नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन ने सरकार से आग्रह किया है कि कोविड ड्यूटी में लगाए गए 18 से 44 साल के कर्मचारियों को सरकार वैक्सीन लगा कर ही ड्यूटी पर भेजे। एसोसिएशन के कांगड़ा जिला प्रधान राजेंद्र मन्हास ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से उन्हें पिछले सप्ताह में 15 से अधिक कर्मचारियों की कोरोना से मौत हुई है, जिसमें अधिकतर 45 साल से कम उम्र के कर्मचारी हैं। ऐसे में कर्मचारी बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से 2009 की केंद्र की अधिसूचना की भी मांग करते हुए कहा कि समय की नजाकत को देखते हुए सरकार को यह अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू कर देनी चाहिए क्योंकि इस अधिसूचना के तहत सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत पर एनपीएस कर्मचारी के परिवार को परिवारिक पेंशन का प्रावधान है। जिला प्रधान ने कहा कि सरकारी कर्मचारी सरकार के हर आदेश का पालन बड़ी मुस्तैदी से कर रहे हैं और वैक्सीन, कोविड एंट्री से लेकर कोविड मरीजों की मॉनिटरिंग जैसे कई कार्य कर रहे हैं, जिसमें उनके संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में सरकार का भी फर्ज बनता है कि अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएं।
राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने प्रदेश सरकार से मांग की हैं कि तकनीकी कर्मचारियों को कोरोना योद्धा घोषित किया जाए। तकनीकी कर्मचारी कोरोना कर्फ्यू में भी ड्यूटी पर तैनात हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेकराम ठाकुर ने प्रदेश सरकार से अपील की है कि हिमाचल बिजली बोर्ड के तकनीकी कर्मचारियों को भी मध्यप्रदेश व पंजाब की तर्ज पर कोरोना योद्धा घोषित किया जाए, ताकि कोरोना काल में पूरी निष्ठ से अपनी सेवाएं देने वाले इन कर्मचारियों का मनोबल बढे। संघ के पदाधिकारियों का कहना है की कोरोना महामारी की दूसरी प्रचंड लहर जो पूरे देश में कोहराम मचा रही है, उससे हमारा प्रदेश भी अछूता नहीं है। ऐसे में ये दूसरी लहर तकनीकी कर्मचरियों के लिए भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। बिजली बोर्ड के कर्मचारी इस महामारी के दौर में भी अपनी सेवाएं दे रहे है। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी आम जनमानस को सुचारू बिजली उपलब्ध करवा रहे है लेकिन प्रबंधन उनका ज़रा भी ख्याल नहीं रख रहा। दूनी चंद ठाकुर ने कहा कि बिजली बोर्ड प्रबंधन आजकल पूरी तरह से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में व्यस्त है। उन्होंने आरोप लगाया है कि किसी भी अधिकारी को जब भी किसी जरूरी समस्या के बारे में फोन किया जाता है तो आगे से जवाब मिलता है कि साहब वीसी में हैं। मुख्यालय में पदाधिकारियों को मिलने के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ता है। बिजली बोर्ड में आज की तारीख में तानाशाही पूर्ण वातावरण बना हुआ है जिससे कर्मचारी परेशान है। संघ ने बोर्ड प्रबंधन पर आरोप लगाया है कि बोर्ड मुख्यालय में तो थर्मल स्कैनिंग व अधिकारियों के टेबलों पर शीशे लगाकर सुरक्षा के प्रबंध किए गए हैं, मगर फील्ड पर डटे कर्मचारियों की सुध कोई नहीं ले रहा। चाहे उपमंडल के कार्यालय हों या शिकायत कक्ष या 33 केवी स्टेशन ,कहीं पर भी न कोई सैनेटाइजर, पीपीई किट या शील्ड हेलमेट की व्यवस्था नहीं है। उनका कहना है की अगर स्थानीय अधिकारियों से बात करें तो वह बजट का रोना रोते हैं जबकि उनके अपने कार्यलयों में यह सारी की सारी व्यवस्था है। प्रदेश अध्यक्ष ने हिमाचल के मुख्यमंत्री व ऊर्जा मंत्री से यह आग्रह किया है कि बिजली बोर्ड का कर्मचारी बहुत ही असुरक्षित वातावरण में दिन रात कार्य कर रहा है। कर्मचारी भयभीत है परन्तु फिर भी अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर अपना कार्य करने के लिये तत्पर हैं। बिजली बोर्ड का पूरा कर्मचारी वर्ग हिमाचल सरकार के साथ इस विकट परिस्थिति में मजबूती के साथ गत वर्ष की भांति खड़ा है।
महामारी के इस दौर में नर्सेज कोरोना योद्धा के तौर पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रही है। बिना अपनी और अपने परिवार की परवाह किए नर्सेज निरंतर कोरोना मरीज़ों की सेवा में लगी हुई है। मगर सरकार उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाए उनकी जान की भी परवाह नहीं कर रही। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एम्ज़ (AIIMS) की तर्ज पर कोरोना वार्ड में सेवाएं दे रही नर्सेज का क्वारंटाइन पीरियड समाप्त कर दिया है। यानि की अब पहले की तरह कोरोना वार्ड में सेवाएं दे रही नर्सेज 10 दिन के लिए क्वारंटाइन नहीं होंगी बल्कि उन्हें या तो एक दम दूसरे वार्डस में सेवाएं देनी होगी या फिर उन्हें घर भेज दिया जाएगा। हिमाचल प्रदेश स्टेट नर्स एसोसिएशन ने इस निर्णय की निंदा की है। एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश के सभी हॉपिटल्स में अपनी जान की परवाह किए बिना नर्सेज दिन-रात अपनी सेवाएं दे रही है। एक नर्स 10 दिन तक लगातार ड्यूटी करने के बाद 7 दिन तक सबसे अलग आइसोलेशन पीरियड में रहती थी जिससे उनके बच्चे, परिवार और सोसयटी महामारी से बचे रहते थे। 7 दिन बाद वे फिर अपनी ड्यूटी में तैनात हो जाती थी। लेकिन अब सरकार द्वारा ये आइसोलेशन पीरियड खत्म कर दिया गया है जो की एक गलत निर्णय है। इससे न तो उनका परिवार सुरक्षित रहेगा और न ही अस्पताल के अन्य मरीज़। ऐसा देखा गया है की वैक्सीन की दो डोज़ के बाद भी नर्सेज कोविड ड्यूटी के बाद कोरोना पॉजिटिव हुई है। एसोसिएशन का कहना है की उनकी एक सहयोगी आईजीएमसी में अपनी जिंदगी कि लड़ाई लड़ रही है। वो नर्स वेंटिलेटर पर है। एसोसिएशन प्रदेश अध्यक्ष अरुणा कौर, जनरल सेक्रेट्री सीता ठाकुर, वाईस प्रेजिडेंट वीना राणा, सुषमा ठाकुर, इंदु कश्यप व अन्य पदाधिकारियों ने आपस में सलाह मशवरा करके यह फैसला लिया है कि सरकार को कम से कम 7 दिन के लिए नर्सेज को क्वारंटाइन करना होगा। सरकार यदि शीघ्र अति शीघ्र इस प्रस्ताव को वापिस नहीं लेती तो उन्हें कठोर कदम उठाने के लिए मज़बूर होना पड़ेगा।
आज प्रदेश के लगभग 1 लाख 20 हजार कर्मचारियों ने काले बिल्ले लगाकर नई पेंशन का विरोध किया l महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने कहा कि 15 मई 2003 वह तिथि है जब से हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों की पेंशन बंद हुई हैl इसलिए हर वर्ष नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ इस दिन को ब्लैक डे के रूप में मनाता है l इस वर्ष कोरोना के बढ़ते प्रकोप की वजह से तथा ऑफिस बंद होने के कारण अधिकतर कर्मचारियों ने घर पर ही ब्लैक डे मनाया, जो साथी ड्यूटी पर थे उन्होंने अपने ड्यूटी के दौरान काला रिबन लगाकर नई पेंशन के विरुद्ध अपना विरोध प्रकट किया। उन्होंने कहा कि पूरे देश में सबसे पहले पेंशन हिमाचल प्रदेश में बंद हुई है l प्रदीप ठाकुर ने कहा कि वर्तमान समय में कोरोना का कहर दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ऐसी परिस्थितियों में भी कर्मचारी अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दे रहे हैं और पिछले 10 दिनों में बहुत सारे कर्मचारी अपनी ड्यूटी के दौरान संक्रमित हुए हैं जिनमें से 20 से भी अधिक कर्मचारियों की मृत्यु हो चुकी है l यह बहुत दुखद घटना है। इस विषय में पिछले दिनों महासंघ द्वारा मुख्यमंत्री , स्वास्थ्य मंत्री और मुख्य सचिव तथा जिला अध्यक्षों द्वारा अपने-अपने जिला के जिलाधीश को जल्द से जल्द केंद्र सरकार द्वारा की गई 2009 की अधिसूचना जिसमें मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन का प्रावधान है को प्रदेश में लागू करने का आग्रह किया गया है। अभी तक प्रदेश सरकार द्वारा इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया गया है । उन्होंने मांग की है कि जल्द से जल्द यह अधिसूचना प्रदेश के कर्मचारियों को राहत प्रदान करने और उन्हें हौसला देने के लिए की जाए ताकि यदि दुर्भाग्य से उनके साथ कुछ घटना घटती है तो कहीं ना कहीं आर्थिक रूप से उनके परिवार को थोड़ी बहुत सहायता मिल सके। प्रदीप ठाकुर ने कहा कि आज प्रदेश के 120000 से अधिक कर्मचारी नई पेंशन स्कीम में आते हैं। सभी कर्मचारियों को नई पेंशन के प्रति भारी रोष है। यह रोष सभी कर्मचारियों द्वारा आज 15 मई को काली बिल्ली लगाकर किया गया। उन्होंने कहा कि जैसे ही करोना से प्रदेश की स्थिति ठीक होती है कर्मचारी नई पेंशन का सड़कों पर उतर कर विरोध करेंगे तथा प्रदेश के सभी 68 विधायकों का घेराव उनके घर पर करेंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से पुनः आग्रह किया है कि जल्द से जल्द केंद्र सरकार द्वारा 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू किया जाए।
हिम जन कल्याण संस्था द्वारा पालमपुर के साथ-साथ गांव में भी सेनिटीज़िंग का कार्य शुरू किया गया है। इसी कड़ी में पट्टी में भी संस्था के स्वयंसेवियों द्वारा सेनिटीज़िंग का कार्य किया गया व् मास्क भी बांटे गए। जानकारी देते हुए संस्था के उपाध्यक्ष रमन अवस्थी ने बताया कि संस्था द्वारा घर में आइसोलेटेड लोगों के लिए खाने का प्रबंध किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सेनिटीज़िंग का कार्य भी किया जा रहा है। इसी कड़ी में आज पट्टी में सेनिटीज़िंग की गई। उन्होंने कहा कि संस्था द्वारा समय-समय पर समाज सेवा के कार्य किए जाते हैं तथा कोरोनाकाल में लोगों को कोरोनावायरस से बचाने के लिए सेनिटीज़िंग तथा मास्क वितरण का कार्य किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने प्रदेश के समस्त तकनीकी कर्मचारियों का आवाहन किया है कि कोरोना महामारी की दूसरी प्रचंड लहर इस समय जो भारत में अपना विकराल रूप धारण किए है उससे हमारा प्रदेश भी अछूता नहीं रहा है जो कि हम तकनीकी कर्मचरियों के लिये पुनः चुनोती बन कर इस वर्ष भी हमारे सामने खड़ा है। हमें गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्रदेश की आम जनमानस को सुचारू बिजली उपलब्ध करवानी है । इसके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष ने सभी कर्मचरियों से यह भी आग्रह किया है कि वह अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान स्वयं रखें। शारिरिक दूरी के साथ मास्क व सेनिटाइज़र का भी उपयोग करें क्योंकि बिजली बोर्ड प्रबंधन तो आजकल पूरी तरह से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में व्यस्त है। किसी भी अधिकारी को जब भी किसी जरूरी समस्या के बारे में फोन करें तो आगे से यही जवाब मिलता है कि साहब वी सी में हैं। यही नहीं, मुख्यालय में भी संगठन के पदाधिकारियों को मिलने के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ता है। बिजली बोर्ड में आज की तारीख में यह अजीब ही वातावरण का निर्माण हो गया है जो कि एक तानाशाही का प्रमाण है। इसके साथ ही दोनों पदाधिकारियों ने बोर्ड प्रबंधन पर यह भी आरोप लगाया है कि बोर्ड मुख्यालय में थर्मल स्कैनिंग व अधिकारियों के मेजों में बड़े-बड़े शीशे लगाकर पूरी सुरक्षा के प्रबंध किए गए है जबकि फ़ील्ड में चाहे उप मंडल के दफ्तर हों या शिकायत कक्ष या 33 के वी स्टेशन वहां पर न कोई सेनिटाइज़र न ही मास्क न ही कोई पी पी किट और शील्ड हेलमेट की व्यवस्था है। अगर स्थानीय अधिकारियों से बात करें तो वह बजट का रोना रोते हैं जबकि उनके अपने कार्यलयों में यह सारी की सारी व्यवस्था है। प्रदेश अध्यक्ष ने हिमाचल के मुख्यमंत्री व ऊर्जा मंत्री से यह आग्रह किया है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारी बहुत ही असुरक्षित वातावरण में दिन रात कार्य कर रहे है व भयभीत भी है फिर भी हम अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर अपना कार्य करने के लिए तत्पर हैं। इसके लिए बिजली बोर्ड का पूरा कर्मचारी वर्ग हिमाचल सरकार के साथ इस विकट परिस्थिति में मजबूती के साथ गत वर्ष की भांति खड़ा है मगर प्रदेश सरकार से यह भी आग्रह है कि कर्मचरियों की उचित सुरक्षा के लिये वर्तमान निकम्मी बोर्ड मैनेजमेंट को आदेश दें ताकि कर्मचारी और भी उत्साह से प्रदेश सरकार का सहयोग व आम जन मानस की सेवा करें । अंत में तकनीकी कर्मचारी संघ ने प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री को यह आश्वाशन भी दिया है कि संघ विपत्ति की इस घड़ी में कोई ऐसी प्रेस विज्ञप्ति नहीं देंगे जिससे कि कर्मचारियों का मनोबल टूटे। मगर बोर्ड प्रबंधन के नकारात्मक रवैये के कारण संघ को मीडिया में जाने के लिए विवश होना पड़ा है क्योंकि संघ अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता क्योंकि सरकार जब सभी सुविधाएं प्रदान कर रही है तो फिर अधिकारियों को देने में दिकत क्यों है ? इसके साथ ही संघ ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि पत्र संख्या 1843-45 के अंतर्गत हिमाचल बिजली बोर्ड के तकनीकी कर्मचारियों को भी मध्यप्रदेश व पंजाब की तर्ज पर कोरोना योद्धा घोषित करें ताकि इनका मनोबल और ऊंचा हो।
नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के सोलन जिला प्रधान अशोक ठाकुर ने सरकार से आग्रह किया है कि कोविड ड्यूटी में लगाए गए 18 से 44 साल के कर्मचारियों को सरकार वैक्सीन लगा कर ही ड्यूटी पर भेजे। जिला प्रधान ने कहा पिछले कुछ दिनों से उन्हें लगातार कर्मचारियों के फोन आ रहे हैं कि इस मांग को सरकार के सामने रखा जाए क्योंकि पिछले 10 दिनों में 15 कर्मचारियों की कोरोना से मौत हुई है जिसमें अधिकतर 45 साल से कम उम्र के थे। ऐसे में कर्मचारी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से 2009 की केंद्र की अधिसूचना की भी मांग करते हुए कहा कि समय की नज़ाकत को देखते हुए सरकार को यह अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू कर देनी चाहिए। क्योंकि इस अधिसूचना के तहत सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत पर एनपीएस कर्मचारी के परिवार को परिवारिक पेंशन का प्रावधान है। जिला प्रधान ने कहा सरकारी कर्मचारी सरकार के हर आदेश का पालन बड़ी मुस्तैदी से कर रहे हैं और वैक्सीन व कोविड एंट्री से लेकर कोविड मरीजों की मॉनीटरिंग जैसे कई कार्य कर रहे हैं जिसमें उनके संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में सरकार का भी फर्ज बनता है कि अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएं।
नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के कांगड़ा जिला प्रधान राजिंदर मन्हास ने सरकार से आग्रह किया है कि कोविड ड्यूटी में लगाए गए 18 से 44 साल के कर्मचारियों को सरकार वैक्सीन लगा कर ही ड्यूटी पर भेजे जिला प्रधान ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से उन्हें लगातार कर्मचारियों के फोन आ रहे हैं कि इस मांग को सरकार के सामने रखा जाए क्योंकि पिछले 10 दिनों में 15 कर्मचारियों की कोरोना से मौत हुई है जिसमें अधिकतर 45 साल से कम उम्र के कर्मचारी हैं। ऐसे में कर्मचारी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से 2009 की केंद्र की अधिसूचना की भी मांग करते हुए कहा कि समय की नज़ाकत को देखते हुए सरकार को यह अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू कर देनी चाहिए क्योंकि इस अधिसूचना के तहत सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत पर एनपीएस कर्मचारी के परिवार को परिवारिक पेंशन का प्रावधान है। जिला प्रधान ने कहा कि सरकारी कर्मचारी सरकार के हर आदेश का पालन बड़ी मुस्तेदी से कर रहे हैं और वैक्सीन और कोविड एंट्री से लेकर कोविड मरीजों की मॉनिटरिंग जैसे कई कार्य कर रहे हैं जिसमें उनके संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में सरकार का भी फर्ज बनता है कि अपने कर्मचारियों की सुरक्षा हेतु जरूरी कदम उठाएं।
एचआरटीसी कर्मचारियों को हाई कोर्ट के आर्डर होने के बावजूद भी कॉन्ट्रैक्ट में लाने के लिए एचआरटीसी विभाग कर रहा है टालमटोल। लगभग 400 कर्मचारियों ने उच्च न्यायालय में कोर्ट केस किया है। कर्मचारियों का कहना है कि वह दिसंबर माह में केस जीत चुके हैं बावजूद इसके उन्हें अनुबंध में आने के आर्डर नहीं दिए जा रहे हैं । अंत में हारकर इन कर्मचारियों ने एमडी के ऊपर कोर्ट केस की अवहेलना का आरोप लगा दिया है। इन कर्मचारियों का कहना है कि 5 वर्षों की नीति के बाद इनका अनुबंध होता है। इसी पॉलिसी के आधार पर पहले भी 410 पीस मिल कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट में हुए हैं, सरकार को परिवहन विभाग को परिवहन मंत्री को जयराम सरकार को कई बार यह कर्मचारी बोल बोल कर थक चुके है। अंत में इन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया लेकिन फिर भी इन कर्मचारियों के कोर्ट केस जीतने के बाद भी कॉन्ट्रैक्ट में लाने के लिए एचआरटीसी विभाग आनाकानी कर रहा है। लगभग 400 कर्मचारियों का कोर्ट केस जीतने के बाद भी विभाग का रवैया इन कर्मचारियों के लिए ना के बराबर है। इन कर्मचारियों का कहना है कि जब कोर्ट ने ऑर्डर कर दिए हैं तो इन कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट में क्यों नहीं लाया जा रहा है। यह सरेआम कोर्ट केस की अवहेलना है इस विषय में अलग-अलग एडवोकेट अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं इस विषय में प्रदेश के प्रधान संजीव कुमार पीस मिल कर्मचारियों की तरफ से सरकार और निदेशक परिवहन विभाग एवं परिवहन मंत्री से भी आग्रह किया है कि उच्च न्यायालय के आदेश को मानना पड़ेगा और इन कर्मचारियों के आर्डर हर हाल में देने पड़ेंगे।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष मोहन ठाकुर व समस्त कार्यकारणी ने तकनीकी कर्मचारी संघ के संस्थापक नेता रहे हरि सिंह राणा का वैश्विक महामारी से देहांत पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि राणा तकनीकी कर्मचारियों के हितों के लिए सदैव लड़े हैं व संघ के विभिन्न पदों का निर्वहन भी किया है। प्रदेश के महामंत्री ने बोर्ड प्रबन्धक वर्ग से मांग की है कि इस कठिन दौर में भी तकनीकी कर्मचारी प्रदेश के हर उपभोक्ता को सुचारु रूप से चला रहे है तो बोर्ड की भी जिम्मेदारी बनती है कि कर्मचारियों को हर प्रकार की सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाए। ठाकुर ने कहा कि अन्य कोरोना योद्धाओं की तरह बिजली तकनीकी कर्मचारी भी दिन रात इस बुरे वक्त में भी लगातार कार्य कर रहे हैं लेकिन न जाने क्यों सरकार तकनीकी कर्मचारियों को कोरोना योद्धा घोषित करने में विलंब कर रही है। तकनीकी कर्मचारी संघ की समस्त कार्यकरणी ने हिमाचल सरकार से मांग की है कि तकनीकी कर्मचारियों को कोरोना योद्धा घोषित कर उनका मनोबल बढ़ाए।
हिमाचल प्रदेश उच्च शिक्षा निदेशालय ने हाल ही में 707 टीजीटी को पदोन्नत कर स्कूल प्रवक्ता न्यू बना दिया है। निदेशालय ने 469 टीजीटी आर्ट्स और 236 टीजीटी साइंस की पदोन्नति सूची जारी की है। पदोन्नति देने के साथ इन शिक्षकों के तबादले भी कर दिए गए हैं। निदेशालय ने सभी पदोन्नत शिक्षकों को सात मई तक पद ग्रहण करने के आदेश भी दे दिए हैं। इस अवधि में पद नहीं संभालने वालों की पदोन्नति रद्द कर दी जाएगी। पदोन्नत शिक्षकों को 10300-34800 का पे स्केल और 4200 रुपये ग्रेड पे मिलेगा। पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता छठी से दसवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को वे विषय पढ़ाएंगे, जो उन्होंने यूजी के दौरान पढ़े हैं। इसके अलावा जमा एक और जमा दो कक्षा में उन विषयों को पढ़ाएंगे जो विषय शिक्षकों ने पीजी के समय पढ़े हैं। हिमाचल प्रदेश टीजीटी आर्ट्स संघ के अनुसार ये पदोन्नतियां एक बार फिर टीजीटी आर्ट्स वर्ग के लिए निराशा लेकर आईं हैं। संघ का आरोप है की पद्दोनत हुए 469 आर्ट्स शिक्षकों में ऐसे भी कई शिक्षकों को पद्दोनत कर दिया गया है जिन्होंने स्नातक विज्ञान के विषयों में की है और पद्दोनति के लिए मास्टर्स आर्ट्स के विषयों में कर ली। यानि आर्ट्स के विषयों में हुई पद्दोनतियों में भी करीब 200 नियुक्तियां टीजीटी मेडिकल व नॉन-मेडिकल वालों की हो गई है। अतः कुल 707 पदों में से सब से बड़े आर्ट्स वर्ग को 25 प्रतिशत से भी कम पदों पर पदोन्नतियां मिल पाई है, जिससे एक बार फिर आर्ट्स वर्ग निराश हुआ है। संघ का कहना है कि सेवाकाल के समय मात्र दो साल में विज्ञान से आर्ट्स विषय मे एमए कर लेने के पश्चात विज्ञान अध्यापक आर्ट्स के विषय पढ़ने में सक्षम नहीं हो सकते। ऐसी चीज़ो से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। संघ का आरोप है कि शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे शिक्षकों को पद्दोनति देकर जहां एक ओर शिक्षा की गुणवत्ता को ताक पर रखा जा रहा है वहीं आर्ट्स वर्ग के पदोन्नति हितों से भी खिलवाड़ किया जा रहा है। हालहीं में हुए टीजीटी से हेडमास्टर पदोन्नतियों में भी 270 में से मात्र 3 आर्ट्स शिक्षक ही पदोन्नत हो सके थे। अन्याय सहन नही होगा-सुरेश कौशल टीजीटी आर्ट्स संघ के राज्य अध्यक्ष सुरेश कौशल का दो टूक कहना है कि आर्ट्स पदों पर सरकार आर्ट्स में एमए किये हुए शिक्षकों की ही पदोन्नति करे। इस सम्बन्ध मे अंकों को वरीयता देने की बजाए अनुभव व पढ़ाई जाने वाले विषयों को अधिमान देना दे। उचित फैसला ले सरकार- ओम प्रकाश हिमाचल प्रदेश टीजीटी आर्ट्स संघ के प्रदेश महामंत्री ओम प्रकाश ने कहा है कि इस अन्याय के खिलाफ प्रदेश कोर्ट में केस पहले से ही लम्बित है। सरकार एवं विभाग को भी छात्र एवम शिक्षक हित मे पदोन्नति नियमों में संशोधन कर उचित फैसला लेना चाहिए।
- सीएम ने कहा, जिन्हें मुकुट - तलवार भेंट की है उन्हीं से स्थाई नीति की मांग करें, और मनोबल टूट गया ....जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर - शोर से उठाया, मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वे भी इसकी सुध नहीं ले रहे। जयराम ठाकुर ने साफ शब्दों में आउटसोर्स कर्मचारी को नियमित करने को लेकर किसी भी पॉलिसी से इनकार किया। सत्ता में आने के बाद इनके लिए नीति बनाने में कानूनी पेंच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब ऐसे में आउटसोर्स कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं..... आउटसोर्स कर्मचारी वो कर्मचारी वर्ग है जो काम तो सरकार का करते है पर इन्हें वेतन निजी कंपनियों द्वारा दिया जाता है। इनकी नौकरी तक सुरक्षित नहीं है, पेंशन तो दूर की बात है। हिमाचल प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ एक ऐसा संगठन है जो लगातार इन आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगो को सरकार तक पहुँचाने की कोशिश करता है और इन कर्मचारियों की व्यथा से सरकार को अवगत करता रहता है। क्या है इन आउटसोर्स कर्मचारियों के मुद्दे, क्या है इनकी प्रमुख मांगे और क्या शिकवे है इन्हें सरकार से, ये जानने के लिए फर्स्ट वर्डिक्ट ने विशेष बातचीत की आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा से। पेश है बातचीत के मुख्य अंश .... सवाल : हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का गठन कब हुआ और आपकी इसमें क्या भूमिका है ? जवाब : हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ यूँ तो 2017 से अस्तित्व में है, परन्तु कुछ समय पहले किन्ही कारणों की वजह से ये असक्रिय हो गया था। दरअसल इस संगठन द्वारा वर्ष 2017 में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष धीरज चौहान की अध्यक्षता में पीटरहॉफ में एक आयोजन करवाया गया। उस समय इस आयोजन में आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को सम्मानित किया गया और मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को ये आश्वासन दिया की उनके लिए कोई स्थाई नीति बनाई जाएगी। परन्तु इससे पहले की वीरभद्र सरकार कुछ कर पाती, सरकार बदल गई। भाजपा के दौर में जब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से आउटसोर्स कर्मचारियों ने स्थाई नीति की मांग की तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में ये कहा कि जिन्हें आपने मुकुट और तलवार भेंट की है आप उन्हीं से स्थाई नीति की मांग करें। ये बात सुनकर कर्मचारियों का मनोबल टूटा और ये संगठन बिखरने लगा। धीरे-धीरे इस संगठन का अस्तित्व खत्म हो गया और फिर आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगे अनसुनी होने लगी। साल 2020 की शुरुआत में मैंने खुद ज़मीनी स्तर पर उतर कर आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याओं को जाना और इनके लिए काम करने की ठानी। मेरे ज़हन में इन कर्मचारियों के लिए कुछ करने की बात बैठ गई थी और मैं ये समझता था की ये सब बिना एक रजिस्टर्ड संस्था बनाए संभव नहीं है। सभी विभागों, सरकारी दफ्तरों और कार्यालयों के विभिन्न आउटसोर्स कर्मचरियों को एकजुट करने और कई कठिन प्रयासों के बाद आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का बतौर रजिस्टर्ड यूनियन गठन संभव हो पाया। कोरोना के समय में भी संगठन संगठन को रेकॉर्डतोड़ मेंबरशिप प्राप्त हुई थी और मैं ये बात गर्व से कह सकता हूँ इस समय ये संगठन आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगों को सरकार तक पहुँचाने वाला सबसे बड़ा संगठन है। सवाल : अब तक इस संगठन ने कर्मचारियों के हित में क्या बड़े कार्य किए है? जवाब : इस संगठन ने आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में कई बड़े कार्य किए है जिसमें स्वास्थय विभाग से निष्काषित नर्सों की वापसी करवाना एक प्रमुख कार्य है। इसके आलावा इस महासंघ के गठन के बाद से ही हमारा ये प्रयास रहा है की किसी भी आउटसोर्स कर्मचारी को निलंबित न होने दिया जाए और अब तक हमने ऐसा कुछ होने भी नहीं दिया है। हम सभी जानते है की इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा 108 में आउटसोर्स कर्मचारी एक एहम भूमिका अदा करते है। कोरोना के समय भी इन कर्मचारियों ने अपनी सेवा पूरी निष्ठा से प्रदान की है। हमारी कोशिश रही है की इन कर्मचारियों की मेहनत को हम जनता के समक्ष उजागर कर पाए। इसी के साथ हम नए श्रम कानूनों को भी कर्मचारियों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे है। आउटसोर्स कर्मियों के लिए स्थाई नीति की मांग को लेकर भी हम निरंतर प्रयास कर रहे है। सवाल : आउटसोर्स कर्मचारियों की सरकार से क्या मांग है ? जवाब : सबसे बड़ी मांग है आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति की। हमारी यही मांग है कि इन कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति बनाई जाए और इनके नियमतिकरण के बारे में कुछ सोचा जाए। पिछले 18 सालों से आउटसोर्स कर्मचारी हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है मगर उनकी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया। आउटसोर्स कर्मचारी पिछले कई सालों से अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे है मगर सरकार सिर्फ आश्वासन दे रही हैं। सरकार द्वारा इनके नियमतिकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। नामात्र वेतन पर भी इनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता हैं, बात चाहे बिजली विभाग की हो, शिक्षा, स्वास्थ्य, या जल शक्ति विभाग की, आउटसोर्स कर्मचारी हर जगह पूरी निष्ठां से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। लॉकडाउन में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं, जो सही नहीं है। सवाल : हाल ही में आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ द्वारा मुख्यमंत्री को एक प्रेज़ेंटेशन भी सौंपी गई है , आपसे जानना चाहेंगे कि किस सन्दर्भ में ये प्रेज़ेंटेशन भेजी गई ? जवाब : 16 अप्रैल 2021 को हमने आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति बनाने हेतु एक प्रेजेंटेशन वन मंत्री राकेश पठानिया के माध्यम से मुख्यमंत्री तथा सचिवालय भेजी है। इस प्रेजेंटेशन के माध्यम से हमने सरकार को अवगत करवाया है कि सरकारी कार्यालयों, निगमों, बोर्डों में वर्तमान में लगभग 35 हजार कर्मी कार्य कर रहे है। इसमें हमारी मुख्य मांगों के बारे में भी हमने सरकार को अवगत करवाने की कोशिश की है। सरकार ने हमसे प्रेजेंटेशन मांगी, हमने दे दी। अब देखना होगा की सरकार हमारे लिए क्या करती है। सवाल : आउटसोर्स कर्मचारियों लगातार उनके साथ हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाते है, आपसे जानना चाहेंगे की किस तरह का शोषण इन कर्मचारियों के साथ हो रहा है ? जवाब : नए श्रम कानूनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समान कार्य समान वेतन की बात कही गई है। आउटसोर्स कर्मचारियों को फिलहाल प्राइवेट कंपनियों द्वारा वेतन दिया जाता है और ठेकेदारों द्वारा इनके शोषण की भी खबरें सामने आती रहती है। ठेकेदार नियमित तौर पर वेतन नहीं देते और नौकरी का भी कोई ठिकाना नहीं है। बड़े - बड़े नेता अपने रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए इस आउटसोर्स प्रथा को खत्म नहीं करना चाहते। जब तक प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा जाएगा प्रदेश में भ्रष्टाचार बढ़ता रहेगा। सवाल : आउटसोर्स कर्मचारियों की वेतन को लेकर भी कई समस्याएं है, उनपर आप क्या कहना चाहेंगे ? जवाब : आउटसोर्स कर्मचरियों को कभी भी नियमित तौर पर वेतन नहीं दिया जाता। आज से नहीं, जब से आउटसोर्स प्रथा शुरू हुई है तबसे स्थिति ऐसी ही बनी हुई है। इन कर्मचारियों को इनके काम का उचित वेतन मिलना चाहिए जोकि बीच में कंपनी और ठेकेदारों द्वारा हड़प लिया जाता है। किसी भी विभाग में इन ठेकेदारों का अपना मुनाफा बनाने के आलावा और कोई भी कार्य नहीं है। बिजली विभाग में नियुक्त आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ कई बड़े हादसे हो जाते है। इन कर्मचारियों को ठेकेदार या सरकार द्वारा कोई भी कंसेंट लिखकर नहीं दिए जाता की अगर किसी की जान चली जाए तो क्या होगा। जान जोखिम में डालने के बावजूद भी इन्हें नियमित वेतन नहीं दिया जाता। सवाल : सरकार के अब तक के कार्यकाल को आप किस तरह से देखते है ? जवाब : ये सरकार पूरी तरह फेल है, अपने अब तक के कार्यकाल में सरकार ने इन कर्मचारियों की सुध तक नहीं ली। आउटसोर्स कर्मचारियों को मलाल तो इस बात का है की जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर - शोर से उठाया मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वे भी इसकी सुध नहीं ले रहे। विपक्ष द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने साफ शब्दों में आउटसोर्स कर्मचारी को नियमित करने को लेकर किसी भी पॉलिसी से इंकार किया। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों पर हो रहे शोषण को कम करने की बात जरूर कही गई और कहा की शोषण करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई भी की जाएगी, पर अमल नहीं किया गया। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद इनके लिए नीति बनाने में कानूनी पेंच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब ऐसे में आउटसोर्स कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। हमारी मांगे जायज़ है और हम कहते है की इन्हें जल्द पूरा किया जाए। सवाल : आने वाले समय में सरकार से क्या उम्मीद है ? जवाब : जो भी सरकार कर्मचारियों के साथ खड़ी होती है कर्मचारी उस सरकार के साथ खड़े होते है। जयराम सरकार के पास अब भी संभलने का समय है। अगर ये सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति बनाती है तो मैं ये आश्वस्त करता हूँ की प्रदेश के हज़ारों आउटसोर्स कर्मचारी और उनके परिवार भाजपा के साथ खड़े होंगे और मिशन रिपीट के नारे को ज़मीनी स्तर पर सफल बनाएंगे। परन्तु अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो सरकार रिपीट नहीं डिलीट होगी।
वेतन का इंतज़ार, इंतज़ार की इन्तेहां , अब आम बात है हिमाचल पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों की तनख्वा इस माह फिर समय से नहीं आई। इस बार फिर ये कर्मचारी इंतज़ार करते रहे, इंतज़ार की इन्तेहां हो गई मगर तन्खवा नहीं आई। वैसे ये कोई नई बात नहीं है, हर माह ऐसा ही होता है, लम्बे समय से ये सिलसिला जारी है। इन कर्मचारियों को बाकि विभागों की तरह एक तारीख को नहीं बल्कि कभी 20 तारीख, कभी 22 तारीख, कभी 24 तारीख और कभी 28 तारीख तक वेतन डाला जाता है। कर्मचारियों का कहना है की ऐसे में घर खर्च निकालना या लोन, ईएमआई जैसी चीज़ों का भुगतान समय पर कर पाना बेहद कठिन है। एचआरटीसी ऑटोनोमस बॉडी है, यानि खुद कमाओ खुद खाओ वाला प्रिंसिपल एचआरटीसी पर लागू होता है। हालाँकि सरकार द्वारा ग्रांट इन नीड के रूप में कुछ सहायता निगम को दी जाती है। आंकलन के अनुसार निगम का सालाना खर्चा करीब 1200 करोड़ है, जबकि कमाई केवल 800 करोड़। ये घाटा एचआरटीसी को हमेशा रहता है, जिसकी पूर्ति हेतु सरकार द्वारा ग्रांट इन नीड दी जाती है, मगर किश्तों में। जब तक ये पैसा सरकार नहीं देती तो भरपाई के लिए एचआरटीसी के कर्मियों के भुगतान को रोक दिया जाता है। कोरोना काल में ऑक्यूपेंसी घटी, घाटा बढ़ा जगजाहिर है एचआरटीसी घाटे में है, कोरोना काल से नहीं बल्कि पहले से ही, पर निसंदेह कोरोना ने मुश्किलें बढ़ा दी है। एचआरटीसी की ऑक्यूपेंसी पहले ही 60 से 70 फीसदी रहती थी, कोरोना काल में 50 प्रतिशत ऑक्यूपेंसी होने के कारण एचआरटीसी पूरी तरह से घाटे में है। इस घाटे को खतम करने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं दिखती। आर्थिक आपदा है तो नेताओं का वेतन समय पर क्यों हिमाचल परिवहन तकनीकी कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष नवल किशोर का कहना है की हिमाचल प्रदेश में कितनी ही बड़ी आर्थिक आपदा हो, यहाँ के मंत्री विधायकों के वेतन में कभी देरी नहीं होती। एचआरटीसी का सारा घाटा मानों सरकार कर्मचारियों के वेतन से ही वसूलना चाहती है। एचआरटीसी को हिमाचल प्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है। इन एचआरटीसी की बसों को सड़क तक पहुँचाने वाले कर्मचारियों की ही सुध सरकार नहीं लेती। ऐसे में उन्हें हर माह घर खर्च निकालना मुश्किल हो रहा है। निगम कर्मचारियों को वेतन कभी भी वेतन समय पर नहीं मिलता, ऐसे में कर्मचारियों में निगम प्रबंधन व प्रदेश सरकार के खिलाफ खासा रोष है। एचआरटीसी के करीब आठ हजार अधिकारियों व कर्मचारियों को वेतन के लिए लम्बा इंतज़ार करना पड़ता है। डिपार्टमेंट समय पर फाइल ही नहीं भेजता: राजेंद्र ठाकुर हिमाचल परिवहन तकनीकी कर्मचारी संगठन के मुख्य सलहाकार राजेंद्र ठाकुर कहते है कि एचआरटीसी कर्मियों के वेतन व अन्य भुगतान की फाइलें दफ्तरों में घूमती रहती है मगर वेतन समय से नहीं मिलता। कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के बजट संबंधी फाइल ही इस बार 7 तारीक के बाद हेड ऑफिस से निकली है। फ़ाइल पहले डिपार्टमेंट से जाती है फिर सचिवालय में सेक्रेटरी ट्रांसफर के दफ्तर पहुँचती है, जिसके बाद ये फाइल फाइनेंस में जाती है और फिर कर्मचारियों को वेतन मिल पता है। कर्मचारियों का वेतन और पेंशन का खर्चा तो पहले से ही निर्धारित है ,ऐसे में अगर डिपार्टमेंट द्वारा समय पर ये फाइल भेज दी जाए तो समय पर भुगतान हो सकता है। पूरी ज़िंदगी सेवा में लगा दी, अब पेंशन को तरसना पड़ता है: सत्यप्रकाश वेतन ही नहीं बल्कि एचआरटीसी के पेंशनर्स की पेंशन भी समय पर नहीं आती। राज्य पथ परिवहन पेंशनर्स कल्याण संगठन के प्रधान सत्यप्रकाश शर्मा कहते है की एचआरटीसी के सेवानिवृत कर्मचारियों को तो मानों सरकार भूल ही गई है। उनका कहना है की हमने अपने पुरे जीवन में एचआरटीसी में अपनी सेवाएं दी है, परन्तु सरकार अब रिटायरमेंट के बाद हमें पेंशन तक समय पर नहीं दे पाती। पेंशन के साथ हमारा 13 प्रतिशत डीए भी पेंडिंग है। उनका कहना है कि यदि सरकार उनकी मांगे समय पर पूरी नहीं करती तो राज्य पथ परिवहन पेंशनर्स कल्याण संगठन द्वारा बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
राजकीय अध्यापक संघ और प्रदेश सरकार आमने - सामने एक मशवरा और हंगामा बरप गया। एक कर्मचारी संगठन ने सरकार को एक सुझाव दिया या यूँ कहे अपनी राय रखी और सरकार ने फरमान ज़ारी कर दिया। जो हुआ उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। एक ब्यान ने सरकार को ऐसे आहत किया कि बात चेतावनी तक पहुँच गई। कौन सही, कौन गलत ये विश्लेषण का विषय है, लेकिन फिलवक्त सरकार और शिक्षक संगठन आमने - सामने है। बात बढ़ती दिख रही है और एक ब्यान से शुरू हुआ मामला कोर्ट तक भी पहुंच सकता है।दरअसल, कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा हिमाचल सरकार के परीक्षाएं न करवाने के फैसले पर एक ब्यान जारी किया गया था, जिसमें वे संगठन की ओर से प्रदेश में परीक्षाएं करवाने की मांग कर रहे थे। इस ब्यान में सवाल किए गया था कि परीक्षाएं न करवाने से बच्चों की पढाई में जो नुक्सान हो रहा है उसकी भरपाई आखिर कौन करेगा। बयान सामने आते ही सरकार ने संज्ञान लिया और संगठन के तीन पदाधिकारियों को नोटिस थमा दिए। फरमान जारी किया गया की यदि हिमाचल प्रदेश सरकार के निर्णयों को लेकर अध्यापक संघों या कर्मचारियों ने विरोधाभासी बयान दिया तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। पत्र में कहा गया कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि अध्यापक संघ और कर्मचारी समाचार पत्रों या सोशल मीडिया के माध्यम से खुले तौर पर सरकार के फैसलों पर विरोधाभासी बयान दे रहे हैं जोकि सरकारी कर्मचारियों पर लागू केंद्रीय सिविल सेवा नियम 1964 का उल्लंघन है। फिलवक्त शिक्षा निदेशालय और अध्यापक संघो की आपस में रार जगज़ाहिर हो गई है। स्थिति कुछ ऐसी है की जहां सरकार नियमों का सहारा लेकर अध्यापक संघो को विरोधाभासी बयान देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात कर रही है तो वहीं शिक्षक अब इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का मसला बना बैठे है। सरकार ने थमाएं नोटिस सरकार ने बयानबाजी करने वाले शिक्षकों का ब्यौरा तलब कर लिया गया। शिमला जिले में राजकीय अध्यापक संघ के तीन पदाधिकारियों को नोटिस भी दिए गए। अन्य जिलों में उपनिदेशकों ने इस मामले को लेकर क्या कार्रवाई की है। इसका ब्यौरा मांगा गया है। इसी कड़ी में शिक्षा निदेशालय ने सभी जिलों से इस मामले को लेकर अभी तक की गई कार्रवाई को निदेशालय से अवगत करवाने को कहा है। शिक्षा मंत्री से की अधिसूचना को निरस्त करने की मांग सरकार के इस आदेश के बाद विरोधात्मक ब्यान देने वाले शिक्षक संगठनों की नाराज़गी और ज्यादा बढ़ गई है। अध्यापक संघ ने शिक्षा मंत्री से इस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है। अगर ऐसा नहीं होता है तो संघ न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा। संगठन की माने तो ये बस एक सुझाव था, उस समय हिमाचल में कोरोना की स्थिति इतनी खराब नहीं थी और इसीलिए संघ ने ये सुझाव आगे रखा। हिमाचल में कोविड नियंत्रण था और समय रहते परीक्षाएं करवाई जा सकती थी, लेकिन विभाग ने इसे अन्यथा ले कर नोटिस थमा दिया। संघ ने प्री बोर्ड की परीक्षाएं न करने की मांग की थी लेकिन सरकार ने 10 वीं 12 वीं की परीक्षाएं एक पेपर के बाद रद्द कर दी। अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास कर रही सरकार: चौहान पहली कार्रवाई के फेर में आए राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने वीरवार को प्रेस वार्ता कर कहा की सरकार अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास कर रही है। चौहान कहते है की की संघ इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को भी तैयार है। यह तानाशाहीपूर्ण अधिसूचना सभी कर्मचारियों के लिए जारी की गई है। अनुच्छेद 19 के अनुसार भारतीय संविधान ने सभी को अभिव्यक्ति की आजादी दी है जिसे कोई छीन नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल में पहली बार इस तरह का फैसला हुआ है जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी को छीनने का प्रयास किया है।
हिमाचल में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा लिए गए फैसले का एनपीएस कर्मचारी संघ सोलन ने समर्थन किया है। संघ का कहना है की सरकार ने जो कर्मचारियों का एक दिन का वेतन कोविड -19 सहायता के लिए काटा है एनपीएस कर्मचारी संघ उसके लिए तैयार है। एनपीएस कर्मचरियों का कहना है की प्रदेश में लगातार कोरोना के मामलों में वृद्धि हो रही है। ऐसे में सभी कर्मचारियों को सरकार के इस फैसले का समर्थन करना चाहिए। संघ के जिला अध्यक्ष अशोक ठाकुर ने बताया कि एनपीएस कर्मचारी इस संकट के शुरुआत से ही सरकार के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रहे हैं। पिछले वर्ष भी एनपीएस कर्मचारी संघ ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 25 लाख से अधिक राशी दी थी तथा इसके साथ ही सभी कर्मचारियों ने एक दिन का वेतन भी दिया था। एनपीएस कर्मचारियों ने कहा कि भविष्य में भी सभी कर्मचारी सरकार का हर संभव साथ देने का वादा करते हैं। उन्होंने कहा की कर्मचारी अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना कोविड-19 से लड़ रहे हैं। कोई अस्पताल में सेवाएँ दे रहा है तो कोई सड़कों पर लोगों को जागरूक कर रहा है। एनपीएस कर्मचारियों ने सरकार से मांग की है कि केंद्र सरकार की तर्ज पर कर्मचारी की मृत्यु या विकलान्गता पर 2009 की अधिसूचना के तहत पुरानी पेंशन की व्यवस्था को प्रदेश में लागु किया जाए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर एनपीएस कई बार सरकार के समक्ष मांग रख चूका है ,लेकिन अभी तक सरकार कि तरफ से उन्हें कोई भी आश्वासन नहीं मिला है। इसके साथ ही कर्मचरिओं ने मांग रखी है कि भाजपा के चुनावी दृष्टिपत्र के अनुसार पुरानी पेंशन की बहाली के लिए जल्द कमेटी गठन किया जाए।
बेरोजगार कला अध्यापक शिक्षा विभाग व सरकार से खफा है। इनअध्यापकों को प्रशिक्षण देने के बाद भी उन्हें आज तक नियुक्ति ही नहीं मिल पाई है। बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार से बार -बार गुहार लगाने के बात भी उनकी मांगों को अनदेखा कर रही है। अब इन बेरोजगार कला अध्यापकों ने सरकार को दो टूक कह दिया है की उनकी अनदेखी का पता सरकार को 2022 में विधानसभा चुनाव में चल जाएगा। बेरोजगार कला अध्यापकों का कहना है की वर्ष 2005 से 2009 तक एससीवीटी के माध्यम से सरकार ने हजारों बच्चों को मैट्रिक आधार पर कला अध्यापक का प्रशिक्षण करवाया ताकि उन सभी को रोजगार प्राप्त हो सके, लेकिन उसके बाद सरकार ने कला अध्यापक बनने के लिए 12वीं में 50 प्रतिशत अंकों के साथ न्यूनतम योग्यता अनिवार्य रख दी गई। इससे पता लगाया जा सकता है कि ना तो सरकार और ना शिक्षा विभाग को इस बात का ज्ञान था कि कला अध्यापक बनने के लिए न्यूनतम योग्यता क्या होनी चाहिए थी। बेरोजगार कला अध्यापकों संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज ने कहा कि वह सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें सरकारी स्कूलों में चल रहे कला अध्यापकों के खाली पदों में नियुक्ति प्रदान करें, लेकिन सरकार उन्हें हर बार झूठे आश्वासन ही दे रही है। उन्होंने कहा की जहां भी शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री का कोई भी कार्यक्रम होता है वहां पर यह सभी कला अध्यापक यह आस लगाकर पहुंच जाते हैं कि इस बार सरकार हमारी मांगे जरूर पूरा करेगी, लेकिन आज तक कोई भी सुनवाई नहीं हो सकी। उन्होंने बताया की अभी हाल ही में कला अध्यापकों के 500 पद भरने की एक फाइल शिक्षा विभाग से वित्त विभाग के पास गई है, इसके साथ ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपना बजट 12 हजार पद शिक्षा विभाग में भरने के लिए कहा था, मगर बेरोजगार कला अध्यापकों को इस बात का भी पता नहीं है कि कला अध्यापक के 500 पद इन पदों में शामिल है भी या नहीं। उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से मुख्यमंत्री जी हमें आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहे हैं कि कला अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया जल्द शुरू होगी, लेकिन यह आश्वासन केवल झूठे जुमले साबित हो रहे है। हिमाचल में करीब 1800 कला अध्यापकों के पद खाली बेरोजगार कला अध्यापक संघ के अनुसार मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र मण्डी की बात करें तो इस समय जिला मंडी में ही कला अध्यापक के 284 पद खाली चल रहे हैं। उन स्कूलों में बच्चों को कला विषय तो है, लेकिन उसे पढ़ाने वाला अध्यापक ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी जिला में कई ऐसे स्कूल है जहां पर कला अध्यापक कई सालों से नहीं है। इस समय पूरे हिमाचल में 1800 के आसपास कला अध्यापक के पद खाली चल रहे हैं। बच्चों के माता-पिता को मजबूरन अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजना पड़ रहा है, क्योंकि सरकारी स्कूलों में अध्यापक ही नहीं होंगे तो वहां पर बच्चों का भविष्य कैसा होगा। सभी बेरोजगार कला अध्यापकों ने मांग की है कि हिमाचल के सरकारी स्कूलों को दिल्ली में चल रहे सरकारी स्कूलों की तरह बनाया जाए। सभी को एक समान शिक्षा दी जाए व सभी सरकारी स्कूलों में सभी विषयों के अध्यापकों की नियुक्ति की जाए नहीं तो हिमाचल में भी यही हाल होगा जो दिल्ली में विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार का हुआ था।
लम्बे अर्से बाद हिमाचल कैबिनेट ने प्रदेश के कर्मचारी वर्ग के लिए एक बड़ा राहत भरा फैसला लिया गया है। हालहीं में हुई जयराम मंत्रिमंडल की बैठक में प्रदेश के हजारों अनुबंध कर्मियों, दैनिक/कंटींजेंट और अंशकालिक कार्यकर्ताओं को सौगात दी गई है। बैठक में विभिन्न विभागों में कार्यरत उन अनुबंध कर्मचारियों के सेवाकाल को नियमित करने का निर्णय लिया गया, जिन्होंने 31 मार्च 2021 को तीन वर्ष का सेवाकाल पूरा किया है या जिनका सेवाकाल 30 सितंबर 2021 को पूरा होने जा रहा है। इसी तरह मंत्रिमंडल ने उन दैनिक/कंटींजेंट कार्यकर्ताओं की सेवाएं भी नियमित करने का निर्णय लिया जो 31 मार्च को अपनी सेवाओं के पांच साल पूरा कर चुके हैं या फिर 30 सितंबर को पूरा करने वाले हैं। इसके साथ ही इन्हें विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े पदों पर नियमित करने का भी फैसला लिया गया है। मंत्रिमंडल ने उन अंशकालिक कार्यकर्ताओं की सेवाओं को विभिन्न विभागों में दैनिक वेतन भोगी के रूप में परिवर्तित करने का भी निर्णय लिया, जिन्होंने 31 मार्च 2021 को 8 वर्ष का निरंतर सेवाकाल पूरा कर लिया है अथवा 30 सितंबर 2021 को पूरा करने जा रहे हैं। इस फैसले से हिमाचल के कर्मचारी बेहद खुश है व हिमाचल के के कर्मचारी वर्ग ने मुख्यमंत्री व सरकार का आभार भी जताया है। कर्मचारियों की और भी कई मांगें लंबित पड़ी है जैसे पुरानी पेंशन बहाली की मांग, जेसीसी की बैठक जल्द बुलाने की मांग, अनुबंध काल को 2 वर्ष करने की मांग, नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग इतियादी। कर्मचारियों ने ये उम्मीद जताई है की सरकार इन मांगों को भी जल्द पूरा करेगी।
कांगड़ा नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के कांगड़ा जिला प्रधान राजिन्दर मन्हास ने प्रदेश सरकार से एक बार फिर 2009 की केंद्र की अधिसूचना को हिमाचल में लागू करने का आग्रह किया है। जिला प्रधान ने कहा कि इस समय कोरोना महामारी से निपटने में सरकारी कर्मचारी फ्रंट बैरियर की अहम भूमिका निभा रहे हैं जिसमें स्वास्थ्य विभाग, पुलिस विभाग के कर्मचारी हाई रिस्क में दिन रात इस महामारी से निपटने में कार्य कर रहे हैं। इसके साथ इस संकट काल में बिजली विभाग, जल शक्ति विभाग के कर्मचारी भी रात दिन सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में एक लाख एनपीएस कर्मचारियों के लिए 2009 की अधिसूचना का हिमाचल में लागू करना बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि इस अधिसूचना के तहत एनपीएस कर्मचारी की सेवा के दौरान मौत पर या उसके अपंग होने पर परिवार को या कर्मचारी को पुरानी पेंशन के तहत लाभ प्रदान किए जाते है। इस अधिसूचना को उत्तर प्रदेश के साथ कई राज्य लागू कर चुके है। जिला प्रधान ने कहा कि पिछले कल भी स्वारघाट के एक 39 वर्षीय एनपीएस कर्मचारी की कोरोना की वजह से मौत हो गई है, जिसके दो छोटे-छोटे बच्चें हैं। अगर यह अधिसूचना लागू होती तो दिवंगत कर्मचारी के परिवार को फैमिली पेंशन का लाभ मिल जाता। इससे कर्मचारी के परिवार को सामाजिक सुरक्षा मिलती। जिला प्रधान ने कहा कि इस संकट की घड़ी में हिमाचल का हर कर्मचारी प्रदेश सरकार के साथ है और किसी भी तरह के सहयोग के लिए पूर्ण रूप से तैयार है तो ऐसे में सरकार की भी कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए नैतिक ज़िम्मेवारी बनती है। उन्होंने प्रदेश सरकार से आगामी कैबिनेट मीटिंग में इस अधिसूचना को जल्द लागू करने कि उम्मीद जताई है।
हिमाचल प्रदेश के आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट महासंघ ने डॉ विक्रमादित्य को आयुष विभाग में ओएसडी नियुक्त करने पर ख़ुशी व्यक्त की है. महासंघ का कहना है कि आयुष विभाग में पिछले काफी समय से उनके ओएसडी के पद पर नियुक्ति के आदेश जारी नहीं हो रहे थे. अब डॉ विक्रमादित्य के ओएसडी पद पर नियुक्ति होने से विभाग के कार्य में और अधिक तेज़ी आएगी. महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष तिलक ठाकुर ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और स्वास्थ्य एवं आयुष मंत्री राजीव सैजल का इस नियुक्ति के लिए धन्यवाद किया.
सीटू से सम्बन्धित हिमाचल प्रदेश मनरेगा व निमार्ण मजदूर फेडरेशन की राज्य कमेटी के आह्वान पर 22 अप्रैल को प्रदेशभर में श्रम अधिकारियों व निरीक्षकों के कार्यालयों के बाहर ज़ोरदार प्रदर्शन किए जाएंगे। इस दौरान प्रदेश भर में सैंकड़ों मजदूर मनरेगा व निर्माण मजदूरों की मांगों को प्रदेश सरकार से उठाएंगे। फेडरेशन ने चेताया है कि अगर मांगें शीघ्र पूर्ण न हुईं तो मजदूर शिमला कूच करेंगे व भवन एवम अन्य निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के ख़लीनी स्थित कार्यालय का घेराव करेंगे। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, फेडरेशन के प्रदेशाध्यक्ष जोगिंद्र कुमार व महासचिव भूपिंद्र सिंह ने कहा है कि मनरेगा व निर्माण मजदूरों की मांगों पर प्रदेश सरकार का रवैया बेहद नीरस व लचर है। इन मांगों को लेकर सीटू का एक प्रतिनिधिमंडल 17 मार्च को मुख्यमंत्री व श्रम मंत्री से मिला था। इसके बाद सीटू का प्रतिनिधिमंडल श्रमिक कल्याण बोर्ड के सचिव से भी मिला था। इस दौरान सीटू ने माँगपत्र में मनरेगा मजदूरों का पंजीकरण एक माह में करने की मांग की थी जिसके लिए सभी जिलों में श्रम कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की मांग की गई थी। सीटू ने मांग की थी कि मजदूरों को मिलने वाले लाभों को तीन माह में जारी किया जाये जिसके लिए ज़िला स्तर पर श्रम विभाग के श्रम अधिकारियों को दिये गए अतिरिक्त कार्य के बजाए बोर्ड के कार्यों के लिए बोर्ड के अलग श्रम कल्याण अधिकारी नियुक्त किये जाएं। वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाया जाए और पंजीकरण का कार्य उपमंडल स्तर पर किया जाए। प्रदेश के जिन क्षेत्रों में पंजीकरण अधिक हुआ है उन क्षेत्रों में बोर्ड के नए कार्यालय खोले जाएं। लंबे समय से जारी नहीं किए जा रहे सामान को जल्दी जारी करने की मांग की गई थी। सीटू ने नए लेबर कोड की आड़ में भवन एवम अन्य निर्माण कामगार कानून 1996 को कमज़ोर करने पर चिंता जाहिर की है। केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा व निर्माण मजदूरों को वितरित किए जाने वाले सामान पर प्रतिबंध लगाना मजदूर विरोधी कदम है जिसे वापिस लिया जाए। सीटू ने मांग की है कि सामान वितरण का कार्य बोर्ड के कर्मचारियों के माध्यम से करवाया जाए और इसमें हो रहे राजनैतिक हस्तक्षेप को रोका जाए। पंजीकरण के लिए एक समान नियम लगाए जाएं और पंजीकरण के लिए मजदूर यूनियनों द्वारा जारी प्रमाण पत्रों को वैध माना जाए। बोर्ड से मिलनी वाली पेंशन की राशि एक हज़ार से बढ़ाकर दो हज़ार रुपए की जाए। छात्रवृति की राशि लड़कों व लड़कियों के लिए एक समान की जाए। लॉकडाउन अवधि की सहायता राशि सभी मजदूरों को जल्द जारी की जाए और वर्ष 2018 से पहले के पंजीकृत मजदूरों को चैक के माध्यम से यह सहायता प्रदान की जाए। मजदूरों को कार्य करने के औज़ार खरीदने के लिए दस हज़ार रुपए की सहायता राशि जारी की जाए। इसके अलावा मंडी श्रम अधिकारी व बोर्ड के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली के बारे में भी मुद्दा उठाया गया क्योंकि बोर्ड के कर्मचारी वर्तमान में मज़दूरों के प्रपत्रों की प्राप्ति रसीदें जारी नहीं कर रहे हैं और मजदूरों के लाभों के आवेदनों को शिमला स्वीकृति के लिए नहीं भेज रहे हैं। गत वर्ष की छात्रवृति के क्लेम अभी तक शिमला नहीं भेजे गए हैं। ऐसी ही सामग्री प्रसुविधा के प्रपत्रों की स्थिति है। सीटू ने चेताया है कि अगर मनरेगा व निर्माण मजदूरों की मांगें पूर्ण न की गईं तो फिर प्रदेशव्यापी आंदोलन होगा।
नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर, महासचिव शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सौरभ वैद, महिला विंग अध्यक्षा सुनेश शर्मा, कोषाध्यक्ष शशि पाल शर्मा, संविधान पर्यवेक्षक श्याम लाल गौतम, मुख्य प्रवक्ता सुभाष शर्मा, मुख्य सलाहकार अश्वनी राणा, मीडिया प्रभारी पंकज शर्मा, महिला विंग वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनीता चौहान, महासचिव ज्योतिका मेहरा, उपाध्यक्ष मोनिका राणा, आईटी सेल प्रभारी शैल चौहान, सह प्रभारी घनश्याम बिरला, अनुशासन समिति के अध्यक्ष अरुण धीमान, राज्य उपाध्यक्ष भिंदर सिंह, संजय, नित्यानंद सदाट, बलदेव बिष्ट, अजय राणा, जिला कांगड़ा के अध्यक्ष राजेंद्र मन्हास, जिला चंबा के अध्यक्ष सुनील जरियाल, जिला उन्ना के अध्यक्ष कमल चौधरी, जिला हमीरपुर के अध्यक्ष राकेश धीमान, जिला मंडी के अध्यक्ष लेखराज, जिला कुल्लू के अध्यक्ष विनोद डोगरा, जिला लाहौल स्पीति के अध्यक्ष प्रताप सिंह कटोच, जिला बिलासपुर के अध्यक्ष राजेंद्र वर्धन, जिला सोलन के अध्यक्ष अशोक ठाकुर, जिला शिमला के अध्यक्ष कुशाल शर्मा, जिला सिरमौर के अध्यक्ष सुरेंद्र पुंडीर, जिला किन्नौर के अध्यक्ष वीरेंद्र जिंटो इत्यादि ने सामूहिक बयान में कहा कि कर्मचारियों को सरकार से हिमाचल दिवस के अवसर पर उम्मीद थी कि वह कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली के लिए जरूर कोई कदम उठाएंगे। उन्हें उम्मीद थी कि कम से कम वह केंद्र सरकार द्वारा की गई अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन का प्रावधान है, उससे संबंधित घोषणा मुख्यमंत्री हिमाचल दिवस के अवसर पर जरूर करेंगे। सभी ने सामूहिक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों की उपरोक्त मांग को पूरा ना करके कर्मचारियों को निराश करने का काम किया है क्योंकि पिछले 5 वर्षों से कर्मचारी लगातार अपनी इन मांगों को लेकर संघर्षरत है। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब सत्ता में आई थी तो इन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन की मांग को रखा था जिससे कर्मचारियों में उम्मीद जगी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने धर्मशाला में कर्मचारियों के बीच आकर पुरानी पेंशन बहाली के लिए कमेटी के गठन का वादा किया था लेकिन हमेशा सरकार ने कर्मचारियों को निराश ही किया है। 7 मार्च से 20 मार्च तक कर्मचारी लगातार धरने पर थे। 20 मार्च को जब कर्मचारी अपने धरना स्थल नहीं छोड़ रहे थे तो मुख्यमंत्री ने महासंघ को बुलाकर कर्मचारियों की इस समस्या को निकट भविष्य में समाधान करने का आश्वासन दिया था जिससे उम्मीद जगी थी कि 15 अप्रैल को मुख्यमंत्री ज़रूर कर्मचारियों के लिए यह सौगात देंगे। कर्मचारियों की इस निराशा को देखते हुए महासंघ ने निर्णय लिया है कि 18 अप्रैल को कर्मचारी अपने आंदोलन की आगामी रूपरेखा तैयार करेगा। इस आंदोलन को और तेज किया जाएगा ताकि वर्तमान सरकार को कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करनी पड़े। उन्होंने कहा कि अभी तक तो कर्मचारी केवल छोटे-छोटे धरना प्रदर्शन तक ही सीमित थे। पर आने वाले समय में पेंशन लेने वाले नेताओं का घेराव किया जाएगा। प्रदेश के इतिहास में कर्मचारी राजनीति का एक अलग ही इतिहास रहा है। यह इतिहास फिर प्रदेश के कर्मचारी द्वारा आने वाले समय में दोहराया जाएगा। उन्होंने कहा कि 18 अप्रैल को जो भी रणनीति तय की जाएगी उसके लिए प्रदेश के सभी कर्मचारियों से भी सुझाव मांगे गए हैं ताकि इन सुझावों के अनुसार ही आंदोलन की अगली रूपरेखा बनाई जा सके। उन्होंने कहा कि भविष्य में यदि कर्मचारियों को लंबी हड़ताल पर भी जाना पड़े तो इस विषय में भी कर्मचारी विचार कर रहे हैं ताकि यदि सरकार में बैठे नेताओं को किसी तरह की गलतफहमी हो कि वह कुछ भी कर सकते हैं तो उनकी गलतफहमी दूर की जा सके। क्योंकि वह खुद तो 3-4 पेंशन ले रहे हैं और कर्मचारियों को उनके बुढ़ापे में बेसहारा छोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह तो तय है कि पेंशन लेने वाले नेताओं का घेराव सड़कों पर भी होगा, उनके कार्यालय में भी होगा और उनके घर में भी होगा ।
कई सालों से बेरोजगार कला अध्यापक संघ द्वारा प्रशिक्षण लेने के बाद भी सरकार से लगातार अपनी नौकरी की आस गाए जा रहे हैं लेकिन सरकार ने भी उन्हें झूठे आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं दिया। यह बात कह कर उन्हें टाल दिया जाता है कि आप के पदों की भर्ती प्रक्रिया चली हुई है और जल्द ही आपके कला अध्यापकों के पदों को जरूर भरेंगे। कुछ दिन पहले शिक्षा विभाग ने 500 कला अध्यापकों के पदों को भरने हेतु एक फाइल बनाकर वित्त विभाग के पास भेजा था लेकिन वित्त विभाग ने कुछ कारणवश वह फाइल दोबारा से शिक्षा विभाग को भेज दी थी। उसके बाद शिक्षा विभाग ने फिर से या फाइल वित्त विभाग के पास भेजी लेकिन वित्त विभाग ने आज तक आगे की कोई प्रतिक्रिया नहीं की और हैरानी की बात यह है कि वह वित्त विभाग माननीय मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी के पास ही है। बेरोजगार कला अध्यापक के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज ने कहा कि कई महीनों से कला अध्यापकों के पदों को भरने वाली फाइल शिक्षा विभाग से वित्त विभाग और वित्त विभाग से शिक्षा विभाग के पास ही घूम रही है, गलती किसकी माने सरकार की या शिक्षा विभाग की ? इस पर महासचिव प्रेमदीप कटोच ने कहा कि इससे बढ़िया तो अगर सरकार सभी सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्य को यह पद भरने की लिए अनुमति दे देते तो यह कार्य बहुत ही जल्द खत्म हो जाता और इसी सत्र से से ही सभी सरकारी स्कूलों में कला अध्यापक की नियुक्ति हो जाती। सरकारी स्कूलों में सभी विषयों के अध्यापक ही नहीं है तो बच्चों के माता-पिता भी अपने बच्चों को मजबूरन प्राइवेट प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए विवश होना पड़ रहा है। 16 मार्च 2021 को सभी बेरोजगार कला अध्यापकों ने विधानसभा में एक जन आक्रोश रैली की थी और उस समय भी माननीय मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि अप्रैल महीने में होने वाली कैबिनेट मीटिंग में आप के पदों को मंजूरी दे दी जाएगी लेकिन अभी कुछ दिन पहले अप्रैल में ही एक कैबिनेट मीटिंग हुई जिसमें अन्य पदों को मंजूरी दे दी गई लेकिन कला अध्यापकों के पदों को फिर से दरकिनार किया गया। इसके बाद सभी बेरोजगार कला अध्यापकों ने सरकार के झूठे आश्वासनों से निराश होकर एक बार फिर सरकार से टक्कर लेने के लिए आगे की रणनीति तैयार कर ली है और दोबारा सरकार से एक बार आग्रह किया है कि अगर अप्रैल महीने में कला अध्यापकों के पदों को वित्त विभाग से मंजूरी नहीं दिलाई तो फिर सभी बेरोजगार कला अध्यापकों को बहुत बड़ा कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ेगा जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
आज नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ का प्रतिनिधिमंडल महासंघ के महासचिव भरत शर्मा की अध्यक्षता में प्रदेश के महामहिम राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर मिला । राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने महासंघ को आश्वस्त किया कि वह जल्द इस विषय में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से बात करेंगे । इस प्रतिनिधिमंडल में संविधान पर्यवेक्षक श्याम लाल गौतम, उपाध्यक्ष नित्यानंद सदाट, जिला शिमला के महासचिव नारायण हिमराल तथा वरिष्ठ उपाध्यक्ष विजय ठाकुर इत्यादि उपस्थित रहे ।
हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ जिला मण्डी की इकाई का एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को सुन्दरनगर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से सुंदरनगर के पॉलिटेक्निक महाविद्यालय में मिला। यह प्रतिनिधिमंडल राज्य कार्यकारिणी कोषाध्यक्ष अविनाश सैनी, जिला मंडी के अध्यक्ष गिरधारी लाल चौहान, जनकराज की अगुवाई में मिला। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को हिमाचल प्रदेश के विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत 17000 अनुबंध कर्मियों की गत तीन वर्षों से प्रदेश भाजपा सरकार के ठंडे बस्ते में पड़ी एकमात्र मांग, अनुबंध कार्यकाल को 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष करने की घोषणा आगामी 15 अप्रैल को स्वर्ण जयंती हिमाचल दिवस के उपलक्ष्य पर करने हेतु ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्यों को हर बार की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आश्वस्त करवाया कि अनुबंध कर्मचारियों की मांग को हिमाचल प्रदेश सरकार शीघ्र ही पूरा कर देगी। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कभी भी अनुबंध कर्मचारियों की इस मांग को न तो सिरे से खारिज किया है तथा न ही इस मांग को पूरा करने में कोई सकारात्मकता दिखाई है। मुख्यमंत्री के आश्वासन कहीं ना कहीं 17000 अनुबंध कर्मचारियों को एक झुनझुना ही प्रतीत हो रहा है। नगर निगम चुनाव और बजट सत्र से पहले महासंघ की राज्य कार्यकारिणी का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से शिमला में मिला था तथा मुख्यमंत्री ने अनुबंध कार्यकाल को कम करने के सार्थक संकेत दिए थे। परंतु बजट सत्र में मुख्यमंत्री द्वारा इस मांग को नजरअंदाज कर देने से अनुबंध कर्मचारियों में खासा रोष व्याप्त हो रहा है। महासंघ के वित्त सचिव अविनाश सैनी और जिला मण्डी के अध्यक्ष गिरधारी लाल चौहान ने कहा कि यदि आगामी कैबिनेट की मीटिंग में सरकार अनुबंध कार्यकाल को कम करने के मुद्दे पर सहमति जताती है तथा 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस के उपलक्ष्य पर अनुबंध कार्यकाल को कम करने की घोषणा के साथ ही शीघ्र इसकी अधिसूचना जारी करवाती है, तो ही सही मायने में अनुबंध कर्मचारी भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र के वायदे को पूरा किया हुआ मानेंगे। परंतु यदि सरकार यही निर्णय लेने से 15 अप्रैल को चूक जाती है तो प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत अनुबंध कर्मचारी स्वयं को ठगा हुआ महसूस करेंगे। हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ की राज्य कार्यकारिणी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, उपाध्यक्ष सुनील कुमार शर्मा, उपाध्यक्ष गोपाल सिंह वर्मा, उपाध्यक्ष संदीप शर्मा तथा महासचिव सुरेंद्र नड्डा ने बताया कि यदि सरकार 15 अप्रैल को अनुबंध कार्यकाल को घटाने की घोषणा नहीं करती है तो अनुबंध कर्मचारियों के भीतर भाजपा सरकार के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हो सकता है , जिसकी भरपाई भाजपा के लिए भविष्य में कठिन होगी। इस मौके पर महासंघ के प्रतिनिधि मंडल में जिला मंडी के तकनीकी शिक्षा विभाग से जनक जमवाल, नवीन, देवेंद्र, हितेश कुमार, सुनील कुमार ,शुभम, अविनाश, राजेश, विजेंद्र, वीरेंद्र सिंह, प्रदीप, अजय, पदम् देव, प्रेमनाथ, दुर्गा देवी, रविंद्र, रवि धीमान, सरवन कुमार, घनश्याम वर्मा, कुशल, जनक राज, संजीव कुमार, संजय कुमार, जितेंद्र सिंह, संजीव कुमार, प्रवीण सिंह, अनिल कुमार, भूप सिंह और लाल सिंह आदि सदस्य उपस्थित रहे।
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने पदोन्नति सहित कुछ मुद्दों को लेकर निदेशक शिक्षा उच्च को 31 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया था। इस उपलक्ष में हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का शिष्टमंडल शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर से सचिवालय में मिला था। जिस पर संघ ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए निदेशालय के घेराव की बात कही थी l शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि शिक्षकों के सभी वर्गों की पदोन्तियों सहित अन्य मुद्दों को जल्द हल कर दिया जाएगा। साथ ही शिक्षा मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि 10 अप्रैल तक शिक्षकों की प्रवक्ता पद पर पदोन्नति सूची जारी कर दी जाएगी, हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान एवं चीफ प्रेस सेक्रेटरी कैलाश ठाकुर ने एक बयान में यह जानकारी दी हैl साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री के आश्वासन व कोविड-19 के बढ़ते खतरे को देखते हुए संघ ने शिक्षा निदेशालय के घेराव के कार्यक्रम को फिलहाल स्थगित कर दिया है। आज संघ के पदाधिकारियों के साथ हुई चर्चा के बाद संघ ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि यदि 10 तारीख तक भी शिक्षकों की पदोन्नति की सूचियां जारी नहीं की गई तो संघ के पास शिक्षा विभाग एवं सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। जिसके लिए हिमाचल सरकार एवं शिक्षा विभाग स्वयं जिम्मेदार होगा l
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व किसान संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर सीटू व हिमाचल किसान सभा ने मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों, तीन कृषि कानूनों, कृषि के निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण आदि के खिलाफ प्रदेशव्यापी प्रदर्शन किए। ये प्रदर्शन शिमला, रामपुर, रोहड़ू, हमीरपुर, कुल्लू, मंडी, धर्मशाला, चम्बा, ऊना, सोलन, सिरमौर व किन्नौर में किए गए। इन प्रदर्शनों में हज़ारों मजदूर-किसान शामिल रहे। सीटू व हिमाचल किसान सभा ने केंद्र सरकार से मजदूर, किसान व कर्मचारी विरोधी नीतियों पर रोक लगाने की मांग की है। सीटू ने ऐलान किया है कि 28 मार्च को होली के दिन मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों, कर्मचारी व जनता विरोधी बिजली विधेयक 2020 की प्रतियों को जलाकर केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ आक्रोश ज़ाहिर किया जाएगा। इस आह्वान के तहत शिमला के उपायुक्त कार्यालय पर मजदूरों व किसानों द्वारा जोरदार प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, जिला सचिव बाबू राम, हिमाचल किसान सभा राज्य कोषाध्यक्ष सत्यवान पुंडीर, जिला कोषाध्यक्ष जयशिव ठाकुर, बालक राम, विनोद बिरसांटा, किशोरी ढटवालिया, कपिल शर्मा, सुरेश बिट्टू, सुरेंद्र बिट्टू, दलीप, मदन, राम प्रकाश, पूर्ण चंद, सतपाल बिरसांटा, विक्रम, रंजीव कुठियाला, हिमी देवी, निर्मला, जगत राम व संगीता देवी आदि शामिल रहे। सीटू व हिमाचल सभा ने केंद्र सरकार को चेताया है कि मजदूर विरोधी लेबर कोडों, काले कृषि कानूनों, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण व बिजली विधेयक 2020 के खिलाफ आंदोलन तेज होगा। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, जिला सचिव बाबू राम, किसान सभा जिलाध्यक्ष सत्यवान पुंडीर व कोषाध्यक्ष जय शिव ठाकुर ने धरने को सम्बोधित करते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गई है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। मजदूर विरोधी चार लेबर कोड, तीन कृषि कानून, कृषि का निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020 व सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से ही किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालिया बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों को अमलीजामा पहनाया गया है। इस से केवल पूंजीपतियों,उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है। इस से 70 प्रतिशत उद्योग व 74 प्रतिशत मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। खेती को कॉरपोरेट कम्पनियों व पूंजीपतियों के हवाले करने के दृष्टिकोण से ही किसान विरोधी तीन कृषि कानून लाए गए हैं।
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का एक शिष्टमंडल प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान की अध्यक्षता में निवेशक उच्च अमरजीत शर्मा एवं निदेशक प्रारंभिक से निदेशालय में मिला। शिष्टमंडल में संघ के राज्य मुख्यालय सचिव ताराचंद शर्मा एवं जिला शिमला के अध्यक्ष महावीर कैंथला शामिल थे। शिष्टमंडल ने निदेशक उच्च शिक्षा को लिखित में धरने का ज्ञापन सौंपा। जिसमें संघ ने 28 फरवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शिक्षा विभाग को पदोन्नति का 31 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया था और कहा गया था कि अगर शिक्षा विभाग शिक्षकों की पदोन्नति एवं अन्य मुद्दों का निपटारा नहीं करता है तो 31 मार्च के बाद संघ शिक्षा निदेशालय का घेराव करने पर विवश होगा। इसी संदर्भ में आज शिष्टमंडल ने निदेशक से मिलकर अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहां कि यदि 31 मार्च तक शिक्षकों की पदोन्नति सहित अन्य मुद्दों पर विभाग कार्रवाई नहीं करता है तो अप्रैल के पहले हफ्ते में प्रदेश के हजारों शिक्षक शिक्षा निदेशालय का घेराव करेंगे। साथ ही संघ ने निदेशक प्रारंभिक को मिलकर टीजीटी वर्ग की वारिष्ठता सूची जारी करने एवं पीटीआई शिक्षकों की पदोन्नति सूची में संशोधन करने के लिए भी 1 हफ्ते का समय दिया है। अन्यथा संघ दोनों निदेशालय के खिलाफ अप्रैल माह में हल्ला बोलने पर विवश होगा। साथ ही संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो इसका पूरा उत्तरदायित्व विभाग और सरकार का होगा। इसी संदर्भ में संघ शिक्षा सचिव एवम शिक्षा मंत्री से मिलकर भी अपने धरने का ज्ञापन सौंपेगा। संघ के शिष्टमंडल ने प्रवक्ताओं एवं प्रधानाचार्य के दो टाइम अटेंडेंस लगाने पर भी आपत्ति दर्ज की और इस अधिसूचना को तुरंत वापस लेने की मांग की। जिस पर निदेशक ने सहानुभूति पूर्वक विचार करने की बात कही उन्होंने पदोन्नति को शीघ्र करने पर विचार करने की बात भी स्वीकार की।
आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता व हेल्परज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू की हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी की बैठक सम्पन्न हुई। राज्य कमेटी बैठक में आंगनबाड़ी कर्मियों की प्री प्राइमरी में नियुक्ति व अन्य मांगों को लेकर गम्भीर चिन्तन मंथन हुआ व आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया गया। कर्मियों की मांगों को लेकर ग्यारह से तीस मई तक प्रदेशव्यापी आंदोलन करने का निर्णय लिया गया। इसके तहत मंडी, जोगिन्दरनगर, सरकाघाट, धर्मशाला, पालमपुर, देहरा, शिमला, रामपुर, रोहड़ू, ठियोग, अर्की, नालागढ़, पच्छाद, संगड़ाह, शिलाई, पौण्टा साहिब, नाहन, चम्बा, हमीरपुर, बंजार, बिलासपुर व ऊना में कर्मियों द्वारा धरने प्रदर्शन किए जाएंगे। बैठक में सीटू राष्ट्रीय सचिव कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, यूनियन प्रदेशाध्यक्ष नीलम जसवाल, महासचिव वीना देवी, सुमित्रा देवी, सुलोचना देवी, किरण कुमारी, बिमला देवी, स्वर्चा देवी, शशि किरण, हरदेई देवी, हिमी देवी, राजकुमारी, बिम्बो देवी, कौशल्या देवी, वीना देवी, मीना देवी, सुदेश कुमारी, रंजना देवी, नीलम रानी, ममता देवी, रीना देवी, मधुबाला, अंजुला कुमारी आदि शामिल रहे। यूनियन की प्रदेशाध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आंगनबाड़ी वर्करज़ को प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए नियुक्त करने के आदेश जारी न किए तो आंदोलन तेज होगा। उन्होंने केवल आंगनबाड़ी कर्मियों को ही प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए नियुक्त करने की मांग की है क्योंकि छः वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शिक्षा का कार्य पिछले पैंतालीस वर्षों से आंगनबाड़ी कर्मी ही कर रहे हैं। उन्होंने नई शिक्षा नीति को वापिस लेने की मांग की है क्योंकि यह न केवल छात्र विरोधी है अपितु आइसीडीएस विरोधी भी है। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2021 के आइसीडीएस बजट में की गई 30 प्रतिशत की कटौती को आंगनबाड़ी कर्मियों के रोज़गार पर बड़ा हमला करार दिया है। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा आंगनबाड़ी वर्करज़ व हैल्परज़ के वेतन में पांच सौ व तीन सौ रुपये की बढ़ोतरी को क्रूर मज़ाक करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि आंगनबाड़ी कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों के लिए तीन हज़ार रुपये पेंशन, दो लाख रुपये ग्रेच्युटी, मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है। है। उन्होंने कहा कि सरकार आइसीडीएस के निजीकरण का ख्याली पुलाव बनाना बन्द करे। देश के अंदर चलने वाली सभी योजनाओं से देश की लगभग एक करोड़ महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। केंद्र सरकार लगातार इन योजनाओं को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है। इस से केंद्र सरकार की महिला सशक्तिकरण व नारी उत्थान के नारों की पोल खुल रही है। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत किये गए कार्य की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि प्री प्राइमरी कक्षाओं व नई शिक्षा नीति के तहत छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी वर्करज़ को दिया जाए क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इस संदर्भ में उनकी नियमित नियुक्ति की जाए तथा इसकी एवज़ में उनका वेतन बढाया जाए।
शिमला। पूर्व सैनिक सामाजिक कल्याण, युवा सशक्तिकरण एवं कृषि विकास संस्था जिला शिमला भी एन.पी.एस. कर्मियों के समर्थन में उतर आई है। संस्था के जिलाध्यक्ष मोहन शर्मा ने बताया कि जब विधायक और सांसद पेंशन ले रहे है, तो कर्मचारियों को इससे वंचित रखना तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने बताया कि अधिकतर नेता पांच या दस साल तक विधायक या सांसद चुने जाते है, वह तो पेंशन के लिए पात्र हो जाते है लेकिन जो कर्मचारी अपना पूरा जीवन सरकारी सेवा में समर्पित करता है, उसे पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। उन्होंने बताया कि कर्मचारी ऐसे वक्त में रिटायर होता है, जब उसे चिकित्सीय सेवाओं की जरूरत रहती है। इस पर लाखों रुपए तक खर्च हो जाता है। ऐसे में पेंशन न मिलने की वजह से कर्मचारी उपचार से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने सरकार से सभी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने का आग्रह किया है।
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व किसान संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर मजदूर विरोधी लेबर कोडों, कृषि के निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र, बैंक, बीमा, बीएसएनएल, बिजली, ट्रांसपोर्ट, रेलवे के निजीकरण आदि के खिलाफ शिमला के रेलवे स्टेशन पर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने रेलवे स्टेशन पर धरना दे दिया व केंद्र सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी पर उतर आए। प्रदर्शन में विजेंद्र मेहरा, बाबू राम, बालक राम, किशोरी ढटवालिया, विनोद बिरसांटा, विकास, प्रेम चंद, देशराज, राम प्रकाश, सुरजीत, हिमी देवी आदि शामिल रहे। सीटू ने केंद्र सरकार को चेताया है कि मजदूर विरोधी लेबर कोडों, काले कृषि कानूनों, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण व बिजली विधेयक 2020 के खिलाफ आंदोलन तेज होगा। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व जिला सचिव बाबू राम ने रेलवे स्टेशन पर हुए धरने को सम्बोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की निजीकरण की मुहिम से ऐतिहासिक शिमला-कालका रेल लाइन भी पूंजीपतियों के कब्जे में चली जाएगी। इस रेल लाइन का न केवल ऐतिहासिक व पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्व है अपितु इस से हिमाचल के लोगो की भावनाएं भी जुड़ी हैं। उन्होंने कहा है कि जनता इसका निजीकरण किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने बैंक कर्मचारियों की अभूतपूर्व हड़ताल पर जनता को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि सीटू 15-16 मार्च को बैंक, 17 मार्च को जनरल इंश्योरेंस,18 मार्च को लाइफ इंश्योरेंस की हड़ताल व 24-26 मार्च को क्रमिक भूख हड़ताल का समर्थन करती है क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गई है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि हालिया बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों को अमलीजामा पहनाया गया है। इस से केवल पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है। इस से 70 प्रतिशत उद्योग व 74 प्रतिशत मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे।
हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा ने जिला कांगडा के फतेहपुर में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मुलाकात कर एक ज्ञापन सौंपा। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ पिछले काफि समय से लगातार सरकार के समक्ष अपनी मांगों को लेकर मुखर हुआ है। इसी कडी में फलेहपुर विधानसभा में जयराम ठाकुर जी के दौरे के चलते प्रदेशाध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा ने अपनी मांगें पुनः सरकार के सामने रखी। विधानसभा में बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों के लिए एक माॅडल टेंडर डाक्युमेंट बनाकर सभी विभागों को भेजने की भी बात कही थी और कहीं न कहीं यह भी मानते है कि आउटसोर्स प्रथा प्रदेश हित में नहीं है। जल शक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने विधानसभा में जल शक्ति विभाग के कुछ कर्मचारियों को विभाग में मर्ज करने की बात कही है जिससे प्रदेश में कार्यरत हजारों कर्मचारियों को एक आस नजर आई है। शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में लगभग पिछले 10-15 साल से विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डों, योजनांओं एवं कार्यालयों में आउटसोर्स आधार पर हजारों कर्मचारी अपनी सेवांए दे रहे है। ये कर्मचारी सरकार के दूसरे नियमित कर्मचारियों के साथ बराबर काम करने के साथ-2 दिए गए पद के सभी कार्य संभालते है। जब बात वेतन एवं सुविधांओ की आती है तो हमेशा से ही हम सब सौतेला व्यवहार एवं शोषण झेल रहे है। जहां उसी काम या पद को संभालने के लिए एक नियमित कर्मचारी को 40-50 हजार रू का वेतन मिलता है वहीं उसी काम तथा पद का कार्य संभालने के लिए आउटसोर्स कर्मचारियों को 6 से 8 हजार रू मिलते है उसके लिए भी आधा महिना तरसती निगाहों से इंतजार करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इन्सान के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण समय 21 वर्ष से शुरू होकर लगभग 35 वर्ष तक होता है। किसी भी व्यक्ति या परिवार का जीवन इन 10-15 वर्षों पर निर्भर करता है क्योंकि ये वह समय होता है जब हम अपनी शिक्षा के बाद स्वतंत्र रूप से ऐसा व्यवसाय या काम चुनते है जो हमें सामाजिक तथा आर्थिक रूप से सुदृड़ बनाकर सम्मानजनक जीवन देता है। इतने महत्वपूर्ण साल बिताने के बाद में चयन आयोग से उसी पद को संभालने के लिए एक कर्मचारी नियुक्त होता है और पिछले 10-15 वर्षों से ईमानदारी से बिना किसी स्वार्थ के काम कर रहे कर्मचारी को घर बैठने पर मजबुर होना पड़ता है। यह बात चिंतनिय है कि अपने जीवन के महत्वपूर्ण 5-10 वर्ष किसी कार्यालय या संस्था को देने के बाद भी व्यक्ति को एक सम्मानजनक जीवन नहीं मिलता फिर जीवनयापन के लिए दर-दर की ठोंकरे खानी पडती है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ने सभी कर्मचारियों, उनके परिवारों तथा हिमाचल को युवाओं के हित को देखते हुए मांग की है कि आउटसोर्स प्रथा को बंद किया जा सके जिससे कोई भी युवा अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण साल युं ही नाम मात्र के वेतन के लिए खर्च न करें। उन्होंने मांग की है कि जो कर्मचारी इस समय विभाग में है उनके लिए एक स्थायी नीति बनाकर उन्हें वरियता के आधार पर आने वाली भर्तियों में कोटे के माध्यम से विभाग में लिया जाए। अन्य मांगों में समय पर वेतन, नौकरी की सुरक्षा, समान काम समान वेतन इत्यादि शामिल है।
शिमला में उपायुक्त कार्यालय शिमला के बाहर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा लगातार 9 वें दिन धरना दिया गयाl धरने में सिरमौर जिले से कर्मचारियों ने जिला अध्यक्ष सिरमौर सुरेंद्र पुंडीर की अध्यक्षता में भाग लियाl राज्य महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि आज लगातार 9 दिन हो गए है कर्मचारी अपनी मर्यादा में रह कर चुपचाप शांतिपूर्ण ढंग से एनपीएस का विरोध कर रहा है परंतु सरकार ने एक बार भी कर्मचारियों की सुध नहीं ली। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ इसकी घोर निंदा करती है और मांग करती है कि जल्द कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल की जाएl उन्होंने कहा कि हम अनेकों बार मुख्यमंत्री, सभी कैबिनेट मंत्री, सभी विधायकों से मिले और सब ने आश्वस्त किया कि जल्द इस बारे कोई सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा, परन्तु ऐसा अब तक नहीं हुआ। हिमाचल प्रदेश सरकार बार बार ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लेती है कि ये तो केंद्र का मामला है परंतु आरटीआई के जवाब में केंद्र ने साफ किया है कि यह राज्य सरकार का मामला हैl अगर राज्य चाहे तो वेस्ट बंगाल की तर्ज पर वो अपने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दे सकती है। केंद्र का अनुसरण करने वाली हिमाचल सरकार पुरानी पेंशन बहाली को तो केंद्र का मामला बताती है परंतु केंद्र द्वारा 5 मई 2009 में जारी की गई अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु या दिव्यांग होने पर उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन का प्रावधान है संबंधित अधिसूचना को हिमाचल प्रदेश में 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी लागू नहीं कर रही हैl यदि सरकार कर्मचारियों की मांग पर ध्यान नहीं देती तो 17 मार्च को प्रदेश के हर एक कार्यालय में सभी कर्मचारी काली पट्टी बांधकर नई पेंशन व्यवस्था और सरकार का विरोध करेंगे ल शिमला CTO में जिला अध्यक्ष सिरमौर सुरेंद्र पुंडीर ने कहा कि पुरानी पेंशन हमारा हक हैl अगर नई पेंशन इतनी अच्छी योजना है तो सबसे पहले नेताओं को ये अपने लिए लागू करनी चाहिए l इस मांग को सरकार के समक्ष रखा गया है परंतु कोई सुनवाई नहीं हुई है। इसलिए कर्मचारियों को संघर्ष करने के लिए मजबूर होना पड़ा है और ये संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन बहाल नहीं होती।
हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा पेश किये गए बजट का स्वागत किया और इस बजट को सबका साथ सबका विकास नीति पर आधारित बताया। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ यूनियन ने बजट स्पीच में मुख्यमंत्री द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ हो रहें शोषण को रोकने के लिए कदम उठाने की बात का स्वागत किया है। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा ने कहा की हमें उम्मीद है कि सरकार जल्दी हि ठोस कदम उठाते हुए ओउटसोर्स कर्मचारियों की जॉब की सुरक्षा और सम्मान जनक वेतन का विशेष ध्यान रखते हुए एक ठोस नीति बनाएगी। वंही, उन्होंने ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी का बिजली विभाग के आउटसोर्स कर्मचारियों के निलंबन को रोकने के सरकार द्वारा बोर्ड को आदेश के लिए धन्यवाद किया और मजदूर वर्ग के मानदेय बढ़ोतरी के जयराम सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए, उन्होंने हज़ारो परिवारों की ओर से मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में काम कर रहें आउटसोर्स कर्मचारियों की वेतन बढ़ोतरी का सरकार से निवेदन कर शीघ्र हि स्थायी नीति के ऐतिहासिक फैसले के लिए समिति का गठन करने की मांग की।
आंगनबाड़ी वर्करज़ व हेल्परज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू की राज्य कमेटी आंगनबाड़ी कर्मियों की प्री प्राइमरी में नियुक्ति व अन्य मांगों को लेकर नौ मार्च को प्रदेशव्यापी हड़ताल करेगी। इस दिन हज़ारों आंगनबाड़ी कर्मी शिमला में विधानसभा के बाहर ज़ोरदार प्रदर्शन करेंगे। हड़ताल के संदर्भ में यूनियन ने निदेशक महिला एवं बाल विकास विभाग हिमाचल प्रदेश सरकार शिमला को हड़ताल नोटिस भेज दिया है। आंगनबाड़ी कर्मियों ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आंगनबाड़ी वर्करज़ को प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए नियुक्त करने के आदेश जारी न किये तो आंगनबाड़ी कर्मी नौ मार्च को प्रदेशव्यापी हड़ताल करके सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को बन्द कर देंगे व इस दिन प्रदेशभर के हज़ारों आंगनबाड़ी कर्मी बजट सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करेंगे। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2021 के आइसीडीएस बजट में की गई 30 प्रतिशत की कटौती को आंगनबाड़ी कर्मियों के रोज़गार पर बड़ा हमला करार दिया है। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा आंगनबाड़ी वर्करज़ व हैल्परज़ के वेतन में पांच सौ व तीन सौ रुपये की बढ़ोतरी को क्रूर मज़ाक करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि आंगनबाड़ी कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों के लिए तीन हज़ार रुपये पेंशन, दो लाख रुपये ग्रेच्युटी, मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि कर्मियों की रिटायरमेंट उम्र 65 वर्ष करने, नई शिक्षा नीति 2020 को खत्म करने, मिनी आंगनबाड़ी कर्मियों को बराबर वेतन देने की मांग की है। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत किये गए कार्य की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि प्री प्राइमरी कक्षाओं व नई शिक्षा नीति के तहत छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी वर्करज़ को दिया जाए क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इस संदर्भ में उनकी नियमित नियुक्ति की जाए तथा इसकी एवज़ में उनका वेतन बढाया जाए।
जिला कांगड़ा एसएमसी अध्यापक संघ ने सरकार के बजट में 2555 एसएमसी अध्यापकों के साथ 500 रुपये मानदेय में वृद्धि करके भद्दा मज़ाक बताया है,जोकि बहुत ही निराशाजनक हैं। जिला कांगड़ा एसएमसी अध्यापक संघ के अधयक्ष विकास ठाकुर ने कहा कि एसएमसी अध्यापकों को सरकार से उम्मीद थी कि सरकार बजट में 2555 एसएमसी अध्यापकों के लिए पीटीए, पैट, पैरा और पंजाबी व उर्दू अध्यापकों की तर्ज पर स्थाई नीति बनाएगी। लेकिन सरकार ने 500 रुपये बढ़ा कर एसएमसी अध्यापकों के साथ मजाक किया हैं। अब इसको लेकर एसएमसी अध्यापक जल्दी राज्यस्तरीय बैठक करेंगें तथा सड़को पर उतरने से भी परहेज नही करेंगें। उन्होंने कहा कि एसएमसी अध्यापक पिछले 09 वर्षों से हिमाचल प्रदेश के विभिन्न अति दुर्गम घाटियों के स्कूलों में कम वेतन और बिना किसी अवकाश के लगातार अपनी सेवाएं दे रहें हैं। सरकार ने जब पीटीए, पैट, पैरा और पीढ़ियड बेसिस पंजाबी व उर्दू अध्यापकों को नियमित कर दिया हैं, तो सरकार एसएमसी अध्यापकों के साथ अन्याय क्यों कर रही हैं। सरकार इनकी तर्ज पर 2555 एसएमसी अध्यापकों को भी नियमित करें जिससे एसएमसी अध्यापकों का भविष्य सुरक्षित हो सके। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने जल्दी से सही निर्णय नहीं लिया, तो 2555 एसएमसी अध्यापक परिवार सहित सड़कों पर उतरेंगे।
हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने हिमाचल के विभिन्न विभागों में भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत अनुबंध पर नियुक्त होने के बाद नियमित हुए कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने की मांग की है। संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग और महासचिव अनिल सेन के अनुसार विभिन्न विभागों में अनुबंध पर नियुक्त हुए कर्मचारी लंबे समय से वरिष्ठता की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी यह मांग पूरी नही हो पाई है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जा रहा है, जोकि सरासर गलत है। इन कर्मचारियों की मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। चूनावों से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल ने सेनिओरिटी की मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिक्षक महासंघ के ऊना अधिवेशन में वरिष्ठता की मांग को जायज माना है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, संरक्षक राजेश जैसिंघपुरिया, सलाहकार राजेश वर्मा, वित्त सचिव विजय शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता संजय कुमार, उपाध्यक्ष अवतार कपूर, कुलदीप कुमार, प्रदीप कुमार, प्रेस सचिव प्रेम पाल पठानिया, राकेश चौहान, विजय सैनी, प्रदेश सहसचिव निर्माण सिंह, मनदीप चौधरी, आईटी सेल प्रमुख संदीप चंदेल, कुल्लू जिला इकाई के अध्यक्ष सोमेश डोगरा, हमीरपुर जिला अध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार, ऊना जिला अध्यक्ष संजीव बग्गा, शिमला जिला अध्यक्ष मोहित शर्मा, बिलासपुर जिला अध्यक्ष नीरज शर्मा, मंडी जिला अध्यक्ष कृष्ण यादव, चंबा जिला अध्यक्ष राजेंदर पॉल, काँगड़ा जिला अध्यक्ष सुनील पराशर, सिरमौर जिलाध्यक्ष नरेश शर्मा ने सामूहिक बयान में कहा है कि संगठन के पदाधिकारी प्रदेश के कोने-कोने में वरिष्ठता की मांग को मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के समक्ष प्रमुखता से उठा रहे है। बावजूद इसके पिछले तीन सालों से सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही मिल रहे है और संगठन की प्रमुख मांगों को लगातार अनसुना किया जा रहा है। इससे प्रदेश के हजारों कर्मचारी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे है। सरकार ने विधानसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में उतर दिया था कि अनुबंध पर दी गई सेवाओं को कुल सेवाकाल में नही जोड़ा जा सकता। कर्मचारियों का कहना है कि 2008 से पहले बैच और कमीशन के आधार पर कर्मचारियों को अनुबंध पर नही रखा जाता था। इससे पहले कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित आधार पर नियुक्त किया जाता था। इसलिए कर्मचारियों की नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग उचित और न्यायपूर्ण है। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 7 वर्ष के बाद नियमित हुए ,कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं। आने वाले समय में लगता है कि अनुबंध काल 2 और कुछ वर्षों के बाद खत्म ही हो जाएगा। यह 7 वर्ष 6 वर्ष 5 वर्ष और 3 वर्ष के बाद नियमित होने वाले कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग के अनुसार भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। कर्मचारियों को अलग अलग अन्तरालों में नियमित करने से असमानता फैली है। सरकार कर्मचारियों की मांग को पूरा करके इस असमानता को खत्म करे। जब प्रदेश सरकार अन्य कर्मचारियों को लाभ देने के लिए नियम बदल सकती है तो कमीशन पास करके और बैच के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता क्यों नही दे सकती? संगठन प्रदेश सरकार से यह मांग करता है कि प्रदेश की विभिन्न विभागों में कार्यरत अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए और उनके अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने की मुख्यमंत्री जल्द घोषणा करें ताकि समय रहते कर्मचारियों को लाभ मिल सके। संगठन ने उम्मीद जताई है कि जो प्रतिबद्धता सरकार ने अन्य वर्ग को राहत प्रदान करने के लिए दिखाई है, उसी प्रतिबद्धता से सरकार हजारों कर्मचारियों के सेनिओरिटी के मुद्दे को भी जल्द सुलझाएगी और नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करके अपना चुनावी वायदा पूरा करेगी।