े तीन साल बाद अब बोर्ड निगमों के पदों से नेताओं को नवाजा जाना कितना लाभदायक होता है, ये देखना रोचक होगा। बस जिन नेताओं को ये पद नवाजे जाएंगे उन्हें गाडी- बंगला जरूर मिल जाएगा। वहीं इस पर भी नजर रहने वाली है कि पार्टी की ऐसी लुभावनी पेशकश की स्तिथि में क्या नाराज़ नेताओं के तेवर नरम पड़ते है या सियासी गर्मी बरकरार रहेगी। तीन की नियुक्ति, अब गोविंदराम और नीलम पर नजर प्रदेश के निगमों व बोर्डों में कई ऐसे पद हैं जहां पर सरकार अपने चहेतों को बिठा सकती है। बीते शुक्रवार इसकी शुरुआत हो चुकी है। सरकार ने तीन नियुक्तियां की है जिनमें से एक फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में है तो एक नजदीक लगते ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में। भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के भरयाल गांव निवासी ओमप्रकाश चौधरी को प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम कांगड़ा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जबकि जवाली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता संजय गुलेरिया को नेशनल सेविंग स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। गुलेरिया जवाली विधानसभा सीट से टिकट की दौड़ में शामिल रहे हैं। तीसरी नियुक्ति प्रदेश महिला मोर्चा अध्यक्ष रशिमधर सूद की है जिन्हें पर्यटन विकास बोर्ड की उपाध्यक्ष बनाया गया है। अंदर की खबर ये है कि अर्की विधानसभा क्षेत्र से गोविंद राम शर्मा और जुब्बल कोटखाई से नीलम सरैक को भी साधने का प्रयास किया जा रहा है, पर अब तक ये नेता माने नहीं है।
पंजाब कांग्रेस के बीच चली लम्बी अंतर्कलह के बाद आखिरकार नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान संभाली ली है। ताजपोशी के दौरान मंच पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी मौजूद रहे। दोनों नेताओं ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया। अमरिंदर सिंह ने मंच से सिद्धू को बधाई दी। हालांकि सिद्धू ने किसानों के मुद्दे से लेकर ड्रग्स के मुद्दे पर बात रखी। सिद्धू ने कहा, 'मैं सबका आशीर्वाद लेकर सभी को साथ लेकर चलूंगा। मैं सरेआम कहता हूं मेरी चमड़ी मोटी है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे सिर्फ एक ही चीज का जुनून है कि पंजाब कैसे ऊपर उठेगा। बता दें, सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच पिछले कुछ समय से टकराव की खबरें आ रही थी। पिछले करीब चार महीनों में पहली बार सिद्धू और सिंह ने आज एक-दूसरे से मुलाकात की। अमृतसर (पूर्व) के विधायक सिद्धू ने पवित्र ग्रंथ की बेअदबी के मामले के लिए मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था। मुख्यमंत्री ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का भी विरोध किया था और कहा था कि जब तक सिद्धू उनके खिलाफ अपमानजनक ट्वीट के लिए माफी नहीं मांगेंगे वह उनसे नहीं मिलेंगे।
जासूसी कांड को लेकर सरकार पर विपक्ष लगातार हमलावार है। इसी बाबत राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के तौर पर किया है। मेरा भी फोन टैप हुआ है। उन्होंने कहा कि जासूसी कांड पर विपक्ष एकजुट है। इस पूरे प्रकरण के लिए सरकार जिम्मेदार है। इस कारनामे पर गृहमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए और प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच होनी चाहिए। राहुल गांधी ने कहा कि क्या हम, आप पेगासस खरीद सकते हैं? कौन इसे खरीद सकता है, कौन इसका इस्तेमाल कर सकता है, ये सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। किसानों के मुद्दे पर राहुल गांधी ने कहा कि तीनों नए कृषि कानून वापस होने चाहिए, बातचीत से कोई हल नहीं निकलना है।
प्रदेश कांग्रेस पेगासस जासूसी के विरोध में 23 जुलाई को प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन से राजभवन तक विरोध प्रदर्शन करेगी। इसमें प्रदेश कांग्रेस के नेता, पदाधिकारी व पार्टी कार्यकर्ता शामिल होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने केंद्र की मोदी सरकार की उनके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अन्य लोगों के फोन टेप व उनकी जासूसी करने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि इस पूरे मामले की जांच जेपीसी, सयुंक्त संसदीय समिति से करवाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि साजिश के तहत केंद्र सरकार ने लोकतंत्र की हत्या कर नेताओं, कार्यपालिका, न्यायपालिका विधान पालिका की जासूसी कर देश के लोकतंत्र की मर्यादा का हनन किया है।इस जासूसी के चलते उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों व विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर किया। राठौर ने आरोप लगाया है कि पेगासस जासूसी में सरकार का हाथ है और इसके लिए उसे देश से माफी मांगते हुए गृह मंत्री अमित शाह को पद से हटा कर इस मामलें की जांच किसी सिटिंग जज से करवानी चाहिए।
मुद्दा विहीन विपक्ष द्वारा देश विरोधी ताकतों के प्रभाव में तथ्य हीन आरोप लगाकर संसद की स्वस्थ परंपराओं को तोड़ना बेहद शर्मनाक है। मानसून सत्र के प्रारंभ में संसद में हुए विपक्ष के हंगामे पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल ने यह बात कही है उन्होंने कहा कि विघटनकारी और अवरोधक देश विरोधी ताकतों को भारत का आत्मनिर्भर बनते हुए विकास की राह पर आगे बढ़ना रास नहीं आ रहा है। प्रोफेसर धूमल ने कहा कि संसद सत्र की कार्यवाही को निर्बाध और निर्विघ्न संपन्न कराने में योगदान देने के बजाय उसमें बाधा डालकर विपक्ष अस्थिरता और अराजकता का माहौल पैदा करना चाहता है। देश के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए मानसून सत्र से ठीक पहले एक रिपोर्ट कुछ वर्गों द्वारा केवल एक ही उद्देश्य के साथ फैलाया गया है कि कैसे भारत की विकास यात्रा को पटरी से उतारा जाए और अपने पुराने प्रोपोगेंडे के तहत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपमानित किया जाए। इसी आधार पर सारा हंगामा किया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हाल ही में केंद्रीय मंत्रिपरिषद के विस्तार में देश के हर कोने से, समाज के हर वर्ग विशेषकर महिलाओं, किसान, दलित और पिछड़े वर्ग से चुनकर आए सदस्यों को प्रधानमंत्री के द्वारा विशेष प्रतिनिधित्व दिया गया। लेकिन, कुछ ऐसी देशविरोधी ताकतें हैं जो मोदी द्वारा महिलाओं और समाज के पिछड़े व वंचित वर्ग को दिए गए सम्मान को पचा नहीं पा रही हैं। जब प्रधानमंत्री लोकसभा और राज्यसभा में अपने नये मंत्रिपरिषद का परिचय कराने के लिए उठे, जो संसद की एक पुरानी व समृद्ध परंपरा है, तो कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के नेताओं ने दोनों सदनों के वेल में आकर सदन की कार्यवाही को बाधित कर संसद की स्वस्थ और वर्षों पुरानी परम्पराओं को तोड़ा है। सदन को बाधित कर जनता से जुड़े हुए ज्वलंत मुद्दों को संसद में न उठने देना आम नागरिक के अधिकारों को दबाने का एक कुप्रयास है, जो विपक्ष ने किया है। पूर्व सीएम ने कहा कि देश को आत्मनिर्भर बना कर विश्व गुरु की राह पर अग्रसर करना मोदी सरकार की प्राथमिकता है और इस लक्ष्य को हासिल करने में, विपक्ष सहित तमाम देश विरोधी ताकतों के किसी भी तरह के झूठे प्रोपोगेंडे से निपट कर मोदी सरकार आगे बढ़ती रहेगी। कुंठित विपक्ष की देश और सरकार को अस्थिर करने की कुत्सित मंशाएं कभी पूरी नहीं होंगी। जनता जनार्दन समय आने पर उन्हें फिर से जवाब देगी।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने भाजपा के प्रांत स्तरीय चिंतन शिविर को संबोधित करते हुए कहा की हम सबको पता है कि 2014 तक हमारी विदेश नीतियों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव था और जब से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं तब से विदेश नीतियों में व्यापक बदलाव आया है जिसके कारण भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान मिली है। आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अथक मेहनत से दुनिया का नजरिया भारत की ओर बदला है। उन्होंने कहा की नरेंद्र मोदी ने प्रथम दिन से ही विदेश नीति पर काम करना शुरू कर दिया था जब उन्होंने पड़ोसी देशों को शपथ ग्रहण समारोह में न्योता दिया जहां पाकिस्तान एवं बांग्लादेश को भी बुलाया गया यह हमारे देश की बदलती हुई सोच की पहचान थी। उन्होंने कहा कि एक समय था जब हमारे देश के प्रधानमंत्री को दूसरे देश वीजा नहीं देना चाहते थे पर आज मोदी के स्वागत के लिए इंतजार करते हैं और जब मोदी किसी देश में जाते हैं तो मोदी मोदी के नाम के नारे लगते हैं। यह मोदी के अथक प्रयास है जब योगा को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाया जाता है, भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद ,कालाधन ,क्लाइमेट चेंज एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसे बड़े मुद्दों पर कार्य कर रहा है। आज हमारा देश कोर्स-बोडर टेररिज्म के खिलाफ एक जंग लड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के समय भी भारत ने सभी राष्ट्रों की मदद करने के लिए अग्रिम भूमिका निभाई, भारत ने कई देशों को इस महामारी से लड़ने के लिए दवाइयां भेजी और जब तक संभव था तब तक कई देशों को भारत ने कोविड-19 की वैक्सीन भी प्रदान की। कश्यप ने कहा अन्य देशों में लगभग 3.50 करोड़ देशवासी ऐसे हैं जो भारत मूल के हैं और सभी के लिए भारत ने एक नीति बनाई जिससे भारत के लोगों को एक पहचान मिली। वंदे भारत मिशन के तहत संकट काल के समय 70 लाख देशवासियों को सुरक्षित भारत पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि जब भी किसी पड़ोसी देश पर संकट आता है तो भारत अग्रिम भूमिका में रहकर उनकी मदद करता है जब नेपाल में भूकंप आया तो भारत ने अपनी एनडीआरएफ की टीम भेज नेपाल की मदद की। उन्होंने कहा कि जब चीन ने भारत की भूमि में अतिक्रमण करने की कोशिश की तब भी हमारी विदेश नीति काम आयी, सेना बल के दृढ़ निश्चय और विदेश नीति के बल पर चीन को वापस हटना पड़ा। आज रूस इजराईल एवं अमेरिका जैसे कई राष्ट्रों से हमारे मधुर संबंध है, पिछले 7 वर्षों में सारी दुनिया से भारत को भरपूर सहयोग मिल रहा है। हम सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले तीसरे राष्ट्र बने। आज कई देश भारत में एफडीआई के माध्यम से कार्य कर रहे हैं, जापान हमारे देश में बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट बना रहा है तो नमामि गंगे को लेकर अमेरिका कार्य कर रहा है इससे हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है। आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व गुरु बनेगा और जिस प्रकार से हम कार्य कर रहे हैं भारत का एक सुपर पावर बनना निश्चित है।
आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को पेगासस जासूसी कांड में बेतुके बयानों से बचने की सलाह दी है। पार्टी ने मुख्यमंत्री के उस बयान पर निशाना साधा है जिसमें उन्होंने जासूसी कांड को लेकर विपक्ष पर आरोप लगाए है। पार्टी ने एक बयान जारी करते हुए कहा की मुख्यमंत्री क्या यह कर बच सकते हैं कि कांग्रेस के शासन में कई हजार फोन और ईमेल की निगरानी की गई। क्या लोकतंत्र में सिर्फ में निजता का हनन करने का तर्क ये दिया जा सकता है कि पहले की सरकारों में यह होता था। विपक्ष के आरोपो को बेबुनियाद बताने वाले मुख्यमंत्री शायद भूल रहे है कि प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार पर पहले भी ऐसे आरोप लग चुके है। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उन मामलों में अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। तो मुख्यमंत्री जासूसी से अनजान बनने का ढोंग न ही करे । पार्टी ने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा, इसरायली कंपनी से सीख ले जो अपने 'ग्राहकों' की निजता ज्यादा ध्यान उनसे ज्यादा रख रही है। इस गंभीर मसले पर मुख्यमंत्री को ऐसे बयानों से बचना चाहिए। पार्टी मांग करती है जासूसी कांड में निष्पक्ष जांच की जाए ताकि सच सबके सामने आ सके।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने कहा की भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस द्वारा राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए लगाए गए तथ्यहीन, निराधार और बेबुनियाद टिप्पणियों का पुरजोर खंडन करते हुए निंदा करती है। यह कांग्रेस की एक नई किस्म की निम्नतम स्तर की राजनीति है जिसने 50 से अधिक वर्षों से भारत पर शासन किया है। उन्होंने कहा यह पेगासस की फर्जी कहानी मानसून सत्र से ठीक पहले क्यों गढ़ी गई? क्या इसे मानसून सत्र से ठीक पहले लाना कुछ लोगों की पूर्व नियोजित रणनीति थी? जानबूझकर मानसून सत्र के समय सदन को बाधित करने और देश में बेबुनियाद एजेंडा खड़ा करने की कोशिशें की जा रही है और इसका कारण यह है कि कांग्रेस पार्टी अब सिमट रही है और हार रही है। कश्यप ने कहा इस फर्जी कहानी से भारत सरकार को जोड़ने वाले साक्ष्य का एक भी सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है। यह फर्जी रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र और इसकी सुस्थापित संस्थाओं को बदनाम करने का प्रयास प्रतीत होती है। उन्होंने कहा क्या हम इस बात से इनकार कर सकते हैं कि एमनेस्टी जैसी संस्थाओं का कई मायनों में भारत विरोधी घोषित एजेंडा रहा है? जब हमने उनसे कानून के अनुसार उनके विदेशी फंडिंग के बारे में पूछा तो वे भारत से अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया। इस रिपोर्ट में संदिग्ध लोगों के साथ सांठगांठ चलाने वाले विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भी संलिप्तता है। यह शर्मनाक है कि कांग्रेस जैसी पार्टियां ऐसे संगठनों की लाइन को तोते की तरह दुहरा रही हैं! यदि हमारे विपक्षी दल ' सुपारी ' एजेंटों के रूप में शामिल हैं तो यह भारत के लिए एक नया निम्न स्तर है। उन्होंने कहा की 2013 के एक आरटीआई जवाब से पता चला कि उस समय कांग्रेस की यूपीए सरकार द्वारा हर महीने लगभग 9,000 फोन और 500 ईमेल खातों की निगरानी की जाती थी। यह भी सर्वविदित है कि हरियाणा के दो सिपाही राजीव गांधी के आस पास देखे गए तो उन्होंने केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार गिरा दी थी । यही कांग्रेस का चरित्र है ।
पूर्व मुख्यमंत्री और अर्की विधायक वीरभद्र सिंह अब नहीं रहे और नतीजन जल्द अर्की निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव होना तय है। अर्की निर्वाचन क्षेत्र की सियासत बेहद रोचक रही है। अतीत पर नजर डाले तो यहां कांग्रेस -भाजपा दोनों को बराबर प्यार मिलता रहा है। वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना हुई थी और उसके बाद से अब तक 9 विधानसभा चुनाव हुए है। इनमें कांग्रेस पांच मर्तबा तो भाजपा ने चार मर्तबा बाजी मारी है। पहले करीब ढाई दशक तक अर्की की सियासत हीरा सिंह पाल और नगीन चंद्र पाल के बीच घूमती रही, तो 1993 में कांग्रेस नेता धर्मपाल ठाकुर के विधायक बनने के बाद अर्की वालों ने उन पर लगातार तीन बार भरोसा जताया। फिर कर्मचारी राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले गोविंद राम शर्मा दो बार जीते। पर 2017 के विधानसभा चुनाव में खुद सूबे के मुख्यमंत्री ( तत्कालीन ) वीरभद्र सिंह ने अर्की से मैदान में उतरने का निर्णय लिया और अर्की के विधायक बने। अब वीरभद्र सिंह के निधन के बाद होने वाले उपचुनाव को लेकर कयास और चाहवानों के प्रयास शुरू हो चुके है। असंतोष और अंदरूनी खींचतान की आग दोनों ही राजनीतिक दलों में बराबर लगी है। वर्ष विधायक पार्टी 1967: हीरा सिंह पाल निर्दलीय 1972: हीरा सिंह पाल लोक राज पार्टी 1977: नगीन चंद्र पाल जनता पार्टी 1982: नगीन चंद्र पाल भारतीय जनता पार्टी 1985: हीरा सिंह पाल कांग्रेस 1990: नगीन चंद्र पाल भारतीय जनता पार्टी 1993: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस 1998: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस 2003: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस 2007: गोविन्द राम शर्मा भारतीय जनता पार्टी 2012: गोविन्द राम शर्मा भारतीय जनता पार्टी 2017 : वीरभद्र सिंह कांग्रेस 2007 में कांग्रेस को भारी पड़ी गलती : वर्ष 1993, 1998 और 2003 में कांग्रेस के धर्मपाल ठाकुर लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुके थे। 2003 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और धर्मपाल ठाकुर को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया गया था। वे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबी नेताओं में थे। अर्की क्षेत्र में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। पर बावजूद इसके 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बड़ी चूक हो गई और धर्मपाल ठाकुर का टिकट काट दिया गया। कहते है वीरभद्र सिंह इसके पक्षधर नहीं थे, वे धर्मपाल ठाकुर को ही टिकट देने के हिमायती थे। पर कांग्रेस आलाकमान ने वीटो इस्तेमाल करते हुए प्रकाश चंद करड को टिकट थमा दिया। आखिरकार हुआ वो ही जिसका अंदेशा था, हवा - हवाई उम्मीदवार देने का खामियाजा कांग्रेस ने भुगता और पार्टी तीसरे स्थान पर रही। प्रकाश चंद बुरी तरह चुनाव हारे। वहीँ दूसरे स्थान पर रहने वाले थे धर्मपाल ठाकुर जो कांग्रेस से टिकट कटने के बाद बतौर निर्दलीय मैदान में थे। प्रकाश चंद को जहां करीब साढ़े सात हज़ार वोट ही मिले थे वहीँ धर्मपाल ठाकुर को निर्दलीय लड़ने के बावजूद करीब साढ़े चौदह हजार वोट मिले थे। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस की इस अंदरूनी लड़ाई का फायदा तब भाजपा को मिला था। माहिर मानते है की अगर कांग्रेस ने धर्मपाल ठाकुर का टिकट नहीं काटा होता तो संभवतः कांग्रेस अर्की में जीत का चौका लगाती। 2012 में बगावत ने बिगाड़े अवस्थी के समीकरण : 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने संजय अवस्थी को उम्मीदवार बनाया था। दरअसल 2008 में धर्मपाल ठाकुर का देहांत हो चूका था और 2007 का चुनाव लड़ चुके प्रकाश चंद भी तब तक खुद को स्थापित नहीं कर पाए थे। ऐसे में पार्टी को एक दमदार चेहरा चाहिए था और संजय अवस्थी पर पार्टी ने भरोसा जताया। पर अंदरूनी खींचतान और बगावत पार्टी को भारी पड़ी। दरअसल उस चुनाव में पार्टी के ही अमर चंद पाल बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे और 10 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। नतीजन संजय अवस्थी करीब दो हजार वोट से चुनाव हार गए, पर तब से संजय अवस्थी ही स्थानीय कांग्रेस का मुख्य चेहरा बने हुए है। 2017 में वीरभद्र ने करवाई वापसी : 2017 विधानसभा चुनाव से कई माह पहले से ही अर्की में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विशेष मेहरबानी दिखने लगी थी। वीरभद्र सिंह के लगातार दौर और कई सौगातों ने संकेत दे दिए थे कि खुद वीरभद्र सिंह अर्की से मैदान में उतर सकते है। दरअसल वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण की अपनी सीट से अपने पुत्र विक्रमादित्य सिंह को विधानसभा भेजना चाहते थे। हुआ भी ऐसा ही। उन्होंने विक्रमादित्य के लिए शिमला ग्रामीण सीट छोड़ दी और खुद अर्की से मैदान में उतर गए। जब खुद वीरभद्र सिंह मैदान में थे तो जाहिर सी बात है खुलकर कोई विरोध नहीं हुआ। जैसा अपेक्षित था वीरभद्र सिंह चुनाव जीत गए और दस साल बाद अर्की सीट वापस कांग्रेस के कब्जे में आ गई। पर उनके आने से संजय अवस्थी का इंतज़ार बढ़ गया। 2012 के बाद से ही संजय अवस्थी तैयारी में जुटे थे लेकिन तब उन्हें चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं मिला। फिर अवस्थी को मिलेगा टिकट ! वीरभद्र सिंह के निधन के बाद अर्की उपचुनाव जीतना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होगा। बहरहाल, यक्ष प्रश्न ये है कि कांग्रेस किसे मैदान में उतारती है। एक पक्ष ये भी है कि वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह अर्की उप चुनाव लड़े। पर वे सक्रीय राजनीति में लौटती है तो उनके मंडी संसदीय चुनाव लड़ने की सम्भवना अधिक है। यदि प्रतिभा सिंह नहीं तो कौन, ये बड़ा सवाल है। जमीनी बात करें तो संजय अवस्थी ही फिलवक्त मजबूत दावेदार लग रहे है। हालांकि राजेंद्र ठाकुर भी स्व. वीरभद्र सिंह से नजदीकी के बुते टिकट की दौड़ में रहेंगे लेकिन अवस्थी के रहते पार्टी उन्हें मौका दे, ऐसा मुश्किल लगता है। जाहिर सी बात है इस तमाम खींचतान में सबको एकजुट रखकर चुनाव लड़ना कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है। दो बार कमल खिलाने वाले गोविन्द राम साइडलाइन : 1993 से 2003 तक अर्की में लगातार तीन चुनाव हारने के बाद भाजपा बैकफुट पर थी। अर्की कांग्रेस का गढ़ बन चूका था और इसे ढहाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती थी। पर जब कांग्रेस ने सीटिंग विधायक धर्मपाल ठाकुर का टिकट काटा तो भाजपा को वापसी की उम्मीद दिखी। 2007 के चुनाव में भाजपा ने कर्मचारी नेता रहे गोविन्द राम शर्मा को टिकट दिया था और गोविंद राम के चेहरे और कांग्रेस में हावी बगावत के बूते अर्की में भाजपा का वनवास खत्म हुआ। इसके बाद 2012 में चुनाव में भी पार्टी ने गोविन्द राम शर्मा को मैदान में उतारा और वे दूसरी बार चुनाव जीत गए। पर 2017 में भाजपा ने गोविन्द राम शर्मा का टिकट काट कर रतन सिंह पाल को मैदान में उतारा और भाजपा अर्की का चुनाव हार गई। हालांकि अर्की से खुद वीरभद्र सिंह मैदान में थे लेकिन भाजपा के टिकट वितरण को लेकर सवाल उठे। कहते है तब बगावत साधने को भाजपा ने गोविन्द राम शर्मा को आश्वस्त किया था कि सरकार बनने की स्तिथि में उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद और ज़िम्मेदारी मिलेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। गोविन्द राम शर्मा एक किस्म से साइडलाइन कर दिए गए। वीरभद्र से हारकर भी फायदे में रहे रतन पाल : 2017 में रतन सिंह पाल का मुकाबला खुद वीरभद्र सिंह से था। माना जा रहा था वीरभद्र सिंह आसानी से चुनाव जीतेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उनकी जीत का अंतर करीब छ हजार वोट रहा जो उनके कद के लिहाज से कम था। वहीं वीरभद्र सिंह को टक्कर देने के बाद रतन सिंह पाल एक किस्म से हार कर भी जीत गए। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें हिमाचल प्रदेश कोआपरेटिव डेवलपमेंट फेडरेशन का चेयरमैन बनाया गया। संगठन में भी रतन पाल को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष का दायित्व मिला। कुल मिलाकर रतन सिंह पाल अर्की भाजपा का प्राइम फेस बन गए और अब भी बने हुए है। निकाय चुनाव में खरे नहीं उतरे पाल : इसी वर्ष हुए स्थानीय निकाय चुनाव के टिकट वितरण में रतन सिंह पाल की ही चली। पर जिला परिषद में पार्टी के कई दिग्गजों के टिकट काटने का खामियाजा भाजपा ने भुगता। अंत में इन्हीं दिग्गजों के सहारे जैसे तैसे जिला परिषद् पर भाजपा का कब्ज़ा तो हो गया लेकिन रतन सिंह पाल के खिलाफ खुलकर आवाज उठने लगी। वहीँ अर्की नगर पंचायत चुनाव में भी भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। बीडीसी पर भी कांग्रेस का कब्ज़ा रहा। हालांकि ये चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं हुए थे। विरोधी एकजुट नहीं हुए तो रतन पाल की राह आसान : इसमें कोई संशय नहीं है कि वर्तमान में अर्की भाजपा में गुटबाजी चरम पर है। पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा भी अब खुलकर मैदान में है और टिकट की मांग कर रहे है। उनके साथ भाजपा का एक बड़ा गुट दिख रहा है और गोविन्द राम पूरी तरह एक्शन में है। गोविन्द राम के अलावा और भी कई चाहवान है जो टिकट चाहते है। कई ऐसे भी है जो पहले भी विधायक बनने की चाह में बागी बन चुके है। पर जानकार मानते है कि पार्टी का झुकाव फिलवक्त रतन सिंह पाल की तरफ ही दिख रहा है। हां यदि रतन सिंह पाल के विरोधी एकजुट होकर एक चेहरे पर सहमति बना ले तो शायद पार्टी को सोचना पड़े। पर अगर सबकी अपनी डफली अपना राग ही रहा तो टिकट के लिए रतन सिंह पाल की राह आसान होगी।
छह दफे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रदेश कांग्रेस में ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं दिख रहा है, जो उनके निधन के बाद उपजे शून्य को भर सके। ये पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। आज विरोधी दल ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के अपने नेता भी यही मान रहे हैं कि हिमाचल में वीरभद्र सिंह जैसा नेता कोई नहीं हाे सकता। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रभारी राजीव शुक्ला खुद भी यही मानते हैं। निसंदेह वीरभद्र सिंह का जाना हिमाचल कांग्रेस की राजनीति काे करारा झटका है। उनके बाद ऐसा कोई नेता नहीं दिख रहा जो सबको स्वीकार्य हो, यानी कांग्रेस राह बहुत कठिन होने वाली है। वीरभद्र सिंह के बगैर कांग्रेस स्थिति, पार्टी नेतृत्व, आगामी चार उपचुनाव, 2022 की तैयारी और पार्टी संगठन और हावी गुटबाजी जैसे कई अहम मसलों पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला से चर्चा की, पेश है उसके अंश... सवाल: वीरभद्र सिंह नहीं रहे, ताे ऐसे में उनके बाद प्रदेश कांग्रेस के पास क्या विकल्प है ? ऐसा कोई नेता आप मानते है जो पार्टी में दम भर सके, जो उनका स्थान ले सके ? जवाब: वीरभद्र सिंह के जाने से हिमाचल ही नहीं पूरे देश की राजनीति काे क्षति हुई है। हिमाचल में कोई दूसरा वीरभद्र सिंह नहीं हाे सकता है। पूर्व में वे हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में कई बार मंत्री रहे, लेकिन आज पूरे देश ने विकास पुरुष खो दिया। हालांकि कई नेता तैयार होते हैं, लेकिन वीरभद्र जैसे नेक, विकासशील नजरिये वाला, सबको साथ लेकर चलने वाला नेता हिमाचल में कोई हाे नहीं सकता। वीरभद्र सिंह के चले जाने से प्रदेश कांग्रेस में जो शून्य उपजा है उसे भरने में समय लग सकता हैं। हिमाचल में कई वरिष्ठ नेता हैं, अब उन्हें साथ मिलकर संगठन काे और मजबूत करने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। मुझे अभी तक याद है कि वीरभद्र सिंह के फैसले काे पार्टी हाईकमान भी इनकार नहीं करता था। उन जैसा मजबूत और ताकतवर शायद कोई दूसरा न हो। राजनीति से लेकर अफसरशाही को काबू में रखने वाला ऐसा बेमिसाल नेता शायद ही कोई मिलेगा। फिलहाल उनके बगैर हमें संगठन काे और सशक्त करने के लिए एकजुट होकर काम करना पड़ेगा। सवाल: अब तक वीरभद्र सिंह खुद ही एक चेहरा थे, उनके बगैर प्रदेश कांग्रेस अगले चुनाव में भाजपा काे कैसे टक्कर देगी? जवाब: यह बात बिलकुल सही है कि प्रदेश कांग्रेस में अब तक वीरभद्र सिंह ही अकेले चेहरा थे, जिन्होंने अपने दम पर भी पार्टी काे सत्ता तक पहुंचाया। उनकी कमी प्रदेश की राजनीति में जरूर खलेगी, मगर हमें विरोधी राजनीतिक दलों काे पराजित करने एवं मुंह तोड़ जवाब देने के लिए वीरभद्र सिंह द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलना हाेगा। अगले साल चुनाव भी है और उससे पहले हिमाचल में चार उपचुनाव होने हैं। इसके लिए हमें दिन -रात मेहनत करनी हाेगी। वीरभद्र सिंह किस तरह से काम करते थे, उसी तर्ज पर सभी वरिष्ठ नेताओं काे काम करना पड़ेगा। सिर्फ भाजपा काे टक्कर देने की बात नहीं, बल्कि उसे पराजित करने के लिए कांग्रेस के पास पूरा तंत्र है। आज पूरा देश आहत है कि मोदी सरकार क्या कर रही है? सात साल से लाेगाें ने अच्छे दिन नहीं देखे। प्रदेश सरकार भी पूरी तरह विफल है। सवाल: कांग्रेस में पहले से ही गुटबाजी हावी रही है, ये कैसे शांत होगी ? जवाब: पूर्व में क्या रहा, क्या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मगर वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के सभी नेता एकजुट हैं और आगामी रणनीति के लिए हर राेज रूपरेखा तैयार की जाती है। कांग्रेस में गुटबाजी नहीं हैं, बल्कि प्रदेश भाजपा में यह परंपरा चरम सीमा पर है। आज भाजपा के दूसरे गुट के नेता सीएम जयराम ठाकुर से खुश नहीं हैं। उनकी सरकार में कुछ मंत्री भी गुटबाजी का शिकार हाे चुके हैं। मैं साफ कहना चाहूंगा कि हिमाचल कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं हैं। हाईकमान के आदेशों का पालन हाे रहा है और सभी संगठन की मजबूती के लिए मेहनत कर रहे हैं। सवाल: हिमाचल में 4 उपचुनाव होने हैं, इस वक्त कांग्रेस कहां पर खड़ी है? जवाब: हिमाचल में होने वाले 4 उपचुनाव के लिए कांग्रेस पूरी तरह से तैयार हैं। पहले ताे तीन ही उपचुनाव तय थे, लेकिन दुर्भाग्य से वीरभद्र सिंह जी के निधन के बाद अब अर्की विधानसभा क्षेत्र में भी उपचुनाव होना है। मंडी संसदीय क्षेत्र समेत फतेहपुर, जुब्बल-कोटखाई और अर्की में जब भी उपचुनाव की तिथि घोषित होगी कांग्रेस अपने प्रत्याशियों काे मैदान में उतार देगी। 2019 के लाेकसभा चुनाव में हम किन कारणाें से हारे उन सभी खामियों काे ध्यान में रखते हुए मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस पूरी ताकत के साथ खड़ी है और मंडी संसदीय क्षेत्र के साथ तीनों विधानसभा उपचुनाव पर कांग्रेस की ही जीत तय है। काश वीरभद्र सिंह जी हाेते ताे संगठन में और जान आ जाती। सवाल: भाजपा ने मिशन रिपीट के लिए अभी से ही ताकत झोंक दी, कांग्रेस ने कोई रोडमैप तैयार किया है? जवाब: अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मिशन रिपीट का सपना ही देख रही है, जाे कभी साकार नहीं हाे सकता। इस वक्त भाजपा सत्ता में हैं ताे ताकत झोंकेंगी, लेकिन कांग्रेस कभी दिखावा नहीं करती है। हमने जमीनी स्तर पर रूपरेखा तैयार कर दी है। बीते दिनों धर्मशाला, कांगड़ा और ऊना में बैठक हुई जिसमें सभी पदाधिकारियों से फीडबैक लिया। जल्द ही मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में भी बैठक की जाएंगी। इसके साथ-साथ जुब्बल-कोटखाई, फतेहपुर और अर्की विधानसभा क्षेत्र के लिए सशक्त प्रत्याशियों की तलाश भी जारी है। उपचुनाव की घोषणा होते ही हम उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर देंगे। फतेहपुर और अर्की विधानसभा सीट कांग्रेस के पास ही थी। जबकि जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र और मंडी संसदीय क्षेत्र में हम और अधिक मेहनत करेंगे। जहां तक उपचुनाव के लिए टिकट का सवाल है, पार्टी हाईकमान ही इस पर फैसला करेगा। हिमाचल की जनता उपचुनाव में भाजपा को आईना दिखाएगी और 2022 के चुनाव में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी।
वीरभद्र सिंह के निधन के बाद क्या उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने आगे आएगी ? क्या प्रतिभा सिंह आगामी उपचुनाव से चुनावी राजनीति में कमबैक करेंगी ? अगर प्रतिभा सिंह उपचुनाव लड़ती है, तो क्या वे मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव लड़ेगी या अर्की विधानसभा का उपचुनाव ? फिलवक्त ये वो सवाल है जिनका जवाब सब तलाश रहे है। सबकी नजरें वीरभद्र सिंह के परिवार की तरफ टिकी है, विशेषकर वीरभद्र सिंह के समर्थकों और निष्ठावानों की। हालांकि माहिर मानकर चल रहे है कि आगामी उपचुनाव से प्रतिभा सिंह की सक्रिय राजनीति में वापसी तय है, पर जब तक वीरभद्र सिंह के परिवार का कोई बयान नहीं आता, ये सिर्फ कयास ही है। 1962 में वीरभद्र सिंह पहली बार सांसद बने थे, तब से अब तक बुशहर रियासत की सियासत में भरपूर भागीदारी रही है। सिर्फ आपातकाल के दौरान 1977 से 1980 तक ही ऐसा वक्त आया है जब बुशहर रियासत से कोई संसद या विधानसभा में न रहा हो। इन तीन वर्षों को छोड़ कर खुद वीरभद्र सिंह किसी न किसी सदन का हिस्सा रहे है। वहीं उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी मंडी सीट से दो बार सांसद रही है। वर्तमान में वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी शिमला ग्रामीण सीट से विधायक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वीरभद्र सिंह कितने मजबूत नेता रहे है और बुशहर रियासत का लोकतांत्रिक राजनीति में क्या रसूख है। जाहिर सी बात है कि वीरभद्र सिंह के जाने के बाद अब उनके समर्थक चाहेंगे कि उनकी इस पकड़ को बरकरार रखा जा सके। पर अंतिम निर्णय तो वीरभद्र सिंह के परिवार को ही लेना है। अगर कांग्रेस पार्टी के लिहाज से बात करें तो वीरभद्र सिंह के साथ लोगों की सहानुभूति और संवेदनाएं दोनों है और इसी लहर पर सवार होकर कांग्रेस उपचुनाव का रण जीतने की आस में होगी। ऐसे में यदि प्रतिभा सिंह उपचुनाव में मैदान में होती है तो कांग्रेस के लिए जीत की आस और प्रबल होगी। निसंदेह यदि प्रतिभा सिंह इच्छा जताती है तो पार्टी बिना देर लगाएं उनके पीछे खड़ी होगी। मंडी में कैलक्युलेटेड, तो अर्की में हाई रिस्क ! प्रतिभा सिंह यदि चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करती तो मैदान मंडी संसदीय क्षेत्र होगा या अर्की विधानसभा क्षेत्र, ये यक्ष प्रश्न है। अर्की वीरभद्र सिंह का आखिरी निर्वाचन क्षेत्र रहा है। ऐसे में अर्की उपचुनाव को जीतना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठता का सवाल होगा। वहीं वीरभद्र सिंह के परिवार के लिए भी ये चुनाव वर्चस्व बरकरार रखने की चुनौती है। उनकी पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह को अर्की से चुनाव लड़वाने की मांग अभी से जोर पकड़ने लगी है। दरअसल अर्की में कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है और एक गुट विशेष प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारने का पक्षधर है। पर इस स्थिति में वीरभद्र परिवार का सब कुछ दांव पर होगा। खुदा न खास्ता नतीजा प्रतिकूल रहा तो वर्चस्व भी धुंधला जायेगा। वहीं प्रतिभा सिंह यदि मंडी संसदीय क्षेत्र से मैदान में होती है तो उन्हें बुशहर रियासत के दायरे में आने वाले क्षेत्रों से अच्छी सहानुभूति मिल सकती है, विशेषकर रामपुर, किन्नौर, आनी, करसोग और सिराज में। 2014 की मोदी लहर में भी प्रतिभा सिंह मंडी से करीब 40 हजार वोट से ही हारी थी जो अंतर आश्रय शर्मा के उम्मीदवार रहते 2019 में करीब चार लाख पहुंच गया था। ऐसे में सहानुभूति के रथ पर सवार होकर प्रतिभा सिंह 2014 के 40 हजार के अंतर को पाट सकती है। और अगर नतीजा उनके पक्ष में नहीं आता है तो भी उन्हें आश्रय शर्मा की तरह एकतरफा हार मिलेगी, ऐसा नहीं लगता। सो प्रतिभा सिंह के लिए मंडी से चुनाव लड़ना नपातुला जोखिम है। जबकि अर्की का चुनाव मंडी के बनिस्बत छोटा जरूर है पर वहां जोखिम बड़ा होगा।
मंडी संसदीय सीट पर हाेने वाले उपचुनाव की राह में भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। हालांकि इस सीट पर पिछले दाे चुनाव से भाजपा का ही कब्जा है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा की चिंता जरूर बढ़ी है। फिलहाल प्रदेश के दाेनाें प्रमुख राजनीतिक दलों काे चुनाव आयोग की ओर से उपचुनाव की घोषणा का इंतजार है। पर घोषणा से पहले ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हाे चुकी है। प्रदेश सरकार और भाजपा संगठन दोनों मंडी संसदीय उपचुनाव जीतने के लिए अभी से भरपूर ताकत लगा रहे हैं। भाजपा ने मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर काे चुनाव प्रभारी भी नियुक्त किया है और वे पहले दिन से ही मंडी संसदीय क्षेत्राें का दाैरा करते आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के उपरांत यकायक मंडी संसदीय क्षेत्र के समीकरण बदल गए है। दरअसल अब मंडी सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की सम्भावना है। ऐसा होता है तो जाहिर है भाजपा को टक्कर में कोई मजबूत प्रत्याशी देना होगा। इसी को लेकर चिंतन मंथन का दौर जारी है। जानकार मानते है की अब बदले समीकरण के बाद भाजपा यहाँ से अपने किसी मंत्री को भी मैदान में उतारने पर भी विचार कर सकती है। वहीँ यदि प्रतिभा सिंह मैदान में नहीं होती है तो भाजपा की राह कुछ आसान जरूर होगी। कुल्लू दौरे के दौरान संगठन काे रिचार्ज कर गए जेपी नड्डा : भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कुल्लू दौरे के दौरान उन्होंने संगठन काे रिचार्ज करने में कोई कमी नहीं छाेड़ी। कुल्लू में मंडी संसदीय क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं की एक बैठक का भी आयोजन किया गया। इस बैठक में भाग लेने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी विशेष रूप से पहुंचे तो वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी बैठक में भाग लेकर कार्यकर्ताओं को संगठन की मजबूती की घुट्टी पिलाई। दरअसल जेपी नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद हिमाचल में पहली बार किसी लोकसभा सीट पर चुनाव होगा, सो जाहिर है इस चुनाव में नड्डा की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी है। रामपुर-आनी समेत अन्य क्षेत्रों में कई घोषणाएं कर गए महेंद्र : हाल ही में जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने रामपुर, आनी समेत मंडी संसदीय क्षेत्र के कई स्थानों पर विकास कार्यों के लिए घोषणाएं की थी। एक तरफ उन्होंने किसानों के समर्थन में बात की ताे दूसरी तरफ माकपा पर निशाना भी साध गए। इस दौरान महेंद्र सिंह के आनी दौरे के दौरान एक वीडियो सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा कि वे कामरेडों के काम नहीं करेंगे। हालांकि ये किस संदर्भ में कहा गया या सिर्फ मजाक के तौर पर कहा गया, ये स्पष्ट नहीं है ,किन्तु आगामी समय में मंडी उपचुनाव के घमासान में वार -पलटवार तय है।
प्रदेश में होने वाले चार उप चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा में हाई वोल्टेज ड्रामा शुरु हाे चुका है। यह संगठन के लिए खतरे की घंटी है। बताया जा रहा है कि भाजपा महिला माेर्चा के भीतर ये खींचतान और अंतर्कलह पिछले साल से ही शुरु हाेने लगी थी, जाे अब खुलकर उजागर हो रही है। बहरहाल महिला माेर्चा की पदाधिकारियाें के बीच बहस और संगीन आरोपों का ऑडियो वायरल हुआ ताे खुन्नस की राजनीति भी सामने आ गई। हालांकि भाजपा में गुटबाजी बहुत कम सामने आती है, लेकिन महिला माेर्चा की पदाधिकारियाें की ऑडियो लीक होने के बाद अब गुटबाज़ी खुल कर सामने आ रही है। गौरतलब है की प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान कभी पत्र बम ताे अब महिला मोर्चा का ऑडियो वायरल होने से संगठन काे भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। महिला मोर्चा की जिन दाे पदाधिकारियाें के बीच ऐसा सब कुछ हुआ उनमें से एक महामंत्री और एक साेशल मीडिया एवं आईटी सेल की प्रभारी थी। दोनों ही अपने समय में छात्र राजनीति का जाना माना नाम रही हैं। वहीँ ऑडियो सामने आने के बाद प्रदेश संगठन ने दाेनाें पदाधिकारियाें के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उनकी प्राथमिक सदस्य्ता रद्द कर दी है, लेकिन मामला अभी शांत होगा, ऐसा लगता नहीं है। प्रदेश में हाेने वाले चार उपुचनावाें से पहले महिला माेर्चा में चल रही इस खींचतान से संगठन काे कहीं न कहीं नुकसान उठाना पड़ सकता है। निसंदेह इससे भाजपा की अनुशासित पार्टी की छवि धूमिल हुई है। संगठन में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं होगी : कश्यप प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने बताया कि संगठन में अनुशासनहीनता बिलकुल बर्दाश्त नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हाल में सोशल मीडिया में वायरल हुए भाजपा महिला मोर्चा के कथित ऑडिओ का कड़ा संज्ञान लेते हुए महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री शीतल व्यास तथा सोशल मीडिया एवं आईटी प्रभारी डॉ. अर्चना ठाकुर की प्राथमिक सदस्यता को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया है। साथ ही दोनों पदाधिकारियों को संगठन के सभी दायित्वों से भी तुरंत प्रभाव से मुक्त कर दिया गया है। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी एक अनुशासित राजनीतिक दल है और यहां पर किसी भी स्तर पर अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा स्थापित करने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कदमताल शुरू कर दी है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की प्रतिमा लगाना चाहती है। इस संदर्भ में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से अनुमति मांगी है। सीएम को लिखे पत्र में राठौर ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश के जन नायक हम सबके लोकप्रिय नेता वीरभद्र सिंह 8 जुलाई 2021 की सुबह अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। प्रदेश के नव निर्माण में उनके योगदान को कभी न तो भुलाया जा सकता है और न ही कम आंका जा सकता है। उनके अंतिम संस्कार में उमड़े जन सैलाब से साफ है कि वीरभद्र सिंह कितने लोकप्रिय व जन मानस के नेता थे। पीसीसी चीफ कुलदीप सिंह राठौर कहते हैं कि हमारे बीच से एक ऐसा लोकप्रिय नेता चला गया जो सबके दिलों में वास करता था। अब हमारे पास उनकी स्मृतियां शेष रह गई हैं। उन स्मृतियों को याद रखना हमारा नैतिक कर्तव्य ही नहीं है, बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदारी भी है। लोकतंत्र में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार आती है जाती हैं। किसी भी राजनीतिक दल के कुछ ही नेता लोगों के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ पाते है ,जो लोगों के दिलो में बस जाती है। वीरभद्र सिंह उनमें से एक हैं जो लोगों के दिलों में बस गए हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां प्रदेश के निर्माण में डॉ.यशवंत सिंह परमार के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, वहीं प्रदेश के नव निर्माण में राजा वीरभद्र सिंह को भी कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। पहाड़ी राज्यों के विकास में आज हिमाचल प्रदेश एक विशेष स्थान रखता है जिसका श्रेय वीरभद्र सिंह को ही जाता है। रिज पर स्मारक के लिए मांगा उपयुक्त स्थान पीसीसी चीफ कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी की यह इच्छा है कि वीरभद्र सिंह की याद में शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान में उनकी स्मृति में कोई स्मारक बने। अतः प्रदेश कांग्रेस उनकी एक प्रतिमा रिज मैदान में स्थापित करना चाहती है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि रिज मैदान पर कांग्रेस को कोई उपयुक्त स्थान उपलब्ध करवाया जाए, जिससे वह अपने जन नायक और आधुनिक हिमाचल के निर्माता स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा को स्थापित कर सकें। साथ ही सीएम यह भी आग्रह किया है कि सरकार किसी बड़े सरकारी संस्थान का नाम स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के नाम पर रखे, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उल्लेखनीय है कि इससे पहले रिज मैदान पर अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा इंदिरा गांधी व डा. वाईएस परमार की प्रतिमा भी लगी हुई है।
मात्र पांच विधानसभा सीटाें वाले जिला सिरमौर का कद प्रदेश की राजनीति में तेजी से बढ़ा है। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार सिरमौर से ही ताल्लुख रखते थे लेकिन उनके बाद प्रदेश की सियासत में सिरमौर को उचित स्थान तो मिला पर सिरमौर सियासत के शिखर तक नहीं पहुंचा। पर अब जयराम राज में सियासत के गगन पर सिरमौर का सितारा फिर चमका है। हालांकि पांच विधानसभा सीट वाले इस जिला में भाजपा ने 2017 में तीन सीटें ही जीती थी, पर सरकार और संगठन दोनों में सिरमौर का जलवा दिखा है। वर्तमान में जिला सिरमौर से एक मंत्री तो है ही, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद भी सिरमौर से है। कई बॉर्ड निगमों में भी सिरमौर को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है। दिलचस्प बात ये है कि भाजपा के तेजतर्रार नेता और नाहन विधायक डॉ राजीव बिंदल एक किस्म से पूरी तरह साइडलाइन है, न सरकार में उन्हें अहमियत दी जा रही है और न ही संगठन में कोई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी। उन्हें दरकिनार कर जयराम राज में कई अन्य नेताओं की ताकत बढ़ी है जिससे समीकरण संतुलित रह सके। 2017 के चुनाव में नाहन, पांवटा साहिब और पच्छाद सीट पर भाजपा को जीत मिली ताे नाहन विधायक डा. राजीव बिंदल काे विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी मिली।हालांकि तब प्रो प्रेमकुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद बिंदल भी सीएम पद के दावेदारों में थे, पर राजनैतिक बिसात पर वे पिट गए और उन्हें कैबिनेट मंत्री तक का पद नहीं दिया गया। सांत्वना स्वरुप तब उन्हें माननीय विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया था। पर 2019 में डॉ राजीव बिंदल ने स्पीकर पद से इस्तीफा दिया और उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिल गई। पर साल 2020 में काेविड-19 के दौर में स्वास्थ्य विभाग घाेटाले के चलते डा. बिंदल काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। पर पार्टी ने उनका रिप्लेसमेंट भी सिरमौर से ही ढूंढा। सांसद सुरेश कश्यप काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ज़िम्मा मिल गया। सिरमौर काे तवज्जो मिलने का सिलसिला जारी रहा और पिछले साल मंत्रिमंडल विस्तार में पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुखराम चाैधरी काे मंत्री की कुर्सी मिल गई। यहीं से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिला सिरमौर काे सरकार और संगठन में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। सुरेश कश्यप बने प्राइम फेस : पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे सुरेश कश्यप काे भाजपा ने 2019 में लाेकसभा चुनाव के मैदान में उतारा और उन्होंने शानदार जीत दर्ज की। शिमला संसदीय क्षेत्र से पहली बार सिरमौर का कोई नेता सांसद बना। उसके बाद हुए उपचुनाव में संगठन ने एक युवा महिला नेता काे टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप काे पच्छाद उपचुपनाव में जीत मिली। हालांकि भाजपा से बागी उम्मीदवार दयाल प्यारी भी मैदान में थी पर यहां भी सुरेश कश्यप ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी काबिलियत सिद्ध की। इसके बाद 2020 में डॉ राजीव बिंदल के इस्तीफा देने के बाद अपनी स्वच्छ छवि और सीएम जयराम ठाकुर से नजदीकी के बुते सुरेश कश्यप भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे। पच्छाद में दयाल प्यारी फैक्टर पर रहेगी नजरें : पच्छाद उपचुनाव में भाजपा की बागी रही दयाल प्यारी अब कांग्रेस में शामिल हो चुकी है। यहां से कांग्रेस के लिए हार की हैट्रिक लगा चुके वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर की जगह पार्टी 2022 में दयाल प्यारी को मौका दे सकती है। माना जाता है कि मुसाफिर को वीरभद्र सिंह का करीबी होने के नाते मौके मिलते आ रहे थे, पर अब वीरभद्र सिंह के निधन के बाद स्तिथि बदल चुकी है। ऐसे में भाजपा और सुरेश कश्यप के लिए 2022 में पच्छाद जीतना मुश्किल हो सकता है। वैसे पच्छाद में भाजपा की स्तिथि कुछ कमजोर जरूर हुई है, जिला परिषद और स्थानीय निकाय के नतीजे भी इसकी तस्दीक करते है। आसान नहीं होगी 2022 की राह : मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पावंटा साहिब में भीतरखाते मंत्री की मुखालफत की झलकियां अभी से दिखने लगी है। निकाय चुनाव में भी भाजपा को मनमाफिक नतीजे नहीं मिले थे। नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन मौजूदा स्तिथि में वे पूरी तरह हाशिए पर दिख रहे है। रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और 2022 के लिए अभी से भाजपा को यहां कड़ी तैयारी करनी होगी।
रुझान आने शुरू हो गए है। मुख्यमंत्री पद पर जिला कांगड़ा का दावा आ चुका है। बाकी भी पूरी तैयारी में दिख रहे है। वीरभद्र सिंह का निधन प्रदेश कांग्रेस के लिए बड़ी आपदा है, और राजनीति में आपदा में अवसर तलाशना कोई नई बात नहीं है। ये अलग बात है कि सिर्फ तलाशने से कुछ नहीं मिलता। ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए पहले पार्टी को सत्ता में लाना होगा। पर फिलवक्त, तो डर यही है कि नेताओं की निजी महत्वकांक्षाएं कहीं इतनी हावी न हो जाएं कि न खुदा मिले, न विसाल-ए-सनम। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह बेशक बीते दो-तीन साल से अधिक सक्रिय नहीं थे फिर भी पार्टी का चेहरा वीरभद्र सिंह ही रहे। उनके रहते कई नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा दबी सी रही, कोई सियासी शूरवीर ऐसा नहीं दिखा जो उनके वर्चस्व के आगे ठहर पाया हो। यानी बेशुमार गुटबाजी के बावजूद वीरभद्र सिंह पार्टी के सर्वमान्य नेता बने रहे। पर अब पुराने निष्ठावानों का महत्वाकांक्षी होना तो जायज है, पर कई दूसरी -तीसरी पंक्ति के नेता भी सीएम बनने का ख्वाब संजोये बैठे है। वीरभद्र सिंह के निधन से उपजे शून्य में ये गुटबाजी पार्टी की नैया डुबाने के लिए काफी है। अगर समय रहते आलाकमान ने पार्टी की दशा सुधारने हेतु उचित दिशा तय नहीं की तो 2022 में डगर बेहद मुश्किल होने वाली है। दरअसल, कांग्रेस में ऐसे कई चेहरे है जो सीएम बनने के इच्छुक माने जाते है या जिनके समर्थक अभी से उन्हें बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करना शुरू कर चुके है। 2017 से ही इनमें से कुछ के सितारे अच्छे चल रहे है तो कुछ हाशिए पर है, पर वीरभद्र सिंह के निधन के उपरांत सारा गुणा भाग बदल गया है। वीरभद्र के बाद कौन, फिलवक्त ये ही यक्ष प्रश्न है। संगठन मेक ओवर नहीं हुआ तो सत्ता का टेक ओवर मुश्किल : बीते कुछ वक्त में कांग्रेस का जनाधार तेजी से घटा है। इस पर गुटबाजी और अंतर्कलह ने पार्टी की परेशानी में और इजाफा किया है। इसका सबसे बड़ा कारण है लचर और प्रभावहीन नेतृत्व। प्रदेश नेतृत्व से लेकर जिला और ब्लॉक तक नेतृत्व को लेकर सवाल उठ रहे है। ऐसे में समय रहते संगठन का मेक ओवर नहीं होता है तो 2022 में सत्ता का टेक ओवर मुश्किल होगा। वैसे जानकार मानते है कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर को अब तक वीरभद्र सिंह की गुड बुक्स में होने का लाभ मिलता रहा, पर अब उन्हें बदले जाने को लेकर सुर तेज हो सकते है। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से सीएम की कुर्सी तक का सफर आसान हो सकता है, ऐसे में माना जा रहा है कि कई चाहवानों की नजर राठौर की कुर्सी पर टिकी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के चाहवान उन्हें फिर से प्रदेश संगठन की कमान दिए जाने की मांग करने लगे है। वीरभद्र सिंह उन्हें ख़ास पसंद नहीं करते थे और ये ही सुक्खू के अपदस्थ होने का मुख्य कारण भी था। पर अब बदले समीकरण में सुक्खू का दावा कमतर नहीं होगा। पहला दावा कांगड़ा का, पर बाली या सुधीर ! सीएम पद के लिए खुलकर पहला दावा जिला कांगड़ा का आया है। या यूं कहे कि जिले के नाम पर ही सही पर पूर्व मंत्री जीएस बाली ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोक दिया है। बीते दिनों बाली ने कहा कि जिला कांगड़ा का मुख्यमंत्री की सीट पर पूरा अधिकार है। सूबे की सियासत की गाड़ी यहीं से निकलती है, तभी वह शिमला पहुंचती है। बाली की बात ठीक भी है, इतिहास तस्दीक करता है कि हिमाचल प्रदेश में सत्ता सुख उसी राजनैतिक दल का नसीब होता हैं जिसपर जिला कांगड़ा की कृपा बरसती हैं। जो कांगड़ा फ़तेह नहीं कर पाता उसे सत्ता विरह ही मिलता है। वर्ष 1985 से ऐसा ही ट्रेंड है। 1985, 1993, 2003 और 2012 में कांग्रेस पर कांगड़ा का वोट रुपी प्यार बरसा तो सत्ता भी कांग्रेस को ही मिली। वहीं 1990, 1998, 2007 और 2017 में कांगड़ा में भाजपा इक्कीस रही और प्रदेश की सत्ता भी भाजपा को ही मिली। असल सवाल तो ये है कि अगर कांगड़ा को सीएम पद मिल भी जाता है तो क्या बाली ही सर्वमान्य चेहरा है ? दरअसल कांगड़ा में एक और कांग्रेसी पंडित भी है जो फिलवक्त अपनी सियासी जमीन समतल करने की जद्दोजहद में लगे है। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के करीबी माने जाने वाले सुधीर शर्मा पिछली सरकार में नंबर दो माने जाते थे और सीएम फेस के लिए उनका दावा भी बाली से कम नहीं होने वाला। ये भी जगजाहिर है कि कांगड़ा के ये दोनों दिग्गज एक दूसरे की जमीन खोदते आ रहे है। इसी खींचतान का नतीजा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में ये दोनों ही धराशाई हो गए थे। अब इन दोनों में से कोई भी एक दूसरे के नाम पर सहमत होगा, ऐसा नहीं लगता। और इन दोनों के बिना कांगड़ा फ़तेह हो सकता है, ऐसा भी नहीं लगता। बाकी राजनीति में कुछ भी मुमकिन है, दूरियां कब नजदीकियों में बदल जाए मालूम नहीं। मंडी भी कम नहीं, कौल सिंह का दावा तय ! जिला कांगड़ा के बाद सबसे ज्यादा सियासी वजन जिला मंडी का है जिसमें 10 विधानसभा सीटें आती है। यहां का सियासी मिजाज भी जिला कांगड़ा जैसा ही है, जिस भी राजनैतिक दल ने मंडी जीता वही सत्ता पर काबिज हुआ। मंडी में अगर कांग्रेस की बात करें तो कौल सिंह ठाकुर इस वक्त सबसे बड़ा चेहरा है। 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले भी वे सीएम पद के दावेदार थे, हालांकि तब उनके अरमान अधूरे रहे। फिर 2017 में वे खुद भी चुनाव हारे और उनकी बेटी चंपा ठाकुर भी, जो कौल सिंह ठाकुर के लिए बड़ा झटका था। पर बीते कुछ समय से कौल सिंह ठाकुर की सक्रियता बढ़ी है और उनके समर्थक वीरभद्र सिंह के जीवित रहते भी उन्हें बतौर सीएम प्रोजेक्ट करते रहे है। अलबत्ता वे 2017 में हार गए थे लेकिन उनकी जमीनी पकड़ पर कोई संशय नहीं है। जानकार मानते है कि सीएम पद के लिए कौल सिंह ठाकुर का दावा भी तय है। कौल सिंह ठाकुर बीते वर्ष लंच डिप्लोमेसी को लेकर भी चर्चा में रहे थे। तब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंद्र सुक्खू के साथ उनके सहभोज ने नए समीकरणों को हवा दी थी। अब माहिर मानते है कि सत्ता शीर्ष पर पहुंचने के लिए कौल सिंह ठाकुर व कुछ अन्य नेता एक साथ आ सकते है। माना जा रहा है कि आगामी कुछ वक्त में कांग्रेस में कई आंतरिक गठबंधन बनते बिगड़ते दिखेंगे। संगठन की कमान मिली तो आसान हो सकती है राह ! 2017 में सत्ता गंवाने के बाद मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष बने। वास्तव में तब कौल सिंह ठाकुर, जीएस बाली, सुधीर शर्मा सहित कई नेता जीतकर सदन में ही नहीं पहुंचे थे, सो अग्निहोत्री की नेता प्रतिपक्ष बनने की राह ज्यादा कठिन नहीं थी। इस पर उन्हें वीरभद्र सिंह की कृपा भी प्राप्त रही। समर्थक लगातार उन्हें भावी सीएम प्रोजेक्ट करते आ रहे है और अग्निहोत्री एक मंझे हुए नेता की तरह नाप तोल कर सियासत कर रहे है। पर अग्निहोत्री की स्वीकार्यता अब तक पूरे प्रदेश में नहीं दिखी है। उनकी राजनीति शिमला और ऊना तक ही सीमित रही है, बाकी जिलों में न तो उनके निष्ठावानों की ब्रिगेड दिखती है और न ही उनकी खास दखल। अब वीरभद्र सिंह के निधन के बाद अग्निहोत्री की डगर भी मुश्किल होगी। माना जाता है कि मुकेश अग्निहोत्री भी उन नेताओं में है जो संगठन की कमान अपने हाथ में चाहते है। निसंदेह यदि ऐसा करने में अग्निहोत्री सफल हुए तो समीकरण उनके पक्ष में बनने लगेंगे, पर फिलवक्त तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। आशावान है आशा के समर्थक : आशा कुमारी भी उन नेताओं में से है जिन्हें सत्ता वापसी की स्थिति में सीएम पद का दावेदार माना जाता है। समर्थक अभी से उन्हें प्रदेश की भावी सीएम और प्रदेश की होने वाली पहली महिला मुख्यमंत्री करार देने लगे है। आशा कुमारी निसंदेह तेजतर्रार भी है और अच्छी वक्ता भी। सदन में भी सक्रिय दिखती है और जब शिमला में होती है तो सरकार को घेरने में भी पीछे नहीं रहती। इस पर गांधी परिवार से उनकी नजदीकी भी उनका दावा जरूर मजबूत करेगी। पर अतीत के कई विवाद आशा कुमारी का पीछा आसानी से नहीं छोड़ेगे। इस पर पार्टी में व्याप्त अंतर्कलह भी उनके रास्ते में आएगी। उनकी स्तिथि भी मुकेश अग्निहोत्री जैसी है, शिमला और अपने जिले में तो ठीक है पर पूरे प्रदेश में उन्हें अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करनी होगी। गुटबाजी से दूर, डार्क हॉर्स है कर्नल शांडिल कर्नल धनीराम शांडिल; दो बार सांसद, दो बार विधायक, पूर्व मंत्री और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के पूर्व सदस्य रहे है । शांडिल गांधी परिवार के करीबी है और बेदाग़ छवि उनका दावा और मजबूत करती है। विपक्ष में रहते हुए जब भाजपा कांग्रेस के मंत्रियों के खिलाफ चार्जशीट लाई थी तो उसमें भी कर्नल शांडिल का नाम नहीं था। यानी कह सकते है कि भाजपा भी उन्हें ईमानदार मानती रही है। पर कर्नल शांडिल का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये है कि वे किसी गुट में नहीं है। गुटबाजी से ये दूरी उन्हें सीएम की रेस में डार्क हॉर्स साबित कर सकती है। हालांकि राजनीति के लिहाज से शांडिल बहुत बेहतर वक्ता नहीं है और न ही उनकी पकड़ सोलन के बाहर दिखती है, पर विरोधी भी अक्सर कर्नल धनीराम को किस्मत का धनी कहते है।
प्रदेश में हाेने वाले चार उपचुनावाें के लिए भाजपा ने पहले ही तैयारियां शुरु कर दी है। इसी तर्ज पर अब संगठन का फाेकस अर्की विधानसभा क्षेत्र हाेगा। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह विधायक रहे। अब उनके निधन से यहां भी उपचुनाव हाेना हैं। इसके मद्देनजर भाजपा प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना कल यानी 20 जुलाई को अर्की मंडल की होने जा रही मंडल की बैठक के समापन सत्र को दोपहर 2 बजे संबोधित करने जा रहे हैं। यह बैठक अर्की स्थित गाै सदन में होगी। भाजपा प्रभारी कल चंडीगढ़ से 11 बजे अर्की के लिए आगमन करेंगे और बैठक को संबोधित करने के बाद वापस चंडीगढ़ जाएंगे।
पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीएस बाली की सियासती चाल अब दिल्ली पहुंच गई है। वे पिछले दाे दिनों से पार्टी के केंद्रीय नेताओं से मिशन 2022 के लिए मंथन कर रहे हैं। सूत्राें से मिली जानकारी के मुताबिक जीएस बाली अभी कुछ दिन दिल्ली में ही डटे रहेंगे। गाैरतलब है की बीते दिनों जीएस बाली ने मीडिया में सीएम पद पर जिला कांगड़ा का जिक्र किया था और वे कुछ दिन बाद दिल्ली दाैरे पर निकल गए। हालांकि अगले साल चुनाव हाेने के लिए अभी समय हैं, लेकिन उससे पहले तीन विधानसभा सीटाें और मंडी संसदीय सीट पर उपचुनाव भी हाेना है। जिला कांगड़ा का फतेहपुर, शिमला का जुब्बल-काेटखाई और साेलन जिले का अर्की विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हाेना है। साथ ही 17 विधानसभा सीटाें वाला मंडी संसदीय क्षेत्र भी है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शनिवार को नई दिल्ली में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण और युवा कार्य एवं खेल मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर से भेंट की। मुख्यमंत्री ने अनुराग सिंह ठाकुर को कैबिनेट मंत्री बनने पर बधाई दी और कहा कि यह राज्य के लिए गर्व की बात है। मुख्यमंत्री ने राज्य में खेलों के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, विशेषकर इंडोर स्टेडियम के निर्माण के बारे में भी चर्चा की, जिससे राज्य के युवा खिलाड़ियों को आगे बढ़ने में मदद मिल सके। अनुराग सिंह ठाकुर ने राज्य को हर संभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप और उप-आवासीय आयुक्त पंकज शर्मा भी मुख्यमंत्री के साथ उपस्थित थे।
चार माह में तीन मुख्यमंत्री, उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर से लाइमलाइट में है। सियासत महाठगिनी है, ये कब किसे फर्श से अर्श पर ले जाएं और कब किसे अर्श से फर्श पर पटक दे कोई नहीं जानता। हाथ से रेत की तरह फिसलती सत्ता को संभाल पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती और मौजूदा परिवेश में उत्तराखंड राज्य इस बात का सबसे बढ़िया उदहारण है। अपने 21 साल के इतिहास में इस राज्य ने कुल 13 मुख्यमंत्री देखे है और दो बार इस प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग चुका है। ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि विभिन्न राजनैतिक पार्टियों ने उत्तराखंड को शायद मुख्यमंत्री परिवर्तन की प्रयोगशाला समझ लिया है। मुख्यमंत्री के खिलाफ जनता आवाज उठाए तो इस्तीफा, कोई आरोप लगे तो इस्तीफा, तो कभी संवैधानिक संकट के नाम पर इस्तीफ़ा। हालहीं में सीएम पद से इस्तीफा देने वाले तीरथ सिंह रावत को हटाने का कारण संवैधानिक संकट ही बताया गया है। नियम के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने के अंदर उन्हें विधानसभा का सदस्य बनना था, लेकिन संविधान के आर्टिकल 151 के मुताबिक अगर विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचता है तो वहां उपचुनाव नहीं कराए जा सकते। सो तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया। पर सवाल ये है कि क्या चार महीने पहले भाजपा को इसका ख्याल नहीं था? दरअसल, इनसाइड स्टोरी कुछ और ही बताई जा रही है। अपने छोटे से कार्यकाल में तीरथ सिंह रावत कोई ऐसा करिश्मा नहीं कर पाए कि उन्हें आगामी चुनाव में फेस बनाया जा सके, बल्कि अपने बेतुके बयानों से उन्होंने पार्टी की किरकिरी ही करवाई। पार्टी में भी उनके के खिलाफ विरोध की आवाज तेज हो गई थी, इसलिए संवैधानिक संकट को ढाल बनाकर पार्टी ने उनकी छुट्टी कर दी। अंतरिम विधानसभा में मिले दो मुख्यमंत्री उत्तराखंड की राजनीति में सीएम बदलना कोई नई बात नहीं है। 21 साल से भी कम समय में 13 मुख्यमंत्री शपथ ले चुके है जिनमें सबसे अधिक 3 बार हरीश रावत ने शपथ ली है। साल 2000 में आस्तित्व में आए उत्तराखंड प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने नित्यानंद स्वामी, पर महज एक साल के भीतर ही मुख्यमंत्री पद से उनकी छुट्टी हो गई। 30 अक्टूबर 2001 में सत्ता संभालते हैं भगत सिंह कोश्यारी जो आजकल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, पर बतौर मुख्यमंत्री उनका सफर भी महज 122 दिन में समाप्त हो गया। यानी अंतरिम विधानसभा में ही उत्तराखंड को दो मुख्यमंत्री मिले। सिर्फ तिवारी ने 5 साल संभाली कुर्सी दो मार्च 2002 को उत्तराखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बाद कांग्रेस की सरकार बनी और नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। दिलचस्प बात ये है कि राज्य के गठन से लेकर अब तक केवल नारायण दत्त तिवारी ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। दूसरी विधानसभा में तीन मुख्यमंत्री मार्च 2007 में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सत्ता में वापसी हुई और भुवन चंद खंडूरी मुख्यमंत्री बने। पर पार्टी के भीतर हावी खींचतान के चलते जून 2009 में उन्हें हटाकर आलाकमान ने रमेश पोखरियाल को मुख्यमंत्री बनाया। पर पोखरियाल कुछ ख़ास नहीं कर सके और विधानसभा चुनाव से करीब 6 माह पहले फिर से भुवन चंद खंडूरी सीएम की कुर्सी मिल गई। पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले असंतोष साधने को सीएम फेस बदला था, लेकिन ये कारगार सिद्ध नहीं हुआ। तीसरी विधानसभा में तीन बार मुख्यमंत्री बने रावत मार्च 2012 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई और विजय बहुगुणा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। पर करीब दो साल बाद ही जनवरी 2014 में विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को सीएम बना दिया गया। इससे पहले हरीश रावत केंद्र में सक्रिय थे लेकिन प्रदेश की सत्ता उन्हें उत्तराखंड खींच लाई। पर कांग्रेस की अंतर्कलह के बीच हरीश रावत के लिए कुर्सी संभाले रखना बिलकुल भी आसान नहीं हुआ। तीन साल में हरीश रावत ने तीन बार सीएम पद की शपथ ली और दो बार राष्ट्रपति शासन लगा। आम जनता को भी हरीश रावत की सरकार पसंद नहीं आयी और नतीजन 2017 के विधानसभा चुनाव में खुद हरीश रावत भी हार गए। रावत दो सीटों से चुनाव लड़े थे और दोनों जगह जनता ने उन्हें नकार दिया। चौथी विधानसभा में अब तक तीन सीएम फेस मार्च 2017 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में लौटी। त्रिवेंद्र सिंह रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। करीब चार साल त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री रहे और लगने लगा कि शायद नारायण दत्त तिवारी के बाद वे दूसरे मुख्यमंत्री होंगे जो अपना कार्यकाल पूरा करें। पर राज्य में सरकार की लोकप्रियता के गिरते ग्राफ के चलते विधानसभा चुनाव के एक साल पहले भाजपा ने फेस बदल दिया। उनकी जगह सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन तीर्थ सिंह रावत की भी चार महीने से भी कम समय में विदाई हो गई। अब वर्तमान में मुख्यमंत्री है पुष्कर सिंह धामी। यहां भी पार्टी की मुश्किल कम होती नहीं दिख रही। दरअसल सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को सीएम फेस का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन दोनों को ही पार्टी ने नहीं चुना। ऐसे में जाहिर है उत्तराखंड भाजपा में अब गुटबाजी चरम पर है। 'बयानवीर' तीरथ सिंह रावत के विवादित बयान महज 115 दिन के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे तीरथ सिंह रावत भाजपा लिए राहत कम लाये और आफत ज्यादा बने। उनके कई बयानों ने आम जनता में भी पार्टी की छवि को ख़राब किया। कभी कुंभ की भीड़ तो कभी महिलाओं की फटी जींस पहनने को लेकर तीरथ सिंह रावत के बयानों से बीजेपी बैकफुट पर आ गई। सीएम बनते ही तीरथ सिंह रावत ने एक चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा कि मां गंगा की कृपा से कुंभ में कोरोना नहीं फैलेगा। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना भगवान से कर दी। इन बयानों की वजह से उनकी खूब किरकिरी हुई। इसके बाद सामने आया उनका संस्कार पुराण जिसमे उन्होंने फटी जींस पहनने वाली महिलाओं को संस्कार का ज्ञान बांटा। न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में उनकी इस संकीर्ण सोच की जमकर निंदा हुई, उनके खिलाफ प्रदर्शन हुए। तीरथ सिंह रावत यही नहीं थमे। इसके बाद उन्होंने जब अपने सामान्य ज्ञान का प्रदर्शन किया तो अच्छे-अच्छों ने सिर पकड़ लिया। एक बयान में उन्होंने भारत को अमेरिका का गुलाम बता दिया। उन्होंने कहा था कि 130-135 करोड़ लोगों की आबादी वाला भारत देश आज भी राहत महसूस करता है। अन्य देशों की अपेक्षा हम लोग 200 साल अमेरिका के गुलाम थे। पूरे विश्व के अंदर अमेरिका का राज था, लेकिन आज के समय में वो डोल गया। कोरोना काल में राशन वितरण को लेकर उन्होंने जो विचार साझा किये वो तो और भी अचंभित करने वाले थे। उन्होंने कहा कि ' सरकार ने हर घर में 5 किलो प्रति यूनिट अनाज देने का काम किया। जिसके 10 थे 50 किलो आ गया, जिसके 20 थे उसको 1 क्विंटल मिला। 2 थे तो 10 किलो ही आया। लोगों ने स्टोर बना लिए। खरीददार तलाश लिए। ज्यादा राशन मिलने से लोगों को एक दूसरे से जलन होने लगी। मेरे 2 हैं तो मुझे 10 किलो ही मिला। 20 वाले को 1 क्विंटल क्यों मिला? इसमें दोष किसका है, उसने 20 पैदा किए और आपने 2 पैदा किए। उसको 1 क्विंटल मिल रहा तो जलन क्यों? जब समय था तब आपने 2 ही किए 20 क्यों नहीं किए?


















































