धर्मशाला से 2019 उपचुनाव में कांग्रेस के सुधीर शर्मा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था और कांग्रेस द्वारा विजय इंद्र कर्ण को यहां से टिकट दिया गया। विजय इंद्र कर्ण ने कोशिश तो भरपूर की लेकिन नतीजे मनमाफिक नहीं आएं। अब फिर विजय इंद्र कर्ण ने टिकट पर अपना दावा जताया है। विजय इंद्र कर्ण के साथ फर्स्ट वर्डिक्ट ने आगामी विधानसभा चुनाव और उनकी दावेदारी को लेकर विशेष चर्चा की। उन्होंने खुलकर हर मसले पर अपनी राय रखी। पेश है बातचीत के कुछ अंश... सवाल - 2019 में धर्मशाला से आपने चुनाव लड़ा, उस समय सुधीर शर्मा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया जिस वजह से आपको टिकट दिया गया। 2019 में मोदी लहर थी और प्रदेश में भी भाजपा की नई-नई सरकार चुन कर आई थी। कहीं न कहीं कांग्रेस भी यह जानती थी कि वह यहां से चुनाव नहीं जीतेगी। क्या आप मानते है कि आपको बलि का बकरा बनाया गया था? जवाब - यह सत्य है कि सुधीर शर्मा ने 2019 में चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था और जब पार्टी को जरूरत थी तो पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा। मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया और मैदान में उतरा। हालाँकि मुझे ज्ञात था कि मोदी लहर है, प्रदेश में भी भाजपा की नई चुनी हुई सरकार है और मुझे इस चुनाव के लिए लगभग 15 से 20 दिन का समय मिला था, जो बहुत कम था। इसके बावजूद मैंने चुनौती को स्वीकार किया, मैंने पार्टी को अपनी पीठ नहीं दिखाई और मैं भागा नहीं। मैं कांग्रेस पार्टी का सच्चा सिपाही बन कर मैदान में उतरा, जबकि बड़े लोग और जिन्हें लड़ना चाहिए था वह पीठ दिखा कर भाग गए, जो बहुत शर्मनाक है। यह लोग अच्छे दिनों में चुनाव लड़ेंगे और जब लगेगा कि चुनाव हार रहे है, नहीं जीत सकते, तो बीमारी का बहाना लगाएंगे और भाग जाएंगे। जनता आने वाले समय में ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं करेगी। सवाल - 2019 में आपने धर्मशाला से चुनाव लड़ा था लेकिन मौजूदा समय की बात की जाए तो विजय कर्ण ज्यादा एक्टिव नहीं दिखते है। क्या वजह है ? जवाब - जहाँ तक एक्टिव होने का सवाल है तो मैं मीडिया और फेसबुक पर एक्टिव नहीं हूँ, लेकिन जहाँ तक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से सम्बन्ध बनाने की बात है तो चुनाव हारने के बाद मैं निरंतर उनके संपर्क में हूँ। जहाँ मुझे बुलाया जाता है, मैं जाता हूँ। कोई कार्य हो तो मैं हमेशा हाज़िर रहता हूँ। सवाल - धर्मशाला में कांग्रेस में गुटबाजी जगजाहिर है। चुनाव नजदीक है और ऐसे में कई धड़ों में बटी पार्टी को कैसे मजबूत किया जाएगा? जवाब - देखिये अगर बाहर से आये एक व्यक्ति को वापिस भेज दिया जाये तो कांग्रेस एकजुट भी होगी और पार्टी को मजबूती भी मिलेगी। मैं बता दूँ कि पूरी कांग्रेस संगठित है बस एक आदमी का विरोध है, जो जबरदस्ती यहाँ अपना डेरा डाले हुए है। उस व्यक्ति को बाहर कर दीजिए तो कांग्रेस यहाँ से सीट जीत जाएगी। धर्मशाला कांग्रेस में कई सक्षम लोग है। पिछले नगर निगम चुनाव में उस शख्स ने जहाँ भी अपनी फोटो लगाई, वहां पर प्रत्याशी चुनाव हार गए। हालाँकि प्रत्याशी अच्छे थे, लेकिन जो ग़ुस्सा जनता ने किसी और पर उतारना था वो ग़ुस्सा उन प्रत्याशियों पर उतार दिया। केवल एक व्यक्ति ने कांग्रेस को डिस्टर्ब करके रखा है। उस व्यक्ति को आप बाहर का रास्ता दिखाइए, कांग्रेस उभर के सामने आएगी। सवाल - आप जिस व्यक्ति की बात कर रहे है वही व्यक्ति 2012 में यहाँ से चुनाव जीते थे और कांग्रेस की सीट यहाँ से लाए थे। ऐसे में 2017 में ऐसी क्या बात हुई कि उनके प्रति विरोध दिखने लगा? जवाब- काम होने के बावजूद भी यदि किसी को हराया गया है, तो कोई न कोई तो कमी रही होगी। मुख्यतः लोगों के बीच में न जाना, जमीनी पकड़ न होना, उनके कामों के बारे में उनको जवाब न देना, फ़ोन ना उठाना, इसके अलावा कई और कारण भी रहे। यहाँ पर गुंडागर्दी हुई, उसका ठीकरा भी उनके सर पर ही फूटा, क्यूंकि वह मंत्री थे। उसकी कोई भी जाँच नहीं हुई। इस पूरे परिदृश्य में लोगो को लगा कि इसमें एक बड़े मंत्री का हाथ है। लोगों ने अपने मन में यह टीस रखी। धर्मशाला के लोग सभ्य है और पढ़े लिखे है, उन्हें पता है क्या सही है क्या गलत है। मुझे लगता है इन सब कारणों की वजह से वह चुनाव हारे है। सवाल : जग्गी भी टिकट के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने की बात कह चुके है। सुधीर शर्मा भी एक्टिव हो चुके है। क्या विजय कर्ण आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपनी दावेदारी पेश करेंगे ? जवाब - कांग्रेस एक लोकतान्त्रिक पार्टी है और यहां कोई भी अपनी दावेदारी रख सकता है। निश्चित तौर पर मैं 2022 में अपनी दावेदारी पेश करूँगा। मैं यह भी जरूर कहना चाहूंगा कि पहला हक मेरा है क्यूंकि मैं उस वक्त खड़ा हुआ जिस वक्त बड़े-बड़े नाम और खुद को ईमानदार कार्यकर्ता और सदस्य कहने वाले लोग भाग गए। टिकट पर पहला हक मेरा ही बनता है। सवाल : सुधीर शर्मा द्वारा हाल ही में युवा सम्मेलन करवाया गया जिसमें काफी संख्या में युवाओं ने भाग लिया। क्या कहना चाहेंगे ? जवाब - जो युवा सम्मलेन करवाया गया था उसमे युवाओं को आकर्षित करने के लिए प्रलोभन दिया गया और प्रलोभन के चलते युवा आये, न केवल धर्मशाला के बल्कि ज्वाली, शाहपुर, पालमपुर और बैजनाथ से लोग आए। जितनी मुझे जानकारी मिली है उस अनुसार धर्मशाला के युवाओं की तादाद करीब 100 से 150 थी। वे अपनी छवि को ठीक करने में जुटे है। यदि खुद को ग़लतफहमी में रखेंगे तो आने वाले समय में नुकसान उनका और पार्टी का होगा। जनता को पता है कि यह षड्यंत रचते है और इस बार धर्मशाला के लोग इनको आईना दिखाएंगे। सवाल - 2019 में आपके प्रतिद्वंदी रहे राकेश चौधरी भी आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके है। कांग्रेस के कई कार्यकर्त्ता और पदाधिकारी कांग्रेस को छोड़ चुके है, किस तरह से देखते है कि आने वाले में समय में आम आदमी पार्टी कितना प्रभाव डालेगी ? जवाब : चुनौती छोटी हो या बड़ी उसे गंभीरता से लेना चाहिए। कांग्रेस के लोगों को भी आम आदमी पार्टी को गंभीरता से लेना चाहिए, यह बहुत जरूरी है। पंजाब में जिस तरह से आम आदमी 92 सीटें ले कर आई उससे हिमाचल में भी असर हो सकता है, जिस तरह से कांग्रेस से लोगों का पलायन हो रहा है उसको देख कर कही न कही दिखता है कि लोग आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ना चाहते है। यह हमारे नेताओं को तय करना है कि जमीनी स्तर पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं को कैसे पार्टी से जोड़ कर रखना है। इसके बारे में विचार विमर्श और बैठकें करनी चाहिए। अन्य पार्टियों ने भी अपने कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए सम्मलेन किए है और अपने लोगो को आम आदमी पार्टी में जाने से रोक रहे है। कांग्रेस को भी इस चुनौती को गंभीरता से लेना पड़ेगा नहीं तो आने वाले समय में बड़ा नुकसान हो सकता है। सवाल - आपसे अंतिम सवाल धर्मशाला में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए क्या कार्य किये जा रहे है ? जवाब - कांग्रेस का कोर वर्कर जो लम्बे समय से पार्टी में है, वह सभी कार्यकर्ता एकजुट है। वही कार्यकर्ता कांग्रेस की रीड की हड्डी है। उन लोगों को भी पता है कि किस गांव में कौन सा व्यक्ति कांग्रेस का है और किस गाँव में क्या समस्या है। हम सब लोग उनके साथ संगठित है और वही लोग 2022 के विधानसभा में कांग्रेस की जीत दर्ज करवाएंगे।
विधानसभा चुनाव की हलचल शुरू हो चुकी है और जिला किन्नौर में भी सियासत परवान पर है। बीते दो चुनाव में यहाँ कांग्रेस विजयी हुई है और दोनों मर्तबा जगत सिंह नेगी ही कांग्रेस का चेहरा रहे है। अब जगत सिंह नेगी और कांग्रेस दोनों की निगाहें हैट्रिक पर है। नेगी विधानसभा में अक्सर सरकार को घेरते हुए दिखाई देते है, जनता के मुद्दों को सरकार के सामने रखने में भी नेगी पीछे नहीं, इसके बावजूद भी इस बार डगर कठिन दिख रही है। दरअसल किन्नौर कांग्रेस में गुटबाजी हावी है। विधायक जगत सिंह नेगी वीरभद्र गुट से आते हैं तो युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निगम भंडारी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के करीबी हैं। बेहद कम समय में निगम भंडारी एक प्रभावशाली युवा नेता के तौर पर उभरे है और पार्टी का एक तबका चाहता है कि निगम ही आगामी चुनाव में पार्टी प्रत्याशी हो। हालाँकि खुद निगम अब तक इस बारे में खुलकर नहीं बोल रहे है लेकिन अगर वे चुनाव लड़ने में रूचि दिखाते है तो जगत सिंह नेगी के लिए मुश्किल हो सकती है। दूसरा फैक्टर जिससे जगत सिंह नेगी को जूझना पड़ सकता है तो वो है एंटी इंकम्बैंसी। बेशक इस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार हो लेकिन किन्नौर में बीते दस साल से जगत सिंह नेगी ही विधायक है। ऐसे में कुछ लोगों का वोट बदलाव की ओर जा सकता है, ऐसा जानकारों का मानना है। वहीं पिछले चुनाव में जगत सिंह नेगी महज 120 वोटों से जीते थे। इस विधानसभा चुनाव को भाजपा यदि एकजुट होकर लड़ती है तो ये मामूली अंतर खत्म करना भाजपा के लिए कठिन नहीं होगा । हालांकि उससे पहले किन्नौर में बिखरी हुई भाजपा का एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरना बेहद ज़रूरी होगा। वहीं प्रदेश में आम आदमी पार्टी की एंट्री ने भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है। जंगी थोपन जैसी परियोजनाओं के चलते किन्नौर में वैसे भी दोनों राजनीतिक दलों को विरोध का सामना करना पड़ा है। कुछ माह पूर्व हुए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में कई पंचायतों ने मतदान का बहिष्कार किया, तो कई ने नोटा का इस्तेमाल किया। ऐसे में जानकार मानते है कि किन्नौर के लोग नए राजनीतिक विकल्प की तरफ भी जाएँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सिर्फ ठाकुर सेन नेगी लगा सके है हैट्रिक : किन्नौर के चुनावी इतिहास पर नज़र डाले तो अब तक सिर्फ ठाकुर सेन नेगी ही जीत की हैट्रिक लगा सके है। ठाकुर सेन नेगी 1967 से 1982 तक लगातार चार चुनाव जीते। दिलचस्प बात ये है कि वे तीन बार निर्दलीय और एक बार लोकराज पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। फिर वे भाजपा में शामिल हो गए और एक बार 1990 में भाजपा टिकट से भी जीतने में कामयाब हुए। ठाकुर सेन नेगी के अलावा जगत सिंह नेगी ही इकलौते ऐसे नेता है जिन्होंने लगातार दो चुनाव जीते हो। पर क्या जगत सिंह नेगी हैट्रिक लगा पाएंगे या क्लीन बोल्ड होंगे, ये देखना रोचक होगा।
सोलन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत बसाल की बीडीसी सदस्य कुसुम लता महिला मंडल की 31 महिलाओं सहित कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्होंने डॉ. कर्नल धनीराम शांडिल पूर्व विधायक के नेतृत्व में पार्टी ज्वाइन की। इस दौरान ब्लॉक अध्यक्ष ब्लॉक अध्यक्ष संजीव ठाकुर भी मौजूद रहे।
दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री और आप के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान 6 अप्रैल को हिमाचल के मुख्य शहरों में एक और छोटी काशी कहे जाने वाले मंडी शहर में रोड शो करेंगे। जिस तरह से 2 अप्रैल को आप के रोड शो में गुजरात की जनता ने आस्था जताई है, उसी तरह से हिमाचल की जनता भी भाजपा-कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों से दुखी है। यही कारण है कि हिमाचल की जनता इस रोड शो के लिए उत्साहित नजर आ रही है। यह रोड शो हिमाचल विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी का पहला बड़ा कार्यक्रम होगा।
प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी और 2017 के विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका था। 9 नवंबर मतदान का दिन मुकर्रर था और कांग्रेस मिशन रिपीट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। पर उससे ठीक पहले 14 अक्टूबर को कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। दिग्गज नेता पंडित सुखराम अपने बेटे और वीरभद्र सरकार के मंत्री अनिल शर्मा के साथ भाजपाई हो गए। अनिल शर्मा को भाजपा ने मंडी सदर सीट से टिकट दिया और जीत दर्ज कर वे जयराम कैबिनेट में मंत्री भी बन गए। हवा ऐसी बदली कि मंडी सदर सहित जिला मंडी में सभी 10 सीटें कांग्रेस हार गई। कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर और प्रकाश चौधरी भी चुनावी मैदान में धराशाई हो गए। तब से डी रेल हुई कांग्रेस की गाड़ी अब तक पटरी पर लौटती नहीं दिख रही। हालहीं में हुए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भी होलीलॉज के तिलिस्म के सहारे जैसे - तैसे कांग्रेस जीत तो गई लेकिन हकीकत ये है कि जिला मंडी की नौ में आठ सीटों पर भाजपा को बढ़त मिली थी। वहीँ इससे पहले हुए नगर निगम चुनाव हो या जिला परिषद चुनाव, कांग्रेस की बुरी गत किसी से छुपी नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस प्रत्याशी को चार लाख से अधिक के रिकॉर्ड अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। करीब सात माह में विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस के सामने मंडी में बेहतर करने की विराट चुनौती है। अगर मंडी में कांग्रेस ठीक -ठाक भी नहीं कर पाई तो सत्ता वापसी का ख्वाब पूरा होना मुश्किल है। उधर, मंडी में भाजपा के हौसले बुलंद है। साधन, संसाधन और संगठन के तराजू में तोले तो भाजपा का पलड़ा निसंदेह भारी है। सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिला में भाजपा कोई कसर छोड़ती नहीं दिख रही। इस पर जयराम को मंडी का सीएम कहना भी कांग्रेस को भारी पड़ता दिख रहा है। अब तक जयराम ठाकुर मंडी के साथ कनेक्ट करते दिखे है और यदि प्रो इंकम्बैंसी लहर चली तो कांग्रेस का सफाया तय होगा। वहीं आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी समर को और दिलचस्प बना दिया है। 6 अप्रैल को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मंडी से ही मिशन हिमाचल का आगाज करेंगे। यदि बदलाव के लिए मिलने वाले वोट में भी आप सेंध लगा पाई तो कांग्रेस का खेल खराब कर सकती है। जाहिर है आप के आने से अब कांग्रेस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जड़े गहरी, पर दिग्गजों को साथ आना होगा ! समय बेशक कुछ खराब चल रहा हो पर मंडी में कांग्रेस की जड़े बहुत मजबूत है। न तो कौल सिंह ठाकुर जैसे कद्दावर नेता को कम आंका जा सकता है और न ही पंडित सुखराम के परिवार को। पर क्या अनिल शर्मा की कांग्रेस में घर वापसी होगी या भाजपा से गीले शिकवे दूर होंगे, ये बड़ा सवाल है। चर्चा आम आदमी पार्टी को लेकर भी हो रही है। इन दोनों के अलावा ये भी जहन में रखना होगा कि अब प्रतिभा सिंह मंडी संसदीय क्षेत्र से सांसद है। विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका भी काफी कुछ तय कर सकती है। ये दिग्गज अगर एक साथ आते है तो कांग्रेस को कमतर आंकना विरोधियों के लिए भूल हो सकती है, पर यदि ऐसा नहीं होता तो 2017 की कहानी दोहराई भी जा सकती है।
दलों के अहम-वहम उड़ गए और अब पार्टी हिमाचल में दो -दो हाथ करने को तैयार है। चर्चा आम है कि कई सियासी शूरवीर आम आदमी पार्टी के सम्पर्क में है। इनमें दोनों ही दलों के नेता शामिल है। खबर तो ये भी आ रही है कि एक मंत्री और कई विधायक भी आप से संपर्क में है, हालांकि अब तक ये सिर्फ कयास है। बात - मुलाकात हो भी रही होगी तो जाहिर है सार्वजानिक तौर पर तो होगी नहीं। बहरहाल, नेता -कार्यकर्ता इम्पोर्ट करके आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में खूंटा गाड़ने का प्रयास जरूर कर रही है। विचारधार - सिद्धांत सब बाद में देखा जायेगा, फिलहाल तो सियासत हावी दिख रही है। माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। जिन्हें भाजपा -कांग्रेस में भविष्य नहीं दिख रहा वो भी आप की ओर दौड़ लगा रहे है, आखिर करियर का सवाल है। खुद विधायक नहीं बने तो जनता का भला कैसे करेंगे। वहीं शायद कुछ ऐसे भी होंगे जो विधायक बनकर जनता का भला नहीं कर पाएं सो अब सीधे मुख्यमंत्री बनकर जनसेवा करना चाहे। पर असल सवाल ये है कि क्या सच में आम आदमी पार्टी इस स्थिति में है कि हिमाचल में सरकार बना पाए। जो लोग पंजाब के नतीजों के आधार पर हिमाचल का आकलन कर रहे है, उन्हें ये जहन में रखना होगा कि 2013 से आम आदमी पार्टी पंजाब में संघर्ष करती रही। दिल्ली के अलावा किसी अन्य राज्य में आप सम्मानजनक स्थिति में थी तो वो पंजाब था। पंजाब में रातों -रात कोई चमत्कार नहीं हुआ। दूसरा पंजाब में आप का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से था, जो अंतर्कलह से ग्रसित थी। पर हिमाचल के मुकाबले में वो भाजपा भी है जो विजयरथ पर सवार भी है और अनुशासित भी। ऐसे में आप के लिए हालात मुश्किल होंगे। हालांकि गोवा और उत्तराखंड की तरह यहाँ भी पार्टी कांग्रेस का खेल जरूर ख़राब कर सकती है। शायद इरादा ही कांग्रेस को कमजोर कर 2027 में सत्ता हथियाने का हो। बहरहाल चुनाव में करीब सात माह का वक्त है और आप पर हर आम और खास की नजरें टिकी है। सियासत में समीकरण बदलते देर नहीं लगती। मुमकिन है 6 अप्रैल को मंडी में आप के शक्ति प्रदर्शन के बाद स्थिति और स्पष्ट हो। फिलवक्त इंतज़ार कीजिये, कौन आप का है, कौन आप का नहीं। पंजाब में सरकार का प्रदर्शन होगा बड़ा फैक्टर : पंजाब की भगवंत मान सरकार का प्रदर्शन भी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर होगा। प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्र पंजाब की सीमा पर है। कई क्षेत्रों में बोली-भाषा और रीति-रिवाज भी पंजाब जैसा है। वहीं हिमाचल में हुकूमत के कई निर्णय भी पंजाब की तर्ज पर लिए जाते है, मसलन कर्मचारियों का वेतनमान। ऐसे में यदि भगवंत मान सरकार का जादू पंजाब में चला तो असर हिमाचल में भी दिखेगा। पर यदि पंजाब सरकार अपेक्षाओं पर खरी नहीं उत्तरी तो पार्टी को खामियाजा हिमाचल में भुगतना पड़ सकता है।
'जयराम जी मुझे भाजपा में ले लो' ... मानो देहरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक होशियार सिंह काफी वक्त से खुलकर ये ही पैगाम दे रहे है। 2017 में निर्दलीय चुनाव जीते होशियार सिंह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के चाहवान है और कई मौकों पर जयराम की जयकार करते रहे है। जब सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और मुख्यमंत्री के बीच तल्खी दिखी थी, तब मुख्यमंत्री के अच्छे -अच्छे समर्थकों को सांप सूंघ गया था। पर निर्दलीय विधायक होशियार सिंह जयराम के पक्ष में बोले और खुलकर बोले। बावजूद इसके मुख्यमंत्री अपने इस समर्थक की पार्टी में एंट्री नहीं करवा पाएं। अब चुनावी बेला में होशियार सिंह ने फिर से भाजपा में जाने की इच्छा व्यक्त की है। बीते दिनों होशियार सिंह ने देहरा में जन चेतना एवं आशीर्वाद समारोह का आयोजन किया। होशियार सिंह ने खुलकर भाजपा को अपनी पसंद बताया और जयराम ठाकुर को देहरा के विकास का श्रेय देने में भी कोई कोताही नहीं बरती। दिलचस्प बात ये है इस दौरान उन्होंने खुले मंच से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और ज्वालामुखी विधायक रमेश धवाला की भी तारीफ की। शायद उन्हें लगा हो कि संतुलन साधे बिना पार्टी में एंट्री मुश्किल है। हालांकि होशियार सिंह ने ये भी कह दिया है कि अगर बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देती है तो वह किस पार्टी में जाएंगे, इसका फैसला सिर्फ देहरा की जनता करेगी। देहरा निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा की ग्राउंड रियलिटी की बात करें तो ऐसा नहीं है कि वहां भाजपा के पास नेतृत्व नहीं है। देहरा विधानसभा क्षेत्र से अक्सर रविंद्र रवि को भाजपा का संभावित उम्मीदवार माना जाता रहा है। हालांकि बाहरी होने की वजह से विरोधी उन्हें घेरने की कोई कसर नहीं छोड़ते। बीच-बीच में यह बात भी उड़ती रही है कि रवि ज्वालामुखी और वहां के मौजूदा विधायक रमेश धवाला देहरा से चुनाव लड़ सकते हैं। वहीं भाजपा के संगठनात्मक जिला देहरा के अध्यक्ष संजीव शर्मा भी दावेदारों में से एक हैं। वे तत्कालीन परागपुर भाजपा मंडल के अध्यक्ष और पंचायती राज सेल के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। मौजूदा समय में उनकी सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। इसके साथ ही इस फेहरिस्त में वन निगम के निदेशक नरेश चौहान डिंपल का नाम भी शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के करीबी और बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त क्रिकेट अंपायर अमित राणा और देहरा के हरिपुर गुलेर से भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉक्टर सुकृत सागर भी टिकट के दावेदारों में शुमार हैं। जाहिर है इतने दावेदारों को नकार कर होशियार सिंह को टिकट देना भाजपा के लिए जरा भी आसान नहीं होगा। एंट्री की राह आसान नहीं : आज़ाद विधायक होशियार सिंह की भाजपा में एंट्री को भाजपा मंडल ने सीधे तौर पर नकार दिया है। अगर भाजपा विधायक होशियार सिंह को टिकट देती है, तो देहरा भाजपा में बवाल तय होगा। रैली के बाद होशियार सिंह के भाजपा विरोधी बयान भी खूब वायरल होने लगे है। होशियार सिंह के ये पुराने भाजपा विरोधी बयान उनकी भाजपा में एंट्री का सबसे बड़ा अड़ंगा बन रहे है। दुविधा में कांग्रेसी एवं कॉमरेड ! देहरा विधायक होशियार सिंह द्वारा वहां मौजूद जनसभा को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनकी रैली में केवल भाजपा समर्थक ही पहुँचे हैं, बाकी कोई भी अन्य दल के लोग उनकी इस जन चेतना आशीर्वाद यात्रा में नहीं पहुंचे। मीडिया के सामने खुले शब्दो में यह चीज कहने के उपरांत वहां मौजूद अन्य दल के लोग जो होशियार सिंह के समर्थक हैं वह उलझन में पड़ गए। अब देखना यह है कि क्या उक्त राजनीतिक विचारधारा के लोग अब भी होशियार सिंह को समर्थन देंगे। भाजपा में ऐसे टिकट नहीं मिलते : भाजपा में ऐसे टिकट नहीं मिलते है। चुनावी वर्ष है कई लोग टिकट मांगते है। होशियार सिंह की पार्टी से ऐसी कोई बात नहीं हुई। भाजपा एक कार्यकर्ताओं की अनुशासित पार्टी है। इसमें टिकट हाईकमान तय करता है। भारतीय जनता पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को कभी भी नजरअंदाज नहीं करती। -सुरेश कश्यप, प्रदेशाध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी, हिमाचल किसी मौकापरस्त को टिकट नहीं : टिकेट की इच्छा कोई भी रख सकता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी उसी को टिकेट देती है जो पार्टी के लिए काम करता है, न कि किसी मौक़ापरस्त को। बाहर से आने वालों को टिकट देना भाजपा की संस्कृति नहीं है। -रविन्द्र रवि, पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री एक भी काम बताएं जो भाजपा के पक्ष में किया हो : हर समय भारतीय जनता पार्टी का विरोध किया। पिछले चार साल से देहरा में भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया। दीन दयाल उपाध्याय की जयंती पर भाजपा कार्यकर्ताओं पर केस तक करवा दिए। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर का विरोध किया। होशियार सिंह पहले एक भी काम बताएं जो उन्होंने भाजपा के पक्ष में किया हो, फिर भाजपा की टिकट मांगे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लाकर भाजपा की टिकट मांगना बेशर्मी है। - संजीव शर्मा, जिलाध्यक्ष भाजपा देहरा मंडल को कमंडल कहने वाले को टिकट नहीं : भाजपा मंडल को कमंडल कहने बाले को भाजपा कभी भी टिकट नही देगी। चार साल लगातार भाजपा कार्यकर्ताओं को अपना विपक्ष माना, उन्हें प्रताड़ित किया, हमारे कार्यकर्ताओं पर केस करवाएं। भाजपा दूसरी विचारधारा वाले व्यक्ति को कभी भी टिकट नहीं देगी। -निर्मल सिंह, मंडल अध्यक्ष भाजपा देहरा
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इसके बाद हिमाचल से भी भारी संख्या में लोग आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे हैं। इसी के साथ आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान भी तेजी से चला है। इसी के चलते दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन लगातार हिमाचल प्रदेश के दौरे कर रहे है। फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने सत्येन्द्र जैन से आगामी विधानसभा चुनाव और आम आदमी पार्टी की रणनीति को लेकर खास बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ अंश......... सवाल : आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प के तौर पर हिमाचल में उभर कर आ रही है। यदि हम इतिहास में जाए तो हिमाचल एक ऐसा राज्य है जहां तीसरे विकल्प को लोगों ने जगह नहीं दी। हिमाचल और पंजाब में काफी अंतर है, क्या कहना चाहेंगे ? जवाब : मौजूदा समय में हिमाचल में दो पार्टियां है एक है 'बी' पार्टी जिसका नाम बीजेपी है और एक है 'सी' पार्टी जिसका नाम कांग्रेस है। हिमाचल में 'ए स्लॉट खाली पड़ा था जिसे अब आम आदमी पार्टी भरने जा रही है। हम थर्ड नहीं है हम फर्स्ट है। दिल्ली में भी पहले यही 2 पार्टियां थी, एक बार कांग्रेस जीतती थी और एक बार भाजपा जीतती थी, लेकिन जनता ने अब इन दोनों पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया है। दिल्ली में तीन बार से लगातार आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है और हिमाचल में भी आम आदमी पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी। जनता ने अपना पूरा मन बना लिया है कि अब एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की रीत को समाप्त करके इन्हें पूरी तरह से साफ़ करना है और प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार बनानी है। सवाल : आम आदमी पार्टी के प्रचार की जब भी बात की जाती है तो दिल्ली और पंजाब का उदाहरण दिया जाता है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ा था। पार्टी वहां अच्छा नहीं कर पाई। केवल 2 राज्यों की बात क्यों होती है ? अन्य राज्यों में पार्टी अच्छा नहीं कर पाई ऐसा क्यों है ? जवाब : आम आदमी पार्टी एक छोटी पार्टी है, हम भाजपा जितनी बड़ी पार्टी नहीं है। भाजपा का पूरे देश में बहुत बड़ा नेटवर्क है। हम एक समय में एक चुनाव बहुत अच्छा लड़ सकते हैं। हमने पंजाब के चुनाव पर पूरी तरह से फोकस किया और वहां जीत कर दिखाया। अब की बार हम हिमाचल पर फोकस कर रहे हैं और हिमाचल में भी जीत कर दिखाएंगे। हम इतनी तो क्षमता रखते है कि हम एक समय में एक चुनाव अच्छे से जीत सकते हैं। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में साफ कर दिया है। अब हिमाचल में भी कांग्रेस साफ़ हो चुकी है और भाजपा को हराने का मंत्र भी हमें आता है। हम भाजपा को 3 बार सीधी लड़ाई में हरा चुके है। हमें पता है कि भाजपा को कैसे हराना है, कांग्रेस को इसकी जानकारी नहीं है। कांग्रेस इसलिए जीतती थी क्योंकि भाजपा हारती थी। कांग्रेस कभी भी पॉजिटिव वोट से नहीं जीती है और हमें यह जानकारी है कि पॉजिटिव वोट कैसे लिया जाता है। आम आदमी पार्टी देश की एक मात्र पार्टी है जो केवल काम पर वोट मांगती है। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव के दौरान कहा था कि यदि मैंने काम किया है तो वोट देना, अगर काम न दिखे तो वोट मत देना । इसके बाद जनता ने आम आदमी पार्टी को 70 में से 62 सीटें दी थी। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी भी पार्टी को दो बार 90 प्रतिशत सीटें मिली हो। आप जरा हिमाचल के मुख्यमंत्री से कहिये कि वह भी यह कहे कि यदि मैंने काम किया है तो वोट दे, नहीं तो वोट मत दे, जनता स्पष्ट तौर पर नकार देगी। आम आदमी पार्टी काम के ऊपर वोट मांगती हैं और अन्य पार्टियां राजनीति पर वोट मांगती है। लोगों ने पूरी तरह से मन बना लिया है कि अब आम आदमी पार्टी को जीताना है और लोगो में भी पार्टी को लेकर काफी जोश देखने को मिल रहा है। पहले लोगो में कई प्रकार की शंकाएं रहती थी लेकिन अब वह सभी शंकाएं दूर हो चुकी है। पंजाब में भी हम नहीं जीते, हम केवल चुनाव लड़े थे और हिमाचल में भी हम नहीं जीतेंगे, हम पूरी ताकत से लड़ेंगे और जनता चुनाव जीतेगी। सवाल: मौजूदा स्थिति में कांग्रेस और भाजपा के कई पदाधिकारी आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में क्या आम आदमी पार्टी उन पदाधिकारियों को मौका देगी या आम जनता से ही किसी को मौका दिया जाएगा? जवाब : पंजाब में हाल ही में चुनाव हुए है और आप उनका ही विश्लेषण कर लीजिये। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी को आम आदमी पार्टी ने दोनों जगहों से हरा दिया। जिन्होंने उन्हें हराया वह दोनों आम आदमी थे। यहां भी टिकट आम आदमी को ही मिलेगी। हिमाचल में पहले केवल 2 पार्टियां थी तो अच्छे लोगों के पास इन दोनों पार्टियों में जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। अब प्रदेश में तीसरा विकल्प आम आदमी पार्टी है और मैं आपके माध्यम से जनता से भी कहना चाहूंगा कि जितने भी अच्छे लोग हैं वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाए। वो लोग आम आदमी पार्टी में शामिल ना हो, जिनकी मंशा केवल राजनीति करने तक सिमित हो। सवाल : कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के कई बड़े नेता इस समय आम आदमी पार्टी के संपर्क में है। क्या यह बात सही है ? उतर : हम चुनाव लड़ने आए हैं तो संपर्क में नेताओं का होना तो स्वाभाविक है। मैं खुले तौर पर कह रहा हूं कि अच्छे आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाइये। हम किसी को भी पार्टी में शामिल करने से इनकार नहीं कर रहे है। कांग्रेस और भाजपा में जितने भी अच्छे लोग फंसे है वह लोग आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाए। पंकज जी, ये बात सच है कि कई बड़े नेता हमारे सम्पर्क में है। सवाल : आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक है, चुनाव के लिए केवल 7 से 8 महीने का समय बचा है। इस समय आम आदमी पार्टी का संगठन बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है और आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती कमजोर संगठन होने वाला है। इतने कम समय में पार्टी किस तरह से कार्य करेगी और आगे बढ़ेगी ? जवाब : आम आदमी पार्टी के संगठन की यदि बात की जाए तो दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का संगठन भाजपा के मुकाबले कमजोर है। परंतु पार्टी ने 70 में से 62 सीटें ली है। आम आदमी पार्टी का संगठन आम आदमी ही है। आम आदमी नेताओं से डरता है, उन्हें डर लगता है यह मेरी दुकान बंद करवा देगा। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पंजाब में हर दुकान में कांग्रेस, भाजपा और अकालियों का झंडा लगा था लेकिन लोग वोट हमे दे कर आए। यदि आप चुनाव से 3 दिन पहले भी पंजाब जाते तो कहते कि आम आदमी पार्टी का कुछ नहीं हो सकता। न किसी ने नहीं सोचा था कि आम आदमी पार्टी 92 सीटें लेकर आएगी। जनता को लगा कि पार्टी लड़ रही हैं तो जनता ने वोट दिया। हमें केवल लड़ कर दिखाना है। जहाँ तक संगठन की बात की जाए तो बहुत सारे लोग ऐसे है जो सामने नहीं आ सकते क्यों कि उनके परिजन सरकारी नौकरी करते है और उन्हें ट्रांसफर या अन्य चीजों का भय रहता है। नेताओं द्वारा जनता में इस तरह के डर बनाए गए हैं। प्रदेश में जनता को दिल से जोड़ने की जरूरत है, डर से जोड़ने की जरूरत नहीं है। हम लोगों को दिल से जोड़ रहे हैं और संगठन ऊपर से दिखे या ना दिखे लेकिन अंदर से है। आपको सभी खबरें हैं तो आपको यह खबर भी जरूर होगी कि हम जनता के दिल में रहते है। सवाल : लगातार भाजपा कांग्रेस यह बात कहती आई है कि दिल्ली एक समृद्ध राज्य है और वहां पर सरकार चलाना आसान है। पंजाब के ऊपर करीब तीन लाख करोड़ का कर्ज है, इसके अलावा पंजाब बॉर्डर स्टेट है और काफी ज्यादा सेंसिटिव स्टेट भी मानी जाती है। आम आदमी पार्टी किस तरह से पंजाब को चला पाएगी ? जवाब : पंजाब में सरकार बने हुए अभी कुछ ही समय हुआ है। पंजाब में रिश्वत लेना बंद हो गया है, यदि आपको रजिस्ट्री करवानी है तो आप से एक रुपए भी नहीं लिया जाएगा। हिमाचल से भी बहुत सारे ट्रक पंजाब जाते है आप उनसे पूछ लीजिये कि पंजाब में कितने पैसे लिए गए और यह भी जरूर पूछना कि क्या हिमाचल में पैसे छोड़े गए। हमें पता है कि सरकार कैसे चलानी है। सरकार चलाने के लिए नियत साफ होनी चाहिए। यदि नियत साफ है तो काम अच्छा हो सकता है। आप कह रहे है कि दिल्ली एक समृद्ध राज्य है लेकिन जब तक हमारी सरकार नहीं थी तब तक समृद्ध नहीं था। दिल्ली का बजट 30 हज़ार करोड रुपए हुआ करता था। आम आदमी पार्टी की सरकार आई तो यह बजट 70 हज़ार करोड़ हो गया ,इस बार यह बजट हम 75 हजार करोड़ ले गए। आम आदमी पार्टी ने लोगों के लिए काम किया और लोगों ने ख़ुशी से टैक्स दिया। लोगों का कहना है कि हमारे लिए काम हो रहा है, हमारे बच्चों की पढ़ाई करवा रहे हैं, हमारे लिए सोचते है, हमारे लिए काम कर रहे है, हमारे ऊपर खर्च कर रहे हैं और अपने ऊपर खर्च नहीं कर रहे हैं। हिमाचल की यदि बात करे तो हिमाचल की पर कैपिटा इनकम 14वें नंबर पर है। यहाँ एक बार कांग्रेस लुटती है और एक बार भाजपा लुटती है। यदि ऐसे ही लुटते रहे तो प्रदेश आगे कैसे बढ़ेगा। हम यह नहीं कहते कि हम 5 वर्षों में यह सब कर के दिखाएंगे लेकिन हम 10 वर्षों में हिमाचल प्रदेश की पर कैपिटा इनकम को पहले नंबर पर ले कर आएंगे। हम प्रदेश में पर कैपिटा इनकम बढ़ाएंगे, शिक्षा पर ध्यान देंगे, बच्चों को अच्छी पढ़ाई देंगे, हर इंसान का अच्छा इलाज करवाएंगे, टूरिज्म पर ध्यान देंगे, हॉर्टिकल्चर पर ध्यान देंगे, एग्रीकल्चर पर ध्यान देंगे, सभी चीजों पर ध्यान देंगे। हिमाचल देवभूमि है, भगवान ने इस प्रदेश को इतना खूबसूरत बनाया है और हम इसे और ऊपर लेकर जाएंगे। सवाल : हाल ही में हिमाचल में हुए चारों उपचुनावों में चारों सीटें कांग्रेस पार्टी ने जीती है, जनता ने कांग्रेस पर अपना प्यार बरसाया है। हिमाचल में यह रिवाज है कि हर 5 वर्षों के बाद सरकार बदलती है और यह रीत 1985 से चली आ रही है। इसके अनुसार अगला टर्म कांग्रेस पार्टी का है और चारों उपचुनाव भी कांग्रेस ने ही जीते है। आदमी पार्टी के लिए किस तरह की चुनौती होने वाली है ? जवाब : कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीती है, केवल भाजपा हारी है और दोनों में फर्क है। भाजपा हारी है, यह हम सभी लोग जानते हैं, लेकिन कांग्रेस जीती नहीं है और न ही जीतेगी क्योंकि अब आम आदमी पार्टी उन्हें नहीं जीतने देगी। पहले जनता के पास विकल्प नहीं होता था। मैंने कांग्रेस के एक नेता से बात की जो एक मौजूदा विधायक है। मैंने उनसे कहा कि आप तो मौजूदा विधायक है आपको तो टिकट मिल ही जाएगी। उन्होंने कहा कि टिकट तो मिल जाएगी लेकिन चुनाव नहीं जीत पाउँगा क्यूंकि आम आदमी पार्टी आ रही है। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस से लड़ा तो 100 प्रतिशत हार जाऊंगा लेकिन आम आदमी पार्टी से लडूंगा तो जीत तो जाऊंगा। इस पर मैंने कहा कि हम ऐसे कैसे टिकट दे सकते है, हम पहले जनता से आपकी रेपुटेशन पूछेंगे और यदि आपकी रिपोर्ट अच्छी हुई तो ही आपको टिकट देंगे, नहीं तो सोचना पड़ेगा। तो यह स्थिति फिलहाल हिमाचल में है। सवाल : फर्स्ट वर्डिक्ट के माध्यम से हिमाचल की जनता को आप क्या संदेश देना चाहेंगे? जवाब : हिमाचल की जनता को मैं यह कहना चाहूंगा कि कभी कांग्रेस और कभी भाजपा, इनका खेल चलते हुए 60 वर्षों से भी अधिक समय हो चुका है। एक बार आप आम आदमी पार्टी को मौका देकर देखिए, अपने आपको मौका देकर देखिए। आप इन दोनों पार्टियों को भूल जाएंगे। इन नेताओं को इस बात से डर नहीं लगता कि आम आदमी पार्टी एक बार आ जाएगी, इन्हें डर इस बात से लगता है कि यदि एक बार आ गई तो फिर सालों साल काम करेगी। आम आदमी पार्टी में केवल काम को तव्वजों दी जाती है। हिमाचल में आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी, जनता के लिए काम करेगी और काम करके दिखाएगी। नेताओं को भी सीखने को मिलेगा कि विकास क्या होता है।
हिमाचल प्रदेश की सियासत में जिला सिरमौर का ख़ास स्थान रहा है। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार सिरमौर से ही ताल्लुख रखते थे। अलबत्ता उनके बाद प्रदेश की सियासत में सिरमौर को उचित स्थान तो मिलता रहा पर सिरमौर सियासत के शिखर तक नहीं पहुंचा। पर जयराम राज में सिरमौर का सियासी रुतबा खूब बढ़ा। यूँ तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिला सिरमौर की तीन सीटें मिली थी, फिर भी सिरमौर के खाते में एक मंत्री पद भी गया और प्रदेश भाजपा संगठन की सरदारी भी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप सिरमौर से आते है और प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ वे शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद भी है। कई बोर्ड-निगमों में भी सिरमौर को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है। बावजूद इसके भाजपा यहाँ सहज नहीं दिख रही। प्रदेश अध्यक्ष के जिला में ही असंतोष भी है और अंतर्कलह भी। यदि पार्टी इसे नहीं भेद पाई तो मनमाफिक नतीजे मिलना मुश्किल होगा। इसके अलावा हाटी समुदाय का मसला भी भाजपा के जी का जंजाल बन गया है। देश और प्रदेश दोनों में भाजपा की सरकार है और पार्टी से जवाब देते नहीं बन रहा। इस मुद्दे पर पार्टी का रुख चुनाव की दशा और दिशा तय कर सकता है। 2017 के चुनाव में नाहन, पांवटा साहिब और पच्छाद सीट पर भाजपा को जीत मिली। तब प्रो प्रेमकुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद बिंदल भी सीएम पद के दावेदारों में थे, पर राजनीतिक बिसात पर वे पिट गए। दिलचस्प बात ये है कि उन्हें कैबिनेट मंत्री तक का पद नहीं दिया गया। डा. राजीव बिंदल काे विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी मिली। पर 2019 खत्म होते -होते बिंदल विधानसभा अध्यक्ष के पद से सीधे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुँचने में कामयाब हो गए। पद मिला तो बिंदल के तेवर भी दिखने लगे और असर भी। पर 2020 में काेविड-19 के दौर में स्वास्थ्य विभाग घाेटाले के चलते डा. बिंदल काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। ख़ास बात ये है कि पार्टी ने उनका रिप्लेसमेंट भी सिरमौर से ही दिया। सांसद सुरेश कश्यप काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ज़िम्मा मिल गया। इसके बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में पांवटा साहिब से विधायक सुखराम चाैधरी काे मंत्री पद देकर भाजपा ने बिंदल की कमी पूरी करने का सारा प्रबंध कर लिया। पर ग्राउंड रियलिटी की अगर बात करें तो सभी पांच निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी ऐसा नहीं ,है जहाँ भाजपा इक्कीस दिख रही है। हर जगह कड़ा मुकाबला तय है। पांवटा साहिब : आसानी से नहीं मिलेगा सुख मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पांवटा साहिब में भी भाजपा को आसानी से सत्ता सुख मिलता नहीं दिख रहा। भीतरखाते मंत्री की मुखालफत की झलकियां अभी से दिखने लगी है। पिछले वर्ष हुए निकाय चुनाव में भी भाजपा को मनमाफिक नतीजे नहीं मिले थे। उधर कांग्रेस संभवतः फिर करनेश जंग को मैदान में उतारे। हालांकि कई कांग्रेसी अब आप में गए है जिससे भाजपा जरूर उत्साहित होगी। पच्छाद: कांग्रेस की अंतर्कलह से होगी आस उपचुनाव में भाजपा ने एक युवा महिला नेता को टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप को पच्छाद उपचुनाव में जीत मिली। हालांकि भाजपा से बागी उम्मीदवार दयाल प्यारी भी मैदान में थी पर यहां भी सुरेश कश्यप ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी काबिलियत सिद्ध की। अब दयाल प्यारी कांग्रेस में जा चुकी है। ऐसे में यहाँ भाजपा की नज़र कांग्रेस की अंतर्कलह पर रहेगी। पर भाजपा में भी टिकट के कई दावेदार है। वैसे पच्छाद में भाजपा की स्थिति कुछ कमजोर जरूर हुई है, जिला परिषद और स्थानीय निकाय के नतीजे भी इसकी तस्दीक करते है। नाहन : फिर लगने लगा धरतीपुत्र का नारा नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन मौजूदा स्थिति में वे भी सहज नहीं दिख रहे है। यहाँ अभी से धरतीपुत्र का नारा बुलंद होता दिख रहा है। बाहरी फैक्टर चला और कांग्रेस संगठित होकर चुनाव लड़ी, तो बिंदल को भी मुश्किल होती दिख रही है। इसके अलावा सवर्ण आंदोलन फैक्टर भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। रेणुकाजी /शिलाई : खेल न बिगाड़ दे हाटी समुदाय रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और 2022 के लिए अभी से भाजपा को यहां कड़ी तैयारी करनी होगी। दोनों ही क्षेत्रों में भाजपा के लिए हाटी समुदाय को विशेष दर्जे का मुद्दा भी सरदर्द बनता दिख रहा है। पार्टी में टिकट दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त भी परेशानी बढ़ा सकती है। उधर कांग्रेस में सम्भवतः दोनों ही वर्तमान विधायकों को फिर मौक मिले। बिंदल साइडलाइन, बाकी में वो बात नहीं ! सिरमौर में भाजपा के वर्तमान सियासी आउटलुक की बात करें तो तेजतर्रार नेता और नाहन विधायक डॉ राजीव बिंदल एक किस्म से साइडलाइन है। न सरकार में उन्हें अहमियत दी गई है और न ही संगठन में कोई अहम ज़िम्मेदारी। नगर निगम सोलन और अर्की उपचुनाव का प्रभारी जरूर उन्हें बनाया गया, किन्तु दोनों जगह पार्टी परास्त हुई। उन्हें साइडलाइन रख कई नेताओं की ताकत बढ़ाई गई जिससे समीकरण संतुलित रह सके। पर इसमें कोई संशय नहीं कि बिंदल जैसा जादू अन्य नेता नहीं दिखा पा रहे। तो भाजपा को भुगतना होगा खामियाजा... पिछले दिनों हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में जुटे लोगों ने स्पष्ट कहा कि 2014 में तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नाहन के चौगान मैदान में गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का वादा किया था। तदोपरांत 2019 में तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मंत्री ने हरिपुरधार में इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की बात कही थी। वर्तमान में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप भाजपाई है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी है। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में यदि प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्ज नहीं मिलता है, तो उसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना होगा। दरअसल गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का मसला 144 पंचायतों से सीधे जुड़ा है और इसके दायरे में चार विधानसभा क्षेत्र आते है। शिलाई के अतिरिक्त, श्रीरेणुकाजी, पच्छाद व पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में भी ये मुद्दा निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जाहिर है फिलवक्त भाजपा सत्ता में है तो नाराजगी का कोप भी भाजपा को भुगतना पड़ा सकता है। ऐसे में निसंदेह सत्तारूढ़ भाजपा अब इस मुद्दे पर कोई सार्थक पहल कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका लाभ भी मिलना तय है।
न कोई कम, न कोई ज्यादा। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का हाल कुछ ऐसा ही है। कांग्रेस -भाजपा दोनों यहाँ बराबर है और इस पर अब आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सियासत में उबाल ला दिया है। अलबत्ता अभी विधानसभा चुनाव में करीब सात माह का वक्त है लेकिन आधा दर्जन से ज्यादा भावी उम्मीदवार मैदान में उतर चुके है। नालागढ़ अभी से इलेक्शन मोड में आ चुका है। कांग्रेस से वर्तमान विधायक लखविंदर राणा मोर्चा संभाले हुए है तो भाजपा से पूर्व विधायक के एल ठाकुर भी ताव में है। जबकि नए नवेले आम आदमी हुए पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष धर्मपाल चौहान दोनों के अरमानों पर झाड़ू फेरने की ताक में है। पिछले चुनाव में भाजपा का खेल खराब करने वाले हरप्रीत सैनी का इरादा इस बार भी मैदान में उतरने का लग रहा है, तो कांग्रेस के एक और नेता आप के संपर्क में बताएं जा रहे है। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र के अतीत में झांके तो भाजपा से हरि नारायण सिंह सैनी ने लगातार तीन बार कमल खिलाया था। वे वर्ष 1998, 2003 व 2007 में वे विधायक रहे। उनके निधन के बाद 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा ने बाजी मारी। पर एक ही साल में जनता का राणा से मोहभंग हो गया और 2012 के विधानसभा चुनाव में राणा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। वहीँ भाजपा उम्मीदवार के एल ठाकुर पहली बार विधायक बने। 2017 के चुनाव की बात करें तो नालागढ़ से एक बार फिर लखविंदर सिंह राणा और के एल ठाकुर आमने -सामने थे। हालांकि यहाँ राणा ने बाजी मारी किन्तु बेहद रोचक मुकाबला देखने को मिला। कांग्रेस का टिकट न मिलने पर बाबा हरदीप सिंह ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और साढ़े सात हज़ार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा के बागी हरप्रीत सैनी ने करीब दो हज़ार वोट हासिल कर ठाकुर का खेल खराब कर दिया था। वर्तमान की बात करें तो लखविंदर सिंह राणा ही नालागढ़ कांग्रेस का मुख्य चेहरा है। राणा इस सीट से पांच चुनाव लड़ चुके है। उन्होंने पहली बार वर्ष 2003 में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद हुए तीन विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें ही टिकट दिया है जिसमें से दो बार उन्हें जीत मिली है। जबकि भाजपा में भी फिलवक्त के एल ठाकुर के समकक्ष कोई चेहरा नहीं दिखता। ठाकुर के खाते में एक जीत और एक हार दर्ज है। वहीँ, बतौर निर्दलीय 2017 में चुनाव लड़ने वाले बाबा हरदीप अब भी अपनी जमीन मजबूत करने की जद्दोजहद ही करते दिख रहे है। उनकी बेशक कांग्रेस में वापसी हो गई हो लेकिन टिकट की दौड़ में वे राणा के आगे टिकते नहीं दिखते। धर्मपाल चौहान की बात करें तो निसंदेह वे चुनाव लड़ने के इच्छुक है और आम आदमी पार्टी से टिकट के प्रबल दावेदार भी होंगे, बशर्ते आप कोई अन्य नेता इम्पोर्ट न कर ले। धर्मपाल भी मैदान में टिके है और उनके रहते ये मुकाबला कांग्रेस -भाजपा किसी के लिए आसान नहीं होगा।
◆ घिरथ ,गद्दी,गोरखा और जनरल वोट बैंक में फंसी धर्मशाला इस बार धर्मशाला, प्रदेश की दूसरी "कागजी" राजधानी है। वीरभद्र सरकार की विदाई के बाद अब इसकी घोषणा का कागज भी गायब है। अगर कोई दिखाता भी है तो उसकी सत्यता पर सवाल-बवाल बराबर होते हैं। खैर,शुक्र यह है कि धर्मशाला गायब नहीं हो पाया है। धर्मशाला के साथ पॉलिटिक्स का चलन बहुत पुराना है। पर बेचारे धर्मशाला का हाल यह है कि स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलने के बावजूद आम आदमी के लिए कुछ स्मार्ट तो नहीं हो पाया अलबत्ता इसके अंदर की पॉलिटिक्स जरूर स्मार्ट हो चुकी है। मोबाइल तकनीक फोर-जी की तर्ज पर धर्मशाला की पॉलिटिक्स भी फोर-जी की तरह हाई स्पीड वाली हो गई है। फोर-जी फैक्टर में यहां घिरत,गद्दी,गोरखा और जनरल के बीच पॉलिटिकल रेडियेशन्स पसरी हुईं हैं। भाजपा का तो इतिहास ही रहा है कि उसने गद्दी जाति की तरंगों पर ही सफर किया। स्व मेजर बृज लाल से शुरू हुआ सफर वाया किशन कपूर होता हुआ अब विशाल नैहरिया तक पहुंच चुका है। भाजपा की टिकट कभी गैर गद्दी के हाथ नहीं चढ़ पाई। साल 2017 में जब कपूर की टिकट कटने की नौबत आई थी तब उन्होंने अश्रु धाराओं की दीवार बना कर उन्होंने पण्डित उमेश दत्त की टिकट रोक ली थी। इसके बाद साल 2019 में कपूर साहब की लॉटरी लोकसभा में लगी तो उनके जीतने के बाद फिर से टिकट की गद्दी पर गद्दी समुदाय के विशाल नैहरिया को भाजपा ने सत्तासीन कर दिया। यह तो थी फोर-जी फैक्टर के पहले अहम जी-फैक्टर गद्दी की। अब बात करते हैं कांग्रेस की। एक वक्त था, जब कांग्रेस भी गद्दी समुदाय के मूलराज पाधा के साथ अपना हाथ लेकर चलती थी। फिर कांग्रेस ने यह वर्चस्व जनरल कैटागिरी से राज परिवार की चंद्रेश कुमारी को आगे लाकर तोड़ा। कांग्रेस ने एक बार गद्दी समुदाय को छोड़ा तो फिर कभी अपना पल्लू नहीं थमाया। चंद्रेश के बाद सुधीर शर्मा को धर्मशाला से उम्मीदवार बनाया और वह जीते भी। इसके बाद जब किशन कपूर के सांसद बनने के बाद उपचुनाव हुए तो जनरल फैक्टर के सुधीर शर्मा गायब हो गए। कांग्रेस मरती क्या न करती,एक बार फिर गद्दी समुदाय वाले विजय इन्द्रकर्ण जी-फैक्टर की तरफ बढ़ गई। भाजपा-कांग्रेस दोनों गद्दी फैक्टर पर भिड़ीं और भाजपा जीत गई। मगर इसी चुनाव में तीसरे जी-फैक्टर यानि घिरथ समुदाय ने अपना जलवा दिखा दिया। कभी भाजपाई रहे राकेश चौधरी आजाद मैदान में उतरे और भाजपा की चीखें निकलवाने के साथ कांग्रेस की जमानत जब्त करवा दी। करीबन सोलह हजार वोट लेकर बता दिया कि ओबीसी बिन गति नहीं होने दी जाएगी। अब बात करते हैं चौथे और लास्ट जी-फैक्टर गोरखा समुदाय की। हालांकि यह समुदाय बहुतयात में तो नहीं है,पर किसी को भी हरवाने में यह तबका, अपना तगड़ा दबका रखता है। इस समुदाय के अरुण बिष्ट ने एक बार चंद्रेश कुमारी को घर बिठा दिया था,तो दूसरी बार रविन्द्र राणा ने सुधीर शर्मा को तगड़ी चोट दे दी थी। पर अब इस फोर-जी फैक्टर में जनरल फैक्टर पॉलिटिकल फ्रैक्चर डालने की कुव्वत बना चुका है। जनरल कैटागिरी का मत प्रतिशत एक अनुमान के मुताबिक करीबन 49 से 51 फीसदी के बीच पहुंच चुका है। इस बार भाजपा-कांग्रेस के लिए यह ट्रेडिशनल गद्दी फैक्टर खतरे का सामान बनता नजर आने शुरू हो गया है। खैर, असली फोर-जी के आगे फाइव-जी की तरफ बढ़ रही है। देखना दिलचस्प होगा कि स्ट्रेंथ ऑफ पॉलिटिकल सिग्नल कितना फलक्चुएट होता है...
मिशन रिपीट के लिए जयराम सरकार ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। दावा है कि जो 1985 के बाद से अब तक नहीं हुआ, वो अब होगा। जो सख्त मिजाज वाले नेता कभी नहीं कर पाएं वो नरम मिजाज वाले जयराम करके दिखाएंगे। ऐसे में दबाव न सिर्फ खुद जयराम ठाकुर पर है बल्कि उनकी कैबिनेट के अन्य 11 मंत्रियों पर भी। दबाव इसलिए भी कुछ अधिक है क्यों कि काबीना मंत्रियों का चुनाव हारना हिमाचल की सियासत का पुराना रिवाज है। पांच साल बाद जब जनता का वक्त आता है तो क्या मंत्री और क्या मुख्यमंत्री, किसी की जीत की कोई गारंटी नहीं होती। वर्तमान में भी जयराम कैबिनेट के कई मंत्रियों के प्रदर्शन पर सवाल उठ रहे है। किसी की विभाग पर पकड़ कमजोर दिख रही है तो कोई अपने रैवये के चलते सुर्ख़ियों में है। तो कहीं मजबूत विपक्ष और हावी अंतर्कलह ने मंत्रियों की नींद उड़ाई हुई है। ग्राउंड रियलिटी की बात करें तो खुद मुख्यमंत्री और एकाध मंत्रियों को छोड़ कर शायद ही कोई ऐसा हो जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में इक्कीस दिख रहा है। हालाँकि मौजूदा मंत्रिमंडल में कई ऐसे नेता भी है जो जीत की हैट्रिक लगा चुके, पर ये सियासत है यहां समीकरण बदलते समय नहीं लगता। हिमाचल प्रदेश में कैबिनेट मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री भी चुनाव हारते रहे है। सीएम रहते चुनाव हारने वालों में वीरभद्र सिंह और शांता कुमार के नाम भी शामिल है। 1990 में वीरभद्र सिंह जुब्बल कोटखाई से चुनाव हार गए, हालांकि तब वे दो निर्वाचन क्षेत्रों से मैदान में थे। वहीं 1993 में सत्ता विरोधी लहर ऐसी चली कि शांता कुमार अपनी सीट भी नहीं बचा पाएं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा तो जीत गई लेकिन सीएम फेस प्रो प्रेमकुमार धूमल खुद चुनाव हार गए। इसी तरह कैबिनेट मंत्रियों का चुनाव हारना भी हिमाचल में आम बात है। पिछले चार चुनावों पर नज़र डाले तो वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में धूमल कैबिनेट के 12 ज्यादा मंत्री चुनाव हारे थे ( तब कैबिनेट की अधिकतम संख्या 12 नहीं थी)। 2007 में वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे सात नेता चुनाव हारे। जबकि 2012 में धूमल कैबिनेट के तीन मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाएं। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में तो वीरभद्र सिंह कैबिनेट के पांच मंत्रियों को जनता ने नकार दिया। पहली चुनौती टिकट लाना ! आज की भाजपा में टिकट आवंटन का आधार नाम से ज्यादा जीताऊ फैक्टर है और टिकट से पहले बकायदा सर्वे कराए जाते है। हाल ही में कई ऐसे उदहारण है जहाँ पार्टी ने एंटी इंकम्बैंसी को भांपते हुए मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे है। ऐसे में हिमाचल में भी ये संभव है। जाहिर है फिर विधानसभा पहुँचने के लिए पहले मंत्रियों को अपना टिकट सेफ करना होगा। एंटी इंकम्बेंसी साधने को क्या होगा बदलाव ! उपचुनाव हारने के बाद से ही प्रदेश में मंत्रिमंडल फेरबदल के कयास लगते रहे है। खुद मुख्यमंत्री ने भी कभी साफ़ शब्दों में फेरबदल की संभावना से इंकार नहीं किया। पर अब तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। चुनाव के मुहाने पर खड़ी सरकार क्या एंटी इंकम्बैंसी साधने के लिए फेरबदल कर सकती है, ये बड़ा सवाल है।
प्रदेश में दिन प्रतिदिन आप का जनाधार बढ़ रहा है। इससे भाजपा-कांग्रेस की चिंता बढ़ गई और उन्हें हार का डर सताने लगा है। यह बात पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता गौरव शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियां दलगत राजनीति करती आ रही हैं। यही कारण है कि प्रदेश की जनता अब इनसे तंग हो चुकी है। दोनों दलों के नेता इस बात को नहीं पचा पा रहे हैं। यह दल कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी का कोई वजूद ही नहीं। यदि पार्टी का कोई वजूद न होता तो क्यों ये दल डर के मारे रोज पार्टी की चर्चा कर रहे हैं। दरअसल इनको अब डर सता रहा है। महंगाई ने पहले प्रदेश की जनता की कमर तोड़ दी है। लोग अब आम आदमी पार्टी से आस लगाए बैठे हैं। इन दोनों पार्टियों का अमन-चैन ही छिन गया है। इस बार जीत का सेहरा आप के सिर ही सजेगा। ्र
राजेश कतनौरिया जवाली विधान सभा में आम आदमी पार्टी का अभियान जोर-शोर से चल रहा है। आप जवाली के अध्यक्ष निखिल महाजन ने महाराणा प्रताप भवन लव के प्रांगण में एक मीटिंग की। इसमें अलग-अलग पंचायतों के 500 लोगों ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। इस दौरान आप के प्रदेश सदस्यता अभियान के अधयक्ष राजीव अंबिया, अभिषेक चौधरी, करनैल सिंह और भारत भूषण आदि मौजूद रहे। वहीं निखिल महाजन ने कहा कि हर वर्ग में आम आदमी पार्टी के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है। जनता इस बार बदलाव चाहती है।
नरेंद्र डोगरा जयसिंहपुर विधान सभा में आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान जोरों से चला हुआ है। इस सदस्यता अभियान के दौरान लंबागांव के रत्न चौधरी यशपाल चौधरी, विद्या देवी भूरू व अन्य लोगों ने आप का दामन थाम लिया। संगठन मंत्री लक्की पुरी व मंडलाध्यक्ष विक्रम कौंडल, प्रभात कौंडल ने पार्टी का स्मृति चिन्ह दिया। मंडल अध्यक्ष विक्रम कौंडल ने हर वर्ग आम आदमी पार्टी की ओर मुखातिव हो रहा है। आने वाले समय में पार्टी का पूरा परचम लहराएगा।
बड़सर विधानसभा क्षेत्र के विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने कहा कि केंद्र और प्रदेश कि भाजपा सरकार महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रही हैं। बड़ी हैरानी है कि पिछले 9 दिनों में पैट्रोल और डीजल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। महंगाई से जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित है। लोगों को गुजारा करना मुश्किल हो गया है। मगर महंगाई रोकने को कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री ने दो लाख युवाओं को रोजगार देने की बात कही थी, मगर कुछ भी नहीं किया गया। वहीं उन्होंने कहा मुख्यमंत्री का सरकारी कार्यालयों में बैठे अफसरों पर कोई कंट्रोल नहीं है। लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। सड़कों की हालत खस्ता है। मनरेगा के तहत रोजगार भी नहीं मिल रहा है। मगर न तो केंद्र और न ही प्रदेश सरकार का इस तरफ कोई ध्यान है।
मनोज कुमार हिमाचल करणी सेना के जिला अध्यक्ष आशुतोष चौधरी ने आप का दामन थाम लिया है। धर्मशाला सर्किट हाउस में आप पार्टी के दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सतिंद्र जैन ने आप पार्टी की टोपी पहनाई। बता दें कि दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतिंद्र जैन कांगड़ा में आयोजित एक छिंज में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे हुए थे। आशुतोष चौधरी पुराना कांगड़ा के रहने वाले हैं। उनके पिता कैप्टन प्रताप चौधरी 1977 में कांगड़ा के विधायक रहे चुके हैं। उनकी माता शशि कांता भी पूर्व पार्षद भी रह चुकी हैं। उन्होंने कहा कि पहले भी हिमाचल करणी सेना के साथ समाज सेवा कर रहे हैं। अब आप पार्टी से जुड़ कर लोगों की सेवा करूंगा। उन्होंने कहा कि आप पार्टी की नीतियां पसंद आई हैं। केजरीवाल की अच्छी नीतियों को मद्देनजर रखते हुए आज ये फैसला लिया है। वहीं उन्होंने कहा कि वे कांगड़ा विधानसभा युवा कार्यकर्ताओं के साथ आप पार्टी को मजबूत और कांगड़ा में सदस्यता अभियान की शुरूवात करेंगे। इस दौरान उनके साथ उनकी माता व धर्म पत्नी भी मौजूद रहीं।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने प्रदेश कृषि विभाग द्वारा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को प्रस्तुत प्रस्तावित एकीकृत डिजिटल कृषि प्लेटफार्म परियोजना को 108 करोड़ रुपए स्वीकृत करने के लिए केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से कृषि सुधार ट्रांसफार्मेशन इन एग्रीकल्चर यूजिंग एमर्जिंग टेक्रोलॉजी पर प्रस्तावित इस परियोजना के तहत किसानों के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी आईसीटी आधारित सेवाएं प्रदान करने में आंतरिक योग्यता विकसित की जाएगी। इसमें प्रशासनिक प्रक्रिया पर निर्भरता कम कर कार्य कुशलता को बनाया जाएगा और कृषि आधारित सेवाओं की मांग के अनुसार उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। जय राम ठाकुर ने कहा कि परियोजना का मुख्य उद्देश्य केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न योजनाओं के लिए सिंगल साइन ऑन प्लेटफार्म स्थापित करना है, जो विभाग की विभिन्न योजनाओं के लिए आवेदन करने की प्रक्रियाओं को और सरल कर देगा और विभिन्न वित्तीय लाभ सीधे लाभार्थियों के खातों में हस्तांतरित किए जाएंगे। परियोजना के अन्तर्गत एक बाजार सूचना प्रणाली विकसित की जाएगी, जिसमें मांग एवं आपूर्ति की जानकारी, उत्पाद की कीमत और राष्ट्रीय ई. मार्केट प्लेटफार्म की जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रस्तावित परियोजना में एकीकृत किसान डाटाबेस, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एपीआई, एकीकरण, स्वचालित फार्म एक्सटेंशन सर्वर, कस्टमाइज डैशबोर्ड, डाटा एनालिटिक्स एवं केन्द्रीकृत रिपोर्ट और फार्मर फील्ड स्कूल एप्लीकेशन तैयार करने पर कार्य किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह प्रस्तावित परियोजना आईटी आधारित इको सिस्टम का उपयोग करेगी, जिससे किसान विभाग और अन्य हितधारक लाभान्वित होंगे।
वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने है और दोनों मुख्य राजनैतिक दल अभी से मिशन रिपीट और मिशन डिलीट की कवायद में जुट गए है। इस पर आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी खिचड़ी में तड़का लगा दिया है। आप से इतर भी दोनों राजनैतिक दलों और सत्ता के सोलह श्रृंगार के बीच सोलह विधानसभा सीटें ऐसी है जो राह में रोड़ा बन सकती है। 2003 से लेकर 2017 तक हुए चार विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो इन 16 पर हर पांच वर्ष के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। यहाँ कभी कांग्रेस, कभी भाजपा तो कभी अन्य काबिज हुए है। हालांकि इनमें से कुछ ऐसी सीटें भी है जहां दल भले ही बदले हो लेकिन चेहरा एक ही रहा है। वर्तमान स्थिति की बात करें तो इन 16 सीटों में से 12 पर भाजपा काबिज है, जबकि 4 पर कांग्रेस के विधायक है। गगरेट, सुलह, धर्मशाला, बिलासपुर, आनी, नूरपुर, सुंदरनगर, चौपाल, दून, भरमौर, लाहौल स्पीति और करसोग में इस वक्त भाजपा के विधायक है, तो जुब्बल कोटखाई, कांगड़ा, कुल्लू और नालागढ़ में कांग्रेस काबिज है। 2017 विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा के पास इन सोलह में से 13 सीटें थी, पर उपचुनाव में हार के बाद जुब्बल कोटखाई सीट अब कांग्रेस के पास है। वहीं 2019 में धर्मशाला सीट पर भी उपचुनाव हुआ है लेकिन उक्त सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। यहाँ नालागढ़ ऐसी सीट है जहां 2003 और 2007 में भाजपा काबिज हुई लेकिन 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। इसके बाद 2012 में भाजपा और 2017 में कांग्रेस को जीत मिली। जुब्बल कोटखाई : एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा जुब्बल कोटखाई प्रदेश का इकलौता निर्वाचन क्षेत्र क्षेत्र है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह। लम्बे समय तक इस सीट पर ठाकुर रामलाल की तूती बोलती थी और उनके निधन के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में उनके पोते रोहित ठाकुर को भी यहाँ की जनता का प्यारा मिला। पर 2007 में पूर्व बागवानी मंत्री रहे नरेंद्र बरागटा ने पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर जनता ने कांग्रेस के रोहित ठाकुर को विजयी बनाया, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर नरेंद्र बरागटा ने जीत हासिल की। 5 जून 2021 को नरेंद्र बरागटा का निधन हुआ और तदोपरांत 30 अक्टूबर 2021 को जुब्बल कोटखाई सीट पर हुए उपचुनाव में रोहित ठाकुर को तीसरी बार जीत मिली। इस वर्ष के अंत में फिर विधानसभा चुनाव होने है और इस दफा जुब्बल कोटखाई की कुर्सी पर कौन सा दल काबिज होता है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। वहीं चेतन बरागटा की भाजपा में घर वापसी और आप में जाने की अटकलों ने अभी से इस क्षेत्र में सियासत गरमा गई है। चौपाल : यहाँ निर्दलियों को भी मिलता रहा है प्यार चौपाल सीट के पिछले चार चुनावों के नतीजों का आंकलन किया जाए तो इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के साथ - साथ निर्दलियों का सिक्का भी चला है। कभी यहां बीजेपी की उम्मीदवार की जीत हुई, कभी कांग्रेस की, तो कभी निर्दलियों-बागियों ने दोनों का खेल बिगाड़ा। 2003 के विधानसभा चुनाव में सुभाष चंद मंगलेट ने इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में सुभाष चंद मंगलेट ने कांग्रेस पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2012 में निर्दलीय बलबीर वर्मा ने सुभाष चंद मंगलेट को हराया। 2017 में बलबीर वर्मा भाजपा में शामिल हुए और पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। यानी 2003 और 2007 का चुनाव मंगलेट बतौर निर्दलीय और फिर कांग्रेस के टिकट पर जीते। इसी तरह बलबीर वर्मा ने 2012 में बतौर निर्दलीय और 2017 में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की। दून : फिर दिलचस्प मुकाबला तय दून विधानसभा क्षेत्र में जनता कब किस पर मेहरबान हो ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन पिछले चार चुनावों में इस सीट पर निरंतर सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है। 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस के लज्जा राम ने 17297 मतों के साथ जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में यहां सत्ता परिवर्तन हुआ और भाजपा से विनोद कुमारी ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी रामकुमार ने भाजपा के निर्दलीय रहे दर्शन सिंह को हरा कर जीत हासिल की और यह सीट कांग्रेस के नाम हुई। 2017 के चुनाव में भाजपा ने परमजीत सिंह पम्मी पर दांव खेला और यह सीट भाजपा के नाम रही। दिलचस्प बात ये है कि पम्मी कांग्रेस से भाजपा में आये थे। अब 2022 में भी यहां दिलचस्प मुकाबला तय दिख रहा है। वहीं कई नेताओं के आप में जाने की अटकलों से भी यहाँ सियासी पारा हाई है। बिलासपुर : 2003 से परिवर्तन की प्रथा कायम बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में 2003 के विधानसभा चुनाव में तिलक राज ने जीत दर्ज कर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली तो 2007 के चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा इस सीट पर भाजपा को काबिज करवाने में कामयाब रहे। 2012 के चुनाव में कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने भाजपा के सुरेश चंदेल को पटखनी देकर जीत दर्ज की थी। 2017 के लिए कांग्रेस ने फिर बंबर ठाकुर पर दांव लगाया और भाजपा ने सुभाष ठाकुर पर, लेकिन सुभाष ठाकुर इस सीट पर फ़तेह हासिल करने में कामयाब रहे। 2003 से परिवर्तन की प्रथा इस सीट पर कायम है। गगरेट : कुलदीप की हैट्रिक के बाद से लगातार परिवर्तन गगरेट सीट पर 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कुलदीप कुमार ने जीत की हैट्रिक पूरी की थी। पर इसके बाद गगरेट सीट पर समीकरण बदले और 2007 में भाजपा से बलबीर सिंह ने सत्ता का सुख भोगा। 2012 में फिर चेहरे बदले और इस सीट पर कांग्रेस के राकेश कालिया ने कब्ज़ा जमाया। 2017 के चुनाव में राजेश ठाकुर ने गगरेट सीट फिर भाजपा के नाम की। इस सीट पर निरंतर राजनैतिक दलों की चल रही अदला बदली के बीच 2022 का चुनाव रोचक होना तय माना जा रहा है। सुलह : कांग्रेस -भाजपा दोनों के खाते में दो - दो जीत सुलह विधानसभा क्षेत्र में पिछले चार चुनाव के नतीजों पर गौर करे तो दो बार भाजपा व 2 बार कांग्रेस ने इस सीट पर सत्ता का सुख भोगा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में जगजीवन पाल ने जीत दर्ज कर ये सीट कांग्रेस के नाम की, तो 2007 के विधानसभा चुनाव में विपिन सिंह परमार ने भाजपा का झंडा लहराया। 2012 के चुनाव में फिर जगजीवन पाल ने इस सीट पर बाजी मारी और ये सीट कांग्रेस के नाम की। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में विपिन सिंह परमार फिर भाजपा टिकट पर जीते। यानी पिछले चार चुनावो में इस सीट पर दोनों ही राजनैतिक दल बराबरी पर रहे है। धर्मशाला : उपचुनाव में भाजपा के पास ही रही सीट धर्मशाला सीट पर 1990 से लेकर 1998 तक भाजपा का ही राज रहा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चंद्रेश कुमारी पर दांव खेला और लम्बे अंतराल के बाद इस सीट पर जीत दर्ज की। 2007 के विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा ने इस सीट पर बाज़ी मारी और किशन कपूर यहाँ से विधायक बने। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सुधीर शर्मा को मैदान में उतारा और सीट अपने नाम की। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर किशन कपूर ने फिर इस सीट को भाजपा की झोली में डाला। लोकसभा चुनाव 2019 में किशन कपूर ने बाज़ी मारी और सांसद बने जिसके बाद 2019 में धर्मशाला में उपचुनाव हुए और इस सीट पर भाजपा के ही विशाल नेहरिया ने जीत दर्ज की। दिलचस्प बात ये है कि उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त हुई थी। वहीं तब दूसरे नंबर पर रहने वाले राकेश चौधरी अब आप में शामिल हो चुके है। काँगड़ा : लम्बे वक्त से चल रहा भाजपा का वनवास काँगड़ा विधानसभा क्षेत्र में पिछले चार चुनाव के नतीजों पर नजर डाले तो इस सीट पर निरंतर सत्ता परिवर्तन हुआ है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सुरिंदर कुमार ने जीत दर्ज की। 2007 के चुनाव में बीएसपी पार्टी के संजय चौधरी को जनता ने स्वीकार किया और काँगड़ा सीट बीएसपी पार्टी की हुई। 2012 के विधानसभा चुनाव में चौधरी सुरेंदर कुमार को हरा कर निर्दलीय मैदान में उतरे पवन काजल ने ये सीट अपने नाम की। इस बाद काजल कांग्रेस ने शामिल हुए। 2017 के चुनाव में पवन कुमार काजल कांग्रेस में शामिल हुए और काँगड़ा सीट फिर कांग्रेस की झोली में आई। बेशक काजल लगातार दो चुनाव जीतने में कामयाब रहे हो लेकिन पार्टी सिंबल के लिहाज से देखा जाएं तो यहां पिछले चार चुनाव से परिवर्तन होता आ रहा है। भरमौर : एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे भरमौरी भरमौर विधानसभा गद्दी जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इस कारण भरमौर को गद्देरण भी कहा जाता है। भरमौर विधानसभा क्षेत्र में लगातार सत्ता की कुर्सी पर राजनीतिक दलों की अदला बदली रही है। पिछले चार चुनाव की बात की जाए तो 2003 के चुनाव में ठाकुर सिंह भरमौरी ने जीत दर्ज कर सत्ता की कुर्सी पर कांग्रेस को बैठाया। 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तुलसी राम ने भरमौर सीट भाजपा के नाम की। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ठाकुर सिंह भरमौरी पर दांव खेला तो भाजपा ने जिया लाल को मैदान में उतारा। भरमौरी ने 2012 में सीट पर जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के जिया लाल ने फिर इस सीट से चुनाव लड़ा और ये सीट भाजपा की झोली में गई। लगातार चार चुनावों में इस सीट पर सत्ता परिवर्तन रहा है। लाहौल स्पीति : कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा लाहौल स्पीति विधानसभा सीट हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। इस बार लाहौल स्पीति विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता तय करेगी लेकिन पिछले चार चुनावों का आकलन किया जाये तो इस सीट पर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा ने सत्ता का सुख भोगा है। 2003 में कांग्रेस के रघबीर सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2007 में डॉ राम लाल मार्कंडा ने भाजपा का झंडा लहराया तो 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने नए चेहरे रवि ठाकुर को मैदान में उतार कर लाहौल स्पीति की कुर्सी अपने नाम की। 2017 के विधानसभा चुनाव में डॉ राम लाल मारकंडा ने न केवल इस सीट पर जीत दर्ज की बल्कि मंत्री पद हथियाने में भी कामयाब रहे। हालाँकि अब कयास ये भी लग रहे है कि आप भी इस निर्वाचन क्षेत्र में कई नेताओं से संपर्क में है। कुल्लू : यहां लगातार हो रहा है परिवर्तन कुल्लू विधानसभा क्षेत्र में इस बार सत्ता का सुख किसे मिलेगा ये तो जनता तय करेगी, लेकिन पिछले कुछ चुनाव के नतीजों को देखे तो इस सीट पर निरंतर दलों की अदला बदली देखने को मिली है। 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो ये सीट कांग्रेस के हाथ लगी है। 2007 में वर्तमान में शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने ये सीट भाजपा की झोली में डाली। 2012 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और इस सीट को एचएलपी ने अपने नाम किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर इस सीट पर कांग्रेस के सुंदर सिंह ठाकुर ने जीत दर्ज कर ये सीट कांग्रेस की झोली में डाली। आनी : बारी -बारी कांग्रेस और भाजपा आनी विधानसभा क्षेत्र में 2003 के चुनाव में कांग्रेस के ईश्वर दास इस सीट से विधायक बने। 2007 में इस सीट पर किशोरी लाल ने भाजपा का परचम लहराया। 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर जनता ने सत्ता में कांग्रेस को बैठाया और कांग्रेस के खूब राम ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और आनी सीट पर भाजपा के किशोरी लाल ने जीत दर्ज की। अब 2022 के चुनाव में सत्ता का सुख किसे मिलता है यह देखना रोचक होगा। करसोग : 1990 से लगातार हो रहा परिवर्तन करसोग विधानसभा क्षेत्र ऐसी सीट जहाँ हर पांच वर्ष बाद जनता ने विधायक की कुर्सी पर अलग अलग राजनैतिक दलों को मौका दिया। करसोग सीट पर 1990 से लेकर अब तक ऐसी कोई पार्टी नहीं रही है जिसने लगातार दो चुनाव जीते हो। विशेष तौर पर पिछले चार चुनाव की बात करे तो 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मस्त राम ने यहाँ जीत दर्ज की, जिसके बाद 2007 के चुनाव में फिर बदलाव आया और सत्ता की कुर्सी पर निर्दलीय उम्मीदवार हीरा लाल ने राज किया। 2012 के चुनाव में मनसा राम ने फिर एक बार कांग्रेस का परचम लहराया। 2017 के विधानसभा चुनाव में हीरा लाल भाजपा में शामिल हुए और करसोग की सीट भाजपा के नाम हुई। सुंदरनगर : हर पांच में बदलाव कर रही सुंदरनगर की जनता सुंदरनगर विधानसभा सीट के पिछले कुछ चुनावों पर नज़र डाले तो जनता का हर पांच वर्ष बाद विधायक से मोह भंग हुआ है। 1990 से लेकर अब तक इस सीट पर सत्ता का सुख भोगने के लिए कोई भी पार्टी रिपीट नहीं कर पाई है। पिछले चार चुनावों की बात की जाए तो 2003 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सोहन लाल ठाकुर ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 2007 के चुनाव में फिर बदलाव हुआ सुंदरनगर की जनता भाजपा के रूप सिंह पर मेहरबान हुई। 2012 में फिर विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता का सुख भोगा और 2017 में भाजपा ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया। इस बार सुंदरनगर की सीट पर कौन विराजमान होता है और परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे ये तो जनता ही तय करेगी। फिलवक्त इस सीट पर चली आ रही सत्ता परिवर्तन की प्रथा के अनुसार भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ सकती है। नूरपुर : लगातार जीतने में कोई कामयाब नहीं नूरपुर निर्वाचन क्षेत्र में 1996 में हुए उपचुनाव के बाद से ही इस सीट पर शासन के लिए लगातार परिवर्तन देखने को मिला है। पिछले चार चुनाव के नतीजों पर गौर फरमाएं तो यहाँ की जनता ने हर पांच वर्ष में बदलाव किया है। 2003 के विधानसभा चुनाव में सत महाजन ने कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलाई। 2007 के विधानसभा चुनाव में राकेश पठानिया आज़ाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और जीत का परचम लहराया। 2012 में कांग्रेस ने अजय महाजन पर दांव खेला और जनता ने कांग्रेस पार्टी पर विश्वास जताया। 2017 के विधानसभा चुनाव में राकेश पठानिया भाजपा में शामिल हुए और मंत्री पद हासिल करने के साथ इस सीट पर भाजपा की जीत हुई लेकिन इस बार नतीजे किस पार्टी के पक्ष में होंगे ये कहना मुश्किल है। नालागढ़ : हरिनारायण सैणी के बाद कोई नहीं जीता लगातार दो चुनाव नालागढ़ हिमाचल प्रदेश की वो सीट जहाँ पर ज्यादातर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है, लेकिन वर्ष 1998 में पहली बार यहां से भाजपा जीती। तब से तत्कालीन विधायक ने तीन बार जीत दर्ज कर यहां से लगातार जीते, लेकिन उसके बाद यह सीट फिर से कांग्रेस के हाथों में चली गई। 1998 में पहली बार भाजपा को जीत मिली और पूर्व विधायक स्व. हरिनारायण सैणी की जीत का यह रथ वर्ष 2003, 2007 में जारी रहा। हरिनारायण सैणी के निधन के बाद 2011 में नालागढ़ सीट पर उपचुनाव हुए। 2011 के उपचुनाव में समीकरण बदले और तब सत्तारूढ़ दल भाजपा इस सीट पर रिपीट नहीं कर पाई और यह सीट फिर से कांग्रेस के हाथों में आई। तब यहां से लखविंदर राणा ने जीत दर्ज की। 2012 के विधानसभा चुनाव में केएल ठाकुर ने फिर भाजपा का परचम लहराया। 2017 में कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा ने फिर जीत हासिल की। वहीं बीते दिनों कांग्रेस नेता और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष धर्मपाल चौहान के आप में जाने के बाद ही इस क्षेत्र के समीकरण बदलते दिख रहे है। दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही दलों के कई ने नेता भी आप के संपर्क में बताएं जा रहे है। दिग्गजों की साख भी दांव पर जिन 16 विधानसभा सीटों पर लगातार परिवर्तन हो रहा है उनमें से दो विधानसभा सीटें ऐसी भी है जहाँ मौजूदा सरकार के मंत्रियों की साख भी दांव पर है। नूरपुर विधानसभा क्षेत्र से वन मंत्री राकेश पठानिया और लाहौल स्पीति से तकनीकी शिक्षा मंत्री रामलाल मार्कंडेय के सामने अपनी सीट बरकरार रखने की चुनौती होगी। नूरपुर में 1996 से ही हर पांच वर्ष में सत्ता की कुर्सी पर कभी भाजपा, कभी कांग्रेस तो कभी निर्दलियों का राज़ रहा है। ऐसे में लम्बे समय से चले आ रहे इस सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज में वन मंत्री राकेश पठानिया का बड़ा इम्तिहान होना है। लाहौल स्पीति से तकनीकी शिक्षा मंत्री रामलाल मारकंडा भी इस फेहरिस्त में शामिल है। मंडी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद कई मंत्रियों की साख दांव पर थी इसमें मंत्री रामलाल मारकंडा भी चर्चा में रहे। 1998 से लगातार लाहौल स्पीति की सीट पर दलों की अदला बदली रही है। ऐसे में मारकंडा पर निसंदेह सबकी निगाहें रहने वाली है। दो कैबिनेट मंत्रियों के अलावा विधानसभा स्पीकर व जयराम सरकार में ही स्वास्थ्य मंत्री रह चुके विपिन सिंह परमार के सामने भी खुद को साबित करने की चुनौती होगी। परमार भी उन नेताओं की लिस्ट में शामिल है जो एक चुनाव जीतने के बाद एक हारते आ रहे है।
पंजाब में अब पूर्व विधायकों को सिर्फ एक टर्म की पेंशन मिलेगी। इसके साथ-साथ पूर्व विधायकों को मिलने वाले फैमिली भत्तों में भी कटौती की जाएगी। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार चाहे कितनी भी बार का विधायक रहा हो उसे एक ही पेंशन मिलेगी। इसी अनुपात में फैमिली पेंशन भी कम होगी। पंजाब की भगवंत मान सरकार के इस फैसले की कहीं प्रशंसा हो रही है तो कहीं निंदा। कोई इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बता रहा है तो किसी का मानना है कि इस फैसले से सरकार को ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला। बहरहाल, ये निर्णय अच्छा है या बुरा, इसे लेकर विश्लेषण जारी है। मगर ये स्पष्ट है कि पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद बाकी राज्य सरकारों पर भी दबाव बनना शुरू हो गया है। इस फैसले का प्रभाव हिमाचल में भी देखने को मिल रहा है। यहां भी जनता कुछ ऐसा ही चाहती है, खासतौर पर प्रदेश के कर्मचारी ये मांग करने लगे है। दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा ये फैसला पंजाब की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लिया गया है। फिलवक्त पंजाब की आर्थिक स्थिति बदहाल है। पंजाब पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इसका जिक्र सीएम भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान भी कर चुके हैं। सरकार का मानना है कि इस फैसले के बाद विधायकों की पेंशन पर खर्च हो रहे पैसे को युवाओं व अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्चा जा सकेगा। बता दें कि छह बार विधायक रहीं पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल, लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर को हर महीने तीन लाख 25 हजार रुपये मिलते हैं। रवि इंद्र सिंह, बलविंदर सिंह को हर महीने दो लाख 75 हजार रुपये की राशि मिलती है। वहीं 10 बार के विधायक की पेंशन छह लाख 62 हजार प्रतिमाह है। अब सभी पूर्व व मौजूदा विधायकों को सिर्फ 75 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। मान सरकार पांच साल में 80 करोड़ रुपये की बचत करेगी और यह राशि जन कल्याणकारी कार्यों में खर्च की जाएगी। इस फैसले में एक और पेच भी अटका हुआ है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस फैसले का पंजाब को कोई वित्तीय लाभ नहीं होगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब रिटायर होता है तो उसे उस समय के नियमों के मुताबिक ही पेंशन मिलती है। जब 2004 में सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की तो यह केवल नए कर्मचारियों पर ही लागू हुई न की पुराने कमचारियों पर। यही फार्मूला विधायकों की पेंशन पर भी लागू हो सकता है। हालांकि सरकार कानून बना कर ऐसा कर सकती है और विधानसभा में बहुमत होने के चलते आम आदमी पार्टी के लिए ये बिल्कुल भी मुश्किल नहीं होने वाला। क्या ये पुरानी पेंशन बहाल न करने का संकेत है ! नेताओं को मिलने वाली एक से अधिक पेंशन को लेकर लंबे समय से देश में बहस छिड़ी हुई है। वन पर्सन वन पेंशन की मांग कई संगठन उठाते रहे है। वहीं पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में नई पेंशन के विरोध में भी कर्मचारी लामबंद होते दिखे है। कर्मचारियों का अक्सर ये सवाल रहा है कि जहां उन्हें नए पेंशन सिस्टम के जरिये एक पेंशन भी ढंग से नहीं मिल पाती वहीं नेताओं को दो तीन पुरानी पेंशन आखिर क्यों दी जाती है। कर्मचारियों को मनाने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने तो पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा भी कर दी। ऐसे में कई राज्यों पर पुरानी पेंशन बहाली को लेकर दबाव है। इस बीच अब पंजाब ने विधायकों की पेंशन और भत्तों में कटौती कर दी है। अब एक तरफ कर्मचारी इसे बड़ा निर्णय बता खुश हो रहे है तो दूसरी तरफ कुछ का मानना है कि सरकार द्वारा उनका एक बड़ा मुद्दा खत्म कर दिया गया है और शायद ये कर्मचारियों को पुरानी पेंशन न देने का एक संकेत हो सकता है।
देश के पांच बड़े राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ने लगे हैं। इसी को लेकर अब हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस पार्टी ने इसे मुद्दा बनाते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोला है। कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता और विधायक आशा कुमारी का कहना है कि जब चुनाव नहीं होते हैं तो भाजपा के लोग पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ा देते हैं और ठीकरा पेट्रोल और डीजल कंपनी पर फोड़ते हैं। भाजपा कहती है यह हमारे हाथ में नहीं है क्योंकि पेट्रोल कंपनियां और डीजल कंपनी ही रेट बढ़ा रही है, लेकिन जब चुनाव नजदीक होते हैं तो भाजपा पेट्रोल और डीजल के दाम तुरंत रोक देती है। इससे साफ जाहिर होता है कि भाजपा लोगों को लूटने में लगी हुई है ,जिससे लोग परेशान है। आशा कुमारी का कहना है कि यह दाम ऐसे ही बढ़ते जाएंगे और लोग परेशान होते रहेंगे लेकिन भाजपा को सिर्फ सत्ता चाहिए और उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं । उनका कहना है कि जिस तरह से चुनाव होने के बाद बीजेपी ने लगातार महंगाई से लोगों को त्रस्त किया है, पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ाए है उसका जवाब आगामी विधानसभा चुनाव में जनता देगी।
विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में सियासी उठापटक देखने को मिल रही है। नेता एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी कर रहे हैं। इसी कड़ी में वन मंत्री राकेश पठानिया ने कांग्रेस और आप पर निशाना साधा है। पठानिया का कहना है कि आज देश कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है। कांग्रेसी नेता भी अब जान चुके हैं कि जिस कश्ती में वे सवार हैं, उस कश्ती में छेद हो गया है। यही वजह है कि कांग्रेस से हताश परेशान होकर नेता आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे हैं। पठानिया का कहना है कि हिमाचल में आप का कोई वजूद नहीं है और ना ही आने वाले समय में होगा। हिमाचल के अलग समीकरण हैं और पंजाब के अलग। पंजाब के लोग अकाली और कांग्रेस दोनों से परेशान थे जिसकी वजह से आप पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब हो गई ।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक है और नेताओं में आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर भाजपा पर जमकर निशाना साध रहे है। उनका कहना है कि कांग्रेस इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी। प्रदेश में क्षेत्रीय दलों का कोई अस्तित्व नहीं रहा है। चुनावों में कांग्रेस का मुकाबला सत्तासीन भाजपा के साथ होगा। आम आदमी पार्टी पहाड़ी प्रदेश में अपनी जड़ें नहीं जमा पाएगी। उनका कहना है कि भाजपा सरकार के पूरे हो रहे कार्यकाल में प्रदेश में महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में पूरी तरह विफल साबित हुई है। प्रदेश की आर्थिक दशा पूरी तरह बिगड़ कर रह गई है। वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, जबकि करोड़ों रुपए की फिजूलखर्ची बड़े-बड़े विज्ञापन होर्डिंग लगाकर की जा रही है। उनका कहना है कि विकास जमीन पर दिखाई देता है, लेकिन विकास करने में नाकाम रही जयराम सरकार अब गांव और गली कूचों में जल जीवन मिशन के आए बजट में मितव्ययिता कर राजनीतिक मंसूबे पूरे करने के लिए अब होर्डिंग लगाने में जुटी है। कौल सिंह ठाकुर का कहना है कि जनता समझदार है और जानती है कि हर घर में नल कब लगे और समुचित पेयजल कब उपलब्ध हुआ। इसका जवाब चुनावों में जनता अवश्य देगी।
यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election Result) में प्रचंड जीत के बाद गुरुवार को योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया है। इसके साथ वह लगातार दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। केंद्रीय पर्यवेक्षक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और सह-पर्यवेक्षक व झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस बात का ऐलान किया है। वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश खन्ना ने योगी आदित्यनाथ को विधायक दल का नेता बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद सर्वसम्मति से उनको नेता चुना गया है।
पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को दूसरी बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है । धामी के साथ आठ मंत्रियों को भी राज्यपाल ने शपथ दिलाई। नई कैबिनेट में पुराने और नए चेहरों का मिश्रण किया गया है। इसमें धामी के पुराने मंत्रिमंडल के पांच मंत्रियों को फिर से जगह मिली है। वहीं, पिछली विधानसभा के अध्यक्ष रहे प्रेमचंद्र अग्रवाल को भी धामी कैबिनेट में शामिल किया गया है। नए चेहरों के रूप में सौरभ बहुगुणा और चंदन राम दास को भी इस कैबिनेट में शामिल किया गया है। पिछली बार जब धामी ने शपथ ली थी तो उनके साथ 11 विधायक मंत्री बनाए गए थे। इनमें से पांच, रेखा आर्य, सुबोध उनियाल, गणेश जोशी, सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को दोबारा मंत्री बनाया गया है । वहीं, तीन मंत्रियों अरविंद पांडेय, बिशन सिंह चुफाल और बंशीधर भगत को नई कैबिनेट में जगह नहीं मिली। इनकी जगह तीन नए चेहरे मंत्रिमंडल का हिस्सा होंगे। धामी मंत्रिमंडल तीन नए चेहरों को मौका मिला है। इनमें पिछली विधानसभा के अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल सबसे अहम हैं। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा को भी धामी कैबिनेट में जगह मिली है। 43 साल के बहुगुणा और रेखा आर्या धामी कैबिनेट के सबसे युवा चेहरे हैं। सौरभ सितारगंज से जीतकर लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं। सौरभ के दादा हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। बागेश्वर से जीते चंदन राम दास को भी कैबिनेट में जगह मिली है।
तो भाई को हटाकर भाई चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है। सोलन निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का ताजा हाल ये ही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहाँ ससुर दामाद आमने -सामने थे। वहीं 2022 में भाजपा टिकट के लिए दो भाइयों में मुकाबला देखने को मिल सकता है। पिछला चुनाव लड़ चुके डॉ राजेश कश्यप जहां चुनाव के लिए तैयार दिख रहे है, वहीं उनके बड़े भाई और दो बार सांसद रहे वीरेंद्र कश्यप भी चुनाव लड़ने से इंकार नहीं कर रहे। फर्स्ट वर्डिक्ट के साथ विशेष बातचीत में वीरेंद्र कश्यप ने कहा कि उनकी निजी इच्छा नहीं है किन्तु यदि पार्टी कहती है तो वे तैयार है। विदित रहे कि वीरेंद्र कश्यप के विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर काफी वक्त से कयास लग रहे है। दरअसल भाजपा का ही एक गुट डॉ राजेश कश्यप को पसंद नहीं करता। ऐसे में माहिर मानते है कि विरोधी वीरेंद्र कश्यप की एंट्री की बिसात पर डॉ राजेश कश्यप का पत्ता काटने से गुरेज नहीं करेंगे। हालांकि इसमें कोई संशय नहीं है कि फिलहाल तो भाजपा में डॉ राजेश कश्यप का ही सिक्का चल रहा है। पर पल -पल बदलती राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। वहीं हाल फिलहाल ही वीरेंदर कश्यप को भाजपा ने एक झटका भी दिया है। दरससल राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के लिए भाजपा ने डॉ सिकंदर कुमार को प्रत्याशी घोषित कर दिया है और इस घोषणा ने कई नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है। इनमे से एक नाम है प्रो वीरेंद्र कश्यप का भी है । प्रो वीरेंद्र कश्यप ने भी टिकट माँगा था लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। वीरेंद्र कश्यप वर्ष 2009 और 2014 में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे है लेकिन पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद कयास लग रहे थे कि वीरेंद्र कश्यप को प्रदेश की सियासत में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। 2019 में प्रदेश अध्यक्ष के पड़ के लिए भी उनका नाम चर्चा में रहा लेकिन तब कश्यप रेस में डॉ राजीव बिंदल से पिछड़ गए। इसके बाद वर्ष 2020 में जब स्वास्थय घोटाले के बाद डॉ राजीव बिंदल ने इस्तीफा दिया तब फिर प्रो वीरेंद्र कश्यप क नाम अध्यक्ष पड़ के लिए उछला लेकिन ताजपोशी हुई सुरेश कश्यप की। अब राज्यसभा के लिए भी पार्टी ने वीरेंद्र कश्यप को तवज्जो नहीं दी है। अब पार्टी विधानसभा में किस भाई को चुनती है और किसे नहीं ये देखना दिलचस्ब होगा।
- गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वालों को तवज्जो देती आ रही है आप - दल बदलने वाले नेताओं के क्या पूरे होंगे अरमान ? जिन्हें पता है कि कांग्रेस और भाजपा में दाल नहीं गलने वाली वो अब आप का रुख कर रहे है। पर सवाल ये है कि क्या आम आदमी पार्टी में इन नेताओं की दाल गलेगी। हिमाचल में अब तक जो नेता आप में गए है उनमें कांग्रेसी अधिक है, और अधिकांश ऐसे है जो विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक है। कोई पौंटा साहिब का विधायक बनना चाहता है, तो कोई फतेहपुर, नालागढ़ या अन्य किसी क्षेत्र का। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस में इन्हें टिकट मिलने की सम्भावना न के बराबर थी, सो इन्होंने मौके की नजाकत को समझते हुए आप का रुख कर लिया। ऐसा नहीं है कि भाजपा को खतरा न हो, भाजपा के भी कई नेता आप के संपर्क में बताये जा रहे है। विधायक बनने कि चाह में आगामी कुछ दिनों में कई भाजपा नेता भी आप में शामिल होते दिख सकते है। पर यक्ष प्रश्न ये है कि क्या दल बदलने वाले इन नेताओं को आप का टिकट मिलेगा ? यदि आप के दिल्ली और पंजाब मॉडल का विश्लेषण किया जाएँ तो पार्टी ने हमेशा गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए लोगों को तवज्जो दी है। ऐसे में क्या आम आदमी पार्टी हिमाचल में आम आदमी पर दल बदलकर आएं नेताओं को तवज्जो देगी, ये फिलवक्त बड़ा सवाल है। जानकार मानते है कि आम आदमी पार्टी वाकिफ है कि हिमाचल में आगामी विधानसभा चुनाव में कोई चमत्कार नहीं होगा, यहाँ पार्टी की कोशिश सिर्फ पाँव मजबूत करने की होगी। पार्टी के पास न जमीनी संगठन है और न चेहरा, ऐसे में रातों -रात सिर्फ पार्टी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा सकती है। ऐसे में मुमकिन है दल बदलने वाले कई नेताओं के टिकट का अरमान इस बार पूरा हो जाएं। सावधान कांग्रेस : कहीं खेल न बिगाड़ दे आप ! उधर आम आदमी पार्टी ने निश्चित तौर पर कांग्रेस की धड़कन बढ़ा दी है। 1990 से अब तक हर चुनाव में हिमाचल में बदलाव के लिए वोट होता आ रहा है और यदि ये वोट विभाजित होता है तो कांग्रेस का नुकसान तय है। भले ही कांग्रेस आप फैक्टर को नकार रही हो लेकिन गोवा और उत्तराखण्ड में आप व अन्य दलों ने कांग्रेस का खूब खेल बिगाड़ा है। गोवा में भाजपा और कांग्रेस गठबंधन के बीच आठ प्रतिशत वोट का अंतर रहा है। गोवा में आप ने 6 . 8 प्रतिशत और तृणमूल कांग्रेस ने 5 .2 प्रतिशत वोट हासिल किये, जो कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना। इसी तरह उत्तराखण्ड में कांग्रेस और भाजपा के बीच करीब साढ़े छ प्रतिशत वोट का अंतर रहा, जबकि बहुजन समाज पार्टी और आप ने मिलकर करीब आठ प्रतिशत वोट हासिल किये है। ऐसे में यदि आप हिमाचल में सात विरोधी वोट बाँट लेती है तो कांग्रेस का सत्ता वापसी का ख्वाब अधूरा रह सकता है।
सियासत में कुछ स्थायी नहीं होता, न नीति, न सिद्धांत। न कोई स्थायी मित्र होता है और न स्थायी शत्रु। यदि कुछ स्थायी है तो वो है अवसरवाद। 'पार्टी विथ डिसिप्लिन' भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। यहाँ भी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का सिद्धांत ही लागू होता है। ये विचार, ये भाव विरोधियों के नहीं है, अपितु खुद भाजपाइयों के है। दरअसल जब से पुष्कर सिंह धामी को उत्तरखंड का सीएम घोषित किया गया है हिमाचल भाजपा में मानो बवाल आ गया है। पार्टी आलाकमान के इस निर्णय से मानो धूमल समर्थकों के पुराने जख्म खुरच भी गए और उन पर नमक भी छिड़क गया। धूमल के निष्ठावान खुलकर सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे है। #मनमर्जियां वायरल हो रहा है और पार्टी के डबल स्टैण्डर्ड पर सवाल उठाये जा रहे है। दरअसल, हाल ही में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड जीत मिली है। भाजपा तो जीत गई लेकिन खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए। इसके बाद सवाल ये था कि क्या भाजपा खुद चुनाव हार चुके नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी। 11 दिन के इंतजार के बाद 21 मार्च को इस सवाल का जवाब मिला और आलाकमान ने धामी को ही मुख्यमंत्री बनाया। ठीक ऐसी ही स्थिति 2017 में हिमाचल प्रदेश में भी बनी थी। हालंकि तब पार्टी विपक्ष में थी लेकिन चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री प्रो प्रेमकुमार धूमल के चेहरे पर लड़ा गया था। तब अंतिम समय तक पार्टी ने सीएम फेस नहीं घोषित किया था लेकिन जब पार्टी की स्थिति बिगड़ती दिखी तो चुनाव से 10 दिन पूर्व धूमल को सीएम फेस घोषित करना पड़ा। दांव सही पड़ा और भाजपा सत्ता में लौटी, पर खुद धूमल चुनाव हार गए। तब धूमल समर्थकों ने उन्हें ही सीएम बनाने की मांग की, कई विधायकों ने अपनी सीट छोड़ने की पेशकश भी की। पर पुष्कर की तरह आलाकमान का आशीर्वाद धूमल को नहीं मिला। इसी बात की टीस धूमल समर्थकों में है। अब मौका हाथ लगा है तो समर्थक पार्टी के सिद्धांतो पर भी सवाल उठा रहे है और डबल स्टैंडर्ड्स पर भी। बहरहाल चुनाव हारने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मौका मिला है और कहा जा रहा है की पुष्कर फ्लावर नहीं फायर है। तो क्या धूमल में फायर कम थी ? या सीधे कहे तो क्या धूमल में अब भाजपा को फायर नहीं दिखती ? दरअसल ऐसा बिलकुल नहीं है। बेशक खुद प्रो प्रेम कुमार धूमल इस वक्त किसी उच्च पद पर न हो लेकिन उनके पुत्र अनुराग ठाकुर मोदी कैबिनेट में ताकतवर मंत्री भी है और राष्ट्रीय सियासत का उभरता सितारा भी। ऐसे में धूमल की उपेक्षा की बात में कोई तर्क नहीं दिखता। समर्थकों को ये भी सोचना होगा कि यदि धूमल इस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री होते तो क्या अनुराग भी केंद्रीय मंत्री बनते ?
- कौन - कौन आप में आएगा, 6 तारीख को पता चल जायेगा ! - आप में कई बड़े नेताओं के आने के कयास आप की एंट्री ने हिमाचल की ठंडी लग रही सियासत को ताप दे दिया है। पंजाब में मिली प्रचंड जीत के बाद अमूमन रोजाना हिमाचल से कई नेताओं के आप में जाने की खबरें आ रही है, विशेषकर कांग्रेस से। हालांकि इनमें पहली पंक्ति के नेता नहीं है, लेकिन दूसरी व तीसरी पंक्ति के कई नेता आप में शामिल हो चुके है। इस बीच 6 अप्रैल को आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय आयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मंडी में रोड शो करेंगे। माना जा रहा है कि इसी दौरान खाली पड़ी पहली पंक्ति भी कुछ हद तक भर दी जाएगी। कई नेताओं के आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने के कयास लग रहे है जिनमें कांग्रेस और भाजपा दोनों के नेता शामिल है। कई विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद भी आप के कांटेक्ट में बताये जा रहे है। यदि ऐसा होता है तो संभवतः 1998 के बाद पहली बार हिमाचल में कोई तीसरी पार्टी दमदार उपस्तिथि दर्ज करवाती दिख सकती है। अरविन्द केजरीवाल और भगवंत मान के रोड शो के लिए आप ने मंडी को चुना है। वहीं मंडी जो खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गढ़ है। यहाँ जयराम ठाकुर के प्रभाव को इसी आंकड़े से समझा जा सकता है कि मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भी भाजपा ने जिला के नौ संसदीय क्षेत्रों में से आठ में बढ़त बनाई थी। वीरभद्र सिंह के निधन के बाद सहानुभूति लहर भी यहाँ भाजपा को बढ़त लेने से नहीं रोक पाई। अब इसी मंडी में आप के रोड शो के कई मायने है। बड़ा सवाल ये है कि क्या आप मुख्यमंत्री के घर में ही भाजपा को कोई झटका देने वाली है। ऐसा इसलिए भी है क्यों कि 6 अप्रैल को भाजपा के कई नेताओं के आप में शामिल होने के कयास लग रहे है। बहरहाल इसमें कितनी हकीकत है ये तो 6 तारीख को ही पता चलेगा। पंडितजी के परिवार पर निगाहें : मंडी की सियासत का जिक्र पंडित सुखराम एंड फॅमिली के बगैर अधूरा है। पंडित जी और पोते आश्रय शर्मा फिलहाल कांग्रेस में है और उनके बेटे और मंडी सदर विधायक अनिल शर्मा भाजपा में। पर दोनों ही तरफ इस परिवार को तवज्जो मिलती नहीं दिख रही। ऐसे में सवाल ये है कि क्या आम आदमी पार्टी पंडित जी के परिवार का अगला ठिकाना हो सकता है ? हालांकि खुद अनिल शर्मा इससे इंकार कर रहे है, पर सियात में इंकार कब इकरार में बदला जाए पता नहीं चलता।
एक ऐसी राजकुमारी जो देश को आज़ाद करवाने के लिए तपस्वी बन गयी, एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता बनी, महात्मा गाँधी से प्रभावित हो कर आज़ादी के आंदोलन से जुडी, जेल गई। आज़ादी के बाद हिमाचल से सांसद चुनी गई और दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रही। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान भी उन्हें प्राप्त है। वो महिला थी राजकुमारी अमृत कौर। ये बहुत कम लोग जानते है की अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बनाने में राजकुमारी अमृत कौर का बड़ा हाथ है। शिमला के समर हिल में एक रेस्ट हाउस है, राजकुमारी अमृत कौर गेस्ट हाउस जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के स्टाफ के लिए है। देशभर में सेवाएं दे रहे एम्स के डॉक्टर, नर्स व अन्य स्टाफ यहाँ आकर छुट्टियां बिता सकते है, वो भी निशुल्क। दरअसल, ये ईमारत 'मैनरविल' स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर का पैतृक आवास थी। इसे अमृत कौर ने एम्स को डोनेट किया था। आज निसंदेह एम्स देश का सबसे बड़ा और सबसे विश्वसनीय स्वास्थ्य संस्थान है। इस एम्स की कल्पना को मूर्त रूप देने में राजकुमारी अमृत कौर का बड़ा योगदान रहा रहा है। उनके स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए ही एम्स बना, वे एम्स की पहली अध्यक्ष भी बनाई गई। उस दौर में देश नया - नया आज़ाद हुआ था और आर्थिक तौर पर भी पिछड़ा हुआ था। तब एम्स की स्थापना के लिए राजकुमारी अमृत कौर ने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमेरिका जैसे देशों से फंडिंग का इंतजाम भी किया था। एम्स की वेबसाइट पर भी इसके निर्माण का श्रेय तीन लोगों को दिया गया है, पहले जवाहरलाल नेहरू, दूसरी राजकुमारी अमृत कौर और तीसरे एक भारतीय सिविल सेवक सर जोसेफ भोरे। एम्स की ऑफिसियल वेबसाइट पर लिखा है कि भारत को स्वास्थ्य सुविधाओं और आधुनिक तकनीकों से परिपूर्ण देश बनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू का सपना था और आजादी के तुरंत बाद उन्होंने इसे हासिल करने के लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार किया। नेहरू का सपना था दक्षिण पूर्व एशिया में एक ऐसा केंद्र स्थापित किया जाए जो चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को गति प्रदान करे और इस सपने को पूरा करने में उनका साथ दिया उनकी स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने। राजपरिवार में जन्मी, करीब 17 साल रही महात्मा गांधी की सेक्रेटरी लखनऊ, 2 फरवरी 1889, पंजाब के कपूरथला राज्य के राजसी परिवार से ताल्लुख रखने वाले राजा हरनाम सिंह के घर बेटी ने जन्म लिया, नाम रखा गया अमृत कौर। बचपन से ही बेहद प्रतिभावान, इंग्लैंड के डोरसेट में स्थिति शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से स्कूली पढ़ाई पूरी की। किताबों के साथ -साथ खेल के मैदान में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। हॉकी से लेकर क्रिकेट तक खेला। स्कूली शिक्षा पूरी हुई तो परिवार ने उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड भेज दिया। शिक्षा पूरी कर 1918 में वतन वापस लौटी और इसके बाद हुआ 1919 का जलियांवाला बाग़ हत्याकांड। इस हत्याकांड ने राजकुमारी अमृत कौर को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने निश्चय कर लिया कि देश की आज़ादी और उत्थान के लिए कुछ करना है, सो सियासत का रास्ते पर निकल पड़ी। राजकुमारी अमृत कौर महात्मा गाँधी से बेहद प्रभावित थी। उस समय उनके पिता हरनाम सिंह से मिलने गोपालकृष्ण गोखले सहित कई बड़े नेता आते थे। उनके ज़रिए ही राजकुमारी अमृत कौर को महात्मा गांधी के बारे में अधिक जानकारी मिली। हालांकि उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो आज़ादी की लड़ाई में भाग लें, राजकुमारी अमृत कौर तो ठान चुकी थी। वे निरंतर महात्मा गांधी को खत लिखती रही। 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की शुरुआत की और बाद में इसकी प्रेसिडेंट भी बनीं। इसी दौरान एक दिन अचानक राजकुमारी अमृत कौर को एक खत मिला, ये खत लिखा था महात्मा गांधी ने। उस खत में महात्मा गांधी ने लिखा, 'मैं एक ऐसी महिला की तलाश में हूं जिसे अपने ध्येय का भान हो। क्या तुम वो महिला हो, क्या तुम वो बन सकती हो? ' बस फिर क्या था राजकुमारी अमृत कौर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गईं। इस दौरान दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल भी गईं। वे करीब 17 सालों तक महात्मा गांधी की सेक्रेटरी रही। महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। ब्रिटिश हुकूमत ने लगाया था राजद्रोह का आरोप अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर सन् 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गईं। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार व संवैधानिक सुधार के लिए गठित ‘लोथियन समिति’ तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-संस्थापक महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना की गई। कौर इसकी सह-संस्थापक थीं। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ‘ऑल इंडिया विमेंस एजुकेशन फंड एसोसिएशन’ के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का सदस्य भी बनाया, जिससे उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह ‘अखिल भारतीय बुनकर संघ’ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। कौर 14 साल तक इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की चेयरपर्सन भी रहीं। देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनी कौर जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। राजकुमारी अमृत कौर सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं। वे लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं। वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं। इससे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी। यही नहीं इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं। स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर, ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया, राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग, और सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट। इन सभी के अलावा नई दिल्ली में एम्स की स्थापना में अमृत कौर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। टाइम मैगज़ीन ने दी वुमन ऑफ द ईयर लिस्ट में जगह दुनिया की मशहूर टाइम मैगज़ीन ने 2020 में बेटे 100 सालों के लिए वुमन ऑफ द ईयर की लिस्ट ज़ारी की थी। भारत से इस लिस्ट में दो नाम हैं, एक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जिन्हें साल 1976 के लिए इस लिस्ट में रखा गया। लिस्ट में शामिल दूसरा नाम है राजकुमारी अमृत कौर का, जिन्हें साल 1947 के लिए इस लिस्ट में जगह दी गई है।
उत्तराखंड में सीएम पर सस्पेंस खत्म हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विधायक दल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी को नेता चुना गया। इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी बतौर पर्वेक्षक मौजूद रहे। ये दोनों नेता आज एक विशेष प्लेन से देहरादून पहुंचे। धामी को नेता चुने जाने पर राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं पुष्कर धामी को बधाई देता हूं और मुझे विश्वास है कि उत्तराखंड इनके नेतृत्व में प्रगति करेगा। धामी सरकार चला चुके हैं। इन्हें सरकार चलाने का अनुभव है. छह महीने में धामी ने अपनी छाप छोड़ी है। राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ''उत्तराखंड में बीजेपी विधायक दल की बैठक में पुष्कर सिंह धामी को नेता चुने जाने पर मैं हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा निर्देशन में और धामी जी के नेतृत्व में उत्तराखंड का बहुआयामी और बहुत तेज़ गति से विकास होगा। '' बता दें कि उत्तराखंड में बीजेपी ने शानदार बहुमत तो हासिल कर लिया लेकिन मुख्यमंत्री धामी को खटीमा से हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सरकार का नेतृत्व कौन करेगा, इसे लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसे दूर करने के लिए बीजेपी में शीर्ष स्तर पर मंथन चला और अंत में धामी के नाम पर मुहर लगी। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कुल 70 में से 47 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं कांग्रेस ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की. बीएसपी को दो और निर्दलीय को दो सीटें मिली।
पंजाब में मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा कर दिया गया है। हरपाल चीमा को वित्त विभाग दिया गया है। वहीं गृह और आबकारी मंत्रालय सीएम भगवंत मान के पास ही रहेगा। 19 मार्च को पंजाब में 10 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी। जंडियाला के विधायक हरभजन सिंह ईटीओ को बिजली विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। गुरमीत सिंह मीत हेयर को शिक्षा मंत्री बनाया गया है। हरजोत सिंह बैंस को पर्यटन विभाग सौंपा गया है। डॉ. बलजीत कौर महिला एवं बाल विकास विभाग की बागडोर संभालेंगी। लालचंद कटारूचक्क को खाद्य आपूर्ति विभाग सौंपा गया है। लालजीत भुल्लर को परिवहन मंत्री बनाया गया है। ब्रह्म शंकर जिंपा को जल आपूर्ति विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं डॉ. विजय सिंगला को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है। पंजाब में अभी सात नए मंत्री बनने हैं। कई बड़े चेहरे अभी मंत्री पद से दूर हैं। इनमें अमृतसर से कुंवर विजय प्रताप, अमन अरोड़ा, सर्वजीत कौर माणुके, जय सिंह रोढ़ी, डॉ. रवजोत ग्रेवाल और प्रो. बलजिंदर कौर का नाम शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने आस्ट्रेलियाई समकक्ष स्काट मारिसन (Scott Morrison) के साथ शिखर वार्ता की। इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ही दोनों देशों में संबंध बहुत बेहतर हुए हैं। शिखर वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा और इनोवेशन, साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आने वाले समय में दोनों देश मिलकर काम करने वाले हैं। मोदी ने आगे कहा कि हमारा क्षेत्र बढ़ते परिवर्तन और बहुत दबाव का सामना कर रहा है और मुझे लगता है कि हमारे क्वाड लीडर्स ने हाल ही में हमें रूस के यूक्रेन पर आक्रमण पर चर्चा करने का भी एक बड़ा अवसर दिया है। CECA का शीघ्र पूरा होना महत्वपूर्ण पीएम ने कहा कि CECA (व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता) का शीघ्र पूरा होना दोनों देशों के आर्थिक संबंधों और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने कहा कि क्वाड में भी हमारे बीच अच्छा सहयोग चल रहा है और यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। बता दें कि शिखर सम्मेलन में भारत में ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा अब तक का सबसे बड़ा व्यापार समझौता होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि कैनबरा भारत में कई क्षेत्रों में 1,500 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा कर सकता है। इस महीने के अंत तक दोनों देशों के बीच जल्द फसल समझौता होने की भी उम्मीद है। फसल समझौते का उद्देश्य दोनों देशों या व्यापारिक ब्लॉकों के बीच कुछ सामानों पर व्यापार शुल्क को कम करना है।
आम आदमी पार्टी (AAP) ने राज्यसभा के लिए पांच उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) में आप को 92 सीटें मिली हैं। पंजाब कोटे से अब पार्टी मशहूर क्रिकेटर हरभजन सिंह (Harbhajan Singh), राघव चड्ढा (Raghav Chadha) और डॉ संदीप पाठक (Dr. Sandeep Pathak) को राज्यसभा भेजेगी। आप ने चौथे प्रत्याशी के रूप में लवली यूनिवर्सिटी के चांसलर अशोक कुमार मित्तल (Ashok Kumar Mittal) का नाम फाइनल किया है। संजीव अरोड़ा (Sanjiv Arora) पंजाब से पांचवें राज्यसभा प्रत्याशी होंगे। अरोड़ा कृष्णा प्राण ब्रेस्ट कैंसर केयर चैरिटेबल के फाउंडर हैं। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में बंपर जीत के बाद राज्यसभा के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है। हरभजन सिंह का नाम तो चर्चा में था, लेकिन बाकी दो को लेकर अटकलें चल रही थी। सोमवार को पार्टी की ओर से इस पर से सस्पेंस खत्म कर दिया गया पार्टी हरभजन को राज्यसभा मे भेजने के साथ-साथ राज्य के स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी भी दे सकती है। हरभजन के जिम्मे राज्य में खिलाड़ियों को सामने लाना और उनकी प्रतिभा को मांजने का काम होगा। 5 सीटें जीत सकती है आप अभी राज्यसभा में आप के तीन सांसद हैं। पंजाब में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव हो रहा है। माना जा रहा है कि इन सभी पांच सीटों पर आप जीत दर्ज कर सकती है और इस तरह से अप्रैल में उच्च सदन में आप के सांसदों की संख्या बढ़कर 8 हो सकती है। अभी राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के तीन सदस्य हैं और ये सभी दिल्ली से हैं। इनमें राज्यसभा सांसद संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एन. डी. गुप्ता हैं।
- जी 23 के तेवर तल्ख, बदलाव की सुगबुगाहट तेज ( फ़ोटो साभार- कार्टूनिस्ट अरविंद ) 'घर की कांग्रेस' से 'सबकी कांग्रेस' बने पार्टी, इसी मांग को लेकर कांग्रेस का जी - 23 गुट फिर सक्रिय है। इस मर्तबा जी -23 गुट के नेताओं के तेवर भी कुछ तल्ख दिख रहे है और कुनबा भी बढ़ता दिख रहा है। नेता सामूहिक और समावेशी लीडरशिप की मांग कर रहे है। गांधी परिवार को भी खुलकर मश्वरा दिया जा रहा है कि पार्टी की कमान अब नए लोगों को सँभालने दे। निसंदेह पांच राज्यों में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस का एक बड़ा तबका बदलाव की वकालत कर रहा है। अलबत्ता, पार्टी का एक बड़ा धड़ा अब भी गाँधी परिवार की जय जयकार करने में लगा है लेकिन इसमें कोई संशय नहीं है कि जल्द पार्टी में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। जानकार मानते है कि सम्भवतः कांग्रेस फिर विभाजित होने की दहलीज पर है। आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम की धुरी रही कांग्रेस, आजादी के बाद अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी। एक वक्त था जब इस 'ग्रैंड ओल्ड पार्टी' को केंद्र की सत्ता में पूरे 25 सालों तक कोई सीधी टक्कर देने वाला भी नहीं था। आज आलम ये है कि कांग्रेस देश के केवल पांच राज्यों तक ही सीमित रह गई है, जिनमें से तीन में वो सिर्फ गठबंधन सरकार का हिस्सा है। आजादी के बाद से अभी तक 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें गैर-नेहरू-गांधी परिवार के सात लोगों ने कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला है। यूँ देश की आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी के कुल 19 अध्यक्षों में सिर्फ पांच गांधी - नेहरू परिवार से रहे हैं। पर गौर करने लायक बात ये है कि अध्यक्ष पद पर इस परिवार का कब्ज़ा 37 सालों तक रहा है। वहीँ इन 75 वर्षों में से 53 वर्ष तक कांग्रेस ने सत्ता भोगी है। दिलचस्प बात ये है कि 53 में से 36 वर्षों तक प्रधानमंत्री की गद्दी गाँधी -नेहरू परिवार के पास रही है। पर अब 2014 से गाँधी परिवार की अगुवाई में कांग्रेस का ग्राफ निरंतर गिरता जा रहा है। ये है कारण है कि पार्टी के भीतर ही गाँधी परिवार के खिलाफ विद्रोह के सुर दिख रहे है। वहीँ कुछ नेता खुलकर गाँधी परिवार के खिलाफ बोलने से तो बच रहे है, लेकिन पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का मुद्दा उठा रहे है। तीन साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं ! कांग्रेस की वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी पार्टी अध्यक्ष के पद पर 1998 से 2017 तक विराजमान रही है। 19 साल तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहने का उनका सबसे लंबा रिकॉर्ड है। कांग्रेस 2004 और 2009 में सोनिया के नेतृत्व में सत्ता पर काबिज हुई और इस दरमियान कांग्रेस के युवराज के तौर पर राहुल राजनीति में कदम रखकर पार्टी में अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहे। युवराज को महाराज बनाने का औपचारिक ऐलान साल 2017 में हुआ, जब राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। राहुल के नेतृत्व में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में कांग्रेस की जीत हुई। किन्तु 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस की करारी शिकस्त ने राहुल को अध्यक्ष पद छोड़ने को विवश कर दिया। राहुल परंपरागत सीट अमेठी भी हार गए। तदोपरांत राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और तब से पार्टी के पास कोई पूर्ण कालिक अध्यक्ष तक नहीं है। सोनिया गाँधी ही बतौर कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी की कमान संभाल रही है। हार का ठीकरा सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के सर क्यों ? उधर पांच राज्यों में मिली शिकस्त के बाद जैसा अपेक्षित था कांग्रेस में बैठकें हुई और इस बार एक्शन भी हुआ। पांचो राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का इस्तीफा माँगा गया। कहते है सीडब्लूसी की बैठक में सोनिया गाँधी ने भी इस्तीफे की पेशकश की। यहाँ सवाल उत्तर प्रदेश को लेकर भी उठ रहे है जहाँ कमान खुद प्रियंका गाँधी संभाल रही थी। पूरे चुनाव के दौरान प्रियंका गाँधी खुद को पार्टी का चेहरा बता रही थी, फिर हार का ठीकरा सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के सर क्यों ?
ये निर्विवाद तथ्य है कि देश में इस वक्त भाजपा सबसे मजबूत राजनैतिक दल है और उसे टक्कर देने में मोटे तौर पर कांग्रेस विफल रही है। हाल ही में हुए 5 राज्यों के चुनाव में भाजपा ने अपना लोहा मनवाया है। दूसरी तरफ कांग्रेस आगे बढ़ने के बजाए एक और कदम पीछे हो गई है। भाजपा और कांग्रेस के प्रदर्शन से इतर आम आदमी पार्टी भी पंजाब में शानदार जीत दर्ज कर देश के सियासी समीकरणों को बदलती नजर आ रही है। भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का वजूद हमेशा ही रहा है, आजादी से पहले राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में भी और आजादी के बाद भी। किन्तु उनकी भूमिका सिर्फ उनसे संबंधित राज्यों तक ही सीमित रही। हालांकि अब आम आदमी पार्टी इन परिस्थितियों को बदलती नज़र आ रही है। दिल्ली में कामयाबी से अपनी सरकार चलाने के बाद आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भी कमाल कर दिखाया है। ज़ाहिर है पार्टी अब राष्ट्रीय दल बनने के पथ पर अग्रसर है। फिलवक्त देश में आठ राष्ट्रीय दल है और आम आदमी पार्टी भी इनमें जगह बनाने की पूरी कोशिश कर रही है। अलबत्ता अभी आम आदमी पार्टी के लिए मंज़िल दूर सही, मगर असंभव नहीं। आप की इस जीत से राष्ट्रीय राजनीति के साथ साथ हिमाचल के सियासी समीकरण भी बदलते नज़र आ रहे है। ये पहले से ही तय माना जा रहा था कि अगर पार्टी पंजाब में बेहतर करती है तो इसकी आवाज़ हिमाचल प्रदेश में भी गूंजेगी। पंजाब में आप की बंपर जीत से हिमाचल प्रदेश में सियासी सुगबुगाहट तेज़ हो गई है। पार्टी काफी लम्बे समय से हिमाचल में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। सियासी माहिर मान रहे है कि हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी (आप) की दस्तक आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा की रणनीति पर भारी पड़ सकती है। ये लगभग तय है कि शिमला नगर निगम चुनाव से आप हुंकार भरेगी और विधानसभा चुनाव में दमखम से उतरेंगी। राष्ट्रीय पार्टी का टैग हासिल करना लक्ष्य : देशभर में एक तबका आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देखने लगा है। वर्तमान में कांग्रेस और आप दोनों ही दलों की सरकारें दो -दो राज्यों में है। अब निश्चित तौर पर आप का टारगेट राष्ट्रीय पार्टी का टैग हासिल करना है। राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए तीन शर्तें होती है, इन तीन शर्तों में जो पार्टी एक शर्त भी पूरा करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलता है। पहला कोई भी दल जिसे चार राज्यों में प्रादेशिक (क्षेत्रीय दल) का दर्जा प्राप्त है उस दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल होता है। दूसरा, कोई दल तीन अलग- अलग राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 2 फीसदी सीटें जीतता है। यानी कम से कम 11 सीटें जीतना जरूरी होता है, लेकिन यह 11 सीटें किसी एक राज्य से न होकर तीन अलग- अलग राज्यों से होनी चाहिए। तीसरा, यदि कोई पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधानसभा चुनाव में चार राज्यों में 6 फीसदी वोट हासिल करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है। निकट भविष्य में बेशक ये मुश्किल हो लेकिन आप की नजर हिमाचल या गुजरात में 6 से अधिक वोट हासिल करने पर होगी ताकि 2024 लोकसभा चुनाव में बेहतर कर वो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर सकें। हिमाचल : सत्ता विरोधी वोट बंटा तो कांग्रेस को होगी मुश्किल ! चुनाव परिणाम में वोट प्रतिशत पर गौर करें तो उत्तराखंड में आप को 3.31 प्रतिशत वोट, वहीं गोवा में आप को 6.77 प्रतिशत वोट हासिल हुए है। ये वोट प्रतिशत भले ही सत्ता पर काबिज होने के लिए नाकाफी है मगर अन्य राजनीतिक दलों के समीकरण बनाने और बिगड़ने के लिए काफी है। प्रदेश में आप भले ही बेहतर न कर पाए मगर माना जा रहा है कि आप के आने से कांग्रेस के लिए स्थिति मुश्किल हो सकती है। 1985 के बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में प्रदेश की जनता बदलाव के लिए सत्ता विरोधी वोट करती आ रही है और यदि ये सत्ता विरोधी वोट बांटने में आप कामयाब रही तो कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिर सकता है। वहीं एक तबका ऐसा भी है जो आप के दिल्ली मॉडल का मुरीद है, ऐसे में गुड गवर्नेंस की बात करने वाली भाजपा के लिए भी चुनौती कम नहीं होने वाली। कई नेता बदल सकते है पाला : हिमाचल का वर्तमान सियासी परिवेश आम आदमी पार्टी के लिए मुनासिब सिद्ध हो सकता है। दरअसल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां यहाँ अंतर्कलह से जूझ रही है और दोनों तरफ ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो पाला बदल सकते है। ऐसे में संभवतः आप के लिए हिमाचल में मौजूदगी दर्ज करवाना ज्यादा मुश्किल न हो। यूँ तो पार्टी यहां 2014 से पांव जमाने की कोशिश में है लेकिन न पार्टी के पास चेहरा है और न संगठन। पर अब मन जा रहा है कि आगामी कुछ दिनों में कई नेता आप ज्वाइन कर सकते है। पंजाब के चुनाव नतीजे के बाद हिमाचल प्रदेश में आप की सदस्यता लेने वालों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। बहरहाल, आप के सामने पहली चुनौती शिमला नगर निगम चुनाव की है।
नेतृत्व परिवर्तन अनिवार्य, अभी नहीं तो कभी नहीं हिन्दुस्तान की सबसे बुजुर्ग पार्टी कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए 440 वाट का झटका साबित हुए है। पंजाब की सत्ता भी कांग्रेस के हाथों से खिसक गई है, यानी अब देश में सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस सत्ता पर काबिज है। हालांकि अन्य तीन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है। वर्तमान स्थिति ये है कि पार्टी की विश्वसनीयता और नेतृत्व, दोनों सवालों के घेरे में है। स्पष्ट दिख रहा है कि लगातार मिल रही पराजय से कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता उदास है और हौंसला पस्त। पार्टी के पास फिलवक्त न दिशा है, न मजबूत चेहरा और न ही कोई ठोस रणनीति। सर्वविदित है की पार्टी का असल मर्ज बड़े नेताओं का बड़ा अहम और सुनहरे अतीत पर टिका उनका वहम है। मंथन और मंत्रणा तो खूब होती है पर किसी नतीजे पर पहुंच पार्टी की स्थिति सुधरती नज़र नहीं आ रही। पार्टी अपनी गलतियों, कमियों को दूर करने की बजाय उन्हें दोहराती जा रही है। ये कांग्रेस के लिए अलार्मिंग सिचुएशन है, यदि परिस्थितियों को अभी पक्ष में न किया गया तो फिर ये कभी नहीं हो पाएगा। पांच राज्यों में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि जनता के फैसले को विनम्रता से स्वीकार करें। हम इस हार से सीखेंगे। यहां सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस को और कितना सीखना बाकी है। 137 साल पुरानी बुजुर्ग पार्टी के लिए ये संकेत अच्छे नहीं है। मई 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पीएम मोदी सत्ता में आए थे तब कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या नौ थी जो अब दो है। पार्टी 2014 के बाद से 45 में से सिर्फ पांच चुनाव जीत पाई है। लग रहा है कि कांग्रेस के साथ बुरा होना यही नहीं थमेगा। विधानसभा चुनावों में हारने वाली कांग्रेस को अब राज्यसभा में भी तगड़ा झटका लगने वाला है। कांग्रेस के हाथ से राज्यसभा में विपक्ष की नेता का दर्जा भी जा सकता है। इस साल राज्यसभा के लिए द्विवार्षिक चुनाव होने के बाद, कांग्रेस के सदस्यों की संख्या में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिल सकती है। ऐसे में विपक्ष के नेता की स्थिति को बनाए रखने के लिए वह जरूरी संख्या के काफी नजदीक आ जाएगी। अगर पार्टी इस साल के अंत में हिमाचल और गुजरात चुनावों और अगले साल कर्नाटक विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थ रही तो राज्यसभा में विपक्ष की नेता का दर्जा भी खो देगी। नेतृत्व पर सवाल, कब होगा बदलाव : पार्टी की परफॉरमेंस के चर्चे बाहर ही नहीं अंदर भी खूब हो रहे है। आत्ममंथन के लिए हुई पार्टी की बैठक में कुछ बड़े नेताओं ने सीधे तौर पर पार्टी के नेतृत्व को आढ़े हाथों लिया है। सम्भवतः पार्टी में आपसी अंतर्कलह अभी और अधिक बढ़ सकता है। इस बीच जी 23 के नेताओं की बैठक भी हुई है जिससे आगामी दिनों में पार्टी के भीतर ही अंतर्कलह बढ़ता दिख रहा है। वहीँ शशि थुरूर सहित कई बड़े नेताओं ने पार्टी में परिवर्तन अनिवार्य बताया है। आधे राज्यों में भाजपा सरकार : भाजपा देश के 18 राज्यों में अपनी सरकार बरकरार रखने में कामयाब रही है। इन राज्यों में देश की करीब 50 फीसदी आबादी रहती है। यानी, देश की करीब आधी आबादी वाले राज्यों में भाजपा की सरकार हैं। वहीं, कांग्रेस की सरकार अब पांच राज्यों तक ही सिमटकर रह गई है। इनमें भी केवल दो राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई जबकि तीन राज्यों में गठबंधन की सरकार है। इसी साल दो राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है, गुजरात व हिमाचल प्रदेश। गुजरात में कांग्रेस कमजोर दिख रही है और निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी की एंट्री ने उसकी चिंता और बढ़ा दी है। जबकि हिमाचल में भी आप की एंट्री कांग्रेस को भारी पद सकती है। ये है हाल -ए -कांग्रेस : माना जा रहा है की संगठनात्मक रूप से कमजोर ढांचा, आधी अधूरी चुनावी तैयारियां, राष्ट्रीय नेताओं का चुनाव प्रचार में रुचि न लेना और राज्य के नेताओं के आपसी मतभेद कांग्रेस की नैया डुबोने के अहम कारण रहे। चुनावों से पहले पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी जबकि उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इन चार राज्यों में सत्ता वापसी करने का कांग्रेस के पास मौका था। सबसे बड़े राज्य यूपी की अगर बात करें तो कांग्रेस ने यहां 399 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। 399 में से कांग्रेस को केवल दो सीटों पर जीत हासिल हुई और सिर्फ चार सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। राज्य में कांग्रेस की सिर्फ सीट ही कम नहीं हुई है बल्कि वोट शेयर में भी बड़ी गिरावट देखी गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 6.25 प्रतिशत वोट मिले थे। तब कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनावी मैदान में उतरी थी। इस बार एकला चलो रे की नीति रणनीति को अपनाते हुए पार्टी सिर्फ 2.33 प्रतिशत मत ही हासिल कर पाई है।
पंजाब में बेहतरीन जीत दर्ज करने के बाद अब आम आदमी पार्टी की नज़रें हिमाचल की सत्ता पर है। अब हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस भाजपा के नेताओं का आम आदमी पार्टी में शामिल होने का सिलसिला शुरू हो गया है। भाजपा के पूर्व पार्षद के पार्टी में शामिल होने के बाद अब कॉंग्रेस को झटका लगा है। हिमाचल के प्रदेश के नालागढ़ के रहने वाले धर्मपाल चौहान जो की कांग्रेस के प्रदेश सचिव और भूतपूर्व सोलन ज़िला परिषद चेयरमैन रहे हैं, आम आदमी पार्टी का दामन थाम चुकले है । दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी रत्नेश गुप्ता द्वारा उन्हें पार्टी में शामिल किया गया है । इस मौक़े पर संगठन चेयरमैन सतीश ठाकुर मौजूद रहे । धर्मपाल चौहान ने कहा कि आम आदमी पार्टी को चुनने का एकमात्र कारण यही है कि आम आदमी पार्टी मौजूदा स्थिति में एकमात्र ऐसी पार्टी है जो आम जनता के बारे में सोचती है और जो भी कहती है वह कर के दिखाती है। केजरीवाल आज पूरे देश में जनता के नायक हैं और उनके काम और सेवा भाव का में क़ायल हूँ। उन्होंने कहा वे भूतपूर्व में कांग्रेस पार्टी में विभिन्न पदों पर रह कर सचिव पद छोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए है । कांग्रेस में परिवारवादी नेता ही पार्टी और देश को खोखला करने में लगे हैं । साथ ही उन्होंने केजरीवाल और हिमाचल प्रदेश प्रभारी रत्नेश गुप्ता का आभार जताया। वहीं प्रदेश प्रभारी रत्नेश गुप्ता ने कहा कि आम आदमी पार्टी की नीतियों से प्रभावित हो कर हिमाचल में आम आदमी के साथ साथ भाजपा कांग्रेस के नेता पार्टी में शामिल हो रहे है और पंजाब के बाद अब हिमाचल में आम आदमी पार्टी जीत का परचम लहरायेगी। हिमाचल की जनता भाजपा कांग्रेस के शासन से दुखी हो गई है और आम आदमी पार्टी हिमाचल की जनता को विकल्प देने जा रही है।
फर्स्ट वर्डिक्ट। शिमला मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने आज नार्थ ब्लॉक नई दिल्ली में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भेंट की। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से राज्य के सेब उत्पादकों के हित में सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के सेब भारतीय बाजार में आ रहे हैं, जिससे राज्य की सेब अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। उन्होंने औद्योगिक विकास अनुदान योजना को दो वर्ष और बढ़ाने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह योजना चालू वर्ष में समाप्त हो रही है। मुख्यमंत्री ने मंडी हवाई अड्डे के निर्माण के लिए विशेष केंद्रीय सहायता उपलब्ध करवाने का भी आग्रह किया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के लिए विशेष केन्द्रीय सहायता बढ़ाने का भी आग्रह किया।उन्होंने केंद्रीय मंत्री को आगामी वित्त वर्ष के लिए प्रस्तुत किए गए बजट में महिला सशक्तिकरण योजनाओं पर अधिक ध्यान केंद्रीत करने के सम्बन्ध में भी विस्तार से जानकारी दी। मुख्य सचिव राम सुभग सिंह ने राज्य की विकासात्मक मांगों के बारे में अवगत करवाया।केंद्रीय वित्त मंत्री ने मुख्यमंत्री को राज्य के लिए हर संभव सहायता उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट की मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने आज नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट की। उन्होंने केंद्रीय मंत्री से सिरमौर जिला के ट्रांस गिरि क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र और हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति घोषित करने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र के आसपास के इलाके को पहले ही जनजातीय क्षेत्र घोषित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि सिरमौर जिला के ट्रांस-गिरी क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करना क्षेत्र के लोगों की जायज मांग है। क्योंकि इससे 144 पंचायतों की लगभग तीन लाख आबादी लाभांवित होगी। उन्होंने कहा कि इससे न केवल इस क्षेत्र के लिए अतिरिक्त और विशेष बजट सुनिश्चित होगा, बल्कि इस क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग को भी पूरा किया जा सकेगा। उन्होंने राज्य में क्रियान्वित की जा रही विभिन्न विकासात्मक योजनाओं के बारे में भी चर्चा की और केंद्र के हर संभव सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने बजट में प्रस्तावित कल्याणकारी योजनाओं पर भी प्रकाश डाला। मुख्य सचिव राम सुभग सिंह ने बैठक में बहुमूल्य जानकारी दी। केंद्रीय गृह मंत्री ने राज्य की मांगों को धैर्यपूर्वक सुना और हर संभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया।
विनायक ठाकुर। जसवां परागपुर जसवां-परागपुर कांग्रेसी नेता सुरिंद्र मनकोटिया ने कहा कि राजनीति जन सेवा का बेहतरीन साधन साबित होता है। मनकोटिया ने कहा कि आम आदमी के भरोसे का सबसे ज्यादा खून बीजेपी के राज में हुआ है। मनकोटिया ने कहा कि झूठ वायदे करके जनादेश ठगना राजनीति की गलत परम्परा है, जिसको बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद लगातार स्थापित करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी व महंगाई मौजूदा दौर में आम आदमी का सबसे बड़ा मुद्दा व मसला बना हुआ है, लेकिन खेदजनक यह है कि बीजेपी इस मुद्दे को लगातार नकारती हुई देश और प्रदेश में तानाशाही कायम करना चाह रही है। लगातार जनता के हितों को नजरअंदाज करके पूूंजीपतियों की पैरवी करने वाली बीजेपी ने राष्ट्रवाद के नाम पर पूंजीवाद कायम करने का काम किया है। प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 14 लाख शिक्षित बेरोजगारों की फौज रोजगार की आस में मारी-मारी फिर रही है। हालांकि हकीकत में बेरोजगारी का आंकड़ा दर्शाए गए सरकारी आंकड़े से दोगुना से ज्यादा है। बीजेपी ने अमीर और गरीब की खाई को इतना गहरा व चौड़ा कर दिया है कि आने वाले समय में समाज में समानता कायम करने के प्रयासों को एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखा व समझा जा रहा है, लेकिन गरीबों से मत लेकर सत्ता में आई बीजेपी अमीरों की वकालत व उनके हितों को पोषित करने में लगी है। सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सत्ता के दबाव में कुचला जा रहा है। ऐसे में बीजेपी का ध्यान आम आदमी के हितों से लगातार हटा है। मनकोटिया ने कहा कि आम आदमी के आक्रोश का आलम यह है कि बीजेपी की सत्ता के बावजूद प्रदेश में हुए 4 उपचुनावों में जनता ने सत्ता के खिलाफ अपना गुस्सा निकाला है और आने वाले समय में अब आक्रोशित जनता बीजेपी का सूपड़ा साफ करके ही दम लेगी, यह निश्चित है। शायद यही कारण है कि बीजेपी का सारा सिस्टम अब अपने-अपने हितों को पोषित करने में जुट चुका है। क्योंकि अब बीजेपी के लोग भी मान चुके हैं कि प्रदेश में बीजेपी जाने वाली और कांग्रेस आने वाली है।
चुनाव नजदीक आते ही भाजपा सरकार द्वारा जनहित में किए कार्याें को अपना बता कर झूठा प्रचार कर रहे वर्तमान विधायक मनाेज कुमार। कांगड़ा भारतीय जनता पार्टी कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र के वरिष्ठ नेताओं पूर्व विधायक संजय चौधरी, सुरेंद्र काकू, भाजपा प्रदेश सचिव वीरेंद्र चौधरी, जिला परिषद अध्यक्ष रमेश बराड़, मंडल अध्यक्ष सत प्रकाश सोनी, बबीता संधू तथा रेखा ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक यह दुष्प्रचार कर रहे हैं कि कांगड़ा में भाजपा बिखरी है, विधायक के मुंगेरीलाल जैसे हसीन सपने जैसा है। कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र की भाजपा चट्टान की तरह मजबूत तथा एकजुट है। वर्तमान विधायक पवन काजल पिछले 10 वर्षाें से विधानसभा में कोई खास विकास का कार्य नहीं कर पाए। यह बजट में नौकरी की बात करते हैं, परंतु यह भूल गए कि इन्होंने युवाओं को 5000 नौकरी देने का वायदा किया था, जिसमें कि यह एक भी व्यक्ति को नौकरी नहीं दे पाए, जो कि झूठ साबित हुआ है। उन्हाेंने कहा कि विधायक जहां कहीं भी जाते हैं, वहां पहले से ही स्वागत का समान हार, पकौड़े, टेंट लगाने के पैसे तथा चाय के लिए पैसे भेज देते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा दिखावा किया जा सके, परंतु जनता बहुत समझदार है। इस बार वह विधायक को हराने के मूड़ में है। इस बार इनका तंबू जनता द्वारा उखाड़ दिया जाएगा। वैसे तो वर्तमान कांग्रेस विधायक पिछले 10 वर्षाें विधानसभा से गायव रहे, परंतु अब विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही लोगों को भाजपा सरकार द्वारा जनहित में किए गए कार्याें को अपना बता कर झूठ का प्रचार कर रहे हैं। इन नेताओं ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी एक थी, एक है और एक रहेगी और विधायक यह भूल चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में वह कांगड़ा विधानसभा से करीब 23623 वोटों से पीछे रहे थे तथा वह लोकसभा चुनाव 477685 वोटों से हारे जो कि 75 प्रतिशत होता है, पूरे हिंदुस्तान में वह अकेले ऐसे लोकसभा प्रत्याशी थे, जो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। यह सब इनकी दोगली कार्यप्रणाली से हुआ। भविष्य में भी आने वाले विधानसभा चुनावों में यह अपनी कार्यप्रणाली से हारेंगे तथा भाजपा तथा जनता एकजुट होकर चुनाव में पवन काजल को हार का मुंह दिखाएगी।
फर्स्ट वर्डिक्ट। नई दिल्ली रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन के शहरों पर हमला बोला था। रूस अब तक यूक्रेन के कई शहरों को तबाह कर चुका है। युद्ध के चलते यूक्रेन के लाखों लोग अन्य देशों में शरण ले चुके हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की, पीएम मोदी से युद्ध को लेकर रूस के बातचीत करने का आग्रह भी कर चुके हैं। रूस और यू्क्रेन के बीच युद्ध अभी भी जारी है। यूक्रेन पर रूस के हमले का आज 12वां दिन है। इसी बीच देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बातचीत करेंगे। सरकारी सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी आज दोनों देशों के राष्ट्रपति से फोन पर बातचीत करेंगे। वहीं रूस और यूक्रेन के बीच तीसरे दौर की बातचीत आज हो सकती है, जिस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। रूस के हमले के एलान के बाद यूक्रेन के राजदूत ने प्रधानमंत्री मोदी से पूरे मामले में हस्तक्षेप की अपील की थी। यूक्रेन के राजदूत ने कहा था कि यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे तनाव में भारत अहम भूमिका अदा कर सकता है। उन्होंने पीएम मोदी से अपील करते हुए कहा कि वो तुरंत यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से इस बारे में बात करें। राजदूत ने कहा था कि मोदी इस समय बहुत बड़े नेता हैं, हम उनसे मदद की अपील करते हैं, दुनिया में तनाव को भारत ही कम कर सकता है।
पांच राज्यों में भाजपा का बड़ा इम्तिहान, 10 मार्च को नतीजे 10 मार्च 2022, वो तारीख़ जो देश की मौजूदा सियासी तस्वीर बदलने में या बरकरार रखने में अहम भूमिका निभा सकती है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे 10 मार्च को सामने आने वाले है। विपक्ष के साथ-साथ सत्तारुढ़ भाजपा के लिए भी यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे है। दरअसल, साल 2022 देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है। ऐसा इसलिए है कि इस वर्ष की शुरुआत में हो रहे 5 राज्यों व साल के अंत में होने वाले 2 राज्यों के चुनाव केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इनमें से 6 राज्यों में भाजपा की सरकार है। साथ ही इन 7 राज्यों के चुनाव लोकसभा की 132 सीटों को प्रभावित करेंगे। एक हजार से अधिक नए विधायक चुने जाएंगे जो 2022 में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव और राज्यसभा का शक्ति संतुलन तय करेंगे। इसीलिए हर राजनैतिक दल कोई कसर नहीं छोड़ रहा। बहरहाल पांच राज्यों के नतीजे 10 मार्च को आने है और कयासों का दौर जारी है। फिलवक्त देश के जिन जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से चार में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। पंजाब को छोड़कर, भाजपा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में एक बार फिर से सरकार बनाने की कोशिश में है। 10 मार्च को जब चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे, तो यहां भाजपा की सफलता या असफलता की व्याख्या केवल इन राज्यों तक ही सीमित नहीं रहेगी। लोकसभा के समीकरण को ध्यान में रखते हुए भी इसके विश्लेषण किए जाएंगे। भाजपा के लिए 2014 के बाद कुछ सालों तक गवर्नेंस के स्तर पर भले ही चुनौतियां आती रही हैं, लेकिन राजनीतिक जमीन पर पार्टी धुआंधार बैटिंग करती रही। हालाँकि पिछले कुछ समय से राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा है। 2019 आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी को चुनावी अभियान में तमाम राज्यों में उनकी सरकार होने का लाभ मिला था। मगर 2019 के बाद से बीजेपी महाराष्ट्र, झारखंड जैसे राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है। हरियाणा में भले पार्टी ने सरकार बनाई, लेकिन बहुमत से दूर रही। 2020 में पार्टी ने बिहार में गठबंधन की सरकार बनाई पर दिल्ली में पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई । इसके बाद 2021 में हुए 5 राज्यों के चुनावों में से भाजपा असम और पुडुचेरी में सफल रही पर पश्चिम बंगाल चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा अनुसार नहीं रहा। ऐसे में ये 5 राज्यों के चुनाव पार्टी के मिशन 2024 के लिहाज से भी जरूरी है। पार्टी इन चुनावों में अच्छा नहीं कर पाई तो परिस्थितियां बदल सकती है। उत्तर प्रदेश से जाता है दिल्ली का रास्ता : चुनाव प्रचार के दौरान केंद्र की सत्ता में आसीन देश के इस सबसे बड़े राजनीतिक दल का ध्यान देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर कुछ अधिक नज़र आया है। यहां भाजपा के सामने बीते 34 वर्षों की परंपरा को तोड़ने की चुनौती है। उत्तर प्रदेश में तीन दशकों से कोई भी राजनीतिक दल लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं कर सका है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से अपार समर्थन मिला था। इस लिहाज से केंद्र में बीजेपी की सत्ता वापसी के लिए भी उत्तर प्रदेश खासे मायने रखता है।
फर्स्ट वर्डिक्ट। शिमला भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शशि दत्त एवं सह मीडिया प्रभारी कर्ण नंदा ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा पेश किए गए बजट को सामाजिक सुरक्षा एवं रोजगार केंद्रित करार दिया है। शशि दत्त ने कहा कि यह बजट ऐतिहासिक बजट है, इस बजट से जहां रोजगार के अवसर खोले गए हैं। वहीं, सामाजिक सुरक्षा पेंशन की आयु सीमा 60 वर्ष कर लाखों लोगों के भविष्य को सुरक्षित किया गया है। उन्होंने इस बजट को रोजगार, स्वरोजगार जनित, गरीबी उत्थान, कर्मचारी, व्यापारी, किसान-बागवान व महिलाओं का हितकर करार देते हुए कहा कि इसमें पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय बढ़ाया गया तथा शिक्षा क्षेत्र के लिए बड़े बजट की घोषणा की है। बजट में रोजगार को लेकर सरकार ने बेरोजगारों को बड़ी राहत दी है, इसी वर्ष 30 हजार बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा इसमें विभिन्न विभागों में भी भर्तियां की जाएंगी साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत, जल शक्ति विभाग सहित अन्य में हजारों कर्मचारियों के पद भी भरने का निर्णय लिया गया है, जिसमें स्वास्थ्य विभाग 780 आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती होगी। भाजपा नेताओं ने कहा प्रदेश में 500 डाक्टरों के पदों सहित 870 कम्युनिटी हेल्थ ऑफसिर के पदों सहित गृहरक्षकों की भर्तियां की जाएंगी। मुख्यमंत्री द्वारा पेश किए गए बजट में आंगनबाड़ी वर्कर्स का मानदेय 1700, आशा कार्यकर्ता 1825 रुपए तक बढ़ाया है, जो आज तक का सबसे बड़ी बढ़ोतरी की गई है। इसके अतिरिक्त एसएमसी व आइटी शिक्षकों के एक हजार रुपए बढ़ाए गए हैं। सिलाई अध्यापिका, जल रक्षक व मिड-डे मील वर्कर्स के 900 रुपए तथा पंचायत व राजस्व चैकीदार और नंबरदार को 900 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। 1000 नए आंगनबाड़ी केंद्र खोलने का निर्णय भी ऐतिहासिक निर्णय है। प्रदेश प्रवक्ता शशि दत्त एवं सह मीडिया प्रभारी कर्ण नंदा ने कहा कि बजट में तीन एलपीजी सिलेंडर मुफ्त देने की घोषणा सराहनीय है। उन्होंने कहा कि अब जिला परिषद अध्यक्ष को 15,000, उपाध्यक्ष को 10,000 सदस्य को 6000, बीडीसी अध्यक्ष को 9000, उपाध्यक्ष को 6500 व सदस्य को 5500 रुपए मिलेंगे। पंचायत प्रधान को भी 5500, उपप्रधान को 3500 व वार्ड पंच को ग्रामसभा बैठक का 300 रुपए मानदेय मिलेगा। सरकार द्वारा ऐसा कर पंचायती राज को सशक्त करने की ओर एक बड़ा कदम उठाया गया है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के इस जन हितैषी बजट से 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सशक्त रूप में उतरेगी तथा प्रदेश की जनता एक बार फिर संवेदनशील, शालीन, विकास पुरुष मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को फिर से मुख्यमंत्री बनाएगी। प्रदेश प्रवक्ता शशि दत्त ने इस ऐतिहासिक बजट के लिए मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया है।
वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सभी वर्गों को साधने का प्रयास किया है। ये मौजूदा सरकार के कार्यकाल का आखिरी और 5वां बजट था। 63 हजार करोड़ के कर्ज के बीच चुनावी साल में लोक लुभावना बजट पेश करना तलवार की धार पर चलने समान था। जयराम सरकार ने ही अपने चार साल के कार्यकाल में लगभग 22000 करोड़ का ऋण लिया है और हालत ये है कि पुराना कर्ज चुकाने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है। जाहिर है ऐसे में इस बजट से बहुत ज्यादा उम्मीदे नहीं की जा रही थी। बावजूद इसके खजाना खाली के साथ ही जयराम ठाकुर ने संतुलित बजट देने का प्रयास किया। 3 घंटे 2 मिनट के बजट भाषण में जयराम ठाकुर ने सभी वर्गों का ख्याल रखने का प्रयास किया। उधर, जैसा अपेक्षित था नेताओं ने बजट को सियासी चश्मे से देखा। विपक्ष ने बजट की कमियां और खामियां गिनाई और सात ही सियासी पोस्टमार्टम भी किया। इस चुनावी बजट करार दिया और बढ़ते कर्ज के बीच हुई घोषणाओं पर सवाल भी उठायें। सरकार द्वारा पेश किये इस बजट को विपक्ष पूरी तरह से दिशाहीन करार दिया। बजट को लेकर क्या रहा नेताओं का पक्ष, पेश है ये विशेष रिपोर्ट ............................................... ये सरकार कर्ज की बैसाखी से ही चलेगी : मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का कहना है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का सदन में प्रस्तुत किया हिमाचल का बजट केवल दशाहीन और दिशाहीन है। इस बजट में सरकार द्वारा प्रेदश के विकास का कोई जिक्र नहीं किया गया है। प्रदेश सरकार पहले ही कर्ज में डूबी है हुई है, ऐसे में इस बजट में की गयी घोषणाओं के लिए धनराशि कहां से आएगी इस बात का जवाब भी जयराम सरकार के पास नहीं है। इस बजट से साफ है कि सरकार कर्ज की बैसाखी से ही चलेगी। नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि बजट में कर्मचारियों के मसलों को लेकर भी कोई जिक्र नहीं किया गया है। सभी कर्मचारी वर्ग जो इस बजट से आस लगाए बैठे थे उनके बारे में सरकार ने कोई जिक्र तक नहीं किया है। इस बजट में संशोधित वेतनमान का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर भी जो कर्मचारी उम्मीद लगाए बैठे थे, उस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा पेश किये गए इस बजट से प्रदेश के विकास की राशि और कम होगी। प्रदेश में 14 लाख बेरोजगार हैं, उनके बारे में कोई जिक्र नहीं है। नेशनल हाईवे का कोई उल्लेख नहीं है। प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों के बारे में कोई चिंता नहीं है। कुल मिलाकर ये बजट महज आंकड़ों का दस्तावेज है। बजट में अर्थव्यवस्था सुधार के कोई उपाय नहीं : प्रतिभा सिंह सासंद प्रतिभा सिंह का कहना है कि बजट को लोकलुभावन बनाने की पूरी कोशिश की गई है। प्रतिभा सिंह ने कहा कि पिछले बजट में की गयी घोषणाएं अब तक पूरी नहीं हुई है और इस बजट में की गई घोषणाओं को पूरा करने का समय अब मुख्यमंत्री के पास बचा नहीं है। प्रदेश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था किसी से छिपी नहीं है और इस बजट में अर्थव्यवस्था सुधार के कोई भी उपाय नहीं सुझाए गए हैं। ये बजट पूरी तरह से दिशाहीन है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से निपटने की भी इस बजट में कोई कारगर योजना नहीं है। यह बजट महज आंकड़ों का दस्तावेज है, जो आगामी विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत राजनीतिक लाभ लेने के लिए लोगों को लुभाने के लिए बनाया गया है। चार साल के कार्यकाल में केवल माफिया का विकास हुआ : सुखविंदर सिंह सुक्खू पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और नादौन विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने बजट के बाद दी प्रतिक्रिया में जहां प्रदेश में हाल ही में हुए शराब प्रकरण को लेकर सरकार का घेराव किया है तो वहीँ कर्मचारियों की मांगों की अनदेखी के लिए भी सरकार को आड़े हाथों लिया है। विधायक सुखविंद्र सिंह सुक्खू का कहना है कि वर्तमान सरकार के चार साल के कार्यकाल में केवल माफिया का विकास हुआ है। हाल ही में राज्य में शराब कांड हुआ है जिसमे कई लोगो की जान गई, लेकिन सरकार ने इस विषय पर एक बार भी चर्चा नहीं की।सुक्खू का कहना है कि अवैध शराब के खिलाफ 2021 में पूर्व कांग्रेस विधायक सोहन लाल शर्मा ने सुंदरनगर में आंदोलन करके अवगत भी करवाया था ,लेकिन बावजूद इसके आज खोखो में शराब बिक रही है और शराब माफिया की जांच करने के लिए गठित एसआइटी में पुलिस अफसर उसी जगह के हैं। सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि सरकार को माफिया पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून लाने की जरूरत है, जिसमें सरकार नाकाम रही है। सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि राज्य के कर्मचारियों का प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन वर्तमान सरकार कर्मचारी विरोधी है। सुक्खू ने ऐलान किया है कि कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद सरकारी विभागों के कर्मचारियों, निगम वार्डों के कर्मचारियों, नगर निगम सभी को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के वित्तीय लाभ दिए जाएंगे। कुल मिलाकर बजट एक रटारटाया दस्तावेज :राजेंद्र राणा चुनावी वर्ष में सरकार द्वारा की जा रही हर घोषणा पर विपक्ष हमलावर रुख इख्तियार किये हुए है। प्रदेश सरकार द्वारा पेश किये गए बजट को विधायक राजेंद्र राणा ने पूरी तरह से नीरस व संवेदनहीन बताया है। राजेंद्र राणा का कहना है कि सरकार द्वारा चुनाव की दृष्टि से पेश किए गए बजट में एक बार फिर जनता को ठगने का असफल प्रयास किया है। पिछले बजट में हुई घोषणाएं अभी तक धूल चाट रही हैं, जिन पर सरकार की न कोई जवाबदेही, न ही कोई सफाई आई है। प्रदेश कर्जे के पहाड़ में निरंतर दबा जा रहा है। यह बजट प्रदेश के लिए शिगूफा साबित हो रहा है। कुल मिलाकर यह बजट एक रटा रटाया दस्तावेज साबित हो रहा है, जिससे प्रदेश के आमजन को कोई आस नहीं बन पा रही है। राजेंद्र राणा का कहना है कि प्रदेश में 14 लाख शिक्षित बेरोजगार मारे-मारे फिर रहे हैं। इनके भविष्य को लेकर इस बजट में न तो सरकार ने कोई चिंता जताई है और न कोई सटीक बात की है। कर्मचारियों के प्रति सरकार तानाशाही रवैया अपनाकर लगातार संवेदनहीन बनी हुई है। कर्मचारियों के लिए भी इस बजट में कुछ नहीं कहा गया है। राजेंद्र राणा का कहना है कहा कि कोरोना काल में लाखों लोग जिनकी नौकरियां छूट गई हैं, गुजर बसर के लिए प्रदेश में मारे-मारे फिर रहे हैं। सरकार के पास इस वर्ग के लिए भी कोई योजना बजट में संबोधित नहीं हुई है। करुणामूलक नौकरियों की आस में लोग घर बैठे-बैठे बुजुर्ग होते जा रहे हैं लेकिन सरकार इसको लेकर भी संवेदनहीन बनी हुई है। मध्यम तबके के व्यापारी से लेकर हर आम तबके के लोगों को बजट में कोई आस नहीं दिखी है। ................................................................................................... सर्व स्पर्शी और सर्व हितकारी है बजट :प्रेम कुमार धूमल जयराम सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट की जहां विपक्ष के नेता कटाक्ष कर रहे है तो वहीं सत्तापक्ष के नेता इस बजट कि प्रशंसा कर रहे है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस बजट की सराहना की है। पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि यह बजट विकास की राह पर अग्रसर हिमाचल प्रदेश को गति प्रदान करेगा। बजट में वृद्धों, गृहिणियों, विधवाओं, बच्चों, किसानों और पंचायत प्रतिनिधियों को बड़ी सौगात की घोषणा की गई है। धूमल का कहना है कि जयराम सरकार द्वारा पेश किया गया ये बजट प्रदेश की 70 लाख जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने वाला बजट है। पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि वर्तमान सरकार ने इस बजट को किसान, बागवान, युवाओं, महिलाओं, सीनियर सिटीजन व आम जनता को ध्यान में रख कर बनाया है। ये बजट सर्व स्पर्शी और सर्व हितकारी है जो कठिन आर्थिक परिस्थितियों में प्रस्तुत किया गया है। प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया बजट प्रदेश के भविष्य को उज्जवल बनाने वाला है। हिमाचल को नई दिशा व दशा देने वाला बजट : अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पेश किए 51365 करोड़ के बजट को केंद्रीय सूचना प्रसारण एवं खेल व युवा कार्यक्रम मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने एक संतुलित बजट बताया है। अनुराग ठाकुर का कहना है कि जो विपक्ष इस बजट को दिशाहीन बता रहे है उन्हें शायद ये मालूम नहीं है कि ये बजट हिमाचल को नई दिशा-दशा देने वाला बजट है। अनुराग ठाकुर का कहना है कि प्रदेश की जयराम सरकार द्वारा पेश किया गया यह बजट विकासोन्मुखी है। इस बजट में कर्मचारियों, कारोबारियों, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों समेत समाज के सभी वर्गों का ध्यान रखने का पूरा प्रयास किया गया है। इस बजट से हिमाचल के हर वर्ग का सशक्तिकरण होगा और प्रदेश के विकास में भागीदारी का पूरा अवसर मिलेगा। अनुराग ठाकुर का कहना है कि हिमाचल में भाजपा की डबल इंजन की सरकार ने पहाड़ी प्रदेश के विकास के लिए हर संभव कदम उठाए हैं। हर बार की तरह इस बार के भी केंद्रीय बजट में मोदी सरकार ने हिमाचल का विशेष ध्यान रखने का काम किया था जोकि मोदी के हिमाचल के प्रति विशेष स्नेह को दिखाता है। अनुराग ठाकुर का कहना है कि जिस प्रकार केंद्रीय बजट में हिमाचल के विकास का ध्यान रखा गया उसी प्रकार हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी हिमाचल कि जनता के हित के लिए ये बजट बनाया है। ऐतिहासिक एवं आम आदमी का बजट : सुरेश भारद्वाज विपक्ष को घेरते हुए शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज का कहना है कि ये कोई लोकलुभावन बजट नहीं है बल्कि आम आदमी का बजट है । सुरेश भारद्वाज का कहना है कि प्रदेश सरकार के इस बजट में हर वर्ग का ध्यान रखा गया है। बजट व्यावहारिक है और सभी वर्गों को इस बजट से लाभ होगा। कोविड-19 महामारी के दौरान शहरी युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए वर्ष 2020 में मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना आरम्भ की गई थी। वित्तीय वर्ष 2022-23 में इस योजना पर 5 करोड़ रुपए व्यय किए जाएंगे। सुरेश भारद्वाज का कहना है कि शहरी बेरोजगार युवाओं को रोजगार की गारंटी, पात्रता एवं अन्य शर्तों से संबंधित विधेयक भी विधानसभा में पेश किया जाएगा। हिमाचल देश का पहला राज्य होगा जहां मनरेगा कि तर्ज पर शहरी क्षेत्रों में आजीविका के लिए कानून बनाया जाएगा। सुरेश भारद्वाज का कहना है कि इस बजट में जो भी घोषणाएं मुख्यमंत्री द्वारा की गई है वो आम जनता के हित में है। मुख्यमंत्री का वृद्धावस्था पेंशन की आयु सीमा 60 वर्ष की गयी है, जबकि पहले यह आयु सीमा 70 वर्ष थी। वित्तीय वर्ष 2022-23 में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के 40000 अतिरिक्त पात्र लोगों को पेंशन प्रदान की जाएगी। ऐसे सभी वर्ग जो वर्तमान में 850 रुपये प्रतिमाह की पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, उन सबकी पेंशन बढ़ाकर 1000 रुपए किया गया है। दिव्यांगजनों व विधवाओं को दी जा रही पेंशन को 1000 रुपए से बढ़ाकर 1500 रुपए प्रतिमाह किया गया है। 70 वर्ष से अधिक आयु के वृद्धजनों की पेंशन को 1500 रुपए से बढ़ाकर 1700 रुपए प्रतिमाह किया गया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर 1300 करोड़ रुपए व्यय किए जाएंगे। कुल मिलाकर ये बजट हिमाचल प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए बनाया गया है जयराम सरकार जनता का दर्द समझती है: सुरेश कश्यप सरकार के कार्यकाल के इस अंतिम बजट की जहाँ भाजपा के नेता सराहना कर रहे है वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने भी इस बजट को शानदार एवं जानदार बताया है। सांसद सुरेश कश्यप का कहना है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए एक बेहतरीन बजट प्रस्तुत किया है। यह बजट शानदार एवं जानदार है, जिसमें हर वर्ग का ध्यान रखा गया है। हिमाचल के बजट में वृद्धावस्था पेंशन के लिए आयु सीमा को बड़ा कर 60 वर्ष कर दिया गया है, मुख्यमंत्री की इस घोषणा से एक बड़ा सामाजिक लाभ होगा, इस बजट में पशुपालन क्षेत्र के लिए भी 469 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इस कर्मयोगी सरकार ने पहाड़ी गाय के संरक्षण हेतु उत्कृष्ट फार्म स्थापित किए जाने का प्रावधान भी किया है और कृषि क्षेत्र के लिए बजट में 583 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। सांसद सुरेश कश्यप का कहना है कि जयराम सरकार के बजट में किसानों- बागवानों की सुविधा हेतु प्रदेश में एक और फूल मंडी स्थापित की जाएगी और साथ ही उज्ज्वला और गृहिणी सुविधा योजना के तहत अब 3 निःशुल्क सिलेंडर उपलब्ध करवाए जाएंगे। इससे महिलाओं एवं जनता को बड़ा लाभ होगा। यह सच में वो सरकार है, जो जनता का दर्द समझती है। सुरेश कश्यप का कहना है कि हिमकेयर योजना का जनता को बड़ा लाभ हुआ है, जो कि प्रत्यक्ष रूप से दिखता है, जनता के लिए यह बजट खुशखबरी लेकर आया है।
नगर परिषद नालागढ़ एवं बद्दी तथा नगर एवं ग्राम योजना विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक आयोजित फर्स्ट वर्डिक्ट। साेलन शहरी विकास नगर एवं ग्राम योजना तथा आवास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि योजनाबद्ध विकास एवं नागरिकों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना प्रदेश सरकार की प्राथमिकता है। इस दिशा में सभी के सहयोग से प्रदेश सरकार आशातीत कार्य कर रही है। सुरेश भारद्वाज आज सोलन जिला के नालागढ़ में नगर परिषद नालागढ़ एवं नगर परिषद बद्दी के प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों तथा नगर एवं ग्राम योजना विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। सुरेश भारद्वाज ने कहा कि किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए सफाई व्यवस्था मूल आधार है तथा इस दिशा में सभी को समन्वित होकर प्रयास करने चाहिए। उन्होंने जन प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि अपने-अपने वार्डों में समर्पित होकर कार्य करें। बैठक में विशेष रुप से औद्योगिक क्षेत्र बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) सहित नगर परिषद क्षेत्र बद्दी तथा नालागढ़ में सफाई की व्यवस्था विकासात्मक कार्यों तथा विकास से संबंधित विभिन्न मांगों बारे विस्तृत चर्चा की गई। इस अवसर पर सभी जनप्रतिनिधियों ने औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन में जेबीआर कंपनी द्वारा की जा रही सफाई व्यवस्था बारे और असंतोष व्यक्त किया तथा पता इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की। बैठक में नालागढ़ के पूर्व विधायक केएल ठाकुर ने नगर परिषद क्षेत्र नालागढ़ में गोल मार्केट के नाम से निर्माणाधीन वाणिज्यिक परिसर के निर्माण कार्य को पुनः आरंभ करने के लिए मांग की। उन्होंने नालागढ़ नगर परिषद क्षेत्र में एक खेल परिसर के निर्माण के लिए भी मंत्री से निवेदन किया। ग्रामीण क्षेत्र के कुछ प्रतिनिधियों ने ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में टीसीपी द्वारा निर्माण के विषय में अलग-अलग नियमों पर नाराजगी व्यक्त की तथा उनमें सुधार करने की मांग की। इस अवसर पर सुरेश भारद्वाज ने सभी जनप्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि उनकी सभी मांगों पर शीघ्र गौर किया जाएगा। इस अवसर पर नालागढ़ के पूर्व विधायक केएल ठाकुर, सोलन जिला भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्रीकांत, वरिष्ठ भाजपा नेता बलविंदर ठाकुर, विनोद कुमार, गुरमेल चौधरी, नगर परिषद नालागढ़ व बद्दी के कार्यकारी अधिकारी आरएस वर्मा, राजीव भल्ला व लेख राज सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
फर्स्ट वर्डिक्ट। धर्मशाला धर्मशाला के विधायक विशाल नैहरिया मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा प्रस्तुत किए गए हिमाचल बजट-2022-23 पर वर्चुअल जनसंवाद कार्यक्रम में धर्मशाला में विशेष रूप से उपस्थित रहे। उन्होंने बजट को अब तक का सबसे शानदार बजट बताया है और कहा कि इससे समाज के हर वर्ग का कल्याण होगा और इस बजट की सर्वत्र प्रशंसा की जा रही है। इस अवसर पर मीडिया कॉडिनेटर विश्व चक्षु, पार्टी कार्यकर्ताओं सहित काफी संख्या में स्थानीय लोग उपस्थित रहे।
फर्स्ट वर्डिक्ट। शिमला मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आज जिला चंबा के दिव्यांग सुनील पथिक द्वारा लिखित पुस्तक आशाओं भरा सफर का विमोचन किया। मुख्यमंत्री ने सुनील पथिक के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि विभिन्न चुनौतियों के बावजूद लेखक ने यह पुस्तक लिखी है, जो दिव्यांगजनों के लिए प्रेरणा का स्रोत सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि सुनील पथिक ने यह साबित किया है कि व्यक्ति समर्पण तथा प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों पर विजय पा सकता है। इस अवसर पर प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष डॉ. हंसराज व अन्य गणमान्य उपस्थित थे।
क्रिकेट प्रतियोगिता के समापन समारोह के दौरान बोले रहे थे विधायक काजल मनाेज कुमार। कांगड़ा विधायक पवन काजल ने प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट को इलेक्शन स्टंट करार दिया है। काजल ने बजट को युवा और बेरोजगार विरोधी करार देते हुए कहा कि सरकार ने बजट में बेरोजगारों को रोजगार या बेरोजगार भत्ता देने पर कोई भी घोषणा या प्रावधान नहीं किया है। काजल रविवार को ढूगियारी पंचायत में जय शंकर क्रिकेट क्लब द्वारा आयोजित क्रिकेट प्रतियोगिता के समापन समारोह दौरान बोल रहे थे। उन्होंने कहा प्रदेश के कर्मचारियों को अपनी मांगों को मनवाने के लिए सड़कों पर उतरकर संघर्ष करना पड़ रहा है और प्रदेश सरकार कर्मचारियों के धरना प्रदर्शन पर रोक लगाकर लोकतंत्र का गला गाेंट रही है। पूर्व कांग्रेस सरकार ने बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए गग्गल में आईटी पार्क के लिए भूमि और 12 करोड़ का बजट प्रावधान किया है, लेकिन मौजूदा सरकार अपने कार्यकाल में आईटी पार्क का निर्माण करवाने से हाथ खींच रही है। जिसे कांगड़ा का बेरोजगार और युवा वर्ग सहन नहीं करेगा। काजल ने कहा बजट में महिला और समाज के अन्य तबकों के लिए कोरी घोषणाएं कर जनता को गुमराह करने का प्रयास अब प्रदेश सरकार कर रही है। काजल ने कहा कि ढूगियारी पंचायत में 12 जुलाई को आई भीषण बाढ़ से हुए नुकसान का आकलन करने में भी मौजूदा सरकार नाकाम रही है, वह विधानसभा के बजट सत्र में किसानों को हुए नुकसान की भरपाई की मांग को रखेंगे। उन्होंने टूर्नामेंट के आयोजकों को 5100 रुपए और विजेता व उपविजेता टीमों को रिफ्रेशमेंट के लिए तीन हजार रुपए नकद राशि भेंट की। काजल ने खिलाड़ियों को समृति चिन्ह देकर सम्मानित भी किया। क्लब के अध्यक्ष अजय कुमार ने बताया कि प्रतियोगिता में 64 टीमों ने भाग लिया। फाइनल मैच में नैना देवी क्लब तपोवन ने क्रिकेट क्लब ज़मानाबाद को पराजित कर ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। इस मौके पर राजयंती वार्ड मेंबर, नीतू, अजय कुमार, देवेश कुमार, पृथ्वी, मितल चौधरी, साहिल, सौरभ, अभिषेक व चिरंकुश भी उपस्थित रहे।
विनायक ठाकुर। देहरा ढलियारा में सुना बजट वर्चुअल जनसंवाद कार्यक्रम उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर ने ढलियारा महाविद्यालय में ऐतिहासिक प्रदेश बजट 2022-23 पर आयोजित वर्चुअल जनसंवाद कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहते हुए उद्योग मंत्री ने प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत जनहितैषी बजट पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के संबोधन को वर्चुअल माध्यम से सुना। इस अवसर पर बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोग, जनप्रतिनिधि, आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं अन्य कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के बाद उद्योग मंत्री ने जनता की समस्याओं को भी सुना, जिनमें से अधिकतम का मौके पर ही निपटारा कर दिया तथा शेष के समयबद्ध निवारण हेतु संबंधित अधिकारियों को आदेश दिए। इस अवसर पर जिलाध्यक्ष संजीव शर्मा, परागपुर मंडलाध्यक्ष विनोद शर्मा, जिला परिषद् उपाध्यक्षा सनेह लता परमार, अनीता सपेहिया, विभिन्न विभागों के अधिकारी व कर्मचारी, महाविद्यालय के समस्त प्रध्यापक एवं कर्मचारी, विद्यार्थी एवं विद्यार्थियों के अभिभावक उपस्थित रहे।


















































