हिमाचल में लंबे समय तक रहेगा मोदी और भाजपा का रिवाज फर्स्ट वर्डिक्ट। शिमला भाजपा के प्रदेश सह चुनाव प्रभारी देविंदर सिंह राणा ने शिमला मंडल की बैठक में भाग लिया जिसकी अध्यक्षता पंचायत भवन में राजेश शारदा ने की। राणा ने कहा कि भाजपा दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार है। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में विकसित हुए हैं। हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत भारत की छवि को और मजबूत किया है। यह सिर्फ नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व गुरु बन रहा है।हमारी क्षमताएं विश्व प्रसिद्ध हैं। राणा ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान देश का प्रबंधन उल्लेखनीय था और यह केवल नरेंद्र मोदी के नाम पर एक मजबूत नेतृत्व के कारण ही हो सका।जब अन्य देशों ने महामारी के कारण दम तोड़ दिया। वहीं, भारत को न्यूनतम नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि भाजपा हमलावर मोड में है और हम कांग्रेस नेतृत्व को करारा जवाब दे रहे हैं। कांग्रेस बिखरी हुई है और भाजपा एकजुट है, कांग्रेस पार्टी के नेता अपनी पार्टी छोड़ रहे हैं, जबकि भाजपा में नेता जुड़ रहे है।कांग्रेस के मौजूदा विधायक भी भाजपा में शामिल हो रहे हैं। यह भाजपा में उनकी आस्था को दर्शाता है। हिमाचल में लंबे समय तक रहेगा मोदी और भाजपा का रिवाज। हम निश्चित रूप से 2022 में सरकार बना रहे हैं, कांग्रेस तुलना में कहीं नहीं है।भाजपा के राष्ट्रीय, प्रदेश, जिला, मंडल और बूथ अध्यक्ष सभी भाजपा के प्रबल कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर अच्छे हाथों में है और केंद्र सरकार के मार्गदर्शन में कश्मीर की कानून-व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में है। हमने उत्तराखंड जीता है और अब हम हिमाचल भी जीतेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक नेतृत्वविहीन और दृष्टिहीन पार्टी है, दूसरी ओर भाजपा के पास एक उत्कृष्ट पार्टी तंत्र है। बूथ स्तर पर हमारी बूथ समितियां बनाई गई हैं। आगामी आम चुनाव में कांग्रेस के जीतने की कोई गुंजाइश नहीं है। मैंने देखा कि भारत जोड़ाे यात्रा के लिए 8 करोड़ के वाहन का उपयोग किया जा रहा है और कुल 7 ऐसे वाहन हैं। यह कांग्रेस के नेताओं के असाधारण स्वभाव को दर्शाता है। वे आम आदमी को कभी नहीं समझ सकते। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान खो चुकी कांग्रेस से हिमाचल की जनता का भी मोहभंग हो गया है।
टंग में हुआ भाजपा महिला मोर्चा धर्मशाला का सम्मेलन पंकज सिंगटा। धर्मशाला महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष रश्मिधर सूद ने धर्मशाला की भाजपा महिला कार्यकर्ताओं को चुनाव में जीत की घुटी पिलाई है। शनिवार को धर्मशाला के टंग में भाजपा महिला मोर्चा धर्मशाला का सम्मेलन हुआ। कार्यक्रम में भाजपा प्रदेश महिला मोर्चा अध्यक्ष श्रीमती रश्मिधर सूद ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत कर महिलाओं को संबोधित किया। प्रदेशाध्यक्ष ने प्रदेश में भाजपा की जीत के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं को गिनाकर कमल का फूल कभी न भूल का नारा दिया। सूद ने कहा कि कांग्रेस ने अपने 70 वर्ष के शासनकाल में महिलाओं को ठगा है। सांसद प्रतिभा सिंह आए दिन महिलाओं का अपमान करने से पीछे नहीं हटती है। असल मे महिलाओं का सम्मान भाजपा ही करती है। इसलिए भाजपा ने महिलाओं के लिए गृहणी सुविधा योजना, उज्ज्वला योजना, महिलाओं के लिए बसों में आधा किराया जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं। वहीं, विधायक विशाल नैहरिया ने भी महिलाओं के लिए चलाई गई योजनाओं को एक-एक कर गिनाया और आगामी चुनाव में भाजपा का साथ देने की महिलाओं से अपील की। विधायक ने कहा कि साढ़े चार वर्ष कांग्रेस के नेता कहीं दिखाई नहीं देते हैं और चुनाव के समय निकलकर जनता को गुमराह करते हैं, लेकिन धर्मशाला की समझदार है और झूठे लोगों का साथ नहीं देगी। वहीं, 'आप' के झाड़ू की एक एक तीली टूट चुकी है। इससे पूर्व प्रदेशाध्यक्ष का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। कार्यक्रम में भाजपा मंडल धर्मशाला प्रभारी आसीम गुप्ता, महिला मोर्चा प्रदेश सचिव गायत्री कपूर, रजनी ठाकुर सह सचिव, मनोरमा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, महिला मोर्चा कांगड़ा चंबा प्रभारी शोभा डढवाल, कांगड़ा प्रभारी सोनिया बंटा, कांगड़ा जिला अध्यक्ष रंजू, भाजपा महिला मोर्चा मंडल अध्यक्ष सुनीता शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष स्नेह कपूर, उपाध्यक्ष शक्ति अत्रि, सपना, आईटी प्रभारी रीता वर्मा व सचिव नीलम सूद आदि मुख्य रूप शामिल रहीं। यह भी रहे शामिल भाजपा मंडल अध्यक्ष अनिल चाैधरी, महामंत्री राजेश वर्मा, उपाध्यक्ष दिनेश कपूर, नगर निगम धर्मशाला महापौर ओंकार नैहरिया, उप महापौर सर्व चंद गलोटिया, नरवाणा खास प्रधान सरिता देवी, अंद्राड़ प्रधान शालू देवी, जदरांगल प्रधान रीता देवी, कंड करडियाना प्रधान सरला देवी, मदल प्रधान राकेश चौधरी, टंग उप प्रधान नीरज भट्ट व झियोल उप प्रधान सतीश चौधरी आदि शामिल रहे।
महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष नेटा डिसूजा द्वारा पत्रकार वार्ता का आयोजन महिलाओं को सशक्त करने की ओर पहला कदम होगी 1500 रुपए महीना देने की गारंटी पंकज सिंगटा। धर्मशाल धर्मशाला में महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष नेटा डिसूजा और प्रदेशाध्यक्ष जैनब चंदेल ने पत्रकार वार्ता को संबोधित किया। इस वार्ता में मुख्य तौर पर कांग्रेस सरकार आने पर महिलाओं को 1500 रुपए दिए जाने की कांग्रेस की गारंटी पर बात की गई। राष्ट्रीय अध्यक्ष नेटा डिसूजा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश में सेवा फाउंडेशन द्वारा एक सर्वे किया है और इस सर्वे में उन्होंने पाया कि जिन परिवारों में महिलाओं की आमदनी होती है, उन परिवारों में महिलाओं को ज्यादा मान सम्मान दिया जाता है। ऐसे में यह भी देखा गया है कि महिलाओं का शोषण भी इस स्तिथि में कम होता है। कांग्रेस द्वारा सरकार में आते ही महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह देने की गारंटी दी गई है, जो महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर एक कारगर कदम साबित होगा। हालांकि, यह रकम छोटी है, लेकिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। भाजपा द्वारा सवाल उठाया गया था कि महिलाओं को दिया जाने वाला 1500 रुपए प्रति माह कांग्रेस कहां से लाएगी और यह पैसा कैसे दिया जाएगा। इस सवाल के जवाब पर नेटा डिसूजा ने कहा कि 'जहां चाह वहां रहा' है। इसे लेकर कांग्रेस आलाकमान ने पूरा रोड मैप तैयार कर लिया है। यह किस तरह से दिया जाएगा इस पर भी कांग्रेस ने पूरा विचार किया है और कांग्रेस इसका पूरा होमवर्क कर चुकी है। विज्ञापनों पर पैसा बर्बाद करती है भाजपा महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह भाजपा विज्ञापनों पर पैसा खर्च करती है वह सबके सामने है। कांग्रेस आज भी महिलाओं के लिए कार्य करती हैं और पहले भी बहुत कार्य कर चुकी है, लेकिन कांग्रेस ने कभी उसका प्रचार नहीं किया और विज्ञापनों पर सरकारी पैसा बर्बाद नहीं किया। हर जिला में महिला थाने खोलना वीरभद्र सरकार के दौरान हुआ और हर थाने में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं की नियुक्तियां होना भी कांग्रेस की सरकार में किया गया, जिससे महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिले। गुड़िया हेल्पलाइन हेल्पलैस गुड़िया हेल्पाइन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह सरकार गुड़िया के नाम से सत्ता में आई थी और आज वही गुड़िया हेल्पलाइन हेल्पलैस हो चुकी है। गुड़िया हेल्पाइन में आज की तारिक में 8409 शिकायतें पेंडिंग है, पड़ी हुई है। 2017 के दृष्टि पत्र में लिखी घोषणाओं में यदि भाजपा कहती है कि उन्होंने गुड़िया हेल्पाइन शुरू की है, तो उन्हे चूलू भर पानी में डूब मरना चाहिए, क्योंकि गुड़िया हेल्पाइन आज हेल्पलैस है। धर्मशाला में विकास केवल सुधीर शर्मा की देन धर्मशाला में हुए विकास को लेकर नेटा डिसूजा ने कहा कि आज धर्मशाला में भाजपा के विधायक है और धर्मशाला से ही सांसद भी है। उसके बावजूद भी भाजपा द्वारा शहर में कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि धर्मशाला का विकास केवल कांग्रेस के विधायक और पूर्व में मंत्री रहे सुधीर शर्मा ने ही किया है, फिर चाहे वह स्मार्ट सिटी को धर्मशाला लाना हो या फिर अन्य कार्य। भाजपा के खोखले मार्केटिंग ट्रिक्स में नहीं आएगी जनता भाजपा केवल खोखले मार्केटिंग ट्रिक्स का इस्तेमाल करती है और अब उनके झांसे में जनता नहीं आएगी। भाजपा ने 2017 के दृष्टि पत्र में जो घोषणाएं की थी, उनमें से भाजपा ने एक भी पूरी नहीं की है। यह सारे वादे केवल जनता को बहकाने के लिए किए गए थे। सच को झूठ और झूठ को सच दिखाना भाजपा की फितरत है। कांग्रेस प्रदेश और देश में महिलाओं को अधिकार देने जा रही है।
अनुराग ठाकुर ने हमीरपुर बाईपास पर बारल में किया हमीरपुर संसदीय क्षेत्र चुनाव कार्यालय का उद्धघाटन मीनाक्षी साेनी। हमीरपुर जब राज करने का मकसद नहीं, बल्कि देश के प्रति कर्तव्य निभाने का मंसूबा दिलों में हो तब जन जन सहयोग करता है, आशीर्वाद देता है। शुक्रवार शाम को हमीरपुर बाईपास पर बारल गांव में केंद्रीय सूचना प्रसारण युवा मामले एवं खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के पार्टी चुनाव कार्यालय का विधिवत रूप से उद्घाटन करते हुए उपस्थित पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने 10 चुनाव लगातार जीते हैं, जब यहां के कार्यकर्ताओं की ताकत और मेहनत का फल का नाम है और यहां की जनता का प्यार और आशीर्वाद है, लेकिन हर चुनाव एक चुनौती होता है और चुनाव पोलिंग बूथ पर लड़ा जाता है, एक एक पोलिंग बूथ बहुत महत्वपूर्ण होता है, पोलिंग बूथ पर बढ़त बनाके ही चुनाव जीता जाता है। हम सब मिलकर इतना काम करेंगे कि पहले से ज्यादा सीटें हम इस संसदीय क्षेत्र से जीत कर देंगे। डबल इंजन की सरकार फिर से लानी है कमल खिलाना है। 2022 में 2017 से आगे बढ़ कर दिखाएंगे। पूरी ताकत लगानी है, जहां कमी वहां काम करना है। सभी पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता कमल के फूल को लक्ष्य मानते हुए काम करें। हिमाचल का योगदान देश की तरक्की के लिए जरूरी है। कार्यकर्ता अगले 60 दिन पार्टी को देंगे तो पार्टी को अगले 60 महीने प्रदेश की सेवा करने का मौका मिलेगा। उन्होंने कहा कि देशवासियों ने सदियों तक राज करने वालों को छला है और अब एक प्रधान सेवक के रूप में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी देश को विश्व गुरु बनाने की राह पर अग्रसर करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं, यह भी जनता देख रही है। मोदी सरकार की नीतियों को भलीभांति जांच परख कर देश की जनता ने उन्हें अपने दिलों में जगह दी है। प्रदेश में भी डबल इंजन की सरकार ने विकास की गाथा लिखने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। कार्यक्रम में पहुंचने पर ढोल नगाड़ों के साथ साथ पुष्प वर्षा और फूल मालाओं के केंद्रीय मंत्री का स्वागत अभिनन्दन पार्टी के लोगों ने किया। इस अवसर पर पार्टी के प्रदेश महामंत्री एवं संसदीय क्षेत्र के प्रभारी त्रिलोक जंबाल, सह प्रभारी सुमित शर्मा, हमीरपुर के जिलाध्यक्ष बलदेव शर्मा, विधायक नरेंद्र ठाकुर, कमलेश कुमारी, एचआरटीसी के उपाध्यक्ष विजय अग्निहोत्री, देहरा के जिलाध्यक्ष संजीव कुमार, जिला महामंत्री हरीश शर्मा, अभि वीर सिंह, लवली, प्यारे लाल शर्मा, अनिल ठाकुर, आदर्श कांत, कमलेश परमार, अंकुश दत्त शर्मा, विकास शर्मा, अनीश ठाकुर, अजय, रिंटू शर्मा, राजकुमारी, अभिषेक दत्त, सुमन, कपिल, विकास, शैंटी चंदेल, बीना, कपिल, वंदना योगी, नीना कुमारी, अर्जुन राणा, सुरेंद्र मिन्हास, त्रिलोक डडवाल, होशियार सिंह, विधि चंद, पवन शर्मा व बिक्रम राणा इत्यादि सहित सैकड़ों अन्य कार्यकर्ता और स्थानीय जनता मौजूद रही।
मुझे सच्चे और ईमानदार राजनीति की मांग करने के लिए किया जा रहा तंग व परेशान फर्स्ट वर्डिक्ट। नादौन नादौन विधानसभा से आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता शैंकी ठुकराल के ठुकराल साबुन फैक्ट्री पर सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट ने छापेमारी की है। इन छापेमारी पर शैंकी ठुकराल ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, हम तो साबुन बेचते हैं जो मैले को साफ करता है। बस शायद यही एक वजह है कि कुछ लोग सफाई होने नही देना चाहते हैं। मुझे तो केवल सच्ची राजनीति और ईमानदार शासन की मांग करने पर तंग परेशान करने के लिए कुछ चंद नेताओं द्वारा यह षडयंत्र रचा जा रहा है। यह छापेमारी हाल ही में मेरे द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू में कांग्रेस और भाजपा की सांठ गांठ की खोली गई पोल का नतीजा है, पर मैं एक ईमानदार पार्टी से आता हूँ जिसके नेताओं पर न जाने कितने छापे मारे गए पर उन्हें कुछ नहीं मिला। मेरे पास भी कुछ नही है, सभी कुछ कानून मुताबिक है और सबका हिसाब किताब है। शैंकी ने कहा कि हम ईमानदारी और सच्चाई के साथ अपना व्यापार करते हैं, हम इन छापों से डरने वाले नहीं है। हम सारे अफसरों का स्वागत करते हैं, उनको पूरी तरह से हर प्रकार का समर्थन दिया जाएगा।
फर्स्ट वर्डिक्ट। साेलन 24 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंडी में भाजयुमो की युवा संकल्प रैली में कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम को लेकर सोलन में भी तैयारियां शुरू कर दी गई है। शुक्रवार को भाजयुमो सोलन मंडल द्वारा शहर के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में एक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ युवा मोर्चा सोलन मंडल के कार्यकर्ताओं ने पीएम मोदी के कार्यक्रम को लेकर रणनीति तैयार की। बैठक की अध्यक्षता भाजयुमो सोलर मंडल अध्यक्ष रोहित भारद्वाज ने की। इस दौरान रोहित भारद्वाज ने कहा कि 24 सितंबर को प्रधानमंत्री हिमाचल आने वाले हैं। ऐसे में उनके स्वागत को लेकर युवाओं में खासा उत्साह है। उन्होंने कहा कि मंडी में 24 सितंबर को आयोजित होने वाली युवा संकल्प रैली में सोलन मंडल से भी कार्यकर्ता भाग लेने वाले हैं। उन्होंने कहा कि इसी के मद्देनजर आज एक बैठक आयोजित की गई है। इस बैठक में युवा मोर्चा के सभी ग्राम केंद्र प्रभारियों को नियुक्त किया गया। वह साथ ही उन्हें आगामी कार्रवाई हेतु आगे का दायित्व दिया गया है, जो हर एक ग्राम केंद्र से 2 हज़ार युवा खोले जाने का युवा मोर्चा ग्राम केंद्र प्रभारी प्रयास करेंगे और इसमें सभी युवा मोर्चा साथियों ने बढ़-चढ़कर भाग लेने का संकल्प लिया। विशेष रूप से उपस्थित रहे राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सकेश शर्मा व स्थानीय भाजपा मंडल अध्यक्ष मदन ठाकुर, राजेश कश्यप, तरसेम भारती, कुमारी शीला प्रवासी, विस्तारक ऋषि कंडवाल व जगमोहन रावत और सभी युवा साथी उपस्थित रहे।
हिमाचलियों को अपने घर आने का अब नहीं लगता टैैक्स हिमकेयर-सहारा, स्वालंबन व गृहिणी सुविधा योजना बने वरदान न भूतो, न भविष्यते: जयराम सरकार लाई ऐसी योजनाएं पंकज सिंगटा। धर्मशाला देश एक ओर आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहा था, तो वहीं हिमाचलियों को बाहरी राज्यों में आवाजाही करने के बाद अपने घर वापसी पर टोल टैक्स चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ता था। प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के मीडिया कोर्डिनेटर विश्व चक्षु ने कहा कि आजादी के बाद भी कई दशकों से चल रहे रिवाज को हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बदलकर हिमाचलवासियों को सबसे बड़ी राहत प्रदान की थी। अब टोल टैक्स पर किसी भी राज्य से अपने घर हिमाचल आने का कोई टैैक्स या भुगतान जनता को करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। विश्व चक्षु ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनते ही राज्य में लोगों का जीवन आसान बनाने की राहें बनाई, जिसमें पहाड़ी प्रदेश की सबसे बड़ी पीड़ा का दर्द समझते हुए संवेदनशील मुख्यमंत्री ने हिमकेयर योजना शुरू कर पूरे भारत में नया उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जिसमें किसी भी बिमारी पर सरकारी अस्पतालों सहित पैनल्ड निजी अस्पतालों में भी पूरी तरह से पांच लाख तक मुफ्त ईलाज करवाने की सुविधा प्रदान की जाती है। मुख्यमंत्री के मीडिया कोर्डिनेटर विश्व चक्षु ने कहा कि इससे पहाड़ी प्रदेश की आजादी के 70 वर्षों के बाद 2017 से पहले तक ईलाज न मिल पाना और पैसों की कमी से ईलाज से वंचित रहने के अभिशाप से जयराम ने प्रदेश को मुक्त कर दिया है। जिस तरह पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आयुष्मान योजना शुरू कर हर वर्ग को बड़ी राहत दी गई। वहीं हिमाचल में आयुष्मान से वंचित रह गए लोगों के लिए हिमकेयर बड़ा वरदान बनी। वहीं गंभीर बिमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी सरकार ने सहारा योजना शुरू की, जिसमें हर माह व्यक्ति को दो हज़ार की राशि प्रदान की जाती है। चक्षु ने कहा कि युवाओं-युवतियों के लिए मुख्यमंत्री स्वालंबन योजना शुरू की गई है, जिसके बाद में राज्य का आमजन भी हमेशा कहते हुए सुना जाता है कि न भूतो, न भविष्यते, जयराम सरकार लाई ऐसी योजनाएं। उन्होंने कहा कि भाजपा ने ही राज्य में सरकार बनते ही सबसे पहले समाजिक सुरक्षा पैंशन योजना की आयु 70 वर्ष की थी, जो कि हिमाचल के स्वर्ण जयंती के उपल्क्षय पर सीएम जयराम ठाकुर ने अब 60 वर्ष कर दी है। वहीं, गांव के हर घर-घर को गृहिणी सुविधा योजना से सुविधा प्रदान कर विकास की नई ईबारत लिख दी। मीडिया समन्वयक विश्व चक्षु ने कहा कि भाजपा सरकार व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का यह स्वर्णिम हिमाचल का कार्यकाल सदियों-सदियों तक याद किया जाएगा और आने वाली पीढ़ीयां भी इसी खाके से पहाड़ी प्रदेश को आगे ले जाने के लिए शिल्पकार बनेगी। विश्व चक्षु ने कहा कि जयराम ठाकुर प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पुरी निष्ठा से इस देवभूमि हिमाचल प्रदेश की सेवा करने की कोशिश की है, कोविड के मुश्किल अढ़ाई वर्ष के दौर में भी जिंदगियां बचाने में सरकार सबसे आगे रही और आज स्वास्थ सुविधाओं में एम्स जैसे अस्पताल की सौगात पहाड़ को दी है।
फर्स्ट वर्डिक्ट। शिमला मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आज सुंदरनगर में अम्बा प्रसाद रोटरी चैरिटेबल नेत्र अस्पताल का शिलान्यास किया। उन्होंने इस अवसर पर सुंदरनगर पॉलिटेक्निक एलुमिनी एसोसिएशन द्वारा दान की गई एडवांस लाइफ स्पोर्टिंग एम्बुलेंस को भी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने एनआरआई और समाजसेवी अम्बा प्रसाद का इस नेत्र अस्पताल निर्माण के लिए 2 करोड़ रुपए दान करने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अम्बा प्रसाद, राजकीय बहुतकनीकी महाविद्यालय सुंदरनगर के पूर्व छात्र भी हैं। उन्होंने कहा कि रोटरी क्लब द्वारा संचालित यह अस्पताल गरीब नेत्र रोगियों के लिए वरदान साबित होगा, क्योंकि इस अस्पताल में गरीब मरीजों का निःशुल्क नेत्र उपचार किया जाएगा। जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश के लोगों को उनके घरों के नजदीक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने इस नेत्र अस्पताल के निर्माण के लिए जिला गवर्नर रोटरी डॉ. दुष्यंत चौधरी द्वारा लगभग 2.40 करोड़ रुपए के योगदान करने की घोषणा के लिए उनकी सराहना की। उन्होंने सुंदरनगर अस्पताल के लिए 25 लाख रुपए की एडवांस लाइफ स्पोर्टिंग एम्बुलेंस दान करने के लिए राजकीय बहुतकनीकी महाविद्यालय सुंदरनगर के पूर्व छात्रों का भी आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर विधायक सुंदरनगर राकेश जम्वाल ने मुख्यमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उन्होंने सुंदरनगर में इस नेत्र अस्पताल के निर्माण के लिए बहुमूल्य भूमि उपलब्ध करवाने के लिए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर समाजसेवी व एनआरआई अम्बा प्रसाद ने कहा कि सुंदरनगर में चैरिटेबल नेत्र अस्पताल खोलना लंबे समय से सपना था। उन्होंने कहा कि इस अस्पताल में गरीब मरीजों को विश्वस्तरीय नेत्र उपचार की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध करवाई जाएगी। इस अवसर पर शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर, जिला परिषद के अध्यक्ष पाल वर्मा, उपायुक्त मंडी अरिंदम चौधरी, पुलिस अधीक्षक शालिनी अग्निहोत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
प्रतिमा राणा। पालमपुर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने भारत मे बढ़ते भ्रष्टाचार के मामलों को चिंता व्यक्त की है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि इस भ्रष्टाचार की असली जड़ वे लोग हैं, जो रिश्वत लेकर अवैध निर्माण होने देते हैं, जब तक उन जिम्मेदार लोगों को सजा नही होती इस प्रकार का भ्रष्टाचार चलता रहेगा। शांता कुमार ने कहा कि भारत सरकार की नाक के नीचे दिल्ली के नोएडा में करोड़ों रुपए से भ्रष्टाचार के बल पर बना हुआ टविन टावर को गिरते हुए देश के करोड़ों लोगों ने देखा। टीवी चैनल और अखबारें भ्रष्टाचार के टविन टावर के समाचार से भरी पड़ी थी। उन्होंने इस मामले में सबसे अधिक बधाई उच्चतम न्यायालय को इसलिए दी है कि शायद पहली बार उच्चतम न्यायालय के आदेश पर सभी जिम्मेदार अधिकारियों के नाम तय करने का काम हुआ। शांता कुमार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि अवैध निर्माण करने का आदेश देने वाले सभी अधिकारियों के नाम बताए जाए। नोएडा प्राधिकरण के 24 अधिकारियों चार बिल्डर दो वस्तुकार जिम्मेदार ठहराए गए हैं। उनके विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज हो गई है। इसमें 18 अधिकारी सेवानिवृत हो चुके है, 6 निलबिंत हैं। शांता कुमार ने कहा आज भारत में सबसे बड़ी समस्या प्रतिदिन बढ़ते भ्रष्टाचार की है। टविन टावर गिराने का पहला मौका नही है। देश में कई बड़े नगरों में करोड़ों रुपए के अवैध निर्माण हुए। वर्षों तक उनमें व्यापार चलते रहें। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अवैध घोषित किया गए और बुलडोजर से उन्हें गिराया गया। उन्होंने दिल्ली में करोड़ों रुपए के ऐसे अवैध निर्माण गिरते हुए देखें हैं। उन्होंने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि टविन टावर के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर सभी जिम्मेदार अधिकारियों को नामित किया गया है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि उनके विरुद्ध अति शीघ्र ऐसी कठोर कार्रवाई हो कि भविष्य में कोई इस प्रकार भ्रष्टाचार बढ़ाने की कोशिश न करें। उन्होंने देश की जागरूकता संस्थाओं को भी सावधान किया है कि वे इन सभी नामित जिम्मेदार अधिकारियों को दण्डित करवाने की कोशिश करें। शांता कुमार ने कहा कि आवश्यकता पड़े, तो इसके लिए एक बार फिर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाए।
कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष बोले-बीजेपी के राज में बढ़ी महंगाई और बेरोजगारी मनोज कुमार। कांगड़ा कांग्रेस पार्टी एक विचारधारा है जो हर वर्ग को साथ लेकर चलती है। कांग्रेस कभी व्यक्तिविशेष को महत्व नहीं देती। कांग्रेस का मुख्य मकसद है कि सबसे पहले कमजोर तबके को ऊपर उठाना। मैं कांग्रेस का एक सजग कार्यकर्ता हूं और एक सिपाही की तरह काम करूंगा। यह बात रविवार को कांगड़ा में कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष डॉ. राजेश शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि कांगड़ा में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से सशक्त है। कांगड़ा में प्रतिनिधियों की कोई कमी नहीं है। उन्होंने बताया कि इसी संदर्भ में कल हिमाचल कांग्रेस के सह प्रभारी संजय दत आ रहे हैं। वह कल सागर ग्लोरी में साढ़े 11 बजे कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। तीन बजे वे डिस्ट्रिक्ट प्रधान से मिलेंगे और फिर छह बजे वरिष्ठ नेताओं से भी मिलेंगे। इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रम भी रखे गए हैं। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने इलेक्शन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। टिकट के लिए आवेदन मांग लिए गए हैं। वहीं, उन्होंने पत्रकारों की ओर से पूछे जाने पर कि पवन काजल ने क्यों बीजेपी ज्वाइन की। इस पर डॉ. राजेश शर्मा ने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत मामला है। बीजेपी का काम करने का अपना तरीका है। वह किसी भी नेता को पार्टी में मिलाने के लिए खरीदो-फरोख्त भीं करती। कांग्रेस ने पवन काजल को बहुत मान-सम्मान दिया और यही कारण है कि वह कांगड़ा से दो बार विधायक भी रहे। यहीं नहीं कांग्रेस ने उन्हें एमपी का चुनाव लड़ने का मौका भी दिया, मगर उन्होंने जनता की परवाह न करते हुए अपने व्यक्तिगत हित को सामने रखते हुए बीजेपी को ज्वाइन कर लिया। अब कांग्रेस कांगड़ा में एक ऐसे नए चेहरे को सामने लाएगी जो पढ़ा-लिखा हो और सबको साथ लेकर चलने वाला हो। कांगड़ा में कांग्रेस पूरी तरह से सशक्त है। सब में एकजुटता है और इसी एकजुटता से ही इलेक्शन भी लड़ा जाएगा। वहीं, उन्होंने बीजेपी पर वार करते हुए कहा कि जिन संस्थानों और सुविधाओं को कांग्रेस पार्टी 70 वर्ष की अथक मेहनत से तैयार किया बीजेपी उन्हीं संस्थानों को बेचने पर तुली हुई है। हर दिन किसी ना किसी चीज का सौदा किया जा रहा है। प्रदेश में बीजेपी के शासनकाल में बेरोजगारी, महंगाई बढ़ी है। सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी का है। प्रदेश के कई युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। कांग्रेस की सरकार सत्ता में आते ही सारी समस्याओं का समाधान करेगी। वहीं उन्होंने कहा कि टिकट के लिए आवेदन करना सभी अधिकार है। मगर टिकट किस को देनी यह बात कांग्रेस हाईकमान ही फाइनल करेगी।
प्रतिमा राणा। पालमपुर विधानसभा अध्यक्ष, विपिन सिंह परमार ने सुलाह निर्वाचन क्षेत्र के राम नगर कॉलोनी ठाकुरद्वारा में 6 करोड़ 35 लाख से निर्मित रामनगर कॉलोनी, रजेहड़, टी स्टेट गोदाम, शिवनगर कॉलोनी, राधा कृष्ण मंदिर वाया हिमालयन फैक्ट्री सलोह सड़क का लोकार्पण किया। परमार ने सड़क सुविधा से जुड़ने वाले क्षेत्र के सभी लोगों को वर्षों पुरानी मांग पूरी होने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि राम नगर कॉलोनी में पानी और बिजली की आपूर्ति के सुधार पर भी करोड़ों रुपए जारी किए गए हैं और लोग को इसका लाभ प्राप्त हो रहा है। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि सुलाह विधान का सर्वांगीण विकास उनकी प्राथमिकता है और सुलाह निर्वाचन क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, पेयजल, सिंचाई, बिजली, स्वास्थ्य और परिवहन में अभूतपूर्व कार्य किया गया है। सुलाह के गांव-गांव तक सड़क सुविधा से जोड़ने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि लोगों को राहत देने और उनकी मूलभूत जरुरतों को पूरा करने को अनेक कल्याणकारी योजनाएं आरंभ की है। कार्यक्रम में कांगड़ा जिला भाजपा अध्यक्ष चन्द्र भूषण नाग, निदेशक कांगड़ा बैंक रंजीत राणा, ज़िला सचिव चन्दरवीर पॉल शर्मा, राकेश शर्मा, एसपी पटियाल, संजय सूद, अनिरुद्ध राणा, सुरिंदर राणा, राकेश शर्मा, बलवंत राणा, अधिशाषी अभियंता मनीष सहगल, एसडीओ आनंद कटोच और डीएस परमार सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी और क्षेत्र के लोग उपस्थित रहे।
कई पदाधिकारी, पार्षद रहे नदारद, कहीं ये अंतर्कलह कांग्रेस को ले न बैठे ! - सोलन में रोजगार संघर्ष यात्रा निकालने वाली कांग्रेस खुद दिखी संघर्षरत सोलन कांग्रेस की रोजगार संघर्ष यात्रा में पार्टी के कई चेहरे नहीं दिखे जिनमें शहरी कांग्रेस अध्यक्ष भी शामिल है। संगठन के कई पूर्व पदाधिकारी भी इस आयोजन से दूर दिखे। इत्तेफ़ाक़ की बात है इन सभी को रविवार को ही निजी आवश्यक काम था। दूसरा इत्तेफ़ाक़ ये है कि ये सभी सुखविंद्र सिंह सुक्खू के समर्थक माने जाते है। अब जब नेता ही मौजूद नहीं थे तो जाहिर है इनके समर्थक भी मुश्किल ही इस संघर्ष में पहुंचे हो। सोलन शहर में कांग्रेस की ये संघर्ष यात्रा निकली जहाँ नगर निगम पर कांग्रेस का कब्ज़ा है। नगर निगम में कांग्रेस के 9 पार्षद है पर इस आयोजन में सिर्फ चार दिखे। पांच पार्षद संघर्ष यात्रा में संघर्ष करने ही नहीं पहुंचे। ऐसे में सोलन निर्वाचन क्षेत्र में फिर अपनी जीत का दावा करने वाली कांग्रेस को इस संदर्भ में आत्ममंथन जरूर करना होगा। माहिर मान रहे है कि बीते कुछ वक्त में कसौली कांग्रेस में जो एक्शन दिखा है, रविवार को सोलन में उसका रिएक्शन देखने को मिला है। हालात ये ही रहे तो इसका खमियाजा कांग्रेस के साथ -साथ कर्नल धनीराम शांडिल को भी भुगतना पड़ सकता है। हालांकि इस रोजगार संघर्ष यात्रा में कांग्रेस भीड़ जुटाने में कामयाब रही। खास बात ये है कि सिर्फ सोलन निर्वाचन क्षेत्र ही नहीं अन्य तीन -चार निर्वाचन क्षेत्रों के लोग भी इसमें शामिल हुए। बहरहाल जैसे तैसे कांग्रेस ने ठीक ठाक भीड़ तो जुटा ही ली। यहाँ गौर करने लायक बात ये भी है कि रमेश ठाकुर, रमेश चौहान और सुरेंद्र सेठी जैसे होलीलॉज के करीबी वरिष्ठ नेता मोर्चा संभाले हुए थे, सो पार्टी की लाज बचना तो लाजमी था। कर्नल दमदार, पर स्थिति विकट: दस साल से विधायक होने के बावजूद कर्नल धनीराम शांडिल को लेकर सोलन निर्वाचन क्षेत्र में कोई विरोधी लहर नहीं दिखती। कहीं कम तो कहीं ज्यादा, पर कर्नल ने समूचे निर्वाचन क्षेत्र में काम जरूर किया है। इस पर उनकी ईमानदार छवि उन्हें और मजबूत करती है। इसमें भी कोई संशय नहीं है की सोलन निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के पास कर्नल से बेहतर कोई विकल्प नहीं दिखता। बावजूद इसके कर्नल की राह मुश्किल हो सकती है। एक और जहाँ कंडाघाट के वरिष्ठ नेता और होलीलॉज के करीबी रमेश ठाकुर के साथ कर्नल शांडिल के सियासी मतभेद पूरी तरह सुलझे हुए नहीं दिख रहे, वहीँ कर्नल के शागिर्दों में अधिकांश सुखविंद्र सिंह सुक्खू के निष्ठावान है। यानी खतरा है कि ऊपरी स्तर पर अगर कांग्रेस की अंतर्कलह की चक्की तेज हुई, तो कर्नल बेवजह न पीस जाएं। हालांकि कर्नल शांडिल बेहद अनुभवी नेता है और गुटबाजी से भी दूर। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि वो इस स्थिति से कैसे निपटते है।
--बैठक में शामिल होंगे भाजपा के शीर्ष नेता भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना, सह प्रभारी संजय टंडन और प्रदेश संगठन महामंत्री पवन राणा ने शनिवार को हैदराबाद में शुरू हुई दो दिवसीय भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लिया। हैदराबाद इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, 19 राज्यों के मुख्यमंत्री और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए। कश्यप ने कहा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर में हुए विधानसभा चुनावों, कुछ निकाय चुनावों, रामपुर, आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनावों और त्रिपुरा के विधानसभा उपचुनावों में भाजपा को भारी जीत मिली है। उन्होंने कहा कि अभी पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, आज पूरी दुनिया की आर्थिक विकास दर औसतन 6% है। वहीं, भारत की अर्थव्यवस्था 8.7% की दर से आगे बढ़ रही है। यह भी हमारी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। बूथ को मजबूत करना बहुत जरूरी है। बूथ अध्यक्ष और बूथ कार्यकर्ताओं से संपर्क हमारे लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि वे कार्यकर्ता हैं जो क्षेत्र में हमारी बात घर घर पहुंचा सकते हैं और अपनी बात सबके सामने रख सकते हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हमारे लिए एक बड़ी सीखने की प्रक्रिया है। यह 2022 विधानसभा चुनावों में हमारी जीत का मार्ग प्रशस्त करेगी।
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद बीजेपी खेमे में हलचल और तेज हो गई है। उद्धव के सीएम की कुर्सी खाली करने के साथ ही बीजेपी खेमे में खुशी की लहर है। इस बीच सरकार बनाने की भी तैयारी की जा रही है। आज बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक ( होगी जिसमें सरकार बनाने की रणनीति पर मंथन किया जाएगा। 2 जुलाई से पहले सरकार गठन को लेकर तैयारी की जा रही है। बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में आगे की रणनीति तय होगी। जानकारी के मुताबिक 1 या 2 जुलाई को बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। गौरतलब है कि शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की बगावत से बने सियासी संकट के बीच उद्धव ठाकरे की कुर्सी जा चुकी है। कल तक उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम थे लेकिन अब वो कार्यवाहक सीएम बन गए हैं। ऐसे में अब बीजेपी सरकार बनाने की कवायद में पूरी तरह से जुट गई है। आज सुबह 11 बजे देवेंद्र फडणवीस के घर कोर ग्रुप की बैठक होगी। महाराष्ट्र बीजेपी प्रभारी सीटी रवि बैठक में मौजूद रहेंगे। महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर बैठक में चर्चा होगी।
महाराष्ट्र में बड़े सियासी बदलाव के साथ उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। सियासी संकट के दौरान राज्यपाल और पार्टी नेताओं के बीच तकरार जैसी स्थिति भी बनी। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जब उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया तो शिवसेना के नेता के तेवर कड़े हो गए। हालांकि पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी लेकिन फ्लोर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। बुधवार को पार्टी के नेता संजय राउत भी भड़क उठे थे। उन्होंने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक तक करार दिया था। दरअसल, महाराष्ट्र के राज्यपाल ने बुधवार 29 जून को कहा था कि उद्धव सरकार गुरुवार सुबह 11 बजे फ्लोर टेस्ट का सामना करें, जिसके बाद शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा था कि संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। खुद सीएम ने भी इस फैसले को लेकर अप्रत्यक्ष तौर पर नाराजगी जताई थी।
कुल्लू में आप के शक्ति प्रदर्शन ने भाजपा और मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर की नींद जरूर उड़ा दी होगी। जिस तरह का जनसैलाब आप की तिरंगा यात्रा में दिखा अगर वो वोटों में तब्दील हो पाया तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती है। दरअसल जिला की चार विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा का कब्जा है और मनाली विधायक गोविन्द सिंह ठाकुर वर्तमान में मंत्री भी है। जबकि कुल्लू सदर सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। पिछले साढ़े चार सालों में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद कुल्लू में भाजपा कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पाई है। मंडी संसदीय उपचुनाव में भाजपा की हार का प्रमुख कारण भी जिला कुल्लू में पार्टी का लचर प्रदर्शन था। तब चारों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को बढ़त मिली और ये ही भाजपा की हार का कारण बना। नतीजों की कसौटी पर मंत्री गोविन्द फेल हो गए। ये ही कारण है कि उपचुनाव नतीजों के बाद जब मंत्रिमंडल फेरबदल के कयास लग रहे थे तब गोविन्द सिंह ठाकुर का मंत्रिमंडल से पत्ता काटने की चर्चा जोरों पर थी। हालांकि तब फेरबदल नहीं हुआ। इससे पहले शहरी निकाय चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन ठीक ठाक ही था। तब कुल्लू नगर परिषद पर कांग्रेस कब्जा करने में कामयाब रही थी। सीएम जयराम ठाकुर बेशक मिशन रिपीट का दावा कर रहे हो लेकिन अकेले जयराम ऐसा नहीं कर सकते। विशेषकर उनके कैबिनेट मंत्रियों को भी अपना जादू और ताकत साबित करनी होगी। जिन मंत्रियों पर इस वक्त सबसे ज्यादा दबाव है उनमें से एक गोविन्द ठाकुर भी है। दरअसल जिला कुल्लू में दशकों तक महेश्वर सिंह भाजपा का मुख्य चेहरा है और खुद को साबित भी करते रहे। पर महेश्वर की भाजपा से दुरी बढ़ी तो पार्टी की कृपा गोविन्द सिंह ठाकुर पर बरसी। उनके पिता की सियासी विरासत ने भी उनकी राह आसान की। अब गोविन्द को खुद को साबित करना होगा।
2008 में परिसीमन बदलने के बाद अस्तित्व में आए इस विधानसभा क्षेत्र में फिलवक्त भाजपा का कब्ज़ा है। बीते चुनाव में यहां से भाजपा सरकार में मंत्री सुखराम चौधरी ने कांग्रेस उम्मीदवार किरनेश जंग को करीब 12 हजार वोटों से हराया था। इससे पहले साल 2012 में किरनेश जंग बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े थे और उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों को पटकनी दी थी। दरअसल 2012 के चुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था व भाजपा प्रत्याशी सुखराम चौधरी को 790 मतों से हराया था। पर इस बार मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पांवटा साहिब में भी भाजपा को आसानी से सत्ता सुख मिलता नहीं दिख रहा। भीतर खाते मंत्री की मुखालफत की झलकियां अभी से दिखने लगी है। पिछले वर्ष हुए निकाय चुनाव में भी भाजपा को मनमाफिक नतीजे नहीं मिले थे। उधर कांग्रेस संभवतः फिर करनेश जंग को मैदान में उतारे। हालांकि कई कांग्रेसी अब आप में गए है जिससे भाजपा जरूर उत्साहित होगी। आप में जाने वाले कांग्रेसियों में से एक युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मनीष ठाकुर भी शामिल है। पच्छाद: कांग्रेस की अंतर्कलह से होगी आस 2019 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने एक युवा महिला नेता को टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप को पच्छाद उपचुनाव में जीत मिली। हालांकि भाजपा से बागी उम्मीदवार दयाल प्यारी भी मैदान में थी, पर यहां भी सुरेश कश्यप ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी काबिलियत सिद्ध की। भाजपा ने दयाल प्यारी को टिकट नहीं दिया और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा व 11698 मत लेकर अपनी ताकत का अहसास भी करवाया। इसके बाद नाराज़ होकर भाजपा की निष्ठावान दयाल प्यारी कांग्रेस में चली गई। लगा जैसे दयाल प्यारी के कांग्रेस में शामिल होते ही सिरमौर के पच्छाद में पिछले तीन चुनाव हार चुकी कांग्रेस को संजीवनी मिल गई। लगने लगा की 2022 में कांग्रेस की उम्मीदवार दयाल प्यारी हो सकती है, मगर वर्तमान परिवेश में ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। दयाल प्यारी को कांग्रेस प्रदेश सचिव नियुक्त करने के बाद से ही गंगूराम मुसाफिर और उनके समर्थक खुल कर विरोध करने लगे थे। परन्तु अब एक बार फिर कमान गंगू राम मुसाफिर के हाथ में जाती हुई दिखाई दे रही है। तीन चुनाव हारने के बावजूद भी जिले में संगठनात्मक मामलों को देखने का निर्देश दिए गए है। सिरमौर की सियासत में एक बार फिर मुसाफिर का उदय होता दिखाई दे रहा है। जानकार मानते है की ये सब होली लॉज की कृपा के कारण संभव हुआ है। अगर ये कृपा बनी रही तो एक बार फिर गंगूराम को ही टिकट मिल सकता है। दरअसल पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में गंगूराम मुसाफिर कांग्रेस का एक अनुभवी चेहरा है। गंगूराम मुसाफिर ने 1982 से लेकर 2007 तक के विधानसभा चुनाव में लगातार सात बार जीत दर्ज की। 1982 में मुसाफिर ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीता, लेकिन 1985 से वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। वह मंत्री के अलावा हिमाचल विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं। पर 2012 के विधानसभा चुनाव में मुसाफिर को भाजपा के सुरेश कश्यप से 2805 वोटों से हार मिली। 2017 में कांग्रेस ने फिर मुसाफिर को मैदान में उतारा लेकिन जनता ने उन्हें फिर नकार दिया। इसके बाद 2019 के उपचुनाव में भी कांग्रेस ने मुसाफिर पर भरोसा जताया लेकिन मुसाफिर जीतने में असफल रहे। अब मुसाफिर और दयाल प्यारी में से किसी एक को चुनना कांग्रेस के सामने असल समस्या है। उधर भाजपा में रीना कश्यप की राह भी आसान नहीं दिख रही। उपचुनाव में आश्वासन के बाद पीछे हटने वाले आशीष सिक्टा का दावा भी इस बार मजबूत है। जानकार मान रहे है कि भाजपा में भी टिकट के लिए जंग तय है।
रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और 2022 के लिए अभी से भाजपा को यहां कड़ी तैयारी करनी होगी। दोनों ही क्षेत्रों में भाजपा के लिए हाटी समुदाय को विशेष दर्जे का मुद्दा भी सरदर्द बनता दिख रहा है। पार्टी में टिकट दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त भी परेशानी बढ़ा सकती है। उधर कांग्रेस में सम्भवतः दोनों ही वर्तमान विधायकों को फिर मौका मिले। इन दोनों ही विधायकों को कांग्रेस न बड़ी ज़िम्मेदारियां सौंपी है। शिलाई से विधायक हर्षवर्धन चौहान को उपनेता प्रतिपक्ष तो रेणुका विधायक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं भाजपा में शिलाई में बलदेव तोमर का टिकट तय माना जा रहा है लेकिन रेणुका जी में पार्टी के लिए उम्मीदवार का चयन सिरदर्द होगा। पिछले चुनाव में पार्टी ने हृदयराम पर बलबीर सिंह को वरीयता दी थी लकिन हृदयराम ने निर्दलीय ताल ठोक पार्टी की हार का बंदोबस्त कर दिया। ऐसे में इस बार भाजपा को फूंक -फूंक कर कदम रखना होगा। बिंदल साइडलाइन, बाकी में वो बात नहीं ! सिरमौर में भाजपा के वर्तमान सियासी आउटलुक की बात करें तो तेजतर्रार नेता और नाहन विधायक डॉ राजीव बिंदल एक किस्म से साइडलाइन है। न सरकार में उन्हें अहमियत दी गई है और न ही संगठन में कोई अहम ज़िम्मेदारी। नगर निगम सोलन और अर्की उपचुनाव का प्रभारी जरूर उन्हें बनाया गया, किन्तु दोनों जगह पार्टी परास्त हुई। उन्हें साइडलाइन रख कई नेताओं की ताकत बढ़ाई गई जिससे समीकरण संतुलित रह सके। पर इसमें कोई संशय नहीं कि बिंदल जैसा जादू अन्य नेता नहीं दिखा पा रहे। तो भाजपा को भुगतना होगा खामियाजा... पिछले दिनों हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में जुटे लोगों ने स्पष्ट कहा कि 2014 में तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नाहन के चौगान मैदान में गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का वादा किया था। तदोपरांत 2019 में तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मंत्री ने हरिपुरधार में इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की बात कही थी। वर्तमान में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप भाजपाई है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी है। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में यदि प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्ज नहीं मिलता है, तो उसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना होगा। दरअसल गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का मसला 144 पंचायतों से सीधे जुड़ा है और इसके दायरे में चार विधानसभा क्षेत्र आते है। शिलाई के अतिरिक्त, श्रीरेणुकाजी, पच्छाद व पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में भी ये मुद्दा निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जाहिर है फिलवक्त भाजपा सत्ता में है तो नाराजगी का कोप भी भाजपा को भुगतना पड़ा सकता है। ऐसे में निसंदेह सत्तारूढ़ भाजपा अब इस मुद्दे पर कोई सार्थक पहल कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका लाभ भी मिलना तय है। नाहन : फिर लगने लगा धरतीपुत्र का नारा 2012 में परिसीमन बदल गए और सोलन निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित हो गया। फिर डॉ राजीव बिंदल ने नाहन को कर्मभूमि बना लिया। नाहन को अपना गढ़ बनाना बिंदल के लिए आसान नहीं था, मगर धीरे =धीरे बिंदल नाहन में अपने पैर जमाने में कामयाब हुए। 2017 में बिंदल ने फिर नाहन से चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन मौजूदा स्थिति में वे भी सहज नहीं दिख रहे है। यहाँ अभी से धरतीपुत्र का नारा बुलंद होता दिख रहा है। साल 2017 में भी डॉ. राजीव बिंदल की घेराबंदी के लिए कांग्रेस ने धरती पुत्र का नारा बुलंद किया था। कांग्रेस लगातार बिंदल को बाहरी बताती रही है। बाहरी फैक्टर चला और कांग्रेस संगठित होकर चुनाव लड़ी, तो बिंदल को भी मुश्किल होती दिख रही है। इसके अलावा सवर्ण आंदोलन फैक्टर भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। उधर कांग्रेस में अजय सोलंकी टिकट के मुख्य दावेदार जरूर है लेकिन अन्य प्रत्याशी भी उनसे पीछे नहीं दिखते। गुटों में बंटी दिख रही कांग्रेस के लिए यहाँ राह आसान नहीं होगी। पार्टी बंटी रही तो एक बार शिकस्त तय है।
रफ्ता -रफ्ता आम आदमी पार्टी प्रदेश में अपनी सियासी जमीन मजबूत करती दिख रही है। संगठन को दोबारा सशक्त करने के बाद आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर से हिमाचल फ़तेह करने को लेकर कदमताल शुरू कर दी है। पार्टी को बीते कुछ वक्त में बड़े झटके जरूर लगे, मगर आप ने अब कमबैक किया है। हालांकि अब भी पार्टी के पास हिमाचल में कोई दमदार चेहरा नहीं दिखता, लेकिन अब पार्टी ने इन्तजार करने की बजाय जो है उसी के साथ हरसंभव प्रयास करने शुरू कर दिए है। मोर्चा खुद अरविन्द केजरीवाल ने संभाला हुआ है। बीते एक पखवाड़े में केजरीवाल हिमाचल के दो दौरे कर चुके है और करीब बीते दो माह में चार। ख़ास बात ये है कि केजरीवाल के हर दौरे में, हर आयोजन में भरपूर भीड़ उमड़ी है और उनके आने से निसंदेह पार्टी में जोश का संचार भी हुआ है।पिछले शनिवार को अरविन्द केजरीवाल और भगवंत मान ने एक बार फिर हिमाचल का रुख किया और हिमाचल की जनता से एक मौका माँगा। इस बार जगह थी कुल्लू, जो हिमाचल के शिक्षा मंत्री गोविन्द ठाकुर का गढ़ है। केजरीवाल ने कुल्लू में शिक्षा को ही प्रमुख मुद्दा बनाया। दिल्ली के शिक्षा मॉडल से हिमाचल की तुलना की और दो टूक कहा "बस एक मौका दे दीजिये अगर हम काम न करें तो लात मार कर बाहर निकाल देना"। इससे पहले आप ने हमीरपुर में एक शिक्षा संवाद का भी आयोजन किया था। इस तरह का चुनाव प्रचार या यूँ कहे मुद्दों पर चुनाव लड़ना हिमाचल में नई और सुखद पहल है और निसंदेह देर सवेरे आप को इसका लाभ भी मिल सकता है। हालांकि आगामी चुनाव में आप से किसी चमत्कार की उम्मीद बेमानी होगी लेकिन आप बाकी दोनों पार्टियों का खेल जरूर बिगाड़ सकती है। नेताओं की जेब में गया है पैसा : केजरीवाल अरविंद केजरीवाल लगातार कह रहे है कि वो हिमाचल में भी भ्रष्टाचार खत्म करने आए है। केजरीवाल सरकार से कई सवाल कर रहे है। वो पूछ रहे है कि हिमाचल का कई हज़ार करोड़ का बजट है, तो फिर वो पैसा कहाँ जा रहा है ? प्रदेश आर्थिक संकटों से क्यों जूझ रहा है। केजरीवाल का कहना है कि भाजपा सरकार कुछ भी नया नहीं बना रही। न तो स्कूल नए बन रहे है, न सड़कें और न अस्पताल, तो पैसा कहां जा रहा है ? वो आरोप लगा रहे है की ये सब पैसा इन नेताओं की जेब में गया है। एक बार कांग्रेस वालो की जेब में जाता है, एक बार बीजेपी वालो की जेब में। केजरीवाल अपने नेताओं की ईमानदारी के कसीदे पढ़ने से भी पीछे नहीं हट रहे। भ्रष्टाचार , शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर आम आदमी पार्टी आगे बढ़ रही है। किसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी आप, अभी कहना जल्दबाजी माहिरों का मानना है कि आम आदमी पार्टी हमेशा कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। दिल्ली और पंजाब में आप ने कांग्रेस से सत्ता छीनी। पर ये कहना जल्दबाजी होगा कि आगामी चुनाव में आप ज्यादा नुक्सान कांग्रेस को ही पहुंचाएगी। दरअसल प्रदेश में कई जगह भाजपा के नेता आप में शामिल हुए है और अब भी कतार में कई नेता बताये जा रहे है। मसलन कसौली में हरमेल धीमान ने आप का दामन थाम स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल के समीकरण बिगाड़ दिए है। जानकार मान रहे है कि टिकट आवंटन के बाद भाजपा - कांग्रेस दोनों तरफ अंसतोष तय लग रहा है और माना जा रहा है तब दोनों तरफ से कई नेता आप में जा सकते है। सो जो पार्टी अपने कुनबे को न संभाल पाई, उसका नुकसान ज्यादा होगा।
हर पांच वर्ष में सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज को बदलने की कवायद में भाजपा हर वो कोशिश कर रही है जो संभव हो। साम -दाम -दंड -भेद ,सभी का इस्तेमाल कर भाजपा मिशन रिपीट के पथ पर अग्रसर है और रास्ते में आने वाली हर अड़चन को किनारे किया जा रहा है। कुछ मसले आपसी सूझबुझ से हल किये जा रहे है, तो कुछ केंद्र की सहायता से। विपक्ष द्वारा उठाए गए हर मुद्दे को जयराम एक के बाद एक उखाड़ फेंक रहे है, मगर साधन संसाधन से सुसज्जित भाजपा के विजय रथ के आगे अब भी कुछ ऐसी अड़चने है जिन्हें पार कर पाना फिलवक्त संभव नहीं लगता। इनमें सबसे अहम मसले कर्मचारियों से जुड़े हुए है, तो कुछ अन्य वर्गों के बड़े मुद्दे है। आपको अवगत करवाते है ऐसे सात मुद्दों से जिनके चक्रव्यूह में फिलहाल जयराम सरकार का मिशन रिपीट फंसता दिख रहा है। पुरानी पेंशन बहाली सर्वविदित है कि हिमाचल की सियासत में कर्मचारी फैक्टर बेहद महत्वपूर्ण है। किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले यहां जनसँख्या के हिसाब से कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा है। कहते है कर्मचारी जिससे खफा उसकी सत्ता से विदाई तय समझो। ये ही कारण है कि पिछले कुछ समय में प्रदेश की जयराम सरकार ने कर्मचारियों को लेकर बड़ा दिल दिखाया है। कर्मचारियों की कई महत्वपूर्ण मांगे पूरी की गई है। मगर कर्मचारी इस सरकार से पूरी तरह संतुष्ट है, ये कहा नहीं जा सकता। प्रदेश के अधिकतर कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला, पुरानी पेंशन की बहाली अब तक अधूरा है। पुरानी पेंशन बहाली प्रदेश के हजारों कर्मचारियों का अहम मुद्द्दा है। कांग्रेस शासित दोनों राज्यों, राजस्थान और छतीसगढ़ में पुरानी पेंशन बहाल हो चुकी है और हिमाचल में कांग्रेस खुलकर इसे बहाल करने का वादा कर रही है। वहीं भाजपा इस मुद्दे से बचती दिख रही है लेकिन कर्मचारी भाजपा को छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहे है। लगातार प्रदर्शन हो रहे है और भाजपा खामोश है। ये मुद्दा भाजपा के मिशन रिपीट में सबसे बड़ी बाधा साबित हो सकता है। लगातार बढ़ता कर्ज भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश की अथिक स्थिति खराब होती नज़र आई है। प्रदेश सरकार पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। हिमाचल में प्रति व्यक्ति आय 7121 रुपये घट गई है। इसका खुलासा हिमाचल की आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हुआ है। हालाँकि अब हिमाचल प्रदेश की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 8.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। कोविड-19 महामारी से प्रभावित वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य की आर्थिक वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत थी। हिमाचल पर इस वक्त करीब 63400 करोड़ का कर्ज है मगर सरकार को केंद्र से अब तक कोई सहायता नहीं मिल पाई है। विपक्ष लगातार जयराम सरकार को प्रदेश को कर्ज में डुबाने वाली सरकार करार दे रहा है। वहीं अब तक जयराम सरकार केंद्र से भी कोई विशेष पैकेज लाने में कामयाब नहीं हुई है। ऐसे में बढ़ते कर्ज के बीच चुनावी वर्ष में केंद्र से क्या राहत मिलती है, ये देखना रोचक होगा। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नीति की दरकार हिमाचल प्रदेश के करीब 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश सरकार उनके लिए कोई सशक्त नीति बनाएगी। प्रदेश के अधिकांश सरकारी विभागों में आउटसोर्स कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इनके लिए आज तक सरकार ने कोई नीति का प्रावधान नहीं किया है। इन कर्मचारियों को बजट से काफी उम्मीदें थी, पर इनके हाथ खाली रहे। आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याएं हल करने के लिए कैबिनेट सब कमेटी भी बनाई गई है जिसके अध्यक्ष जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर है। बजट से पहले इस सब कमेटी की बैठक हुई थी जिसमें कर्मचारियों को ये आश्वासन मिला था की उनके लिए बजट में पॉलिसी का प्रावधान किया जाएगा। आउटसोर्स कर्मचारी काफी हद तक आश्वस्त थे की जैसा कहा गया है वैसा ही होगा। परन्तु इस बजट से प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों को निराशा ही मिली। अब माना जा रहा है कि सरकार जल्द आउटसोर्स नीति पर मुहर लगा सकती है। एचआरटीसी को रोडवेज बनाने की मांग वर्तमान परिवेश में हिमाचल की सरकारी परिवहन व्यवस्था कॉर्पोरेशन के रूप में कार्य कर रही है। आसान शब्दों में कहे तो खुद कमाओ खुद खाओ वाली स्थिति इस वक्त एचआरटीसी में है। हालाँकि लगातार घाटे में होने के चलते समय -समय पर सरकार की ओर से कुछ सहायता एचआरटीसी के संचालन के लिए मिलती रही है। इसके बावजूद भी एचआरटीसी के कर्मचारियों को वेतन ओर पेंशन से जुड़ी समस्याओं का अक्सर सामना करना पड़ता है। जो सुविधाएं सरकारी कर्मचारियों को मिलती है वो एचआरटीसी के कर्मचरियों को मिलती ज़रूर है, मगर कभी भी समय पर नहीं मिलती। इसीलिए ये कर्मचारी चाहते है की एचआरटीसी को रोडवेज बना दिया जाए ताकि जो भी लाभ सरकार अपने कर्मचारियों को देगी वो सभी इन्हें भी मिल पाएंगे। जिस तरह बीते दिनों शिमला की सडकों पर बुजुर्ग रिटायर्ड एचआरटीसी कर्मचारी उतरे है, उससे साफ जाहिर है कि ये तबका सरकार से नाखुश है। जनजातीय दर्जे की आस में हाटी समुदाय हाटी क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने की दिशा में सरकार ने एक सकरात्मक कदम जरूर उठाया है, पर यदि चुनाव से पहले सरकार इसे अमलीजामा नहीं पहना पाती तो ये कदम उलटा भी पड़ सकता है। दरअसल प्रदेश और केंद्र दोनों में इस वक्त भाजपा की सरकार है, ऐसे में सरकार के पास कोई बहाना नहीं है। यदि ये मांग पूरी नहीं होती है तो आश्वासन के सहारे भाजपा इन क्षेत्रों में बेहतर कर पाएगी, ये मुश्किल लगता है। जिला सिरमौर की पांच में से चार सीटों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। जिस तरह से कुछ माह पूर्व हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में नेताओं को घंटो खड़ा रखा गया, उससे साफ़ जाहिर है कि अब ये समुदाय आश्वासन नहीं एक्शन चाहता है। महाखुमली में हाटी समुदाय ने ये याद दिलाने से भी गुरेज नहीं किया था कि हाटियों का खूब नरम भी है और गरम भी। समुदाय के 'हक़ नहीं तो वोट नहीं' का उद्घोष ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा दी है। महंगी पड़ सकती है बागवानों की नाराजगी हिमाचल की करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की सेब की आर्थिकी के लिए ईरान और तुर्की का सेब चुनौती बन गया है। बाजार में ईरान का सेब हिमाचली सेब को पछाड़ रहा है। बागवानों के अनुसार भारत में अफगानिस्तान के रास्ते ईरान और तुर्की से सेब का अनियंत्रित और अनियमित आयात हो रहा है, जो कि बागवानों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। ऐसे में बागवान ईरान और तुर्की से सेब आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे है। सेब की इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की मांग भी वर्षों से लंबित है। साथ ही बागवानों का मानना है कि हिमाचल में भी कश्मीर की तरह नैफेड जैसी कोई केंद्रीय संस्था बागवानों का सेब खरीदें। इसके अलावा कार्टन में इस्तेमाल होने वाले एग्रो वेस्ट पेपर पर लगने वाले जीएसटी को कम करने की मांग भी उठ रही है। पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट के वादे भी सरकार की फाइल से आगे नहीं बढ़ पाए है। वहीँ जिला सोलन और सिरमौर के किसान भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट को लेकर सरकार से खफा है। नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने का वादा भाजपा ने अपने 2017 के घोषणा पत्र में किया था। भाजपा सरकार तो बनी लेकिन सरकार इस वादे को भूल गई। हजारों कर्मचारियों में इस बात को लेकर टीस है। हालात ये है कि इसके चलते कई सीनियर कर्मचारी जूनियर हो चुके है और जूनियर सीनियर। जाहिर है ये मुद्दा कर्मचारियों के स्वाभिमान से जुड़ा भी है। इसे लेकर अगर जयराम सरकार जल्द कोई निर्णायक फैसला नहीं लेती है तो इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा सकता है। वहीँ कांग्रेस का रुख भी इस मुद्दे को लेकर साफ़ नहीं है।
-21 दिन की पैरोल के दौरान दी गई थी जेड प्लस सिक्योरिटी -जानिए राम रहीम को क्यों हुई थी सजा ? डेरा सच्चा सौदा के संचालक राम रहीम पर हरियाणा सरकार एक बार फिर मेहरबान हुई है। राम रहीम को एक महीने की पैरोल दी गई है, इससे पहले फरवरी के पहले सप्ताह में गुरमीत राम रहीम को 21 दिन की पैरोल दी गई थी, बता दें कि अपने आश्रम में दो महिला अनुयायियों से बलात्कार के मामले में गुरमीत राम रहीम उम्रकैद की सजा काट रहा है। डेरा सच्चा सौदा के संचालक राम रहीम पर हरियाणा सरकार एक बार फिर मेहरबान हुई है. राम रहीम को एक महीने की पैरोल दी गई है, शुक्रवार सुबह करीब साढ़े पांच बजे सुरक्षा के बीच राम रहीम जेल से बाहर आया। सूत्रों के मुताबिक, जेल से बाहर आने के बाद राम रहीम बागपत स्थित अपने आश्रम में गया है, बता दें कि दो साध्वियों के साथ रेप और दो हत्याओं का दोषी राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहा है। इससे पहले इसी साल 7 फरवरी को गुरमीत राम रहीम को 21 दिन की पैरोल दी गई थी, 28 फरवरी को पैरोल अवधि समाप्त होने के बाद राम रहीम को सुनारिया जेल लाया गया था। पिछले साल भी डेरा प्रमुख को अपनी बीमार माँ से मिलने के लिए सुबह से शाम तक का आपातकालीन पेरोल दी गयी थी। फरवरी में राम रहीम की 21 दिन की पैरोल मंजूर की थी, इस दौरान सरकार ने राम रहीम की जान का खतरा बताते हुए उन्हें जेड प्लस की सुरक्षा भी मुहैया करवाई थी, फरलो के दौरान राम रहीम ज्यादातर समय अपने गुरुग्राम स्थित आश्रम में ही रहा था। सरकार ने सुरक्षा का आधार एडीजीपी की रिपोर्ट को बनाया था, सरकार ने कहा था कि खालिस्तान समर्थक डेरा प्रमुख को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए उन्हें सख्त सिक्योरिटी दी जा रही है। राम रहीम सिरसा स्थित अपने आश्रम में दो महिला अनुयायियों से बलात्कार के मामले में 20 साल की कैद की सजा काट रहा है, राम रहीम को पंचकूला की एक विशेष सीबीआई अदालत ने अगस्त 2017 में मामले में दोषी करार दिया था, इसके अलावा गुरमीत राम रहीम को पूर्व डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के मामले में भी कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में इस विधानसभा क्षेत्र की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस विधानसभा क्षेत्र के विधायक को गुरुजी के नाम से जाना जाता रहा है। एक शिक्षक ने लंबे समय तक इस विधानसभा क्षेत्र की सेवा की जिसका मेवा भाजपा को मिला। अध्यापन से राजनीति में आए ईश्वर दास धीमान यहां से लगातार छह बार विधायक रहे और दो बार प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी रहे। बेशक वर्ष 2008 में विधानसभा पुनसीमांकन के बाद इस विधानसभा क्षेत्र का नाम भोरंज हो गया, लेकिन भाजपा का सिक्का यहां चलता रहा। ईश्वर दास धीमान की मृत्यु के बाद उनके बेटे डॉ अनिल धीमान को उपचुनाव में पार्टी का चेहरा बनाया तो लगा कि बेटे को बाप की राजनीतिक विरासत सौंप दी गई है और अगली राजनीतिक पारी डॉ अनिल धीमान खेलेंगे। बेशक डॉ अनिल धीमान ने कांग्रेस सरकार के रहते हुए उपचुनाव जीतकर भाजपा की जीत की परंपरा को आगे बढ़ाया लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में विधायक होते हुए भी उनका टिकट काटकर भाजपा ने कमलेश कुमारी को दे दिया। भाजपा ने कमलेश कुमारी को उप मुख्य सचेतक बनाकर उनकी राहें मजबूत करने की कोशिश की लेकिन दूसरी ओर डॉक्टर अनिल धीमान और उनके समर्थक खोई हुई राजनीतिक जमीन को पाने के लिए मैदान में डटे रहे। अब जबकि हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव को महज 6 महीने से भी कम का समय बचा है डॉ अनिल धीमान ने सार्वजनिक मंच से यह घोषणा कर दी है कि अगर भाजपा ने उनको टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय मैदान में उतरेंगे। डॉ अनिल धीमान के यह बगावती तेवर भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं। धीमान परिवार का इस विधानसभा क्षेत्र में कई दशकों से गहरा प्रभाव रहा है और इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर डॉक्टर अनिल धीमान निर्दलीय मैदान में उतरते हैं तो वह भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि आम आदमी पार्टी भी डॉक्टर धीमान के लिए एक विकल्प हो सकती है। पिछले चुनाव में कट चुका है सिटिंग विधायक का टिकट कभी मेवा विस क्षेत्र के नाम से मशहूर रही भोरंज सीट भाजपा के लिए सच में मेवा ही रही है। इस सीट से मिली ताकत का असर बमसन, नादौन और हमीरपुर सीटों पर दिखता था। जब तक आईडी धीमान जीवित रहे भोरंज में भाजपा के लिए सब ठीक था। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे अनिल धीमान को उपचुनावों में टिकट मिला और कांग्रेस सरकार होते हुए भी वह सीट निकाल गए। 2017 क़े चुनाव में भाजपा ने सिटिंग एमएलए डॉक्टर धीमान का टिकट काटकर कमलेश कुमारी को दे दिया। डॉक्टर धीमान हाशिए पर चले गए लेकिन उनके साथ जुड़े समर्थक सक्रिय रहे। भोरंज में स्थिति यह है कि डॉक्टर धीमान भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार हैं और टिकट न मिलने पर समर्थकों के दबाव में आजाद चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं।
मोदी-मोदी नाम की माला जप-जप कर भाजपा प्रदेश में चुनावी भवसागर पार करने का पूरा प्रयास कर रही है। माना जा रहा है कि जयराम के सियासी रथ का सारथी बन मोदी ही इस रणभूमि में भाजपा का बेडा पार कर सकते है। इसीलिए प्रदेश में एक के बाद एक दौरे कर प्रधानमंत्री कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे है। यूँ तो कई अन्य बड़े नेता भी हिमाचल के दौरों पर आ रहे है पर मोदी मैजिक के आगे सब फीका सा लग रहा है। धर्मशाला से रोड शो के जरिये भी प्रदेश के भाजपा कार्यकर्ताओं को मोदी चार्ज कर गए है। महज एक किलोमीटर और 15 मिनट के छोटे से रोड शो से भी पीएम मोदी बड़ा इम्पैक्ट डालने की कोशिश कामयाब रही। हजारों की संख्या में भाजपा कार्यकर्ता पीएम मोदी के रोड शो का हिस्सा बनने पहुंचे और जिस तरह की नारेबाजी हुई उससे जाहिर है कि भाजपा का जोश अब हाई है। निसंदेह पीएम मोदी के आगमन से भाजपा कांगड़ा में माहौल बनाने में कामयाब रही है। बीते एक पखवाड़े में ये पीएम मोदी का दूसरा हिमाचल दौरा था और लगभग बीते तीन माह में ये तीसरा मौका है जब पीएम मोदी हिमाचल आएं है। उपचुनाव में क्लीन स्वीप के बाद प्रदेश में भाजपा का जोश ठंडा था और तब 10 मार्च के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले में बड़ी रैली करके हतोत्साहित कार्यकर्ताओं को जोश से लबरेज कर दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार के आठ साल का उत्सव मानने के लिए भी शिमला को चुना गया और बीती 31 तारीख को पीएम मोदी की शिमला में शानदार जनसभा आयोजित हुई। अब मुख्य सचिवों के दो दिवसीय सम्मेलन में शामिल होने धर्मशाला पहुंचे पीएम मोदी ने रोड शो कर फिर से कार्यकर्ताओं में जोश भर गए। चुनाव से पहले कई बार आएंगे पीएम हिमाचल में सत्ता कब्जाने के लिए 15 सीटों वाला कांगड़ा सबसे अहम जिला है। 2017 में यहां भाजपा ने 11 सीटें जीती थी और मिशन रिपीट भी इसी कांगड़ा के प्रदर्शन पर काफी हद तक निर्भर है। ऐसे में पीएम मोदी के कांगड़ा दौर और रोड शो के विशेष मायने है। बहरहाल विधानसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी के कांगड़ा और निचले हिमाचल में कई दौरे होने तय है। जल्द ही प्रधानमंत्री बिलासपुर एम्स का उद्घाटन करने भी आ सकते है। वहीँ मुख्यमंत्री ने उनके चंबा दौरे पर आने की बात भी कही है। सबसे बड़े ब्रांड है पीएम मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ भाजपा बल्कि पुरे देश के सबसे बड़े राजनैतिक ब्रांड है। ब्रांड मोदी का असर देश बीते एक दशक से लगातार देखता आ रहा है। ये ही कारण है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज़ को तोड़ने के लिए भाजपा अपने सबसे दमदार चेहरे को आगे रख रही है। मिशन रिपीट में जुटी भाजपा के लिए खुद प्रधानमंत्री अभी से मोर्चा संभाले हुए दिख रहे है।
कहीं बदलते समीकरण, तो कहीं बदलती निष्ठाएं। कहीं अंतर्कलह, कहीं हावी निजी महत्वकांक्षाएं। कमोबेश जिला सोलन की पांचों विधानसभा सीटों का ये ही सूरत - ए- हाल है। सत्ता में होने के बावजूद भाजपाई जोश फीका है तो विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस में धार नहीं दिख रही। वहीं आम आदमी पार्टी कोशिश तो कर रही है पर कुछ ज्यादा फर्क पड़ा हो, ऐसा नहीं लगता। अलबत्ता, जिला कांगड़ा और मंडी के बराबर न सही, लेकिन सोलन का सियासी वजन इतना जरूर है कि विधानसभा चुनाव में ये जिला मिशन रिपीट या डिलीट के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वर्तमान में सोलन जिला की पांच सीटों में से तीन पर कांग्रेस काबिज है और दो पर भाजपा का कब्ज़ा है। सोलन, अर्की और नालागढ़ में कांग्रेस तथा कसौली और दून निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के विधायक है। जिला सोलन में जयराम राज में भाजपा का प्रदर्शन फीका रहा है। सोलन नगर निगम चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इसके पहले परवाणु नगर परिषद् चुनाव में भाजपा हारी तो बद्दी और नालागढ़ में नतीजों के बाद जोड़ -तोड़ से पार्टी के अध्यक्ष बने। नगर पंचायत अर्की चुनाव भी पार्टी हारी, हालांकि कंडाघाट नगर पंचायत चुनाव भाजपा जीती। वहीँ इसके बाद हुए अर्की उपचुनाव में भी पार्टी को शिकस्त मिली। जिला सोलन में दोनों ही पार्टियों के संगठन को लेकर भी सवाल उठते रहे है। कांग्रेस संगठन की अगुवाई शिव कुमार कर रहे है, तो भाजपा की आशुतोष वैद्य। बतौर जिला अध्यक्ष दोनों ही नेता अब तक छाप छोड़ने में कामयाब नहीं दिखे है। कांग्रेस जिला अध्यक्ष के तो गृह बूथ पर भी कांग्रेस बेहतर करती नहीं दिखी है। अमूमन पुरे कांग्रेस संगठन का हाल ही ऐसा दिखा है लेकिन जिला अध्यक्ष को लेकर अक्सर पार्टी के भीतर भी सवाल उठे है। विशेषकर जिला मुख्यालय सोलन में ब्लॉक और शहरी कांग्रेस के साथ उनका तालमेल नहीं दिखता। माना जा रहा था कि प्रदेश में हुए बदलाव के बाद कांग्रेस संगठन को धार देने के लिए जिला स्तर पर बदलाव करेगी, किन्तु अब तक ऐसा नहीं हुआ है। वहीं आशुतोष तो लेकर भाजपा संगठन में स्वीकार्यता की कमी उजागर होती है। जानकार मानते है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं -कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन कर सके, ऐसी झलक आशुतोष में नहीं दिखती। नालागढ़ : संभवतः राणा और ठाकुर में होगा मुकाबला, दोनों तरफ अंतर्कलह न कोई कम, न कोई ज्यादा। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का हाल कुछ ऐसा ही है। कांग्रेस-भाजपा दोनों यहाँ बराबर है और इस पर अब आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सियासत में उबाल ला दिया है। अलबत्ता अभी विधानसभा चुनाव में करीब 6 माह का वक्त है लेकिन आधा दर्जन से ज़्यादा भावी उम्मीदवार मैदान में उतर चुके है। कांग्रेस से वर्तमान विधायक लखविंदर राणा मोर्चा संभाले हुए है तो भाजपा से पूर्व विधायक के एल ठाकुर भी ताव में है। जबकि नए नवेले आम आदमी हुए पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष धर्मपाल चौहान दोनों के अरमानों पर झाड़ू फेरने की ताक में है। हालांकि धर्मपाल अभी तक तो मानो औपचारिकता पूरी करते ही दिख रहे है। भाजपा की वर्तमान स्थिति की बात करें तो पिछली बार खेल खराब करने वाले हरप्रीत सैनी का इरादा इस बार भी मैदान में उतरने का लग रहा है। भाजपा के जिला अध्यक्ष आशुतोष वैद्य का नाम भी चर्चा में है। पर दावा के एल ठाकुर का ही मजबूत है। उधर कांग्रेस से लखविंद्र राणा के अलावा एक और चेहरा है जिस पर निगाहें टिकी है, वो है बावा हरदीप सिंह। बावा पिछले चुनाव में कांग्रेस के बागी थे और पार्टी में वापसी के बाद इस बार भी टिकट के लिए दावा ठोक रहे है। दिलचस्प बात ये है कि राणा सुखविंद्र सिंह सुक्खू के ज़्यादा करीबी है तो बावा होलीलॉज कैंप से आते है। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र के अतीत में झांके तो भाजपा से हरि नारायण सिंह सैनी ने लगातार तीन बार कमल खिलाया था। वे वर्ष 1998, 2003 व 2007 में विधायक रहे। उनके निधन के बाद 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के लखविंद्र सिंह राणा ने बाज़ी मारी। पर एक ही साल में जनता का राणा से मोह भंग हो गया और 2012 के विधानसभा चुनाव में राणा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। वहीं भाजपा उम्मीदवार के एल ठाकुर पहली बार विधायक बने। 2017 के चुनाव की बात करें तो नालागढ़ से एक बार फिर लखविंदर सिंह राणा और के एल ठाकुर आमने -सामने थे। हालांकि यहाँ राणा ने बाज़ी मारी किन्तु बेहद रोचक मुकाबला देखने को मिला। कांग्रेस का टिकट न मिलने पर बाबा हरदीप सिंह ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और साढ़े सात हज़ार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा के बागी हरप्रीत सैनी ने करीब दो हज़ार वोट हासिल कर ठाकुर का खेल खराब कर दिया था। वर्तमान में लखविंदर सिंह राणा ही नालागढ़ कांग्रेस का मुख्य चेहरा है। राणा इस सीट से पांच चुनाव लड़ चुके है। उन्होंने पहली बार वर्ष 2003 में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद हुए तीन विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें ही टिकट दिया है जिसमें से दो बार उन्हें जीत मिली है। कसौली : क्या हरमेल फैक्टर का इलाज निकाल पाएंगे डॉक्टर ! कसौली निर्वाचन क्षेत्र में एक तरफ मिस्टर क्लीन इमेज वाले वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल के साथ भाजपा की पूरी टीम जीत का चौका लगाने के लिए मैदान में है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस जीत का सूखा खत्म करने की फिराक में। और इन दोनों का खेल बिगाड़ने की जुगत में मैदान में आम आदमी पार्टी की एंट्री भी हो चुकी है। कसौली निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में से है जो हमेशा आरक्षित रहे है। ऐसे में इस क्षेत्र के कई कद्दावर नेताओं की विधायक - मंत्री बनने की हसरत कभी पूरी नहीं हुई। कुछ की उम्र संगठन की सेवा में बीत गई, तो कुछ को सत्ता सुख के नाम पर बोर्ड - निगमों में एडजस्ट कर दिया गया। ऐसा भी माना जाता है कि सामान्य वर्ग से आने वाले कई नेताओं ने कई मौकों पर अपनी पार्टी प्रत्याशी की राह में ही कांटे डाले ताकि उनकी कुव्वत बनी रहे। कसौली निर्वाचन क्षेत्र लम्बे अरसे तक कांग्रेस का गढ़ रहा। 1982 से 2003 तक हुए 6 विधानसभा चुनावों में से पांच कांग्रेस ने जीते और पांचों बार प्रत्याशी थे रघुराज। सिर्फ 1990 की शांता लहर में एक मौका ऐसा आया जब रघुराज भाजपा के सत्यपाल कम्बोज से चुनाव हारे। 2003 में प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार बनी और वीरभद्र सरकार में रघुराज मंत्री बने। मंत्री बनने के बाद कसौली के लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ी और शायद इसी का खामियाजा रघुराज को 2007 में उठाना पड़ा, जब वे चुनाव हार गए। तब जमीनी स्तर पर रघुराज के खिलाफ नाराज़गी दिखी थी। उन्हें हराने वाले थे भाजपा के डॉ राजीव सैजल। 36 साल के सैजल का ये पहला चुनाव था, पर कसौली की जनता ने रघुराज पर युवा सैजल को वरीयता दी और वे चुनाव जीत गए। तब पहला चुनाव जीतने वाले सैजल वर्तमान में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री है। अब तक सैजल जीत की हैट्रिक लगा चुके है और अब जीत का चौका लगाने की तैयारी में है। हालांकि उनकी राह ज़रा भी आसान नहीं दिख रही। इसमें कोई संशय नहीं है कि मामूली अंतर से बीते दो चुनाव जीतने वाले सैजल को इस बार भी एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ेगा। भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने के पीछे हरमेल धीमान का भी बड़ा हाथ है। बीते दिनों कसौली भाजपा के वरिष्ठ नेता व भाजपा एससी मोर्चा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष हरमेल धीमान ने भाजपा छोड़ आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। वह पिछले चुनाव के दौरान टिकट की मांग कर रहे थे लेकिन टिकट राजीव सैजल को ही मिला। पिछली बार भी पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के मनाने पर उन्होंने डॉक्टर राजीव सैजल के लिए चुनाव में काम किया था । हरमेल धीमान खुद तो आप में गए ही लेकिन साथ ही वे भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष देवराज ठाकुर व मंडल के पूर्व उपाध्यक्ष व जिला परिषद सदस्य जगदीश पंवर समेत अन्य समर्थकों को भी आम आदमी पार्टी में ले गए। ज़ाहिर है इन निष्ठावान सिपाहियों की निष्ठा में परिवर्तन का नुक्सान भाजपा को भारी पड़ सकता है। वहीं लगातार तीन चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के लिए ये चुनाव काफी महत्वपूर्ण है और शायद यही कारण है कि विनोद सुल्तानपुरी अभी से प्रो एक्टिव दिख रहे है। सुल्तानपुरी बीते एक साल से जनता के बीच है भी और उनकी सुन भी रहे है। अगर परवाणु को छोड़ दिया जाए तो बीते साढ़े तीन साल में कांग्रेस हर जगह बैकफुट पर दिखी है। जाहिर है पिछले दो चुनाव में मामूली अंतर से हारने वाले सुल्तानपुरी इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। माना जाता है कि कांग्रेस का भीतरघात पिछले चुनावों में उन पर भारी पड़ा, पर अब सुल्तानपुरी सक्रिय भी है और निरंतर लोगों के बीच भी। वहीं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि पार्टी अब पूरी तरह एकजुट हो लेकिन कांग्रेस में विनोद सुल्तानपुरी विरोधी खेमे का दमखम अब पहले से कुछ कम जरूर दिखता है। ये सुल्तानपुरी के लिए राहत की बात जरूर होगी। यहाँ ये बताना भी जरूरी है कि टिकट दावेदारों में भी विनोद सुल्तानपुरी के समकक्ष कोई मजबूत दावेदार नहीं दिखता। सोलन : कांग्रेस में कर्नल, तो भाजपा में कोई सर्वमान्य नेता नहीं ! सोलन निर्वाचन क्षेत्र में वर्ष 2000 में उपचुनाव हुआ था। तब अप्रत्याशित तौर पर पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत का टिकट काट कर भाजपा ने डॉ राजीव बिंदल को टिकट दिया था, और पहली बार बिंदल विधायक बने थे। इसके बाद डॉ बिंदल ने 2003 और 2007 में भी जीत दर्ज की। 2007 से 2012 तक बिंदल मंत्री भी रहे और सोलन की राजनीति में उनका खूब डंका बजा। किन्तु धूमल सरकार के जाते -जाते भ्रष्टाचार के आरोप के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 2012 में सोलन सीट आरक्षित हो गई तो डॉ राजीव बिंदल नाहन चले गए। इसके बाद से सोलन में भाजपा का कोई चेहरा स्थापित नहीं हो पाया। सोलन भाजपा की राजनीति में बिंदल की दखल और असर दोनों दिखते रहे। 2012 में कुमारी शीला को टिकट दिलवाना और 2017 में शीला का टिकट कटवाकर डॉ राजेश कश्यप की एंट्री करवाना भी बिंदल के असर का ही परिणाम समझा जाता रहा है। पर माना जाता है कि 2017 के चुनाव में डॉ बिंदल के कुछ निष्ठावानों ने डॉ राजेश कश्यप का साथ नहीं दिया, सो चुनाव में हार के बाद डॉ राजेश कश्यप महेंद्र नाथ सोफत के साथ हो लिए। इस बीच जब डॉ राजीव बिंदल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने तो डॉ राजेश कश्यप फिर साइडलाइन होने लगे लेकिन बिंदल को स्वास्थ्य घोटाले के चलते इस्तीफा देना पड़ा और इसके बाद नगर निगम चुनाव में भी उनका जादू नहीं चला, तो अब उनका दखल सोलन में शायद न दिखे। वहीं इस वक्त टिकट को लेकर भाजपा में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। बेशक डॉ राजेश कश्यप प्रो एक्टिव दिख रहे हो लेकिन दावेदारों की फेहरिस्त में तरसेम भारती और कुमारी शीला के साथ -साथ पूर्व सांसद और डॉ कश्यप के बड़े भाई प्रो. वीरेंदर कश्यप का नाम भी है। वीरेंदर कश्यप दो बार सांसद रहे है और पार्टी के आदेश पर चुनाव लड़ने की बात भी कह चुके है। ऐसे में जानकार मानते है कि डॉ राजेश के विरोधी भी प्रो. वीरेंदर कश्यप के नाम को आगे बढ़ा सकते है। कांग्रेस की बात करें तो 2012 में पहली बार कर्नल धनीराम शांडिल ने विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। शांडिल चुनाव जीतते ही कैबिनेट मंत्री बन गए। 2017 के चुनाव में शांडिल दूसरी बार विधायक बने। कर्नल शांडिल का कोई विकल्प फिलहाल कांग्रेस के पास नहीं दिख रहा। हालांकि वीरभद्र गुट को शांडिल ख़ास रास नहीं आते। जनवरी में हुए जिला परिषद चुनाव और अप्रैल में हुए नगर निगम चुनाव में भी टिकट वितरण को लेकर ये खींचतान स्पष्ट देखने को मिली। बावजूद इसके शांडिल ही सोलन में कांग्रेस का प्राइम फेस है। दरअसल, शांडिल की ताकत ये है कि वे गुटबाजी से हमेशा फासला रखते है। हालांकि कर्नल विरोधी मेयर पूनम ग्रोवर का नाम भी आगे कर रहे है लेकिन ये मात्र हवाई कयास ही लग रहे है। ग्राउंड रियलिटी की बात करें तो कर्नल ही एकमात्र ऐसा चेहरा है। दून विधानसभा : कांग्रेस के राम तो भाजपा में टिकट को कोहराम ! बीते तीन दशक में दून निर्वाचन हलके की राजनीति बेहद दिलचस्प रही है। 1990 की शांता लहर में जनता दल के टिकट पर चौधरी लज्जा राम विधायक चुन कर आये थे। पर 1993 आते -आते चौधरी लज्जा राम ने पार्टी बदल ली और कांग्रेस का हाथ थाम लिया। इसके बाद 1993, 1998 और 2003 के विधानसभा चुनाव में चौधरी लज्जा राम यहाँ से विधायक रहे। पर 2007 के चुनाव में उन्हें भाजपा की विनोद चंदेल ने परास्त कर पहली बार कमल खिलाया। फिर आया 2012 का बेहद रोचक चुनाव। कांग्रेस ने चौधरी लज्जा राम के पुत्र राम कुमार को मैदान में उतारा, तो वहीँ भाजपा ने विनोद चंदेल को ही टिकट थमाया। इस मुकाबले में विजय राम कुमार चौधरी की हुई, पर दिलचस्प बात ये रही कि भाजपा चौथे पायदान पर रही। दरअसल, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों से बागी उम्मीदवार भी मैदान में थे। भाजपा के बागी दर्शन सिंह जहाँ 11 हज़ार से अधिक वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे, तो कांग्रेस के बागी परमजीत सिंह पम्मी भी 10 हज़ार से ज्यादा वोट ले गए और तीसरे स्थान पर रहे। इस बीच ज्योति हत्याकांड में विधायक राम कुमार चौधरी का नाम खूब उछला। उधर राम कुमार के रहते परमजीत सिंह पम्मी को कांग्रेस में भविष्य नहीं दिख रहा था। सो पम्मी ने भाजपा का दामन थाम लिया। जैसा अपेक्षित था 2017 में भाजपा ने पम्मी को मैदान में उतारा और कांग्रेस से एक बार फिर राम कुमार चौधरी मैदान में थे। इस मुकाबले में पम्मी ने जीत दर्ज की। अब फिर दून की सियासत गरमाई हुई है। जैसे - तैसे जोड़ -तोड़ कर भाजपा ने स्थानीय निकाय पर बेशक कब्ज़ा कर लिया हो लेकिन कांग्रेस भी यहाँ कमजोर नहीं दिखती। राम कुमार चौधरी पूरी तरह सक्रीय भी है और कांग्रेस का प्राइम फेस भी। उधर भाजपा में परमजीत सिंह पम्मी को दर्शन सिंह सैनी और बलविंद्र ठाकुर से चुनौती मिलती दिख रही है। माहिर मान रहे है कि भाजपा में टिकट के लिए कोहराम की स्थिति से भी इंकार नहीं किया जा सकता। अर्की : कांग्रेस से अवस्थी, ठाकुर का ऐलान और भाजपा को चेहरे की तलाश अर्की में राजा वीरभद्र सिंह के जाने के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के संजय अवस्थी ने जीत हासिल की। यहां भाजपा में चल रहे भारी अंतर्कलह का फायदा स्पष्ट तौर पर कांग्रेस को मिलता हुआ दिखाई दिया। हालाँकि इस बार भाजपा मिशन रिपीट के लिए कोई रिस्क लेती नज़र नहीं आ रही है तो ज़ाहिर है कांग्रेस को भी और कड़ी मेहनत करनी होगी। लगातार दो चुनाव हारने के बाद भाजपा इस दफा भी रतन सिंह पाल पर भरोसा जताएगी, इसकी सम्भावना कम ही है। हालाँकि रतन सिंह पाल अब भी पूरी तरह मैदान में डटे हुए है। 2017 के चुनाव में पार्टी ने गोविंद राम शर्मा का टिकट काट कर यहां रतन सिंह पाल को मैदान में उतारा था तब कांग्रेस से वीरभद्र सिंह ने रतन सिंह पाल को हरा कर अर्की पर राज किया। उपचुनाव में भी पार्टी ने रतन सिंह पाल को ही टिकट दिया। उस दौरान भी भाजपा का एक धड़ा रतन पाल का खुलकर विरोध कर रहा था। नतीज़न भारी अंतर्कलह के कारण भाजपा को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा। अब कयास है की इस बार अर्की निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा किसी नए चेहरे पर भी दांव खेल सकती है। क्षेत्र में एक नए चेहरे को लेकर सुगबुगाहट भी तेज़ हो गयी है।वहीं कांग्रेस की बात करें तो प्रतिभा सिंह के प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने के बाद अर्की निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के लिए भी सियासी समीकरण बदलने के आसार है। उपचुनाव में पार्टी ने सुखविंद्र सिंह सुक्खू के करीबी और 2012 में पार्टी प्रत्याशी रहे संजय अवस्थी को अपना उम्मीदवार बनाया था। इसके बाद होलीलॉज के करीबी रहे राजेंद्र ठाकुर ने अपने समर्थकों सहित पार्टी छोड़ दी थी। हालांकि ठाकुर ने बतौर निर्दलीय चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन पार्टी के लिए काम भी नहीं किया। तब से अब तक ठाकुर कांग्रेस से बाहर है। राजेंद्र ठाकुर इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सत्ता में वापसी के लिए आखिरी क्षणों में खूब छटपटा रहे हैं। इसलिए वह बार-बार दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री को हिमाचल ला रहे हैं। यदि जयराम ठाकुर ने साढ़े चार साल में काम किए होते तो आज नरेंद्र मोदी समेत अन्य केंद्रीय नेताओं को हिमाचल लाने की जरूरत नहीं पड़ती। ये कहना है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का। प्रतिभा सिंह मंगलवार को शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में हिमाचल स्पोर्ट्स कल्चर एंड एनवायरमेंट एसोसिएशन द्वारा आयोजित खेलकूद प्रतियोगिता में बतौर मुख्यातिथि पहुंची थी। इस दौरान विधायक और प्रतिभा सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी मौजूद रहे। खेल कूद के इस कार्यक्रम के बहाने एक बार फिर होलीलॉज का शक्ति प्रदर्शन यहां देखने को मिला। हज़ारों लोगों की भीड़ ने साबित कर दिया की इस क्षेत्र में होलीलॉज का जादू बरकरार है। आयोजन के दौरान एक बार फिर प्रतिभा सिंह ने कोंग्रेसियो को एकजुटता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस मजबूत बने, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने इसके लिये सभी को एकजुट होना होगा। वहीं प्रतिभा सिंह ने महंगाई, बेरोजगारी और पेपर लीक प्रकरण पर जयराम सरकार को जमकर घेरा। वहीं विधायक विक्रमादित्य सिंह ने इस समारोह में उपस्थित नेताओं व लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि उनका मकसद लोगों की सेवा करना है और आपसी मेलजोल को मजबूत करने का है। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि वह बेरोजगार युवाओं व महिलाओं के लिए जल्द ही रोजगार मेलों का आयोजन करेंगे। विपक्ष में होने के बावजूद उन्होंने इस क्षेत्र में 90 करोड़ के विकास कार्य किये है। उन्होंने कहा कि जिस तेजी से विकास कार्य होने थे वह नही हुए। भाजपा ने हमेशा ही क्षेत्रवाद की राजनीति करते हुए विकास में भी बड़ा भेदभाव किया। उन्होंने जयराम सरकार को चुनौती दी कि वह अपने इस कार्यकाल में ऐसे बड़े पांच कार्य ही गिना दे जो उन्होंने शुरू किए और उन्हें पूरा भी किया। विक्रमादित्य ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही कर्मचारियों के हितों को देखते हुए उनकी पुरानी पेंशन को लागू किया जाएगा।
तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा ने प्रदेश के दो निर्दलीय विधायकों को पार्टी में शामिल कर लिया है। देहरा से निर्दलीय विधायक होशियार सिंह व जोगिन्दरनगर से निर्दलीय विधायक प्रकाश राणा बुधवार को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप की मौजूदगी में भाजपा के हो गए। ये दोनों ही नेता अपने -अपने विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक बने और निसंदेह ये दोनों ही अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में खासी पकड़ भी रखते है। देहरा विधायक होशियार सिंह लगातार भाजपा में शामिल होने के इच्छुक दिखाई दे रहे थे। होशियार सिंह अपनी हर जनसभा, हर कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की तारीफ़ में कसीदे पढ़ रहे थे, जिससे ये साफ़ संकेत मिलता दिख रहा था कि वे भाजपा में शामिल होने जा रहे है। हालांकि देहरा में भाजपा का एक तबका लगातार विधायक के विरोध में दिखा है। वहीं जोगिन्दर नगर से विधायक प्रकाश राणा का झुकाव शुरुआत से ही भाजपा की तरफ रहा है। मंडी लोकसभा उपचुनाव में भी राणा ने पार्टी के लिए खुलकर काम किया और इसी के चलते आज पार्टी में उनकी भी एंट्री हो गई। पर जोगिन्दर नगर में भी पार्टी का एक तबका गुलाब सिंह के साथ खड़ा दिख रहा है। ऐसे में देहरा और जोगिन्दर नगर में बेशक पार्टी को नए चेहरे मिल गए हो, लेकिन जानकार मान कर चल रहे है कि दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में सियासी भूचाल तय है। अब भाजपा इसे कैसे साधती है, ये देखना रोचक होगा। खास बात ये है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों निर्दलीय प्रत्याशियों ने भाजपा के जिन दो महारथियों को हराया था, वे धूमल कैंप के खास सिपहसलहार है। देहरा से पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि चुनाव हारे थे, तो जोगिन्दर नगर से पूर्व मंत्री और धूमल के समधी गुलाब सिंह परास्त हुए थे। वहीँ जयराम की ताजपोशी के बाद से ही होशियार सिंह और प्रकाश राणा, दोनों का ही झुकाव जयराम ठाकुर की तरफ रहा है। अब जाहिर है इन दोनों के पार्टी में आने से जयराम टीम भी मजबूत होगी। पर टिकट आवंटन पर पेच अब भी फसता दिख रहा है। देहरा में जहां भाजपा का एक बड़ा गुट होशियार सिंह के साथ नहीं दिखता, वहीँ जोगिन्दर नगर में गुलाब सिंह भी चुनाव लड़ने के लिए खुद को तैयार बताते आ रहे है। बहरहाल, जानकार मान रहे है कि भाजपा में घमासान तय है, पर राहत की बात ये है कि इन दोनों ही निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस की हालत पतली है। पहले टिकट की जंग लड़नी होगी माहिर मानते है कि कोई निर्दलीय विधायक चुनाव से पहले भाजपा में आ जाए और उसे टिकट भी मिले ये जरूरी नहीं है। पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी को देखते हुए कई बार पार्टी उन्हीं लोगों को टिकट में तवज्जो देती है, जो पार्टी में लम्बे समय से जुड़े हो। मसलन 2017 से ठीक पहले इंदौरा के निर्दलीय विधायक मनोहर धीमान भाजपा में शामिल हुए। उस वक्त मनोहर उसी तरह मजबूत थे जैसे आज प्रकाश राणा और होशियार सिंह को माना जाता है। पर पार्टी ने 2012 में तीसरे स्थान पर रही रीता धीमान को टिकट दिया और रीता जीत भी गई। आज मनोहर एक किस्म से साइडलाइन है और समर्थकों को मलाल है कि उन्होंने तब चुनाव नहीं लड़ा। सो प्रकाश राणा और होशियार सिंह बेशक भाजपा में शामिल कर लिए गए हो लेकिन दोनों को ही पहले टिकट की जंग लड़नी होगी।
वर्तमान के सियासी समीकरण समझने के लिए कई मर्तबा अतीत के सियासी चलचित्र में झांक लेना मददगार होता है। सो शुरुआत करते है 1998 के विधानसभा चुनाव से। 1985 के बाद ये पहला मौका था जब प्रदेश में कोई सरकार रिपीट करने की स्थिति में दिख रही थी। वीरभद्र सरकार को लेकर प्रो इंकम्बैंसी दिख रही थी और मिशन रिपीट लगभग तय लग रहा था। पर पंडित सुखराम कुछ और ही ठान चुके थे, और उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर कांग्रेस को झटका दे दिया। तब काँटे के मुकाबले में 23 सीटें ऐसी थी जहाँ जीत-हार का अंतर दो हज़ार वोट से कम था। इन से 14 सीटें कांग्रेस हारी थी और तीन सीटों पर तो उसे हिमाचल विकास कांग्रेस से सीधे मात दी थी। इसके अलावा कई सीटें ऐसी थी जहाँ कांग्रेस की हार का अंतर बेशक दो हज़ार वोट से अधिक था लेकिन पार्टी का खेल हिमाचल विकास कांग्रेस ने ही बिगाड़ा था। ये आंकड़ें इस बात की तस्दीक करते है की यदि हिमाचल विकास कांग्रेस न होती तो 1998 में वीरभद्र दूसरी बार रिपीट कर जाते। ऐसे में जाहिर है कि बेशक कभी हिमाचल में तीसरी पार्टी सरकार न बना पाई हो लेकिन नतीजे बदलने की कुव्वत तो रखती है। भाषणों -ब्यानों में तीसरी पार्टी को लेकर कुछ भी कहा जा रहा हो, लेकिन 1998 का ये इतिहास कांग्रेस और भाजपा दोनों की धुकधुकी जरूर बढ़ा रहा होगा। अब आते है वर्तमान स्थिति पर। करीब चार -पांच माह में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। भाजपा मिशन रिपीट के लिए और कांग्रेस सत्ता वापसी के लिए हाथ पाँव मार रहे है। और फिलवक्त प्रदेश में वो तीसरी पार्टी है आम आदमी पार्टी। अलबत्ता कांग्रेस -भाजपा दोनों आप के प्रभाव को सिरे से खारिज कर रहे है लेकिन टेंशन दोनों को है। दोनों को पता है कि आप को हल्के में लेने की भूल महंगी पड़ सकती है। बीते तीन चुनाव पर नज़र डाले तो प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में फ्लोटिंग वोट न तो सरकार के खिलाफ मुखर दिखा है और न ही समर्थन में, पर तीनों मर्तबा प्रदेश ने बदलाव के लिए वोट किया है। यानी वोटर की खामोशी सत्ता पर भारी पड़ती आ रही है। मौजूदा समय में जयराम सरकार को लेकर भी न एंटी इंकम्बेंसी दिख रही है और न ही प्रो इंकम्बैंसी। ऐसे में यदि बदलाव के लिए वोट होता है और आप उसमे सेंध लगाती है तो लाभ भाजपा को हो सकता है। हवा और माहौल के हिसाब से चलने वाला न्यूट्रल वोटर दोनों पार्टियों को ठेंगा दिखा सकता है। वहीँ आप के गुड गवर्नेंस मॉडल से यदि ये वोटर प्रभावित हुआ तो भाजपा का मिशन रिपीट भी खटाई में पड़ सकता है। सो कोई माने न माने, चिंता की आग दोनों तरफ बराबर लगी है। बात करें आम आदमी पार्टी की तो पंजाब में जीत के बाद जिस तरह का आगाज हुआ था वो पार्टी बरकरार नहीं रख पाई। पर अब प्रदेश में आम आदमी पार्टी फिर से तेवर में आती दिख रही है। बीते दिनों प्रदेश की नई कार्यकारिणी का गठन भी हो गया है और वीआईपी दौरों का सिलसिला भी फिर से शुरू हो गया है। रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी वोट मांग रही है और इसी जद्दोजहद में है कि आगामी विधानसभा चुनाव में दमदार मौजूदगी दर्ज करवाई जा सके। बेशक खुले मंच से पार्टी के नेता सरकार बनाने के दावे कर रहे हो, लेकिन जाहिर है पार्टी का मकसद फिलहाल खुद को दमदार तरीके से हिमाचल की सियासत में स्थापित करना है, ताकि भविष्य के लिए नींव मजबूत की जा सके। फायदा होगा, बशर्ते चुनावी मेहमान न बन कर रह जाएं पार्टी पंजाब में सरकार बनने के बाद से अब तक आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल हिमाचल प्रदेश के तीन दौरे कर चुके है। केजरीवाल कांग्रेस -भाजपा को खुलकर चुनौती दे रहे है कि जिन विकास के मुद्दों पर वो वोट मांग रहे है, वे भी उन पर वोट मांग कर दिखाएं। हाल ही में आप ने हिमाचल में एक शिक्षा संवाद भी किया है। निजी स्कूलों की बेलगाम फीस निसंदेह हिमाचल में एक बड़ा मुद्दा है और इसे भांपते हुए आप सही रास्ता पकड़े हुए दिख रही है। नजदीक भविष्य में न सही लेकिन इसका दूरगामी फायदा जरूर आप को मिल सकता है, बशर्ते पार्टी अब हिमाचल में परमानेंट सियासत करे, न कि चुनावी मेहमान की तरह। वहीँ फिलहाल हिमाचल में आप के लिए सबसे बड़ी कमज़ोरी किसी बड़े चेहरे का न होना है। पार्टी में ऐसा कोई चेहरा नहीं दिखाई देता जिसके दम पर पार्टी हिमाचल विधानसभा चुनाव जीत ले। सावधान कांग्रेस, हर जगह 'आप' ने बिगाड़ा है खेल माहिर मान रहे है कि संभवतः आप का पहला मकसद कांग्रेस को कमजोर करना हो ताकि न सिर्फ हिमाचल में बल्कि पूरे देश में विपक्ष का मुख्य चेहरा बन सके। जाहिर है यदि आगामी विधानसभा चुनाव में आप की मौजूदगी के चलते कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिरता है तो 2027 में आप की भूमिका बड़ी हो सकती है। अतीत पर निगाह डाले तो आप हमेशा से ही कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ते आई है। पहले आप ने दिल्ली की सत्ता पर 15 साल से आसीन कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया और फिर अब पार्टी ने पंजाब भी कांग्रेस को बुरी तरह हराया। गोवा और उत्तराखंड में भी कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ने का श्रेय आप को ही दिया जाता है, जिससे भाजपा का मिशन रिपीट सफल हो पाया। उत्तराखंड में आप को 3.31 प्रतिशत वोट हासिल हुए, वहीं गोवा में आप को 6.77 प्रतिशत वोट हासिल हुए है। ये आंकड़े सत्ता पाने के लिए तो नाकाफी है, मगर अब कांग्रेस का सतर्क होना आवश्यक दिखाई देता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हिमाचल में आप के आने से कांग्रेस के लिए स्थिति मुश्किल हो सकती है। यदि सत्ता विरोधी वोट बांटने में आप कामयाब रही तो कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिर सकता है। कुनबा न संभला, तो भाजपा होगी मुश्किल में हिमाचल का एक तबका ऐसा भी है जो आप के दिल्ली मॉडल का मुरीद है, ऐसे में गुड गवर्नेंस की बात करने वाली भाजपा के लिए भी चुनौती कम नहीं होने वाली। पहली बार शिक्षा संवाद जैसे कार्यक्रम आयोजित कर कोई पार्टी शिक्षा -स्वास्थ्य जैसे बुनियादों मुद्दों पर वोट मांग रही है, जाहिर है इसका नुकसान सत्तारूढ़ पार्टी को ज्यादा हो सकता है। वहीँ भाजपा में टिकट तलबगारों की बढ़ती संख्या भी आप में लिए अवसर है। अगर पार्टी के कुछ मजबूत नेता आप का रुख करते है, तो नुक्सान भाजपा का होगा। मसलन कसौली से भाजपा नेता हरमेल धीमान अब आप में है और निसंदेह भाजपा के अरमान कुचल सकते है। कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी हरमेल सरीखे भाजपाई पार्टी में उपेक्षित है और माना जा रहा है कि चुनाव नजदीक आते-आते आप के हो सकते है। ऐसे में भाजपा कुनबा नहीं संभाल पाती तो मिशन रिपीट मुश्किल है।
चुनाव आयोग का कहना है कि चुनावों में वोट डालने के लिए प्रवासी वोटर्स का अपने घर लौटकर आना मुश्किल हो जाता है, इसलिए ऐसे वोटर्स के लिए रिमोट वोटिंग की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। इसके लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा, आप दिल्ली में रहते हैं, लेकिन आपका नाम मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की वोटिंग लिस्ट में है, और वहां विधानसभा चुनाव होने हैं, तो क्या आप दिल्ली में बैठे-बैठे वोट डाल सकते हैं ? अभी इसका जवाब नहीं है, लेकिन हो सकता है कि अगले साल तक ऐसा हो जाए। दरअसल, चुनाव आयोग दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी वोटर्स के लिए रिमोट वोटिंग की संभावनाएं तलाश रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी वोटर्स चुनावों में वोट डाल नहीं पाते हैं और वोटिंग से वंचित रह जाते हैं। चुनाव आयोग ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रवासी वोटर्स पढ़ाई, रोजगार या किसी दूसरे काम से दूसरे राज्य में चले जाते हैं, उनके लिए वोट डालने के लिए वापस लौटना मुश्किल हो जाता है, इसलिए अब रिमोट वोटिंग की संभावनाएं तलाशने का समय आ गया है। चुनाव आयोग ने अपने बयान में बताया है कि प्रवासी वोटर्स के मुद्दों पर गौर करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा। आयोग के मुताबिक, शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसकी शुरुआत हो सकती है।
कानपुर हिंसा में अब तक 50 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि शहर प्रशासन ने आरोपियों की 147 अवैध संपत्तियों की पहचान की है। माना जा रहा है कि जल्द ही इनपर बुलडोजर चल सकता है। इसी बीच कानपुर शहर के काजी मौलाना अब्दुल कुद्दूस हादी ने कहा है कि अगर कानपुर में बुलडोजर चला तो लोग कफन बांध करके बाहर निकल आएंगे। दरअसल, कानपुर में मुस्लिम संगठनों ने 3 जून को बंद बुलाया था। मुस्लिम संगठन नूपुर शर्मा के पैंगबर मोहम्मद को लेकर दिए बयान का विरोध कर रहे थे। इस दौरान हिंसा फैल गई थी। पुलिस सीसीटीवी के आधार पर आरोपियों की पहचान कर रही है। पुलिस ने आरोपियों के पोस्टर भी लगाए थे। पुलिस के मुताबिक, इस मामले में अब तक 50 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। वहीं, पोस्टर में शामिल 6 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार आरोपियों में से कुछ नाबालिग भी हैं। पुलिस सीसीटीवी के आधार पर उनकी भूमिका की जांच कर रही है। इसके बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। पुलिस का कहना है कि कुछ लोगों ने खुद आकर सरेंडर भी किया है। प्रशासन ने 147 इमारतों की पहचान की जहां से पत्थरबाजी की गई थी। बताया जा रहा है कि सीसीटीवी से पहचान होने के बाद इन इमारतों की वैधता की जांच की जाएगी। इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
कहते है कांगड़ा वो जिला है जो सत्ता तक पहुंचाने की ही नहीं, बल्कि नेताओं की खाट खड़ी करने की भी कुव्वत रखता है। कांगड़ा की सियासी बैटल फील्ड में बड़े-बड़ो के नाक से धुंआ निकल जाता है। इतिहास तस्दीक करता है कि जो काँगड़ा को न भाया, उसका प्रदेश की सत्ता से पांच साल का वनवास तय समझो। आबादी के हिसाब से सबसे बड़े जिले काँगड़ा से चुनकर आए 15 विधायक सरकार बनाने और गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ये बात सभी राजनीतिक दल बखूबी जानते है और इसीलिए काँगड़ा की सियासी रणभूमि में सेंधमारी की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। काँगड़ा में सत्ता वापसी को कांग्रेस प्रयासरत है, तो भाजपा सत्ता को अनवरत रखने के लिए। वहीं आम आदमी पार्टी भी भरपूर प्रयास का रही है। पिछले कुछ समय से काँगड़ा में मुख्यमंत्री के ताबड़तोड़ दौरे हो रहे है और आगामी कुछ वक्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य बड़े नेता भी काँगड़ा पहुंचेंगे। काँगड़ा का हर विधानसभा क्षेत्र ज़रूरी है और इसके लिए हर राजनीतिक दल अलग-अलग माइक्रो प्लान तैयार कर रहा है। पिछले चुनाव की बात करें तो जिला की 15 में से 11 सीटों पर भाजपा ने कब्ज़ा जमाया था। कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटें मिली थी और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। अब मिशन रिपीट के लिए भाजपा को पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा, वहीँ कांग्रेस को अगर सत्ता वापसी करनी है तो उसे भी कांगड़ा में दमखम दिखाना होगा। 2017 के विधानसभा चुनाव में जिला कांगड़ा की 11 सीटें जीतने के बाद जिला को चार कैबिनेट मंत्री पद मिले। विपिन सिंह परमार को स्वास्थ्य, किशन कपूर को खाद्य आपूर्ति, सरवीण चौधरी को शहरी विकास और विक्रम सिंह को उद्योग मंत्रालय मिला। यानी जयराम कैबिनेट में जिला कांगड़ा को दमदार महकमे मिले। इसके बाद 2019 में किशन कपूर सांसद बनकर लोकसभा चले गए। जबकि विपिन सिंह परमार से मंत्री पद लेकर उन्हें माननीय विधानसभा स्पीकर बना दिया गया। तदोपरांत 2020 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में सरवीन चौधरी से शहरी विकास जैसा महत्वपूर्ण महकमा लेकर उन्हें सामाजिक न्याय मंत्रालय का ज़िम्मा दे दिया गया। वहीँ राकेश पठानिया की कैबिनेट में वन, युवा एवं खेल मंत्री के तौर पर एंट्री हुई। विक्रम सिंह ही एकमात्र ऐसे मंत्री है जो शुरू से जयराम कैबिनेट में बने हुए है और जिनका वजन भी बढ़ा है। मंत्रिमंडल विस्तार में उनके पोर्टफोलियो में परिवहन जैसा महत्वपूर्ण महकमा भी जोड़ दिया गया। वर्तमान में तीन मंत्रिपद और विधानसभा स्पीकर का पद कांगड़ा के हिस्से में है। सियासी माहिर मानते है कि स्वास्थ्य और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय छीनने की टीस जरूर कहीं न कहीं कांगड़ा में मन में रह सकती है। कांग्रेस की ओबीसी वोट पर निगाहें : जिला कांगड़ा में ओबीसी वोट बैंक का अच्छा प्रभाव है। अमूमन हर सीट पर ओबीसी वोट जीत -हार का अंतर पैदा कर सकता है। काजल को मजबूत करके कांग्रेस की नज़र इसी वोट बैंक पर है। ओबीसी वर्ग की बात करें तो कांग्रेस के पास चौधरी चंद्र कुमार के रूप में भी एक मजबूत चेहरा हैं और पवन काजल भी उन नेताओं में शुमार है जिनके समर्थक हर क्षेत्र में है। ऐसे में पवन काजल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाना कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक सिद्ध हो सकता है। कांगड़ा किसी को नहीं बक्शता, यहां दिग्गज धराशाई होते है ! जो कांगड़ा फ़तेह नहीं कर पाता उसे सत्ता हासिल नहीं होती। वर्ष 1985 से ये सिलसिला चला आ रहा हैं। 1985, 1993, 2003 और 2012 में कांग्रेस पर कांगड़ा का वोट रुपी प्यार बरसा तो सत्ता भी कांग्रेस को ही मिली। वहीं 1990, 1998, 2007 और 2017 में कांगड़ा में भाजपा इक्कीस रही और प्रदेश की सत्ता भी भाजपा को ही मिली। यानी 1985 से 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता में जिला कांगड़ा का तिलिस्म बरकरार रहा हैं। इससे पहले 1982 के चुनाव में भाजपा को 10 सीटें मिली थी लेकिन प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी थी। जिला कांगड़ा का सियासी मिजाज समझना बेहद मुश्किल हैं। कांगड़ा वालों ने मौका पड़ने पर किसी को नहीं बक्शा, चाहे मंत्री हो या मुख्यमंत्री। जो मन को नहीं भाया उसे कांगड़ा वालों ने घर बैठा दिया। अतीत पर नज़र डाले तो 1990 में जब भाजपा - जनता दल गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुआ तब शांता कुमार ने जिला कांगड़ा की दो सीटों से चुनाव लड़ा था, पालमपुर और सुलह। जनता मेहरबान थी शांता कुमार को दोनों ही सीटों पर विजय श्री मिली थी। पर 1993 का चुनाव आते -आते जनता का शांता सरकार से मोहभंग हो चूका था। नतीजन सुलह सीट से चुनाव लड़ने वाले शांता कुमार खुद चुनाव हार गए। वहीँ पिछले चुनाव में वीरभद्र कैबिनेट के दो दमदार मंत्री सुधीर शर्मा और जीएस बाली को भी हार का मुँह देखना पड़ा। भारी पड़ा था माइनस कांगड़ा सरकार बनाने का दावा : 2012 में भाजपा की प्रेम कुमार धूमल सरकार के मिशन रिपीट में कांगड़ा बाधा बना था। तब भाजपा तीन सीटें ही जीत पाई थी। तब प्रो धूमल ने माइनस कांगड़ा सरकार बनाने का दावा किया था, जो बड़ी चूक साबित हुई। तब भाजपा को प्रदेश में 26 सीटें मिली थी और कांगड़ा में बेहतर कर कांग्रेस का आंकड़ा 36 पर पहुंचा था। ....................................................................... जिसका कांगड़ा, उसकी सत्ता : वर्ष कुल सीट कांग्रेस भाजपा अन्य 1985 16 11 3 2 1990 16 1 12 3 ( जनता दल जिसका भाजपा के साथ गठबंधन था ) 1993 16 12 3 1 1998 16 5 10 1 2003 16 11 4 1 2007 16 5 9 2 2012 15 10 3 2 2017 15 3 11 1 .......................................................................................................... पालमपुर : क्या भाजपा भेद पाएगी बुटेल परिवार का बुलेटप्रूफ किला पालमपुर यूँ तो भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का गृह क्षेत्र है, मगर मौजूदा समय में यहां भाजपा की स्थिति सहज नहीं दिखती। 1990 में यहां शांता कुमार विधानसभा का चुनाव जीते थे लेकिन उसके बाद 1993 से लेकर साल 2007 तक ये सीट कांग्रेस के बृज बिहारी लाल बुटेल के नाम रही। फिर 2007 में जनता ने एक मौका भाजपा को दिया पर, अगली बार फिर बुटेल परिवार की वापसी हुई। 2012 से 2017 तक फिर बृज बिहारी लाल बुटेल विधायक रहे। जबकि वर्तमान में उनके बेटे आशीष बुटेल पालमपुर से विधायक है। भाजपा की कोई भी सियासी बुलेट फिलवक्त बुटेल परिवार के इस किले को भेदती नहीं दिख रही। पालमपुर में बुटेल परिवार के वर्चस्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2017 में पहला चुनाव लड़े आशीष ने भाजपा की वरिष्ठ नेता व वर्तमान राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी को 4324 मतों से हराया था। इसके बाद पालमपुर नगर निगम चुनाव में भी भाजपा को यहां करारी शिकस्त मिली। अब भी पालमपुर में भाजपा सहज नहीं दिखाई देती। स्थानीय भाजपा नेताओं की आपसी खींचतान जगजाहिर है। वर्तमान में वूल फेडरेशन के चेयरमैन त्रिलोक कपूर यहां से भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार है, जबकि कांग्रेस में आशीष बुटेल ही प्राइम फेस है। बैजनाथ : पंडित संतराम के गढ़ में वापसी की जद्दोजहद में कांग्रेस 90 के दशक में काँगड़ा की सियासत में बैजनाथ विधानसभा क्षेत्र की तूती बोला करती थी। ये वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे दिग्गज नेता पंडित संत राम का गढ़ रहा है। पहले यहां पंडित संत राम का बोल बाला रहा और फिर उनके बेटे और कांग्रेस नेता सुधीर शर्मा का। हालाँकि 2012 ये सीट रिज़र्व हो गई और सुधीर शर्मा ने धर्मशाला का रुख किया। 2012 में कांग्रेस नेता किशोरी लाल ग्राम पंचायत प्रधान से विधायक बने, पर पांच साल बाद 2017 में ही जनता का मोहभंग हो गया और भाजपा के मुल्कराज विधायक बने। बैजनाथ की ज़मीनी स्थिति की बात करें तो संभव है यहां भाजपा टिकट बदलने पर विचार करें। वैसे मुल्कराज का दावा भी कमजोर नहीं माना जा सकता। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस से पूर्व विधायक किशोरी लाल पूरी तरह मैदान में डटे हुए दिखाई दे रहे है, हाल ही में उन्हें पीसीसी का उपाध्यक्ष भी बनाया गया है। हालाँकि यहां कांग्रेस टिकट को लेकर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है। किशोरी लाल के भतीजे ऋषभ पांडव और पूर्व भाषा अधिकारी व सुधीर शर्मा के करीबी त्रिलोक सूर्यवंशी भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार दिख रहे है। दोनों का ही जनसम्पर्क अभियान जारी है। जयसिंहपुर : अगर अंतर्कलह से बची तो ही जीत पाएगी कांग्रेस 2008 में परिसीमन बदलने के बाद अस्तित्व में आया ये विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2012 में यहां कांग्रेस नेता यदविंदर गोमा विधायक बने तो, 2017 में भाजपा नेता रविंद्र धीमान ने गोमा को 10 हजार से अधिक मतों से हराया। वर्तमान में भी रविंदर धीमान ही जयसिंहपुर से भाजपा का मुख्य चेहरा है। हालंकि यहां कांग्रेस को इस बार टिकट आवंटन में कठिनाई हो सकती है। कांग्रेस की ओर से यहां पूर्व विधायक यादविंद्र गोमा तो मैदान में है ही, पर कांग्रेस के ओर नेता सुशील कॉल भी चुनाव लड़ने के इच्छुक दिखाई दे रहे है। यदि कांग्रेस अंतर्कलह से बच पाई तो ही जयसिंहपुर में बेहतर कर पाएगी। वहीं कुछ समय से आम आदमी पार्टी भी इस क्षेत्र में खूब एक्टिव दिखाई दे रही है। सुलह : यहां की जनता को परिवर्तन पसंद , इस बार क्या होगा ? 1998 के बाद से सुलह विधानसभा क्षेत्र की सत्ता भी प्रदेश की सत्ता के साथ बदलती रही है। 1998 के बाद से अब तक सुलह में हर पांच साल में परिवर्तन हुआ है। पिछले 24 सालों में यहां कभी विधायक भाजपा नेता विपिन सिंह परमार रहे तो कभी कांग्रेस नेता जगजीवन पाल। सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र का गौरव लिए सुलह की आबादी पौने दो लाख है। वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार सुलह से विधायक है, हालांकि ये भी एक सत्य है कि अब तक सुलह की जनता मंत्री पद लिए जाने के गम को भूला नहीं पाई है। 2017 में विपिन सिंह परमार चुनाव जीते तो उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया, हालाँकि 2019 में उन्हें मंत्री पद से हटाकर विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया। विपिन सिंह परमार अपने क्षेत्र में प्रोएक्टिव ज़रूर है लेकिन सियासी माहिरों का मानना है कि मंत्री पद वापस लेना भाजपा को चुनाव में भारी पड़ सकता है। यहां ये जहन में रखना भी जरूरी है कि इस क्षेत्र में करीब 35 फीसद तबका ओबीसी वर्ग का है। ऐसे में यहां ओबीसी वोट निर्णायक है। नगरोटा बगवां : अब बाली पुत्र से होगा कुक्का का मुकाबला 'गुरु गुड़ रहे चेला हो गए शक्कर' , 2017 के विधानसभा चुनाव में नगरोटा बगवां निर्वाचन क्षेत्र में हाल ऐसा ही था। तब स्व. जीएस बाली के समर्थक रहे अरुण कुमार 'कुक्का' ने चुनावी मैदान में बाली को पटकनी देकर अपना लोहा मनवाया था। अब खुद बाली दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके पुत्र रघुवीर बाली कांग्रेस की अगुवाई करते दिख रहे है। वहीँ अरुण कुमार कुक्का भाजपा का प्राइम फेस बने हुए है। ऐसे में आगामी चुनाव में संभवतः जूनियर बाली और कूका के बीच टक्कर देखने को मिले। नगरोटा बगवां विधानसभा क्षेत्र का विकास प्रदेश भर में चर्चा का विषय रहा है। टांडा मेडिकल कॉलेज, राजीव गांधी राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, परिवहन निगम का डिपो व आरएम कार्यालय, सिविल अस्पताल और ऐसे अन्य कई बड़े काम स्वर्गीय जीएस बाली की फेहरिस्त में शामिल हैं। अब उनके पुत्र रघुवीर अपने पिता द्वारा कराए गए कार्यों के सहारे उनकी सियासी विरासत सँभालते दिख रहे है। उधर भाजपा की बात करे तो अरुण कुमार कुक्का ही भाजपा का प्राइम फेस है। 2012 जीएस बाली ने कुक्का को 2743 वोटों से हराया था। फिर 2017 में कुक्का ने बाजी पलटी और भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ बाली को पटकनी दी। कांगड़ा : कांग्रेस के पास काजल का नूर, भाजपा की तलाश जारी कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र ओबीसी बाहुल होने के कारण हर चुनाव में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र में घिरथ जाति का खासा प्रभाव रहा है और यह इस क्षेत्र की हकीकत है कि जिस प्रत्याशी ने इनको साध कर अपनी रणनीति बनाई है , वो चुनाव जीतने में सफल रहा। हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र में राजपूत और ब्राह्मण मतदाता भी हैं, लेकिन दोनों ही समुदाय चुनाव मैदान में गठजोड़ पर विफल रहे हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र में विधायक पवन काजल का ही प्रभाव दिखाई दे रहा है। पवन काजल अपने क्षेत्र में तो लोकप्रिय है ही, कांग्रेस संगठन में भी उनका कद लगातार बढ़ रहा है। खास बात ये है कि अब काजल कांगड़ा में कांग्रेस का प्राइम फेस बनते दिख रहे है। वहीं भाजपा में टिकटार्थियों की लम्बी फेहरिस्त काँगड़ा में है। यहां से पूर्व विधायक संजय चौधरी, कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक सुरेंदर काकू और जयराम ठाकुर के करीबी मुनीश शर्मा भी भाजपा टिकट के तलबगार है। देहरा : होशियार असरदार, दोनों तरफ कई तलबगार देहरा में दोनों ही मुख्य राजनैतिक दलों में टिकट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। वर्तमान में निर्दलीय होशियार सिंह यहां से विधायक है और वे कई मौकों पर खुलकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की शान में कसीदे पढ़ते रहे है। होशियार सिंह भाजपा से टिकट चाहते है लेकिन स्थानीय भाजपा का एक गुट उनके विरोध में है। हालांकि क्षेत्र में होशियार सिंह की पकड़ को लेकर कोई संशय नहीं है। पूर्व विधायक और भाजपा के वरिष्ठ नेता रविंद्र सिंह रवि को भी संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है पर देहरा में उठ रहा धरतीपुत्र का नारा जरूर उनकी राह में रोड़ा बन सकता है। वहीं, पार्टी के संगठनात्मक जिला देहरा के जिला अध्यक्ष संजीव शर्मा, पूर्व एचपीएमसी के निदेशक रहे विवेक पठानिया, वन निगम बोर्ड के निदेशक नरेश चौहान, प्रवक्ता अमित राणा, भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉक्टर सुकृत सागर भी भाजपा से टिकट चाहवानों की इस पंक्ति में शुमार हैं। बात करें कांग्रेस की तो पिछली बार कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विप्लव ठाकुर ने देहरा विधानसभा से चुनाव लड़ा था, पर वह अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई थी। इसी बीच उनकी बेटी के भी यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा थी, पर इसे उन्होंने सीधे तौर पर नकार दिया । वे देहरा कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष हरिओम शर्मा की पैरवी करती दिख रही है। वहीं कांग्रेस के ही दिग्गज नेता योगराज इस चुनावी रण में एक बार फिर उतरने को तैयार दिख रहे हैं। देहरा में एक नाम और चर्चा में है, वो है प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष डॉ राजेश शर्मा का। क्षेत्र में डॉ राजेश की बढ़ती सक्रियता को उनकी दावेदारी से जोड़ कर देखा जा रहा है। शाहपुर: एक दूसरे के लिए धूमकेतु मेजर -केवल, सरवीन के लिए कुर्सी - सेतु शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की सियासत भी शाही है। कांग्रेस से पहले यहां मेजर विजय सिंह मनकोटिया तो भाजपा की तरफ से सरवीन चौधरी का नाम सामने आता था। मेजर के कांग्रेस से बाहर होने के बाद केवल पठानिया की कांग्रेस में एंट्री हुई। कहते है कि यहां केवल और मेजर की आपसी लड़ाई में बाज़ी हर बार सरवीन जीत लेती है। हर बार एक दूसरे के लिए धूमकेतु सिद्ध होते आए मेजर और केवल, सरवीन के लिए कुर्सी -सेतु साबित हुए हैं, इस फेर में केवल एक बार अपनी ज़मानत ज़ब्त करवा बैठे तो फिर दोबारा हार के हार पहनने को मजबूर हो गए। अब इस बार फिर यहां त्रिकोणीय घमासान के आसार है, हालांकि मेजर अगर धर्मशाला का रुख करें तो कांग्रेस को कुछ सुकून मिल सकता है। फतेहपुर : विरोधियों के लिए आसां नहीं होगा भवानी की जय रोकना कांग्रेस के दिग्गज नेता सुजानसिंह पठानिया का गढ़ रहे फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र की कमान अब उनके बेटे भवानी सिंह पठानिया के हाथ में है। उपचुनाव जीतकर भवानी ने ये साबित कर दिया कि वो सिर्फ वित्तीय समझ ही नहीं बल्कि सियासी सूझबूझ भी रखते है। भारी अंतर्कलह के बावजूद भवानी ने न सिर्फ उपचुनाव जीतकर सीट कांग्रेस की झोली में डाली, बल्कि अब वो अपनी कार्यशैली से भी प्रभावित करते दिख रहे है। वहीं फतेहपुर भाजपा में अब भी अंतर्कलह भरपूर है। यहां उपचुनाव के दौरान पार्टी ने पूर्व राज्यसभा सांसद रहे कृपाल परमार का टिकट काट बलदेव ठाकुर को टिकट दिया, और वो चुनाव हार गए। इस बार कयास लग रहे है कि पार्टी पुनः कृपाल परमार को टिकट देने पर विचार कर सकती है। वहीं कांग्रेसी और भवानी विरोधी रहे चेतन चंबियाल अब आप में शामिल हो चुके है। कुल मिलकर यहां भवानी की जय रोकना विरोधियों के लिए मुश्किल होगा। ज्वाली : कांग्रेस से चौधरी चंद्र कुमार, भाजपा से कौन ? 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया ये निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। ज्वाली ( पहले गुलेर ) परंपरागत रूप से कांग्रेस के दबदबे वाली सीट रही है। हरबंस राणा ने यहां बीजेपी से तीन बार सफलता हासिल की है। इसके अलावा यहाँ ज़्यादातर चौधरी चंद्र कुमार ही जीतते आए हैं। परिसीमन के बाद पहली बार 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में चौधरी चंद्र कुमार के पुत्र नीरज भारती ने जीत दर्ज की। इससे पहले नीरज भारती 2007 में भी विधायक चुने गए थे। इस बार फिर से चौधरी चंद्र कुमार कांग्रेस की ओर से मैदान में हो सकते है। अगर पिछले चुनाव यानी 2017 की बात की जाए तो यहाँ भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। ज्वाली विधानसभा हलके में भाजपा के टिकट के लिए दो सशक्त दावेदार मैदान में है। 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में चुनाव न लड़ने वाले संजय गुलेरिया तब से न सिर्फ भाजपा संगठन में बने हुए है, बल्कि पिछले साढ़े चार वर्षों में उन्होंने ख़ुद को इस विधानसभा क्षेत्र में और मज़बूत किया है। जबकि अर्जुन ठाकुर विधायक तो है, पर उनकी राह की असल चुनौती पार्टी में ही उनका विरोधी खेमा है। धर्मशाला : नेहरिया- सुधीर दौड़ में आगे, क्या मेजर भी धर्मशाला आएंगे ? धर्मशाला प्रदेश की दूसरी "कागजी" राजधानी है। कहते है धर्मशाला में सियासत कभी थमती नहीं। वर्तमान में यहां न तो कांग्रेस की टिकट तय मानी जा रही है न ही भाजपा की। स्व. मेजर बृजलाल से शुरू हुआ भाजपा का सफर वाया किशन कपूर होता हुआ अब विशाल नैहरिया तक पहुंच चुका है। धर्मशाला में भाजपा की टिकट कभी गैर गद्दी के हाथ नहीं चढ़ पाई। मौजूदा विधायक विशाल नेहरिया है, और फिर टिकट के प्रबल दावेदार भी। टिकट के कई चाहवान और है, चर्चा कई दिग्गजों की भी है जिनके निर्वाचन क्षेत्र बदल कर धर्मशाला आने के कयास लग रहे है। पर फिलवक्त मैदान में नेहरिया ही एक्टिव दिख रहे है । कांग्रेस से भी टिकट के दावेदारों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। इस फेहरिस्त में पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी और 2019 के उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी रहे विजय करण के नाम प्रमुख है। वहीं एक ख़ास नाम और है, वो है चंद्रेश कुमारी का। हालांकि दावा सुधीर का ही मजबूत माना जा रहा है। सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही नहीं धर्मशाला के सियासी मैदान में आप से राकेश चौधरी और बतौर निर्दलीय मेजर विजय सिंह मनकोटिया भी मैदान में हो सकते है। अगर मेजर मनकोटिया धर्मशाला से मैदान में उतरते है, तो इसका सीधा असर न सिर्फ धर्मशाला पर पड़ेगा बल्कि शाहपुर पर भी पड़ेगा। इंदौरा : मुमकिन है इस बार मनोहर हर ले भाजपा का टिकट ! इंदौरा में पिछले दो चुनाव की बात करे तो 2012 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मनोहर लाल धीमान ने जीत हासिल की थी और दूसरे नंबर पर कांग्रेस उम्मीदवार कमल किशोर थे, जबकि तीसरे स्थान पर बीजेपी उम्मीदवार रीता धीमान रही। उस समय मनोहर लाल धीमान कांग्रेस के एसोसिएट विधायक रहे लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव आते ही करीब 6 माह पूर्व ही मनोहर भाजपा में शामिल हो गए। तब मनोहर धीमान ने भाजपा से टिकट की मांग की थी, लेकिन भाजपा ने पिछले उम्मीदवार यानी रीता धीमान पर ही दांव खेला और किसी तरह भाजपा मनोहर को मना कर अंतर्कलह साधने में भी सफल रही। नतीजन कांग्रेस के कमल किशोर को हरा कर रीता धीमान ने इस सीट पर जीत दर्ज की। पर इस बार इंदौरा में भाजपा की डगर कठिन हो सकती है। मनोहर धीमान फिर टिकट की कतार में है। अब यदि भाजपा फिर रीता धीमान को टिकट देती है, तो मनोहर धीमान का क्या रुख रहता है ये नतीजे तय कर सकता है। माना जा रहा है कि मनोहर इस बार चुनाव लड़ने के मूड में है, पार्टी टिकट पर या टिकट के बगैर। उधर, कांग्रेस में फिलवक्त चेहरे को लेकर ही स्थिति स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस के कमल किशोर को इस बार टिकट मिलना मुश्किल दिख रहा है। कमल किशोर लगातार कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में दो चुनाव हार चुके है। जसवां परागपुर : मंत्री बिक्रम प्रो एक्टिव, तो कांग्रेस अब भी सुस्त सी जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र भाजपा सरकार में मंत्री बिक्रम ठाकुर का गढ़ है। बिक्रम ठाकुर यहां से तीसरी बार विधायक बने है। भाजपा की ओर से इस बार भी बिक्रम ठाकुर का टिकट तय माना जा रहा है, हालांकि कैप्टेन संजय पराशर भी यहां से भाजपा टिकट की मांग कर रहे है। वहीं कांग्रेस में टिकट के कई तलबगार है जिनमे सुरेंद्र मनकोटिया, बिक्रम सिंह, संजय कालिया और राजेंद्र शर्मा प्रमुख नाम है। मंत्री बिक्रम ठाकुर के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं होने वाला और जाहिर है इसे भांपते हुए मंत्री अभी से क्षेत्र में प्रो एक्टिव है। जबकि कांग्रेस अब भी सुस्त सी ही है। पार्टी की ये सुस्ती मंत्री बिक्रम के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। ज्वालामुखी : रह-रह कर भड़की है ध्वाला की ज्वाला, अब आगे क्या ? ज्वालामुखी में 'ध्वाला की ज्वाला' से भाजपा काफी असहज रही है, मगर ध्वाला की सियासी पकड़ का कोई तोड़ यहां नज़र नहीं आता। हालाँकि इस बार ध्वाला के अलावा राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी और रविंदर रवि भी यहां से चुनाव लड़ने के इच्छुक है। वहीं कांग्रेस की ओर से संजय रत्न व नरदेव सिंह कँवर का नाम आगे है। भाजपा की जमीनी स्थिति की बात करें तो कांगड़ा में भाजपा का बड़ा ओबीसी चेहरा माना जाने वाले ध्वाला को कैबिनेट रैंक तो मिली लेकिन पद नहीं। इतना ही नहीं पार्टी संगठन के साथ उनकी खींचतान भी जगजाहिर है। कई मौकों पर ध्वाला ने खुलकर अपनी ही सरकार काे घेरने से भी गुरेज नहीं किया। हालांकि अब तक ध्वाला सीएम के खिलाफ खुलकर बोलने से बचते दिखे है, पर उनके मन की टीस साफ दिखती है। चुनाव आते -आते ध्वाला की ज्वाला और भड़कती है या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा। इसी तरह क्या भाजपा की 2022 योजना में उनके लिए स्थान है या नहीं, ये भी बड़ा सवाल है। नूरपुर : भाजपा के कलेश में जीत तलाशती कांग्रेस ! टिकट की दौड़ ने नूरपुर में भाजपा के दो नेताओं को आमने -सामने ला खड़ा किया है। ये जयराम सरकार के कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया का निर्वाचन क्षेत्र है। पठानिया दमदार और आक्रामक छवि के नेता है और उन चुनिंदा चेहरों में से एक है जो अक्सर विधानसभा में जमकर गरजते है। पर अपने ही निर्वाचन क्षेत्र में, अपनी ही पार्टी के एक नेता रणवीर निक्का ने पठानिया के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। इन दोनों नेताओं की आपसी खींचतान में कांग्रेस यहां जीत तलाश रही है। कांग्रेस के जिला अध्यक्ष और पूर्व विधायक अजय महाजन यहां से पार्टी के प्राइम फेस है। वहीँ आम आदमी पार्टी भी यहां मौजूदगी दर्ज करवाने को प्रयासरत है। 1998 में पहला विधानसभा चुनाव जीतने वाले राकेश पठानिया तब से एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे है। 2007 में वे निर्दलीय जीते, तो 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे। तब भाजपा ने रणवीर सिंह निक्का को टिकट दिया था, पर निक्का को जनता का ज्यादा साथ नहीं मिला। 2017 में भाजपा ने फिर राकेश पठानिया को टिकट दिया और पठानिया तीसरी बार विधानसभा पहुंचे। जयराम कैबिनेट में पहले राकेश पठानिया को स्थान नहीं मिला था लेकिन 2020 में हुए कैबिनेट विस्तार में उन्हें वन, खेल एवं युवा सेवा मंत्री का दायित्व मिला। अपनी बेबाक शैली के चलते राकेश पठानिया हमेशा चर्चा में रहते है और जयराम कैबिनेट के उन मंत्रियों में शुमार है जिनकी अफसरशाही पर अच्छी पकड़ मानी जाती है, लेकिन उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही फिलहाल रणवीर निक्का ने उनकी चिंता जरूर बढ़ाई होगी। उधर दो भाजपाई नेताओं के आपसी टकराव में कांग्रेस को जीत की महक जरूर आ रही है, पर जमीनी स्तर पर कांग्रेस को जल्द प्रो एक्टिव होने की जरूरत है।
करीब दस साल जमीनी मेहनत करने के बाद और कांग्रेस की अंतर्कलह की बिसात पर जब पंजाब में आम आदमी पार्टी को शानदार जीत मिली, तो पार्टी की नजरें पडोसी प्रदेश हिमाचल पर आकर टिक गई। आनन -फानन में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के दो शानदार कार्यक्रम भी हिमाचल में करवा दिए गए और कांग्रेस-भाजपा से कुछ नेता-कार्यकर्ता भी इम्पोर्ट कर पार्टी कुछ हद तक माहौल बनाने में कामयाब दिखी। शुरुआत बेहतर थी और लगने लगा कि अलबत्ता आप आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार न बना पाएं, लेकिन दमदार उपस्थिति जरूर दर्ज करवाएगी। पर करीब बीते एक माह में पार्टी हिमाचल में पटरी से उतरी दिखी है। व्यवस्था परिवर्तन कर नया हिमाचल बनाने का दावा करने वाली आप करीब डेढ़ माह में अपना प्रदेश संग ठन तक नहीं बना पाई। एकाध प्रवक्ता रोजाना पत्रकार वार्ताएं जरूर कर रहे है लेकिन क्या लोग उन्हें गंभीरता से ले रहे है, बहरहाल ये बड़ा सवाल है। पेपर लीक प्रकरण जैसे अस्थायी मुद्दे को छोड़ दे तो प्रदेश के उन बड़े मुद्दों को पार्टी छूने में असफल रही है, जो यहां सत्ता परिवर्तन की बिसात बनते है। शायद पार्टी अब तक ये समझ ही नहीं पा रही कि हिमाचल प्रदेश में दिल्ली मॉडल के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। हिमाचल में जीतना है तो हिमाचल के मुद्दों की बात करनी होगी। निसंदेह पंजाब की भगवंत मान सरकार का प्रदर्शन भी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर होगा। प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्र पंजाब की सीमा पर है। कई क्षेत्रों में बोली-भाषा और रीति -रिवाज भी पंजाब जैसा है। वहीं हिमाचल में हुकूमत के कई निर्णय भी पंजाब की तर्ज पर लिए जाते है, मसलन कर्मचारियों का वेतनमान। ऐसे में यदि भगवंत मान सरकार का जादू पंजाब में चला तो असर हिमाचल में भी दिखेगा। पर अब पंजाब सरकार कोई बड़ा जादू करती नहीं दिख रही। गायक और कांग्रेस नेता सिद्धू मुसेवाला की हत्या के बाद पंजाब की कानून व्यवथा पर भी सवाल उठ रहे है। यदि मान सरकार वहां ठीक नहीं करती है तो यहाँ हिमाचल में भी इसका प्रतिकूल असर पड़ना जायज है, हालांकि अभी भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी है। इस बीच दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर ईडी की कार्रवाई भी आप के लिए बड़ा झटका साबित हुई है। पिछले कई महीनों से जैन लगातार हिमाचल के दौरे कर रहे थे और हिमाचल में पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार थे। पर अब जैन ईडी की हिरासत में है और हिमाचल में पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं दिख रहा। उधर जैन की गिरफ्तारी पर विपक्षी भी आप की स्वच्छ और ईमानदार छवि पर सवाल उठा रहे है। नहीं शामिल हुआ कोई बड़ा चेहरा : चर्चा थी कि कई सियासी शूरवीर आम आदमी पार्टी के सम्पर्क में है। इनमें दोनों ही दलों के नेता शामिल बताये जा रहे थे। एक मंत्री, पूर्व मंत्री और कई विधायकों -पूर्व विधायकों को लेकर भी कयास लग रहे थे। पर अब तक पार्टी पहली पंक्ति के किसी भी नेता को साथ जोड़ने में कामयाब नहीं रही। पार्टी के पास हिमाचल प्रदेश में कोई फेस नहीं है और बगैर फेस पार्टी शायद ही बेहतर कर पाएं। ग्राउंड रियलिटी : जानकार मान रहे है कि दोनों ही दलों के असंतुष्ट नेता भी फ़िलहाल आप में जाने से कतरा रहे है। संभवतः टिकट आवंटन के बाद जरूर नाराज और बागी नेता आप में जाते दिखे, लेकिन ऐसा हुआ भी तो इसका व्यापक असर होना मुश्किल होगा। वर्तमान में नादौन, कसौली, ज्वालामुखी और पांवटा साहिब जैसे चंद निर्वाचन क्षेत्रों में जरूर स्थानीय नेताओं के दम पर पार्टी टिकी हुई है, लेकिन प्रदेश में आलाकमान का न होना पार्टी की बड़ी कमजोरी साबित हो रहा है। दोनों के समीकरण बिगाड़ सकती है आप : बेशक आगामी विधानसभा चुनाव में आप सरकार बनांने की दौड़ में नहीं दिख रही लेकिन पार्टी की मौजूदगी दोनों ही दलों का गणित जरूर बिगाड़ सकती है। उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के समीकरण खराब किये थे, जिससे भाजपा का मिशन रिपीट सफल हो पाया। पर हिमाचल में पार्टी किसके समीकरण ज्यादा खराब करेगी, ये फिलहाल विश्लेषण का संदर्भ है।
' न टिकट को लेकर कलह और न मुख्यमंत्री की कुर्सी का मोह, बस फिक्र है कि पहले पहले सत्ता का वनवास खत्म हो। हाथ का निशान सबसे ऊपर होगा और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा'... ये तो हुई उस दावे की बात जो लगातार कांग्रेस के दिग्गज दोहरा रहे है। कार्यकर्ताओं को भी एकता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और जनता के सामने एकजुटता के कसीदे पढ़े जा रहे है। अब बात करते है संभावित स्थिति की जिसके रुझान अभी से आने शुरू हो गए है। हालात दरअसल कुछ ऐसे बनते दिख रहे है कि भाजपा से लोहा लेने से पहले कांग्रेस का मुकाबला कांग्रेस से होता दिख रहा है। ऐसा कई निर्वाचन क्षेत्रों में होता प्रतीत हो रहा है। बीते दिनों प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह जब किन्नौर पहुंची तो स्थानीय विधायक और युवा कांग्रेस के समर्थक उनके सामने ही आपस में लड़ पड़े। लड़ाई इतनी ज़यादा बढ़ गई पुलिस को बीच में दखल देना पड़ा। किन्नौर विधायक जगत सिंह नेगी ने मंच से अपने सम्बोधन में यूथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष निगम भंडारी और यूथ किन्नौर कांग्रेस की जमकर खरी खोटी सुनाई, उन्हें भाजपा की बी टीम तक कह दिया, उन्हें फर्जीवाड़े का अध्यक्ष बताया। दरअसल जगत सिंह होलीलॉज के करीबी है तो निगम भंडारी सुक्खू गुट के। वैसे ये पहली दफा नहीं है जब ऐसा कुछ कांग्रेस के बीच गठित हुआ हो। बीते दिनों नालागढ़ में भी इस तरह की झलकियां देखने को मिल चुकी है, जहाँ कई नेता अभी से टिकट को लेकर आक्रामक दिख रहे है। इसे अनुशासनहीनता समझ लीजिये या नेताओं का अहम, जो भी हो ये कांग्रेस की एकजुटता की पोल तो खोल ही रहा है। अगर पार्टी ऐसी स्थिति से नहीं बच पाई तो सत्ता वापसी मुश्किल होगी। क्या कारगर होगा महा कार्यकारिणी का फार्मूला ? कांग्रेस द्वारा गुटबाजी या संभावित बिखराव के डर से हिमाचल जैसे छोटे से प्रदेश में जंबो कार्यकारिणी का गठन किया गया है, मगर पार्टी आपसी कलह संभाल पाती है या नहीं, इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। पार्टी ने हर धड़े को खुश रखने के मकसद से महा कार्यकारिणी तो बनाई है, मगर नेता संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे। डर है कि जिनकी रूचि सत्ता में है, पार्टी उन्हें संगठन में एडजस्ट कर संभावित भीतरघात और विद्रोह नहीं थाम पायेगी। पुराणी रवायत से बचना होगा : हिमाचल कांग्रेस में अपने समर्थकों को जीतवाने के साथ -साथ विरोधियों को सेट करने की पुरानी रवायत चली आ रही है। अगर ये सिलसिला जारी रहता है तो सत्ता वापसी की डगर मुश्किल हो सकती है। हालांकि पार्टी के तमाम बड़े नेता सामूहिक लीडरशिप की बात बार -बार दोहरा रहे है। पर ये भी सत्य है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए आलाकमान के आशीर्वाद के साथ -साथ संख्या बल भी अहम् होगा। इसी निजी संख्या बल के फेर में कहीं पार्टी जादुई आंकड़े से पीछे न रह जाए, असल डर इसी बात का है।
कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के तहत कांगड़ा जिला के अंतर्गत आता जयसिंहपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। यह विधानसभा क्षेत्र साल 2008 में हुए विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के चलते अस्तित्व में आया, जिसमें राजगीर विधानसभा क्षेत्र और थुरल विधानसभा क्षेत्र का समायोजन किया गया। जब यह थुरल विधानसभा थी तो इस पर राजपूत मतदाताओं की बहुलता थी, लेकिन अब दलित मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। जयसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र उन 16 विधानसभा क्षेत्रों में शामिल है, जहां पुरुषों के मुकाबले महिला वोटर ज्यादा हैं और जीत- हार की चाबी महिलाओं के हाथ है। इस सीट पर पहला विधानसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड कांग्रेस के नाम दर्ज है तो दूसरे चुनाव में भाजपा जीत दर्ज करने में सफल हुई है, लेकिन इस बार तीसरी पार्टी के रूप में आम आदमी पार्टी की एंट्री से इस विधानसभा के चुनाव के रोचक होने की सम्भावना है। देखना यह भी दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और भाजपा यहाँ पुराने मोहरों पर ही दांव खेलती हैं, अथवा नए चेहरे आजमाती है। कांग्रेस के खाते में पहली जीत 2012 के विधानसभा चुनाव में जयसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए पहली बार चुनाव हुआ। भाजपा ने राजगीर के पूर्व विधायक रहे आत्मा राम पर दांव खेला तो कांग्रेस ने राजगीर के ही पूर्व विधायक मिलखी राम गोमा के बेटे यादविंदर गोमा को चुनावी समर में उतार दिया। जयसिंहपुर विधानसभा सीट के लिए हो रहे पहले ही चुनाव में भाजपा विचारधारा से सम्बन्ध रखने वाले रविन्द्र धीमान ने निर्दलीय मैदान में उतर कर मुकाबले को तिकोना बना डाला। आजाद उम्मीदवार के तौर पर आठ हजार से ज्यादा वोट लेकर रविन्द्र धीमान ने भाजपा के चुनावी समीकरणों को बुरी तरह से बिगाड़ दिया, नतीजतन कांग्रेस के यादविंद्र गोमा बम्पर जीत के साथ चुनाव जीते थे। पहले चुनाव निर्दलीय लड़े, दूसरे चुनाव में बने भाजपा विधायक पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतर कर भाजपा के समीकरणों को बिगाड़ने वाले रविन्द्र धीमान को भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पार्टी टिकट थमाया तो संगठन के भीतर उनका जबरदस्त विरोध हुआ। बावजूद इसके रविन्द्र धीमान ने दस हजार से ज्यादा वोटों से कांग्रेस विधायक यादविंदर गोमा को हराकर इस सीट पर जीत दर्ज कर पार्टी में अपने विरोधियों के मुंह पर करारा तमाचा रसीद किया और चुनाव विश्लेषकों के मुंह पर भी ताला जड़ दिया। आप की एंट्री से बिगड़ेंगे कांग्रेस- भाजपा के समीकरण पूर्व विधायक मिलखी राम गोमा के बेटे यादवेन्द्र गोमा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत युवा कांग्रेस से की। उनको राजनीति विरासत में मिली है। 2012 में पहला चुनाव लड़ा और पहली ही बार वह विधायक चुने गए। यादवेन्द्र गोमा ने पहला चुनाव जिस बड़े अंतर से जीता था, अगले ही चुनाव में भाजपा से उतनी ही बड़ी हार का मुंह देखना पडा। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों एक- एक बार बम्पर जीत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन इस बार देखना आम आदमी पार्टी के मैदान में होने से देखना रोचक होगा कि किसका पलड़ा भारी पड़ता है? जयसिंहपुर के हिस्से में आया विकास इस सरकार में जयसिंहपुर के लिए एचआरटीसी डिपो और जल शक्ति विभाग के डिवीजन के साथ बीएमओ आफिस खोलने की घोषणा हुई है। अंद्रेटा स्कूल में कॉमर्स कक्षाएं व टटेहल स्कूल में साइंस कक्षाएं चलाने की सौगात मिली है। पॉलिटेक्निक कॉलेज तलवाड़ में इलेक्ट्रिकल व कंप्यूटर ट्रेड चलाने और लोक निर्माण विश्राम गृह जयसिंहपुर में अतिरिक्त चार कमरों की स्वीकृति दी गई है। लाहडू में वेटरनरी कॉलेज, गंदड़ में पीएचसी व पंचरुखी में सीएचसी खोलने की घोषणा हुई है। विकास के ये काम भाजपा के कितने काम आते हैं, आने वाला वक्त ही तय करेगा। भाजपा – कांग्रेस की मजबूरियां जयसिंहपुर भाजपा संगठन में पिछले विधानसभा चुनाव में जो विरोध मुखर हुआ था, अंदरखाते वह तेज़ हुआ है। पिछली बार की तरह इस बार भी रविन्द्र धीमान को अपने घर में विरोध का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी और कांग्रेस के उम्मीदवार रहे यादविंदर गोमा के लिए इसलिए चुनावी चुनौती है कि कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने को लेकर उनका नाम उछलता रहा है। विपक्ष में रहते हुए गोमा यहां के स्थानीय मुद्दों को लेकर ज्यादातर समय गौण ही रहे हैं, जबकि यहां की खड्डों में अवैध खनन की ख़बरें सुर्खियाँ बटोरती आई हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्वास्थ मंत्री सत्येंद्र जैन और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के बचाव में कहा कि मेरा प्रधानमंत्री से हाथ जोड़कर अनुरोध है कि आम आदमी पार्टी के सभी मंत्रियों, विधायकों को एक साथ जेल में डाल दीजिए। सभी एजेंसियों को बोल दीजिए कि एक साथ सारी जांच कर लें। आप एक एक मंत्री को गिरफ़्तार करते हैं इससे जनता के लिए किये जाने वाले कामों में रुकावट होती है।स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन को ईडी ने कथित मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अरेस्ट किया गया है। गुरुवार को की गयी पत्रकार वार्ता में केजरीवाल ने कहा कि "मुझे लगता है कि सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया को फर्जी मामलों में जेल में डालकर ये लोग दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो अच्छे काम हो रहे हैं उन्हें रोकना चाहते हैं। परन्तु चिंता मत कीजिए मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, सभी अच्छे काम चलते रहेंगे"।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के आठ साल पूरा होने पर कांग्रेस ने चार सवाल पूछे हैं। मंगलवार को शिमला में भाजपा की तरफ से मनाए जा रहे जश्न पर हिमाचल कांग्रेस कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष व स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य सुखविंदर सिंह सुक्खू ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मोदी जी शिमला आ रहे हैं, तो प्रदेश को कुछ सौगातें देकर जाएं, पिछले दौरों की तरह सपने न बेचें। उन्होंने हिमाचल प्रदेश की जनता के साथ किया कोई भी वादा पूरा नहीं किया है। लोग खुद को ठगा महसूस करते आ रहे हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी कम करने के लिए क्या किया, प्रधानमंत्री को बताना होगा। सेब पर आयात शुल्क कब बढ़ेगा, हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा कब दिया जाएगा, मोदी इस पर भी अपनी चुप्पी तोड़ें। प्रदेश को विशेष आर्थिक पैकेज दें। प्रदेश में घोषित फोरलेन के लिए केंद्र सरकार जल्दी बजट करे। अभी तक यह जुमला साबित हुए हैं। भाजपा से कांग्रेस के सवाल--- आसमान छूती महंगाई कब कम होगी गैस सिलिंडर 1000 रुपये पार हो चुका है। पेट्रो पदार्थों की कीमतें 100 रुपये के आसपास हैं। यह 70 साल में पहली बार है। खाद्य पदार्थों के दामों में आग लगी है। आम जनता को कब राहत देंगे। भ्रष्टाचार पर कार्रवाई कब-- हिमाचल की भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है। पुलिस भर्ती पेपर लीक में करोड़ों रुपये की डील हुई। पुलिस के पास से ही पेपर लीक हो गया। स्वास्थ्य विभाग में कोविड काल में करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ। राजीव बिंदल को कुर्सी तक गंवानी पड़ी। सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबी है। भ्रष्ट नेताओं पर कब कार्रवाई करेंगे। बेरोजगारों को रोजगार कब-- हिमाचल प्रदेश में 12 लाख से अधिक बेरोजगार हैं। प्रदेश की जयराम सरकार रोजगार देने में पूरी तरह विफल रही। डबल इंजन की सरकार बताए, बेरोजगारों को रोजगार कब तक मिलेगा। युवाओं के भविष्य से सरकार कब खिलवाड़ बंद करेगी। किसानों, हाटी समुदाय को सौगात क्यों नहीं-- सेब की खेती करने वाले किसानों को वादे के बावजूद आज तक राहत क्यों नहीं दी। क्यों सेब पर आयात शुल्क नहीं बढ़ाया। उनके साथ विश्वासघात कब बंद होगा। हाटी समुदाय को आज तक एसटी का दर्जा नहीं दिया। उनके अरमानों से डबल इंजन सरकार कब खेलना बंद करेगी।
जुब्बल कोटखाई से उप चुनाव में रहे प्रत्याशी चेतन सिंह बरागटा ने आज कोटखाई जोन के बाघी, रत्नाडी, कलबोग, क्यारवी, चोगन कुल्टी, रामनगर व चमेरा बूथ में जन आभार कार्यक़म में पहुंचे। इस दौरान जनता व कार्यकर्ताओं ने चेतन बरागटा का हर्षोल्लास से ढोल नगाड़ों के साथ भव्य स्वागत किया। गौरतलब है कि पिछले कल जुब्बल जोन के पंदराणु, हाटकोटी और मंढोल बुथों पर हुई बैठको में भी सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे। बूथ की बैठको में भारी भीड़ का इकट्ठा होना इस बात का परिचायक है कि चेतन बरागटा पर जनता का विश्वास और अधिक सुदृढ़ हुआ है। चेतन ने कहा कि कलबोग में उप तहसील कार्यालय खोलने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का धन्यवाद करते हैं। स्व. नरेन्द्र बरागटा के प्रयासों वो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के आशीर्वाद से गुम्मा बाघी 30 किलोमीटर सड़क को पक्का किया गया। आज उबादेश की सभी पंचायतों को जोड़ने वाली सभी सड़कें चका- चक है जिसका पुरा श्रेय प्रदेश सरकार जाता है। चेतन बरागटा ने कहा कि कलबोग से बखरेल, चूईला,मेल फर्स्ट और मेल सैकेंड की टायरिग आजकल युद्ध स्तर पर चल रही है जिसके लिए वो मुख्यमंत्री के आभारी हैं। स्व नरेंद्र बरागटा का जुब्बल नावर कोटखाई को आदर्श विधानसभा क्षेत्र बनाने का स्वप्न था। जिसके लिए उन्होंने कोविड काल के बावजूद जुब्बल शावर कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये की लागत से विकासात्मक कार्यों को आरम्भ करवाया था। एस.डी. एम. कोटखाई की स्थायी नियुक्ति के लिए क्षेत्र की जनता की ओर से चेतन सिंह बरागटा ने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया तथा जुब्बल में भी एस.डी.एम. की स्थाई नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री से आग्रह किया। चेतन बरागटा ने कहा कि कांग्रेस के मित्रो को कोटखाई में एस. डी.एम. की नियुक्ति से शायद प्रसन्नता नही हुई, शायद इसीलिए अभी तक प्रदेश सरकार का विधायक रोहित ठाकुर ने आभार तक व्यक्त नही किया है। बल्कि इसके उल्ट एस. डी. एम. की नियुक्ति पर हुई अटकलों पर तंज कसते हुए सोशल मीडिया में जरूर दिखे। लेकिन अब एस डी एम कोटखाई की नियुक्ति पर चल रही अटकलों पर विराम लग गया है। चेतन सिंह बरागटा ने कहा कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हमे सकारात्मकता अपनाते हुए विकासात्मक कार्यों का स्वागत करना चाहिए। कार्यक्रमो में जिला परिषद सदस्य अनिल काल्टा, क्यारवी पंचायत प्रधान मंतीश चौहान, चौगन कुल्टी के प्रधान अंकुश,उप प्रधान संजीव किष्टा,कलबोग पंचायत उप प्रधान महेंद्र चौहान,रतनाडी पंचायत उप प्रधान प्रितम सिंह नेगी सहित सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
कांग्रेस अध्यक्ष अभी भी रजवादशाही में विश्वास करती हैं। भाजपा प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने भाजपा मुख्यालय दीपकमल चक्कर शिमला में मीडिया से बात करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के हॉली लॉज में निमंत्रण पत्र देने पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह द्वारा दी गई टिप्पणियों को सुनकर काफी दुख हुआ है। भाजपा एक ऐसी संस्कृति का पालन करती है ,जो पार्टी लाइन से ऊपर है और प्रधानमंत्री के समारोह के लिए किसी विपक्षी दल के अध्यक्ष को आमंत्रित करना हमारे लिए सम्मान की बात है। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय अखंडता में विश्वास करते हैं जबकि कांग्रेस समाज के विभाजन में विश्वास करती है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एक सच्चे भाजपा कार्यकर्ता हैं और पार्टी की विचारधारा का पालन करते हैं ,जयराम एक कार्यकर्ता थे, फिर विधायक, मंत्री और अब एक मुख्यमंत्री और उन्हें पता है कि एक सच्चा कार्यकर्ता क्या है। खन्ना ने कहा कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष में रानी की तरह काम करने की प्रवृत्ति है, वे एक आम आदमी के बारे में क्या जानते हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस अभी भी रजवादशाही के पुराने जमाने और परंपरा से उबर नहीं पाई है और वे आम जनता से दूर रहना चाहती हैं। मैंने खुद देखा है कि जयराम ठाकुर आम आदमी के मुख्यमंत्री हैं जब बच्चे उनके साथ सेल्फी लेने के लिए हमेशा उत्साहित रहते हैं। कांग्रेस को छोटे मुद्दे पर राजनीति बंद कर देनी चाहिए और खुले दिल से हिमाचल की प्रगति को देखना चाहिए।
भाजपा प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने शिमला के ढली वार्ड में आम जनमानस से रैली में आने के लिए निमंत्रण दिया लोगों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा यह बड़े सौभाग्य की बात है कि केंद्र सरकार के 8 साल पूर्ण होने पर राष्ट्रीय कार्यक्रम शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान में होने जा रहा है। इस मौके पर उन्होंने कार्यकर्ताओं को मोदी सरकार के 8 साल पूर्ण होने पर छोटी पत्रिका का वितरण भी किया। इस रैली को लेकर कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। कुछ स्थानों से लाभार्थी सुबह 3:00 बजे इस कार्यक्रम को का हिस्सा बनने के लिए अपने घरों से निकलना शुरू हो जाएंगे ताकि वह समय पर पहुंचकर इस कार्यक्रम का हिस्सा बन सके। उन्होंने कहा की इस समारोह से देश के किसानों को किसान सम्मान निधि का वितरण देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा और लगभग आधे घंटे तक पूरे देश के किसानों और लाभार्थियों के साथ वर्चुअल माध्यम से बातचीत की जाएगी। उन्होंने सभी से आग्रह किया है जब प्रधानमंत्री जी वर्चुअल माध्यम से लाभार्थियों के साथ बातचीत करेंगे सभी लोग शांति बनाए रखें ताकि सभी लाभार्थियों के साथ ठीक से बातचीत हो सके।
पुलिस पेपर लीक भर्ती मामले को लेकर हिमाचल प्रदेश युवा कांग्रेस क्रमिक भूख हड़ताल पर लगातार 15 दिनों से सभी जिला मुख्यालय कार्यालय के बाहर बैठे थे, आज शिमला जिलाधीश कार्यालय के बाहर हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के सह प्रभारी संजय दत्त जी और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष नेगी निगम भंडारी जी की मौजूदगी में क्रमिक भूख हड़ताल पर फिलहाल विराम लगाकर अशन को तोड़ दिया गया है,सह प्रभारी संजय दत्त ने कहा के युवा कांग्रेस और कांग्रेस हिमाचल के सौहार्द को खराब नहीं करना चाहती है,हम नहीं चाहते कि देश के प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान प्रदेश का सौहार्द पूर्ण वातावरण खराब हो इसलिए हिमाचल प्रदेश युवा कांग्रेस ने अपने क्रमिक अनशन को 15 दिन में समाप्त कर दिया है, यह भी कटु सत्य है कि प्रदेश में जब भी प्रधानमंत्री जी का दौरा हुआ है प्रदेश के लोगों को निराशा ही हाथ में लगी है,लेकिन हमारी यह अटल मांग है कि प्रदेश के 74000 युवाओं के साथ जो कुठाराघात हुआ है, और पात्र युवाओं को दरकिनार कर सरेआम नौकरियों को बेचा गया है इसमें जो भी लोग दोषी हैं वह सभी लोग सलाखों के पीछे होने चाहिए संजय दत्त ने कहा कि प्रधानमंत्री जी प्रदेश में आ रहे हैं और सीबीआई उनके अधिकार क्षेत्र में आती है युवा कांग्रेस की ये मांग है कि प्रधानमंत्री जी तुरंत हस्तक्षेप करें और सीबीआई को निर्धारित समय अवधि के अंदर इस जांच को पूरा करने के लिए आदेश दिए जाए। हिमाचल प्रदेश युवा कांग्रेस माननीय प्रधानमंत्री जी को प्रदेश के 12 जिलों के मुख्यालय में जिलाधीश के माध्यम से इस संदर्भ में ज्ञापन सौंपेगी , बाकी और अन्य 11 जिलों में आज क्रमिक भूख हड़ताल जारी रहेगी और कल दोपहर तक वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के सहयोग से इसे भी तोड़ा जाएगा,अगर दोषियों पर कार्यवाही नही की जायेगी तो युवा कांग्रेस और सभी वरिष्ठ कांग्रेस के साथी आने वाले दिनों में जनता के सहयोग से इस आंदोलन को विधानसभा स्तर पर और उग्र करेगी और युवाओं को न्याय दिलवा कर रहेगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट. मंडी विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है और अमूमन हर क्षेत्र में विभिन्न राजनैतिक दलों से टिकट के चाहवान प्रो एक्टिव है। जिला मंडी का नाचन हलका भी इससे इतर नहीं है। टिकट की रस्साकशी के बीच नाचन का सियासी आंगन भी फिलवक्त टेढ़ा दिख रहा है। यहाँ जीत की हैट्रिक लगा चुकी भाजपा के सामने जहाँ सीट बचाने की चुनौती है तो कांग्रेस पर बेहतर करने का दबाव। मौजूदा विधायक विनोद कुमार लगातार दो जीत दर्ज कर चुके है और इस बार भी टिकट के प्रबल दावेदार है। किन्तु मंडी लोकसभा उपचुनाव में नाचन से कांग्रेस को मिली लीड उनकी राह का काँटा बन सकती है। लोकसभा सीट के तहत आने वाली जिला की नौ सीटों में से सिर्फ नाचन ही ऐसी सीट थी जहाँ भाजपा पिछड़ी। डॉ ललित चंद्रकांत भी भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार है। डॉ चंद्रकांत आईजीएमसी में सहायक प्रोफेसर हैं और सक्रिय राजनीति में उतरने के लिए उन्होंने सरकार से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांगी है। वह लम्बे वक्त से संघ से जुड़े हुए हैं। डॉ चंद्रकांत के अलावा कमलकांत भी टिकट की रेस में शामिल है। नाचन हलका अप्पर व लोअर नाचन में बंटा है। विनोद कुमार मूलतः अप्पर नाचन से संबंध रखते हैं। ऐसे में लोअर नाचन के विकास कार्यो की अनदेखी के आरोप उन पर लगते है। 2012 में पहली बार विधायक बने विनोद कुमार ने क्षेत्र में अपनी अच्छी पैठ बनाई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में वह करीब 17 हजार मत से विजयी हुए थे। ऐसे में उनका दावा इस बार भी मजबूत होने वाला है। कांग्रेस की बात करें तो यहां एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। पूर्व प्रत्याशी लाल सिंह कौशल के अलावा टिकट की दौड़ में बीडी चौहान, दामोदर चौहान, शिवानी चौहान, नरेश चौहान, जसबीर, संजू डोगरा, प्रेम लाल गुड्डू व सीएल चौहान भी शामिल हैं। सभी लोगों ने क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान छेड़ रखा है। टिकट को लेकर अपने आकाओं के यहां हाथ पैर पार रहे हैं। सभी ने अलग-अलग नेताओं की डोर पकड़ रखी है। पर लोकसभा उपचुनाव की तरह अगर सभी नेताओं ने एकजुटता दिखाई तो भाजपा की मुश्किल बढ़ना तय है। उधर, देश की सबसे युवा प्रधान रही जबना चौहान को भी यहां कम नहीं आंका जा रहा है। जबना 2016 में 21 वर्ष की उम्र में देश की सबसे युवा पंचायत प्रधान बनी थीं। अब जबना आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुकी है। भाजपा का मजबूत किला रहा है नाचन : जिला मंडी का नाचन निर्वाचन क्षेत्र को भाजपा का मजबूत किला माना जाता है। वर्ष 1980 में भाजपा का गठन हुआ था और उसके बाद 1982 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में ही नाचन में भाजपा का खाता खुल गया। तब भाजपा टिकट पर दिलेराम ने जीत दर्ज की थी, जो 1977 में भी जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बने थे। इसके बाद 1990 और वर्ष 2007 में भी दिलेराम ने ये सीट भाजपा की झोली में डाली। इसके बाद 2012 और 2017 में मौजूदा विधायक विनोद कुमार ने भाजपा टिकट पर यहाँ से जीत दर्ज की। वहीँ कांग्रेस यहाँ से लगातार तीन चुनाव हार चुकी है। कांग्रेस के लिए टेक चंद डोगरा लम्बे वक्त तक यहाँ मुख्य चेहरा रहे है। डोगरा ने पार्टी को 1985, 1998 और 2003 में जीत दिलाई, जबकि 1993 में वे बतौर निर्दलीय चुनाव जीते।
- रामपुर में घटता जा रहा कांग्रेस की जीत का अंतर फर्स्ट वर्डिक्ट। शिमला जिला शिमला का रामपुर निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस का अभेद गढ़ है। देश में आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव को छोड़ दिया जाएँ तो यहाँ हमेशा कांग्रेस का परचम लहराया है। वहीँ भाजपा की बात करें तो 1980 में पार्टी की स्थापना के बाद से 9 विधानसभा चुनाव हुए है ,लेकिन पार्टी को कभी जीत का सुख नहीं मिला। पर बीते कुछ चुनाव के नतीजों पर नजर डाले तो कांग्रेस और वीरभद्र परिवार के इस गढ़ में पार्टी की जीत का अंतर कम जरूर हुआ है। 1990 की शांता लहर में भी कांग्रेस के सिंघीराम यहाँ से 11856 वोट से जीते थे, लेकिन 2017 आते -आते ये अंतर 4037 वोटों का रह गया। 1993 में कांग्रेस यहाँ 14478 वोट से जीती तो 1998 में जीत का अंतर 14565 वोट था। जबकि 2003 के चुनाव में ये अंतर बढ़कर 17247 हो गया। तीनों मर्तबा यहाँ से सिंघी राम ही पार्टी प्रत्याशी थे। 2007 में कांग्रेस ने यहाँ से प्रत्याशी बदला और नंदलाल को मैदान में उतारा। नंदलाल को जीत तो मिली लेकिन अंतर घटकर 6470 वोट का रह गया। 2012 में नंदलाल 9471 वोट से जीते तो 2017 में अंतर 4037 वोट का रहा। रामपुर पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह का गृह क्षेत्र है। वीरभद्र सिंह यहां के राजा थे और राज परिवार के प्रति यहाँ की जनता हमेशा निष्ठावान रही है। उनके निधन के बाद उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह को भी जनता का उतना ही प्यार मिलता रहा है, जैसा वीरभद्र सिंह को मिलता था। यहाँ से चेहरा कोई भी हो पर यहाँ प्रभाव राजपरिवार का ही है। अलबत्ता ये क्षेत्र आरक्षित होने के चलते यहाँ से कभी भी राज परिवार खुद चुनाव नहीं लड़ सका लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि वोट उन्हीं के चेहरे पर पड़ते है। 6 बार यहाँ से चुनाव जीत चुके सिंघीराम भी कभी वीरभद्र सिंह के करीबी थे, लेकिन दोनों में दूरियां बढ़ी तो राज परिवार का आशीर्वाद नंदलाल को मिला। इस बार भी कांग्रेस यहाँ से फिर नंदलाल को मौका दे सकती है, जो राजपरिवार के करीबी माने जाते है। भाजपा की बात करें तो 1990, 1993 और 1998 में भाजपा ने यहाँ से निन्जूराम को मैदान में उतारा, पर कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की। 2003 में भाजपा ने उम्मीदवार बदला और बृजलाल को मौका दिया लेकिन बृजलाल रिकॉर्ड 17247 मतों से हारे। 2007 में भी भाजपा ने बृजलाल पर ही भरोसा जताया। तब हार का अंतर कम जरूर हुआ लेकिन जीत का सूखा कायम रहा। 2012 में भाजपा ने यहाँ से प्रत्याशी बदला और प्रेम सिंह धरैक को मौका दिया, पर प्रेम सिंह भी करीब साढ़े नौ हज़ार वोट से चुनाव हार गए। हालांकि 2017 में प्रेम सिंह का प्रदर्शन बेहतर रहा और हार का अंतर करीब चार हज़ार वोट रहा। कौल सिंह भी दावेदार : रामपुर में इस बार भाजपा टिकट के कई चाहवान है। बीते दो चुनाव लड़ चुके प्रेम सिंह धरैक के अलावा कौल सिंह नेगी को भी टिकट का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। कौल सिंह को हाल ही में हिमको फेडरेशन का चेयरमैन भी बनाया गया है। वहीं 6 बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीतने वाले सिंघी राम भी अब भाजपा में शामिल हो चुके है। सिंघी राम ने लगाया छक्का, तो नंदलाल की हैट्रिक : 1977 में जनता दल के टिकट पर निन्जु राम ने यहां से जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1982 से लेकर 2003 तक हुए लगातार 6 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंघी राम ने जीत दर्ज की। जबकि 2007, 2012 और 2017 में जीत दर्ज कर कांग्रेस के ही नंदलाल भी जीत की हैट्रिक बना चुके है।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला बेदाग़ छवि वाले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार पर अब पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले का दाग लगा है। जयराम सरकार की चुनरी में लगे इस दाग के धब्बे गहरे है और निश्चित तौर पर विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष इन्हें हल्का पड़ने नहीं देगा। तंत्र की इस नाकामी का ठीकरा सरकार के सर फूटना लाजमी है। हालांकि सरकार ने हरसंभव एक्शन लिया है लेकिन ये प्रकरण अब सियासी रंग ले चूका है। कोरोना काल में हुए स्वास्थ्य घोटाले के बाद ये पहला ऐसा बड़ा मामला है जिसने सरकार की छवि को तार -तार कर दिया है। स्वास्थ्य घोटाले की आंच मंद करने के लिए तब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल को कुर्सी की बलि देनी पड़ी थी, तो अब सरकार ने मामला सीबीआई को सौप कर अपनी स्वच्छ छवि बचाये रखने का प्रयास किया है। पर असल बात ये है कि इस प्रकरण में सरकार की खासी छीछा लेदर हो चुकी है। व्यवस्था पर सवाल उठ रहे है और सवाल न सिर्फ विरोधी राजनैतिक दल उठा रहे है अपितु आम जनता भी सोशल मीडिया पर जमकर भड़ास निकाल रही है। व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़मी भी है क्यों कि सरकार और पुलिस प्रशासन की नाक तले पुलिस कांस्टेबल परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो गया। जिस पुलिस भर्ती परीक्षा के आयोजन पर हिमाचल पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही थी, वही लिखित परीक्षा खाकी पर दाग बन गई है। यहां बड़ा सवाल ये भी है की जब पुलिस महकमा ही अपनी परीक्षा पारदर्शिता के साथ नहीं करवा पा रहा है तो दूसरे विभागों में इसकी उम्मीद कैसे की जा सकती है। इस मामले के सामने आते ही बेरोज़गारी के मसले पर सरकार को पहले से घेर रहा विपक्ष भी और अधिक सक्रीय हो गया है। ज़ाहिर है चुनाव से पहले यह मुद्दा सत्तारूढ़ भाजपा के लिए गले की फांस बन गया है। यह मामला हजारों परिवारों से जुड़ा है। पुलिस कांस्टेबल की भर्ती 70 हजार से अधिक युवाओं ने दी है। खासकर जिन युवाओं ने अपनी मेहनत से पेपर पास कर मेरिट में जगह बनाई है, उनके सपनों पर पानी फिर गया है। यही वजह है कि कांग्रेस के साथ -साथ आम आदमी पार्टी और माकपा भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है। जयराम सरकार इस मामले में निष्पक्ष जांच का दावा ज़रूर कर रही है मगर आलोचनाओं का दौर थम नहीं रहा। हिमाचल में पुलिस भर्ती का लिखित पेपर पहली बार लीक हुआ है। दरअसल पुलिस ने पहली बार पेपर तैयार और प्रिंट करने का सिस्टम बदला था। अब आरोपों के घेरे मेें पुलिस भी है, इसलिए अब इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। जेओए भर्ती भी सवालों के घेरे में : इस मामले ने सिर्फ सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल ही खड़े नहीं किये बल्कि बीते कुछ सालों में सफल न हो पाई उन भर्ती प्रक्रियाओं की याद भी दिला दी जिनसे प्रदेश के बेरोज़गार युवा अब तक परेशान है। पुलिस भर्ती के आलावा जेओए भर्ती भी सवालों के घेरे में है। अन्य महकमों में भी भर्तियां अभी लंबित चल रही हैं। शिक्षा विभाग में आठ हजार मल्टी टास्क वर्करों की भर्ती अभी तक पूरी नहीं हुई है। जेबीटी भर्ती भी लटकी हुई है। दिन प्रति दिनप्रदेश में बेरोज़गार युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। बेरोज़गारी एक ऐसा मसला बन चूका जिसका निवारण सरकार के पास नहीं दिखाई देता। इस पर भर्ती परीक्षाओं के पेपर लेक होने से युवाओं में रोष है।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला केंद्र की मोदी सरकार ने अपने आठ साल की वर्षगांठ मनाने के लिए शिमला को चुना है। 31 मई को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिमला आ रहे है। मोदी रिज मैदान से एक जनसभा को संबोधित करेंगे। सियासी चश्मे से देखे तो जाहिर है चुनावी वर्ष है इसीलिए इस राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम की मेजबानी का मौका शिमला को मिला है। पर कारण जो भी हो, हिमाचल प्रदेश के लिए ये एक उपलब्धि जरूर है। जाहिर है मोदी सरकार शिमला में आठ साल मनाएगी तो देश भर में इसकी चर्चा भी खूब होगी। मेजबानी हिमाचल प्रदेश कर रहा है तो हिमाचल का विशेष जिक्र भी होगा और सम्भवतः प्रदेश को कोई विशेष सौगात भी मिल जाएं। बताया जा रहा है कि पीएम मोदी को बुलाने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने खास प्रयास किये है और उनके निमंत्रण को स्वीकार कर पीएम मोदी ने भी जयराम को आशीर्वाद दे दिया है। हिमाचल प्रदेश में मिशन रिपीट को सफल करने के लिए 'मोदी मैजिक' भाजपा का सहारा है। दरअसल संगठनात्मक बदलाव के बाद प्रदेश कांग्रेस भी प्रोएक्टिव नज़र आ रही है और कांग्रेस में ज़मीनी स्तर पर बदलाव की भी उम्मीद है। कांग्रेस लगातार प्रदेश सरकार को महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर घेर रही है और अब पुलिस कांस्टेबल पेपर लीक मामले के बाद ये हमले और भी तेज़ होते दिखाई दे रहे है। वहीं इस बार आम आदमी पार्टी भी मैदान में है। भले ही आम आदमी पार्टी अब तक प्रदेश में संगठनात्मक तौर पर कुछ बड़ा न कर पाई हो मगर पार्टी को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसीलिए पार्टी विद डिसिप्लिन भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। ऐसे में पीएम मोदी का चेहरा आगे रखकर ही पार्टी मैदान में उतरने जा रही है। भाजपा ने साल 2017 का चुनाव प्रो प्रेम कुमार धूमल के चेहरे पर लड़ा था। तब अंतिम समय तक पार्टी ने चेहरा घोषित नहीं किया था। तब भाजपा तो चुनाव जीत गई मगर खुद धूमल सफल नहीं हो पाए थे। पर इस बार अभी से ये लगभग स्पष्ट किया जा चुका है कि चुनाव में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही पार्टी को लीड करेंगे। हालांकि उपचुनाव में भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही लीड कर रहे थे, मगर परिणाम अनुकूल नहीं रहे थे। बावजूद इसके पार्टी जयराम ठाकुर के चेहरे पर भरोसा जताती दिख रही है। उपचुनाव से सबक लेते हुए पार्टी कोई रिस्क नहीं ले रही है, इसीलिए अभी से भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा में भाजपा ने 50 हजार कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है। इस आयोजन के जरिये प्रदेश में भाजपा माहौल बदलने की तैयारी में है। खुद मुख्यमंत्री की देखरेख में आयोजन की रूपरेखा को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। क्या विधानसभा चुनाव में चलेगा मोदी मैजिक : मोदी मैजिक की बात करें तो ये ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी है कि लोकसभा चुनाव में तो हिमाचल के लोग पीएम मोदी के नाम पर वोट करते है, लेकिन विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं होता। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी की चुनावी रैलियों के बावजूद पार्टी ऊना, फतेहपुर, कुल्लू और पालमपुर जैसे विधानसभा क्षेत्रों में अपना झंडा नहीं लहरा पाई थी।
- कांग्रेसी नेता भाजपा में जाकर बन रहे मुख्यमंत्री - परिवर्तन की जगह चिंतन मंथन के दौर में ही अटकी है पार्टी असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा, त्रिपुरा के नए मुख्यमंत्री मानिक साहा, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, नागालैंड में नेफियू रियो, अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, ये तमाम वो नेता है जो कांग्रेस से भाजपा में गए और मुख्यमंत्री बन गए। सेवन सिस्टर कहे जाने वाले नार्थ ईस्ट के साथ राज्यों में से इस वक्त पांच में भाजपा की सरकार है और इन पांचो राज्यों में मुख्यमंत्री वो नेता है जो कांग्रेस से भाजपा में गए। कांग्रेस आलाकमान की इससे बड़ी नाकामी भला और क्या हो सकती है। हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्य अब तक अपवाद जरूर है लेकिन बाकी देश में हाल बेहाल है। बीते कुछ समय में कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके है, तो कई हाशिए पर है और कभी भी इनकी रवानगी का समाचार मिल सकता है। बावजूद इसके नेतृत्व परिवर्तन की जगह पार्टी में अब तक चिंतन - मंथन का दौर ही चला हुआ है। 'ये खेल है कब से जारी, बिछड़े सभी बारी बारी'. कैफ़ी आजमी के लिखे गीत के ये अल्फ़ाज़ आज कांग्रेस की स्थिति बयां करने के लिए बिलकुल उपयुक्त है। जैसा कैफ़ी साहब ने लिखा था, वैसा ही कुछ कांग्रेस के साथ घट रहा है। एक - एक कर नेता -कार्यकर्त्ता पार्टी का साथ छोड़ते जा रहे है। हालहीं में उदयपुर में तीन दिन तक नव संकल्प शिविर में कांग्रेस का चिंतन -मंथन हुआ और इसके तीसरे ही दिन गुजरात से नतीजों का पहला रुझान आ गया। हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। साल के अंत में गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने है, इससे ठीक पहले हार्दिक का पार्टी से रुक्सत होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। ये अचानक नहीं हुआ, कांग्रेस क्या पुरे देश को पता था कि पार्टी आलाकमान की लचर कार्यशैली से उकता चुके हार्दिक ऐसा कदम उठा सकते है। पर कांग्रेस को मानो इस बात का ही इन्तजार था, शायद हार्दिक पार्टी के लिए गैर जरूरी लग रहे होंगे। बहरहाल कारण जो भी हो हार्दिक का जाना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। इससे पहले कांग्रेस के नव संकल्प शिविर के दौरान ही पंजाब से पार्टी के दमदार नेता सुनील जाखड़ ने गुड बाय कह दिया था। उनके जाने के कुछ दिन पहले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्वनी कुमार ने पार्टी को अलविदा कहा था। वहीँ कैप्टेन अमरिंद्र सिंह को हटाकर और नवजोत सिंह सिद्धू को संगठन की कमान थमाकर पंजाब में हार की पटकथा तो पार्टी विधानसभा चुनाव से पहले ही लिख चुकी थी। ये बेफिजूल के परिवर्तन नहीं किये गए होते तो संभवतः पार्टी पंजाब में बेहतर करती। कई दिग्गज भाजपा में हुए है शामिल : बीते एक दशक पर नज़र डाले तो कांग्रेस के कई दिग्गज भाजपा में शामिल हुए है। मध्यप्रदेश में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधियां तो अपने साथ -साथ कांग्रेस की सरकार भी ले गए थे। यूपी में एक दिन के मुख्यमंत्री रहे जगदंबिका पाल 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे। वह लगातार दो बार से बीजेपी के टिकट पर डुमरियागंज से सांसद हैं। इसी तरह कांग्रेस की पूर्व दिग्गज नेता रीता बहुगुणा जोशी 2016 में बीजेपी में शामिल हुई थीं। उन्होंने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट से चुनाव लड़ा था। पार्टी का ब्राह्मण चेहरा जितेन प्रसाद भी पिछले साल भाजपा में शामिल हो गए। हरियाणा में चौधरी बीरेंद्र सिंह 2014 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे। पीएम नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में उन्हें इस्पात मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। गुरुग्राम से सांसद राव इंद्रजीत सिंह भी 2014 में भाजपा में शामिल हुए थे। इसी तरह महाराष्ट्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल 2019 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे। पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे भी अब भाजपा में शामिल हो चुके है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा भी अब भाजपा में है। ऐसी सैकड़ों उदहारण है जहाँ कांग्रेस के अच्छे जनाधार वाले नेताओं ने भाजपा में शामिल होकर पार्टी का जनाधार बढ़ाया है।
फर्स्ट वर्डिक्ट. कांगड़ा 'गुरु गुड़ रहे चेला हो गए शक्कर' , 2017 के विधानसभा चुनाव में नगरोटा बगवां निर्वाचन क्षेत्र में हाल ऐसा ही था। तब कभी स्व. जीएस बाली के समर्थक रहे अरुण कुमार 'कूका' ने चुनावी मैदान में बाली को पटकनी देकर अपना लोहा मनवाया था। अब खुद बाली दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके पुत्र रघुवीर बाली कांग्रेस की अगुवाई करते दिख रहे है। वहीँ अरुण कुमार 'कूका' भाजपा का प्राइम फेस बने हुए है। ऐसे में आगामी चुनाव में संभवतः जूनियर बाली और कूका के बीच टक्कर देखने को मिले। नगरोटा बगवां विधानसभा क्षेत्र का विकास प्रदेश भर में चर्चा का विषय रहा है। टांडा मेडिकल कॉलेज, राजीव गांधी राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, परिवहन निगम का डिपो व आरएम कार्यालय, सिविल अस्पताल और ऐसे अन्य कई बड़े काम स्वर्गीय जीएस बाली की फेहरिस्त में शामिल हैं जिनके माध्यम से क्षेत्र की जनता को स्थानीय स्तर पर बेहतर सुविधाएं मिली हो। अब उनके पुत्र रघुवीर अपने पिता द्वारा कराए गए कार्यों के सहारे उनकी सियासी विरासत सँभालते दिख रहे है। उधर भाजपा की बात करे तो अरुण कुमार 'कूका' ही भाजपा का प्राइम फेस है। एक समय कूका भी जीएस बाली के समर्थक थे। 2012 में कूका ने जीएस बाली के खिलाफ निर्दलीय मैदान में थे तब जीएस बाली ने कूका को 2743 वोटों से हराया था। फिर 2017 में कूका ने बाजी पलटी और भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ बाली को पटकनी दी। गुटबाजी बड़ी चुनौती : स्व. जीएस बाली और स्व वीरभद्र सिंह के बीच हमेशा खट्टे मीठे संबंध रहे है। 2017 में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण गुटबाजी को भी माना जाता है। इस बार कांग्रेस रघुवीर को मैदान में उतारती है तो उनके लिए भी गुटबाज़ी साधना बड़ी चुनौती होगा। बाली का रहा है दबदबा : जीएस बाली1998 में पहली बार नगरोटा बगवां के विधायक चुने गए थे। उसके बाद 2003 व 2007 में उन्होंने चुनाव जीता। 2003 से 2007 के बीच वे परिवहन मंत्री रहे। 2012 में चौथी बार नगरोटा से उन्होंने चुनाव जीता और एक बार फिर परिवहन मंत्री बने। वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी माने जाते थे।
फर्स्ट वर्डिक्ट। कुल्लू कुल्लू के मन को जो एक बार भाता है, वो अगली बार बदल दिया जाता है। 1985 से लेकर अब तक कुल्लू निर्वाचन क्षेत्र ऐसी विधानसभा सीट रही है जहाँ हर पांच साल बाद परिवर्तन हुआ है। कोई भी चेहरा यहाँ लगातार दो बार नहीं जीता। ख़ास बात ये है कि चेहरे के साथ -साथ यहाँ कोई राजनैतिक दल भी लगातार दो बार नहीं जीता। पिछले चुनाव में यहाँ सुंदर सिंह ठाकुर ने जीत दर्ज कर इस सीट को कांग्रेस के नाम किया। अब इस बार सत्ता परिवर्तन की प्रथा का असर दिखता है या सुंदर सिंह ठाकुर रिपीट करते है, बहरहाल ये बड़ा सवाल है। वर्तमान विधायक सुंदर सिंह ठाकुर 2012 में भी कुल्लू निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस का चेहरा थे, लेकिन तब सुंदर सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। 2017 में फिर कांग्रेस ने सुंदर सिंह पर दाव खेला और उन्होंने दिग्गज नेता महेश्वर सिंह को हराकर जीत दर्ज की। सुंदर सिंह जिला में कांग्रेस के इकलौते विधायक है और इस नाते बीते कुछ वक्त में कुल्लू कांग्रेस का प्राइम फेस भी बन चुके है। चुनाव से पहले ही प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी में सुंदर सिंह को वरिष्ठ उपाध्यक्ष का पद दिया गया है। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि इस बार भी कांग्रेस से टिकट सुंदर सिंह को ही मिलेगा। हालांकि कई अन्य चाहवान भी टिकट की कतार में जरूर है। कुल्लू की सियासत में रियासत का भी ख़ासा दखल है। कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह के वंशज एवं भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भाजपा का एक बड़ा चेहरा है। न केवल कुल्लू निर्वाचन क्षेत्र में, बल्कि पुरे जिला में महेश्वर सिंह का खासा दबदबा है।1977 में महेश्वर पहली बार विधायक चुने गए। 1982 में दोबारा वह विधायक बने 1989 में नौवीं लोकसभा के सदस्य चुने गए। इसके बाद वे 1992 में राज्यसभा सांसद बने और 1999 में उन्होंने फिर लोकसभा का चुनाव जीता। इसके बाद महेश्वर सिंह ने भाजपा को अलविदा कहकर अपनी राजनीतिक पार्टी 'हिमाचल लोकहित पार्टी' का गठन किया। तब 2012 में भाजपा ने राम सिंह को मैदान में उतारा लेकिन हिमाचल लोकहित पार्टी से महेश्वर सिंह ने चुनाव जीता। 2017 में भाजपा से राम सिंह टिकट की मांग कर रहे थे, लेकिन टिकट मिला महेश्वर सिंह को। उस समय कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की। अब इस मर्तबा भी भाजपा में महेश्वर सिंह और राम सिंह सहित टिकट के कई दावेदार है। ऐसे में इस दफा भाजपा किसे मैदान में उतारती है ये तो आना वाला समय ही बताएगा। लोकसभा उपचुनाव में पिछड़ी थी भाजपा : मंडी लोकसभा उपचुनाव में भी महेश्वर सिंह को टिकट मिलने के कयास लग रहे थे लेकिन बाद में टिकट ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को मिला। जिला कुल्लू के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा पिछड़ी और ये ही कांग्रेस की जीत का बड़ा कारण भी बना। जानकार मानते है कि यदि मंडी लोकसभा उपचुनाव में भाजपा ने महेश्वर सिंह को टिकट दिया होता तो नतीजा बदल सकता था। आप में जा रहे नाराज नेता : कांग्रेस-भाजपा से नाराज और टिकट की उम्मीद छोड़ चुके दोनों ही दलों के नेता आप का दामन थाम रहे हैं। हाल ही में कुल्लू जिला से कांग्रेस के उपाध्यक्ष अनुराग प्रार्थी ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। हालांकि प्रदेश में आम आदमी पार्टी अधिक सक्रिय नहीं दिख रही है। ऐसे में कुल्लू विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी का कितना इम्पैक्ट पड़ेगा, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। आखिरी बार कुंज लाल ठाकुर ने किया था रिपीट : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्व लाल चंद प्रार्थी 1972 तक कुल्लू निर्वाचन क्षेत्र के सबसे ताकतवर नेता थे। पर आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता दल के टिकट पर कुंज लाल ठाकुर ने जीत दर्ज की। भाजपा के गठन के बाद कुंज लाल ठाकुर भाजपा में शामिल हुए 1982 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। इसके बाद कोई भी चेहरा लगातार दो बार कुल्लू में चुनाव नहीं जीता। 1985, 1993 और 2003 में कांग्रेस के राज कृष्ण गौर चुनाव जीतने में कामयाब रहे, 1990 में भाजपा के कुंज लाल ठाकुर और 1998 में भाजपा के चंद्र सेन ठाकुर ने जीत दर्ज की। 2007 में कुंज लाल ठाकुर के पुत्र और वर्तमान शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर कुल्लू से चुनाव जीते, वहीँ 2012 में महेश्वर सिंह और 2017 में कांग्रेस के सूंदर सिंह चुनाव जीते।
अरविन्द शर्मा। फर्स्ट वर्डिक्ट आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बढ़ते सियासी तपन की जद में जिला चंबा का भटियात निर्वाचन क्षेत्र भी आ चुका है। बीते कुछ वक्त में दूसरी बार विधायक बन विधानसभा पहुँचे विक्रम जरियाल ने ख़ुद अपनी लोकप्रियता को खासा नुकसान पहुँचाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह कई मौक़ों पर दिखने वाले विधायक के कड़े तेवर हैं, जो उनकी अपनी शालीन एवं सौम्य छवि के विपरीत हैं। साथ ही प्रदेश की अपनी ही सरकार होने के बावजूद भटियात क्षेत्र के लिए कोई बड़ी उपलब्धि लाना भी उनके लिए दूर की कौड़ी साबित हुआ है। पिछले साढ़े चार वर्ष में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी भटियात में एक मर्तबा पहुंचे हैं, जबकि बाकि समूचे चंबा में अक्सर मुख्यमंत्री के दौरे होते रहते हैं। कांगड़ा और चंबा की सीमा से लगते इस विधानसभा क्षेत्र के बाबत अगर बुनियादी सुविधाओं की बात की जाए तो अच्छे स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए यहाँ के बाशिंदों को टाँडा मेडिकल कॉलेज कांगड़ा और धर्मशाला का रुख करना पड़ता है। अगर इस क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों, आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियो, प्लस टू किए गए स्कूलों की उद्घाटन पट्टिकाओं पर नज़र डालें तो ज्यादातर पर कुलदीप पठानिया का नाम दर्ज है। हालांकि पिछले दिनों कैबिनेट में भटियात को लेकर चवाड़ी में पीडब्ल्यूडी डिवीजन खोले जाने की घोषणा जरूर जरियाल के लिए हर्ष का विषय हो सकता है, पर अभी तक यह घोषणा ही है। मौजूदा संभावित प्रत्याशियों के परिपेक्ष में पूर्व के आंकड़ों पर नज़र डालें तो भटियात विधानसभा में राजपूत व अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता है। अगर 2012 के विधानसभा को देखें तो जरियाल यह चुनाव भारी मतों से जितने में सफल रहे थे, जबकि चार बार के विधायक रहे पठानिया आसानी से हार गए थे। इसका कारण था यहाँ से निर्दलीय उम्मीदवार रहे भूपिंदर सिंह चौहान जिन्होंने दस हज़ार के आस-पास मत प्राप्त किये थे। साफ़ तौर पर मतों का विभाजन यहाँ दिखता है। 2017 में फिर जरियाल को यहाँ के लोगों ने विधानसभा पहुँचाया। तब विक्रम सिंह जरियाल ने कुलदीप सिंह पठानिया को 6885 वोटों के मार्जिन से हराया था। इस बार यूँ तो दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों से टिकट के कई दावेदार है पर संभवतः जरियाल और पठानिया फिर आमने -सामने होंगे। आज के इस सूचना -क्रांति वाले आधुनिक दौर में भी कोई चाहे लाख ख़ुद को समझदार मान कर चलें लेकिन सियासी शतरंज की बिसात पुराने तरीके से ही बिछाई जाती हैं। भटियात में भी ये ही कहानी है। यहाँ भी जातीय ध्रुवीकरण और मत विभाजन फैक्टर पर आधारित वोट बैंक की राजनीति को नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता। इस सीट पर गुज्जर, गद्दी और पिछड़े वर्ग के मतदाता जिसके पक्ष में एकजुट होकर वोट करेंगे, उसकी राह आसान होगी। बाकि पिछले दो -एक महीनों से प्रदेश में सक्रिय हुई आम आदमी पार्टी का ऊँट इस विधानसभा क्षेत्र में किस करवट बैठता है यह देखना भी दिलचस्प होगा। शांता ने गोद लिया, पर हालात नहीं बदले ... दत्तक पुत्र नाम से जाने वाले लाहड़ू के साथ लगते गांव परछोड़ को सांसद रहते हुए शांता कुमार ने गोद लिया था, लेकिन शांता भी इस गांव को गोद लेने की घोषणा ही कर पाए थे और कभी इस गाँव में जा नहीं सके। परछोड़ गांव में फिन्ना सिंह नहर का निर्माण पिछले कई वर्षों से चल रहा है और उस नहर के निर्माण कार्य को शुरू करवाने के श्रेय का दावा कांग्रेसी और भाजपाई दोनों करते आए हैं। पर हकीकत ये है कि अब तक कार्य अधर में लटका है। जरियाल का प्रधान से विधायक तक का सफर : विक्रम सिंह जरियाल राजनीति में आने से पहले भारतीय सेना में रहे। इसके बाद वे टुंडी पंचायत के प्रधान रहे। तदोपरांत दो बार जिला परिषद सदस्य चुने गए, जिसके बाद भाजपा ने उन्हें ज़िला सचिव बनाया। 2012 के चुनावों में जरियाल पहली बार विधायक चुने गए।
अरविन्द शर्मा। फर्स्ट वर्डिक्ट ज्वाली विधानसभा हलके में भाजपा के टिकट के लिए दो सशक्त दावेदार मैदान में है। एक फूल और दो माली वाली ये स्थिति भाजपा की चिंता बढ़ाती दिख रही है। 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में चुनाव न लड़ने वाले संजय गुलेरिया तब से न सिर्फ भाजपा संगठन में बने हुए है, बल्कि पिछले साढ़े चार वर्षों में उन्होंने ख़ुद को इस विधानसभा क्षेत्र में और मज़बूत किया है। जबकि अर्जुन ठाकुर विधायक तो है पर अपने कामकाज से कोई विशिष्ट पहचान स्थापित करते नहीं दिखते। मौजूदा दौर में जो राजनीतिक माहौल बनता दिख रहा है और जिस तरह के सियासी एक्सपेरिमेंट सत्ता प्राप्ति के लिए भाजपा द्वारा किए जा रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि एंटी इनकम्बेंसी वाले क्षेत्रों में पार्टी चेहरे बदलने से गुरेज न करे। हालांकि ज्वाली में अर्जुन ठाकुर के लिए यह कार्यकाल एक सुनहरा मौका था, लेकिन अर्जुन के तीर इस विधानसभा क्षेत्र में गढ़ी संजय की नज़रों को नहीं भेद पाए है। ज्वाली में भाजपा के दो गुटों का विभाजन इस तरह से किया जा सकता है, एक देहर के इस पार नगरोटा सूरियां -हरसर -घाड़ जरोट वाला इलाका जो कि संजय गुलेरिया का गुट है। इक्का -दुक्का लोगों को छोड़ दें तो ज़्यादातर यहाँ संजय समर्थक हैं। दूसरा देहर के उस पार ज्वाली -गुगलाड़ा वाला इलाका जिसमें ज्यादातर अर्जुन समर्थक हैं। पिछले चुनाव में अर्जुन का साथ देने वाले संजय गुलेरिया से उनकी दूरियों के मुख्य कारणों पर नज़र दौड़ाएँ तो सबसे बड़ी वजह गुलेरिया समर्थकों की उपेक्षा है। गुलेरिया समर्थकों का आरोप है कि अर्जुन ठाकुर पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं को जो कि हरबंस राणा के समय से भाजपा से जुड़े रहे हैं, उनको पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में नहीं बुलाते। बुलाना तो दूर की बात अर्जुन उनको प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उनका ये भी आरोप है कि अर्जुन ने भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं को नज़र अन्दाज़ कर अपने इर्द -गिर्द उन ठेकेदारों की फ़ौज जमा कर रखी है जिन्होंने पिछले साढ़े चार सालों में करोड़ों रुपए कमाए हैं। ये स्थिति निसंदेह भाजपा के लिए बेहतर नहीं हैं। अब बात करते हैं ग्राउंड रियलिटी की। ज्वाली में कई ऐसे मुद्दे है जो अर्जुन के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का सूत्रधार बन सकते है। मसलन पिछले साढ़े चार साल से नगरोटा सूरियां कालेज में प्रिंसिपल की ख़ाली पड़ी पोस्ट, चार महीने पहले सीएम द्वारा नगरोटा को उप तहसील का दर्जा दिए जाने की घोषणा के बाद वहाँ तहसीलदार को ना ला पाना, पिछले साढ़े चार सालों से नगरोटा सूरियां में बीएमओ की ख़ाली पोस्ट, नगरोटा -देहरा चौक के पास सात वर्ष पूर्व शुरू किए गए टूरिज्म सेंटर का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने पर भी उद्घाटन नहीं कर पाना, अर्जुन खब्बल में टूरिज्म के तैयार हट्स का उद्घाटन नहीं करवा पाना ( फलस्वरूप उनको वाइल्ड लाइफ़ वालों को देना पड़ा लेकिन फिर भी क्रियान्वित नहीं हो पाए), लम्बे अरसे से गज खड्ड पर प्रस्तावित जरोट -नगरोटा सूरियाँ पुल के लिए शिलान्यास का एक भी पत्थर तक न लगवा पाना इत्यादि। इन मुद्दों को लेकर न केवल विपक्ष हमलावर है बल्कि भाजपा के अंदर से भी आवाज उठ रही है। पिछले लम्बे समय से संजय गुलेरिया की ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में निरंतर सक्रियता उनकी हर हाल में चुनावी मैदान में उतरने की मंशा को स्पष्ट ही नहीं करती बल्कि अर्जुन ठाकुर को भाजपा टिकट पाने की राह को और भी मुश्किल कर सकती है। इस बार ज्वाली विधानसभा क्षेत्र के परिणाम तो ख़ैर भविष्य के गर्भ में छिपे हैं लेकिन फ़िलवक्त दो -दो प्रत्याशियों के चलते ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की राह जरूर मुश्किल हो सकती है। पहले गुलेर अब ज्वाली, चौधरी चंद्र कुमार का रहा दबदबा : ज्वाली विधानसभा क्षेत्र 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया। ये निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। इससे पहले फतेहपुर और ज्वाली दोनों एक हुआ करते थे। फ़तेहपुर को ज्वाली से अलग किया गया और पहले का गुलेर विधानसभा क्षेत्र अब ज्वाली विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। ज्वाली ( पहले गुलेर ) परंपरागत रूप से कांग्रेस के दबदबे वाली सीट रही है। हरबंस राणा ने यहां बीजेपी से तीन बार सफलता हासिल की है। इसके अलावा यहाँ ज़्यादातर चौधरी चंद्र कुमार ही जीतते आए हैं। परिसीमन के बाद पहली बार 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में चौधरी चंद्र कुमार के पुत्र नीरज भारती ने जीत दर्ज की। इससे पहले नीरज भारती 2007 में भी विधायक चुने गए थे। अगर पिछले चुनाव यानी 2017 की बात की जाए तो यहाँ भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। गुलेरिया के साथ आने से चंद्र कुमार का गढ़ भेद पाएं थे अर्जुन : 2017 के हुए चुनाव में भाजपा के अर्जुन ठाकुर ने चंद्र कुमार को 8213 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी। तब अर्जुन ठाकुर को कुल 36,999 मत मिले जबकि चौधरी चंद्र कुमार ने 28,786 वोट हासिल किए थे। 2017 के परिणामों का विश्लेषण करें तो अर्जुन ठाकुर की जीत का मुख्य कारण संजय गुलेरिया का उनके पक्ष में आना था। ज्वाली विधानसभा क्षेत्र तथा भाजपा में अपनी ख़ूब पैठ रखने वाले संजय गुलेरिया गज़ पार यानी नगरोटा सूरियाँ से ताल्लुक रखते हैं। पिछली बार अगर संजय गुलेरिया बतौर आजाद प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में उतरे होते तो भाजपा की इस सीट पर हार तय मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा संगठन संजय गुलेरिया को मनाने में कामयाब रहा।
2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों में भाजपा का आंकड़ा 44 पहुंच गया था, पर जीते हुए उम्मीदवारों की सूची में खुद तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती का नाम नदारद था। ऊना सदर की जनता ने सत्ती की उम्मीद पर पानी फेर दिया और पांच साल के लिए सियासी जायदाद कांग्रेस के सतपाल रायजादा के नाम कर दी। लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती का चुनाव हार जाना तब बड़ा घटनाक्रम था। दरअसल, भाजपा के सीएम उम्मीदवार प्रो प्रेम कुमार धूमल भी चुनाव हार चुके थे और जाहिर है अगर सत्ती चुनाव जीते होते तो सीएम पद की दौड़ में उनका नाम भी शामिल होता। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उनका दावा निसंदेह मजबूत रहने वाला था, मगर ऐसा हो न सका। अब इस वर्ष के अंत में फिर विधानसभा चुनाव होने है और एक बार फिर भाजपा के सतपाल का मुकाबला कांग्रेस के सतपाल से होना तय माना जा रहा है। यूँ तो दोनों तरफ टिकट के अन्य दावेदार भी है लेकिन फिलवक्त ऐसा कोई नहीं दिखता जो टिकेट की दौड़ में इन दोनों दिग्गजों को पछाड़ सके। ऊना के बढ़ते तापमान के साथ -साथ सियासी ताप भी प्रखर है और दोनों ही मुख्य उम्मीदवार अभी से दमखम सहित मैदान में टिके है। ऊना के सियासी अतीत की बात करें तो ऊना भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है। भाजपा के गठन के बाद 1982 में हुए पहले ही विधानसभा चुनाव में ऊना में पार्टी का खाता खुल गया था। 1977 में जनता दाल के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले देशराज 1982 में भाजपा के उम्मीदवार थे और दोबारा जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। 1985 में कांग्रेस के वीरेंद्र गौतम ने ये सीट पार्टी की झोली में डाली लेकिन 1990 फिर एक बार भाजपा के देशराज यहाँ से विधायक बने। इसके बाद 1993 में कांग्रेस के ओपी रतन और 1998 में फिर कांग्रेस के वीरेंदर गौतम ने यहाँ से जीत दर्ज की। पर 2003 में भाजपा ने सतपाल सिंह सत्ती को मैदान में उतारा और सत्ती ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2007 और 2012 में भी सत्ती ही जीते। पर 2017 में जनता का साती से कुछ मोहभंग हुआ और कांग्रेस को जीत मिली। पर हार के बावजूद सत्ती निरंतर सक्रिय है और संभवतः इस बार भी पार्टी प्रत्याशी होंगे। तीसरी बार आमने -सामने हो सकते है सत्ती और रायजादा : ऊना में पिछले दो मुकाबले सतपाल रायजा और सतपाल सत्ती के बीच हुए है। 2012 में सतपाल सत्ती करीब 4700 वोट से जीते तो 2017 में सतपाल रायजादा करीब तीन हज़ार वोट से जीते। रायजादा कांग्रेस के सीएम पड़ा के प्रबल दावेदार सुखविंदर सिंह सुक्खू के करीबी माने जाते है। बतौर विधायक उनका कामकाज ठीक ठाक है लेकिन सतपाल सिंह सत्ती की जमीनी पकड़ पर भी कोई संशय नहीं है। ये तय है कि इस बार भी यहाँ कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। ऊना में आम आदमी पार्टी पर भी नज़र रहने वाली है। ये क्षेत्र पंजाब से लगता हुआ है जहाँ आप की सरकार है। ऐसे में आप यहाँ कैसा करती है और किसके समीकरण बनाती -बिगाड़ती है , ये देखना भी रोचक होगा ।


















































