राजकीय अध्यापक संघ और प्रदेश सरकार आमने - सामने एक मशवरा और हंगामा बरप गया। एक कर्मचारी संगठन ने सरकार को एक सुझाव दिया या यूँ कहे अपनी राय रखी और सरकार ने फरमान ज़ारी कर दिया। जो हुआ उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। एक ब्यान ने सरकार को ऐसे आहत किया कि बात चेतावनी तक पहुँच गई। कौन सही, कौन गलत ये विश्लेषण का विषय है, लेकिन फिलवक्त सरकार और शिक्षक संगठन आमने - सामने है। बात बढ़ती दिख रही है और एक ब्यान से शुरू हुआ मामला कोर्ट तक भी पहुंच सकता है।दरअसल, कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा हिमाचल सरकार के परीक्षाएं न करवाने के फैसले पर एक ब्यान जारी किया गया था, जिसमें वे संगठन की ओर से प्रदेश में परीक्षाएं करवाने की मांग कर रहे थे। इस ब्यान में सवाल किए गया था कि परीक्षाएं न करवाने से बच्चों की पढाई में जो नुक्सान हो रहा है उसकी भरपाई आखिर कौन करेगा। बयान सामने आते ही सरकार ने संज्ञान लिया और संगठन के तीन पदाधिकारियों को नोटिस थमा दिए। फरमान जारी किया गया की यदि हिमाचल प्रदेश सरकार के निर्णयों को लेकर अध्यापक संघों या कर्मचारियों ने विरोधाभासी बयान दिया तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। पत्र में कहा गया कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि अध्यापक संघ और कर्मचारी समाचार पत्रों या सोशल मीडिया के माध्यम से खुले तौर पर सरकार के फैसलों पर विरोधाभासी बयान दे रहे हैं जोकि सरकारी कर्मचारियों पर लागू केंद्रीय सिविल सेवा नियम 1964 का उल्लंघन है। फिलवक्त शिक्षा निदेशालय और अध्यापक संघो की आपस में रार जगज़ाहिर हो गई है। स्थिति कुछ ऐसी है की जहां सरकार नियमों का सहारा लेकर अध्यापक संघो को विरोधाभासी बयान देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात कर रही है तो वहीं शिक्षक अब इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का मसला बना बैठे है। सरकार ने थमाएं नोटिस सरकार ने बयानबाजी करने वाले शिक्षकों का ब्यौरा तलब कर लिया गया। शिमला जिले में राजकीय अध्यापक संघ के तीन पदाधिकारियों को नोटिस भी दिए गए। अन्य जिलों में उपनिदेशकों ने इस मामले को लेकर क्या कार्रवाई की है। इसका ब्यौरा मांगा गया है। इसी कड़ी में शिक्षा निदेशालय ने सभी जिलों से इस मामले को लेकर अभी तक की गई कार्रवाई को निदेशालय से अवगत करवाने को कहा है। शिक्षा मंत्री से की अधिसूचना को निरस्त करने की मांग सरकार के इस आदेश के बाद विरोधात्मक ब्यान देने वाले शिक्षक संगठनों की नाराज़गी और ज्यादा बढ़ गई है। अध्यापक संघ ने शिक्षा मंत्री से इस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है। अगर ऐसा नहीं होता है तो संघ न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा। संगठन की माने तो ये बस एक सुझाव था, उस समय हिमाचल में कोरोना की स्थिति इतनी खराब नहीं थी और इसीलिए संघ ने ये सुझाव आगे रखा। हिमाचल में कोविड नियंत्रण था और समय रहते परीक्षाएं करवाई जा सकती थी, लेकिन विभाग ने इसे अन्यथा ले कर नोटिस थमा दिया। संघ ने प्री बोर्ड की परीक्षाएं न करने की मांग की थी लेकिन सरकार ने 10 वीं 12 वीं की परीक्षाएं एक पेपर के बाद रद्द कर दी। अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास कर रही सरकार: चौहान पहली कार्रवाई के फेर में आए राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने वीरवार को प्रेस वार्ता कर कहा की सरकार अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास कर रही है। चौहान कहते है की की संघ इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को भी तैयार है। यह तानाशाहीपूर्ण अधिसूचना सभी कर्मचारियों के लिए जारी की गई है। अनुच्छेद 19 के अनुसार भारतीय संविधान ने सभी को अभिव्यक्ति की आजादी दी है जिसे कोई छीन नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल में पहली बार इस तरह का फैसला हुआ है जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी को छीनने का प्रयास किया है।
हिमाचल में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा लिए गए फैसले का एनपीएस कर्मचारी संघ सोलन ने समर्थन किया है। संघ का कहना है की सरकार ने जो कर्मचारियों का एक दिन का वेतन कोविड -19 सहायता के लिए काटा है एनपीएस कर्मचारी संघ उसके लिए तैयार है। एनपीएस कर्मचरियों का कहना है की प्रदेश में लगातार कोरोना के मामलों में वृद्धि हो रही है। ऐसे में सभी कर्मचारियों को सरकार के इस फैसले का समर्थन करना चाहिए। संघ के जिला अध्यक्ष अशोक ठाकुर ने बताया कि एनपीएस कर्मचारी इस संकट के शुरुआत से ही सरकार के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रहे हैं। पिछले वर्ष भी एनपीएस कर्मचारी संघ ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 25 लाख से अधिक राशी दी थी तथा इसके साथ ही सभी कर्मचारियों ने एक दिन का वेतन भी दिया था। एनपीएस कर्मचारियों ने कहा कि भविष्य में भी सभी कर्मचारी सरकार का हर संभव साथ देने का वादा करते हैं। उन्होंने कहा की कर्मचारी अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना कोविड-19 से लड़ रहे हैं। कोई अस्पताल में सेवाएँ दे रहा है तो कोई सड़कों पर लोगों को जागरूक कर रहा है। एनपीएस कर्मचारियों ने सरकार से मांग की है कि केंद्र सरकार की तर्ज पर कर्मचारी की मृत्यु या विकलान्गता पर 2009 की अधिसूचना के तहत पुरानी पेंशन की व्यवस्था को प्रदेश में लागु किया जाए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर एनपीएस कई बार सरकार के समक्ष मांग रख चूका है ,लेकिन अभी तक सरकार कि तरफ से उन्हें कोई भी आश्वासन नहीं मिला है। इसके साथ ही कर्मचरिओं ने मांग रखी है कि भाजपा के चुनावी दृष्टिपत्र के अनुसार पुरानी पेंशन की बहाली के लिए जल्द कमेटी गठन किया जाए।
बेरोजगार कला अध्यापक शिक्षा विभाग व सरकार से खफा है। इनअध्यापकों को प्रशिक्षण देने के बाद भी उन्हें आज तक नियुक्ति ही नहीं मिल पाई है। बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार से बार -बार गुहार लगाने के बात भी उनकी मांगों को अनदेखा कर रही है। अब इन बेरोजगार कला अध्यापकों ने सरकार को दो टूक कह दिया है की उनकी अनदेखी का पता सरकार को 2022 में विधानसभा चुनाव में चल जाएगा। बेरोजगार कला अध्यापकों का कहना है की वर्ष 2005 से 2009 तक एससीवीटी के माध्यम से सरकार ने हजारों बच्चों को मैट्रिक आधार पर कला अध्यापक का प्रशिक्षण करवाया ताकि उन सभी को रोजगार प्राप्त हो सके, लेकिन उसके बाद सरकार ने कला अध्यापक बनने के लिए 12वीं में 50 प्रतिशत अंकों के साथ न्यूनतम योग्यता अनिवार्य रख दी गई। इससे पता लगाया जा सकता है कि ना तो सरकार और ना शिक्षा विभाग को इस बात का ज्ञान था कि कला अध्यापक बनने के लिए न्यूनतम योग्यता क्या होनी चाहिए थी। बेरोजगार कला अध्यापकों संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज ने कहा कि वह सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें सरकारी स्कूलों में चल रहे कला अध्यापकों के खाली पदों में नियुक्ति प्रदान करें, लेकिन सरकार उन्हें हर बार झूठे आश्वासन ही दे रही है। उन्होंने कहा की जहां भी शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री का कोई भी कार्यक्रम होता है वहां पर यह सभी कला अध्यापक यह आस लगाकर पहुंच जाते हैं कि इस बार सरकार हमारी मांगे जरूर पूरा करेगी, लेकिन आज तक कोई भी सुनवाई नहीं हो सकी। उन्होंने बताया की अभी हाल ही में कला अध्यापकों के 500 पद भरने की एक फाइल शिक्षा विभाग से वित्त विभाग के पास गई है, इसके साथ ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपना बजट 12 हजार पद शिक्षा विभाग में भरने के लिए कहा था, मगर बेरोजगार कला अध्यापकों को इस बात का भी पता नहीं है कि कला अध्यापक के 500 पद इन पदों में शामिल है भी या नहीं। उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से मुख्यमंत्री जी हमें आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहे हैं कि कला अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया जल्द शुरू होगी, लेकिन यह आश्वासन केवल झूठे जुमले साबित हो रहे है। हिमाचल में करीब 1800 कला अध्यापकों के पद खाली बेरोजगार कला अध्यापक संघ के अनुसार मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र मण्डी की बात करें तो इस समय जिला मंडी में ही कला अध्यापक के 284 पद खाली चल रहे हैं। उन स्कूलों में बच्चों को कला विषय तो है, लेकिन उसे पढ़ाने वाला अध्यापक ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी जिला में कई ऐसे स्कूल है जहां पर कला अध्यापक कई सालों से नहीं है। इस समय पूरे हिमाचल में 1800 के आसपास कला अध्यापक के पद खाली चल रहे हैं। बच्चों के माता-पिता को मजबूरन अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजना पड़ रहा है, क्योंकि सरकारी स्कूलों में अध्यापक ही नहीं होंगे तो वहां पर बच्चों का भविष्य कैसा होगा। सभी बेरोजगार कला अध्यापकों ने मांग की है कि हिमाचल के सरकारी स्कूलों को दिल्ली में चल रहे सरकारी स्कूलों की तरह बनाया जाए। सभी को एक समान शिक्षा दी जाए व सभी सरकारी स्कूलों में सभी विषयों के अध्यापकों की नियुक्ति की जाए नहीं तो हिमाचल में भी यही हाल होगा जो दिल्ली में विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार का हुआ था।
लम्बे अर्से बाद हिमाचल कैबिनेट ने प्रदेश के कर्मचारी वर्ग के लिए एक बड़ा राहत भरा फैसला लिया गया है। हालहीं में हुई जयराम मंत्रिमंडल की बैठक में प्रदेश के हजारों अनुबंध कर्मियों, दैनिक/कंटींजेंट और अंशकालिक कार्यकर्ताओं को सौगात दी गई है। बैठक में विभिन्न विभागों में कार्यरत उन अनुबंध कर्मचारियों के सेवाकाल को नियमित करने का निर्णय लिया गया, जिन्होंने 31 मार्च 2021 को तीन वर्ष का सेवाकाल पूरा किया है या जिनका सेवाकाल 30 सितंबर 2021 को पूरा होने जा रहा है। इसी तरह मंत्रिमंडल ने उन दैनिक/कंटींजेंट कार्यकर्ताओं की सेवाएं भी नियमित करने का निर्णय लिया जो 31 मार्च को अपनी सेवाओं के पांच साल पूरा कर चुके हैं या फिर 30 सितंबर को पूरा करने वाले हैं। इसके साथ ही इन्हें विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े पदों पर नियमित करने का भी फैसला लिया गया है। मंत्रिमंडल ने उन अंशकालिक कार्यकर्ताओं की सेवाओं को विभिन्न विभागों में दैनिक वेतन भोगी के रूप में परिवर्तित करने का भी निर्णय लिया, जिन्होंने 31 मार्च 2021 को 8 वर्ष का निरंतर सेवाकाल पूरा कर लिया है अथवा 30 सितंबर 2021 को पूरा करने जा रहे हैं। इस फैसले से हिमाचल के कर्मचारी बेहद खुश है व हिमाचल के के कर्मचारी वर्ग ने मुख्यमंत्री व सरकार का आभार भी जताया है। कर्मचारियों की और भी कई मांगें लंबित पड़ी है जैसे पुरानी पेंशन बहाली की मांग, जेसीसी की बैठक जल्द बुलाने की मांग, अनुबंध काल को 2 वर्ष करने की मांग, नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग इतियादी। कर्मचारियों ने ये उम्मीद जताई है की सरकार इन मांगों को भी जल्द पूरा करेगी।
कांगड़ा नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के कांगड़ा जिला प्रधान राजिन्दर मन्हास ने प्रदेश सरकार से एक बार फिर 2009 की केंद्र की अधिसूचना को हिमाचल में लागू करने का आग्रह किया है। जिला प्रधान ने कहा कि इस समय कोरोना महामारी से निपटने में सरकारी कर्मचारी फ्रंट बैरियर की अहम भूमिका निभा रहे हैं जिसमें स्वास्थ्य विभाग, पुलिस विभाग के कर्मचारी हाई रिस्क में दिन रात इस महामारी से निपटने में कार्य कर रहे हैं। इसके साथ इस संकट काल में बिजली विभाग, जल शक्ति विभाग के कर्मचारी भी रात दिन सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में एक लाख एनपीएस कर्मचारियों के लिए 2009 की अधिसूचना का हिमाचल में लागू करना बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि इस अधिसूचना के तहत एनपीएस कर्मचारी की सेवा के दौरान मौत पर या उसके अपंग होने पर परिवार को या कर्मचारी को पुरानी पेंशन के तहत लाभ प्रदान किए जाते है। इस अधिसूचना को उत्तर प्रदेश के साथ कई राज्य लागू कर चुके है। जिला प्रधान ने कहा कि पिछले कल भी स्वारघाट के एक 39 वर्षीय एनपीएस कर्मचारी की कोरोना की वजह से मौत हो गई है, जिसके दो छोटे-छोटे बच्चें हैं। अगर यह अधिसूचना लागू होती तो दिवंगत कर्मचारी के परिवार को फैमिली पेंशन का लाभ मिल जाता। इससे कर्मचारी के परिवार को सामाजिक सुरक्षा मिलती। जिला प्रधान ने कहा कि इस संकट की घड़ी में हिमाचल का हर कर्मचारी प्रदेश सरकार के साथ है और किसी भी तरह के सहयोग के लिए पूर्ण रूप से तैयार है तो ऐसे में सरकार की भी कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए नैतिक ज़िम्मेवारी बनती है। उन्होंने प्रदेश सरकार से आगामी कैबिनेट मीटिंग में इस अधिसूचना को जल्द लागू करने कि उम्मीद जताई है।
हिमाचल प्रदेश के आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट महासंघ ने डॉ विक्रमादित्य को आयुष विभाग में ओएसडी नियुक्त करने पर ख़ुशी व्यक्त की है. महासंघ का कहना है कि आयुष विभाग में पिछले काफी समय से उनके ओएसडी के पद पर नियुक्ति के आदेश जारी नहीं हो रहे थे. अब डॉ विक्रमादित्य के ओएसडी पद पर नियुक्ति होने से विभाग के कार्य में और अधिक तेज़ी आएगी. महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष तिलक ठाकुर ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और स्वास्थ्य एवं आयुष मंत्री राजीव सैजल का इस नियुक्ति के लिए धन्यवाद किया.
सीटू से सम्बन्धित हिमाचल प्रदेश मनरेगा व निमार्ण मजदूर फेडरेशन की राज्य कमेटी के आह्वान पर 22 अप्रैल को प्रदेशभर में श्रम अधिकारियों व निरीक्षकों के कार्यालयों के बाहर ज़ोरदार प्रदर्शन किए जाएंगे। इस दौरान प्रदेश भर में सैंकड़ों मजदूर मनरेगा व निर्माण मजदूरों की मांगों को प्रदेश सरकार से उठाएंगे। फेडरेशन ने चेताया है कि अगर मांगें शीघ्र पूर्ण न हुईं तो मजदूर शिमला कूच करेंगे व भवन एवम अन्य निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के ख़लीनी स्थित कार्यालय का घेराव करेंगे। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, फेडरेशन के प्रदेशाध्यक्ष जोगिंद्र कुमार व महासचिव भूपिंद्र सिंह ने कहा है कि मनरेगा व निर्माण मजदूरों की मांगों पर प्रदेश सरकार का रवैया बेहद नीरस व लचर है। इन मांगों को लेकर सीटू का एक प्रतिनिधिमंडल 17 मार्च को मुख्यमंत्री व श्रम मंत्री से मिला था। इसके बाद सीटू का प्रतिनिधिमंडल श्रमिक कल्याण बोर्ड के सचिव से भी मिला था। इस दौरान सीटू ने माँगपत्र में मनरेगा मजदूरों का पंजीकरण एक माह में करने की मांग की थी जिसके लिए सभी जिलों में श्रम कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की मांग की गई थी। सीटू ने मांग की थी कि मजदूरों को मिलने वाले लाभों को तीन माह में जारी किया जाये जिसके लिए ज़िला स्तर पर श्रम विभाग के श्रम अधिकारियों को दिये गए अतिरिक्त कार्य के बजाए बोर्ड के कार्यों के लिए बोर्ड के अलग श्रम कल्याण अधिकारी नियुक्त किये जाएं। वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाया जाए और पंजीकरण का कार्य उपमंडल स्तर पर किया जाए। प्रदेश के जिन क्षेत्रों में पंजीकरण अधिक हुआ है उन क्षेत्रों में बोर्ड के नए कार्यालय खोले जाएं। लंबे समय से जारी नहीं किए जा रहे सामान को जल्दी जारी करने की मांग की गई थी। सीटू ने नए लेबर कोड की आड़ में भवन एवम अन्य निर्माण कामगार कानून 1996 को कमज़ोर करने पर चिंता जाहिर की है। केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा व निर्माण मजदूरों को वितरित किए जाने वाले सामान पर प्रतिबंध लगाना मजदूर विरोधी कदम है जिसे वापिस लिया जाए। सीटू ने मांग की है कि सामान वितरण का कार्य बोर्ड के कर्मचारियों के माध्यम से करवाया जाए और इसमें हो रहे राजनैतिक हस्तक्षेप को रोका जाए। पंजीकरण के लिए एक समान नियम लगाए जाएं और पंजीकरण के लिए मजदूर यूनियनों द्वारा जारी प्रमाण पत्रों को वैध माना जाए। बोर्ड से मिलनी वाली पेंशन की राशि एक हज़ार से बढ़ाकर दो हज़ार रुपए की जाए। छात्रवृति की राशि लड़कों व लड़कियों के लिए एक समान की जाए। लॉकडाउन अवधि की सहायता राशि सभी मजदूरों को जल्द जारी की जाए और वर्ष 2018 से पहले के पंजीकृत मजदूरों को चैक के माध्यम से यह सहायता प्रदान की जाए। मजदूरों को कार्य करने के औज़ार खरीदने के लिए दस हज़ार रुपए की सहायता राशि जारी की जाए। इसके अलावा मंडी श्रम अधिकारी व बोर्ड के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली के बारे में भी मुद्दा उठाया गया क्योंकि बोर्ड के कर्मचारी वर्तमान में मज़दूरों के प्रपत्रों की प्राप्ति रसीदें जारी नहीं कर रहे हैं और मजदूरों के लाभों के आवेदनों को शिमला स्वीकृति के लिए नहीं भेज रहे हैं। गत वर्ष की छात्रवृति के क्लेम अभी तक शिमला नहीं भेजे गए हैं। ऐसी ही सामग्री प्रसुविधा के प्रपत्रों की स्थिति है। सीटू ने चेताया है कि अगर मनरेगा व निर्माण मजदूरों की मांगें पूर्ण न की गईं तो फिर प्रदेशव्यापी आंदोलन होगा।
नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर, महासचिव शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सौरभ वैद, महिला विंग अध्यक्षा सुनेश शर्मा, कोषाध्यक्ष शशि पाल शर्मा, संविधान पर्यवेक्षक श्याम लाल गौतम, मुख्य प्रवक्ता सुभाष शर्मा, मुख्य सलाहकार अश्वनी राणा, मीडिया प्रभारी पंकज शर्मा, महिला विंग वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनीता चौहान, महासचिव ज्योतिका मेहरा, उपाध्यक्ष मोनिका राणा, आईटी सेल प्रभारी शैल चौहान, सह प्रभारी घनश्याम बिरला, अनुशासन समिति के अध्यक्ष अरुण धीमान, राज्य उपाध्यक्ष भिंदर सिंह, संजय, नित्यानंद सदाट, बलदेव बिष्ट, अजय राणा, जिला कांगड़ा के अध्यक्ष राजेंद्र मन्हास, जिला चंबा के अध्यक्ष सुनील जरियाल, जिला उन्ना के अध्यक्ष कमल चौधरी, जिला हमीरपुर के अध्यक्ष राकेश धीमान, जिला मंडी के अध्यक्ष लेखराज, जिला कुल्लू के अध्यक्ष विनोद डोगरा, जिला लाहौल स्पीति के अध्यक्ष प्रताप सिंह कटोच, जिला बिलासपुर के अध्यक्ष राजेंद्र वर्धन, जिला सोलन के अध्यक्ष अशोक ठाकुर, जिला शिमला के अध्यक्ष कुशाल शर्मा, जिला सिरमौर के अध्यक्ष सुरेंद्र पुंडीर, जिला किन्नौर के अध्यक्ष वीरेंद्र जिंटो इत्यादि ने सामूहिक बयान में कहा कि कर्मचारियों को सरकार से हिमाचल दिवस के अवसर पर उम्मीद थी कि वह कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली के लिए जरूर कोई कदम उठाएंगे। उन्हें उम्मीद थी कि कम से कम वह केंद्र सरकार द्वारा की गई अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन का प्रावधान है, उससे संबंधित घोषणा मुख्यमंत्री हिमाचल दिवस के अवसर पर जरूर करेंगे। सभी ने सामूहिक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों की उपरोक्त मांग को पूरा ना करके कर्मचारियों को निराश करने का काम किया है क्योंकि पिछले 5 वर्षों से कर्मचारी लगातार अपनी इन मांगों को लेकर संघर्षरत है। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब सत्ता में आई थी तो इन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन की मांग को रखा था जिससे कर्मचारियों में उम्मीद जगी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने धर्मशाला में कर्मचारियों के बीच आकर पुरानी पेंशन बहाली के लिए कमेटी के गठन का वादा किया था लेकिन हमेशा सरकार ने कर्मचारियों को निराश ही किया है। 7 मार्च से 20 मार्च तक कर्मचारी लगातार धरने पर थे। 20 मार्च को जब कर्मचारी अपने धरना स्थल नहीं छोड़ रहे थे तो मुख्यमंत्री ने महासंघ को बुलाकर कर्मचारियों की इस समस्या को निकट भविष्य में समाधान करने का आश्वासन दिया था जिससे उम्मीद जगी थी कि 15 अप्रैल को मुख्यमंत्री ज़रूर कर्मचारियों के लिए यह सौगात देंगे। कर्मचारियों की इस निराशा को देखते हुए महासंघ ने निर्णय लिया है कि 18 अप्रैल को कर्मचारी अपने आंदोलन की आगामी रूपरेखा तैयार करेगा। इस आंदोलन को और तेज किया जाएगा ताकि वर्तमान सरकार को कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करनी पड़े। उन्होंने कहा कि अभी तक तो कर्मचारी केवल छोटे-छोटे धरना प्रदर्शन तक ही सीमित थे। पर आने वाले समय में पेंशन लेने वाले नेताओं का घेराव किया जाएगा। प्रदेश के इतिहास में कर्मचारी राजनीति का एक अलग ही इतिहास रहा है। यह इतिहास फिर प्रदेश के कर्मचारी द्वारा आने वाले समय में दोहराया जाएगा। उन्होंने कहा कि 18 अप्रैल को जो भी रणनीति तय की जाएगी उसके लिए प्रदेश के सभी कर्मचारियों से भी सुझाव मांगे गए हैं ताकि इन सुझावों के अनुसार ही आंदोलन की अगली रूपरेखा बनाई जा सके। उन्होंने कहा कि भविष्य में यदि कर्मचारियों को लंबी हड़ताल पर भी जाना पड़े तो इस विषय में भी कर्मचारी विचार कर रहे हैं ताकि यदि सरकार में बैठे नेताओं को किसी तरह की गलतफहमी हो कि वह कुछ भी कर सकते हैं तो उनकी गलतफहमी दूर की जा सके। क्योंकि वह खुद तो 3-4 पेंशन ले रहे हैं और कर्मचारियों को उनके बुढ़ापे में बेसहारा छोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह तो तय है कि पेंशन लेने वाले नेताओं का घेराव सड़कों पर भी होगा, उनके कार्यालय में भी होगा और उनके घर में भी होगा ।
कई सालों से बेरोजगार कला अध्यापक संघ द्वारा प्रशिक्षण लेने के बाद भी सरकार से लगातार अपनी नौकरी की आस गाए जा रहे हैं लेकिन सरकार ने भी उन्हें झूठे आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं दिया। यह बात कह कर उन्हें टाल दिया जाता है कि आप के पदों की भर्ती प्रक्रिया चली हुई है और जल्द ही आपके कला अध्यापकों के पदों को जरूर भरेंगे। कुछ दिन पहले शिक्षा विभाग ने 500 कला अध्यापकों के पदों को भरने हेतु एक फाइल बनाकर वित्त विभाग के पास भेजा था लेकिन वित्त विभाग ने कुछ कारणवश वह फाइल दोबारा से शिक्षा विभाग को भेज दी थी। उसके बाद शिक्षा विभाग ने फिर से या फाइल वित्त विभाग के पास भेजी लेकिन वित्त विभाग ने आज तक आगे की कोई प्रतिक्रिया नहीं की और हैरानी की बात यह है कि वह वित्त विभाग माननीय मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी के पास ही है। बेरोजगार कला अध्यापक के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज ने कहा कि कई महीनों से कला अध्यापकों के पदों को भरने वाली फाइल शिक्षा विभाग से वित्त विभाग और वित्त विभाग से शिक्षा विभाग के पास ही घूम रही है, गलती किसकी माने सरकार की या शिक्षा विभाग की ? इस पर महासचिव प्रेमदीप कटोच ने कहा कि इससे बढ़िया तो अगर सरकार सभी सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्य को यह पद भरने की लिए अनुमति दे देते तो यह कार्य बहुत ही जल्द खत्म हो जाता और इसी सत्र से से ही सभी सरकारी स्कूलों में कला अध्यापक की नियुक्ति हो जाती। सरकारी स्कूलों में सभी विषयों के अध्यापक ही नहीं है तो बच्चों के माता-पिता भी अपने बच्चों को मजबूरन प्राइवेट प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए विवश होना पड़ रहा है। 16 मार्च 2021 को सभी बेरोजगार कला अध्यापकों ने विधानसभा में एक जन आक्रोश रैली की थी और उस समय भी माननीय मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि अप्रैल महीने में होने वाली कैबिनेट मीटिंग में आप के पदों को मंजूरी दे दी जाएगी लेकिन अभी कुछ दिन पहले अप्रैल में ही एक कैबिनेट मीटिंग हुई जिसमें अन्य पदों को मंजूरी दे दी गई लेकिन कला अध्यापकों के पदों को फिर से दरकिनार किया गया। इसके बाद सभी बेरोजगार कला अध्यापकों ने सरकार के झूठे आश्वासनों से निराश होकर एक बार फिर सरकार से टक्कर लेने के लिए आगे की रणनीति तैयार कर ली है और दोबारा सरकार से एक बार आग्रह किया है कि अगर अप्रैल महीने में कला अध्यापकों के पदों को वित्त विभाग से मंजूरी नहीं दिलाई तो फिर सभी बेरोजगार कला अध्यापकों को बहुत बड़ा कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ेगा जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
आज नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ का प्रतिनिधिमंडल महासंघ के महासचिव भरत शर्मा की अध्यक्षता में प्रदेश के महामहिम राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर मिला । राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने महासंघ को आश्वस्त किया कि वह जल्द इस विषय में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से बात करेंगे । इस प्रतिनिधिमंडल में संविधान पर्यवेक्षक श्याम लाल गौतम, उपाध्यक्ष नित्यानंद सदाट, जिला शिमला के महासचिव नारायण हिमराल तथा वरिष्ठ उपाध्यक्ष विजय ठाकुर इत्यादि उपस्थित रहे ।
हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ जिला मण्डी की इकाई का एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को सुन्दरनगर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से सुंदरनगर के पॉलिटेक्निक महाविद्यालय में मिला। यह प्रतिनिधिमंडल राज्य कार्यकारिणी कोषाध्यक्ष अविनाश सैनी, जिला मंडी के अध्यक्ष गिरधारी लाल चौहान, जनकराज की अगुवाई में मिला। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को हिमाचल प्रदेश के विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत 17000 अनुबंध कर्मियों की गत तीन वर्षों से प्रदेश भाजपा सरकार के ठंडे बस्ते में पड़ी एकमात्र मांग, अनुबंध कार्यकाल को 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष करने की घोषणा आगामी 15 अप्रैल को स्वर्ण जयंती हिमाचल दिवस के उपलक्ष्य पर करने हेतु ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्यों को हर बार की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आश्वस्त करवाया कि अनुबंध कर्मचारियों की मांग को हिमाचल प्रदेश सरकार शीघ्र ही पूरा कर देगी। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कभी भी अनुबंध कर्मचारियों की इस मांग को न तो सिरे से खारिज किया है तथा न ही इस मांग को पूरा करने में कोई सकारात्मकता दिखाई है। मुख्यमंत्री के आश्वासन कहीं ना कहीं 17000 अनुबंध कर्मचारियों को एक झुनझुना ही प्रतीत हो रहा है। नगर निगम चुनाव और बजट सत्र से पहले महासंघ की राज्य कार्यकारिणी का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से शिमला में मिला था तथा मुख्यमंत्री ने अनुबंध कार्यकाल को कम करने के सार्थक संकेत दिए थे। परंतु बजट सत्र में मुख्यमंत्री द्वारा इस मांग को नजरअंदाज कर देने से अनुबंध कर्मचारियों में खासा रोष व्याप्त हो रहा है। महासंघ के वित्त सचिव अविनाश सैनी और जिला मण्डी के अध्यक्ष गिरधारी लाल चौहान ने कहा कि यदि आगामी कैबिनेट की मीटिंग में सरकार अनुबंध कार्यकाल को कम करने के मुद्दे पर सहमति जताती है तथा 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस के उपलक्ष्य पर अनुबंध कार्यकाल को कम करने की घोषणा के साथ ही शीघ्र इसकी अधिसूचना जारी करवाती है, तो ही सही मायने में अनुबंध कर्मचारी भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र के वायदे को पूरा किया हुआ मानेंगे। परंतु यदि सरकार यही निर्णय लेने से 15 अप्रैल को चूक जाती है तो प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत अनुबंध कर्मचारी स्वयं को ठगा हुआ महसूस करेंगे। हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ की राज्य कार्यकारिणी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, उपाध्यक्ष सुनील कुमार शर्मा, उपाध्यक्ष गोपाल सिंह वर्मा, उपाध्यक्ष संदीप शर्मा तथा महासचिव सुरेंद्र नड्डा ने बताया कि यदि सरकार 15 अप्रैल को अनुबंध कार्यकाल को घटाने की घोषणा नहीं करती है तो अनुबंध कर्मचारियों के भीतर भाजपा सरकार के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हो सकता है , जिसकी भरपाई भाजपा के लिए भविष्य में कठिन होगी। इस मौके पर महासंघ के प्रतिनिधि मंडल में जिला मंडी के तकनीकी शिक्षा विभाग से जनक जमवाल, नवीन, देवेंद्र, हितेश कुमार, सुनील कुमार ,शुभम, अविनाश, राजेश, विजेंद्र, वीरेंद्र सिंह, प्रदीप, अजय, पदम् देव, प्रेमनाथ, दुर्गा देवी, रविंद्र, रवि धीमान, सरवन कुमार, घनश्याम वर्मा, कुशल, जनक राज, संजीव कुमार, संजय कुमार, जितेंद्र सिंह, संजीव कुमार, प्रवीण सिंह, अनिल कुमार, भूप सिंह और लाल सिंह आदि सदस्य उपस्थित रहे।
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने पदोन्नति सहित कुछ मुद्दों को लेकर निदेशक शिक्षा उच्च को 31 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया था। इस उपलक्ष में हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का शिष्टमंडल शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर से सचिवालय में मिला था। जिस पर संघ ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए निदेशालय के घेराव की बात कही थी l शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि शिक्षकों के सभी वर्गों की पदोन्तियों सहित अन्य मुद्दों को जल्द हल कर दिया जाएगा। साथ ही शिक्षा मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि 10 अप्रैल तक शिक्षकों की प्रवक्ता पद पर पदोन्नति सूची जारी कर दी जाएगी, हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान एवं चीफ प्रेस सेक्रेटरी कैलाश ठाकुर ने एक बयान में यह जानकारी दी हैl साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री के आश्वासन व कोविड-19 के बढ़ते खतरे को देखते हुए संघ ने शिक्षा निदेशालय के घेराव के कार्यक्रम को फिलहाल स्थगित कर दिया है। आज संघ के पदाधिकारियों के साथ हुई चर्चा के बाद संघ ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि यदि 10 तारीख तक भी शिक्षकों की पदोन्नति की सूचियां जारी नहीं की गई तो संघ के पास शिक्षा विभाग एवं सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। जिसके लिए हिमाचल सरकार एवं शिक्षा विभाग स्वयं जिम्मेदार होगा l
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व किसान संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर सीटू व हिमाचल किसान सभा ने मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों, तीन कृषि कानूनों, कृषि के निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण आदि के खिलाफ प्रदेशव्यापी प्रदर्शन किए। ये प्रदर्शन शिमला, रामपुर, रोहड़ू, हमीरपुर, कुल्लू, मंडी, धर्मशाला, चम्बा, ऊना, सोलन, सिरमौर व किन्नौर में किए गए। इन प्रदर्शनों में हज़ारों मजदूर-किसान शामिल रहे। सीटू व हिमाचल किसान सभा ने केंद्र सरकार से मजदूर, किसान व कर्मचारी विरोधी नीतियों पर रोक लगाने की मांग की है। सीटू ने ऐलान किया है कि 28 मार्च को होली के दिन मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों, कर्मचारी व जनता विरोधी बिजली विधेयक 2020 की प्रतियों को जलाकर केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ आक्रोश ज़ाहिर किया जाएगा। इस आह्वान के तहत शिमला के उपायुक्त कार्यालय पर मजदूरों व किसानों द्वारा जोरदार प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, जिला सचिव बाबू राम, हिमाचल किसान सभा राज्य कोषाध्यक्ष सत्यवान पुंडीर, जिला कोषाध्यक्ष जयशिव ठाकुर, बालक राम, विनोद बिरसांटा, किशोरी ढटवालिया, कपिल शर्मा, सुरेश बिट्टू, सुरेंद्र बिट्टू, दलीप, मदन, राम प्रकाश, पूर्ण चंद, सतपाल बिरसांटा, विक्रम, रंजीव कुठियाला, हिमी देवी, निर्मला, जगत राम व संगीता देवी आदि शामिल रहे। सीटू व हिमाचल सभा ने केंद्र सरकार को चेताया है कि मजदूर विरोधी लेबर कोडों, काले कृषि कानूनों, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण व बिजली विधेयक 2020 के खिलाफ आंदोलन तेज होगा। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, जिला सचिव बाबू राम, किसान सभा जिलाध्यक्ष सत्यवान पुंडीर व कोषाध्यक्ष जय शिव ठाकुर ने धरने को सम्बोधित करते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गई है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। मजदूर विरोधी चार लेबर कोड, तीन कृषि कानून, कृषि का निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020 व सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से ही किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालिया बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों को अमलीजामा पहनाया गया है। इस से केवल पूंजीपतियों,उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है। इस से 70 प्रतिशत उद्योग व 74 प्रतिशत मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। खेती को कॉरपोरेट कम्पनियों व पूंजीपतियों के हवाले करने के दृष्टिकोण से ही किसान विरोधी तीन कृषि कानून लाए गए हैं।
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का एक शिष्टमंडल प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान की अध्यक्षता में निवेशक उच्च अमरजीत शर्मा एवं निदेशक प्रारंभिक से निदेशालय में मिला। शिष्टमंडल में संघ के राज्य मुख्यालय सचिव ताराचंद शर्मा एवं जिला शिमला के अध्यक्ष महावीर कैंथला शामिल थे। शिष्टमंडल ने निदेशक उच्च शिक्षा को लिखित में धरने का ज्ञापन सौंपा। जिसमें संघ ने 28 फरवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शिक्षा विभाग को पदोन्नति का 31 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया था और कहा गया था कि अगर शिक्षा विभाग शिक्षकों की पदोन्नति एवं अन्य मुद्दों का निपटारा नहीं करता है तो 31 मार्च के बाद संघ शिक्षा निदेशालय का घेराव करने पर विवश होगा। इसी संदर्भ में आज शिष्टमंडल ने निदेशक से मिलकर अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहां कि यदि 31 मार्च तक शिक्षकों की पदोन्नति सहित अन्य मुद्दों पर विभाग कार्रवाई नहीं करता है तो अप्रैल के पहले हफ्ते में प्रदेश के हजारों शिक्षक शिक्षा निदेशालय का घेराव करेंगे। साथ ही संघ ने निदेशक प्रारंभिक को मिलकर टीजीटी वर्ग की वारिष्ठता सूची जारी करने एवं पीटीआई शिक्षकों की पदोन्नति सूची में संशोधन करने के लिए भी 1 हफ्ते का समय दिया है। अन्यथा संघ दोनों निदेशालय के खिलाफ अप्रैल माह में हल्ला बोलने पर विवश होगा। साथ ही संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो इसका पूरा उत्तरदायित्व विभाग और सरकार का होगा। इसी संदर्भ में संघ शिक्षा सचिव एवम शिक्षा मंत्री से मिलकर भी अपने धरने का ज्ञापन सौंपेगा। संघ के शिष्टमंडल ने प्रवक्ताओं एवं प्रधानाचार्य के दो टाइम अटेंडेंस लगाने पर भी आपत्ति दर्ज की और इस अधिसूचना को तुरंत वापस लेने की मांग की। जिस पर निदेशक ने सहानुभूति पूर्वक विचार करने की बात कही उन्होंने पदोन्नति को शीघ्र करने पर विचार करने की बात भी स्वीकार की।
आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता व हेल्परज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू की हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी की बैठक सम्पन्न हुई। राज्य कमेटी बैठक में आंगनबाड़ी कर्मियों की प्री प्राइमरी में नियुक्ति व अन्य मांगों को लेकर गम्भीर चिन्तन मंथन हुआ व आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया गया। कर्मियों की मांगों को लेकर ग्यारह से तीस मई तक प्रदेशव्यापी आंदोलन करने का निर्णय लिया गया। इसके तहत मंडी, जोगिन्दरनगर, सरकाघाट, धर्मशाला, पालमपुर, देहरा, शिमला, रामपुर, रोहड़ू, ठियोग, अर्की, नालागढ़, पच्छाद, संगड़ाह, शिलाई, पौण्टा साहिब, नाहन, चम्बा, हमीरपुर, बंजार, बिलासपुर व ऊना में कर्मियों द्वारा धरने प्रदर्शन किए जाएंगे। बैठक में सीटू राष्ट्रीय सचिव कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, यूनियन प्रदेशाध्यक्ष नीलम जसवाल, महासचिव वीना देवी, सुमित्रा देवी, सुलोचना देवी, किरण कुमारी, बिमला देवी, स्वर्चा देवी, शशि किरण, हरदेई देवी, हिमी देवी, राजकुमारी, बिम्बो देवी, कौशल्या देवी, वीना देवी, मीना देवी, सुदेश कुमारी, रंजना देवी, नीलम रानी, ममता देवी, रीना देवी, मधुबाला, अंजुला कुमारी आदि शामिल रहे। यूनियन की प्रदेशाध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आंगनबाड़ी वर्करज़ को प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए नियुक्त करने के आदेश जारी न किए तो आंदोलन तेज होगा। उन्होंने केवल आंगनबाड़ी कर्मियों को ही प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए नियुक्त करने की मांग की है क्योंकि छः वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शिक्षा का कार्य पिछले पैंतालीस वर्षों से आंगनबाड़ी कर्मी ही कर रहे हैं। उन्होंने नई शिक्षा नीति को वापिस लेने की मांग की है क्योंकि यह न केवल छात्र विरोधी है अपितु आइसीडीएस विरोधी भी है। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2021 के आइसीडीएस बजट में की गई 30 प्रतिशत की कटौती को आंगनबाड़ी कर्मियों के रोज़गार पर बड़ा हमला करार दिया है। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा आंगनबाड़ी वर्करज़ व हैल्परज़ के वेतन में पांच सौ व तीन सौ रुपये की बढ़ोतरी को क्रूर मज़ाक करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि आंगनबाड़ी कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों के लिए तीन हज़ार रुपये पेंशन, दो लाख रुपये ग्रेच्युटी, मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है। है। उन्होंने कहा कि सरकार आइसीडीएस के निजीकरण का ख्याली पुलाव बनाना बन्द करे। देश के अंदर चलने वाली सभी योजनाओं से देश की लगभग एक करोड़ महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। केंद्र सरकार लगातार इन योजनाओं को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है। इस से केंद्र सरकार की महिला सशक्तिकरण व नारी उत्थान के नारों की पोल खुल रही है। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत किये गए कार्य की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि प्री प्राइमरी कक्षाओं व नई शिक्षा नीति के तहत छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी वर्करज़ को दिया जाए क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इस संदर्भ में उनकी नियमित नियुक्ति की जाए तथा इसकी एवज़ में उनका वेतन बढाया जाए।
शिमला। पूर्व सैनिक सामाजिक कल्याण, युवा सशक्तिकरण एवं कृषि विकास संस्था जिला शिमला भी एन.पी.एस. कर्मियों के समर्थन में उतर आई है। संस्था के जिलाध्यक्ष मोहन शर्मा ने बताया कि जब विधायक और सांसद पेंशन ले रहे है, तो कर्मचारियों को इससे वंचित रखना तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने बताया कि अधिकतर नेता पांच या दस साल तक विधायक या सांसद चुने जाते है, वह तो पेंशन के लिए पात्र हो जाते है लेकिन जो कर्मचारी अपना पूरा जीवन सरकारी सेवा में समर्पित करता है, उसे पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। उन्होंने बताया कि कर्मचारी ऐसे वक्त में रिटायर होता है, जब उसे चिकित्सीय सेवाओं की जरूरत रहती है। इस पर लाखों रुपए तक खर्च हो जाता है। ऐसे में पेंशन न मिलने की वजह से कर्मचारी उपचार से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने सरकार से सभी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने का आग्रह किया है।
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व किसान संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर मजदूर विरोधी लेबर कोडों, कृषि के निगमीकरण, बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र, बैंक, बीमा, बीएसएनएल, बिजली, ट्रांसपोर्ट, रेलवे के निजीकरण आदि के खिलाफ शिमला के रेलवे स्टेशन पर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने रेलवे स्टेशन पर धरना दे दिया व केंद्र सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी पर उतर आए। प्रदर्शन में विजेंद्र मेहरा, बाबू राम, बालक राम, किशोरी ढटवालिया, विनोद बिरसांटा, विकास, प्रेम चंद, देशराज, राम प्रकाश, सुरजीत, हिमी देवी आदि शामिल रहे। सीटू ने केंद्र सरकार को चेताया है कि मजदूर विरोधी लेबर कोडों, काले कृषि कानूनों, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण व बिजली विधेयक 2020 के खिलाफ आंदोलन तेज होगा। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व जिला सचिव बाबू राम ने रेलवे स्टेशन पर हुए धरने को सम्बोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की निजीकरण की मुहिम से ऐतिहासिक शिमला-कालका रेल लाइन भी पूंजीपतियों के कब्जे में चली जाएगी। इस रेल लाइन का न केवल ऐतिहासिक व पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्व है अपितु इस से हिमाचल के लोगो की भावनाएं भी जुड़ी हैं। उन्होंने कहा है कि जनता इसका निजीकरण किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने बैंक कर्मचारियों की अभूतपूर्व हड़ताल पर जनता को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि सीटू 15-16 मार्च को बैंक, 17 मार्च को जनरल इंश्योरेंस,18 मार्च को लाइफ इंश्योरेंस की हड़ताल व 24-26 मार्च को क्रमिक भूख हड़ताल का समर्थन करती है क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गई है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि हालिया बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों को अमलीजामा पहनाया गया है। इस से केवल पूंजीपतियों, उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है। इस से 70 प्रतिशत उद्योग व 74 प्रतिशत मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे।
हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा ने जिला कांगडा के फतेहपुर में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मुलाकात कर एक ज्ञापन सौंपा। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ पिछले काफि समय से लगातार सरकार के समक्ष अपनी मांगों को लेकर मुखर हुआ है। इसी कडी में फलेहपुर विधानसभा में जयराम ठाकुर जी के दौरे के चलते प्रदेशाध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा ने अपनी मांगें पुनः सरकार के सामने रखी। विधानसभा में बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों के लिए एक माॅडल टेंडर डाक्युमेंट बनाकर सभी विभागों को भेजने की भी बात कही थी और कहीं न कहीं यह भी मानते है कि आउटसोर्स प्रथा प्रदेश हित में नहीं है। जल शक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने विधानसभा में जल शक्ति विभाग के कुछ कर्मचारियों को विभाग में मर्ज करने की बात कही है जिससे प्रदेश में कार्यरत हजारों कर्मचारियों को एक आस नजर आई है। शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में लगभग पिछले 10-15 साल से विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डों, योजनांओं एवं कार्यालयों में आउटसोर्स आधार पर हजारों कर्मचारी अपनी सेवांए दे रहे है। ये कर्मचारी सरकार के दूसरे नियमित कर्मचारियों के साथ बराबर काम करने के साथ-2 दिए गए पद के सभी कार्य संभालते है। जब बात वेतन एवं सुविधांओ की आती है तो हमेशा से ही हम सब सौतेला व्यवहार एवं शोषण झेल रहे है। जहां उसी काम या पद को संभालने के लिए एक नियमित कर्मचारी को 40-50 हजार रू का वेतन मिलता है वहीं उसी काम तथा पद का कार्य संभालने के लिए आउटसोर्स कर्मचारियों को 6 से 8 हजार रू मिलते है उसके लिए भी आधा महिना तरसती निगाहों से इंतजार करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इन्सान के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण समय 21 वर्ष से शुरू होकर लगभग 35 वर्ष तक होता है। किसी भी व्यक्ति या परिवार का जीवन इन 10-15 वर्षों पर निर्भर करता है क्योंकि ये वह समय होता है जब हम अपनी शिक्षा के बाद स्वतंत्र रूप से ऐसा व्यवसाय या काम चुनते है जो हमें सामाजिक तथा आर्थिक रूप से सुदृड़ बनाकर सम्मानजनक जीवन देता है। इतने महत्वपूर्ण साल बिताने के बाद में चयन आयोग से उसी पद को संभालने के लिए एक कर्मचारी नियुक्त होता है और पिछले 10-15 वर्षों से ईमानदारी से बिना किसी स्वार्थ के काम कर रहे कर्मचारी को घर बैठने पर मजबुर होना पड़ता है। यह बात चिंतनिय है कि अपने जीवन के महत्वपूर्ण 5-10 वर्ष किसी कार्यालय या संस्था को देने के बाद भी व्यक्ति को एक सम्मानजनक जीवन नहीं मिलता फिर जीवनयापन के लिए दर-दर की ठोंकरे खानी पडती है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ने सभी कर्मचारियों, उनके परिवारों तथा हिमाचल को युवाओं के हित को देखते हुए मांग की है कि आउटसोर्स प्रथा को बंद किया जा सके जिससे कोई भी युवा अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण साल युं ही नाम मात्र के वेतन के लिए खर्च न करें। उन्होंने मांग की है कि जो कर्मचारी इस समय विभाग में है उनके लिए एक स्थायी नीति बनाकर उन्हें वरियता के आधार पर आने वाली भर्तियों में कोटे के माध्यम से विभाग में लिया जाए। अन्य मांगों में समय पर वेतन, नौकरी की सुरक्षा, समान काम समान वेतन इत्यादि शामिल है।
शिमला में उपायुक्त कार्यालय शिमला के बाहर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा लगातार 9 वें दिन धरना दिया गयाl धरने में सिरमौर जिले से कर्मचारियों ने जिला अध्यक्ष सिरमौर सुरेंद्र पुंडीर की अध्यक्षता में भाग लियाl राज्य महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि आज लगातार 9 दिन हो गए है कर्मचारी अपनी मर्यादा में रह कर चुपचाप शांतिपूर्ण ढंग से एनपीएस का विरोध कर रहा है परंतु सरकार ने एक बार भी कर्मचारियों की सुध नहीं ली। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ इसकी घोर निंदा करती है और मांग करती है कि जल्द कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल की जाएl उन्होंने कहा कि हम अनेकों बार मुख्यमंत्री, सभी कैबिनेट मंत्री, सभी विधायकों से मिले और सब ने आश्वस्त किया कि जल्द इस बारे कोई सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा, परन्तु ऐसा अब तक नहीं हुआ। हिमाचल प्रदेश सरकार बार बार ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लेती है कि ये तो केंद्र का मामला है परंतु आरटीआई के जवाब में केंद्र ने साफ किया है कि यह राज्य सरकार का मामला हैl अगर राज्य चाहे तो वेस्ट बंगाल की तर्ज पर वो अपने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दे सकती है। केंद्र का अनुसरण करने वाली हिमाचल सरकार पुरानी पेंशन बहाली को तो केंद्र का मामला बताती है परंतु केंद्र द्वारा 5 मई 2009 में जारी की गई अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु या दिव्यांग होने पर उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन का प्रावधान है संबंधित अधिसूचना को हिमाचल प्रदेश में 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी लागू नहीं कर रही हैl यदि सरकार कर्मचारियों की मांग पर ध्यान नहीं देती तो 17 मार्च को प्रदेश के हर एक कार्यालय में सभी कर्मचारी काली पट्टी बांधकर नई पेंशन व्यवस्था और सरकार का विरोध करेंगे ल शिमला CTO में जिला अध्यक्ष सिरमौर सुरेंद्र पुंडीर ने कहा कि पुरानी पेंशन हमारा हक हैl अगर नई पेंशन इतनी अच्छी योजना है तो सबसे पहले नेताओं को ये अपने लिए लागू करनी चाहिए l इस मांग को सरकार के समक्ष रखा गया है परंतु कोई सुनवाई नहीं हुई है। इसलिए कर्मचारियों को संघर्ष करने के लिए मजबूर होना पड़ा है और ये संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन बहाल नहीं होती।
हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा पेश किये गए बजट का स्वागत किया और इस बजट को सबका साथ सबका विकास नीति पर आधारित बताया। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ यूनियन ने बजट स्पीच में मुख्यमंत्री द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ हो रहें शोषण को रोकने के लिए कदम उठाने की बात का स्वागत किया है। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा ने कहा की हमें उम्मीद है कि सरकार जल्दी हि ठोस कदम उठाते हुए ओउटसोर्स कर्मचारियों की जॉब की सुरक्षा और सम्मान जनक वेतन का विशेष ध्यान रखते हुए एक ठोस नीति बनाएगी। वंही, उन्होंने ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी का बिजली विभाग के आउटसोर्स कर्मचारियों के निलंबन को रोकने के सरकार द्वारा बोर्ड को आदेश के लिए धन्यवाद किया और मजदूर वर्ग के मानदेय बढ़ोतरी के जयराम सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए, उन्होंने हज़ारो परिवारों की ओर से मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में काम कर रहें आउटसोर्स कर्मचारियों की वेतन बढ़ोतरी का सरकार से निवेदन कर शीघ्र हि स्थायी नीति के ऐतिहासिक फैसले के लिए समिति का गठन करने की मांग की।
आंगनबाड़ी वर्करज़ व हेल्परज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू की राज्य कमेटी आंगनबाड़ी कर्मियों की प्री प्राइमरी में नियुक्ति व अन्य मांगों को लेकर नौ मार्च को प्रदेशव्यापी हड़ताल करेगी। इस दिन हज़ारों आंगनबाड़ी कर्मी शिमला में विधानसभा के बाहर ज़ोरदार प्रदर्शन करेंगे। हड़ताल के संदर्भ में यूनियन ने निदेशक महिला एवं बाल विकास विभाग हिमाचल प्रदेश सरकार शिमला को हड़ताल नोटिस भेज दिया है। आंगनबाड़ी कर्मियों ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आंगनबाड़ी वर्करज़ को प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए नियुक्त करने के आदेश जारी न किये तो आंगनबाड़ी कर्मी नौ मार्च को प्रदेशव्यापी हड़ताल करके सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को बन्द कर देंगे व इस दिन प्रदेशभर के हज़ारों आंगनबाड़ी कर्मी बजट सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करेंगे। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2021 के आइसीडीएस बजट में की गई 30 प्रतिशत की कटौती को आंगनबाड़ी कर्मियों के रोज़गार पर बड़ा हमला करार दिया है। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा आंगनबाड़ी वर्करज़ व हैल्परज़ के वेतन में पांच सौ व तीन सौ रुपये की बढ़ोतरी को क्रूर मज़ाक करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि आंगनबाड़ी कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों के लिए तीन हज़ार रुपये पेंशन, दो लाख रुपये ग्रेच्युटी, मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि कर्मियों की रिटायरमेंट उम्र 65 वर्ष करने, नई शिक्षा नीति 2020 को खत्म करने, मिनी आंगनबाड़ी कर्मियों को बराबर वेतन देने की मांग की है। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत किये गए कार्य की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि प्री प्राइमरी कक्षाओं व नई शिक्षा नीति के तहत छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी वर्करज़ को दिया जाए क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इस संदर्भ में उनकी नियमित नियुक्ति की जाए तथा इसकी एवज़ में उनका वेतन बढाया जाए।
जिला कांगड़ा एसएमसी अध्यापक संघ ने सरकार के बजट में 2555 एसएमसी अध्यापकों के साथ 500 रुपये मानदेय में वृद्धि करके भद्दा मज़ाक बताया है,जोकि बहुत ही निराशाजनक हैं। जिला कांगड़ा एसएमसी अध्यापक संघ के अधयक्ष विकास ठाकुर ने कहा कि एसएमसी अध्यापकों को सरकार से उम्मीद थी कि सरकार बजट में 2555 एसएमसी अध्यापकों के लिए पीटीए, पैट, पैरा और पंजाबी व उर्दू अध्यापकों की तर्ज पर स्थाई नीति बनाएगी। लेकिन सरकार ने 500 रुपये बढ़ा कर एसएमसी अध्यापकों के साथ मजाक किया हैं। अब इसको लेकर एसएमसी अध्यापक जल्दी राज्यस्तरीय बैठक करेंगें तथा सड़को पर उतरने से भी परहेज नही करेंगें। उन्होंने कहा कि एसएमसी अध्यापक पिछले 09 वर्षों से हिमाचल प्रदेश के विभिन्न अति दुर्गम घाटियों के स्कूलों में कम वेतन और बिना किसी अवकाश के लगातार अपनी सेवाएं दे रहें हैं। सरकार ने जब पीटीए, पैट, पैरा और पीढ़ियड बेसिस पंजाबी व उर्दू अध्यापकों को नियमित कर दिया हैं, तो सरकार एसएमसी अध्यापकों के साथ अन्याय क्यों कर रही हैं। सरकार इनकी तर्ज पर 2555 एसएमसी अध्यापकों को भी नियमित करें जिससे एसएमसी अध्यापकों का भविष्य सुरक्षित हो सके। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने जल्दी से सही निर्णय नहीं लिया, तो 2555 एसएमसी अध्यापक परिवार सहित सड़कों पर उतरेंगे।
हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने हिमाचल के विभिन्न विभागों में भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत अनुबंध पर नियुक्त होने के बाद नियमित हुए कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने की मांग की है। संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग और महासचिव अनिल सेन के अनुसार विभिन्न विभागों में अनुबंध पर नियुक्त हुए कर्मचारी लंबे समय से वरिष्ठता की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी यह मांग पूरी नही हो पाई है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जा रहा है, जोकि सरासर गलत है। इन कर्मचारियों की मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। चूनावों से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल ने सेनिओरिटी की मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिक्षक महासंघ के ऊना अधिवेशन में वरिष्ठता की मांग को जायज माना है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, संरक्षक राजेश जैसिंघपुरिया, सलाहकार राजेश वर्मा, वित्त सचिव विजय शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता संजय कुमार, उपाध्यक्ष अवतार कपूर, कुलदीप कुमार, प्रदीप कुमार, प्रेस सचिव प्रेम पाल पठानिया, राकेश चौहान, विजय सैनी, प्रदेश सहसचिव निर्माण सिंह, मनदीप चौधरी, आईटी सेल प्रमुख संदीप चंदेल, कुल्लू जिला इकाई के अध्यक्ष सोमेश डोगरा, हमीरपुर जिला अध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार, ऊना जिला अध्यक्ष संजीव बग्गा, शिमला जिला अध्यक्ष मोहित शर्मा, बिलासपुर जिला अध्यक्ष नीरज शर्मा, मंडी जिला अध्यक्ष कृष्ण यादव, चंबा जिला अध्यक्ष राजेंदर पॉल, काँगड़ा जिला अध्यक्ष सुनील पराशर, सिरमौर जिलाध्यक्ष नरेश शर्मा ने सामूहिक बयान में कहा है कि संगठन के पदाधिकारी प्रदेश के कोने-कोने में वरिष्ठता की मांग को मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के समक्ष प्रमुखता से उठा रहे है। बावजूद इसके पिछले तीन सालों से सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही मिल रहे है और संगठन की प्रमुख मांगों को लगातार अनसुना किया जा रहा है। इससे प्रदेश के हजारों कर्मचारी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे है। सरकार ने विधानसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में उतर दिया था कि अनुबंध पर दी गई सेवाओं को कुल सेवाकाल में नही जोड़ा जा सकता। कर्मचारियों का कहना है कि 2008 से पहले बैच और कमीशन के आधार पर कर्मचारियों को अनुबंध पर नही रखा जाता था। इससे पहले कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित आधार पर नियुक्त किया जाता था। इसलिए कर्मचारियों की नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग उचित और न्यायपूर्ण है। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 7 वर्ष के बाद नियमित हुए ,कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं। आने वाले समय में लगता है कि अनुबंध काल 2 और कुछ वर्षों के बाद खत्म ही हो जाएगा। यह 7 वर्ष 6 वर्ष 5 वर्ष और 3 वर्ष के बाद नियमित होने वाले कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग के अनुसार भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। कर्मचारियों को अलग अलग अन्तरालों में नियमित करने से असमानता फैली है। सरकार कर्मचारियों की मांग को पूरा करके इस असमानता को खत्म करे। जब प्रदेश सरकार अन्य कर्मचारियों को लाभ देने के लिए नियम बदल सकती है तो कमीशन पास करके और बैच के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता क्यों नही दे सकती? संगठन प्रदेश सरकार से यह मांग करता है कि प्रदेश की विभिन्न विभागों में कार्यरत अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए और उनके अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने की मुख्यमंत्री जल्द घोषणा करें ताकि समय रहते कर्मचारियों को लाभ मिल सके। संगठन ने उम्मीद जताई है कि जो प्रतिबद्धता सरकार ने अन्य वर्ग को राहत प्रदान करने के लिए दिखाई है, उसी प्रतिबद्धता से सरकार हजारों कर्मचारियों के सेनिओरिटी के मुद्दे को भी जल्द सुलझाएगी और नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करके अपना चुनावी वायदा पूरा करेगी।