पुरानी पेंशन स्कीम बहाली को लेकर कर्मचारियों का प्रदर्शन उग्र होता दिख रहा है। प्रदेशभर से हजारों कर्मचारी विधानसभा का घेराव करने शिमला पहुंचे है और प्रदर्शन करते हुए विधानसभा के गेट तक पहुंच गए हैं। स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और एतिहातन विधानसभा के गेट पर ताला लगा दिया गया है। इससे पहले पुलिस ने कर्मचारियों को 103 टनल के पास रोकने के लिए पानी की बौछार की लेकिन कर्मचारी आगे बढ़ते चले गए। इससे पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर प्रदेशभर से शिमला पहुंचे कर्मचारी शिमला की टूटीकंडी क्रॉसिंग में जुटे और विधानसभा की तरफ कूच किया। कर्मचारियों ने ढोल नगाड़ों के साथ जमकर नारेबाजी की और चेताया की 'जो ओपीएस बहाल करेगा वो ही प्रदेश पर राज करेगा'। प्रदर्शन के चलते शिमला में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है और चौड़ा मैदान में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई। हालाँकि पुलिस बल भी कर्मचारियों को विधानसभा तक पहुँचने से नहीं रोक पाया।
प्रदेश के कॉलेजों में व्यावसायिक शिक्षा देने वाले वोकेशनल शिक्षक भी सरकार से पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि हरियाणा व असम की तर्ज पर इन शिक्षकों के लिए भी हिमाचल में पॉलिसी तैयार की जाए, ताकि वोकेशनल शिक्षकों को भविष्य में नियमित किया जा सके और इन शिक्षकों को पदोन्नति के अवसर मिले। शिक्षकों का कहना है कि इस बजट सत्र में उन्हें उम्मीद ही नहीं बल्कि भरोसा है कि गठित कमेटी उनके भविष्य के बारे में सोचकर स्थायी नीति बनाएगी। हिमाचल प्रदेश बी. वॉक वोकेशनल संघ के अध्यक्ष कुश भारद्वाज ने आउटसोर्स पर कार्यरत हजारों वोकेशनल प्रशिक्षकों के लिए स्थायी नीति बनाने हेतु कमेटी का गठन करने हेतु सरकार का आभार जताया। उन्होंने कहा कि स्थायी नीति बनाने से प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ-साथ उनके परिवार भी लाभान्वित होंगे जिससे बढ़ती हुई महंगाई के दौर में आसानी से गुजारा कर पाएंगे। उन्होंने मांग की है की इस बजट सत्र के दौरान उनके लिए स्थाई नीति की घोषणा की जाए।
शारीरिक शिक्षा अध्यापक प्रदेश के स्कूलों में 100 विद्यार्थियों वाली शर्त को हटाने की मांग कर रहे है। अपनी मांगों को लेकर बीते दिनों राजकीय शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ का एक प्रतिनिधि मंडल शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर भी मिला। प्रतिनिधि मंडल ने शिक्षा मंत्री से आग्रह किया कि हिमाचल प्रदेश के सभी माध्यमिक विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के पदों को भरा जाये तथा 100 विद्यार्थियों वाली शर्त को हटाया जाए। संघ के अनुसार प्रदेश में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के 380 पद खाली चल रहे है जिन्हें अतिशीघ्र भरा जाना चाहिए। शारीरिक शिक्षा अध्यापक संघ के राज्य कोषाध्यक मनोहर लाल ठाकुर एवं जिला महासचिव गिरधारी शर्मा के बताया कि इसके अतिरिक्त संघ की मांग है की वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में डीपीई के पदों को सृजित किया जाए, जिससे फिट इंडिया प्रोग्राम को सफल बनाया जा सके। संघ चाहता है कि जिला सहायक शिक्षा अधिकारी एपीडीएओ के पदों को स्थाई किया जाए तथा एडीपीईओ के पदनाम बदल कर डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स ऑफिसर रखा जाए। इन सभी मांगों पर शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। संघ के पदाधिकारियों का कहना है की मंत्री ने सभी मांगों को ध्यानपूर्वक सुना और उन्हें पूरा करने का भी आश्वासन दिया।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले हिमाचल प्रदेश के सैंकड़ों आंगनबाड़ी कर्मियों ने विधानसभा शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदेशभर के आंगनबाड़ी कर्मी पंचायत भवन शिमला में एकत्रित हुए व एक जुलूस के रूप में विधानसभा की ओर कूच किया। प्रदर्शन के दौरान यूनियन का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला व उन्हें बारह सूत्रीय मांग-पत्र सौंपा। मुख्यमंत्री ने आगामी बजट में कर्मियों की मांगों को पूर्ण करने का आश्वासन दिया। यूनियन ने चेताया है कि अगर बजट में मांगें पूर्ण न हुईं तो 28-29 मार्च को आंगनबाड़ी कर्मी राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल होकर आंदोलन तेज करेंगे। विदित रहे कि प्रदेशव्यापी हड़ताल के दौरान प्रदेश के अठारह हजार आंगनबाड़ी केंद्र बन्द रहे व लगभग सैंतीस हजार आंगनबाड़ी योजना कर्मी प्रदेशव्यापी हड़ताल पर रहे। ये है मुख्य मांगे : आंगनबाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन कि मांग है कि प्री प्राइमरी में तीस के बजाए सौ प्रतिशत नियुक्ति दी जाए। नियुक्ति प्रक्रिया में 45 वर्ष की शर्त को खत्म किया जाए। साथ ही प्री प्राइमरी कक्षाओं में छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा केवल आंगनबाड़ी कर्मियों को दिया जाए क्योंकि वे पहले से ही काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इसके अलावा मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्यरत कर्मियों को पूर्ण कर्मी का दर्ज़ा दिया जाए व उन्हें आंगनबाड़ी कर्मियों के बराबर वेतन दिया जाए। आंगनबाड़ी कर्मियों को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत वर्ष 2013 की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त किया जाए। सुपरवाइजर नियुक्ति में आंगनबाड़ी कर्मियों की नब्बे प्रतिशत भर्ती सुनिश्चित की जाए व इसकी पात्रता के लिए भारतवर्ष के किसी भी मान्यता प्राप्त विश्विद्यालय की डिग्री को मान्य किया जाए। वरिष्ठता के आधार पर मेट्रिक व ग्रेजुएशन पास तथा दस साल का कार्यकाल पूर्ण करने वाले कर्मियों की सुपरवाइजर श्रेणी में तुरन्त भर्ती की जाए। आंगनबाड़ी कर्मियों को अन्य राज्यों की तर्ज़ पर सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। उन्हें वर्ष 2013 व 2014 में हुए 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मी का दर्ज़ा दिया जाए व श्रम कानूनों के दायरे में लाया जाए। उन्हें हरियाणा की तर्ज़ पर साढ़े ग्यारह हजार रुपये वेतन दिया जाए। उनकी रिटायरमेंट की आयु अन्य राज्यों की तर्ज़ पर 65 वर्ष की जाए। अन्य राज्यों की तर्ज़ पर उन्हें दो लाख रुपये ग्रेच्युटी,तीन हज़ार रुपये पेंशन,मेडिकल व छुट्टियों आदि की सुविधा लागू की जाए। आईसीडीएस का निजीकरण मंजूर नहीं : यूनियन अध्यक्ष नीलम जसवाल व महासचिव वीना शर्मा ने कहा कि नन्द घर बनाने की आड़ में आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करके निजीकरण की साजिश तथा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, पोषण ट्रैकर ऐप व बजट कटौती आदि मुद्दों पर अगर ज़रूरत हुई तो हरियाणा, दिल्ली, पंजाब,आंध्र प्रदेश आदि की तर्ज़ पर हिमाचल प्रदेश के आंगनबाड़ी कर्मी अनिश्चितकालीन आंदोलन करने से भी गुरेज नहीं करेंगे। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आईसीडीएस का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी वर्कर्स को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो आंदोलन और तेज होगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति को भी वापिस लेने की मांग की है क्योंकि यह आइसीडीएस विरोधी है। इनके अनुसार नई शिक्षा नीति में आईसीडीएस के निजीकरण का एजेंडा छिपा हुआ है। आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करने के लिए नंदघर की आड़ में निजीकरण को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा क्योंकि इस से भविष्य में कर्मियों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ेगा।
डॉक्टरों की पेन डाउन स्ट्राइक रंग लाई है और सरकार ने डॉक्टरों की लंबित मांगें मान ली है। अब हिमाचल प्रदेश में डॉक्टरों की नियमित भर्तियां साल में दो बार कमीशन के तहत होगी और हर वर्ष डॉक्टरों के लिए पर्याप्त भर्तियां निकाली जाएंगी। डॉक्टर एसोसिएशन की विधानसभा में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ दो घंटे तक बैठक हुई, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री राजीव सैजल, मुख्य सचिव, वित्त सचिव, स्वास्थ्य सचिव भी मौजूद रहे। मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों की मांगों को तसाली से सुना भी और अधिकारियों को उनको पूर्ण करने के निर्देश भी दिए। खुद मुख्यमंत्री से सकरात्मक आश्वासन मिला तो डॉक्टरों ने भी पेन डाउन हड़ताल स्थगित कर दी। अब जल्द अनुबंध पर लगे डॉक्टरों के लिए नॉन प्रैक्टिस एलाउंस (एनपीए) की अधिसूचना भी जल्द जारी की जाएगी। वहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के हस्तक्षेप के बाद डॉक्टरों की मांगों पर एक कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी स्वास्थ्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई है। इस कमेटी में 12 लोग है, मेडिकल ऑफिसर संघ के पांच प्रतिनिधि भी शामिल है। कमेटी को दो महीने के अंदर रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होगी। इसके बाद सरकार की ओर से अगला कदम उठाया जाएगा। एसोसिएशन अध्यक्ष डॉ. राजेश सूद ने कहा कि दो महीने के भीतर मांगें पूरी नहीं होती हैं तो संघर्ष दोबारा शुरू होगा। एसोसिएशन महासचिव पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि वेतन की सीलिंग को 2.18 लाख से बढ़ाकर 2,24,100 रुपये करने पर सहमति बन गई है। 20 फीसदी नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस भी 1 जनवरी 2022 से लागू होगा और इसे एनपीए को बेसिक का हिस्सा मानने पर सहमति बनी है। 4-9-14 पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इसकी अधिसूचना जल्द जारी होगी। चिकित्सकों का विशेषज्ञ भत्ता बढ़ाने, मेडिकल कॉलेज में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए एकेडमिक भत्ते पर भी सहमति बनी है। कमेटी अपनी सिफारिशें आठ सप्ताह में पेश करेगी।
प्रदेश में 2009 की अधिसूचना को लागू भी किया गया और कर्मचारियों के साथ बैठकर कर वार्ता भी हुई लेकिन फिर भी पुरानी पेंशन बहाली के लिए शुरू हुई पदयात्रा को रोका नहीं जा सका। प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए कई फरमान भी जारी हुए, वेतन काटने और प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के फरमान भी जारी किये गए, मगर पदयात्रा पर निकले कर्मचारियों के इरादे नहीं बदले। जाहिर है कर्मचारी अब रुकने वाले नहीं है और आर पार की लड़ाई के मूड में है। प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के लिए पदयात्रा की जा रही है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों में तैनात सभी वर्ग के कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए राजधानी शिमला तक पैदल यात्रा पर निकल गए हैं। पदयात्रा की शुरुआत मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच से हुई। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले शुरू हुई इस पदयात्रा को कर्मचारियों का पूरा सहयोग मिलता हुआ दिखाई दे रहा है और जहां भी कर्मचारी पहुँच रहे है वहां उनका स्वागत किया जा रहा है। कर्मचारी बिलासपुर जिला मुख्यालय होते हुए 3 मार्च को शिमला पहुचेंगे और वहां पर विधानसभा का घेराव कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए धरना प्रदर्शन किया जाएगा। स्पष्ट है ये मांग अब बड़े आंदोलन का रूप ले चुकी है। उधर मुख्यमंत्री कर्मचारियों की हड़तालों और प्रदर्शनों से नाराज़ है और कई तरह की चेतावनियां भी दी जा रही है। मगर कर्मचारी मानने को तैयार नहीं है। इस पदयात्रा को रोकने के लिए कई प्रयास भी किये गए। पत्र जारी कर कर्मचारियों को वार्ता के लिए बुलाया गया, कर्मचारी वार्ता के लिए पहुंचे भी परन्तु कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया। इसके बाद सरकारी कर्मचारियों के धरने प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए सरकार ने फरमान जारी किया की सूबे के कर्मचारी अगर हड़ताल पर गए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने सिविल सर्विस रूल्स 3 और 7 का हवाला देते हुए आदेश जारी किए हैं कि प्रदर्शन, बहिष्कार, पेन डाउन स्ट्राइक और इस तरह की अन्य गतिविधियों में शामिल सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटा जाएगा और साथ ही कर्मचारियों पर अपराधिक मामला भी दर्ज होगा। पर सरकार की इस चेतावनी के बाद भी पदयात्रा जारी रही। हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी सरकार से तुरंत पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे है। विधानसभा के शीत सत्र के दौरान पेंशन बहाली के लिए कमेटी के गठन की घोषणा की गई थी जो की अब तक पूरी नहीं हुई। कमेटी का गठन नहीं किया गया और अब कर्मचारी चाहते है की बिना कमेटी के गठन के सीधे पेंशन बहाली की घोषणा की जाए। इस मुद्दे पर सरकार का पक्ष है की वर्तमान वित्तीय परिस्थितियों के अनुसार फिलवक्त पुरानी पेंशन बहाल नहीं की जा सकती। हालांकि पेंशन बहाली से सरकार पूरी तरह इंकार भी नहीं कर रही। सरकार का कहना है की पहले कर्मचारी अपनी पदयात्रा समाप्त करे और फिर चर्चा के माध्यम से इस मसले का हल निकलने की कोशिश की जाएगी, परन्तु कर्मचारी अब चर्चा नहीं एक्शन चाह रहे है। कर्मचारियों को मिला विपक्ष का साथ : पुरानी पेंशन के मुद्दे को विपक्ष भी खूब भुनाने में लगा है। हर विधायक की जुबान पर पुरानी पेंशन का मुद्दा है। कांग्रेस अब कर्मचारियों को यकीन दिला रही है कि सत्ता वापसी की स्थिति में पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। दरअसल राजस्थान में कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली के बाद हिमाचल कांग्रेस के हौसले भी बुलंद हुए है। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री कह चुके है की कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो पुरानी पेंशन योजना बहाल करेगी। राजस्थान से कांग्रेस सरकार ने इसकी शुरुआत कर दी है। अन्य राज्यों को भी इसे लागू करना पड़ेगा। पदयात्रा के समर्थन में शिमला पहुंचेगे राजन सुशांत : पूर्व सांसद डॉ. राजन सुशांत भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग सरकार से कर रहे है। सुशांत का कहना है कि राजस्थान में 1 जनवरी 2004 से बंद पड़ी कर्मचारियों की ओपीएस को लागू करने की घोषणा की है, इसका वे स्वागत करते हैं और उम्मीद करते है की हिमाचल सरकार भी पेंशन बहाल करेगी। राजन सुशांत पूरी तरह कर्मचारियों के समर्थन है और पदयात्रा के समर्थन में वे शिमला भी पहुंचेंगे। चर्चा का वक्त गया, अब फैसले की घड़ी : प्रदीप नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि अब चर्चा के लिए कुछ शेष नहीं रहा है और फैसला लेने का वक्त है। वे कई बार मुख्यमंत्री, मंत्रियों व विधायकों तक अपनी मांग चर्चा के माध्यम से पहुंचा चुके है। पुरानी पेंशन की बहाली पर प्रदेश सरकार के ढुलमुल रवैये से परेशान सरकारी कर्मचारी भारी रोष के चलते राजधानी शिमला के लिए पैदल मार्च करने को मजबूर हैं। कर्मचारी बिलासपुर जिला मुख्यालय होते हुए 3 मार्च को शिमला पहुंचेंगे और वहां पर विधानसभा का घेराव कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए धरना प्रदर्शन किया जाएगा। कर्मचारियों की पदयात्रा नेशनल हाईवे होकर ही जाएगी। इस दौरान उनके साथ कर्मचारी संगठन व अन्य संगठन भी जुड़ते जाएंगे। यह एक ऐतिहासिक धरना प्रदर्शन रहेगा।
आगामी बजट सत्र से हिमाचल प्रदेश में कार्यरत हजारों आउटसोर्स कर्मचारियों को काफी उम्मीदें है। ये कर्मचारी एक लम्बे समय से स्थाई नीति की मांग कर रहे है, मगर अब तक आश्वासनों के सिवा कुछ खास हाथ नहीं आया। अब बजट सत्र इनके लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आया है। ये बजट इस सरकार के कार्यकाल का अंतिम बजट है और इसीलिए कर्मचारियों को इससे खूब उम्मीदें है। बीते 18 सालों से आउटसोर्स कर्मचारी प्रदेश के विभिन्न विभागों में ड्यूटी दे रहे हैं लेकिन उन्हें सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली कोई भी सुविधाएं नहीं मिलती। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कैबिनेट की सब कमेटी का गठन जरूर किया गया परन्तु इस कमेटी की बैठक के बाद भी कर्मचारियों को बजट तक इंतजार करने का आश्वासन दिया गया। दरससल लम्बे समय से इन कर्मचारियों का ब्यौरा सरकार एकत्र करने का प्रयास कर रही है और इसी को विलम्ब का बड़ा कारण भी बताया जा रहा है। अब उम्मीद तो है परन्तु कर्मचारी पूरी तरह आश्वस्त हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसीलिए सरकार के आश्वासन के बाद भी आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ने राज्य स्तरीय बैठक कर प्रदेश के 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति बनाने की मांग फिर दोहराई है। शिमला में आउटसोर्स कर्मचारियों के प्रतिनिधि जुटे और समस्याओं पर मंथन किया। हिमाचल आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ की मांग है कि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए बजट सत्र में किसी ठोस नीति का प्रावधान किया जाए। इन कर्मचारियों का कहना है कि यदि इस दफे भी इन कर्मचारियों को लटकाया गया तो ये सब मिलकर सरकार के खिलाफ संघर्ष का रास्ता अपनाएंगे। महासंघ का कहना है कि प्रदेश में विभिन्न कंपनियों व ठेकेदारों द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है। सरकार से ठोस नीति बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई फैसला नहीं लिया है । हर बार आश्वासन ही दिए गए। आउटसोर्स कर्मचारी सोसाइटी और कंपनियों के माध्यम से लगे हैं। ये कर्मी पिछले 18 साल से सरकारी विभागों में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन्हें स्थायी करने के बारे में सोचा नहीं जा रहा है। महासंघ का कहना है कि सोसाइटी या कंपनी विभाग की मांग के अनुसार पैनल बनाकर विभाग के पास नाम भेजती है। इसके बाद विभागीय कमेटी इंटरव्यू लेकर आउटसोर्स पर रखती है। पर इसके बाद भी इनको नियमित नहीं किया जा रहा। हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है लेकिन सरकार द्वारा इनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और न ही इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। इनका कहना हैं कि कोरोना काल जैसी विकट परिस्थिति में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं। मुश्किल में कोई साथ नहीं देता : शैलेन्द्र हिमाचल आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा के अनुसार कुछ दिन पहले ही एक मामला सामने आया था जिसमें बिजली विभाग में नियुक्त एक आउटसोर्स कर्मचारी की करंट लगने से हालत गंभीर हो गई। उसे आईजीएमसी तक रेफर कर दिया गया मगर न तो ठेकेदार ने उसकी कोई सहायता की और न ही सरकार ने। इसी तरह आउटसोर्स पर तैनात नर्सेज, अध्यापक और जल शक्ति विभाग के कर्मचारियों के शोषण की खबर भी आये दिन सामने आती रहती है। कमीशन काटकर वेतन देते हैं ठेकदार : आउटसोर्स कर्मचारी वे कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में अनुबंध आधार पर रखा जाता है। यानी कि ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद ही इन तक तक पहुंच पाता है। .......................................................................... मांग : वेतनमान में विसंगतियां दूर हो - हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने की सरकार से मांग फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ (एचपीएसएलए) ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि नए वेतनमान में विसंगतियों को दूर किया जाएं। संघ का कहना है कि हिमाचल सरकार का 1972 से कर्मचारियों से करार है कि पंजाब पे कमीशन को हिमाचल के कर्मचारियों पर यथावत रूप में लागू किया जाएगा, उसे सरकार पूरा करे। साथ ही संघ ने चेताया है कि यदि उनकी मांग नहीं मानी जाती तो जल्द ही एसोसिएशन जनरल हाउस बुलाकर सबकी सहमति से अगली रणनीति तैयार करेगी और सरकार को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ का कहना है कि पंजाब में 2016 के बाद जितने भी नियमित कर्मचारी हैं उन सबको नियुक्ति की तिथि से गुणांक 2.59 और 2.25 दिए जा रहे हैं, जिनसे क्रमश: उनकी इनिशियल स्टार्ट 43000 और 47000 रुपए बनती है। इनकी मांग है कि जिस प्रकार पंजाब में बढ़े हुए ग्रेड पे 5400 के साथ 2016 में नियुक्त हुए नए प्रवक्ताओं को 47000 से इनिशियल स्टार्ट दिया है, इसी तरह हिमाचल में भी दिया जाए। संघ के प्रदेश महासचिव संजीव ठाकुर ने कहा कि पंजाब पे कमीशन को हिमाचल के कर्मचारियों पर यथावत रूप में लागू किया जाएं। ........................................................................................ पदोन्नति में समय अवधि कम करने पर जताया आभार फर्स्ट वर्डिक्ट . शिमला हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दुनी चंद ठाकुर एवं प्रदेश महामंत्री नेकराम ठाकुर ने बिजली बोर्ड में कार्यरत जूनियर टी मेट एवं जूनियर हेल्पर की पदोन्नति के लिए समय अवधि 4 वर्ष से 3 वर्ष करने पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का आभार व्यक्त किया है। उन्हें 14 फरवरी 2022 की बिजली बोर्ड की बीओडी की बैठक में स्वीकृति दी गई है जिसकी पुष्टि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी ने अपने प्रेस संबोधन में की है। तकनीकी कर्मचारी संघ ने भारतीय मजदूर संघ का भी धन्यवाद प्रकट किया है क्योंकि 8 फरवरी 2022 को भारतीय मजदूर संघ ने मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में ये मुद्दा उजागर किया था। इस बैठक में तकनीकी कर्मचारी संघ ने भी जूनियर टी मेट और जूनियर हेल्पर के विषय को बड़ी गंभीरता से रखा था जिस पर मुख्यमंत्री ने बिजली बोर्ड को उनकी घोषणा के अनुरूप आदेश करने के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष ने हिमाचल सरकार वह बिजली बोर्ड प्रबंधन से यह भी मांग की है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को भी संशोधित वेतनमान तुरंत प्रभाव से दिए जाएं क्योंकि हिमाचल सरकार ने अन्य विभागों के कर्मचारियों को इस माह के वेतन को संशोधित वेतनमान के अनुसार वेतन देने के आदेश किए हैं जिस पर बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी स्वभाविक तौर पर नए वेतन की आस लगाए हुए हैं। ............................................................................ पुरानी पेंशन : इंतजार की इन्तेहां हो गई, फिर विधानसभा घेराव की तैयारी फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला इंतजार की इन्तेहां हो गई है और अब कर्मचारी बात मानने के मूड में बिलकुल भी नजर नहीं आ रहे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए कर्मचारियों की अनगिनत याचनाएं धरी की धरी है पर सुनवाई होती नहीं दिख रही। सुनवाई होती भी है तो कच्चे पक्के आश्वासन कर्मचारियों को थमा दिए जाते है, पर मांग को पूरी तरह मानने से सरकार बचती हुई दिखाई दे रही है। प्रदेश के हर विधायक, हर मंत्री के दर पर दस्तक देने के बावजूद कुछ ठोस होता नहीं दिख रहा। इसी बीच विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने जा रहा हैं और संभवतः एक बार फिर कर्मचारियों का उग्र प्रदर्शन देखने को मिले। बस धर्मशाला के तपोवन की जगह कर्मचारी शिमला के चौड़ा मैदान में डेरा डालेंगे और पुरानी पेंशन के लिए विधानसभा का घेराव होगा। पुरानी पेंशन बहाली के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ अब प्रदेश सरकार से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए महासंघ ने प्रदेश के बजट सत्र के दौरान 3 मार्च को सरकार का घेराव करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय मंडी में आयोजित न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ की राज्य स्तरीय बैठक में लिया गया। बैठक में महासंघ के साथ जुड़े प्रदेश भर के पदाधिकारी व कर्मचारी पहुंचे और तय किया गया कि अब याचना नहीं रण होगा। रणनीति विधानसभा के घेराव की बनाई गई है। प्रदेश के हज़ारों कर्मचारियों से शिमला आने की दरख्वास्त की जा रही और महासंघ की माने तो अधिकतर की सहमति मिलती भी दिखाई देने लगी है। यानि एक बार फिर विधानसभा के शीतसत्र के दौरान दिखा दृश्य शिमला में बजट सत्र के दौरान देखने को मिल सकता हैं। अब तक गठित नहीं हुई कमेटी : 10 दिसंबर को धर्मशाला के दाड़ी मैदान में भी कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया था। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए थे और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया गया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है जिससे कर्मचारियों में नाराज़गी है। महासंघ का कहना है कि सरकार अब कमेटी के गठन को छोड़ पुरानी पेंशन बहाल करें। 2009 की अधिसूचना लागू ,पर कर्मचारी मांगे पुरानी पेंशन : हाल ही में सरकार द्वारा कैबिनेट बैठक के दौरान 2009 की अधिसूचना लागू करने को मंजूरी दी गई है। मगर उससे भी कर्मचारी पिघलते हुए नजर नहीं आ रहे। कैबिनेट के अप्रूवल के बाद एनपीएस के तहत आने वाले सभी कर्मचारियों के लिए मृत्यु व अपंगता पर फैमिली पेंशन का प्रावधान किया गया है, मगर कर्मचारी अपनी एक मात्र मांग पुरानी पेंशन बहाली पर अटके हुए है। सरकार को कोई वित्तीय घाटा नहीं होगा : प्रदीप न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना हैं कि बजट सत्र के दौरान शिमला में प्रदेश भर से एक लाख से अधिक कर्मचारी एकत्रित होंगे। पुरानी पेंशन के लिए मंडी से शिमला तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी और फिर विधानसभा पहुंचकर बजट सत्र के दौरान सरकार का घेराव किया जाएगा। ठाकुर का कहना है कि धर्मशाला में रैली के बाद महासंघ की प्रदेश के सरकार के साथ बैठक भी हुई थी। बैठक में प्रदेश सरकार को सुझाव दिया गया था कि यदि सरकार पुरानी पेंशन बहाल करती है, तो सरकार को 2009 की अधिसूचना लागू की वृद्धि होगी। परन्तु 2 महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने अभी तक कमेटी तक का गठन नहीं किया है नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि कर्मचारियों के वेतन का 10 प्रतिशत पैसा जबरदस्ती कंपनी को दिया जा रहा है और सरकार अपना 14 प्रतिशत पैसा भी कंपनी को दे रही है जिससे सरकार और कर्मचारी दोनों को नुकसान हो रहा है। नई पेंशन स्कीम से सिर्फ और सिर्फ कंपनी को ही फायदा हो रहा है जो सही नहीं है l पुरानी पेंशन पर सियासत भी भरपूर : पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे पर सियासत भी तेज है। विपक्ष कर्मचारियों को आश्वासन देकर सत्ता वापसी की स्थिति में पेंशन बहाल करने के सपने दिखा रहा है और भाजपा कर्मचारियों को याद दिला रही है कि प्रदेश में एनपीएस लाने वाली कांग्रेस ही थी जो आज इसे कर्मचारियों के अधिकारों का हनन बता रही है। पेंशन के मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना है कि इस वक्त कोई भी प्रदेश पुरानी पेंशन देने की स्थिति में नहीं है। जहां कांग्रेस की सरकार है वहां भी पुरानी पेंशन कर्मचारियों को नहीं मिल रही। ऐसे में पहले से वित्तीय घाटे में चल रहे हिमाचल प्रदेश के लिए भी पुरानी पेंशन की वापसी करवाना आसान नहीं होगा।
- पदनाम बदलने की मांग भी कर रहा हिमाचल प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ हिमाचल प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि फार्मासिस्टों का 2 साल का प्रोबेशन समय समाप्त किया जाए। फार्मासिस्ट लगभग साढ़े 9 वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर नियमित हुए हैं। इसके अलावा इन फार्मासिस्टों को सितंबर 2012 से 16290 बेसिक के हिसाब से वेतन दिया जाना चाहिए। वहीं पंजाब की तर्ज पर पे फिक्सेशन के लिए तीनो गुणांक भी दिए जाए ताकि रिकवरी से बचा जा सके। इनकी मांग है कि इनका पदनाम भी फार्मासिस्ट से फार्मेसी अफसर और चीफ फार्मासिस्ट से चीफ फार्मेसी अफसर किया जाए। संघ के अध्यक्ष चमन ठाकुर व महासचिव मनोज शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग में सितंबर 2002 में अनुबंध आधार पर 71 फार्मासिस्टों की भर्ती हुई थी जो कि अब 50 ही रह गए हैं। इनकी भर्ती हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड हमीरपुर से 4550 रुपये प्रतिमाह वेतन पर हुई थी। लगभग साढ़े नौ साल बाद जनवरी 2012 में नियमित हुए। इनको 11470 बेसिक पर नियमित किया गया। सितंबर 2012 में पंजाब की तर्ज पर वेतन आयोग की सिफारिशों का हिमाचल प्रदेश में पुन: निर्धारण किया गया था। इसमें इनिशियल वेतन पंजाब की तर्ज पर 16290 न देकर 14500 रुपये दो साल के राइडर के बाद मिला। अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने जो पंजाब पे कमीशन के हिसाब से अधिसूचना जारी की है, उस तर्ज पर दोनों गुणांकों 2.25 और 2.59 से इन फार्मासिस्टों को लगभग दो लाख की रिकवरी देनी पड़ जाएगी और यदि 15 फीसदी वेतन वृद्धि का विकल्प भी होता है तब भी इस बेसिक के हिसाब से रिकवरी देनी होगी। संघ ने सरकार से मांग की है कि इनकी मांगों का निवारण जल्द से जल्द किया जाए।
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता मांग रहे कर्मचारी सरकार के आगे गुहार लगा कर थक चुके है मगर सरकार की तरफ से अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पाया। 27 नवंबर 2021 को हुई जेसीसी की बैठक में इन कर्मचारियों से ये वादा किया गया था कि उनकी मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा और फिर कर्मचारियों की ये मांग पूरी की जाएगी। न अब तक मांग पूरी हुई और न ही कमेटी का गठन। ये वादों का सिलसिला नया नहीं है, काफी पुराना है। ये वो ही कर्मचारी है जिनसे कहा गया था कि जाती हुई सरकार की बात मत सुनो आती हुई सरकार की मानो। ये शब्द पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान कहे थे। इन कर्मचारियों से वादा किया गया था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगा। खैर ये बात काफी पुरानी हो गई है मगर इसके बाद हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा किया गया वादा भी पूरा नहीं हुआ है। जाहिर है ऐसे में कर्मचारियों में रोष है। इनका कहना है कि जहां हर कर्मचारी वर्ग की मांगें पूरी की जा रही तो फिर इन्हें अनदेखा क्यों किया जा रहा है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का एक प्रतिनिधि मंडल संगठन बीते दिनों प्रदेश महामंत्री अनिल सेन की अध्यक्षता और अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेश महामंत्री राजेश शर्मा की अगुवाई में अपनी प्रमुख मांग यानी नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवा काल में जोड़ने के संदर्भ में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला l मुख्यमंत्री से आग्रह किया गया कि कमेटी का गठन करके अतिशीघ्र उनकी मांग को पूरा किया जाए l हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वर्तमान सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को हल्के में ना लें, क्योंकि उनकी संख्या 70 हजार के करीब है और यदि उनके परिवार के सदस्यों की संख्या को भी गिन लिया जाए तो यह 3 लाख के करीब हो जाती है यह संख्या मिशन रिपीट में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है l यदि सरकार अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देती है व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ती है तभी मिशन रिपीट होगा l नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता नहीं तो मिशन रिपीट भी नहीं । अतः सरकार अति शीघ्र अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने की घोषणा करें । डिमांड चार्टर में नंबर चार पर थी मांग : 27 नवंबर 2021 को शिमला में हुई संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के डिमांड चार्टर में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को नंबर चार पर रखा गया था l बैठक में इस हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने व संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किये जाने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन ढाई महीने बीत जाने पर भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है l हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि सरकार ने अनुबंध कर्मचारियों का कार्यकाल 3 से 2 वर्ष तो कर दिया परंतु उन कर्मचारियों का क्या कसूर जिन्होंने 8 वर्ष,6 वर्ष,5 वर्ष और 3 वर्ष का लंबा कार्यकाल अनुबंध पर काटा है l कमीशन पास करके क्या कोई गुनाह किया है : सेन हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश महामंत्री अनिल सेन ने कहा कि प्रदेश सरकार प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक स्थाई नीति बनाने जा रही है जो कि एक स्वागत योग्य कदम है, परंतु दूसरी तरफ प्रदेश के विभिन्न विभागों में संवैधानिक तरीके से कमीशन पास करके व बैच वाइज आधार पर भर्ती अनुबंध से नियमित कर्मचारियों की इस जायज मांग को लगातार दरकिनार कर रही है l प्रदेश सरकार यह बताएं कि अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? उन्होंने कमीशन पास करके कोई गुनाह किया है क्या? नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता न मिलने के कारण अनुबंध से नियमित कर्मचारी मानसिक पीड़ा और कुंठा में हैं l एक ही विभाग में एक ही पद पर 5 वर्षों से कार्यरत कर्मचारी जूनियर हो गया है,और सिर्फ 5 महीने तक रहने वाला कर्मचारी सीनियर हो गया है, यह कहां का न्याय है l जूनियर हुए सीनियर : वर्ष 2008 में बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया और हाल ही में ये दो साल हो गया है। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, इसी को लेकर संगठन को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुक्सान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं।
कंप्यूटर प्रोफेशनल एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व तकनीकी शिक्षा मंत्री राम लाल मारकंडा से उनकी मांगें पूरी करने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में वर्ष 2017 से लंबे पीजीटी आईपी के केस को शीघ्र निपटाने तथा पीजीटी आईपी विषय के नियुक्ति एवं पदोन्नति नियमों में से 5 वर्ष के शैक्षणिक अनुभव की शर्त को हटाने की मांग की है। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष पीयूष सेवल ने कहा कि वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में जहां लगभग हर विषय में सरकार द्वारा विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्तियां की जा रही है, वहीं कंप्यूटर अध्यापकों की नियुक्तियों का कहीं जिक्र तक नहीं किया जा रहा है। जबकि वर्तमान समय में कंप्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी की महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में लेक्चर कंप्यूटर साइंस विषय के चल रहे 850 से अधिक रिक्त पदों को भरने, हिमाचल प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर कंप्यूटर एप्लीकेशन के पदों को भरने व हिमाचल प्रदेश के सभी स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा को अनिवार्य रूप से पहली कक्षा से शुरू करने, हिमाचल प्रदेश में टीजीटी कंप्यूटर साइंस के पदों को सृजित करके उनकी नियुक्तियां करने तथा हिमाचल प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के उद्योगों को स्थापित करने की मांग की गई है।
हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने पिछले डेढ़ साल से मुख्य चिकित्सा अधिकारी, चिकित्सा अधीक्षक, उपनिदेशक के पदों के लिए विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक बुलाने में हुई देरी पर कड़ा विरोध जताया है। एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ सुशील शर्मा ने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व इसके समकक्ष पदों के कम से कम 12 से 15 पद खाली हैं और सरकार ने इन पदों पर चिकित्सकों को उनकी नियमित पोस्टिंग से वंचित कर दिया है। उन्होंने कहा कि खंड चिकित्सा अधिकारियों के लिए पिछले तीन वर्षों से कोई डीपीसी नहीं हुई है क्योंकि स्वास्थ्य विभाग में नियमित बीएमओ के लगभग 25-30 पद खाली पड़े हुए हैं। हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोसिएशन ने कहा कि सरकार ने चिकित्सकों के नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस को पंजाब की तर्ज पर 25 प्रतिशत से कम कर 20 प्रतिशत कर दिया है जो चिकित्सकों के साथ अन्याय है। एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ सुशील शर्मा ने सरकार से सवाल किया है कि जब नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउंस को पंजाब की तर्ज पर कम किया गया तो बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को पंजाब की तर्ज पर क्यों नहीं रखा गया। सरकार ने एनपीए घटाने के साथ-साथ बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को कम करते हुए 218000 कर दिया जो पंजाब में 237600 है। डॉक्टर शर्मा ने कहा कि यह सरासर और सीधा प्रदेश के चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। संघ के सभी सदस्यों ने एकमत से सरकार से मांग की है कि चिकित्सकों का एनपीए बढ़ाया जाए और बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को भी बढ़ाया जाए।
पीडब्ल्यूडी विभाग में कार्यरत कनिष्ठ अभियंता पदोन्नति न मिलने से परेशान है। इनका कहना है कि करीब बीस सालों से इस विभाग में कनिष्ठ अभियंताओं की पदोन्नति रुकी हुई हैं और कनिष्ठ अभियंता बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं। प्रदेश कनिष्ठ अभियंता संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजीव कुमार शर्मा ने बताया कि आगामी 31 जनवरी को एक कनिष्ठ अभियंता की सेवानिवृति है, जो पदोन्नति रहित है। प्रदेशाध्यक्ष राजीव कुमार शर्मा और प्रदेश महासचिव विजय धीमान ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार पदोन्नति के मामले में कनिष्ठ अभियंताओं से सौतेला व्यवहार कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पीडब्ल्यूडी में करीब दो दशकों से पदोन्नतियां नहीं हो रही है, जिससे यह वर्ग स्वयं को हताश और निराश महसूस कर रहे हैं। इंजीनियर राजीव कुमार ने कहा कि समाज शायद सोचता होगा कि इनके सेवा कार्यकाल में न जाने कौन सा अपराध हुआ है कि यह लोग कभी सहायक अभियंता ही नहीं बन पाए। उन्होंने कहा कि पीडब्ल्यूडी में सहायक अभियंताओं के करीब 30 पद रिक्त चल रहे हैं लेकिन सरकार और विभाग के आलाधिकारी इस पर कोई गौर नहीं कर रहे हैं। बीस सालों से पदोन्नति की राह देख रहे कनिष्ठ अभियंताओं की मानसिक परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है लेकिन कोई उम्मीद की किरण दिख नहीं रही है। राजीव कुमार ने कहा कि यदि सरकार पदोन्नतियों का द्वार खोलती है तो नए युवाओं को नौकरी का अवसर मिलेगा और इन्हें भी पदोन्नति का अवसर मिल पाएगा। प्रदेश कनिष्ठ अभियंता संघ ने सरकार से मांग की वे जल्द इनकी पदोन्नति की मांग पर गौर करें ताकि कनिष्ठ अभियंता बिना पदोन्नति के सेवानिवृत न हो।
रोजगार की आस में दिन रात मेहनत की, खूब पढ़ाई की पेपर भी निकाला मगर अब जीसी दो माह से ज्वाइनिंग नहीं हो पा रही है। ये कहना है जूनियर ऑफिस एसिस्टेंट जेओए अकाउंट पोस्ट कोड 815 के तहत भर्ती का इंतज़ार कर रहे युवाओं का। कुछ समय पहले जूनियर ऑफिस एसिस्टेंट जेओए अकाउंट पोस्ट कोड 815 के तहत 45 पदों में रोजगार को लेकर विज्ञापन आया और उसकी तैयारी में युवा जुट गए। फार्म भरा, परीक्षा दी, परीक्षा पास की जब लंबे अंतराल के बाद परीक्षा परिणाम आया तो अब ज्वाइनिंग लटक गई है। ऐसे में रोजगार की आस लगाए बैठे युवा अभी तक बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, लेकिन उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। आस लिए बैठे युवा भर्ती करने वाले संस्थान से संपर्क कर रहे हैं तो संस्थान भी उन्हें आज कल का बहाना बनाकर लटका रहा है। ऐसे में जेओए अकाउंटस पोस्ट कोड 815 के लिए परीक्षा देकर पास हो चुके अभियार्थी ज्वाइनिंग न होने से परेशान हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं हैं। जेओए जूनियर ऑफिसर एसिस्टेंट पोस्ट कोड 815 के तहत 18 जून 2020 को पोस्ट निकली थी और इसका विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित हुआ। एचपीएसएसबी ने 27 दिसंबर 2020 को प्रदेश के हर एक मुख्यालय में पेपर आयोजित हुआ। 31 मई 2021 को परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया। इसके बाद पांच जुलाई 2021 को डाक्युमेंट जांचे गए। 29 नवंबर को फाइनल रिजल्ट घोषित किया गया लेकिन उसके बाद अभी तक कोई ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है। प्रार्थी अजय कुमार, गुरमीत, अरविंद कुमार, पंकज, विशाल, मनीष ने बताया कि 29 नवंबर को फाइनल परीक्षा परिणाम घोषित हो गया पर अभी तक उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है। ऐसे में उन्हें परेशानी से दो चार होना पड़ रहा है। जब भी हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी चयन आयोग में पता करते हैं तो जवाब यही मिलता है कि 15 दिन में ज्वाइनिंग हो जाएगी पर ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। इस लिए बोर्ड से आग्रह है कि जल्द से जल्द ज्वाइनिंग करवाई जाएं।
राज्य स्वास्थ्य समिति यानि एनएचएम अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ का कहना है कि उन्हें विभिन्न पदों पर सेवाएं देते हुए 23 वर्ष से अधिक समय हो गया है, लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है। महासंघ ने सरकार को स्थाई नीति बनाने का अल्टीमेटम दिया है। राज्य स्वास्थ्य समिति अनुबंध कर्मचारी संघ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर दो फरवरी को सांकेतिक हड़ताल की चेतावनी भी दी है। एनएचएम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन चंद शर्मा ने कहा कि सरकार कर्मचारियों को जब तक नियमित नहीं करती तब तक उन्हें रेगुलर पे स्केल दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तत्त्वावधान में लगभग 1600 कर्मचारी पिछले 23 वर्षों से अपनी सेवाएं राज्य स्वास्थ्य समिति के अंतर्गत देते आ रहे हैं। इनके लिए न तो सरकार ने कोई स्थायी नीति बनाई और न ही स्थाई नीति बनाने की दिशा में कोई कारगर कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि एनएचएम कर्मचारी लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, इनमें से कुछ सेवानिवृत्त भी हो गए हैं, लेकिन आज तक सरकार कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति नहीं बना पाई हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार जल्द इनके लिए स्थाई नीति बनाने की अधिसूचना जारी नहीं करती है तो प्रदेश व्यापी हड़ताल की जाएगी जिसकी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी। इनका कहना है कि न्यूनतम वेतन पर सेवाएं देने पर वर्ष 2016 में तत्त्कालीन सरकार ने मंत्रिमंडल में रेगुलर पे स्केल देने के लिए अधिसूचना जारी थी, लेकिन उसे सरकार ने लागू नहीं किया। वहीं जेसीसी की बैठक हुए डेढ़ माह हो गया है, लेकिन फाइल पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इनका आरोप है कि जब राज्य में कोई एचआर पॉलिसी ही नहीं है तो सेवानिवृत्ति की उम्र 58 की अधिसूचना सरकार कहां से लाई है ? स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग हिमाचल प्रदेश में हजारों पद खाली हैं जिनमें कर्मचारियों को मर्ज कर भरा जा सकता है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि सरकार उनके लिए कोई स्थाई नीति बनाती है तो वे सरकार का धन्यवाद करेंगे अन्यथा मजबूरन हिमाचल प्रदेश के समस्त एनएचएम कर्मचारी एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करेंगे, जिसे लंबे समय तक भी जारी रखा जा सकता है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि अगर, इस हड़ताल के दौरान किसी भी प्रकार की कोई भी जानमाल की हानि होती है तो उसके लिए मात्र हिमाचल प्रदेश सरकार व प्रशासन जिम्मेवार होगा।
हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ ने पंजाब की तर्ज पर 15 फीसदी बढ़ोतरी के साथ वेतनमान को प्रदेश में लागू करने की मांग की है। महासंघ के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को वेतन विसंगतियों को लेकर हिमाचल और पंजाब के वेतनमान की तुलनात्मक रिपोर्ट सौंप कर पूरे मामले से अवगत कराया। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय सचिव पवन मिश्रा और शिक्षक महासंघ के प्रांत महामंत्री डॉ. मामराज पुंडीर ने बताया कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी कर्मचारियों की वेतन से संबंधित समस्याओं को दूर करने का आश्वासन दिया है। ये है मुख्य मांगे -पंजाब की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी 2.25, 2.59 और 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ वेतनमान को लागू किया जाए। -कर्मचारियों को आप्शन चुनने की एक महीने की अवधि को बढ़ाया जाए। -पंजाब में लागू वेतनमान को हिमाचल में यथावत लागू किया जाए। -प्रदेश में एक जनवरी 2016 में नियुक्त सभी वर्ग के अध्यापकों को पंजाब की तर्ज पर इनिशियल स्केल दिया जाए। कंप्यूटर और एसएमसी अध्यापकों के मसले भी उठाएं मुख्यमंत्री को अवगत करवाया गया है कि हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भत्ते पंजाब के आधार पर नहीं दिए जाते हैं। इस कारण प्रदेश का कर्मचारी पिछड़ता जा रहा है। प्रदेश में कंप्यूटर और एसएमसी अध्यापकों का वर्ग ऐसा भी है जिनको पिछले 20 वर्ष और 10 वर्ष की सेवा के बाद भी करीब दस हजार वेतन ही दिया जा रहा है। महासंघ ने इन शिक्षकों के लिए नीति बना कर इन्हें नियमित अध्यापक के बराबर वेतन देने का प्रावधान करने की मांग भी रखी। - डॉ मामराज पुंडीर, प्रांत महामंत्री, शिक्षक महासंघ।
जब प्रदेश में कोरोना के मामले बढ़ते है तो जनता को घर में रहने की हिदायत देकर पुलिस जवानों को बाहर तैनात कर दिया जाता है, खतरे की आशंका हो तो इन्हें अलर्ट कर दिया जाता है, और जब सुरक्षा व्यवस्था पर आंच आए तो इन्हें सवालों के कठघरे में भी खड़ा किया जाता है। पुलिस के भरोसे हर आम नागरिक सुरक्षित महसूस करता है, परन्तु इन दिनों हिमाचल के पुलिस जवान स्वयं परेशान है। प्रदेश की सुरक्षा करने वाले पुलिस के जवान लगातार सरकार से अपने हितों की रक्षा की गुहार लगा रहे है। मगर न तो सरकार सुन रही है और न ही उनकी मांगों पर कोई फैसला होता दिखाई दे रहा है। बावजूद इसके आम कर्मचारियों की तरह पुलिस कांस्टेबल अपनी मांगों को लेकर न तो हो हल्ला मचा सकते है, न सड़कों पर निकल कर नारे लगा सकते है और न ही जमघट बना कर हड़ताल कर सकते है। अनुशासन के दायरों में बंधी पुलिस फ़ोर्स के लिए सरकार तक अपनी बात पहुंचा पाना ही एक बड़ी चुनौती है। विभिन्न माध्यमों से सन्देश पहुंचाने की कोशिश की जाती है। कभी बटालियन की मेस में खाना छोड़ दिया जाता है तो कभी सोशल मीडिया पर #justiceforpolice अभियान चलाया जाता है, मगर सवाल ये है कि क्या बिना संख्या बल दिखाए सरकार इनकी बात मानेगी। भाजपा सरकार के कार्यकाल का अंतिम वर्ष है। इस अंतिम वर्ष रिपीट की उम्मीद लिए सरकार हर तबके की समस्याएं हल करने की कोशिश कर रही है। कर्मचारी वर्ग को राहत पहुँचाने का सिलसिला भी जारी है। जेसीसी की बैठक के दौरान कई कर्मचारी वर्गों की मांगे पूरी हुई मगर जो हताश हुए उनमें से एक प्रदेश के पुलिस कांस्टेबल भी है। पुलिस जवानों को उम्मीद थी की बाकि अनुबंध कर्मचारियों की तर्ज पर उनका प्रोबेशन पीरियड भी घटाया जाएगा। 2015 बैच के बाद भर्ती हुए पुलिस कर्मियों का प्रोबेशन पीरियड 8 साल का है यानी उन्हें सेवाएं शुरू करने के 8 साल बाद हायर पे बैंड और ग्रेड पे मिलता है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि 8 साल बहुत लम्बी अवधि है। किसी भी सरकारी कर्मचारी को नियुक्ति के तीन साल बाद ही हायर पे बैंड मिल जाता था परन्तु अब तो इसे भी घटा कर 2 वर्ष कर दिया गया है। परन्तु पुलिस कर्मियों को 8 वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। अब आलम ये है कि पुलिस कांस्टेबल निरंतर सरकार पर अनदेखी का आरोप जड़ रहे है। करीब दो माह पूर्व पुलिस जवानों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से अन्य कर्मियों की तरह दो साल के बाद हायर पे-बैंड और 3200 ग्रेड-पे देने की मांग की थी जो पूरी नहीं हो पाई। इसके बाद सीएम के सरकारी आवास का घेराव कर सैकड़ों कांस्टेबल नाराजगी जताने पहुंचे। फिर इस मांग पर मंथन के लिए सीएम ने अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमंत्री को भेजी परन्तु अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। ऐसे में 2015 बैच के बाद भर्ती हुए पुलिस कर्मियों ने मेस बंद कर दी। बता दें कि प्रदेशभर में 2015 बैच के बाद के करीब 5500 पुलिस कर्मी हैं, जिन्हें हायर-पे बैंड का लाभ नहीं मिल रहा है। जमकर हो रही सियासत पुलिस कांस्टेबल के इस मसले पर सियासत भी खूब हो रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को पुलिस कर्मियों की इस स्थिति का ज़िम्मेदार बता रहे है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भी पुलिस कर्मियों को हायर पे बैंड न मिलने के मसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। हालांकि कांग्रेस ने भी सत्ता रहते इस मसले पर कुछ नहीं किया था। वहीं पुलिस जवानों का कहना है कि हिमाचल पुलिस राष्ट्रपति कलर से सम्मानित पुलिस बल है, ये राष्ट्रपति कलर आसमान से गिर कर नहीं मिलता है। दशकों की मेहनत, ईमानदारी, स्वच्छ छवि से मिला है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि अगर सरकार का सौतेला व्यवहार आगे भी जारी रहा, तो वे अनुशासन का ध्यान नहीं रखेंगे।
" वन विभाग में 35 साल सेवाएं देने के बाद मंडी के अमर सिंह वर्ष 2020 में रिटायर हुए। लगा पेंशन के सहारे बुढ़ापा स्वाभिमान के साथ गुजर जायेगा, पर जब हाथ में 1128 रुपये की पेंशन आई तो मानों पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये ही कारण है कि अमर सिंह जैसे हजारों -लाखों मुलाजिम नई पेंशन योजना का विरोध करते है। वर्ष 1986 में डेली वेज पर भर्ती हुए अमर सिंह 2007 में नियमित हुए थे। नई पेंशन योजना का विरोध अमूमन देश के हर राज्य में हो रहा है और ये एक बड़े आंदोलन में तब्दील होता दिख रहा है। सरकारी मुलाजिमों को शिकवा ये भी है कि उन पर नई पेंशन थोपने वाले नेता खुद पुरानी पेंशन का सुख भोग रहे है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कालजयी पंक्ति है कि 'सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है'...इसी भावना और आशावाद के साथ लाखों मुलाजिम देश के अलग -अलग हिस्सों में पुरानी पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। " बेरोजगारी, महंगाई, बिजली, किसान, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, भ्रष्टाचार और राष्ट्रवाद; ये तमाम वो मुद्दे है जिनकी बिसात पर दशकों से देश में चुनाव लड़े जाते रहे है। पर बीते कुछ वक्त में इस फेहरिस्त में एक नए मुद्दे की एंट्री हुई है। अब पुरानी पेंशन की बहाली भी चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। देश के 5 राज्यों में इस वक्त चुनाव का माहौल है और अन्य मुद्दों के साथ-साथ पुरानी पेंशन का मुद्दा भी खूब गूँज रहा है। कहीं राजनैतिक दल पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा कर रहे है, तो कहीं इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे संगठन मुखर है। पंजाब में तो मुलाजिमों द्वारा बाकायदा घरों के बाहर तख्ती लटकाकर नेताओं को स्पष्ट सन्देश दिया जा रहा है कि 'मेरे घर वही वोट मांगने आएं, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएं।' यूँ तो ये मुद्दा सभी राजनैतिक दलों के गले की फांस बनता दिख रहा है लेकिन यदि ये आंदोलन प्रखर होता है तो मुमकिन है कि सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हो। दरअसल केंद्र में तो भाजपा की सरकार है ही, देश के अधिकांश राज्यों में भी भाजपा ही सत्ता में है। साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव करते हुए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। उन सभी सरकारी मुलाजिमों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। केंद्र की तर्ज पर राज्यों ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही देश में एकमात्र अपवाद है। शुरुआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब नई पेंशन स्कीम के नुकसान समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। धीरे- धीरे सभी राज्यों में कर्मचारी लामबंद होने लगे और संगठन बनाकर नई पेंशन स्कीम का विरोध शुरू हो गया। अब आहिस्ता- आहिस्ता ये विरोध आंदोलन का स्वरूप लेता दिख रहा है। फिलहाल देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली का मसला गूंजता दिख रहा है। कहते है दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, जाहिर है हर राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश में बेहतर करने को प्रयासरत है। यहाँ भी मुलाजिमों का वोट हथियाने के लिए राजनैतिक दल पुरानी पेंशन की बहाली के ख्वाब दिखा रहे है। यूँ तो उत्तर प्रदेश में जाति -धर्म, विकास और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे सरकार बनाते -गिराते रहे है लेकिन अगर कर्मचारी फैक्टर चला तो समीकरण बन-बिगड़ सकते है। यूपी के अलावा पंजाब और उत्तराखंड में पुरानी पेंशन की बहाली एक बड़ा मुद्दा है। लगातार कर्मचारी पुरानी पेंशन की गुहार राजनीतिक दलों से लगा रहे है। यदि यहां भी राजनीतिक दल पेंशन का समर्थन करते है तो सत्ताधारी पार्टी को बैक फुट पर लाने का काम पुरानी पेंशन कर सकती है। हालांकि ये पहली बार नहीं जब राजनीतिक दलों ने अपने मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन बहाली को शामिल किया हो। इससे पहले भी कई बार इसे मुद्दा बनाया गया मगर विडंबना ये है कि अब तक पश्चिम बंगाल के अलावा किसी भी अन्य राज्य में पुरानी पेंशन नहीं दी जाती। कई राज्यों में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद भाजपा पुरानी पेंशन को बहाल नहीं करवा पाई जिसकी टीस कर्मचारियों में है। उधर, पंजाब में कांग्रेस की चन्नी सरकार हर वर्ग के लिए दिल खोलकर घोषणाएं करती दिखी है लेकिन पुरानी पेंशन पर खामोश है। यदि आम आदमी पार्टी या कोई अन्य दल इस मुद्दे पर मुलाजिमों को आश्वस्त करता है तो इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। गोवा और मणिपुर में भले ही पुरानी पेंशन को लेकर आंदोलन संगठित न हो, पर कम ही सही इसका असर जरूर देखने को मिल सकता है। पंजाब : कांग्रेस ने किया था वादा, पर पूरा नहीं किया पिछले कई साल से पंजाब में कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। पेंशन की मांग करने वाले एक संगठन, एनपीएस मुलाजिम पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष कमेटी ने तो एनपीएस वोटर जागरूकता पोस्टर अभियान की शुरुआत कर दी है। पंजाब के कर्मचारियों का कहना है कि अब तक किसी राजनीतिक दल ने चुनाव मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन की मांग को शामिल नहीं किया है और इसलिए यह पोस्टर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। हर पोस्टर में लिखा है कि " मैं साल 2004 के बाद भर्ती नई पेंशन स्कीम से पीड़ित सरकारी मुलाजिम हूँ। मेरे घर वही वोट मांगने आए, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाए।" ये अभियान पंजाब चुनाव पर भी खासा असर डाल सकता है। पंजाब में सिर्फ कर्मचारी ही नहीं आम आदमी पार्टी के नेता भी पुरानी पेंशन को लेकर सरकार पर हमला बोल रहे है। आप का कहना कि पंजाब सरकार पेंशन भोगियों की कमाई पर सांप की तरह बैठी हुई है। आप के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता हरपाल सिंह ने आरोप लगाया कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस ने 2017 में कांग्रेस सरकार बनने पर पंजाब में पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का वादा किया था और राजनीतिक लाभ के लिए कर्मचारियों और पेंशन भोगियों के इस मुद्दे का इस्तेमाल किया। मगर अब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को दी नहीं। स्पष्ट है कि पंजाब चुनाव में भी ओपीएस पर खूब सियासत हो रही है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के पंजाब राज्य के अध्यक्ष सुखजीत सिंह का कहना है कि पंजाब चुनाव में ओपीएस की मांग एक बड़ा मुद्दा साबित होगी। यहां कर्मचारी सिर्फ ये नहीं चाहते कि राजनीतिक दल इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करे बल्कि जो पार्टी इस मांग को 6 महीने में पूरा करने का दम रखेगी ,ताजपोशी उसी की होगी। सुखजीत सिंह ने बताया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी तो पहले ही सत्ता मिलने के बाद पुरानी पेंशन बहाली का वादा कर चुकी थी मगर अब सुखबीर सिंह बादल भी कर्मचारियों को ये आश्वासन दे चुके है। कांग्रेस भी कहीं न कहीं इस मांग से इत्तेफ़ाक़ रखती है पर वे अपने कार्यकाल में इस मांग को पूरा नहीं कर पाए। उत्तराखंड : खोखला आश्वासन नहीं, ठोस वादा चाहिए उत्तराखंड में भी पुरानी पेंशन लागू करने की मांग को लेकर कर्मचारी लंबे समय से संघर्षरत हैं। सड़कों से लेकर सरकार के दर तक कर्मचारी लगातार आंदोलन करते आए हैं। यहां अब आधुनिकता के साथ कर्मचारी आवाज बुलंद कर रहे हैं, इंटरनेट मीडिया को हथियार बनाकर हजारों कर्मचारी आंदोलन को धार दे रहे हैं। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा यहां कर्मचारी की इस मांग को लेकर लामबंद है। हालांकि यहां सरकार के पास मुख्यमंत्री बदलते रहने का एक बहाना मौजूद है। उधर, कांग्रेस कर्मचारियों की नाराज़गी भुनाने को प्रयासरत है, पर कर्मचारियों को खोखला आश्वासन नहीं बल्कि ठोस वादा चाहिए। उत्तर प्रदेश : सपा ने किया वादा, देखना होगा भाजपा का इरादा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलाजिमों से वादा किया है कि सपा सरकार बनने पर कर्मचारी-शिक्षकों की लंबे समय से चल रही मांग पुरानी पेंशन को बहाल किया जाएगा। इसके लिए जरूरत पड़ी तो कार्पस फंड बनाया जाएगा। जाहिर है यूपी में पुरानी पेंशन एक ऐसा मुद्दा है, जिससे प्रदेश के लगभग 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ते हैं। यह ऐसा वर्ग है, जो समाज को दिशा देने का काम करता है, अगर यह वर्ग समाज न सही अपने परिवार की सहमति बना लेता है तो यह संख्या लगभग एक करोड़ की हो जाएगी। निसंदेह ऐसा हुआ तो सपा को फायदा हो सकता है। उधर सत्तारूढ़ भाजपा पर भी अब कर्मचारी वर्ग को साधने का दबाव है। हिमाचल में भी सियासी ताप बढ़ा सकता है ओपीएस का मुद्दा पुरानी पेंशन का मुद्दा हिमाचल की सियासत में भी भरपूर दमखम रखता है। इसका ट्रेलर बीते 10 दिसंबर को दिखा जब धर्मशाला के दाड़ी मैदान में कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है, लेकिन कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद संभावित सियासी नुक्सान को भांपते हुए प्रदेश सरकार उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने है और कर्मचारी पहले ही पुरानी पेंशन की इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुके है। कांग्रेस भी पूरी तरह पेंशन की मांग का समर्थन कर रही है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भी ये मुद्दा सियासी ताप बढ़ा सकता है। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा : बंधू पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में नई पेंशन का दर्द झेल रहे कर्मचारियों का बड़ा असर रहने वाला है। कई राजनीतिक दल हमें हल्के में लेने की गलती कर रहे है, क्यूंकि उन्हें लगता है कि हमारी संख्या कम है। मैं बता दूँ कि ऐसा समझना उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी बेवकूफी साबित होगी। आज पुरानी पेंशन एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी है और इन चुनावों में भी ये मुद्दा टर्निंग पॉइंट साबित होगा। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा। -विजय कुमार बंधू, राष्ट्रीय अध्यक्ष, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम
"जो पेंशन की बात करेगा, वो देश पर राज करेगा", ये नारा है उन लाखों कर्मचारियों का जो अपने हक की पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। पुरानी पेंशन बहाली सिर्फ हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक बड़ा मुद्दा बन गई है। प्रदेश में ये मुद्दा क्या स्तर रखता है इसकी झलक 10 दिसंबर को धर्मशाला के दाड़ी मैदान में देखने को मिली। उस दिन पूरा धर्मशाला पेंशन बहाली के नारों से गूँज उठा था। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा। जो सरकार एक दिन पहले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने से साफ इंकार कर चुकी थी उसी सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। हालांकि वो कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है। पर कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद ये सरकार जाते-जाते उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश का कर्मचारी वर्ग अब इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुका है और सन्देश स्पष्ट है कि चुनावी वर्ष में यदि याचना से काम नहीं चला तो कर्मचारी संगठन रण के लिए तैयार है। पुरानी पेंशन प्रदेश एक ऐसा मुद्दा है जो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। लाखों कर्मचारियों का ये मुद्दा अक्सर चर्चा में बना रहता है। इस मुद्दे पर सियासत भी खूब होती है, आए दिन ओपीएस को लेकर किसी न किसी नेता का ब्यान सामने आता है। जाहिर है इनमें विपक्ष के नेता अधिक होते है, वो ही नेता जो सत्ता में रहते हुए चुप्पी साधे हुए थे और अब सरकार को घेरने में आगे रहते है। बहरहाल, यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ये मुद्दा फिलवक्त प्रदेश का एक ऐसा सियासी मुद्दा बन चुका है जो 2022 में 'मिशन रिपीट' या 'मिशन डिलीट' में बड़ी भूमिका निभाएगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ये किसी एक कर्मचारी संगठन का मुद्दा नहीं है, अपितु हर कर्मचारी संगठन की मांग में यह शामिल है। हिमाचल प्रदेश एक कर्मचारी बाहुल्य प्रदेश है और ऐसे में यह तय है कि चुनावी फिज़ा में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा जमकर गूंजने वाला है। पुरानी पेंशन के न होने से प्रदेश के कर्मचारी अपने रिटायरमेंट के बाद के भविष्य की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होती है और जब कर्मचारी ही अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे है तो ऐसे में सरकार के भविष्य पर सवाल खड़े होते हैं। इस वक्त प्रदेश में करीब पौने तीन लाख कर्मचारी है जिनमें करीब एक लाख बीस हजार वो कर्मचारी है जिन्हें नए पेंशन सिस्टम के तहत पेंशन प्राप्त होती है या होगी। पुरानी पेंशन बहाली की मांग को प्रमुखता से उठाने वाला प्रदेश का सबसे बड़ा संगठन नई पेंशन स्कीम कर्मचारी संघ है जिसमें ये अधिकतर कर्मचारी जुड़े हुए है। सिर्फ यही नहीं बल्कि प्रदेश में कई अन्य संगठन भी है जो पेंशन बहाली की इस मांग को मुनासिब मानते है और इसके लिए संघर्षरत है। हिमाचल के राजनैतिक इतिहास की बात करें तो वर्ष 1993 में कर्मचारियों ने अपनी असल ताकत दिखाई थी और विरोध के चलते भाजपा दहाई का अंक भी पार नहीं कर पाई थी। जाहिर है वर्तमान सरकार भी कर्मचारियों की नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मुद्दे पर एनपीएस कर्मचारियों को ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) कर्मचारियों का भी समर्थन मिल रहा है। यह आंदोलन धीरे- धीरे और अधिक उग्र होता जा रहा है और निसंदेह अगले विस चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा हो सकता है। मिशन रिपीट के लिए प्रदेश की जयराम सरकार को इस दिशा में कुछ कारगर कदम उठाने होंगे। यदि सरकार ऐसा करने में कामयाब रही तो लाभ तय है और अगर कदम नहीं उठाए तो नुकसान होना भी तय है। 2004 में केंद्र ने लागू की नई पेंशन योजना साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ कर देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया है। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशी अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिटी कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशी इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल की गई है और एन्युटी राशी कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। इसलिए कर्मचारी नहीं चाहते नई पेंशन स्कीम शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इकट्ठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशी को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानी कि पेंशन की कोई तय राशी नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। विरोध कर रहे कर्मचारियों का मानना है कि उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जो मृत्यु के बाद कर्मचारी के सर्विस बुक में दर्ज नॉमिनी को भी मिला करती थी। अब आश्वासन से काम नहीं चलेगा हिमाचल प्रदेश के दोनों मुख्य राजनैतिक दल यानी कि कांग्रेस और भाजपा पुरानी पेंशन की मांग को जायज भी ठहराते रहे है और इसे पूरा करने का आश्वासन भी देते रहे है। मसला ये है कि विपक्ष में रहते हुए तो दोनों ही इसे कर्मचारियों का अधिकार और हक़ बताते है लेकिन सत्ता में आकर इस मांग को पूरा नहीं करते। पर बीते कुछ समय में यह मुद्दा एक आंदोलन का रूप ले चुका है और ऐसे में दोनों ही दलों के लिए अब इसे ज्यादा लटकाकर रखना संभव नहीं होगा। 2022 चुनाव से पहले जहां सत्तारूढ़ भाजपा पर इस मांग को पूरा करने का दबाव है तो वहीं कांग्रेस को भी इस विषय पर स्पष्ट राय रखनी होगी। नई पेंशन स्कीम लागू होने के बाद केन्द्र में 10 वर्ष कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने शासन किया। जबकि 2014 से भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार का एकछत्र राज है। इसी तरह प्रदेश में दो मर्तबा वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस काबिज रही है और भाजपा का भी दूसरा टर्म है लेकिन किसी भी सरकार ने पुरानी पेंशन की बहाली के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के हर कर्मचारी को पुरानी पेंशन देने के लिए सरकार एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए जो फिलवक्त प्रदेश सरकार की आर्थिक हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता। पेंशन पर कितना खर्च मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के हर कर्मचारी को पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर एकमुश्त अनुमानित व्यय लगभग 2000 करोड़ रुपये होगा। प्रति वर्ष आवर्ती व्यय लगभग पांच सौ करोड़ होने का अनुमान है, जो फिलवक्त प्रदेश सरकार की आर्थिक हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता। इस पर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का तर्क है कि सरकार हर साल अपना और कर्मचारियों का लगभग 1200 करोड़ रुपये की राशी एसबीआई फंड्स प्राइवेट लिमिटेड, एलआईसी पेंशन फंड्स प्राइवेट लिमिटेड और यूटीआई रिटायरमेंट सोल्यूशंस में जमा करती है। ये राशी पीएफआरडीए द्वारा एप्रूव्ड 31 : 35 : 34 के अनुपात में इन तीनों फंड्स में जमा की जाती है। प्रदीप का कहना है कि यदि सरकार डायरेक्ट इन कर्मचारियों को पेंशन देती है तो सरकार के 700 करोड़ रुपये बचेंगे, जो फायदे का सौदा है। नेताओं के लिए क्यों नहीं नई पेंशन स्कीम ? मई 2003 के बाद से माननीयों (सांसद व विधायकों ) को तो पेंशन का लाभ मिल रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी को एनपीएस का झुनझुना थमा दिया गया है। यदि यह योजना इतनी बढ़िया है तो सांसद व विधायकों को भी पेंशन के स्थान पर एनपीएस का ही लाभ देना चाहिए। यदि एक नेता पहले विधायक हो और फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन जाए तो उसे दोनों तरफ से पेंशन मिलती है। इस देश में ये सुविधा सिर्फ और सिर्फ नेताओं को ही उपलब्ध है।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का तकनीकी कर्मचारी संघ की मुख्य मांग जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर के पदोन्नति समय अवधि को 5 वर्ष से 3 वर्ष करने के लिये आभार व्यक्त किया है। साथ ही विद्युत बोर्ड के चेयरमैन आर डी धीमान का भी धन्यवाद किया है जिन्होंने तकनीकी कर्मचारी संघ की इस मांग के बारे में विद्युत बोर्ड की ओर से सही पक्ष रखा। संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने दोनों का आभार व्यक्त किया है। इस बीच हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने विद्युत बोर्ड प्रबंधक को यह पुनः स्मरण करवाया है कि वह तकनीकी कर्मचारी संघ के अन्य ज्वलंत मुद्दों का भी निराकरण करें अन्यथा तकनीकी कर्मचारी संघ विद्युत भवन के प्रांगण में विशाल धरना करेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी विद्युत बोर्ड प्रबंधक वर्ग की होगी। संघ ने विद्युत बोर्ड प्रबंधक वर्ग से यह भी मांग की है कि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को भी जल्द से जल्द पंजाब बिजली विभाग के अनुरूप नए वेतनमान और भत्ते दिए जाएं।
हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम दिया गया है, लेकिन हिमाचल में अभी तक यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है। ऐसे में अध्यापक जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। उन्हें पूरे सेवाकाल में पदोन्नति का अवसर प्राप्त नहीं होता। ऐसे में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पदनाम दिलवाने के लिए लड़ाई अब तेज हो गई है। इस मांग के चलते हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल फिर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर और प्रधान शिक्षा सचिव रजनीश से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने फिर मांग उठाई है कि शास्त्री व भाषा अध्यापकों को जल्द से जल्द टीजीटी का पदनाम दिया जाए। साथ ही चेताया है कि अगर एक महीने के अंदर उनकी मांग पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता हैं, तो फिर उन्हें सख्त कदम उठाना पड़ेगा। परिषद के प्रदेशाध्यक्ष मनोज शैल का कहना है कि शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की यह मांग दशकों से चली आ रही हैं, लेकिन अब तक किसी भी सरकार की ओर से उनको पूरा नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री को इस बात से भी अवगत करवाया गया कि कई अवसरों पर परिषद ने उनसे इस मांग के बारे में अवगत कराया हैं, लेकिन इसके बावजूद यह मांग पूरी नहीं हो पाई है। सरकार से आश्वासन मिला था कि वित्तीय-वर्ष 2021-22 के बजट सत्र में शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की चिरलंबित मांग पूरी करके उन्हें टीजीटी पदनाम दिला दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं भविष्य में जो भी भर्ती की जाए, उन्हें नियमों के आधार पर किया जाए। जैसा सम्मान अंग्रेजी पढ़ाने वालों को मिल रहा है, वैसा ही भाषा अध्यापक और संस्कृति पढ़ाने वालों को भी दिया जाए। भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद नाम दिए जाने की मांग 1985 से चली आ रही है। सरकार को इस पर जल्द से जल्द उचित निर्णय लेना चाहिए।
हिमाचल पेंशनर्स संघ ने जेसीसी की बैठक न करवाने और पेंशनरों की पेंशन में संशोधन न किए जाने पर रोष व्यक्त किया है। संघ ने कहा कि मांगें पूरी न होने के चलते पेंशनरों में रोष है। इन मांगो को लेकर हाल ही में संघ ने एक ज्ञापन उपायुक्त हमीरपुर देवश्वेता बनिक के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को सौंपा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष योगराज शर्मा ने बताया कि प्रदेश सरकार ने अपने पूर्व वक्तव्य में कहा था कि प्रदेश के कर्मचारियों एवं पेंशनरों को जनवरी 2022 से नए वेतनमान, पेंशन प्रदान कर दिए जाएंगे, लेकिन पांच जनवरी को मंत्रिमंडल की बैठक में पेंशनरों की पहली जनवरी 2016 से पेंशन संशोधन के मामले पर विचार न करने पर प्रदेश के पेंशनर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। इसी उपेक्षा का हिम आंचल पेंशनर्ज संघ ने कड़ा संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रदेश के लाखों पेंशनरों के आशीर्वाद की सरकार को आवश्यकता नहीं है। संघ ने मांग की है कि पेंशनरों को पहली जनवरी 2016 से यथाशीघ्र पुनरावृत्ति पेंशन प्रदान की जाए, पेंशनरों के पांच, दस व 15 प्रतिशत पेंशन भत्ता को मूल पेंशन में बदला जाए, पेंशनरों का चिकित्सा भत्ता 1500 रुपए मासिक किया जाए, दो वर्ष के अंतराल में एक मूल पेंशन के बराबर तीर्थ यात्रा सुविधा प्रदान की जाए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने पेंशनरों की समस्याओं एवं मांगों के निदान हेतु यथाशीघ्र कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया, तो पेंशनर्ज अपनी मांगों के समर्थन में सड़कों पर निकलने के लिए बाध्य होंगें, जिसकी जिम्मेदारी सरकारी की होगी।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में छठे वेतनमान की अधिसूचना जारी की गई है। अधिसूचना जारी होने के बाद प्रदेश के कर्मचारियों के बीच इसे लेकर दो धारणाएं बन चुकी है। कुछ कर्मचारी संगठन नए वेतनमान का खुले दिल से स्वागत कर रहे है, तो वहीं कुछ कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष से देय वेतनमान की रिपोर्ट के सरकार द्वारा जारी पे रूल्स और पे मैट्रिक्स उनके लिए राहत नहीं बल्कि परेशानियां लेकर आए है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने करीब दो लाख नियमित कर्मचारियों के लिए नए संशोधित वेतनमान की अधिसूचना जारी की है। इसमें कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए दो विकल्प दिए गए हैं। अधिसूचना के साथ ही कर्मचारियों की अलग-अलग बेसिक पे के हिसाब से पे मैट्रिक्स भी जारी किए गए हैं। कर्मचारियों को नए वेतन आयोग के लिए एक माह में दो में से एक विकल्प चुनना होगा। यदि किसी कर्मचारी ने दो में से एक विकल्प एक माह के अंदर नहीं दिया, तो स्वतः माना जाएगा कि उसने विकल्प चुन लिया है। 6 सालों के इंतज़ार के बाद मिले इस नए वेतनमान में कर्मचारियों को कई विसंगतियां नज़र आ रही है। सरकारी कर्मचारी जिस तरह से छठे वेतनमान से वित्तीय लाभ प्राप्त होने की गणना कर रहे थे, शायद उस तरह के वित्तीय लाभ उन्हें मिलते नहीं दिख रहे। ये ही कारण है कि हिमाचल का कर्मचारी इस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से पूर्ण संतुष्ट नज़र नहीं आ रहा। कर्मचारियों का कहना है की 6 वर्ष तक कर्मचारियों की बकाया राशी का जो ब्याज सरकार ने कमाया, ये लाभ उसके भी बराबर नही लग रहा। नए पे स्केल पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने कर्मचारियों की प्रतिक्रिया जानी और पाया कि एक बड़ा कर्मचारी वर्ग नए पे स्केल से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। यानी कर्मचारियों को उम्मीद से कम मिला है।कर्मचारियों को अपना संशोधित वेतनमान लेने के लिए केवल दो ही विकल्प दिए गए हैं। अगर वे वर्ष 2009 के नियमों को चुनते हैं तो उन्हें 31 दिसंबर, 2015 की बेसिक पे को 2.59 के फैक्टर से गुणा करना होगा। अगर वर्ष 2012 को चुनते हैं तो 2.25 फैक्टर को अपनाना होगा। अगर कोई अधिकारी/कर्मचारी 2009 के नियमों को आधार बनाकर लाभ लेना चाहता है और उसने 2012 के वेतन संशोधन का लाभ नहीं लिया है तो 31 दिसंबर 2015 को उसकी बेसिक पे पर फैक्टर 2.59 लगेगा। इसमें भत्ते और अन्य लाभ अलग से शामिल होंगे। वहीं अगर कोई कर्मचारी वर्ष 2012 के पुनर्संशोधन को आधार बनाकर नए वेतनमान का लाभ लेना चाह रहा है तो उसके लिए दो विधियां लगाई जाएंगी। पहली विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 को लिए वेतन को आधार बनाएंगे तो बेसिक वेतन में फैक्टर 2.25 लगाया जाएगा। या फिर दूसरी विधि के अनुसार 31 दिसंबर 2015 की नोशनल पे को आधार बनाया जाएगा। ये विकल्प कर्मचारियों को दिए ज़रूर गए है लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया गया है। प्रदेश के कर्मचारी लगातार ये मांग कर रहे थे की उन्हें वेतन वृद्धि का ये तीसरा विकल्प भी दिया जाए परन्तु ऐसा नहीं हुआ। राज्य के सरकारी कर्मचारियों की नाराज़गी का एक बड़ा कारण 4-9-14 जैसी एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन स्कीम का लाभ खत्म होना भी है। तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद हो गए है। इसे बंद करने को लेकर राज्य सरकार का तर्क है कि पंजाब में भी एक कमेटी बनाकर टाइम स्केल को सस्पेंड कर दिया है। जब यह कमेटी पंजाब में रिपोर्ट देगी और उसके बाद यदि पंजाब सरकार टाइम स्केल को बहाल करेगी, तो हिमाचल सरकार भी इस बारे में विचार कर सकती है। इससे पहले भी यही प्रक्रिया रखी गई थी। बता दें कि एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन स्कीम पे-कमीशन का पार्ट नहीं होती। इसके बावजूद इस बार एक अलग नोटिफिकेशन के जरिए इसे पे कमीशन से जोड़ दिया गया है। इसके बंद होने से सर्विस के चार, नौ और चौदह साल पूरे करने पर कर्मचारियों को मिलने वाला इन्क्रीमेंट अब नहीं मिल पाएगा। नाराज़गी का एक और कारण डीए कम मिलना भी है। प्रदेश में अधिकारीयों को डीए 31 प्रतिशत और कर्मचारियों को 28 प्रतिशत ही मिल पाया है। कुछ कर्मचारियों का ये भी मानना है की इस पे स्केल से सिर्फ उन कर्मचारियों को फ़ायद होगा जिनका वेतन पहले से ज्यादा है। कम वेतन वाले कर्मचारियों को इसमें कोई लाभ नहीं होने वाला। एनपीए घटने से नाखुश है प्रदेश के चिकित्सक नए वेतनमान में प्रदेश के चिकित्सकों को मिलने वाला एनपीए घटा दिया गया है। नॉन प्रैक्टिस अलाउंस हिमाचल में स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य शिक्षा विभाग, आयुर्वेद विभाग और पशुपालन विभाग के डॉक्टरों को मिलता है। एनपीए को 25 प्रतिशत से घटा कर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया है। इस पर भी शर्त लगाई गई है की यह बेसिक प्लस एनपीए मिलकर 218600 रुपए प्रति माह से ऊपर नहीं जाना चाहिए। नए वेतनमान में जारी इस बदलाव को लेकर प्रदेश के चिकित्सक खासे नाराज़ है। हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ के प्रदेश प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ राजेश राणा व प्रदेश महासचिव डॉ पुष्पेंद्र वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ वेतन आयोग की सिफारिशों से खासा नाखुश है। उन्होंने कहा की प्रदेश सरकार ने वादा किया था की वे डॉक्टरों के नॉन प्रैक्टिस अलाउंस को पंजाब की तर्ज पर कम नहीं करेंगे पर अब इसे कम कर दिया गया है। लेकिन आगे नॉन प्रैक्टिस अलाउंस के बारे में अधिसूचना जारी करते हुए बेसिक प्लस एनपीए की लिमिट को पंजाब से भी कम करते हुए 218000 कर दिया जो कि पंजाब में 237600 है। संघ ने सरकार से पूछा है की यहां क्यों पंजाब की सिफारिश को दरकिनार किया गया। संघ का आरोप है की यह प्रदेश के चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। डॉ पुष्पेंद्र वर्मा का कहना है की प्रदेश के चिकत्सक सरकार के इस दोगले रवैय से खासे नाराज़ है और इसे अपने प्रति एक अन्याय पूर्ण फैसला मान रहे है। चिकित्सक संघ 4-9-14 के टाइम स्केल पर कैंची चलने से भी नाराज़ है। संघ ने कहा कि बरसों बरसों तक चिकित्सकों की तरक्की का एकमात्र विकल्प 4-9-14 टाइमस्केल ही था जो चिकित्सकों को इस सरकारी नौकरी की तरफ आकर्षित कर रहा था और उनके प्रमोशन ना होने पर उनको दिलासा भी दे रहा था लेकिन इस पर कैंची चलाना चिकित्सकों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। छोटे कर्मचारियों की उम्मीदों पर फेरा पानी नई पेंशन स्कीम कर्मचारै महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि नए वेतनमान में बहुत सारी विसंगतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना बहुत आवश्यक है l जहां एक ओर अधिकारी वर्ग को वेतनमान से 20 हजार या इससे अधिक वेतन वृद्धि हो रही है l वही छोटे कर्मचारियों की उम्मीदों पर नए वेतनमान ने पानी फेरा है l सरकार को जल्द से जल्द सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए त्रुटियों को दूर करना चाहिए l नियमितीकरण तिथि से मिले संशोधित वेतनमान प्रदेश स्कूल लेक्चरर संघ के प्रदेश प्रधान केसर सिंह ठाकुर का कहना है कि सरकार ने कर्मचारी हित में दो विकल्प जारी कर उनको अपनाने की स्वतंत्रता दी है। ये कर्मचारी हित का सराहनीय फैसला है। हिमाचल स्कूल लेक्चरर संघ ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। साथ ही हम मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि नए वेतनमान के निर्धारण में 2016 व उसके बाद अनुबंध से नियमित हुए प्रवक्ताओं को संशोधित वेतनमान नियमितीकरण की तिथि से दिया जाए। इन प्रवक्ताओं को दो साल का नियमित सेवाकाल पूरा करने पर 5400 रुपये ग्रेड पे प्रदान किया गया है जिससे नए वेतन निर्धारण में भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। 15 प्रतिशत वेतन वृद्धि का विकल्प भी लागू हो गैर शिक्षक कर्मचारी महासंघ का कहना है कि वे प्रदेश सरकार के छठे वेतनमान से नाराज़ है और चाहते है कि सरकार इसमें मौजूद विसंगतियां दूर करे। संघ के प्रधान कुलदीप चंद्र ने कहा कि वेतन आयोग की सिफारिशों में बहुत विसंगतियां हैं, इस कारण गैर शिक्षक को इसका कोई लाभ नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने सार्थक पहल नहीं की तो संघ आंदोलन से गुरेज नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि हमारी मांगों में 2.25 का फैक्टर देना है तो 10300-3200 का स्केल पार कर गए कर्मचारियों की फिटमेंट टेबल के अनुसार हो तथा जो कर्मचारी 10300 -3200 में नहीं आए उनके लिए भी व्यवस्था सरकार की ओर से की जाए, साथ ही 15 प्रतिशत वेतन वृद्धि के विकल्प को भी लागू किया जाए। लिपिकों को किया जा रहा शोषित लिपिक महासंघ का कहना है कि नए वेतनमान में लिपिक वर्ग से भेदभाव किया गया है। द्रंग प्रथम के अध्यक्ष विनोद जसवाल व जोगिन्द्र नगर के अध्यक्ष रवि बरवाल ने कहा कि 2006 से 2011 तक लिपिकों को कम ग्रेड पे से शोषित किया जा रहा था। उन्होंने प्रदेश सरकार से पंजाब की तर्ज पर 15 प्रतिशत वेतन के विकल्प पर विचार करने की मांग की। जेबीटी शिक्षकों को मिले पंजाब की तर्ज पर स्केल जेबीटी शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष हेमराज ठाकुर का कहना है कि पूर्व में 2012 के स्केल में भी प्राथमिक शिक्षकों के साथ भेदभाव किया गया था तथा अभी तक प्रदेश में जेबीटी वर्ग के अलग-अलग दो स्केल प्रदान किए जा रहे हैं। प्रदेश के जेबीटी शिक्षकों को पंजाब की तर्ज पर स्केल नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश सरकार और वित्त विभाग को पंजाब वेतन आयोग या पंजाब सरकार के वेतन के आधार पर ही जेबीटी शिक्षकों के स्केल हिमाचल में जल्द निर्धारित करें। वेतन विसंगतियां दूर न हुई तो आंदोलन करेंगे। पशु चिकित्सकों के आर्थिक हितों का हुआ नुकसान प्रदेश वेटरनरी आफिसर्ज एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश सरकार को पशु चिकित्सकों के लिए अधिकतम मूल वेतन में वृद्धि, एनपीए को 25 प्रतिशत करने और एसीपीएस को बहाल करने पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। प्रदेश वैटरिनरी ऑफिसर्ज एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष डा. नीरज मोहन और महासचिव डा. मधुर गुप्ता ने हिमाचल सरकार से नए वेतनमान में मूल वेतन जमा एनपीए तय सीमा जो कि दो लाख 18 हजार को पंजाब में दिए गए वेतनमान के बराबर करने की मांग की है। उन्होंने कहा की नए वेतनमान में तय की गई सीमा से हिमाचल के पशु चिकित्सकों के आर्थिक हितों का नुकसान हुआ है। लाखों कर्मचारियों में निराशा : नरेंद्र प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है की प्रदेश सरकार को पंजाब-पे कमीशन को पूर्णतय: लागू करना चाहिए ताकि कर्मचारियों को पे कमीशन का पूरा लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों से पंजाब के छठे वेतन आयोग के लागू होने का हिमाचल प्रदेश के लाखों कर्मचारी इंतजार कर रहे थे और उम्मीद थी कि उनके वेतनमान को पंजाब पे कमीशन की रिपोर्ट अनुसार लागू किया जाएगा। पांच जुलाई, 2021 को छठे पंजाब पे कमीशन की अधिसूचना जारी होने के साथ ही हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भी इसी वेतन आयोग के अनुसार अपने वेतनमान में वृद्धि होने की आस थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने पंजाब पे कमीशन को अपने हिसाब से तोड़ कर लागू किया है। इसके कारण लाखों कर्मचारियों में निराशा है। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीश गर्ग का कहना है की इस नए पे स्केल से सबसे अधिक नुकसान अनुबंध से नियमित हुए कर्मचारियों का ही हुआ है। 2012 में पंजाब में जो पे कमिशन की सिफारिशें कर्मचारियों के लिए तत्काल प्रभाव से लागू की गई उनको हिमाचल में अनुबंध से नियमित होने के 2 सालों के बाद से दिया गया। जो कर्मचारी 2016 या उसके बाद नियमित हुए हैं उनकी माँग है कि उनकी पे फिक्सेशन मे 2.59 फैक्टर के साथ एनहांस्ड ग्रेड पे मे भी 2.25 का विकल्प 2016 से दिया जाए जैसा की बाकी सभी नियमित कर्मचारियों को दिया जा रहा है। नाराज़गी के तीन बड़े कारण -पंजाब की तर्ज पर सीधे 15 फीसदी वेतन वृद्धि वाला तीसरा विकल्प नहीं दिया - तीन जनवरी, 2022 से 4-9-14 के लाभ कर्मचारियों को मिलना बंद - कम डीए मिलना भी नाराजगी का कारण
प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने एक स्वर में उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग की है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ ने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से काम तो सभी विभाग लेते हैं, पर उन्हें कभी भी वक्त पर उसका मानदेय नहीं मिलता। उन्हें मात्र 7500 और सहायकों को 4500 रुपए पर जीवन गुजर-बसर करना पड़ता है, जो कि इस महंगाई के दौर में बहुत कम है। इस वेतन में गुज़ारा करना इन कर्मचारियों के लिए संभव नहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से भी ये मांग की है की उनके मानदेय में शीघ्र बढ़ोतरी की मांग को सरकार के समक्ष उठाया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ का कहना है कि आंगनबाड़ी केंद्र के लिए ग्रामीण हल्के में मात्र 750 रुपए किराया निर्धारित किया गया है, जो कि बहुत ही कम है ,इसे बढ़ाया जाना चाहिए। इसके साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने बहुत मेहनत करके प्री प्राइमरी कक्षाओं का संचालन शुरू किया था, परंतु अब सरकार एनटीटी अध्यापकों की भर्ती करके उनके साथ अन्याय करने जा रही है। संघ ने शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से इस विषय में उचित कदम उठाने का आग्रह किया है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ का कहना है कि कोरोना काल में सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा कोविड योद्धा के रूप में फ्रंटलाइन पर कार्य किया गया, परंतु न तो उन्हें इसके लिए कोई प्रोत्साहन राशि दी गई और न ही फ्रंट लाइन कोविड कार्यकर्ताओं का दर्जा दिया गया। इससे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हताश हैं। संघ की अध्यक्ष ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरकार की विभिन्न योजनाएं टीकाकरण, पल्स पोलियो, वोटर लिस्ट सर्वे, जन्म-मृत्यु पंजीकरण सहित जनगणना के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं लेकिन आंगनबाड़ी में सेवाएं दे रहीं कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग वे कई बार कर चुके हैं लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई पहल नहीं की गई है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि आंगनबाड़ी के स्टाफ को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन 18,000 और सहायिकाओं को नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता संघ की वरिष्ठ उपप्रधान योग रानी का कहना है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी स्कूलों में तैनाती के साथ पदनाम भी दिया जाए। ये है तीन मुख्य मांगे - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को न्यूनतम वेतन 18,000 और सहायिकाओं को नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाए - आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी स्कूलों में तैनाती के साथ पदनाम भी दिया जाए
हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच ने प्रदेश सरकार से उनकी मांगों को जल्द पूरा करने की गुहार लगाई है। सेवानिवृत कर्मचारियों का कहना है की इस उम्र में सरकार उनका हक़ उनकी पेंशन उन्हें समय पर न देकर उनके साथ बड़ा अन्याय कर रही है। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेश महामंत्री रूप चंद शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द मंच की लंबित मांगों को पूरा करें अन्यथा आगामी विधानसभा चुनाव में इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए सरकार तैयार रहे। उन्होंने दो टूक कहा कि अभी तक मंच की मांगों को सरकार और निगम प्रबंधन अनसुना करता आया है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी वहां पर परिवहन के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को तमाम तरह की सुविधाएं मिल रही है लेकिन प्रदेश सरकार यह सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए कुछ नहीं कर रही। प्रदेश महामंत्री ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार वहां पर राजस्थान परिवहन निगम को रोडवेज का दर्जा दिया गया है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के सभी देय भत्ते ट्रेजरी के माध्यम से ही मिलते हैं, लेकिन केंद्र और प्रदेश में डबल इंजन की कहलाने वाली भाजपा सरकार परिवहन निगम से सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सुध तक नहीं ले रही है। उन्होंने कहा की ये सब ज़्यादा समय तक नहीं चलेगा यदि सरकार उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं करती तो वे उसे चुनाव के समय जवाब देंगे।
27 नवंबर 2021 को हुई जेसीसी की बैठक में कई घोषणाएं हुई। कर्मचारियों के खिले हुए चेहरे ये स्पष्ट दर्शा रहे थे कि अर्से बाद एक बड़ी राहत उन्हें मिली है। मगर कुछ चेहरे तब भी मायूस थे क्यूंकि उनकी मांगें अब भी अधूरी थी। इन कई अधूरी मांगों में से एक मांग है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग। ये मांग तो जेसीसी की बैठक में पूरी नहीं हो पाई थी मगर इसे पूरा करने के लिए कमेटी के गठन का आश्वासन ज़रूर कर्मचारियों को दिया गया था। ये आश्वासन अब तक आश्वासन ही है, हकीकत नहीं बन पाया। इस बेरुखी से कर्मचारी वर्ग में खासी नाराज़गी है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सेनिओरिटी के विषय में कमेटी का शीघ्र गठन करने और उसमें हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के सदस्यों को शामिल करने का आग्रह किया। संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग,का कहना है कि जेसीसी की बैठक में सेनिओरिटी के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी के गठन की घोषणा हुई थी, लेकिन जेसीसी की मीटिंग के एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी कमेटी का गठन नहीं हुआ है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सरकार से सवाल किया है कि कमेटी गठन में एक महीने से अधिक समय लगने का क्या कारण है। कब इसकी बैठक होगी और कब यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। संघ का कहना है कि सरकार को तुरंत कमेटी का गठन करना चाहिए ताकि समय रहते इसकी सिफारिशों पर अमल हो सके। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार 2008 में पहली बार लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ चयन बोर्ड द्वारा भर्ती एवम पदोनित नियमों के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारियों को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया गया। कमीशन और बैच के आधार पर नियुक्त यह कर्मचारी सभी नियमों और सेवा शर्तों को पूरा करके नियुक्त हुए हैं। इसलिए इनकी सर्विसेज को प्रोमोशन और अन्य सेवालाभों के लिए नियुक्ति की तिथि से गिना जाए, ना कि नियमितीकरण की तिथि से। पूर्व में भी सरकार ने एडहॉक और टेन्योर बेसिस पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवाओं को प्रोमोशन के लिए योग्य माना है तो अनुबंध पर दी गई सेवाओं को क्यों योग्य नही माना जा रहा ? संघ का कहना है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं जो कि अन्याय है। कर्मचारियों ने कहा कि उनका चयन भर्ती एवम पदोनती नियमों के अनुसार हुआ है इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। हम पूरे नियमों के अंतर्गत नियुक्त हुए हैं, तो सरकार हमे पहले दिन से सरकारी कर्मचारी माने नाकि नियमितीकरण की तिथि से। उन्होंने कहा कि यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है इसलिए सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे। कमेटी में संगठन के सदस्यों को करें शामिल हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय कुमार, प्रदेश प्रवक्ता विजय राणा, सचिव सुशील चंदेल, मोहन ठाकुर, प्रेस सचिव राकेश चौहान, प्रेमपाल पठानिया, आईटी सेल हेड संदीप चंदेल, जिला कांगड़ा अध्यक्ष सुनील पराशर, हमीरपुर जिलाध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार, चम्बा जिलाध्यक्ष राजेंदर पॉल, मंडी जिला अध्यक्ष कृष्ण यादव, ऊना जिलाध्यक्ष संजीव बग्गा, शिमला जिलाध्यक्ष नंद लाल ने सामुहिक रूप से मांग की है कि सेनिओरिटी के लिए बनाई जा रही कमेटी में संगठन के सदस्यों को भी शामिल किया जाए ताकि वे अपनी मांग के समर्थन में उपयुक्त तथ्य प्रस्तुत कर सकें।
प्रदेश पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता संघ ने मुख्याध्यापक से प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति में राइडर को न फॉलो करने पर रोष जताया है। संघ के अनुसार मुख्याध्यापक से प्रधानाचार्य पद की पदोन्नति पर इस वर्ग का 117 पदों का बैकलॉग चल रहा था। सरकार उसे शीघ्र भरने वाली भी थी, लेकिन स्कूली प्रवक्ता के एक वर्ग द्वारा सरकार को गुमराह करने पर अब जानकारी मिल रही है कि प्रवक्ता वर्ग से 100 व मुख्य अध्यापक पद वर्ग से भी 100 पद ही भरे जा रहे हैं। अगर विभागीय आंकड़ों को देखा जाए, तो 31 दिसंबर तक 190 प्रधानाचार्य मुख्य अध्यापक वर्ग से तथा 105 प्रवक्ता वर्ग से सेवानिवृत्त हुए हैं। अगर 117 के बैकलॉग को शामिल किया जाए, तो गत मार्च से लेकर दिसंबर तक स्कूली प्रधानाचार्य के 277 पद मुख्याध्यापक कोटे के खाली चले हुए हैं। इस प्रकार स्कूली प्रधानाचार्य के कुल 313 खाली पदों में से प्रवक्ता वर्ग के कोटे के मात्र 36 पद ही बनते हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति में कहीं भी राइडर की अनुपालना नहीं की जा रही है। प्रदेश पदोन्नत स्कूल प्रवक्ता संघ का आरोप है कि स्कूली प्रवक्ता का एक वर्ग सरकार से अपनी नजदीकी का नाजायज फायदा उठाकर 26000 के टीजीटी काडर के हितों पर कुठाराघात कर रहा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष यशवीर जम्वाल, अध्यक्ष कोर कमेटी केवल ठाकुर, मुख्य संरक्षक हरीमन शर्मा, महासचिव कमल किशोर शर्मा, कोषाध्यक्ष मदन लाल शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष संदीप डडवाल, प्रदेश संयुक्त वित्त सचिव प्रीतम कौशल, प्रधान जिला बिलासपुर यशपाल रनौत, प्रधान सोलन नरेंद्र ठाकुर, प्रधान कांगड़ा प्रदीप धीमान, प्रधान मंडी दर्शन राणा, कुल्लू मनोज, चंबा मनोज, ऊना विवेक दत्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हमीरपुर रविदास शर्मा, विक्रम वर्मा, अजय नंदा सहित अन्य पदाधिकारियों व सदस्यों ने सरकार से मांग की है कि उनके कोटे के खाली सभी पदों को सरकार अति शीघ्र भरें।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर व प्रदेश महामंत्री नेक राम ठाकुर ने संघ की मांगे पूरी न होने पर रोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि विद्युत बोर्ड का वर्तमान प्रबंध निकम्मा साबित हो गया है। उन्होंने कहा कि इनसे न कर्मचरियों के मसले सरकार के पास सही से रखे जा रहे है और न ही विद्युत बोर्ड की सही स्थिति सरकार के समक्ष रही जा रही है। उन्होंने कहा कि 22 दिसम्बर को नादौन में तकनीकी कर्मचारी संघ की कार्यसमिति में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि बोर्ड प्रबंधक को 15 दिनों का नोटिस दिया जाए, अगर विद्युत बोर्ड प्रबंधक इस समयावधि में तकनीकी कर्मचारी संघ द्वारा उठाए गए बिंदुओं का समाधान करने में असमर्थ रहता है तो 11 जनवरी को विद्युत मुख्यालय के प्रांगण में विशाल धरना दिया जाएगा। उसके बाद भी अगर बोर्ड प्रबंधक वर्ग की आंखे नहीं खुली तो उसी दिन से क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की जाएगी।
आयुर्वेदिक विभाग के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों ने प्रदेश सरकार के प्रति रोष प्रकट किया है। इन कर्मचारियों का कहना है कि प्रदेश सरकार घोषणाएं तो करती है मगर वो घोषणाएं हकीकत नहीं बन पाती। हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ का कहना है कि साल 2017 में हिमाचल प्रदेश कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि जिन कर्मचारियों का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया है, उन्हें नियमित किया जाएगा। इसके बाद 27 नवंबर 2021 को भी प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जिन कर्मचारियों का 4 वर्ष का दैनिक वेतन भोगी रूप में कार्य पूरा चुका होगा उनको नियमित किया जाएगा, लेकिन आयुर्वेद विभाग में अब भी ऐसे कर्मचारी है जो 12 वर्ष का पार्ट टाइम व 9 वर्ष दैनिक वेतन भोगी कार्यकाल पूर्ण कर चुके है, परन्तु अब तक नियमित नहीं हुए। हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ का कहना है कि आयुर्वेदिक विभाग में कर्मचारी 21 वर्ष से अधिक सेवा देने के उपरांत भी दैनिक वेतन भोगी पद पर ही रिटायर हो रहे है। ये चिंता का विषय है। हिमाचल प्रदेश के दैनिक मजदूर कई बार प्रदेश सरकार से नियमितीकरण की फरियाद कर चुके हैं, लेकिन इन कर्मचारियों को इनका हक़ नहीं मिल पाया है। प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते 21 वर्ष की सेवा देने के उपरांत भी आयुर्वेदिक विभाग के इन कर्मचारियों को नियमित करने के लिए कोई भी सराहनीय कदम नहीं उठाया गया है। इन कर्मचारियों को आयुर्वेद विभाग में नियमित करने की बजाय इनका शोषण हो रहा है। हम पर भी सरकार मेहरबान हो : तरसेम प्रदेश की भाजपा सरकार खुद को गरीब मजदूरों की हितैषी सरकार बताती है, लेकिन असल में प्रदेश के गरीब मजदूर के सथ अन्याय हो रहा है। बाकी कर्मचारियों की तर्ज पर ही हम पर भी सरकार मेहरबान हो। प्रदेश के आयुर्वेदिक विभाग में कार्यरत कर्मचारियों को प्रदेश सरकार के बनाए हुए नियमों के आधार पर बिना किसी शर्त से नियमित करने के आदेश जारी किये जाए ताकि इन कर्मचारियों का शोषण न हो। -तरसेम कुमार, प्रदेश अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग चतुर्थ कर्मचारी संघ।
जेसीसी के फाइनल मिनिट्स सामने आने से शिक्षक वर्ग में निराशा है। शिक्षक वर्ग से जुड़े मुख्य सौ मुद्दों में से इक्का-दुक्का मुद्दों को ही जेसीसी में जगह मिली थी, जिसमें शिक्षक वर्ग से जुड़ी मांगें पूर्ण नहीं हुई हैं। शिक्षकों की अलग जेसीसी भी नहीं है। प्रदेश सरकार ने बजट सत्र के बाद शिक्षकों के मामले हल करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया था जिसके मुखिया प्रदेश के मुख्य सचिव हैं। वर्ष 2021 खत्म होने को है मगर हाई पावर कमेटी की शिक्षक संघों से वार्ता तक आयोजित नहीं हुई है। ऐसे में 70 हजार सरकारी शिक्षकों की मांगें कब पूर्ण होंगी, ये सवाल टीजीटी कला संघ ने प्रदेश सरकार से पूछा है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कौशल ने कहा कि हाई पावर कमेटी की पहली बैठक दो दिसंबर को भी आयोजित नहीं हो सकी थी और इसके बाद भी शिक्षक संगठनों को अब तक अपना एजेंडा जमा करने और हाई पावर कमेटी की बैठक के लिए नहीं बुलाया गया है। जेसीसी में वेतन आयोग का अनुसरण केवल पे स्केल में करने के लिए कहा गया, जबकि सबसे अधिक आर्थिक नुकसान एचआरए आठ प्रतिशत पंजाब तर्ज पर न देना है। एरियर कैसे मिलेगा, इसकी रूपरेखा नहीं बताई गई। साथ ही 55 वर्ष आयु के बाद प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा की शर्त हटानी बाकी है। पुरानी पेंशन बहाली मामला भी एक कमेटी के हवाले है। ऐसे में शिक्षक वर्ग के अनेक अन्य मामले न चर्चा में रखे गए थे और न ही उन पर काम शुरू हुआ। इसी तरह प्रदेश में पांच प्रतिशत डीए अब तक नहीं मिला और केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर अतिरिक्त तीन प्रतिशत डीए भी अभी घोषित नहीं हुआ है।
हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज न करने की मांग की है। संघ के अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर ने बताया कि अगर इस बार प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो प्रवक्ता संघ इसका कड़ा विरोध करेगा। संघ के अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नति में प्रवक्ताओं को उनकी संख्या के अनुपात में बहुत कम अवसर प्राप्त हो रहे हैं। बड़े लंबे समय से प्रवक्ता संघ प्रवक्ताओं का पदोन्नति कोटा बढ़ाने की लगातार मांग कर रहे हैं। वे चाहते है की प्रधानाचार्य के पदोन्नति कोटे का अनुपात 95:5 किया जाए। प्रवक्ताओं का तर्क है कि प्रधानाचार्यों की पदोन्नति के लिए दो ही फीडिंग काडर हैं। इनमें स्कूली प्रवक्ता और उच्च विद्यालयों में कार्यरत मुख्याध्यापक शामिल हैं। इनका कहना है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के लिए इन दोनों फीडिंग काडर की वास्तविक संख्या के आधार पर पदों का बंटवारा होना चाहिए। संघ के पदाधिकारियों के अनुसार प्रवक्ताओं को पदोन्नति में हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। प्रधानाचार्य के रूप में होने वाली पदोन्नतियों सूचियों में मुख्य अध्यापकों की संख्या बहुत अधिक रहती है जबकि प्रवक्ताओं को पदोन्नति सूचियों में बहुत कम स्थान प्राप्त होते है। 27 मार्च को जारी सूची में 96 मुख्य अध्यापकों को प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत किया गया था जबकि केवल 45 प्रवक्ताओं को ही पदोन्नत किया गया था। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने चेतावनी दी है कि अगर इस बार प्रधानाचार्य के रूप में होने वाले प्रमोशन में प्रवक्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है या विभाग द्वारा सिर्फ मुख्य अध्यापकों को ही प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत किया जाता है और प्रवक्ताओं को प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नत करने के लिए सूची नहीं निकाली जाती है, तो संघ इसका कड़ा विरोध करेगा। संघ इस संबंध में संघर्ष करने में किसी भी तरह का कोई गुरेज नहीं करेगा जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी विभाग की होगी। सीएम की घोषणा तीन साल बाद भी लागू नहीं हुई हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा प्रवक्ताओं का पदोन्नति कोटा बढ़ाने की घोषणा के बावजूद विभाग की ओर से उस पर कार्रवाई नहीं की गई है। संघ के अनुसार 23 नवंबर 2018 को पालमपुर में आयोजित प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के राज्यस्तरीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 10 प्रतिशत कोटा बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन, घोषणा के तीन वर्ष बाद भी यह लागू नहीं हो पाई है, जो प्रवक्ता वर्ग के साथ बहुत बड़ा धोखा है। इनका आरोप है कि प्रदेश की नौकरशाही लगातार इसके बारे में भेदभाव कर रही है।
महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ ने प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ ने कहा कि 205 पदों पर भर्ती व पदोन्नति नियमों के आधार पर सिर्फ प्रशिक्षण प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तैनाती नहीं की गई तो सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। संघ की उपप्रधान सुदर्शना ने कहा कि प्रदेश में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की संख्या करीब 6000 है। वे प्रशिक्षण के बाद भी घर बैठी हैं। उनके लिए भी कोई योजना बनाई जाए। सरकार नियमों के आधार पर अगर प्रशिक्षण प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तैनाती नहीं दे सकती है तो जगह-जगह खोले गए इन प्रशिक्षण संस्थानों को भी तत्काल बंद करें। वर्ष 2018 में स्वास्थ्य विभाग के तहत 205 बहुउद्देशीय महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पदों को भरने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स से आवेदन मांगे गए थे, लेकिन कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर ने भर्ती एवं पदोन्नति नियमों को ताक पर रख कर फीमेल हेल्थ वर्कर्स के साथ जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की आवेदकों के आवेदनों को भी स्वीकार कर लिया गया। उनका दावा है कि बीते 15 सितंबर को घोषित किए परिणाम में 95 फीसदी अभ्यर्थी जीएनएम व बीएससी नर्सिंग के ही उत्तीर्ण हुए हैं। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ ने कहा कि प्रदेश में प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स की संख्या 6000 है, ये सारी महिलाएं इन दिनों बेरोजगार हैं। उन्होंने सरकार से मांग है कि जिस तरह पैरामेडिकल स्टाफ को 50 फीसदी बैचवाइज रखा जा रहा है उसी तरह एनएम महिलाओं को भी 50 फीसदी बैचवाइज रखा जाए। उन्होंने कहा कि हम पिछले कई सालों से अपने हक के लिए लड़ रही हैं, लेकिन प्रदेश सरकार हमारी मांगों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है। सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानती है तो वह आने वाले चुनावों का बहिष्कार करेंगी। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि आरएंडपी रूल्स के आधार पर प्रशिक्षण प्राप्त फीमेल हेल्थ वर्कर्स की तैनाती की जाए।
'भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर कर्मचारी वर्ग की मांगें पूरी कर रही है, मगर हमें तो मानों सरकार अपना कर्मचारी समझती ही नहीं है ' जयराम सरकार से ये शिकवा है प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे 1421 कंप्यूटर शिक्षकों का। इनका प्रतिनिधित्व कर रहे कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि सरकारी स्कूलों में तैनात कंप्यूटर शिक्षक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। 20 सालों तक लगातार संघर्ष करने के बावजूद भी कंप्यूटर शिक्षकों की मांगें पूरी नहीं हो पाई है। पिछले करीब दो दशक से कम्प्यूटर अध्यापक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कम्प्यूटर अध्यापकों के लिए नीति नहीं बनाई है। इनका कहना है कि सरकार हर वर्ग को राहत पहुंचा रही है, मगर इन्हें नहीं। सरकार करुणामूलक आधार पर नौकरियां दे रही है, कर्मचारियों को नया पे स्केल दे रही है, पीस मील वर्कर को कॉन्ट्रैक्ट पर ला रही है, मगर एमएससी एमसीए पास और 20 साल से सेवारत इन शिक्षकों के साथ मांगों पर अमल नहीं कर रही। राज्य के सरकारी स्कूलों में 1354 कम्प्यूटर शिक्षक शिक्षा दे रहे हैं तथा समस्त शिक्षक आर एंड पी नियमों का अनुसरण करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत कम्प्यूटर शिक्षक 45 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। कंप्यूटर शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि जब उक्त कम्प्यूटर शिक्षक नौकरी पर लगे थे तो उनका वेतन मात्र 2400 रुपए था और 20 सालों के बाद 13000 तक पहुंचा है। अब भी प्रदेश सरकार वेतन बढ़ाने तक ही पहुंची है। कम्प्यूटर शिक्षक इतने कम वेतन पर बच्चों की पढ़ाई के साथ परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पा रहे हैं तथा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की कि कंप्यूटर शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित किया जाए ताकि प्रदेश के कंप्यूटर शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो सके। बार-बार बढ़ा दिया जाता है एक्सटेंशन साल 2001 में सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू की गई थी और इसका जिम्मा कंपनी को सौंपा गया था। कंपनी की एक्सटेंशन को बार-बार बढ़ा दिया जाता है। कंप्यूटर शिक्षक संघ का कहना है कि आज दो दशक बीत जाने के बाद भी कंपनी की ओर से उनका शोषण ही किया जा रहा है। कंप्यूटर शिक्षक लगातार सरकार से नियमितीकरण की मांग करते आ रहे हैं लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हो पाई है। पक्ष अब धैर्य टूट रहा है। कंप्यूटर शिक्षक अब इतिहास दोहराने की तैयारी में है। मांग पूरी न हुई तो शिक्षक सड़कों पर उतर आएँगे। सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा -राजेश शर्मा, प्रेस सचिव, कंप्यूटर शिक्षक संघ।
करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक़ नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृहरक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। सरकार आज तक इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में है। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे है। ऋण ले लेकर कर्मचारियों को खुश किया जा रहा है, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है, जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। होमगार्ड एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से होमगार्ड के लिए स्थायी नीति बनाने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने राज्य हाल ही में स्तरीय बैठक का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता एसोसिएशन अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने की और गृहरक्षकों को उनका हक़ दिलाने के लिए रणनीति बनाई। हिमाचल होमगार्ड एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने कहा कि प्रदेश में एक-दो विधायकों को छोडकऱ किसी भी विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की बात आज तक नही सुनी है। उन्होंने कहा कि 58 वर्षों से होमगार्ड जवान सरकार से होमगार्ड जवानों के लिए अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह ठोस नीति बनाने व 12 माह का स्थायी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज कर रही है। होमगार्ड जवान सभी विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक को मांगपत्र सौंप चुके है, मगर आज तक किसी ने उनकी नहीं सुनी। जोगिंद्र सिंह ने बताया की विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी महज नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री व चंबा सदर हलके के विधायक पवन नैय्यर ने होमगार्ड जवानों की बात की, जबकि किसी अन्य विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की मांग नहीं उठाई। जोगिंद्र सिंह ने बताया की इतना ही नहीं कोरोना संकट में सेवाएं देने के लिए विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की सरकार द्वारा खूब प्रशंसा की गई मगर होमगार्ड जवानों का कोई नाम तक नहीं लिया गया । महिला सशक्तिकरण के नारे तो बहुत दिए जा रहे हैं परंतु अस्पतालों में तैनात की गई महिला होमगार्ड जवानों की सेवाएं अब अस्पतालों में खत्म कर दी गई हैं। होमगार्ड जवानों की ठेका प्रथा के अनुरूप सेवाएं लेते हुए कभी होमगार्ड जवानों को पुलिस, कभी वन विभाग तो कभी अन्य विभागों के साथ अटैच किए जाने के बाद संबंधित विभागों का काम पूरा हो जाने के बाद घर पर बिठा दिया जाता है। स्थायी रोजगार न होने व ठोस नीति न होने के कारण होमगार्ड जवानों सहित उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। सेवानिवृत्ति के बाद खाली हाथ घरों को लौटने पर होमगार्ड जवानों को दिहाड़ी मजदूरी करके परिवारों का भरण पोषण करना पड़ता है। लिहाजा सरकार प्रदेश में सेवारत होमगार्ड जवानों से न्याय करते हुए उन्हें जल्द 12 माह का स्थायी रोजगार दे। वहीं होमगार्ड जवानों के लिए ठोस नीति बनाए। मोरारजी देसाई के न्रेतत्व में हुई थी स्थापना गृह रक्षक को मूल रूप से 1946 में बॉम्बे प्रांत में बनाया गया था। किसी भी अप्रिय स्थिति में नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेना, नौसेना, वायु सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के अलावा, जुड़वां स्वैच्छिक संगठन-नागरिक सुरक्षा और गृह रक्षक-को बनाया गया था। इसलिए, हर साल 6 दिसंबर को पूरे देश में संगठन के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस दिन 1946 में, बॉम्बे प्रांत में हो रहे नागरिक विकारों और सांप्रदायिक दंगों की उथल-पुथल के दौरान पुलिस के सहायक के रूप में प्रशासन की सहायता के लिए नागरिक स्वैच्छिक बल के रूप में, स्व. पुर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के न्रेतत्व में गृह रक्षक टुकड़ी की स्थापना की गई थी। कभी भी छिन्न जाता है रोज़गार गृहरक्षकों की मांगों को सरकार तक पहुँचाने के लिए गृहरक्षक संगठन की स्थापना छह दिसंबर 1962 को हुई थी। तब से लेकर गृहरक्षक पुलिस बल के साथ सहयोग के अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के समय बचाव कार्यो में योगदान दे रहे हैं। मगर अब तक इनकी समस्याओं का हल नहीं हो पाया है। दरअसल गृहरक्षकों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं है जिसके चलते इनके रोज़गार की कोई तय अवधि नहीं होती, समय और ज़रूरत के हिसाब से इनकी सेवाएं ली जाती है। गृहरक्षकों को कई बार सेवाओं में भी ब्रेक दी जाती है, जिसके बाद इन्हें घर पर बैठना पड़ता है। अगर ड्यूटी नहीं लगी तो फिर वेतन भी नहीं मिल पाता है। गृहरक्षक थानों व चौकियों से लेकर कई विभागों में कानून व्यवस्था की सेवाएं दे रहे हैं। इनमें राष्ट्रपति आवास, हाईकोर्ट, राजभवन, जेलें, विजिलेंस, सीआइडी, शिक्षा विभाग, मंदिर, एफसीआइ, स्वास्थ्य संस्थान, ट्रेजरी, उपायुक्त कार्यालय, पर्यटन आदि विभाग शामिल हैं। प्रदेश से बाहर के राज्यों में भी इनकी चुनाव में ड्यूटी लगाई जाती है मगर सब सिर्फ ज़रूरत के हिसाब से। गृहरक्षकों ने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी मगर अब तक कुछ हल नहीं निकला। सेवानिवृति के बाद बिगड़ती है स्थिति सेवानिवृत्ति के बाद गृहरक्षकों की हालत और बदतर हो जाती है। इन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर अन्य वित्तीय लाभ और पेंशन नहीं मिलती। इन्हें पेंशन सिर्फ मृत्यु की स्थिति में मिलती है। यदि अपनी सेवाओं के दौरान किसी गृहरक्षक की मृत्यु हो जाए तो उसके परिवार को पेंशन दी जाती है, पर कोई गृहरक्षक सही सलामत सेवानिवृत होता है तो उसके लिए पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अतिरिक्त एक भी अवकाश नहीं है। भविष्य निधि, चिकित्सा प्रतिपूर्ति, हाउस लोन जैसे कई सुविधाएं उन्हें नहीं दी जाती है। जनजातीय क्षेत्रों में कार्यरत एक आईएएस अधिकारी से लेकर मनरेगा मजदूर को जनजातीय भत्ता मिलता है, लेकिन होमगार्ड जवान इससे महरूम है। सरकारी कर्मचारी की अन्य कोई सुविधाएं भी इन्हें नहीं मिल पाती ज़ाहिर है की ऐसी परिस्थितिओं में परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो जाता है। ये है मुख्य मांग गृहरक्षकों की प्रमुख मांग है कि सरकार उनके लिए नियमितीकरण की नीति बनाए। पंजाब व हरियाणा की तरह वेतन देने की व्यवस्था की जाए। इन्हें संशोधित वेतनमान से वंचित रखा गया है। गृहरक्षकों को 1900 रुपये ग्रेड पे जबकि पुलिस कर्मियों की ग्रेड पे 3200 रुपये है, इन विसंगतियों को भी ठीक किया जाए। ड्यूटी के दौरान होमगार्ड जवान की मौत हो जाने पर पंजाब की तर्ज पर होमगार्ड जवान के परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए।
हिमाचल पथ परिवहन निगम की वर्कशॉप में तैनात डिप्लोमा और बिना डिप्लोमा प्राप्त सभी पीसमील वर्कर अनुबंध पर आएंगे। पांच साल सेवाएं देने वाले डिप्लोमा प्राप्त वर्कर जूनियर तकनीशियन की श्रेणी में आएंगे, जबकि 6 साल का अनुभव प्राप्त बिना डिप्लोमा प्राप्त वर्करों को टायरमैन और वाशरमैन बनाया जाएगा। इस महीने के अंत तक इन्हें अनुबंध पर लाया जाएगा। बता दें कि हिमाचल में पीसमील वर्करों की संख्या करीब 900 है। ये सभी कर्मचारी वर्कशॉप में सेवाएं दे रहे हैं। बसों की मरम्मत से लेकर बसों की साफ-सफाई करने का जिम्मा इन पर है। इनमें कई वर्कर ऐसे हैं, जिन्हें सेवाएं देते 8 से 10 साल हो गए हैं, लेकिन इन्हें 10 हजार के करीब मानदेय मिलता है। अब अनुबंध पर आने से इन्हें फायदा होगा। दो साल का अनुबंध कार्यकाल पूरा होने के बाद यह नियमित होंगे।
पेयजल योजनाओं को संचालित कर रहे ठेकेदार के माध्यम से रखे गए आउटसोर्स कर्मचारि वेतन न मिलने से परेशान चल रहे है। अपने मासिक वेतन का भुगतान समय पर करवाने की मांग को लेकर आउटसोर्स कर्मचारी राज्य विद्युत बोर्ड इंप्लाइज यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह खरवाड़ा के नेतृत्व में हमीरपुर उपयुक्त देवश्वेता बनिक से भी मिला । उपायुक्त को ज्ञापन सौंपकर समस्या के स्थायी समाधान की मांग की गई है। इन आउटसोर्स कर्मचरियों का कहना है की इन्हें करीब आठ माह से वेतन नहीं मिला है। मात्र पांच से छह हजार वेतन पर रखे कर्मचारियों को परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो गया है। वेतन का समय पर भुगतान होने व स्थायी नीति बनने से कर्मचारियों को राहत मिलेगी। खरवाड़ा ने कहा कि विभाग प्रति कर्मचारी 12 से 14 हजार रुपये का भुगतान करता है लेकिन कर्मियों को सिर्फ पांच से छह हजार मासिक वेतन दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नीति बनानी चाहिए। वेतन विसंगति को दूर करने का भी प्रावधान हो। वेतन की अदायगी सीधे कर्मियों के बैंक खाते में की जाए। इससे जहां वेतन प्राप्त करने वालों के पास वेतन अदायगी का प्रूफ होगा वहीं ठेकेदार के पास भी अदायगी का रिकार्ड रहेगा। इससे पहले भी जल शक्ति विभाग नादौन तथा धनेटा के तहत आउटसोर्स कर्मचारी मांगों के समर्थन में उपायुक्त को ज्ञापन सौंप चुके हैं। इसके बाद इन्हें कुछ महीने के वेतन की अदायगी की गई लेकिन अभी भी कई महीनों के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। मामला प्रशासन के ध्यान में लाने के बाद ठेकेदारों ने नौकरी से निकालने तक की धमकी भी दी है।
मुख्यमंत्री ने जेसीसी की बैठक में कर्मचारियों के लिए अनुबंधकाल को तीन साल से घटाकर दो साल करने की घोषणा की थी, लेकिन सरकार द्वारा अनुबंध को घटाकर तीन साल करने के संंदर्भ में अभी तक आधिकारिक अधिूसचना जारी नहीं हुई है। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी संगठन ने मांग उठाई है कि सरकार अनुबंधकाल को घटाने के बारे में जल्द से जल्द आधिकारिक अधिसूचना जारी करे। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी संगठन का कहना है कि प्रदेश के वर्तमान में लगभग 6000 अनुबंध कर्मचारी चिंतित व निराश हो रहें हैं। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के राज्य कार्यकारिणी के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार नड्डा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, कार्यकारी महासचिव सुनील कुमार शर्मा, वित्त सचिव अविनाश कुमार सैणी और मीडिया सचिव राकेश ठाकुर ने मुख्यमंत्री तथा कार्मिक विभाग से यह अपील की है कि अधिसूचना जल्द जारी की जाए तथा वित्तीय और वरिष्ठता लाभ 30 सितंबर 2021 को दो वर्ष का अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले कर्मचारियों को पहली अक्तूबर 2021 से ही दिए जाएं।
प्रदेश के जेबीटी प्रशिक्षु अब आर पार की लड़ाई मूड में है। हिमाचल हाईकोर्ट की ओर से जेबीटी भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को भी पात्र बनाने के फैसले पर हिमचाल के जेबीटी प्रशिक्षु नाराज़ चल रहे है। इस मसले पर सरकार जेबीटी प्रशिक्षुओं के पक्ष में ज़रूर नज़र आई थी मगर अब मानों ये मसला सरकारी दफ्तरों में पड़ी फाइलों की तरह धुल खाने लगा है। फैसला आने के बाद प्रदेश सरकार ने दोबारा रिव्यू पेटिशन डालने की बात कही थी लेकिन अब जेबीटी संघ ने प्रदेश सरकार पर देरी बरतने के आरोप लगाए हैं। इन प्रशिक्षुओं का कहना है की सरकार के ढीले रवैय के कारण ही जेबीटी के 40000 छात्र तथा उनके परिवारों को ये दंज झेलना पड़ रहा है। बता दें की हाल ही में प्रदेश हाईकोर्ट शिमला ने जेबीटी भर्ती मामलों पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि शिक्षकों की भर्ती के लिए एनसीटीई की ओर से निर्धारित नियम एलिमेंटरी शिक्षा विभाग के साथ अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग पर भी लागू होते हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने याचिकाओं को स्वीकारते हुए प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह 28 जून, 2018 की एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार जेबीटी पदों की भर्ती के लिए नियमों में जरूरी संशोधन करे। कोर्ट के इस फैसले से अब जेबीटी पदों के लिए बीएड डिग्री धारक भी पात्र होंगे। कोर्ट के इस फैसले से जेबीटी डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ बेहद खफा है। संघ का कहना है की 30 नवंबर को जेबीटी के सभी छात्रों ने हिमाचल प्रदेश सचिवालय के सामने अपनी आवाज रखने के लिए संकेतिक धरना दिया जिसमें जयराम ठाकुर तथा शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर ने जेबीटी छात्रों को आश्वस्त किया की प्रदेश सरकार जेबीटी के साथ है और बहुत जल्द इस फैसले पर रिव्यु डाल दिया जाएगा या सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जाएगी। इस बात से सभी जेबीटी छात्र आश्वस्त हो गए की प्रदेश सरकार कुछ ना कुछ जरूर करेगी लेकिन हमेशा की तरह यह भी एक लारा ही लग रहा है। प्रशिक्षुओं का कहना है कि न तो प्रदेश सरकार ने अभी तक रिव्यू डाला है और ना ही सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है। बेरोजगार संघ ने प्रदेश सरकार से कहा है की वे पिछले 4 सालों से सरकार पर विश्वास जताए हुए है। परन्तु उन्हें अब तक सिर्फ धोका मिला है। संघ ने कहा कि जो लोग सरकार पर भरोसा करते है उन्हें सिर्फ धोखा ही दिया जाता है और जो लोग उग्र प्रदर्शन करते हैं उनकी मांगे पूरी कि जाती है। उन्होंने सरकार को चेताया कि यदि सरकार उचित कदम नहीं उठाएगी शिमला में जेबीटी के सभी साथी उग्र आंदोलन करेंगे और आंदोलन होता रहेगा जब तक उन्हें अपना हक नहीं मिल जाता। क्या है मांग संघ का कहना है कि बीएड को जेबीटी का लाभ देना उनके हकों के साथ खिलवाड़ है। यदि ऐसा ही करना था तो इनकी दो साल की पढ़ाई का क्या औचित्य रहेगा। अपने हकों के लिए जेबीटी प्रशिक्षु प्रदेश के हर कोने में जमकर गरज रहे है। इन प्रशिक्षुओं की मांग है की बीएड वालों को जेबीटी का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो जेबीटी को समय पर इनके प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा। प्रदेश में 40 हजार युवाओं ने जेबीटी और डीएलएड डिप्लोमा किया हुआ है। भर्ती में देरी की वजह से उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है। यदि बीएड भी जेबीटी भर्ती के लिए पात्र माने जाते हैं, तो उनका नंबर ही नहीं आएगा। भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में बदलाव होने से जिला के डाइट संस्थान व निजी शिक्षण संस्थानों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसके साथ ही बीएड अभ्यर्थी भी जेबीटी पदों में आएंगे, तो उनका नंबर कई सालों बाद आएगा। ऐसे में मांग की जा रही है कि आरएंडपी रूल्स से कतई छेड़छाड़ न की जाए। दिल्ली एनसीटीई से भी मिले प्रशिक्षु जेबीटी प्रशिक्षुओं की तरफ से रवि नेगी, रोहित रमन टेगता, अभिषेक ठाकुर, ओमकार ठाकुर, मोहित ठाकुर दिल्ली एनसीटीई से भी मिले हैं। एनसीटीई के चेयरमैन संतोष सारंगी का कहना है कि जेबीटी का रिजल्ट जोधपुर हाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार निकला जा सकता हैं। फिलहाल उस निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय से स्टे नही लगा हैं। संघ का कहना है कि कई विकल्प है परन्तु हिमाचल प्रदेश सरकार हमेशा की तरह हर मुद्दे पर लेट होती हैं और जब वह मुद्दा उनके हाथ से निकल जाता है तब जागती है। प्रदेश के छात्र पहले भी कई बार विभाग से मिले और उन्होंने कई बार आग्रह किया कि इस विसंगति को समय रहते दूर किया जाए लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। जिस कारण नतीजा आपके सामने है। संघ का कहना है कि ये सिर्फ जेबीटी छात्रों के हित की बात नहीं है लेकिन प्रदेश सरकार की इज्जत और सम्मान की बात भी है। सरकार ने जेबीटी का पक्ष लिया और कोर्ट में सरकार हार गई जबकि इसके उलट राजस्थान, गुजरात, केरल तमिलनाडु, दिल्ली ने अपने छात्रों को न्याय दिलाया। संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि समय रहते हुए यहां सरकार कभी संजीदा नहीं हुई जिसका खामियाजा प्रदेश के छात्रों को भुगतना पड़ता रहा हैं। जेबीटी प्रशिक्षु रवि नेगी का कहना है कि अगर सरकार समय रहते हुए उचित कदम नहीं उठाएगी तो अब लड़ाई आर-पार की होगी।
आखिर सरकार को पीस मिल कर्मचारियों पर रहम आ ही गया। 20 दिन की हड़ताल और कई सालों के निरंतर संघर्ष के बाद सरकार ने पीसमील वर्करों को अनुबंध पर लाने की घोषणा की है। हिमाचल पथ परिवहन निगम के निदेशक मंडल की बैठक में पीसमील वर्कर के लिए योग्यता निर्धारित की गई है। जिस पीसमील वर्कर ने आईटीआई पास की है और पांच साल का अनुभव है और नॉन आईटीआई वालों के पास छह साल का अनुभव है उनकी योग्यता बनती है। सभी वैकेंसी के हिसाब से अनुबंध पर लिए जाएंगे। 1 दिसंबर 2021 तक पीसमील वर्कर के 663 पद खाली हैं और योग्य पीसमील वर्कर 755 हैं। 1 दिसंबर 2021 से 663 पीसमील वर्करों को अनुबंध पर लिया जाएगा। इसी के साथ ये भी फैसला लिया गया कि करूणामूलक नौकरी तीन माह के भीतर दी जाएगी। क्लास थ्री और क्लास फोर पोस्ट पर इन्हें लगाया जाएगा। बता दें कि पीस मिल वर्कर टूल डाउन हड़ताल कर रहे थे और उनके समर्थन में हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) के तकनीकी कर्मचारी भी उतर आए थे। इससे प्रदेश भर में एचआरटीसी की 28 वर्कशॉप में एक हजार बसें बिना मरम्मत खड़ी हो गई थी। एचआरटीसी ने कई रूटों को क्लब कर दिया था और करीब 200 रूट ठप हो गए थे, जिससे यात्रियों की दिक्कतें बढ़ गई थी। प्रदेश में परिवहन व्यवस्था चरमराने लगी थी, मगर समय रहते सरकार ने मुद्दे को सुलझाने के लिए एक पहल की। सरकार की इस पहल का कर्मचारियों ने स्वागत किया है। हिमाचल प्रदेश में साल 2008 से पीस मिल वर्करों की भर्ती की जा रही है, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। उस वक्त इन कर्मचारियों के लिए 8 साल के बाद अनुबंध पर लाने की पालिसी बनाई गई थी। यानी 8 सालों तक सेवाएं देने के बाद इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाया जाता था और अनुबंध काल पूरा होने के बाद इन्हें बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति दी जाती थी। तदोपरांत पिछली सरकार में परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार आईटीआई डिप्लोमा धारकों को 5 साल बाद और गैर डिप्लोमा धारकों को 6 वर्षों के बाद अनुबंध पर लेने की नीति बनाई गई। कायदे से होना भी ऐसा ही चाहिए लेकिन जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में ये अवधि पूरी कर चुके लोगों को कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति नहीं दी। इसीलिए ये कर्मचारी लगातार संघर्ष कर रहे थे। सरकार ने इन कर्मचारियों को पहले भी आश्वासन दिए थे मगर मांग पूरी नहीं हो पाई थी। सरकार के साथ हुई पहले की बातचीत के दौरान आश्वासन दिया गया था कि इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने के लिए नीति बनाई जाएगी। इसके लिए 25 नवंबर तक का समय भी दिया गया था, लेकिन 25 नवंबर तक नीति नहीं बनी। कर्मचारियों की इस मांग के संबंध में 18 अक्तूबर 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव परिवहन के साथ हुई वार्ता में अक्तूबर 2021 के अंत तक इसके बारे में निर्णय लेने का आश्वासन मिला था। इसके उपरांत 16 नवंबर 2021 को प्रबंध निदेशक के साथ हुई बैठकमें 26 नवंबर तक मामले को अंतिम रूप देने बारे आश्वासन मिला था। परिवहन मंत्री द्वारा समय-समय पर कर्मियों के साथ बैठक इन्हें अनुबंध पर लाने का आश्वासन दिया गया। परंतु हर स्तर पर अनेक बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया था। अब घोषणा हुई है, उम्मीद है कि सरकार इसे जल्द पूरा करेगी।
विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है, और कर्मचारियों की अनसुनी फरियादों की लम्बी फेहरिस्त सरकार के सामने है। उम्मीदें बेतहाशा है और अपनी -अपनी मांगों को लेकर कर्मचारी संगठन नेताओं से मिलने की कवायद में जुटे है। जयराम राज में एक ऐसी ही अनसुनी फ़रियाद है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग। इसे लेकर वर्षों से चला आ रहा संघर्ष अब भी जारी है। जेसीसी की बैठक में नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता मांगने वाले कर्मचारियों को वरिष्ठता तो नहीं मिल पाई थी, पर इसके लिए कमेटी के गठन का आश्वासन ज़रूर मिला था। अब कर्मचारियों को कमेटी के गठन का इंतज़ार है। दरअसल, आश्वासन तो लम्बे वक्त से मिलते ही आ रहे है सो अब कर्मचारी चाहते है कि तुरंत एक्शन हो। चुनाव अब नजदीक है और हाल फिलहाल सरकार के ग्रह भी रूठे -रूठे से दिखे है, सो कोशिश ये ही है कि सरकार पर दबाव बनाया जाएँ, और आशा ये है कि सरकार अब आश्वासन से आगे निकल एक्शन ले। बहरहाल विधानसभा के शीतकालीन सत्र में हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को पूरा करवाने हेतु एक बार फिर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से सर्किट हाउस धर्मशाला में मिला। संगठन ने कमेटी के गठन की घोषणा के लिए सीएम का आभार जताया, साथ ही ये भी याद दिलाया कि अभी सिर्फ घोषणा ही हुई है। संगठन ने कमेटी में हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के सदस्यों को शामिल करने की मांग भी की। दरअसल ये मसला शुरू हुआ 2008 में, जब बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, जो संगठन के अनुसार सरासर गलत है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और अब आने वाले समय में 2 वर्ष में कर्मचारी नियमित होंगे। ऐसे में ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। मान सम्मान का विषय, सीएम से हुई सकरात्मक बातचीत : गर्ग हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष मुनीष गर्ग और जिलाध्यक्ष सुनील पराशर का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। कर्मचारियों ने कहा कि उनका चयन भर्ती एवम पदोन्नति नियमों के अनुसार हुआ है इसलिए उनके अनुबंध की सेवा को उनके कुल सेवाकाल में जोड़ा जाना तर्कसंगत है। यह प्रदेश के 70 हजार कर्मचारियों के मान सम्मान से जुड़ा विषय है। सरकार जल्द इस मांग को पूरा करे। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि उनकी मुख्यमंत्री से सकारात्मक माहौल में बातचीत हुई। प्रतिनिधिमंडल में जिलाध्यक्ष सुनील पाराशर,प्रदेश सचिव संदीप सकलानी, मनदीप,सुरेंद्र, कप, अश्विनी, शम्मी कुमार, शशि, विमल सागर दीपक भगसेन ,अनूप ,पवन, कुशल सहित अन्य शामिल रहे। आस : धूमल का वादा जयराम पूरा करेंगे ! जाती हुई सरकार की बात मत सुनो आती हुई सरकार की मानो, ये शब्द थे पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के l 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री ने सुजानपुर में ये वादा किया था l वादा था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगा l जयराम सरकार के चार साल में इस विषय में कुछ नहीं हुआ, पर हाल ही में हुई जेसीसी बैठक में सरकार ने कमेटी गठित करने की बात कही है l इसके बाद कर्मचारियों में कुछ आशा जरूर जगी है। अब कर्मचारी चाहते है कि जल्द कमेटी गठित हो और मांग को पूरा किया जाए l
पुलिस कांस्टेबल के परिवारों के बाद अब होमगार्ड के जवानों के परिवार भी सड़कों पर आकर प्रदर्शन करने को मजबूर होने लगे है। होमगार्ड विभाग की महिला कर्मचारियों को आज भी मातृत्व अवकाश का लाभ और प्रसूति अवधि के वेतन का लाभ नहीं मिल रहा है। इन महिला कर्मचारियों का कहना है की यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां भारत सरकार 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओं' का नारा बुलंद करती रही है वहीँ कुछ विभाग मातृत्व अवकाश का लाभ भी नहीं दे रहे। इनका कहना है कि यह हर महिला का अधिकार है और इसका लाभ सभी को मिलना चाहिए। निजी संगठनों और कंपनियों द्वारा भी मातृत्व लाभ दिया जाता था लेकिन यह बहुत दुखद है कि हिमाचल प्रदेश का होमगार्ड विभाग महिलाओं को मातृत्व लाभ नहीं दे रहा है। सिर्फ यही नहीं इन कर्मचारियों की और भी कई लंबित मांगें है जिनको लेकर हाल ही में होमगार्ड के जिला अध्यक्ष विजय धर्माणी की अध्यक्षता में एक प्रतिनिधिमंडल खाद्य आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग से मिला। इस दौरान उन्हें समस्याओं के बारे में अवगत कराकर स्थायी नीति बनाने के लिए आग्रह किया। जिला अध्यक्ष ने बताया कि मंत्री ने उनकी समस्याओं को सुना और आश्वासन दिया कि वह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष समस्याओं को उठाकर उनको हल करवाने का प्रयास करेंगे। उधर, हिमाचल होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन के राज्य प्रचार सचिव विजय कुमार राणा ने बताया कि हमने हिमाचल प्रदेश के हर जिले से सभी विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री को अपनी समस्याओं से अवगत कराया है। सरकार को बने हुए चार साल हो चुके हैं लेकिन आज तक किसी ने भी हमारे बारे में कुछ भी नहीं सोचा। उन्होंने कहा कि अभी तक गृहरक्षक महिलाओं को मातृत्व अवकाश से भी वंचित रखा जा रहा है, जबकि अन्य सभी विभागों में सभी महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश दिया जाता है। राणा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश के सभी विभागों के लिए पॉलिसी बनाई जा रही है। हम लोग भी पॉलिसी बनाने की आस लगाए बैठे हैं। कहा कि उन्हें सरकार से उम्मीद है कि उनकी समस्याओं का हल होगा।
हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने सरकार के प्रति गहरा रोष व्यक्त किया है। संगठन ने सरकार को चेतावनी दी है कि प्रदेश सरकार जल्द उन्हें वार्ता के लिए बुलाए और परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारियों की मांगें पूरी करें, अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे। हिमाचल परिवहन सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण मंच के प्रदेश अध्यक्ष बलराम पुरी ने कहा कि कल्याण मंच ने गत 25 जुलाई को मुख्यमंत्री व निगम प्रबंधन को एक मांग पत्र दिया था और अगस्त में होने वाले विधानसभा सत्र में धरना प्रदर्शन करने का नोटिस भी दिया था, जिस पर मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षर युक्त पत्र द्वारा मंच को जानकारी दी कि सरकार आपकी मांगों पर विचार कर रही है और धरना-प्रदर्शन न करें तथा आपको जल्द वार्ता के लिए बुलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि अब कल्याण मंच द्वारा मुख्यमंत्री को इस बारे दो बार स्मरण पत्र दिए गए, लेकिन उन्हें अभी तक वार्ता के लिए नहीं बुलाया गया, जिसके लिए पेंशनरों में सरकार के प्रति रोष है। उन्होंने कहा कि गत 17-18 नवंबर को मंडी में प्रदेश अधिवेशन व 30 नवंबर को हमीरपुर में प्रदेश संचालन समिति ने यह प्रस्ताव पारित किया है कि अगर सरकार हमारी मांगों को हल नहीं करती और वार्ता के लिए नहीं बुलाती है, तो आगामी बजट सत्र शिमला में मंच विधानसभा के सामने प्रदर्शन करेगा और इनका प्रदर्शन अनिश्चितकाल तक जारी रहेगा। ये है मांगें - पेंशन के लिए बजट की समस्या का स्थायी हल -पेंशन हर माह के प्रथम सप्ताह में दी जाए - 2016-2017 से से सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को उनकी ग्रेच्युटी व लीव-इनकैशमेंट का भुगतान 31 दिसंबर से पहले हो - महंगाई भत्ते का बकाया 2015 से 2021 तक हो जो 46 प्रतिशत बनता है व आठ प्रतिशत अंतरिम राहत है, उसको जारी किया जाए - 2016 से लागू किए जाने वेतनमान को सरकार के कर्मचारियों को दिया जाए - 65, 70, 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके पेंशनरों को क्रमश: पांच, दस व 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर की जाए - संशोधित वेतनमान को पेंशन में जोड़ा जाए
20 सालों तक लगातार संघर्ष करने के बावजूद आज भी कंप्यूटर शिक्षकों की मांगें पूरी नहीं हो पाई है। पिछले करीब दो दशक से कम्प्यूटर अध्यापक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कम्प्यूटर अध्यापकों के लिए नीति नहीं बनाई है। केवल आश्वासन देकर वोट लेने का काम किया है। यह कहना है कम्प्यूटर अध्यापक शिक्षक संघ हमीरपुर का। इनका कहना है कि प्रदेश सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों के बारे में नीति बनाने की बात कर रही है, लेकिन फैसला नहीं ले रही है। हर बार फैसले को टाला जा रहा है। राज्य के सरकारी स्कूलों में 1354 कम्प्यूटर शिक्षक शिक्षा दे रहे हैं तथा समस्त शिक्षक आर एंड पी नियमों का अनुसरण करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत कम्प्यूटर शिक्षक 45 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि जब उक्त कम्प्यूटर शिक्षक नौकरी पर लगे थे तो उनका वेतन मात्र 2400 रुपए था और 20 सालों के बाद 13000 तक पहुंचा है। अब भी प्रदेश सरकार वेतन बढ़ाने तक ही पहुंची है। कम्प्यूटर शिक्षक इतने कम वेतन पर बच्चों की पढ़ाई के साथ परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पा रहे हैं तथा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की कि कंप्यूटर शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित किया जाए ताकि प्रदेश के कंप्यूटर शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो सके। बार-बार बढ़ा दिया जाता है एक्सटेंशन साल 2001 में सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू की गई थी और इसका जिम्मा कंपनी को सौंपा गया था। कंपनी की एक्सटेंशन को बार-बार बढ़ा दिया जाता है। इनका कहना है कि आज दो दशक बीत जाने के बाद भी कंपनी की ओर से उनका शोषण ही किया जा रहा है। कंप्यूटर शिक्षक लगातार सरकार से नियमितीकरण की मांग करते आ रहे हैं लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हो पाई है।
हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड के कर्मचारी बिजली संशोधन बिल 2021 का विरोध करने लगे है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश बिजली कर्मचारी यूनियन ने बिजली संशोधन बिल 2021 को संसद के इस शीतकालीन सत्र में चर्चा में लाने के विरोध में प्रदर्शन किया है। यहीं नहीं प्रधानमंत्री को प्रदेश सरकार के माध्यम से ज्ञापन भी भेजा गया। बोर्ड मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन कर नारेबाजी की गई। राज्य बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक पंकज डडवाल के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा गया। इस बिल का विरोध करने की अपील की गई। यूनियन महासचिव हीरा लाल वर्मा ने कहा इस बिजली कानून को केंद्र सरकार द्वारा बिजली बोर्ड के निजीकरण के उद्देश्य से लाया जा रहा है। इससे बिजली बोर्ड के मुनाफे वाले क्षेत्र निजी हाथों में चले जाएगा और सब्सिडी खत्म हो जाएगी। इससे बिजली उपभोक्ताओं की बिजली दरें बढ़ने से अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इस सांकेतिक धरने के माध्यम से केंद्र सरकार को सचेत किया गया कि यदि केंद्र सरकार समय रहते इस बिजली बिल को वापस नहीं लेती तो बिजली कर्मचारी और अभियंता की समन्वय समिति दिल्ली में सत्याग्रह करेगी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार से मांग है कि बिजली कानून में व्यापक बदलाव वाले इस विधेयक को जल्दबाजी में पारित करने के बजाय इसे संसद की बिजली मामलों की स्थाई समिति के पास भेजा जाना चाहिए और समिति के सामने बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों को अपने विचार रखने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश बिजली कर्मचारी यूनियन का कहना है कि विद्युत अधिनियम 2003 में उत्पादन का लाइसेंस समाप्त कर बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन का निजीकरण किया गया, जिसके परिणामस्वरुप देश की जनता को निजी घरानों से बहुत महंगी बिजली की मार झेलनी पड़ रही है। अब बिजली (संशोधन) बिल 2021 के जरिये बिजली वितरण का लाइसेंस लेने की शर्त समाप्त की जा रही है, जिससे बिजली वितरण के पूरी तरह से निजीकरण का रास्ता साफ हो जाएगा। इस बिल में प्रावधान है कि किसी भी इलाके में एक से अधिक बिजली कंपनियां बिना लाइसेंस लिए कार्य कर सकेंगी और बिजली वितरण के लिए यह निजी कंपनियां सरकारी वितरण कंपनी का मूलभूत ढांचा और नेटवर्क इस्तेमाल करेंगी। निजी कंपनियां केवल मुनाफे वाले औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को ही बिजली देंगी जिससे सरकारी बिजली कंपनी की आर्थिक हालत और खराब हो जाएगी।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का आभार व्यक्त किया है। संघ का कहना है कि मुख्यमंत्री ने तकनीकी कर्मचारियों की मांगों को प्राथमिकता देते हुए उनका समय-समय पर निदान किया है जिसमें जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर की पदौन्नति समय अवधि 5 वर्ष से घटाकर तीन वर्ष करना है। मुख्यमंत्री ने दो बार आधिकारिक घोषणा की है, इसके साथ ही भारतीय मजदूर संघ की बैठक में भी बोर्ड प्रबंधन को इसके एक सप्ताह में अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर ने कहा कि अभी भी अधिकारी इसकी अधिसूचना करने में जानबूझ कर विलंब कर रहे है ताकि प्रदेश सरकार की कर्मचारियों के बीच में छवि खराब हो। उन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वह बोर्ड प्रबंधन को तकनीकी कर्मचारियों की अन्य मानी हुई मांगों को भी तुरंत पूरी करें। इनमें मुख्यतः एस एस ऐ नॉन आई टी आई से जे ई सब स्टेशन की समय अवधि 10 वर्ष से 5 वर्ष करना, सहायक लाइनमैन से लाइनमैन की पदौन्नति समय अवधि 4 वर्ष से 2 वर्ष करना, इलेक्ट्रीशियन, फिटर, स्टोर कीपर व हेल्पर सब स्टेशन की ग्रेड पे विसंगति दूर करना, सब स्टेशन व उत्पादन विंग में तकनीकी कर्मचारियों को मोबाइल भत्ता देना, मिनी माइक्रो पावर हाउस में कार्यरत कर्मचारियों को पदोन्नति लाभ देना, एम एन्ड टी व पावर हाउस में कार्यरत नॉन आई टी आई इलेक्ट्रीशियन की पदोन्नति समय अवधि 10 वर्ष से 7 वर्ष करना व बर्फीले क्षेत्रों में स्नो किट उपलब्ध करवाना इत्यादि है।
जेसीसी के बाद से हिमाचल में कर्मचारियों के मसलों पर खूब सियासत हो रही है। कर्मचारी हितेषी बनने के लिए पक्ष और विपक्ष में होड़ सी लगी हुई है। कोई मांगें पूरी कर खुद को कर्मचारी हितेषी बता रहा है, तो कोई कर्मचारियों की आवाज़ बन कर। मंज़िल एक ही है बस रास्ता अलग है। कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला यानी की पुरानी पेंशन की बहाली तो मानो नेताओं के रडार पर है। आए दिन ओपीएस को लेकर किसी न किसी नेता का ब्यान वायरल हो जाता है। जहां कांग्रेस कर्मचारियों के लिए भाजपा सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रही है, वहीं भाजपा सरकार बार -बार कांग्रेस को ये याद दिला रही है कि प्रदेश में ओपीएस उन्हीं की सरकार की देन है। हाल ही में सामने आए अपने एक बयान में कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया ने न सिर्फ कांग्रेस पर कर्मचारियों को गुमराह करने के आरोप लगाए, बल्कि कर्मचारियों को ये याद भी दिलाया की उनकी समस्या का बीजारोपण कांग्रेस द्वारा ही किया गया था। एनपीएस कर्मचारी हो या पुलिस कर्मचारियों इन सभी को इस परिस्थिति में पहुंचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि ओल्ड पेंशन की बात करें तो सबसे पहले हिमाचल ने ही कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देना बंद किया था, उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मुकेश तब मंत्री थे और अब राजनीति कर रहे हैं। उस समय क्यों कुछ नहीं किया। उन्होंने ये भी कहा चुनावी वर्ष है इसलिए विपक्ष के नेता व विक्रमादित्य झूठी बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस केवल झूठ फरेब की राजनीति कर रही है। विक्रमादित्य को नहीं पता कि पिता ने कहां साइन किए। अब कम से कम झूठ बोल कर कर वीरभद्र सिंह की आत्मा को दुखी न करें। सिर्फ वन मंत्री राकेश पठानिया ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का भी कुछ ऐसा ही मानना है। वे भी अपने भाषण के दौरान ये कह चुके है। उधर, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री केंद्र की तत्कालीन अटल सरकार की ओर से पुरानी पेंशन स्कीम खत्म करने का आरोप लगा कर मौजूदा सरकार को घेरने का प्रयास करते है तो वहीं सीएम जयराम ठाकुर का कहना है कि केंद्र ने तो इस स्कीम को 2004 में बदला, लेकिन हिमाचल की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे 2003 में ही हिमाचल में लागू कर दिया था। बहरहाल कर्मचारियों की ये महत्वपूर्ण मांग सिर्फ सियासत का मसला बन कर रहेगी या सरकार इस मुद्दे पर सचमें अमल करेगी ये बड़ा सवाल है। 2004 में केंद्र ने लागू की नई पेंशन योजना साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया है। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिटी कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल कि गई है और एन्युटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। इसलिए कर्मचारी नहीं चाहते नई पेंशन स्कीम शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इकट्ठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानि पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। विरोध कर रहे कर्मचारियों का मानना है की उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर ने प्रदेश के कर्मचारी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने तकनीकी कर्मचरियों की मांगों को प्राथमिकता देते हुए उनका समय-समय पर निदान किया है। जिसमें जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर की पदौन्नति समयावधि 5 वर्ष से घटा कर तीन वर्ष करना है। प्रदेश अध्यक्ष में कहा कि अभी भी अधिकारी इसकी अधिसूचना करने में जानबूझ कर विलंब कर रहा है ताकि प्रदेश सरकार की कर्मचारियों के बीच में छवि खराब हो। उन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वह बोर्ड प्रबंधन को तकनीकी कर्मचरियों की अन्य मंगों को भी पूरा करें। HPSEB | HIMACHAL NEWS
जेबीटी बनाम बीएड केस में उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद प्रदेश में जेबीटी प्रशिक्षुओं द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन किये गए। बीएड को जेबीटी पदों के लिए योग्य करार देने पर जेबीटी प्रशिक्षु भड़क उठे। हाल ही में प्रदेश हाईकोर्ट शिमला ने जेबीटी भर्ती मामलों पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि शिक्षकों की भर्ती के लिए एनसीटीई की ओर से निर्धारित नियम एलिमेंटरी शिक्षा विभाग के साथ अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग पर भी लागू होते हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने याचिकाओं को स्वीकारते हुए प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह 28 जून, 2018 की एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार जेबीटी पदों की भर्ती के लिए नियमों में जरूरी संशोधन करे। कोर्ट के इस फैसले से अब जेबीटी पदों के लिए बीएड डिग्री धारक भी पात्र होंगे। कोर्ट के इस फैसले से जेबीटी डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ बेहद खफा है। संघ का कहना है कि बीएड को जेबीटी का लाभ देना उनके हकों के साथ खिलवाड़ है। यदि ऐसा ही करना था तो इनकी दो साल की पढ़ाई का क्या औचित्य रहेगा। अपने हकों के लिए जेबीटी प्रशिक्षु प्रदेश के हर कोने में जमकर गरज रहे है। इन प्रशिक्षुओं की मांग है की बीएड वालों को जेबीटी का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो जेबीटी को समय पर इनके प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा। प्रदेश में 40 हजार युवाओं ने जेबीटी और डीएलएड डिप्लोमा किया हुआ है। भर्ती में देरी की वजह से उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है। यदि बीएड भी जेबीटी भर्ती के लिए पात्र माने जाते हैं, तो उनका नंबर ही नहीं आएगा। भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में बदलाव होने से जिला के डाइट संस्थान व निजी शिक्षण संस्थानों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसके साथ ही बीएड अभ्यर्थी भी जेबीटी पदों में आएंगे, तो उनका नंबर कई सालों बाद आएगा। ऐसे में मांग की जा रही है कि आरएंडपी रूल्स से कतई छेड़छाड़ न की जाए। पिछले तीन सालों से यह विवाद चलता आ रहा है और इस कारण कमीशन और बैचवाइज दोनों प्रकार से भर्तियां रुकी हुई है। प्रदेश सरकार इस मसले पर जेबीटी के प्रशिक्षुओं के साथ नज़र आ रही है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जेबीटी प्रशिक्षुओं को आश्वासन दिया है कि जेबीटी के भर्ती नियमों में कोई बदलाव नहीं होगा। वर्तमान नियमों से ही भर्ती होगी। अब तय हुआ है कि सरकार जेबीटी प्रशिक्षुओं के हक़ की लड़ाई लड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट में सीधे जाने के बजाय राज्य हाईकोर्ट में ही रिव्यू पेटिशन फाइल की जाएगी। इस पुनर्विचार याचिका में राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले के कंटेंट को प्रयोग किया जाएगा। यदि फिर भी बात नहीं बनी तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी, लेकिन इतना तय है कि जेबीटी के भर्ती नियम नहीं बदले जाएंगे। पर समस्या यहां हल नहीं हुई। जेबीटी प्रशिक्षुओं का समर्थन करने से बीएड प्रशिक्षु सरकार से नाराज़ हो गए है। बीएड डिग्री धारक संगठन इस विषय पर सरकार का विरोध करने लगा है। संगठन के मंडी जिलाध्यक्ष भूपिद्र पाल ने कहा कि एनसीटीई के मानदंडों के अनुरूप 28 जून 2018 की अधिसूचना को प्रदेश सरकार आज तक लागू नहीं कर पाई है और अब कोर्ट के आदेश पारित होने के बाद भी सरकार बीएड डिग्री धारकों के हकों के खिलाफ कदम उठाने जा रही है, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि बीएड डिग्री धारकों का मानना है कि हाइकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते वक्त तमाम पहलुओं पर सुनवाई की है। कोर्ट के आदेश के बाद इसका जेबीटी डिग्री धारकों पर ज्यादा असर भी नहीं पड़ने वाला है क्योंकि फैसले में कहीं भी जेबीटी अभ्यर्थियों को प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने के लिए मना भी नहीं किया है। सरकार लगभग 2000-3000 जेबीटी टेट पास लोगों के हित के लिए अगर हजारों बीएड डिग्री धारकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जा रही है तो इसका संगठन मुंह तोड़ जवाब देगा। बीएड डिग्रीधारक लता शर्मा, रूपाली शर्मा, शेखर, रजनीश शर्मा, अंजना ठाकुर, रश्मि शर्मा, प्रोमिला, विजय, आशा सोनी, माया, कांता इत्यादि का कहना है कि सरकार को जब एनसीटीई की सब शर्तें मान्य है तो बीएड वाली शर्त क्यों मान्य नहीं। Himachal Pradesh News | JBT Teachers
एचआरटीसी को हिमाचल प्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है। आज हिमाचल के लगभग हर कोने तक एचआरटीसी की बसें पहुँचती है। हिमाचल के दूर दराज़ क्षेत्रों तक पहुँचने वाली इन बसों को सड़क तक पहुँचाने में पीस मिल कर्मचारियों का बड़ा योगदान रहता है। ये पीस मिल वर्कर एचआरटीसी में मकैनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, टायर मैन, कुशन मेकर्स, बसों की सीटें बनाने वाले, वेल्डर एवं पेंटर के रूप में कार्य करते हैं। प्रदेश की जनता की सहायक एचआरटीसी बसों को सड़कों तक पहुँचाने वाले ये कर्मकारी सरकार से खूब खफा है। पीस मील कर्मचारियों का कहना है की सरकार उन्हें लगातार आश्वासन के झूले झूला रही है मगर उनकी मांगे पूरी नहीं कर रही। कर्मचारियों की सरकार के साथ हुई पहले की बातचीत के दौरान आश्वासन दिया गया था कि उन्हें अनुबंध पर लाने के लिए नीति बनाई जाएगी। इसके लिए 25 नवंबर तक का समय भी दिया गया था, लेकिन 25 नवंबर तक नीति न बनने के बाद अब पीस मील वर्करों ने आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। एचआरटीसी पीस मील कर्मचारी संघ धर्मशाला डिवीजन प्रधान संजीव कुमार ने बताया कि पांच व छह सालों के बाद भी उन्हें अनुबंध में नहीं लाया जा सका है। पीस मील वर्कर को अनुबंध में लाने की उम्मीद जेसीसी की बैठक में थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। लंबे समय से पीस मील कर्मचारी अपनी मांगों को उठा रहे हैं। कई बार ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन मांग को नहीं माना गया है। अंत में करीब एक हजार पीस मील कर्मचारियों को हड़ताल का सहारा लेना पड़ा। सुनील कुमार बताते है कि कर्मचारियों कि इस मांग के संबंध में 18 अक्तूबर 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव परिवहन के साथ हुई वार्ता में अक्तूबर 2021 के अंत तक इसके बारे में निर्णय लेने का आश्वासन मिला था। इसके उपरांत 16 नवंबर 2021 को प्रबंध निदेशक के साथ हुई बैठक जिसमें 26 नवंबर तक मामले को अंतिम रूप देने बारे आश्वासन मिला था। परिवहन मंत्री द्वारा समय-समय पर कर्मियों के साथ बैठक में सितंबर 2021 तक इन्हें अनुबंध पर लाने का आश्वासन दिया गया है। जबकि पूर्व में लगभग 450 पीसमील कर्मचारियों को अनुबंध पर लिया जा चुका है और शेष बचे 950 पीसमील कर्मचारि अब भी इंतज़ार कर रहे है। परंतु हर स्तर पर अनेक बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं निकाला जा रहा जिस कारण पीस मील कर्मचारी अनिश्चितकालीन काम छोड़ो आंदोलन पर चले गए, जिससे कर्मशालाओं में बसों के रखरखाव व मरम्मत का कार्य प्रभावित हो रहा है तथा आने वाले समय में परिवहन व्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। संयुक्त समन्वय समिति भी साथ एचआरटीसी कर्मचारियों की संयुक्त समन्वय समिति भी पीस मील कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन कर रही है। संयुक्त समन्वय समिति के सचिव खेमेन्द्र गुप्ता ने एचआरटीसी प्रबंधन व सरकार को चेताया है कि अगर एचआरटीसी में कार्यरत कर्मचारियों को पीस मील से अनुबंध पर लाने की घोषणा जल्द नहीं की जाती है तो फिर एचआरटीसी के सभी कर्मचारियों द्वारा सरकार और एचआरटीसी प्रबंधन के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा। हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति के अध्यक्ष प्यार सिंह ठाकुर भी मानते है कि सरकार व निगम प्रबंधन एचआरटीसी पीस मील कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के लिए गंभीर नहीं है। बार-बार आश्वासनों का झुनझुना इन कर्मचारियों को दिया जा रहा है। परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति द्वारा पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने के लिए बहुत लंबे समय से मांग की जा रही है। संयुक्त समन्वय समिति ने सरकार व निगम प्रबंधन से अनुरोध किया है कि पीस मील कर्मचारियों को पूर्व निर्धारित नीति अनुसार ही शीघ्र अनुबंध पर लाने की औपचारिकताएं पूरी कर इन्हें अनुबंध पर लाया जाए अन्यथा निगम का प्रत्येक कर्मचारी इनके पक्ष में एक बड़े आंदोलन करने के लिए विवश होगा, जिससे होने वाली किसी भी प्रकार की हानि के लिए सरकार व निगम प्रबंधन जिम्मेदार होंगे। जयराम सरकार ने नहीं दी अब तक कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति हिमाचल प्रदेश में साल 2008 से पीस मील वर्करों की भर्ती की जा रही है, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। उस वक्त इन कर्मचारियों के लिए 8 साल के बाद अनुबंध पर लाने की पॉलिसी बनाई गई थी। यानी 8 सालों तक सेवाएं देने के बाद इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाया जाता था और अनुबंध काल पूरा होने के बाद इन्हें बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति दी जाती थी। तदोपरांत पिछली सरकार में परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार आईटीआई डिप्लोमा धारकों को 5 साल बाद और गैर डिप्लोमा धारकों को 6 वर्षों के बाद अनुबंध पर लेने की नीति बनाई गई। कायदे से होना भी ऐसा ही चाहिए लेकिन समस्या यह है कि जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में ये अवधि पूरी कर चुके लोगों को अब तक कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति नहीं दी है। पीस मिल कर्मचारी की आवाज़ लगातार हुक्मरानो तक पहुंचाने वाले संगठन पीस मिल कर्मचारी संघ द्वारा सरकार से इन कर्मचारियों को अविलंब अनुबंध में शामिल करने की मांग लगातार उठाई जा रही है। एचआरटीसी पीस मिल कर्मचारी संघ का कहना है कि एचआरटीसी के 28 डिपुओं में कार्यरत पीस मिल कर्मचारियों की दुर्दशा पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा। संघ का कहना है कि सरकार द्वारा इन कर्मचारियों को प्रति कार्य के आधार पर वेतन दिया जाता है जो नाममात्र वेतन है और उस आय से कर्मचारियों के लिए परिवार चलाना बहुत मुश्किल हाे जाता है। इसके कारण कर्मचारियों को परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है। 8 से 10 घंटे ड्यूटी, पर सुविधा नाममात्र पीस मिल कर्मचारी संघ का कहना है कि इनके लिए कोई सरकारी सुविधा उपलब्ध नहीं है। ये रेगुलर कर्मचारियों की तरह ही 8 से 10 घंटे ड्यूटी दे रहे है मगर रेगुलर कर्मचारियों की तरह सरकारी नौकरी के कोई भी लाभ इन्हें नहीं दिए जाते। कोरोना काल में भी इन कर्मचारियों ने अपनी पूरी सेवा दी है। बसों का मैकेनिकल कार्य किया और उनको रोड पर पहुंचाया। ये कर्मचारी अपनी नौकरी से नाखुश है क्योंकि इन्हें इनका मासिक वेतन भी कई बार पूरा नहीं दिया जाता। Himachal Pradesh News | Himachal Government Employee's News
हाल ही में हुई जेसीसी कि बैठक में कर्मचारियों का अनुबंध काल एक बार फिर घट गया है परन्तु अब भी अनुबंध सेवा काल को नियमित सेवा काल से जोड़ने की मांग पूरी नहीं हो पाई है। कर्मचारियों को उम्मीद थी कि अन्य मांगों के साथ उनकी इस मांग को भी मुख्यमंत्री पूरा करेंगे परन्तु इनके हाथ निराशा लगी। मांग तो पूरी नहीं हुई बस इसे जल्द पूरा करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी के गठन की बात कही गई और वो भी अब तक नहीं हो पाया है। नियुक्ति की तारीख से वरिष्ठता लाभ नहीं मिलने पर अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के तेवर कड़े हो गए हैं। संघ ने दो टूक कहा कि अनुबंध सेवाकाल दो वर्ष करने से भाजपा के वोट बैंक में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी बल्कि प्रदेश के 70 हजार से अधिक कर्मचारियों को वरिष्ठता लाभ नहीं देने पर सरकार को वर्ष 2022 के चुनावों में नुकसान उठाना पड़ेगा। संघ ने सरकार से पूछा है कि आठ से तीन वर्षों तक अनुबंध पर रहने वाले कर्मचारियों को किस बात की सजा दी जा रही है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग और महामंत्री अनिल सेन का कहना है कि अनुबंध सेवाकाल से वरिष्ठता का लाभ देने के लिए अगर कमेटी का गठन करना ही था तो एक महीने पहले ही इसका गठन क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि करीब 3 वर्ष पहले धर्मशाला के जोरावर मैदान में एनपीएस की रैली के दौरान मुख्यमंत्री ने ओपीएस पर कमेटी गठित करने की बात कही थी, लेकिन उस कमेटी का गठन आज तक नहीं हो पाया है। उन्होंने आशंका जाहिर की कि कहीं वरिष्ठता के मसले पर भी ऐसा ही न हो। संघ का कहना है कि एक ईमानदार कर्मचारी के लिए मानदेय से ज़्यादा मान सम्मान मायने रखता है, बस इसी मान सम्मान को ठेस पहुंचती है जब कोई जूनियर कर्मचारी सरकार की ढुलमुल और भेदभावपूर्ण नीतियां के कारण सीनियर हो जाए l पैमाना यदि कार्य कुशलता हो तो कोई आपत्ति नहीं पर यदि सरकार की नीति के चलते ऐसा हो, तो आपत्ति जायज है l संघ का कहना है कि सरकारें अनुबंध काल 8 से 6, 6 से 5, 5 से 3 और 3 से 2 वर्ष तो करती रहीं और वरिष्ठता नियमितीकरण की तारीख से देती रहीं। पर इसमें उन कर्मचारियों का क्या कसूर जिन्होंने 8 वर्ष, 6 वर्ष, 5 वर्ष और 3 वर्ष का लंबा अनुबंध काल काटा है। यह कर्मचारी वरिष्ठता न मिलने से सरकार से नाराज हैं। संघ के अनुसार इनकी संख्या करीब 70 हजार है। इसका खामियाजा प्रदेश सरकार को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है। इनकी मांग है कि सरकार को अति शीघ्र अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को वरिष्ठता देने की घोषणा करनी चाहिए। ये है पूरा मसला दरअसल ये मसला शुरू हुआ 2008 में, जब बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, जो संगठन के अनुसार सरासर गलत है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पातीl अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। मौलिक और समानता के अधिकार का हनन अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और अब आने वाले समय में 2 वर्ष में कर्मचारी नियमित होंगे। ऐसे में ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। कर्मचारियों को अलग अलग अंतराल में नियमित करने से असमानता फैली है। सरकार को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करके इस असमानता को तुरंत खत्म करना चाहिए। संघ की मांग है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को पूरा करने के लिए जल्द से जल्द कमेटी का गठन किया जाए। Himachal Pradesh News | JCC Meeting News Updates
जेसीसी बैठक के बाद कांग्रेस (Congress) लगातार जयराम सरकार को कर्मचारी हितैषी न होने का दावा कर रही है। कांग्रेस नेता एवं कर्मचारी कल्याण बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष ठाकुर सुरिंद्र सिंह मनकोटिया का कहना है कि हाल ही में हुई जेसीसी बैठक (JCC Meeting) का कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हुआ है। जिस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ढिंढोरा सरकार द्वारा पीटा जा रहा है, उसमें तो पहले ही पांच साल का विलंब हो चुका है। मनकोटिया ने जयराम सरकार पर आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री की ओर से ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू न कर सिर्फ 2009 की नोटिफिकेशन को मानकर कर्मचारियों के हितों के साथ कुठाराघात किया है। 2009 की नोटिफिकेशन तो ओल्ड पेंशन स्कीम का ही एक हिस्सा है। हजारों आउटसोर्स कर्मचारी जो सरकारी कर्मचारी के बराबर काम करते हैं, इसके लिए कोई नीति न लाकर सरकार ने कर्मचारी हितैषी न होने का प्रमाण दिया है। सरकार ने मकान भत्ता, कंपनसेटरी भत्ता, कैपिटल भत्ता, ट्राइबल भत्ता, विंटर भत्ता, दैनिक भत्ता आदि कई भत्तें हैं जो पिछले चार साल से नहीं बढ़े हैं ,उन पर कोई बात न करके कर्मचारियों को निराश किया है। करुणामूल्क आधार पर नौकरी पाने वाले लगभग 4500 युवा लगभग 80 दिन से हड़ताल पर चल रहे हैं, इसके बारे में कोई पॉलिसी न लाकर सरकार बहरी बनी हुई है। सुरिंद्र सिह मनकोटिया का कहना है कि रात दिन लोगों की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाली पुलिस को सरकार ने इनकी आठ साल की अवधि को दूसरे समकक्ष कर्मचारियों के बराबर कम न करके पुलिस वर्ग में निराशा पैदा की है और यह निराशा पुलिस कर्मियों के मुख्यमंत्री से मिलने से भी झलक रही है। 4-9-14 वर्ष बाद मिलने वाली वेतन वृद्धि जैसी जटिल समस्या को सरकार हल नहीं कर पाई है, जिससे हजारों कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है। सुरिंद्र सिह मनकोटिया का कहना है कि सरकार ने होमगार्ड, पैरा पंप आपरेटर, पैराफिटर, सिलाई अध्यापक, पंचायत चौकीदार, एसएमसी टीचर, आंगनबाड़ी वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर, आशा वर्कर, एससीवीटी लैब तकनीशियन, अध्यापक, पीस मील वर्कर्स आदि बहुत सी ऐसी श्रेणियां हैं, जिनके प्रति मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का रवैया उदासीन रहा है, जबकि ये श्रेणियां कई सालों से पिस रही हैं। Himachal Pradesh | Government Employee News | JCC Meeting News Update