हिमाचल प्रदेश में घोषणा के तीन महीने बाद भी छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हो पाई है। अब सरकार ने एक बार फिर अवधि को बढ़ा कर पंजाब की तर्ज पर वेतनमान का विकल्प चुनने के लिए कर्मचारियों को 15 अप्रैल तक का वक्त दिया है। वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की तरफ से डेट बढ़ाने का पत्र जारी हुआ है। ऐसे में कर्मचारियों को नए वेतनमान के लिए अभी और इंतजार करना होगा। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बीते साल ही छठे वेतनमान के लाभ देने का ऐलान कर दिया था। सरकार ने पहले कर्मचारियों को 2.25 व 2.59 के गुणांक के तहत वेतन वृद्धि का विकल्प चुनने का ऑप्शन दिया। इसका अधिकतर कर्मचारियों ने विरोध किया। कर्मचारियों का कहना था कि इन गुणांक को चुनने से कई कर्मचारियों से रिकवरी बन रही है, क्योंकि सरकार ने अपने कर्मचारियों को आईएआर की दो किश्त दे रखी है। मांग उठी तो सरकार ने कर्मचारियों को तीसरा विकल्प भी दे दिया। सरकारी कर्मचारियों के पास अब कुल तीन विकल्प पे-कमीशन को लेकर हैं, जिनमें 2.59 और 2.25 का गुणांक या फिर तीसरा विकल्प 15 फीसदी वेतन वृद्धि का है। अभी तक लगभग 75 फीसदी कर्मचारियों ने यह विकल्प चुन लिया है, लेकिन 25 फीसदी कर्मचारी अभी भी इंतजार कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में जनवरी 2016 से ही कर्मचारियों व पेंशनरों को छठे वेतन आयोग के लाभ देय है। फिर भी इसके लिए कर्मचारियों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। दरससल कर्मचारियों के विरोध के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कर्मचारियों को 15 फीसदी वेतन बढ़ोतरी का विकल्प तो दिया लेकिन 15 फीसदी बढ़ोतरी के विकल्प में ऐरियर नहीं देने का प्रावधान किया गया। इससे भी कुछ कर्मचारी खुश नहीं है और पंजाब की तर्ज पर वेतनमान की मांग पर अड़े हुए हैं। इस वजह से बहुत से कर्मचारियों ने सरकार द्वारा बार-बार वेतन वृद्धि का विकल्प मांगने के बावजूद ऑप्शन नहीं दिया। इसके अतिरिक्त दो साल के राइडर में फंसे कर्मचारी राइडर खत्म होने का इंतज़ार कर रहे है। दो साल पहले रेगुलर हुए कर्मचारियों की पे-फिक्सेशन कम ग्रेड पे पर हो रही है। इसी वजह से यह राइडर पर फैसला होने का इंतजार जारी हैं। सभी विभागाध्यक्षों को दिए निर्देश : सरकार ने एक बार फिर से ऑप्शन देने का समय दिया है। जाहिर है कि अब सभी कर्मचारियों से विकल्प मिलने के बाद ही सरकार छठे वेतनमान के लाभ अपने कर्मचारियों एवं पेंशनर को देने को लेकर फैसला लेगी। वित्त विभाग ने सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश दिए है कि हर एक कर्मचारी से वेतन वृद्धि को लेकर ऑप्शन मांग कर विभाग को सूचित किया जाए।
पंजाब में अब पूर्व विधायकों को सिर्फ एक टर्म की पेंशन मिलेगी। इसके साथ-साथ पूर्व विधायकों को मिलने वाले फैमिली भत्तों में भी कटौती की जाएगी। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार चाहे कितनी भी बार का विधायक रहा हो उसे एक ही पेंशन मिलेगी। इसी अनुपात में फैमिली पेंशन भी कम होगी। पंजाब की भगवंत मान सरकार के इस फैसले की कहीं प्रशंसा हो रही है तो कहीं निंदा। कोई इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बता रहा है तो किसी का मानना है कि इस फैसले से सरकार को ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला। बहरहाल, ये निर्णय अच्छा है या बुरा, इसे लेकर विश्लेषण जारी है। मगर ये स्पष्ट है कि पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद बाकी राज्य सरकारों पर भी दबाव बनना शुरू हो गया है। इस फैसले का प्रभाव हिमाचल में भी देखने को मिल रहा है। यहां भी जनता कुछ ऐसा ही चाहती है, खासतौर पर प्रदेश के कर्मचारी ये मांग करने लगे है। दरअसल, पंजाब सरकार द्वारा ये फैसला पंजाब की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लिया गया है। फिलवक्त पंजाब की आर्थिक स्थिति बदहाल है। पंजाब पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इसका जिक्र सीएम भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान भी कर चुके हैं। सरकार का मानना है कि इस फैसले के बाद विधायकों की पेंशन पर खर्च हो रहे पैसे को युवाओं व अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्चा जा सकेगा। बता दें कि छह बार विधायक रहीं पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल, लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर को हर महीने तीन लाख 25 हजार रुपये मिलते हैं। रवि इंद्र सिंह, बलविंदर सिंह को हर महीने दो लाख 75 हजार रुपये की राशि मिलती है। वहीं 10 बार के विधायक की पेंशन छह लाख 62 हजार प्रतिमाह है। अब सभी पूर्व व मौजूदा विधायकों को सिर्फ 75 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। मान सरकार पांच साल में 80 करोड़ रुपये की बचत करेगी और यह राशि जन कल्याणकारी कार्यों में खर्च की जाएगी। इस फैसले में एक और पेच भी अटका हुआ है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस फैसले का पंजाब को कोई वित्तीय लाभ नहीं होगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब रिटायर होता है तो उसे उस समय के नियमों के मुताबिक ही पेंशन मिलती है। जब 2004 में सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की तो यह केवल नए कर्मचारियों पर ही लागू हुई न की पुराने कमचारियों पर। यही फार्मूला विधायकों की पेंशन पर भी लागू हो सकता है। हालांकि सरकार कानून बना कर ऐसा कर सकती है और विधानसभा में बहुमत होने के चलते आम आदमी पार्टी के लिए ये बिल्कुल भी मुश्किल नहीं होने वाला। क्या ये पुरानी पेंशन बहाल न करने का संकेत है ! नेताओं को मिलने वाली एक से अधिक पेंशन को लेकर लंबे समय से देश में बहस छिड़ी हुई है। वन पर्सन वन पेंशन की मांग कई संगठन उठाते रहे है। वहीं पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में नई पेंशन के विरोध में भी कर्मचारी लामबंद होते दिखे है। कर्मचारियों का अक्सर ये सवाल रहा है कि जहां उन्हें नए पेंशन सिस्टम के जरिये एक पेंशन भी ढंग से नहीं मिल पाती वहीं नेताओं को दो तीन पुरानी पेंशन आखिर क्यों दी जाती है। कर्मचारियों को मनाने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने तो पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा भी कर दी। ऐसे में कई राज्यों पर पुरानी पेंशन बहाली को लेकर दबाव है। इस बीच अब पंजाब ने विधायकों की पेंशन और भत्तों में कटौती कर दी है। अब एक तरफ कर्मचारी इसे बड़ा निर्णय बता खुश हो रहे है तो दूसरी तरफ कुछ का मानना है कि सरकार द्वारा उनका एक बड़ा मुद्दा खत्म कर दिया गया है और शायद ये कर्मचारियों को पुरानी पेंशन न देने का एक संकेत हो सकता है।
हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने एक दफे फिर सरकार से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने की गुजारिश की है। संगठन का कहना है कि सरकार अपना वादा पूरा नहीं कर रही है। चार साल पहले यह वादा कर्मचारियों के साथ किया गया था, लेकिन अभी तक सरकार ने इस वादे को पूरा करने की जहमत नहीं उठाई है। संगठन का आरोप है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सत्ता में आते ही कर्मचारियों की मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा ने उनकी मांग को पूरा नहीं किया है। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष भी इस मांग को कई बार उठाया जा चुका है। जेसीसी की बैठक में भी इस मांग पर कमेटी गठन की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक कोई कमेटी नहीं बनाई गई है। इससे कर्मचारियों में निराशा है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वर्तमान सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को हल्के में ना लें, क्योंकि उनकी संख्या 70 हजार के करीब है और यदि उनके परिवार के सदस्यों की संख्या को भी गिन लिया जाए तो यह 3 लाख के करीब हो जाती हैl यह संख्या मिशन रिपीट में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है l यदि सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देती है व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ती है तभी मिशन रिपीट होगा l संगठन का दो टूक कहना है कि यदि नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नहीं तो मिशन रिपीट भी नहीं। चार महीने में कमेटी तक नहीं बनी : 27 नवंबर 2021 को शिमला में हुई संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के डिमांड चार्टर में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को नंबर चार पर रखा गया था l बैठक में इस हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने व संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किये जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन चार माह बीत जाने पर भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है l 2008 में शुरू हुआ ये मसला : संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार तत्कालीन भाजपा सरकार ने लोक सेवा आयोग,अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया था। निश्चित वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी कमीशन पास कर्मचारियों को प्रदेश के इतिहास का सबसे लंबा अनुबन्ध काल दिया गया। उसके बाद आई सरकारों ने अनुबंध अवधि को कम जरूर किया, लेकिन कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से अपना कर्मचारी नहीं माना। सरकार कर्मचारी के सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से कर रही है, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। संघ का कहना है कि यह लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रोमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए ना की नियमितीकरण की तिथि से। पूर्व में भी सरकार ने एडहॉक और टेन्योर बेसिस पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवाओं को प्रमोशन के लिए योग्य माना है तो अनुबंध पर दी गई सेवाओं को क्यों योग्य नहीं माना जा रहा? 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान का प्रश्न : गर्ग हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। कर्मचारियों का चयन भर्ती एवम पद्दोनत्ति नियमों के अनुसार हुआ है, इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है। सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे।
कर्मचारी लहर : बोले क्या लोन लेकर नई बसें खरीदने के लिए बुलाई गई थी बैठक ? हिमाचल परिवहन निगम के 12 हजार कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे। हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम के निदेशक मंडल (बीओडी) में कर्मचारियों की सुनवाई न होने से संयुक्त समन्वय समिति के नेता भड़क गए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि एचआरटीसी निदेशक मंडल की बैठक से निगम कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी है। कर्मचारी बहुत लंबे समय से अपने देय वित्तीय भुगतानों की अदायगी की आस लगाए बैठे थे परंतु इससे संबंधित एक मामला भी बैठक में नहीं उठाया गया। इससे कर्मचारियों में रोष है। कर्मचारियों ने सरकार से सवाल किया है कि क्या यह बैठक केवल लोन लेकर नई बसें खरीदने के लिए बुलाई गई थी ? निगम में पहले ही बसों का भारी भरकम बेड़ा उपलब्ध है उनमें से सैकड़ों बसें अभी भी बिना प्रयोग के वर्षो से खड़ी है। पहले इन खड़ी बसों को संपूर्ण उपयोग में लाने की योजना पर कार्य किया जाना चाहिए था। विदित रहे कि निगम प्रबंधन से कर्मचारी संशोधित वेतनमान और भत्ते मांग रहे हैं। साथ ही अनुबंध में चालक-परिचालकों को दो साल में रेगुलर करने का मामला भी गरमाया हुआ है। इस बीच हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम कर्मचारी संघों की संयुक्त समन्वय समिति ने साफ शब्दों में ऐलान कर दिया है कि अप्रैल के दूसरे हफ्ते में समिति के नेताओं की अहम बैठक बुलाकर भावी रणनीति बनाकर निगम प्रबंधन पर दबाव बनाया जाएगा। संयुक्त समन्वय समिति के सचिव खेमेंद्र गुप्ता ने कहा कि बीओडी में निगम के कर्मचारियों की मांगों पर कोई गौर नहीं किया गया। इस कारण से समिति की बैठक अप्रैल दूसरे हफ्ते में बुलाकर आंदोलन की रणनीति बनेगी। 36 माह का ओवर टाइम नहीं मिला : पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों का कहना है कि संशोधन वेतनमान और भत्ते देने का मामला निगम प्रबंधन से उठाया गया था परंतु बीओडी में इस अहम मसले पर कोई फैसला नहीं लिया गया। इसके अलावा अनुबंध पर लगे चालकों और परिचालकों ने दो साल की अवधि सितंबर में पूरी कर ली है और उनको मार्च अंत तक रेगुलर नहीं किया गया है। निगम कर्मचारियों को 36 माह का ओवर टाइम नहीं मिला है। निगम के पेंशनरों को भी वित्तीय लाभ देने से वंचित रखा गया है। एचआरटीसी को विभाग का दर्जा दिया जाए : संयुक्त समन्वय समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि नई बसें खरीद कर बेड़े में वृद्धि तो की जा रही है और नए डिपो भी राजनीतिक उद्देश्य के लिए धड़ाधड़ खोले जा रहे हैं। परंतु मूलभूत संसाधन तथा सुविधाओं के नाम पर वर्तमान संसाधनों के धागे को ही खींचा जा रहा है। परिवहन मंत्री ने स्वयं माना कि एचआरटीसी की 90 प्रतिशत बसें घाटे में जनहित में चलाई जा रही है। इस घाटे के लिए कर्मचारियों को उनके अधिकारियों से वंचित किया जा रहा है। क्या घाटे के लिए कर्मचारियों को भूखे पेट कार्य करने को मजबूर किया जा सकता है? परिवहन मंत्री मानते है कि यह परिवहन निगम (एचआरटीसी) जनहित में कार्य कर रहा है, तो एचआरटीसी को भी अन्य जनहित में चलाए जा रहे विभागों की भांति विभाग का दर्जा देकर रोडवेज बना दिया जाना चाहिए, ताकि कर्मचारियों के देय वित्तीय लाभों की अदायगी समयानुसार की जा सके।
पंजाब की भगवंत मान सरकार ने राज्य में ग्रुप सी और डी के 35,000 अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने का फैसला किया है। सीएम मान ने कहा कि इस संबंध में मुख्य सचिव को निर्देशित कर दिया गया है। ऐसी संविदात्मक और आउटसोर्सिंग भर्तियों को समाप्त करने का निर्देश दिया गया है। सीएम भगवंत मान ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव को कहा है कि अगले विधानसभा के सत्र से पहले इस कानून का मसौदा बनाकर भेजा जाए, ताकि सरकार विधानसभा में उसे मंजूर करके लागू कर सके। पंजाब की सत्ता संभालने के बाद भगवंत मान लगातार फैसले ले रहे हैं। अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में मान सरकार ने 25 हजार सरकारी पदों को भरने को हरी झंडी दे दी थी। 15000 पद बोर्ड, निगमों व विभागों के भरे जाएंगे, जबकि 10 हजार पद पंजाब पुलिस में भरे जाएंगे। इसके अलावा आज मान सरकार ने शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर हर वर्ष सार्वजनिक अवकाश की भी घोषणा की है। भगवंत मान ने आज विधानसभा में कहा कि पहले सिर्फ नवांशहर में छुट्टी होती थी। कहा कि भगत सिंह पूरे देश के हैं। उनके शहीदी दिवस पर पूरे पंजाब में छुट्टी होगी। वहीं, भगवंत मान सरकार अब भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की तैयारी में है। शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर मान एक नंबर जारी करेंगे। यह नंबर उनका खुद का होगा। इस नंबर पर कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारी दे सकता है। भगवंत मान ने कहा कि इस नंबर पर आने वाली शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार सहन नहीं किया जाएगा। इससे पहले पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी कह चुके हैं कि आप की सरकार में और कुछ सहन हो सकता है भ्रष्टाचार नहीं।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास (एचपीटीडीसी) निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने जयराम सरकार से 2004 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार द्वारा बंद की गई कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन को बहाल करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि उस समय कारपोरेट सेक्टर के लेफ्टआउट 6730 रिटायर कर्मचारी सालों से पेंशन बहाली की राह ताक रहे हैं, लेकिन आज दिन तक निराशा ही हाथ लगी है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार उनकी इस महत्वपूर्ण मांग को समझेगी और पूरा करने का प्रयत्न करेगी। एसोसिएशन ने कहा कि पेंशन के अलावा रिटायरमेंट पर इस वर्ग को न तो ग्रेच्युटी मिलती है और न ही अन्य देय लाभ। सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और 2007 व 2017 के चुनावी वादों को पूरा करे। एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार मनमोहन धनी ने बताया कि इस समय बचे हुए कर्मचारियों की संख्या 6730 है, जो पेंशन न मिलने के कारण बुढ़ापे में आर्थिक तंगी के कारण अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं।
पुलिस जवानों से किया गया वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पुलिस पे बैंड की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है, जिससे प्रदेश के पुलिस जवान निराश है। पुलिस जवानों का कहना है कि वे अब हताश हो चुके हैं, उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। बता दें कि पूर्ण राज्यत्व दिवस के समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये घोषणा कि थी कि पुलिस कांस्टेबल को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों के समकक्ष हायर पे बैंड के लिए पात्र माना जाएगा, यानि हायर पे बैंड के लिए समय अवधि को घटाकर 8 से 5 साल किया जाएगा, हालांकि अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सीएम की घोषणा के बाद भी अभी तक पुलिस पे-बैंड की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पुलिस पे-बैंड की फाइल अभी तक विभागों में ही घूम रही है। पुलिस जवानों का कहना है कि सरकार को पुलिस पे बैंड स्केल की नोटिफिकेशन जल्द जारी करनी चाहिए।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है और संघ ने कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च निकालने का फैसला लिया है। संघ का कहना है कि यह रोष मार्च नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ निकाला जा रहा है। संघ ने आरोप लगाया है कि ये दोनों नेता पिछले दरवाजे से हुई शिक्षकों की भर्तियों का समर्थन कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, महासचिव राजेश धीमान तथा मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 176 कमीशन पास भाषा अध्यापकों को एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नहीं भेजा है, जो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां कांग्रेस एवं भाजपा सरकारो ने ही की थी। ये दोनों सरकारें एसएमसी पॉलिसी की क्लाज नंबर 9 और 10 का उल्लंघन करके एसएमसी शिक्षकों को सेवा विस्तार देती रही। यही कारण है कि बेरोजगार अध्यापक संघ कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च रैली निकाल रहा है। यह रोष मार्च सुबह 11 बजे और शाम तीन बजे के बीच होगा। रोष मार्च हर जिला में तब तक जारी रहेंगे, जब तक 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक नहीं पहुंच जाते। इस मार्च में बेरोजगारों के अभिभावक भी हिस्सा लेंगे। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
बिजली बोर्ड के 33 उप केंद्रों को निजी हाथों में देने का विरोध शुरू हो गया है। बिजली बोर्ड यूनियन के महासचिव हीरा लाल वर्मा ने कहा बोर्ड ने पिछले दिनों ऊना वृत्त के तहत 33 केवी विद्युत उपकेंद्रों को ठेके पर देने के लिए निविदा मांगी है। इससे कर्मचारियों में आक्रोश है। यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप खरवाड़ा ने कहा कि विद्युत उपकेंद्रों के रखरखाव व मरम्मत का कार्य ठेके पर देने से इसकी सही मरम्मत नहीं होती है और लागत भी तीन गुना अधिक होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि बोर्ड प्रबंधन संपत्तियों को संभालने में विफल रहा है। 35-40 लाख रुपये अधिक खर्च कर जो मानव रहित विद्युत उपकेंद्र बनाए गए हैं, उन्हें स्काडा साफ्टवेयर न चलने से मानवयुक्त विद्युत उपकेंद्र मे बदल दिया है। परिचालन-रखरखाव के लिए विद्युत उप केंद्र अब ठेके पर दिए जा रहे हैं। इससे प्रबंधन वर्ग की लापरवाही साफ झलकती है। उन्होंने बोर्ड प्रबंधन से नई भर्ती कर इन उपकेंद्रों को स्वयं चलाने की मांग की है। यूनियन विद्युत उपकेंद्रों को ठेके पर देने का विरोध करेगी। बोर्ड प्रबंधन ने फैसला वापस नहीं लिया तो यूनियन आंदोलन करने से गुरेज नहीं करेगी।
प्रदेश के एनएचएम कर्मचारियों में एक दफे फिर सरकार के प्रति रोष उभर आया है। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार उन्हें ठग रही है। आश्वासनों के बावजूद भी प्रदेश सरकार अपने ही वायदे से मुकर जाती है, जिसके चलते एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों में प्रदेश सरकार से नाराज है। राज्य स्वास्थ्य समिति (एनएचएम) अनुबंध कर्मचारी संघ के महासचिव गुलशन कुमार व प्रेस सचिव अनमोल राज कौंडल ने जारी बयान में प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सहजल से नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार एनएचएम के कर्मचारियों को पहली जनवरी 2018 से रेगुलर पे स्केल दे रही है। मणिपुर सरकार ने भी इन कर्मचारियों को जनवरी 2022 से नियमित कर दिया है। पर हिमाचल प्रदेश सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विधानसभा सत्र में इसका प्रावधान कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि तीन फरवरी को एनएचएम अनुबंध कर्मचारी संघ की राज्य सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया था कि जब तक वे नियमित नहीं हो जाते तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिलाने की बात सरकार के समक्ष रखेंगे। साथ ही सर्व शिक्षा अभियान की तर्ज पर कमेटी के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर सरकार को 90 दिन के अंदर भेजने का भी फैसला हुआ था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों के लिए कोई स्थायी पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। सिर्फ अपनी पीठ थपथपा रही सरकार : संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 23 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। हिमाचल में यह कर्मचारी लगभग दो वर्ष से करोना काल में अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दी है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर जो लोग इसके लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, उनका ज़िक्र भी नहीं हो रहा। राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने कहा कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर इन कर्मचारियों के लिए भी सरकार को जल्द स्थायी नीति बनानी चाहिए। इन कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग जायज है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला : राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है की हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है, अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
A committee would be constituted to look in to the matter of re-designating the Silai Adhiyapika (Tailoring Teachers) and to frame a policy for regularizing of their services. This was stated by the Chief Minister Jai Ram Thakur while addressing the delegation of Silai-Kataye Adhiyapika that called on the Chief Minister at Oak Over here today to thank him for increasing their honorarium by Rs. 900 per month. The delegation was led by the President of Bharatiya Mazdoor Sangh Madan Rana. Chief Minister said that the present State Government was committed for the welfare of the employees, particularly the para-workers employees in various departments. He said that the State Government would also ensure that 20 per cent of the seats of Panchayat Secretaries be filled amongst the Silai Teachers, for which notification would be issued soon. Jai Ram Thakur said that the Government was also ensuring women empowerment at all levels. He said that Mukhyamantri Grihini Suvidha Yojna, Beti Hai Anmol, Shagun Yojna etc. were aimed at this direction. He said that for the first time Gender Budgeting Component has been introduced in the budget for the financial year 2022-23. He said that honorarium of Asha Workers, Anganwari Workers, and mid day meal workers have been increased considerably in the budget 2022-23. Chief Minister said that with the increase of Rs. 900 per month, the Silai Teachers would now get honorarium of Rs. 7950 per month. He said that with this, the total increase of Rs. 1650 has been made in the honorarium of the Silai teachers during the tenure of the present State Government. He said that the daily wages of the daily wagers has also been enhanced by Rs. 50 per day. He said that with this the daily wagers would now get Rs. 1500 more every month. President BMS Madan Rana thanked the Chief Minister for being considerate towards the various demands of the working class. He said that the working class of the State would always remain indebted to the Chief Minister for the historic hike made by him in the honorarium of the para-worker and the daily wagers of the State. Deputy Speaker HP Vidhan Sabha Hans Raj, General Secretary BMS Yash Pal, President of Silai Teacher Association Sunita Rana was also present on the occasion among others.
पुलिस जवानों से किया गया वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई है। पुलिस पे बैंड की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है, जिससे प्रदेश के पुलिस जवान निराश है। पुलिस जवानों का कहना है कि वे अब हताश हो चुके हैं, उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। बता दें कि पूर्ण राज्यत्व दिवस के समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये घोषणा कि थी कि पुलिस कांस्टेबल को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों के समकक्ष हायर पे बैंड के लिए पात्र माना जाएगा, यानि हायर पे बैंड के लिए समय अवधि को घटाकर 8 से 5 साल किया जाएगा, हालांकि अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सीएम की घोषणा के बाद भी अभी तक पुलिस पे-बैंड की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पुलिस पे-बैंड की फाइल अभी तक विभागों में ही घूम रही है। पुलिस जवानों का कहना है कि सरकार को पुलिस पे बैंड स्केल की नोटिफिकेशन जल्द जारी करनी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास (एचपीटीडीसी) निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने जयराम सरकार से 2004 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार द्वारा बंद की गई कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन को बहाल करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि उस समय कारपोरेट सेक्टर के लेफ्टआउट 6730 रिटायर कर्मचारी सालों से पेंशन बहाली की राह ताक रहे हैं, लेकिन आज दिन तक निराशा ही हाथ लगी है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम पेंशनर्ज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार उनकी इस महत्वपूर्ण मांग को समझेगी और पूरा करने का प्रयत्न करेगी। एसोसिएशन ने कहा कि पेंशन के अलावा रिटायरमेंट पर इस वर्ग को न तो ग्रेच्युटी मिलती है और न ही अन्य देय लाभ। सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और 2007 व 2017 के चुनावी वादों को पूरा करे। एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार मनमोहन धनी ने बताया कि इस समय बचे हुए कर्मचारियों की संख्या 6730 है, जो पेंशन न मिलने के कारण बुढ़ापे में आर्थिक तंगी के कारण अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं दिख रहे। नई भर्ती न होने से बेरोजगार अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश सरकार से खासा नाराज़ है और संघ ने कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च निकालने का फैसला लिया है। संघ का कहना है कि यह रोष मार्च नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ निकाला जा रहा है। संघ ने आरोप लगाया है कि ये दोनों नेता पिछले दरवाजे से हुई शिक्षकों की भर्तियों का समर्थन कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, महासचिव राजेश धीमान तथा मीडिया प्रभारी प्रकाश चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 176 कमीशन पास भाषा अध्यापकों को एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नहीं भेजा है, जो कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां कांग्रेस एवं भाजपा सरकारो ने ही की थी। ये दोनों सरकारें एसएमसी पॉलिसी की क्लाज नंबर 9 और 10 का उल्लंघन करके एसएमसी शिक्षकों को सेवा विस्तार देती रही। यही कारण है कि बेरोजगार अध्यापक संघ कांगड़ा शहर में नौ अप्रैल को संविधान बचाओ रोष मार्च रैली निकाल रहा है। यह रोष मार्च सुबह 11 बजे और शाम तीन बजे के बीच होगा। रोष मार्च हर जिला में तब तक जारी रहेंगे, जब तक 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक नहीं पहुंच जाते। इस मार्च में बेरोजगारों के अभिभावक भी हिस्सा लेंगे। बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी, उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
प्रदेश के एनएचएम कर्मचारियों में एक दफे फिर सरकार के प्रति रोष उभर आया है। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार उन्हें ठग रही है। आश्वासनों के बावजूद भी प्रदेश सरकार अपने ही वायदे से मुकर जाती है, जिसके चलते एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों में प्रदेश सरकार से नाराज है। राज्य स्वास्थ्य समिति (एनएचएम) अनुबंध कर्मचारी संघ के महासचिव गुलशन कुमार व प्रेस सचिव अनमोल राज कौंडल ने जारी बयान में प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सहजल से नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि हरियाणा सरकार एनएचएम के कर्मचारियों को पहली जनवरी 2018 से रेगुलर पे स्केल दे रही है। मणिपुर सरकार ने भी इन कर्मचारियों को जनवरी 2022 से नियमित कर दिया है। पर हिमाचल प्रदेश सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विधानसभा सत्र में इसका प्रावधान कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि तीन फरवरी को एनएचएम अनुबंध कर्मचारी संघ की राज्य सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया था कि जब तक वे नियमित नहीं हो जाते तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिलाने की बात सरकार के समक्ष रखेंगे। साथ ही सर्व शिक्षा अभियान की तर्ज पर कमेटी के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर सरकार को 90 दिन के अंदर भेजने का भी फैसला हुआ था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अनुबंध कर्मचारियों का कहना है कि विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वह एनएचएम अनुबंध कर्मचारियों के लिए कोई स्थायी पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। सिर्फ अपनी पीठ थपथपा रही सरकार संघ के पदाधिकारियों के अनुसार एनएचएम कर्मचारी विभिन्न स्वास्थ्य समितियों के तहत 23 वर्ष से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत सेवाएं दे रहे हैं। सरकार ने न तो आज तक इन कर्मचारियों का नियमितीकरण किया और न ही रेगुलर स्केल का लाभ दिया जा रहा है। हिमाचल में यह कर्मचारी लगभग दो वर्ष से करोना काल में अपनी सेवाएं पूरी निष्ठा से दी है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर जो लोग इसके लिए दिन रात मेहनत कर रहे है, उनका ज़िक्र भी नहीं हो रहा। राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने कहा कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर इन कर्मचारियों के लिए भी सरकार को जल्द स्थायी नीति बनानी चाहिए। इन कर्मचारियों द्वारा क्षय रोग, एचआईवी एड्स, शिशु स्वास्थ्य, कोविड-19 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के तहत अपना योगदान दिया जा रहा है। इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग जायज है। केंद्र के कर्मचारी है तो सातवां वेतन आयोग क्यों नहीं मिला ? राज्य स्वास्थ्य समिति ( नेशनल हेल्थ मिशन ) अनुबंध कर्मचारी महासंघ के उप प्रधान डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि सरकार हमारी मांगें ये कह कर टाल देती है की हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है, अगर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी है तो हमें सातवां वेतन आयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें भले ही केंद्र प्रायोजित स्कीमों के अंतर्गत नियुक्ति दी गई हो मगर इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सिर्फ पैसा देता है। स्वास्थ्य राज्य का मसला होता है। हमें राज्य स्वास्थ्य समिति के तहत रखा गया था जिसके चेयरमैन मुख्य सचिव है। हमें राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया गया है और हम काम भी राज्य सरकार का करते है न कि केंद्र सरकार के लिए, तो मसले भी राज्य सरकार को ही हल करने होंगे।
प्रदेश की राजधानी शिमला में 3 मार्च को पुरानी पेंशन बहाली के लिए हुए प्रदर्शन के न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के कई कर्मचारी नेताओं पर पुलिस द्वारा मामले दर्ज किये गए है, जिसकी कई कर्मचारी संगठन निंदा कर रहे है। तीन मार्च को शिमला टूटीकंडी में सभी कर्मचारी एकत्रित हुए थे और आगे बढ़ते हुए 103 टनल के पास एनपीएस कर्मचारियों ने हल्ला बोला। इस दौरान कर्मचारियों द्वारा यातायात बंद किया गया। पुलिस के जवानों ने कर्मचारियों को जब हटाने की कोशिश की तो कर्मचारियों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की हुई। इसके बाद प्रदर्शन में शामिल एनपीएस कर्मियों पर एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन एफआईआर का विरोध कर रहे है और एनपीएस कर्मचारियों का समर्थन। -राज्य बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष कुलदीप सिंह खरवाड़ा ने न्यू पेंशन कर्मचारी महासंघ के कर्मचारी नेताओं पर पुलिस मामले दर्ज करने की निंदा की है। उन्होंने सरकार से मांग की कि इन मामलों को तुरंत वापस लिया जाए। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इन मामलों को वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश स्तर पर कर्मचारी बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे। - हिमाचल प्रदेश संयुक्त कर्मचारी महासंघ ने भी कर्मचारियों पर एफआईआर की निंदा की हैl महासंघ ने मांग की है की सरकार इसे तुरंत वापस करें और पुरानी पेंशन बहाली के लिए बात करें l -हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है। समिति ने कर्मचारी नेताओं पर दर्ज किए केस की कड़े शब्दों में निंदा की है तथा मांग की हैं कि सरकार द्वारा मुकदमों को तुरन्त वापिस लिया जाए। इनका कहना है कि कर्मचारी अपनी जायज मांग को लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण तरीके से उठा रहे थे तथा उन्होंने किसी सम्पत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, इसके बावजूद भी कर्मचारियों पर मुकदमे दायर करना निंदनीय है। -राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज एफआईआर वापस लेने की आवाज उठाई। संघ के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने एफआईआर की कड़े शब्दों में निंदा की है। खंड अध्यक्ष बलदेव सिंह ने कहा कि कर्मचारी बड़े शांतिपूर्वक पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर एकत्रित होकर प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन फिर भी उनके खिलाफ केस दर्ज किए गए। -हिमाचल प्रदेश न्यू पेंशन स्कीम रिटायर्ड कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजीव गुलेरीया ने संघ की ओर से पुरानी पेंशन बहाली के लिए किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है। गुलेरिया ने कर्मचारी नेताओं पर दर्ज की गई एफआईआर की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को डराने-धमकाने के उद्देश्य से किए जा रहे मुकदमों को सरकार जल्द वापस ले। -ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर ऑर्गेनाइजेशन ने भी एनपीएस कर्मचारियों पर दर्ज एफआईआर का विरोध किया है। संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अश्वनी कुमार ने बताया कि एनपीएस कर्मचारियों द्वारा पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर किया गया प्रदर्शन एक शांतिपूर्ण आंदोलन था। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि वे कर्मचारियों की मांग को माने और पुरानी पेंशन बहाल करें।
नौकरियां : 30 हजार नए पद भरे जायेंगे मानदेय : करीब डेढ़ लाख लोगों का बढ़ा मानदेय नीति : आउटसोर्स और एसएमसी के लिए नहीं बनी नीति सीएम जयराम ठाकुर ने अपने कार्यकाल के अंतिम बजट में कर्मचारी वर्ग को साधने की भी भरपूर कोशिश की है। बजट से जितना मांगा उतना भले न मिला हो, लेकिन कर्मचारियों की झोली खाली रही ऐसा नहीं कहा जा सकता। प्रदेश के पौने तीन लाख कर्मचारी हर बार की तरह इस बार भी बजट से कई उम्मीदें लगाए बैठे थे। कोई स्थाई नीति मांग रहा था, कोई पेंशन, कोई वेतन में बढ़ोतरी, तो किसी को पूर्णतः सरकारी कर्मचारी बनने की आस थी। मोटे तौर पर देखा जाए तो इस बजट में एक भी घोषणा ऐसी नहीं थी जो प्रदेश के हर कर्मचारी पर असर डालती, लेकिन अलग-अलग सभी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई। विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे लगभग 65 हजार अस्थाई कर्मचारियों के मानदेय में जयराम ठाकुर ने इजाफा कर राहत देने की कोशिश की है। पिछले कुछ समय में कर्मचारियों को काफी कुछ मिला है, नया वेतनमान, डीए, फैमिली पेंशन, दो साल का अनुबंध काल इत्यादि, शायद इसीलिए बजट में इस बार असंगठित वर्ग को राहत पहुंचाने का प्रयास रहा। कई कर्मचारी इस बजट की खुले दिल से प्रशंसा कर रहे है, तो कई अब भी दिल में मलाल लिए बैठे है। कर्मचारियों को क्या व कितना मिला और क्या नहीं, इस पर पेश है ये विश्लेषण आउटसोर्स कर्मचारी : न्यूनतम वेतन बढ़ा पर नीति नहीं बनी हिमाचल प्रदेश के 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को बजट से काफी उम्मीदें थी। दरससल आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याएं हल करने के लिए बनाई गई कैबिनेट सब कमेटी की बैठक के दौरान कर्मचारियों को ये आश्वासन मिला था की उनके लिए बजट में पॉलीसी का प्रावधान किया जाएगा। ये बैठक कमेटी के अध्यक्ष व जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में हुई थी। आउटसोर्स कर्मचारी काफी हद तक आश्वस्त थे कि जैसा कहा गया है वैसा ही होगा। परन्तु इस बजट से प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों को झटका लगा है। बजट में इनके लिए न तो पॉलीसी का प्रावधान हुआ और न उस पर कोई चर्चा। हालाँकि, नीति तो नहीं मिली लेकिन आउटसोर्स कर्मियों के वेतन में न्यूनतम 4,200 रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी करने का प्रावधान जरूर किया गया है, जिसके बाद आउटसोर्स कर्मियों का न्यूनतम वेतन 10,500 रुपये प्रतिमाह हुआ है। बजट में कंपनियों द्वारा आउटसोर्स कर्मियों का शोषण कम करने के लिए पे-स्लिप देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस पे-स्लिप में सर्विस प्रोवाइडर कर्मी को लिखित रूप से समस्त कटौतियां जैसे ईपीएफ इत्यादि एवं कर्मी को प्राप्त होने वाले कुल भुगतान को दिखाना होगा। श्रम विभाग इन दिशा निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करेगा। उधर,आउटसोर्स कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि उन्होंने हमेशा ही वित्तीय लाभ से अधिक नौकरी की सुरक्षा मांगी है। संघ का कहना है कि हमने प्रदेश सरकार से स्थायी नीति बनाने, समयावधि पूर्ण होने पर नियमित करने व समान वेतनमान की मांग की थी, जो पूरी नहीं हुई। आउटसोर्स कर्मचारी कई वर्षों से लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं, परंतु सरकार अभी तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बना पाई है। अलग-अलग विभागों में अलग-अलग नीतियां हैं। वेतन और मानदेय के मामले में भी असमानता की स्थिति बनी हुई है। बता दें की प्रदेश के विभिन्न विभागों में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती न केवल पिछली सरकार ने की, बल्कि जयराम सरकार ने भी यह सिलसिला जारी रखा, लेकिन इनके लिए स्थायी नीति नहीं बनाई गई। शास्त्री व भाषाध्यापक को टीजीटी पदनाम, सरकार से खुश : इस बजट में शास्त्री व भाषाध्यापक को टीजीटी पदनाम देने का निर्णय लिया गया है जिससे ये शिक्षक काफी खुश है। 2010 के बाद नियुक्त सभी प्रवक्ताओं को पीजीटी नाम दिया गया था, जिसका प्रवक्ता संघ ने लंबे समय तक विरोध किया। हिमाचल प्रदेश सरकार ने पहली मार्च, 2019 को कैबिनेट में निर्णय कर स्कूल प्रवक्ता का पदनाम प्रवक्ता स्कूल न्यू किया। प्रवक्ताओं का नाम प्रवक्ता न कर प्रवक्ता स्कूल न्यू करने पर प्रवक्ता वर्ग में असंतोष था। अध्यापक लगातार न्यू शब्द हटाने की मांग कर रहे था। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के प्रदेश अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर ने बताया कि इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश के 18000 शिक्षकों में खुशी की लहर है। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद, संयुक्त समिति शास्त्री व भाषाध्यापक ने भी प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का बजट में शास्त्री एवं भाषाध्यापकों को टीजीटी पदनाम की घोषणा का स्वागत किया है। इससे शास्त्री एवं भाषाध्यापकों का वनवास समाप्त होगा। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डा. मनोज शैल संयुक्त समिति ने कहा कि शास्त्री एवं भाषाध्यापकों की लंबित मांग को पूरा करने की ऐतिहासिक घोषणा मुख्यमंत्री ने बजट भाषण में की है। शास्त्री एवं भाषाध्यापक एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार पात्र होते हुए भी इससे वंचित थे और लगातार इसके लिए वर्षों से निवेदन कर रहे थे। एसएमसी शिक्षक : नहीं मिली नीति, नाखुश है शिक्षक : बजट में एसएमसी शिक्षकों का मानदेय 1000 रुपये प्रतिमाह बढ़ाने की घोषणा की गई है। इनकी सेवाएं पहले की तरह जारी रखी जाएंगी। इन्हें नहीं हटाया जाएगा। 1000 रु की वृद्धि से ये शिक्षक भी पूर्णतः संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे। 2555 एसएमसी शिक्षकों को भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट से कई उम्मीदें थी। यह कर्मचारी यह आस लगाए बैठे थे कि वे एसएमसी शिक्षकों के लिए अनुबंध या नियमित नीति लाई जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बता दें कि शिक्षा विभाग में एसएमसी शिक्षकों की नियुक्ति वर्ष 2012 में भाजपा की पिछली सरकार में हुई थी। ये नियुक्तियां वीरभद्र सरकार ने भी जारी रखी। 2017 में फिर भाजपा सरकार बनी और इसको चार साल पूरे हो चुके हैं पर अब तक इस सरकार में भी एसएमसी शिक्षकों के लिए कुछ खास नहीं हुआ, बस हर वर्ष इनके कार्यकाल को बढ़ा दिया जाता है। कंप्यूटर शिक्षक नाखुश, 1000 रुपये वेतन वृद्धि ऊंट के मुँह में जीरा : प्रदेश में तैनात कम्प्यूटर शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया था कि पंजाब सरकार के फार्मूले पर उनकी सेवाएं भी अब रेगुलर की जाए, क्योंकि उन्हें बहुत वर्ष आउटसोर्स पर सेवाएं देते हुए हो गए हैं। पंजाब सरकार ने सोसायटी बनाकर ऐसे शिक्षकों की सेवाएं सोसायटी में ही रेगुलर कर दी है परन्तु हिमाचल में ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि इनके वेतन में 1000 रुपए की वृद्धि की गई है। प्रदेशभर के स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा प्रदान कर रहे अध्यापकों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट को निराशाजनक बताया है। प्रदेश कंप्यूटर शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष रोशन मेहता, महासचिव राकेश शर्मा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से स्थायी नीति की मांग की थी। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग में सबसे शोषित वर्ग में कम्प्यूटर अध्यापक आते हैं। सरकार ने 1000 रुपए की घोषणा करके ऊंट के मुंह में जीरा के समान कार्य किया हैं। पुरानी पेंशन : मिला सिर्फ समस्या सुलझाने का वादा कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग पुरानी पेंशन पर बजट में तो कोई प्रवधान नहीं हुआ, मगर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदन में ओल्ड पेंशन स्कीम पर समस्या सुलझाने का वादा कर कर्मचारियों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास किया है। उन्होंने सदन में कहा कि कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम के लिए आंदोलित हैं। वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। उधर, पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन में एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित आधा दर्जन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चूका है। इतने बड़े प्रदर्शन के बावजूद मुख्यमंत्री कर्मचारियों से मिलने नहीं गए। नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता : अधूरी रही मांग, हज़ारों कर्मचारी निराश नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग करने वाले कर्मचारी इस बजट से निराश नजर आ रहे है। हर बार की तरह इस बार भी उनकी मांग अधूरी रह गई। बजट से पहले हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने मांग की थी कि सरकार भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने के वायदे को पूरा करे। संगठन ने कहा की भाजपा ने चुनाव से पूर्व अनुबंध नियमित कर्मचारियों से वरिष्ठता का जो वादा किया था, उसे चार साल बीत जाने पर भी पूरा नहीं किया है। उन्होंने कहा की मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष इस मांग को 50 से अधिक बार उठाया जा चुका है। मुख्यमंत्री खुद भी कह चुके हैं कि आपकी यह मांग जायज है। जेसीसी की बैठक में भी इस मांग पर कमेटी गठन की बात कही गयी, लेकिन उस पर भी कोई कमेटी नहीं बनी। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार तत्कालीन भाजपा सरकार ने लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया। निश्चित वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी कमीशन पास कर्मचारियों को प्रदेश के इतिहास का सबसे लंबा अनुबन्ध काल दिया गया। उसके बाद आई सरकार ने अनुबंध अवधि को कम किया लेकिन कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से अपना कर्मचारी नहीं माना। सरकार कर्मचारी के सेवा की गणना उनके नियमितीकरण से कर रही है, ना कि उनकी प्रथम नियुक्ति से। यह लोकसेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं की मान्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा है। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विस को प्रमोशन और अन्य सेवा लाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए न कि नियमितीकरण की तिथि से। कर्मचारियों की ये मांग इस बजट में भी अधूरी ही रही। अच्छी पहल : 500 चिकित्सकों के पद भरेगी सरकार हिमाचल के स्वास्थ्य संस्थानों को सुदृढ़ करने के लिए चिकित्सा अधिकारियों के विशेषज्ञ काडर को बढ़ाने का फैसला लिया गया है। नए मेडिकल कॉलेज नाहन, चंबा, नेरचौक, और हमीरपुर में फैकल्टी और अन्य श्रेणियों के पद भरे जाएंगे। सीएम ने चिकित्सा अधिकारियों के 500 नए पदों को भरने की घोषणा की है। इससे प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधा तो सुधरेगी ही, साथ ही प्रदेश के मेडिकल संस्थानों से पास हुए डॉक्टरों को नौकरी भी मिल पाएगी। ये आम जनता की ही नहीं बल्कि प्रदेश के चिकित्सक संगठनों की भी मांग थी। फिलवक्त प्रदेश में करीब 2600 चिकित्सकों का काडर था, जो अब बढ़ा दिया गया है। ...................... इस बजट का मुख्य आकर्षण कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी रहा। सीएम ने करीब डेढ़ लाख कर्मियों, श्रमिकों, पैरा वर्करों आदि का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है। -आउटसोर्स कर्मियों के वेतन में न्यूनतम 4,200 रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी। प्रत्येक आउटसोर्स कर्मी को अब न्यूनतम 10,500 रुपये प्रतिमाह मिलेंगे। -दिहाड़ीदारों को 50 रूपए की बढ़ोतरी के साथ अब 350 रूपए प्रतिदिन दिहाड़ी मिलेगी। पंचायत चौकीदार के लिए नीति भी जल्द आएगी। -एसएमसी शिक्षकों के मानदेय में 1000 रूपए की बढ़ोतरी, यथावत रहेगी सेवाएं, बनेगी नीति। -आईटी टीचर्स के मानदेय में 1000 रूपए की बढ़ोतरी। पद बढ़ोतरी प्रतिमाह मानदेय आशा वर्कर 1825 4700 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 1700 9000 मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 900 6100 आंगनबाड़ी सहायिका 900 4700 सिलाई अध्यापिका 900 7950 मिड डे मील वर्कर 900 3500 राजस्व नम्बरदार 900 3200 जल रक्षक 900 4500 वाटर कैरियर 900 3900 पैरा फिटर / पंप ऑपरेटर 900 5500 पंचायत चौकीदार 900 6500 राजस्व चौकीदार 900 5000 मल्टी पर्पस वर्कर 900 3900 ............................................................................................................... खुला नौकरियों का पिटारा highlights आशा कार्यकर्ता : 780 पद - गृहरक्षकों की होगी भर्ती - भरे जायेंगे चतुर्थ श्रेणी के पद कर्मचारियों के साथ - साथ सरकार ने बजट में बेरोज़गारों का भला करने का प्रयास किया है। कुल 30 हजार पदों को भरने की बात कही गई है। स्वास्थ्य विभाग में विषेशज्ञ डॉक्टर, डॉक्टर, नर्सें, रेडियोग्राफर,ओटी सहायक, लैब तकनीशियन, डेंटल हाइजीनिस्ट, फार्मासिस्ट, एमआरआई तकनीशियन, ईसीजी तकनीशियन व अन्य तकनीशियनों के 500 से अधिक पद भरे जाएंगे। 780 आशा कार्यकर्ताओं के नए पद भरे जाएंगे। साथ ही 437 पद आशा फैसिलिटेटर व सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी के 870 पद भी भरे जाएंगे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत विभिन्न श्रेणियों के 264 पद भरे जाएंगे। हमीरपुर, नाहन, चंबा तथा नेरचौक में स्थित नए आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में समुचित फैकल्टी व अन्य श्रेणियों के पद भरे जाएंगे। इसके अतिरिक्त विभिन्न विभागों में खाली फंक्शनल पदों को भी सरकार भरेगी। जलशक्ति विभाग में पैरा फिटर, पंप ऑपरेटर तथा मल्टी टास्क पार्ट टाइम वर्कर के पद भरे जाएंगे। इसमें शिक्षा विभाग में विभिन्न शिक्षकों की भर्ती, पुलिस आरक्षी भर्ती, बिजली बोर्ड के तकनीकी पद जैसे लाइनमैन, जूनियर टी मेट इत्यादि, एचआरटीसी में ड्राइवर तथा कंडक्टर इत्यादि की आवश्यक भर्तियां, राजस्व विभाग के कर्मी, पशुपालन विभाग के डॉक्टर व कर्मी, शहरी निकायों के लिए स्टाफ, पंचायत सचिव, पंचायतों के लिए तकनीकी सहायक और ग्राम रोजगार सहायक, विभिन्न विभागों में लिपिक, जेओए आईटी, तकनीकी शिक्षा विभाग में विभिन्न श्रेणियों के अध्यापक एवं इंस्ट्रक्टर, रेशम विभाग के इंस्पेक्टर तथा विभिन्न विभागों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद भी भरे जाएंगे । आगामी वर्ष में शिक्षा एवं लोक निर्माण विभाग में अंशकालीन मल्टी टास्क वर्करों की भर्ती प्रक्रिया को पूर्ण किया जाएगा। गृह रक्षकों की आवश्यक भर्ती करने का भी सरकार ने निर्णय लिया है।
शिमला की कड़कड़ाती ठंड के बीच, हाथ में तिरंगा, सर पर सफेद टोपी और जुबां पर पुरानी पेंशन बहाली का नारा लिए कर्मचारी आगे बढ़ते जा रहे थे। मौसम पहले ही सर्द था और वाटर कैनन्स से हल्की बौछार भी हो रही थी। पुलिस के जवानों के साथ धक्का -मुक्की भी खूब हुई, पर अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वो आगे बढ़ते रहे। विपक्ष का जुबानी साथ तो मिला मगर सत्तासीन हुक्मरान इस दफे पिघले नहीं। हालांकि विधानसभा के बाहर कर्मचारियों ने और सदन के भीतर विपक्ष ने सरकार को घेरे रखा। खूब हो हल्ला हुआ, जमकर प्रदर्शन हुआ। ऐसा प्रदर्शन जैसा शायद ही कर्मचारियों ने प्रदेश में पहले किया हो। शहर में चार जगह बैरिकेड लगाए गए थे, भारी पुलिस बल तैनात था, इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों को रोकने में सरकार का खुफिया तंत्र और सुरक्षा इंतजाम फेल हो गया। इस बीच मुख्यमंत्री कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाते रहे लेकिन कर्मचारी वार्ता के लिए नहीं पहुंचे और प्रदर्शन जारी रखा। कर्मचारियों का कहना था कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अगर उनसे बात करनेे आते हैं, तो वह वापस चले जाएंगे, नहीं तो वहीं पर बैठे रहेंंगे। न तुम कम न हम ज्यादा होता रहा और हल नहीं निकला। देर रात तक कर्मचारी डटे रहे। फिर जब वापस लौटे तो हाथ में पुरानी पेंशन तो नहीं थी मगर एनपीएस कर्मचारी नेताओं सहित दो दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका था। इन कर्मचारियों की माने तो अब बस दिल में मलाल है और चुनाव का इंतजार है। पहले से ही स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि बजट में भी पुरानी पेंशन के लिए कोई बड़ा ऐलान नहीं होगा, और हुआ भी ऐसा ही। पुरानी पेंशन को लेकर बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई। मगर बजट के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ओल्ड पेंशन स्कीम पर कुछ शब्द जरूर कहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जाएगी, ये आश्वासन दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार होगा। उन्होंने कर्मचारियों से बातचीत के लिए भी अपील की। सरकार अब भी चाहती है कि कर्मचारी आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाएं। वित्तीय मजबूरी, वरना सरकार रिस्क क्यों लेगी : पुरानी पेंशन सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश का एक बड़ा मसला बन गई है। हर तरफ कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। जब केंद्र सरकार नए पेंशन सिस्टम को भारत में लागु कर रही थी तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि ये पेंशन केंद्र और प्रदेश की सरकारों के लिए इतना बड़ा सरदर्द बनेगी। आज वित्तीय परिस्तिथि ऐसी है कि अगर सरकारें चाहे तो भी एक दम जिन्न की तरह कर्मचारियों की इस चाह को पूरा नहीं कर पा रही। हिमाचल की भी वित्तीय स्थिति कुछ ऐसी ही है, वरना सरकार चुनावी वर्ष में कर्मचारियों की नाराजगी का इतना बड़ा रिस्क लेने की स्तिथि में कतई नहीं दिखाई देती। गहलोत के निर्णय से जगी आस : देश के सिर्फ दो राज्यों में पुरानी पेंशन है, इस बात से ये स्पष्ट होता है कि इसे लागू करना उतना आसान नहीं है। कुछ दिनों पहले तक पश्चिम बंगाल देश का इकलौता राज्य था जो पुरानी पेंशन दे रहा था। वहीँ वित्त वर्ष 2022 -23 के बजट में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ओपीएस लागू करके ये दिखा दिया कि सरकारें चाहे तो ये नामुमकिन भी नहीं हैं। गहलोत के इस निर्णय ने देशभर में कर्मचारियों में नई आस जगा दी है। हालांकि राजस्थान की वित्तीय स्थिति भी बेहतर नहीं है और राज्य पर करीब सवा चार लाख करोड़ का लोन है। माननीयों के लिए पेंशन क्यों ? सरकार की खराब वित्तीय स्तिथि का तर्क कर्मचारियों के गले से नहीं उतरता, वो भी तब जब माननीय खुद पुरानी पेंशन ले रहे हो। कर्मचारियों की घड़ी की सुई हर बार इसी बात पर आकर अटकती है कि अगर नई पेंशन अच्छी है तो माननीय खुद क्यों पुरानी पेंशन ले रहे है। जब सरकार ने कर्मचारियों को नई पेंशन देने का सोचा तो खुद क्यों नई पेंशन नहीं ली। ये तर्क - वितर्क का सिलसिला जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को मिल नहीं जाती। पुरानी पेंशन लिए बिना कर्मचारी मानेंगे नहीं, ये प्रदेश में हुए प्रदर्शनों से स्पष्ट हो गया है। अब ये देखना होगा कि इस निर्णय का सेहरा किसके सिर बंधता है। क्या जयराम सरकार कर्मचारियों की इस मांग को मानती है या नहीं, चुनावी वर्ष में इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के शिमला जिला संयुक्त मंच इकाई ने 28-29 मार्च की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में कालीबाड़ी हॉल शिमला में जिलाधिवेशन का आयोजन किया। अधिवेशन में फैसला लिया गया कि अपनी मांगों को पूर्ण करने के लिए मजदूर व कर्मचारी हिमाचल प्रदेश में दो दिन की ऐतिहासिक हड़ताल करेंगे। मंच ने केंद्र सरकार को चेताया है कि अगर मजदूरों व कर्मचारियों की मांगों को पूर्ण न किया गया तो आंदोलन तेज होगा। अधिवेशन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा,महासचिव अजय दुलटा,रमाकांत मिश्रा,बालक राम,हिमी देवी,विनोद बिरसांटा,दलीप सिंह,सुनील मेहता,पूर्ण चंद,रंजीव कुठियाला,इंटक प्रदेश उपाध्यक्ष राहुल मेहरा,महासचिव बी एस चौहान,गौरव चौहान,नरेंद्र चंदेल,पूर्ण चंद,राहुल नेगी,एटक प्रदेश प्रेस सचिव संजय शर्मा,इंद्र सिंह डोगरा,मस्सी लाल,प्रेम सिंह,शिव राम,एचपीएमआरए प्रदेशाध्यक्ष हुक्म चंद शर्मा,केंद्रीय कर्मचारी समन्वय समिति वाइस चेयरमैन बलबीर सूरी,एजी ऑफिस एसोसिएशन उपाध्यक्ष राजेन्द्र,ऑडिट एंड अकाउंट्स पेंशनर एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत भूषण आदि शामिल रहे। अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा एनपीएस कर्मियों के शांतिपूर्वक आंदोलन को पुलिस बल के ज़रिए कुचलने के घटनाक्रम की कड़ी निंदा की है व इसे प्रदेश सरकार की तानाशाही करार दिया है। उन्होंने एनपीएस कर्मियों से एकजुटता प्रकट की है व ऐलान किया कि 28-29 जनवरी की हड़ताल में ओल्ड पेंशन स्कीम एक प्रमुख मुद्दा बनेगा। उन्होंने केंद्र सरकार की मज़दूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों की खुली आलोचना की। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर उसने पूँजीपतिपरस्त नीतियों को बन्द न किया तो आंदोलन तेज होगा। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि मजदूर विरोधी चार लेबर कोड निरस्त किये जाएं। वर्ष 2003 से नियुक्त सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल की जाए। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण बन्द किया जाए व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन योजना को वापिस लिया जाए। मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील कर्मियों को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए व छः सौ रुपये दिहाड़ी लागू की जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स व ठेका प्रथा पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स के लिए ठोस नीति बनाई जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी बदलाव बन्द किये जाएं।
पुरानी पेंशन स्कीम बहाली को लेकर कर्मचारियों का प्रदर्शन उग्र होता दिख रहा है। प्रदेशभर से हजारों कर्मचारी विधानसभा का घेराव करने शिमला पहुंचे है और प्रदर्शन करते हुए विधानसभा के गेट तक पहुंच गए हैं। स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और एतिहातन विधानसभा के गेट पर ताला लगा दिया गया है। इससे पहले पुलिस ने कर्मचारियों को 103 टनल के पास रोकने के लिए पानी की बौछार की लेकिन कर्मचारी आगे बढ़ते चले गए। इससे पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर प्रदेशभर से शिमला पहुंचे कर्मचारी शिमला की टूटीकंडी क्रॉसिंग में जुटे और विधानसभा की तरफ कूच किया। कर्मचारियों ने ढोल नगाड़ों के साथ जमकर नारेबाजी की और चेताया की 'जो ओपीएस बहाल करेगा वो ही प्रदेश पर राज करेगा'। प्रदर्शन के चलते शिमला में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है और चौड़ा मैदान में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई। हालाँकि पुलिस बल भी कर्मचारियों को विधानसभा तक पहुँचने से नहीं रोक पाया।
प्रदेश के कॉलेजों में व्यावसायिक शिक्षा देने वाले वोकेशनल शिक्षक भी सरकार से पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि हरियाणा व असम की तर्ज पर इन शिक्षकों के लिए भी हिमाचल में पॉलिसी तैयार की जाए, ताकि वोकेशनल शिक्षकों को भविष्य में नियमित किया जा सके और इन शिक्षकों को पदोन्नति के अवसर मिले। शिक्षकों का कहना है कि इस बजट सत्र में उन्हें उम्मीद ही नहीं बल्कि भरोसा है कि गठित कमेटी उनके भविष्य के बारे में सोचकर स्थायी नीति बनाएगी। हिमाचल प्रदेश बी. वॉक वोकेशनल संघ के अध्यक्ष कुश भारद्वाज ने आउटसोर्स पर कार्यरत हजारों वोकेशनल प्रशिक्षकों के लिए स्थायी नीति बनाने हेतु कमेटी का गठन करने हेतु सरकार का आभार जताया। उन्होंने कहा कि स्थायी नीति बनाने से प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ-साथ उनके परिवार भी लाभान्वित होंगे जिससे बढ़ती हुई महंगाई के दौर में आसानी से गुजारा कर पाएंगे। उन्होंने मांग की है की इस बजट सत्र के दौरान उनके लिए स्थाई नीति की घोषणा की जाए।
शारीरिक शिक्षा अध्यापक प्रदेश के स्कूलों में 100 विद्यार्थियों वाली शर्त को हटाने की मांग कर रहे है। अपनी मांगों को लेकर बीते दिनों राजकीय शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ का एक प्रतिनिधि मंडल शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर भी मिला। प्रतिनिधि मंडल ने शिक्षा मंत्री से आग्रह किया कि हिमाचल प्रदेश के सभी माध्यमिक विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के पदों को भरा जाये तथा 100 विद्यार्थियों वाली शर्त को हटाया जाए। संघ के अनुसार प्रदेश में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के 380 पद खाली चल रहे है जिन्हें अतिशीघ्र भरा जाना चाहिए। शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ के राज्य कोषाध्यक मनोहर लाल ठाकुर एवं जिला महासचिव गिरधारी शर्मा के बताया कि इसके अतिरिक्त संघ की मांग है की वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में डीपीई के पदों को सृजित किया जाए, जिससे फिट इंडिया प्रोग्राम को सफल बनाया जा सके। संघ चाहता है कि जिला सहायक शिक्षा अधिकारी एपीडीएओ के पदों को स्थाई किया जाए तथा एडीपीईओ के पदनाम बदल कर डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स ऑफिसर रखा जाए। इन सभी मांगों पर शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। संघ के पदाधिकारियों का कहना है की मंत्री ने सभी मांगों को ध्यानपूर्वक सुना और उन्हें पूरा करने का भी आश्वासन दिया।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले हिमाचल प्रदेश के सैंकड़ों आंगनबाड़ी कर्मियों ने विधानसभा शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदेशभर के आंगनबाड़ी कर्मी पंचायत भवन शिमला में एकत्रित हुए व एक जुलूस के रूप में विधानसभा की ओर कूच किया। प्रदर्शन के दौरान यूनियन का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला व उन्हें बारह सूत्रीय मांग-पत्र सौंपा। मुख्यमंत्री ने आगामी बजट में कर्मियों की मांगों को पूर्ण करने का आश्वासन दिया। यूनियन ने चेताया है कि अगर बजट में मांगें पूर्ण न हुईं तो 28-29 मार्च को आंगनबाड़ी कर्मी राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल होकर आंदोलन तेज करेंगे। विदित रहे कि प्रदेशव्यापी हड़ताल के दौरान प्रदेश के अठारह हजार आंगनबाड़ी केंद्र बन्द रहे व लगभग सैंतीस हजार आंगनबाड़ी योजना कर्मी प्रदेशव्यापी हड़ताल पर रहे। ये है मुख्य मांगे : आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन कि मांग है कि प्री प्राइमरी में तीस के बजाए सौ प्रतिशत नियुक्ति दी जाए। नियुक्ति प्रक्रिया में 45 वर्ष की शर्त को खत्म किया जाए। साथ ही प्री प्राइमरी कक्षाओं में छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी कर्मियों को दिया जाए क्योंकि वे पहले से ही काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इसके अलावा मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्यरत कर्मियों को पूर्ण कर्मी का दर्ज़ा दिया जाए व उन्हें आंगनबाड़ी कर्मियों के बराबर वेतन दिया जाए। आंगनबाड़ी कर्मियों को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत वर्ष 2013 की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त किया जाए। सुपरवाइजर नियुक्ति में आंगनबाड़ी कर्मियों की नब्बे प्रतिशत भर्ती सुनिश्चित की जाए व इसकी पात्रता के लिए भारतवर्ष के किसी भी मान्यता प्राप्त विश्विद्यालय की डिग्री को मान्य किया जाए। वरिष्ठता के आधार पर मेट्रिक व ग्रेजुएशन पास तथा दस साल का कार्यकाल पूर्ण करने वाले कर्मियों की सुपरवाइजर श्रेणी में तुरन्त भर्ती की जाए। आंगनबाड़ी कर्मियों को अन्य राज्यों की तर्ज़ पर सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। उन्हें वर्ष 2013 व 2014 में हुए 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मी का दर्ज़ा दिया जाए व श्रम कानूनों के दायरे में लाया जाए। उन्हें हरियाणा की तर्ज़ पर साढ़े ग्यारह हजार रुपये वेतन दिया जाए। उनकी रिटायरमेंट की आयु अन्य राज्यों की तर्ज़ पर 65 वर्ष की जाए। अन्य राज्यों की तर्ज़ पर उन्हें दो लाख रुपये ग्रेच्युटी,तीन हज़ार रुपये पेंशन,मेडिकल व छुट्टियों आदि की सुविधा लागू की जाए। आईसीडीएस का निजीकरण मंजूर नहीं : यूनियन अध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने कहा कि नन्द घर बनाने की आड़ में आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करके निजीकरण की साजिश तथा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, पोषण ट्रैकर ऐप व बजट कटौती आदि मुद्दों पर अगर ज़रूरत हुई तो हरियाणा, दिल्ली, पंजाब,आंध्र प्रदेश आदि की तर्ज़ पर हिमाचल प्रदेश के आंगनबाड़ी कर्मी अनिश्चितकालीन आंदोलन करने से भी गुरेज नहीं करेंगे। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आईसीडीएस का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी वर्कर्स को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो आंदोलन और तेज होगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति को भी वापिस लेने की मांग की है क्योंकि यह आइसीडीएस विरोधी है। इनके अनुसार नई शिक्षा नीति में आईसीडीएस के निजीकरण का एजेंडा छिपा हुआ है। आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करने के लिए नंदघर की आड़ में निजीकरण को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा क्योंकि इस से भविष्य में कर्मियों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ेगा।
डॉक्टरों की पेन डाउन स्ट्राइक रंग लाई है और सरकार ने डॉक्टरों की लंबित मांगें मान ली है। अब हिमाचल प्रदेश में डॉक्टरों की नियमित भर्तियां साल में दो बार कमीशन के तहत होगी और हर वर्ष डॉक्टरों के लिए पर्याप्त भर्तियां निकाली जाएंगी। डॉक्टर एसोसिएशन की विधानसभा में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ दो घंटे तक बैठक हुई, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री राजीव सैजल, मुख्य सचिव, वित्त सचिव, स्वास्थ्य सचिव भी मौजूद रहे। मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों की मांगों को तसाली से सुना भी और अधिकारियों को उनको पूर्ण करने के निर्देश भी दिए। खुद मुख्यमंत्री से सकरात्मक आश्वासन मिला तो डॉक्टरों ने भी पेन डाउन हड़ताल स्थगित कर दी। अब जल्द अनुबंध पर लगे डॉक्टरों के लिए नॉन प्रैक्टिस एलाउंस (एनपीए) की अधिसूचना भी जल्द जारी की जाएगी। वहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टरों की मांगों पर एक कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी स्वास्थ्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई है। इस कमेटी में 12 लोग है, मेडिकल ऑफिसर संघ के पांच प्रतिनिधि भी शामिल है। कमेटी को दो महीने के अंदर रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होगी। इसके बाद सरकार की ओर से अगला कदम उठाया जाएगा। एसोसिएशन अध्यक्ष डॉ. राजेश सूद ने कहा कि दो महीने के भीतर मांगें पूरी नहीं होती हैं तो संघर्ष दोबारा शुरू होगा। एसोसिएशन महासचिव पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि वेतन की सीलिंग को 2.18 लाख से बढ़ाकर 2,24,100 रुपये करने पर सहमति बन गई है। 20 फीसदी नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस भी 1 जनवरी 2022 से लागू होगा और इसे एनपीए को बेसिक का हिस्सा मानने पर सहमति बनी है। 4-9-14 पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इसकी अधिसूचना जल्द जारी होगी। चिकित्सकों का विशेषज्ञ भत्ता बढ़ाने, मेडिकल कॉलेज में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए एकेडमिक भत्ते पर भी सहमति बनी है। कमेटी अपनी सिफारिशें आठ सप्ताह में पेश करेगी।
प्रदेश में 2009 की अधिसूचना को लागू भी किया गया और कर्मचारियों के साथ बैठकर कर वार्ता भी हुई लेकिन फिर भी पुरानी पेंशन बहाली के लिए शुरू हुई पदयात्रा को रोका नहीं जा सका। प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए कई फरमान भी जारी हुए, वेतन काटने और प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के फरमान भी जारी किये गए, मगर पदयात्रा पर निकले कर्मचारियों के इरादे नहीं बदले। जाहिर है कर्मचारी अब रुकने वाले नहीं है और आर पार की लड़ाई के मूड में है। प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के लिए पदयात्रा की जा रही है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों में तैनात सभी वर्ग के कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए राजधानी शिमला तक पैदल यात्रा पर निकल गए हैं। पदयात्रा की शुरुआत मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच से हुई। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले शुरू हुई इस पदयात्रा को कर्मचारियों का पूरा सहयोग मिलता हुआ दिखाई दे रहा है और जहां भी कर्मचारी पहुँच रहे है वहां उनका स्वागत किया जा रहा है। कर्मचारी बिलासपुर जिला मुख्यालय होते हुए 3 मार्च को शिमला पहुचेंगे और वहां पर विधानसभा का घेराव कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए धरना प्रदर्शन किया जाएगा। स्पष्ट है ये मांग अब बड़े आंदोलन का रूप ले चुकी है। उधर मुख्यमंत्री कर्मचारियों की हड़तालों और प्रदर्शनों से नाराज़ है और कई तरह की चेतावनियां भी दी जा रही है। मगर कर्मचारी मानने को तैयार नहीं है। इस पदयात्रा को रोकने के लिए कई प्रयास भी किये गए। पत्र जारी कर कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाया गया, कर्मचारी वार्ता के लिए पहुंचे भी परन्तु कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया। इसके बाद सरकारी कर्मचारियों के धरने प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए सरकार ने फरमान जारी किया की सूबे के कर्मचारी अगर हड़ताल पर गए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने सिविल सर्विस रूल्स 3 और 7 का हवाला देते हुए आदेश जारी किए हैं कि प्रदर्शन, बहिष्कार, पेन डाउन स्ट्राइक और इस तरह की अन्य गतिविधियों में शामिल सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटा जाएगा और साथ ही कर्मचारियों पर अपराधिक मामला भी दर्ज होगा। पर सरकार की इस चेतावनी के बाद भी पदयात्रा जारी रही। हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी सरकार से तुरंत पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे है। विधानसभा के शीत सत्र के दौरान पेंशन बहाली के लिए कमेटी के गठन की घोषणा की गई थी जो की अब तक पूरी नहीं हुई। कमेटी का गठन नहीं किया गया और अब कर्मचारी चाहते है की बिना कमेटी के गठन के सीधे पेंशन बहाली की घोषणा की जाए। इस मुद्दे पर सरकार का पक्ष है की वर्तमान वित्तीय परिस्थितियों के अनुसार फिलवक्त पुरानी पेंशन बहाल नहीं की जा सकती। हालांकि पेंशन बहाली से सरकार पूरी तरह इंकार भी नहीं कर रही। सरकार का कहना है की पहले कर्मचारी अपनी पदयात्रा समाप्त करे और फिर चर्चा के माध्यम से इस मसले का हल निकलने की कोशिश की जाएगी, परन्तु कर्मचारी अब चर्चा नहीं एक्शन चाह रहे है। कर्मचारियों को मिला विपक्ष का साथ : पुरानी पेंशन के मुद्दे को विपक्ष भी खूब भुनाने में लगा है। हर विधायक की जुबान पर पुरानी पेंशन का मुद्दा है। कांग्रेस अब कर्मचारियों को यकीन दिला रही है कि सत्ता वापसी की स्थिति में पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। दरअसल राजस्थान में कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली के बाद हिमाचल कांग्रेस के हौसले भी बुलंद हुए है। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री कह चुके है की कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो पुरानी पेंशन योजना बहाल करेगी। राजस्थान से कांग्रेस सरकार ने इसकी शुरुआत कर दी है। अन्य राज्यों को भी इसे लागू करना पड़ेगा। पदयात्रा के समर्थन में शिमला पहुंचेगे राजन सुशांत : पूर्व सांसद डॉ. राजन सुशांत भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग सरकार से कर रहे है। सुशांत का कहना है कि राजस्थान में 1 जनवरी 2004 से बंद पड़ी कर्मचारियों की ओपीएस को लागू करने की घोषणा की है, इसका वे स्वागत करते हैं और उम्मीद करते है की हिमाचल सरकार भी पेंशन बहाल करेगी। राजन सुशांत पूरी तरह कर्मचारियों के समर्थन है और पदयात्रा के समर्थन में वे शिमला भी पहुंचेंगे। चर्चा का वक्त गया, अब फैसले की घड़ी : प्रदीप नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि अब चर्चा के लिए कुछ शेष नहीं रहा है और फैसला लेने का वक्त है। वे कई बार मुख्यमंत्री, मंत्रियों व विधायकों तक अपनी मांग चर्चा के माध्यम से पहुंचा चुके है। पुरानी पेंशन की बहाली पर प्रदेश सरकार के ढुलमुल रवैये से परेशान सरकारी कर्मचारी भारी रोष के चलते राजधानी शिमला के लिए पैदल मार्च करने को मजबूर हैं। कर्मचारी बिलासपुर जिला मुख्यालय होते हुए 3 मार्च को शिमला पहुंचेंगे और वहां पर विधानसभा का घेराव कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए धरना प्रदर्शन किया जाएगा। कर्मचारियों की पदयात्रा नेशनल हाईवे होकर ही जाएगी। इस दौरान उनके साथ कर्मचारी संगठन व अन्य संगठन भी जुड़ते जाएंगे। यह एक ऐतिहासिक धरना प्रदर्शन रहेगा।
आगामी बजट सत्र से हिमाचल प्रदेश में कार्यरत हजारों आउटसोर्स कर्मचारियों को काफी उम्मीदें है। ये कर्मचारी एक लम्बे समय से स्थाई नीति की मांग कर रहे है, मगर अब तक आश्वासनों के सिवा कुछ खास हाथ नहीं आया। अब बजट सत्र इनके लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आया है। ये बजट इस सरकार के कार्यकाल का अंतिम बजट है और इसीलिए कर्मचारियों को इससे खूब उम्मीदें है। बीते 18 सालों से आउटसोर्स कर्मचारी प्रदेश के विभिन्न विभागों में ड्यूटी दे रहे हैं लेकिन उन्हें सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली कोई भी सुविधाएं नहीं मिलती। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कैबिनेट की सब कमेटी का गठन जरूर किया गया परन्तु इस कमेटी की बैठक के बाद भी कर्मचारियों को बजट तक इंतजार करने का आश्वासन दिया गया। दरससल लम्बे समय से इन कर्मचारियों का ब्यौरा सरकार एकत्र करने का प्रयास कर रही है और इसी को विलम्ब का बड़ा कारण भी बताया जा रहा है। अब उम्मीद तो है परन्तु कर्मचारी पूरी तरह आश्वस्त हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसीलिए सरकार के आश्वासन के बाद भी आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ने राज्य स्तरीय बैठक कर प्रदेश के 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति बनाने की मांग फिर दोहराई है। शिमला में आउटसोर्स कर्मचारियों के प्रतिनिधि जुटे और समस्याओं पर मंथन किया। हिमाचल आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ की मांग है कि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए बजट सत्र में किसी ठोस नीति का प्रावधान किया जाए। इन कर्मचारियों का कहना है कि यदि इस दफे भी इन कर्मचारियों को लटकाया गया तो ये सब मिलकर सरकार के खिलाफ संघर्ष का रास्ता अपनाएंगे। महासंघ का कहना है कि प्रदेश में विभिन्न कंपनियों व ठेकेदारों द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है। सरकार से ठोस नीति बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई फैसला नहीं लिया है । हर बार आश्वासन ही दिए गए। आउटसोर्स कर्मचारी सोसाइटी और कंपनियों के माध्यम से लगे हैं। ये कर्मी पिछले 18 साल से सरकारी विभागों में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन्हें स्थायी करने के बारे में सोचा नहीं जा रहा है। महासंघ का कहना है कि सोसाइटी या कंपनी विभाग की मांग के अनुसार पैनल बनाकर विभाग के पास नाम भेजती है। इसके बाद विभागीय कमेटी इंटरव्यू लेकर आउटसोर्स पर रखती है। पर इसके बाद भी इनको नियमित नहीं किया जा रहा। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है लेकिन सरकार द्वारा इनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और न ही इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। इनका कहना हैं कि कोरोना काल जैसी विकट परिस्थिति में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं। मुश्किल में कोई साथ नहीं देता : शैलेन्द्र हिमाचल आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा के अनुसार कुछ दिन पहले ही एक मामला सामने आया था जिसमें बिजली विभाग में नियुक्त एक आउटसोर्स कर्मचारी की करंट लगने से हालत गंभीर हो गई। उसे आईजीएमसी तक रेफर कर दिया गया मगर न तो ठेकेदार ने उसकी कोई सहायता की और न ही सरकार ने। इसी तरह आउटसोर्स पर तैनात नर्सेज, अध्यापक और जल शक्ति विभाग के कर्मचारियों के शोषण की खबर भी आये दिन सामने आती रहती है। कमीशन काटकर वेतन देते हैं ठेकदार : आउटसोर्स कर्मचारी वे कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में अनुबंध आधार पर रखा जाता है। यानी कि ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद ही इन तक तक पहुंच पाता है। .......................................................................... मांग : वेतनमान में विसंगतियां दूर हो - हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने की सरकार से मांग फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ (एचपीएसएलए) ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि नए वेतनमान में विसंगतियों को दूर किया जाएं। संघ का कहना है कि हिमाचल सरकार का 1972 से कर्मचारियों से करार है कि पंजाब पे कमीशन को हिमाचल के कर्मचारियों पर यथावत रूप में लागू किया जाएगा, उसे सरकार पूरा करे। साथ ही संघ ने चेताया है कि यदि उनकी मांग नहीं मानी जाती तो जल्द ही एसोसिएशन जनरल हाउस बुलाकर सबकी सहमति से अगली रणनीति तैयार करेगी और सरकार को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ का कहना है कि पंजाब में 2016 के बाद जितने भी नियमित कर्मचारी हैं उन सबको नियुक्ति की तिथि से गुणांक 2.59 और 2.25 दिए जा रहे हैं, जिनसे क्रमश: उनकी इनिशियल स्टार्ट 43000 और 47000 रुपए बनती है। इनकी मांग है कि जिस प्रकार पंजाब में बढ़े हुए ग्रेड पे 5400 के साथ 2016 में नियुक्त हुए नए प्रवक्ताओं को 47000 से इनिशियल स्टार्ट दिया है, इसी तरह हिमाचल में भी दिया जाए। संघ के प्रदेश महासचिव संजीव ठाकुर ने कहा कि पंजाब पे कमीशन को हिमाचल के कर्मचारियों पर यथावत रूप में लागू किया जाएं। ........................................................................................ पदोन्नति में समय अवधि कम करने पर जताया आभार फर्स्ट वर्डिक्ट . शिमला हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दुनी चंद ठाकुर एवं प्रदेश महामंत्री नेकराम ठाकुर ने बिजली बोर्ड में कार्यरत जूनियर टी मेट एवं जूनियर हेल्पर की पदोन्नति के लिए समय अवधि 4 वर्ष से 3 वर्ष करने पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का आभार व्यक्त किया है। उन्हें 14 फरवरी 2022 की बिजली बोर्ड की बीओडी की बैठक में स्वीकृति दी गई है जिसकी पुष्टि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी ने अपने प्रेस संबोधन में की है। तकनीकी कर्मचारी संघ ने भारतीय मजदूर संघ का भी धन्यवाद प्रकट किया है क्योंकि 8 फरवरी 2022 को भारतीय मजदूर संघ ने मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में ये मुद्दा उजागर किया था। इस बैठक में तकनीकी कर्मचारी संघ ने भी जूनियर टी मेट और जूनियर हेल्पर के विषय को बड़ी गंभीरता से रखा था जिस पर मुख्यमंत्री ने बिजली बोर्ड को उनकी घोषणा के अनुरूप आदेश करने के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष ने हिमाचल सरकार वह बिजली बोर्ड प्रबंधन से यह भी मांग की है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को भी संशोधित वेतनमान तुरंत प्रभाव से दिए जाएं क्योंकि हिमाचल सरकार ने अन्य विभागों के कर्मचारियों को इस माह के वेतन को संशोधित वेतनमान के अनुसार वेतन देने के आदेश किए हैं जिस पर बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी स्वभाविक तौर पर नए वेतन की आस लगाए हुए हैं। ............................................................................ पुरानी पेंशन : इंतजार की इन्तेहां हो गई, फिर विधानसभा घेराव की तैयारी फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला इंतजार की इन्तेहां हो गई है और अब कर्मचारी बात मानने के मूड में बिलकुल भी नजर नहीं आ रहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए कर्मचारियों की अनगिनत याचनाएं धरी की धरी है पर सुनवाई होती नहीं दिख रही। सुनवाई होती भी है तो कच्चे पक्के आश्वासन कर्मचारियों को थमा दिए जाते है, पर मांग को पूरी तरह मानने से सरकार बचती हुई दिखाई दे रही है। प्रदेश के हर विधायक, हर मंत्री के दर पर दस्तक देने के बावजूद कुछ ठोस होता नहीं दिख रहा। इसी बीच विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने जा रहा हैं और संभवतः एक बार फिर कर्मचारियों का उग्र प्रदर्शन देखने को मिले। बस धर्मशाला के तपोवन की जगह कर्मचारी शिमला के चौड़ा मैदान में डेरा डालेंगे और पुरानी पेंशन के लिए विधानसभा का घेराव होगा। पुरानी पेंशन बहाली के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ अब प्रदेश सरकार से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए महासंघ ने प्रदेश के बजट सत्र के दौरान 3 मार्च को सरकार का घेराव करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय मंडी में आयोजित न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ की राज्य स्तरीय बैठक में लिया गया। बैठक में महासंघ के साथ जुड़े प्रदेश भर के पदाधिकारी व कर्मचारी पहुंचे और तय किया गया कि अब याचना नहीं रण होगा। रणनीति विधानसभा के घेराव की बनाई गई है। प्रदेश के हज़ारों कर्मचारियों से शिमला आने की दरख्वास्त की जा रही और महासंघ की माने तो अधिकतर की सहमति मिलती भी दिखाई देने लगी है। यानि एक बार फिर विधानसभा के शीतसत्र के दौरान दिखा दृश्य शिमला में बजट सत्र के दौरान देखने को मिल सकता हैं। अब तक गठित नहीं हुई कमेटी : 10 दिसंबर को धर्मशाला के दाड़ी मैदान में भी कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया था। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए थे और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया गया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है जिससे कर्मचारियों में नाराज़गी है। महासंघ का कहना है कि सरकार अब कमेटी के गठन को छोड़ पुरानी पेंशन बहाल करें। 2009 की अधिसूचना लागू ,पर कर्मचारी मांगे पुरानी पेंशन : हाल ही में सरकार द्वारा कैबिनेट बैठक के दौरान 2009 की अधिसूचना लागू करने को मंजूरी दी गई है। मगर उससे भी कर्मचारी पिघलते हुए नजर नहीं आ रहे। कैबिनेट के अप्रूवल के बाद एनपीएस के तहत आने वाले सभी कर्मचारियों के लिए मृत्यु व अपंगता पर फैमिली पेंशन का प्रावधान किया गया है, मगर कर्मचारी अपनी एक मात्र मांग पुरानी पेंशन बहाली पर अटके हुए है। सरकार को कोई वित्तीय घाटा नहीं होगा : प्रदीप न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना हैं कि बजट सत्र के दौरान शिमला में प्रदेश भर से एक लाख से अधिक कर्मचारी एकत्रित होंगे। पुरानी पेंशन के लिए मंडी से शिमला तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी और फिर विधानसभा पहुंचकर बजट सत्र के दौरान सरकार का घेराव किया जाएगा। ठाकुर का कहना है कि धर्मशाला में रैली के बाद महासंघ की प्रदेश के सरकार के साथ बैठक भी हुई थी। बैठक में प्रदेश सरकार को सुझाव दिया गया था कि यदि सरकार पुरानी पेंशन बहाल करती है, तो सरकार को 2009 की अधिसूचना लागू की वृद्धि होगी। परन्तु 2 महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने अभी तक कमेटी तक का गठन नहीं किया है नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि कर्मचारियों के वेतन का 10 प्रतिशत पैसा जबरदस्ती कंपनी को दिया जा रहा है और सरकार अपना 14 प्रतिशत पैसा भी कंपनी को दे रही है जिससे सरकार और कर्मचारी दोनों को नुकसान हो रहा है। नई पेंशन स्कीम से सिर्फ और सिर्फ कंपनी को ही फायदा हो रहा है जो सही नहीं है l पुरानी पेंशन पर सियासत भी भरपूर : पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे पर सियासत भी तेज है। विपक्ष कर्मचारियों को आश्वासन देकर सत्ता वापसी की स्थिति में पेंशन बहाल करने के सपने दिखा रहा है और भाजपा कर्मचारियों को याद दिला रही है कि प्रदेश में एनपीएस लाने वाली कांग्रेस ही थी जो आज इसे कर्मचारियों के अधिकारों का हनन बता रही है। पेंशन के मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना है कि इस वक्त कोई भी प्रदेश पुरानी पेंशन देने की स्थिति में नहीं है। जहां कांग्रेस की सरकार है वहां भी पुरानी पेंशन कर्मचारियों को नहीं मिल रही। ऐसे में पहले से वित्तीय घाटे में चल रहे हिमाचल प्रदेश के लिए भी पुरानी पेंशन की वापसी करवाना आसान नहीं होगा।
- पदनाम बदलने की मांग भी कर रहा हिमाचल प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ हिमाचल प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि फार्मासिस्टों का 2 साल का प्रोबेशन समय समाप्त किया जाए। फार्मासिस्ट लगभग साढ़े 9 वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर नियमित हुए हैं। इसके अलावा इन फार्मासिस्टों को सितंबर 2012 से 16290 बेसिक के हिसाब से वेतन दिया जाना चाहिए। वहीं पंजाब की तर्ज पर पे फिक्सेशन के लिए तीनो गुणांक भी दिए जाए ताकि रिकवरी से बचा जा सके। इनकी मांग है कि इनका पदनाम भी फार्मासिस्ट से फार्मेसी अफसर और चीफ फार्मासिस्ट से चीफ फार्मेसी अफसर किया जाए। संघ के अध्यक्ष चमन ठाकुर व महासचिव मनोज शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग में सितंबर 2002 में अनुबंध आधार पर 71 फार्मासिस्टों की भर्ती हुई थी जो कि अब 50 ही रह गए हैं। इनकी भर्ती हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड हमीरपुर से 4550 रुपये प्रतिमाह वेतन पर हुई थी। लगभग साढ़े नौ साल बाद जनवरी 2012 में नियमित हुए। इनको 11470 बेसिक पर नियमित किया गया। सितंबर 2012 में पंजाब की तर्ज पर वेतन आयोग की सिफारिशों का हिमाचल प्रदेश में पुन: निर्धारण किया गया था। इसमें इनिशियल वेतन पंजाब की तर्ज पर 16290 न देकर 14500 रुपये दो साल के राइडर के बाद मिला। अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने जो पंजाब पे कमीशन के हिसाब से अधिसूचना जारी की है, उस तर्ज पर दोनों गुणांकों 2.25 और 2.59 से इन फार्मासिस्टों को लगभग दो लाख की रिकवरी देनी पड़ जाएगी और यदि 15 फीसदी वेतन वृद्धि का विकल्प भी होता है तब भी इस बेसिक के हिसाब से रिकवरी देनी होगी। संघ ने सरकार से मांग की है कि इनकी मांगों का निवारण जल्द से जल्द किया जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता मांग रहे कर्मचारी सरकार के आगे गुहार लगा कर थक चुके है मगर सरकार की तरफ से अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पाया। 27 नवंबर 2021 को हुई जेसीसी की बैठक में इन कर्मचारियों से ये वादा किया गया था कि उनकी मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा और फिर कर्मचारियों की ये मांग पूरी की जाएगी। न अब तक मांग पूरी हुई और न ही कमेटी का गठन। ये वादों का सिलसिला नया नहीं है, काफी पुराना है। ये वो ही कर्मचारी है जिनसे कहा गया था कि जाती हुई सरकार की बात मत सुनो आती हुई सरकार की मानो। ये शब्द पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान कहे थे। इन कर्मचारियों से वादा किया गया था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगा। खैर ये बात काफी पुरानी हो गई है मगर इसके बाद हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा किया गया वादा भी पूरा नहीं हुआ है। जाहिर है ऐसे में कर्मचारियों में रोष है। इनका कहना है कि जहां हर कर्मचारी वर्ग की मांगें पूरी की जा रही तो फिर इन्हें अनदेखा क्यों किया जा रहा है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का एक प्रतिनिधि मंडल संगठन बीते दिनों प्रदेश महामंत्री अनिल सेन की अध्यक्षता और अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेश महामंत्री राजेश शर्मा की अगुवाई में अपनी प्रमुख मांग यानी नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवा काल में जोड़ने के संदर्भ में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला l मुख्यमंत्री से आग्रह किया गया कि कमेटी का गठन करके अतिशीघ्र उनकी मांग को पूरा किया जाए l हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वर्तमान सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को हल्के में ना लें, क्योंकि उनकी संख्या 70 हजार के करीब है और यदि उनके परिवार के सदस्यों की संख्या को भी गिन लिया जाए तो यह 3 लाख के करीब हो जाती है यह संख्या मिशन रिपीट में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है l यदि सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देती है व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ती है तभी मिशन रिपीट होगा l नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नहीं तो मिशन रिपीट भी नहीं । अतः सरकार अति शीघ्र अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने की घोषणा करें । डिमांड चार्टर में नंबर चार पर थी मांग : 27 नवंबर 2021 को शिमला में हुई संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के डिमांड चार्टर में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को नंबर चार पर रखा गया था l बैठक में इस हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने व संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किये जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन ढाई महीने बीत जाने पर भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है l हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि सरकार ने अनुबंध कर्मचारियों का कार्यकाल 3 से 2 वर्ष तो कर दिया परंतु उन कर्मचारियों का क्या कसूर जिन्होंने 8 वर्ष,6 वर्ष,5 वर्ष और 3 वर्ष का लंबा कार्यकाल अनुबंध पर काटा है l कमीशन पास करके क्या कोई गुनाह किया है : सेन हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश महामंत्री अनिल सेन ने कहा कि प्रदेश सरकार प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक स्थाई नीति बनाने जा रही है जो कि एक स्वागत योग्य कदम है, परंतु दूसरी तरफ प्रदेश के विभिन्न विभागों में संवैधानिक तरीके से कमीशन पास करके व बैच वाइज आधार पर भर्ती अनुबंध से नियमित कर्मचारियों की इस जायज मांग को लगातार दरकिनार कर रही है l प्रदेश सरकार यह बताएं कि अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? उन्होंने कमीशन पास करके कोई गुनाह किया है क्या? नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता न मिलने के कारण अनुबंध से नियमित कर्मचारी मानसिक पीड़ा और कुंठा में हैं l एक ही विभाग में एक ही पद पर 5 वर्षों से कार्यरत कर्मचारी जूनियर हो गया है,और सिर्फ 5 महीने तक रहने वाला कर्मचारी सीनियर हो गया है, यह कहां का न्याय है l जूनियर हुए सीनियर : वर्ष 2008 में बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया और हाल ही में ये दो साल हो गया है। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, इसी को लेकर संगठन को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुक्सान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं।
कंप्यूटर प्रोफेशनल एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व तकनीकी शिक्षा मंत्री राम लाल मारकंडा से उनकी मांगें पूरी करने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में वर्ष 2017 से लंबे पीजीटी आईपी के केस को शीघ्र निपटाने तथा पीजीटी आईपी विषय के नियुक्ति एवं पदोन्नति नियमों में से 5 वर्ष के शैक्षणिक अनुभव की शर्त को हटाने की मांग की है। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष पीयूष सेवल ने कहा कि वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में जहां लगभग हर विषय में सरकार द्वारा विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्तियां की जा रही है, वहीं कंप्यूटर अध्यापकों की नियुक्तियों का कहीं जिक्र तक नहीं किया जा रहा है। जबकि वर्तमान समय में कंप्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी की महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में लेक्चर कंप्यूटर साइंस विषय के चल रहे 850 से अधिक रिक्त पदों को भरने, हिमाचल प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर कंप्यूटर एप्लीकेशन के पदों को भरने व हिमाचल प्रदेश के सभी स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा को अनिवार्य रूप से पहली कक्षा से शुरू करने, हिमाचल प्रदेश में टीजीटी कंप्यूटर साइंस के पदों को सृजित करके उनकी नियुक्तियां करने तथा हिमाचल प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के उद्योगों को स्थापित करने की मांग की गई है।
हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने पिछले डेढ़ साल से मुख्य चिकित्सा अधिकारी, चिकित्सा अधीक्षक, उपनिदेशक के पदों के लिए विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक बुलाने में हुई देरी पर कड़ा विरोध जताया है। एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ सुशील शर्मा ने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व इसके समकक्ष पदों के कम से कम 12 से 15 पद खाली हैं और सरकार ने इन पदों पर चिकित्सकों को उनकी नियमित पोस्टिंग से वंचित कर दिया है। उन्होंने कहा कि खंड चिकित्सा अधिकारियों के लिए पिछले तीन वर्षों से कोई डीपीसी नहीं हुई है क्योंकि स्वास्थ्य विभाग में नियमित बीएमओ के लगभग 25-30 पद खाली पड़े हुए हैं। हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने कहा कि सरकार ने चिकित्सकों के नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस को पंजाब की तर्ज पर 25 प्रतिशत से कम कर 20 प्रतिशत कर दिया है जो चिकित्सकों के साथ अन्याय है। एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ सुशील शर्मा ने सरकार से सवाल किया है कि जब नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउंस को पंजाब की तर्ज पर कम किया गया तो बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को पंजाब की तर्ज पर क्यों नहीं रखा गया। सरकार ने एनपीए घटाने के साथ-साथ बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को कम करते हुए 218000 कर दिया जो पंजाब में 237600 है। डॉक्टर शर्मा ने कहा कि यह सरासर और सीधा प्रदेश के चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। संघ के सभी सदस्यों ने एकमत से सरकार से मांग की है कि चिकित्सकों का एनपीए बढ़ाया जाए और बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को भी बढ़ाया जाए।
पीडब्ल्यूडी विभाग में कार्यरत कनिष्ठ अभियंता पदोन्नति न मिलने से परेशान है। इनका कहना है कि करीब बीस सालों से इस विभाग में कनिष्ठ अभियंताओं की पदोन्नति रुकी हुई हैं और कनिष्ठ अभियंता बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं। प्रदेश कनिष्ठ अभियंता संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजीव कुमार शर्मा ने बताया कि आगामी 31 जनवरी को एक कनिष्ठ अभियंता की सेवानिवृति है, जो पदोन्नति रहित है। प्रदेशाध्यक्ष राजीव कुमार शर्मा और प्रदेश महासचिव विजय धीमान ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार पदोन्नति के मामले में कनिष्ठ अभियंताओं से सौतेला व्यवहार कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पीडब्ल्यूडी में करीब दो दशकों से पदोन्नतियां नहीं हो रही है, जिससे यह वर्ग स्वयं को हताश और निराश महसूस कर रहे हैं। इंजीनियर राजीव कुमार ने कहा कि समाज शायद सोचता होगा कि इनके सेवा कार्यकाल में न जाने कौन सा अपराध हुआ है कि यह लोग कभी सहायक अभियंता ही नहीं बन पाए। उन्होंने कहा कि पीडब्ल्यूडी में सहायक अभियंताओं के करीब 30 पद रिक्त चल रहे हैं लेकिन सरकार और विभाग के आलाधिकारी इस पर कोई गौर नहीं कर रहे हैं। बीस सालों से पदोन्नति की राह देख रहे कनिष्ठ अभियंताओं की मानसिक परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है लेकिन कोई उम्मीद की किरण दिख नहीं रही है। राजीव कुमार ने कहा कि यदि सरकार पदोन्नतियों का द्वार खोलती है तो नए युवाओं को नौकरी का अवसर मिलेगा और इन्हें भी पदोन्नति का अवसर मिल पाएगा। प्रदेश कनिष्ठ अभियंता संघ ने सरकार से मांग की वे जल्द इनकी पदोन्नति की मांग पर गौर करें ताकि कनिष्ठ अभियंता बिना पदोन्नति के सेवानिवृत न हो।
रोजगार की आस में दिन रात मेहनत की, खूब पढ़ाई की पेपर भी निकाला मगर अब जीसी दो माह से ज्वाइनिंग नहीं हो पा रही है। ये कहना है जूनियर ऑफिस एसिस्टेंट जेओए अकाउंट पोस्ट कोड 815 के तहत भर्ती का इंतज़ार कर रहे युवाओं का। कुछ समय पहले जूनियर ऑफिस एसिस्टेंट जेओए अकाउंट पोस्ट कोड 815 के तहत 45 पदों में रोजगार को लेकर विज्ञापन आया और उसकी तैयारी में युवा जुट गए। फार्म भरा, परीक्षा दी, परीक्षा पास की जब लंबे अंतराल के बाद परीक्षा परिणाम आया तो अब ज्वाइनिंग लटक गई है। ऐसे में रोजगार की आस लगाए बैठे युवा अभी तक बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, लेकिन उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। आस लिए बैठे युवा भर्ती करने वाले संस्थान से संपर्क कर रहे हैं तो संस्थान भी उन्हें आज कल का बहाना बनाकर लटका रहा है। ऐसे में जेओए अकाउंटस पोस्ट कोड 815 के लिए परीक्षा देकर पास हो चुके अभियार्थी ज्वाइनिंग न होने से परेशान हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं हैं। जेओए जूनियर ऑफिसर एसिस्टेंट पोस्ट कोड 815 के तहत 18 जून 2020 को पोस्ट निकली थी और इसका विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित हुआ। एचपीएसएसबी ने 27 दिसंबर 2020 को प्रदेश के हर एक मुख्यालय में पेपर आयोजित हुआ। 31 मई 2021 को परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया। इसके बाद पांच जुलाई 2021 को डाक्युमेंट जांचे गए। 29 नवंबर को फाइनल रिजल्ट घोषित किया गया लेकिन उसके बाद अभी तक कोई ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है। प्रार्थी अजय कुमार, गुरमीत, अरविंद कुमार, पंकज, विशाल, मनीष ने बताया कि 29 नवंबर को फाइनल परीक्षा परिणाम घोषित हो गया पर अभी तक उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है। ऐसे में उन्हें परेशानी से दो चार होना पड़ रहा है। जब भी हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी चयन आयोग में पता करते हैं तो जवाब यही मिलता है कि 15 दिन में ज्वाइनिंग हो जाएगी पर ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। इस लिए बोर्ड से आग्रह है कि जल्द से जल्द ज्वाइनिंग करवाई जाएं।
राज्य स्वास्थ्य समिति यानि एनएचएम अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ का कहना है कि उन्हें विभिन्न पदों पर सेवाएं देते हुए 23 वर्ष से अधिक समय हो गया है, लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है। महासंघ ने सरकार को स्थाई नीति बनाने का अल्टीमेटम दिया है। राज्य स्वास्थ्य समिति अनुबंध कर्मचारी संघ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर दो फरवरी को सांकेतिक हड़ताल की चेतावनी भी दी है। एनएचएम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन चंद शर्मा ने कहा कि सरकार कर्मचारियों को जब तक नियमित नहीं करती तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तत्त्वावधान में लगभग 1600 कर्मचारी पिछले 23 वर्षों से अपनी सेवाएं राज्य स्वास्थ्य समिति के अंतर्गत देते आ रहे हैं। इनके लिए न तो सरकार ने कोई स्थायी नीति बनाई और न ही स्थाई नीति बनाने की दिशा में कोई कारगर कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि एनएचएम कर्मचारी लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, इनमें से कुछ सेवानिवृत्त भी हो गए हैं, लेकिन आज तक सरकार कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति नहीं बना पाई हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार जल्द इनके लिए स्थाई नीति बनाने की अधिसूचना जारी नहीं करती है तो प्रदेश व्यापी हड़ताल की जाएगी जिसकी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी। इनका कहना है कि न्यूनतम वेतन पर सेवाएं देने पर वर्ष 2016 में तत्त्कालीन सरकार ने मंत्रिमंडल में रेगुलर पे स्केल देने के लिए अधिसूचना जारी थी, लेकिन उसे सरकार ने लागू नहीं किया। वहीं जेसीसी की बैठक हुए डेढ़ माह हो गया है, लेकिन फाइल पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इनका आरोप है कि जब राज्य में कोई एचआर पॉलिसी ही नहीं है तो सेवानिवृत्ति की उम्र 58 की अधिसूचना सरकार कहां से लाई है ? स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग हिमाचल प्रदेश में हजारों पद खाली हैं जिनमें कर्मचारियों को मर्ज कर भरा जा सकता है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि सरकार उनके लिए कोई स्थाई नीति बनाती है तो वे सरकार का धन्यवाद करेंगे अन्यथा मजबूरन हिमाचल प्रदेश के समस्त एनएचएम कर्मचारी एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करेंगे, जिसे लंबे समय तक भी जारी रखा जा सकता है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि अगर, इस हड़ताल के दौरान किसी भी प्रकार की कोई भी जानमाल की हानि होती है तो उसके लिए मात्र हिमाचल प्रदेश सरकार व प्रशासन जिम्मेवार होगा।
हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ ने पंजाब की तर्ज पर 15 फीसदी बढ़ोतरी के साथ वेतनमान को प्रदेश में लागू करने की मांग की है। महासंघ के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को वेतन विसंगतियों को लेकर हिमाचल और पंजाब के वेतनमान की तुलनात्मक रिपोर्ट सौंप कर पूरे मामले से अवगत कराया। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव पवन मिश्रा और शिक्षक महासंघ के प्रांत महामंत्री डॉ. मामराज पुंडीर ने बताया कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी कर्मचारियों की वेतन से संबंधित समस्याओं को दूर करने का आश्वासन दिया है। ये है मुख्य मांगे -पंजाब की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी 2.25, 2.59 और 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ वेतनमान को लागू किया जाए। -कर्मचारियों को आप्शन चुनने की एक महीने की अवधि को बढ़ाया जाए। -पंजाब में लागू वेतनमान को हिमाचल में यथावत लागू किया जाए। -प्रदेश में एक जनवरी 2016 में नियुक्त सभी वर्ग के अध्यापकों को पंजाब की तर्ज पर इनिशियल स्केल दिया जाए। कंप्यूटर और एसएमसी अध्यापकों के मसले भी उठाएं मुख्यमंत्री को अवगत करवाया गया है कि हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भत्ते पंजाब के आधार पर नहीं दिए जाते हैं। इस कारण प्रदेश का कर्मचारी पिछड़ता जा रहा है। प्रदेश में कंप्यूटर और एसएमसी अध्यापकों का वर्ग ऐसा भी है जिनको पिछले 20 वर्ष और 10 वर्ष की सेवा के बाद भी करीब दस हजार वेतन ही दिया जा रहा है। महासंघ ने इन शिक्षकों के लिए नीति बना कर इन्हें नियमित अध्यापक के बराबर वेतन देने का प्रावधान करने की मांग भी रखी। - डॉ मामराज पुंडीर, प्रांत महामंत्री, शिक्षक महासंघ।
जब प्रदेश में कोरोना के मामले बढ़ते है तो जनता को घर में रहने की हिदायत देकर पुलिस जवानों को बाहर तैनात कर दिया जाता है, खतरे की आशंका हो तो इन्हें अलर्ट कर दिया जाता है, और जब सुरक्षा व्यवस्था पर आंच आए तो इन्हें सवालों के कठघरे में भी खड़ा किया जाता है। पुलिस के भरोसे हर आम नागरिक सुरक्षित महसूस करता है, परन्तु इन दिनों हिमाचल के पुलिस जवान स्वयं परेशान है। प्रदेश की सुरक्षा करने वाले पुलिस के जवान लगातार सरकार से अपने हितों की रक्षा की गुहार लगा रहे है। मगर न तो सरकार सुन रही है और न ही उनकी मांगों पर कोई फैसला होता दिखाई दे रहा है। बावजूद इसके आम कर्मचारियों की तरह पुलिस कांस्टेबल अपनी मांगों को लेकर न तो हो हल्ला मचा सकते है, न सड़कों पर निकल कर नारे लगा सकते है और न ही जमघट बना कर हड़ताल कर सकते है। अनुशासन के दायरों में बंधी पुलिस फ़ोर्स के लिए सरकार तक अपनी बात पहुंचा पाना ही एक बड़ी चुनौती है। विभिन्न माध्यमों से सन्देश पहुंचाने की कोशिश की जाती है। कभी बटालियन की मेस में खाना छोड़ दिया जाता है तो कभी सोशल मीडिया पर #justiceforpolice अभियान चलाया जाता है, मगर सवाल ये है कि क्या बिना संख्या बल दिखाए सरकार इनकी बात मानेगी। भाजपा सरकार के कार्यकाल का अंतिम वर्ष है। इस अंतिम वर्ष रिपीट की उम्मीद लिए सरकार हर तबके की समस्याएं हल करने की कोशिश कर रही है। कर्मचारी वर्ग को राहत पहुँचाने का सिलसिला भी जारी है। जेसीसी की बैठक के दौरान कई कर्मचारी वर्गों की मांगे पूरी हुई मगर जो हताश हुए उनमें से एक प्रदेश के पुलिस कांस्टेबल भी है। पुलिस जवानों को उम्मीद थी की बाकि अनुबंध कर्मचारियों की तर्ज पर उनका प्रोबेशन पीरियड भी घटाया जाएगा। 2015 बैच के बाद भर्ती हुए पुलिस कर्मियों का प्रोबेशन पीरियड 8 साल का है यानी उन्हें सेवाएं शुरू करने के 8 साल बाद हायर पे बैंड और ग्रेड पे मिलता है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि 8 साल बहुत लम्बी अवधि है। किसी भी सरकारी कर्मचारी को नियुक्ति के तीन साल बाद ही हायर पे बैंड मिल जाता था परन्तु अब तो इसे भी घटा कर 2 वर्ष कर दिया गया है। परन्तु पुलिस कर्मियों को 8 वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। अब आलम ये है कि पुलिस कांस्टेबल निरंतर सरकार पर अनदेखी का आरोप जड़ रहे है। करीब दो माह पूर्व पुलिस जवानों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से अन्य कर्मियों की तरह दो साल के बाद हायर पे-बैंड और 3200 ग्रेड-पे देने की मांग की थी जो पूरी नहीं हो पाई। इसके बाद सीएम के सरकारी आवास का घेराव कर सैकड़ों कांस्टेबल नाराजगी जताने पहुंचे। फिर इस मांग पर मंथन के लिए सीएम ने अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमंत्री को भेजी परन्तु अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। ऐसे में 2015 बैच के बाद भर्ती हुए पुलिस कर्मियों ने मेस बंद कर दी। बता दें कि प्रदेशभर में 2015 बैच के बाद के करीब 5500 पुलिस कर्मी हैं, जिन्हें हायर-पे बैंड का लाभ नहीं मिल रहा है। जमकर हो रही सियासत पुलिस कांस्टेबल के इस मसले पर सियासत भी खूब हो रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को पुलिस कर्मियों की इस स्थिति का ज़िम्मेदार बता रहे है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भी पुलिस कर्मियों को हायर पे बैंड न मिलने के मसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। हालांकि कांग्रेस ने भी सत्ता रहते इस मसले पर कुछ नहीं किया था। वहीं पुलिस जवानों का कहना है कि हिमाचल पुलिस राष्ट्रपति कलर से सम्मानित पुलिस बल है, ये राष्ट्रपति कलर आसमान से गिर कर नहीं मिलता है। दशकों की मेहनत, ईमानदारी, स्वच्छ छवि से मिला है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि अगर सरकार का सौतेला व्यवहार आगे भी जारी रहा, तो वे अनुशासन का ध्यान नहीं रखेंगे।
" वन विभाग में 35 साल सेवाएं देने के बाद मंडी के अमर सिंह वर्ष 2020 में रिटायर हुए। लगा पेंशन के सहारे बुढ़ापा स्वाभिमान के साथ गुजर जायेगा, पर जब हाथ में 1128 रुपये की पेंशन आई तो मानों पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये ही कारण है कि अमर सिंह जैसे हजारों -लाखों मुलाजिम नई पेंशन योजना का विरोध करते है। वर्ष 1986 में डेली वेज पर भर्ती हुए अमर सिंह 2007 में नियमित हुए थे। नई पेंशन योजना का विरोध अमूमन देश के हर राज्य में हो रहा है और ये एक बड़े आंदोलन में तब्दील होता दिख रहा है। सरकारी मुलाजिमों को शिकवा ये भी है कि उन पर नई पेंशन थोपने वाले नेता खुद पुरानी पेंशन का सुख भोग रहे है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कालजयी पंक्ति है कि 'सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है'...इसी भावना और आशावाद के साथ लाखों मुलाजिम देश के अलग -अलग हिस्सों में पुरानी पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। " बेरोजगारी, महंगाई, बिजली, किसान, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, भ्रष्टाचार और राष्ट्रवाद; ये तमाम वो मुद्दे है जिनकी बिसात पर दशकों से देश में चुनाव लड़े जाते रहे है। पर बीते कुछ वक्त में इस फेहरिस्त में एक नए मुद्दे की एंट्री हुई है। अब पुरानी पेंशन की बहाली भी चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। देश के 5 राज्यों में इस वक्त चुनाव का माहौल है और अन्य मुद्दों के साथ-साथ पुरानी पेंशन का मुद्दा भी खूब गूँज रहा है। कहीं राजनैतिक दल पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा कर रहे है, तो कहीं इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे संगठन मुखर है। पंजाब में तो मुलाजिमों द्वारा बाकायदा घरों के बाहर तख्ती लटकाकर नेताओं को स्पष्ट सन्देश दिया जा रहा है कि 'मेरे घर वही वोट मांगने आएं, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएं।' यूँ तो ये मुद्दा सभी राजनैतिक दलों के गले की फांस बनता दिख रहा है लेकिन यदि ये आंदोलन प्रखर होता है तो मुमकिन है कि सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हो। दरअसल केंद्र में तो भाजपा की सरकार है ही, देश के अधिकांश राज्यों में भी भाजपा ही सत्ता में है। साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव करते हुए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। उन सभी सरकारी मुलाजिमों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। केंद्र की तर्ज पर राज्यों ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही देश में एकमात्र अपवाद है। शुरुआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब नई पेंशन स्कीम के नुकसान समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। धीरे- धीरे सभी राज्यों में कर्मचारी लामबंद होने लगे और संगठन बनाकर नई पेंशन स्कीम का विरोध शुरू हो गया। अब आहिस्ता- आहिस्ता ये विरोध आंदोलन का स्वरूप लेता दिख रहा है। फिलहाल देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली का मसला गूंजता दिख रहा है। कहते है दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, जाहिर है हर राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश में बेहतर करने को प्रयासरत है। यहाँ भी मुलाजिमों का वोट हथियाने के लिए राजनैतिक दल पुरानी पेंशन की बहाली के ख्वाब दिखा रहे है। यूँ तो उत्तर प्रदेश में जाति -धर्म, विकास और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे सरकार बनाते -गिराते रहे है लेकिन अगर कर्मचारी फैक्टर चला तो समीकरण बन-बिगड़ सकते है। यूपी के अलावा पंजाब और उत्तराखंड में पुरानी पेंशन की बहाली एक बड़ा मुद्दा है। लगातार कर्मचारी पुरानी पेंशन की गुहार राजनीतिक दलों से लगा रहे है। यदि यहां भी राजनीतिक दल पेंशन का समर्थन करते है तो सत्ताधारी पार्टी को बैक फुट पर लाने का काम पुरानी पेंशन कर सकती है। हालांकि ये पहली बार नहीं जब राजनीतिक दलों ने अपने मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन बहाली को शामिल किया हो। इससे पहले भी कई बार इसे मुद्दा बनाया गया मगर विडंबना ये है कि अब तक पश्चिम बंगाल के अलावा किसी भी अन्य राज्य में पुरानी पेंशन नहीं दी जाती। कई राज्यों में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद भाजपा पुरानी पेंशन को बहाल नहीं करवा पाई जिसकी टीस कर्मचारियों में है। उधर, पंजाब में कांग्रेस की चन्नी सरकार हर वर्ग के लिए दिल खोलकर घोषणाएं करती दिखी है लेकिन पुरानी पेंशन पर खामोश है। यदि आम आदमी पार्टी या कोई अन्य दल इस मुद्दे पर मुलाजिमों को आश्वस्त करता है तो इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। गोवा और मणिपुर में भले ही पुरानी पेंशन को लेकर आंदोलन संगठित न हो, पर कम ही सही इसका असर जरूर देखने को मिल सकता है। पंजाब : कांग्रेस ने किया था वादा, पर पूरा नहीं किया पिछले कई साल से पंजाब में कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। पेंशन की मांग करने वाले एक संगठन, एनपीएस मुलाजिम पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष कमेटी ने तो एनपीएस वोटर जागरूकता पोस्टर अभियान की शुरुआत कर दी है। पंजाब के कर्मचारियों का कहना है कि अब तक किसी राजनीतिक दल ने चुनाव मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन की मांग को शामिल नहीं किया है और इसलिए यह पोस्टर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। हर पोस्टर में लिखा है कि " मैं साल 2004 के बाद भर्ती नई पेंशन स्कीम से पीड़ित सरकारी मुलाजिम हूँ। मेरे घर वही वोट मांगने आए, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाए।" ये अभियान पंजाब चुनाव पर भी खासा असर डाल सकता है। पंजाब में सिर्फ कर्मचारी ही नहीं आम आदमी पार्टी के नेता भी पुरानी पेंशन को लेकर सरकार पर हमला बोल रहे है। आप का कहना कि पंजाब सरकार पेंशन भोगियों की कमाई पर सांप की तरह बैठी हुई है। आप के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता हरपाल सिंह ने आरोप लगाया कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस ने 2017 में कांग्रेस सरकार बनने पर पंजाब में पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का वादा किया था और राजनीतिक लाभ के लिए कर्मचारियों और पेंशन भोगियों के इस मुद्दे का इस्तेमाल किया। मगर अब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को दी नहीं। स्पष्ट है कि पंजाब चुनाव में भी ओपीएस पर खूब सियासत हो रही है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के पंजाब राज्य के अध्यक्ष सुखजीत सिंह का कहना है कि पंजाब चुनाव में ओपीएस की मांग एक बड़ा मुद्दा साबित होगी। यहां कर्मचारी सिर्फ ये नहीं चाहते कि राजनीतिक दल इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करे बल्कि जो पार्टी इस मांग को 6 महीने में पूरा करने का दम रखेगी ,ताजपोशी उसी की होगी। सुखजीत सिंह ने बताया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी तो पहले ही सत्ता मिलने के बाद पुरानी पेंशन बहाली का वादा कर चुकी थी मगर अब सुखबीर सिंह बादल भी कर्मचारियों को ये आश्वासन दे चुके है। कांग्रेस भी कहीं न कहीं इस मांग से इत्तेफ़ाक़ रखती है पर वे अपने कार्यकाल में इस मांग को पूरा नहीं कर पाए। उत्तराखंड : खोखला आश्वासन नहीं, ठोस वादा चाहिए उत्तराखंड में भी पुरानी पेंशन लागू करने की मांग को लेकर कर्मचारी लंबे समय से संघर्षरत हैं। सड़कों से लेकर सरकार के दर तक कर्मचारी लगातार आंदोलन करते आए हैं। यहां अब आधुनिकता के साथ कर्मचारी आवाज बुलंद कर रहे हैं, इंटरनेट मीडिया को हथियार बनाकर हजारों कर्मचारी आंदोलन को धार दे रहे हैं। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा यहां कर्मचारी की इस मांग को लेकर लामबंद है। हालांकि यहां सरकार के पास मुख्यमंत्री बदलते रहने का एक बहाना मौजूद है। उधर, कांग्रेस कर्मचारियों की नाराज़गी भुनाने को प्रयासरत है, पर कर्मचारियों को खोखला आश्वासन नहीं बल्कि ठोस वादा चाहिए। उत्तर प्रदेश : सपा ने किया वादा, देखना होगा भाजपा का इरादा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलाजिमों से वादा किया है कि सपा सरकार बनने पर कर्मचारी-शिक्षकों की लंबे समय से चल रही मांग पुरानी पेंशन को बहाल किया जाएगा। इसके लिए जरूरत पड़ी तो कार्पस फंड बनाया जाएगा। जाहिर है यूपी में पुरानी पेंशन एक ऐसा मुद्दा है, जिससे प्रदेश के लगभग 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ते हैं। यह ऐसा वर्ग है, जो समाज को दिशा देने का काम करता है, अगर यह वर्ग समाज न सही अपने परिवार की सहमति बना लेता है तो यह संख्या लगभग एक करोड़ की हो जाएगी। निसंदेह ऐसा हुआ तो सपा को फायदा हो सकता है। उधर सत्तारूढ़ भाजपा पर भी अब कर्मचारी वर्ग को साधने का दबाव है। हिमाचल में भी सियासी ताप बढ़ा सकता है ओपीएस का मुद्दा पुरानी पेंशन का मुद्दा हिमाचल की सियासत में भी भरपूर दमखम रखता है। इसका ट्रेलर बीते 10 दिसंबर को दिखा जब धर्मशाला के दाड़ी मैदान में कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है, लेकिन कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद संभावित सियासी नुक्सान को भांपते हुए प्रदेश सरकार उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने है और कर्मचारी पहले ही पुरानी पेंशन की इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुके है। कांग्रेस भी पूरी तरह पेंशन की मांग का समर्थन कर रही है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भी ये मुद्दा सियासी ताप बढ़ा सकता है। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा : बंधू पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में नई पेंशन का दर्द झेल रहे कर्मचारियों का बड़ा असर रहने वाला है। कई राजनीतिक दल हमें हल्के में लेने की गलती कर रहे है, क्यूंकि उन्हें लगता है कि हमारी संख्या कम है। मैं बता दूँ कि ऐसा समझना उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी बेवकूफी साबित होगी। आज पुरानी पेंशन एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी है और इन चुनावों में भी ये मुद्दा टर्निंग पॉइंट साबित होगा। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा। -विजय कुमार बंधू, राष्ट्रीय अध्यक्ष, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम
"जो पेंशन की बात करेगा, वो देश पर राज करेगा", ये नारा है उन लाखों कर्मचारियों का जो अपने हक की पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। पुरानी पेंशन बहाली सिर्फ हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक बड़ा मुद्दा बन गई है। प्रदेश में ये मुद्दा क्या स्तर रखता है इसकी झलक 10 दिसंबर को धर्मशाला के दाड़ी मैदान में देखने को मिली। उस दिन पूरा धर्मशाला पेंशन बहाली के नारों से गूँज उठा था। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा। जो सरकार एक दिन पहले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने से साफ इंकार कर चुकी थी उसी सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। हालांकि वो कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है। पर कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद ये सरकार जाते-जाते उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश का कर्मचारी वर्ग अब इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुका है और सन्देश स्पष्ट है कि चुनावी वर्ष में यदि याचना से काम नहीं चला तो कर्मचारी संगठन रण के लिए तैयार है। पुरानी पेंशन प्रदेश एक ऐसा मुद्दा है जो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। लाखों कर्मचारियों का ये मुद्दा अक्सर चर्चा में बना रहता है। इस मुद्दे पर सियासत भी खूब होती है, आए दिन ओपीएस को लेकर किसी न किसी नेता का ब्यान सामने आता है। जाहिर है इनमें विपक्ष के नेता अधिक होते है, वो ही नेता जो सत्ता में रहते हुए चुप्पी साधे हुए थे और अब सरकार को घेरने में आगे रहते है। बहरहाल, यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ये मुद्दा फिलवक्त प्रदेश का एक ऐसा सियासी मुद्दा बन चुका है जो 2022 में 'मिशन रिपीट' या 'मिशन डिलीट' में बड़ी भूमिका निभाएगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ये किसी एक कर्मचारी संगठन का मुद्दा नहीं है, अपितु हर कर्मचारी संगठन की मांग में यह शामिल है। हिमाचल प्रदेश एक कर्मचारी बाहुल्य प्रदेश है और ऐसे में यह तय है कि चुनावी फिज़ा में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा जमकर गूंजने वाला है। पुरानी पेंशन के न होने से प्रदेश के कर्मचारी अपने रिटायरमेंट के बाद के भविष्य की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होती है और जब कर्मचारी ही अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे है तो ऐसे में सरकार के भविष्य पर सवाल खड़े होते हैं। इस वक्त प्रदेश में करीब पौने तीन लाख कर्मचारी है जिनमें करीब एक लाख बीस हजार वो कर्मचारी है जिन्हें नए पेंशन सिस्टम के तहत पेंशन प्राप्त होती है या होगी। पुरानी पेंशन बहाली की मांग को प्रमुखता से उठाने वाला प्रदेश का सबसे बड़ा संगठन नई पेंशन स्कीम कर्मचारी संघ है जिसमें ये अधिकतर कर्मचारी जुड़े हुए है। सिर्फ यही नहीं बल्कि प्रदेश में कई अन्य संगठन भी है जो पेंशन बहाली की इस मांग को मुनासिब मानते है और इसके लिए संघर्षरत है। हिमाचल के राजनैतिक इतिहास की बात करें तो वर्ष 1993 में कर्मचारियों ने अपनी असल ताकत दिखाई थी और विरोध के चलते भाजपा दहाई का अंक भी पार नहीं कर पाई थी। जाहिर है वर्तमान सरकार भी कर्मचारियों की नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मुद्दे पर एनपीएस कर्मचारियों को ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) कर्मचारियों का भी समर्थन मिल रहा है। यह आंदोलन धीरे- धीरे और अधिक उग्र होता जा रहा है और निसंदेह अगले विस चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा हो सकता है। मिशन रिपीट के लिए प्रदेश की जयराम सरकार को इस दिशा में कुछ कारगर कदम उठाने होंगे। यदि सरकार ऐसा करने में कामयाब रही तो लाभ तय है और अगर कदम नहीं उठाए तो नुकसान होना भी तय है। 2004 में केंद्र ने लागू की नई पेंशन योजना साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ कर देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया है। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशी अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिटी कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशी इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल की गई है और एन्युटी राशी कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। इसलिए कर्मचारी नहीं चाहते नई पेंशन स्कीम शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इकट्ठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशी को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानी कि पेंशन की कोई तय राशी नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। विरोध कर रहे कर्मचारियों का मानना है कि उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जो मृत्यु के बाद कर्मचारी के सर्विस बुक में दर्ज नॉमिनी को भी मिला करती थी। अब आश्वासन से काम नहीं चलेगा हिमाचल प्रदेश के दोनों मुख्य राजनैतिक दल यानी कि कांग्रेस और भाजपा पुरानी पेंशन की मांग को जायज भी ठहराते रहे है और इसे पूरा करने का आश्वासन भी देते रहे है। मसला ये है कि विपक्ष में रहते हुए तो दोनों ही इसे कर्मचारियों का अधिकार और हक़ बताते है लेकिन सत्ता में आकर इस मांग को पूरा नहीं करते। पर बीते कुछ समय में यह मुद्दा एक आंदोलन का रूप ले चुका है और ऐसे में दोनों ही दलों के लिए अब इसे ज्यादा लटकाकर रखना संभव नहीं होगा। 2022 चुनाव से पहले जहां सत्तारूढ़ भाजपा पर इस मांग को पूरा करने का दबाव है तो वहीं कांग्रेस को भी इस विषय पर स्पष्ट राय रखनी होगी। नई पेंशन स्कीम लागू होने के बाद केन्द्र में 10 वर्ष कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने शासन किया। जबकि 2014 से भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार का एकछत्र राज है। इसी तरह प्रदेश में दो मर्तबा वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस काबिज रही है और भाजपा का भी दूसरा टर्म है लेकिन किसी भी सरकार ने पुरानी पेंशन की बहाली के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के हर कर्मचारी को पुरानी पेंशन देने के लिए सरकार एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए जो फिलवक्त प्रदेश सरकार की आर्थिक हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता। पेंशन पर कितना खर्च मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के हर कर्मचारी को पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर एकमुश्त अनुमानित व्यय लगभग 2000 करोड़ रुपये होगा। प्रति वर्ष आवर्ती व्यय लगभग पांच सौ करोड़ होने का अनुमान है, जो फिलवक्त प्रदेश सरकार की आर्थिक हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता। इस पर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का तर्क है कि सरकार हर साल अपना और कर्मचारियों का लगभग 1200 करोड़ रुपये की राशी एसबीआई फंड्स प्राइवेट लिमिटेड, एलआईसी पेंशन फंड्स प्राइवेट लिमिटेड और यूटीआई रिटायरमेंट सोल्यूशंस में जमा करती है। ये राशी पीएफआरडीए द्वारा एप्रूव्ड 31 : 35 : 34 के अनुपात में इन तीनों फंड्स में जमा की जाती है। प्रदीप का कहना है कि यदि सरकार डायरेक्ट इन कर्मचारियों को पेंशन देती है तो सरकार के 700 करोड़ रुपये बचेंगे, जो फायदे का सौदा है। नेताओं के लिए क्यों नहीं नई पेंशन स्कीम ? मई 2003 के बाद से माननीयों (सांसद व विधायकों ) को तो पेंशन का लाभ मिल रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी को एनपीएस का झुनझुना थमा दिया गया है। यदि यह योजना इतनी बढ़िया है तो सांसद व विधायकों को भी पेंशन के स्थान पर एनपीएस का ही लाभ देना चाहिए। यदि एक नेता पहले विधायक हो और फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन जाए तो उसे दोनों तरफ से पेंशन मिलती है। इस देश में ये सुविधा सिर्फ और सिर्फ नेताओं को ही उपलब्ध है।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का तकनीकी कर्मचारी संघ की मुख्य मांग जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर के पदोन्नति समय अवधि को 5 वर्ष से 3 वर्ष करने के लिये आभार व्यक्त किया है। साथ ही विद्युत बोर्ड के चेयरमैन आर डी धीमान का भी धन्यवाद किया है जिन्होंने तकनीकी कर्मचारी संघ की इस मांग के बारे में विद्युत बोर्ड की ओर से सही पक्ष रखा। संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने दोनों का आभार व्यक्त किया है। इस बीच हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने विद्युत बोर्ड प्रबंधक को यह पुनः स्मरण करवाया है कि वह तकनीकी कर्मचारी संघ के अन्य ज्वलंत मुद्दों का भी निराकरण करें अन्यथा तकनीकी कर्मचारी संघ विद्युत भवन के प्रांगण में विशाल धरना करेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी विद्युत बोर्ड प्रबंधक वर्ग की होगी। संघ ने विद्युत बोर्ड प्रबंधक वर्ग से यह भी मांग की है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को भी जल्द से जल्द पंजाब बिजली विभाग के अनुरूप नए वेतनमान और भत्ते दिए जाएं।
हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम दिया गया है, लेकिन हिमाचल में अभी तक यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है। ऐसे में अध्यापक जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। उन्हें पूरे सेवाकाल में पदोन्नति का अवसर प्राप्त नहीं होता। ऐसे में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पदनाम दिलवाने के लिए लड़ाई अब तेज हो गई है। इस मांग के चलते हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल फिर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर और प्रधान शिक्षा सचिव रजनीश से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने फिर मांग उठाई है कि शास्त्री व भाषा अध्यापकों को जल्द से जल्द टीजीटी का पदनाम दिया जाए। साथ ही चेताया है कि अगर एक महीने के अंदर उनकी मांग पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता हैं, तो फिर उन्हें सख्त कदम उठाना पड़ेगा। परिषद के प्रदेशाध्यक्ष मनोज शैल का कहना है कि शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की यह मांग दशकों से चली आ रही हैं, लेकिन अब तक किसी भी सरकार की ओर से उनको पूरा नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री को इस बात से भी अवगत करवाया गया कि कई अवसरों पर परिषद ने उनसे इस मांग के बारे में अवगत कराया हैं, लेकिन इसके बावजूद यह मांग पूरी नहीं हो पाई है। सरकार से आश्वासन मिला था कि वित्तीय-वर्ष 2021-22 के बजट सत्र में शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की चिरलंबित मांग पूरी करके उन्हें टीजीटी पदनाम दिला दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं भविष्य में जो भी भर्ती की जाए, उन्हें नियमों के आधार पर किया जाए। जैसा सम्मान अंग्रेजी पढ़ाने वालों को मिल रहा है, वैसा ही भाषा अध्यापक और संस्कृति पढ़ाने वालों को भी दिया जाए। भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद नाम दिए जाने की मांग 1985 से चली आ रही है। सरकार को इस पर जल्द से जल्द उचित निर्णय लेना चाहिए।
हिमाचल पेंशनर्स संघ ने जेसीसी की बैठक न करवाने और पेंशनरों की पेंशन में संशोधन न किए जाने पर रोष व्यक्त किया है। संघ ने कहा कि मांगें पूरी न होने के चलते पेंशनरों में रोष है। इन मांगो को लेकर हाल ही में संघ ने एक ज्ञापन उपायुक्त हमीरपुर देवश्वेता बनिक के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को सौंपा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष योगराज शर्मा ने बताया कि प्रदेश सरकार ने अपने पूर्व वक्तव्य में कहा था कि प्रदेश के कर्मचारियों एवं पेंशनरों को जनवरी 2022 से नए वेतनमान, पेंशन प्रदान कर दिए जाएंगे, लेकिन पांच जनवरी को मंत्रिमंडल की बैठक में पेंशनरों की पहली जनवरी 2016 से पेंशन संशोधन के मामले पर विचार न करने पर प्रदेश के पेंशनर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। इसी उपेक्षा का हिम आंचल पेंशनर्ज संघ ने कड़ा संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रदेश के लाखों पेंशनरों के आशीर्वाद की सरकार को आवश्यकता नहीं है। संघ ने मांग की है कि पेंशनरों को पहली जनवरी 2016 से यथाशीघ्र पुनरावृत्ति पेंशन प्रदान की जाए, पेंशनरों के पांच, दस व 15 प्रतिशत पेंशन भत्ता को मूल पेंशन में बदला जाए, पेंशनरों का चिकित्सा भत्ता 1500 रुपए मासिक किया जाए, दो वर्ष के अंतराल में एक मूल पेंशन के बराबर तीर्थ यात्रा सुविधा प्रदान की जाए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने पेंशनरों की समस्याओं एवं मांगों के निदान हेतु यथाशीघ्र कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया, तो पेंशनर्ज अपनी मांगों के समर्थन में सड़कों पर निकलने के लिए बाध्य होंगें, जिसकी जिम्मेदारी सरकारी की होगी।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में छठे वेतनमान की अधिसूचना जारी की गई है। अधिसूचना जारी होने के बाद प्रदेश के कर्मचारियों के बीच इसे लेकर दो धारणाएं बन चुकी है। कुछ कर्मचारी संगठन नए वेतनमान का खुले दिल से स्वागत कर रहे है, तो वहीं कुछ कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष से देय वेतनमान की रिपोर्ट के सरकार द्वारा जारी पे रूल्स और पे मैट्रिक्स उनके लिए राहत नहीं बल्कि परेशानियां लेकर आए है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने करीब दो लाख नियमित कर्मचारियों के लिए नए संशोधित वेतनमान की अधिसूचना जारी की है। इसमें कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए दो विकल्प दिए गए हैं। अधिसूचना के साथ ही कर्मचारियों की अलग-अलग बेसिक पे के हिसाब से पे मैट्रिक्स भी जारी किए गए हैं। कर्मचारियों को नए वेतन आयोग के लिए एक माह में दो में से एक विकल्प चुनना होगा। यदि किसी कर्मचारी ने दो में से एक विकल्प एक माह के अंदर नहीं दिया, तो स्वतः माना जाएगा कि उसने विकल्प चुन लिया है। 6 सालों के इंतज़ार के बाद मिले इस नए वेतनमान में कर्मचारियों को कई विसंगतियां नज़र आ रही है। सरकारी कर्मचारी जिस तरह से छठे वेतनमान से वित्तीय लाभ प्राप्त होने की गणना कर रहे थे, शायद उस तरह के वित्तीय लाभ उन्हें मिलते नहीं दिख रहे। ये ही कारण है कि हिमाचल का कर्मचारी इस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से पूर्ण संतुष्ट नज़र नहीं आ रहा। कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष तक कर्मचारियों की बकाया राशी का जो ब्याज सरकार ने कमाया, ये लाभ उसके भी बराबर नही लग रहा। नए पे स्केल पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने कर्मचारियों की प्रतिक्रिया जानी और पाया कि एक बड़ा कर्मचारी वर्ग नए पे स्केल से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। यानी कर्मचारियों को उम्मीद से कम मिला है।कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए केवल दो ही विकल्प दिए गए हैं। अगर वे वर्ष 2009 के नियमों को चुनते हैं तो उन्हें 31 दिसंबर, 2015 की बेसिक पे को 2.59 के फैक्टर से गुणा करना होगा। अगर वर्ष 2012 को चुनते हैं तो 2.25 फैक्टर को अपनाना होगा। अगर कोई अधिकारी/कर्मचारी 2009 के नियमों को आधार बनाकर लाभ लेना चाहता है और उसने 2012 के वेतन संशोधन का लाभ नहीं लिया है तो 31 दिसंबर 2015 को उसकी बेसिक पे पर फैक्टर 2.59 लगेगा। इसमें भत्ते और अन्य लाभ अलग से शामिल होंगे। वहीं अगर कोई कर्मचारी वर्ष 2012 के पुनर्संशोधन को आधार बनाकर नए वेतनमान का लाभ लेना चाह रहा है तो उसके लिए दो विधियां लगाई जाएंगी। पहली विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 को लिए वेतन को आधार बनाएंगे तो बेसिक वेतन में फैक्टर 2.25 लगाया जाएगा। या फिर दूसरी विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 की नोशनल पे को आधार बनाया जाएगा। ये विकल्प कर्मचारियों को दिए ज़रूर गए है लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया गया है। प्रदेश के कर्मचारी लगातार ये मांग कर रहे थे की उन्हें वेतन वृद्धि का ये तीसरा विकल्प भी दिया जाए परन्तु ऐसा नहीं हुआ। राज्य के सरकारी कर्मचारियों की नाराज़गी का एक बड़ा कारण 4-9-14 जैसी एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन स्कीम का लाभ खत्म होना भी है। तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद हो गए है। इसे बंद करने को लेकर राज्य सरकार का तर्क है कि पंजाब में भी एक कमेटी बनाकर टाइम स्केल को सस्पेंड कर दिया है। जब यह कमेटी पंजाब में रिपोर्ट देगी और उसके बाद यदि पंजाब सरकार टाइम स्केल को बहाल करेगी, तो हिमाचल सरकार भी इस बारे में विचार कर सकती है। इससे पहले भी यही प्रक्रिया रखी गई थी। बता दें कि एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन स्कीम पे-कमीशन का पार्ट नहीं होती। इसके बावजूद इस बार एक अलग नोटिफिकेशन के जरिए इसे पे कमीशन से जोड़ दिया गया है। इसके बंद होने से सर्विस के चार, नौ और चौदह साल पूरे करने पर कर्मचारियों को मिलने वाला इन्क्रीमेंट अब नहीं मिल पाएगा। नाराज़गी का एक और कारण डीए कम मिलना भी है। प्रदेश में अधिकारीयों को डीए 31 प्रतिशत और कर्मचारियों को 28 प्रतिशत ही मिल पाया है। कुछ कर्मचारियों का ये भी मानना है की इस पे स्केल से सिर्फ उन कर्मचारियों को फ़ायद होगा जिनका वेतन पहले से ज्यादा है। कम वेतन वाले कर्मचारियों को इसमें कोई लाभ नहीं होने वाला। एनपीए घटने से नाखुश है प्रदेश के चिकित्सक नए वेतनमान में प्रदेश के चिकित्सकों को मिलने वाला एनपीए घटा दिया गया है। नॉन प्रैक्टिस अलाउंस हिमाचल में स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य शिक्षा विभाग, आयुर्वेद विभाग और पशुपालन विभाग के डॉक्टरों को मिलता है। एनपीए को 25 प्रतिशत से घटा कर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया है। इस पर भी शर्त लगाई गई है की यह बेसिक प्लस एनपीए मिलकर 218600 रुपए प्रति माह से ऊपर नहीं जाना चाहिए। नए वेतनमान में जारी इस बदलाव को लेकर प्रदेश के चिकित्सक खासे नाराज़ है। हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ के प्रदेश प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ राजेश राणा व प्रदेश महासचिव डॉ पुष्पेंद्र वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ वेतन आयोग की सिफारिशों से खासा नाखुश है। उन्होंने कहा की प्रदेश सरकार ने वादा किया था की वे डॉक्टरों के नॉन प्रैक्टिस अलाउंस को पंजाब की तर्ज पर कम नहीं करेंगे पर अब इसे कम कर दिया गया है। लेकिन आगे नॉन प्रैक्टिस अलाउंस के बारे में अधिसूचना जारी करते हुए बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को पंजाब से भी कम करते हुए 218000 कर दिया जो कि पंजाब में 237600 है। संघ ने सरकार से पूछा है की यहां क्यों पंजाब की सिफारिश को दरकिनार किया गया। संघ का आरोप है की यह प्रदेश के चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। डॉ पुष्पेंद्र वर्मा का कहना है की प्रदेश के चिकत्सक सरकार के इस दोगले रवैय से खासे नाराज़ है और इसे अपने प्रति एक अन्याय पूर्ण फैसला मान रहे है। चिकित्सक संघ 4-9-14 के टाइम स्केल पर कैंची चलने से भी नाराज़ है। संघ ने कहा कि बरसों बरसों तक चिकित्सकों की तरक्की का एकमात्र विकल्प 4-9-14 टाइमस्केल ही था जो चिकित्सकों को इस सरकारी नौकरी की तरफ आकर्षित कर रहा था और उनके प्रमोशन ना होने पर उनको दिलासा भी दे रहा था लेकिन इस पर कैंची चलाना चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। छोटे कर्मचारियों की उम्मीदों पर फेरा पानी नई पेंशन स्कीम कर्मचारै महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि नए वेतनमान में बहुत सारी विसंगतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना बहुत आवश्यक है l जहां एक ओर अधिकारी वर्ग को वेतनमान से 20 हजार या इससे अधिक वेतन वृद्धि हो रही है l वही छोटे कर्मचारियों की उम्मीदों पर नए वेतनमान ने पानी फेरा है l सरकार को जल्द से जल्द सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए त्रुटियों को दूर करना चाहिए l नियमितीकरण तिथि से मिले संशोधित वेतनमान प्रदेश स्कूल लेक्चरर संघ के प्रदेश प्रधान केसर सिंह ठाकुर का कहना है कि सरकार ने कर्मचारी हित में दो विकल्प जारी कर उनको अपनाने की स्वतंत्रता दी है। ये कर्मचारी हित का सराहनीय फैसला है। हिमाचल स्कूल लेक्चरर संघ ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। साथ ही हम मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि नए वेतनमान के निर्धारण में 2016 व उसके बाद अनुबंध से नियमित हुए प्रवक्ताओं को संशोधित वेतनमान नियमितीकरण की तिथि से दिया जाए। इन प्रवक्ताओं को दो साल का नियमित सेवाकाल पूरा करने पर 5400 रुपये ग्रेड पे प्रदान किया गया है जिससे नए वेतन निर्धारण में भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। 15 प्रतिशत वेतन वृद्धि का विकल्प भी लागू हो गैर शिक्षक कर्मचारी महासंघ का कहना है कि वे प्रदेश सरकार के छठे वेतनमान से नाराज़ है और चाहते है कि सरकार इसमें मौजूद विसंगतियां दूर करे। संघ के प्रधान कुलदीप चंद्र ने कहा कि वेतन आयोग की सिफारिशों में बहुत विसंगतियां हैं, इस कारण गैर शिक्षक को इसका कोई लाभ नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने सार्थक पहल नहीं की तो संघ आंदोलन से गुरेज नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि हमारी मांगों में 2.25 का फैक्टर देना है तो 10300-3200 का स्केल पार कर गए कर्मचारियों की फिटमेंट टेबल के अनुसार हो तथा जो कर्मचारी 10300 -3200 में नहीं आए उनके लिए भी व्यवस्था सरकार की ओर से की जाए, साथ ही 15 प्रतिशत वेतन वृद्धि के विकल्प को भी लागू किया जाए। लिपिकों को किया जा रहा शोषित लिपिक महासंघ का कहना है कि नए वेतनमान में लिपिक वर्ग से भेदभाव किया गया है। द्रंग प्रथम के अध्यक्ष विनोद जसवाल व जोगिन्द्र नगर के अध्यक्ष रवि बरवाल ने कहा कि 2006 से 2011 तक लिपिकों को कम ग्रेड पे से शोषित किया जा रहा था। उन्होंने प्रदेश सरकार से पंजाब की तर्ज पर 15 प्रतिशत वेतन के विकल्प पर विचार करने की मांग की। जेबीटी शिक्षकों को मिले पंजाब की तर्ज पर स्केल जेबीटी शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष हेमराज ठाकुर का कहना है कि पूर्व में 2012 के स्केल में भी प्राथमिक शिक्षकों के साथ भेदभाव किया गया था तथा अभी तक प्रदेश में जेबीटी वर्ग के अलग-अलग दो स्केल प्रदान किए जा रहे हैं। प्रदेश के जेबीटी शिक्षकों को पंजाब की तर्ज पर स्केल नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश सरकार और वित्त विभाग को पंजाब वेतन आयोग या पंजाब सरकार के वेतन के आधार पर ही जेबीटी शिक्षकों के स्केल हिमाचल में जल्द निर्धारित करें। वेतन विसंगतियां दूर न हुई तो आंदोलन करेंगे। पशु चिकित्सकों के आर्थिक हितों का हुआ नुकसान प्रदेश वेटरनरी आफिसर्ज एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश सरकार को पशु चिकित्सकों के लिए अधिकतम मूल वेतन में वृद्धि, एनपीए को 25 प्रतिशत करने और एसीपीएस को बहाल करने पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। प्रदेश वैटरिनरी ऑफिसर्ज एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष डा. नीरज मोहन और महासचिव डा. मधुर गुप्ता ने हिमाचल सरकार से नए वेतनमान में मूल वेतन जमा एनपीए तय सीमा जो कि दो लाख 18 हजार को पंजाब में दिए गए वेतनमान के बराबर करने की मांग की है। उन्होंने कहा की नए वेतनमान में तय की गई सीमा से हिमाचल के पशु चिकित्सकों के आर्थिक हितों का नुकसान हुआ है। लाखों कर्मचारियों में निराशा : नरेंद्र प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है की प्रदेश सरकार को पंजाब-पे कमीशन को पूर्णतय: लागू करना चाहिए ताकि कर्मचारियों को पे कमीशन का पूरा लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों से पंजाब के छठे वेतन आयोग के लागू होने का हिमाचल प्रदेश के लाखों कर्मचारी इंतजार कर रहे थे और उम्मीद थी कि उनके वेतनमान को पंजाब पे कमीशन की रिपोर्ट अनुसार लागू किया जाएगा। पांच जुलाई, 2021 को छठे पंजाब पे कमीशन की अधिसूचना जारी होने के साथ ही हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भी इसी वेतन आयोग के अनुसार अपने वेतनमान में वृद्धि होने की आस थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने पंजाब पे कमीशन को अपने हिसाब से तोड़ कर लागू किया है। इसके कारण लाखों कर्मचारियों में निराशा है। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीश गर्ग का कहना है की इस नए पे स्केल से सबसे अधिक नुकसान अनुबंध से नियमित हुए कर्मचारियों का ही हुआ है। 2012 में पंजाब में जो पे कमिशन की सिफारिशें कर्मचारियों के लिए तत्काल प्रभाव से लागू की गई उनको हिमाचल में अनुबंध से नियमित होने के 2 सालों के बाद से दिया गया। जो कर्मचारी 2016 या उसके बाद नियमित हुए हैं उनकी माँग है कि उनकी पे फिक्सेशन मे 2.59 फैक्टर के साथ एनहांस्ड ग्रेड पे मे भी 2.25 का विकल्प 2016 से दिया जाए जैसा की बाकी सभी नियमित कर्मचारियों को दिया जा रहा है। नाराज़गी के तीन बड़े कारण -पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया - तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद - कम डीए मिलना भी नाराजगी का कारण
प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने एक स्वर में उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग की है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ ने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से काम तो सभी विभाग लेते हैं, पर उन्हें कभी भी वक्त पर उसका मानदेय नहीं मिलता। उन्हें मात्र 7500 और सहायकों को 4500 रुपए पर जीवन गुजर-बसर करना पड़ता है, जो कि इस महंगाई के दौर में बहुत कम है। इस वेतन में गुज़ारा करना इन कर्मचारियों के लिए संभव नहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से भी ये मांग की है की उनके मानदेय में शीघ्र बढ़ोतरी की मांग को सरकार के समक्ष उठाया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ का कहना है कि आंगनबाड़ी केंद्र के लिए ग्रामीण हल्के में मात्र 750 रुपए किराया निर्धारित किया गया है, जो कि बहुत ही कम है ,इसे बढ़ाया जाना चाहिए। इसके साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने बहुत मेहनत करके प्री प्राइमरी कक्षाओं का संचालन शुरू किया था, परंतु अब सरकार एनटीटी अध्यापकों की भर्ती करके उनके साथ अन्याय करने जा रही है। संघ ने शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से इस विषय में उचित कदम उठाने का आग्रह किया है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ का कहना है कि कोरोना काल में सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा कोविड योद्धा के रूप में फ्रंटलाइन पर कार्य किया गया, परंतु न तो उन्हें इसके लिए कोई प्रोत्साहन राशि दी गई और न ही फ्रंट लाइन कोविड कार्यकर्ताओं का दर्जा दिया गया। इससे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हताश हैं। संघ की अध्यक्ष ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरकार की विभिन्न योजनाएं टीकाकरण, पल्स पोलियो, वोटर लिस्ट सर्वे, जन्म-मृत्यु पंजीकरण सहित जनगणना के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं लेकिन आंगनबाड़ी में सेवाएं दे रहीं कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग वे कई बार कर चुके हैं लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई पहल नहीं की गई है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि आंगनबाड़ी के स्टाफ को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन 18,000 और सहायिकाओं को नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता संघ की वरिष्ठ उपप्रधान योग रानी का कहना है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी स्कूलों में तैनाती के साथ पदनाम भी दिया जाए। ये है तीन मुख्य मांगे - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन 18,000 और सहायिकाओं को नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाए - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी स्कूलों में तैनाती के साथ पदनाम भी दिया जाए
हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच ने प्रदेश सरकार से उनकी मांगों को जल्द पूरा करने की गुहार लगाई है। सेवानिवृत कर्मचारियों का कहना है की इस उम्र में सरकार उनका हक़ उनकी पेंशन उन्हें समय पर न देकर उनके साथ बड़ा अन्याय कर रही है। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेश महामंत्री रूप चंद शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द मंच की लंबित मांगों को पूरा करें अन्यथा आगामी विधानसभा चुनाव में इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए सरकार तैयार रहे। उन्होंने दो टूक कहा कि अभी तक मंच की मांगों को सरकार और निगम प्रबंधन अनसुना करता आया है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी वहां पर परिवहन के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को तमाम तरह की सुविधाएं मिल रही है लेकिन प्रदेश सरकार यह सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए कुछ नहीं कर रही। प्रदेश महामंत्री ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार वहां पर राजस्थान परिवहन निगम को रोडवेज का दर्जा दिया गया है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के सभी देय भत्ते ट्रेजरी के माध्यम से ही मिलते हैं, लेकिन केंद्र और प्रदेश में डबल इंजन की कहलाने वाली भाजपा सरकार परिवहन निगम से सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सुध तक नहीं ले रही है। उन्होंने कहा की ये सब ज़्यादा समय तक नहीं चलेगा यदि सरकार उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं करती तो वे उसे चुनाव के समय जवाब देंगे।
27 नवंबर 2021 को हुई जेसीसी की बैठक में कई घोषणाएं हुई। कर्मचारियों के खिले हुए चेहरे ये स्पष्ट दर्शा रहे थे कि अर्से बाद एक बड़ी राहत उन्हें मिली है। मगर कुछ चेहरे तब भी मायूस थे क्यूंकि उनकी मांगें अब भी अधूरी थी। इन कई अधूरी मांगों में से एक मांग है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग। ये मांग तो जेसीसी की बैठक में पूरी नहीं हो पाई थी मगर इसे पूरा करने के लिए कमेटी के गठन का आश्वासन ज़रूर कर्मचारियों को दिया गया था। ये आश्वासन अब तक आश्वासन ही है, हकीकत नहीं बन पाया। इस बेरुखी से कर्मचारी वर्ग में खासी नाराज़गी है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सेनिओरिटी के विषय में कमेटी का शीघ्र गठन करने और उसमें हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के सदस्यों को शामिल करने का आग्रह किया। संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग,का कहना है कि जेसीसी की बैठक में सेनिओरिटी के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी के गठन की घोषणा हुई थी, लेकिन जेसीसी की मीटिंग के एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी कमेटी का गठन नहीं हुआ है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सरकार से सवाल किया है कि कमेटी गठन में एक महीने से अधिक समय लगने का क्या कारण है। कब इसकी बैठक होगी और कब यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। संघ का कहना है कि सरकार को तुरंत कमेटी का गठन करना चाहिए ताकि समय रहते इसकी सिफारिशों पर अमल हो सके। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवम पदोनित नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया गया। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रोमोशन और अन्य सेवालाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए, ना कि नियमितीकरण की तिथि से। पूर्व में भी सरकार ने एडहॉक और टेन्योर बेसिस पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवाओं को प्रोमोशन के लिए योग्य माना है तो अनुबंध पर दी गई सेवाओं को क्यों योग्य नही माना जा रहा ? संघ का कहना है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं जो कि अन्याय है। कर्मचारियों ने कहा कि उनका चयन भर्ती एवम पदोनती नियमों के अनुसार हुआ है इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। हम पूरे नियमों के अंतर्गत नियुक्त हुए हैं, तो सरकार हमे पहले दिन से सरकारी कर्मचारी माने नाकि नियमितीकरण की तिथि से। उन्होंने कहा कि यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है इसलिए सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे। कमेटी में संगठन के सदस्यों को करें शामिल हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय कुमार, प्रदेश प्रवक्ता विजय राणा, सचिव सुशील चंदेल, मोहन ठाकुर, प्रेस सचिव राकेश चौहान, प्रेमपाल पठानिया, आईटी सेल हेड संदीप चंदेल, जिला कांगड़ा अध्यक्ष सुनील पराशर, हमीरपुर जिलाध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार, चम्बा जिलाध्यक्ष राजेंदर पॉल, मंडी जिला अध्यक्ष कृष्ण यादव, ऊना जिलाध्यक्ष संजीव बग्गा, शिमला जिलाध्यक्ष नंद लाल ने सामुहिक रूप से मांग की है कि सेनिओरिटी के लिए बनाई जा रही कमेटी में संगठन के सदस्यों को भी शामिल किया जाए ताकि वे अपनी मांग के समर्थन में उपयुक्त तथ्य प्रस्तुत कर सकें।
प्रदेश पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता संघ ने मुख्याध्यापक से प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति में राइडर को न फॉलो करने पर रोष जताया है। संघ के अनुसार मुख्याध्यापक से प्रधानाचार्य पद की पदोन्नति पर इस वर्ग का 117 पदों का बैकलॉग चल रहा था। सरकार उसे शीघ्र भरने वाली भी थी, लेकिन स्कूली प्रवक्ता के एक वर्ग द्वारा सरकार को गुमराह करने पर अब जानकारी मिल रही है कि प्रवक्ता वर्ग से 100 व मुख्य अध्यापक पद वर्ग से भी 100 पद ही भरे जा रहे हैं। अगर विभागीय आंकड़ों को देखा जाए, तो 31 दिसंबर तक 190 प्रधानाचार्य मुख्य अध्यापक वर्ग से तथा 105 प्रवक्ता वर्ग से सेवानिवृत्त हुए हैं। अगर 117 के बैकलॉग को शामिल किया जाए, तो गत मार्च से लेकर दिसंबर तक स्कूली प्रधानाचार्य के 277 पद मुख्याध्यापक कोटे के खाली चले हुए हैं। इस प्रकार स्कूली प्रधानाचार्य के कुल 313 खाली पदों में से प्रवक्ता वर्ग के कोटे के मात्र 36 पद ही बनते हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति में कहीं भी राइडर की अनुपालना नहीं की जा रही है। प्रदेश पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता संघ का आरोप है कि स्कूली प्रवक्ता का एक वर्ग सरकार से अपनी नजदीकी का नाजायज फायदा उठाकर 26000 के टीजीटी काडर के हितों पर कुठाराघात कर रहा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष यशवीर जम्वाल, अध्यक्ष कोर कमेटी केवल ठाकुर, मुख्य संरक्षक हरीमन शर्मा, महासचिव कमल किशोर शर्मा, कोषाध्यक्ष मदन लाल शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष संदीप डडवाल, प्रदेश संयुक्त वित्त सचिव प्रीतम कौशल, प्रधान जिला बिलासपुर यशपाल रनौत, प्रधान सोलन नरेंद्र ठाकुर, प्रधान कांगड़ा प्रदीप धीमान, प्रधान मंडी दर्शन राणा, कुल्लू मनोज, चंबा मनोज, ऊना विवेक दत्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हमीरपुर रविदास शर्मा, विक्रम वर्मा, अजय नंदा सहित अन्य पदाधिकारियों व सदस्यों ने सरकार से मांग की है कि उनके कोटे के खाली सभी पदों को सरकार अति शीघ्र भरें।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने संघ की मांगे पूरी न होने पर रोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि विद्युत बोर्ड का वर्तमान प्रबंध निकम्मा साबित हो गया है। उन्होंने कहा कि इनसे न कर्मचरियों के मसले सरकार के पास सही से रखे जा रहे है और न ही विद्युत बोर्ड की सही स्थिति सरकार के समक्ष रही जा रही है। उन्होंने कहा कि 22 दिसम्बर को नादौन में तकनीकी कर्मचारी संघ की कार्यसमिति में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि बोर्ड प्रबंधक को 15 दिनों का नोटिस दिया जाए, अगर विद्युत बोर्ड प्रबंधक इस समयावधि में तकनीकी कर्मचारी संघ द्वारा उठाए गए बिंदुओं का समाधान करने में असमर्थ रहता है तो 11 जनवरी को विद्युत मुख्यालय के प्रांगण में विशाल धरना दिया जाएगा। उसके बाद भी अगर बोर्ड प्रबंधक वर्ग की आंखे नहीं खुली तो उसी दिन से क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की जाएगी।
आयुर्वेदिक विभाग के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों ने प्रदेश सरकार के प्रति रोष प्रकट किया है। इन कर्मचारियों का कहना है कि प्रदेश सरकार घोषणाएं तो करती है मगर वो घोषणाएं हकीकत नहीं बन पाती। हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ का कहना है कि साल 2017 में हिमाचल प्रदेश कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि जिन कर्मचारियों का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया है, उन्हें नियमित किया जाएगा। इसके बाद 27 नवंबर 2021 को भी प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जिन कर्मचारियों का 4 वर्ष का दैनिक वेतन भोगी रूप में कार्य पूरा चुका होगा उनको नियमित किया जाएगा, लेकिन आयुर्वेद विभाग में अब भी ऐसे कर्मचारी है जो 12 वर्ष का पार्ट टाइम व 9 वर्ष दैनिक वेतन भोगी कार्यकाल पूर्ण कर चुके है, परन्तु अब तक नियमित नहीं हुए। हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ का कहना है कि आयुर्वेदिक विभाग में कर्मचारी 21 वर्ष से अधिक सेवा देने के उपरांत भी दैनिक वेतन भोगी पद पर ही रिटायर हो रहे है। ये चिंता का विषय है। हिमाचल प्रदेश के दैनिक मजदूर कई बार प्रदेश सरकार से नियमितीकरण की फरियाद कर चुके हैं, लेकिन इन कर्मचारियों को इनका हक़ नहीं मिल पाया है। प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते 21 वर्ष की सेवा देने के उपरांत भी आयुर्वेदिक विभाग के इन कर्मचारियों को नियमित करने के लिए कोई भी सराहनीय कदम नहीं उठाया गया है। इन कर्मचारियों को आयुर्वेद विभाग में नियमित करने की बजाय इनका शोषण हो रहा है। हम पर भी सरकार मेहरबान हो : तरसेम प्रदेश की भाजपा सरकार खुद को गरीब मजदूरों की हितैषी सरकार बताती है, लेकिन असल में प्रदेश के गरीब मजदूर के सथ अन्याय हो रहा है। बाकी कर्मचारियों की तर्ज पर ही हम पर भी सरकार मेहरबान हो। प्रदेश के आयुर्वेदिक विभाग में कार्यरत कर्मचारियों को प्रदेश सरकार के बनाए हुए नियमों के आधार पर बिना किसी शर्त से नियमित करने के आदेश जारी किये जाए ताकि इन कर्मचारियों का शोषण न हो। -तरसेम कुमार, प्रदेश अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ।
जेसीसी के फाइनल मिनिट्स सामने आने से शिक्षक वर्ग में निराशा है। शिक्षक वर्ग से जुड़े मुख्य सौ मुद्दों में से इक्का-दुक्का मुद्दों को ही जेसीसी में जगह मिली थी, जिसमें शिक्षक वर्ग से जुड़ी मांगें पूर्ण नहीं हुई हैं। शिक्षकों की अलग जेसीसी भी नहीं है। प्रदेश सरकार ने बजट सत्र के बाद शिक्षकों के मामले हल करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया था जिसके मुखिया प्रदेश के मुख्य सचिव हैं। वर्ष 2021 खत्म होने को है मगर हाई पावर कमेटी की शिक्षक संघों से वार्ता तक आयोजित नहीं हुई है। ऐसे में 70 हजार सरकारी शिक्षकों की मांगें कब पूर्ण होंगी, ये सवाल टीजीटी कला संघ ने प्रदेश सरकार से पूछा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कौशल ने कहा कि हाई पावर कमेटी की पहली बैठक दो दिसंबर को भी आयोजित नहीं हो सकी थी और इसके बाद भी शिक्षक संगठनों को अब तक अपना एजेंडा जमा करने और हाई पावर कमेटी की बैठक के लिए नहीं बुलाया गया है। जेसीसी में वेतन आयोग का अनुसरण केवल पे स्केल में करने के लिए कहा गया, जबकि सबसे अधिक आर्थिक नुकसान एचआरए आठ प्रतिशत पंजाब तर्ज पर न देना है। एरियर कैसे मिलेगा, इसकी रूपरेखा नहीं बताई गई। साथ ही 55 वर्ष आयु के बाद प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा की शर्त हटानी बाकी है। पुरानी पेंशन बहाली मामला भी एक कमेटी के हवाले है। ऐसे में शिक्षक वर्ग के अनेक अन्य मामले न चर्चा में रखे गए थे और न ही उन पर काम शुरू हुआ। इसी तरह प्रदेश में पांच प्रतिशत डीए अब तक नहीं मिला और केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर अतिरिक्त तीन प्रतिशत डीए भी अभी घोषित नहीं हुआ है।
हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज न करने की मांग की है। संघ के अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर ने बताया कि अगर इस बार प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो प्रवक्ता संघ इसका कड़ा विरोध करेगा। संघ के अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नति में प्रवक्ताओं को उनकी संख्या के अनुपात में बहुत कम अवसर प्राप्त हो रहे हैं। बड़े लंबे समय से प्रवक्ता संघ प्रवक्ताओं का पदोन्नति कोटा बढ़ाने की लगातार मांग कर रहे हैं। वे चाहते है की प्रधानाचार्य के पदोन्नति कोटे का अनुपात 95:5 किया जाए। प्रवक्ताओं का तर्क है कि प्रधानाचार्यों की पदोन्नति के लिए दो ही फीडिंग काडर हैं। इनमें स्कूली प्रवक्ता और उच्च विद्यालयों में कार्यरत मुख्याध्यापक शामिल हैं। इनका कहना है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के लिए इन दोनों फीडिंग काडर की वास्तविक संख्या के आधार पर पदों का बंटवारा होना चाहिए। संघ के पदाधिकारियों के अनुसार प्रवक्ताओं को पदोन्नति में हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों सूचियों में मुख्य अध्यापकों की संख्या बहुत अधिक रहती है जबकि प्रवक्ताओं को पदोन्नति सूचियों में बहुत कम स्थान प्राप्त होते है। 27 मार्च को जारी सूची में 96 मुख्य अध्यापकों को प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत किया गया था जबकि केवल 45 प्रवक्ताओं को ही पदोन्नत किया गया था। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने चेतावनी दी है कि अगर इस बार प्रधानाचार्य के रूप में होने वाले प्रमोशन में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है या विभाग द्वारा सिर्फ मुख्य अध्यापकों को ही प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत किया जाता है और प्रवक्ताओं को प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत करने के लिए सूची नहीं निकाली जाती है, तो संघ इसका कड़ा विरोध करेगा। संघ इस संबंध में संघर्ष करने में किसी भी तरह का कोई गुरेज नहीं करेगा जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी विभाग की होगी। सीएम की घोषणा तीन साल बाद भी लागू नहीं हुई हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा प्रवक्ताओं का पदोन्नति कोटा बढ़ाने की घोषणा के बावजूद विभाग की ओर से उस पर कार्रवाई नहीं की गई है। संघ के अनुसार 23 नवंबर 2018 को पालमपुर में आयोजित प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के राज्यस्तरीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 10 प्रतिशत कोटा बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन, घोषणा के तीन वर्ष बाद भी यह लागू नहीं हो पाई है, जो प्रवक्ता वर्ग के साथ बहुत बड़ा धोखा है। इनका आरोप है कि प्रदेश की नौकरशाही लगातार इसके बारे में भेदभाव कर रही है।
महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ ने प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ ने कहा कि 205 पदों पर भर्ती व पदोन्नति नियमों के आधार पर सिर्फ प्रशिक्षण प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तैनाती नहीं की गई तो सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। संघ की उपप्रधान सुदर्शना ने कहा कि प्रदेश में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की संख्या करीब 6000 है। वे प्रशिक्षण के बाद भी घर बैठी हैं। उनके लिए भी कोई योजना बनाई जाए। सरकार नियमों के आधार पर अगर प्रशिक्षण प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तैनाती नहीं दे सकती है तो जगह-जगह खोले गए इन प्रशिक्षण संस्थानों को भी तत्काल बंद करें। वर्ष 2018 में स्वास्थ्य विभाग के तहत 205 बहुउद्देशीय महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पदों को भरने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स से आवेदन मांगे गए थे, लेकिन कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर ने भर्ती एवं पदोन्नति नियमों को ताक पर रख कर फीमेल हेल्थ वर्कर्स के साथ जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की आवेदकों के आवेदनों को भी स्वीकार कर लिया गया। उनका दावा है कि बीते 15 सितंबर को घोषित किए परिणाम में 95 फीसदी अभ्यर्थी जीएनएम व बीएससी नर्सिंग के ही उत्तीर्ण हुए हैं। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ ने कहा कि प्रदेश में प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स की संख्या 6000 है, ये सारी महिलाएं इन दिनों बेरोजगार हैं। उन्होंने सरकार से मांग है कि जिस तरह पैरामेडिकल स्टाफ को 50 फीसदी बैचवाइज रखा जा रहा है उसी तरह एनएम महिलाओं को भी 50 फीसदी बैचवाइज रखा जाए। उन्होंने कहा कि हम पिछले कई सालों से अपने हक के लिए लड़ रही हैं, लेकिन प्रदेश सरकार हमारी मांगों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है। सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानती है तो वह आने वाले चुनावों का बहिष्कार करेंगी। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि आरएंडपी रूल्स के आधार पर प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स की तैनाती की जाए।