सरकार को उम्मीद थी कि जेसीसी की बैठक के बाद स्थिति बेहतर होगी। आर्थिक व्यय ज़रूर बढ़ेगा पर कर्मचारियों को साधने में कामयाबी मिलेगी। कर्मचारी भी खुश होंगे और विरोधी भी खामोश हो जाएंगे। पर हुआ कुछ और। जिन कर्मचारियों को सरकार ने सौगातें दी वो तो आधे अधूरे संतुष्ट हुए पर जिनके लिए सरकार कुछ नहीं कर पाई उनका गुस्सा दोगुना हो गया। प्रदेश में चार साल के लम्बे अंतराल के बाद भाजपा सरकार द्वारा कर्मचारियों के लिए जेसीसी की बैठक का आयोजन किया गया। कर्मचारियों की उम्मीदें आसमान छू रही थी। कर्मचारियों को लगा कि जो पिछले चार साल में नहीं हो पाया वो शायद अब हो जाए। उनकी सभी मांगे शायद सरकार पूरी कर दे। सरकार ने कोशिश भी की। कई मांगों को पूरा करने की घोषणा की गई। जेसीसी बैठक में मुख्यमंत्री ने पंजाब की तर्ज पर कर्मचारियों के लिए बहुप्रतीक्षित नए वेतनमान की घोषणा की, अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण की अवधि भी तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष करने की घोषणा हुई, सभी पेंशनरों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को एक जनवरी 2016 से संशोधित पेंशन और अन्य संबंधित लाभ की घोषणा जैसी कई अन्य छोटी बड़ी मांगें पूरी करने की घोषणाएं हुई। पर कर्मचारी पूरी तरह संतुष्ट हुए ऐसा बिलकुल नहीं कहा जा सकता। तर्क दिए गए की जिस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात सरकार ने कही है उसमें तो पहले ही पांच साल का विलंब हो चुका है। ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू न कर सिर्फ 2009 की नोटिफिकेशन की घोषणा करना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है और अनुबंध काल घटाने की घोषणा तो भाजपा अपने 2017 के दृष्टि पत्र में ही कर चुकी थी। जेसीसी की बैठक से लम्बे समय से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग कर रहे कर्मचारी निराश घर लौटे, करुणामूलक आश्रितों का अनशन भी नहीं टूटा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए भी नीति नहीं बन पाई। बड़ा बवाल तो उनकी तरफ से किया गया जिनकी मांगों का ज़िक्र तक मुख्यमंत्री करना भूल गए। बैठक के बाद सरकार के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले भारतीय मजदूर संघ के बैनर तले प्रदेश के आशा वर्करों, आंगनबाड़ी वर्करों और कई संगठनों ने शिमला में विशाल रैली निकाली और सचिवालय गेट पर घंटों जमकर प्रदर्शन किया। पीस मिल कर्मचारी हड़ताल पर बैठ गए और यहां तक की पुलिस कर्मचारियों ने भी मुख्यमंत्री आवास का घेराव कर लिया। यानी की मोटे तौर पर देखा जाए तो सरकार की मुश्किलें कम होने के बजाए और अधिक बढ़ गई। अब मुख्यमंत्री द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पीस मिल वर्कर समेत असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों व अन्यों की मांगों पर गंभीरता से विचार करने के लिए सभी विभागों को इन मांगों को अध्ययन करने के निर्देश दिए गए। पुलिस के कर्मचारियों की समस्या का हल निकालने की बात भी मुख्यमंत्री द्वारा कही गई है। पर असल सवाल ये है कि इन समस्याओं के हल के लिए सरकार आखिर वित्तीय सहायता लाएगी कहां से। आर्थिक तंगी बड़ी चुनौती कर्मचारियों की नाराज़गी मात्र ही सरकार की मुख्य समस्या नहीं है। सरकार ने कर्मचारियों की जेसीसी बैठक तो करवा ली, लेकिन बैठक में लिए गए फैसलों को धरातल पर उतारने के लिए 18 से 20 हजार करोड़ रुपये की रकम जुटाना 62 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी सरकार के लिए चुनौती होगा। इन फैसलों से इतर सड़कों पर उतर चुके असंतुष्ट कर्मचारियों और कामगारों को न्यायोचित वित्तीय लाभ देना भी आसान नहीं होगा। अगले वित्तीय वर्ष में केंद्र से लगभग 12 हजार करोड़ रुपये कम ग्रांट मिलेगी। राजस्व घाटा अनुदान, जीएसटी प्रतिपूर्ति आदि में कटौती हो रही है। नए वेतन अगर छह हजार करोड़ रुपये चाहिए तो इसके एरियर के लिए 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रकम देनी होगी। एरियर की ज्यादा किश्तें बनाई तो भी कर्मचारी संतुष्ट नहीं होंगे। चुनावी साल से पहले पंजाब के बाद हिमाचल को नए वेतनमान देने की बाध्यता है। ऐसे में सरकार ये सब कैसे मैनेज करती है ये भी बड़ा सवाल है। सरकार कर्मचारियों की मांगें पूरी करनी की कोशिश कर रही है मगर इन मांगों को पूरा करने के लिए सरकार के पास संसाधनों की कमीं है ये स्पष्ट है। हर कर्मचारी को संतुष्ट कर पाना संभव भी नहीं लगता। सरकार नहीं कर्मचारी हितेषी कर्मचारियों की बढ़ती नाराज़गी के चलते विपक्ष को सरकार के खिलाफ मुद्दा मिल गया है। कांग्रेस के नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री कर्मचारी हितैषी नहीं है और जेसीसी की बैठक से कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कर्मचारियों को ये यकीन दिलाने की कोशिश की जा रही है की जो अब तक नहीं हुआ वो आगे भी नहीं होगा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता व शिलाई से विधायक हर्षवर्धन चौहान ने तो ये तक कह दिया की जेसीसी की बैठक के बाद अराजकता फ़ैल गई है। कर्मचारियों के मुद्दों पर अपनी सियासी रोटियां खूब सेकी जा रही है। खैर वजह कोई भी हो मगर कर्मचारियों की बात हो रही है ये बड़ी बात है । उम्मीद्द है कि अब इस सियासी दबाव के बीच कर्मचारियों का बेड़ा पार हो जाए। मुख्य लंबित मांगे -पुरानी पेंशन बहाल की जाए - नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए - करुणामूलक आश्रितों को वन टाइम सेटलमेंट के तहत नौकरियां दी जाए - पुलिस कॉन्स्टेबलों के प्रोबेशन पीरियड को घटाने की मांग - एचआरटीसी के पीस मिल कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग - आशा वर्करों, आंगनबाड़ी, आउटसोर्स, सिलाई-कढ़ाई कर्मचारियों को सरकार के नियमित कर्मचारियों की तर्ज पर वित्तीय लाभ देने की मांग | Himachal News Updates | Himachal Pradesh Govt. Employees News
हिमाचल पथ परिवहन निगम में कार्यरत पीस मील वर्कर टूल डाउन हड़ताल पर बैठ गए हैं। परवाणू में भी कर्मचारियों ने वर्कशाप में काम बंद कर दिया है। पीसमिल कर्मचारियों ने मांग की है कि जब तक उन्हें अनुबंध पर नही लिया जाता, तब तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी। हिमाचल प्रदेश पीसमील वर्कर कर्मचारी मंच परवाणू के प्रधान सुनील पुंडीर ने बताया कि अगस्त में भी कर्मचारियों को अनुबंध पर करने की मांग को लेकर टूल डाउन हड़ताल की गई थी। 17 अगस्त से 24 अगस्त तक चली हड़ताल को परिवहन मंत्री और निगम प्रबंधन के आश्वासन के बाद वापस लिया गया था। लेकिन मंत्री और प्रबंधन का आश्वासन झूठा निकला है। ऐसे में पीस मील वर्कर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज से पूरे प्रदेश में पीसमील वर्कर अनिश्चितकालीन टूल डाउन स्ट्राइक बैठेंगे।
हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ ने सरकार से प्रधानाचार्य के पदोन्नति कोटे का अनुपात 95:5 करने की मांग की है। स्कूल प्रवक्ता संघ का कहना है की प्रदेश के स्कूलों में प्रधानाचार्य के पद खाली होने के कारण स्कूलों में विभिन्न प्रकार की प्रशासनिक वित्तीय तथा पढ़ाई से संबंधित समस्याएं पैदा होती है। प्रधानाचार्य के पदों के खाली होने के कारण प्रधानाचार्य के कार्य को वरिष्ठ प्रवक्ताओं द्वारा पूरा करना पड़ता है, जिससे उनका अपना काम प्रभावित हो जाता है। संघ ने आरोप लगाया है की पिछले एक वर्ष से प्रधानाचार्य की पदोन्नति नहीं हो रही। ऐसे में कितने ही प्रवक्ता जो अपने सेवाकाल के अंतिम पड़ाव में हैं और अब बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में प्रधानाचार्य के 350 से ज्यादा पद रिक्त चल रहे है परन्तु इन पदों को नहीं भरा जा रहा। संघ का कहना है की पद्दोनति के साथ साथ पद्दोनति कोटा भी स्कूल प्रवक्ताओं के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। स्कूल प्रवक्ता संघ के प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि 1986 में बनाई गई नई शिक्षा नीति के तहत वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की गई। इनमें 60 प्रतिशत मुख्याध्यापक और 40 प्रतिशत प्रवक्ता शामिल किए गए। उस समय मात्र 236 प्रवक्ता काम कर रहे थे जबकि, मुख्याध्यापकों की संख्या 1459 रही। यह तय किया गया कि प्रवक्ताओं की संख्या में जैसे-जैसे इजाफा होगा, वैसे-वैसे प्रधानाचार्य पदों के लिए कोटे का पुन: निर्धारण संख्या के आधार पर किया जाता रहेगा। वर्ष 2007 में प्रवक्ताओं की संख्या 12,000 पहुंच गई और मुख्याध्यापकों की संख्या 1100 के लगभग थी परन्तु पदोन्नति का कोटा पुनः निर्धारित नहीं हो पाया। 2008 में बहुत लंबे संघर्ष और जद्दोजेहद के बाद पदोन्नति कोटा 50 : 50 किया गया, परन्तु कोटे का निर्धारण उस समय भी प्रवक्ताओ कि संख्या के आधार पर नहीं हो पाया। आज प्रदेश में प्रवक्ताओं की संख्या 18,500 हो गई है, जिसके चलते प्रवक्ता अब सरकार से इस कोटे को संख्या के आधार पर 95 प्रतिशत करने की मांग कर रहे हैं। प्रवक्ताओं का तर्क है कि प्रधानाचार्यों की पदोन्नति के लिए दो ही फीडिंग काडर हैं। इनमें स्कूली प्रवक्ता और उच्च विद्यालयों में कार्यरत मुख्याध्यापक शामिल हैं। इनका कहना है कि प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के लिए इन दोनों फीडिंग काडर की वास्तविक संख्या के आधार पर पदों का बंटवारा होना चाहिए। वर्तमान में प्रवक्ता 18,500 और मुख्याध्यापक मात्र 830 हैं जो तर्कसंगत और न्यायोचित नहीं है। हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के अनुसार 23 नवंबर 2018 को पालमपुर में आयोजित प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के राज्यस्तरीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 10 प्रतिशत कोटा बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन, घोषणा के तीन वर्ष बाद भी यह लागू नहीं हो पाई है, जो प्रवक्ता वर्ग के लिए बहुत बड़ा धोखा है। इनका आरोप है कि प्रदेश की नौकरशाही लगातार इसके बारे में भेदभाव कर रही है। संघ ने कहा कि प्रदेश सरकार पदोन्नति कोटा नहीं बढ़ाती है तो प्रवक्ता संघ आंदोलन करने से भी गुरेज नहीं करेगा। प्रवक्ता संघ के प्रदेश अध्यक्ष केसर सिंह ठाकुर, महासचिव संजीव ठाकुर, मुख्य प्रेस सचिव प्रेम शर्मा, शिमला जिला प्रवक्ता संघ अध्यक्ष अध्यक्ष अजय नेगी, सोलन जिला अध्यक्ष चंद्र देव ठाकुर, सिरमौर जिलाध्यक्ष सुरेंद्र पुंडीर, बिलासपुर के प्रधान नरेश ठाकुर, हमीरपुर के प्रधान अनिल कुमार, मंडी जिला अध्यक्ष राजेश सैणी, कांगड़ा जिला अध्यक्ष हर्षवर्धन राणा, ऊना जिला अध्यक्ष संजीव पराशर, चंबा जिलाध्यक्ष दीप सिंह खन्ना, कुल्लू जिला अध्यक्ष नरेंद्र पाल, किनौर जिला अध्यक्ष ने सरकार से मांग की है कि प्रधानाचार्य पदोन्नत की सूची अविलंब शीघ्र जारी की जाए। इसके अतिरिक्त संघ ने सरकार से वेतन विसंगतियों को दूर करने की मांग उठाई है।
जयराम सरकार के चार साल पूरे होते -होते आखिरकार जेसीसी की बैठक भी हो ही गई। अपेक्षित था बैठक में मुख्यमंत्री कर्मचारियों के साथ संवाद भी करेंगे और कुछ ऐलान भी करेंगे। ऐसा हुआ भी और सही कहे तो इस बैठक में मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को उम्मीद से बढ़कर दिया। मंच सँभालते ही जयराम ठाकुर एक के बाद एक कई बड़े ऐलान करते गए और तालियां बजती रही। पिछले चार सालों से अपनी मांगो को लेकर कर्मचारी विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री तक सबकी दर पर पहुँच रहे थे और इसे आस में थे कि सरकार उनकी सुनेगी। पर छोटी मोटी मांगो को छोड़कर सरकार ज्यादा सुध ले नहीं रही थी। फिर जेसीसी की तिथि घोषित हुई और कर्मचारियों की आस प्रबल। आखिरकार चार साल बाद हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों पर सरकार मेहरबान हुई और एक साथ कई मांगें पूरी हो गई। जिस तरह सरकार ने तोहफों की बौछार कर्मचारियों पर की है वो काबिल ए तारीफ है। जेसीसी की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की घोषणाओं ने कर्मचारियों का दिल जीत लिया। अधिकांश कर्मचारी वर्ग का ख्याल जेसीसी की बैठक में रखा गया और कई वर्गों को आश्वस्त किया गया कि जल्द उनके पक्ष में भी सरकार निर्णय लेंगी। सीएम जयराम ठाकुर ने जेसीसी बैठक में साढ़े सात हजार करोड़ रुपये के वित्तीय लाभ देने की घोषणा की है। जो घोषणाएं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने की उनमें पंजाब सरकार के छठे वेतनमान की तर्ज पर कर्मचारियों को नए वेतनमान के लाभ देने का ऐलान भी शामिल है। कर्मचारियों को नया वेतनमान एक जनवरी 2016 से देय होगा। जनवरी 2022 का संशोधित वेतनमान फरवरी में दिया जाएगा। छठा वेतनमान मिलने से सबसे कम बेसिक वेतन वाले क्लर्क को तीन से साढ़े तीन हजार तक का लाभ होगा। डॉक्टर, वरिष्ठ अधिकारियों और एचएएस अधिकारियों को करीब 15 से 20 हजार रुपये तक का लाभ होगा। पेंशनरों को भी 1000 रुपये से लेकर 10 हजार तक का लाभ होगा। वेतनमान के लागू होने के बाद हिमाचल प्रदेश के वार्षिक बजट में कर्मचारियों के हिस्से का बजट 42 से बढ़कर 50 फीसदी हो जाएगा। इससे सरकार का 6000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय होगा। पेंशनभोगियों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को भी 1 जनवरी, 2016 से संशोधित पेंशन और अन्य पेंशन लाभ दिए जाएंगे। संशोधित वेतनमान और संशोधित पेंशन/पारिवारिक पेंशन पर महंगाई भत्ता और महंगाई राहत प्रदान की जाएगी। जेसीसी की बैठक में एनपीएस कर्मचारियों के लिए 2009 की अधिसूचना के अंतर्गत आने वाली फैमिली पेंशन 15 मई 2003 से देने की घोषणा भी की गई है। इस पर 250 करोड़ से ज्यादा खर्च होगा। अनुबंध काल घटाने की कर्मचारियों की बहुप्रतीक्षित मांग भी पूरी की गई है। अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण की अवधि को भी तीन से घटाकर दो साल कर दिया है। अनुबंध कर्मचारियों को यह लाभ 30 सितंबर से मिलेगा। स्टेनो टाइपिस्ट को 10 से सात साल में रेगुलर करने को आरएंडपी रूल्स में संशोधन किये जाएंगे। इसी के साथ दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों, अंशकालिक कामगारों, जल रक्षकों और जलवाहकों आदि के संबंध में नियमितीकरण/दैनिक वेतन भोगी के रूप में रूपान्तरण के लिए भी एक-एक वर्ष की अवधि कम की जाएगी। लंबित चिकित्सा प्रतिपूर्ति बिलों के भुगतान के लिए 10 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि जारी करने की भी घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि प्रदेश सरकार राज्य के जनजातीय क्षेत्रों में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी एवं अनुबंध कर्मचारियों को जनजातीय भत्ता देने पर भी विचार करेगी। अब पेंशन निधि चुनने की स्वतंत्रता एनपीएस कर्मचारियों को अब पेंशन निधि चुनने की स्वतंत्रता होगी, जिससे उनके निवेश पर बेहतर रिटर्न सुनिश्चित हो सकेगा। अब तक इन कर्मचारियों को सरकार द्वारा चुनी गई पेंशन निधि में ही निवेश अनिवार्य था। सभी एनपीएस कर्मचारियों को डीसीआरजी लाभ प्रदान किया जा रहा है और अब सरकार ने 15 मई, 2003 से 22 सितम्बर, 2017 तक इस लाभ से वंचित एनपीएस कर्मचारियों को ग्रेच्युटी प्रदान करने का निर्णय लिया है। ये मांगे हुई पूरी - राज्य के कर्मचारियों को 1 जनवरी, 2016 से नया वेतनमान प्रदान किया जाएगा - पेंशनभोगियों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को भी 1 जनवरी, 2016 से संशोधित पेंशन और अन्य पेंशन लाभ दिए जाएंगे - संशोधित वेतनमान और संशोधित पेंशन/पारिवारिक पेंशन पर महंगाई भत्ता और महंगाई राहत प्रदान की जाएगी - प्रदेश के कर्मचारियों को फैमिली पेंशन का लाभ - अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण की अवधि तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष की गई - दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों, अंशकालिक कामगारों, जल रक्षकों और जलवाहकों आदि के संबंध में नियमितीकरण/दैनिक वेतन भोगी के रूप में रूपान्तरण के लिए भी एक-एक वर्ष की अवधि कम की गई - लंबित चिकित्सा प्रतिपूर्ति बिलों के भुगतान के लिए 10 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि जारी करने की भी घोषणा की गई - एनपीएस कर्मचारियों को अब पेंशन निधि चुनने की स्वतंत्रता प्रदान की गई पुलिस कांस्टेबल का प्रोबेशन पीरियड अब भी 8 वर्ष हिमाचल प्रदेश में हुई जसीसी बैठक से अधिकतर कर्मचारी संतुष्ट है मगर एक तबका ऐसा भी है जो सरकार से ख़ासा नाराज़ है। हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश पुलिस के कर्मचारियों की। प्रदेश पुलिस जवानों का मानना है कि सरकार उनके साथ पराया व्यवहार कर रही है। जहाँ सभी विभागों का अनुबंध कार्यकाल 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष किया गया वहीं पुलिस कांस्टेबल का प्रोबेशन पीरियड अब भी 8 वर्ष ही रखा गया है। पुलिस कर्मचारियों ने सरकार से सवाल किये है कि आखिर प्रदेश के इन रक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों ? प्रदेश सरकार की इस अनदेखी से पुलिस जवान व उनके परिवार काफ़ी खफा है। एक तरफ सभी विभागों को सौगाते दी गयी वहीं दूसरी तरफ पुलिस को अनदेखा किया गया। पुलिस जवानो का कहना है कि उन्हें भी सरकार से आशाएं होती है। कोविड के समय यही जवान सड़कों पर खडे थे। किसी भी प्रकार की इमरजेंसी में पुलिस को ही सबसे पहले याद किया जाता है फिर सरकार क्यों इनको भूल जाती है ? रोष करने के पुलिस कॉन्स्टेबल्स ने अपनी मेस बंद रखने का एलान भी किया। दरसअल साल 2015 में सरकार द्वारा पुलिस कांस्टेबल का प्रोबेशन पीरियड 2 साल से बढ़ा कर 8 साल कर दिया गया था। इन कर्मचारियों ने अपनी मांगें कई बार सरकार के सामने रखने की कोशिश की मगर अब तक इनकी मांग को अम्लीजामा नहीं पहनाया गया। करुणामूलक आश्रितों का इंतज़ार जारी करूणामूलक आधार पर नौकरी की गुहार लगा रहे आश्रितों को अभी थोड़ा और इंतज़ार करना होगा। जेसीसी बैठक में अपने भाषण के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि करुणामूलक आश्रितों को नौकरी प्रदान करने के लिए मुख्या सचिव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया है। उस कमेटी के सुझाव आना अभी बाकी है। आगामी कैबिनेट की बैठक के दौरान ये सुझाव पहुंचेगे और उसी बैठक में करुणामूलक नौकरियों पर निर्णय लिए जाएगा। मुख्यमंत्री ने ये भी कहा की करूणामूलक नौकरी रिटायरमेंट के एक दिन पहले तक देंगे। उधर, चार माह से शिमला में क्रमिक अनशन कर रहे करूणामूलक संघ को उम्मीद है कि प्रदेश सरकार उनके दर्द को समझेगी और उनकी मांगों को पूरा करेगी। वर्ष 1990 में सरकारी कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए प्रदेश में एक नीति बनाई गई थी। इस नीति के अंतर्गत यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है तो, मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर आर्थिक रूप से कमजोर मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाती है ताकि कर्मचारी के परिवार को उसके जाने के बाद किसी भी तरह की दिक्क्तों का सामना न करना पड़े। सरकार ने इसके लिए वार्षिक आय सीमा का मापदंड तय किया हुआ है। इस आधार पर नौकरी के लिए कोई इंटरव्यू और लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती। पर ये जितना आसान दिखता है उतना है नहीं, करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसके लिए आवेदक को हर जिले में विभाग संबंधित डिवीज़न में आवेदन करना पड़ता है, फिर फाइल चीफ़ ऑफिस होकर सर्कल कार्यालय पर जाती है। उसके बाद विभाग के हेड ऑफिस शिमला पहुंचती है। आम तौर पर कई ऑब्जेक्शन लगते है व फाइल वापस आ जाती है। ऐसे ही कई करूणामूलक आश्रित नौकरी की चाह में आवेदन कर चुके है पर इन्हे नौकरियां नहीं मिल रही। ये चाहता है करूणामूलक संघ -समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्ति दी जाएं। -करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। -योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणियों में नौकरी दी जाएं। -5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्तियां दे सके। - जिन आवेदकों की आयु निकल गई है उन्हें वन टाइम सेटलमेंट दिया जाए। वरिष्ठता की मांग को लेकर बनेगी कमेटी जेसीसी नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों में से एक मांग थी। ये मांग अभी तो पूरी नहीं पाई है लेकिन इस समस्या के निवारण के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया जाएगा व इसमें अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के साथ अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा और प्राथमिकता के आधार पर मामले को हल किया जाएगा। सरकार के इस ऐलान के बाद अब कर्मचारियों की नजर 26 जनवरी और हिमाचल दिवस पर रहेगी। इस बीच बजट सत्र भी आएगा जहां कर्मचारी इस मांग के पूरा होने की उम्मीद में होंगे। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने हिमाचल के विभिन्न विभागों में भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत अनुबंध पर नियुक्त होने के बाद नियमित हुए कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने की मांग करता रहा है। विभिन्न विभागों में अनुबंध पर नियुक्त हुए कर्मचारी लंबे समय से वरिष्ठता की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी यह मांग पूरी नहीं हो पाई है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंध काल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जा रहा है, जिसका कर्मचारी विरोध करते है। ये मसला शुरू हुआ 2008 में, जब बैचवाइज और कमीशन आधार पर लोकसभा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कर्मचारियों की नियुक्तियां अनुबंध के तौर पर की जाने लगी l पहले अनुबन्ध काल 8 साल का हुआ करता था जो बाद में कम होकर 6 फिर 5 और फिर 3 साल हो गया। ये अनुबन्ध काल पूरा करने के बाद यह कर्मचारी नियमित होते है। अनुबंध से नियमित होने के बाद इन कर्मचारियों की अनुबंधकाल की सेवा को उनके कुल सेवा काल में नही जोड़ा जाता, जिस पर कर्मचारियों को आपत्ति है। इनका कहना है कि अनुबंध काल अधिक होने से पुराने कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान के साथ प्रमोशन भी समय पर नहीं मिल पाती l अब मांग है कि उनको नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए ताकि उन्हें समय रहते प्रमोशन का लाभ मिल सके। अनुबंध काल की सेवा का वरिष्ठता लाभ ना मिलने के कारण उनके जूनियर साथी सीनियर होते जा रहे हैं। भर्ती एवम पदोन्नति नियमों के अनुसार 50 प्रतिशत नियुक्तियां कमीशन और बैच के आधार पर बाकी प्रोमोशन के आधार पर भरी जाती हैं। किन्तुअनुबंधकाल की सेवा को कुल सेवाकाल में ना गिनने के कारण, अनुबंध से नियमित कई कर्मचारी अभी भी उसी पद पर हैं, जिस पद पर नियुक्त हुए थे, जबकि उनसे कनिष्ठ पद पर नियुक्त नियमित कर्मचारी दो प्रोमोशन तक ले चुके हैं। इसीसलिए कर्मचारियों का एक तबका मांग कर रहा है कि सरकार को भर्ती और पदोन्नति नियमो में बदलाव करके अनुबंधकाल की सेवा को कुल सेवाकाल में जोड़ना चाहिए। बहरहाल जेसीसी में मुख्यमंत्री ने कमेटी गठन के ऐलान कर इनकी उम्मीद जरूर बढ़ाई है और हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का मानना है कि जल्द सरकार इनकी मांग को पूरा करेगी। सिर्फ आश्वासन नहीं दिया, मसले सुलझाए भी हिमाचल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के नेताओं ने कहा कि पूर्व शांता सरकार ने कर्मचारियों की समस्याओं को समझा और जेसीसी का मंच देकर समस्याओं का समाधान किया। महासंघ अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर ने कहा कि वर्तमान सरकार ने कर्मचारियों के मसले सुलझाने का आश्वासन ही नहीं दिया अपितु उनको सुलझाया भी गया। जब पूर्व कांग्रेस शासनकाल में कर्मचारियों का उत्पीड़न किया गया था। भविष्य में भी कई कर्मचारी लाभान्वित होंगे हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अरुण भारद्वाज ने अनुबंध कार्यकाल को घटाकर 2 वर्ष करने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का धन्यवाद किया है। उन्होंने कहा कि हम लम्बे समय से ये मांग कर रहे थे जो अब जाकर पूरी हुई है। सरकार की इस पहल से सिर्फ अभी नहीं भविष्य में भी कई कर्मचारी लाभान्वित होंगे। उम्मीद है ये सिर्फ आश्वासन नहीं है नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को निरंतर उठाने वाले अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीश गर्ग ने कहा की प्रदेश सरकार ने इस मसले को सुलझाने के लिए कमेटी के गठन की बात कही है और हमें ख़ुशी है की इसमें हमारे संगठन के पदाधिकारियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। हम सरकार से आग्रह करते है की जल्द से जल्द हमारी इस महत्वपूर्ण मांग को पूरा किया जाए। उन्होंने कहा की उम्मीद है कि इस बार ये सिर्फ आश्वासन नहीं बल्कि हकीकत होगा और हमारी मांग जल्द पूरी होगी। सरकार ने दिखाया बड़ा दिल हिमाचल प्रदेश नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने 2009 की अधिसूचना लागू करने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का धन्यवाद किया है। उन्होंने कहा की उनका संगठन पिछले कई सालों से लगातार प्रदेश सरकार से इस अधिसूचना की मांग कर रहा था ताकि कर्मचारी कुछ हद तक अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस करे। प्रदीप ठाकुर ने कहा की मांग पूरी होने पर महासंघ की और से वे मुख्यमंत्री का धन्यवाद करना चाहते है साथ ही वो उम्मीद करते है की जिस तरह प्रदेश सरकार ने ये मांग पूरी कर कर्मचारियों के प्रति बड़ा दिल दिखाया है, उसी तरह सरकार पुरानी पेंशन को भी बहाल करेगी। शिक्षक महासंघ ने किया स्वागत हिमाचल प्रदेश में जेसीसी बैठक में सरकार द्वारा नए वेतनमान देने की घोषणा के साथ अनुबंध काल को 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष करने, दैनिक भोगी कर्मचारियों को 5 वर्ष की जगह 4 वर्ष में नियमित करने के साथ अन्य मांगों को जल्द पूरा करने के आश्वासन के लिए शिक्षक महासंघ के प्रान्त उपाध्यक्ष डॉ मामराज पुंडीर ने सरकार का आभार व्यक्त किया है। इसके साथ उन्होंने बताया कि लंबे समय से कर्मचारियों से जुड़ी बहुत सी मांगों को सरकार द्वारा पूरा कर दिया गया है, जबकि इसी कड़ी में शामिल बहुत ही मांगों को औपचारिकताएं पूरी करके पूरा करने का आश्वासन दिया है। बैठक में संगठन द्वारा 2 दिसंबर को होने वाली उच्च स्तरीय बैठक में शिक्षकों की मांगों को हल करने का आग्रह किया। उम्मीद है सरकार हमारे दर्द को समझेगी करुणामूलक संघ हिमाचल प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार का कहना है की करुणामूलक आश्रितों को राजधानी शिमला में क्रमिक अनशन पर बैठे चार महीनों से अधिक का समय बीत गया है। आश्रितों ने जहां इतने दिनों तक कड़ा परिश्रम किया वहां कुछ दिन और सही। उम्मीद है कि प्रदेश सरकार हमारे दर्द को समझेगी और अब हमारी मांगों को पूरा करेगी। पदोन्नति कार्यकाल 3 वर्ष करने की घोषणा भी जल्द हो हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत तकनीकी कर्मचारी संघ ने संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक करने के लिए मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया है। संघ ने अनुबंध काल 2 वर्ष करने के लिए मुख्यमंत्री का आभार किया है। संघ ने नई पेंशन योजना के तहत 2009 की अधिसूचना कि घोषणा को पुरानी पेंशन बहाली की ओर एक सार्थक कदम बताया है, व सरकार से आग्रह किया है कि पुरानी पेंशन बहाल कर कर्मचारियों में समानता लाइ जाए। संघ के प्रदेश महामंत्री नेकराम ठाकुर ने कहा कि जूनियर टी मेट व हेल्परों का पदोन्नति कार्यकाल 5 से 3 वर्ष करने की घोषणा जो मुख्यमंत्री ने कि थी उसके लिए अभी कोई भी आदेश जारी नहीं हुए है। महामंत्री ने कहा कि उक्त फैसला सर्विस कमेटी की बैठक में होगा जिसके लिए अभी तक समय नहीं मिला है औरइसको आगे बढ़ाना निंदनीय है। इस पर जल्द से जल्द फैसला लिया जाए व मुख्यमंत्री इसमें हस्तक्षेप करें। कोविड से निपटना प्राथमिकता था, इसलिए वक्त लग गया मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के विकास में कर्मचारियों का उल्लेखनीय योगदान रहा हैं। कर्मचारियों की परिश्रम, समर्पण और प्रतिबद्धता के कारण ही हिमाचल आज देश के अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श के रूप में उभरा है। जनसंख्या और कर्मचारी अनुपात के मामले में भी हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है। कोविड-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और हिमाचल भी इसका अपवाद नहीं है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों ने इस महामारी से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और राज्य इस संकट से सफलतापूर्वक बाहर निकलने में सफल रहा है। कोरोना काल के दौरान कोविड से निपटना प्राथमिकता था इसलिए जेसीसी की बैठक करने में इतना समय लग गया। कर्मचारियों ने इतना संयम बरता इसकेलिए वे उनके धन्यवादी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जमीनी स्तर पर योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में कर्मचारियों ने अहम भूमिका निभाई है। हिमाचल पहाड़ी प्रदेश है और यहां की समस्याएं भिन्न हैं। सभी विभागों में कर्मचारियों ने अहम भूमिका निभाई। पहली डोज में हिमाचल का पहला स्थान है और दूसरी डोज 90 फीसदी लोगों को लगा दी है। बदले की भावना को दूर कर सरकार ने माना कि कर्मचारी हमारी रीढ़ है। सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में कठिन परिस्थितियों में कर्मचारियों की जो मदद की जा सकती है, वह कर रहे हैं। प्रतिशोध और बदले की भावना से हमने कभी भी काम नहीं किया। सत्ता में आते ही यह कहा था कि हम बदले की भावना से काम नहीं करेंगे। एनपीएस कर्मचारियों को अन्य पेंशन लाभ में निवेश की छूट दी है। विभाग में 27 हजार पदों को भरने की अनुमति दी गई है। - जयराम ठाकुर, मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश।
टीजीटी आर्ट्स संघ ने वर्ष 2015 के बाद टीजीटी की फाइनल सीनियोरिटी लिस्ट अब तक नहीं बन पाने के कारण प्रारंभिक शिक्षा विभाग से नाराजगी जाहिर की है। इसे फाइनल करने की मांग हिमाचल राजकीय कला स्नातक संघ के राज्य अध्यक्ष सुरेश कौशल व महासचिव विजय हीर भी कर रहे है। हाल ही में शिक्षा विभाग द्वारा टीजीटी से प्रवक्ता पदोन्नति के लिए आवेदन मांगे गए हैं। परन्तु सैकड़ों टीजीटी उस वक्त असमंजस में पड़ गए जब आवेदन फार्म पर यह लिखा पाया कि आवेदनकर्ता की टीजीटी की सीनियोरिटी फाइनल संख्या पर आधारित होनी चाहिए, जबकि प्रारंभिक शिक्षा विभाग वर्ष 2016 से लेकर 2020 तक पांच वर्ष में संघ के बार बार मांग करने पर मात्र टेंटीटिव वरिष्ठता सूची ही निकाल पाया। संघ के नेताओं ने मांग की है की विभाग एक सप्ताह के भीतर टीजीटी की फाइनल वरिष्ठता सूची निकाले, ताकि पदोन्नति आवेदन भरने में कोई कठिनाई न हो। टीजीटी आर्ट्स संघ ने इस मसले पर आवश्यक आनलाइन मीटिंग भी की। इस मीटिंग में जिला चंबा से अध्यक्ष राजिंदर भारद्वाज, कांगड़ा से संजय चौधरी, हमीरपुर से संजय वर्मा, मंडी से विजय बरवाल, ऊना से राजिंदर गुलेरिया, बिलासपुर से राकेश चौधरी, सिरमौर से देश राज शर्मा आदि उपस्थित रहे व सब ने एकमत से विभाग को टीजीटी की फाइनल वरिष्ठता सूची जल्द जारी करने का आग्रह किया। साथ ही जिन टीजीटी शिक्षकों के 5 साल 31 मार्च 2022 तक पूरे होंगे, वह लेक्चरर के लिए अपने आवेदन भी दे पाएंगे। संघ ने कहा की प्रारंभिक शिक्षा विभाग शिमला द्वारा 2015 के बाद आज तक टीजीटी की फाइनल सीनियोरिटी लिस्ट नहीं बन पाने से शिक्षकों को बहुत नुक्सान झेलना पड़ा है। अनेकों नाम इसमें जोड़ने बाकी हैं और कई वरिष्ठता क्रमांक सुधारने की मांगें शिक्षकों ने प्रस्तुत की हैं। कुछ अध्यापकों के तो 6 वर्ष भी पूरे होने वाले हैं परंतु अभी तक उनकी फाइनल सीनियोरिटी लिस्ट नहीं बनी है।
जेसीसी बैठक की तारिख तय होने के बाद से ही समस्त कर्मचारी वर्ग अपनी अपनी मांगें सर्कार को याद करवा रहे है। इसी कड़ी में हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने भी प्रदेश सरकार से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को पूरा करने का आग्रह किया है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश महासचिव अनिल सेन ने कहा कि उनका संगठन पिछले लगभग 4 वर्षों से अपनी प्रमुख मांग नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने के संदर्भ में संघर्ष कर रहा है l इस मांग को पिछले लगभग 4 सालों में भिन्न भिन्न मंच के माध्यम से 200 से अधिक बार प्रदेश सरकार के ध्यान में लाया जा चुका है l उन्होंने कहा कि इस मांग को 50 से अधिक बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष रखा जा चुका है, लेकिन हर बार उनको आश्वासन पर आश्वासन ही मिलते रहे। अब तक उनकी इस मांग को खास तवज्जो नहीं दी गई l इनका कहना है कि संगठन द्वारा मुख्यमंत्री से मुलाकात हेतु मुख्यमंत्री कार्यालय में आवेदन किया गया ,लेकिन उन्हें समय नहीं मिल पायाl इनका दावा है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को पूरा ना किये जाने से कर्मचारियों में नाराजगी हैl नतीजन प्रदेश में हाल ही में हुए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव व तीन विधानसभा के उपचुनाव में बहुत से कर्मचारियों ने नोटा का इस्तेमाल किया और प्रदेश सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा l चुनाव से पहले जेसीसी की मीटिंग ना बुलाना भी हार का बहुत बड़ा कारण रहा l संगठन के प्रदेश महासचिव अनिल सेन ने कहा कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में अलग रवैया अपनाया जा रहा है। कभी किसी कर्मचारी को जूनियर बना दिया जाता है और कभी किसी को सीनियर l इसका उदाहरण इस साल मिला है l इस साल शिक्षा विभाग में 17 अप्रैल 2021 को टीजीटी से लेक्चरर प्रमोशन लिस्ट जारी हुई है l 31 मार्च 2021 को 2018 में अनुबंध पर तैनात लेक्चरर ने भी 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया था l अब क्योंकि उनका नियमितीकरण 17 अप्रैल के बाद हुआ तो वे जूनियर हो गए यह इसलिए क्योंकि अनुबंध से नियमित कर्मचारियों की वरिष्ठता की गणना उनके नियमितीकरण के बाद ही की जाती है l 17 अप्रैल को उनके कनिष्ठ रहे रेगुलर टीजीटी प्रमोट होकर लेक्चरर बने और वे सीनियर हो गए l यदि उन अनुबंध पर तैनात प्रवक्ताओं का नियमितीकरण 17 अप्रैल से पहले हो जाता तो वे सीनियर हो जाते l ऐसे ही मामले अन्य विभाग और कैडर में भी सामने आए हैं l
प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर गुहार लगाई है। 27 नवंबर को जेसीसी की बैठक होनी है और अनुबंध कर्मचारी चाहते है कि अनुबंध कार्यकाल को नवंबर माह से नहीं बल्कि 30 सितंबर से घटाया जाए। दरअसल अधिकतर अनुबंध कर्मियों का अनुबंध कार्यकाल 31 मार्च, 2021 को दो वर्ष का पूरा हो चुका है। वर्तमान में यदि सरकार 30 सितंबर, 2021 से अनुबंध काल घटाने का लाभ अनुबंध कर्मचारियों को देती है, तो इससे आंशिक राहत अनुबंध कर्मचारियों को मिलेगी। अनुबंध कर्मचारियों का विश्वास वर्तमान भाजपा सरकार में बना रहेगा। प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ का कहना है कि भविष्य में सरकार को इस कदम के प्रत्यक्ष लाभ मिलेंगे। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ पिछले चार वर्षों से बार-बार अनुबंध कार्यकाल तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष करने की मांग उठा रहा है। हर बार प्रदेश के 19 हजार अनुबंध कर्मचारियों को तारीख पर तारीख दी गई है। कर्मचारियों को 25 सितंबर को प्रस्तावित जेसीसी से उम्मीद थी लेकिन केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के दौरे के चलते पहले सरकार ने जेसीसी टाल दी थी । इस पर उपचुनाव की घोषणा होने के बाद अनुबंध कर्मचारियों की रही सही उम्मीद भी टूट गई थी । कर्मचारी पिछले लम्बे समय से अनुबंध काल तीन से घटाकर दो साल करने की मांग कर रहे है। अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सरकार ने 30 सितंबर और 31 मार्च की तिथियां निर्धारित की है। ऐसे में यदि सितंबर माह से अनुबंध काल को घटाया जाता है तो 30 मार्च को नियमित होने वाले कर्मचारियों को भी इसका लाभ मिलेगा। सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि महासंघ की राज्य कार्यकारिणी एवं जिला कार्यकारिणियों के पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने मुख्यमंत्री, विभिन्न विभागों के मंत्रियों एवं स्थानीय विधायकों को विभिन्न स्थानों पर 2 वर्ष अनुबंध काल करने के लिए कई ज्ञापन सौंपे है। उन्हें हर जगह से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और आश्वासन दिया गया कि मांग को जल्द ही सरकार पूरा करेगी मगर आज तक सरकार ये मांग पूरा नहीं कर पाई है। उम्मीद है कि इस जेसीसी की बैठक के बाद सरकार कर्मचारियों के हित में ही फैसला लेगी।
जेसीसी की बैठक से पहले वन अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने भी अपनी मांगें सरकार को याद दिलाई है। हाल ही में वन अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की बैठक वन वृत्त के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर की अध्यक्षता में मुख्य अरण्यपाल वन वृत्त मंडी एसके मुसाफिर के साथ हुई है, जिसमें वन वृत्त के कर्मचारियों की मांगों को प्रमुखता से उठाया गया l अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने कहा कि वन वृत्त की मुख्य मांगों में कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली, नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता, 2016 में नियुक्त हुए वन रक्षकों की सीनियरिटी, कर्मचारियों का यात्रा भत्ता, कर्मचारियों के स्थानांतरण नीति, वन बीट में वन कर्मियों की नियुक्ति, 4-9-14 का लाभ, वन रक्षकों के पदनाम को बदल कर बीट ऑफिसर रखने बारे इत्यादि मांगों को प्रमुखता से उठाया गया हैl एस के मुसाफिर ने सभी मांगों को ध्यानपूर्वक सुनते हुए मांगों का निपटारा करने का आश्वासन दिया तथा यह भी कहा कि सभी वन मंडल अधिकारियों को भी इस बारे दिशा निर्देश जारी कर दिए जाएंगेl जो मांगे सरकार के स्तर की हैं उन सभी मांगों को सरकार को भेज दिया जाएगा l इस मौके पर वन मंडल अधिकारी मंडी बसु डोगर, वन मंडल अधिकारी नाचन टी आर धीमान, वन मंडल अधिकारी मुख्यालय मुंशीराम इत्यादि अधिकारी उपस्थित रहे तथा संगठन महासचिव विक्रांत चौहान, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हुकुम ठाकुर, अतिरिक्त महासचिव विपिन शर्मा, राकेश कुमार, सुमित, कुलविंदर कुमार, जोगेंद्रनगर वन मंडल के अध्यक्ष छोटू यादव, करसोग वन मंडल के अध्यक्ष हेमराज, महासचिव बुद्धि सिंह, नाचन वन मंडल के अध्यक्ष कमल किशोर, सुकेत वन मंडल के अध्यक्ष विजय कुमार, केहर सिंह, देवेंद्र, नितेश, हेमराज, तेज सिंह, अंकित, वन मंडल जोगिंदर के महासचिव अमित कपूर, कमल किशोर इत्यादि कर्मचारियों ने भाग लिया।
प्रदर्शन के तरीके बदल लिए, चीख-चिल्ला लिए, भूखे रहकर भी देख लिया और नारे लगाकर भी, पर सरकार है के सुनकर भी अनसुना कर देती है। हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में धरने पर बैठे करुणामूलक आश्रितों की। वो करुणामूलक आश्रित जिन्हें क्रमिक अनशन करते करीब चार माह हो गए है। वो आश्रित जिन्हें कायदे से कई सालों पहले नौकरी मिलनी थी मगर अब भी अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे है। लगातार अनशन पर बैठे रहने के बाद, अनगिनत रैलियों और प्रदर्शनों के बाद भी सरकार ने इनकी सुध नहीं ली। हाल फिलहाल में ही करुणामूलक संघ ने प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार की अध्यक्षता में सरकार के खिलाफ रोष रैली भी निकाली गई, पर स्थिति जस की तस है। उपचुनाव में मिले झटके के बाद सरकार कर्मचारियों पर मेहरबान ज़रूर है, परन्तु ये मेहरबानी इन करुणामूलक आश्रितों पर नज़र नहीं आ रही। ये जद्दोहद कितनी लम्बी चलेगी कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता परन्तु हिमाचल के हर अन्य कर्मचारी की तरह इन करुणामूलक आश्रितों के लिए भी जेसीसी की बैठक एक बड़ी उम्मीद है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार का कहना है कि लगभग चार माह से यह करुणामूलक परिवार कालीबाड़ी मंदिर के पास एक वर्षा शालिका में क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे हैं परंतु सरकार इनके प्रति उदासीन है, सरकार इनके हक में कोई फैसला नहीं ले पा रही है। अजय कुमार ने कहा कि प्रदेश भर में 4500 परिवार ऐसे हैं जो करूणामूलक आधार पर नौकरी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों के समय सभी मामलों को एकमुश्त नौकरी देने का वादा सरकार ने किया था, लेकिन सरकार बनने के बाद केवल आश्वासन ही मिले हैं। उनका कहना है कि ऐसा कोई जनमंच नहीं है जहां पर इन्होंने आवाज न उठाई हो। वर्तमान सरकार के मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री के समक्ष भी इन करुणामूलक परिवारों की पीड़ा को उजागर किया गया, परंतु आश्वासनों के सिवा इन परिवारों को कुछ नहीं मिला। करूणामूलक संघ ने प्रशासन व प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि आगामी कैबिनेट में करुणामूलक नौकरियों पर सरकार उचित फैसला लें। प्रभावित परिवार करीब 15 साल से नौकरी का इंतजार कर रहें हैं। करूणामूलक संघ के पदाधिकारियों के कहना है कि अब धैर्य जवाब दे रहा है और सरकार को जहन में रखना चाहिए कि एक आँसू भी हुकूमत के लिए खतरा होता है ... साल 1990 में बनी थी नीति साल 1990 में सरकारी कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए एक नीति बनाई गई। इस नीति के अंतर्गत यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है तो, मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर आर्थिक रूप से कमजोर मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाती है ताकि कर्मचारी के परिवार को उसके जाने के बाद किसी भी तरह की दिक्क्तों का सामना न करना पड़े। सरकार ने इसके लिए वार्षिक आय सीमा का मापदंड तय किया हुआ है। इस आधार पर नौकरी के लिए कोई इंटरव्यू और लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती। पर ये जितना आसान दिखता है उतना है नहीं, करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसके लिए आवेदक को हर जिले में विभाग संबंधित डिवीज़न में आवेदन करना पड़ता है, फिर फाइल चीफ़ ऑफिस होकर सर्कल कार्यालय पर जाती है। उसके बाद विभाग के हेड ऑफिस शिमला पहुंचती है। आम तौर पर कई ऑब्जेक्शन लगते है व फाइल वापिस आ जाती है। ऐसे में फाइनल फाइल शिमला पहुँचते-पहुँचते एक डेढ़ साल लग जाता है। आश्रित की आधी उम्र तो फिर निदेशक द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाई जाती है जहां ज्यादातर मामलों को स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कुछ न कुछ ऑब्जेक्शन लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, कुछ बचे हुए मामलों को अप्रूवल के लिए संबंधित विभाग वित्त विभाग को भेजते हैं। जैसी व्यवस्था है उसमें वित्त विभाग के पास नौकरी की यह फाइल कई सालों तक लटकी रहती है। वित्त विभाग कोई ऑब्जेक्शन लगाता है तो दोबारा यह फाइल उसी रूट से होते हुए वापस पहुंचती है। सवाल ये है कि ऐसी नीतियों को बनाने का क्या मतलब जिसे सार्थक करने में सरकार असफल रहे। ये चाहता है करूणामूलक संघ - समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्ति दी जाएं। - करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। - योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणियों में नौकरी दी जाएं। - 5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्तियां दे सके। - जिन आवेदकों की आयु निकल गई है उन्हें वन टाइम सेटलमेंट दिया जाए।
करीब ढाई माह पहले पंजाब सरकार ने नेशनल पेंशन स्कीम के अधीन आने वाले कर्मचारियों को एक बड़ी राहत दी थी। पंजाब सरकार ने केंद्र की 2009 की अधिसूचना को लागू करने का फैसला लिया था। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का ये ऐलान पंजाब के लाखों कर्मचारियों के लिए तो राहत भरा फैसला था ही, साथ ही हिमाचल के लाखों कर्मचारियों के लिए भी उम्मीद की एक किरण बनकर आया था। दरअसल, हिमाचल प्रदेश भी अपने कर्मचारियों को आर्थिक लाभ देने के लिए पंजाब को फॉलो करता है। जाहिर है ऐसे में यहां के कर्मचारियों को भी अब आस है कि पुरानी पेंशन न सही पर कम से कम 2009 की अधिसूचना लागू करने की सौगात तो जयराम सरकार दे ही सकती है। इस पर उपचुनाव में जो झटका भाजपा को लगा है उसके बाद कर्मचारी वर्ग की उम्मीद और प्रबल है। पुरानी पेंशन बहाली किसी एक संगठन का मुद्दा नहीं है अपितु अमूमन हर कर्मचारी इससे जुड़ा हुआ है। ऐसे में माना जा रहा है कि मिशन रिपीट का स्वपन साकार करने के लिए जयराम सरकार कर्मचारी हित में 2009 की अधिसूचना को लागू करने का निर्णय ले सकती है। इसमें कोई संशय नहीं कि प्रदेश का कर्मचारी वर्ग नई पेंशन स्कीम नहीं चाहता। नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। हिमाचल प्रदेश में आए दिन कर्मचारी प्रदेश सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते है, इसके साथ ही केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करने हेतु भी आवाज़ उठाई जाती है ,जो अब और प्रखर हो गई है। 27 नवंबर को जेसीसी कि बैठक है और हिमाचल के कर्मचारी वर्ग को उम्मीद है कि पंजाब की तर्ज पर हिमाचल में भी 2009 की अधिसूचना लागू होगी। गौरतलब है कि अब तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, असम, हरियाणा , तेलंगाना और पंजाब राज्य 2009 की अधिसूचना का लाभ कर्मचारियों को दे चुके है। ये है 2009 की अधिसूचना केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना में यह प्रावधान है कि अगर नौकरी के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वो कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है तो उसके परिवार को पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्रदान किए जाते हैं। यानि उस कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है। चूँकि ये अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू नहीं की गई है तो ऐसे में यदि हिमाचल के किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है या किसी दुर्घटना में वे दिव्यांग हो जाते है तो उनके परिवार को कोई भी पेंशन नहीं दी जाती। कर्मचारी के जाने के बाद उसके परिवार को आर्थिक मदद के लिए कोई नीति नहीं बनाई गयी है। यही वजह है कि हिमाचल के कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करते।
पुरानी पेंशन बहाल करने का अब वक्त आ गया है : चौहान - विडम्बना : विधायक व सांसद शपथ लेने के बाद ताउम्र - मोटी पेंशन के हकदार और कर्मचारी लाचार हिमाचल प्रदेश जलशक्ति विभाग अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष व पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा हिमाचल प्रदेश के राज्य महामंत्री एल डी चौहान ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि कर्मचारियों की 2003 से छीनी गई उनके बुढ़ापे की लाठी यानी पुरानी पेंशन योजना को केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा बहाल किया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार को पुरानी पेंशन को बहाल करना ही पड़ेगा। ये विडम्बना है कि एक विधायक व सांसद शपथ लेने के बाद ताउम्र -मोटी पेंशन के हकदार हो जाते है और कर्मचारियों को 33 साल सेवा देने के बाद भी नियमित पेंशन से वंचित कर दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर किया जा रहा है। एल डी चौहान ने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम एक ईमानदार नेता है लेकिन अफसरों द्वारा जानबूझकर कर्मचारियों के मुद्दों को लटकाया जा रहा है व मुख्यमंत्री को गुमराह किया जा रहा है, जिसके चलते आज प्रदेश का कर्मचारी सरकार से नाराज है। पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा ने मुख्यमंत्री से दृष्टि पत्र की मांगों पर गौर करने का भी आग्रह किया है जिसमें 4-9-14 वेतनवृद्धि पर फैंसला, पेंशन पर कमेटी का गठन करने की बात, पिछले वेतन आयोग में विसंगतियों को दूर करने जैसी बातें कही गयी थी। पर चार वर्ष बीत जाने के बाद भी उस ओर कार्यवाही न होना दुख का विषय है और अब कर्मचारियों में रोष है। चौहान ने कहा कि एनपीएस पर केंद्र द्वारा जारी 5 मई 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में जल्द लागू करने के बारे में स्वयं मुख्यमंत्री ने कहा था लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। चौहान ने कहा कि मुख्यमंत्री समय रहते केंद्र की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करवाकर शीघ्र पुरानी पेंशन की बहाली हेतु कमेटी के माध्यम से कार्य प्रारंभ करें तथा प्रदेश के लगभग 80 हजार एनपीएस कर्मियों हेतु पुरानी पेंशन को बहाल करवाकर इतिहास रचे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा महंगाई भत्ता व छठे वेतन आयोग की सिफारिशें कर्मियों का कानूनी हक है, वो हर हाल में शीघ्र मिलना चाहिए।
पक्ष : शिक्षकों के साथ बेईमानी है जेसीसी बैठक का प्रारूप ! - हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा हिमाचल प्रदेश में जेसीसी बैठक की तारीख तय होने से कर्मचारियों में फिर उम्मीद की लहर जाग उठी है। कर्मचारी आस लगाए बैठे है कि चार साल बाद शायद अब उनके मसलों का निवारण होगा। परन्तु प्रदेश का एक कर्मचारी तबका अब भी नाखुश है। प्रदेश के स्कूलों कॉलेजों में पढ़ा रहे शिक्षक अब भी सरकार से खफा नजर आ रहे है। दरससल जेसीसी की बैठक में शिक्षक संगठनों की तरफ से किसी प्रतिनिधि को शामिल न करने को लेकर कुछ शिक्षक संगठन नाराज चल रहे है। जेसीसी में शामिल न करने पर हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ का कहना है कि प्रदेश सरकार अपने आप को कर्मचारी हितैषी होने का दावा तो करती है लेकिन हकीकत तो यह है कि सरकार के चार साल का कार्यकाल पूरा होने को जा रहा है और अब तक सरकार ने शिक्षकों एवं कर्मचारियों के किसी भी मुद्दे को हल नहीं किया है, या यूं कहें कि सरकार ने अपने 4 साल के कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को किसी भी प्रकार का कोई भी लाभ नहीं दिया है। संघ ने सरकार पर शिक्षकों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि हिमाचल में 90 हजार के आसपास शिक्षक कार्यरत है लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को सुनने के लिए जेसीसी जैसा कोई भी उचित प्लेटफार्म नहीं बनाया है जिससे शिक्षकों एवं शिक्षार्थी हित में मांगों पर चर्चा उपरांत उसका निराकरण किया जा सके l हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का कहना है कि जेसीसी की बैठक का प्रारूप अपने आप में एक बेईमानी है क्योंकि इसमें शिक्षकों का इतना बड़ा वर्ग समायोजित नहीं किया गया है l एनजीओ को मान्यता के स्थान पर लोकतांत्रिक तरीके से सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों को चुनाव के माध्यम से जेसीसी के गठन करने की संघ लंबे समय से मांग कर रहा है, जिससे सभी कर्मचारियों के हितों का एक उचित व तार्किक प्लेटफॉर्म के माध्यम से निराकरण संभव है l इस संदर्भ में संघ ने कई मर्तबा मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री को ज्ञापन देकर शिक्षकों के लिए जेसीसी बैठक की मांग उठाई जिसको सरकार नजरअंदाज कर रही हैl संघ ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश के कर्मचारियों एवं शिक्षकों के भत्ते का भुगतान केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर किया जाए l प्रदेश के कर्मचारियों के लंबित 5 प्रतिशत डीए का भुगतान तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए क्योंकि केंद्र सरकार बहुत पहले इसे जारी कर चुकी है और पंजाब ने भी एकमुश्त 11 प्रतिशत डीए की किस्त जारी कर दी है इसलिए हिमाचल के कर्मचारियों को डीए की किश्त देने के लिए किसी औपचारिक बैठक का इंतजार करना प्रदेश के कर्मचारियों के साथ बेईमानी है l शिक्षक संघो की अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास : चौहान हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने कहा कि शिक्षा सचिव व शिक्षा निदेशक ने अभी तक संघ के साथ एक भी एजेंडा बैठक नहीं की है, जिससे शिक्षकों के मुद्दे हल हो सके l चौहान का कहना है कि सरकार कुछ कर्मचारी नेताओं को खुश करने में लगी है और कर्मचारियों एवं शिक्षकों के मुद्दों पर मौन है l कर्मचारी वर्ग लंबे समय से आस लगाए बैठा हैं, इसी वजह से कर्मचारियों में रोष है l सरकार के प्रति कर्मचारियों की नाराजगी का अंदाजा उपचुनाव के नतीजों से लगाया जा सकता है l चौहान ने कहा कि शिक्षा निदेशक उच्च की तानाशाही का अंदाज़ा 17 .04 .2021 जारी अधिसूचना से लगाया जा सकता है जिसमें शिक्षक संघो की अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीनने का प्रयास किया गया है l इसमें कहा गया है कि कोई भी शिक्षक नेता सरकार व विभाग के निर्णय के खिलाफ मीडिया या किसी भी माध्यम से विरोध स्वरूप अपनी आवाज उठाएगा तो उसके खिलाफ सीसीएस रूल 1964 के दायरे में अनुशासनात्मक कार्यवाही अमल में लायी जाएगी। इसकी आड़ में संघ के तीन पदाधिकारियों पर कार्यवाही की गयी। संघ द्वारा मामला मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री के ध्यान में लाने पर भी आज तक इस तुगलकी फरमान को निरस्त नही किया गया है, जो सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है। चौहान का आरोप है कि उनकी आवाज़ रोकने के लिए उन पर दो - दो झूठी चार्जशीट बनाई गई है और कम से कम 10 शो कॉज नोटिस अभी तक दिए जा चुके है। आखिर कब लागू होगा छठा वेतन आयोग : हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का कहना है कि प्रदेश का छठा वेतन आयोग 1.1. 2016 से देय है, पांच वर्ष की अवधि बीत जाने पर भी सरकार द्वारा अभी तक इस संदर्भ में कोई कदम नहीं उठाया गया है l संघ ने सरकार से बार-बार आग्रह किया है कि जब हम सेवा नियमों पर केंद्र का अनुसरण करते हैं तो वित्त नियमों पर भी हिमाचल को केंद्रीय वित्त आयोग का अनुसरण करना चाहिए l संघ का कहना है कि अब तो पंजाब सरकार ने भी छठा वेतन आयोग लागू कर दिया है इसलिए हिमाचल में इसे लागू करने के लिए सरकार को किसी जेसीसी जैसी बैठक का इंतजार करने का कोई औचित्य नहीं है, इससे तुरंत प्रभाव से हिमाचल में लागू करने की आवश्यकता है l
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ का एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर की अध्यक्षता में विद्युत बोर्ड प्रबंधन से मिला। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने तकनीकी कर्मचारियों की मांगों के बारे में विस्तार से चर्चा की। इन मांगो में जूनियर टी मेट व जूनियर हेल्पर की पदौन्नति समयावधि मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप 5 वर्ष से 3 वर्ष करना, इलेक्ट्रीशियन, स्टोरकीपर और हेल्पर सब स्टेशन की ग्रेड पे विशंगति को दूर करना, एसएसए नॉन आईटीआई से जे ई सब स्टेशन के लिए पदौन्नति समयावधि 10 वर्ष से 7 वर्ष करना, सहायक लाइन मैन से लाइन मैन पदौन्नति की समयावधि को 4 वर्ष से दो वर्ष करना, इलेक्ट्रीशियन M&T व इलेक्ट्रीशियन ऑटो की पदोन्नति समयावधि 10 वर्ष से 7 वर्ष करना इत्यादि शामिल है। वंही इन सभी विषयों पर बोर्ड प्रबंधन ने सकारात्मक रुख अपनाते हुए इनका समाधान इसी महीने करने का आश्वाशन दिया। दूनी चंद ठाकुर ने कहा कि तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक दिनांक 15 नवम्बर को बिलासपुर में होनी निश्चित हुई है। उस बैठक में भी इन सभी मांगों को लेकर चर्चा की जायेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 29 नवंबर को भारतीय मजदूर संघ के प्रस्तावित धरने से पूर्व अगर बोर्ड प्रबंधन परिणाम नहीं देता है तो तकनीकी कर्मचारी संघ के जो कार्यकर्ता इस धरने में आएंगे वह विद्युत मुख्यालय का रुख भी कर सकते हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि तकनीकी कर्मचारी संघ का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से भी मिलेगा।
अक्सर गरजने वाले अब बरसने की पूरी तैयारी में है। नाराज़गी इस हद तक बढ़ गई है की अब ये कर्मचारी आर पार की लड़ाई के मूड में नज़र आ रहे है, दावा तो इनका कुछ ऐसा ही है। हम बात कर रहे है हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हज़ारों आउटसोर्स कर्मचारियों की। इन कर्मचारियों का संगठन 'आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ' इन चार उपचुनावों में भाजपा को वोट ना डालने का ऐलान कर चूका है। भाजपा को वोट न जाए इसके लिए बाकायदा सोशल मीडिया पर हैशटैग अभियान भी चलाया जा रहा है। " नो वोट फॉर भाजपा" के पॉस्टर के साथ तसवीरें खिचवा कर फेसबुक पर वायरल की जा रही है। सवाल ये है कि आखिर सरकार से इतनी नाराज़गी क्यों ? दरअसल ये मुहिम आउटसोर्स कर्मचारियों के मुद्दों को अक्सर उठाने वाले आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ द्वारा चलाई जा रही है। संघ का कहना है अनगिनत प्रयासों और कड़े परिश्रम के बाद भी जयराम सरकार उनकी मांगों को अनसुना करती रही है। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक स्थाई पॉलिसी बनाने की मांग को लेकर ये कर्मचारी भटकते रहे लेकिन सरकार ने इन्हें अनदेखा किया। प्रदेश में उपचुनाव का दौर है और अब ये कर्मचारी सरकार को अनदेखा करने का मन बना चुके है। आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ये एलान कर चूका है कि जब तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बनाई जाती तब तक वो चुनाव में भाजपा को वोट नहीं डालेंगे। बहरहाल इनकी अपील का कितना असर होता है ये तो विश्लेषण का विषय होगा, पर इस तरह एक कर्मचारी संगठन के सत्तारूढ़ दल के खिलाफ मोर्चा खोलने से इतना तय है कि आने वाले दिनों में सियासत खूब गर्माने वाली है। इसमें कोई संशय नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने और गिराने में कर्मचारियों का बड़ा हाथ रहता है। सत्ता प्राप्ति के लिए कर्मचारियों का पक्ष में होना कितना महत्वपूर्ण है ये नेता भली भाति जानते है। इस वक़्त दोनों ही राजनीतिक दल कर्मचारियों को साधने के लिए प्रयासरत है। जहां सत्ताधारी पार्टी भाजपा, जेसीसी का हवाला देकर कर्मचारियों को बांधे रखना चाहती है वहीं कांग्रेस, भाजपा के अधूरे वादे और कर्मचारियों कि लंबित पड़ी मांगों को बार बार याद करवा कर्मचारियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है। कांग्रेस कर्मचारियों को ये यकीन भी दिला रही है कि जब उनकी सरकार आएगी तो कर्मचारियों की स्थिति बेहतर होगी। 2017 में किये गए कई वादे अभी भी अधूरे 2017 के चुनाव के दौरान जीत सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों से किये गए कई वादे अब भी अधूरे है। जो पूरा नहीं हो पाए उसकी ठीस कर्मचारियों के मन में है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। 2022 से पहले अभी सरकार के पास एक पूरा साल बाकी है, कई कर्मचारी इस साल में कुछ बेहतर की उम्मीद कर रहे है तो कुछ ने अभी से मोर्चा संभाल लिया है। आउटसोर्स कर्मचारियों का कहना है कि वे पिछले कई सालों से संघर्ष कर रहे है, और अब और इंतज़ार करना उनके लिए संभव नहीं। इन कर्मचारियों का कहना है कि वे हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है, मगर साल दर साल उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। आउटसोर्स कर्मचारी पिछले कई सालों से अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे है मगर सरकार सिर्फ आश्वासन ही देती रही है। भाजपा का किया जाएगा बहिष्कार: शैलेन्द्र आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा का कहना है कि, 'प्रदेश में 35000 से अधिक कर्मचारी विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है जिनकी मांगों को समय- समय पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्रीगण व लगभग हर विधायक के समक्ष उठाया है। ये बहुत दुःख कि बात है कि आज दिन तक इन कर्मचारियों की सुनवाई सरकार ने नहीं की। प्रदेश में 4 अलग अलग क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे है और हमारी मांगें पूरी न होने का खामियाज़ा भारतीय जनता पार्टी इन उपचुनावों में भुगतेगी। भाजपा अक्सर डबल इंजीन की बात करती है पर जब कर्मचारियों कि बात आती है तो पार्टी के सभी इंजन रुक जाते है। पुरे प्रदेश में 35000 परिवार लगातार इस सरकार से गुहार लगाते रहे लेकिन उन्हें छुटमुट राहतों और आश्वासनों के आलावा और कुछ नहीं मिला। इन्ही कारणों के चलते हमने ये फैसला लिया है कि जब तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बनती तब तक चुनाव में भाजपा का बहिष्कार किया जाएगा। आउटसोर्स कर्मचारियों को मलाल तो इस बात का है की जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर- शोर से उठाया मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वे भी इसकी सुध नहीं ले रहे। विपक्ष द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने साफ शब्दों में आउटसोर्स कर्मचारी को नियमित करने को लेकर किसी भी पालिसी से इनकार किया। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों पर हो रहे शोषण को कम करने की बात जरूर कही गई और कहा की शोषण करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई भी की जाएगी, पर अमल नहीं किया गया। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद इनके लिए नीति बनाने में कानूनी पेंच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। मुश्किल में न ठेकेदार साथ देता हैं न सरकार शैलेन्द्र के अनुसार कुछ दिन पहले ही एक मामला सामने आया था जिसमें बिजली विभाग में नियुक्त एक आउटसोर्स कर्मचारी की करंट लगने से हालत गंभीर हो गई। उसे आईजीएमसी तक रेफर कर दिया गया मगर न तो ठेकेदार ने उसकी कोई सहायता की और न ही सरकार ने। इसी तरह आउटसोर्स पर तैनात नर्सेज, अध्यापक और जल शक्ति विभाग के कर्मचारियों के शोषण की खबर भी आये दिन सामने आती रहती है। कमीशन काटकर वेतन देते हैं ठेकदार आउटसोर्स कर्मचारी वे कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट आधार पर रखा जाता है। यानी कि ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद इन तक तक पहुंच पाता है। शोषण कम करने को सरकार ने नहीं बनाई ठोस नीति: महासंघ हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है की प्रदेश के विभिन्न विभागों में हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है लेकिन सरकार द्वारा इनके नियमतिकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और न ही इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। नामात्र वेतन पे भी इनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता हैं, बात चाहे बिजली विभाग की हो, शिक्षा, स्वास्थ्य, या जल शक्ति विभाग की, आउटसोर्स कर्मचारी हर जगह पूरी निष्ठां से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। इनका कहना हैं कि लॉकडाउन में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं।
"कुछ शिक्षक संगठनों का काम सिर्फ सरकार की चमचागिरी व पब्लिसिटी करना मात्र रह गया है", ये कहना है हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ के उपाध्यक्ष वीरेंद्र चौहान का। हिमाचल में कर्मचारियों के आपसी मतभेद एवं गुटबाज़ी कोई नई बात नहीं है। मुख्य राजनीतिक दलों की ही तर्ज पर कर्मचारी संगठनों में भी राजनीति गरमाई रहती है। कभी अंदरखाते तो कभी ये आपसी रार खुले मंच पर साफ़ साफ़ दिखाई देती है। ताज़ा मामला शिक्षकों का है ,जहां मांगें पूरी होने के बाद क्रेडिट को लेकर घमासान मचा हुआ है। हिमाचल राजकीय अध्यापक महासंघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने अन्य शिक्षक संगठनों को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि कुछ संगठनों का काम सिर्फ सरकार की चमचागिरी वह पब्लिसिटी करना मात्र रह गया है। चौहान का कहना है कि शिक्षकों को गुमराह करने वाले ऐसे संगठन श्रेय लेने के लिए सबसे आगे खड़े हो जाते हैं। दरअसल हाल ही में हिमाचल सरकार ने कैबिनेट बैठक में जेबीटी और सी एंड वी शिक्षकों के स्थानांतरण नीति में बदलाव को लेकर कुछ महत्वपूर्ण और कर्मचारी हितेषी निर्णय लिए है। चौहान का कहना है जो निर्णय लिया है उसे हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ लंबे समय से सरकार के समक्ष उठा रहा था और इस दिशा में संघ में सरकार और विभाग को कई मर्तबा अल्टीमेटम भी दिया था l एक मई 2018 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज एवं शिक्षा सचिव अरुण शर्मा ने हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के साथ सचिवालय में हुई बैठक में इस मुद्दे पर अपनी सहमति दी थी, जिसमें जेबीटी और सी एंड वी के स्थानांतरण के लिए ठहराव अवधि को 13 साल से 5 वर्ष करने एवं कोटा 1 प्रतिशत से 5 प्रतिशत करने की बात को स्वीकारा था l पर लंबे समय तक इस मांग को सरकार ने पूरा नहीं किया जिसके लिए संघ ने सरकार को अल्टीमेटम भी दिया था। चौहान का कहना है कि प्रयास हमने किये और श्रेय कोई और ले रहा है। उन्होंने कहा कि श्रेय लेने वाले संगठन बताएं कि उन्होंने कितनी बार सरकार को मांगे न माने जाने पर अल्टीमेटम दिया या सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन या विरोध प्रकट किया l वहीँ चौहान के इन आरोपों को दूसरे शिक्षक संगठनों ने पूरी तरह खारिज किया है। उनका कहना है चौहान एक ऐसे संगठन के अध्यक्ष है जिसे संगठन कहा ही नहीं जा सकता क्योंकि उसमें लोग ही नहीं है। सभी शिक्षक जानते है की सरकार ने किसके कहने पर ये फैसला लिया है। चौहान इस तरह के बयान देकर सिर्फ सुर्ख़ियों में रहना चाहते है और कुछ नहीं। अन्य ज्वलंत मुद्दे हल करवाएं, मैं नतमस्तक हो जाऊंगा : चौहान हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान का कहना है कि " यदि चापलूसी से या शांतिपूर्ण तरीके से शिक्षकों की मांगों का समाधान हो जाता है तो मैं इन संगठनों को चुनौती देता हूँ कि वह शिक्षकों के जो अन्य ज्वलंत मुद्दे है उन्हें जल्द हल करवाएं। इनमें 4-9-14 टाइम स्केल को बहाल करना, 2016 से केंद्र सरकार के पे - कमीशन को लागू करना, पुरानी पेंशन बहाल करने , केंद्र सरकार की तर्ज पर सभी भत्ते हिमाचल में भी दिलवाना, 15 साल की स्टैग्नेशन पर सी एंड वी की तर्ज पर अन्य वर्गों को भी दो वेतन वृद्धि दिलवाना, 300 से अधिक अर्जित अवकाश को सर्विस बुक पर क्रेडिट करवाना, नए मानदंडों के तहत वाइस प्रिंसिपल की पोस्ट मुहैया करवाना, स्कूल न्यू को हटाकर प्रवक्ता स्कूल पदनाम दिलवाना, 2017 से 2021 तक के कार्यभार युक्त प्रधानाचार्य को नियमित पदोन्नति दिलाना, सभी स्कूलों मे प्री प्राइमरी कक्षा का प्रावधान कर नियमित एनटीटी शिक्षक लगवाना प्रमुख है। यदि ऐसा होता है तो मैं इनके आगे नतमस्तक हो जाऊंगा।" जेसीसी में मिले प्रतिनिधित्व : हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का कहना है कि शिक्षकों के तमाम मुद्दों का हल तब तक नहीं हो सकता जब तक शिक्षकों के लिए अलग से जेसीसी का प्रावधान न हो। इसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री स्वयं करें और बैठक में सरकार के सभी आला अधिकारी और संगठनों के पदाधिकारी शामिल हो। इसीलिए संघ लगातार 9 सालों से शिक्षकों के लिए अलग से जेसीसी की बैठक करवाने की मांग कर रहा है अन्यथा सरकार को शिक्षकों के लिए भी जेसीसी के वर्तमान प्रारूप में प्रतिनिधित्व देना चाहिए जिससे शिक्षक और शिक्षार्थी हित की बात भी की जा सके।
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कार्य कर रहे 1341 कम्प्यूटर टीचर बीते 21 वर्षों से नियमितिकरण के लिए तरस रहे हैं। आज तक इस वर्ग के अध्यापकों को नियमित करने के लिए सरकार द्वारा कोई भी नीति नहीं बनाई गई है। जबकि प्रदेश सरकार द्वारा पैट, पीटीए, विद्या उपासक अध्यापकों, जलवाहक, दैनिक भोगी मजदूर सहित अनेक श्रेणियों के अस्थायी कर्मचारियों को नियमित किया गया है। कम्प्यूटर अध्यापक संघ के प्रधान हेतराम ठाकुर ने सरकार से नीति तैयार करने की मांग की है। हेतराम ठाकुर ने कहा कि वर्ष 1998 में पूर्व भाजपा सरकार के सीएम प्रेम कुमार धूमल द्वारा शुरुआती दौर में सेल्फ फाइनेंसिंग प्रोजेक्ट के तहत 250 स्कूलों में कंप्यूटर टीचरों को तैनात किया गया था। उसके बाद 2001 में सरकार द्वारा 900 स्कूलों में आईटी शिक्षा आरंभ की गई और कंप्यूटर टीचरों को नाइलेट कंपनी के अधीन कर दिया गया था। वर्ष 2010 में कंप्यूटर टीचरों को आउटसोर्स नाम दिया गया। जो पैट, पीटीए व विद्या उपासक टीचर 2006 के बाद नियुक्त किए गए थे उन्हें सरकार ने नीति बनाकर रेगुलर कर दिया परंतु कंप्यूटर टीचरों के बारे आजतक किसी भी सरकार ने नहीं सोचा। एक ओर सरकार आईटी शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है वहीं पर कम्प्यूटर टीचरों का बीते दो दशकों से शोषण हो रहा है। महंगाई के दौर में कम्प्यूटर टीचर मात्र 12870 रुपए मासिक वेतन पर कार्य कर रहे है। चालू वित्त वर्ष के बजट में केवल 500 रुपए बढ़ाए गए हैं।
पेंशन न मिलने से सेवानिवृत्त कर्मचारी खफा हो गए है। स्थानीय निकाय के पास पर्याप्त बजट न होने के चलते सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने सीधे शहरी विकास विभाग के निदेशालय से पेंशन का भुगतान करने की मांग की है। बीते दिनों पेंशन के मुद्दे को लेकर नगर परिषदों में कार्यरत और सेवानिवृत्त कार्यकारी अधिकारियों, सचिव, अभियंता की राज्य स्तरीय बैठक हुई है। स्थानीय निकाय कर्मचारी-अधिकारी संघ के अध्यक्ष बीआर नेगी का कहना है कि स्थानीय निकायों से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिल रही है। उनका कहना है की पहले भी कई दफा सरकार को इस बारे में अवगत करवाया गया है लेकिन सरकार द्वारा इस ओर कोई उचित कदम नहीं उठाए गए हैं। स्थानीय निकाय अधिकारी-कर्मचारी संघ ने अपने मुद्दों को सरकार तक पहुँचाने हेतु आगामी रणनीति बनाने के लिए प्रधान बीआर नेगी की अध्यक्षता में एक बैठक भी की। बीआर नेगी ने कहा कि इस संदर्भ में मुख्यमंत्री व प्रदेश सरकार द्वारा भी आश्वासन दिया गया है कि स्थानीय निकायों के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन नगर पालिका अधिनियम 1994 तथा सेवा अधिनियम के प्रावधान के अनुसार दे दी जाएगी, परन्तु अभी तक यह सिरे नहीं चढ़ पाया है। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एवं शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज से आग्रह किया गया कि शीघ्र अति शीघ्र स्थानीय निकायों के स्टेट लेवल के जितने भी सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं, उन सब को नियमानुसार पेंशन, निदेशक शहरी विकास विभाग शिमला हिमाचल प्रदेश के माध्यम से दी जाए। उन्होंने कहा कि संघ द्वारा एक स्टेट लेवल की एक्शन कमेटी गठित की गई है जो इस कार्य को अमलीजामा पहनाने के लिए प्रयास करेगी ताकि इन पेंशनरों को कोई समस्या न झेलनी पड़े।
"सरकार हम लोगों के साथ लगातार सौतेला व्यवहार कर रही है। हमारी बात सुनने वाला कोई भी मौजूद नहीं है।" ये कहना है प्रदेश में एनएनएम डिप्लोमा धारक करीब छह हजार महिलाओं का जो 2012 से रोजगार की तलाश में हैं। इन बेरोजगार स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रदेश सरकार न तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में बैचवाइज और न ही कमीशन से एनएनएम की भर्ती कर रही है। अब ये स्वास्थ्य कार्यकर्ता अनशन पर बैठने को तैयार है। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेरोजगार संघ की प्रदेश अध्यक्ष सुदर्शना कुमारी का कहना है कि सरकार उनसे लगातार सौतेला व्यवहार कर रही है। उनकी किसी भी मंच पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। प्रदेश सरकार की ओर से जब भी एनएनएम की भर्तियां निकाली जाती है तो उसमें जीएनएम और बीएससी को भी अप्लाई करने के लिए छूट दी जाती है। इस कारण कुछ पद मैरिट और हाई क्वालिफिकेशन के कारण भर लिए जाते हैं और कुछ पद आरक्षण के चलते भर दिए जाते हैं। इस कारण एनएनएम को किसी भी भर्ती में मौका ही नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा कि यदि सरकार रोजगार नहीं दे सकती तो एनएनएम की ट्रेनिंग क्यों करवाई जा रही है। इस बारे में कई बार प्रदेश मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और स्वास्थ्य मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया है लेकिन अब एनएनएम कार्यकर्ताओं के पास कोई रास्ता नहीं बचा है। ऐसे में अब स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अनशन करने की बात कही है।
लगातार पुरानी पेंशन की मांग करने वाले संगठन नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा पूरे प्रदेश में ब्लाक स्तर से प्रदेश स्तर की कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया जा रहा है l इसी कड़ी में अभी तक लगभग 80 ब्लॉक की कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया जा चुका है l शेष सभी ब्लॉक की कार्यकारिणी का पुनर्गठन भी जल्द कर दिया जाएगा। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर तथा महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि जिला कार्यकारिणी का पुनर्गठन शुरू कर दिया गया है जिसमें सबसे पहले जिला सिरमौर की कार्यकारिणी का पुनर्गठन हुआ जिसके बाद बिलासपुर की कार्यकारिणी का भी गठन हुआ l वहीँ 9 अक्टूबर जिला कांगड़ा, 10 अक्टूबर जिला हमीरपुर, 17 अक्टूबर जिला किन्नौर, 20 अक्टूबर जिला ऊना, 24 अक्टूबर जिला मंडी, 31 अक्टूबर जिला शिमला, 7 अक्टूबर जिला सोलन, 13 अक्टूबर जिला लाहौल स्पीति, 14 अक्टूबर जिला कुल्लू, 19 अक्टूबर जिला चंबा की कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया जाएगा ल प्रदीप ठाकुर ने कहा कि सभी कार्यकारिणी का पुनर्गठन महासंघ को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है l नए कर्मचारियों को महासंघ में जोड़कर उन्हें कुछ जिम्मेदारियां दी जा रही हैंl एनपीएस मौलिक अधिकारों का हनन : प्रदीप नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली है जिसके लिए महासंघ द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री को कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग को जल्द पूरा कर देना चाहिए ताकि कर्मचारियों का मनोबल बढ़ सके। हिमाचल में कर्मचारी लगातार पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है, दरअसल नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। सरकार को समझ लेना चाहिए कि ये आंदोलन यदि और प्रखर होता है तो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। इस मुद्दे पर हर कर्मचारी वर्ग हमारे साथ है। - प्रदीप ठाकुर, अध्यक्ष, नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ।
आखिरकार उम्मीद टूट गई। कड़े यतन के बावजूद भी अनुबंध काल कम करने की कर्मचारियों की एक प्रमुख मांग को सरकार समय रहते पूरा नहीं कर पाई। कर्मचारियों को 25 सितम्बर को प्रस्तावित जेसीसी से उम्मीद थी लेकिन केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के दौरे के चलते पहले सरकार ने जेसीसी टाल दी। इस पर हाल ही में उपचुनाव की घोषणा होने के बाद अनुबंध कर्मचारियों की रही सही उम्मीद भी टूट गई। दरअसल अनुबंध कर्मचारी लगातार सरकार से जेसीसी की बैठक 30 सितम्बर से पहले करवाने की मांग कर रहे थे ताकि हर अनुबंध कर्मचारी को इसका लाभ मिल सके, परन्तु ऐसा नहीं हो पाया। कर्मचारी पिछले लम्बे समय से अनुबंध काल तीन से घटाकर दो साल करने की मांग कर रहे है। अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सरकार ने 30 सितंबर और 31 मार्च की तिथियां निर्धारित की है। ऐसे में यदि 30 तारीख से पहले जेसीसी हो पाती और अनुबंध काल को घटाया जाता तो 30 मार्च को नियमित होने वाले कर्मचारियों को भी इसका लाभ मिल पाता। हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ का कहना है कि भाजपा द्वारा हिमाचल में सत्ता में आने से पहले और आने के बाद अनुबंध कार्यकाल घटाकर 3 वर्ष से 2 वर्ष करने के लिए किए गए वादे को सरकार आज तक पूरा नहीं कर पाई है। सरकार को सत्ता में आए 4 साल बीत गए परन्तु मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर आज तक अनुबंध कर्मचारियों के हित में ये फैसला नहीं ले पाए। लगातार 4 वर्षों से मुख्यमंत्री के आश्वासन के झूले पे झूलते विभिन्न विभागों में कार्यरत 19 हजार से ज्यादा अनुबंध कर्मचारियों में रोष है ल सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि महासंघ की राज्य कार्यकारिणी एवं जिला कार्यकारिणियों के पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने मुख्यमंत्री, विभिन्न विभागों के मंत्रियों एवं स्थानीय विधायकों को विभिन्न स्थानों पर 2 वर्ष अनुबंध काल करने के लिए कई ज्ञापन सौंपे है। उन्हें हर जगह से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और आश्वासन दिया गया कि मांग को जल्द ही सरकार पूरा करेगी मगर आज तक सरकार ये मांग पूरा नहीं कर पाई है। महासंघ का कहना है कि अगस्त महीने में भी महासंघ की राज्य कार्यकारिणी की ओर से महासचिव सुरेंद्र नड्डा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, उपाध्यक्ष सुनील शर्मा, उपाध्यक्ष संदीप शर्मा एवं वित्त सचिव अविनाश सैनी ने मुख्यमंत्री सहित कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज, महेंद्र सिंह ठाकुर, गोविंद सिंह ठाकुर, राजीव सैजल, वीरेंद्र कंवर, मुख्य वित्त सचिव प्रबोध सक्सेना, हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्विनी ठाकुर, हिमाचल प्रदेश सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष भूपेंदर सिंह, एवं महासचिव महेश शर्मा को शिमला में एवं अराजपत्रित महासंघ के महासचिव राजेश शर्मा को जिला मण्डी में ज्ञापन दिए और विस्तार पूर्वक बताया की अनुबंध कर्मचारियों के लिए 30 सितंबर 2021 एक महत्वपूर्ण तिथि है। अगर 30 सितंबर से पहले पहले अधिसूचना होती है, तो अधिकतम कर्मचारी लाभान्वित होंगे परंतु अगर 30 सितंबर से पहले अधिसूचना नहीं होती है तो हज़ारों अनुबंध कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। उपचुनाव में भुगतना होगा खामियाजा : अरुण सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अरुण भरद्वाज का कहना है की मांग समय से पूरी न होने के चलते अनुबंध कर्मचारियों में रोष है। सरकार की देरी के चलते कर्मचारियों को नुक्सान झेलना पड़ा है। आज समस्त अनुबंध कर्मचारी ठगा सा महसूस कर रहे है। हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की तरफ से जेसीसी मीटिंग में मांगी गई संभावित पांच मांगों में हमारी मांग पहली तीन मांगों में शामिल की गई थी। लगभग सभी विभागों द्वारा दिए गए मांग पत्र में हमारी मांग को प्रमुखता से शामिल किया गया। प्रदेश का हर कर्मचारी हमारे साथ है। यदि सरकार ने अब हमारी मांग पूरी नहीं की तो ये आंदोलन और तेज़ होगा। आगामी उपचुनाव में भी सरकार को इसका खामियाजा भुगतना होगा।
राज्य के हजारों अनुबंध कर्मचारी जेसीसी की तारीख तय होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। जैसे -जैसे 30 सितंबर की तारीख नजदीक आ रही है, इनकी बैचेनी और अधिक बढ़ रही है। अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सरकार ने 30 सितंबर और 31 मार्च की तिथियां निर्धारित की है। यदि 30 तारिख से पहले जेसीसी नहीं होती है और अनुबंध काल को नहीं घटाया जाता तो आगामी 30 तारिख को नियमित होने वाले कर्मचारियों को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। कर्मचारी मांग कर रहे हैं कि अनुबंध अवधि को सरकार तीन से घटाकर दो साल करे और जेसीसी को 30 सितम्बर से पहले किया जाए। विदित रहे कि जेसीसी की तारिख पहले 25 सितंबर तय की गई थी लेकिन बाद में इसे टाल दिया गया क्योंकि इस रोज प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की लांचिंग के लिए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल शिमला आ रहे हैं। सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने सरकार से मांग की है कि कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए जेसीसी की बैठक इसी माह बुलाई जाए। उन्होंने कहा कि महासंघ पिछले लगभग 4 वर्षो से अनुबंध कार्यकाल को 3 वर्ष से 2 वर्ष कराने की गुहार लगा रहा है लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिले है। सूबे के सभी अनुबंध कर्मचारियों व उनके परिवारजनों को पूरा विश्वास था कि मुख्यमंत्री 15 अगस्त को अनुबंध कार्यकाल कम करने की घोषणा करेंगे लेकिन अनुबंध कर्मचारियों के हाथ निराशा ही लगी। सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ का कहना है कि राज्य में उच्च शिक्षा समेत कई विभागों ने अपने यहां तीन साल पूरा कर चुके अनुबंध कर्मचारियों को रेगुलर करना शुरू कर दिया है। उच्च शिक्षा विभाग ने स्कूल लेक्चरर न्यू के लिए तय फारमेट पर सभी जिलों से अनुबंध के शिक्षकों की जानकारी मांग ली है। जलशक्ति और स्वास्थ्य विभागों से भी ऐसी ही सूचना है। दरअसल कार्मिक विभाग ने 30 मार्च को इस बारे में अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया था कि 31 मार्च और 31 सितंबर 2021 को तीन साल पूरा करने वाले कर्मचारी रेगुलर किये जाएं। इसी अनुसार अब विभागों ने रेगुलराइजेशन का प्रोसेस शुरू कर दिया गया है। इसलिए 30 सितम्बर से पहले हो बैठक सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ का कहना है कि यदि जेसीसी की बैठक इसी माह न कर के अगले माह की जाती है और उसमें यदि अनुबंध अवधि को 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष कर भी दिया जाता है तो इस घोषणा का लाभ इन कर्मचारियों को नहीं मिल पाएगा। अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सरकार ने 30 सितंबर और 31 मार्च की तिथियां निर्धारित कर रखी हैं। इस प्रकार यह घोषणा अनुबंध कर्मचारियों के साथ किया गया एक भद्दा मजाक साबित होगी। अपने ही चुनावी वादे की बार-बार अनदेखी कर रही सरकार : अरुण सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अरुण भारद्वाज का कहना है कि महासंघ की राज्य कार्यकारिणी को बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया था कि सितंबर से पहले अनुबंध अवधि 2 वर्ष कर दी जाएगी। अब यदि 30 सितंबर से पहले जेसीसी की बैठक नही बुलाई जाती है तो सूबे के अनुबंध कर्मचारी एक बार फिर से खुद को ठगा सा महसूस करेंगे और उनका वर्तमान सरकार पर से विश्वास उठ जाएगा। सरकार द्वारा अपने ही चुनावी वायदे की इस तरह बार-बार अनदेखी करने से अनुबंध कर्मचारियों में खासा रोष व्याप्त है। भारद्वाज का कहना है कि वर्तमान सरकार के सत्तासीन होने के बाद नियुक्त हुए कर्मचारियों का 3 वर्ष का अनुबंध काल पूरा होने वाला है। जेसीसी की बैठक जल्द से जल्द इसी महीने बुलाई जाए और अनुबंध अवधि 2 वर्ष के मुद्दे को हल कर के अनुबंध कर्मचारियों की पिछले 4 वर्षो से लगातार उठ रही मांग को पूरा किया जाए ताकि अधिकांश कर्मचारियों को कम से कम 6 महीने का फायदा मिल सके।
"हमारी मांग को जीसीसी मीटिंग में हर हाल में पूरा किया जाए अन्यथा कर्मचारियों को सड़कों पर उतरकर, धरना प्रदर्शन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।" ये कहना है हिमाचल प्रदेश अनुबंध नियमित कर्मियों का। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता और अनुबन्ध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने की मांग को लगातार सरकार के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में बीते दिनों हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश महासचिव अनिल सेन की अध्यक्षता में मुख्यमंत्र जयराम ठाकुर से बल्ह विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गागल मंडी में मिला। इनके अनुसार मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह मांग कर्मचारी लंबे समय से उठा रहे हैं, प्रदेश के कोने-कोने से यह मांग उठ रही है, अतः जेसीसी की बैठक में इस मांग को अवश्य पूरा किया जाएगा। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने पर अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के साथ घोर अन्याय हो रहा है l कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी के आर एंड पी नियमों के अनुसार एक अनुबंध कर्मचारी की वरिष्ठता व कुल सेवा काल की गणना नियमित होने के बाद ही की जाती हैl पूर्व में अनुबंध काल 8 वर्ष का था, अतः कर्मचारियों को वरिष्ठता अनुबंध पर आने के 8 वर्ष के बाद नियमित होने पर मिलने लगी l अब अनुबंध काल 2 वर्ष का होने जा रहा है अतः कर्मचारियों को वरिष्ठता 2 वर्ष के बाद मिलने लगेगीl अर्थात जो कर्मचारी 8,6,5 या 3 वर्ष बाद नियमित हुए हैं उन्हें वित्तीय नुकसान हुआ है। वहीँ अंत में उनके कुल सेवाकाल में भी कमी आएगी l इनका कहना है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों पर अनुबंध कर्मचारियों ने 7 वर्ष, 6 वर्ष, 5वर्ष व 3वर्ष अनुबंध पर गुज़ारे है l उनके नियमितीकरण से 7 दिन पूर्व ही उनके जूनियर प्रमोट होकर अनुबंध पर तैनात कर्मचारी से सीनियर हो गए हैं, जो कि अनुबंध कर्मचारी के साथ बहुत ही बड़ा कुठाराघात व सरासर अन्याय हैl ऐसा हर विभाग व हर कैडर में हो रहा है l अनुबंध काल 8 से 6 वर्ष, 6 से 5 वर्ष, व 5 से 3 वर्ष घटते रहने के कारण भी बहुत सारी विसंगतियां पैदा हो गई हैं l मसलन 2012 में कार्यरत अनुबंध कर्मचारी भी 2017 में रेगुलर हुआ और 2014 में भर्ती कर्मचारी भी 2017 में ही नियमित हुआ, जो की बहुत बड़ी विसंगति हैl जीसीसी में पूरी हो मांग, अन्यथा प्रदर्शन को मजबूर होंगे: अनिल प्रदेश महासचिव अनिल सेन ने कहा कि इन सभी विसंगतियों को आर एंड पी नियमों में बदलाव कर व नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़कर ही दूर किया जा सकता है l उन्होंने कहा कि उन्हें यह वरिष्ठता नोशनल आधार पर चाहिए l उन्होंने कहा कि सरकार इस चिरकालिक मांग को जीसीसी मीटिंग में हर हाल में पूरा करे अन्यथा कर्मचारियों को सड़कों पर उतरकर, धरना प्रदर्शन करने पर मजबूर होना पड़ेगा l इस मांग के पूरी होने पर प्रदेश के लगभग 60 हजार अनुबंध व अनुबंध से नियमित कर्मचारी लाभान्वित होंगेl
प्रदेश डिपो संचालक समिति प्रदेश सरकार से खफा है और डिपो संचालकों के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा रही है। प्रदेश डिपो संचालक समिति के प्रदेशाध्यक्ष अशोक कवि का कहना है कि प्रदेश सरकार प्रदेश के 5036 डिपो संचालकों की उपेक्षा कर रही है। प्रदेश के दस डिपो संचालकों ने लोगों की सेवा करते-करते कोरोना की चपेट में आने से अपने प्राण त्याग दिए, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से उनके आश्रितों को एक पैसे की भी मदद नहीं की गई और न ही प्रदेश के डिपो संचालकों को कोरोना काल में किए गए सराहनीय कार्य के लिए कोई प्रोत्साहन राशि दी गई। सरकार की इस कार्यप्रणाली से प्रदेश के डिपो संचालक रुष्ट हैं। अशोक कवि ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि प्रदेश के जिन डिपो संचालकों की मौत कोरोना की वजह से हुई है, उनके आश्रितों को भी अन्य विभागों के कर्मचारियों की तर्ज पर 50 लाख एक्सग्रेशिया ग्रांट दी जाए और अन्य डिपो संचालकों को कोरोना काल में किए गए सराहनीय काम के एवज में माननीय खाद्य आपूर्ति मंत्री द्वारा 24 लाख 44 हजार प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा को अमलीजामा पहनाया जाए।
कोरोना काल में अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कोरोना वारियर्स आज अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे है। जनता की सुरक्षा करने वाले पुलिसकर्मी प्रदेश सरकार से लगातार अपनी मांगों को लेकर गुहार लगा रहे है, मगर अब तक इन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है। पुलिस कांस्टेबल आज भी 8 साल बाद नियमित होते है जबकि हिमाचल के अन्य कर्मचारियों का अनुबंध काल महज़ 3 वर्षों का है और उसे भी घटाने की मांग की जाती है। इसके अलावा भी पुलिस कर्मचारियों के पद्दोनति, साप्ताहिक अवकाश, नियमतिकरण जैसे कई अन्य मसले है जिनको लेकर ये जवान लगातार सरकार से आग्रह कर रहे है। जल्द प्रस्तावित संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक 17 हजार से अधिक पुलिस कर्मियों के लिए उम्मीद की किरण है। इन्हें उम्मीद है की शायद अब सरकार इनकी मांगों को पूरा करेगी। कर्मचारियों की समस्याओं के निवारण के लिए हिमाचल प्रदेश पुलिस कल्याण संघ के अध्यक्ष रमेश चौहान ने हाल ही में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के मुखिया से भी मुलाकात की है। वे आशावान है कि जेसीसी बैठक से पुलिस कर्मचारियों को राहत जरूर मिलेगी। दरअसल दिन रात प्रदेश की जनता की सेवा और सुरक्षा करने वाले पुलिस कांस्टेबल को नियमित होने के लिए एक लम्बा इंतज़ार करना पड़ता है। पुलिस कांस्टेबल नियमित होने के लिए आठ साल के फेर में फंसे हैं। विभाग में कांस्टेबल की भर्ती तो नियमित आधार पर होती है, लेकिन आर्थिक लाभ आठ साल के सेवाकाल के बाद मिलते हैं, जबकि अनुबंध कर्मी भी तीन साल के बाद नियमित हो जाते हैं। पुलिस जवानों का कहना है की 2015 के उपरांत सभी पुलिस कॉन्स्टेबल को 10300 + 3200 का वेतनमान 8 वर्ष बाद दिया जा रहा है जो कि सही नहीं है। इससे पूर्व के सभी भर्ती पुलिस कांस्टेबल को यह वेतनमान 2 वर्ष में दे दिया जाता था। ये एक प्रकार से पुलिस कर्मियों का वित्तीय व मानसिक शोषण है, जो सही नहीं है। सरकार के समक्ष कई बार मांग को उठाया गया है लेकिन उस पर भी कोई निर्णय नहीं हुआ। इनका कहना है कि एक रैंक पर अलग -अलग वेतनमान की नीतियां भी सही नहीं है क्योंकि एक ओर जहां समान वेतन समान कार्य की बात होती है वहीं दूसरी ओर एक रैंक पर अलग-अलग वेतन नीतियां न्यायसंगत नहीं है। इसके आलावा पुलिस कर्मी चाहते हैं कि उन्हें एक महीने का अतिरिक्त वेतन 2012 के संशोधित वेतनमान पर मिले। पुलिस विभाग में कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश की सुविधा मिले। कुल सेवाकाल में तीन पदोन्नति की जाएं। पहली 16 साल, दूसरी 24 और तीसरी 32 साल में दी जाए। नीली टोपी की व्यवस्था स्थायी की जाए। कोर्ट से स्टे होने के कारण फैसला आने पर अभी नीली कैप व्यवस्था है, लेकिन यह एक अस्थायी व्यवस्था है। राशन भता जो काफी सालों से नहीं बढ़ाया गया है उस राशन भत्ते को भी कम से कम 500 रुपये किया जाए। इनका ये भी कहना है कि प्रदेश में पुलिस कर्मचारियों से 8 घण्टे ड्यूटी ही करवाई जाए। इसका प्रावधान पुलिस एक्ट की धारा 108 में लागू है।4 जेल पुलिस कर्मचारियों के भी कई मसले जेल पुलिस कर्मचारियों को भी हि. प्र. पुलिस की कंटीन में सामान लेने की सुविधा प्रदान किये जाने की मांग भी लगातार उठती रही है। साथ ही जेल के पुलिस कर्मचारियों को भी गृह जिले में नौकरी का अवसर पुलिस की तर्ज पर दिए जाने की मांग हो रही है। मांग है कि पुलिस के जेल मैनुअल में बदलाव किये जाए क्योंकि आरक्षी एवं मुख्य आरक्षी के बाद सहायक उप निरीक्षक का पद नहीं है, सीधा उपनिरीक्षक का पद है। इसलिए उप निरीक्षक का पद भी पुलिस मैन्युअल में शामिल किया जाए। आग्रह : सरकार पुलिस कर्मचारियों को राहत दें बीते दिनों पुलिस कल्याण संघ के अध्यक्ष रमेश चौहान ने पुलिस विभाग, गृह विभाग, सरकार के आला अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह पुलिस कर्मचारियों को राहत दें। पुलिस कल्याण संघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चौहान का कहना है जेसीसी बैठक के लिए मांग पत्र दिया जा चूका है। उन्होंने अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के सरकार से मान्यता प्राप्त अध्यक्ष से मुलाकात की और कई अहम मांगों को प्रमुखता से उठाया है। उम्मीद है कि जेसीसी में उनकी मांगों को सरकार तक ज़रूर पहुंचाया जायेगा।
"ये राहत है या परेशानी बढ़ाने का नया तरीका। इतने लम्बे इंतज़ार के बाद अस्थायी नियुक्ति हमें मंजूर नहीं। " ये कहना है लम्बे समय से नियुक्ति का इंतज़ार कर रही एनटीटी अध्यापिकाओं का। प्री-नर्सरी भर्ती में सरकार की ओर से बनाई जा रही स्कीम का एनटीटी टीचर्ज जमकर विरोध कर रही है। इनका कहना है कि इन्होने अस्थायी नियुक्ति के लिए इतना संघर्ष नहीं किया है, इन्हें स्थाई नियुक्ति दी जाए। एनटीटी टीचर्स ने अपनी मांगों को लेकर पुरे प्रदेश में रैली प्रदर्शन भी किया और कई ज्ञापन भी सौंपे है। अब अपनी मांगो को लेकर ये मुखर है। दरअसल हाल ही में प्रदेश के चार हजार सरकारी स्कूलों में शिक्षक भर्ती के लिए नीति बनाने का काम शुरू किया गया है। बताया जा रहा है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में चलाई जा रही नर्सरी और केजी की कक्षाओं के लिए भर्ती किए जाने वाले शिक्षकों में एनटीटी कोटे के 70 फीसदी पदों में से 35 फीसदी पद बैचवाइज और 35 फीसदी पद सीधी भर्ती से भरे जाएंगे। ये भी तय हुआ है कि ये नियुक्तियां रेगुलर नहीं होंगी, यानी इसके लिए कोई भर्ती नियम नहीं बनाए जाएंगे, बल्कि एक स्कीम बनाकर नियुक्तियां की जाएंगी। इसका अर्थ यह हुआ कि प्री-नर्सरी टीचर अस्थायी कर्मचारी होंगे। भारत सरकार से मिली अनुमति के अनुसार कुल 4787 पद भरे जाएंगे और प्रतिमाह 10,000 रुपए का कुल वेतन प्रति शिक्षक मिलेगा। अब तक तय हुई प्रक्रिया के अनुसार इस कैटेगरी में सीधी भर्ती के लिए नर्सरी टीचर ट्रेनिंग यानि एनटीटी और अर्ली चाइल्ड हुड केयर एंड एजुकेशन यानि ईसीसीई कोर्स को प्राथमिकता दी जाएगी। कुल पदों में से 70 फीसदी पदों में इन्हीं को प्राथमिकता दी जाएगी। यदि इन दो वर्गों में से टीचर नहीं मिलेंगे, तो ही डीएलएड को पात्रता दी जाएगी। ये नियुक्तियां जिला स्तर पर होंगी। एनसीटीई के नियमों के अनुसार अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष मानी जाएगी। प्री नर्सरी टीचर तीन से छह साल के बच्चों को पढ़ाएंगे और उसके बाद इनकी स्कूलिंग शुरू होगी। वहीँ प्री-नर्सरी टीचर्स के कुल 4787 पदों में से 30 फीसदी आंगनबाड़ी वर्कर्स को प्रमोशन कोटा के तहत दिए जाएंगे, लेकिन इनकी पात्रता भी अलग से तय होगी। जिला स्तर पर प्लस टू पास आंगनबाड़ी वर्कर, जिनका अनुभव 10 साल से ज्यादा का होगा, वह प्री-नर्सरी टीचर के लिए पात्र होंगे और इन्हें 45 साल की आयु सीमा में भी छूट दी जाएगी। केंद्र सरकार से मिली अनुमति के अनुसार प्रति शिक्षक 10,000 रुपए वेतन ही तय हुआ है। मांग : पंजाब की तरह रेगुलर नियुक्ति दी जाए एनटीटी कर चुकी महिलाएं बीते लंबे समय से उन्हें ही इन स्कूलों में नियुक्ति देने की मांग कर रही हैं। उधर, आंगनबाड़ी वर्कर भी नियुक्ति की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। दोनों ही संगठनों की ओर से विधानसभा के बजट सत्र के दौरान प्रदर्शन भी किए गए थे। ऐसे में विभागीय अधिकारियों ने नर्सरी टीचर ट्रेनिंग करने वालों के साथ आंगनबाड़ी वर्करों को भी भर्ती में शामिल करने का फैसला लिया है। परन्तु नर्सरी टीचर ट्रेनिंग कर चुकी महिलाएं सरकार के इस तरीके से बिलकुल भी संतुष्ट नहीं है। इनकी मांग की है कि दस हजार रुपए वेतन पर अस्थायी नियुक्ति के बजाय पंजाब की तरह रेगुलर नियुक्ति दी जाए और वेतन भी 25 हजार रुपए हो। एनटीटी प्रशिक्षित महासंघ ने हाल ही में शिक्षा विभाग द्वारा 4787 प्री-नर्सरी टीचर्ज भर्तियों के लिए प्रस्तावित नए प्रस्ताव की समीक्षा की और इसके विरोध में पुरे प्रदेश में रैलियां भी निकाली। एन.टी.टी. प्रशिक्षित महासंघ ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज किया है। आंगनबाड़ी को भर्ती में कोटा समझ से परे: महासंघ एनटीटी प्रशिक्षित महासंघ का कहना है कि इस भर्ती को आरएंडपी रूल्स फ्रेम करके किया जाए, किसी स्कीम के तहत नहीं। उनका कहना है कि इस पद की पहली हकदार प्रशिक्षित नर्सरी टीचर हैं, इस बात को विभाग को भी समझना चाहिए। इस तरह के निर्णय की एनटीटी संघ शिक्षा विभाग से कतई उम्मीद नहीं कर रहा था। इनके अनुसार आंगनबाड़ी को इस भर्ती में कोटा दिए जाना कितना प्रासंगिक है ये किसी की भी समझ से परे है। इस पर आंगनबाड़ी को इस भर्ती में आयु में छूट, डिप्लोमा इन नर्सरी में छूट भी दी गई है परंतु जो इसकी असली हकदार है जिन्होंने इसके लिए संघर्ष किया उनको किसी भी तरह की छूट न देना भी संघ के गले नहीं उतर रहा है। एनटीटी प्रशिक्षित महासंघ की महासचिव कल्पना शर्मा का कहना है कि इन महिलाओं ने नर्सरी अध्यापिका का प्रशिक्षण यह सोचकर प्राप्त किया था कि भविष्य में उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। इनमें से अधिकतर महिला गरीब परिवार से संबंधित है और कुछ महिलाएं विधवा है। सभी महिलाओं ने मिलकर बार-बार हिमाचल सरकार से रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए आग्रह किया हैं। 1996-97 में नर्सरी अध्यापिकाओं को प्राथमिक पाठशालाओं में लगाया गया था। परन्तु उसके बाद आजतक पूरे देश में कोई नर्सरी अध्यापिका नहीं लगाई गयी है। उनका कहना है कि सरकार को हमारी मांगें जल्द पूरी करनी होगी अन्यथा आंदोलन उग्र रूप लेगा। ये है मुख्य मांगे - प्री प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं को नियुक्त किया जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति आरएंडपी रूल्स बनाकर की जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति नियमित आधार पर की जाए। - आयु सीमा में छूट दी जाए। - योग्यता प्लस टू पास हो व नर्सरी का विशेष प्रमाण पत्र रखा जाए। - वार्ड ऑफ़ एक्स सर्विस मैन का कोटा दिया जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति बैच वाइज की जाए। - उच्च शिक्षा प्राप्त प्रार्थी को शिक्षा योग्यता के अनुसार प्राथमिकता दी जाए। - प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिका की नियुक्ति बिना किसी शर्त के की जाए।
प्रदेश सरकार द्वारा 25 सितंबर को प्रस्तावित जेसीसी भले ही टाल दी गई हो पर बीते कुछ दिनों में सरकार में कर्मचारी वर्ग को साधने के लिहाज से कुछ निर्णय जरूर लिए है। चंद मांगें पूरी हुई है तो कई के जल्द पूरी होने की उम्मीद है। बहरहाल जो मांगें पूरी हुई उनकी ख़ुशी कर्मचारी वर्ग को ज़रूर है। बीते दिनों सरकार से हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ ने मांग की थी कि अध्यापकों की एसीआर को बार-बार न मांगा जाए जिसे शिक्षा निदेशक ने मान लिया और अब एसीआर ऑनलाइन भरी जाएगी। इसके बाद कैबिनेट बैठक में शिक्षा विभाग में 8000 मल्टी टास्क वर्करों के पद भरने को भी मंजूरी दी गई। इन वर्करों को दस माह तक प्रतिमाह 5625 रुपये मानदेय मिलेगा। इसके अलावा जेबीटी और सीएंडवी शिक्षकों के पांच साल में अंतर जिला तबादले करने के प्रस्ताव को भी मंजूर किया गया। पहले यह अवधि 13 वर्ष थी। मंत्रिमंडल ने इन शिक्षकों के स्थानांतरण कोटे को भी तीन से बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है। सरकारी स्कूलों में आउटसोर्स आधार पर नियुक्त 1326 कंप्यूटर शिक्षकों के मानदेय में एक अप्रैल 2021 से प्रतिमाह 500 रुपये की बढ़ोतरी करने का फैसला लिया। इसी तरह हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड में विभिन्न श्रेणियों के 1641 नए पद भरने को भी बीते दिनों हरी झंडी मिल गई। ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी ने हाल ही में ऐलान किया है कि 33 केवी उप केंद्रों को ठेके पर नहीं दिया जाएगा। साथ ही किसी भी आउटसोर्स कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। चौधरी ने बोर्ड प्रबंधन को कर्मचारियों की पदोन्नति समय पर सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए। उन्होंने बोर्ड के कर्मचारियों के हित में सर्विस कमेटी की बैठक भी जल्द करवाए जाने की घोषणा की है। कर्मचारी दबाव के बीच सरकार का यू टर्न वहीँ बीते दिनों सरकार ने आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों को 11 फीसदी डीए जारी करने के मामले में यू टर्न भी लिया। सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को 11 फीसदी डीए जारी करने की अधिसूचना जारी की गयी थी। इसे 17 से बढ़ाकर 28 फीसदी किया गया है। अफसरों को 11 फीसदी और कर्मचारियों के लिए छह फीसदी डीए की अधिसूचना के इस भेदभाव से कर्मचारी रुष्ट हो गए जिसके बाद जयराम सरकार को 24 घंटे के भीतर अपने फैसले पलटना पड़ा। भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को अब एक साथ महंगाई भत्ता मिलेगा।
सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ ने सरकार से इस माह में ही जेसीसी की बैठक बुलाने की मांग की है। महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष अरुण भारद्वाज ने कहा कि महासंघ पिछले लगभग 4 वर्षो से अनुबंध कार्यकाल को 3 वर्ष से 2 वर्ष करने की गुहार लगा रहा है लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिले है। सूबे के सभी अनुबंध कर्मचारियों व उनके परिवारजनों को पूरा विश्वास था कि मुख्यमंत्री जयराम 15 अगस्त को अनुबंध कार्यकाल कम करने की घोषणा करेंगे, लेकिन इस बार भी अनुबंध कर्मचारियों के हाथ निराशा ही लगी। सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ की राज्य कार्यकारिणी का कहना है कि बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि सितंबर से पहले उनकी अनुबंध अवधि 2 वर्ष की मांग को पूरा कर दिया जायेगा। संघ का कहना है कि अब यदि 30 सितम्बर से पहले जेसीसी की बैठक नहीं बुलाई गयी तो वे स्वयं को ठगा सा महसूस करंगे। उनका कहना है कि कर्मचारी वर्ग के एक बड़े समूह की 4 वर्षों से लंबित मांग तथा अपने ही चुनावी वायदे की इस तरह बार-बार अनदेखी करने से अनुबंध कर्मचारियों में खासा रोष व्याप्त है। गौरतलब है कि वर्तमान सरकार के सत्तासीन होने के बाद नियुक्त हुए कर्मचारियों का 3 वर्ष का अनुबंध पूरा होने वाला है और अधिकांश कर्मचारियों के 2 वर्ष 6 महीने पूरे होने वाले हैं। इसी के चलते महासंघ ने मांग की है कि जेसीसी की बैठक इसी महीने बुलाई जाए और अनुबंध कर्मचारियों की पिछले 4 वर्षो से लगातार उठ रही मांग को पूरा किया जाए ताकि अधिकांश कर्मचारियों को कम से कम 6 महीने का फायदा मिल सके। प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि JCC की बैठक अगले महीने करके उसमें यदि अनुबंध अवधि को 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष कर भी दिया जाता है तो इस घोषणा का लाभ इन कर्मचारियों को नहीं मिल पाएगा। क्योंकि अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सरकार ने 30 सितंबर और 31 मार्च की तिथियां निर्धारित कर रखी हैं। इस प्रकार यह घोषणा अनुबंध कर्मचारियों के साथ किया गया एक भद्दा मजाक साबित होगी।
हिमाचल प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ का प्रतिनिधिमंडल अपनी मांगों को लेकर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गागल में प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला। हिमाचल प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ ने टीजीटी कैडर से मुख्याध्यापक की पदोन्नति लिस्ट अति शीघ्र जारी करने, विज्ञान अध्यापकों का प्रायोगिक भत्ता 150 रूपये से बढ़ाकर 1000 रुपए करने, अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करना, उच्च न्यायालय के एलपीए 54 के फैसले 2008 में अनुबंध टीजीटी अध्यापकों को नियुक्ति की तिथि से नियमित करना आदि मांगों को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन पत्र सौंपा। इस प्रतिनिधिमंडल में प्रदेश कोषाध्यक्ष लवलीन कुमार, कार्यालय सचिव अशोक वालिया मीडिया प्रभारी सुनील कुमार प्रदेश प्रवक्ता देशराज राजपूत, हंसराज चौधरी, रणजीत सिंह ठाकुर, परमानन्द शर्मा, बालक राम, भूप सिंह सैनी, किशोर लाल, नरेश कुमार, अनील सेन, रोशन लाल, प्रवीण कुमार, कृष्ण यादव, रमेश कुमार, योगेश कुमार,अनील ठाकुर आदि उपस्थित रहे।
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की राज्यकार्यकारिणी की बैठक का आयोजन इंदोरा में हुआ। बैठक की अध्यक्षता प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने की। बैठक में प्रदेशाध्यक्ष के अलावा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य, जिलाप्रधान, ब्लॉक प्रधान व संघ के विभिन्न सदस्यों ने भाग लिया। बैठक में उन्होंने सरकार के खिलाफ रोष प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार समय-समय पर कर्मचारी हितेषी होने का दावा तो करती है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। उन्होंने कहा कि सरकार का चार वर्ष का कार्यकाल पूरा होने को जा रहा है परन्तु अबतक सरकार के कार्यकाल में जेसीसी की बैठक नहीं हो पाई है। वंही इस जेसीसी के दायरे में 80 हज़ार शिक्षकों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। बता दें कि संघ ने सरकार से 80 हज़ार से अधिक के अध्यापक समूह के लिए अलग से जेसीसी की भी मांग उठाई थी, जिस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। संघ ने 1 जनवरी 2016 के वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग की है। उन्होंने मांग की कि प्रदेश के कर्मचारियों के भत्ते का भुगतान केंद्रीय कर्मचारियों कि तर्ज पर किआ जाए, कर्मचारियों के अनुबंध सेवाकाल को अपने दृष्टि -पत्र के अनुरूप 3 वर्ष से घटाकर 2 वर्ष किया जाए, TGT से प्रवक्ता की पदोन्नति हेतु सेवा शर्त को 5 वर्ष से घटकर 3 वर्ष किया जाए, TGT से प्रवक्ता व मुख्याध्यापक पद पर होने वाली पदोन्नति के समय लिए जाने वाले विकल्प को समाप्त किया जाए। शिक्षा विभाग में कार्यरत सभी आउटसोर्स अध्यापकों, विशेषकर कम्प्यूटर अध्यापकों को शिक्षा विभाग में समायोजित करने के लिए नीति बनाई जाए, भाषा व संस्कृत अध्यापकों को TGT का पदनाम दिया जाए, शिक्षकों की पदोन्नति पर संशोधित ग्रेड पे लागू होने के लिए 2 वर्ष की शर्त तत्काल हटाया जाए, अध्यापकों को सेवानिवृत की आयु 62 वर्ष की जाए। वंही संघ ने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री व शिक्षा सचिव को दिए गए 43 सूत्रीय मांग पत्र पर शीघ्र बैठक की मांग की है। बैठक में अरुण गुलेरिया चीफ पत्रों, सचिन जस्वाल चेयरमैन, गोविंदर पठानिअ व सुरेंद्र मोहन वाईस प्रेजिडेंट, कुलदीप अत्रि व इंद्र सिंह सलाहकार, सतनाम खागटा जॉइंट सेकेरेट्री,ताराचंद मुख्यालय सचिव, यशवंत ठाकुर, सूरज नायक, जिला प्रधान कुल्लू यशपाल, मंडी तिलक नायक चम्बा सतेंद्र राणा, हमीरपुर राजेश गौतम, NPS वाईस चेयरमैन हाकम राजा, खंड प्रधान यशपाल इंदौरा, शांति स्वरूप, तेजराम ठाकुर, रमेश भर्ती संदीप शर्मा, विशाल शर्मा व सुजीत अत्रि उपस्थित रहे।
एचआरटीसी कर्मचारियों ने मांगें पूरी करवाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है। एचआरटीसी की संयुक्त समन्वय समिति का कहना है कि कर्मचारियों को पिछले छह सालों से करीब 500 करोड़ रुपए के लंबित भत्तों का भुगतान नहीं किया गया है। अब सब्र जवाब दे रहा है और कर्मचारियों के पास आंदोलन ही एकमात्र विकल्प बचा है। बीते दिनों कर्मचारियों ने संयुक्त समन्वय समिति के नेतृत्व में एचआरटीसी मुख्यालय के बाहर शिमला में धरना-प्रदर्शन किया। वित्तीय लाभों को देने की मांग को लेकर निगम के कर्मचारी प्रदेश भर से शिमला पहुंचे और निगम प्रबंधन व सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। धरना-प्रदर्शन के दौरान कर्मचारियों की मांग को लेकर प्रबंधन से कोई जवाब नहीं मिल पाया है, ऐसे में संयुक्त समन्वय समिति ने निगम प्रबंधन व सरकार को मांगें पूरी करने के लिए 33 दिनों का समय दिया। इनका कहना है कि इन 33 दिनों में भी यदि सरकार नहीं जागी तो खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे। संयुक्त समन्वय समिति के सचिव खेमेंद्र गुप्ता का कहना है कि कर्मचारियों के रोष के पीछे पूर्व में किए गए समझौतों पर अमल न करना मुख्य कारण है। उनका दावा है कि जनवरी 2016 से 13 प्रतिशत आईआर, जनवरी 2019 से चार प्रतिशत डीए, जुलाई 2016 से पांच प्रतिशत व जुलाई 2021 से छह प्रतिशत डीए, कुल डीए 15 प्रतिशत, 32 महीनों का नाइट ओवर टाइम, पेंशन, ग्रेच्युटी, कम्यूटेशन, लीव-एनकैशमेंट, जीपीएफ, मेडिकल रैमबुरसेमेंट व अन्य कई प्रकार के एरियर आदि बकाया है। कर्मचारियों के लगभग 500 करोड़ के रुपए के लंबित वित्तीय भुगतान देय है जिससे कर्मचारी अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। संयुक्त समन्वय समिति ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि आंदोलन के दूसरे चरण में लंबित मांगों को मनवाने के लिए परिवहन कर्मचारी 11 अक्टूबर से प्रत्येक यूनिट में प्रतिदिन गेट मीटिंग करेंगे और 18 अक्टूबर को निगम के कर्मचारी एक दिन के काम छोड़ो आंदोलन पर रहकर अपने-अपने कार्य का बहिष्कार कर रोष प्रकट करेंगे। ऐसे में प्रदेश भर में बस सेवाएं बंद रहेंगी। संयुक्त समन्वय समिति का ये भी आरोप है कि कर्मचारियों को प्रताड़ित करने व उकसाने के लिए बेवजह उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है जिसको रद्द किया जाए एवं दिनांक 05-08-2021 को दिए गए समिति के मांग पत्र पर तुरंत अमल किया जाए। इनका कहना है कि कर्मचारी अनेक समस्याएं समाधान के इंतजार में है परंतु निगम प्रबंधन कोई कार्यवाही नहीं कर रहा। ऐसे में कर्मचारियों में रोष पनप रहा है।
हिमाचल प्रदेश विज्ञान अध्यापक संघ ने सरकार से मांग की है कि प्रशिक्षित स्नातक अध्यापकों के काडर से प्रधानाचार्य के पदोन्नति कोटे को 50:50 प्रतिशत से बढ़ा कर 75:25 के अनुपात में किया जाए। संघ ने सरकार से मांग की है टीजीटी कैडर की संख्या को ध्यान में रखते हुए पदोन्नति कोटे को बढ़ाकर 75 प्रतिशत किया जाए। संघ के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में कार्यरत सभी जेबीटी, सी एंड वी, टीजीटी एवं मुख्य अध्यापक का पदोन्नति चैनल प्रधानाचार्य पद पर होने वाली पदोन्नति पर निर्भर करता है। नरेंद्र ठाकुर ने सरकार को चेताया कि यदि इस पदोन्नति कोटे जो वर्तमान में 50:50 के अनुपात में है, इसी किसी भी स्थिति में कम किए जाना बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। इससे टीजीटी कैडर के हित आहत होंगे। अगर ऐसा होता है तो विज्ञान अध्यापक संघ संघर्ष का रास्ता अपनाने से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने सरकार से ये भी मांग की है कि टीजीटी से मुख्याध्यापक की पदोन्नति सूची शीघ्र जारी की जाए, ताकि कई वर्षों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे शिक्षकों को राहत मिल सके। संघ के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुधीर चंदेल, महामंत्री अवनीश कुमार, कोषाध्यक्ष लवलीन, मीडिया प्रभारी सुनील वर्मा, महिला विंग की प्रधान शालू परमार, प्रदेश कार्यकारिणी एवं सभी जिला प्रधानों ने मांग का पुरजोर समर्थन किया।
हिमाचल प्रदेश सचिवालय कर्मचारी सेवाएं संगठन की नई कार्यकारिणी के गठन के बाद पहली आम सभा का आयोजन किया गया। इस आम सभा में पदाधिकारियों ने अनुबंध कार्यकाल को 3 वर्ष से घटाकर 2 साल करवाने, अनुबंध काल को वरिष्ठता सूची बनाते समय जोड़ने और लिपिकों के प्रोबेशन पीरियड पर पूरा स्केल देने की मांग प्रमुखता से की है। विभिन्न श्रेणियों के रिक्त पड़े लगभग 300 पदों को चरणबद्ध तरीके से भरने की मांग भी उठाई गई है। हिमाचल प्रदेश सचिवालय कर्मचारी सेवाएं संगठन के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह बॉबी ने कहा कि सरकार से हमारी मांग है की सचिवालय का अपना अलग आवासीय पूल बनाया जाए और नए वेतनमान को तुरंत लागू किया जाए। डीए की देय किस्त जारी करने, एनपीएस कर्मचारियों को केंद्र की जारी 2009 की अधिसूचना को तुरंत लागू करने की मांग उठाई भी उठाई गई। इसके अतिरिक्त मंत्रियों के कार्यालयों में अधीक्षक के 11 नए पद सृजित करने, सचिवालय में कैडर स्ट्रेंथ को बढ़ाने, कर्मचारियों के बैठने की सही व्यवस्था करने, सफाई व्यवस्था की तरफ अधिक ध्यान देने का मसला भी उठाया गया। सुरक्षा कर्मियों को तृतीय श्रेणी की ग्रेड पे और सचिवालय पे देने, कैंटीन में अच्छा भोजन उपलब्ध कराने, अस्पताल में सचिवालय कर्मचारियों को प्राथमिकता देने और सचिवालय में आउटसोर्सिंग के स्थान पर लिपिक की भर्ती करने के मामले भी उठाये गए। इस दौरान नवगठित कार्यकारिणी के वरिष्ठ उपप्रधान चानण मेहता, महासचिव महेश कुमार, उप प्रधान राजेन्द्र सिंह (मियां), संयुक्त सचिव महेंद्र सिंह, कोषाध्यक्ष संजय कुमार सहित कार्यकारिणी के कार्यकारी सदस्य रमेश चंद भी उपस्थित रहे।
हिमाचल प्रदेश में जल्द ही जेसीसी की बैठक प्रस्तावित है। इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के पौने तीन लाख कर्मचारियों के मुद्दों पर चर्चा होनी है। कर्मचारी इस बैठक से बड़ी उम्मीद लगाए बैठे है। कर्मचारियों को उम्मीद है की पिछले कई सालों में जो मुद्दे हल नहीं हुए, जो मांगे अनसुनी रह गई वो अब इस जेसीसी की बैठक में ज़रूर पूरी होंगी। पर कर्मचारियों का एक तबका ऐसा भी है जो ये दावा कर रहा है की इस बैठक से उन्हें कोई भी लाभ नहीं मिलने वाला, दरअसल जेसीसी में शिक्षकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है जिससे हिमाचल के शिक्षक परेशान है। इस मसले को लेकर हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का एक शिष्टमंडल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एवं शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर से मिली जिसमें संघ के प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र चौहान एवं राज्य मुख्यालय सचिव ताराचंद शर्मा हित राज्य कार्यकारिणी के अन्य पदाधिकारी मौजूद थे। शिष्टमंडल ने मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री को शिक्षकों के इस मुद्दे से अवगत करवाया। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने कहा कि जेसीसी की बैठक जो कि हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों के लिए उनके ज्वलंत मुद्दों के समाधान हेतु सरकार के द्वारा निर्धारित की जाती है, उसमें हिमाचल प्रदेश के 80,000 से अधिक शिक्षकों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है और ना ही उनके मुद्दों पर चर्चा की जाती है। इस तरह कर्मचारियों की संयुक्त समन्वय समिति का गठन अपने आप में शिक्षकों के साथ भद्दा मजाक है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने कहा कि यदि सरकार वास्तव में संपूर्ण ढाई लाख कर्मचारियों की हितेषी होने का दावा करती है तो 80,000 से अधिक शिक्षकों को भी संयुक्त समन्वय समिति में स्थान मिलना चाहिए और उन्हें भी इस संयुक्त समन्वय समिति की बैठक में आमंत्रित किया जाना चाहिए। संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि भविष्य में होने वाली संयुक्त समन्वय समिति की बैठक में शिक्षकों को आमंत्रित किया जाए अन्यथा शिक्षकों के लिए अलग से जेसीसी का गठन किया जाए। वीरेंद्र चौहान ने कहा कि प्रदेश सरकार को ढाई लाख कर्मचारियों के लिए अलग से निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के द्वारा संयुक्त समन्वय समिति का गठन करना चाहिए जिसमें चुनाव प्रक्रिया के द्वारा संयुक्त समन्वय समिति के अध्यक्ष एवं महासचिव सहित अन्य पदों का निर्वाचन किया जा सके। उनका एक निश्चित कार्यकाल रखा जाए और इसे एक संवैधानिक संस्था बनाया जाए ताकि कर्मचारियों के सभी मुद्दों का समाधान हो सके।
करुणामूलक आश्रितों को क्रमिक अनशन पर बैठे 50 दिन से अधिक का समय बीत गया है, मगर सरकार ने अब तक इनकी सुध नहीं ली। न सरकार सुन रही है और न ये चुप बैठने को तैयार है। इन आश्रितों का कहना है कि ये अपनी हक़ की लड़ाई लड़ रहे है और आज नहीं तो कल सरकार को इनकी मांगें पूरी करनी ही होगी। पिछले कई दिनों से शिमला में करुणामूलक आश्रित अनशन पर बेठे हैं, तेज़ धुप, बारिश, और शिमला की ठण्ड भी इनके साहस को डिगा नहीं पा रही। इन आश्रितों के परिवार के लोग भी इनके सहयोग के लिए प्रदर्शन स्थल पर आते है और इनके साथ अनशन पर बैठते है, परन्तु व्यस्त सरकार और प्रशासन के पास इतना समय नहीं कि इन आश्रितों और उनके परिवारजनों की सुध ली जाए। इनकी मांग सिर्फ इतनी सी है कि समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केस, जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं, उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत सभी को एक साथ नियुक्तियां दी जाए। यूं तो इनका प्रदर्शन करना नई बात नहीं है लेकिन ख़ास ये है कि इस बार करुणामूलक आश्रित आश्वासन के सहारे आंदोलन खत्म करने के मूड में बिलकुल नहीं दिख रहे है।संघर्ष जारी है, और करुणामूलक आश्रित हार मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं। अपनी मांग सरकार तक पहुँचाने की कवायद में बीते दिनों करुणामूलक संघ के अध्यक्ष अजय कुमार की अध्यक्षता में करुणामूलक आश्रितों का एक प्रतिनिधिमंडल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष से भी मिला। इस दौरान महासंघ के अध्यक्ष के समक्ष करुणामूलक नौकरियां बहाल करने के लिए समर्थन की बात कही गई। महासंघ के अध्यक्ष ने करुणामूलक संघ की समस्याओं को गंभीरता से लिया और कहा कि उनकी मांगें जेसीसी मीटिंग के एजेंडे में लगी हैं व जल्दी मुख्यमंत्री से करुणामूलक नौकरी बहाली की मांग उठाई जाएगी। साल 1990 में बनी थी नीति साल 1990 में सरकारी कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए एक नीति बनाई गई। इस नीति के अंतर्गत यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है तो, मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर आर्थिक रूप से कमजोर मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाती है ताकि कर्मचारी के परिवार को उसके जाने के बाद किसी भी तरह की दिक्क्तों का सामना न करना पड़े। सरकार ने इसके लिए वार्षिक आय सीमा का मापदंड तय किया हुआ है। इस आधार पर नौकरी के लिए कोई इंटरव्यू और लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती। पर ये जितना आसान दिखता है उतना है नहीं, करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसके लिए आवेदक को हर जिले में विभाग संबंधित डिवीज़न में आवेदन करना पड़ता है, फिर फाइल चीफ़ ऑफिस होकर सर्कल कार्यालय पर जाती है। उसके बाद विभाग के हेड ऑफिस शिमला पहुंचती है। आम तौर पर कई ऑब्जेक्शन लगते है व फाइल वापिस आ जाती है। ऐसे में फाइनल फाइल शिमला पहुँचते-पहुँचते एक डेढ़ साल लग जाता है। आश्रित की आधी उम्र तो फिर निदेशक द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाई जाती है जहां ज्यादातर मामलों को स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कुछ न कुछ ऑब्जेक्शन लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, कुछ बचे हुए मामलों को अप्रूवल के लिए संबंधित विभाग वित्त विभाग को भेजते हैं। जैसी व्यवस्था है उसमें वित्त विभाग के पास नौकरी की यह फाइल कई सालों तक लटकी रहती है। वित्त विभाग कोई ऑब्जेक्शन लगाता है तो दोबारा यह फाइल उसी रूट से होते हुए वापस पहुंचती है। ये चाहता है करुणामूलक संघ समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्तियां दी जाएं। करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणियों में नौकरी दी जाएं। 5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्तियां दे सके। महिला आवेदकों की शादी के बाद उन्हें पॉलिसी से बाहर न किया जाए। जिन आवेदकों की आयु निकल गई है उन्हें वन टाइम सेटलमेंट दिया जाए। गूंगी-बहरी और असंवेदनशील है जयराम सरकार : राजन सुशांत बीते दिनों हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संयोजक डॉ. राजन सुशांत का समर्थन भी करुणामूलक आश्रितों को मिलता दिखा। सुशांत आश्रितों से मिलने शिमला पहुंचे। करुणामूलक आश्रितों का समर्थन करते हुए सुशांत ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर जमकर निशाना साधा और सरकार को 25 सिंतम्बर तक करुणामूलक आश्रितों की मांगों को पूरा करने का अल्टीमेटम दिया। मांगें पूरी न करने पर प्रदेश भर में मंत्रियों व विधायकों के घेराव की चेतावनी दी गई। राजन सुशांत ने कहा कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और उसे किसी का दुख-दर्द नजर नहीं आ रहा है। इतने दिनों से करुणामूलक आश्रित अनशन पर बैठे हैं लेकिन ये सरकार पूरी तरह से गूंगी-बहरी बनकर बैठी है और यदि सरकार 25 सितम्बर से पहले इनकी मांगों को पूरा नही करती है तो आम जनता के साथ मिलकर मंत्रियों-विधायकों का घेराव किया जाएगा। वहीं राजन सुशांत ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि सीएम विवेकहीन, अनुभवहीन और दिशाहीन हैं। थोड़ी भी संवेदनशीलता नहीं दिखा रही सरकार करुणामूलक आश्रितों को क्रमिक अनशन पर बैठे इतना समय हो गया है परन्तु सरकार हमारे लिए थोड़ी भी संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है बल्कि हलकी फुलकी राहत के नाम पर हमें साधने की कोशिश की जा रही है। यदि सरकार हमें एमटीएस में नौकरी देने के बारे में सोच रही है तो वो गलत है। आश्रितों को एमटीएस के पदों पर नियुक्ति देने के निर्णय को हम कभी भी नहीं स्वीकारेंगे। करुणामूलक आश्रितों ने 15-16 वर्षो तक इंतज़ार किया है, लगातार संघर्ष किया है। अब एमटीएस की 5 हज़ार की नौकरी पर हम बिलकुल भी सहमत नहीं होने वाले है। सरकार अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है जो हम बिलकुल भी नहीं होने देंगे। करुणामूलक संघ ने तय किया है कि यदि सरकार जल्द उनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो वे शिमला के साथ - साथ काँगड़ा और हमीरपुर जिले में भी उपायुक्त कार्यालय का घेराव करेंगे। - अजय कुमार, अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश करुणामूलक संघ
पंजाब में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर लगातार चल रहे विरोध के बाद पंजाब सरकार ने इनमें कुछ संशोधन किए हैं। पंजाब में कर्मचारी छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में विसंगतियों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे थे जिसका असर हिमाचल में भी देखने को मिल रहा था। देर से ही सही मगर अब पंजाब सरकार ने अपने कर्मचारियों को कुछ राहत दी है। पंजाब ने अपने सचिवालय कर्मचारियों की सचिवालय-पे को बहाल कर दिया है। इसी के साथ कर्मचारियों के कई अन्य भत्ते भी बढ़ा दिए गए है। पंजाब में मिली इन राहतों के बाद अब हिमाचल के कर्मचारियों की उम्मीदें भी बढ़ गई है। हिमाचल में लगतार कर्मचारी छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में विसंगतियों का विरोध कर रहे थे। छठे वेतन आयोग में सचिवालय पे को वेतन का हिस्सा न मान कर भत्ते में बदल दिया गया था। सचिवालय के अलग-अलग श्रेणियों के कर्मचारियों को 600 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक प्रति माह सचिवालय पे दी जाती है। पेंशन में भी इसका लाभ मिलता था, मगर इसके भत्ता बनने के बाद सचिवालय से सेवानिवृत्त होने वाले पेंशनरों को ये नहीं मिलता। इस सचिवालय पे पर 3800 रुपए के करीब DA भी कर्मचारियों को मिलता था। परन्तु भत्ता बनने के बाद इस पर DA नहीं मिलता और एक कर्मचारी को एक महीने में 3800 रूपए का नुक्सान झेलना पड़ता। पंजाब में भी इस मुद्दे को लेकर संघर्ष हुआ, हिमाचल के कर्मचारी भी पंजाब में जाकर वहां के कर्मचारियों के संघर्ष में जुड़े। अब पंजाब सरकार ने अपने सचिवालय कर्मचारियों की सचिवालय-पे को बहाल कर दिया है और अब उम्मीद है कि हिमाचल में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर ऐसा ही होगा। सचिवालय कर्मचारियों के साथ राजभवन के कर्मचारी, लोकायुक्त कार्यालय, लोक सेवा आयोग कर्मचारी व मानवाधिकार आयोग कार्यालय के कर्मचारी भी जुड़े हैं, जिनको सचिवालय वेतन का लाभ उनके वेतन के साथ मिलने की उम्मीद है। पंजाब में रूरल एरिया ग्रांट, मासिक ट्रैवलिंग अलाउंस, फिक्स्ड मेडिकल अलाउंस, सिटी अलाउंस को लेकर भी संशोधित अधिसूचनाएं लागू की गई हैं, जो हिमाचल में उस तर्ज पर नहीं दी जाती है। इसी तरह पंजाब में डॉक्टरों के एनपीए के मामले में भी राहत दी गई है। डॉक्टर एनपीए को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे थे, वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत चिकित्सकों का प्रैक्टिसिंग अलाउंस 25 से 20 फीसदी कर उसे बेसिक वेतन से अलग कर दिया गया था। इसका विरोध हुआ और चिकित्सक संघ ने पेन डाउन स्ट्राइक भी की। अब पंजाब में डॉक्टरों का एनपीए 20 फीसदी किया गया है। हिमाचल में पहले ही यह 25 फीसदी के हिसाब से दिया जा रहा है, जबकि पंजाब में यह केंद्र सरकार की तर्ज पर कर दिया गया है, और अब इसे वेतन का हिस्सा भी मान लिया गया है। लिहाजा अपेक्षित है कि हिमाचल के डॉक्टरों को भी उनके वेतन के साथ एनपीए जुड़कर मिलेगा। ऐसे में इन संशोधनों का फायदा वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद प्रदेश के कर्मचारियों को मिलेगा। डॉक्टरों ने अपने हक के लिए संघर्ष किया जिसका फल अब उन्हें मिलेगा। पंजाब सरकार ने एनपीए को वेतन का हिस्सा मान लिया है जो एक बहुत अच्छी खबर है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने हमे आश्वासन दिया था की ज़रूरी नहीं है की वे पंजाब को पूरी तरह से फॉलो करेंगे। हमें उम्मीद है की जो भी सरकार करेगी वो पूरी तरह से डॉक्टरों के हित में होगा। - डॉ. पुष्पेंद्र वर्मा, महासचिव, हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ। पंजाब सरकार ने सचिवालय कर्मचारियों को एक बड़ी राहत दी है। सचिवालय पे को दोगुना कर दिया गया है जो सचिवालय कर्मचारियों को लाभ पहुंचाएगा। उम्मीद है की जब हिमाचल में छठा वेतन आयोग लागू हो तो वो कर्मचारियों के हित में हो। -भूपेंदर सिंह, अध्यक्ष सचिवालय कर्मचारी महासंघ।
पिछले लम्बे समय से सरकार के आगे नौकरी की गुहार लगाने वाले बेरोज़गार अध्यापक अब चुप बैठने को तैयार नहीं है। हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के सदस्यों ने मुख्यमंत्री से जवाब मांगा है कि जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करें कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक भर्ती क्यों नहीं किए गए। इनका कहना है कि शिक्षा विभाग ने जुलाई, 2021 को हाई कोर्ट में लिख कर दिया है कि एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां स्टॉप गैप अरेंजमेंट है और इन शिक्षकों द्वारा भरी गई पोस्ट खाली मानी जाती हैं। संघ ने कहा कि खाली पोस्टों को भरना सरकार की जिम्मेदारी थी। बेरोज़गार अध्यापक संघ का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष विधानसभा में बजट सत्र के दौरान शिक्षा मंत्री से जानना चाह रहे थे कि पिछले शिक्षा मंत्री एसएमसी शिक्षकों को नियमित करने की बात करते थे, लेकिन क्या अब सरकार इनको नियमित करने पर विचार कर रही है या नहीं। शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने विधानसभा में उत्तर देते हुए कहा कि 2555 एसएमसी शिक्षक मात्र उद्देश्य पूर्ति के लिए रखे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इनको नियमित करने के लिए नहीं कहा है। इसलिए सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रही है। बेरोज़गार अध्यापक संघ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। पर 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं हुई ? हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ का कहना है कि 2555 शिक्षकों की भर्तियां बिना कमीशन के की गयी है। कांग्रेस और भाजपा ने 2012 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। इसलिए जयराम सरकार जनता को स्पष्ट करे कि चार साल में 2555 एसएमसी शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती क्यों नहीं की गई। हिमाचल प्रदेश बेेरोजगार अध्यापक संघ प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय रतन, संजय राणा, महासचिव राजेश धीमान, अतिरिक्त महासचिव लेख राम, सचिव स्वरूप कुमार, मुख्य संगठन सचिव पुरुषोत्तम दत्त, वित्त सचिव संजीव कुमार, प्रेस सचिव प्रकाश चंद, संगठन सचिव यतेश शर्मा, जिलाध्यक्ष कांगड़ा जगदीप जम्वाल, जिलाध्यक्ष बिलासपुर किशोरी लाल व जिलाध्यक्ष ऊना रजनी बाला ने सरकार से मांग है कि एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए।
कर्मचारियों की मांगों पर चर्चा के लिए 25 सितंबर को प्रस्तावित जेसीसी बैठक से पहले प्रदेश के कर्मचारियों के बीच हलचल तेज हो गई है। अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने और संबंधित विभागों तथा अन्य पक्षों से इन पर सहमति बनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। इसी कोशिश के तहत सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ का एक प्रतिनिधिमंडल भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला। दरअसल सितम्बर माह के अंत में अधिकतर अनुबंध कर्मचारी तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा कर नियमित हो जाएंगे। अगर इस माह के खत्म होने से पहले पहले अनुबंध काल को नहीं घटाया गया तो सितंबर में नियमित होने वाले कर्मचारियों को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए अनुबंध काल को तुरंत घटाने की मांग ने तूल पकड़ लिया है, जिसके चलते अनुबंध कर्मचारी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिले। अनुबंध कर्मचारियों के इस प्रतिनिधिमंडल में कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र नड्डा, कार्यकारी महासचिव सुनील कुमार शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, वित्त सचिव अविनाश सैनी और हमीरपुर जिला अध्यक्ष मनु शर्मा शामिल थे। कर्मचारी प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि जेसीसी में अनुबंध अवधि को तीन से दो साल करने की घोषणा करें, क्योंकि इसके बाद सितंबर में अधिकांश कर्मचारी वैसे ही इस अवधि को पूरा कर रहे हैं। सीएम को यह भी कहा गया कि अगले साल चुनावी वर्ष में सरकार यदि इस घोषणा को करेगी, तो भी अधिकांश कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इसके बाद सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ का प्रतिनिधिमंडल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर से भी मिला और उनसे आग्रह किया की इस मांग को वो प्राथमिकता से उठाएं। गौरतलब है कि जेसीसी के एजेंडे में यह मांग तीन नंबर पर है। लगभग 19000 कर्मचारी अनुबंध पर अनुबंध काल को 3 से दो वर्ष करने की मांग काफी समय से लंबित पड़ी है। लगभग हर विभाग का अनुबंध कर्मचारी अनुबंध काल को घटाने की मांग कर रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अनुबंध कर्मचारियों से 2017 की एक चुनाव रैली में वादा किया था कि जैसे ही उनकी सरकार सत्ता में आएगी वे अनुबंध काल को 3 से घटा कर दो वर्ष कर देंगे। कर्मचारियों से किया ये वादा भाजपा के 2017 के चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल था। कर्मचारी इंतज़ार में है की जेसीसी की बैठक में सरकार अपना चुनावी वादा पूरा करेगी। हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ पिछले साढ़े तीन वर्षों से अनुबंध काल को दो वर्ष करने की मांग उठा रहा है, महासंघ लगातार संघर्ष कर रहा है। इस समय प्रदेश में लगभग 19000 कर्मचारी अनुबंध आधार पर विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं। उम्मीद है सरकार राहत देगी : अरुण हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अरुण भारद्वाज का कहना है कि अनुबंध पर नियुक्त कर्मचारियों की ये मांग पूरी तरह जायज़ है। अरुण भारद्वाज का कहना है कि सरकार द्वारा अनुबंध कर्मचारियों को हिमाचल के दूरदराज़ क्षेत्रों में नियुक्त किया जाता है। साथ ही इन्हें वेतन भी पर्याप्त नहीं दिया जाता और न ही सरकारी नौकरी के लाभ पूरी तरह मिलते है, इसलिए अनुबंध कार्यकाल को कम से कम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है की इस बार जेसीसी की बैठक में कर्मचारियों की ये मांग पूरी की जाएगी। वे चाहते है कि इसी महीने जेसीसी हो जाए क्यों कि सितम्बर के बाद कई अनुबंध कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। यदि जेसीसी इस माह नहीं हुई तो जो कर्मचारी सितंबर में रेगुलर हो रहे है उन्हें लाभ देने से सरकार चूक जाएगी। इस सरकार के कार्यकाल में भर्तियां जून 2018 से शुरू हुई है जिनका अनुबंध कार्यकाल सितंबर में पूरा हो जाएगा। यहां खास बात तो यह है कि जिन कर्मचारियों से 2017 में वादा किया गया था वो कर्मचारी तो अपना 3 वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर भी चुके है। उम्मीद है कि जो कर्मचारी शेष है उन्हें सरकार जल्द राहत देगी।
हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को जिसका इंतज़ार था, वो घड़ी अब आ गई है। सरकार ने कर्मचारियों के मसले सुलझाने के लिए 25 सितंबर को सुबह 11 बजे संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक बुलाई है। इससे पहले वीरभद्र सिंह सरकार ने वर्ष 2015 में जेसीसी आयोजित की थी। जबकि सत्ता संभालने के बाद जयराम सरकार भी पहली जेसीसी आयोजित करेगी। इस बैठक के लिए हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों को सरकार ने पहले ही अधिकृत कर रखा है, जो कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करेंगे। वहीं बैठक में सभी विभागों के सचिव और विभागाध्यक्षों को मौजूद रहने के लिए कहा गया है। इस बैठक से कर्मचारी वर्ग को खासी उम्मीद है और अब क्यों कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अधिक वक्त नहीं बचा है, ऐसे में अपेक्षित है कि सरकार कई लंबित मसलों पर सकारात्मक फैसले ले। सत्ता प्राप्त करने में प्रदेश का कर्मचारी वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और ऐसे में जाहिर सी बात है कि सरकार पर कर्मचारी वर्ग की अपेक्षाओं का बोझ है। वहीँ सरकार द्वारा अधिकृत हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से भी कर्मचारी वर्ग को उम्मीदें रहेगी। यानी दबाव दोतरफा होगा। उधर सरकार के नज़रिए से देखा जाए तो सरकार की भी अपनी मजबूरी है। कर्मचारी उम्मीदों पर खरा न उतरे तो सत्ता खोने का डर बढ़ जाता है, और यदि कर्मचरियों को नई राहतें-सौगातें दे तो आर्थिक स्थिति ख़राब होती है। पहले से कर्ज़े में डूबी हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए ये बेहद मुश्किल समय है। राज्य में विकास कार्यों के नाम पर लगातार ऋण लिया जा रहा है। कोरोना संकट के बीच राज्य की माली हालत पतली है। अब जयराम सरकार कर्मचारियों को नए लाभ कहाँ से देगी, ये बड़ा सवाल है। इन कर्मचारी मांगो पर रहेगी रहेगी नज़रें - कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान देने की मांग - अनुबंध कार्यकाल दो साल करने की मांग - अनुबंध कार्यकाल को वरिष्ठता में शामिल करने की मांग - कर्मचारियों को 4-9-14 साल की सेवा अवधि में टाइम स्केल देना - कनिष्ठ ऑफिस सहायकों के लिए भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में संशोधन - महंगाई भत्ते की पांच फीसदी किस्त जारी करने की मांग - नई पेंशन स्कीम के तहत केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना के अनुसार निधन या स्थायी अपंगता पर पूरी पेंशन देने की मांग - केंद्र सरकार की तर्ज पर महिला कर्मियों को बच्चे की देखभाल के लिए दो साल का अवकाश देने का मसला - कर्मचारियों के अन्य मसले जैसे की प्रतिपूरक भत्ता, पूंजी भत्ता और मकान किराया भत्ता बढ़ाने की मांग - एनजीओ फेडरेशन के एक प्रतिनिधि को हाउस अलॉटमेंट कमेटी में शामिल करने की मांग - तीसरी और चतुर्थ श्रेणी के सभी खाली पदों को जल्द भरने की मांग - आउटसोर्स कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग - पुलिस कॉन्स्टेबल्स का अनुबंध काल घटाकर 3 वर्ष करने की मांग - दैनिक वेतन भोगियों को 5 की बजाए 4 साल में नियमित करने की मांग - आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा वर्करों का वेतन बढ़ाने की मांग - करुणामूलक नौकरियां बहाल करने की मांग - नव नियुक्त कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 18000 करने की मांग - छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू करवाना
करुणामूलक संघ ने आज यानी वीरवार को अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर से मिल कर उन्हें मांग पत्र व ज्ञापन पत्र सौंपा। हिमाचल करूणामुलक संघ के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार की अध्यक्षता में करुणामूलक आश्रितों का प्रतिनिधिमंडल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर से मिलने सचिवालय पंहुचा था। उन्होंने अश्वनी ठाकुर से जेसीसी की बैठक में करुणामूलक नौकरियों को बहाल करने की मांग की। साथ ही उन्होंने समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केस जोकि 7 मार्च 2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं, उन्हें वन टाइम सेटलमेंट के तेहत सभी को एक साथ नियुक्तियाँ दी जाने की मांग की है। बता दें कि करुणामूलक आधार पर नौकरी देने के मामलों पर अभी सरकार कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाई है। जबकि सरकार के पास विभिन्न विभागों में करुणामूलक के लंबित करीब 4500 मामले पहुंचे हैं और प्रभावित परिवार करीब 15 साल से नौकरी का इंतजार कर रहे हैं। कई विभागों में कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु होने के बाद आश्रित परिवार की महिला ने बच्चे छोटे होने के कारण नौकरी नहीं ली थी।
हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ ने संघर्ष के लिए रणनीति बना ली है। बेरोजगार अध्यापक संघ सिर्फ सरकार से ही नहीं बल्कि विपक्ष से भी रुष्ट है। संघ के अनुसार एसएमसी शिक्षकों का पक्ष लेना सरकार को महंगा पड़ सकता है। बेरोजगार अध्यापक संघ का आरोप है की कांग्रेस और भाजपा ने 2001 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। बेरोजगार अध्यापक संघ के अनुसार सरकार का यह कहना सरासर गलत है कि 2555 एसएमसी शिक्षक केवल दुर्गम क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि 792 एसएमसी स्कूल लेक्चरर में से 582 गैर कबायली क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। यही नहीं एसएमसी शिक्षक हर जिला में तैनात हैं। सरकार जनता को स्पष्ट करे कि सुप्रीम कोर्ट बड़ा है या सरकार। इनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। इसलिए अब बेरोजगार संघ ने संघर्ष का रास्ता अपनाया है। इनकी मांग है की एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए। ब्लॉक स्तर पर हस्ताक्षर अभियान शुरू प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय रतन, मुख्य संगठन सचिव पुरुषोत्तम दत्त, वित्त सचिव संजीव कुमार, जिला अध्यक्ष ऊना रजनी बाला, जिलाध्यक्ष बिलासपुर किशोरी लाल, प्रेस सचिव राज पाल, ललित कुमार, विनोद कुमार, युवराज ने संयुक्त बयान में कहा है कि यदि एसएमसी शिक्षकों की पैरवी होती रही तो कांग्रेस और भाजपा को सदा के लिए सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ सकता है। इसके लिए बेरोजगार संघ ने पांच सितंबर से ब्लॉक स्तर पर हस्ताक्षर अभियान भी शुरू कर दिया है। इस अभियान के अंतर्गत प्रदेश के एक लाख बेरोजगार शपथ ले रहे है कि यदि एसएमसी शिक्षकों को सरकार का संरक्षण मिलता रहा तो 2022 में कांग्रेस और भाजपा का समर्थन नहीं किया जाएगा।
मांगे पूरी न होने पर नाराज़ हुए परिवहन निगम के कर्मचारी अब आंदोलन के लिए तैयार हैं। हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति ने इसका ऐलान कर दिया है। हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम कर्मचारियों ने मांगों को लेकर एक बार फिर निगम प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। समिति ने निगम प्रबंधन को चेतावनी देते हुए कहा कि वह कर्मचारियों के धैर्य की परीक्षा न लें। कर्मचारियों की मांगों को लेकर निगम प्रबंधन का रवैया आंदोलन के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में 9 सितंबर से सभी यूनिट में कर्मचारी गेट मीटिंग करेंगे तो वहीं 14 सितंबर को मुख्यालय के घेराव की रणनीति बनाई गई है। बीते दिनों हुई हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति की बैठक में हिमाचल परिवहन के कुल आठ संगठन शामिल थे और इस बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष प्यार सिंह ने की। उनके आलावा उपाध्यक्ष मान सिंह, सचिव खेमेंद्र गुप्ता, प्रवक्ता संजय गढ़वाल, कोषाध्यक्ष जगदीश चंद और हरीश कुमार इस बैठक में मुख्य तौर पर मौजूद रहे। बता दें की ये बैठक निगम कर्मचारियों के हित के लिए और सभी मसले एक मंच पर उजागर करने के लिए बुलाई जाती है। बैठक में कर्मचारी प्रतिनिधियों द्वारा चिंता व्यक्त करते हुए रोष प्रकट किया गया कि निगम प्रबंधन द्वारा संयुक्त समन्वय समिति के साथ पूर्व में किए गए समझौतों पर अमल नहीं किया गया है। कर्मचारियों के लगभग 500 करोड़ के रुपए के लंबित वित्तीय भुगतान देय है, जिससे कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। इनमें जनवरी 2016 से 13 प्रतिशत आई आर, डीए जनवरी 2019 से चार फीसदी, पांच जुलाई 2016 से व छह जुलाई 2021 से कुल डीए 15 प्रतिशत, 32 महीनों का नाईट ओवर टाइम, पेंशन, ग्रेच्युटी, कम्यूटेशन, लीव इनकैशमेंट, जीपीएफ, मेडिकल रिंबर्समेंट सहित अन्य एरियर शामिल है। हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति के अनुसार उन्हें लगता है कि निगम प्रबंधन कर्मचारियों को शांति पूर्वक अपने कार्य का निष्पादन नहीं करने देना चाहता। 23 व 24 जुलाई को निजी बस ऑपरेटरों के साथ विवाद के चलते कर्मचारियों को हड़ताल जैसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश किया गया। उसके बाद जब उस मुद्दे पर परिवहन मंत्री द्वारा 26 जुलाई को संसारपुर टैरेस में समन्वय समिति के पदाधिकारियों के साथ बैठक की गई तो उसमें कर्मचारियों की अनेक मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया गया। उस बैठक में प्रबंध निदेशक एचआरटीसी व अन्य कुछ अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक में इस विषय पर भी चर्चा की गई कि हड़ताल में शामिल किसी भी कर्मचारी के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जो कि नेगोशिएशन का एक मूल सिद्धांत भी है। पर इसके बावजूद भी एचआरटीसी के प्रबंध निदेशक की ओर से एक महीना बीत जाने के बाद क्षेत्रीय प्रबंधकों को आदेश दिए गए कि जो कर्मचारी हड़ताल में शामिल थे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए और अब क्षेत्रीय प्रबंधकों द्वारा कर्मचारियों कारण बताओ नोटिस दिए जा रहे हैं। यह बैठक में हुई नेगोशिएशन की अवहेलना है। जब परिवहन मंत्री ने माना था और कर्मचारी प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया गया था कि सभी मांगे जल्द ही पूरी होगी और कोई भी कार्यवाही किसी भी कर्मचारी के खिलाफ नहीं की जाएगी, तो फिर अब कार्रवाई क्यों हो रही है। यह सीधे तौर पर परिवहन मंत्री के आदेशों का अपमान है जिससे प्रतीत होता है कि एचआरटीसी प्रबंधन द्वारा बेवजह सरकार की छवि धूमिल की जा रही है।
'यदि सरकार ने शीघ्र हमारी समस्याओं का हल नहीं किया, तो आने वाले चुनाव हम सब सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे।' ये ऐलान प्रदेश डिपो संचालक समिति ने किया है। प्रदेश के सभी डिपो संचालक अपनी मांगों को लेकर सरकार से काफी लम्बे समय से गुहार लगा रहे है, परन्तु अब तक इनकी स्थिति में कुछ सुधार नहीं दिखा। डिपो संचालक समिति के प्रदेश अध्यक्ष अशोक कवि ने कहा है कि गत चार वर्षों से प्रदेश सरकार हमारी जायज मांगों को अनदेखा कर रही है। उन्होंने कहा कि डिपो धारकों को सभी खर्चे स्वयं उठाने के बाद मात्र तीन प्रतिशत कमीशन मिलती है, जबकि राशन से संबंधित सभी व्यवस्थाओं के खर्चे उठाना सहकारी सभाओं का काम है, लेकिन सहकारी सभाएं ऐसा न करके अपने कर्मचारियों का शोषण कर रही है। इसके अलावा दुकानों का किराया और बिजली के बिल भी उन्हें ही अदा करने पड़ रहे हैं। विक्रेताओं के लिए जो कमीशन तय की गई है, वे काफी कम है। एपीएल राशन पर मात्र तीन प्रतिशत कमीशन दिया जा रहा है। इसके अलावा सहकारी सभाओं के विक्रेता के साथ-साथ सचिव का कार्य भी देख रहे हैं। उन्हें सहकारी सभाएं सेवा नियमों के तहत वेतन न देकर मनमाने ढंग से वेतन देकर शोषण किया जा रहा है। प्रदेश डिपो संचालक समिति ने सरकार से मांग की है कि जो सहकारी सभाएं अपने कर्मचारियों को वेतन देने में सक्षम हैं, उन्हें सेवा नियमों के तहत वेतन देने के कड़े आदेश जारी किए जाए। आर्थिक रूप से कमजोर सभाओं के विक्रेताओं को निजी डिपो देकर विधानसभा एस्टीमेट कमेटी की सिफारिश को लागू करके केरल और तमिलनाडु राज्यों की तर्ज पर 18 हजार रुपये मासिक वेतन देने का प्रावधान किया जाए। इनका कहना है कि कोरोना महामारी में डिपो संचालकों ने लोगों की सेवा करते करते अपने प्राण तक त्याग दिए, लेकिन सरकार की ओर से उनके आश्रितों को एक पैसे की मदद तक नहीं की गई। डिपो संचालकों द्वारा किराया बढ़ाने के बजाय राशन लाने के लिए ठेकेदारी प्रथा शुरू करने का भी जोरदार विरोध किया गया है।
पंजाब सरकार ने हाल ही में नेशनल पेंशन स्कीम के अधीन आने वाले कर्मचारियों को मौत होने की सूरत में पारिवारिक पेंशन के अधीन कवर करने का फैसला लिया है, जिससे पंजाब के कर्मचारियों ने राहत की सांस ली है। अब क्यों कि हिमाचल प्रदेश भी अपने कर्मचारियों को आर्थिक लाभ देने के लिए पंजाब को फॉलो करता है तो यहां के कर्मचारियों की धुकधुकी भी बढ़ गई है। निगाहें सरकार पर टिकी है और उम्मीद है कि पुरानी पेंशन न सही पर कम से कम 2009 की अधिसूचना ही सरकार जारी कर देगी। इस पर दस्तक दे रहे उपचुनाव उम्मीदों को और प्रबल कर रहे है। इसमें कोई संशय नहीं कि अधिकांश कर्मचारी नई पेंशन स्कीम नहीं चाहते। नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। हिमाचल प्रदेश में आए दिन कर्मचारी प्रदेश सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते है, इसके साथ ही केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करने हेतु भी आवाज़ उठाई जाती है ,जो अब और तेज़ हो गई है। हिमाचल के कर्मचारी को उम्मीद है की पंजाब की तर्ज पर हिमाचल में भी 2009 की अधिसूचना लागू होगी। बता दें की अब तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, असम, हरियाणा और तेलंगाना वो राज्य थे जहां 2009 की अधिसूचना का लाभ कर्मचारियों को मिल रहा था, अब पंजाब भी इन्हीं राज्यों में से एक होगा। बीते दिनों बढ़ते कोरोना मामले और मौत के आंकड़े ने कर्मचारी वर्ग को भी हिला कर रख दिया था। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कर्मचारियों के साथ-साथ प्रदेश के अन्य कर्मचारी भी कठिन समय में निरंतर अपनी सेवाएं देते रहे, और इनमें से कई कोरोना की चपेट में भी आ गए। पिछले कुछ समय में हिमाचल के कई सरकारी कर्मचारी कोरोना के चलते अपनी जान भी गवा चुके है। ऐसे में कर्मचारी वर्ग जोरशोर से 2009 की अधिसूचना की मांग कर रहा है। हाल ही में मंडी में हुई अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की जिला इकाई की बैठक में भी पुरानी पेंशन बहाली और 2009 की अधिसूचना को लागू करने का मुद्दा खूब गूंजा। कर्मचारी सरकार की रीड की हड्डी, सरकार भी ख्याल रखे : प्रदीप नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर और महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि प्रदेश में पिछले कुछ समय में हिमाचल प्रदेश के कुल 21 से कर्मचारी की मृत्यु कोरोना के चलते हुई है। ये सभी कर्मचारी नई पेंशन स्कीम में आते थे इन परिवारों को पारिवारिक पेंशन देना अति आवश्यक है क्योंकि इन परिवारों ने अपने घर के मुखिया को खोया है। सभी दिवंगत कर्मचारी सरकारी सेवा में कार्यरत थे l उन्होंने कहा कि कोरोना का कहर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और यह पूरे समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुका है। इस मुश्किल दौर में सरकार की रीड की हड्डी कहे जाने वाले कर्मचारी सरकार के साथ हर सहयोग के लिए तैयार है, लेकिन सरकार द्वारा कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। कर्मचारियों की मृत्यु के बाद उनके परिवारों जीवन व्यापन बहुत मुश्किल हो जाता है। 2009 की अधिसूचना केंद्र सरकार के साथ-साथ 9 अन्य राज्यों में भी लागू हो सकती है तो हिमाचल में क्यों नहीं। पिछले दिनों पंजाब सरकार ने भी इस संबंध में निर्णय लिया है। प्रदेश सरकार को भी नई पेंशन में आने वाले कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2009 की अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन का प्रावधान है, संबंधित अधिसूचना को प्रदेश में जल्द से जल्द लागू किया जाए जल्द फैसला ले लेना चाहिए। प्रदेश के कर्मचारी अपनी सेवाएं देते हुए कम से कम यह तो महसूस कर सके कि यदि उन्हें कुछ होता है तो उनका परिवार कुछ हद तक सुरक्षित हो सकता है। अब याचना नहीं होगी, उपचुनाव से पहले अधिसूचना ज़ारी हो : राजिंदर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन जिला कांगड़ा के प्रधान राजिंदर मन्हास ने कहा की सरकार की लगातार अनदेखी से हिमाचल के एक लाख एनपीएस कर्मचारी काफी खफा हैं। मुख्यमंत्री लगातार चार साल से 2009 की अधिसूचना को लेकर एक ही डायलॉग एनपीएस कर्मचारियों से बोल रहे हैं कि मामला सरकार के ध्यान में है। जल्द निर्णय लिया जाएगा। पर चार साल से 2009 की अधिसूचना हिमाचल में लागू नहीं हो पाई है, जिससे कर्मचारियों में रोष बढ़ रहा है। जिला प्रधान ने कहा मुख्यमंत्री कहते हैं कि एनपीएस एक राज्य को छोड़ पूरे भारत में सम्मान रूप से लागू है, पर ये आधा सत्य है। 2009 की अधिसूचना जिसके तहत सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत पर पेंशन का परिवार को प्रावधान है, इस अधिसूचना को पंजाब सहित अब 9 राज्य लागू कर चुके हैं तो ऐसे में प्रदेश सरकार को इसे लागू करने में क्यों ऐतराज है। पिछले माह जिला कांगड़ा के सात विधायकों से एसोसिएशन इस अधिसूचना को लागू करवाने को लेकर मिली, पर दुखद है कि यह सात विधायक भी विधानसभा में इस मांग पर चुप्पी साध बैठे रहे। अब कर्मचारी बहुत याचना कर चुके हैं और अब याचना नहीं होगी। अगर उपचुनाव से पहले 2009 की अधिसूचना जारी नहीं हुई तो उपचुनावों के नतीजे सरकार के सारे दावों की हवा निकाल सकते हैं। क्या है 2009 की अधिसूचना केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना में यह प्रावधान है कि अगर नौकरी के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वो कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है तो उसके परिवार को पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्रदान किए जाते हैं। यानि उस कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है। चूँकि ये अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू नहीं की गई है तो ऐसे में यदि हिमाचल के किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है या किसी दुर्घटना में वे दिव्यांग हो जाते है तो उनके परिवार को कोई भी पेंशन नहीं दी जाती। कर्मचारी के जाने के बाद उसके परिवार के आर्थिक मदद के लिए कोई नीति नहीं बनाई गयी है। यही वजह है कि हिमाचल के कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करते। कई ऐसे राज्य है जहां केंद्र सरकार की ये अधिसूचना लागू की गई है मगर हिमाचल में इस मांग को कब अमलीजामा पहनाया जाता है, ये बड़ा सवाल है। घोषणापत्र में कमेटी गठन का था वादा 2017 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में घोषणा पत्र में वादा किया था कि सरकारी विभागों में कर्मचारियों की पेंशन हेतु केंद्र सरकार से परामर्श के लिए सीएम की अगुवाई में पेंशन योजना समिति का गठन किया जाएगा। सरकार को चार साल होने को आये और अगले विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है लेकिन पर ये वादा अधूरा है। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ का कहना है कि इसके उपरांत 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने धर्मशाला में कर्मचारियों के बीच भी घोषणा की थी कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए जल्द कमेटी का गठन किया जाएगा तथा केंद्र सरकार द्वारा 2009 में मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन संबंधित प्रावधान संबंधित अधिसूचना को भी हिमाचल प्रदेश में जल्द लागू किया जाएगा, पर हुआ कुछ नहीं l सरकार शायद वादा भूल चुकी हो मगर कर्मचारियों को सब याद है।
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू करवाना कर्मचारी वर्ग की एक प्रमुख मांग है।दरअसल हिमाचल में पंजाब की तर्ज पर वेतनमान लागू किया जाता रहा है। पंजाब ने नया वेतनमान तो जारी कर दिया है, लेकिन कर्मचारियों के विरोध के बीच इसे लागू करना आसान नहीं है। वहां की सरकार ने अधिसूचना में संशोधन करने के लिए कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी अपनी सिफारिशें मंत्रिमंडल को सौंपेगी। हिमाचल में भी इस वेतनमान में विसंगतियों को लेकर विरोध जारी है। सचिवालय कर्मचारी, चिकित्सक, शिक्षक और कई अन्य कर्मचारी इसका विरोध कर रहे है। कर्मचारियों के अनुसार छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को ज्यों का त्यों लागू नहीं किया जाना चाहिए। क्लास थ्री, फोर के अलावा क्लास टू के कर्मचारियों को भी ये डर सता रहा है कि अगर मौजूदा प्रावधान लागू हुए तो हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों से रिकवरी हो सकती है। इससे कई वर्गों को लाभ होने के बजाय आर्थिक नुकसान हो सकता है। अंतरिम राहत (आइआर) के तौर पर सरकार जो लाभ दे चुकी है, उसकी कुछ हद तक रिकवरी हो सकती है। आइआर वेतनमान का ही हिस्सा माना जाता है। इसे सरकार समय-समय पर जारी करती रही है, ताकि एक साथ नए वेतनमान का आर्थिक बोझ न पड़े। इस विरोध के कारण ही छठा वेतनमान देने में देरी हो रही है।
चंबा जिले के बैच वाइज भाषा अध्यापक काउंसलिंग के अभ्यर्थियों ने नतीजों में की जा रही देरी को लेकर नाराजगी जाहिर की है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि एक तरफ सरकार शिक्षकों की विभिन्न कैटेगरी के तहत खाली पदों को भर रही है, दूसरी तरफ चंबा जिला में भाषा अध्यापकों की बैच वाइज काउंसलिंग का रिजल्ट नहीं निकाला गया है। चंबा जिला के इस मामले पर अभ्यर्थियों ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया है। अगर सरकार से न्याय नहीं मिला, तो शिक्षक कोर्ट जाएंगे। बता दें कि चंबा जिला के भाषा शिक्षकों का रिजल्ट न निकलने पर अब शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठने लगे हैं। आखिर चंबा में ही बैचवाइज भर्ती के तहत रिजल्ट क्यों नहीं निकाला गया है, इस पर शिक्षा विभाग ने लंबे समय से चुप्पी साधी हुई है। बेरोजगारी झेल रहे अभ्यर्थी कई मर्तबा शिक्षा विभाग से लेकर शिक्षा मंत्री तक इस मामले पर मिले, लेकिन कोई भी इन अभ्यर्थियों को आश्वस्त नहीं कर पा रहा है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि करीब आठ माह पहले साक्षात्कार लिए गए थे, बावजूद इसके अभी तक परिणाम नहीं निकाला गया है। इससे अभ्यर्थियों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। अभ्यर्थियों ने कहा कि गत वर्ष 6 और 7 सितंबर को जिले में भाषा अध्यापकों की बैच वाइज काउंसलिंग प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक कार्यालय में हुई थी, परन्तु आठ माह बीत जाने के बावजूद अब तक परिणाम घोषित नहीं किया गया है। लिहाजा टेट पास शिक्षक अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। अभ्यर्थियों ने कहा कि इतना अधिक समय बीत जाने पर भी परिणाम घोषित न करना उनकी चिंताएं बढ़ा रहा है। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि कोरोना काल में भी विभिन्न श्रेणियों की बैच वाइज नियुक्तियां हो रही हैं, लेकिन न जाने भाषा अध्यापक श्रेणी से सरकार और विभाग भेदभाव क्यों कर रहे हैं? अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और प्रारंभिक शिक्षा उप निदेशक चंबा से मांग की है कि बिना किसी भेदभाव के साक्षात्कारों के नतीजे के इंतजार में बैठे प्रभावितों को जल्द राहत प्रदान की जाए। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि भाषा अध्यापक बैच वाइज भर्ती पर कोर्ट द्वारा बैच वाइज काउंसलिंग और रिजल्ट निकालने पर कोई भी रोक नहीं लगाई गई है, परन्तु फिर भी रिजल्ट नहीं निकाला गया है। इनका कहना है कि अगर नतीजे घोषित ही नहीं करने थे तो फिर कमीशन क्यों करवाया गया। गुस्साए भाषा अध्यापकों ने अब कोर्ट जाने की धमकी दे दी है। अभ्यर्थी दीप्ति कुमारी, सोनिया कुमारी, निधि कुमारी, सपना देवी, राधा देवी, आरती देवी, मोनिका देवी, छाया देवी, कुसुम लता ने कहा कि इतना अधिक समय बीत जाने के बावजूद नतीजे न निकालना उनकी चिंताएं बढ़ा रहा है। विभाग व सरकार द्वारा दस महीने से भाषा अध्यापकों का परिणाम न निकालने के कारण अभ्यर्थियों में रोष है।
लम्बे अर्से बाद हिमाचल कैबिनेट ने प्रदेश के कर्मचारी वर्ग के लिए एक बड़ा राहत भरा फैसला लिया गया है। हालहीं में हुई जयराम मंत्रिमंडल की बैठक में निर्णय लिया गया है कि प्रदेश के हजारों युवाओं के लिए शिक्षा विभाग में भर्ती होने वाली है। लंबे समय से प्रदेश के सरकारी कॉलेज व स्कूल में शिक्षकों के खाली चल रहे पद अब भरे जाने वाले है। विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में अलग-अलग विषयों के शिक्षकों की भर्तियां होंगी। मंत्रिमंडल ने शिक्षा विभाग में 4000 शिक्षकों की बंपर भर्ती करने का फैसला लिया है। इस फैसले पर बेरोज़गार कला अध्यापक संघ ने सरकार का आभार व्यक्त किया है। इन अध्यापकों को प्रशिक्षण लेने के बाद भी आज तक नियुक्ति ही नहीं मिल पाई थी। बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार सरकार ने आखिरकार उनकी सुन ही ली जिसके लिए वे उनके आभारी है। कैबिनेट की बैठक में शिक्षकों की कई कैटेगरी के पदों को सरकार ने चार साल बाद मंजूरी दी है। कैबिनेट में शिक्षकों के पदों को भरने के फैसले से हजारों युवाओं को भी राहत मिली है। बेरोजगार प्रशिक्षित शिक्षकों को बैचवाइज नंबर आने की उम्मीद जगी है। फिलहाल कैबिनेट ने बड़ा फैसला लेते हुए शिक्षा विभाग में विभिन्न श्रेणियों के शिक्षकों के चार हजार पदों को अनुबंध आधार पर भरने की मंजूरी दी है। इनमें 1360 पद उच्च शिक्षा और 2640 पद प्रारंभिक शिक्षा विभाग में भरे जाएंगे। आठ हजार शिक्षकों के पद रिक्त कैबिनेट के फैसले के अनुसार 810 जेबीटी, 820 कला शिक्षक, 870 पीईटी, 561 कालेज प्रवक्ता, 214 स्कूल न्यू प्रवक्ता, 250 जेओए (पुस्तकालय),16 कालेज आचार्य सहित तबला वादकों व योग शिक्षकों के भी पद भरे जैन। वहीं, यह निर्णय भी लिया गया कि शिक्षकों के विभिन्न पदों पर बैचवाइज भर्ती में तेजी लाई जाए। बता दें कि शिक्षा विभाग में इस समय आठ हजार शिक्षकों के पद खाली चल रहे हैं। इसमें प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी तक के स्कूलों की बात करें तो 7000 पद अभी भी विभिन्न कैटेगिरी के खाली चल रहे हैं। इसमें से 3500 पद तो विभाग भर देगा, वहीँ बाकी पदों को भी जल्द भरने का दावा किया जा रहा है।
हर बार की तरह इस बार भी राज्य सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संघ के चुनाव काफी दिलचस्ब रहे। कड़ी चुनौतियों और पूरा दमखम लगाने के बाद अब संघ की कार्यकारिणी तय हो गई है। राज्य सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संघ की कमान अब भूपिंदर सिंह बाबी के हाथों में चली गई है। भूपिंदर ने अध्यक्ष पद के दूसरे दावेदार और दो बार के अध्यक्ष रहे संजीव शर्मा को कुल 165 मत से मात दे दी । उपाध्यक्ष पद पर राजेंद्र सिंह मियां ने बड़ी जीत दर्ज की है। पूर्व महासचिव कमल कृष्ण शर्मा को भी हार का मुंह देखना पड़ा है। बता दें कि ये दोनों स्थापित कर्मचारी नेता रहे हैं परन्तु इस बार कर्मचारी लहर किसी दूसरी तरफ निकल गई। शिमला स्थित राज्य सचिवालय परिसर में संघ के विभिन्न पदों के लिए कर्मचारियों ने मतदान किया। रोचक बात ये रही कि इस बार 800 वोटर थे, जिनमें 740 ने मतदान किया। चुनाव में सचिवालय के अलावा, राजभवन, लोकायुक्त, लोक सेवा आयोग के कर्मचारी भी शामिल हुए। विभिन्न पदों के लिए कुल 15 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा और कई दिनों तक प्रचार किया। अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव पदों पर सीधी टक्कर रही। जबकि संयुक्त सचिव पद पर त्रिकोणीय, कोषाध्यक्ष पद पर बहुकोणीय मुकाबला हुआ। अध्यक्ष पद के लिए संजीव शर्मा, महासचिव पद पर केके शर्मा ने तीसरी बार चुनाव लड़ा। कमल शर्मा दो बार महासचिव का चुनाव जीते हैं। इससे पहले वह कोषाध्यक्ष, संयुक्त सचिव भी रहे हैं। पिछली मर्तबा दूसरे स्थान पर थे भूपेंद्र पिछले चुनाव में संजीव शर्मा ने 227 मत प्राप्त कर चार प्रतिद्वंदियों को परास्त किया था। तब चुनाव में भूपेंद्र सिंह बॉबी दूसरे नंबर पर रहे थे। संजीव शर्मा ने अपने भूपेंद्र सिंह बॉबी को 36 मतों से शिकस्त दी थी। भूपेंद्र सिंह को उस वक्त 191 वोट प्राप्त हुए थे। वहीं अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे अन्य दोनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। पर इस मर्तबा कर्मचारियों का भरोसा भूपेंद्र सिंह पर रहा और उन्होंने संजीव शर्मा को शिकस्त दी।
हिमाचल के फार्मासिस्ट भी अब प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके है। प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ ने सरकार से मांग की है कि संघ के तमाम सदस्यों को रात्रि सेवाएं देने के एवज में एनपीए व 13 महीनों का वेतन प्राथमिकता के आधार पर प्रदान किया जाए। संघ के राज्य प्रेस सचिव कृष्ण कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि संघ की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में ये फैसला लिया गया। कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से पारित किए गए प्रस्ताव में सरकार से यह भी मांग की है कि फार्मासिस्ट का पदनाम बदलकर फार्मेसी ऑफिसर तथा चीफ फार्मासिस्ट का नाम बदलकर चीफ फार्मेसी आफिसर किया जाए। संघ ने यह भी मांग की है कि सरकार नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा स्तरोन्नत स्वास्थ्य संस्थानों में फार्मासिस्टों और चीफ फार्मासिस्टों के पदों को प्राथमिकता के आधार पर सृजित करे। प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ का कहना है की हिमाचल के तमाम फार्मासिस्ट ने पुरे कोरोना काल में पूरी निष्ठा से अपनी सेवाएं प्रदान की है और अब भी कर रहे है। कोरोना काल में कई फार्मासिस्ट ने लम्बे समय तक बिना छुट्टी लिए अपने घरों से दूर रहकर भी अपनी सेवाएं दी है, मगर अक्सर उनकी अनदेखी ही की जाती है। सरकार बस आश्वासन थमा कर आगे बढ़ जाती है। अब उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनकी मांगें ज़रूर पूरी करेंगी।
हिमाचल प्रदेश में जल्द ही जेसीसी की बैठक होने वाली है जिसके लिए हिमाचल सरकार ने अश्वनी गुट वाले अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को आमंत्रित किया है। परन्तु कुछ कर्मचारी संगठन ऐसे है जो सरकार के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ इन्हीं संगठनों में से एक है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र चौहान का कहना है कि जेसीसी की बैठक में हिमाचल के शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं होता है और न ही शिक्षकों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। इनकी मांग है कि या तो इन्हें जेसीसी में शामिल किया जाए या फिर शिक्षकों के लिए भी कुछ ऐसा ही प्रावधान किया जाए जहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों के मसलों को हल किया जा सके। फर्स्ट वर्डिक्ट ने इसी तरह के कई मुद्दों पर उनसे बातचीत की। पेश है उनसे बातचीत के कुछ मुख्य अंश। सवाल : अपने संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी हमें दें और इस संघ से कितने कर्मचारी जुड़े है ये भी स्पष्ट करें ? जवाब : हमारा संगठन यानी हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ 1957 से लेकर आज तक लगातार शिक्षक एवं छात्र हित के लिए संघर्ष करता आ रहा है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जिसका मुझे तीसरी बार अध्यक्ष बनने का अवसर प्राप्त हुआ, इसके 82000 ऑनलाइन सदस्य हैं और 2019- 22 के लिए 42000 शिक्षकों ने सदस्यता ग्रहण की है। यह संगठन, लगातार शिक्षक एवं शिक्षार्थी हित में सरकार से मांग करता रहा है। सवाल : आपके संगठन की मुख्य मांग क्या है ? जवाब : हमारे संगठन की मुख्य मांगों में कई मुद्दे शामिल है क्योंकि हमारा संगठन, सभी वर्गों के शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करता है। संघ को हर वर्ग का ध्यान रखते हुए ही अपना मांग पत्र तैयार करना पड़ता है। हमारी प्रमुख मांगों में कर्मचारियों एवं शिक्षकों को छठे वेतन आयोग को शीघ्र लागू करने, 4-9-14 टाइम स्केल को पुनः बहाल करने तथा सभी वर्गों की पदोन्नति शीघ्र जारी करने के साथ-साथ सभी तरह की वेतन विसंगतियों को दूर करने एवं एनपीएस कर्मचारियों को 2009 की केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार अपंग या मृत्यु होने पर पुरानी पेंशन का लाभ देने जैसी बहुत सी मांगे हैं। इन मांगों को पूरा किया जाना अत्यंत आवश्यक है। सवाल : हिमाचल में जेसीसी की बैठक होनी है, मगर इस बैठक में शिक्षकों के मसलों पर चर्चा नहीं होती , इसपर आप क्या कहेंगे ? जवाब : जेसीसी की बैठक तो हिमाचल में होनी है पर न तो इस बैठक में हिमाचल के शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि शामिल होता है और न ही शिक्षकों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है की समाज के एक प्रबुद्ध वर्ग को सरकार से अपनी मांगों को मनवाने का कोई सीधा मंच नहीं मिल पाता है जैसा बाकि कर्मचारियों को जेसीसी बैठक के माध्यम से दिया जाता है। शिक्षक समुदाय और अभिभावकों के लिए भी सरकार को कोई प्लैटफॉर्म बनाना चाहिए। हमारी मांग है या तो हमें जेसीसी का हिस्सा बनाया जाए या हमारे लिए भी इस तरह का कोई प्रावधान किया जाए। सवाल : हाल ही में सरकार ने अश्वनी गुट के अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता दी है, क्या आप सरकार के इस फैसले से संतुष्ट है ? जवाब : जहां तक अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के गुटों या अश्वनी गुट की बात है, मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा की हिमाचल में अराजपत्रित कर्मचारी के अलावा और भी बहुत से कर्मचारी है जिनकी सरकार अनदेखी करती है। हिमाचल के 80 हज़ार शिक्षक भी सरकार की रिड की हड्डी है जो समाज के प्रति एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। वर्तमान में जो जेसीसी की बैठक होनी है और जिस तरह से जेसीसी के मुखिया बनाए गए है वो सही तरीका नहीं है। सरकार अपने चहेतों और समर्थकों को अध्यक्ष पद पर बैठा कर बाकि कर्मचारियों के साथ भद्दा मज़ाक कर रही है। सरकार द्वारा नियुक्त किया हुआ व्यक्ति कभी भी सरकार के निर्णयों पर सवाल खड़े नहीं करेगा। न जाने अब कर्मचारियों का क्या होगा। सरकार अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष को गोद में बिठा कर काम करना चाहती है। इससे सरकार का बखान तो बखूबी हो सकता है पर कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं होने वाला। कर्मचारियों के मुद्दे तभी सुलझेगे जब संगठन के चुनाव लोकतान्त्रिक तरीके से करवाएं जाएंगे। जो व्यक्ति कर्मचारियों के मुद्दे निष्पक्षता और ईमानदारी से उठाएगा और कर्मचारियों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा वो ही अध्यक्ष होना चाहिए, ना कि सरकार की जी हज़ूरी करने वाला कोई व्यक्ति। अगर कर्मचारी हितैषी कोई व्यक्ति अध्यक्ष बनता है तभी वो सरकार और कर्मचारियों के बीच समन्वय बिठा सकता है और तभी हिमाचल के कर्मचारियों का भला होगा। फिलवक्त जिस तरह से सरकार ने अध्यक्ष चुना है या मान्यता दी है वो एक लोकतान्त्रिक तरीका नहीं है बस अपने चहेतों को आगे करने की बात है, ताकि सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी न हो। सवाल : क्या सरकार आपकी सुनती है ? अब तक आपके संघर्ष को कितनी कामयाबी मिली ? जवाब : देखिये ये सरकार हमारी सुने या न सुने फर्क नहीं पड़ता, फर्क तो सरकार को पड़ता है, चुनाव के वक्त। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का काम है कर्मचारियों के मुद्दों को उजागर करना, मैं और मेरा संगठन लम्बे समय से ये काम करते आ रहे है। चाहे अध्यापकों के मुद्दे हो विद्यार्थियों के या अभिभावकों के, हर मुद्दा हमारी प्राथमिकता रहा है और हमेशा रहेगा भी। हिमाचल प्रदेश भी लोकतांत्रिक ढांचे का हिस्सा है तो सरकार हमारी सुनती है। या यूँ कहे सरकार को हमारी सुननी पड़ती है, ये सरकार की बाध्यता है। संवाद से बात बने तो बहुत अच्छा, परन्तु जहां बात करके हल नहीं निकलता वहां हम संघर्ष का रास्ता भी अपनाते है। हम शिक्षकों की मांगों को उठाते आए है और आगे भी इसी तरह से उठाते रहेंगे। हमारी आवाज़ को कोई दबा नहीं सकता और न ही हम चुप बैठ कर सहने वालो में से है ,चाहे सत्ता में कोई भी हो। सवाल : बीते दिनों सरकार और आपके बीच काफी तनातनी नज़र आई, कई नोटिस भी जारी हुए अब स्थिति कैसी है ? जवाब : जी बिलकुल बीते एक दो साल से विभाग और कुछ लोगों की वजह से हमारे संगठन और सरकार के बीच काफी ऊंच नीच हुई है। कुछ लोगों द्वारा मेरे संगठन को और मुझे नीचा दिखाने के लिए, मेरे संगठन के पदाधिकारियों और शिक्षकों को डराने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए। ये जो भी षड्यंत्र हमारे खिलाफ हुए है, मैं ये तो नहीं कहूंगा की इसमें सरकार का हाथ है मगर ये ज़रूर कहूंगा की जो भी हुआ सरकार को मालूम है, हमने खुद सब कुछ मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के ध्यान में लाया है। हम कुछ भी कहें हमें कारण बताओ नोटिस थमा दिए जाते है जो एक अच्छी परम्परा नहीं है। मैं पहले भी कह चूका हूँ की यदि सरकार को या विभाग को मुझसे इतनी ही आपत्ति है तो बार बार नोटिस थमाने के बजाए मुझे तुरंत ससपेंड कर दे। ये ओछे हथकंडों से मुझे डराना बंद करें, मैं ऐसी धमकियों से डरने वाला नहीं हूँ। ये बात सच है की कुछ लोगों द्वारा सरकार और विभाग के अधिकारियों को भ्रमित किया जा रहा है। मैं सरकार से कहना चाहूंगा कि कुछ लोगों के साथ आप दो तीन बार बैठक कर चुके है, उन्हें आप बार बार समय दे रहे है, तो हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जो की शिक्षकों का सबसे पुराना संगठन है उससे बात क्यों नहीं ? हमारी यही मांग है की हमारे साथ भी एक बैठक की जाए ताकि शिक्षकों के मुद्दों पर चर्चा हो सके। सवाल: क्या पंजाब के छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से आप संतुष्ट है ? जवाब : इस वेतन आयोग की सिफारिशों में संतुष्ट होने जैसा कुछ है ही नहीं। पंजाब में भी इसके खिलाफ खूब आंदोलन हो रहे है। इन प्रदर्शनों की वजह से पंजाब सरकार ये वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं कर पाई है। इस वेतन आयोग से कर्मचारी लाभान्वित नहीं होंगे बल्कि रिकवरी कर्मचारियों से हो सकती है। ये नया वेतनमान कर्मचारियों के अधिकारों का हनन है। यदि पंजाब की ओर से जारी सिफारिशों को ध्यान में रखा जाता है तो प्रदेश के शिक्षकों को नए वेतन आयोग से हर माह चार से पांच हजार का मासिक नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके पीछे कारण यह है कि 2011 में वेतनमान संशोधित होने के साथ-साथ पुर्न संशोधन हुआ था, जिसके चलते शिक्षक वर्ग को ग्रेड-पे संशोधित होने से अधिकतम पांच हजार रुपये का हर माह अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुआ था। 2011 में शिक्षक वर्ग के अलावा लिपिक और कई श्रेणियों को रिविजन के तहत अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुए थे। इस बार कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग में दो विकल्प दिए गए हैं। एक यदि आप बढे हुए ग्रेड पे से पहले का विकल्प लेते हैं तो वेतन मल्टीप्लायर 2.59 लगेगा। यानि आपका नया वेतन अभी के वेतन माइनस ग्रेड पे वेतन से 2.59 फीसदी ज्यादा होगा। और यदि 2011 के बढ़े हुए ग्रेड पे का विकल्प लेते हैं तो मल्टीप्लायर 2.25 लगेगा। इन विकल्पों से कर्मचारियों व शिक्षकों को जिनका 2011 में ग्रेड पे रिवाइज हुआ है, बहुत बड़ा झटका लगने वाला है। इसके साथ -साथ पंजाब के पे कमिशन में और भी बहुत सारी कटौती हैं जो पहले नहीं देखी गई थी। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की सरकार की ये मांग है कि सरकार प्रदेश के कर्मचारियों के हित में ही फैसला ले। हम ये वेतनमान हिमाचल में लागू नहीं होने देंगे, मैं हर कर्मचारी को ये आश्वासन देता हूँ। सवाल : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर ये धारणा बनी हुई है कि कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांग उठाने से ज्यादा अपनी राजनीति चमकाने में विश्वास रखते है, क्या आपके इरादे भी कुछ ऐसे ही है ? क्या आप आने वाले समय में किसी राजनीतिक दल में शामिल होंगे ? जवाब : हिमाचल के कर्मचारी नेताओं पर ये बात बिलकुल सटीक बैठती है। हालाँकि ऐसा होना नहीं चाहिए पर सत्य को स्वीकारने में कोई बुराई नहीं है। एक एक विभाग में न जाने कितने संगठन है जिनमें आपस में कोई तालमेल नहीं। एक संगठन कर्मचारियों की मांग को उठाता है, सरकार के खिलाफ बोलता है तो दूसरा संगठन सरकार के पास जाकर चाटुकारिता करना शुरू कर देता है कि आप चिंता न करें हम हड़ताल या प्रदर्शन नहीं होने देंगे। ये राजनीति चमकाना ही तो है। इसमें नुकसान सिर्फ कर्मचारियों का होता है। कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांगें उठाने की बजाए अपने चहेतों को सेटल करने में व्यस्त रहते है। बाकि मेरी बात रही तो मैं आपको बता दूँ की आज तक मैंने सरकार से कोई निजी लाभ नहीं लिया है न कभी अपने लिए कोई गुहार लगाई है। मैंने शिमला शहर में आज तक कभी नौकरी नहीं की, न कभी मेरी पत्नी ने की। हमें जहां भी पोस्टिंग मिली हमने वहां जाकर पूरी निष्ठा से अपना काम किया। कई नेता है जिनके चहेते स्कूलों में नौकरी करने के बजाए डायरेक्टरेट में बैठे है जो बिलकुल गलत है। उनका वेतन स्कूलों से निकलता है मगर वो बैठते डायरेक्टरेट में है। इस तरह की सोच हमने कभी नहीं रखी। हमने अपने दम पर नौकरी की है, हम सिद्धांतों के पक्के लोग है। किसी राजनीतिक दल में मेरे शामिल होने का सवाल ही नहीं है। मैं कर्मचारी नेता हूँ, हमेशा रहूँगा। किसी पोलिटिकल पार्टी से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है न कभी होगा। मैं अपना पूरा जीवन शिक्षक और शिक्षार्थी हित के लिए समर्पित कर चूका हूँ।
हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम में कार्यरत पीसमील कर्मचारी 26 अगस्त तक हड़ताल पर है। इस दौरान सभी पीसमील कर्मचारी सुबह नौ से शाम पांच बजे तक हड़ताल कर रहे है। ना एचआरटीसी की वर्कशॉप में कोई काम हो रहा है, ना बसों की सर्विस और ना ही कोई छोटे-बड़े काम कर्मचारियों द्वारा किये जा रहे है। इन कर्मचारियों के अनुसार आज तक निगम व सरकार से कर्मचारियों की मांगों पर महज आश्वासन ही मिले हैं। ऐसे में 26 अगस्त तक लगातार उनका टूल डाउन आंदोलन जारी रहेगा। इनका कहना है की सरकार वादों से पेट नहीं भरता, रहम करो। प्रदेश के 28 डिपुओं में तैनात 900 से अधिक पीस मिल कर्मचारी वो कर्मचारी है जिनकी मांगें पिछले कई सालों से अनसुनी की जा रही है, जिनकी दैनिक आय दिहाड़ी मज़दूरों से भी कम है और जिनकी मांगो को पिछले कई सालों से दरकिनार किया जा रहा है। एचआरटीसी को हिमाचल प्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है। आज हिमाचल के लगभग हर कोने तक एचआरटीसी की बसें पहुँचती है। हिमाचल के दूर दराज़ क्षेत्रों तक पहुँचने वाली इन बसों को सड़क तक पहुँचाने में पीस मिल कर्मचारियों का बड़ा योगदान रहता है। ये पीसमील वर्कर एचआरटीसी में मैकेनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रीशियन, टायर मैन, कुशन मेकर्स, बसों की सीटें बनाने वाले, वेल्डर एवं पेंटर के रूप में कार्य करते हैं। हिमाचल प्रदेश में साल 2008 से पीसमील वर्करों की भर्ती की जा रही है, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। उस वक्त इन कर्मचारियों के लिए 8 साल के बाद अनुबंध पर लाने की पॉलिसी बनाई गई थी। यानी 8 सालों तक सेवाएं देने के बाद इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाया जाता था और अनुबंध काल पूरा होने के बाद उन्हें बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति दी जाती थी। तदोपरांत पिछली सरकार में परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार आईटीआई डिप्लोमा धारकों को 5 साल बाद और गैर डिप्लोमा धारकों को 6 वर्षों के बाद अनुबंध पर लेने की नीति बनाई गई। कायदे से होना भी ऐसा ही चाहिए लेकिन समस्या यह है कि अब तक जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में ये अवधि पूरी कर चुके लोगों को अब तक कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति नहीं दी है। पीस मिल कर्मचारियों की दुर्दशा और सरकार मौन : संजीव पीस मिल कर्मचारी की आवाज़ लगातार हुकमरानों तक पहुंचाने वाले संगठन पीस मिल कर्मचारी संघ द्वारा सरकार से इन कर्मचारियों को अविलंब अनुबंध में शामिल करने की मांग लगातार उठाई जा रही है। एचआरटीसी पीस मिल कर्मचारी संघ धर्मशाला डिवीजन प्रधान संजीव कुमार ने बताया कि एचआरटीसी के 28 डिपुओं में कार्यरत पीस मिल कर्मचारियों की दुर्दशा पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा। इन डिपुओं में एक हजार के करीब पीस मिल कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे है। संघ का कहना है कि सरकार द्वारा इन कर्मचारियों को प्रति कार्य के आधार पर वेतन दिया जाता है जो नाममात्र वेतन है और उस आय से कर्मचारियों के लिए परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसके कारण कर्मचारियों को परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है। साथ ही सरकार पूर्व में बनाई गई नीति का भी उल्लंघन कर रही है। संजीव शर्मा के अनुसार ये कर्मचारी अपने हक़ के लिए कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटा चुके है। कुल 397 पीस मिल कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ कोर्ट में केस किया। बावजूद इसके सरकार ने इन कर्मचारियों के लिए अब तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई। खुद को शोषित महसूस कर रहे हैं पीस मील कर्मचारी : अश्वनी पीस मील कर्मचारी यूनियन हमीरपुर डिवीज़न के प्रधान अश्वनी कुमार ने कहा कि कई कर्मचारी तो 8 से 10 साल से कार्य कर रहे हैं, लेकिन इनको अभी तक अनुबंध पर नहीं लाया गया है, जिस वजह से यह लोग खुद को शोषित महसूस कर रहे हैं। लंबे समय से कर्मचारी यूनियन के माध्यम से अपनी मांगों को उठा रहे हैं, लेकिन उनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने जल्द से जल्द एचआरटीसी प्रबंधन और प्रदेश सरकार से पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग उठाई है। वर्तमान समय में हालात ऐसे हैं कि कर्मचारियों को छह से आठ हजार रुपये वेतन मिल रहा है। इससे उनका गुजारा मुश्किल है। प्रदेश में विभिन्न एचआरटीसी डिपो में 900 से अधिक पीस मील कर्मचारी काम कर रहे हैं, ऐसे में इन कर्मचारियों की भी इच्छा है कि इनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ें और वह भी अपने परिवार का पोषण अच्छे से कर सकें। 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके कई कर्मचारी : विनोद पीस मील कर्मचारी मंच चंबा के पदाधिकारी विनोद कुमार ने कहा कि जिला चंबा में कुल 27 पीस मिल कर्मचारी हैं। ये कर्मचारी आईटीआई पासआउट के लिए पांच वर्ष और बिना आईटीआई के कर्मचारियों को छह वर्ष में अनुबंध में लाकर नियमित करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले 410 पीस मील कर्मचारियों को नियमित किया गया है लेकिन, अकारण वर्ष 2017 से इस पॉलिसी को लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये पॉलिसी लागू न होने से सात से आठ वर्ष पूरे कर चुके पांच सौ से अधिक पीस मील कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। वर्तमान समय में पॉलिसी लागू न हो पाने से दस प्रतिशत पीस मील कर्मचारी तो 50 वर्ष की आयु भी पूरी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि वे सरकार से काफी लम्बे समय से अपनी मांगों को पूरा करने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं कर रही है। जल्द नियुक्ति, वर्ण होगा उग्र आंदोलन : अभिजीत पीस मिल कर्मचारी मंच परवाणू के प्रधान अभिजीत ने बताया कि टूल डाउन हड़ताल का उन्हें खेद है। उन्होंने कहा कि हड़ताल से जहां हिमाचल के लोगों को कठिनाई होगी, वहीं एचआरटीसी बसों को भी नुकसान होगा। 2017 से इस लड़ाई को लड़ा जा रहा है। कर्मचारियों ने मांग की है 5 से 6 साल पुरे कर चुके कर्मचारियों को जल्द से जल्द नियुक्ति दी जाए वरना ये आंदोलन और अधिक उग्र होगा। हड़ताल और आंदोलन ही एकमात्र रास्ता पीसमील कर्मचारी मंच रामपुर ने भी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल शुरू कर दी है। मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि तीन अगस्त को हिमाचल प्रदेश परिवहन के मुख्य कार्यालय में पीस मील कर्मचारियों द्वारा पालिसी बहाली के विषय में प्रबंधक निदेशक को अपना मांग पत्र सौंपा था और वहां से उन्हें 15 अगस्त तक का आश्वासन मिला था, लेकिन इस पर कोई अमल नहीं किया गया। अब हड़ताल और आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है।