विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कसौली निर्वाचन क्षेत्र के समीकरण बदल चुके है । दरअसल लंबे अरसे तक भाजपा में विभिन्न दायित्व संभाल चुके हरमेल धीमान अब आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके है। हरमेल धीमान जाने - माने समाजसेवी है और कई वर्षों के जमीनी स्तर पर काम कर रहे है। हरमेल भाजपा में भी टिकट के दावेदार थे और जानकार ये तय मान रहे है कि आगामी चुनाव में वे आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार होंगे। उनके साथ उनके काफी समर्थक भी अब आप में शामिल हो रहे है। पर दिलचस्प बात ये है कि बीते दिनों कई कांग्रेसी विचारधारा के लोग भी आप में शामिल हुए है। इनमे युवा इंटक के नेता भी शामिल है। वहीँ माना जा रहा है कि आगामी दिनों में भाजपा -कांग्रेस से और कई लोग आप का दामन थाम सकते है। यानी दोनों पार्टियों से खफा असंतुष्ट नेता - कार्यकर्ताओं का मेल हरमेल के साथ मुमकिन है। इनके साथ आने का कितना लाभ आप और हरमेल को मिलता है, ये देखना रोचक होने वाला है। बहरहाल ये तय है कि कसौली में इस बार मुकाबला आमने -सामने का नहीं बल्कि त्रिकोणीय होने जा रहा है। कसौली वीआईपी निर्वाचन क्षेत्र है क्यों कि यहाँ से प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल विधायक है। डॉ सैजल पिछले दो चुनाव हारते- हारते बचे है और लाज़मी है कि अब मंत्री होने के चलते क्षेत्र के लोगों की अपेक्षाएं भी उनसे बढ़ी है। ऐसे में ये बदले समीकरण उनकी परेशानी में इजाफा कर सकते है। वहीँ पिछले दो चुनाव में डॉ सैजल को कड़ी टक्कर देने वाले विनोद सुलतानपुरी इस बार प्रो एक्टिव जरूर है लेकिन क्या वे इस बार भीतरघात साध पाते है या नहीं, ये देखना भी रोचक होगा। फिलवक्त हरमेल धीमान लाइम लाइट में है। उनका चुनाव लड़ना भी तय है और जिस आक्रमकता के साथ वे मैदान में उतर चुके है वो डॉ सैजल और सुल्तानपुरी दोनों के लिए खतरे की घंटी है। दोनों नेताओं को ये जहन में रखना होगा कि हरमेल के साथ न सिर्फ आप के समर्थक होंगे बल्कि दोनों तरफ के असंतुष्ट भी उन्हें मजबूत कर सकते है। बहरहाल चुनाव में काफी वक्त है और हर दिन नए समीकरण बनते बिगड़ते रहेंगे।
दल कोई भी हो लेकिन जीत हमेशा मिली। कभी अंतर कम रहा तो कभी ज्यादा, पर महेंद्र सिंह ठाकुर का परचम निरंतर धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र में लहराता रहा है। ठाकुर अब तक सात चुनाव जीते है, तीन भाजपा से, एक कांग्रेस से, एक हिमाचल विकास कांग्रेस से, एक लोकतांत्रिक मोर्चा से और एक बार निर्दलीय। दल बेशक बदलते रहे लेकिन जनता का भरोसा अब तक महेंद्र सिंह पर बरकरार रहा है। हालांकि पिछले तीन चुनाव वे भारतीय जनता पार्टी से ही जीते है। अब विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें लेकर फिर कयासों का बाजार गर्म है। बहरहाल सियासत में कयास लगते रहते है लेकिन ठाकुर फिलवक्त भाजपा में ही है और जयराम सरकार के शक्तिशाली मंत्रियों में शुमार है। पर इस मर्तबा उनके लिए टिकट की राह शायद आसान न रहे। दरअसल बीते कुछ समय से महेंद्र सिंह बेवजह के विवादों से घिरे रहे है। परसेप्शन पॉलिटिक्स के पैमाने पर ये विवाद उनकी राह का रोड़ा बन सकते है। चर्चा वैसे ये भी है कि महेंद्र सिंह अपने बेटे रजत ठाकुर को आगे करने की इच्छा रखते है किन्तु वंशवाद के नाम पर दस साल पार्टी में लगा चुके चेतन बरागटा का टिकट काटने वाली भाजपा रजत को टिकट दें, ऐसा मुश्किल लगता है। इस पर भाजपा के युवा नेता नरेंद्र अत्री भी टिकट के दावेदारों में है। अत्री के साथ भाजपा का एक बड़ा तबका दिख रहा है और निश्चित तौर पर टिकट की दौड़ में वे महेंद्र सिंह को टक्कर देते दिख रहे है। उधर कांग्रेस को इस सीट पर अंतिम बार 1993 में जीत मिली थी और दिलचस्प बात ये है कि तब कांग्रेस उम्मीदवार थे महेंद्र सिंह ठाकुर। इसके बाद हुए पांच चुनाव में कांग्रेस ने महेंद्र सिंह के आगे पानी नहीं मांगा। बीते तीन चुनाव पर नज़र डाले तो 2007 में पार्टी यहाँ दस हज़ार वोट से हारी। 2012 में पार्टी ने बेहतर किया और ये अंतर करीब एक हजार वोट का रह गया, पर 2017 में फिर बढ़कर करीब दस हजार पहुंच गया। तीनों मर्तबा पार्टी के कैंडिडेट थे चंद्रशेखर। अब चंद्रशेखर की हार की हैट्रिक के बाद मुमकिन है कि पार्टी यहाँ से उम्मीदवार बदलने पर मंथन करें। कई दावेदार मैदान में दिख भी रहे है, पर कोई ऐसा नहीं जो फिलवक्त मजबूत स्थिति में हो। हालाँकि चुनाव में अभी वक्त है और समीकरण बदलते देर नहीं लगती। भूपेंद्र और आप को लेकर कयास : भाजपा और कांग्रेस के अलावा तीसरा मोर्चा भी धर्मपुर में कई मर्तबा कामयाब रहा है। 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस यहाँ से चुनाव जीती तो 2003 में लोकतांत्रिक मोर्चा को जीत मिली। हालांकि दोनों बार महेंद्र सिंह ही प्रत्याशी थे। 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों पर नजर डाले तो यहाँ करीब दस प्रतिशत वोट सीपीआईएम को मिला था और उम्मीदवार थे तब जिला परिषद सदस्य रहे भूपेंद्र सिंह। बीते जिला परिषद चुनाव में सज्जाओपिपलू वार्ड से मंत्री महेंद्र की बेटी वंदना गुलेरिया मैदान में थी और उनके सामने कांग्रेस और सीपीआईएम ने भूपेंद्र सिंह को साझा उम्मीदवार बनाया था। हालाँकि भूपेंद्र जीत न सके पर टक्कर कड़ी दी। अब आम आदमी पार्टी के मैदान में आने के बाद इन्हीं भूपेंद्र सिंह पर निगाहें टिकी है। कयास लग रहे है कि भूपेंद्र आप का दामन थाम सकते है, हालांकि उनकी तरफ से अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है। पर जानकार मानते है कि यदि ऐसा होता है तो यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा।
Kangra, the nerve center of Himachal Pradesh politics and the largest district in the state, has turned into a battleground for the ruling Bharatiya Janata Party and Aam Admi Party, while the faction-ridden main rival party - Congress is still lying low. today in his second visit to his home state in less than a fortnight, BJP national president JP Nadda led a roadshow before addressing a rally at Nagrota Bagwan in Kangra. The BJP rally and roadshow were conducted just before the Aam Aadmi Party national convener and Delhi chief minister Arvind Kejriwal’s rally at Shahpur in the district. Kangra is the district that paves the way for the power of Himachal Pradesh. Out of the 68 MLAs of Himachal, 15 come from the Kangra district. Nadda, who is beaming with confidence after BJP’s win in four states, is aware that winning assembly elections in his home state of Himachal is crucial not only for the party but for him too. He has fully turned his focus towards the hill state, where the Saffron Party is facing internal challenges and will have to battle anti-incumbency as well. Today hitting out at congress JP Nadda said that the Congress party has always snatched the rights of Himachal, they never gave what Himachal should have got. Whereas the BJP has always protected the rights of Himachal. He said that Congress was the party that took away the special category status from Himachal Pradesh in the year 1987. He said that BJP has done work for the country while Congress party workers waste their time talking about casteism, communalism, and nepotism. He said Jai Ram Thakur's government is an accountable government. Kangra gave Himachal its first non-Congress chief minister when BJP formed the government under the leadership of Shanta Kumar in 1977. However, infighting may hurt BJP in the district, where former minister Ramesh Dhawala and state organization secretary Pavan Rana are at daggers drawn. However, BJP has refuted any assertion of a threat to the party.
The Shimla civic body elections are crucial for all political parties in the state as the polls are being seen as a precursor to the assembly elections which are scheduled later this year. The Aam Aadmi Party (AAP) has decided to contest the upcoming Shimla municipal corporation (MC) elections only if they are held on party symbols, says the party’s state in-charge Satyendar Jain. In a press briefing, Stayender Jain said, that AAP will contest the Shimla MC polls only if it is held on party symbols. But, from what we have learned, the incumbent BJP government is not keen on holding the election on party symbols. It is likely that the MC elections will be held on the basis of candidates. If that happens, AAP will not contest the civic polls. Civic polls in Shimla are likely to be held in May as the current BJP-led civic body’s tenure is slated to end on June 2. Shimla has 41 wards, of which 21 are reserved for women, 17 for the general category, and four for the Scheduled Caste (SC) category. "AAP will not contest because then the BJP will take away all our winning candidates. By now, the AAP has reached a state where our party’s symbol - the broom - has gained significant popularity. Without any party symbol, why would anybody vote for the AAP? At present, our strength in Shimla is based more on the party symbol, the name of AAP, and (party chief) Arvind Kejriwal than any candidate whom we would have otherwise chosen,” he said.
हिमाचल में सियासत सुलग चुकी है मगर कांग्रेस अब भी बुझी-बुझी दिख रही है। एक तरफ भाजपा मिशन रिपीट के लिए अभी से भरपूर ताकत झोंक रही है, तो आम आदमी पार्टी भी पांव मजबूत करने को जोर आजमाइश कर रही है। वहीं कांग्रेस इसी असमंजस में है कि चुनावी मैदान में किस की लीडरशिप में उतरे। फिलवक्त तो हाल -ए- कांग्रेस कुछ ऐसा है कि दिग्गजों की दिलचस्पी विधानसभा चुनाव से ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष के चयन में प्रतीत हो रही है। खुल कर कोई कुछ बोल नहीं रहा और कसर कोई कुछ छोड़ नहीं रहा। ये महारथी इसी गुणा भाग में लगे है कि अध्यक्ष पद पर किसके आने-जाने, रहने या न रहने से उनके सियासी भविष्य पर क्या असर हो सकता है। इसी व्यस्तता में शायद विधानसभा चुनाव की हलचल भी पार्टी को सुनाई नहीं दे रही है। ये अलग बात है कि धरातल स्थिति से परे नेताओं की निजी महत्वाकांक्षा परवान पर है और पांच साल में सत्ता परिवर्तन की सियासी थ्योरी के भरोसे पार्टी आशावान। वो कहते है ना, "मन के लड्डू छोटे क्यों, छोटे हैं तो फीके क्यों.." इस बार विधानसभा चुनाव का रण निश्चित तौर पर कठिन होना है, बावजूद इसके कांग्रेस अभी तक फुल ऑन एक्शन मोड में नहीं दिख रही। वहीं एक महीने पहले हिमाचल में सक्रिय हुई आम आदमी पार्टी सत्तासीन भाजपा सरकार को घेरने में आगे है। पलटवार करते हुए भाजपा भी आम आदमी पार्टी की टांग खींच रही है, और इन दोनों के वाक्युद्ध की बीच कांग्रेस का जिक्र भी मुश्किल हो रहा है। हालांकि कांग्रेस के कुछ नेता जरूर अपने स्तर पर मोर्चा संभाले हुए है, लेकिन सब अलग -अलग। सत्ता वापसी के लिए पार्टी को जिस सामूहिक और सशक्त प्रयास की दरकार है, वो अब तक लगभग नदारद दिख रहा है। प्रदेश में भाजपा के बड़े नेता ग्राउंड पर है। खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल में हुंकार भर चुके है। गुटबाजी के बावजूद पार्टी कार्यकर्त्ता जोश में दिख रहे है। इसी तरह आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल एक पखवाड़े में प्रदेश में दूसरा रोड शो करने जा रहे है। पार्टी का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है और अब तो कोंग्रेसियों के बाद भाजपाई भी आप में शामिल हो रहे है। वहीं कांग्रेस अब तक सुस्त है, मानो किसी सियासी मुहूर्त का इन्तजार हो। प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला की अगुवाई में महंगाई के खिलाफ हुए हल्ला बोल को छोड़ दिया जाए तो अब तक खानापूर्ति ही होती दिखी है। इतिहास तस्दीक करता है कि अब तक हिमाचल में दो ही मुख्य राजनीतिक दलों का बोलबाला रहा है और वो है भाजपा और कांग्रेस, मगर ये भी सत्य है की अगर कांग्रेस ने जल्द गियर न बदला तो इतिहास बदलते समय नहीं लगेगा। वीरभद्र के फेस पर लड़े पिछले आठ विधानसभा चुनाव : 1985 से लेकर साल 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में लड़े थे। मौटे तौर पर कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कभी कोई भी संशय देखने को नहीं मिला। कभी संशय हुआ भी तो वीरभद्र सिंह ने समय रहते सारी शंकाएं दूर कर दी, कभी तेवर दिखाकर तो कभी शक्ति प्रदर्शन से। ये पहली दफा है जब कांग्रेस बिना वीरभद्र सिंह के चुनाव के रण में उतरेगी। निसंदेह पार्टी के पास अब भी उनका विकल्प नहीं दिख रहा। तब महंगाई से बड़ा कारण था सहानुभूति कांग्रेस ने उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था। पार्टी कहती हैं कि जनता ने महंगाई और प्रदेश सरकार के खिलाफ वोट किया था। मगर हकीकत ये है कि उस चुनाव में वीरभद्र सिंह के लिए सहानुभूति फैक्टर ने कांग्रेस की राह आसान की। दूसरा भाजपा ने टिकट आवंटन में बड़ी गलतियां की थी, जिसकी गुंजाईश विधानसभा चुनाव में नहीं दिखती। यदि महंगाई इतना बड़ा फैक्टर हैं तो हाल ही में पांच राज्यों के चुनाव में ये फैक्टर क्यों नहीं चला। कांग्रेस को विवेचना करना होगा कि महंगाई एक मुद्दा जरूर हैं लेकिन सिर्फ महंगाई के मुद्दे पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। अन्य जनहित के मुद्दों को लेकर भी पार्टी को हर विधानसभा क्षेत्र में उतरना होगा। तो दूल्हा तो ढूंढना ही होगा ! हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच अब नई खबर ये भी है कि कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। कांग्रेस की वर्तमान स्थिति देखें तो महत्वाकांक्षी नेताओं के बीच आपसी सेटलमेंट करवाने में जुटी हाईकमान के लिए ये एक सेफ फैसला हो सकता है। मगर सवाल ये है कि क्या कांग्रेस बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनाव में बेहतर कर पाएगी ? याद रहे ये वो ही कांग्रेस है जो भाजपा को बिन दूल्हे की बारात कहा करती थी। माहिर मानते हैं कि सत्ता के रंग से हाथ पीले करने हैं तो कांग्रेसी बारात को दूल्हा तो ढूंढना ही होगा।
हिमाचल की सियासत के सबसे बड़े किले काँगड़ा को फतेह करने के लिए भाजपा और आप ने रोड मैप तैयार कर लिया है। आबादी के साथ -साथ सियासी रसूख के लिहाज से भी सबसे बड़े जिले काँगड़ा में सियासी फ़िज़ा गरमाने लगी है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल काँगड़ा का रुख करने वाले है। दरअसल काँगड़ा वो जिला है जो हिमाचल की सत्ता की राह को प्रशस्त करता है। हिमाचल के 68 विधायकों में से कुल 15 जिला कांगड़ा से चुनकर आते है। कहते है जिसने काँगड़ा जीत लिया उसका बेड़ा पार हुआ, और यही कारण है कि आप और भाजपा मिशन कांगड़ा पर निकल पड़े हैं। पिछले आठ विधानसभा चुनाव के नतीजों पर निगाह डाले तो जिसे कांगड़ा ने चाहा सरकार उसी की बनी। पिछले चुनाव में भी यहाँ भाजपा को 11 सीटें मिली थी और सरकार भी उसी की बनी। अब भाजपा अपने इस किले को बचाने के लिए मुस्तैद हैं तो आप सेंधमारी के लिए पूरी तरह तैयार। 22 अप्रैल को नगरोटा बगवां में जगत प्रकाश नड्डा का रोड शो है, तो इसके अगले दिन यानी 23 अप्रैल को अरविंद केजरीवाल की धर्मशाला में जनसभा होगी। जाहिर हैं वार पलटवार भी होंगे और सियासी ताप भी खूब बढ़ने वाला हैं। वहीं इस जोर आजमाईश और दम की नुमाईश में कांग्रेस अभी कहीं नहीं दिख रही। निगाहें कांग्रेस पर भी होगी, ये देखना रोचक होगा कि भाजपा और आप के इन आयोजनों के मुकाबले पार्टी क्या करती हैं और कब करती हैं। कांग्रेस के कई नेताओं के पाला बदलने के कयासों में कांगड़ा से भी एक बड़ा नाम इन दिनों चर्चा में हैं, अब ये भाजपा में जाते हैं या आप में या कांग्रेस में ही रहेंगे, ये देखना भी रोचक होगा। 'आप' को चाहिए दमदार चेहरा : 6 अप्रैल को मंडी में हुआ अरविन्द केजरीवाल और भगवंत मान का रोड शो कई मायनों में सफल रहा था और कई कसौटियों पर असफल। पार्टी ठीकठाक भीड़ इक्कठा करने में तो सफल हो गई थी लेकिन किसी बड़े नेता के पार्टी में शामिल होने के कयास सिर्फ कयास ही रह गए थे। ऐसे में कांगड़ा में आप की कोशिश रहेगी कि कुछ दमदार हिमाचली चेहरो को पार्टी में शामिल कर माहौल बनाया जा सके। यदि ऐसा नहीं होता हैं तो बगैर मजबूत स्थानीय चेहरे के पार्टी लम्बा दौड़ पायेगी, ऐसा नजदीक भविष्य में तो मुश्किल लगता है। जयराम जानते हैं, माइनस कांगड़ा मिशन रिपीट नहीं संभव बीते कुछ माह में खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कांगड़ा में मोर्चा संभाला हुआ हैं। लगातार मुख्यमंत्री कांगड़ा के दौरे कर रहे हैं और अमूमन हर निर्वाचन क्षेत्र पर उनकी कृपा बरसी हैं। जयराम जानते हैं कि माइनस कांगड़ा मिशन रिपीट संभव नहीं हैं और जाहिर हैं कांगड़ा को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। खुद मुख्यमंत्री जमीनी स्तर के पदाधिकारियों से संवाद साधे हुए हैं। जो शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल नहीं कर पाएं वो करने का दावा जयराम ठाकुर कर रहे हैं। 'ब' से बेहतर 'ब' से बदलाव : पिछली सरकार में स्वर्गीय जीएस बाली और सुधीर शर्मा जिला कांगड़ा में कांग्रेस के प्रमुख चेहरे रहे हैं। बाली अब रहे नहीं और सुधीर के खिलाफ पार्टी के भीतर ही कुछ असंतोष हैं। वर्तमान जिला संगठन भी छाप छोड़ने में कामयाब नहीं दिखा रहा। जानकार मानते हैं कि पार्टी को कांगड़ा में बेहतर करना हैं तो बदलाव करना होगा। आशीष बुटेल, भवानी पठानिया सहित कई ऐसे चेहरे हैं जो नेतृत्व करने में सक्षम दिखते हैं। इनमें से किसी को दायित्व और शक्ति दिए जाने की जरुरत हैं।
काँगड़ा जिला का इंदौरा विधानसभा क्षेत्र पंजाब के साथ सटा है। यहाँ लम्बे समय तक भाजपा का राज़ रहा है । इंदौरा से पूर्व में निर्दलीय विधायक रहे मनोहर धीमान भले ही भाजपा के समर्थक है, लेकिन भाजपा द्वारा उन्हें आज तक टिकट नहीं दिया गया । 2012 में मनहोर धीमान ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की । भाजपा द्वारा इतने लम्बे समय तक टिकट न दिए जाने व अन्य विषयों को लेकर फर्स्ट वर्डिक्ट ने उनसे चर्चा की । पेश है बातचीत के कुछ अंश............ सवाल : आप लंबे समय तक भाजपा के साथ रहे हैं और 2012 में आप निर्दलीय विधायक चुनकर आए, लेकिन उसके बावजूद भी 2017 में पार्टी द्वारा आपको टिकट नहीं दिया गया, क्या कारण मानते हैं? जवाब: ऐसा कुछ भी नहीं है, यदि 2017 चुनाव की बात करे तो उस दौरान पार्टी के द्वारा मुझे आदेश दिया गया कि आप पार्टी के लिए कार्य कीजिये और महिला कोटे में मौजूदा विधायक को टिकट दी गई थी। उस दौरान जब मैंने नॉमिनेशन भरा था तो मेरे साथ भारी संख्या में क्षेत्र के लोग थे। उस समय के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती वहां पहुंचे और उन्होंने सब कुछ अपनी आंखों से देखा। उन्होंने हाईकमान को इसकी रिपोर्ट भी प्रेषित की। पार्टी ने मुझे इसके बावजूद इतना बड़ा सम्मान दिया है उसके लिए मैं पार्टी का धन्यवाद करता हूं। मैं पार्टी के हाईकमान को भी आश्वस्त करता हूं कि जो भी कार्य मुझे दिया जाएगा मैं उसका निर्वहन करुंगा। सवाल : 2012 से 2017 तक आप विधायक थे। क्षेत्र में ऐसे कौन से कार्य है जिन्हें आप के समय में शुरू किया गया था। क्या वह अभी भी सुचारु रूप से चल रहे है या कुछ ऐसे भी है जो बंद हो चुके है ? जवाब:मैंने विधायक रहते यहां की जनता को जो सबसे बड़ी सुविधा दी थी वह था एसडीएम कोर्ट। यहाँ के कुछ क्षेत्रों के लोगो को यदि एसडीएम कार्यालय जाना होता था तो उन्हें रात को नूरपुर में रहना पड़ता था और अगले दिन अपना कार्य करना होता था। मैं मानता हूँ कि यह इस क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं जनता का भी धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने मुझे बतौर निर्दलीय विधायक चुना और मैंने भी पूरा प्रयास किया कि लोगो की उम्मीदों पर खरा उतर सकूँ और जनता ने भी आज तक उस बात को याद रखा है। जब मैं विधायक था तो मैंने कई कार्य किए थे, उसमें छौंज खंड का एक प्रोजेक्ट था जिसकी लम्बाई 26 किलोमीटर है और इसकी लागत 190 करोड की थी। इसके अलावा एक और ऐसा प्रोजेक्ट है जो इस इलाके के लिए वरदान साबित हुआ है। इंडस्ट्रियल एरिया डाक बराड़ा के पास हमने इंडस्ट्री लगाई थी और कई लोगों को उसमे रोज़गार मिला है। सवाल : वर्तमान विधायक द्वारा करवाए गए कार्यों से क्या आप सहमत हैं? जवाब: सरकार की ओर से जो स्कीमें चली है उसको लेकर अच्छा कार्य हो रहा है। जो विधायक की कार्यशैली है उसके मुताबिक वह अच्छा कार्य कर रही है। ये तो जनता बताएगी की कार्य हुआ है या नहीं। सवाल : क्या मनोहर धीमान आगामी विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ेंगे या नहीं? जवाब: मैं पिछले चुनाव में सिटिंग एमएलए था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने मुझे आश्वस्त किया कि इस बार आप टिकट की दौड़ से बाहर रह गए हैं तो आप मौजूदा विधायक का समर्थन करे और उन्हें विजयी बनाए। हमने भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं का सम्मान करते हुए उनको जिताया और जो हाईकमान फैसला करेगा वह सर्पोपरि होगा। सवाल : यदि फिर से आपको टिकट नहीं दी जाती है तो क्या बतौर आज़ाद उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे ? जवाब: आजाद लड़ने की तो नौबत नहीं आएगी, मैं पार्टी के टिकट पर ही चुनाव लडूंगा। सवाल : पंजाब में हाल ही में चुनाव हुए हैं और आम आदमी पार्टी की शानदार जीत हुई है। इसके बाद हिमाचल पर भी इसका असर होता दिख रहा है। इंदौरा की यदि बात की जाए तो इंदौरा बिल्कुल पंजाब के साथ सटा क्षेत्र है। आपको क्या लगता है कि आम आदमी पार्टी का इंदौरा पर क्या असर होगा ? जवाब: हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और सरकार द्वारा बहुत अच्छे कार्य हुए है। संयोग यदि हम देखे तो पंजाब में हमारी दोनों ओर भारतीय जनता पार्टी की सीटें आई है। मुझे नहीं लगता कि यहां पर झाड़ू का कोई असर होगा। मुझे भी पंजाब के मुकेरियां जिला में जिम्मेवारी दी गयी थी जहाँ का परिणाम बहुत अच्छा रहा है। वहां के विधायक जंगी लाल महाजन बहुत अच्छे अंतर से जीते हैं। उन दोनों सीटों का प्रभाव हमारे विधानसभा क्षेत्र में पड़ेगा और मुझे लगता है कि झाड़ू का हिमाचल में कोई रोल नहीं है। लोग जरूर आम आदमी पार्टी में जा रहे हैं, हमें भी हाल ही में पता चला कि हमारे विधानसभा क्षेत्र के भी कुछ लोग "आप" में शामिल हुए है। कांग्रेस से जो रुष्ट लोग हैं वो ही आम आदमी पार्टी में जा रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी का कोई भी व्यक्ति आम आदमी पार्टी में शामिल नहीं हुआ है और ना ही कोई होगा। सवाल : आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक है और भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए किस तरह कि तैयारियां की जा रही है ? जवाब: यदि मैं व्यक्तिगत तौर पर अपनी बात करूं तो मैं सुबह घर से निकलता हूं और घर-घर, गांव-गांव जाकर भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को लोगो तक पहुंचा रहा हूँ। मैं प्रदेश और केंद्र सरकार की सभी नीतियों का लोगो के बीच में प्रचार प्रसार कर रहा हूँ। लोगों के दुख सुख में शामिल हो रहा हूँ। हम लोगों का मन भी पढ़ रहे हैं और लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं कि मोदी है तो मुमकिन है। यह सब बातें लोगों के मन में है और लोग बढ़-चढ़कर भारतीय जनता पार्टी से जुड़ रहे हैं और अगला चुनाव यहाँ से भाजपा ही जीतेंगे।
आगामी विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और कई नेताओं के माथे पर अब चिंता की लकीरे खींची हुई है। टिकट मिलने के लिए अब कुछ नेता एक्टिव हो गए है, तो कुछ सुपर एक्टिव। टिकट किसे मिलेगा ये तो आने वाला समय ही तय करेगा, बहरहाल हाल ऐ इंदौरा भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है। यहाँ गुटबाजी और अंतर्कलह के कारण भाजपा की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही है, तो कांग्रेस में भी चेहरे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। वहीँ अब आम आदमी पार्टी भी हिमाचल की 68 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है, ऐसे में यहाँ के राजनैतिक समीकरण भी बदल सकते है। इस बार इंदौरा में दिलचस्प मुकाबला तय है। इंदौरा में पिछले दो चुनाव की बात करे तो 2012 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मनोहर लाल धीमान ने जीत हासिल की थी और दूसरे नंबर पर कांग्रेस उम्मीदवार कमल किशोर थे, जबकि तीसरे स्थान पर बीजेपी उम्मीदवार रीता धीमान रही। उस समय मनोहर लाल धीमान कांग्रेस एसोसिएट विधायक रहे लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव आते ही करीब छः माह पूर्व ही मनोहर भाजपा में शामिल हो गए। तब मनोहर धीमान ने भाजपा से टिकट की मांग की थी लेकिन भाजपा ने पिछले उम्मीदवार यानी रीता धीमान पर ही दांव खेला और किसी तरह भाजपा मनोहर को मना कर अंतर्कलह साधने में भी सफल रही। नतीजन कांग्रेस के कमल किशोर को हरा कर रीता धीमान ने इस सीट पर जीत दर्ज की। मनोहर, रीता या कोई और : पर इस बार इंदौरा में भाजपा की डगर कठिन हो सकती है। पिछली बार यहाँ मनोहर धीमान भाजपा से टिकट की मांग कर रहे थे, तब पार्टी के कई बड़े नेताओं ने उन्हें मना कर जैसे तैसे भगवां लहराया। अब फिर विधानसभा चुनाव दस्तक दे रहे है और मनोहर धीमान फिर टिकट की कतार में है। अब यदि भाजपा फिर रीता धीमान को टिकट देती है तो मनोहर धीमान का क्या रुख होता है, ये देखना रोचक होगा। माना जा रहा है कि मनोहर इस बार चुनाव लड़ने के मूड में है, पार्टी टिकट पर या टिकट के बगैर। हालांकि खुद मनोहर अब तक इस विषय पर खुलकर नहीं बोल रहे है। दूसरी ओर विधायक रीता धीमान का दावा भी टिकट के लिए कमतर नहीं होगा, पर उनकी राह आसान नहीं दिख रही। दो चुनाव हार चुके है कमल किशोर : उधर कांग्रेस में फिलवक्त चेहरे को लेकर ही स्थिति स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस के कमल किशोर को इस बार टिकट मिलना मुश्किल दिख रहा है। कमल किशोर लगातार कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में दो चुनाव हार चुके है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कमल निर्दलीय मनोहर धीमान के खिलाफ चुनाव हार गए थे। 2017 के चुनाव में भी पार्टी ने कमल किशोर को ही टिकट दिया लेकिन तब भी भाजपा की उम्मीदवार रीता धीमान ने कमल किशोर को हरा दिया। लगातार दो चुनाव हारने के बाद इस बार पार्टी कमल किशोर पर मेहरबान होगी या किसी नए चेहरे को मैदान में उतारेगी, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। वायरल हुआ रीता के खिलाफ गुस्से वाला वीडियो : विद्याक रीता धीमान से जनता पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिख रही। सोशल मीडिया पर उनकी एक जनसभा का वीडियो भी इन दिनों खूब वायरल हुआ है जिसमें एक युवक खुलकर उनके खिलाफ बोल रहा है। हालांकि रीता के पास गिनाने के लिए कई उपलब्धियां भी है। बहरहाल रीता के पास उपलब्धियां ज्यादा है या उनके खिलाफ अंसतोष, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष के अंत तक विधानसभा चुनाव होने है और अभी से ही सियासी पारा चढ़ने लगा है। मौजूदा सरकार मिशन रिपीट का दावा कर रही है तो वहीं विपक्ष सत्ता वापसी को लेकर जमीन मजबूत करने में जुटी है। इसी बीच आरोप प्रत्यारोप भी जमकर हो रहे है। वहीं बीते दिनों विधायक आशा कुमारी ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को अहंकार हो गया है और प्रदेश की जनता इसका जवाब उन्हें जरूर देगी। आशा कुमारी ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी लगातार कार्य कर रही है और अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटी है, लेकिन मुख्यमंत्री का यह कहना है कि कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं दे रही है। मुख्यमंत्री को बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना का रोल अदा नहीं करना चाहिए। आशा कुमारी ने कहा है कि मुख्यमंत्री चार राज्य में हुए चुनाव के बाद मिशन रिपीट के सपने देख रहे हैं, यह तो प्रदेश की आम जनता तय करेगी कि किसे मिशन रिपीट करवाना है या फिर किसी सत्ता में लाना है यह जनता का काम है। भाजपा को अहंकार में रहने की आवश्यकता नहीं है. बड़े-बड़ों के अहंकार जनता तोड़ देती है, हमारी मुख्यमंत्री को सलाह है कि ज्यादा अहंकार अच्छा नहीं होता है।
हिमाचल प्रदेश देवभूमि है और शांतिप्रिय राज्य है। हिमाचल के सवर्णीय विकास में हर एक व्यक्ति का अपनी भूमिका है अपना सहयोग है। हिमाचल में आम आदमी पार्टी के नेताओं का स्वागत है। वे हिमाचल के लोगों का विश्वास जीतें, हमें आपत्ति नहीं है, लेकिन यहां आकर हमारे नेताओं का अपमान करने की कोशिश करें उनका तिरस्कार करें तो यह बर्दाश्त नहीं होगा। किसी भी तरह की बयानबाजी करने से पहले हिमाचल का इतिहास पढ़ लें। यह बात विधायक विक्रमादित्य सिंह ने बीते दिनों आप के रोड शो पर प्रतिक्रिया देते हुए कही। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विकास में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल व शांता कुमार का अहम योगदान रहा है। हिमाचल आकर यह कहना कि पूर्व के नेताओं ने कोई कार्य नहीं किया है, इसकी निंदा करते हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी छोड़ कर आप में शामिल हो रहे कार्यकर्ताओं को लेकर विक्रमादित्य ने कहा कि आम आदमी पार्टी में हारे नेता शामिल हो रहे हैं। आप के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जिसका अपना कोई वजूद है, जिसका अपना जनाधार है। हिमाचल में केवल वीरभद्र सिंह मॉडल ही चलेगा। कांग्रेस ने प्रदेश का समान विकास करवाया है और आगे भी इसी तरह काम करेंगे। कांग्रेस के पास मजबूत नेतृत्व है और एकजुटता के साथ चुनाव लड़ेंगे, जीतेंगे और हिमाचल प्रदेश का विकास करवाएंगे।
हिमाचल में अढ़ाई वर्षो से फ़ौज में भर्ती नहीं हुई है और युवाओं का सरकार के प्रति विश्वास उठता जा रहा है। यह बात बीते दिनों बड़सर के विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने कही। उन्होंने कहा कि हर वर्ष 50 से 60 हज़ार फौजी सेवानिवृत्त होकर घर आते हैं, जिनकी भरपाई हर रेजिमेंट को तुरंत चाहिए होती है। ऐसे में पिछले ढाई वर्ष में देश के फौजी भाइयों पर अतिरिक्त कार्य का दबाव है। हमारे युवा जो फ़ौज में भर्ती के लिए दिन रात पसीना बहा कर तैयारी करते हैं, उनके प्रति सरकार का यह रवैया अनुचित है.। इस समय फ़ौज में डेढ़ लाख पद के आसपास रिक्त हैं। उन्होंने कहा कि यदि इसी प्रकार से लम्बे समय तक इस पर रोक रही और भर्ती नहीं होगी तो नुक्सान केवल इन युवाओं का नहीं, देश का भी होगा। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में सरकार का तर्क था कि कोरोना आपदा है इसलिए भर्ती नहीं करवाई। चुनाव करवा लिए, बच्चों के एग्जाम करवा लिए, जनसभाओं को संबोधित कर लिया, जीत के जश्न मना लिए लेकिन भर्ती नहीं करवा पाए क्यूंकि कोरोना था। इन झूठे राष्ट्रभक्तों को मेजर जनरल यश मोर की बातें बहुत चुभेंगी, लेकिन सुननी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना प्रस्तावित हैं। ऐसे में दोनों राजनैतिक दल अपनी जमीन को मजबूत करने में जुटे है और आप ने हिमाचल की सियासत में उबाल ला दिया है। वहीं बीते दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के हिमाचल दौरे के बाद सियासी हलचल तेज़ हो गयी है। बीते दिनों नड्डा ने शिमला में विधानसभा से पीटरहॉफ तक रोड़ शो किया और पीटरहॉफ में जनसभा कर कार्यकर्ताओं में नया जोश भरकर विरोधी पार्टियों पर जमकर निशाना साधा। जेपी नड्डा ने कहा कि बीजेपी चार राज्यो में फिर से स्थापित हुई है। मोदी की नीतियों ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के आंसू पोछे है। कांग्रेस की यूपी में 399 में से 387 सीटों पर जमानत जब्त हुई है। वन्ही आप की सभी सीटों पर जमानत जब्त हुई है। उन्होंने कहा कि यूपी उत्तराखंड में सरकार हमारी है अब हिमाचल की बारी है। कांग्रेस ने प्रदेश में लंबे समय तक शासन किया और जनता का हक छीना है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद हिमाचल का हक मिला है। केंद्र की स्कीमों में 90:10 का रेशों अब हिमाचल को मिल रहा है। हिमाचल को बीजेपी ने देने का कॉंग्रेस ने लेने का काम किया। पांच सालों में प्रदेश में 6384 किलोमीटर सड़के बनी है। नड्डा ने कहा कि जयराम शरीफ है बोलते कम है काम ज्यादा करते हैं। वैक्सीनेशन में हिमाचल जयराम ठाकुर के नेतृत्व में नम्बर एक पर आया। नड्डा ने जयराम सरकार की उपलब्धियों की जमकर तारीफ की।उन्होंने कहा कि प्रदेश में विकास के नए आयाम स्थापित हुए है। मोदी ने देश मे राजनीति की संस्कृति बदल दी है। यूक्रेन से 23 हजार बच्चों को सकुशल देश वापिस लाया है। दूसरी बीमारियों के टिक्के में दशकों लग जाते थे तो मोदी के नेतृत्व में 9 महीने में कोरोना का टीका तैयार किया गया है।अब हिमाचल में फिर से बीजेपी का परचम लहराना है। विरोधी पार्टियों के पास न नेता है न नेतृत्व न ही नियत। हमारे पास नेता भी है नेतृत्व भी है। हमे अपने कामों को जनता तक ले जाना है। रिवाज टूटेगा और मिशन रिपीट होगा : जयराम ठाकुर वहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मिशन रिपीट को लेकर कहा कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी है जो पार्टी में कार्यकर्ताओं के महत्व, सम्मान व समर्पण के कारण हुआ और इसके लिए कार्यकर्ता के रूप में अपने संघर्ष से उठे नड्डा के प्रयासों से संभव हुआ है। छोटा राज्य होने के बावजूद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अनुराग ठाकुर को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है और प्रधानमंत्री का हिमाचल के लिए अपनापन हमेशा रहा। हिमाचल प्रदेश ने भी अनेक प्रकार से संघर्ष कर विकास किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब देश में भाजपा ने सरकार रिपीट नहीं होने का रिवाज बदल दिया है और आने वाले समय में हिमाचल में भी भाजपा सरकार बनाएगी और इतिहास रचेगी। उन्होंने कहा कि अबकी बार नड्डा के नेतृत्व में सरकार रिपीट करेंगे और इसके लिए हर संभव मेहनत करेगे।
इंदौरा विधानसभा क्षेत्र में कई वर्षों से भाजपा का राज रहा है। एक लम्बे समय से यहाँ कांग्रेस जीत दर्ज़ नहीं कर पाई है। पूर्व में कांग्रेस से 2012 और 2017 में प्रत्याशी रहे कमल किशोर से फर्स्ट वर्डिक्ट द्वारा कांग्रेस के बुरे प्रदर्शन और स्थानीय मुद्दों को लेकर चर्चा की गई। पेश है बातचीत के कुछ अंश...... सवाल : आप इंदौरा से पिछले 2 चुनाव लड़ चुके है और दोनों ही चुनाव आप नहीं जीत पाए, आपसे जानना चाहेंगे की आप क्या कारण मानते है कि इंदौरा में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है? जवाब : इंदौरा विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं जीत पाया है इसके कई कारण है। सबसे बड़ा कारण यह है कि आज से 15 साल पहले जब बोधराज यहां से विधायक थे तो ऐन मौके पर उनका टिकट काट दिया गया था, जिस कारण कांग्रेस पार्टी यहां से कोई भी प्रत्याशी नहीं उतार पाई। लंबे समय तक क्षेत्र खाली रहा और उसके बाद मुझे टिकट मिला, लेकिन बदकिस्मती से उस समय हम चुनाव नहीं जीत सके। यहां से भारतीय जनता पार्टी के ही एक प्रत्याशी जिन्हे भाजपा द्वारा 2012 में टिकट नहीं दिया गया था, उन्होंने बतौर आज़ाद उम्मीदवार चुनाव लड़ा और जीत दर्ज़ की। उस दौरान भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को केवल दस हज़ार वोट मिले और मुझे साढ़े 14 हज़ार वोट मिले थे। 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी और आज़ाद प्रत्याशी कांग्रेस सरकार में एसोसिएट मेंबर बन गए, लेकिन उन्होंने एसोसिएट मेंबर बनने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया। उसके बाद हमने 5 साल लगातार मेहनत की और लोगों के बीच गए। हम लोगों के छोटे-मोटे काम करते रहे। फिर 2017 के चुनावों में मुझे यहां से टिकट मिला, लेकिन उस समय भी बदकिस्मती से हमारे कुछ कार्यकर्ताओं ने भितरघात किया जिस कारण मैं कुछ वोटों से चुनाव हार गया। मैं लगातार जनता के बीच हूं, जनता की सेवा कर रहा हूं। मैं यह भी बता देना चाहूंगा कि इंदौरा में कांग्रेस के मत ज्यादा है। यहाँ ज्यादा वोटर कांग्रेस विचारधारा के हैं लेकिन ऐन मौके पर हमारे कुछ लोग अपनी पार्टी की विचारधारा छोड़कर दूसरे लोगों के साथ अपने किसी मतलब के लिए चले जाते हैं। इस कारण कांग्रेस को हार का मुँह देखना पड़ता है। सवाल : इंदौरा कांग्रेस में गुटबाजी देखने को मिल रही है, क्या आपको नहीं लगता कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह पार्टी के लिए गंभीर समस्या बन सकती है ? जवाब : इंदौरा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के कार्यकर्ता एकजुट है और कांग्रेस में कोई भी गुटबाज़ी नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे महत्वकांक्षी कार्यकर्ता है जो रातो रात विधायक बनना चाहते हैं या बड़े आदमी बनना चाहते हैं। इन लोगों को कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी के लोगों की शय होती है। इस कारण हम इसे गुटबाजी का नाम नहीं दे सकते और ना ही यहाँ गुटबाजी है। हमारे यहां करण सिंह पठानिया जो हमारे कोषाध्यक्ष है, वीरेंद्र सिंह मनकोटिया जो हमारे ब्लॉक प्रधान है, इसके अलावा पूर्व ब्लॉक प्रेसिडेंट है, हम सब एक साथ है और इकठ्ठे कार्य कर रहे हैं। हम सब पार्टी का कार्य कर रहे हैं और यहाँ गुटबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है। सवाल : क्या मौजूदा विधायक के कार्यों से आप संतुष्ट है? जवाब : कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर टाडा पंचायत का एक वीडियो वायरल हुआ था। टाडा पंचायत से मौजूदा विधायक को काफी संख्या में वोट मिले थे, लेकिन वहां के युवा संतुष्ट नहीं है । वीडियो में युवाओं ने कहा कि विधायक साढ़े 4 साल के बाद क्षेत्र में गई है। इस कारण लोग काफी निराश है । जहां तक अन्य कार्यों की बात है तो जिस स्तर पर कार्य होने चाहिए थे वह कार्य नहीं हो पाए हैं। अभी भी 90% सड़कों का बुरा हाल है। मैं मानता हूं कि जो पुरानी दो-चार सड़के है उन्हें ठीक किया गया है, लेकिन वह भी टूटना शुरू हो गई है। हाल ही में मंड क्षेत्र का एक वीडियो वायरल हुआ था। उक्त सड़क पर ₹12 करोड़ का खर्च हुआ लेकिन वह सड़क पूरी नहीं हुई। उक्त सड़क की डीपीआर अलग थी और मौके पर स्थिति कुछ और ही थी। इसलिए लोग पूरी तरह से हताश है और निराश है। जहाँ तक बेरोजगारी का सवाल है तो आज तक क्षेत्र के युवा बेरोज़गार है। एक भी व्यक्ति को रोजगार नहीं दिया गया है, उल्टा जो हमारे युवा फैक्ट्रियों में लगे हुए थे उनको निकाल दिया गया और उनके साथ अभद्र व्यवहार भी किया गया, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। युवा बेरोज़गार है और वह सरकार का पूरी तरह से विरोध कर रहे है। सवाल : क्या आगामी विधानसभा चुनाव में कमल किशोर चुनाव लड़ेंगे ? जवाब : यदि कांग्रेस पार्टी मुझे टिकट देती है तो मैं निश्चित तौर पर दमखम से चुनाव लडूंगा और जीतूंगा भी। मैं अपनी दावेदारी भी पेश करूँगा क्योंकि मैं यहाँ से पुराना प्रत्याशी भी रहा हूँ और मैं कुछ ही वोटों से हारा था। इसी के साथ मैं हिमाचल प्रदेश कांग्रेस एससी डिपार्टमेंट का महासचिव हूँ। मैं लोगों के बीच भी जा रहा हूं, लोगों के हर सुख दुख में भी शामिल हो रहा हूँ, लोगों के बीच में ही हूँ। यदि कांग्रेस पार्टी मुझे टिकट देती है तो मैं निश्चित तौर पर चुनाव लडूंगा। सवाल : पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद हिमाचल में भी लोग आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे हैं। इसी के साथ पंजाब के साथ सटी विधानसभाओं में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा है। कांग्रेस के कई लोग आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे हैं। आपको क्या लगता है क्या इंदौरा में आम आदमी पार्टी प्रभाव डाल पाएगी ? जवाब : जहां तक पंजाब का सवाल है तो पंजाब में आपसी खींचतान की वजह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। इसी वजह से पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बन पाई है, लेकिन हमारे हिमाचल में ऐसा नहीं है। हमारे हिमाचल की राजनीति और पंजाब की राजनीति में बहुत फर्क है। मुझे नहीं लगता कि हिमाचल प्रदेश में इनके दो या चार विधायक भी जीत पाएंगे और जहां तक इंदौरा का सवाल है तो इंदौरा से आम आदमी पार्टी में कोई भी नहीं गया है। यह लोकतंत्र है और लोकतंत्र में कोई भी किसी भी पार्टी में जा सकता है, कोई भी किसी को भी वोट डाल सकता है, उस पर किसी का कोई भी दबाव नहीं होता है। सवाल : इंदौरा में विकास की बड़ी-बड़ी बातें निकल कर आती है, सोशल मीडिया पर भी इसकी काफी चर्चा रहती है। कहा जाता है कि इंदौरा में अथाह विकास हुआ है। क्या विकास हुआ है? जवाब : जब 2017 में भाजपा की सरकार प्रदेश में बनी थी तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर यहां पर आए थे और इंद्रपुर में उन्होंने एक बड़ी रैली की थी। इसमें उनके द्वारा यह घोषणा की गई थी कि यहां पर एक मिनी सचिवालय बनाया जाएगा। इस सरकार का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, लेकिन अभी तक मिनी सचिवालय का यहाँ पर कोई नामोनिशान तक नहीं है। यह बिल्कुल झूठ बोलने वाली सरकार है, जुमलों की सरकार है। सबसे पहले तो यहाँ मिनी सचिवालय बनना चाहिए ताकि सारे दफ्तर एक ही ईमारत के अंदर हो और लोगों को इसकी सुविधा मिले। जितने भी कार्य हुए है वह सब गुणवत्ता के आधार पर बिल्कुल शून्य है। मैंने पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ कि जितने भी कार्य हो रहे हैं वह बिल्कुल सबस्टैंडर्ड है। हाल ही में बडूखर में एक पुली टूट गयी थी जिसे बने हुए 6 महीने भी नहीं हुए थे। इस पुली पर लगभग 2 से 3 लाख का खर्चा हुआ था। इसके साथ ही कुछ दिनों पहले मंड क्षेत्र में भी एक पुली टूटी गयी थी। जितने भी कार्य हो रहे हैं वह बिल्कुल सब स्टैंडर्ड कार्य है, उसमे बिल्कुल भी गुणवत्ता नहीं है। ऐसे कार्यों से लोग परेशान है और निराश है। सवाल : इंदौरा विधानसभा क्षेत्र अवैध खैर कटान और अवैध माइनिंग होने कि भी आशंका जताई जाती है, इसे लेकर क्या कहेंगे? जवाब : खैर कटान की जहां तक बात की जाए तो वह सभी सरकार के ठेकेदार है और सरकार के लोग है जो यह कटान कर रहे है। यदि कोई स्थानीय व्यक्ति उन पर एफआईआर करवा दें तो उस पर कोई भी सुनवाई नहीं होती है। यह सब कार्य सरकार के ही आदमी करवाते हैं। आज तक जितनी भी सरकारें आई है उन में से यह पहली सरकार है जिसमें सबसे ज्यादा जंगल काटे गए हैं। जहां तक अवैध खनन का प्रश्न है तो यहां पर क्रेशर इंडस्ट्रीज काफी है। बहुत से ऐसे क्रेशर मालिक है जो बिल्कुल ठीक ढंग से कार्य कर रहे है। वह लोग अपनी ही जमीन से माइनिंग करते हैं और अच्छे तरीके से कार्य करते है, लेकिन कुछ ऐसी फर्में भी है जो भाजपा के लोगों की है, उनके लोग खनन करते हैं और यह उनके ही क्रेशर है।
चर्चा तो खूब हुई लेकिन कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम का पर्चा नहीं निकला। बात दरअसल ये है कि कांग्रेस आलाकमान पंजाब में हुई दुर्गति के बाद जल्दबाजी में कोई निर्णय लेना नहीं चाहता। इधर हिमाचल कांग्रेस में असमंजस की स्थिति है। प्रदेश अध्यक्ष आज बदलेगा, कल बदलेगा, चार दिन में बदलेगा या नहीं बदलेगा, जितने मुँह उतनी बात। क्या नेता और क्या कार्यकर्ता, सब के सब असमंजस में है। कई नेताओं के निष्ठावान अपने आका के प्रमोशन के इन्तजार में है, तो उधर वर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर भी आश्वस्त दिख रहे है। जानकार मान रहे है कि ये स्थिति कांग्रेस के लिए अच्छी नहीं है और बेहतर ये होगा कि पार्टी आलाकमान कुछ तो फरमान दे। अलबत्ता कम से कम ये तो स्पष्ट हो कि बदलाव होगा भी या नहीं। ग्राउंड रिपोर्ट की बात करें तो पूर्व अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के समर्थक तो आशावान है ही, होलीलॉज के निष्ठावान भी प्रतिभा सिंह के नाम को आगे बढ़ा रहे है। सुक्खू निसंदेह ऐसे नेता है जिनके समर्थक हर निर्वाचन क्षेत्र में है और बतौर अध्यक्ष काम करने का उनका अनुभव भी उनक दावा मजबूत करता है। पर होलीलॉज ( वीरभद्र परिवार ) उनके नाम पर सहमत हो, ये मुश्किल लगता है। उपचुनाव में होलीलॉज का तिलिस्म सबने देखा है और ऐसे में आलाकमान को संतुलन सुनिश्चित करना होगा। उधर, प्रतिभा सिंह के नाम पर भी कई नेताओं को आपत्ति होगी, सो ये निर्णय भी आलाकमान के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। वहीँ मुकेश अग्निहोत्री होलीलॉज के करीबी भी है और काफी हद तक संतुलन साध कर भी चल रहे है। पर उन्हें नेता प्रतिपक्ष के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस की सरदारी भी मिले, ये भी होता नहीं दिखता। ऐसे में माहिर मान रहे है कि यदि बदलाव हुआ तो संभवतः सुक्खू को नेता प्रतिपक्ष का ताज देकर अग्निहोत्री को प्रदेश की कमान दी जा सकती है। क्या इस फॉर्मूले पर आगे बढ़ेगी कांग्रेस ? नगर निगम चुनाव में कॉंग्रेस्स का प्रदर्शन ठीक ठाक रहा था और उपचुनाव में तो कांग्रेस ने क्लीप स्वीप कर दिया। बावजूद इसके क्या राठौर को हटाया जाना चाहिए, ये बड़ा सवाल है। दरअसल प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद जमीनी स्तर पर राठौर की मजबूत पकड़ नहीं दिखती। पर राठौर का किसी गुट में न होना उनके पक्ष में जाता है। ऐसे में मुमकिन है कांग्रेस राठौर को न बदला जाएँ, बल्कि कांग्रेस संसदीय क्षेत्रवार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने के फार्मूला पर आगे बढ़े।
आहिस्ता-आहिस्ता आम आदमी पार्टी पैर जमाने की कवायद में जुटी है और रफ्ता -रफ्ता ही सही हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक समीकरण भी बदलते दिख रहे है। अभी भाजपा -कांग्रेस की दूसरी व मुख्यतः तीसरी पंक्ति के नेता आप में जा रहे है, लेकिन माहिर मान रहे है कि यदि पहली पंक्ति में सेंध लगती है तो माहौल बदलते भी शायद देर न लगे। बहरहाल आम आदमी पार्टी कांग्रेस को ज्यादा नुक्सान पहुंचाएगी या भाजपा को, इसको लेकर भी राय बंटी हुई। पर इतना तय है कि आप फैक्टर को नकारना दोनों को भारी पड़ सकता है। प्रदेश में राजनैतिक दलों के निष्ठावान वोटर्स के अलावा फ्लोटिंग वोट प्रदेश में सत्ता की राह प्रशस्त करता है। इस फ्लोटिंग वोट में एंटी इंकम्बैंट और प्रो इंकम्बैंट वोट के अलावा बदलाव चाहने वाला वोटर भी होता है। ये दरअसल वो वोटर है जो सरकार से नाराज़ तो नहीं होता लेकिन वोट बदलाव के लिए करता है। इसके अतिरक्त एक तबका, माहौल और सियासी हवा देखकर मतदान करता है। संभवतः दोनों ही पार्टियों का काडर वोट एकाएक आप की तरफ न खिसके लेकिन आप इस फ्लोटिंग वोट में सेंध लगाकर कांग्रेस -भाजपा का खेल जरूर बिगाड़ सकती है। एंटी इंकम्बैंट वोट की बात करें तो 1990 में कांग्रेस के खिलाफ लहर थी जिसका लाभ भाजपा गठबंधन को मिला, जबकि 1993 में भाजपा सरकार के खिलाफ लहर चली और कांग्रेस सत्तासीन हुई। इसके बाद इतनी प्रचंड एंटी इंकमबैंसी वेव प्रदेश में नहीं दिखी है। हाँ 2003 में जरूर भाजपा गठबंधन सरकार के प्रति कुछ नारजगी दिखी थी, जिसका लाभ कांग्रेस को हुआ। वहीं 1998 में वीरभद्र सरकार को लेकर प्रो इंकम्बैंसी दिख रही थी, लेकिन पंडित सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर कांग्रेस को झटका दे दिया। तब काँटे के मुकाबले में 23 सीटें ऐसी थी जहाँ जीत - हार का अंतर दो हज़ार वोट से कम था। इन से 14 सीटें कांग्रेस हारी थी और तीन सीटों पर तो उसे हिमाचल विकास कांग्रेस से सीधे मात दी थी। इसके अलावा कई सीटें ऐसी थी जहाँ कांग्रेस की हार का अंतर बेशक दो हज़ार वोट से अधिक था लेकिन पार्टी का खेल हिमाचल विकास कांग्रेस ने ही बिगाड़ा था। ये आंकड़ें इस बात की तस्दीक करते है की यदि हिमाचल विकास कांग्रेस न होती तो 1998 में वीरभद्र दूसरी बार रिपीट कर जाते। ऐसे में आप को हल्के में लेने की भूल करना दोनों ही पार्टियों को महंगा पड़ा सकता है। बीते तीन चुनाव पर नज़र डाले तो प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में फ्लोटिंग वोट न तो सरकार के खिलाफ मुखर दिखा है और न ही समर्थन में, पर तीनों मर्तबा प्रदेश ने बदलाव के लिए वोट किया है। यानी वोटर की खामोशी सत्ता पर भारी पड़ती आ रही है। मौजूदा समय में जयराम सरकार को लेकर भी न एंटी इंकम्बेंसी दिख रही है और न ही प्रो इंकम्बैंसी। ऐसे में यदि बदलाव के लिए वोट होता है और आप उसमे सेंध लगाती है तो लाभ भाजपा को हो सकता है। वहीँ हवा और माहौल के हिसाब से चलने वाला न्यूट्रल वोटर दोनों पार्टियों को ठेंगा दिखा सकता है। आप के गुड गवर्नेंस मॉडल से यदि ये वोटर प्रभावित हुआ तो भाजपा का मिशन रिपीट भी खटाई में पड़ सकता है। कई सीटों पर दिखता है कांटे का मुकाबला : 1998 से लेकर 2017 तक हुए पांच विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो काफी सीटें ऐसी है जहाँ जीत -हार का अंतर दो हज़ार वोट से भी कम रहा है। 1998 में 23, 2003 में 10, 2007 में 16 , 2012 में 15 और 2017 में 18 सीटें ऐसी थी जहाँ नजदीकी मुकाबला रहा। ऐसे में आप के आने से 1998 की तरह ही ऐसी सीटों की संख्या बढ़ सकती है। हालांकि इसका लाभ किसे होगा और हानि किसे, ये देखना रोचक होगा।
दमखम या दम 'कम', अरविन्द केजरीवाल और भगवंत मान के मंडी में हुए रोड शो के बाद फिलवक्त ये बड़ा सवाल है। क्या आम आदमी पार्टी ने भरपूर दमखम दिखाया या दम की नुमाईश में कुछ गुंजाईश रह गई। इस सवाल के जवाब में कई के अरमान टिके है तो कई के भविष्य का ब्लूप्रिंट इससे तय होना है। ब्लॉकबस्टर, हिट या फ्लॉप.. हिमाचल के सियासी पटल पर आप की पहली पिक्चर का कलेक्शन कैसा रहा, ये अहम सवाल है जिसका जवाब सभी ढूंढ रहे है। कहते है मंडी में सियासत कभी ठंडी नहीं होती, ये तो एक सत्य था ही मगर अब एक तथ्य ये भी है कि आम आदमी पार्टी की दस्तक के बाद से सियासी खिचड़ी में रोमांच का तड़का भी लग गया है, जिसका प्रभाव समूचे हिमाचल पर पड़ा। आप ने भाजपा कांग्रेस की धुकधुकी भी बढ़ाई और जनता के दिल तक पहुँचने की कोशिश भी की। हाथ में तिरंगा, सर पर आम आदमी पार्टी की टोपी और ज़बान पर इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लिए आप के समर्थक मंडी पहुंचे। आम आदमी पार्टी के रोड शो में एकत्रित जन सैलाब उम्मीद से ज़्यादा था मगर दावों से कम। हिमाचल की सियासत में आप की एंट्री ज़बरदस्त हुई मगर ये और बेहतर हो सकती थी। उधर, जैसा अपेक्षित था विरोधयों की प्रतिक्रिया भी वैसे ही आई। वैसे तो कांग्रेस और भाजपा दोनों कभी एक सी बात करते नहीं, किन्तु आप की रैली को लेकर दोनों की प्रतिक्रिया एक जैसी रही, दोनों ने इस रैली को फ्लॉप शो करार दिया। हालांकि लोकतंत्र में कौन हिट है और कौन फ्लॉप, ये जनता तय करती है, नेता नहीं। तो कुछ और बात होती ... आप की एंट्री से हिमाचल की सियासत हाई ज़रूर हुई है मगर एक आध सियासी स्टंट और होते तो शायद बात कुछ और होती। कयास लगाए जा रहे थे कि रोड शो के दिन कांग्रेस और भाजपा के कुछ और बड़े चेहरे पार्टी में शामिल हो सकते है, और दोनों पार्टियां इस बात को लेकर चिंतित भी थी। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। पार्टी के पास अब भी कोई बड़ा चेहरा नहीं है। यूँ तो आप आम आदमी को ही अपना बड़ा चेहरा मानती है मगर बिना फेस के पार्टी के राह आसान नहीं होगी। अब तक जिन नेताओं ने आप का दामन थामा है उनमे कोई भी ऐसा नहीं दिखता जिसके चेहरे पर पार्टी आगामी चुनाव में उतर सके। ये संगरूर नहीं है ... समर्थकों को सम्बोधित करते हुए भीड़ देख कर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा की मुझे लोगों का हुजूम देख कर ये प्रतीत हो रहा है की मैं मंडी नहीं संगरूर में ये रोड शो कर रहा हूँ। पर आप को जल्द समझना होगा कि मंडी, संगरूर नहीं है और हिमाचल भी पंजाब या दिल्ली नहीं है। हिमाचल में लोकल फैक्टर काफी अहम है और आप को यहाँ बेहतर करना है तो पहले हिमाचल से कनेक्ट करना होगा। पार्टी सिर्फ दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री के चेहरे पर चुनाव नहीं जीत सकती, पार्टी में हिमाचल के बड़े चेहरों का होना बेहद ज़रूरी है।
हिमाचल प्रदेश में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। अभी तक इस बात पर संशय बना हुआ था कि पार्टी किसके चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने साफ कर दिया है कि हिमाचल में सीएम फेस कोण होगा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा आगामी विधानसभा चुनाव जयराम ठाकुर के नेतृत्व में ही होगा। उन्होंने कहा कि हिमाचल में मुख्यमंत्री को बदलने की कोई संभावना नहीं है। जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में सरकार बेहतर काम कर रही है और आगे भी करते रहेंगे। जेपी नड्डा ने कहा कि जयराम ठाकुर की सरकार बेहतरीन कार्य कर रही है। कुछ दिनों से विरोधी राजनीतिक दलों की ओर से हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाओं को हवा दी जा रही थी। इस बीच रविवार को जेपी नड्डा ने इस संबंध में बड़ा ऐलान कर दिया। हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। जेपी नड्डा ने कहा कि भाजपा बदलाव करती रहती है 10 से 15 प्रतिशत सीटों पर विधायकों की टिकटें बदलती रहती हैं। उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही किया है हिमाचल में भी यह बदलाव होगा तो कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है। भाजपा अपनी रणनीति अपने हिसाब से तय करती है और चुनावों में उसे लागू भी करती है। 2022 के चुनाव में भाजपा हिमाचल में जीत हासिल करेगी। सरकार ने जो काम किए हैं, उन्हें लेकर लोगों के बीच जाएंगे।
मंत्री रहते हुए सुधीर शर्मा ने धर्मशाला के हक की आवाज हमेशा बुलंद की। स्मार्ट सिटी मिलने की बारी आई तो धर्मशाला तो तरजीह मिली, नगर निगम की बारी आई तो भी धर्मशाला को तरजीह मिली। विकास हुआ भी और दिखा भी, पर 2017 के चुनावी इम्तिहान में सुधीर फेल हो गए। फिर 2019 के उपचुनाव का मौका आया तो सुधीर मैदान में ही नहीं उतरे और नतीजन कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस पिट गई। अब फिर विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू है और सुधीर शर्मा मैदान में है। पर इस बीच उन्हें लेकर कई तरह की चर्चाएं आम है। इनमें क्या हकीकत है और क्या फ़साना, फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने खुद सुधीर शर्मा से जाना। सुनैना कश्यप ने सुधीर शर्मा से विशेष बातचीत की, कई तीखे सवाल किये और सुधीर ने बेबाकी से अपना पक्ष रखा। पेश है बातचीत के मुख्य अंश ... सवाल : 2019 के उपचुनाव में मैदान में क्यों नहीं उतरे आप ? जवाब : देखिये 2019 का जब उपचुनाव आया तो उस दौरान कई तरह की बाते थी। उस दौरान मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था और इस बारे में मैंने हाईकमान को भी बताया था और स्वास्थ्य कारणों के चलते मैं उपचुनाव नहीं लड़ पाया। उस समय परिणाम जो भी रहे हो कांग्रेस पार्टी ने अपनी तरफ से पूरी ताकत झोंकी थी लेकिन जो सत्तारूढ़ दल होता है कई बार उसका वर्चस्व रहता है। तब सरकार भी नई थी और इसीलिए परिणाम हमारे अनुकूल रहे। सवाल : सबके मन में एक ही सवाल है, क्या सुधीर शर्मा आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और लड़ेंगे तो कहाँ से लड़ेंगे ? जवाब : देखिये बहुत सारी चर्चाएं रहती है, कोई कहता है कही से लड़ेंगे कोई कहता है हमारे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। मैं ये समझता हूँ कि ये जनता का प्यार है, लेकिन मैं बार-बार चुनाव क्षेत्र बदलने के पक्ष में नहीं हूँ। पहले भी 2012 में जब मैं धर्मशाला आया तो बैजनाथ चुनाव क्षेत्र आरक्षित हुआ। उस दौरान भी पार्टी ने सीट रिज़र्व होने के कारण मुझे धर्मशाला भेजा, मैं अपनी मर्ज़ी से यहाँ नहीं आया था। चुनाव से 15 दिन पहले मुझे पार्टी आलाकमान ने यहाँ भेजा ,तब से लेकर यहीं हूँ और अब तो जीवन के अंत तक यहीं रहना है। इस बार का चुनाव भी मैं धर्मशाला से ही लडूंगा। सवाल : कुछ नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर आपकी भी तस्वीरें वायरल हो रही है कि आने वाले समय में ये नेता आम आदमी पार्टी का दामन थाम सकते है। इनका सरदार भी आपको ही बताया जा रहा है। क्या कहेंगे इस बारे में ? जवाब : देखिये आज सोशल मीडिया का जमाना है और ऐसी कई चीज़े सामने आती रहती है। आपको पता होगा की पुरानी पत्रकारिता में भी कार्टून बनाया करते थे और हमारे देश में बहुत से ऐसे कार्टूनिस्ट है जिन्होंने विश्व स्तर पर काम किया है। अब मिम्स का जमाना है तो ऐसे ही किसी ने व्यंग के लिए कुछ बना कर वायरल किया होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। मैं तो कांग्रेस में ही हूँ, शुरू से ही कांग्रेस में रहा हूँ तो कांग्रेस के अलावा तो कहीं जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। सवाल : राष्ट्रीय स्तर पर यदि कांग्रेस की बात की जाए तो आंतरिक लोकतंत्र की मांग लगातार उठ रही है। संगठन में बदलाव की बात की जा रही है। क्या कहेंगे ? जवाब : देखिये आंतरिक लोकतंत्र को तो कांग्रेस पार्टी ने कभी भी नहीं रोका। आपको याद होगा जब पिछला चुनाव हुआ तो सबसे पहला इस्तीफा राहुल गाँधी जी ने दिया, उन्होंने कहा की मैं इस्तीफा दे रहा हूँ आप अपना अध्यक्ष चुनिए। सभी पार्टी के लोगो को कहा गया और इसके बाद निर्णय उन पर छोड़ा गया। जब कोई राय नहीं बनी तो कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गाँधी जी आई। अब जल्द ही अधिवेशन होने जा रहा है उसमें जिसको भी चुनेगी पार्टी वो सर्वमान्य अध्यक्ष होगा और उसके साथ सब चलेंगे। कांग्रेस पार्टी ही ऐसी पार्टी है जिसमें अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया ब्लॉक ,जिला, प्रदेश और फिर राष्ट्रीय स्तर तक चलती है। हमारी पार्टी द्वारा सदस्यता अभियान भी चलाया गया, उसके बाद अब संगठन की चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला व ब्लॉक स्तर के चुनाव परिणाम सामने आ जायेंगे। सवाल : ओक ओवर का रास्ता कांगड़ा से होकर जाता है। कांगड़ा से मुख्यमंत्री हो इसे लेकर लम्बे समय से सुबुगाहट होती रही है। स्व बाली जी तो खुलकर इसकी हिमायत करते रहे। आपका क्या मत है ? जवाब : देखिये ये बात ठीक है कि काँगड़ा सबसे बड़ा जिला है हिमाचल प्रदेश का, लेकिन ये कह देना कि मुख्यमंत्री काँगड़ा का ही होना चाहिए, ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री तो प्रदेश का बनेगा और वो बनेगा जिसके साथ चुने हुए विधायक हो और पहली बात ये है कि वो 35 का आंकड़ा तो प्राप्त कर ले। 15 से तो नहीं बन जायेगा। 15 से ही बनना होता तो पहले ही बन जाता, इसके लिए पहले 35 का आंकड़ा चाहिए फिर बहुमत होगा और बहुमत के बाद चुने हुए विधायकों की राय होगी और वो राय पार्टी नेतृत्व के समक्ष रखी जाएगी। उसके बाद जिसको सक्षम समझेंगे, उसे मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। प्रदेश सरकार चलना भी इतना आसान काम तो नहीं है, कर्ज में हम लोग डूबे हुए है। जो लोग आज सोचते है कि हम सत्ता में आ जायेंगे जीत करके और फिर सरकार में बैठ जायेंगे, तो प्रदेश को चलाना आसान बात नहीं है। आपको कर्मचारियों को तनख्वाह तक देने के लिए कर्ज लेना पड़ता है तो आप किस तरह से प्रदेश को आत्मनिर्भर बना पाएंगे, क्या प्रोग्राम्स होंगे, पॉलिसी होगी, ये सब जहाँ में रखना होगा। क्षमता को लेकर नेतृत्व का निर्णय होगा। सवाल : धर्मशाला की अगर बात करें तो आप मैदान में उस तरह नहीं दिख रहे, इस पर आपकी अपनी पार्टी के कई लोग ही आपको घेरने में लगे है। चूक कहाँ हो गई ? जवाब : ऐसा नहीं है कि सक्रियता कम हुई है। कोरोना महामारी का आप समय देखे तो कोरोनाकाल में जो काम हुआ वो सबसे ज़्यादा धर्मशाला के अंदर हुआ और हमने किया। घर -घर तक दवाईयां पहुंची, राशन पहुंचा, पका हुआ भोजन पहुँचाया। यहाँ तक कि पशुओं के लिए चारा भी उस समय पंजाब से नहीं आ पा रहा था, वो हमने पहुँचाया। कई बार राष्ट्रीय स्तर की भी कई जिम्मेवारियां रहती है जिनके चलते बाहर रहना पड़ता है, तो समय इतना नहीं दे पाते। लेकिन जब भी धर्मशाला में होता हूँ तो सक्रियता पूरी है। धर्मशाला की भी यदि बात करे तो ये बहुत बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है, इसमें न केवल बाजार का हिस्सा शामिल है बल्कि ग्रामीण इलाके इससे भी चार गुना ज़्यादा बड़े है। ग्रामीण इलाकों में जायेंगे तो पता चलता है कि कितना विकास हुआ है, किसने किया है, किसने नहीं किया है और कौन कितना सक्रिय है। मेरा ये मानना है कि ये केवल एक परसेप्शन तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है और जो ये लोग करते है मैं ये समझता हूँ कि चुनाव तो आ ही रहे है, दो- दो हाथ सभी को आज़मा लेने चाहिए। प्रजातंत्र में कोई किसी को नहीं रोकता है। सवाल : चलिए कांगड़ा की राजनीति पर आते है। नए ज़िलों को बनाने की मांग है, इस पर आपकी क्या राय है ? जवाब : मेरा ये मानना है कि आज संचार का युग है, आप जितने प्रशासनिक यूनिट्स को कम करेंगे उतना बेहतर होगा। उस समय ज़्यादा प्रशासनिक कार्यालयों को खोला जाता था, जिलों को तोड़ा जाता था जब लोगों वहां तक पहुंचने में दिक्कत आती थी। आज वर्क फ्रॉम होम का कॉसेप्ट आ गया है। कोरोना ने हमें इतना कुछ सिखाया है। आज दुनिया में आप कही भी अपने डिप्टी कमिश्नर को आप रीच आउट कर सकते है। सभी चीज़े ऑनलाइन हो गयी है। मेरा मानना है कि नए ज़िले बनने से प्रदेश पर वित्तीय बोझ अधिक होगा। जो पैसा हम प्रदेश के विकास के लिए इस्तेमाल कर सकते है उसे ऐसे सफ़ेद हाथी पर खर्च करने में कोई समझदारी नहीं है। तो मैं नए जिले बनाने के पक्ष में नहीं हूँ। सवाल : धर्मशाला आपकी कर्मभूमि रही है। ये बताये सेंट्रल यूनिवर्सिटी को लेकर आपकी निजी राय क्या है ? जवाब : देखिये जब इसकी घोषणा हुई थी तो धर्मशाला के इंद्रुनाग में इसके निर्माण के लिए जगह देखी गयी थी, तब देहरा का कोई नाम नहीं था। बाद में उस जगह को कंस्ट्रक्शन के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया। इसके बाद ये कहा गया कि कुछ कैंपस को देहरा ले जाते है और कुछ को यहाँ ही बनाया जायेगा, क्योंकि उतनी जगह नहीं थी। फिर सरकार बदली, मैं यहाँ से नया- नया विधायक था, मंत्री भी रहा तो हमने नई भूमि देखी जो उपयुक्त है। अब फिर उस जगह की फिसिबिल्टी पर सवाल है। अब कुछ देहरा में बनाने जा रहे है और कुछ धर्मशाला में। हमें तो देहरा से भी कोई विरोध नहीं है। मेरा मानना ये है कि आप एक साथ दोनों जगह कार्य शुरू करे। एक बात और कहूंगा कि इस मुद्दे को मुझसे जोड़ा जाता है लेकिन ये मुद्दा तो मेरा था ही नहीं। 2006 में इसकी घोषणा हुई थी और तब में बैजनाथ से विधायक था। इस विषय पर जब एक बार निर्णय हो चुका है तो राजनीतिक लाभ लेने के लिए इसे मुद्दा बनाये जाना इतने बड़े संस्थान के साथ अन्याय है। सवाल : पिछली सरकार में आपको नंबर दो माना जाता था, लगता था कि सुधीर शर्मा ही वीरभद्र सिंह के सबसे करीब है। पर अगर अब हम सियासी चश्मे से देखे तो आप हॉली लॉज के उतने करीब नहीं दिख रहे। क्या ऐसा है ? जवाब : ऐसा नहीं है, ये प्रश्न आप वहां भी पूछ सकते है। देखिये राजनीति की बात अलग है लेकिन हम लोग एक परिवार है और कोई भी निर्णय हो कोई भी फैसला राजनीति में हो तो एक परिवार की तरह साथ में रह कर हम उस पर विचार करते है और आगे बढ़ते है। हाल ही में मंडी लोकसभा का जो उपचुनाव था, उस दौरान भी मैं वहीँ था और वो चुनाव हम जीते भी। ये बेहद ख़ुशी की बात है कि प्रतिभा सिंह जी मंडी से सांसद है। विक्रमादित्य सिंह युवा नेता है और पूरे प्रदेश की अपेक्षाओं का और वीरभद्र सिंह जी की लिगेसी का भार उनके कन्धों पर है। वे बड़ी संजीदगी से उसे निभा रहे है और अच्छी बात है कि कांग्रेस के अंदर अगली जनरेशन में भी इस तरह की लीडरशिप निकल कर आ रही है। मैं मानता हूँ कि ये हमारी पार्टी के लिये अच्छा है।
अपनी डफली अपना राग..फिलवक्त ये ही धर्मशाला कांग्रेस की ग्राउंड रियलिटी है। यूँ तो कांग्रेस के पास न नेतृत्व की कमी है और न ही कांग्रेस के काडर पर कोई संशय, पर हावी अंतर्कलह से पार्टी की स्थिति सहज नहीं दिख रही। जैसे - जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे है टिकट दावेदारों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इस फेहरिस्त में पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी और 2019 के उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी रहे विजय करण के नाम प्रमुख है। वहीं एक ख़ास नाम और है, वो है चंद्रेश कुमारी का। बीते दिनों सियासत में पचास साल पूरे हुए तो मैडम चंद्रेश ने पत्रकार वार्ता में ये कहकर कई चाहवानों की नींद उड़ा दी कि यदि आलाकमान चाहेगा तो वे चुनाव लड़ने को तैयार है। ये अलग बात है कि उसके बाद से चंद्रेश लगभग असक्रिय दिखी है। सिलसिलेवार बात करें तो पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा से ही धर्मशाला कांग्रेस की चर्चा शुरू होना लाजमी है। 2012 में जब बैजनाथ सीट आरक्षित हुई तो सुधीर शर्मा ने धर्मशाला को कर्मभूमि बना लिया। चुनाव से महज 15 दिन पहले उन्हें धर्मशाला से प्रत्याशी बनाया गया, बावजूद इसके उन्होंने शानदार जीत दर्ज की। कांग्रेस की सरकार बनी और सुधीर मंत्री बन गए, वो भी दमदार। तब उन्हें वीरभद्र सिंह के बाद सबसे ताकतवर मंत्री माना जाता था। सुधीर के कार्यकाल में धर्मशाला में विकास भी खूब हुआ। चाहे स्मार्ट सिटी चुनने की बारी आई या नगर निगम बनाने की, धर्मशाला को तरजीह मिली। पर इस बीच जो लोग कभी सुधीर की परछाई लगते थे, वो ही रुस्वा होते गए। विधानसभा चुनाव आते -आते माहौल कुछ ऐसा बदला कि सुधीर खुद चुनाव हार गए। किशन कपूर के सांसद बनने के बाद 2019 के उपचुनाव में सुधीर शर्मा ने सेहत का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। तब चुनावी रण में एंट्री हुई विजय करण की। विजय करण ने जोर तो खूब लगाया लेकिन उन्हें विजय नसीब नहीं हुई। हालात ये रहे कि निर्दलीय चुनाव लड़ रह राकेश चौधरी दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। जाहिर है कि विजय करण को कांग्रेस का भी पूरा साथ नहीं मिला। बहरहाल विजय करण ये कहकर टिकट की दावेदारी पेश कर रहे है कि जब बड़े -बड़े पीठ दिखा गए थे तब उन्होंने चुनाव लड़ा। पर विजय की राह आसान जरा भी नहीं दिख रही। वहीं धर्मशाला नगर निगम के पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी भी चुनाव लड़ने में रूचि दिखा रहे है और वे भी टिकट के दावेदार होने वाले है। सुधीर ने लगाया अटकलों पर विराम : धर्मशाला में कांग्रेस आलाकमान का टिकट रुपी आशीर्वाद किसको मिलता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बहरहाल सुधीर का दावा मजबूत जरूर लग रहा है। सुधीर निर्वाचन क्षेत्र बदलने की अटकलों को भी सिरे से खारिज कर चुके है और धर्मशाला से चुनाव लड़ने का ऐलान भी। सुधीर ये भी खुलकर कह रहे है कि वे कांग्रेस में थे, है और रहेंगे। उधर, उनके विरोधी लामबंद होते दिख रहे है और बाहरी कार्ड को भी खूब हवा दी जा रही है। इस अंतर्कलह पर विराम लगाए बिना धर्मशाला में कांग्रेस की राह मुश्किल जरूर होगी।
धर्मशाला से 2019 उपचुनाव में कांग्रेस के सुधीर शर्मा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था और कांग्रेस द्वारा विजय इंद्र कर्ण को यहां से टिकट दिया गया। विजय इंद्र कर्ण ने कोशिश तो भरपूर की लेकिन नतीजे मनमाफिक नहीं आएं। अब फिर विजय इंद्र कर्ण ने टिकट पर अपना दावा जताया है। विजय इंद्र कर्ण के साथ फर्स्ट वर्डिक्ट ने आगामी विधानसभा चुनाव और उनकी दावेदारी को लेकर विशेष चर्चा की। उन्होंने खुलकर हर मसले पर अपनी राय रखी। पेश है बातचीत के कुछ अंश... सवाल - 2019 में धर्मशाला से आपने चुनाव लड़ा, उस समय सुधीर शर्मा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया जिस वजह से आपको टिकट दिया गया। 2019 में मोदी लहर थी और प्रदेश में भी भाजपा की नई-नई सरकार चुन कर आई थी। कहीं न कहीं कांग्रेस भी यह जानती थी कि वह यहां से चुनाव नहीं जीतेगी। क्या आप मानते है कि आपको बलि का बकरा बनाया गया था? जवाब - यह सत्य है कि सुधीर शर्मा ने 2019 में चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था और जब पार्टी को जरूरत थी तो पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा। मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया और मैदान में उतरा। हालाँकि मुझे ज्ञात था कि मोदी लहर है, प्रदेश में भी भाजपा की नई चुनी हुई सरकार है और मुझे इस चुनाव के लिए लगभग 15 से 20 दिन का समय मिला था, जो बहुत कम था। इसके बावजूद मैंने चुनौती को स्वीकार किया, मैंने पार्टी को अपनी पीठ नहीं दिखाई और मैं भागा नहीं। मैं कांग्रेस पार्टी का सच्चा सिपाही बन कर मैदान में उतरा, जबकि बड़े लोग और जिन्हें लड़ना चाहिए था वह पीठ दिखा कर भाग गए, जो बहुत शर्मनाक है। यह लोग अच्छे दिनों में चुनाव लड़ेंगे और जब लगेगा कि चुनाव हार रहे है, नहीं जीत सकते, तो बीमारी का बहाना लगाएंगे और भाग जाएंगे। जनता आने वाले समय में ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं करेगी। सवाल - 2019 में आपने धर्मशाला से चुनाव लड़ा था लेकिन मौजूदा समय की बात की जाए तो विजय कर्ण ज्यादा एक्टिव नहीं दिखते है। क्या वजह है ? जवाब - जहाँ तक एक्टिव होने का सवाल है तो मैं मीडिया और फेसबुक पर एक्टिव नहीं हूँ, लेकिन जहाँ तक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से सम्बन्ध बनाने की बात है तो चुनाव हारने के बाद मैं निरंतर उनके संपर्क में हूँ। जहाँ मुझे बुलाया जाता है, मैं जाता हूँ। कोई कार्य हो तो मैं हमेशा हाज़िर रहता हूँ। सवाल - धर्मशाला में कांग्रेस में गुटबाजी जगजाहिर है। चुनाव नजदीक है और ऐसे में कई धड़ों में बटी पार्टी को कैसे मजबूत किया जाएगा? जवाब - देखिये अगर बाहर से आये एक व्यक्ति को वापिस भेज दिया जाये तो कांग्रेस एकजुट भी होगी और पार्टी को मजबूती भी मिलेगी। मैं बता दूँ कि पूरी कांग्रेस संगठित है बस एक आदमी का विरोध है, जो जबरदस्ती यहाँ अपना डेरा डाले हुए है। उस व्यक्ति को बाहर कर दीजिए तो कांग्रेस यहाँ से सीट जीत जाएगी। धर्मशाला कांग्रेस में कई सक्षम लोग है। पिछले नगर निगम चुनाव में उस शख्स ने जहाँ भी अपनी फोटो लगाई, वहां पर प्रत्याशी चुनाव हार गए। हालाँकि प्रत्याशी अच्छे थे, लेकिन जो ग़ुस्सा जनता ने किसी और पर उतारना था वो ग़ुस्सा उन प्रत्याशियों पर उतार दिया। केवल एक व्यक्ति ने कांग्रेस को डिस्टर्ब करके रखा है। उस व्यक्ति को आप बाहर का रास्ता दिखाइए, कांग्रेस उभर के सामने आएगी। सवाल - आप जिस व्यक्ति की बात कर रहे है वही व्यक्ति 2012 में यहाँ से चुनाव जीते थे और कांग्रेस की सीट यहाँ से लाए थे। ऐसे में 2017 में ऐसी क्या बात हुई कि उनके प्रति विरोध दिखने लगा? जवाब- काम होने के बावजूद भी यदि किसी को हराया गया है, तो कोई न कोई तो कमी रही होगी। मुख्यतः लोगों के बीच में न जाना, जमीनी पकड़ न होना, उनके कामों के बारे में उनको जवाब न देना, फ़ोन ना उठाना, इसके अलावा कई और कारण भी रहे। यहाँ पर गुंडागर्दी हुई, उसका ठीकरा भी उनके सर पर ही फूटा, क्यूंकि वह मंत्री थे। उसकी कोई भी जाँच नहीं हुई। इस पूरे परिदृश्य में लोगो को लगा कि इसमें एक बड़े मंत्री का हाथ है। लोगों ने अपने मन में यह टीस रखी। धर्मशाला के लोग सभ्य है और पढ़े लिखे है, उन्हें पता है क्या सही है क्या गलत है। मुझे लगता है इन सब कारणों की वजह से वह चुनाव हारे है। सवाल : जग्गी भी टिकट के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने की बात कह चुके है। सुधीर शर्मा भी एक्टिव हो चुके है। क्या विजय कर्ण आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपनी दावेदारी पेश करेंगे ? जवाब - कांग्रेस एक लोकतान्त्रिक पार्टी है और यहां कोई भी अपनी दावेदारी रख सकता है। निश्चित तौर पर मैं 2022 में अपनी दावेदारी पेश करूँगा। मैं यह भी जरूर कहना चाहूंगा कि पहला हक मेरा है क्यूंकि मैं उस वक्त खड़ा हुआ जिस वक्त बड़े-बड़े नाम और खुद को ईमानदार कार्यकर्ता और सदस्य कहने वाले लोग भाग गए। टिकट पर पहला हक मेरा ही बनता है। सवाल : सुधीर शर्मा द्वारा हाल ही में युवा सम्मेलन करवाया गया जिसमें काफी संख्या में युवाओं ने भाग लिया। क्या कहना चाहेंगे ? जवाब - जो युवा सम्मलेन करवाया गया था उसमे युवाओं को आकर्षित करने के लिए प्रलोभन दिया गया और प्रलोभन के चलते युवा आये, न केवल धर्मशाला के बल्कि ज्वाली, शाहपुर, पालमपुर और बैजनाथ से लोग आए। जितनी मुझे जानकारी मिली है उस अनुसार धर्मशाला के युवाओं की तादाद करीब 100 से 150 थी। वे अपनी छवि को ठीक करने में जुटे है। यदि खुद को ग़लतफहमी में रखेंगे तो आने वाले समय में नुकसान उनका और पार्टी का होगा। जनता को पता है कि यह षड्यंत रचते है और इस बार धर्मशाला के लोग इनको आईना दिखाएंगे। सवाल - 2019 में आपके प्रतिद्वंदी रहे राकेश चौधरी भी आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके है। कांग्रेस के कई कार्यकर्त्ता और पदाधिकारी कांग्रेस को छोड़ चुके है, किस तरह से देखते है कि आने वाले में समय में आम आदमी पार्टी कितना प्रभाव डालेगी ? जवाब : चुनौती छोटी हो या बड़ी उसे गंभीरता से लेना चाहिए। कांग्रेस के लोगों को भी आम आदमी पार्टी को गंभीरता से लेना चाहिए, यह बहुत जरूरी है। पंजाब में जिस तरह से आम आदमी 92 सीटें ले कर आई उससे हिमाचल में भी असर हो सकता है, जिस तरह से कांग्रेस से लोगों का पलायन हो रहा है उसको देख कर कही न कही दिखता है कि लोग आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ना चाहते है। यह हमारे नेताओं को तय करना है कि जमीनी स्तर पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं को कैसे पार्टी से जोड़ कर रखना है। इसके बारे में विचार विमर्श और बैठकें करनी चाहिए। अन्य पार्टियों ने भी अपने कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए सम्मलेन किए है और अपने लोगो को आम आदमी पार्टी में जाने से रोक रहे है। कांग्रेस को भी इस चुनौती को गंभीरता से लेना पड़ेगा नहीं तो आने वाले समय में बड़ा नुकसान हो सकता है। सवाल - आपसे अंतिम सवाल धर्मशाला में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए क्या कार्य किये जा रहे है ? जवाब - कांग्रेस का कोर वर्कर जो लम्बे समय से पार्टी में है, वह सभी कार्यकर्ता एकजुट है। वही कार्यकर्ता कांग्रेस की रीड की हड्डी है। उन लोगों को भी पता है कि किस गांव में कौन सा व्यक्ति कांग्रेस का है और किस गाँव में क्या समस्या है। हम सब लोग उनके साथ संगठित है और वही लोग 2022 के विधानसभा में कांग्रेस की जीत दर्ज करवाएंगे।
विधानसभा चुनाव की हलचल शुरू हो चुकी है और जिला किन्नौर में भी सियासत परवान पर है। बीते दो चुनाव में यहाँ कांग्रेस विजयी हुई है और दोनों मर्तबा जगत सिंह नेगी ही कांग्रेस का चेहरा रहे है। अब जगत सिंह नेगी और कांग्रेस दोनों की निगाहें हैट्रिक पर है। नेगी विधानसभा में अक्सर सरकार को घेरते हुए दिखाई देते है, जनता के मुद्दों को सरकार के सामने रखने में भी नेगी पीछे नहीं, इसके बावजूद भी इस बार डगर कठिन दिख रही है। दरअसल किन्नौर कांग्रेस में गुटबाजी हावी है। विधायक जगत सिंह नेगी वीरभद्र गुट से आते हैं तो युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निगम भंडारी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के करीबी हैं। बेहद कम समय में निगम भंडारी एक प्रभावशाली युवा नेता के तौर पर उभरे है और पार्टी का एक तबका चाहता है कि निगम ही आगामी चुनाव में पार्टी प्रत्याशी हो। हालाँकि खुद निगम अब तक इस बारे में खुलकर नहीं बोल रहे है लेकिन अगर वे चुनाव लड़ने में रूचि दिखाते है तो जगत सिंह नेगी के लिए मुश्किल हो सकती है। दूसरा फैक्टर जिससे जगत सिंह नेगी को जूझना पड़ सकता है तो वो है एंटी इंकम्बैंसी। बेशक इस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार हो लेकिन किन्नौर में बीते दस साल से जगत सिंह नेगी ही विधायक है। ऐसे में कुछ लोगों का वोट बदलाव की ओर जा सकता है, ऐसा जानकारों का मानना है। वहीं पिछले चुनाव में जगत सिंह नेगी महज 120 वोटों से जीते थे। इस विधानसभा चुनाव को भाजपा यदि एकजुट होकर लड़ती है तो ये मामूली अंतर खत्म करना भाजपा के लिए कठिन नहीं होगा । हालांकि उससे पहले किन्नौर में बिखरी हुई भाजपा का एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरना बेहद ज़रूरी होगा। वहीं प्रदेश में आम आदमी पार्टी की एंट्री ने भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है। जंगी थोपन जैसी परियोजनाओं के चलते किन्नौर में वैसे भी दोनों राजनीतिक दलों को विरोध का सामना करना पड़ा है। कुछ माह पूर्व हुए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में कई पंचायतों ने मतदान का बहिष्कार किया, तो कई ने नोटा का इस्तेमाल किया। ऐसे में जानकार मानते है कि किन्नौर के लोग नए राजनीतिक विकल्प की तरफ भी जाएँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सिर्फ ठाकुर सेन नेगी लगा सके है हैट्रिक : किन्नौर के चुनावी इतिहास पर नज़र डाले तो अब तक सिर्फ ठाकुर सेन नेगी ही जीत की हैट्रिक लगा सके है। ठाकुर सेन नेगी 1967 से 1982 तक लगातार चार चुनाव जीते। दिलचस्प बात ये है कि वे तीन बार निर्दलीय और एक बार लोकराज पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। फिर वे भाजपा में शामिल हो गए और एक बार 1990 में भाजपा टिकट से भी जीतने में कामयाब हुए। ठाकुर सेन नेगी के अलावा जगत सिंह नेगी ही इकलौते ऐसे नेता है जिन्होंने लगातार दो चुनाव जीते हो। पर क्या जगत सिंह नेगी हैट्रिक लगा पाएंगे या क्लीन बोल्ड होंगे, ये देखना रोचक होगा।
सोलन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत बसाल की बीडीसी सदस्य कुसुम लता महिला मंडल की 31 महिलाओं सहित कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्होंने डॉ. कर्नल धनीराम शांडिल पूर्व विधायक के नेतृत्व में पार्टी ज्वाइन की। इस दौरान ब्लॉक अध्यक्ष ब्लॉक अध्यक्ष संजीव ठाकुर भी मौजूद रहे।
दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री और आप के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान 6 अप्रैल को हिमाचल के मुख्य शहरों में एक और छोटी काशी कहे जाने वाले मंडी शहर में रोड शो करेंगे। जिस तरह से 2 अप्रैल को आप के रोड शो में गुजरात की जनता ने आस्था जताई है, उसी तरह से हिमाचल की जनता भी भाजपा-कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों से दुखी है। यही कारण है कि हिमाचल की जनता इस रोड शो के लिए उत्साहित नजर आ रही है। यह रोड शो हिमाचल विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी का पहला बड़ा कार्यक्रम होगा।
प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी और 2017 के विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका था। 9 नवंबर मतदान का दिन मुकर्रर था और कांग्रेस मिशन रिपीट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। पर उससे ठीक पहले 14 अक्टूबर को कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। दिग्गज नेता पंडित सुखराम अपने बेटे और वीरभद्र सरकार के मंत्री अनिल शर्मा के साथ भाजपाई हो गए। अनिल शर्मा को भाजपा ने मंडी सदर सीट से टिकट दिया और जीत दर्ज कर वे जयराम कैबिनेट में मंत्री भी बन गए। हवा ऐसी बदली कि मंडी सदर सहित जिला मंडी में सभी 10 सीटें कांग्रेस हार गई। कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर और प्रकाश चौधरी भी चुनावी मैदान में धराशाई हो गए। तब से डी रेल हुई कांग्रेस की गाड़ी अब तक पटरी पर लौटती नहीं दिख रही। हालहीं में हुए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भी होलीलॉज के तिलिस्म के सहारे जैसे - तैसे कांग्रेस जीत तो गई लेकिन हकीकत ये है कि जिला मंडी की नौ में आठ सीटों पर भाजपा को बढ़त मिली थी। वहीँ इससे पहले हुए नगर निगम चुनाव हो या जिला परिषद चुनाव, कांग्रेस की बुरी गत किसी से छुपी नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस प्रत्याशी को चार लाख से अधिक के रिकॉर्ड अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। करीब सात माह में विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस के सामने मंडी में बेहतर करने की विराट चुनौती है। अगर मंडी में कांग्रेस ठीक -ठाक भी नहीं कर पाई तो सत्ता वापसी का ख्वाब पूरा होना मुश्किल है। उधर, मंडी में भाजपा के हौसले बुलंद है। साधन, संसाधन और संगठन के तराजू में तोले तो भाजपा का पलड़ा निसंदेह भारी है। सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिला में भाजपा कोई कसर छोड़ती नहीं दिख रही। इस पर जयराम को मंडी का सीएम कहना भी कांग्रेस को भारी पड़ता दिख रहा है। अब तक जयराम ठाकुर मंडी के साथ कनेक्ट करते दिखे है और यदि प्रो इंकम्बैंसी लहर चली तो कांग्रेस का सफाया तय होगा। वहीं आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी समर को और दिलचस्प बना दिया है। 6 अप्रैल को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मंडी से ही मिशन हिमाचल का आगाज करेंगे। यदि बदलाव के लिए मिलने वाले वोट में भी आप सेंध लगा पाई तो कांग्रेस का खेल खराब कर सकती है। जाहिर है आप के आने से अब कांग्रेस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जड़े गहरी, पर दिग्गजों को साथ आना होगा ! समय बेशक कुछ खराब चल रहा हो पर मंडी में कांग्रेस की जड़े बहुत मजबूत है। न तो कौल सिंह ठाकुर जैसे कद्दावर नेता को कम आंका जा सकता है और न ही पंडित सुखराम के परिवार को। पर क्या अनिल शर्मा की कांग्रेस में घर वापसी होगी या भाजपा से गीले शिकवे दूर होंगे, ये बड़ा सवाल है। चर्चा आम आदमी पार्टी को लेकर भी हो रही है। इन दोनों के अलावा ये भी जहन में रखना होगा कि अब प्रतिभा सिंह मंडी संसदीय क्षेत्र से सांसद है। विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका भी काफी कुछ तय कर सकती है। ये दिग्गज अगर एक साथ आते है तो कांग्रेस को कमतर आंकना विरोधियों के लिए भूल हो सकती है, पर यदि ऐसा नहीं होता तो 2017 की कहानी दोहराई भी जा सकती है।
दलों के अहम-वहम उड़ गए और अब पार्टी हिमाचल में दो -दो हाथ करने को तैयार है। चर्चा आम है कि कई सियासी शूरवीर आम आदमी पार्टी के सम्पर्क में है। इनमें दोनों ही दलों के नेता शामिल है। खबर तो ये भी आ रही है कि एक मंत्री और कई विधायक भी आप से संपर्क में है, हालांकि अब तक ये सिर्फ कयास है। बात - मुलाकात हो भी रही होगी तो जाहिर है सार्वजानिक तौर पर तो होगी नहीं। बहरहाल, नेता -कार्यकर्ता इम्पोर्ट करके आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में खूंटा गाड़ने का प्रयास जरूर कर रही है। विचारधार - सिद्धांत सब बाद में देखा जायेगा, फिलहाल तो सियासत हावी दिख रही है। माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। जिन्हें भाजपा -कांग्रेस में भविष्य नहीं दिख रहा वो भी आप की ओर दौड़ लगा रहे है, आखिर करियर का सवाल है। खुद विधायक नहीं बने तो जनता का भला कैसे करेंगे। वहीं शायद कुछ ऐसे भी होंगे जो विधायक बनकर जनता का भला नहीं कर पाएं सो अब सीधे मुख्यमंत्री बनकर जनसेवा करना चाहे। पर असल सवाल ये है कि क्या सच में आम आदमी पार्टी इस स्थिति में है कि हिमाचल में सरकार बना पाए। जो लोग पंजाब के नतीजों के आधार पर हिमाचल का आकलन कर रहे है, उन्हें ये जहन में रखना होगा कि 2013 से आम आदमी पार्टी पंजाब में संघर्ष करती रही। दिल्ली के अलावा किसी अन्य राज्य में आप सम्मानजनक स्थिति में थी तो वो पंजाब था। पंजाब में रातों -रात कोई चमत्कार नहीं हुआ। दूसरा पंजाब में आप का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से था, जो अंतर्कलह से ग्रसित थी। पर हिमाचल के मुकाबले में वो भाजपा भी है जो विजयरथ पर सवार भी है और अनुशासित भी। ऐसे में आप के लिए हालात मुश्किल होंगे। हालांकि गोवा और उत्तराखंड की तरह यहाँ भी पार्टी कांग्रेस का खेल जरूर ख़राब कर सकती है। शायद इरादा ही कांग्रेस को कमजोर कर 2027 में सत्ता हथियाने का हो। बहरहाल चुनाव में करीब सात माह का वक्त है और आप पर हर आम और खास की नजरें टिकी है। सियासत में समीकरण बदलते देर नहीं लगती। मुमकिन है 6 अप्रैल को मंडी में आप के शक्ति प्रदर्शन के बाद स्थिति और स्पष्ट हो। फिलवक्त इंतज़ार कीजिये, कौन आप का है, कौन आप का नहीं। पंजाब में सरकार का प्रदर्शन होगा बड़ा फैक्टर : पंजाब की भगवंत मान सरकार का प्रदर्शन भी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर होगा। प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्र पंजाब की सीमा पर है। कई क्षेत्रों में बोली-भाषा और रीति-रिवाज भी पंजाब जैसा है। वहीं हिमाचल में हुकूमत के कई निर्णय भी पंजाब की तर्ज पर लिए जाते है, मसलन कर्मचारियों का वेतनमान। ऐसे में यदि भगवंत मान सरकार का जादू पंजाब में चला तो असर हिमाचल में भी दिखेगा। पर यदि पंजाब सरकार अपेक्षाओं पर खरी नहीं उत्तरी तो पार्टी को खामियाजा हिमाचल में भुगतना पड़ सकता है।
'जयराम जी मुझे भाजपा में ले लो' ... मानो देहरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक होशियार सिंह काफी वक्त से खुलकर ये ही पैगाम दे रहे है। 2017 में निर्दलीय चुनाव जीते होशियार सिंह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के चाहवान है और कई मौकों पर जयराम की जयकार करते रहे है। जब सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और मुख्यमंत्री के बीच तल्खी दिखी थी, तब मुख्यमंत्री के अच्छे -अच्छे समर्थकों को सांप सूंघ गया था। पर निर्दलीय विधायक होशियार सिंह जयराम के पक्ष में बोले और खुलकर बोले। बावजूद इसके मुख्यमंत्री अपने इस समर्थक की पार्टी में एंट्री नहीं करवा पाएं। अब चुनावी बेला में होशियार सिंह ने फिर से भाजपा में जाने की इच्छा व्यक्त की है। बीते दिनों होशियार सिंह ने देहरा में जन चेतना एवं आशीर्वाद समारोह का आयोजन किया। होशियार सिंह ने खुलकर भाजपा को अपनी पसंद बताया और जयराम ठाकुर को देहरा के विकास का श्रेय देने में भी कोई कोताही नहीं बरती। दिलचस्प बात ये है इस दौरान उन्होंने खुले मंच से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और ज्वालामुखी विधायक रमेश धवाला की भी तारीफ की। शायद उन्हें लगा हो कि संतुलन साधे बिना पार्टी में एंट्री मुश्किल है। हालांकि होशियार सिंह ने ये भी कह दिया है कि अगर बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देती है तो वह किस पार्टी में जाएंगे, इसका फैसला सिर्फ देहरा की जनता करेगी। देहरा निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा की ग्राउंड रियलिटी की बात करें तो ऐसा नहीं है कि वहां भाजपा के पास नेतृत्व नहीं है। देहरा विधानसभा क्षेत्र से अक्सर रविंद्र रवि को भाजपा का संभावित उम्मीदवार माना जाता रहा है। हालांकि बाहरी होने की वजह से विरोधी उन्हें घेरने की कोई कसर नहीं छोड़ते। बीच-बीच में यह बात भी उड़ती रही है कि रवि ज्वालामुखी और वहां के मौजूदा विधायक रमेश धवाला देहरा से चुनाव लड़ सकते हैं। वहीं भाजपा के संगठनात्मक जिला देहरा के अध्यक्ष संजीव शर्मा भी दावेदारों में से एक हैं। वे तत्कालीन परागपुर भाजपा मंडल के अध्यक्ष और पंचायती राज सेल के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। मौजूदा समय में उनकी सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। इसके साथ ही इस फेहरिस्त में वन निगम के निदेशक नरेश चौहान डिंपल का नाम भी शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के करीबी और बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त क्रिकेट अंपायर अमित राणा और देहरा के हरिपुर गुलेर से भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉक्टर सुकृत सागर भी टिकट के दावेदारों में शुमार हैं। जाहिर है इतने दावेदारों को नकार कर होशियार सिंह को टिकट देना भाजपा के लिए जरा भी आसान नहीं होगा। एंट्री की राह आसान नहीं : आज़ाद विधायक होशियार सिंह की भाजपा में एंट्री को भाजपा मंडल ने सीधे तौर पर नकार दिया है। अगर भाजपा विधायक होशियार सिंह को टिकट देती है, तो देहरा भाजपा में बवाल तय होगा। रैली के बाद होशियार सिंह के भाजपा विरोधी बयान भी खूब वायरल होने लगे है। होशियार सिंह के ये पुराने भाजपा विरोधी बयान उनकी भाजपा में एंट्री का सबसे बड़ा अड़ंगा बन रहे है। दुविधा में कांग्रेसी एवं कॉमरेड ! देहरा विधायक होशियार सिंह द्वारा वहां मौजूद जनसभा को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनकी रैली में केवल भाजपा समर्थक ही पहुँचे हैं, बाकी कोई भी अन्य दल के लोग उनकी इस जन चेतना आशीर्वाद यात्रा में नहीं पहुंचे। मीडिया के सामने खुले शब्दो में यह चीज कहने के उपरांत वहां मौजूद अन्य दल के लोग जो होशियार सिंह के समर्थक हैं वह उलझन में पड़ गए। अब देखना यह है कि क्या उक्त राजनीतिक विचारधारा के लोग अब भी होशियार सिंह को समर्थन देंगे। भाजपा में ऐसे टिकट नहीं मिलते : भाजपा में ऐसे टिकट नहीं मिलते है। चुनावी वर्ष है कई लोग टिकट मांगते है। होशियार सिंह की पार्टी से ऐसी कोई बात नहीं हुई। भाजपा एक कार्यकर्ताओं की अनुशासित पार्टी है। इसमें टिकट हाईकमान तय करता है। भारतीय जनता पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को कभी भी नजरअंदाज नहीं करती। -सुरेश कश्यप, प्रदेशाध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी, हिमाचल किसी मौकापरस्त को टिकट नहीं : टिकेट की इच्छा कोई भी रख सकता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी उसी को टिकेट देती है जो पार्टी के लिए काम करता है, न कि किसी मौक़ापरस्त को। बाहर से आने वालों को टिकट देना भाजपा की संस्कृति नहीं है। -रविन्द्र रवि, पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री एक भी काम बताएं जो भाजपा के पक्ष में किया हो : हर समय भारतीय जनता पार्टी का विरोध किया। पिछले चार साल से देहरा में भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया। दीन दयाल उपाध्याय की जयंती पर भाजपा कार्यकर्ताओं पर केस तक करवा दिए। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर का विरोध किया। होशियार सिंह पहले एक भी काम बताएं जो उन्होंने भाजपा के पक्ष में किया हो, फिर भाजपा की टिकट मांगे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लाकर भाजपा की टिकट मांगना बेशर्मी है। - संजीव शर्मा, जिलाध्यक्ष भाजपा देहरा मंडल को कमंडल कहने वाले को टिकट नहीं : भाजपा मंडल को कमंडल कहने बाले को भाजपा कभी भी टिकट नही देगी। चार साल लगातार भाजपा कार्यकर्ताओं को अपना विपक्ष माना, उन्हें प्रताड़ित किया, हमारे कार्यकर्ताओं पर केस करवाएं। भाजपा दूसरी विचारधारा वाले व्यक्ति को कभी भी टिकट नहीं देगी। -निर्मल सिंह, मंडल अध्यक्ष भाजपा देहरा
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इसके बाद हिमाचल से भी भारी संख्या में लोग आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे हैं। इसी के साथ आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान भी तेजी से चला है। इसी के चलते दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन लगातार हिमाचल प्रदेश के दौरे कर रहे है। फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने सत्येन्द्र जैन से आगामी विधानसभा चुनाव और आम आदमी पार्टी की रणनीति को लेकर खास बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ अंश......... सवाल : आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प के तौर पर हिमाचल में उभर कर आ रही है। यदि हम इतिहास में जाए तो हिमाचल एक ऐसा राज्य है जहां तीसरे विकल्प को लोगों ने जगह नहीं दी। हिमाचल और पंजाब में काफी अंतर है, क्या कहना चाहेंगे ? जवाब : मौजूदा समय में हिमाचल में दो पार्टियां है एक है 'बी' पार्टी जिसका नाम बीजेपी है और एक है 'सी' पार्टी जिसका नाम कांग्रेस है। हिमाचल में 'ए स्लॉट खाली पड़ा था जिसे अब आम आदमी पार्टी भरने जा रही है। हम थर्ड नहीं है हम फर्स्ट है। दिल्ली में भी पहले यही 2 पार्टियां थी, एक बार कांग्रेस जीतती थी और एक बार भाजपा जीतती थी, लेकिन जनता ने अब इन दोनों पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया है। दिल्ली में तीन बार से लगातार आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है और हिमाचल में भी आम आदमी पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी। जनता ने अपना पूरा मन बना लिया है कि अब एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की रीत को समाप्त करके इन्हें पूरी तरह से साफ़ करना है और प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार बनानी है। सवाल : आम आदमी पार्टी के प्रचार की जब भी बात की जाती है तो दिल्ली और पंजाब का उदाहरण दिया जाता है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ा था। पार्टी वहां अच्छा नहीं कर पाई। केवल 2 राज्यों की बात क्यों होती है ? अन्य राज्यों में पार्टी अच्छा नहीं कर पाई ऐसा क्यों है ? जवाब : आम आदमी पार्टी एक छोटी पार्टी है, हम भाजपा जितनी बड़ी पार्टी नहीं है। भाजपा का पूरे देश में बहुत बड़ा नेटवर्क है। हम एक समय में एक चुनाव बहुत अच्छा लड़ सकते हैं। हमने पंजाब के चुनाव पर पूरी तरह से फोकस किया और वहां जीत कर दिखाया। अब की बार हम हिमाचल पर फोकस कर रहे हैं और हिमाचल में भी जीत कर दिखाएंगे। हम इतनी तो क्षमता रखते है कि हम एक समय में एक चुनाव अच्छे से जीत सकते हैं। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में साफ कर दिया है। अब हिमाचल में भी कांग्रेस साफ़ हो चुकी है और भाजपा को हराने का मंत्र भी हमें आता है। हम भाजपा को 3 बार सीधी लड़ाई में हरा चुके है। हमें पता है कि भाजपा को कैसे हराना है, कांग्रेस को इसकी जानकारी नहीं है। कांग्रेस इसलिए जीतती थी क्योंकि भाजपा हारती थी। कांग्रेस कभी भी पॉजिटिव वोट से नहीं जीती है और हमें यह जानकारी है कि पॉजिटिव वोट कैसे लिया जाता है। आम आदमी पार्टी देश की एक मात्र पार्टी है जो केवल काम पर वोट मांगती है। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव के दौरान कहा था कि यदि मैंने काम किया है तो वोट देना, अगर काम न दिखे तो वोट मत देना । इसके बाद जनता ने आम आदमी पार्टी को 70 में से 62 सीटें दी थी। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी भी पार्टी को दो बार 90 प्रतिशत सीटें मिली हो। आप जरा हिमाचल के मुख्यमंत्री से कहिये कि वह भी यह कहे कि यदि मैंने काम किया है तो वोट दे, नहीं तो वोट मत दे, जनता स्पष्ट तौर पर नकार देगी। आम आदमी पार्टी काम के ऊपर वोट मांगती हैं और अन्य पार्टियां राजनीति पर वोट मांगती है। लोगों ने पूरी तरह से मन बना लिया है कि अब आम आदमी पार्टी को जीताना है और लोगो में भी पार्टी को लेकर काफी जोश देखने को मिल रहा है। पहले लोगो में कई प्रकार की शंकाएं रहती थी लेकिन अब वह सभी शंकाएं दूर हो चुकी है। पंजाब में भी हम नहीं जीते, हम केवल चुनाव लड़े थे और हिमाचल में भी हम नहीं जीतेंगे, हम पूरी ताकत से लड़ेंगे और जनता चुनाव जीतेगी। सवाल: मौजूदा स्थिति में कांग्रेस और भाजपा के कई पदाधिकारी आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में क्या आम आदमी पार्टी उन पदाधिकारियों को मौका देगी या आम जनता से ही किसी को मौका दिया जाएगा? जवाब : पंजाब में हाल ही में चुनाव हुए है और आप उनका ही विश्लेषण कर लीजिये। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी को आम आदमी पार्टी ने दोनों जगहों से हरा दिया। जिन्होंने उन्हें हराया वह दोनों आम आदमी थे। यहां भी टिकट आम आदमी को ही मिलेगी। हिमाचल में पहले केवल 2 पार्टियां थी तो अच्छे लोगों के पास इन दोनों पार्टियों में जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। अब प्रदेश में तीसरा विकल्प आम आदमी पार्टी है और मैं आपके माध्यम से जनता से भी कहना चाहूंगा कि जितने भी अच्छे लोग हैं वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाए। वो लोग आम आदमी पार्टी में शामिल ना हो, जिनकी मंशा केवल राजनीति करने तक सिमित हो। सवाल : कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के कई बड़े नेता इस समय आम आदमी पार्टी के संपर्क में है। क्या यह बात सही है ? उतर : हम चुनाव लड़ने आए हैं तो संपर्क में नेताओं का होना तो स्वाभाविक है। मैं खुले तौर पर कह रहा हूं कि अच्छे आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाइये। हम किसी को भी पार्टी में शामिल करने से इनकार नहीं कर रहे है। कांग्रेस और भाजपा में जितने भी अच्छे लोग फंसे है वह लोग आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाए। पंकज जी, ये बात सच है कि कई बड़े नेता हमारे सम्पर्क में है। सवाल : आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक है, चुनाव के लिए केवल 7 से 8 महीने का समय बचा है। इस समय आम आदमी पार्टी का संगठन बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है और आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती कमजोर संगठन होने वाला है। इतने कम समय में पार्टी किस तरह से कार्य करेगी और आगे बढ़ेगी ? जवाब : आम आदमी पार्टी के संगठन की यदि बात की जाए तो दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का संगठन भाजपा के मुकाबले कमजोर है। परंतु पार्टी ने 70 में से 62 सीटें ली है। आम आदमी पार्टी का संगठन आम आदमी ही है। आम आदमी नेताओं से डरता है, उन्हें डर लगता है यह मेरी दुकान बंद करवा देगा। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पंजाब में हर दुकान में कांग्रेस, भाजपा और अकालियों का झंडा लगा था लेकिन लोग वोट हमे दे कर आए। यदि आप चुनाव से 3 दिन पहले भी पंजाब जाते तो कहते कि आम आदमी पार्टी का कुछ नहीं हो सकता। न किसी ने नहीं सोचा था कि आम आदमी पार्टी 92 सीटें लेकर आएगी। जनता को लगा कि पार्टी लड़ रही हैं तो जनता ने वोट दिया। हमें केवल लड़ कर दिखाना है। जहाँ तक संगठन की बात की जाए तो बहुत सारे लोग ऐसे है जो सामने नहीं आ सकते क्यों कि उनके परिजन सरकारी नौकरी करते है और उन्हें ट्रांसफर या अन्य चीजों का भय रहता है। नेताओं द्वारा जनता में इस तरह के डर बनाए गए हैं। प्रदेश में जनता को दिल से जोड़ने की जरूरत है, डर से जोड़ने की जरूरत नहीं है। हम लोगों को दिल से जोड़ रहे हैं और संगठन ऊपर से दिखे या ना दिखे लेकिन अंदर से है। आपको सभी खबरें हैं तो आपको यह खबर भी जरूर होगी कि हम जनता के दिल में रहते है। सवाल : लगातार भाजपा कांग्रेस यह बात कहती आई है कि दिल्ली एक समृद्ध राज्य है और वहां पर सरकार चलाना आसान है। पंजाब के ऊपर करीब तीन लाख करोड़ का कर्ज है, इसके अलावा पंजाब बॉर्डर स्टेट है और काफी ज्यादा सेंसिटिव स्टेट भी मानी जाती है। आम आदमी पार्टी किस तरह से पंजाब को चला पाएगी ? जवाब : पंजाब में सरकार बने हुए अभी कुछ ही समय हुआ है। पंजाब में रिश्वत लेना बंद हो गया है, यदि आपको रजिस्ट्री करवानी है तो आप से एक रुपए भी नहीं लिया जाएगा। हिमाचल से भी बहुत सारे ट्रक पंजाब जाते है आप उनसे पूछ लीजिये कि पंजाब में कितने पैसे लिए गए और यह भी जरूर पूछना कि क्या हिमाचल में पैसे छोड़े गए। हमें पता है कि सरकार कैसे चलानी है। सरकार चलाने के लिए नियत साफ होनी चाहिए। यदि नियत साफ है तो काम अच्छा हो सकता है। आप कह रहे है कि दिल्ली एक समृद्ध राज्य है लेकिन जब तक हमारी सरकार नहीं थी तब तक समृद्ध नहीं था। दिल्ली का बजट 30 हज़ार करोड रुपए हुआ करता था। आम आदमी पार्टी की सरकार आई तो यह बजट 70 हज़ार करोड़ हो गया ,इस बार यह बजट हम 75 हजार करोड़ ले गए। आम आदमी पार्टी ने लोगों के लिए काम किया और लोगों ने ख़ुशी से टैक्स दिया। लोगों का कहना है कि हमारे लिए काम हो रहा है, हमारे बच्चों की पढ़ाई करवा रहे हैं, हमारे लिए सोचते है, हमारे लिए काम कर रहे है, हमारे ऊपर खर्च कर रहे हैं और अपने ऊपर खर्च नहीं कर रहे हैं। हिमाचल की यदि बात करे तो हिमाचल की पर कैपिटा इनकम 14वें नंबर पर है। यहाँ एक बार कांग्रेस लुटती है और एक बार भाजपा लुटती है। यदि ऐसे ही लुटते रहे तो प्रदेश आगे कैसे बढ़ेगा। हम यह नहीं कहते कि हम 5 वर्षों में यह सब कर के दिखाएंगे लेकिन हम 10 वर्षों में हिमाचल प्रदेश की पर कैपिटा इनकम को पहले नंबर पर ले कर आएंगे। हम प्रदेश में पर कैपिटा इनकम बढ़ाएंगे, शिक्षा पर ध्यान देंगे, बच्चों को अच्छी पढ़ाई देंगे, हर इंसान का अच्छा इलाज करवाएंगे, टूरिज्म पर ध्यान देंगे, हॉर्टिकल्चर पर ध्यान देंगे, एग्रीकल्चर पर ध्यान देंगे, सभी चीजों पर ध्यान देंगे। हिमाचल देवभूमि है, भगवान ने इस प्रदेश को इतना खूबसूरत बनाया है और हम इसे और ऊपर लेकर जाएंगे। सवाल : हाल ही में हिमाचल में हुए चारों उपचुनावों में चारों सीटें कांग्रेस पार्टी ने जीती है, जनता ने कांग्रेस पर अपना प्यार बरसाया है। हिमाचल में यह रिवाज है कि हर 5 वर्षों के बाद सरकार बदलती है और यह रीत 1985 से चली आ रही है। इसके अनुसार अगला टर्म कांग्रेस पार्टी का है और चारों उपचुनाव भी कांग्रेस ने ही जीते है। आदमी पार्टी के लिए किस तरह की चुनौती होने वाली है ? जवाब : कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीती है, केवल भाजपा हारी है और दोनों में फर्क है। भाजपा हारी है, यह हम सभी लोग जानते हैं, लेकिन कांग्रेस जीती नहीं है और न ही जीतेगी क्योंकि अब आम आदमी पार्टी उन्हें नहीं जीतने देगी। पहले जनता के पास विकल्प नहीं होता था। मैंने कांग्रेस के एक नेता से बात की जो एक मौजूदा विधायक है। मैंने उनसे कहा कि आप तो मौजूदा विधायक है आपको तो टिकट मिल ही जाएगी। उन्होंने कहा कि टिकट तो मिल जाएगी लेकिन चुनाव नहीं जीत पाउँगा क्यूंकि आम आदमी पार्टी आ रही है। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस से लड़ा तो 100 प्रतिशत हार जाऊंगा लेकिन आम आदमी पार्टी से लडूंगा तो जीत तो जाऊंगा। इस पर मैंने कहा कि हम ऐसे कैसे टिकट दे सकते है, हम पहले जनता से आपकी रेपुटेशन पूछेंगे और यदि आपकी रिपोर्ट अच्छी हुई तो ही आपको टिकट देंगे, नहीं तो सोचना पड़ेगा। तो यह स्थिति फिलहाल हिमाचल में है। सवाल : फर्स्ट वर्डिक्ट के माध्यम से हिमाचल की जनता को आप क्या संदेश देना चाहेंगे? जवाब : हिमाचल की जनता को मैं यह कहना चाहूंगा कि कभी कांग्रेस और कभी भाजपा, इनका खेल चलते हुए 60 वर्षों से भी अधिक समय हो चुका है। एक बार आप आम आदमी पार्टी को मौका देकर देखिए, अपने आपको मौका देकर देखिए। आप इन दोनों पार्टियों को भूल जाएंगे। इन नेताओं को इस बात से डर नहीं लगता कि आम आदमी पार्टी एक बार आ जाएगी, इन्हें डर इस बात से लगता है कि यदि एक बार आ गई तो फिर सालों साल काम करेगी। आम आदमी पार्टी में केवल काम को तव्वजों दी जाती है। हिमाचल में आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी, जनता के लिए काम करेगी और काम करके दिखाएगी। नेताओं को भी सीखने को मिलेगा कि विकास क्या होता है।
हिमाचल प्रदेश की सियासत में जिला सिरमौर का ख़ास स्थान रहा है। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार सिरमौर से ही ताल्लुख रखते थे। अलबत्ता उनके बाद प्रदेश की सियासत में सिरमौर को उचित स्थान तो मिलता रहा पर सिरमौर सियासत के शिखर तक नहीं पहुंचा। पर जयराम राज में सिरमौर का सियासी रुतबा खूब बढ़ा। यूँ तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिला सिरमौर की तीन सीटें मिली थी, फिर भी सिरमौर के खाते में एक मंत्री पद भी गया और प्रदेश भाजपा संगठन की सरदारी भी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप सिरमौर से आते है और प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ वे शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद भी है। कई बोर्ड-निगमों में भी सिरमौर को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है। बावजूद इसके भाजपा यहाँ सहज नहीं दिख रही। प्रदेश अध्यक्ष के जिला में ही असंतोष भी है और अंतर्कलह भी। यदि पार्टी इसे नहीं भेद पाई तो मनमाफिक नतीजे मिलना मुश्किल होगा। इसके अलावा हाटी समुदाय का मसला भी भाजपा के जी का जंजाल बन गया है। देश और प्रदेश दोनों में भाजपा की सरकार है और पार्टी से जवाब देते नहीं बन रहा। इस मुद्दे पर पार्टी का रुख चुनाव की दशा और दिशा तय कर सकता है। 2017 के चुनाव में नाहन, पांवटा साहिब और पच्छाद सीट पर भाजपा को जीत मिली। तब प्रो प्रेमकुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद बिंदल भी सीएम पद के दावेदारों में थे, पर राजनीतिक बिसात पर वे पिट गए। दिलचस्प बात ये है कि उन्हें कैबिनेट मंत्री तक का पद नहीं दिया गया। डा. राजीव बिंदल काे विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी मिली। पर 2019 खत्म होते -होते बिंदल विधानसभा अध्यक्ष के पद से सीधे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुँचने में कामयाब हो गए। पद मिला तो बिंदल के तेवर भी दिखने लगे और असर भी। पर 2020 में काेविड-19 के दौर में स्वास्थ्य विभाग घाेटाले के चलते डा. बिंदल काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। ख़ास बात ये है कि पार्टी ने उनका रिप्लेसमेंट भी सिरमौर से ही दिया। सांसद सुरेश कश्यप काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ज़िम्मा मिल गया। इसके बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में पांवटा साहिब से विधायक सुखराम चाैधरी काे मंत्री पद देकर भाजपा ने बिंदल की कमी पूरी करने का सारा प्रबंध कर लिया। पर ग्राउंड रियलिटी की अगर बात करें तो सभी पांच निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी ऐसा नहीं ,है जहाँ भाजपा इक्कीस दिख रही है। हर जगह कड़ा मुकाबला तय है। पांवटा साहिब : आसानी से नहीं मिलेगा सुख मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पांवटा साहिब में भी भाजपा को आसानी से सत्ता सुख मिलता नहीं दिख रहा। भीतरखाते मंत्री की मुखालफत की झलकियां अभी से दिखने लगी है। पिछले वर्ष हुए निकाय चुनाव में भी भाजपा को मनमाफिक नतीजे नहीं मिले थे। उधर कांग्रेस संभवतः फिर करनेश जंग को मैदान में उतारे। हालांकि कई कांग्रेसी अब आप में गए है जिससे भाजपा जरूर उत्साहित होगी। पच्छाद: कांग्रेस की अंतर्कलह से होगी आस उपचुनाव में भाजपा ने एक युवा महिला नेता को टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप को पच्छाद उपचुनाव में जीत मिली। हालांकि भाजपा से बागी उम्मीदवार दयाल प्यारी भी मैदान में थी पर यहां भी सुरेश कश्यप ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी काबिलियत सिद्ध की। अब दयाल प्यारी कांग्रेस में जा चुकी है। ऐसे में यहाँ भाजपा की नज़र कांग्रेस की अंतर्कलह पर रहेगी। पर भाजपा में भी टिकट के कई दावेदार है। वैसे पच्छाद में भाजपा की स्थिति कुछ कमजोर जरूर हुई है, जिला परिषद और स्थानीय निकाय के नतीजे भी इसकी तस्दीक करते है। नाहन : फिर लगने लगा धरतीपुत्र का नारा नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन मौजूदा स्थिति में वे भी सहज नहीं दिख रहे है। यहाँ अभी से धरतीपुत्र का नारा बुलंद होता दिख रहा है। बाहरी फैक्टर चला और कांग्रेस संगठित होकर चुनाव लड़ी, तो बिंदल को भी मुश्किल होती दिख रही है। इसके अलावा सवर्ण आंदोलन फैक्टर भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। रेणुकाजी /शिलाई : खेल न बिगाड़ दे हाटी समुदाय रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और 2022 के लिए अभी से भाजपा को यहां कड़ी तैयारी करनी होगी। दोनों ही क्षेत्रों में भाजपा के लिए हाटी समुदाय को विशेष दर्जे का मुद्दा भी सरदर्द बनता दिख रहा है। पार्टी में टिकट दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त भी परेशानी बढ़ा सकती है। उधर कांग्रेस में सम्भवतः दोनों ही वर्तमान विधायकों को फिर मौक मिले। बिंदल साइडलाइन, बाकी में वो बात नहीं ! सिरमौर में भाजपा के वर्तमान सियासी आउटलुक की बात करें तो तेजतर्रार नेता और नाहन विधायक डॉ राजीव बिंदल एक किस्म से साइडलाइन है। न सरकार में उन्हें अहमियत दी गई है और न ही संगठन में कोई अहम ज़िम्मेदारी। नगर निगम सोलन और अर्की उपचुनाव का प्रभारी जरूर उन्हें बनाया गया, किन्तु दोनों जगह पार्टी परास्त हुई। उन्हें साइडलाइन रख कई नेताओं की ताकत बढ़ाई गई जिससे समीकरण संतुलित रह सके। पर इसमें कोई संशय नहीं कि बिंदल जैसा जादू अन्य नेता नहीं दिखा पा रहे। तो भाजपा को भुगतना होगा खामियाजा... पिछले दिनों हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में जुटे लोगों ने स्पष्ट कहा कि 2014 में तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नाहन के चौगान मैदान में गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का वादा किया था। तदोपरांत 2019 में तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मंत्री ने हरिपुरधार में इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की बात कही थी। वर्तमान में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप भाजपाई है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी है। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में यदि प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्ज नहीं मिलता है, तो उसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना होगा। दरअसल गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का मसला 144 पंचायतों से सीधे जुड़ा है और इसके दायरे में चार विधानसभा क्षेत्र आते है। शिलाई के अतिरिक्त, श्रीरेणुकाजी, पच्छाद व पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में भी ये मुद्दा निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जाहिर है फिलवक्त भाजपा सत्ता में है तो नाराजगी का कोप भी भाजपा को भुगतना पड़ा सकता है। ऐसे में निसंदेह सत्तारूढ़ भाजपा अब इस मुद्दे पर कोई सार्थक पहल कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका लाभ भी मिलना तय है।
न कोई कम, न कोई ज्यादा। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का हाल कुछ ऐसा ही है। कांग्रेस -भाजपा दोनों यहाँ बराबर है और इस पर अब आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सियासत में उबाल ला दिया है। अलबत्ता अभी विधानसभा चुनाव में करीब सात माह का वक्त है लेकिन आधा दर्जन से ज्यादा भावी उम्मीदवार मैदान में उतर चुके है। नालागढ़ अभी से इलेक्शन मोड में आ चुका है। कांग्रेस से वर्तमान विधायक लखविंदर राणा मोर्चा संभाले हुए है तो भाजपा से पूर्व विधायक के एल ठाकुर भी ताव में है। जबकि नए नवेले आम आदमी हुए पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष धर्मपाल चौहान दोनों के अरमानों पर झाड़ू फेरने की ताक में है। पिछले चुनाव में भाजपा का खेल खराब करने वाले हरप्रीत सैनी का इरादा इस बार भी मैदान में उतरने का लग रहा है, तो कांग्रेस के एक और नेता आप के संपर्क में बताएं जा रहे है। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र के अतीत में झांके तो भाजपा से हरि नारायण सिंह सैनी ने लगातार तीन बार कमल खिलाया था। वे वर्ष 1998, 2003 व 2007 में वे विधायक रहे। उनके निधन के बाद 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा ने बाजी मारी। पर एक ही साल में जनता का राणा से मोहभंग हो गया और 2012 के विधानसभा चुनाव में राणा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। वहीँ भाजपा उम्मीदवार के एल ठाकुर पहली बार विधायक बने। 2017 के चुनाव की बात करें तो नालागढ़ से एक बार फिर लखविंदर सिंह राणा और के एल ठाकुर आमने -सामने थे। हालांकि यहाँ राणा ने बाजी मारी किन्तु बेहद रोचक मुकाबला देखने को मिला। कांग्रेस का टिकट न मिलने पर बाबा हरदीप सिंह ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और साढ़े सात हज़ार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा के बागी हरप्रीत सैनी ने करीब दो हज़ार वोट हासिल कर ठाकुर का खेल खराब कर दिया था। वर्तमान की बात करें तो लखविंदर सिंह राणा ही नालागढ़ कांग्रेस का मुख्य चेहरा है। राणा इस सीट से पांच चुनाव लड़ चुके है। उन्होंने पहली बार वर्ष 2003 में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद हुए तीन विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें ही टिकट दिया है जिसमें से दो बार उन्हें जीत मिली है। जबकि भाजपा में भी फिलवक्त के एल ठाकुर के समकक्ष कोई चेहरा नहीं दिखता। ठाकुर के खाते में एक जीत और एक हार दर्ज है। वहीँ, बतौर निर्दलीय 2017 में चुनाव लड़ने वाले बाबा हरदीप अब भी अपनी जमीन मजबूत करने की जद्दोजहद ही करते दिख रहे है। उनकी बेशक कांग्रेस में वापसी हो गई हो लेकिन टिकट की दौड़ में वे राणा के आगे टिकते नहीं दिखते। धर्मपाल चौहान की बात करें तो निसंदेह वे चुनाव लड़ने के इच्छुक है और आम आदमी पार्टी से टिकट के प्रबल दावेदार भी होंगे, बशर्ते आप कोई अन्य नेता इम्पोर्ट न कर ले। धर्मपाल भी मैदान में टिके है और उनके रहते ये मुकाबला कांग्रेस -भाजपा किसी के लिए आसान नहीं होगा।
◆ घिरथ ,गद्दी,गोरखा और जनरल वोट बैंक में फंसी धर्मशाला इस बार धर्मशाला, प्रदेश की दूसरी "कागजी" राजधानी है। वीरभद्र सरकार की विदाई के बाद अब इसकी घोषणा का कागज भी गायब है। अगर कोई दिखाता भी है तो उसकी सत्यता पर सवाल-बवाल बराबर होते हैं। खैर,शुक्र यह है कि धर्मशाला गायब नहीं हो पाया है। धर्मशाला के साथ पॉलिटिक्स का चलन बहुत पुराना है। पर बेचारे धर्मशाला का हाल यह है कि स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलने के बावजूद आम आदमी के लिए कुछ स्मार्ट तो नहीं हो पाया अलबत्ता इसके अंदर की पॉलिटिक्स जरूर स्मार्ट हो चुकी है। मोबाइल तकनीक फोर-जी की तर्ज पर धर्मशाला की पॉलिटिक्स भी फोर-जी की तरह हाई स्पीड वाली हो गई है। फोर-जी फैक्टर में यहां घिरत,गद्दी,गोरखा और जनरल के बीच पॉलिटिकल रेडियेशन्स पसरी हुईं हैं। भाजपा का तो इतिहास ही रहा है कि उसने गद्दी जाति की तरंगों पर ही सफर किया। स्व मेजर बृज लाल से शुरू हुआ सफर वाया किशन कपूर होता हुआ अब विशाल नैहरिया तक पहुंच चुका है। भाजपा की टिकट कभी गैर गद्दी के हाथ नहीं चढ़ पाई। साल 2017 में जब कपूर की टिकट कटने की नौबत आई थी तब उन्होंने अश्रु धाराओं की दीवार बना कर उन्होंने पण्डित उमेश दत्त की टिकट रोक ली थी। इसके बाद साल 2019 में कपूर साहब की लॉटरी लोकसभा में लगी तो उनके जीतने के बाद फिर से टिकट की गद्दी पर गद्दी समुदाय के विशाल नैहरिया को भाजपा ने सत्तासीन कर दिया। यह तो थी फोर-जी फैक्टर के पहले अहम जी-फैक्टर गद्दी की। अब बात करते हैं कांग्रेस की। एक वक्त था, जब कांग्रेस भी गद्दी समुदाय के मूलराज पाधा के साथ अपना हाथ लेकर चलती थी। फिर कांग्रेस ने यह वर्चस्व जनरल कैटागिरी से राज परिवार की चंद्रेश कुमारी को आगे लाकर तोड़ा। कांग्रेस ने एक बार गद्दी समुदाय को छोड़ा तो फिर कभी अपना पल्लू नहीं थमाया। चंद्रेश के बाद सुधीर शर्मा को धर्मशाला से उम्मीदवार बनाया और वह जीते भी। इसके बाद जब किशन कपूर के सांसद बनने के बाद उपचुनाव हुए तो जनरल फैक्टर के सुधीर शर्मा गायब हो गए। कांग्रेस मरती क्या न करती,एक बार फिर गद्दी समुदाय वाले विजय इन्द्रकर्ण जी-फैक्टर की तरफ बढ़ गई। भाजपा-कांग्रेस दोनों गद्दी फैक्टर पर भिड़ीं और भाजपा जीत गई। मगर इसी चुनाव में तीसरे जी-फैक्टर यानि घिरथ समुदाय ने अपना जलवा दिखा दिया। कभी भाजपाई रहे राकेश चौधरी आजाद मैदान में उतरे और भाजपा की चीखें निकलवाने के साथ कांग्रेस की जमानत जब्त करवा दी। करीबन सोलह हजार वोट लेकर बता दिया कि ओबीसी बिन गति नहीं होने दी जाएगी। अब बात करते हैं चौथे और लास्ट जी-फैक्टर गोरखा समुदाय की। हालांकि यह समुदाय बहुतयात में तो नहीं है,पर किसी को भी हरवाने में यह तबका, अपना तगड़ा दबका रखता है। इस समुदाय के अरुण बिष्ट ने एक बार चंद्रेश कुमारी को घर बिठा दिया था,तो दूसरी बार रविन्द्र राणा ने सुधीर शर्मा को तगड़ी चोट दे दी थी। पर अब इस फोर-जी फैक्टर में जनरल फैक्टर पॉलिटिकल फ्रैक्चर डालने की कुव्वत बना चुका है। जनरल कैटागिरी का मत प्रतिशत एक अनुमान के मुताबिक करीबन 49 से 51 फीसदी के बीच पहुंच चुका है। इस बार भाजपा-कांग्रेस के लिए यह ट्रेडिशनल गद्दी फैक्टर खतरे का सामान बनता नजर आने शुरू हो गया है। खैर, असली फोर-जी के आगे फाइव-जी की तरफ बढ़ रही है। देखना दिलचस्प होगा कि स्ट्रेंथ ऑफ पॉलिटिकल सिग्नल कितना फलक्चुएट होता है...
मिशन रिपीट के लिए जयराम सरकार ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। दावा है कि जो 1985 के बाद से अब तक नहीं हुआ, वो अब होगा। जो सख्त मिजाज वाले नेता कभी नहीं कर पाएं वो नरम मिजाज वाले जयराम करके दिखाएंगे। ऐसे में दबाव न सिर्फ खुद जयराम ठाकुर पर है बल्कि उनकी कैबिनेट के अन्य 11 मंत्रियों पर भी। दबाव इसलिए भी कुछ अधिक है क्यों कि काबीना मंत्रियों का चुनाव हारना हिमाचल की सियासत का पुराना रिवाज है। पांच साल बाद जब जनता का वक्त आता है तो क्या मंत्री और क्या मुख्यमंत्री, किसी की जीत की कोई गारंटी नहीं होती। वर्तमान में भी जयराम कैबिनेट के कई मंत्रियों के प्रदर्शन पर सवाल उठ रहे है। किसी की विभाग पर पकड़ कमजोर दिख रही है तो कोई अपने रैवये के चलते सुर्ख़ियों में है। तो कहीं मजबूत विपक्ष और हावी अंतर्कलह ने मंत्रियों की नींद उड़ाई हुई है। ग्राउंड रियलिटी की बात करें तो खुद मुख्यमंत्री और एकाध मंत्रियों को छोड़ कर शायद ही कोई ऐसा हो जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में इक्कीस दिख रहा है। हालाँकि मौजूदा मंत्रिमंडल में कई ऐसे नेता भी है जो जीत की हैट्रिक लगा चुके, पर ये सियासत है यहां समीकरण बदलते समय नहीं लगता। हिमाचल प्रदेश में कैबिनेट मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री भी चुनाव हारते रहे है। सीएम रहते चुनाव हारने वालों में वीरभद्र सिंह और शांता कुमार के नाम भी शामिल है। 1990 में वीरभद्र सिंह जुब्बल कोटखाई से चुनाव हार गए, हालांकि तब वे दो निर्वाचन क्षेत्रों से मैदान में थे। वहीं 1993 में सत्ता विरोधी लहर ऐसी चली कि शांता कुमार अपनी सीट भी नहीं बचा पाएं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा तो जीत गई लेकिन सीएम फेस प्रो प्रेमकुमार धूमल खुद चुनाव हार गए। इसी तरह कैबिनेट मंत्रियों का चुनाव हारना भी हिमाचल में आम बात है। पिछले चार चुनावों पर नज़र डाले तो वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में धूमल कैबिनेट के 12 ज्यादा मंत्री चुनाव हारे थे ( तब कैबिनेट की अधिकतम संख्या 12 नहीं थी)। 2007 में वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे सात नेता चुनाव हारे। जबकि 2012 में धूमल कैबिनेट के तीन मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाएं। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में तो वीरभद्र सिंह कैबिनेट के पांच मंत्रियों को जनता ने नकार दिया। पहली चुनौती टिकट लाना ! आज की भाजपा में टिकट आवंटन का आधार नाम से ज्यादा जीताऊ फैक्टर है और टिकट से पहले बकायदा सर्वे कराए जाते है। हाल ही में कई ऐसे उदहारण है जहाँ पार्टी ने एंटी इंकम्बैंसी को भांपते हुए मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे है। ऐसे में हिमाचल में भी ये संभव है। जाहिर है फिर विधानसभा पहुँचने के लिए पहले मंत्रियों को अपना टिकट सेफ करना होगा। एंटी इंकम्बेंसी साधने को क्या होगा बदलाव ! उपचुनाव हारने के बाद से ही प्रदेश में मंत्रिमंडल फेरबदल के कयास लगते रहे है। खुद मुख्यमंत्री ने भी कभी साफ़ शब्दों में फेरबदल की संभावना से इंकार नहीं किया। पर अब तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। चुनाव के मुहाने पर खड़ी सरकार क्या एंटी इंकम्बैंसी साधने के लिए फेरबदल कर सकती है, ये बड़ा सवाल है।
प्रदेश में दिन प्रतिदिन आप का जनाधार बढ़ रहा है। इससे भाजपा-कांग्रेस की चिंता बढ़ गई और उन्हें हार का डर सताने लगा है। यह बात पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता गौरव शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियां दलगत राजनीति करती आ रही हैं। यही कारण है कि प्रदेश की जनता अब इनसे तंग हो चुकी है। दोनों दलों के नेता इस बात को नहीं पचा पा रहे हैं। यह दल कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी का कोई वजूद ही नहीं। यदि पार्टी का कोई वजूद न होता तो क्यों ये दल डर के मारे रोज पार्टी की चर्चा कर रहे हैं। दरअसल इनको अब डर सता रहा है। महंगाई ने पहले प्रदेश की जनता की कमर तोड़ दी है। लोग अब आम आदमी पार्टी से आस लगाए बैठे हैं। इन दोनों पार्टियों का अमन-चैन ही छिन गया है। इस बार जीत का सेहरा आप के सिर ही सजेगा। ्र
राजेश कतनौरिया जवाली विधान सभा में आम आदमी पार्टी का अभियान जोर-शोर से चल रहा है। आप जवाली के अध्यक्ष निखिल महाजन ने महाराणा प्रताप भवन लव के प्रांगण में एक मीटिंग की। इसमें अलग-अलग पंचायतों के 500 लोगों ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। इस दौरान आप के प्रदेश सदस्यता अभियान के अधयक्ष राजीव अंबिया, अभिषेक चौधरी, करनैल सिंह और भारत भूषण आदि मौजूद रहे। वहीं निखिल महाजन ने कहा कि हर वर्ग में आम आदमी पार्टी के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है। जनता इस बार बदलाव चाहती है।
नरेंद्र डोगरा जयसिंहपुर विधान सभा में आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान जोरों से चला हुआ है। इस सदस्यता अभियान के दौरान लंबागांव के रत्न चौधरी यशपाल चौधरी, विद्या देवी भूरू व अन्य लोगों ने आप का दामन थाम लिया। संगठन मंत्री लक्की पुरी व मंडलाध्यक्ष विक्रम कौंडल, प्रभात कौंडल ने पार्टी का स्मृति चिन्ह दिया। मंडल अध्यक्ष विक्रम कौंडल ने हर वर्ग आम आदमी पार्टी की ओर मुखातिव हो रहा है। आने वाले समय में पार्टी का पूरा परचम लहराएगा।
बड़सर विधानसभा क्षेत्र के विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने कहा कि केंद्र और प्रदेश कि भाजपा सरकार महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रही हैं। बड़ी हैरानी है कि पिछले 9 दिनों में पैट्रोल और डीजल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। महंगाई से जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित है। लोगों को गुजारा करना मुश्किल हो गया है। मगर महंगाई रोकने को कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री ने दो लाख युवाओं को रोजगार देने की बात कही थी, मगर कुछ भी नहीं किया गया। वहीं उन्होंने कहा मुख्यमंत्री का सरकारी कार्यालयों में बैठे अफसरों पर कोई कंट्रोल नहीं है। लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। सड़कों की हालत खस्ता है। मनरेगा के तहत रोजगार भी नहीं मिल रहा है। मगर न तो केंद्र और न ही प्रदेश सरकार का इस तरफ कोई ध्यान है।
मनोज कुमार हिमाचल करणी सेना के जिला अध्यक्ष आशुतोष चौधरी ने आप का दामन थाम लिया है। धर्मशाला सर्किट हाउस में आप पार्टी के दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सतिंद्र जैन ने आप पार्टी की टोपी पहनाई। बता दें कि दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतिंद्र जैन कांगड़ा में आयोजित एक छिंज में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे हुए थे। आशुतोष चौधरी पुराना कांगड़ा के रहने वाले हैं। उनके पिता कैप्टन प्रताप चौधरी 1977 में कांगड़ा के विधायक रहे चुके हैं। उनकी माता शशि कांता भी पूर्व पार्षद भी रह चुकी हैं। उन्होंने कहा कि पहले भी हिमाचल करणी सेना के साथ समाज सेवा कर रहे हैं। अब आप पार्टी से जुड़ कर लोगों की सेवा करूंगा। उन्होंने कहा कि आप पार्टी की नीतियां पसंद आई हैं। केजरीवाल की अच्छी नीतियों को मद्देनजर रखते हुए आज ये फैसला लिया है। वहीं उन्होंने कहा कि वे कांगड़ा विधानसभा युवा कार्यकर्ताओं के साथ आप पार्टी को मजबूत और कांगड़ा में सदस्यता अभियान की शुरूवात करेंगे। इस दौरान उनके साथ उनकी माता व धर्म पत्नी भी मौजूद रहीं।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने प्रदेश कृषि विभाग द्वारा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को प्रस्तुत प्रस्तावित एकीकृत डिजिटल कृषि प्लेटफार्म परियोजना को 108 करोड़ रुपए स्वीकृत करने के लिए केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से कृषि सुधार ट्रांसफार्मेशन इन एग्रीकल्चर यूजिंग एमर्जिंग टेक्रोलॉजी पर प्रस्तावित इस परियोजना के तहत किसानों के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी आईसीटी आधारित सेवाएं प्रदान करने में आंतरिक योग्यता विकसित की जाएगी। इसमें प्रशासनिक प्रक्रिया पर निर्भरता कम कर कार्य कुशलता को बनाया जाएगा और कृषि आधारित सेवाओं की मांग के अनुसार उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। जय राम ठाकुर ने कहा कि परियोजना का मुख्य उद्देश्य केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न योजनाओं के लिए सिंगल साइन ऑन प्लेटफार्म स्थापित करना है, जो विभाग की विभिन्न योजनाओं के लिए आवेदन करने की प्रक्रियाओं को और सरल कर देगा और विभिन्न वित्तीय लाभ सीधे लाभार्थियों के खातों में हस्तांतरित किए जाएंगे। परियोजना के अन्तर्गत एक बाजार सूचना प्रणाली विकसित की जाएगी, जिसमें मांग एवं आपूर्ति की जानकारी, उत्पाद की कीमत और राष्ट्रीय ई. मार्केट प्लेटफार्म की जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रस्तावित परियोजना में एकीकृत किसान डाटाबेस, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एपीआई, एकीकरण, स्वचालित फार्म एक्सटेंशन सर्वर, कस्टमाइज डैशबोर्ड, डाटा एनालिटिक्स एवं केन्द्रीकृत रिपोर्ट और फार्मर फील्ड स्कूल एप्लीकेशन तैयार करने पर कार्य किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह प्रस्तावित परियोजना आईटी आधारित इको सिस्टम का उपयोग करेगी, जिससे किसान विभाग और अन्य हितधारक लाभान्वित होंगे।
वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने है और दोनों मुख्य राजनैतिक दल अभी से मिशन रिपीट और मिशन डिलीट की कवायद में जुट गए है। इस पर आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी खिचड़ी में तड़का लगा दिया है। आप से इतर भी दोनों राजनैतिक दलों और सत्ता के सोलह श्रृंगार के बीच सोलह विधानसभा सीटें ऐसी है जो राह में रोड़ा बन सकती है। 2003 से लेकर 2017 तक हुए चार विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो इन 16 पर हर पांच वर्ष के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। यहाँ कभी कांग्रेस, कभी भाजपा तो कभी अन्य काबिज हुए है। हालांकि इनमें से कुछ ऐसी सीटें भी है जहां दल भले ही बदले हो लेकिन चेहरा एक ही रहा है। वर्तमान स्थिति की बात करें तो इन 16 सीटों में से 12 पर भाजपा काबिज है, जबकि 4 पर कांग्रेस के विधायक है। गगरेट, सुलह, धर्मशाला, बिलासपुर, आनी, नूरपुर, सुंदरनगर, चौपाल, दून, भरमौर, लाहौल स्पीति और करसोग में इस वक्त भाजपा के विधायक है, तो जुब्बल कोटखाई, कांगड़ा, कुल्लू और नालागढ़ में कांग्रेस काबिज है। 2017 विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा के पास इन सोलह में से 13 सीटें थी, पर उपचुनाव में हार के बाद जुब्बल कोटखाई सीट अब कांग्रेस के पास है। वहीं 2019 में धर्मशाला सीट पर भी उपचुनाव हुआ है लेकिन उक्त सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। यहाँ नालागढ़ ऐसी सीट है जहां 2003 और 2007 में भाजपा काबिज हुई लेकिन 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। इसके बाद 2012 में भाजपा और 2017 में कांग्रेस को जीत मिली। जुब्बल कोटखाई : एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा जुब्बल कोटखाई प्रदेश का इकलौता निर्वाचन क्षेत्र क्षेत्र है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह। लम्बे समय तक इस सीट पर ठाकुर रामलाल की तूती बोलती थी और उनके निधन के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में उनके पोते रोहित ठाकुर को भी यहाँ की जनता का प्यारा मिला। पर 2007 में पूर्व बागवानी मंत्री रहे नरेंद्र बरागटा ने पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर जनता ने कांग्रेस के रोहित ठाकुर को विजयी बनाया, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर नरेंद्र बरागटा ने जीत हासिल की। 5 जून 2021 को नरेंद्र बरागटा का निधन हुआ और तदोपरांत 30 अक्टूबर 2021 को जुब्बल कोटखाई सीट पर हुए उपचुनाव में रोहित ठाकुर को तीसरी बार जीत मिली। इस वर्ष के अंत में फिर विधानसभा चुनाव होने है और इस दफा जुब्बल कोटखाई की कुर्सी पर कौन सा दल काबिज होता है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। वहीं चेतन बरागटा की भाजपा में घर वापसी और आप में जाने की अटकलों ने अभी से इस क्षेत्र में सियासत गरमा गई है। चौपाल : यहाँ निर्दलियों को भी मिलता रहा है प्यार चौपाल सीट के पिछले चार चुनावों के नतीजों का आंकलन किया जाए तो इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के साथ - साथ निर्दलियों का सिक्का भी चला है। कभी यहां बीजेपी की उम्मीदवार की जीत हुई, कभी कांग्रेस की, तो कभी निर्दलियों-बागियों ने दोनों का खेल बिगाड़ा। 2003 के विधानसभा चुनाव में सुभाष चंद मंगलेट ने इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में सुभाष चंद मंगलेट ने कांग्रेस पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2012 में निर्दलीय बलबीर वर्मा ने सुभाष चंद मंगलेट को हराया। 2017 में बलबीर वर्मा भाजपा में शामिल हुए और पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। यानी 2003 और 2007 का चुनाव मंगलेट बतौर निर्दलीय और फिर कांग्रेस के टिकट पर जीते। इसी तरह बलबीर वर्मा ने 2012 में बतौर निर्दलीय और 2017 में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की। दून : फिर दिलचस्प मुकाबला तय दून विधानसभा क्षेत्र में जनता कब किस पर मेहरबान हो ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन पिछले चार चुनावों में इस सीट पर निरंतर सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है। 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस के लज्जा राम ने 17297 मतों के साथ जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में यहां सत्ता परिवर्तन हुआ और भाजपा से विनोद कुमारी ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी रामकुमार ने भाजपा के निर्दलीय रहे दर्शन सिंह को हरा कर जीत हासिल की और यह सीट कांग्रेस के नाम हुई। 2017 के चुनाव में भाजपा ने परमजीत सिंह पम्मी पर दांव खेला और यह सीट भाजपा के नाम रही। दिलचस्प बात ये है कि पम्मी कांग्रेस से भाजपा में आये थे। अब 2022 में भी यहां दिलचस्प मुकाबला तय दिख रहा है। वहीं कई नेताओं के आप में जाने की अटकलों से भी यहाँ सियासी पारा हाई है। बिलासपुर : 2003 से परिवर्तन की प्रथा कायम बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में 2003 के विधानसभा चुनाव में तिलक राज ने जीत दर्ज कर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली तो 2007 के चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा इस सीट पर भाजपा को काबिज करवाने में कामयाब रहे। 2012 के चुनाव में कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने भाजपा के सुरेश चंदेल को पटखनी देकर जीत दर्ज की थी। 2017 के लिए कांग्रेस ने फिर बंबर ठाकुर पर दांव लगाया और भाजपा ने सुभाष ठाकुर पर, लेकिन सुभाष ठाकुर इस सीट पर फ़तेह हासिल करने में कामयाब रहे। 2003 से परिवर्तन की प्रथा इस सीट पर कायम है। गगरेट : कुलदीप की हैट्रिक के बाद से लगातार परिवर्तन गगरेट सीट पर 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कुलदीप कुमार ने जीत की हैट्रिक पूरी की थी। पर इसके बाद गगरेट सीट पर समीकरण बदले और 2007 में भाजपा से बलबीर सिंह ने सत्ता का सुख भोगा। 2012 में फिर चेहरे बदले और इस सीट पर कांग्रेस के राकेश कालिया ने कब्ज़ा जमाया। 2017 के चुनाव में राजेश ठाकुर ने गगरेट सीट फिर भाजपा के नाम की। इस सीट पर निरंतर राजनैतिक दलों की चल रही अदला बदली के बीच 2022 का चुनाव रोचक होना तय माना जा रहा है। सुलह : कांग्रेस -भाजपा दोनों के खाते में दो - दो जीत सुलह विधानसभा क्षेत्र में पिछले चार चुनाव के नतीजों पर गौर करे तो दो बार भाजपा व 2 बार कांग्रेस ने इस सीट पर सत्ता का सुख भोगा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में जगजीवन पाल ने जीत दर्ज कर ये सीट कांग्रेस के नाम की, तो 2007 के विधानसभा चुनाव में विपिन सिंह परमार ने भाजपा का झंडा लहराया। 2012 के चुनाव में फिर जगजीवन पाल ने इस सीट पर बाजी मारी और ये सीट कांग्रेस के नाम की। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में विपिन सिंह परमार फिर भाजपा टिकट पर जीते। यानी पिछले चार चुनावो में इस सीट पर दोनों ही राजनैतिक दल बराबरी पर रहे है। धर्मशाला : उपचुनाव में भाजपा के पास ही रही सीट धर्मशाला सीट पर 1990 से लेकर 1998 तक भाजपा का ही राज रहा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चंद्रेश कुमारी पर दांव खेला और लम्बे अंतराल के बाद इस सीट पर जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा ने इस सीट पर बाज़ी मारी और किशन कपूर यहाँ से विधायक बने। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सुधीर शर्मा को मैदान में उतारा और सीट अपने नाम की। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर किशन कपूर ने फिर इस सीट को भाजपा की झोली में डाला। लोकसभा चुनाव 2019 में किशन कपूर ने बाज़ी मारी और सांसद बने जिसके बाद 2019 में धर्मशाला में उपचुनाव हुए और इस सीट पर भाजपा के ही विशाल नेहरिया ने जीत दर्ज की। दिलचस्प बात ये है कि उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त हुई थी। वहीं तब दूसरे नंबर पर रहने वाले राकेश चौधरी अब आप में शामिल हो चुके है। काँगड़ा : लम्बे वक्त से चल रहा भाजपा का वनवास काँगड़ा विधानसभा क्षेत्र में पिछले चार चुनाव के नतीजों पर नजर डाले तो इस सीट पर निरंतर सत्ता परिवर्तन हुआ है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सुरिंदर कुमार ने जीत दर्ज की। 2007 के चुनाव में बीएसपी पार्टी के संजय चौधरी को जनता ने स्वीकार किया और काँगड़ा सीट बीएसपी पार्टी की हुई। 2012 के विधानसभा चुनाव में चौधरी सुरेंदर कुमार को हरा कर निर्दलीय मैदान में उतरे पवन काजल ने ये सीट अपने नाम की। इस बाद काजल कांग्रेस ने शामिल हुए। 2017 के चुनाव में पवन कुमार काजल कांग्रेस में शामिल हुए और काँगड़ा सीट फिर कांग्रेस की झोली में आई। बेशक काजल लगातार दो चुनाव जीतने में कामयाब रहे हो लेकिन पार्टी सिंबल के लिहाज से देखा जाएं तो यहां पिछले चार चुनाव से परिवर्तन होता आ रहा है। भरमौर : एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे भरमौरी भरमौर विधानसभा गद्दी जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इस कारण भरमौर को गद्देरण भी कहा जाता है। भरमौर विधानसभा क्षेत्र में लगातार सत्ता की कुर्सी पर राजनीतिक दलों की अदला बदली रही है। पिछले चार चुनाव की बात की जाए तो 2003 के चुनाव में ठाकुर सिंह भरमौरी ने जीत दर्ज कर सत्ता की कुर्सी पर कांग्रेस को बैठाया। 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तुलसी राम ने भरमौर सीट भाजपा के नाम की। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ठाकुर सिंह भरमौरी पर दांव खेला तो भाजपा ने जिया लाल को मैदान में उतारा। भरमौरी ने 2012 में सीट पर जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के जिया लाल ने फिर इस सीट से चुनाव लड़ा और ये सीट भाजपा की झोली में गई। लगातार चार चुनावों में इस सीट पर सत्ता परिवर्तन रहा है। लाहौल स्पीति : कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा लाहौल स्पीति विधानसभा सीट हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। इस बार लाहौल स्पीति विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता तय करेगी लेकिन पिछले चार चुनावों का आकलन किया जाये तो इस सीट पर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा ने सत्ता का सुख भोगा है। 2003 में कांग्रेस के रघबीर सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2007 में डॉ राम लाल मार्कंडा ने भाजपा का झंडा लहराया तो 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने नए चेहरे रवि ठाकुर को मैदान में उतार कर लाहौल स्पीति की कुर्सी अपने नाम की। 2017 के विधानसभा चुनाव में डॉ राम लाल मारकंडा ने न केवल इस सीट पर जीत दर्ज की बल्कि मंत्री पद हथियाने में भी कामयाब रहे। हालाँकि अब कयास ये भी लग रहे है कि आप भी इस निर्वाचन क्षेत्र में कई नेताओं से संपर्क में है। कुल्लू : यहां लगातार हो रहा है परिवर्तन कुल्लू विधानसभा क्षेत्र में इस बार सत्ता का सुख किसे मिलेगा ये तो जनता तय करेगी, लेकिन पिछले कुछ चुनाव के नतीजों को देखे तो इस सीट पर निरंतर दलों की अदला बदली देखने को मिली है। 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो ये सीट कांग्रेस के हाथ लगी है। 2007 में वर्तमान में शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने ये सीट भाजपा की झोली में डाली। 2012 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और इस सीट को एचएलपी ने अपने नाम किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर इस सीट पर कांग्रेस के सुंदर सिंह ठाकुर ने जीत दर्ज कर ये सीट कांग्रेस की झोली में डाली। आनी : बारी -बारी कांग्रेस और भाजपा आनी विधानसभा क्षेत्र में 2003 के चुनाव में कांग्रेस के ईश्वर दास इस सीट से विधायक बने। 2007 में इस सीट पर किशोरी लाल ने भाजपा का परचम लहराया। 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर जनता ने सत्ता में कांग्रेस को बैठाया और कांग्रेस के खूब राम ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और आनी सीट पर भाजपा के किशोरी लाल ने जीत दर्ज की। अब 2022 के चुनाव में सत्ता का सुख किसे मिलता है यह देखना रोचक होगा। करसोग : 1990 से लगातार हो रहा परिवर्तन करसोग विधानसभा क्षेत्र ऐसी सीट जहाँ हर पांच वर्ष बाद जनता ने विधायक की कुर्सी पर अलग अलग राजनैतिक दलों को मौका दिया। करसोग सीट पर 1990 से लेकर अब तक ऐसी कोई पार्टी नहीं रही है जिसने लगातार दो चुनाव जीते हो। विशेष तौर पर पिछले चार चुनाव की बात करे तो 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मस्त राम ने यहाँ जीत दर्ज की, जिसके बाद 2007 के चुनाव में फिर बदलाव आया और सत्ता की कुर्सी पर निर्दलीय उम्मीदवार हीरा लाल ने राज किया। 2012 के चुनाव में मनसा राम ने फिर एक बार कांग्रेस का परचम लहराया। 2017 के विधानसभा चुनाव में हीरा लाल भाजपा में शामिल हुए और करसोग की सीट भाजपा के नाम हुई। सुंदरनगर : हर पांच में बदलाव कर रही सुंदरनगर की जनता सुंदरनगर विधानसभा सीट के पिछले कुछ चुनावों पर नज़र डाले तो जनता का हर पांच वर्ष बाद विधायक से मोह भंग हुआ है। 1990 से लेकर अब तक इस सीट पर सत्ता का सुख भोगने के लिए कोई भी पार्टी रिपीट नहीं कर पाई है। पिछले चार चुनावों की बात की जाए तो 2003 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सोहन लाल ठाकुर ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 2007 के चुनाव में फिर बदलाव हुआ सुंदरनगर की जनता भाजपा के रूप सिंह पर मेहरबान हुई। 2012 में फिर विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता का सुख भोगा और 2017 में भाजपा ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। इस बार सुंदरनगर की सीट पर कौन विराजमान होता है और परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे ये तो जनता ही तय करेगी। फिलवक्त इस सीट पर चली आ रही सत्ता परिवर्तन की प्रथा के अनुसार भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ सकती है। नूरपुर : लगातार जीतने में कोई कामयाब नहीं नूरपुर निर्वाचन क्षेत्र में 1996 में हुए उपचुनाव के बाद से ही इस सीट पर शासन के लिए लगातार परिवर्तन देखने को मिला है। पिछले चार चुनाव के नतीजों पर गौर फरमाएं तो यहाँ की जनता ने हर पांच वर्ष में बदलाव किया है। 2003 के विधानसभा चुनाव में सत महाजन ने कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलाई। 2007 के विधानसभा चुनाव में राकेश पठानिया आज़ाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और जीत का परचम लहराया। 2012 में कांग्रेस ने अजय महाजन पर दांव खेला और जनता ने कांग्रेस पार्टी पर विश्वास जताया। 2017 के विधानसभा चुनाव में राकेश पठानिया भाजपा में शामिल हुए और मंत्री पद हासिल करने के साथ इस सीट पर भाजपा की जीत हुई लेकिन इस बार नतीजे किस पार्टी के पक्ष में होंगे ये कहना मुश्किल है। नालागढ़ : हरिनारायण सैणी के बाद कोई नहीं जीता लगातार दो चुनाव नालागढ़ हिमाचल प्रदेश की वो सीट जहाँ पर ज्यादातर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है, लेकिन वर्ष 1998 में पहली बार यहां से भाजपा जीती। तब से तत्कालीन विधायक ने तीन बार जीत दर्ज कर यहां से लगातार जीते, लेकिन उसके बाद यह सीट फिर से कांग्रेस के हाथों में चली गई। 1998 में पहली बार भाजपा को जीत मिली और पूर्व विधायक स्व. हरिनारायण सैणी की जीत का यह रथ वर्ष 2003, 2007 में जारी रहा। हरिनारायण सैणी के निधन के बाद 2011 में नालागढ़ सीट पर उपचुनाव हुए। 2011 के उपचुनाव में समीकरण बदले और तब सत्तारूढ़ दल भाजपा इस सीट पर रिपीट नहीं कर पाई और यह सीट फिर से कांग्रेस के हाथों में आई। तब यहां से लखविंदर राणा ने जीत दर्ज की। 2012 के विधानसभा चुनाव में केएल ठाकुर ने फिर भाजपा का परचम लहराया। 2017 में कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा ने फिर जीत हासिल की। वहीं बीते दिनों कांग्रेस नेता और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष धर्मपाल चौहान के आप में जाने के बाद ही इस क्षेत्र के समीकरण बदलते दिख रहे है। दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही दलों के कई ने नेता भी आप के संपर्क में बताएं जा रहे है। दिग्गजों की साख भी दांव पर जिन 16 विधानसभा सीटों पर लगातार परिवर्तन हो रहा है उनमें से दो विधानसभा सीटें ऐसी भी है जहाँ मौजूदा सरकार के मंत्रियों की साख भी दांव पर है। नूरपुर विधानसभा क्षेत्र से वन मंत्री राकेश पठानिया और लाहौल स्पीति से तकनीकी शिक्षा मंत्री रामलाल मार्कंडेय के सामने अपनी सीट बरकरार रखने की चुनौती होगी। नूरपुर में 1996 से ही हर पांच वर्ष में सत्ता की कुर्सी पर कभी भाजपा, कभी कांग्रेस तो कभी निर्दलियों का राज़ रहा है। ऐसे में लम्बे समय से चले आ रहे इस सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज में वन मंत्री राकेश पठानिया का बड़ा इम्तिहान होना है। लाहौल स्पीति से तकनीकी शिक्षा मंत्री रामलाल मारकंडा भी इस फेहरिस्त में शामिल है। मंडी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद कई मंत्रियों की साख दांव पर थी इसमें मंत्री रामलाल मारकंडा भी चर्चा में रहे। 1998 से लगातार लाहौल स्पीति की सीट पर दलों की अदला बदली रही है। ऐसे में मारकंडा पर निसंदेह सबकी निगाहें रहने वाली है। दो कैबिनेट मंत्रियों के अलावा विधानसभा स्पीकर व जयराम सरकार में ही स्वास्थ्य मंत्री रह चुके विपिन सिंह परमार के सामने भी खुद को साबित करने की चुनौती होगी। परमार भी उन नेताओं की लिस्ट में शामिल है जो एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे है।
पंजाब में अब पूर्व विधायकों को सिर्फ एक टर्म की पेंशन मिलेगी। इसके साथ-साथ पूर्व विधायकों को मिलने वाले फैमिली भत्तों में भी कटौती की जाएगी। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार चाहे कितनी भी बार का विधायक रहा हो उसे एक ही पेंशन मिलेगी। इसी अनुपात में फैमिली पेंशन भी कम होगी। पंजाब की भगवंत मान सरकार के इस फैसले की कहीं प्रशंसा हो रही है तो कहीं निंदा। कोई इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बता रहा है तो किसी का मानना है कि इस फैसले से सरकार को ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला। बहरहाल, ये निर्णय अच्छा है या बुरा, इसे लेकर विश्लेषण जारी है। मगर ये स्पष्ट है कि पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद बाकी राज्य सरकारों पर भी दबाव बनना शुरू हो गया है। इस फैसले का प्रभाव हिमाचल में भी देखने को मिल रहा है। यहां भी जनता कुछ ऐसा ही चाहती है, खासतौर पर प्रदेश के कर्मचारी ये मांग करने लगे है। दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा ये फैसला पंजाब की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लिया गया है। फिलवक्त पंजाब की आर्थिक स्थिति बदहाल है। पंजाब पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इसका जिक्र सीएम भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान भी कर चुके हैं। सरकार का मानना है कि इस फैसले के बाद विधायकों की पेंशन पर खर्च हो रहे पैसे को युवाओं व अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्चा जा सकेगा। बता दें कि छह बार विधायक रहीं पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल, लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर को हर महीने तीन लाख 25 हजार रुपये मिलते हैं। रवि इंद्र सिंह, बलविंदर सिंह को हर महीने दो लाख 75 हजार रुपये की राशि मिलती है। वहीं 10 बार के विधायक की पेंशन छह लाख 62 हजार प्रतिमाह है। अब सभी पूर्व व मौजूदा विधायकों को सिर्फ 75 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। मान सरकार पांच साल में 80 करोड़ रुपये की बचत करेगी और यह राशि जन कल्याणकारी कार्यों में खर्च की जाएगी। इस फैसले में एक और पेच भी अटका हुआ है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस फैसले का पंजाब को कोई वित्तीय लाभ नहीं होगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब रिटायर होता है तो उसे उस समय के नियमों के मुताबिक ही पेंशन मिलती है। जब 2004 में सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की तो यह केवल नए कर्मचारियों पर ही लागू हुई न की पुराने कमचारियों पर। यही फार्मूला विधायकों की पेंशन पर भी लागू हो सकता है। हालांकि सरकार कानून बना कर ऐसा कर सकती है और विधानसभा में बहुमत होने के चलते आम आदमी पार्टी के लिए ये बिल्कुल भी मुश्किल नहीं होने वाला। क्या ये पुरानी पेंशन बहाल न करने का संकेत है ! नेताओं को मिलने वाली एक से अधिक पेंशन को लेकर लंबे समय से देश में बहस छिड़ी हुई है। वन पर्सन वन पेंशन की मांग कई संगठन उठाते रहे है। वहीं पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में नई पेंशन के विरोध में भी कर्मचारी लामबंद होते दिखे है। कर्मचारियों का अक्सर ये सवाल रहा है कि जहां उन्हें नए पेंशन सिस्टम के जरिये एक पेंशन भी ढंग से नहीं मिल पाती वहीं नेताओं को दो तीन पुरानी पेंशन आखिर क्यों दी जाती है। कर्मचारियों को मनाने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने तो पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा भी कर दी। ऐसे में कई राज्यों पर पुरानी पेंशन बहाली को लेकर दबाव है। इस बीच अब पंजाब ने विधायकों की पेंशन और भत्तों में कटौती कर दी है। अब एक तरफ कर्मचारी इसे बड़ा निर्णय बता खुश हो रहे है तो दूसरी तरफ कुछ का मानना है कि सरकार द्वारा उनका एक बड़ा मुद्दा खत्म कर दिया गया है और शायद ये कर्मचारियों को पुरानी पेंशन न देने का एक संकेत हो सकता है।
देश के पांच बड़े राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ने लगे हैं। इसी को लेकर अब हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस पार्टी ने इसे मुद्दा बनाते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोला है। कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता और विधायक आशा कुमारी का कहना है कि जब चुनाव नहीं होते हैं तो भाजपा के लोग पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ा देते हैं और ठीकरा पेट्रोल और डीजल कंपनी पर फोड़ते हैं। भाजपा कहती है यह हमारे हाथ में नहीं है क्योंकि पेट्रोल कंपनियां और डीजल कंपनी ही रेट बढ़ा रही है, लेकिन जब चुनाव नजदीक होते हैं तो भाजपा पेट्रोल और डीजल के दाम तुरंत रोक देती है। इससे साफ जाहिर होता है कि भाजपा लोगों को लूटने में लगी हुई है ,जिससे लोग परेशान है। आशा कुमारी का कहना है कि यह दाम ऐसे ही बढ़ते जाएंगे और लोग परेशान होते रहेंगे लेकिन भाजपा को सिर्फ सत्ता चाहिए और उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं । उनका कहना है कि जिस तरह से चुनाव होने के बाद बीजेपी ने लगातार महंगाई से लोगों को त्रस्त किया है, पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ाए है उसका जवाब आगामी विधानसभा चुनाव में जनता देगी।
विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में सियासी उठापटक देखने को मिल रही है। नेता एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी कर रहे हैं। इसी कड़ी में वन मंत्री राकेश पठानिया ने कांग्रेस और आप पर निशाना साधा है। पठानिया का कहना है कि आज देश कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है। कांग्रेसी नेता भी अब जान चुके हैं कि जिस कश्ती में वे सवार हैं, उस कश्ती में छेद हो गया है। यही वजह है कि कांग्रेस से हताश परेशान होकर नेता आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे हैं। पठानिया का कहना है कि हिमाचल में आप का कोई वजूद नहीं है और ना ही आने वाले समय में होगा। हिमाचल के अलग समीकरण हैं और पंजाब के अलग। पंजाब के लोग अकाली और कांग्रेस दोनों से परेशान थे जिसकी वजह से आप पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब हो गई ।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक है और नेताओं में आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर भाजपा पर जमकर निशाना साध रहे है। उनका कहना है कि कांग्रेस इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी। प्रदेश में क्षेत्रीय दलों का कोई अस्तित्व नहीं रहा है। चुनावों में कांग्रेस का मुकाबला सत्तासीन भाजपा के साथ होगा। आम आदमी पार्टी पहाड़ी प्रदेश में अपनी जड़ें नहीं जमा पाएगी। उनका कहना है कि भाजपा सरकार के पूरे हो रहे कार्यकाल में प्रदेश में महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में पूरी तरह विफल साबित हुई है। प्रदेश की आर्थिक दशा पूरी तरह बिगड़ कर रह गई है। वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, जबकि करोड़ों रुपए की फिजूलखर्ची बड़े-बड़े विज्ञापन होर्डिंग लगाकर की जा रही है। उनका कहना है कि विकास जमीन पर दिखाई देता है, लेकिन विकास करने में नाकाम रही जयराम सरकार अब गांव और गली कूचों में जल जीवन मिशन के आए बजट में मितव्ययिता कर राजनीतिक मंसूबे पूरे करने के लिए अब होर्डिंग लगाने में जुटी है। कौल सिंह ठाकुर का कहना है कि जनता समझदार है और जानती है कि हर घर में नल कब लगे और समुचित पेयजल कब उपलब्ध हुआ। इसका जवाब चुनावों में जनता अवश्य देगी।
यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election Result) में प्रचंड जीत के बाद गुरुवार को योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया है। इसके साथ वह लगातार दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। केंद्रीय पर्यवेक्षक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और सह-पर्यवेक्षक व झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस बात का ऐलान किया है। वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश खन्ना ने योगी आदित्यनाथ को विधायक दल का नेता बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद सर्वसम्मति से उनको नेता चुना गया है।
पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को दूसरी बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है । धामी के साथ आठ मंत्रियों को भी राज्यपाल ने शपथ दिलाई। नई कैबिनेट में पुराने और नए चेहरों का मिश्रण किया गया है। इसमें धामी के पुराने मंत्रिमंडल के पांच मंत्रियों को फिर से जगह मिली है। वहीं, पिछली विधानसभा के अध्यक्ष रहे प्रेमचंद्र अग्रवाल को भी धामी कैबिनेट में शामिल किया गया है। नए चेहरों के रूप में सौरभ बहुगुणा और चंदन राम दास को भी इस कैबिनेट में शामिल किया गया है। पिछली बार जब धामी ने शपथ ली थी तो उनके साथ 11 विधायक मंत्री बनाए गए थे। इनमें से पांच, रेखा आर्य, सुबोध उनियाल, गणेश जोशी, सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को दोबारा मंत्री बनाया गया है । वहीं, तीन मंत्रियों अरविंद पांडेय, बिशन सिंह चुफाल और बंशीधर भगत को नई कैबिनेट में जगह नहीं मिली। इनकी जगह तीन नए चेहरे मंत्रिमंडल का हिस्सा होंगे। धामी मंत्रिमंडल तीन नए चेहरों को मौका मिला है। इनमें पिछली विधानसभा के अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल सबसे अहम हैं। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा को भी धामी कैबिनेट में जगह मिली है। 43 साल के बहुगुणा और रेखा आर्या धामी कैबिनेट के सबसे युवा चेहरे हैं। सौरभ सितारगंज से जीतकर लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं। सौरभ के दादा हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। बागेश्वर से जीते चंदन राम दास को भी कैबिनेट में जगह मिली है।
तो भाई को हटाकर भाई चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है। सोलन निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का ताजा हाल ये ही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहाँ ससुर दामाद आमने -सामने थे। वहीं 2022 में भाजपा टिकट के लिए दो भाइयों में मुकाबला देखने को मिल सकता है। पिछला चुनाव लड़ चुके डॉ राजेश कश्यप जहां चुनाव के लिए तैयार दिख रहे है, वहीं उनके बड़े भाई और दो बार सांसद रहे वीरेंद्र कश्यप भी चुनाव लड़ने से इंकार नहीं कर रहे। फर्स्ट वर्डिक्ट के साथ विशेष बातचीत में वीरेंद्र कश्यप ने कहा कि उनकी निजी इच्छा नहीं है किन्तु यदि पार्टी कहती है तो वे तैयार है। विदित रहे कि वीरेंद्र कश्यप के विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर काफी वक्त से कयास लग रहे है। दरअसल भाजपा का ही एक गुट डॉ राजेश कश्यप को पसंद नहीं करता। ऐसे में माहिर मानते है कि विरोधी वीरेंद्र कश्यप की एंट्री की बिसात पर डॉ राजेश कश्यप का पत्ता काटने से गुरेज नहीं करेंगे। हालांकि इसमें कोई संशय नहीं है कि फिलहाल तो भाजपा में डॉ राजेश कश्यप का ही सिक्का चल रहा है। पर पल -पल बदलती राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। वहीं हाल फिलहाल ही वीरेंदर कश्यप को भाजपा ने एक झटका भी दिया है। दरससल राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के लिए भाजपा ने डॉ सिकंदर कुमार को प्रत्याशी घोषित कर दिया है और इस घोषणा ने कई नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है। इनमे से एक नाम है प्रो वीरेंद्र कश्यप का भी है । प्रो वीरेंद्र कश्यप ने भी टिकट माँगा था लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। वीरेंद्र कश्यप वर्ष 2009 और 2014 में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे है लेकिन पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद कयास लग रहे थे कि वीरेंद्र कश्यप को प्रदेश की सियासत में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। 2019 में प्रदेश अध्यक्ष के पड़ के लिए भी उनका नाम चर्चा में रहा लेकिन तब कश्यप रेस में डॉ राजीव बिंदल से पिछड़ गए। इसके बाद वर्ष 2020 में जब स्वास्थय घोटाले के बाद डॉ राजीव बिंदल ने इस्तीफा दिया तब फिर प्रो वीरेंद्र कश्यप क नाम अध्यक्ष पड़ के लिए उछला लेकिन ताजपोशी हुई सुरेश कश्यप की। अब राज्यसभा के लिए भी पार्टी ने वीरेंद्र कश्यप को तवज्जो नहीं दी है। अब पार्टी विधानसभा में किस भाई को चुनती है और किसे नहीं ये देखना दिलचस्ब होगा।
- गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वालों को तवज्जो देती आ रही है आप - दल बदलने वाले नेताओं के क्या पूरे होंगे अरमान ? जिन्हें पता है कि कांग्रेस और भाजपा में दाल नहीं गलने वाली वो अब आप का रुख कर रहे है। पर सवाल ये है कि क्या आम आदमी पार्टी में इन नेताओं की दाल गलेगी। हिमाचल में अब तक जो नेता आप में गए है उनमें कांग्रेसी अधिक है, और अधिकांश ऐसे है जो विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक है। कोई पौंटा साहिब का विधायक बनना चाहता है, तो कोई फतेहपुर, नालागढ़ या अन्य किसी क्षेत्र का। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस में इन्हें टिकट मिलने की सम्भावना न के बराबर थी, सो इन्होंने मौके की नजाकत को समझते हुए आप का रुख कर लिया। ऐसा नहीं है कि भाजपा को खतरा न हो, भाजपा के भी कई नेता आप के संपर्क में बताये जा रहे है। विधायक बनने कि चाह में आगामी कुछ दिनों में कई भाजपा नेता भी आप में शामिल होते दिख सकते है। पर यक्ष प्रश्न ये है कि क्या दल बदलने वाले इन नेताओं को आप का टिकट मिलेगा ? यदि आप के दिल्ली और पंजाब मॉडल का विश्लेषण किया जाएँ तो पार्टी ने हमेशा गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए लोगों को तवज्जो दी है। ऐसे में क्या आम आदमी पार्टी हिमाचल में आम आदमी पर दल बदलकर आएं नेताओं को तवज्जो देगी, ये फिलवक्त बड़ा सवाल है। जानकार मानते है कि आम आदमी पार्टी वाकिफ है कि हिमाचल में आगामी विधानसभा चुनाव में कोई चमत्कार नहीं होगा, यहाँ पार्टी की कोशिश सिर्फ पाँव मजबूत करने की होगी। पार्टी के पास न जमीनी संगठन है और न चेहरा, ऐसे में रातों -रात सिर्फ पार्टी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा सकती है। ऐसे में मुमकिन है दल बदलने वाले कई नेताओं के टिकट का अरमान इस बार पूरा हो जाएं। सावधान कांग्रेस : कहीं खेल न बिगाड़ दे आप ! उधर आम आदमी पार्टी ने निश्चित तौर पर कांग्रेस की धड़कन बढ़ा दी है। 1990 से अब तक हर चुनाव में हिमाचल में बदलाव के लिए वोट होता आ रहा है और यदि ये वोट विभाजित होता है तो कांग्रेस का नुकसान तय है। भले ही कांग्रेस आप फैक्टर को नकार रही हो लेकिन गोवा और उत्तराखण्ड में आप व अन्य दलों ने कांग्रेस का खूब खेल बिगाड़ा है। गोवा में भाजपा और कांग्रेस गठबंधन के बीच आठ प्रतिशत वोट का अंतर रहा है। गोवा में आप ने 6 . 8 प्रतिशत और तृणमूल कांग्रेस ने 5 .2 प्रतिशत वोट हासिल किये, जो कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना। इसी तरह उत्तराखण्ड में कांग्रेस और भाजपा के बीच करीब साढ़े छ प्रतिशत वोट का अंतर रहा, जबकि बहुजन समाज पार्टी और आप ने मिलकर करीब आठ प्रतिशत वोट हासिल किये है। ऐसे में यदि आप हिमाचल में सात विरोधी वोट बाँट लेती है तो कांग्रेस का सत्ता वापसी का ख्वाब अधूरा रह सकता है।
सियासत में कुछ स्थायी नहीं होता, न नीति, न सिद्धांत। न कोई स्थायी मित्र होता है और न स्थायी शत्रु। यदि कुछ स्थायी है तो वो है अवसरवाद। 'पार्टी विथ डिसिप्लिन' भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। यहाँ भी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का सिद्धांत ही लागू होता है। ये विचार, ये भाव विरोधियों के नहीं है, अपितु खुद भाजपाइयों के है। दरअसल जब से पुष्कर सिंह धामी को उत्तरखंड का सीएम घोषित किया गया है हिमाचल भाजपा में मानो बवाल आ गया है। पार्टी आलाकमान के इस निर्णय से मानो धूमल समर्थकों के पुराने जख्म खुरच भी गए और उन पर नमक भी छिड़क गया। धूमल के निष्ठावान खुलकर सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे है। #मनमर्जियां वायरल हो रहा है और पार्टी के डबल स्टैण्डर्ड पर सवाल उठाये जा रहे है। दरअसल, हाल ही में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड जीत मिली है। भाजपा तो जीत गई लेकिन खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए। इसके बाद सवाल ये था कि क्या भाजपा खुद चुनाव हार चुके नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी। 11 दिन के इंतजार के बाद 21 मार्च को इस सवाल का जवाब मिला और आलाकमान ने धामी को ही मुख्यमंत्री बनाया। ठीक ऐसी ही स्थिति 2017 में हिमाचल प्रदेश में भी बनी थी। हालंकि तब पार्टी विपक्ष में थी लेकिन चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री प्रो प्रेमकुमार धूमल के चेहरे पर लड़ा गया था। तब अंतिम समय तक पार्टी ने सीएम फेस नहीं घोषित किया था लेकिन जब पार्टी की स्थिति बिगड़ती दिखी तो चुनाव से 10 दिन पूर्व धूमल को सीएम फेस घोषित करना पड़ा। दांव सही पड़ा और भाजपा सत्ता में लौटी, पर खुद धूमल चुनाव हार गए। तब धूमल समर्थकों ने उन्हें ही सीएम बनाने की मांग की, कई विधायकों ने अपनी सीट छोड़ने की पेशकश भी की। पर पुष्कर की तरह आलाकमान का आशीर्वाद धूमल को नहीं मिला। इसी बात की टीस धूमल समर्थकों में है। अब मौका हाथ लगा है तो समर्थक पार्टी के सिद्धांतो पर भी सवाल उठा रहे है और डबल स्टैंडर्ड्स पर भी। बहरहाल चुनाव हारने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मौका मिला है और कहा जा रहा है की पुष्कर फ्लावर नहीं फायर है। तो क्या धूमल में फायर कम थी ? या सीधे कहे तो क्या धूमल में अब भाजपा को फायर नहीं दिखती ? दरअसल ऐसा बिलकुल नहीं है। बेशक खुद प्रो प्रेम कुमार धूमल इस वक्त किसी उच्च पद पर न हो लेकिन उनके पुत्र अनुराग ठाकुर मोदी कैबिनेट में ताकतवर मंत्री भी है और राष्ट्रीय सियासत का उभरता सितारा भी। ऐसे में धूमल की उपेक्षा की बात में कोई तर्क नहीं दिखता। समर्थकों को ये भी सोचना होगा कि यदि धूमल इस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री होते तो क्या अनुराग भी केंद्रीय मंत्री बनते ?
- कौन - कौन आप में आएगा, 6 तारीख को पता चल जायेगा ! - आप में कई बड़े नेताओं के आने के कयास आप की एंट्री ने हिमाचल की ठंडी लग रही सियासत को ताप दे दिया है। पंजाब में मिली प्रचंड जीत के बाद अमूमन रोजाना हिमाचल से कई नेताओं के आप में जाने की खबरें आ रही है, विशेषकर कांग्रेस से। हालांकि इनमें पहली पंक्ति के नेता नहीं है, लेकिन दूसरी व तीसरी पंक्ति के कई नेता आप में शामिल हो चुके है। इस बीच 6 अप्रैल को आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय आयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मंडी में रोड शो करेंगे। माना जा रहा है कि इसी दौरान खाली पड़ी पहली पंक्ति भी कुछ हद तक भर दी जाएगी। कई नेताओं के आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने के कयास लग रहे है जिनमें कांग्रेस और भाजपा दोनों के नेता शामिल है। कई विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद भी आप के कांटेक्ट में बताये जा रहे है। यदि ऐसा होता है तो संभवतः 1998 के बाद पहली बार हिमाचल में कोई तीसरी पार्टी दमदार उपस्तिथि दर्ज करवाती दिख सकती है। अरविन्द केजरीवाल और भगवंत मान के रोड शो के लिए आप ने मंडी को चुना है। वहीं मंडी जो खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गढ़ है। यहाँ जयराम ठाकुर के प्रभाव को इसी आंकड़े से समझा जा सकता है कि मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भी भाजपा ने जिला के नौ संसदीय क्षेत्रों में से आठ में बढ़त बनाई थी। वीरभद्र सिंह के निधन के बाद सहानुभूति लहर भी यहाँ भाजपा को बढ़त लेने से नहीं रोक पाई। अब इसी मंडी में आप के रोड शो के कई मायने है। बड़ा सवाल ये है कि क्या आप मुख्यमंत्री के घर में ही भाजपा को कोई झटका देने वाली है। ऐसा इसलिए भी है क्यों कि 6 अप्रैल को भाजपा के कई नेताओं के आप में शामिल होने के कयास लग रहे है। बहरहाल इसमें कितनी हकीकत है ये तो 6 तारीख को ही पता चलेगा। पंडितजी के परिवार पर निगाहें : मंडी की सियासत का जिक्र पंडित सुखराम एंड फॅमिली के बगैर अधूरा है। पंडित जी और पोते आश्रय शर्मा फिलहाल कांग्रेस में है और उनके बेटे और मंडी सदर विधायक अनिल शर्मा भाजपा में। पर दोनों ही तरफ इस परिवार को तवज्जो मिलती नहीं दिख रही। ऐसे में सवाल ये है कि क्या आम आदमी पार्टी पंडित जी के परिवार का अगला ठिकाना हो सकता है ? हालांकि खुद अनिल शर्मा इससे इंकार कर रहे है, पर सियात में इंकार कब इकरार में बदला जाए पता नहीं चलता।
एक ऐसी राजकुमारी जो देश को आज़ाद करवाने के लिए तपस्वी बन गयी, एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता बनी, महात्मा गाँधी से प्रभावित हो कर आज़ादी के आंदोलन से जुडी, जेल गई। आज़ादी के बाद हिमाचल से सांसद चुनी गई और दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रही। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान भी उन्हें प्राप्त है। वो महिला थी राजकुमारी अमृत कौर। ये बहुत कम लोग जानते है की अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बनाने में राजकुमारी अमृत कौर का बड़ा हाथ है। शिमला के समर हिल में एक रेस्ट हाउस है, राजकुमारी अमृत कौर गेस्ट हाउस जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के स्टाफ के लिए है। देशभर में सेवाएं दे रहे एम्स के डॉक्टर, नर्स व अन्य स्टाफ यहाँ आकर छुट्टियां बिता सकते है, वो भी निशुल्क। दरअसल, ये ईमारत 'मैनरविल' स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर का पैतृक आवास थी। इसे अमृत कौर ने एम्स को डोनेट किया था। आज निसंदेह एम्स देश का सबसे बड़ा और सबसे विश्वसनीय स्वास्थ्य संस्थान है। इस एम्स की कल्पना को मूर्त रूप देने में राजकुमारी अमृत कौर का बड़ा योगदान रहा रहा है। उनके स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए ही एम्स बना, वे एम्स की पहली अध्यक्ष भी बनाई गई। उस दौर में देश नया - नया आज़ाद हुआ था और आर्थिक तौर पर भी पिछड़ा हुआ था। तब एम्स की स्थापना के लिए राजकुमारी अमृत कौर ने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमेरिका जैसे देशों से फंडिंग का इंतजाम भी किया था। एम्स की वेबसाइट पर भी इसके निर्माण का श्रेय तीन लोगों को दिया गया है, पहले जवाहरलाल नेहरू, दूसरी राजकुमारी अमृत कौर और तीसरे एक भारतीय सिविल सेवक सर जोसेफ भोरे। एम्स की ऑफिसियल वेबसाइट पर लिखा है कि भारत को स्वास्थ्य सुविधाओं और आधुनिक तकनीकों से परिपूर्ण देश बनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू का सपना था और आजादी के तुरंत बाद उन्होंने इसे हासिल करने के लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार किया। नेहरू का सपना था दक्षिण पूर्व एशिया में एक ऐसा केंद्र स्थापित किया जाए जो चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को गति प्रदान करे और इस सपने को पूरा करने में उनका साथ दिया उनकी स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने। राजपरिवार में जन्मी, करीब 17 साल रही महात्मा गांधी की सेक्रेटरी लखनऊ, 2 फरवरी 1889, पंजाब के कपूरथला राज्य के राजसी परिवार से ताल्लुख रखने वाले राजा हरनाम सिंह के घर बेटी ने जन्म लिया, नाम रखा गया अमृत कौर। बचपन से ही बेहद प्रतिभावान, इंग्लैंड के डोरसेट में स्थिति शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से स्कूली पढ़ाई पूरी की। किताबों के साथ -साथ खेल के मैदान में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। हॉकी से लेकर क्रिकेट तक खेला। स्कूली शिक्षा पूरी हुई तो परिवार ने उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड भेज दिया। शिक्षा पूरी कर 1918 में वतन वापस लौटी और इसके बाद हुआ 1919 का जलियांवाला बाग़ हत्याकांड। इस हत्याकांड ने राजकुमारी अमृत कौर को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने निश्चय कर लिया कि देश की आज़ादी और उत्थान के लिए कुछ करना है, सो सियासत का रास्ते पर निकल पड़ी। राजकुमारी अमृत कौर महात्मा गाँधी से बेहद प्रभावित थी। उस समय उनके पिता हरनाम सिंह से मिलने गोपालकृष्ण गोखले सहित कई बड़े नेता आते थे। उनके ज़रिए ही राजकुमारी अमृत कौर को महात्मा गांधी के बारे में अधिक जानकारी मिली। हालांकि उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो आज़ादी की लड़ाई में भाग लें, राजकुमारी अमृत कौर तो ठान चुकी थी। वे निरंतर महात्मा गांधी को खत लिखती रही। 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की शुरुआत की और बाद में इसकी प्रेसिडेंट भी बनीं। इसी दौरान एक दिन अचानक राजकुमारी अमृत कौर को एक खत मिला, ये खत लिखा था महात्मा गांधी ने। उस खत में महात्मा गांधी ने लिखा, 'मैं एक ऐसी महिला की तलाश में हूं जिसे अपने ध्येय का भान हो। क्या तुम वो महिला हो, क्या तुम वो बन सकती हो? ' बस फिर क्या था राजकुमारी अमृत कौर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गईं। इस दौरान दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल भी गईं। वे करीब 17 सालों तक महात्मा गांधी की सेक्रेटरी रही। महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। ब्रिटिश हुकूमत ने लगाया था राजद्रोह का आरोप अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर सन् 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गईं। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार व संवैधानिक सुधार के लिए गठित ‘लोथियन समिति’ तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-संस्थापक महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना की गई। कौर इसकी सह-संस्थापक थीं। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ‘ऑल इंडिया विमेंस एजुकेशन फंड एसोसिएशन’ के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का सदस्य भी बनाया, जिससे उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह ‘अखिल भारतीय बुनकर संघ’ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। कौर 14 साल तक इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की चेयरपर्सन भी रहीं। देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनी कौर जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। राजकुमारी अमृत कौर सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं। वे लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं। वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं। इससे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी। यही नहीं इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं। स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर, ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया, राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग, और सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट। इन सभी के अलावा नई दिल्ली में एम्स की स्थापना में अमृत कौर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। टाइम मैगज़ीन ने दी वुमन ऑफ द ईयर लिस्ट में जगह दुनिया की मशहूर टाइम मैगज़ीन ने 2020 में बेटे 100 सालों के लिए वुमन ऑफ द ईयर की लिस्ट ज़ारी की थी। भारत से इस लिस्ट में दो नाम हैं, एक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जिन्हें साल 1976 के लिए इस लिस्ट में रखा गया। लिस्ट में शामिल दूसरा नाम है राजकुमारी अमृत कौर का, जिन्हें साल 1947 के लिए इस लिस्ट में जगह दी गई है।
उत्तराखंड में सीएम पर सस्पेंस खत्म हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विधायक दल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी को नेता चुना गया। इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी बतौर पर्वेक्षक मौजूद रहे। ये दोनों नेता आज एक विशेष प्लेन से देहरादून पहुंचे। धामी को नेता चुने जाने पर राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं पुष्कर धामी को बधाई देता हूं और मुझे विश्वास है कि उत्तराखंड इनके नेतृत्व में प्रगति करेगा। धामी सरकार चला चुके हैं। इन्हें सरकार चलाने का अनुभव है. छह महीने में धामी ने अपनी छाप छोड़ी है। राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ''उत्तराखंड में बीजेपी विधायक दल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी को नेता चुने जाने पर मैं हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा निर्देशन में और धामी जी के नेतृत्व में उत्तराखंड का बहुआयामी और बहुत तेज़ गति से विकास होगा। '' बता दें कि उत्तराखंड में बीजेपी ने शानदार बहुमत तो हासिल कर लिया लेकिन मुख्यमंत्री धामी को खटीमा से हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सरकार का नेतृत्व कौन करेगा, इसे लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसे दूर करने के लिए बीजेपी में शीर्ष स्तर पर मंथन चला और अंत में धामी के नाम पर मुहर लगी। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कुल 70 में से 47 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं कांग्रेस ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की. बीएसपी को दो और निर्दलीय को दो सीटें मिली।