हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को जिसका इंतज़ार था, वो घड़ी अब आ गई है। सरकार ने कर्मचारियों के मसले सुलझाने के लिए 25 सितंबर को सुबह 11 बजे संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक बुलाई है। इससे पहले वीरभद्र सिंह सरकार ने वर्ष 2015 में जेसीसी आयोजित की थी। जबकि सत्ता संभालने के बाद जयराम सरकार भी पहली जेसीसी आयोजित करेगी। इस बैठक के लिए हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों को सरकार ने पहले ही अधिकृत कर रखा है, जो कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करेंगे। वहीं बैठक में सभी विभागों के सचिव और विभागाध्यक्षों को मौजूद रहने के लिए कहा गया है। इस बैठक से कर्मचारी वर्ग को खासी उम्मीद है और अब क्यों कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अधिक वक्त नहीं बचा है, ऐसे में अपेक्षित है कि सरकार कई लंबित मसलों पर सकारात्मक फैसले ले। सत्ता प्राप्त करने में प्रदेश का कर्मचारी वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और ऐसे में जाहिर सी बात है कि सरकार पर कर्मचारी वर्ग की अपेक्षाओं का बोझ है। वहीँ सरकार द्वारा अधिकृत हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से भी कर्मचारी वर्ग को उम्मीदें रहेगी। यानी दबाव दोतरफा होगा। उधर सरकार के नज़रिए से देखा जाए तो सरकार की भी अपनी मजबूरी है। कर्मचारी उम्मीदों पर खरा न उतरे तो सत्ता खोने का डर बढ़ जाता है, और यदि कर्मचरियों को नई राहतें-सौगातें दे तो आर्थिक स्थिति ख़राब होती है। पहले से कर्ज़े में डूबी हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए ये बेहद मुश्किल समय है। राज्य में विकास कार्यों के नाम पर लगातार ऋण लिया जा रहा है। कोरोना संकट के बीच राज्य की माली हालत पतली है। अब जयराम सरकार कर्मचारियों को नए लाभ कहाँ से देगी, ये बड़ा सवाल है। इन कर्मचारी मांगो पर रहेगी रहेगी नज़रें - कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान देने की मांग - अनुबंध कार्यकाल दो साल करने की मांग - अनुबंध कार्यकाल को वरिष्ठता में शामिल करने की मांग - कर्मचारियों को 4-9-14 साल की सेवा अवधि में टाइम स्केल देना - कनिष्ठ ऑफिस सहायकों के लिए भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में संशोधन - महंगाई भत्ते की पांच फीसदी किस्त जारी करने की मांग - नई पेंशन स्कीम के तहत केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना के अनुसार निधन या स्थायी अपंगता पर पूरी पेंशन देने की मांग - केंद्र सरकार की तर्ज पर महिला कर्मियों को बच्चे की देखभाल के लिए दो साल का अवकाश देने का मसला - कर्मचारियों के अन्य मसले जैसे की प्रतिपूरक भत्ता, पूंजी भत्ता और मकान किराया भत्ता बढ़ाने की मांग - एनजीओ फेडरेशन के एक प्रतिनिधि को हाउस अलॉटमेंट कमेटी में शामिल करने की मांग - तीसरी और चतुर्थ श्रेणी के सभी खाली पदों को जल्द भरने की मांग - आउटसोर्स कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग - पुलिस कॉन्स्टेबल्स का अनुबंध काल घटाकर 3 वर्ष करने की मांग - दैनिक वेतन भोगियों को 5 की बजाए 4 साल में नियमित करने की मांग - आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा वर्करों का वेतन बढ़ाने की मांग - करुणामूलक नौकरियां बहाल करने की मांग - नव नियुक्त कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 18000 करने की मांग - छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू करवाना
करुणामूलक संघ ने आज यानी वीरवार को अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर से मिल कर उन्हें मांग पत्र व ज्ञापन पत्र सौंपा। हिमाचल करूणामुलक संघ के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार की अध्यक्षता में करुणामूलक आश्रितों का प्रतिनिधिमंडल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर से मिलने सचिवालय पंहुचा था। उन्होंने अश्वनी ठाकुर से जेसीसी की बैठक में करुणामूलक नौकरियों को बहाल करने की मांग की। साथ ही उन्होंने समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केस जोकि 7 मार्च 2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं, उन्हें वन टाइम सेटलमेंट के तेहत सभी को एक साथ नियुक्तियाँ दी जाने की मांग की है। बता दें कि करुणामूलक आधार पर नौकरी देने के मामलों पर अभी सरकार कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाई है। जबकि सरकार के पास विभिन्न विभागों में करुणामूलक के लंबित करीब 4500 मामले पहुंचे हैं और प्रभावित परिवार करीब 15 साल से नौकरी का इंतजार कर रहे हैं। कई विभागों में कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु होने के बाद आश्रित परिवार की महिला ने बच्चे छोटे होने के कारण नौकरी नहीं ली थी।
हिमाचल प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ ने संघर्ष के लिए रणनीति बना ली है। बेरोजगार अध्यापक संघ सिर्फ सरकार से ही नहीं बल्कि विपक्ष से भी रुष्ट है। संघ के अनुसार एसएमसी शिक्षकों का पक्ष लेना सरकार को महंगा पड़ सकता है। बेरोजगार अध्यापक संघ का आरोप है की कांग्रेस और भाजपा ने 2001 से 2018 तक 15 हजार शिक्षक बैकडोर से भर्ती किए, जिससे लाखों बेरोजगारों का तथा लाखों विद्यार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया है। संघ का कहना है कि बैकडोर भर्ती से शिक्षा की गुणवत्ता भी गिरती है तथा संविधान की अवमानना भी होती है। बेरोजगार अध्यापक संघ के अनुसार सरकार का यह कहना सरासर गलत है कि 2555 एसएमसी शिक्षक केवल दुर्गम क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि 792 एसएमसी स्कूल लेक्चरर में से 582 गैर कबायली क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। यही नहीं एसएमसी शिक्षक हर जिला में तैनात हैं। सरकार जनता को स्पष्ट करे कि सुप्रीम कोर्ट बड़ा है या सरकार। इनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 17-7-2012 को बनाई गई एसएमसी पॉलिसी के तहत की गई नियुक्तियों को जिस उद्देश्य पूर्ति के लिए की गयी थी उसे सही माना है। यदि उपरोक्त एसएमसी पॉलिसी ठीक है तो उसमें लगाई गई तमाम शर्तों का अनुसरण करना भी अनिवार्य है। इस एसएमसी पॉलिसी की शर्त नंबर 9 और 10 यह कहती है कि हर साल नया सिलेक्शन प्रोसेस होगा और पहले से तैनात एसएमसी शिक्षक की सेवाओं को किसी भी सूरत में आगामी शैक्षणिक स्तर के लिए सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता तथा जैसे ही नियमित शिक्षक आएगा, उसकी सेवाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। 2013 से लेकर आज तक सरकार ने हर साल सिलेक्शन नहीं किया बल्कि हर साल एक-एक साल के लिए 2555 एसएमसी शिक्षकों की सेवा में लगातार विस्तार किया है। इसलिए अब बेरोजगार संघ ने संघर्ष का रास्ता अपनाया है। इनकी मांग है की एसएमसी शिक्षकों को अब सेवा विस्तार न दिया जाए प्रशिक्षित बेरोज़गार अध्यापको को मौका दिया जाए। ब्लॉक स्तर पर हस्ताक्षर अभियान शुरू प्रदेश बेरोजगार अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल सिंह धीमान, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय रतन, मुख्य संगठन सचिव पुरुषोत्तम दत्त, वित्त सचिव संजीव कुमार, जिला अध्यक्ष ऊना रजनी बाला, जिलाध्यक्ष बिलासपुर किशोरी लाल, प्रेस सचिव राज पाल, ललित कुमार, विनोद कुमार, युवराज ने संयुक्त बयान में कहा है कि यदि एसएमसी शिक्षकों की पैरवी होती रही तो कांग्रेस और भाजपा को सदा के लिए सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ सकता है। इसके लिए बेरोजगार संघ ने पांच सितंबर से ब्लॉक स्तर पर हस्ताक्षर अभियान भी शुरू कर दिया है। इस अभियान के अंतर्गत प्रदेश के एक लाख बेरोजगार शपथ ले रहे है कि यदि एसएमसी शिक्षकों को सरकार का संरक्षण मिलता रहा तो 2022 में कांग्रेस और भाजपा का समर्थन नहीं किया जाएगा।
मांगे पूरी न होने पर नाराज़ हुए परिवहन निगम के कर्मचारी अब आंदोलन के लिए तैयार हैं। हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति ने इसका ऐलान कर दिया है। हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम कर्मचारियों ने मांगों को लेकर एक बार फिर निगम प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। समिति ने निगम प्रबंधन को चेतावनी देते हुए कहा कि वह कर्मचारियों के धैर्य की परीक्षा न लें। कर्मचारियों की मांगों को लेकर निगम प्रबंधन का रवैया आंदोलन के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में 9 सितंबर से सभी यूनिट में कर्मचारी गेट मीटिंग करेंगे तो वहीं 14 सितंबर को मुख्यालय के घेराव की रणनीति बनाई गई है। बीते दिनों हुई हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति की बैठक में हिमाचल परिवहन के कुल आठ संगठन शामिल थे और इस बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष प्यार सिंह ने की। उनके आलावा उपाध्यक्ष मान सिंह, सचिव खेमेंद्र गुप्ता, प्रवक्ता संजय गढ़वाल, कोषाध्यक्ष जगदीश चंद और हरीश कुमार इस बैठक में मुख्य तौर पर मौजूद रहे। बता दें की ये बैठक निगम कर्मचारियों के हित के लिए और सभी मसले एक मंच पर उजागर करने के लिए बुलाई जाती है। बैठक में कर्मचारी प्रतिनिधियों द्वारा चिंता व्यक्त करते हुए रोष प्रकट किया गया कि निगम प्रबंधन द्वारा संयुक्त समन्वय समिति के साथ पूर्व में किए गए समझौतों पर अमल नहीं किया गया है। कर्मचारियों के लगभग 500 करोड़ के रुपए के लंबित वित्तीय भुगतान देय है, जिससे कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। इनमें जनवरी 2016 से 13 प्रतिशत आई आर, डीए जनवरी 2019 से चार फीसदी, पांच जुलाई 2016 से व छह जुलाई 2021 से कुल डीए 15 प्रतिशत, 32 महीनों का नाईट ओवर टाइम, पेंशन, ग्रेच्युटी, कम्यूटेशन, लीव इनकैशमेंट, जीपीएफ, मेडिकल रिंबर्समेंट सहित अन्य एरियर शामिल है। हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति के अनुसार उन्हें लगता है कि निगम प्रबंधन कर्मचारियों को शांति पूर्वक अपने कार्य का निष्पादन नहीं करने देना चाहता। 23 व 24 जुलाई को निजी बस ऑपरेटरों के साथ विवाद के चलते कर्मचारियों को हड़ताल जैसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश किया गया। उसके बाद जब उस मुद्दे पर परिवहन मंत्री द्वारा 26 जुलाई को संसारपुर टैरेस में समन्वय समिति के पदाधिकारियों के साथ बैठक की गई तो उसमें कर्मचारियों की अनेक मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया गया। उस बैठक में प्रबंध निदेशक एचआरटीसी व अन्य कुछ अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक में इस विषय पर भी चर्चा की गई कि हड़ताल में शामिल किसी भी कर्मचारी के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जो कि नेगोशिएशन का एक मूल सिद्धांत भी है। पर इसके बावजूद भी एचआरटीसी के प्रबंध निदेशक की ओर से एक महीना बीत जाने के बाद क्षेत्रीय प्रबंधकों को आदेश दिए गए कि जो कर्मचारी हड़ताल में शामिल थे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए और अब क्षेत्रीय प्रबंधकों द्वारा कर्मचारियों कारण बताओ नोटिस दिए जा रहे हैं। यह बैठक में हुई नेगोशिएशन की अवहेलना है। जब परिवहन मंत्री ने माना था और कर्मचारी प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया गया था कि सभी मांगे जल्द ही पूरी होगी और कोई भी कार्यवाही किसी भी कर्मचारी के खिलाफ नहीं की जाएगी, तो फिर अब कार्रवाई क्यों हो रही है। यह सीधे तौर पर परिवहन मंत्री के आदेशों का अपमान है जिससे प्रतीत होता है कि एचआरटीसी प्रबंधन द्वारा बेवजह सरकार की छवि धूमिल की जा रही है।
'यदि सरकार ने शीघ्र हमारी समस्याओं का हल नहीं किया, तो आने वाले चुनाव हम सब सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे।' ये ऐलान प्रदेश डिपो संचालक समिति ने किया है। प्रदेश के सभी डिपो संचालक अपनी मांगों को लेकर सरकार से काफी लम्बे समय से गुहार लगा रहे है, परन्तु अब तक इनकी स्थिति में कुछ सुधार नहीं दिखा। डिपो संचालक समिति के प्रदेश अध्यक्ष अशोक कवि ने कहा है कि गत चार वर्षों से प्रदेश सरकार हमारी जायज मांगों को अनदेखा कर रही है। उन्होंने कहा कि डिपो धारकों को सभी खर्चे स्वयं उठाने के बाद मात्र तीन प्रतिशत कमीशन मिलती है, जबकि राशन से संबंधित सभी व्यवस्थाओं के खर्चे उठाना सहकारी सभाओं का काम है, लेकिन सहकारी सभाएं ऐसा न करके अपने कर्मचारियों का शोषण कर रही है। इसके अलावा दुकानों का किराया और बिजली के बिल भी उन्हें ही अदा करने पड़ रहे हैं। विक्रेताओं के लिए जो कमीशन तय की गई है, वे काफी कम है। एपीएल राशन पर मात्र तीन प्रतिशत कमीशन दिया जा रहा है। इसके अलावा सहकारी सभाओं के विक्रेता के साथ-साथ सचिव का कार्य भी देख रहे हैं। उन्हें सहकारी सभाएं सेवा नियमों के तहत वेतन न देकर मनमाने ढंग से वेतन देकर शोषण किया जा रहा है। प्रदेश डिपो संचालक समिति ने सरकार से मांग की है कि जो सहकारी सभाएं अपने कर्मचारियों को वेतन देने में सक्षम हैं, उन्हें सेवा नियमों के तहत वेतन देने के कड़े आदेश जारी किए जाए। आर्थिक रूप से कमजोर सभाओं के विक्रेताओं को निजी डिपो देकर विधानसभा एस्टीमेट कमेटी की सिफारिश को लागू करके केरल और तमिलनाडु राज्यों की तर्ज पर 18 हजार रुपये मासिक वेतन देने का प्रावधान किया जाए। इनका कहना है कि कोरोना महामारी में डिपो संचालकों ने लोगों की सेवा करते करते अपने प्राण तक त्याग दिए, लेकिन सरकार की ओर से उनके आश्रितों को एक पैसे की मदद तक नहीं की गई। डिपो संचालकों द्वारा किराया बढ़ाने के बजाय राशन लाने के लिए ठेकेदारी प्रथा शुरू करने का भी जोरदार विरोध किया गया है।
पंजाब सरकार ने हाल ही में नेशनल पेंशन स्कीम के अधीन आने वाले कर्मचारियों को मौत होने की सूरत में पारिवारिक पेंशन के अधीन कवर करने का फैसला लिया है, जिससे पंजाब के कर्मचारियों ने राहत की सांस ली है। अब क्यों कि हिमाचल प्रदेश भी अपने कर्मचारियों को आर्थिक लाभ देने के लिए पंजाब को फॉलो करता है तो यहां के कर्मचारियों की धुकधुकी भी बढ़ गई है। निगाहें सरकार पर टिकी है और उम्मीद है कि पुरानी पेंशन न सही पर कम से कम 2009 की अधिसूचना ही सरकार जारी कर देगी। इस पर दस्तक दे रहे उपचुनाव उम्मीदों को और प्रबल कर रहे है। इसमें कोई संशय नहीं कि अधिकांश कर्मचारी नई पेंशन स्कीम नहीं चाहते। नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। हिमाचल प्रदेश में आए दिन कर्मचारी प्रदेश सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते है, इसके साथ ही केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करने हेतु भी आवाज़ उठाई जाती है ,जो अब और तेज़ हो गई है। हिमाचल के कर्मचारी को उम्मीद है की पंजाब की तर्ज पर हिमाचल में भी 2009 की अधिसूचना लागू होगी। बता दें की अब तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, असम, हरियाणा और तेलंगाना वो राज्य थे जहां 2009 की अधिसूचना का लाभ कर्मचारियों को मिल रहा था, अब पंजाब भी इन्हीं राज्यों में से एक होगा। बीते दिनों बढ़ते कोरोना मामले और मौत के आंकड़े ने कर्मचारी वर्ग को भी हिला कर रख दिया था। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कर्मचारियों के साथ-साथ प्रदेश के अन्य कर्मचारी भी कठिन समय में निरंतर अपनी सेवाएं देते रहे, और इनमें से कई कोरोना की चपेट में भी आ गए। पिछले कुछ समय में हिमाचल के कई सरकारी कर्मचारी कोरोना के चलते अपनी जान भी गवा चुके है। ऐसे में कर्मचारी वर्ग जोरशोर से 2009 की अधिसूचना की मांग कर रहा है। हाल ही में मंडी में हुई अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की जिला इकाई की बैठक में भी पुरानी पेंशन बहाली और 2009 की अधिसूचना को लागू करने का मुद्दा खूब गूंजा। कर्मचारी सरकार की रीड की हड्डी, सरकार भी ख्याल रखे : प्रदीप नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर और महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि प्रदेश में पिछले कुछ समय में हिमाचल प्रदेश के कुल 21 से कर्मचारी की मृत्यु कोरोना के चलते हुई है। ये सभी कर्मचारी नई पेंशन स्कीम में आते थे इन परिवारों को पारिवारिक पेंशन देना अति आवश्यक है क्योंकि इन परिवारों ने अपने घर के मुखिया को खोया है। सभी दिवंगत कर्मचारी सरकारी सेवा में कार्यरत थे l उन्होंने कहा कि कोरोना का कहर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और यह पूरे समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुका है। इस मुश्किल दौर में सरकार की रीड की हड्डी कहे जाने वाले कर्मचारी सरकार के साथ हर सहयोग के लिए तैयार है, लेकिन सरकार द्वारा कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। कर्मचारियों की मृत्यु के बाद उनके परिवारों जीवन व्यापन बहुत मुश्किल हो जाता है। 2009 की अधिसूचना केंद्र सरकार के साथ-साथ 9 अन्य राज्यों में भी लागू हो सकती है तो हिमाचल में क्यों नहीं। पिछले दिनों पंजाब सरकार ने भी इस संबंध में निर्णय लिया है। प्रदेश सरकार को भी नई पेंशन में आने वाले कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2009 की अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन का प्रावधान है, संबंधित अधिसूचना को प्रदेश में जल्द से जल्द लागू किया जाए जल्द फैसला ले लेना चाहिए। प्रदेश के कर्मचारी अपनी सेवाएं देते हुए कम से कम यह तो महसूस कर सके कि यदि उन्हें कुछ होता है तो उनका परिवार कुछ हद तक सुरक्षित हो सकता है। अब याचना नहीं होगी, उपचुनाव से पहले अधिसूचना ज़ारी हो : राजिंदर नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन जिला कांगड़ा के प्रधान राजिंदर मन्हास ने कहा की सरकार की लगातार अनदेखी से हिमाचल के एक लाख एनपीएस कर्मचारी काफी खफा हैं। मुख्यमंत्री लगातार चार साल से 2009 की अधिसूचना को लेकर एक ही डायलॉग एनपीएस कर्मचारियों से बोल रहे हैं कि मामला सरकार के ध्यान में है। जल्द निर्णय लिया जाएगा। पर चार साल से 2009 की अधिसूचना हिमाचल में लागू नहीं हो पाई है, जिससे कर्मचारियों में रोष बढ़ रहा है। जिला प्रधान ने कहा मुख्यमंत्री कहते हैं कि एनपीएस एक राज्य को छोड़ पूरे भारत में सम्मान रूप से लागू है, पर ये आधा सत्य है। 2009 की अधिसूचना जिसके तहत सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत पर पेंशन का परिवार को प्रावधान है, इस अधिसूचना को पंजाब सहित अब 9 राज्य लागू कर चुके हैं तो ऐसे में प्रदेश सरकार को इसे लागू करने में क्यों ऐतराज है। पिछले माह जिला कांगड़ा के सात विधायकों से एसोसिएशन इस अधिसूचना को लागू करवाने को लेकर मिली, पर दुखद है कि यह सात विधायक भी विधानसभा में इस मांग पर चुप्पी साध बैठे रहे। अब कर्मचारी बहुत याचना कर चुके हैं और अब याचना नहीं होगी। अगर उपचुनाव से पहले 2009 की अधिसूचना जारी नहीं हुई तो उपचुनावों के नतीजे सरकार के सारे दावों की हवा निकाल सकते हैं। क्या है 2009 की अधिसूचना केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना में यह प्रावधान है कि अगर नौकरी के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वो कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है तो उसके परिवार को पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्रदान किए जाते हैं। यानि उस कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है। चूँकि ये अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू नहीं की गई है तो ऐसे में यदि हिमाचल के किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है या किसी दुर्घटना में वे दिव्यांग हो जाते है तो उनके परिवार को कोई भी पेंशन नहीं दी जाती। कर्मचारी के जाने के बाद उसके परिवार के आर्थिक मदद के लिए कोई नीति नहीं बनाई गयी है। यही वजह है कि हिमाचल के कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करते। कई ऐसे राज्य है जहां केंद्र सरकार की ये अधिसूचना लागू की गई है मगर हिमाचल में इस मांग को कब अमलीजामा पहनाया जाता है, ये बड़ा सवाल है। घोषणापत्र में कमेटी गठन का था वादा 2017 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में घोषणा पत्र में वादा किया था कि सरकारी विभागों में कर्मचारियों की पेंशन हेतु केंद्र सरकार से परामर्श के लिए सीएम की अगुवाई में पेंशन योजना समिति का गठन किया जाएगा। सरकार को चार साल होने को आये और अगले विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है लेकिन पर ये वादा अधूरा है। नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ का कहना है कि इसके उपरांत 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने धर्मशाला में कर्मचारियों के बीच भी घोषणा की थी कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए जल्द कमेटी का गठन किया जाएगा तथा केंद्र सरकार द्वारा 2009 में मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन संबंधित प्रावधान संबंधित अधिसूचना को भी हिमाचल प्रदेश में जल्द लागू किया जाएगा, पर हुआ कुछ नहीं l सरकार शायद वादा भूल चुकी हो मगर कर्मचारियों को सब याद है।
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू करवाना कर्मचारी वर्ग की एक प्रमुख मांग है।दरअसल हिमाचल में पंजाब की तर्ज पर वेतनमान लागू किया जाता रहा है। पंजाब ने नया वेतनमान तो जारी कर दिया है, लेकिन कर्मचारियों के विरोध के बीच इसे लागू करना आसान नहीं है। वहां की सरकार ने अधिसूचना में संशोधन करने के लिए कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी अपनी सिफारिशें मंत्रिमंडल को सौंपेगी। हिमाचल में भी इस वेतनमान में विसंगतियों को लेकर विरोध जारी है। सचिवालय कर्मचारी, चिकित्सक, शिक्षक और कई अन्य कर्मचारी इसका विरोध कर रहे है। कर्मचारियों के अनुसार छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को ज्यों का त्यों लागू नहीं किया जाना चाहिए। क्लास थ्री, फोर के अलावा क्लास टू के कर्मचारियों को भी ये डर सता रहा है कि अगर मौजूदा प्रावधान लागू हुए तो हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों से रिकवरी हो सकती है। इससे कई वर्गों को लाभ होने के बजाय आर्थिक नुकसान हो सकता है। अंतरिम राहत (आइआर) के तौर पर सरकार जो लाभ दे चुकी है, उसकी कुछ हद तक रिकवरी हो सकती है। आइआर वेतनमान का ही हिस्सा माना जाता है। इसे सरकार समय-समय पर जारी करती रही है, ताकि एक साथ नए वेतनमान का आर्थिक बोझ न पड़े। इस विरोध के कारण ही छठा वेतनमान देने में देरी हो रही है।
चंबा जिले के बैच वाइज भाषा अध्यापक काउंसलिंग के अभ्यर्थियों ने नतीजों में की जा रही देरी को लेकर नाराजगी जाहिर की है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि एक तरफ सरकार शिक्षकों की विभिन्न कैटेगरी के तहत खाली पदों को भर रही है, दूसरी तरफ चंबा जिला में भाषा अध्यापकों की बैच वाइज काउंसलिंग का रिजल्ट नहीं निकाला गया है। चंबा जिला के इस मामले पर अभ्यर्थियों ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया है। अगर सरकार से न्याय नहीं मिला, तो शिक्षक कोर्ट जाएंगे। बता दें कि चंबा जिला के भाषा शिक्षकों का रिजल्ट न निकलने पर अब शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठने लगे हैं। आखिर चंबा में ही बैचवाइज भर्ती के तहत रिजल्ट क्यों नहीं निकाला गया है, इस पर शिक्षा विभाग ने लंबे समय से चुप्पी साधी हुई है। बेरोजगारी झेल रहे अभ्यर्थी कई मर्तबा शिक्षा विभाग से लेकर शिक्षा मंत्री तक इस मामले पर मिले, लेकिन कोई भी इन अभ्यर्थियों को आश्वस्त नहीं कर पा रहा है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि करीब आठ माह पहले साक्षात्कार लिए गए थे, बावजूद इसके अभी तक परिणाम नहीं निकाला गया है। इससे अभ्यर्थियों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। अभ्यर्थियों ने कहा कि गत वर्ष 6 और 7 सितंबर को जिले में भाषा अध्यापकों की बैच वाइज काउंसलिंग प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक कार्यालय में हुई थी, परन्तु आठ माह बीत जाने के बावजूद अब तक परिणाम घोषित नहीं किया गया है। लिहाजा टेट पास शिक्षक अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। अभ्यर्थियों ने कहा कि इतना अधिक समय बीत जाने पर भी परिणाम घोषित न करना उनकी चिंताएं बढ़ा रहा है। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि कोरोना काल में भी विभिन्न श्रेणियों की बैच वाइज नियुक्तियां हो रही हैं, लेकिन न जाने भाषा अध्यापक श्रेणी से सरकार और विभाग भेदभाव क्यों कर रहे हैं? अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और प्रारंभिक शिक्षा उप निदेशक चंबा से मांग की है कि बिना किसी भेदभाव के साक्षात्कारों के नतीजे के इंतजार में बैठे प्रभावितों को जल्द राहत प्रदान की जाए। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि भाषा अध्यापक बैच वाइज भर्ती पर कोर्ट द्वारा बैच वाइज काउंसलिंग और रिजल्ट निकालने पर कोई भी रोक नहीं लगाई गई है, परन्तु फिर भी रिजल्ट नहीं निकाला गया है। इनका कहना है कि अगर नतीजे घोषित ही नहीं करने थे तो फिर कमीशन क्यों करवाया गया। गुस्साए भाषा अध्यापकों ने अब कोर्ट जाने की धमकी दे दी है। अभ्यर्थी दीप्ति कुमारी, सोनिया कुमारी, निधि कुमारी, सपना देवी, राधा देवी, आरती देवी, मोनिका देवी, छाया देवी, कुसुम लता ने कहा कि इतना अधिक समय बीत जाने के बावजूद नतीजे न निकालना उनकी चिंताएं बढ़ा रहा है। विभाग व सरकार द्वारा दस महीने से भाषा अध्यापकों का परिणाम न निकालने के कारण अभ्यर्थियों में रोष है।
लम्बे अर्से बाद हिमाचल कैबिनेट ने प्रदेश के कर्मचारी वर्ग के लिए एक बड़ा राहत भरा फैसला लिया गया है। हालहीं में हुई जयराम मंत्रिमंडल की बैठक में निर्णय लिया गया है कि प्रदेश के हजारों युवाओं के लिए शिक्षा विभाग में भर्ती होने वाली है। लंबे समय से प्रदेश के सरकारी कॉलेज व स्कूल में शिक्षकों के खाली चल रहे पद अब भरे जाने वाले है। विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में अलग-अलग विषयों के शिक्षकों की भर्तियां होंगी। मंत्रिमंडल ने शिक्षा विभाग में 4000 शिक्षकों की बंपर भर्ती करने का फैसला लिया है। इस फैसले पर बेरोज़गार कला अध्यापक संघ ने सरकार का आभार व्यक्त किया है। इन अध्यापकों को प्रशिक्षण लेने के बाद भी आज तक नियुक्ति ही नहीं मिल पाई थी। बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार सरकार ने आखिरकार उनकी सुन ही ली जिसके लिए वे उनके आभारी है। कैबिनेट की बैठक में शिक्षकों की कई कैटेगरी के पदों को सरकार ने चार साल बाद मंजूरी दी है। कैबिनेट में शिक्षकों के पदों को भरने के फैसले से हजारों युवाओं को भी राहत मिली है। बेरोजगार प्रशिक्षित शिक्षकों को बैचवाइज नंबर आने की उम्मीद जगी है। फिलहाल कैबिनेट ने बड़ा फैसला लेते हुए शिक्षा विभाग में विभिन्न श्रेणियों के शिक्षकों के चार हजार पदों को अनुबंध आधार पर भरने की मंजूरी दी है। इनमें 1360 पद उच्च शिक्षा और 2640 पद प्रारंभिक शिक्षा विभाग में भरे जाएंगे। आठ हजार शिक्षकों के पद रिक्त कैबिनेट के फैसले के अनुसार 810 जेबीटी, 820 कला शिक्षक, 870 पीईटी, 561 कालेज प्रवक्ता, 214 स्कूल न्यू प्रवक्ता, 250 जेओए (पुस्तकालय),16 कालेज आचार्य सहित तबला वादकों व योग शिक्षकों के भी पद भरे जैन। वहीं, यह निर्णय भी लिया गया कि शिक्षकों के विभिन्न पदों पर बैचवाइज भर्ती में तेजी लाई जाए। बता दें कि शिक्षा विभाग में इस समय आठ हजार शिक्षकों के पद खाली चल रहे हैं। इसमें प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी तक के स्कूलों की बात करें तो 7000 पद अभी भी विभिन्न कैटेगिरी के खाली चल रहे हैं। इसमें से 3500 पद तो विभाग भर देगा, वहीँ बाकी पदों को भी जल्द भरने का दावा किया जा रहा है।
हर बार की तरह इस बार भी राज्य सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संघ के चुनाव काफी दिलचस्ब रहे। कड़ी चुनौतियों और पूरा दमखम लगाने के बाद अब संघ की कार्यकारिणी तय हो गई है। राज्य सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संघ की कमान अब भूपिंदर सिंह बाबी के हाथों में चली गई है। भूपिंदर ने अध्यक्ष पद के दूसरे दावेदार और दो बार के अध्यक्ष रहे संजीव शर्मा को कुल 165 मत से मात दे दी । उपाध्यक्ष पद पर राजेंद्र सिंह मियां ने बड़ी जीत दर्ज की है। पूर्व महासचिव कमल कृष्ण शर्मा को भी हार का मुंह देखना पड़ा है। बता दें कि ये दोनों स्थापित कर्मचारी नेता रहे हैं परन्तु इस बार कर्मचारी लहर किसी दूसरी तरफ निकल गई। शिमला स्थित राज्य सचिवालय परिसर में संघ के विभिन्न पदों के लिए कर्मचारियों ने मतदान किया। रोचक बात ये रही कि इस बार 800 वोटर थे, जिनमें 740 ने मतदान किया। चुनाव में सचिवालय के अलावा, राजभवन, लोकायुक्त, लोक सेवा आयोग के कर्मचारी भी शामिल हुए। विभिन्न पदों के लिए कुल 15 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा और कई दिनों तक प्रचार किया। अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव पदों पर सीधी टक्कर रही। जबकि संयुक्त सचिव पद पर त्रिकोणीय, कोषाध्यक्ष पद पर बहुकोणीय मुकाबला हुआ। अध्यक्ष पद के लिए संजीव शर्मा, महासचिव पद पर केके शर्मा ने तीसरी बार चुनाव लड़ा। कमल शर्मा दो बार महासचिव का चुनाव जीते हैं। इससे पहले वह कोषाध्यक्ष, संयुक्त सचिव भी रहे हैं। पिछली मर्तबा दूसरे स्थान पर थे भूपेंद्र पिछले चुनाव में संजीव शर्मा ने 227 मत प्राप्त कर चार प्रतिद्वंदियों को परास्त किया था। तब चुनाव में भूपेंद्र सिंह बॉबी दूसरे नंबर पर रहे थे। संजीव शर्मा ने अपने भूपेंद्र सिंह बॉबी को 36 मतों से शिकस्त दी थी। भूपेंद्र सिंह को उस वक्त 191 वोट प्राप्त हुए थे। वहीं अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे अन्य दोनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। पर इस मर्तबा कर्मचारियों का भरोसा भूपेंद्र सिंह पर रहा और उन्होंने संजीव शर्मा को शिकस्त दी।
हिमाचल के फार्मासिस्ट भी अब प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके है। प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ ने सरकार से मांग की है कि संघ के तमाम सदस्यों को रात्रि सेवाएं देने के एवज में एनपीए व 13 महीनों का वेतन प्राथमिकता के आधार पर प्रदान किया जाए। संघ के राज्य प्रेस सचिव कृष्ण कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि संघ की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में ये फैसला लिया गया। कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से पारित किए गए प्रस्ताव में सरकार से यह भी मांग की है कि फार्मासिस्ट का पदनाम बदलकर फार्मेसी ऑफिसर तथा चीफ फार्मासिस्ट का नाम बदलकर चीफ फार्मेसी आफिसर किया जाए। संघ ने यह भी मांग की है कि सरकार नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा स्तरोन्नत स्वास्थ्य संस्थानों में फार्मासिस्टों और चीफ फार्मासिस्टों के पदों को प्राथमिकता के आधार पर सृजित करे। प्रदेश अस्पताल फार्मासिस्ट संघ का कहना है की हिमाचल के तमाम फार्मासिस्ट ने पुरे कोरोना काल में पूरी निष्ठा से अपनी सेवाएं प्रदान की है और अब भी कर रहे है। कोरोना काल में कई फार्मासिस्ट ने लम्बे समय तक बिना छुट्टी लिए अपने घरों से दूर रहकर भी अपनी सेवाएं दी है, मगर अक्सर उनकी अनदेखी ही की जाती है। सरकार बस आश्वासन थमा कर आगे बढ़ जाती है। अब उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनकी मांगें ज़रूर पूरी करेंगी।
हिमाचल प्रदेश में जल्द ही जेसीसी की बैठक होने वाली है जिसके लिए हिमाचल सरकार ने अश्वनी गुट वाले अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को आमंत्रित किया है। परन्तु कुछ कर्मचारी संगठन ऐसे है जो सरकार के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ इन्हीं संगठनों में से एक है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र चौहान का कहना है कि जेसीसी की बैठक में हिमाचल के शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं होता है और न ही शिक्षकों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। इनकी मांग है कि या तो इन्हें जेसीसी में शामिल किया जाए या फिर शिक्षकों के लिए भी कुछ ऐसा ही प्रावधान किया जाए जहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों के मसलों को हल किया जा सके। फर्स्ट वर्डिक्ट ने इसी तरह के कई मुद्दों पर उनसे बातचीत की। पेश है उनसे बातचीत के कुछ मुख्य अंश। सवाल : अपने संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी हमें दें और इस संघ से कितने कर्मचारी जुड़े है ये भी स्पष्ट करें ? जवाब : हमारा संगठन यानी हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ 1957 से लेकर आज तक लगातार शिक्षक एवं छात्र हित के लिए संघर्ष करता आ रहा है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जिसका मुझे तीसरी बार अध्यक्ष बनने का अवसर प्राप्त हुआ, इसके 82000 ऑनलाइन सदस्य हैं और 2019- 22 के लिए 42000 शिक्षकों ने सदस्यता ग्रहण की है। यह संगठन, लगातार शिक्षक एवं शिक्षार्थी हित में सरकार से मांग करता रहा है। सवाल : आपके संगठन की मुख्य मांग क्या है ? जवाब : हमारे संगठन की मुख्य मांगों में कई मुद्दे शामिल है क्योंकि हमारा संगठन, सभी वर्गों के शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करता है। संघ को हर वर्ग का ध्यान रखते हुए ही अपना मांग पत्र तैयार करना पड़ता है। हमारी प्रमुख मांगों में कर्मचारियों एवं शिक्षकों को छठे वेतन आयोग को शीघ्र लागू करने, 4-9-14 टाइम स्केल को पुनः बहाल करने तथा सभी वर्गों की पदोन्नति शीघ्र जारी करने के साथ-साथ सभी तरह की वेतन विसंगतियों को दूर करने एवं एनपीएस कर्मचारियों को 2009 की केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार अपंग या मृत्यु होने पर पुरानी पेंशन का लाभ देने जैसी बहुत सी मांगे हैं। इन मांगों को पूरा किया जाना अत्यंत आवश्यक है। सवाल : हिमाचल में जेसीसी की बैठक होनी है, मगर इस बैठक में शिक्षकों के मसलों पर चर्चा नहीं होती , इसपर आप क्या कहेंगे ? जवाब : जेसीसी की बैठक तो हिमाचल में होनी है पर न तो इस बैठक में हिमाचल के शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि शामिल होता है और न ही शिक्षकों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है की समाज के एक प्रबुद्ध वर्ग को सरकार से अपनी मांगों को मनवाने का कोई सीधा मंच नहीं मिल पाता है जैसा बाकि कर्मचारियों को जेसीसी बैठक के माध्यम से दिया जाता है। शिक्षक समुदाय और अभिभावकों के लिए भी सरकार को कोई प्लैटफॉर्म बनाना चाहिए। हमारी मांग है या तो हमें जेसीसी का हिस्सा बनाया जाए या हमारे लिए भी इस तरह का कोई प्रावधान किया जाए। सवाल : हाल ही में सरकार ने अश्वनी गुट के अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता दी है, क्या आप सरकार के इस फैसले से संतुष्ट है ? जवाब : जहां तक अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के गुटों या अश्वनी गुट की बात है, मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा की हिमाचल में अराजपत्रित कर्मचारी के अलावा और भी बहुत से कर्मचारी है जिनकी सरकार अनदेखी करती है। हिमाचल के 80 हज़ार शिक्षक भी सरकार की रिड की हड्डी है जो समाज के प्रति एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। वर्तमान में जो जेसीसी की बैठक होनी है और जिस तरह से जेसीसी के मुखिया बनाए गए है वो सही तरीका नहीं है। सरकार अपने चहेतों और समर्थकों को अध्यक्ष पद पर बैठा कर बाकि कर्मचारियों के साथ भद्दा मज़ाक कर रही है। सरकार द्वारा नियुक्त किया हुआ व्यक्ति कभी भी सरकार के निर्णयों पर सवाल खड़े नहीं करेगा। न जाने अब कर्मचारियों का क्या होगा। सरकार अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष को गोद में बिठा कर काम करना चाहती है। इससे सरकार का बखान तो बखूबी हो सकता है पर कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं होने वाला। कर्मचारियों के मुद्दे तभी सुलझेगे जब संगठन के चुनाव लोकतान्त्रिक तरीके से करवाएं जाएंगे। जो व्यक्ति कर्मचारियों के मुद्दे निष्पक्षता और ईमानदारी से उठाएगा और कर्मचारियों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा वो ही अध्यक्ष होना चाहिए, ना कि सरकार की जी हज़ूरी करने वाला कोई व्यक्ति। अगर कर्मचारी हितैषी कोई व्यक्ति अध्यक्ष बनता है तभी वो सरकार और कर्मचारियों के बीच समन्वय बिठा सकता है और तभी हिमाचल के कर्मचारियों का भला होगा। फिलवक्त जिस तरह से सरकार ने अध्यक्ष चुना है या मान्यता दी है वो एक लोकतान्त्रिक तरीका नहीं है बस अपने चहेतों को आगे करने की बात है, ताकि सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी न हो। सवाल : क्या सरकार आपकी सुनती है ? अब तक आपके संघर्ष को कितनी कामयाबी मिली ? जवाब : देखिये ये सरकार हमारी सुने या न सुने फर्क नहीं पड़ता, फर्क तो सरकार को पड़ता है, चुनाव के वक्त। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का काम है कर्मचारियों के मुद्दों को उजागर करना, मैं और मेरा संगठन लम्बे समय से ये काम करते आ रहे है। चाहे अध्यापकों के मुद्दे हो विद्यार्थियों के या अभिभावकों के, हर मुद्दा हमारी प्राथमिकता रहा है और हमेशा रहेगा भी। हिमाचल प्रदेश भी लोकतांत्रिक ढांचे का हिस्सा है तो सरकार हमारी सुनती है। या यूँ कहे सरकार को हमारी सुननी पड़ती है, ये सरकार की बाध्यता है। संवाद से बात बने तो बहुत अच्छा, परन्तु जहां बात करके हल नहीं निकलता वहां हम संघर्ष का रास्ता भी अपनाते है। हम शिक्षकों की मांगों को उठाते आए है और आगे भी इसी तरह से उठाते रहेंगे। हमारी आवाज़ को कोई दबा नहीं सकता और न ही हम चुप बैठ कर सहने वालो में से है ,चाहे सत्ता में कोई भी हो। सवाल : बीते दिनों सरकार और आपके बीच काफी तनातनी नज़र आई, कई नोटिस भी जारी हुए अब स्थिति कैसी है ? जवाब : जी बिलकुल बीते एक दो साल से विभाग और कुछ लोगों की वजह से हमारे संगठन और सरकार के बीच काफी ऊंच नीच हुई है। कुछ लोगों द्वारा मेरे संगठन को और मुझे नीचा दिखाने के लिए, मेरे संगठन के पदाधिकारियों और शिक्षकों को डराने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए। ये जो भी षड्यंत्र हमारे खिलाफ हुए है, मैं ये तो नहीं कहूंगा की इसमें सरकार का हाथ है मगर ये ज़रूर कहूंगा की जो भी हुआ सरकार को मालूम है, हमने खुद सब कुछ मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के ध्यान में लाया है। हम कुछ भी कहें हमें कारण बताओ नोटिस थमा दिए जाते है जो एक अच्छी परम्परा नहीं है। मैं पहले भी कह चूका हूँ की यदि सरकार को या विभाग को मुझसे इतनी ही आपत्ति है तो बार बार नोटिस थमाने के बजाए मुझे तुरंत ससपेंड कर दे। ये ओछे हथकंडों से मुझे डराना बंद करें, मैं ऐसी धमकियों से डरने वाला नहीं हूँ। ये बात सच है की कुछ लोगों द्वारा सरकार और विभाग के अधिकारियों को भ्रमित किया जा रहा है। मैं सरकार से कहना चाहूंगा कि कुछ लोगों के साथ आप दो तीन बार बैठक कर चुके है, उन्हें आप बार बार समय दे रहे है, तो हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जो की शिक्षकों का सबसे पुराना संगठन है उससे बात क्यों नहीं ? हमारी यही मांग है की हमारे साथ भी एक बैठक की जाए ताकि शिक्षकों के मुद्दों पर चर्चा हो सके। सवाल: क्या पंजाब के छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से आप संतुष्ट है ? जवाब : इस वेतन आयोग की सिफारिशों में संतुष्ट होने जैसा कुछ है ही नहीं। पंजाब में भी इसके खिलाफ खूब आंदोलन हो रहे है। इन प्रदर्शनों की वजह से पंजाब सरकार ये वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं कर पाई है। इस वेतन आयोग से कर्मचारी लाभान्वित नहीं होंगे बल्कि रिकवरी कर्मचारियों से हो सकती है। ये नया वेतनमान कर्मचारियों के अधिकारों का हनन है। यदि पंजाब की ओर से जारी सिफारिशों को ध्यान में रखा जाता है तो प्रदेश के शिक्षकों को नए वेतन आयोग से हर माह चार से पांच हजार का मासिक नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके पीछे कारण यह है कि 2011 में वेतनमान संशोधित होने के साथ-साथ पुर्न संशोधन हुआ था, जिसके चलते शिक्षक वर्ग को ग्रेड-पे संशोधित होने से अधिकतम पांच हजार रुपये का हर माह अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुआ था। 2011 में शिक्षक वर्ग के अलावा लिपिक और कई श्रेणियों को रिविजन के तहत अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुए थे। इस बार कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग में दो विकल्प दिए गए हैं। एक यदि आप बढे हुए ग्रेड पे से पहले का विकल्प लेते हैं तो वेतन मल्टीप्लायर 2.59 लगेगा। यानि आपका नया वेतन अभी के वेतन माइनस ग्रेड पे वेतन से 2.59 फीसदी ज्यादा होगा। और यदि 2011 के बढ़े हुए ग्रेड पे का विकल्प लेते हैं तो मल्टीप्लायर 2.25 लगेगा। इन विकल्पों से कर्मचारियों व शिक्षकों को जिनका 2011 में ग्रेड पे रिवाइज हुआ है, बहुत बड़ा झटका लगने वाला है। इसके साथ -साथ पंजाब के पे कमिशन में और भी बहुत सारी कटौती हैं जो पहले नहीं देखी गई थी। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की सरकार की ये मांग है कि सरकार प्रदेश के कर्मचारियों के हित में ही फैसला ले। हम ये वेतनमान हिमाचल में लागू नहीं होने देंगे, मैं हर कर्मचारी को ये आश्वासन देता हूँ। सवाल : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर ये धारणा बनी हुई है कि कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांग उठाने से ज्यादा अपनी राजनीति चमकाने में विश्वास रखते है, क्या आपके इरादे भी कुछ ऐसे ही है ? क्या आप आने वाले समय में किसी राजनीतिक दल में शामिल होंगे ? जवाब : हिमाचल के कर्मचारी नेताओं पर ये बात बिलकुल सटीक बैठती है। हालाँकि ऐसा होना नहीं चाहिए पर सत्य को स्वीकारने में कोई बुराई नहीं है। एक एक विभाग में न जाने कितने संगठन है जिनमें आपस में कोई तालमेल नहीं। एक संगठन कर्मचारियों की मांग को उठाता है, सरकार के खिलाफ बोलता है तो दूसरा संगठन सरकार के पास जाकर चाटुकारिता करना शुरू कर देता है कि आप चिंता न करें हम हड़ताल या प्रदर्शन नहीं होने देंगे। ये राजनीति चमकाना ही तो है। इसमें नुकसान सिर्फ कर्मचारियों का होता है। कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांगें उठाने की बजाए अपने चहेतों को सेटल करने में व्यस्त रहते है। बाकि मेरी बात रही तो मैं आपको बता दूँ की आज तक मैंने सरकार से कोई निजी लाभ नहीं लिया है न कभी अपने लिए कोई गुहार लगाई है। मैंने शिमला शहर में आज तक कभी नौकरी नहीं की, न कभी मेरी पत्नी ने की। हमें जहां भी पोस्टिंग मिली हमने वहां जाकर पूरी निष्ठा से अपना काम किया। कई नेता है जिनके चहेते स्कूलों में नौकरी करने के बजाए डायरेक्टरेट में बैठे है जो बिलकुल गलत है। उनका वेतन स्कूलों से निकलता है मगर वो बैठते डायरेक्टरेट में है। इस तरह की सोच हमने कभी नहीं रखी। हमने अपने दम पर नौकरी की है, हम सिद्धांतों के पक्के लोग है। किसी राजनीतिक दल में मेरे शामिल होने का सवाल ही नहीं है। मैं कर्मचारी नेता हूँ, हमेशा रहूँगा। किसी पोलिटिकल पार्टी से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है न कभी होगा। मैं अपना पूरा जीवन शिक्षक और शिक्षार्थी हित के लिए समर्पित कर चूका हूँ।
हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम में कार्यरत पीसमील कर्मचारी 26 अगस्त तक हड़ताल पर है। इस दौरान सभी पीसमील कर्मचारी सुबह नौ से शाम पांच बजे तक हड़ताल कर रहे है। ना एचआरटीसी की वर्कशॉप में कोई काम हो रहा है, ना बसों की सर्विस और ना ही कोई छोटे-बड़े काम कर्मचारियों द्वारा किये जा रहे है। इन कर्मचारियों के अनुसार आज तक निगम व सरकार से कर्मचारियों की मांगों पर महज आश्वासन ही मिले हैं। ऐसे में 26 अगस्त तक लगातार उनका टूल डाउन आंदोलन जारी रहेगा। इनका कहना है की सरकार वादों से पेट नहीं भरता, रहम करो। प्रदेश के 28 डिपुओं में तैनात 900 से अधिक पीस मिल कर्मचारी वो कर्मचारी है जिनकी मांगें पिछले कई सालों से अनसुनी की जा रही है, जिनकी दैनिक आय दिहाड़ी मज़दूरों से भी कम है और जिनकी मांगो को पिछले कई सालों से दरकिनार किया जा रहा है। एचआरटीसी को हिमाचल प्रदेश की जीवन रेखा माना जाता है। आज हिमाचल के लगभग हर कोने तक एचआरटीसी की बसें पहुँचती है। हिमाचल के दूर दराज़ क्षेत्रों तक पहुँचने वाली इन बसों को सड़क तक पहुँचाने में पीस मिल कर्मचारियों का बड़ा योगदान रहता है। ये पीसमील वर्कर एचआरटीसी में मैकेनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रीशियन, टायर मैन, कुशन मेकर्स, बसों की सीटें बनाने वाले, वेल्डर एवं पेंटर के रूप में कार्य करते हैं। हिमाचल प्रदेश में साल 2008 से पीसमील वर्करों की भर्ती की जा रही है, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। उस वक्त इन कर्मचारियों के लिए 8 साल के बाद अनुबंध पर लाने की पॉलिसी बनाई गई थी। यानी 8 सालों तक सेवाएं देने के बाद इन कर्मचारियों को अनुबंध पर लाया जाता था और अनुबंध काल पूरा होने के बाद उन्हें बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति दी जाती थी। तदोपरांत पिछली सरकार में परिवहन मंत्री रहे जीएस बाली द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार आईटीआई डिप्लोमा धारकों को 5 साल बाद और गैर डिप्लोमा धारकों को 6 वर्षों के बाद अनुबंध पर लेने की नीति बनाई गई। कायदे से होना भी ऐसा ही चाहिए लेकिन समस्या यह है कि अब तक जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में ये अवधि पूरी कर चुके लोगों को अब तक कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति नहीं दी है। पीस मिल कर्मचारियों की दुर्दशा और सरकार मौन : संजीव पीस मिल कर्मचारी की आवाज़ लगातार हुकमरानों तक पहुंचाने वाले संगठन पीस मिल कर्मचारी संघ द्वारा सरकार से इन कर्मचारियों को अविलंब अनुबंध में शामिल करने की मांग लगातार उठाई जा रही है। एचआरटीसी पीस मिल कर्मचारी संघ धर्मशाला डिवीजन प्रधान संजीव कुमार ने बताया कि एचआरटीसी के 28 डिपुओं में कार्यरत पीस मिल कर्मचारियों की दुर्दशा पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा। इन डिपुओं में एक हजार के करीब पीस मिल कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे है। संघ का कहना है कि सरकार द्वारा इन कर्मचारियों को प्रति कार्य के आधार पर वेतन दिया जाता है जो नाममात्र वेतन है और उस आय से कर्मचारियों के लिए परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसके कारण कर्मचारियों को परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है। साथ ही सरकार पूर्व में बनाई गई नीति का भी उल्लंघन कर रही है। संजीव शर्मा के अनुसार ये कर्मचारी अपने हक़ के लिए कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटा चुके है। कुल 397 पीस मिल कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ कोर्ट में केस किया। बावजूद इसके सरकार ने इन कर्मचारियों के लिए अब तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई। खुद को शोषित महसूस कर रहे हैं पीस मील कर्मचारी : अश्वनी पीस मील कर्मचारी यूनियन हमीरपुर डिवीज़न के प्रधान अश्वनी कुमार ने कहा कि कई कर्मचारी तो 8 से 10 साल से कार्य कर रहे हैं, लेकिन इनको अभी तक अनुबंध पर नहीं लाया गया है, जिस वजह से यह लोग खुद को शोषित महसूस कर रहे हैं। लंबे समय से कर्मचारी यूनियन के माध्यम से अपनी मांगों को उठा रहे हैं, लेकिन उनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने जल्द से जल्द एचआरटीसी प्रबंधन और प्रदेश सरकार से पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग उठाई है। वर्तमान समय में हालात ऐसे हैं कि कर्मचारियों को छह से आठ हजार रुपये वेतन मिल रहा है। इससे उनका गुजारा मुश्किल है। प्रदेश में विभिन्न एचआरटीसी डिपो में 900 से अधिक पीस मील कर्मचारी काम कर रहे हैं, ऐसे में इन कर्मचारियों की भी इच्छा है कि इनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ें और वह भी अपने परिवार का पोषण अच्छे से कर सकें। 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके कई कर्मचारी : विनोद पीस मील कर्मचारी मंच चंबा के पदाधिकारी विनोद कुमार ने कहा कि जिला चंबा में कुल 27 पीस मिल कर्मचारी हैं। ये कर्मचारी आईटीआई पासआउट के लिए पांच वर्ष और बिना आईटीआई के कर्मचारियों को छह वर्ष में अनुबंध में लाकर नियमित करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले 410 पीस मील कर्मचारियों को नियमित किया गया है लेकिन, अकारण वर्ष 2017 से इस पॉलिसी को लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये पॉलिसी लागू न होने से सात से आठ वर्ष पूरे कर चुके पांच सौ से अधिक पीस मील कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। वर्तमान समय में पॉलिसी लागू न हो पाने से दस प्रतिशत पीस मील कर्मचारी तो 50 वर्ष की आयु भी पूरी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि वे सरकार से काफी लम्बे समय से अपनी मांगों को पूरा करने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं कर रही है। जल्द नियुक्ति, वर्ण होगा उग्र आंदोलन : अभिजीत पीस मिल कर्मचारी मंच परवाणू के प्रधान अभिजीत ने बताया कि टूल डाउन हड़ताल का उन्हें खेद है। उन्होंने कहा कि हड़ताल से जहां हिमाचल के लोगों को कठिनाई होगी, वहीं एचआरटीसी बसों को भी नुकसान होगा। 2017 से इस लड़ाई को लड़ा जा रहा है। कर्मचारियों ने मांग की है 5 से 6 साल पुरे कर चुके कर्मचारियों को जल्द से जल्द नियुक्ति दी जाए वरना ये आंदोलन और अधिक उग्र होगा। हड़ताल और आंदोलन ही एकमात्र रास्ता पीसमील कर्मचारी मंच रामपुर ने भी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल शुरू कर दी है। मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि तीन अगस्त को हिमाचल प्रदेश परिवहन के मुख्य कार्यालय में पीस मील कर्मचारियों द्वारा पालिसी बहाली के विषय में प्रबंधक निदेशक को अपना मांग पत्र सौंपा था और वहां से उन्हें 15 अगस्त तक का आश्वासन मिला था, लेकिन इस पर कोई अमल नहीं किया गया। अब हड़ताल और आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है।
डेढ़ साल से कोरोना के जख्म झेल रहे प्रदेश के कर्मचारी वर्ग को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से 15 अगस्त के दिन बड़ी आस थी। कर्मचारियों को लग रहा था कि जो पिछले साढ़े तीन सालों में नहीं हुआ वो शायद अब हो जाएगा। उम्मीद थी की 15 अगस्त को सीएम प्रदेश के लिए बड़े एलान करेंगे। कर्मचारियों को महंगाई भत्ता मिलेगा, अनुबंध काल को घटा दिया जाएगा और बाकि सभी मांगें भी पूरी होंगी। महत्वकांक्षाएं बहुत थी मगर जो राहत मिली वो ऊंट के मुँह में जीरे समान थी। कर्मचारियों की निगाहें रविवार को मंडी जिला के सेरीमंच पर टिकी रही मगर हाथ कुछ ख़ास नहीं आया। 75वें राज्यस्तरीय स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश के ढाई लाख सरकारी कर्मचारियों और सवा लाख पेंशनरों को महंगाई भत्ते (डीए) की छह प्रतिशत किस्त जारी करने का एलान किया। सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को 1 जुलाई 2021 से महंगाई भत्ते की किस्त जारी होगी। कोविड काल में किस्तें फ्रीज करने की वजह से महंगाई भत्ता एक जनवरी 2020 से 1 जुलाई 2021 तक लंबित था। ऐसे में अधिकांश कर्मचारी संगठन मुख्यमंत्री की इस घोषणा से असंतुष्ट नज़र आ रहे है। उनके अनुसार इतने समय के इंतज़ार के बाद मिली ये राहत अधूरी है। यदि कर्मचारियों को छठे वेतनमान का निर्धारण हो गया होता तो डीए 11 फीसद बनता। गत वर्ष कोरोना संक्रमण महामारी के चलते केंद्र सरकार ने जनवरी, 2020 से देय डीए को फ्रीज कर दिया था और जिसकी अवधि जून, 2021 तक थी। केंद्र ने केंद्रीय कर्मचारियों को डीए जारी कर दिया है, जिसके चलते उन्हें एरियर का भुगतान नहीं होगा। वर्तमान में केंद्रीय कर्मचारियों को 164 फीसद डीए मिल रहा है, जबकि प्रदेश के कर्मचारियों को 153 फीसद। पुराने पे-स्केल के मुताबिक डीए का निर्धारण होता है तो प्रदेश के कर्मचारियों का तीस फीसद से अधिक डीए बनता है। जबकि इस डीए में से सरकार ने कर्मचारियों को सिर्फ 6 प्रतिशत देने की ही घोषणा की है। इसके अलावा बाकि जो भी मांगे कर्मचारियों की लंबित थी उन्हें भी पूरा नहीं किया गया। 15 अगस्त से पहले हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने भी अपना 26 सूत्री मांग पत्र सरकार को सौंपा था। इसमें पहली जनवरी, 2020 से लेकर पहली जुलाई, 2021 तक के लंबित महंगाई भत्ते की किश्त जारी करने की प्रमुख मांग थी। इसी प्रकार हिमाचल के कर्मचारियों की इस समय ज्वलंत मांग अनुबंध कार्यकाल कम करना भी इसमें शामिल था। नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करना और केंद्र की पुरानी पेंशन बारे 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करना भी कर्मचारियों की मांग का हिस्सा था। पर ये मांगे पूरी नहीं की गई। 6 प्रतिशत महंगाई भत्ता भद्दा मजाक : संजीव सचिवालय कर्मचारी सेवायें संगठन के अध्यक्ष संजीव शर्मा का कहना है की हिमाचल सरकार ने जो घोषणाएं कर्मचारियों के लिए की है उससे हिमाचल प्रदेश का कर्मचारी वर्ग खासा निराश है। पिछले दो साल की महंगाई ने कर्मचारी वर्ग की कमर तोड़ दी है। पेट्रोल और डीजल के दाम सौ रुपए से ऊपर है, रसोई गैस एक हजार रुपए, सरसों तेल दो सौ रुपए प्रति लीटर और अन्य खाद्य वस्तुओं के दाम भी आसमान को छू रहे हैं। छः परसेंट डीए देना सरकार का कर्मचारियों के साथ एक बेहद भद्दा मजाक है। कर्मचारियों में रोष, भुगतना पड़ सकता है खामियाज़ा : अरुण अनुबंध कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष अरुण भारद्वाज का कहना है कि इस बार भी मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों की उम्मीदों पर पानी फेरा है। कर्मचारियों को उम्मीद थी की सरकार अनुबंध काल घटा देगी मगर सरकार ने इस बार भी वही पुराना आश्वासन देकर कर्मचारियों को वापस लौटा दिया। अब आखिरी उम्मीद सिर्फ जेसीसी बैठक की है वो भी अगर इसी महीने या 15 सितंबर से पहले पहले हो तभी कर्मचारियों को कुछ फायदा होगा। कर्मचारियों में भारी रोष व्याप्त है जिसका खामियाज़ा सरकार को उपचुनाव में भुगतना पड़ सकता है। सिर्फ कर्मचारियों के लिए वित्तीय संकट : पीसमील कर्मचारी मंच एचआरटीसी के पीसमील कर्मचारियों का कहना है की ये राहत ऊंट के मुँह में जीरे समान है। पीस मिल कर्मचारी मंच का कहना है कि ये मज़ाक सरकार को महंगा भी पड़ सकता है। जब मंत्रियों और विधायकों का वेतन व भत्ते बढ़ाने हो तो इन्हें कोई वित्तीय संकट नज़र नहीं आता। मगर जब बात कर्मचारियों को उनके हक़ की कमाई देने की हो तो सरकार को सब कुछ याद आ जाता है। सीएम की घोषणा का स्वागत : प्राथमिक शिक्षक संघ कोरोना काल में कर्मचारियों का डीए की किश्ते जारी नहीं हो पाई थी। अभी 15 अगस्त को मुख्यमंत्री द्वारा कर्मचारियों को 6 प्रतिशत डीए की घोषणा का प्राथमिक शिक्षक संघ हिमाचल प्रदेश स्वागत करता है और आशा करता है कि जल्द ही कर्मचारियों को अन्य लाभ जी प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किए जाएंगे। हेमराज, अध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ हिमाचल प्रदेश महंगाई भत्ता निर्धारित राष्ट्रीय मानक से छेड़छाड़ महंगाई भत्ते की घोषणा पर हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ (विनोद गुट) ने भी कड़ी आपत्ति जाहिर कर इसे महंगाई भत्ते के निर्धारित राष्ट्रीय मानकों से छेड़छाड़ बताया है। उन्होंने कहा कि हिमाचल सरकार की यह मनमर्जी सभी की समझ से परे है। प्रदेशाध्यक्ष विनोद कुमार, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अश्वनी शर्मा, उपाध्यक्ष नीरज कपूर व चंद्रशेखर शर्मा और महासचिव गीतेश पराशर ने कहा कि छह फीसदी महंगाई भत्ते की घोषणा कर सरकार ने केंद्र के पैटर्न से अलग अपना ही पैटर्न तय किया है ,जो इतिहास में कभी नहीं हुआ है। महासंघ के नेताओं ने कहा कि महंगाई भत्ता राष्ट्रीय मूल्य सूचकांक पर आधारित होता है जो पूरे देश के कर्मचारियों/पेंशनरों पर एक समान लागू रहता है। इसमें कोई भी राज्य सरकार छेड़छाड़ नहीं कर सकती है। इससे राज्य के कर्मचारियों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है और छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट के लागू होने पर ये कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात करेगा। महंगाई भत्ते के पैटर्न से छेड़छाड़ कर सरकार ने अपनी मंशा यहां पर यह जाहिर कर दी है कि प्रदेश के कर्मचारियों को अब छठे वेतन आयोग से अलग करने की भी तैयारी है। महासंघ ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि इस घोषणा की पूर्ण समीक्षा कर केंद्र सरकार की तर्ज पर 11 प्रतिशत महंगाई भत्ता संशोधित वेतनमान पर तथा पूर्व संशोधित वेतनमान पर केंद्रीय कर्मचारियों के समान किया जाए ताकि महंगाई भत्ते के तय राष्ट्रीय मानक विखंडित न हो। राष्ट्रीय मानकों के आधार पर पूर्व संशोधित मूल वेतन पर महंगाई भत्ता जुलाई 2021 को 189 फीसदी जारी किया गया है जबकि हिमाचल में यदि छह प्रतिशत डीए को भी शामिल किया जाए तो यह 159 फीसदी ही बनता है, यानी 30 प्रतिशत डीए सरकार नहीं दे रही है और इस राशि का लेखा जोखा सरकार की फिजूलखर्ची में शामिल है। महासंघ ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि इस घोषणा की पूर्ण समीक्षा कर केंद्र सरकार की तर्ज पर 11 प्रतिशत महंगाई भत्ता संशोधित वेतनमान पर तथा पूर्व संशोधित वेतनमान पर केंद्रीय कर्मचारियों के समान दिया जाए ताकि महंगाई भत्ते के तय राष्ट्रीय मानक विखंडित न हों।
हज़ारों लोग जो सरकार की अनदेखी से रुष्ट है, हौंसला भी टूटा सा है पर आस है कि जाती नहीं। इसी उम्मीद में कि आज नहीं तो कल सरकार उनकी बात सुनेगी जरूर, मगर सरकार है कि सुनती नहीं। हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश में पिछले 20 दिनों से अधिक समय से हड़ताल पर बैठे हुए करुणामूलक आश्रितों की। वो आश्रित जिन्हें कायदे से कई सालों पहले नौकरी मिलनी थी। न जाने कितने धरने, कितने प्रदर्शन, कितने मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर इन लोगों ने काटे, यहां तक की आमरण अनशन भी किया और क्रमिक अनशन को भी काफी समय हो गया है, मगर हाथ आया सिर्फ और सिर्फ आश्वासन।करुणामूलक आश्रितों को क्रमिक अनशन पर बैठे 20 दिन से अधिक का समय बीत चुका है, मगर अब तक सरकार द्वारा इनके लिए कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। करूणामूलक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने बताया कि आश्रित लंबे अरसे से करुणामूलक आधार पर भर्तियां करने की मांग कर रहे हैं और इस दौरान विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री से मिलकर भी काफी बार बात को उनके समक्ष रखा गया है। पर हर बार केवल आश्वासन ही मिला है। इसके चलते करूणामूलक संघ 30 जुलाई से क्रमिक अनशन पर बैठा है। प्रदेश में करुणामूलक आधार पर 4500 आश्रितों को नौकरियां नहीं मिली है और विभागों, बोर्डों, निगमों में पद खाली चल रहे हैं। आश्रितों ने मांग की है कि करुणामूलक आश्रितों को वन टाइम सेटलमेंट के तहत सभी को एक साथ नियुक्तियां दी जाये। बता दें कि आश्रितों को 15 वर्ष से भी अधिक का समय आवेदन किए हुए हो गया है लेकिन अभी तक नौकरी नहीं मिली है। साल 1990 में बनी थी नीति साल 1990 में सरकारी कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए एक नीति बनाई गई। इस नीति के अंतर्गत यदि किसी भी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर आर्थिक रूप से कमजोर मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाती है ताकि कर्मचारी के परिवार को उसके जाने के बाद किसी भी तरह की दिक्क्तों का सामना न करना पड़े। नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल करुणामूलक आधार पर नौकरी हेतु सरकार ने वार्षिक आय सीमा का मापदंड तय किया हुआ है। इस आधार पर नौकरी के लिए कोई इंटरव्यू और लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती। पर ये जितना आसान दिखता है उतना है नहीं, करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसके लिए आवेदक को हर जिले में विभाग संबंधित डिवीज़न में आवेदन करना पड़ता है, फिर फाइल चीफ़ ऑफिस होकर सर्कल कार्यालय पर जाती है। उसके बाद विभाग के हेड ऑफिस शिमला पहुंचती है। आम तौर पर कई ऑब्जेक्शन लगते है व फाइल वापस आ जाती है। ऐसे में फाइनल फाइल शिमला पहुँचते - पहुँचते एक डेढ़ साल लग जाता है। फिर निदेशक द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाई जाती ,है जहां ज्यादातर मामलों को स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कुछ न कुछ ऑब्जेक्शन लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, कुछ बचे हुए मामलों को अप्रूवल के लिए संबंधित विभाग वित्त विभाग को भेजते हैं। जैसी व्यवस्था है उसमें वित्त विभाग के पास नौकरी की यह फाइल कई सालों तक लटकी रहती है। वित्त विभाग कोई ऑब्जेक्शन लगाता है तो दोबारा यह फाइल उसी रूट से होते हुए वापस पहुंचती है। ऐसे में आश्रित की आधी उम्र तो फाइल अप्रूव करवाने में ही निकल जाती है। अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाई सरकार बता दें की इतने लम्बे समय तक क्रमिक अनशन पर बैठने के बावजूद भी करुणामूलक आधार पर सरकारी नौकरी देने के मामलों पर सरकार कोई अंतिम फैसला नहीं ले पाई है। प्रदेश के नए मुख्य सचिव रामसुभग सिंह ने हाल ही में विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ एक बैठक में करुणामूलक नौकरियों से जुड़े मामलों पर चर्चा की है। इस चर्चा में सभी विभागों में कितने-कितने मामले लंबित पड़े हुए हैं, उन पर जानकारी ली गई। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी विधानसभा में ऐलान किया था कि उच्चस्तरीय अधिकारियों की कमेटी बनाई जाएगी। इस घोषणा के बावजूद भी करुणामूलक संघ ने हड़ताल नहीं तोड़ी। सालाना आय सीमा शर्त हटाने की मांग संघ की मांग है कि समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केसों को जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत सभी को एक साथ नियुक्ति दी जाएं। करुणामूलक आधार पर नौकरियों वाली पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये एक सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए।
हिमाचल प्रदेश राज्य आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट महासंघ द्वारा लगातार वेतन संशोधन को लेकर मांगे की जारी है लेकिन सरकार द्वारा इस विषय पर कोई कदम नहीं उठाया गया है। ऐसे में कर्मचारियों में रोष है। दरअसल, प्रदेश सरकार द्वारा 1-4 -1978 से 30-9 -2012 तक आयुर्वेद विभाग के फार्मासिस्ट को स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत फार्मासिस्ट के सामान्य वेतन दिया जाता था। किंतु 2012 के बाद किए गए वेतन संशोधन में स्वास्थ्य विभाग के फार्मासिस्ट का ग्रेड पे 4200 कर दिया गया लेकिन आयुर्वेद विभाग के फार्मासिस्ट को इससे वंचित रखा गया। तब से राज्य आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट महासंघ वेतन संशोधन का मुद्दा उठा रहा है। हिमाचल प्रदेश राज्य आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट महासंघ का कहना है कि आयुर्वेद विभाग के फार्मासिस्ट व स्वास्थ्य विभाग के साथ वेतन को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा भेदभाव किया जा रहा है। एक ओर सरकार आयुर्वेद को बढ़ावा देने की बात करती है तो दूसरी तरफ कर्मचारियों से ही भेदभाव करती है, ये उचित नहीं है। कोरोना काल के दौरान भी आयुर्वेदिक फर्मासिस्ट ने फ्रंट लाइन में रह कर सरकार और विभाग के निर्देशानुसार अपना कार्य किया। स्वयं मुख्यमंत्री ने आयुर्वेदिक फार्मासिस्टों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। बावजूद इसके आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट के वेतन संशोधन को लेकर कोई विचार नहीं किया जा रहा है। महासंघ का कहना है कि वर्तमान में आयु फार्मासिस्ट के 89 पद भरे हुए पदों का 15 प्रतिशत की दर से मुख्य आयु फार्मासिस्ट में अपग्रेड किये गए है, जो कि न्यायसंगत नहीं है। तथा इससे 30-35 वर्ष सेवा के उपरांत भी आयु फार्मासिस्ट को पदोन्नति का कोई अवसर नहीं मिल रहा है। जबकि अन्य विभागों के कर्मचारियों की पदोन्नति का कोटा कुल सृजित पदों पर निर्धारित किया जाता है। अतः संघ की मांग है कि आयु फार्मासिस्ट के 1230 सृजित पदों का 15 प्रतिशत कुल 184 पद (95 अतिरिक्त पद) मुख्य आयु फार्मासिस्ट के अपग्रेड/सृजित किया जाना चाहिए ताकि आयु फार्मासिस्ट वर्ग को पदोन्नति के उचित अवसर उपलब्ध हो सकें। हिमाचल प्रदेश राज्य आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट महासंघ सरकार से मांग कर रहा है की आयु फार्मासिस्टों को एलोपैथिक फार्मासिस्टों के समान वेतन/ग्रेड पे दिया जाए और साथ ही चीफ आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट के 95 अतिरिक्त पद स्वीकृत पदों के 15 प्रतिशत की दर से स्वीकृत किये जाएं।
हिमाचल में सत्ता बनाने और गिराने में कर्मचारियों का बड़ा हाथ होता है। हर राजनीतिक दल चुनाव से पहले कर्मचारी फैक्टर का ख़ास ख़याल रखता है। पर शायद जयराम सरकार कर्मचारियों को लुभाने की जल्दबाजी में नहीं है। शायद सरकार चुनावी वर्ष के लिए सारी सौगातें बचा कर रखना चाहती है। साथ ही प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति भी आड़े आ रही है। कारण भले ही आर्थिक संकट हो मगर खामियाज़ा तो सत्तारूढ़ भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। विधानसभा के मानसून सत्र में पहले सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल करने से इंकार किया और अब मुख्यमंत्री ने ये कह दिया है कि अनुबंध कर्मियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता लाभ दिया जाना सही नहीं है। पुरानी पेंशन बहाल होने की उम्मीद लिए बैठे कर्मचारी तो नाराज़ हो ही गए थे और अब तो नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग कर रहे कर्मचारी भी खफा हो गए है। बता दें की हिमाचल में जल्द ही चार उपचुनाव होने है और 2022 के आम विधानसभा चुनाव भी अब दूर नहीं है। ऐसे में जहां सरकार कर्मचारियों को खफा करती जा रही है, वहीं विपक्ष इनका हमदर्द बनता जा रहा है। ये स्पष्ट है कि हिमाचल के पौने तीन लाख कर्मचारियों को जो भाएगा सत्ता की सुनहरी चाबी उसी के हाथ लगेगी। दरअसल, विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने विधायक पवन कुमार काजल और विनय कुमार के सवाल का लिखित जवाब देते हुए कहा है कि नियमित कर्मचारियों के विपरीत अनुबंध आधार पर नियुक्त कर्मचारियों पर सेवा संबंधित विभिन्न नियम लागू नहीं होते हैं। अनुबंध आधार पर नियुक्त व नियमित कर्मचारियों के नियमों एवं शर्तों में असमानता के कारण अनुबंध आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमितीकरण के बाद उनकी नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता लाभ दिया जाना सही नहीं है। हिमाचल प्रदेश लोकसेवा आयोग व हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग की ओर से चयनित अनुबंध कर्मचारियों की प्रदेश में संख्या लगभग 8900 है। सरकारी सेवा में कार्यरत सभी कर्मचारियों को वरिष्ठता उनकी नियमितीकरण की तिथि से दिया जाता है। मुख्यमंत्री ने बताया कि नियमित कर्मचारियों के विपरीत अनुबंध आधार पर नियुक्त कर्मचारियों पर सेवा संबंधित विभिन्न नियम लागू नहीं होते हैं। अनुबंध आधार पर नियुक्त व नियमित कर्मचारियों के नियमों एवं शर्तों में असमानता के कारण अनुबंध आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमितीकरण के बाद उनकी नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता लाभ दिया जाना सही नहीं है। मुख्यमंत्री के इस बयान पर हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने नाराज़गी जताई है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय कुमार ने सामूहिक बयान में कहा कि संगठन अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता पर मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में दिए गए जवाब से बेहद नाराज़ है। मुख्यमंत्री ने लिखित रूप में अनुबंध काल से वरिष्ठता देने से मना किया है। कर्मचारियों का कहना ही कि पूर्व में विभिन्न कर्मचारियों को लाभ देने के लिए सरकार द्वारा कई बार नियम बदले गए हैं तो अनुबंध कर्मचारियों को वरिष्ठता क्यों नहीं दी जा सकती? 2008 में प्रदेश में पहली बार भाजपा सरकार ने बैच और कमीशन आधार पर चयनित कर्मचारियों को 8 साल के अनुबंध पर नियुक्ति देना शुरू किया था। इससे पहले बैच और कमीशन पास कर्मचारियों को नियमित नियुक्ति दी जाती थी। कर्मचारी केवल नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग कर रहें है जिसे सरकार बार बार नियमों का हवाला देकर टाल रही है। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि अगर पूर्व सरकारों में कोई निर्णय असमानता पर आधरित लिया गया हो तो वर्तमान सरकार का दायित्व है कि कर्मचारी हित में ऐसे निर्णयों को बदले, ना कि नियमों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़े। अगर नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने का सरकार विचार नहीं रखती तो बार बार कर्मचारियों को आश्वासन क्यों दिए जाते हैं? आखिर पिछले 3 सालों से ऐसी कौन सी तकनीकी बाधाएं हैं जो दूर नहीं हो रहीं। ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं अनुबंध कर्मचारी : मुनीष अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग का कहना है कि नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। सरकार द्वारा दिए गए अनुबंध की अवधि भी अलग - अलग होने के कारण कर्मचारियों के नियमितीकरण में अंतर पैदा हुआ है। संगठन के पदाधिकारी अपनी प्रमुख मांग नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ना है, जिसके संदर्भ में पिछले लगभग साढ़े तीन सालों में सैकड़ों ज्ञापन विभिन्न माध्यमों से मुख्यमंत्री को प्रेषित कर चुका है l लगभग सभी विधायकों व प्रदेश सरकार के मंत्री प्रदेश में जहां भी जाते थे उनसे वरिष्ठता से संबंधित ज्ञापन सौंपे गए हैं। 6 फरवरी 2020 को जिला मंडी सरोआ में जनमंच के दौरान भी मुख्यमंत्री ने संगठन के पदाधिकारियों को इस मांग को जल्द ही पूरा करने का आश्वासन दिया था l प्रदेश के लगभग 60000 अनुबंध व अनुबंध से नियमित कर्मचारी अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं l प्रदेश सरकार के प्रति बढ़ रहा रोष : अनिल संगठन के प्रदेश महासचिव अनिल सेन ने कहा कि सरकार ने हर कर्मचारी वर्ग की मांगों का ध्यान रखा है लेकिन सिर्फ पुरानी पेंशन और नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को ही छोड़ दिया है। इससे इस प्रदेश के हर विभाग में कार्यरत अनुबंध व अनुबंध से नियमित कर्मचारियों में प्रदेश सरकार के प्रति रोष बढ़ता जा रहा है l प्रदेश सरकार यह बताएं कि 60000 अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? अनिल सेन ने कहा कि सरकार की वित्तीय हालत को देखते हुए उन्हें यह वरिष्ठता बिना किसी वित्तीय लाभ के चाहिए जिसके लिए कर्मचारी एफिडेविट तक देने को तैयार हैं संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि उनका संगठन सिर्फ और सिर्फ प्रदेश के विभिन्न विभागों में आर एंड पी नियमों अर्थात कमीशन और बैच वाइज आधार पर भर्ती अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के लिए ही नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग करता आ रहा है l
कांगड़ा: नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के कांगड़ा जिला प्रधान राजिन्दर मन्हास ने कहा की सरकार की लगातार अनदेखी से हिमाचल के एक लाख एनपीएस कर्मचारी काफी खफा हैं। मुख्यमंत्री लगातार चार साल से 2009 की अधिसूचना को लेकर एक ही डायलॉग एनपीएस कर्मचारियों से बोल रहे हैं कि मामला सरकार के ध्यान में है जल्द निर्णय लिया जाएगा परन्तु चार साल से 2009 की अधिसूचना हिमाचल में लागु नही हो पाई है, जिससे कर्मचारियों में रोष बढ़ रहा है। जिला प्रधान ने कहा कि मुख्यमंत्री कहते हैं कि एनपीएस एक राज्य को छोड़ पूरे भारत में सम्मान रूप से लागू है परन्तु 2009 की अधिसूचना जिसके तहत सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत पर पेंशन का परिवार को प्रावधान है इस अधिसूचना को 8 राज्य लागू कर चुके हैं तो ऐसे में प्रदेश सरकार को इसे लागू करने में भी ऐतराज ह। जिला प्रधान ने कहा कि पिछले माह जिला कांगड़ा के 7 विधायकों से एसोसिएशन इस अधिसूचना को लागू करवाने को मिली पर दुख यह रहा कि यह 7 विधायक भी विधानसभा में इस मांग पर चुप्पी साध बैठे रहे। जिला प्रधान ने कहा कि अब कर्मचारी बहुत याचना कर चुके हैं और अब याचना नही होगी। जिला प्रधान ने साफ चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उपचुनाव से पहले 2009 की अधिसूचना जारी नही हुई तो उपचुनावों के नतीजे सरकार के सारे दावों की हवा निकाल सकते हैं। जिला प्रधान ने कहा कि हर विधानसभा में 1500 परिवार एनपीएस कर्मचारियों के है जो किसी भी पार्टी के आंकड़े खराब करने को काफी है। उन्होनें एक बार फिर मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि 15 अगस्त को यह अधिसूचना तत्काल लागू की जाए।
कर्मचारियों से सौतेला व्यवहार क्यों? अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन ने सरकार पर लगाए भेदभाव के आरोप हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग, प्रदेश महासचिव अनिल सेन, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय कुमार, संरक्षक राजेश सिंह पुरिया, सलाहकार राजेश वर्मा, प्रदेश प्रवक्ता विजय राणा, सचिव सुशील चंदेल, मोहन ठाकुर, प्रेस सचिव राकेश चौहान, प्रेमपाल पठानिया, आईटी सेल हेड संदीप चंदेल, जिला कांगड़ा अध्यक्ष सुनील पराशर, हमीरपुर जिलाध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार, शिमला जिलाध्यक्ष नंद लाल, चम्बा जिलाध्यक्ष राजेंदर पॉल, मंडी जिला अध्यक्ष कृष्ण यादव, ऊना जिलाध्यक्ष संजीव बग्गा ने सामूहिक बयान में कहा कि संगठन अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों की नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता पर मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में दिए गए जबाब पर नाराजगी जताई है। विधानसभा में कांगड़ा के विधायक पवन काजल द्वारा अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता दिए जाने के प्रश्न के जबाब में मुख्यमंत्री ने लिखित रूप में अनुबन्धकाल से वरिष्ठता देने से मना किया है। मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए जबाब में कहा गया कि अनुबन्धकाल से वरिष्ठता देने का कोई प्रावधान नहीं है। कर्मचारियों का कहना ही कि पूर्व में विभिन्न कर्मचारियों को लाभ देने के लिए सरकार द्वारा कई बार नियम बदले हैं तो अनुबंध कर्मचारियों को वरिष्ठता क्यों नही दी जा सकती? 2008 में प्रदेश में पहली बार भाजपा सरकार ने बैच और कमीशन आधार पर चयनित कर्मचारियों को 8 साल के अनुबंध पर नियुक्ति दी। इससे पहले बैच और कमीशन पास कर्मचारियों को नियमित नियुक्ति दी जाती थी। अब यह कर्मचारी केवल नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग कर रहें है जिसे सरकार बार बार नियमों का हवाला देकर टाल रही है जोकि गलत है। कर्मचारियों का कहना है कि अगर पूर्व सरकारों में कोई निर्णय असमानता आधरित लिया गया हो तो वर्तमान सरकार का दायित्व है कि कर्मचारी हित में ऐसे निर्णयों को बदले नाकि नियमों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़े। अगर नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता देने का सरकार विचार नहीं रखती तो बार बार कर्मचारियों को आश्वासन क्यों दिए जाते हैं? आखिर पिछले 3 सालों से ऐसी कोन सी तकनीकी बाधाएं हैं जो दूर नहीं हो रहीं। नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता ना मिलने से जूनियर कर्मचारी सीनियर होते जा रहे हैं। सरकार द्वारा दिए गए अनुबंध की अवधि भी अलग अलग होने के कारण कर्मचारियों के नियमितीकरण में भी अंतर पैदा हुआ है। संगठन के पदाधिकारी अपनी प्रमुख मांग नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता व अनुबंध काल को कुल सेवाकाल में जोड़ने के संदर्भ में पिछले लगभग साढ़े तीन सालों में सैकड़ों ज्ञापन स्वयं और विभिन्न माध्यमों से मुख्यमंत्री को प्रेषित कर चुका है l लगभग सभी विधायकों व प्रदेश सरकार के मंत्री प्रदेश में जहां भी जाते थे उनसे वरिष्ठता से संबंधित ज्ञापन सौंपे गए हैं । 6 फरवरी 2020 को जिला मंडी सरोआ में जनमंच के दौरान भी मुख्यमंत्री ने संगठन के पदाधिकारियों को इस मांग को जल्द ही पूरा करने का आश्वासन दिया था l संगठन के पदाधिकारियों को मात्र आश्वासन ही मिलते आए हैं, जिससे प्रदेश के लगभग 60000 अनुबंध व अनुबंध से नियमित कर्मचारी अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं l प्रदेश अध्यक्ष मुनीष गर्ग और महासचिव अनिल सेन ने कहा कि प्रदेश सरकार यह बताएं कि कर्मचारी अपनी जायज मांगों को सरकार से पूरा करवाने के लिए और कौन सा तरीका अपनाएं जिससे कि यह मांग पूरी हो सके l संगठन के प्रदेश महासचिव अनिल सेन ने कहा कि सरकार ने हर कर्मचारी वर्ग की मांगों का ध्यान रखा लेकिन सिर्फ पुरानी पेंशन और नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग को यूं ही छोड़ दिया गया है जिससे इस प्रदेश के हर विभाग में कार्यरत अनुबंध व अनुबंध से नियमित कर्मचारियों में प्रदेश सरकार के प्रति रोष बढ़ता जा रहा है l प्रदेश सरकार यह बताए कि 60000 अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? उन्होंने कहा कि जल्द ही उनका एक प्रतिनिधिमंडल इस मांग के संदर्भ में मुख्यमंत्री से शिमला में मिलेगा l प्रदेश महासचिव अनिल सेन ने कहा कि सरकार की वित्तीय हालत को देखते हुए उन्हें यह वरिष्ठता बिना किसी वित्तीय लाभ के चाहिए जिसके लिए कर्मचारी एफिडेविट तक देने को तैयार हैं l संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि उनका संगठन सिर्फ और सिर्फ प्रदेश के विभिन्न विभागों में R&P नियमों अर्थात कमीशन और बैच वाइज आधार पर भर्ती अनुबंध और अनुबंध से नियमित कर्मचारियों के लिए ही नियुक्ति की तिथि से मांग करता आ रहा है l उन्होंने कमीशन पास करके कोई गुनाह किया है क्या? यदि गुनाह किया है तो सरकार को हिमाचल लोक सेवा आयोग व हिमाचल प्रदेश स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड बंद कर देने चाहिए।
कर्मचारी एक बार फिर निराश है। सरकार ने साफ़ तौर पर पुरानी पेंशन बहाल करने लिए ना कह दिया है। पिछले दिनों सदन में प्रश्नकाल के दौरान जब विपक्ष ने पुरानी पेंशन बहाली को लेकर सवाल उठाए तो जवाब में सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश के आर्थिक हालात अभी ठीक नहीं है। पुरानी पेंशन अभी बहाल नहीं हो सकती। उनका यह भी कहना था कि पंजाब को फॉलो करने के लिए हिमाचल सरकार बाध्य नहीं है। बावजूद इसके जब प्रदेश की आर्थिक कठिनाइयां दूर होंगी तो ओल्ड पेंशन पर राज्य सरकार विचार करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्मचारियों की संख्या अधिक होने के चलते इन परिस्थितियों में एकदम फैसला लेना संभव नहीं है। बावजूद इसके राज्य सरकार की मंशा कर्मचारी हित में है। उधर, नई पेंशन कर्मचारी महासंघ ने इस पुरे वाक्य पर खेद व्यक्त किया है। महासंघ का कहना है की मुख्यमंत्री न जाने किस कर्मचारी हित की बात करते है। प्रदेश सरकार ने अपने पुरे कार्यकाल में कर्मचारी हित में एक भी फैसला नहीं लिया। प्रदेश सरकार ने इस बार भी वही पुरानी रटी रटाई बात विधानसभा में दोहराई है कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। सरकार हमेशा ये ही बात कहती है और कर्मचारियों के हित को नज़रअंदाज़ करती है। मुख्यमंत्री के इस जवाब से सभी पेंशन विहीन कर्मचारी निराश हुए हैं। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने कहा पुरानी पेंशन की बहाली के आलावा विधायकों ने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2009 में की गई अधिसूचना जिसमें कर्मचारी की मृत्यु और अपंगता पर पुरानी पेंशन का प्रावधान है, सम्बन्धित प्रश्न भी विधानसभा में पूछा। इस सम्बंध में भी सरकार ने अपने उत्तर में कहा कि अभी सरकार इस बारे में विचार कर रही है और आर्थिक तंगी के कारण प्रदेश में अभी तक यह अधिसूचना लागू नहीं की जा सकती। जबकि शाम को मंत्रिमंडल की बैठक में सरकार द्वारा बुलेट प्रूफ कार खरीदने का प्रस्ताव पास किया गया। महासंघ का कहना है कि एक और कर्मचारियों के विषय में सरकार द्वारा आर्थिक तंगी का रोना रोया जाता है और दूसरी ओर उसी दिन सरकार अपने लिए अन्य सुख सुविधाओं को प्राप्त करने के निर्णय लेती है जो कि सीधे-सीधे कर्मचारियों के साथ भेदभाव है। सरकार को अपने वादा जल्द से जल्द पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आगामी 15 अगस्त तक कर्मचारियों को उम्मीद है कि प्रदेश सरकार केंद्र सरकार द्वारा 2009 में की गई, अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू करेगी। यदि यह अधिसूचना 15 अगस्त को लागू नहीं होती है, तो प्रदेश के कर्मचारी प्रदेश भर में आंदोलन को और तेज कर देंगे। प्रदेश के कर्मचारी भविष्य में अपनी मांग को मनवाने के लिए लंबी हड़ताल पर भी जा सकते हैं और कलम छोड़ हड़ताल पर भी जा सकते हैं।
हिमाचल को हाल ही में 111 नए प्री प्राइमरी स्कूल मिले हैं। हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों के विकास के लिए केंद्र सरकार ने जो 787 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया है उससे प्रदेश में 350 नए स्मार्ट क्लासरूम बनाए जाएंगे, 97 और स्कूलों में वोकेशनल शिक्षा शुरू की जाएगी और 111 नए प्री प्राइमरी स्कूल खोले जाएंगे। सरकार ये प्री प्राइमरी स्कूल खोल तो रही है मगर प्रदेश के इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति का मुद्दा अब भी गरमाया हुआ है। दरअसल एनटीटी कर चुकी महिलाएं लंबे समय से उन्हें इन स्कूलों में नियुक्ति देने की मांग कर रही हैं। उधर, आंगनबाड़ी वर्कर भी नियुक्ति की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। दोनों संगठनों ने पिछले विधानसभा के बजट सत्र के दौरान प्रदर्शन भी किए थे, जिसके बाद सरकार ने नर्सरी टीचर ट्रेनिंग करने वालों के साथ आंगनबाड़ी वर्करों को भी भर्ती में शामिल किया है। सरकार ने अपनी ओर से तो जैसे तैसे ये मसला सुलझा दिया मगर बता दें की अब भी एनटीटी अध्यापिकाएं सरकार के इस फैसले के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है की इस भर्ती के लिए आंगनवाड़ी वर्कर पात्र नहीं हो सकती। साथी ही ये अध्यापिकाएं सरकार से जल्द नियुक्ति देने की मांग भी कर रही है। इसके आलावा ये अध्यापिकाएं सरकार की लेट लतीफी से भी काफी परेशान है। इनका कहना है कि सरकार ने घोषणाएं तो कर दी मगर अब तक नियुक्तियों के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है जिससे इन अध्यापिकाओं का इंतज़ार और भी अधिक लम्बा हो गया है। प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिका संघ की प्रधान मधुबाला ने बताया कि संघ की सदस्यों ने नर्सरी अध्यापिका का प्रशिक्षण इसलिए लिया था ताकि उन्हें रोजगार का अवसर मिल सके न कि घर बैठने के लिए। अधिकतर महिलाएं गरीब परिवार से संबंधित हैं और दिन प्रति दिन इनकी उम्र भी निकलती जा रही है। वे इससे पहले भी कई बार प्रदेश सरकार से जल्द रोजगार उपलब्ध करवाने की गुहार लगा चुकी हैं। वर्ष 1996-97 में तत्कालीन सरकार ने नर्सरी अध्यापिकाओं को प्राथमिक स्कूलों में तैनात किया था। इसके बाद आज दिन तक प्रदेश में कोई नर्सरी अध्यापिका तैनात नहीं की गई है। उन्होंने मांग की है कि नई शिक्षा नीति के तहत नर्सरी के बच्चों को पढ़ाने के लिए एनटीटी टीचर ही नियुक्त किए जाएं। बेरोजगार प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं को आयु सीमा में भी छूट दी जाए ताकि जो समय सरकार की ढुलमुल कार्यप्रणाली के चलते व्यर्थ हो गया है उसका खामियाज़ा इन अध्यापिकाओं को न भुगतना पड़े। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिकाओं की नियुक्ति प्री प्राइमरी कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए बिना किसी शर्त के बैचवाइज नियमित आधार पर की जाए। उनकी तैनाती के लिए अभ्यर्थी की योग्यता दस जमा दो कक्षा व नर्सरी टीचर ट्रेनिंग का प्रमाण पत्र हो। साथ ही उच्च शिक्षा प्राप्त प्रार्थी को शिक्षा योग्यता के अनुसार तैनाती में प्राथमिकता के अलावा वार्ड आफ एक्स सर्विसमैन का कोटा भी दिया जाए। ये है प्री प्राइमरी का मकसद प्री प्राइमरी कक्षाओं को शुरू करने का उद्देश्य बच्चों को स्कूल के लिए पूरी तरह से तैयार करना है। दरअसल नई शिक्षा नीति में बताया गया है कि वर्तमान समय में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) की सभी तक पहुंच नहीं होने के कारण बच्चों का एक बड़ा हिस्सा प्रथम कक्षा में प्रवेश पाने के कुछ ही हफ्तों बाद अपने सहपाठियों से पिछड़ जाता है। ऐसे में एनसीईआरटी और एससीईआरटी की ओर से केजी के विद्यार्थियों के लिए अल्पकालीन तीन माह का प्ले आधारित स्कूल तैयारी मॉड्यूल बनाया जाएगा। इस मॉड्यूल को क्रियान्वित करने में सहपाठियों और अभिभावकों का भी योगदान लिया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि हर विद्यार्थी स्कूल के लिए तैयार है।
चम्बा जिले के बैच वाइज भाषा अध्यापक काउंसलिंग के अभ्यर्थियों ने नतीजों में की जा रही देरी को लेकर नाराजगी जाहिर की है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि करीब आठ माह पहले साक्षात्कार लिए गए थे बावजूद इसके अभी तक परिणाम नहीं निकाला गया है। इससे अभ्यर्थियों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। अभ्यर्थियों ने कहा कि गत वर्ष 6 और 7 सितंबर को जिले में भाषा अध्यापकों की बैच वाइज काउंसलिंग प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक कार्यालय में हुई। आठ माह बीत जाने के बावजूद परिणाम घोषित नहीं किया गया है। लिहाजा टेट पास शिक्षक अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। अभ्यर्थियों ने कहा कि इतना अधिक समय बीत जाने पर भी परिणाम घोषित न करना उनकी चिंताएं बढ़ा रहा है। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि कोरोना काल में भी विभिन्न श्रेणियों की बैच वाइज नियुक्तियां हो रही हैं, लेकिन न जाने भाषा अध्यापक श्रेणी से सरकार और विभाग भेदभाव क्यों कर रहे हैं? अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और प्रारंभिक शिक्षा उप निदेशक चंबा से मांग की है कि बिना किसी भेदभाव के साक्षात्कारों के नतीजे के इंतजार में बैठे प्रभावितों को जल्द राहत प्रदान की जाए। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि भाषा अध्यापक बैच वाइज भर्ती पर कोर्ट द्वारा बैच वाइज काउंसलिंग और रिजल्ट निकालने पर कोई भी रोक नहीं लगाई गई है परन्तु फिर भी रिजल्ट नहीं निकाला गया है। इनका कहना है कि अगर नतीजे घोषित ही नहीं करने थे तो फिर कमीशन क्यों करवाया गया।
हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों के बीच मान्यता का महासंग्राम अब भी जारी है। हिमाचल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ में वर्चस्व को लेकर छिड़ी जंग थमने का नाम नहीं ले रही। भले ही सरकार ने अश्वनी गुट के अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता दे दी हो मगर विनोद गुट सरकार के इस फैसले को मानने के लिए अब भी तैयार नहीं है। विनोद कुमार लगातार अश्वनी ठाकुर को सरकार द्वारा दी गई मान्यता पर सवाल उठा रहे है। वे इस मसले पर सरकार को नोटिस भी थमा चुके है। यह नोटिस मुख्य सचिव और सचिव कार्मिक को दिया गया है। विनोद का कहना है की अगर 21 दिनों के अंदर सरकार ने मान्यता देने का फैसला नहीं बदला तो कर्मचारी सड़कों पर उतरेंगे। राज्य सचिवालय के बाहर धरना प्रदर्शन करेंगे और सरकार का घेराव होगा। बता दें की कर्मचारियों की ये जंग काफी पुरानी है। कुछ साल पहले हिमाचल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ तीन गुटों में बंट गया था। एनआर गुट, अश्वनी गुट और विनोद कुमार का गुट। हर एक ने अपने-अपने स्तर पर कार्यकारिणी का गठन किया और अपने संगठन बनाए। इन गुटों में वर्चस्व को लेकर अक्सर तकरार होती रही। अश्वनी ठाकुर को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का करीबी माना जाता रहा और अंत में मान्यता भी उन्ही के गुट को मिली। हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने शासनकाल के तीन साल बाद आखिर अश्वनी गुट के हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ को मान्यता दी और पत्र भेजकर संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक के लिए अश्वनी ठाकुर के नेतृत्व वाले महासंघ को बुला लिया है। उधर, सरकार के इस फैसले पर बाकि दो गुटों में भारी निराशा है। हालांकि एनआर ठाकुर अब रिटायर हो चुके है और कर्मचारी राजनीति से ज़्यादा मंडी लोकसभा उपचुनाव में रूचि दिखा रहे है। परन्तु विनोद गुट पूरी तरह से आक्रामक नज़र आ रहा है। उनका कहना है कि सरकार अपने फायदे के लिए कर्मचारी को गुटों में बांट रही है और काफी हद्द तक इसमें सफल भी रही है। जयराम सरकार के कई नेताओं ने कर्मचारी प्रतिनिधियों को कठपुतली बनाकर रखा है। मुख्यमंत्री ने अपने क्षेत्र के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया है, वे चाहते है कि जिस क्षेत्र के वे खुद है उसी क्षेत्र का अध्यक्ष भी हो ताकि कर्मचारियों की लगाम उनके हाथ में रहे, लेकिन ऐसा करना गलत है। उन्होंने कहा कि मान्यता देने के सवाल पर प्रदेश के पौने तीन लाख कर्मचारी सरकार से अंदर खाते नाराज चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि गुट पहले भी होते थे लेकिन सरकार सभी को साथ लेकर सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करती थी, लेकिन अब की बारी ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की मांगे जस की तस है उन्होंने आशंका जताई कि महासंघ को मान्यता देने के नाम पर नए वेतनमान आयोग की सिफारिशों को डिलिंक करने की कोशिश की जा रही है। उधर, अश्वनी ठाकुर पर भी अब कर्मचारी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव है। नतीजन मान्यता मिलते ही वे कर्मचारी समस्याएं हल करने में व्यस्त हो गए है। विधानसभा सत्र के दौरान भी वे करुणामूलक संघ से मिले और उनको समर्थन दिया। उनके अनुसार कर्मचारियों के लंबित मसले जैसे की संशोधन वेतनमान जारी करवाना, विभागों में रिक्त पदों को भरने की मांग प्रमुख है।
सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष संजीव शर्मा कर्मचारी राजनीति का एक चर्चित नाम है। संजीव उन कर्मचारी नेताओं में से है जो अपनी बात बेबाक और दमदार तरीके से रखने के लिए जाने जाते है। हालहीं में प्रदेश सरकार ने अश्वनी गुट वाले अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता दी है जिसके बाद कर्मचारी राजनीति की हलचल तेज है। साथ ही छठे वेतन आयोग का भी प्रदेश के कर्मचारी वर्ग को इंतज़ार है। ऐसे ही कई अहम् मसलों पर फर्स्ट वर्डिक्ट ने विशेष बातचीत की संजीव शर्मा से ..... सवाल : अपने संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी हमें दें और इस संघ से कितने कर्मचारी जुड़े है ये भी स्पष्ट करें ? जवाब : हिमाचल प्रदेश सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संगठन के चुनाव 2 वर्ष के लिए किए जाते हैं। इस संगठन में सचिवालय के साथ-साथ पब्लिक सर्विस कमीशन, गवर्नर सेक्टृयेट, लोकायुक्त और स्टेट ऑफिस भी शामिल है। सभी कार्यालयों के कर्मचारी, जिसमें क्लास 2 और क्लास 3 कर्मचारी हैं, अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान में प्रधान, वरिष्ठ उपप्रधान, महासचिव, उपप्रधान, संयुक्त सचिव, कोषाध्यक्ष के साथ-साथ 9 कार्यकारिणी सदस्यों का भी चुनाव होता है। संगठन का चुनाव पूरे लोकतांत्रिक तरीके से होता है। संगठन के लगभग पंद्रह सौ सदस्य हैं जो कि चुनाव के दिन 6 से 8 विभिन्न स्थानों पर लगे पोलिंग बूथों में अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। सवाल : आपके संघ की मुख्य मांग क्या है ? जवाब : हमारे संगठन की मुख्य मांग शीघ्र अति शीघ्र कॉन्ट्रैक्ट पीरियड को 3 साल से घटाकर 2 साल करना, सीनियर असिस्टेंट पद की पदोन्नति को वर्तमान 10 साल के सेवाकाल से घटाकर 7 साल पर सीनियर असिस्टेंट की पोस्ट के लिए पदोन्नति देना, मंत्री कार्यालयों में अधीक्षक के पद सृजित करवाना, सचिवालय के कर्मचारियों के लिए विशेष बस चलाना, ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करना है। इसके साथ-साथ सचिवालय में हर कमरे में मॉडलर फर्नीचर फिक्स करवाना तथा टॉयलेट में सेंसर वाले नल लगवाना, सचिवालय की ब्यूटीफिकेशन करवाना भी हमारी मुख्य मांगे है। सवाल : पंजाब के छटे वेतन आयोग की सिफारिशों से आपका संघ असंतुष्ट क्यों है ? जवाब : पंजाब के छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से हमारा संगठन इसीलिए असंतुष्ट है क्योंकि पंजाब में सचिवालय पे को अब सचिवालय भत्ते में तब्दील कर दिया है, जिससे सचिवालय के कर्मचारीयों को बहुत नुकसान होने वाला है। इससे पूर्व में सचिवालय का अपना वेतनमान हुआ करता था, लेकिन बाद में सचिवालय में सचिवालय पे दी गई थी। किन्तु अब जबकि सचिवालय पे को उन्होंने भत्ते में बदल दिया है, इससे हमारे कर्मचारियों को 900 से लेकर 4000 का प्रतिमाह नुकसान होगा, जो हम बिलकुल भी होने नहीं देंगे। सवाल : क्या सरकार आपकी सुनती है ? अब तक आपके संघर्ष को कितनी कामयाबी मिली ? जवाब : जी हां, सरकार हमारी हर बात को मानती है। चाहे कोई भी सरकार हो, हर सरकार को मालूम है कि सचिवालय सेवा कर्मचारी संगठन आज प्रदेश का सबसे मजबूत संगठन है। हमारी जब भी कोई मांग होती है, अगर सरकार उसमें कोई आनाकानी करती है तो मुख्यमंत्री को या मंत्री को या मुख्य सचिव की मध्यस्था करके हमारी मांगों को मान लिया जाता है। सवाल : अगर सरकार छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में बदलाव नहीं करती है तो क्या हिमाचल में भी पंजाब की तर्ज पर आंदोलन होंगे ? जवाब : अगर सरकार छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में बदलाव नहीं करती है तो निश्चित तौर पर पंजाब की तरह हिमाचल में भी आंदोलन किया जाएगा। पर हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सरकार इस पर सकारात्मक निर्णय लेगी और अभी हाल ही में पंजाब सचिवालय के कर्मचारियों की मीटिंग पंजाब गवर्नमेंट के साथ हुई थी, उसमें भी निर्णय लिए गए कि आने वाले दिनों में इस पर सकारात्मक निर्णय ले लेंगे तथा सचिवालय भत्ते को, सचिवालय पे में बदल दिया जाएगा। सवाल : सरकार ने हाल ही में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता प्रदान की है, क्या इससे हिमाचल के कर्मचारियों की स्थिति बेहतर होंगी ? जवाब : जी निश्चित तौर पर, अभी हिमाचल प्रदेश सरकार ने अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को जो मान्यता दी है इससे कर्मचारीयों को अवश्य फायदा होगा। इनकी स्थिति बेहतर होगी। अन्यथा आज तक पूरे प्रदेश के कर्मचारीयों के मुद्दों को सचिवालय कर्मचारी संगठन ही उठाता आ रहा था। अब हमें उम्मीद है कि इस संगठन को मान्यता देने से पूरे प्रदेश के कर्मचारियों के मुद्दों को हल किया जा सकेगा। सवाल : हिमाचल सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल को आप किस तरह देखते है, क्या इस सरकार ने कर्मचारियों के हित में काम किया है ? जवाब : हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले साढे 3 वर्ष में अच्छा कार्य किया है। कोविड-19 के दौरान सरकार ने बेहतरीन कार्य किया और आगामी डेढ़ वर्ष का समय अब सरकार के पास कर्मचारियों के मुद्दों को हल करने के लिए है। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार जल्द से जल्द छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को सुधार के साथ हिमाचल में लागू करेगी। सवाल : कर्मचारियों के हर मसले पर सरकार खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देकर बात टाल देती है, इसपर आप क्या कहेंगे ? जवाब : खराब आर्थिक स्थिति सिर्फ कर्मचारी के लिए ही बताई जाती है। जहां तक सरकार के अपने खर्चों की बात है तो माननीयों के वेतन और भत्ते हर साल बिना किसी विरोध के बढ़ा लिए जाते हैं। अपनी सुविधाओं को बिना आर्थिक स्थिति के मध्य नजर रखते हुए बढ़ा लिया जाता है, परंतु कर्मचारी हित में आर्थिक स्थिति आड़े आ जाती है। हिमाचल का कर्मचारी सरकारें बनाने के लिए एक अहम भूमिका निभाता है। कर्मचारी सही मायने में सरकार की रीढ़ की हड्डी होती है, कर्मचारी के आर्थिक हित सरकार को अवश्य पूरे करने चाहिए। सवाल : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर ये धारणा बनी हुई है कि कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांग उठाने से ज्यादा अपनी राजनीति चमकाने में विश्वास रखते है, क्या आपके इरादे भी कुछ ऐसे ही है ? क्या आप आने वाले समय में किसी राजनैतिक दल में शामिल होंगे ? जवाब : जहां तक सचिवालय के कर्मचारी नेताओं की राजनीति चमकाने का प्रश्न है, यह बिल्कुल भी सही नहीं है। सचिवालय कर्मचारी नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए राजनीति में नहीं आते हैं। देखिए यहां पर जो भी कर्मचारी नेता बनता है, उसको पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। लोग अगर चाहेंगे तभी कोई यहां पर चुन कर आएगा, क्योंकि यहां पर जो भी लोग वोट देते हैं वह खुद अपने काम को करवाने में सक्षम होते हैं। कोई मंत्री के पास होता है, कोई सेक्रेटरी के पास है, लेकिन वह जिनको चुनते हैं यहां पर वह उनकी नजर में सबसे काबिल होते हैं। सचिवालय के कर्मचारी सिर्फ उसी को चुनते हैं जो सचिवालय के लिए कुछ कर सकता है, या मादा रखता है। जहां तक राजनीति में आने का प्रश्न है, उसमें यही कहूंगा कि यह भविष्य के गर्भ में छुपा है, अभी हम कुछ कह नहीं सकते हैं। अभी तो फिलहाल कर्मचारियों की राजनीति कर रहे हैं, और पूरी निष्ठा से कर रहे हैं। राजनीति में जाना भविष्य तय करेगा।
2017 में भाजपा के सत्तासीन होने से पहले भाजपा द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में अनुबंध कार्यकाल को 2 वर्ष करने के वायदे को अभी तक भी अमलीजामा पहनाने में जयराम सरकार कामयाब नहीं हो पाई है l सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते प्रदेश के अनुबंध कर्मचारी भाजपा सरकार से स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं l अनुबंध कर्मचारी महासंघ की जिला और राज्य कार्यकारिणी के सदस्य राजधानी शिमला समेत प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, विभिन्न कैबिनेट स्तर के मंत्रियों तथा भाजपा के सभी विधायकों से इस मांग को पूरा करने के लिए गत 3 वर्षों से मिल रहे हैं, और हर बार अनुबंध कर्मचारियों को सरकार की ओर से आश्वासन ही मिलता रहा है l मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने किसी बड़े कार्यक्रम में अनुबंध कार्यकाल को घटाने की घोषणा करने का वायदा महासंघ के प्रतिनिधिमंडल से पहले भी किया था, परंतु 25 जनवरी, हिमाचल प्रदेश का बजट तथा 15 अप्रैल का ऐतिहासिक दिन बीत जाने के बावजूद भी 19000 कर्मचारियों की इस मांग को पिछले साढ़े तीन वर्षों से अमलीजामा न पहनाने के चलते कर्मचारियों में खासा रोष व्याप्त हो रहा है। इसी संबंध में हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ की राज्य कार्यकारिणी का प्रतिनिधिमंडल शिमला में राज्य कार्यकारिणी उपाध्यक्ष सुनील कुमार शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, महासचिव सुरेंद्र कुमार नड्डा, उपाध्यक्ष संदीप शर्मा, बल्ह विधायक इंद्र सिंह गांधी की अध्यक्षता में शिमला ओक ओवर में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला और एक सूत्रीय मांग अनुबंध काल को 3 साल से घटाकर 2 साल करने संबंधित ज्ञापन मुख्यमंत्री को सौंपा। मुख्यमंत्री ने कहा कि शीघ्र ही अनुबंध काल को 3 साल से घटाकर 2 साल किया जाएगा। साथ में राज्य कार्यकारिणी का प्रतिनिधिमंडल स्वास्थ्य मंत्री राजीव सेहजल, शिक्षा मंत्री गोविन्द ठाकुर और शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज से मिला और सभी मंत्रियों को अनुबंध को 3 साल से घटाकर 2 साल करने संबंधित ज्ञापन सौंपा गया। अनुबंध कर्मचारी महासंघ के राज्य कार्यकारिणी वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय पटियाल, उपाध्यक्ष सुनील कुमार शर्मा तथा महासचिव सुरेंद्र कुमार नड्डा ने बताया कि 2018 में जो अनुबंध कर्मचारी सरकार के द्वारा लगाए गए वह अपना 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर मार्च 2021 में नियमित हो चुके हैं, अतः सरकार द्वारा भविष्य में अनुबंध कार्यकाल घटाने का फैसला लेना इन 4000 के लगभग नियमित हो चुके कर्मचारियों के लिए निरर्थक होगा। वर्तमान में यदि सरकार शीघ्र अति शीघ्र अनुबंध कार्यकाल को घटाने का निर्णय लेती है तो इससे जनवरी 2019 से लेकर मार्च 2020 तक जितनी भी नियुक्तियां हुई हैं वह कर्मचारी लाभान्वित होंगे।
पंजाब सरकार द्वारा लागू की गई छठे वेतन आयोग की सिफारिशों की विसंगतियां हिमाचल के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा है। कर्मचारी वर्ग छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से संतुष्ट नहीं है। पंजाब सरकार के छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने बाद अब जल्द ही हिमाचल में भी इन्हें लागू किया जाएगा। परन्तु मसला ये है कि हिमाचल के कर्मचारियों का मानना है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशें किसी छल से कम नहीं है। जो दिख रहा है वैसा कुछ मिलने नहीं वाला। कर्मचारी लगातार सरकार से ये मांग कर रहे है कि इस वेतन आयोग को पंजाब की तर्ज पर ज्यों का त्यों लागू न किया जाए बल्कि यहां के कर्मचारियों के हिसाब से इसमें कुछ बदलाव हो। इस वेतन आयोग से कर्मचारियों का केवल एक तबका नहीं बल्कि लगभग हर कर्मचारी असंतुष्ट दिख रहा है। शिक्षक वर्ग असंतुष्ट हिमाचल के शिक्षकों का मानना है कि 2011 में वेतनमान संशोधित होने के साथ-साथ पूर्ण संशोधन हुआ था, जिसके चलते शिक्षक वर्ग को ग्रेड-पे संशोधित होने से अधिकतम पांच हजार रुपये का हर माह अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुआ था। 2011 में शिक्षक वर्ग के अलावा लिपिक और कई श्रेणियों को संशोधन के तहत अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुए थे। इस बार कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग में दो विकल्प दिए गए हैं। एक यदि आप बढ़े हुए ग्रेड पे से पहले का विकल्प लेते हैं तो वेतन मल्टीप्लायर 2.59 लगेगा। यानि आपका नया वेतन अभी के वेतन माइनस ग्रेड पे वेतन से 2.59 फीसदी ज्यादा होगा। और यदि 2011 के बढ़े हुए ग्रेड पे का विकल्प लेते हैं तो मल्टीप्लायर 2.25 लगेगा। इन विकल्पों से कर्मचारियों व शिक्षकों को जिनका 2011 में ग्रेड पे रिवाइज हुआ है, उन्हें बहुत बड़ा झटका लगने वाला है। सचिवालय पे को भत्ते में बदलना मंजूर नहीं सचिवालय से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को भी छठे वेतन आयोग से नुकसान होगा। छठे वेतन आयोग पर सचिवालय कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष संजीव शर्मा ने बताया कि पंजाब सरकार ने सचिवालय पे को वेतन का हिस्सा न मान कर भत्ते में बदल दिया गया है। सचिवालय के अलग-अलग श्रेणियों के कर्मचारियों को 600 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक प्रति माह सचिवालय पे दी जाती है। पेंशन में भी इसका लाभ मिलता था, मगर जब भत्ते में बदल जाएगा तो यह भत्ता सचिवालय से सेवानिवृत्त होने वाले पेंशनरों को नहीं मिलेगा। संजीव शर्मा बताते है कि इस सचिवालय पे पर 3800 रुपए के करीब डीए भी कर्मचारियों को मिलता था। अब क्योंकि इसे अलाउंस करार दिया गया है तो इसपर डीए नहीं मिलेगा और कर्मचारियों को एक महीने में 3800 रूपए का नुक्सान झेलना पड़ेगा। डॉक्टरों के प्रैक्टिसिंग अलाउंस में कटौती हिमाचल के चिकित्सक भी छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से खुश नहीं है। इस वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत चिकित्सकों का प्रैक्टिसिंग अलाउंस 25 से 20 फीसदी कर उसे बेसिक वेतन से अलग किया गया है। इन सिफारिशों का प्रदेश में भी काफी विरोध हुआ है। इन सिफारिशों के विरोध में चिकित्सक संघ ने पेन डाउन स्ट्राइक भी की। कर्ज का बढ़ता बोझ, कैसे पूरी होगी मांगे ? बता दें कि पंजाब सरकार की ओर से छठे वेतन आयोग की अधिसूचना के अध्ययन के लिए अफसरों की एक कमेटी बनाई गई है जिसकी अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना कर रहे है। हिमाचल प्रदेश में सवा दो लाख नियमित कर्मियों और पौने दो लाख पेंशनरों को इसका लाभ मिलना है। एरियर देने की बात करें तो राज्य सरकार पर इससे करीब 9 से 10 करोड़ रुपये तक का बोझ पड़ेगा। प्रदेश की आर्थिक हालत पहले से ही पतली चल रही है। ऐसे में यह लाभ कैसे दिया जाएगा, यह राज्य सरकार की सबसे बड़ी पहेली है। 60554 करोड़ से अधिक कर्ज के बोझ तले पहुंच चुकी प्रदेश सरकार के लिए छठे वेतन आयोग के साथ-साथ कर्मचारियों की बाकि मांगें पूरी करना भी काफी कठिन है।
तुझ को देखा तेरे वादे देखे, ऊँची दीवार के लम्बे साए मानसून सत्र, 15 अगस्त और टकटकी लगाए हुए कर्मचारी। इस पर आगामी चार उपचुनाव। अधूरे वादे पूरे होने की हसरत में हिमाचल का कर्मचारी फिर आस लगाए बैठा है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि इस बार उनकी मांगें सुनी भी जाएगी और इन्हें पूरा भी किया जाएगा। जो 15 अप्रैल को न हो पाया वो शायद अब 15 अगस्त को हो जाए। पर एक ट्विस्ट भी है, वो है आचार सहिंता। आगामी कुछ दिनों में कर्मचारी उम्मीदों के इस बोझ को सरकार किस तरह मैनेज करेगी, ये देखना रोचक होने वाला है। कर्मचारियों के लिए समीकरण अब इसलिए भी बदल गए है क्योंकि साढ़े तीन साल बाद ही सही मगर जयराम सरकार ने अपने शासनकाल में अश्वनी गुट के हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ को मान्यता दे दी है। लंबे इंतजार के बाद सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक के लिए अश्वनी शर्मा के नेतृत्व वाले महासंघ को बुलाया गया है। हालांकि, प्रदेश सरकार ने अभी बैठक की तारीख तय नहीं की है। महासंघ ने कर्मचारियों के मसलों को लेकर सरकार को ज्ञापन भेजने भी शुरू कर दिए है। महासंघ को मान्यता मिलने का अर्थ है कि अब हिमाचल के कर्मचारियों की आवाज़ और ज्यादा बुलंद हो जाएगी। सरकार तक मुद्दे पहुंचेंगे भी और पूरे होने के आसार भी प्रबल होंगे। पर फिलवक्त महासंघ के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो सभी कर्मचारियों को एकजुट रखना होगा, क्योंकि भले ही सरकार ने अश्विनी गुट को मान्यता दे दी हो मगर दो अन्य गुट ( विनोद गुट और एन.आर ठाकुर ) अब भी एक्टिव है और सरकार के इस निर्णय से असंतुष्ट भी। जाहिर सी बात है अब अश्वनी गुट पर दबाव है कि वे कर्मचारी मांगों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाये, ताकि उस पर कर्मचारियों का भरोसा कायम रह सके। मान्यता प्राप्त महासंघ के अनुसार संशोधन वेतनमान जारी करने, विभागों में रिक्त पदों को भरने की मांग प्रमुख है। हिमाचल दिवस पर तो सरकार कर्मचारी वर्ग की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी थी पर कर्मचारी आस में है कि अब उनकी मांगें पूरी होगी। सत्ता तो मिली पर अनुबंध काल नहीं घटाया 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने सुजानपुर में चुनावी वादा किया था कि उनके सत्ता में आते ही वे अनुबंध काल को घटा कर तीन से दो वर्ष कर देंगे। समय गुजरता गया और आज साढ़े तीन वर्ष बाद भी ये वादा महज वादा ही है। अब तक सरकार इस वादे पर खरी नहीं उतरी। सत्ता में आने के बाद भाजपा भले ही अपना ये वादा भूल गई है पर हताश कर्मचारी अब भी इंतज़ार में है कि आज नहीं तो कल सरकार अपना चुनावी वादा पूरा करेगी। हिमाचल में करीब 19,000 अनुबंध कर्मचारी है जो लगातार सरकार से गुहार लगा रहे है की उनकी ये मांग पूरी की जाए। इस मांग को लगातार प्रमुखता से उठाने वाले संगठन हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अरुण भारद्वाज का कहना है कि अनुबंध पर नियुक्त कर्मचारियों की ये मांग पूरी तरह जायज़ है। अरुण भारद्वाज का कहना है कि सरकार द्वारा अनुबंध कर्मचारियों को हिमाचल के दूरदराज़ क्षेत्रों में नियुक्त किया जाता है। साथ ही इन्हें वेतन भी पर्याप्त नहीं दिया जाता और न ही सरकारी नौकरी के लाभ पूरी तरह मिलते है, इसलिए अनुबंध कार्यकाल को कम से कम किया जाना चाहिए। यहां खास बात तो यह है कि जिन कर्मचारियों से ये वादा किया गया था वो कर्मचारी तो अपना 3 वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर भी चुके है। बता दें कि ये मुद्दा सिर्फ एक संगठन का नहीं है। हिमाचल प्रदेश में मौजूद लगभग सभी कर्मचारी संगठन इसके पक्ष में है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश सचिवालय सेवा कर्मचारी एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव शर्मा और महासचिव कमल कृष्ण शर्मा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला है। इस मुलाकात के दौरान भी अनुबंध काल के इस मुद्दे को सरकार के समक्ष रखा गया है। नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का मुद्दा 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अनुबंध काल घटाने के साथ - साथ एक और वादा किया था l वादा था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगाl ये वादा भी अब तक अधूरा है। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन पिछले कई सालों से ये मांग कर रहा है की विभिन्न विभागों में भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत अनुबंध पर नियुक्त होने के बाद नियमित हुए कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए l कई नेताओं, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के समक्ष भी दर्जनों बार वरिष्ठता की मांग को उठाया गया, लेकिन सिवाय आश्वासन के अब तक कुछ नहीं मिला है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में अनुबंध कर्मचारी 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और आने वाले समय में लगता है कि अनुबंध काल 2 वर्ष कर दिया जाए और कुछ वर्षों के बाद शायद समाप्त हो जाए। सरकार द्वारा इन कर्मचारियों के अनुबंध काल को इनके कुल सेवा काल में नहीं गिना जाता जिसके कारण इनके प्रमोशन में काफी विलम्ब हो जाता है। सरकार की इस ढुलमुल व्यवस्था से कर्मचारियों को वित्तीय घाटा तो हो ही रहा है साथ ही उनके मान सम्मान पर भी आंच आ रही है। संगठन के अनुसार सरकार की ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। कर्मचारियों को अलग अलग अन्तरालों में नियमित करने से असमानता फैली है। सरकार को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करके इस असमानता को तुरंत खत्म करना चाहिए। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि उन्हें सरकार से उम्मीद है कि जल्द उनकी ये मांग सरकार ज़रूर पूरा करेगी। कब बहाल होगी करुणामूलक नौकरियां हिमाचल में कर्मचारियों की मांगे तो तूल पकड़ ही रही है, साथ ही करुणामूलक आश्रित भी सरकार को घेरने में पीछे नहीं है। हिमाचल प्रदेश में पिछले करीब 15 सालों से लगभग 4500 करुणामूलक आश्रित नौकरी के इंतज़ार में है जिनकी अब तक सरकार ने सुध नहीं ली। इन आश्रितों का कहना है की वे अब तक न जाने कितने धरने, कितने प्रदर्शन, कितने मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर काट चुके है, आमरण अनशन भी किया, मगर आश्वासन के सिवा और कुछ भी नहीं मिला है। करूणामूलक संघ लम्बे समय से करुणामूलक नौकरी बहाली के लिए संघर्षरत है और संघ का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में करुणामूलक नौकरी के लगभग 4500 मामले अनेक विभागों, बोर्डों व निगमों में लंबित पड़े हुए हैं। इन परिवारों के लालन पालन के लाले पड़ गए हैं। ऐसा नहीं है कि हिमाचल सरकार ने कभी करुणामूलक नौकरियों पर गौर ही न किया हो। साल 2019 में हिमाचल सरकार ने करुणामूलक नौकरियों बारे एक संशोधित नीति जारी की थी, जिसके तहत आय सीमा में बढ़ोतरी और पात्रता के लिए आयु सीमा बढ़ाई गई थी, परन्तु अब तक नौकरियां नहीं मिली। करुणामूलक संघ की मांग है कि समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं, उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्तियां दी जाएं। इसके अलावा करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। पुरानी पेंशन बहाली की मांग हिमाचल प्रदेश कर्मचारियों के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक है नई पेंशन का मुद्दा। कर्मचारी वर्ग नई पेंशन स्कीम नहीं चाहता, इस बात से सभी भली भांति परिचित है। नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। नए पेंशन सिस्टम में कई विसंगतियां है जिससे कर्मचारी असंतुष्ट है। आए दिन कर्मचारी प्रदेश सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते है, इसके साथ ही केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करने हेतु भी आवाज़ उठाई जाती है। दरअसल, केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना में यह प्रावधान है कि अगर नौकरी के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वो कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है तो उसके परिवार को पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्रदान किए जाते हैं। यानी उक्त कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है। चूँकि ये अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू नहीं की गई है तो ऐसे में यदि हिमाचल के किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है या किसी दुर्घटना में वे दिव्यांग हो जाते है तो उनके परिवार को कोई भी पेंशन नहीं दी जाती। नए पेंशन सिस्टम के लागू होने के बाद से हिमाचल के कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करते है। हिमाचल प्रदेश न्यू पेंशन स्कीम महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने कहा कि अभी तक संगठन ने बहुत सारे धरने-प्रदर्शन, अनशन तथा रैलियां इत्यादि के माध्यम से सरकार तक अपनी बात को रखा है लेकिन फिर भी कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी है l हर एक कर्मचारी चाहता है कि पुरानी पेंशन बहाल हो l उन्होंने कहा कि कर्मचारी एक पढ़ा-लिखा वर्ग है जो अपनी मांगों और कर्तव्य को सही तरीके से समझता है ल विभाग घूमती फाइल और निराश कला अध्यापक कई सालों से बेरोजगार कला अध्यापक भी लम्बे समय से नौकरी की आस में हैं। कुछ दिन पहले शिक्षा विभाग ने 500 कला अध्यापकों के पदों को भरने हेतु एक फाइल बनाकर वित्त विभाग के पास भेजी थी लेकिन वित्त विभाग ने कुछ कारणवश वह फाइल दोबारा से शिक्षा विभाग को भेज दी थी। उसके बाद शिक्षा विभाग ने फिर से या फाइल वित्त विभाग के पास भेजी लेकिन तब से मामला वित्त विभाग के पास लंबित है। अब बेरोजगार कला अध्यापक आर -पार की लड़ाई का इरादा कर चुके है। बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार के आश्वासनों से तंग आकर अब इनके पास आंदोलन के अलावा कोई चारा नहीं है। इनका कहना है कि यदि 15 अगस्त को इनकी मांगें पूरी नहीं हुई तो उग्र आंदोलन होगा।
हिमाचल प्रदेश आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता एवम हेल्पर्स यूनियन सम्बन्धित सीटू राज्य कमेटी की बैठक सीटू कार्यालय शिमला में सम्पन्न हुई। यूनियन अपनी मांगों को लेकर 9 अगस्त को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन करेगी। इस दौरान आंगनबाड़ी कर्मी सड़कों पर उतरकर प्री प्राइमरी में नियुक्ति, इस नियुक्ति में 45 वर्ष की शर्त खत्म करने, सुपरवाइजर नियुक्ति के लिए भारतवर्ष के किसी भी मान्यता प्राप्त विश्विद्यालय की डिग्री को मान्य करने, वरिष्ठता के आधार पर मेट्रिक व ग्रेजुएशन पास की सुपरवाइजर में तुरन्त भर्ती करने, सरकारी कर्मचारी के दर्जे, हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन देने, रिटायरमेंट की आयु 65 वर्ष करने की मांग व पोषण ट्रैकर ऐप के खिलाफ आंदोलन करेंगे। बैठक में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, राज्य सचिव रमाकांत मिश्रा, सुमित्रा देवी, वीना शर्मा, हिमी देवी, हमिन्द्री देवी, बिमला देवी, सुदर्शना देवी, गोदावरी देवी, किरण भंडारी, माया देवी, हरदेई, शांता देवी आदि उपस्थित रहे। यूनियन उपाध्यक्ष सुमित्रा देवी व महासचिव वीना देवी ने बैठक की जानकारी देते हुए कहा कि कर्मियों की मांगों को लेकर यूनियन 8 सितंबर से 21 तक सितंबर शिमला, रामपुर, रोहड़ू, ठियोग, बसंतपुर, सोलन, अर्की, नालागढ़, पौंटा साहिब, शिलाई, सराहन, संगड़ाह, मंडी, जोगिन्दरनगर, सरकाघाट,करसोग, बंजार, आनी, झंडूता, हमीरपुर, नादौन, धर्मशाला, पालमपुर, देहरा, चम्बा, चुवाड़ी, ऊना, गगरेट आदि स्थानों पर योजनकर्मी प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आईसीडीएस का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो आंदोलन और तेज़ होगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति को वापिस लेने की मांग की है क्योंकि यह आइसीडीएस विरोधी है। नई शिक्षा नीति में वास्तव में आइसीडीएस के निजीकरण का छिपा हुआ एजेंडा है। इस से भविष्य में कर्मियों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ेगा। उन्होंने केंद्र सरकार से वर्ष 2013 में हुए पेंतालिसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी कर्मियों को नियमित करने की मांग की है।
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने एचआरटीसी कर्मियों की मांगों के समर्थन में ओल्ड बस स्टैंड शिमला पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में विजेंद्र मेहरा, बाबू राम, बालक राम, विनोद बिरसांटा, सुरेंद्र बिट्टू, दर्शन लाल, राकेश सलमान, पवन, विरेन्द्र लाल, सीता राम, चमन लाल, रीना, रजनी, केदार आदि शामिल रहे। सीटू ने प्रदेश सरकार से एचआरटीसी कर्मियों की मांगों को पूर्ण करने व क्षेत्रीय प्रबंधक का तबादला रद्द करने की मांग की है। सीटू ने ऐलान किया है कि अगर एचआरटीसी कर्मियों का आंदोलन आगे बढ़ता है तो सीटू भी प्रदेशव्यापी स्तर पर इसका समर्थन करेगा व इसमें शामिल होगा। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि प्रदेश सरकार गांव-गांव तक बेहतरीन बस सेवाएं देने वाले एचआरटीसी कर्मियों को प्रताड़ित करके उनके हौसलों को पस्त कर रही है। आज भी हिमाचल प्रदेश की विपरीत भौगोलिक परिस्थिति में हर व्यक्ति तक बस सेवा पहुंचाने का कार्य केवल एचआरटीसी कर्मी ही कर रहे हैं। इस विभाग की बेहतरी के लिए कार्य करने वाले अफसरों व कर्मियों को प्रताड़ित किया जा रहा है। क्षेत्रीय प्रबंधक का तबादला भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। कर्मियों का गुस्सा केवल क्षेत्रीय प्रबंधक के तबादले तक सीमित नहीं है बल्कि निगम व कर्मियों के प्रति सौतेले भेदभाव के खिलाफ भी है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश सरकार का रवैया एचआरटीसी कर्मियों के प्रति हमेशा भेदभावपूर्ण रहा है। इस निगम के लिए सरकार की सहायता लगातार कम हो रही है। इसी का नतीजा है कि निगम के पेंशनरों को कई-कई महीनों तक पेंशन नहीं मिलती है। कर्मियों के ओवरटाइम वेतन का भुगतान कई महीनों तक नहीं होता है। घाटे के रूट एचआरटीसी को देकर इसे जान बूझकर हाशिये पर धकेलने की कोशिश की जा रही है व पूर्ण निजीकरण की कोशिशें हो रही हैं। ऐसी परिस्थिति में भी एचआरटीसी कर्मी बेहतरीन सेवाएं देते रहे हैं परन्तु उन्हें ईनाम की जगह तबादले व प्रताड़ना मिल रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने एचआरटीसी को निगम के बजाए विभाग का दर्जा देने, पेंशनरों को समय पर पेंशन देने, कर्मियों को समय पर वेतन, ओवरटाइम व भत्तों का भुगतान करने, कच्चे कर्मियों को पक्का करने, बजट में बढ़ोतरी करने, रिक्त पदों को भरने, कर्मियों की प्रताड़ना बन्द करने, स्पेशल पे स्केल देने व कर्मियों के बस ठहरावों पर रहने की उचित व्यवस्था करने की मांग की है।
राज्य सरकार प्रदेश के कर्मचारियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और कर्मचारियों की उचित मांगों को समय-समय पर पूरा किया गया है। यह बात मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने बुधवार को ओकओवर में अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर के नेतृत्व में भेंट करने आए हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी संघ के प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करते हुए कही।मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होते हैं और प्रदेश सरकार की नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि कर्मचारी किसी भी सरकार के स्तंभ होते हैं जिनके कंधों पर सरकार की नीतियां कार्यान्वित करने का दायित्व होता है। जय राम ठाकुर ने कहा कि कर्मचारियों ने प्रदेश में कोविड-19 के प्रभावी प्रबन्धन में अहम भूमिका निभाई हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बावजूद, राज्य सरकार ने सुनिश्चित किया है कि कर्मचारियों को देय भत्ते समय-समय पर मिलते रहें। उन्होंने कोरोना महामारी के संकट के दौरान भी राज्य सरकार के साथ खड़े रहने के लिए प्रदेश के कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार शीघ्र ही कर्मचारियों के साथ बैठक आयोजित करेगी ताकि उन्हें सरकार के साथ अपने मुद्दे उठाने का अवसर मिल सके। उन्होंने संघ को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार कर्मचारियों के उचित मुद्दों का सौहार्दपूर्ण तरीके से निवारण करने का प्रयास करेगी, क्योंकि सरकार कर्मचारियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहती है। जय राम ठाकुर ने कर्मचारियों से निष्ठा और प्रतिबद्धता से कार्य करने का आग्रह किया ताकि हिमाचल प्रदेश को देश का आदर्श राज्य बनाया जा सके। उन्होंने संघ के सदस्यों को आश्वासन दिया कि कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित किया जाएगा क्योंकि वे सरकार का अहम हिस्सा हैं। हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर ने मुख्यमंत्री को आश्वासन दिया कि राज्य में सम्पूर्ण एवं संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों द्वारा उन्हें पूरा सहयोग प्रदान किया जाएगा। उन्होंने मुख्यमंत्री से जेसीसी की बैठक को बुलाने का भी आग्रह किया ताकि कर्मचारी अपने विभिन्न मुद्दे एवं मांगें सरकार के समक्ष रख सकें। संघ के महासचिव राजेश शर्मा ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। करसोग के विधायक हीरा लाल तथा संघ के अन्य नेता भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
हिमाचल प्रदेश की कैबिनेट बैठक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में 22 जुलाई को होगी। जिसमें शिक्षा विभाग के 4000 पदों को भरने के लिए वित्त विभाग से मंजूरी मिल सकती है। इन 4000 पदों में कला और शारीरिक अध्यापकों के 500- 500 पद भी शामिल है। जैसे ही वित्त विभाग से इन पदों को मंजूरी मिलती है तो उसके बाद यह फाइल शिक्षा विभाग के पास जाएगी और उसके तुरंत बाद शिक्षा विभाग इस पर आगे की कार्यवाही करेगा। बेरोजगार कला अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज का कहना है की हमें पूरी उम्मीद है की 22 जुलाई को होने वाली कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा कला और शारीरिक अध्यापकों के पदों को वित्त विभाग से मंजूरी मिलेगी । दूसरी तरफ बेरोजगार कला अध्यापक संघ के महासचिव प्रेमदीप कटोच का कहना है कि इस समय हिमाचल के कई स्कूल बिना कला अध्यापक से चल रहे हैं। सरकार का पढ़ रहे बच्चों के ऊपर कोई ध्यान नहीं जा रहा है। उनका कहना है की अगर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कैबिनेट मीटिंग में कला अध्यापक के पदों को मंजूरी दे देती है तो यह सभी बेरोजगार कला अध्यापक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का शिमला में जाकर फूल मालाओं से उनका स्वागत करेंगे। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रमेश कुमार का कहना है कि इसमें कुछ बेरोजगार कला अध्यापक ऐसे भी हैं जो 50 की आयु पार कर चुके हैं। इसलिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से विनती है कि कैबिनेट बैठक में कला अध्यापकों के पदों को मंजूरी दिलाई जाए ताकि इन सभी बेरोजगार कला अध्यापकों को नियुक्ति मिल सके।
चुनाव के आगोश में, जीत की खातिर नेता न जाने क्या क्या वादें कर देते है। उस वक्त न तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति का ख्याल रखा जाता है और न ही संसाधनों का। बस जनता को लुभाने के लिए वादों की बरसात होती है, ऐसे वादे जो सत्ता में आने के बाद भुला दिए जाते है l ऐसा ही एक वादा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अनुबंध कर्मचारियों से किया था। 2017 की एक चुनाव रैली में उन्होंने कहा था कि जैसे ही उनकी सरकार सत्ता में आएगी वे अनुबंध काल को 3 से घटा कर दो वर्ष कर देंगे। सत्ता में आने के बाद भाजपा तो ये वादा भूल गई पर हताश कर्मचारी अब भी इंतज़ार में है की आज नहीं तो कल सरकार अपना चुनावी वादा पूरा करेगी। कर्मचारियों से किया ये वादा भाजपा के 2017 के चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल था। सरकार को सत्ता में आए साढ़े तीन वर्ष का समय बीत चुका है, मुख्यमंत्री अपना चौथा बजट पेश कर चुके है पर आज तक अनुबंध काल को कम करने हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया। हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ पिछले तीन वर्षों से अनुबंध काल को दो वर्ष करने की मांग उठा रहा है, महासंघ लगातार संघर्ष काट रहा है, मगर हुआ कुछ नहीं। महासंघ के कर्मचारी कभी मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजते है तो कभी बाकि मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर काटते है, मगर सरकार की तरफ से बस कोरोना काल और आर्थिक संकट का हवाला देकर आश्वासन ही दिया जाता है। कर्मचारियों के इस मसले को लेकर फर्स्ट वर्डिक्ट ने बात की हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अरुण भारद्वाज से, पेश है बातचीत के कुछ अंश .... सवाल : अपने संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी हमें दें और इस संघ से कितने कर्मचारी जुड़े है ये भी स्पष्ट करें ? जवाब : हमारा संगठन यानी हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ जैसा कि नाम से स्पष्ट है अनुबंध आधार पर कार्यरत कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गठित किया गया एक संगठन है। इस संगठन में किसी विशेष विभाग के कर्मचारी ही शामिल नहीं हैं बल्कि हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों में अनुबंध आधार पर कार्यरत कर्मचारियों का ये संगठन है और यह संघ अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से मान्यता प्राप्त है। इस समय प्रदेश में लगभग 19000 कर्मचारी अनुबंध आधार पर विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं तथा पूरी ईमानदारी व कर्तव्य निष्ठा से अपनी सेवाएं दूर दराज के इलाकों में दे रहे हैं। ये सभी कर्मचारी हमारे इस संगठन से जुड़े है। सवाल : आपके संघ की मुख्य मांग क्या है ? जवाब : देखिये हमारे संघ की मुख्य मांग है अनुबंध अवधि को 2 वर्ष करवाना। हमारा मानना है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में अनुबंध प्रथा होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि यहां की भौगोलिक परिस्थितियां काफी अलग हैं। हमारे पड़ोसी राज्य पंजाब की अगर बात करें तो वहां पर इस तरह की अनुबंध प्रथा नहीं है। हिमाचल के कई जिलों में अति दुर्गम क्षेत्र भी हैं और वहां पर जो कर्मचारी अनुबंध आधार पर नियुक्त है उनके लिए अपने वेतन से तो अपने परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए अनुबंध प्रथा बंद होनी चाहिए लेकिन यदि कोरोना महामारी के चलते सरकार अनुबंध प्रथा को फिलहाल समाप्त नहीं कर सकती तो कम से कम अपने वादे के अनुसार अनुबंध अवधि को घटा कर 2 वर्ष तो करे। सवाल : कॉन्ट्रैक्ट पीरियड पहले 8 साल हुआ करता था अब ये घटकर तीन साल हो गया है। पहले के मुकाबले सहूलियत बेहतर है तो अब कॉन्ट्रैक्ट पीरियड दो साल करने की मांग क्यों ? जवाब : जी बिलकुल, पहले अनुबंध 8 साल का होता था फिर कांग्रेस सरकार के समय में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व.राजा वीरभद्र सिंह ने इसे घटा कर 3 वर्ष तक कर दिया था। सहूलियतों के साथ-साथ महंगाई भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और जो कर्मचारी अपने घरों से 300 से 500 किलोमीटर दूर अति दुर्गम क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं उन्हें अपने अनुबंध वेतन से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो रहा है। यदि ऐसा कोई कर्मचारी जो अपने घर से 500 किलोमीटर दूर कार्यरत है और महीने 2 महीने में भी यदि घर आता है तो आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि उसका आने जाने का बस किराया ही लगभग 2500 रुपए बन जाता है। और मान लीजिये यदि किसी कर्मचारी को लॉक डाउन जैसी परिस्थिति में किसी आपात स्थिति में प्राइवेट वाहन से घर आना पड़ा तो एक माह का वेतन तो किराए में ही चला जायेगा। इस स्थिति में परिवार के अन्य खर्चे कैसे चलेंगे। दिन रात सेवाएं दे रहे कर्मचारियों का ये शोषण नहीं तो और क्या है। सवाल : क्या सरकार आपकी सुनती है ? अब तक आपके संघर्ष को कितनी कामयाबी मिली ? जवाब : बात ये नहीं है कि सरकार हमारी सुनती है या नहीं। क्योंकि अगर नही सुनते तो मुख्यमंत्री हमें हर बार आश्वस्त नहीं करते। बजट सत्र से पहले हमारी राज्य कार्यकारिणी मुख्यमंत्री से उनके आवास ओक ओवर में मिली थी और उन्होंने उस वक्त साफ शब्दों में कहा था कि हमारी सरकार ने आपके लिए कुछ खास सोचा है और हम जल्द ही आपकी इस मांग को एक खास मौके पर पूरा करने वाले हैं। इसीलिए समस्त अनुबंध कर्मचारी देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर अनुबंध अवधि 2 वर्ष होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। सवाल : बीते विधानसभा सत्र के दौरान आपने सरकार पर ये आरोप लगाए थे कि इस सरकार को ये तक नहीं मालूम की हिमाचल में कितने अनुबंध कर्मचारी है। क्या अब ये गिनती पूरी हो पाई है ? जवाब : जी सरकार ने खुद यही जवाब दिया था कि वास्तविक आंकड़े उपलब्ध नहीं है और आगामी सत्र में इसकी पूरी जानकारी दी जाएगी तो आशा करते हैं कि आने वाले मानसून सत्र में स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। सवाल: आपका संगठन 15 अगस्त तक मांगें पूरी करने के लिए आवाज़ उठा रहा है, यदि आपकी मांगें पूरी नहीं होती है तो संगठन की आगामी रणनीति क्या होगी ? जवाब : जी, क्योंकि मुख्यमंत्री ने बजट सत्र से पहले वादा किया था कि सितंबर से पहले पहले आपकी मांग को पूरा कर दिया जायेगा। अब देखना है कि भाजपा सरकार अपना वादा निभाती है या फिर अपने वादों को सिर्फ चुनावी स्टंट ही बनाना चाहती है। क्योंकि यदि घोषणा मार्च 2022 में की जाती है तो किसी को भी इसका फायदा नहीं होगा। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि वर्तमान सरकार के सत्तासीन होने के बाद जनवरी 2018 से सितंबर 2018 तक जो भी नियुक्तियां हुई हैं उनका अनुबंध कार्यकाल गत मार्च 2021 में और आने वाले सितंबर 2021 में पूरा होने वाला है। वर्ष 2019 में नियुक्त होने वालों के भी 2 साल से अधिक हो चुके हैं और कोविड के चलते वर्ष 2020 में भर्तियां नही हो पाई हैं। इस प्रकार यदि इस मांग को अभी पूरा नहीं किया गया तो कर्मचारियों में सरकार के प्रति एक नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हो सकता है जिस से न तो सरकार को कोई फायदा होगा और न ही कर्मचारियों को और यदि सरकार हमारी बात नहीं मानती है तो तो ये मांग आंदोलन का रूप ले लेगी। मैं सरकार से ये ही कहूंगा कि सब्र अब टूटने लगा है, ख्याल रहे देर न हो जाएं। सवाल : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर ये धारणा बनी हुई है कि कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांग उठाने से ज्यादा अपनी राजनीति चमकाने में विश्वास रखते है, क्या आपके इरादे भी कुछ ऐसे ही है ? क्या आप आने वाले समय में किसी राजनैतिक दल में शामिल होंगे ? जवाब : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर सबकी अपनी अपनी सोच और धारणा हो सकती है लेकिन मेरे लिए सिर्फ कर्मचारियों की मांग सर्वोपरि है। इस संगठन की कमान संभालने से पहले ही मैंने कर्मचारियों के इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया था और इसमें हमारे साथ जुड़े हमारी राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों और सभी जिला कार्यकारिणी के सदस्यों ने मेरा पूरा सहयोग किया। इसके लिए मैं आपके माध्यम से सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं और आशा करता हूं कि सभी साथियों का सहयोग आगे भी मिलता रहेगा। बाकी रही बात राजनीति चमकाने की तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है और न ही मैं सक्रिय राजनीति में आना चाहता हूं। सवाल : आप इस संगठन के प्रदेश अध्यक्ष है मगर बीते कुछ समय से आपके और आपके संगठन के बीच तालमेल नज़र नहीं आ रहा इसके पीछे क्या कारण है ? क्या आपका संगठन आपके नेतृत्व से संतुष्ट नहीं ? जवाब : जी ऐसी कोई बात नहीं है, सभी साथी एकजुट हैं और सभी की एक ही मांग है और आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमारी यूनियन तो एक अल्पकालिक यूनियन है। आज मैं हूं कल कोई और होगा । जैसा कि आप जानते हैं कि मेरी नियुक्ति भी मेरे घर से लगभग 350 किलोमीटर दूर अति दुर्गम क्षेत्र में है और यहां पर नेटवर्क और बिजली की भी समस्या रहती है इसलिए कई बार साथियों से संपर्क नहीं हो पाता लेकिन इसका मतलब ये नही की तालमेल नहीं है। हमारी टीम एक है और हमेशा एक रहेगी। बाकी रही बात कर्मचारियों की , तो इस मांग के लिए मैंने और मेरी पूरी राज्य टीम तथा जिला टीमों ने ऐसा कोई मंच नहीं छोड़ा जिस के माध्यम से अपनी आवाज सरकार तक नहीं पहुंचाई। मुख्यमंत्री को ही लगभग 50 से ज्यादा ज्ञापन विभिन्न जिला टीमों द्वारा भेजे गए है। अभी हाल ही में जिला शिमला के जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में हमने मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया है। इसके साथ ही विभिन्न मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को भी ज्ञापन देकर इस मांग को पूरे जोरों शोर से उठाया है।
गत रविवार को कुनिहार में प्रशिक्षित बेरोजगार शारीरिक शिक्षा शिक्षक( पीईटी) संघ जिला सोलन की बैठक का आयोजन किया गयाl जिसमें संघ की विभिन्न मांगों पर विचार विमर्श किया गयाl इसके बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए संघ के प्रधान यतेंद्र पाल ने बताया कि वर्तमान हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 7 अक्टूबर 2018 को शारीरिक शिक्षा शिक्षकों के 2000 पदों को भरने की घोषणा की गई थी परंतु उसको आज तक भी अमल में नहीं लाया गया है l यह केवल मात्र घोषणा बनकर रह गई हैl वर्तमान प्रदेश सरकार शिक्षा विभाग के बाकी सभी वर्गों के पदों को समय-समय पर भर रही है, लेकिन शारीरिक शिक्षकों एवं कला अध्यापकों के एक पद भी भरने की घोषणा नहीं की गई हैl अभी पीछे कुछ महीने पहले प्रदेश सरकार ने पीईटी एवं कला अध्यापकों के 500 - 500 पदों को भरने की घोषणा की थी, जिसके बारे में अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है कि सरकार इसे भरेगी या नहीं भरेगी या केवल मात्र घोषणा बन कर रह जाएगीl प्रदेश सरकार के इस प्रकार के उपेक्षा पूर्ण रवैया से प्रशिक्षित बेरोजगार शारीरिक शिक्षक अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैंl जिला संघ का प्रतिनिधिमंडल एवं राज्य स्तर का प्रतिनिधिमंडल जिला स्तर एवं राज्य स्तर पर भी मुख्यमंत्री एवं सरकार के अन्य मंत्रियों के अलावा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों के समक्ष अपनी प्रमुख मांगों को समय-समय पर रखता है परंतु सरकार की तरफ से अभी तक मात्र आश्वासन ही मिले है। अभी तक इसे व्यवहारिक अमलीजामा नहीं पहनाया गया है l बेरोजगार प्रशिक्षित शारीरिक शिक्षक संघ सोलन के सभी सदस्य सरकार से पुरजोर मांग करते हैं कि सारे शिक्षकों के 2000 पद भरने की घोषणा की थी उसे व्यवहारिक अमलीजामा पहनाया जाए l आज सरकारी स्कूलों में शारीरिक शिक्षकों के हजारों पद खाली पड़े हुए हैं, ऐसे परिवेश में केंद्र सरकार एवं प्रधानमंत्री मोदी की खेलो भारत मुहिम एवं फिट इंडिया मुहिम को कैसे व्यवहारिक अमलीजामा पहनाया जाएगा l अब तो राज्य सरकार और केंद्र सरकार से वैसे भी खेलों को बढ़ावा देने के लिए और उम्मीद बन जाती है कि अभी हाल ही में केंद्र सरकार में अनुराग सिंह ठाकुर को युवा एवं खेल मंत्रालय दिया गया है, ऐसे उपयुक्त समय में प्रदेश स्तर पर शारीरिक शिक्षा एवं शिक्षकों की अवहेलना नहीं होनी चाहिए क्योंकि अभी तक का यही अनुभव बताता है की शारीरिक शिक्षा और शारीरिक शिक्षकों की उपेक्षा निरंतर प्रदेश स्तर पर होती आई है, साथ ही स्कूलों में विद्यार्थियों का बहुआयामी व्यक्तित्व का विकास बिना शारीरिक शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षकों के बिना संभव होगा, यह सभी बातें समझ से परे हैं l संघ सरकार से मांग करता है कि हिमाचल प्रदेश में भी शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद को अनिवार्य विषय के रूप में स्कूली पाठ्यक्रम में लागू किया जाए ताकि हिमाचल के प्रतिभावान खिलाड़ी भी दूसरे राज्यों के तरह खेलों में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सके l इसी के साथ संघ प्रदेश सरकार के साथ पुरजोर मांग रखती है कि सरकारी स्कूलों में योगा विषय को अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किया जाए और योगा अध्यापक एवं प्रशिक्षक के रूप में रोजगार शारीरिक शिक्षकों को प्राथमिकता दें l आज यह बहुत दुख का विषय है कि लाखों रुपए खर्च करने के बाद युवा बेरोजगार होकर घर में बैठे हुए हैं और अधिकांश युवा निर्धारित आयु 45 वर्ष को पार करके 50 की उम्र पार कर चुके हैं और आज भी वे वर्तमान प्रदेश सरकार से रोजगार की राह देख रहे हैं। साथ ही हजारों युवा विभिन्न विश्वविद्यालयों से शारीरिक शिक्षा में डिग्री एवं डिप्लोमा में शिक्षण एवं प्रशिक्षण ले रहे हैं, उन्हें भी इस क्षेत्र में अब अपना भविष्य अंधकार में दिख रहा है l बेरोजगार प्रशिक्षित शारीरिक शिक्षक संघ जिला सोलन सरकार से मांग करता है कि आगामी कैबिनेट की मीटिंग में प्रदेश सरकार शारीरिक शिक्षकों के अधिक से अधिक पद भरने की अधिसूचना जारी करें l जिससे शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों का भविष्य उज्जवल हो सके l इसी के साथ यदि सरकार ने इस विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया तो आने वाले उपचुनाव एवं अगले वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा l इस अवसर पर संघ के उप प्रधान धर्मपाल, महासचिव राजेंद्र कुमार, सह सचिव सतवीर सिंह, कोषाध्यक्ष देवेंद्र कुमार, सह कोषाध्यक्ष धनपाल, इंद्र सिंह, नरेश कुमार, हीरा दत शर्मा, रोशन लाल, दलजीत सिंह, राकेश कुमार, कृपाराम, सुधीर कुमार, पंकज, राजकुमार, सुरेंद्र सिंह, संतराज भी इस अवसर पर उपस्थित रहे l
हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की राज्य स्तरीय वर्चुअल बैठक रविवार को महासंघ के प्रान्तीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष इंदर सिंह ठाकुर कि अध्यक्षता में सम्पन हुई बैठक का संचालन महासंघ के प्रान्त महासचिव गोपाल झिलटा ने की। जिसमे प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रान्त अध्यक्ष एन आर ठाकुर कि 31जुलाई को हो रही सेवनिवृत्ति पर पूर्व प्रदेश महासंघ द्वारा सम्मानित करने का निर्णय लिया गया कोरोना नियमो का पालन करते हुए 25 जुलाई को ठीक 10 बजे बिलासपुर में प्रदेश अध्यक्ष एन आर ठाकुर की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय फेडरल हाउस होगा जिसमें महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष एन आर ठाकुर का प्रदेश महासंघ की ओर से कोविड नियमो का पालन कर सादगी से पर गरिमा पूर्ण सेवनिवृती सम्मान समारोह होगा, नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन व राज्य कार्यकारणी का विस्तार, सरकार के साथ सयुंक्त सलाहकार समिति की अब तक बैठक न होने पर सरकार के प्रति महासंघ की आगामी रणनीति पर चर्चा होगी। जिसमे प्रदेश कार्यकारणी पदाधिकारी सहित हर जिला से अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष महासचिव सहित प्रदेश स्तरीय विभागीय इकाइयों के अध्यक्ष महासचिव व प्रबुद्ध कर्मचारी नेता भाग लेंगे। आज की बैठक में प्रान्त वरिष्ठ उपाध्यक्ष व जिला बिलासपुर अध्यक्ष इंदर सिंह ठाकुर, प्रान्त महासचिव व जिला शिमला अध्यक्ष गोपाल झिलटा, प्रान्त उपाध्यक्ष व जिला अध्यक्ष हमीरपुर अरविंद मोदगिल, प्रान्त उपाध्यक्ष व जिला किन्नौर अध्यक्ष जगत सिंह नेगी, प्रान्त सचिव व जिला सोलन अध्यक्ष जे के ठाकुर, जिला कुल्लू अध्यक्ष आशु गोयल, जिला चम्बा अध्यक्ष रमेश राणा, जिला मंडी अध्यक्ष तेज राम, जिला कांगड़ा महासचिव अजमेर ठाकुर, मिलाप शर्मा, तिलक राज सूरज नेगी देश राज, पवन आदि के अलावा अन्य जिलों के प्रतिनिधियों ने बैठक मे भाग लिया।
हजारों की संख्या में बेरोजगार कला अध्यापकों को आज की हुई कैबिनेट मीटिंग से बहुत आस थी कि इस बार जयराम सरकार कला अध्यापकों के पदों को कैबिनेट मीटिंग में बहाल करेगी। लेकिन इस बार भी बेरोजगार कला अध्यापकों को जयराम सरकार की कैबिनेट मीटिंग में निराशा ही हाथ लगी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मार्च महीने में बेरोजगार कला अध्यापकों से एक वादा किया था कि आपके कला अध्यापकों के पदों को सरकार भर्ती करने जा रही है और बहुत ही जल्द आपके पदों को भरा जाएगा, मुख्यमंत्री ने बेरोजगार कला अध्यापकों से कहा था की अप्रैल महीने में दूसरी या तीसरी कैबिनेट मीटिंग में आपके पदों को बहाल कर देंगे। लेकिन इस बार की केबिनेट मीटिंग से बेरोजगार कला अध्यापकों को पता लग गया कि जयराम सरकार बेरोजगार कला अध्यापकों को सिर्फ झूठे आश्वासन ही देती है।
एचआरटीसी के पीस मिल कर्मचारियों के लिए बीओडी में कोई चर्चा नहीं की गयी। परिवहन मंत्री के द्वारा केवल यह कहा गया कि जब कभी लॉकडाउन लगेगा तो ₹275 हर दिन के अनुसार कर्मचारियों को दिया जायेगा। इसके अलावा कर्मचारियों को काम के अनुसार पैसे मिलते हैं वो पैसे मिलते रहेंगे। पीस मिल कर्मचारियों का भविष्य दाव पर लगा है। इनमे से अधिकतर की उम्र 45 साल से पार हो गई है। 410 पीस मिल कर्मचारी 2017 से पहले रेगुलर हो चुके हैं लेकिन वर्तमान सरकार बाकि कर्मचारियों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। प्रदेश के 28 डिपो में एचआरटीसी की बसों की मरम्मत करने वाले यह कर्मचारी बहुत ही दुविधा में है की वह कब कॉन्ट्रैक्ट बेसिस से रेगुलर होंगे। बीओडी में इनको एआस्थी की कुछ कर्मचारियों को जरूर अनुबंध में लिया जाएगा जो पांच-छह वर्षो से नीति चली आ रही है जिसमे आईटीआई होल्डर को 5 साल और जो विनायक है कि उन्हें 6 साल के बाद अनुबंध में लिया जाता है मगर इस बीओडी में भी इन कर्मचारियों को निराशा ही हाथ लगी है। वर्तमान सरकार से कर्मचारियों को उम्मीद थी लेकिन उन्हें एक बार फिर निराशा हाथ लगी।
करुणामूलक आश्रितों को उपचुनाव से पहले वन टाइम सेटलमेंट नहीं दिया, तो जयराम सरकार के खिलाफ मिशन डिलीट शुरू होगा। तीन उपचुनाव की दहलीज पर कड़ी जयराम सरकार को करुणामूलक संघ ने दो टूक सन्देश दिया है। संघ के इरादे साफ़ है, अब आश्वासन नहीं अब सरकार एक्शन ले, करुणामूलक आश्रितों की अनदेखी समाप्त करें, वरना खामियाजा भुगतने को तैयार रहे। करुणामूलक संघ का कहना है कि चुनाव के दौरान करुणामूलक मुद्दा उठाया जाता है फिर जैसे ही चुनाव हो जाते है ये मुद्दा फिर दबा दिया जाता है। करुणामूलक आश्रितों को चुनाव के समय सिर्फ वोट बैंक का जरिया समझा जाता है। पर अब आश्रितों की मांगों को अनदेखा न किया जाए वरना उपचुनाव व 2022 के चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। बता दें कि करुणामूलक संघ लम्बे समय से करुणामूलक नौकरी बहाली के लिए संघर्ष कर रहा है। न जाने कितने धरने, कितने प्रदर्शन, कितने मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर इन लोगों ने काटे, यहां तक की आमरण अनशन भी किया मगर हाथ आया सिर्फ और सिर्फ आश्वासन। इन्हें कांग्रेस ने भी ठगा और भाजपा ने भी, जब सत्ता में होते है तो जख्म देते है, विपक्ष में आते है तो मरहम लगाते है। ऐसे में ये लोग जाएं कहां ? करूणामूलक संघ का मानना है कि राज्य सरकार तकरीबन 15 साल से करुणामूलक आश्रितों को अनदेखा करती आ रही है। प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार का कहना है कि करुणामूलक आश्रित लम्बे समय से नौकरी का इंतज़ार कर रहे है, दिन प्रतिदिन आश्रितों की उम्र निकलने के कारण वे इस श्रेणी से बाहर होते जा रहे है, लेकिन सरकार द्वारा उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। विभिन्न विभागों द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाकर स्क्रीनिंग तो हो गई है, पर अभी तक सरकार द्वारा नियुक्तियां नहीं दी जा रही है। जब भी करुणामूलक नौकरी बहाली का मुद्दा उठता है, तो थोड़ी बहुत हलचल होने के बाद मुद्दे को दबा दिया जाता है। अजय कुमार का कहना है की कोरोना महामारी के इस दौर में इन परिवारों को बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक स्थिति डगमगाने के कारण इन परिवारों को महामारी के इस दौर में खाने पीने तक के लाले पड़ गए है। साढ़े चार हज़ार लोग नहीं, साढ़े चार हज़ार परिवार अब करुणामूलक संघ आर- पार की लड़ाई के मूड में है। संघ का कहना है कि ये मसला सिर्फ चार हज़ार लोगों का नहीं है बल्कि चार हज़ार परिवारों का है। अब जो भी राजनीतिक दल करुणामूलक नौकरियां बहाल करने के पक्ष में होगा, 2022 के चुनाव में सत्ता भी वहीं हासिल करेगा। इनकी मांग है कि करुणामूलक आश्रितों को उपचुनाव से पहले अथवा आगामी कैबिनेट में वन टाइम सेटलमेंट देकर एक साथ नियुक्ति दी जाए, वरना करुणामूलक परिवार मिशन डिलीट में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। ये चाहता है करूणामूलक संघ - समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्ति दी जाएं। - करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। - योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणियों में नौकरी दी जाएं। - 5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्ति दे सके। - महिला आवेदकों की शादी के बाद उन्हें पॉलिसी से बाहर न किया जाए। - जिन आवेदकों की आयु निकल गई है उन्हें वन टाइम सेटलमेंट दिया जाए। संशोधित नीति जारी की, मगर नौकरियां नहीं दी ऐसा नहीं है कि हिमाचल सरकार ने कभी करुणामूलक नौकरियों पर गौर ही न किया हो। साल 2019 में हिमाचल सरकार ने करुणामूलक नौकरियों बारे एक संशोधित नीति जारी की थी, जिसके तहत आय सीमा में बढ़ोतरी और पात्रता के लिए आयु सीमा बढ़ाई गई थी। परन्तु ऐसी नीति का क्या लाभ जिसमें नौकरियां देने का वादा तो हो मगर नौकरियां मिले ही ना।
18 जून 2021,पंजाब सरकार ने छठे पे-कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान किया। अब क्यूंकि हिमाचल का अपना वेतन आयोग नहीं है तो हिमाचल सरकार सरकारी कर्मचारियों को वित्तीय लाभ देने के मामले में पंजाब का अनुसरण करती है। ऐसे में हिमाचल के पौने तीन लाख सरकारी कर्मचारियों की धुकधुकी बढ़ गई है। हिमाचल प्रदेश में भी उम्मीद है कि जल्द ही पे-कमीशन की सिफारिशें लागू होंगी। सीएम जयराम ठाकुर ने बजट भाषण में भी पे-कमीशन लागू करने की घोषणा की थी और हाल ही में वे इस बारे में बयान भी दे चुके है। हिमाचल वित्त विभाग चार माह से नया वेतनमान देने की तैयारी कर रहा है। प्रदेश सरकार ने नए वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए 10 हजार करोड़ का प्रबंध पहले ही कर लिया था। हिमाचल प्रदेश में छठे वेतन आयोग के लागू होने से पौने तीन लाख कर्मियों को बढ़े वेतन का लाभ मिलेगा, उम्मीद तो कुछ ऐसे ही है। पर इस छठे वेतन आयोग पर कोरोना का साया पूरी तरह से नजर आ रहा है। सरकारी कर्मचारी जिस तरह से छठे वेतनमान से वित्तीय लाभ प्राप्त होने की गणना कर रहे थे, शायद उस तरह के वित्तीय लाभ नहीं मिलने वाले। हिमाचल का कर्मचारी इस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से पूर्ण संतुष्ट नज़र नहीं आ रहा। कर्मचारियों का मानना है कि इस छठे वेतन आयोग की सिफारिशें किसी छलावे से कम नहीं है। जो दिख रहा है वैसा कुछ मिलने नहीं वाला। कर्मचारी लगातार सरकार से ये मांग कर रहे है की इस वेतन आयोग को पंजाब की तर्ज पर ज्यों का त्यों लागू न किया जाए बल्कि यहां के कर्मचारियों के हिसाब से इसमें कुछ बदलाव हो। क्या चाहते है हिमाचल के विभिन्न कर्मचारी संगठन, इसे लेकर फर्स्ट वर्डिक्ट ने विशेष बातचीत की.... पंजाब की तर्ज पर लागू हुआ तो होगा शिक्षकों को नुक्सान : चौहान हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वीरेंदर चौहान का कहना है कि पंजाब सरकार ने जो छठा वेतन आयोग लागू किया है वो कर्मचारियों के अधिकारों का हनन है। यदि पंजाब की ओर से जारी सिफारिशों को ध्यान में रखा जाता है तो प्रदेश के शिक्षकों को नए वेतन आयोग से हर माह चार से पांच हजार का मासिक नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके पीछे कारण यह है कि 2011 में वेतनमान संशोधित होने के साथ-साथ पुर्न संशोधन हुआ था, जिसके चलते शिक्षक वर्ग को ग्रेड-पे संशोधित होने से अधिकतम पांच हजार रुपये का हर माह अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुआ था। 2011 में शिक्षक वर्ग के अलावा लिपिक और कई श्रेणियों को रिविजन के तहत अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुए थे। इस बार कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग में दो विकल्प दिए गए हैं । एक यदि आप बढे हुए ग्रेड पे से पहले का विकल्प लेते हैं तो वेतन मल्टीप्लायर 2.59 लगेगा। यानि आपका नया वेतन अभी के वेतन माइनस ग्रेड पे वेतन से 2.59 फीसदी ज्यादा होगा। और यदि 2011 के बढ़े हुए ग्रेड पे का विकल्प लेते हैं तो मल्टीप्लायर 2.25 लगेगा। इन विकल्पों से कर्मचारियों व शिक्षकों को जिनका 2011 में ग्रेड पे रिवाइज हुआ है, बहुत बड़ा झटका लगने वाला है। इसके साथ -साथ पंजाब के पे कमिशन में और भी बहुत सारी कटौती हैं जो पहले नहीं देखी गई थी। वीरेंद्र चौहान का कहना है कि हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ पिछले 5 सालों से लगातार शिक्षकों व कर्मचारियों के साथ 2016 की पे कमीशन से होने वाले नुकसान के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अपनी चिंता व्यक्त कर चुका है, लेकिन तब कर्मचारी व शिक्षक इन बातों को हल्के में लेकर टाल रहे थे लेकिन अब जब हिमाचल में जल्द ये वेतन आयोग लागू होने वाला है तो सभी शिक्षक परेशान है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की सरकार की ये मांग है कि सरकार प्रदेश के कर्मचारियों के हित में ही फैसला ले। एनपीएस कर्मचारियों के लिए घाव पर नमक छिड़कने जैसा : प्रदीप इस छठे वेतन आयोग के तहत पुरानी पेंशन योजना के तहत वर्ष 2016 से 2020 तक सेवानिवृत हुए सरकारी कर्मचारियों को ग्रेच्युटी के केवल 10 लाख रुपये मिलेंगे, जबकि 1 जुलाई 2021 के बाद सेवानिवृत होने वाले कर्मचारियों को 20 लाख रुपए मिलेंगे। ग्रेच्युटी के मामले में पुरानी पेंशन वाले सेवानिवृत कर्मचारियों को 10 लाख रुपये का नुकसान होगा। यानि जो कर्मचारी जून में सेवानिवृत होता है उसे DCRG के 10 लाख मिलेंगे जबकि जुलाई में सेवानिवृत होने वाले कर्मचारी को यही राशि दोगुनी मिलेगी। इस पर हिमाचल प्रदेश नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है की इस तरह का निर्णय खासकर नई पेंशन में आने वाले कर्मचारियों के लिए घाव पर नमक छिड़कने की तरह है। इस तरह का निर्णय कर्मचारियों के साथ एक बड़ा धोखा है जिसका नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ विरोध करता है और सरकार से आग्रह करता है कि यह लाभ सभी कर्मचारियों के साथ ऐसा छलावा न करे। सचिवालय पे को भत्ते में बदलना मंजूर नहीं : संजीव शर्मा सचिवालय से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को भी छठे वेतन आयोग से नुकसान होगा। छठे वेतन आयोग पर सचिवालय कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष संजीव शर्मा ने बताया कि पंजाब सरकार ने सचिवालय पे को वेतन का हिस्सा न मान कर भत्ते में बदल दिया गया है। सचिवालय के अलग-अलग श्रेणियों के कर्मचारियों को 600 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक प्रति माह सचिवालय पे दी जाती है। पेंशन में भी इसका लाभ मिलता था, मगर जब भत्ते में बदल जाएगा तो यह भत्ता सचिवालय से सेवानिवृत्त होने वाले पेंशनरों को नहीं मिलेगा। संजीव शर्मा बताते है की इस सचिवालय पे पर 3800 रुपए के करीब DA भी कर्मचारियों को मिलता था। अब क्यों कि इसे अलाउंस बुला दिया गया है तो इसपर DA नहीं मिलेगा और एक कर्मचारी को एक महीने में 3800 रूपए का नुक्सान झेलना पड़ेगा। पंजाब में भी इस मुद्दे को लेकर संघर्ष हो रहा है और निश्चित तौर पर अगर सरकार यहां इसे लागू करती है तो सचिवालय के कर्मचारी यहां भी सडकों पर उतरने को मजबूर होंगे। ये राहत ऊंट के मुँह में जीरे सामान : राजेश शर्मा उपायुक्त कार्यालय कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेश शर्मा का कहना है कि 5 साल के लम्बे इंतज़ार बाद मिली ये राहत ऊंट के मुँह में जीरे सामान है। पंजाब पे कमिशन हासिल करने के लिए हिमाचल के कर्मचारियों ने कड़ा संघर्ष किया था क्यों कि उस समय पंजाब के वेतन आयोग को देश का सबसे बेहतर वेतन आयोग मन जाता था। पिछले कुछ समय से जिस तरह की रिपोर्ट पंजाब वेतन आयोग से आ रही है वो निंदनीय है। पांचवा वेतन आयोग साढ़े तीन साल लेट था और छठा वेतन आयोग तो साढ़े पांच साल लेट है। दूसरे राज्य के कर्मचारियों को वित्तीय लाभ देने के लिए केंद्र को फॉलो किया गया है। इस बार सैलरी को 2.59 दर से बढ़ाने की बात की है लेकिन वास्तविकता कुछ और है। इस बार कर्मचारियों की अलग -अलग केटेगरी बनाई गई है और इन केटेगरी के हिसाब से ही मल्टीप्लायर लगेगा। A केटेगरी की सैलरी 2 .67 फीसदी की दर से बढ़ेगी, B केटेगरी की 2 .64 फीसदी की दर से और C और D केटेगरी की 2 .59 की दर से। लोगों को लगता है की कर्मचारियों का वेतन 3 से 4 गुना हो गया, ऐसा नहीं है। वेतन बढ़ने के साथ साथ कई भत्ते भी खत्म कर दिए गए है। हिमाचल प्रदेश में अब भी इनिशियल स्केल लागू नहीं है, यानि हिमाचल का कर्मचारी अब भी पंजाब की तुलना में काफी कम वेतन लेता है। दूसरे राज्यों में बहुत से भत्ते भी मिलते है लेकिन हिमाचल में ये भी बहुत कम है। साफ़ तौर पर इस वेतन आयोग की सिफारिशों से कर्मचारियों को ज्यादा लाभ नहीं होगा। उम्मीद है हिमाचल सरकार कर्मचारियों का ध्यान रखेगी। पेन डाउन स्ट्राइक करेंगे डॉक्टर, प्रैक्टिसिंग अलाउंस में कटौती पर रोष हिमाचल के चिकित्सक भी इस वेतन आयोग की सिफारिशों से खुश नहीं है। इस वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत चिकित्सकों का प्रैक्टिसिंग अलाउंस 25 से 20 फीसदी कर उसे बेसिक वेतन से अलग किया गया है। इन सिफारिशों का प्रदेश में भी विरोध होने लगा है। इन सिफारिशों के विरोध में चिकित्सक संघ पेन डाउन स्ट्राइक पर जाने की तैयारी भी कर रहा है। हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ की वर्चुअल बैठक में इस बारे सहमति भी बन गई है। यह बैठक प्रदेश उपाध्यक्ष डा. चांदनी राठौर की अध्यक्षता में हुई। इसमें सभी जिला के कार्यकारिणी के सदस्यों ने हिस्सा लिया था। पूरे प्रदेश के चिकित्सकों ने एक मत से विरोध करते हुए फैसला किया है कि हिमाचल प्रदेश चिकित्सक संघ पंजाब मेडिकल ऑफिसर्ज संघों के साथ मिलकर इसके प्रति अपना विरोध जताता रहेगा, जब तक कि इन सिफारिशों को ठीक नहीं किया गया। प्रदेश चिकित्सक संघ ने एकमत कहा कि कोरोना महामारी के समय जब चिकित्सक जान हथेली पर लेकर लड़ रहे हैं, तो इस तरह की सिफारिशें बिलकुल ही बेमानी हैं। हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ ने फैसला किया कि जैसे पंजाब मेडिकल ऑफिसर संघ 25 तारीख से दो घंटे की पेन डाउन हड़ताल शुरू कर रहे हैं, ठीक उसी तर्ज पर हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर संघ भी पेन डाउन स्ट्राइक और गेट मीटिंग आयोजित करेगा। संघ के महासचिव डा. पुष्पेंद्र वर्मा ने बताया कि इसके अलावा डेंटल मेडिकल ऑफिसर संघ, आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर संघ, वेटनरी ऑफिसर संघ के साथ भी इस बारे में बात चल रही है और जल्द ही मिलकर सब एक मजबूत योजना बनाएंगे और इन सिफारिशों का पुरजोर विरोध दर्ज करवाया जाएगा। संघ की मांग है कि एनपीए को 25 प्रतिशत से 35 फीसदी किया जाए।
प्रदेश में सरकारी स्कूलों में प्री नर्सरी टीचर भर्ती को लेकर ट्रेंड नर्सरी टीचर संघ में भारी रोष है। विभाग और सरकार को लगभग दो वर्ष बीत गए है, लेकिन अभी तक न तो विभाग की तरफ से कोई भर्ती और पदोन्नति नियम बनाये गए और न ही इससे संबधित कोई सटीक जानकारी पात्र व्यक्तियों तक पहुँचाई गई है। ये कहना है ट्रेंड नर्सरी टीचर संघ की प्रांत महासचिव कल्पना शर्मा का। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार कभी केंद्र सरकार का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेती है तो कभी उन्हें तसली देकर खली हाथ लौटा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि आज से पहले इस तरह की स्थिति किसी भी पद के लिए नहीं बनी थी, जो प्रदेश में आज प्री नर्सरी टीचर के बारे में बनी हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा निति को लेकर भी जिस तरह से केंद्र सरकार के दावे है उसको लेकर भी आशय बरकरार है। क्यूंकि सरकार अभी तक यह ही तय नहीं कर पाई है कि इन पदों में किस वर्ग की भर्ती की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार की इस फेरबदल की राजनीती से किसी का भला नहीं होगा। सरकार केवल मामले को टालने के लिए झूठे वायदे कर रही है। उन्होंने कहा कि प्री नर्सरी टीचर भर्ती के लिए प्रशिक्षित नर्सरी अध्यापिका संघ ही सभी तकीनीकी और सभी दस्तावेज़ों के साथ इन पदों में भर्ती के लिए सक्षम है। उन्होने सरकार से मांग की है कि दुसरे पदों की तरह इसे स्थायी मान कर इन पदों की स्थायी भर्ती का सरकार जल्द फैसला ले और दो वर्षों से एनरोल हुए नर्सरी के विद्यार्थियोंं को पढ़ाने का जिम्मा प्रशिक्षित नर्सरी टीचर्स को सौंपे। उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य पंजाब में हर वर्ष पहले से ही इन पदों को स्थायी तौर पर भरा जाता रहा है, उसी तर्ज को लेकर भी सरकार निर्णय ले सकती है। प्रदेश सरकार अगर खुद कोई निर्णय लेने में सक्षम नहीं है तो प्रधानमंत्री स्वयं इस मामले में हस्तक्षेप करके राज्य सरकार को सुझाव दें।
26 जून को NMOPS के आवाहन पर पूरे भारतवर्ष में पुरानी पेंशन बहाली के लिए ट्विटर अभियान चलाया जाएगा। इस कड़ी में नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के राज्य अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर, महासचिव भरत शर्मा, महिला विंग अध्यक्षा सुनेश शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सौरभ वैद, कोषाध्यक्ष शशि पाल शर्मा संविधान पर्यवेक्षक श्यामलाल गौतम आईटी सेल प्रभारी शैल चौहान मीडिया प्रभारी पंकज शर्मा ने सामूहिक बयान में कहा कि में हिमाचल प्रदेश में भी यह टि्वटर अभियान नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के बैनर तले चलाया जाएगाl राष्ट्रीय स्तर पर संगठन द्वारा 10 लाख से अधिक ट्वीट करने का लक्ष्य रखा गया है तथा प्रदेश में दो लाख से अधिक ट्वीट का लक्ष्य रखा गया हैl उन्होंने कहा कि कोविड-19 के खतरे को देखते हुए फिलहाल संगठन द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी मांग सरकार तक पहुंचाने का निर्णय लिया गया हैl इसी कड़ी में ही यह ट्विटर अभियान 26 जून को चलाया जाएगा ताकि सोई हुई सरकार की नींद खुल सकेl उन्होंने कहा कि इस दिन देश के प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता राहुल गांधी, प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को भी यह ट्विट टैग किए जाएंगे ताकि कर्मचारियों की बात नेताओं तक पहुंच सके। प्रदीप ठाकुर ने कहा कि कर्मचारी लगातार अपनी पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रयासरत हैं कोविड-19 में सोशल मीडिया को कर्मचारियों नेअपनी पुरानी पेंशन बहाली की मांग को प्रभावी रूप से रखने के लिए एक माध्यम बनाया है l उन्होंने कहा कि संगठन का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ पुरानी पेंशन बहाली है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संगठन कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता l प्रदेश के 1 लाख से भी अधिक पेंशन विहीन कर्मचारी संगठन के साथ जुड़े हैं जो सिर्फ और सिर्फ पुरानी पेंशन बहाली चाहते हैं। सरकार को जल्द से जल्द कर्मचारियों की इस ज्वलंत मांग को पूरा कर देना चाहिए अन्यथा भविष्य में सभी धरने प्रदर्शनों के लिए सरकार स्वयं जिम्मेदार होगी। उन्होंने कहा कि संगठन द्वारा विभिन्न स्तर पर वर्चुअल मीटिंग की जा रही है जिन मीटिंग के माध्यम से संगठन को मजबूत करके जल्द बड़े आंदोलन की तैयारी की जा रही है l अगर सरकार उनकी मांग नहीं मानती तो प्रदेश में कर्मचारियों के पास आंदोलन के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचता l
छात्र अभिभावक मंच ने शिमला के एक निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा टयूशन फीस में की गई पचास प्रतिशत फीस बढ़ोतरी व अभिभावकों द्वारा बढ़ी हुई मनमानी फीस जमा न करने पर बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं से बाहर करने के घटनाक्रम की कड़ी निंदा की है। मंच ने शिक्षा निदेशक व उपायुक्त शिमला से हस्तक्षेप की मांग की है ताकि ऑनलाइन कक्षाओं से बाहर किये गए बच्चों को न्याय मिले व उनकी मानसिक प्रताड़ना बन्द हो। मंच ने ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चों को बाहर करने के खिलाफ़ निजी स्कूल प्रबंधन के खिलाफ शिक्षा निदेशक,अतिरिक्त शिक्षा निदेशक व उपायुक्त शिमला को ज्ञापन प्रेषित किया व स्कूल प्रबंधन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा, भुवनेश्वर सिंह, योगेश वर्मा, कमलेश वर्मा, हेमंत शर्मा, राजकुमार व अमित राठौड़ ने कहा है कि निजी स्कूल की मनमानी फीसों व पचास प्रतिशत टयूशन फीस बढ़ोतरी के खिलाफ मंच के प्रतिनिधि 28 अप्रैल व 18 जून को शिक्षा निदेशक से मिले थे व इस संदर्भ में ज्ञापन भी सौंपे थे, लेकिन स्कूल पर कोई भी कार्रवाई न होने से स्कूल प्रबंधन के हौंसले बुलंद होते चले गए व उन्होंने मनमानी फीस वसूलने के साथ ही बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं से बाहर करना शुरू कर दिया। स्कूल ने दर्जनों छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं से बाहर कर दिया है। इस से छात्र व अभिभावक भारी तनाव में हैं। उन्होंने उपायुक्त शिमला की भूमिका पर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा है कि स्कूलों की तानाशाही व मनमानी फीसों पर रोक लगाने के लिए प्रदेश सरकार ने शिकायत निवारण कमेटियों के माध्यम से उपायुक्तों को शक्तियां दी हैं। उपायुक्त कार्यालय के बेहद नजदीक स्थित निजी स्कूल की तानाशाही पर उपायुक्त शिमला खामोश हैं। वह इस स्कूल प्रबंधन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। वह बताएं कि वह अपनी शक्तियों का प्रयोग करके स्कूल प्रबंधन की तानाशाही पर रोक क्यों नहीं लगा रहे हैं। वह क्यों चुप हैं। क्या वह अभिभावकों व छात्रों की मानसिक प्रताड़ना से परेशान होकर किसी अनहोनी होने पर ही जागेंगे। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि शिमला के उपायुक्त निजी स्कूलों की मनमानी को रोकने में पूर्णतः विफल रहे हैं। इस से जिला प्रशासन की स्कूल प्रबंधन से मिलीभगत प्रतीत हो रही है।
काफी समय से बेरोजगार कला अध्यापकों के पदों को भरने का मामला वित्त विभाग के पास लटका हुआ था। शिक्षा विभाग ने 500 कला अध्यापकों को भरने की एक फाइल बनाकर वित्त विभाग के पास भेजी थी लेकिन वित्त विभाग ने उस फाइल पर कुछ कमियां निकाल कर दोबारा से शिक्षा विभाग के पास भेज दिया था। उसके बाद शिक्षा विभाग ने उन कमियों को पूरा करके फिर से वह फाइल वित्त विभाग के पास भेज दी थी। उसके बाद यह मामला वित्त विभाग के पास ही लटका रहा। वित्त विभाग मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास ही है। अभी हाल ही में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने अपने ब्यान में कहा कि जो शिक्षा विभाग में 4000 पदों को भरा जाना है उसमें कला अध्यापक के पद भी शामिल है और उन्हें जल्द ही भरा जाएगा। बेरोजगार कला अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज का कहना है कि भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में कला अध्यापक का एक भी पद नहीं भरा है। वहीं महासचिव प्रेमदीप कटोच का कहना है कि जब भाजपा सरकार सता में आई थी, तब से लेकर आज तक हमने कई बार भाजपा सरकार के सभी विधायकों, मंत्रियों, मुख्यमंत्री व शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के पास अपने मांग पत्र सौंपे लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। सरकार हर साल बच्चों को बिना कला अध्यापक से ही कला का अधूरा ज्ञान दिए जा रही है क्योंकि हिमाचल के अधिकतर सरकारी स्कूलों में कला अध्यापक के पद कई सालों से खाली चल रहे है। लेकिन जो अभी शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा कि जो शिक्षा विभाग में 4000 पद भरने की प्रक्रिया शुरू होगी उसमें कला अध्यापक के पद भी शामिल है उसका बेरोजगार कला अध्यापक संघ स्वागत करता है। सभी बेरोजगार कला अध्यापकों को बस यही आस है कि अब वित्त विभाग कितनी तेजी के साथ यह काम पूरा करती है क्योंकि यह वित्त विभाग का सारा काम मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की देख-रेख में ही होता है।
करुणामूलक आश्रितों को उपचुनाव से पहले वन टाइम सेटलमेंट दे सरकार, वरना होगा मिशन डिलीट- करुणामूलक संघ
करुणामूलक संघ ने प्रदेश सरकार के प्रति अपना रोष प्रकट किया है। संघ का मानना है कि राज्य सरकार तकरीबन 15 साल से करुणामूलक आश्रितों की अनदेखा करती आ रही है। प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार का कहना है कि करुणामूलक आश्रित लम्बे समय से नौकरी का इंतज़ार कर रहे है, दिन प्रतिदिन आश्रितों की उम्र निकलने के कारण आश्रित बाहर होते जा रहे है, लेकिन सरकार द्वारा उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। विभिन्न विभागों द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाकर स्क्रीनिंग तो हो गई है पर अभी तक सरकार द्वारा नियुतियाँ नही दी जा रही है। जब भी करुणामूलक नौकरी बहाली का मुद्दा उठता है, तो थोडी बहुत हलचल होने के बाद मुद्दे को दबा दिया जाता है। कोविड-19 महामारी के इस दौर में इन परिवारों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक स्थिति डगमगाने के कारण इन परिवारों को महामारी के इस दौर में खाने पीने तक के लाले पड़ गए है। बता दें कि करुणामूलक संघ लम्बे समय से करुणामूलक नौकरी बहाली के लिए संघर्ष कर रहा है। करुणामूलक संघ का कहना है कि चुनावों के दौरान करुणामूलक मुद्दा उठाया जाता है व जैसे ही चुनाव खत्म हो जाते है ये मुद्दा फिर दबा दिया जाता है। करुणामूलक आश्रितों को चुनाव के समय सिर्फ वोट बैंक का जरिया समझा जाता है। करुणामूलक संघ का कहना है कि आश्रितों की मांगों को अनदेखा न किया जाए वर्ना उपचुनावों व 2022 के चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। करुणामूलक संघ ने सरकार को दो टूक शब्दों में कह दिया है कि करुणामूलक आश्रित जो पॉलिसी में आ रहे है उन्हे उपचुनाव से पहले अथवा आगामी कैबिनेट में वन टाइम सेटलमेंट देकर एक साथ नियुक्तियाँ दी जाए, वर्ना करुणामूलक परिवार मिशन डिलीट में कोई कसर नही छोड़ेंगे।
नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ ने एनपीएस कर्मचारियों की सुरक्षा के मद्देनजर एक अनोखी पहल की है। इस आशय की जानकारी देते हुए कांगड़ा जिला प्रधान राजिन्दर मन्हास ने बताया कि कर्मचारी महासंघ पिछले लंबे समय से प्रदेश सरकार से केंद्र की 2009 की अधिसूचना को हिमाचल में लागू करने की मांग करता आया है। जिसके तहत सेवा के दौरान एनपीएस कर्मचारी की मौत पर परिवार को पेंशन का प्रावधान है। परन्तु जब सरकार ने पिछले तीन साल से इस मांग को नजरअंदाज किया तो इससे मायूस होकर महासंघ ने कोरोना के खतरे को देखते हुए अपने एक लाख कर्मचारियों की सुरक्षा का जिम्मा उठाया है। जिसके तहत अगस्त माह में संगठन ने 5000 कर्मचारियों को एल आई सी के माध्यम से 5 लाख का ग्रुप इन्सुरेंस दिलवाया जो सामान्य मृत्य पर भी कवरेज प्रदान करता है। जिला प्रधान ने बताया कि इस योजना के तहत अभी तक 10 परिवारों को 5 -5 लाख की राशि इसी योजना के तहत मिल चुकी है। जिला प्रधान ने बताया कि इन 10 कर्मचारियों में 4 की मौत कोरोना की वजह से हुई थी। कांगड़ा जिला प्रधान राजिन्दर मन्हास ने बताया कि महासंघ के राज्य अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर और समस्त राज्य कार्यकारणी ने अब यह मन बना लिया है कि हिमाचल के एक लाख कर्मचारियों को इस ग्रुप इन्सुरेंस प्लान से जोड़ा जाएगा। इसके लिए हिमाचल के 12 जिलों में इसकी शुरुआत हो चुकी है। जिसे लेकर पिछले कल मंडी में जिला प्रधान लेखराज , चम्बा में सुनील जरयाल, सिरमौर में जिला प्रधान सुरिंदर पुंडीर और कांगड़ा में राजिन्दर मन्हास की अगुवाई में ओपन गूगल मीट हुई। इन बैठकों में राज्य अध्यक्ष के साथ राज्य महासचिव भरत शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सौरभ वैद्य, राज्य मीडिया प्रभारी पंकज शर्मा के साथ बिलासपुर जिला प्रधान राजिन्दर वर्मन , सोलन जिला प्रधान अशोक ठाकुर भी उपस्थित रहे,अन्य जिलों में भी ऐसी बैठके रखी जा रही हैं। संगठन राज्य महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि सरकार की इस अनदेखी से हिमाचल के एक लाख कर्मचारी बहुत मायूस हैं। कई कर्मचारियों का कोरोना काल में देहान्त हुआ और उन कर्मचारियों के परिवारों को भी कर्मचारी का जमा एनपीएस का पैसा भी अब 20% नगद दिया जा रहा है। और 80% उसी के पैसे की नाम मात्र पेंशन दी जा रही है। जबकि केंद्र अपने कर्मचारियों की मौत पर परिवार को फैमिली पेंशन दे रहा है। तो हिमाचल में यह अलग कानून क्यूँ फॉलो किया जा रहा है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि तत्काल आगामी बैठक में 2009 की अधिसूचना को लागू किया जाए नही तो आगामी विधानसभा चुनाव में जैसे संगठन ने ग्रुप इन्सुरेंस का विकल्प खोजा है उसी प्रकार कर्मचारी और विकल्प ना खोज लें।
करुणामूलक संघ के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से एक बार फिर गुहार लगाई है कि करुणामूलक नौकरियां आगामी कैबिनेट में बहाल की जाये क्योंकि आश्रित परिवार 15 सालों से इंतज़ार कर रहे है, दिन प्रतिदिन उम्रें ज्यादा होने के कारण आश्रित बाहर हो जा रहे है, आश्रितों ने तो एक अपने परिवार का कमाने वाला सदस्य खोया है उपर से कोरोना जैसी महामारी के समय करुणामूलक आश्रितों का परिवार दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर है यहाँ तक की इन परिवारों को खाने पीने तक के लाले पड़ गए है। करुणामूलक संघ लम्बे समय से करुणामूलक नौकरी बहाली के लिए संघर्षरत है और हिमाचल सरकार इन परिवारों के लिए कुछ भी नहीं कर रही है हिमाचल प्रदेश में लगभग 4500 मामले अनेक विभागों, बोर्डों व निगमों में लंबित पड़े हुए हैं और इन परिवारों को रोजी रोटी परिवार के लालन पालन के लाले पड़ गए हैं उन्होंने कहा कि वे कई बार स्थानीय विधायकों मंत्रियों यहां तक की हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से कई बार मिले हैं परंतु उन्होंने अभी तक आश्वासन के सिवा कुछ भी नही दिया है। प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जी से आग्रह किया है कि आगामी कैबिनेट बैठक में करुणामूलक संघ कि इन माँगो को पुरा करने के लिए आदेश दें। इनमे मुख्य मांगे समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के केस को जो 7/03/2019 की पॉलिसी मे आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तेहत सभी को एक साथ नियुक्तियाँ दी जाएं। करुणामूलक आधार पर नौकरियों वाली पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमे 62500 रूपए एक सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए। योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणीयो में नौकरी दी जाऐ। 5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्तियाँ दे सके। जब किसी महिला आवेदक की शादी हो जाती है तो उसे पॉलिसी से बाहर किया जाता है इस शर्त को भी हटाया जाए इसके अलावा जिन के केस कोर्ट में बहाल हो गए है उन्हें भी नियुक्तियाँ दी जाए क्योंकि विभागों द्वारा कोर्ट केस को लटकाया जा रहा है।
कुछ दिनों पहले ही सभी ज़िलों से आए बेरोजगार कला अध्यापक संघ ने अपनी मांगों को लेकर शिमला मे विधानसभा का घेराव किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने अपनी मांगे रखी थी। उन्होंने पहले से दसवीं तक कला विषय को अनिवार्य किया जाए, आर टी एक्ट में संशोधन करके 100 बच्चों वाली कंडीशन को खत्म किया जाए, कला अध्यापकों की हर साल भर्ती की जाए, जिस तरह से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कला को महत्त्व दिया गया है उसी प्रकार से कला को शिक्षा में जरूरी विषय बनाया जाए, शिक्षा विभाग से वित्त विभाग को 500 कला अध्यापकों के पदों को भरने हेतु जो फाइल गई है उसे जल्द से जल्द वित्त विभाग से मंजूरी दिलाकर कला अध्यापकों की भर्ती की जाए आदि मांगे सरकार के समक्ष रखी थी। संघ का कहना है कि जब मुख्यमंत्री जयराम के समाने यह मांगे रखी तो उन्होंने बेरोजगार कला अध्यापकों से एक वादा किया था कि अप्रैल महीने में होने वाली कैबिनेट मीटिंग मे 500 बेरोजगार कला अध्यापकों के पदों को मंजूरी दिला देंगे। लेकिन अप्रैल से लेकर मई हुई किसी भी कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री जयराम ने बेरोजगार कला अध्यापकों से किया वादा पूरा नहीं किया। जिसके चलते बेरोजगार कला अध्यापकों को एक बार फिर निराशा हाथ लगी। बेरोजगार कला अध्यापक संघ के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रमेश कुमार, वर्तमान समय के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश भारद्वाज, चम्बा से शक्ति प्रसाद, कांगड़ा के रजनीश, ऊना से सारिका ठाकुर, हमीरपुर से अंजना,मण्डी से हिमांशु चौहान, कुल्लू से रूपेश कुमार, बिलासपुर से अंजना कुमारी, शिमला से संतोष नांटा, सिरमौर से नरेश शर्मा व सोलन से जगदीश कुमार ने मांगों पर चर्चा करके सरकार से कला अध्यापकों के पदो को भरने के लिए मांग की है ताकि बच्चों का भविष्य बनाया जा सके। इस पर पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रमेश कुमार का कहना है कि सरकार सभी बेरोजगार अध्यापकों को फिर से शिमला में विधानसभा का घेराव करने के लिए मजबूर ना करे। कुछ बेरोजगार कला अध्यापकों की उम्र 45 पार कर चुकी हैं। बेरोजगार कला अध्यापकों का कहना है कि प्रदेश सरकार कला अध्यापकों के पदों को जल्द से जल्द भरें।
हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड इम्पलाईज यूनियन की प्रदेश कार्यकारणी के आवाहन पर हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड इम्पलाईज यूनियन इकाई मंडी ने 20 मई को समस्त कर्मचारियों के साथ काले बिले लगाकर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार स्टेट इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड के कर्मचारियों को फ्रंट लाइन कोरोना वॉरियर्स की श्रेणी मे अधिसूचित ना करने व कोविड वैक्सीन के टिके को भी प्राथमिकता के आधार पर न लगाए जाने पर रोष व्यक्त किया है। इसमें रिवालस, साईगलू, कटौला, बिजनी, और सभी फ़ील्ड के समस्त कर्मचारियों ने भी काले विले लगा कर भाग लिया। इस अवसर पर यूनिट के सचिव हिमांशु ठाकुर, कार्यकारणी के सदस्य ज्योति वैद्य, दलीप, बिहारी लाल, सूरज, रामू, राकेश जमवाल, और मुंशी राम ने इस मौके पर प्रदेश सरकार व विद्युत् बोर्ड प्रबंधक वर्ग से मांग की है कि हिमाचल प्रदेश स्टेट विद्युत बोर्ड के समस्त कर्मचारियों को फ्रंट लाइन कोरोना वॉरियर्स की श्रेणी मे अधिसूचित किया जाए व कोविड वैक्सीन को भी प्राथमिकता के आधार पर लगाया जाए ताकि कर्मचारी/अधिकारी अपने काम का निर्वाह बिना किसी खौफ से कर सकें।
सीटू राज्य कमेटी ने एक ऑनलाइन बैठक का आयोजन किया। जिसमें केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी में आम जनता को मेडिकल व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में नाकामी तथा इस दौरान सरकार की मजदूर कर्मचारी व कोविड योद्धा विरोधी नीतियों का कड़ा विरोध किया गया। सीटू ने निर्णय लिया है कि 26 मई को कोरोना योद्धाओं को उचित किट सहित अन्य सम्मानजनक सुविधाएं देने, उन्हें डयूटी के बाद क्वारेंटाईन पीरियड सुनिश्चित करने व बीमारी से लड़ते हुए शहादत पाने वाले कोरोना योद्धाओं को पचास लाख की बीमा सुविधा व उनके परिवार वालों को रोज़गार उपलब्ध करवाने की मांग को लेकर पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन करेंगे। सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ काला दिवस मनाएंगे। इस दिन प्रदेश भर में धरने प्रदर्शन होंगे। सीटू ने आशा कर्मियों,आंगनबाड़ी कर्मियों, सभी नियमित व आउटसोर्स मेडिकल कर्मियों, सभी जगह कार्यरत सफाई कर्मियों, सैहब सोसाइटी कर्मियों आदि को कोविड योद्धा का दर्ज़ा देने की मांग की है व इसे अक्षरशः लागू करने की मांग की है। सीटू ने पिछले सवा एक साल में कोरोना डयूटी के दौरान जान गंवाने वाले सभी कर्मियों को बीमा कवर सुनिश्चित करने की मांग की है। बैठक में सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, भूपेंद्र सिंह, अजय दुलटा, सुदेश कुमारी, रविन्द्र कुमार, केवल कुमार, अशोक कटोच, जोगिंद्र कुमार, गुरनाम सिंह, राजेश शर्मा, सरचंद ठाकुर, राजेश ठाकुर, पदम प्रभाकर, कुलदीप डोगरा, बिहारी सेवगी, बाबू राम, बालक राम, विनोद बिरसांटा, किशोरी ढट वालिया, एनडी रणौत, राजेन्द्र ठाकुर, मदन नेगी, विरेन्द्र लाल, दलीप कुमार आदि मौजूद रहे। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, उपाध्यक्ष भूपेंद्र सिंह व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि केंद्र व प्रदेश सरकार की कोविड महामारी में असफलता व इनकी मजदूर कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में गहन अभियान चलाया जाएगा। इसके तहत 26 मई को काला दिवस मनाया जाएगा। इसी कड़ी में 30 मई को सीटू के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर प्रदेश भर में सीटू का ध्वजारोहण करने के साथ ही जगह-जगह सेमिनार व अन्य कार्यक्रम आयोजित करके केंद्र व प्रदेश सरकार की नीतियों की पोल खोली जाएगी।
हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ सरकार से निरंतर स्थायी नीति की मांग कर रहा है। उनक का कहना है कि विभिन्न सेवाप्रदाता प्राइवेट कंपनियों द्वारा लगातार आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है। इनके द्वारा प्राय: एंप्लॉयर ईपीएफ शेयर कर्मचारी से ही काटा जाता है जोकि सरासर गलत है। संघ का मनाना है कि ठेकेदारी प्रथा गलत है, इससे सिर्फ भ्रष्टाचार को अधिक बढ़ावा मिल रहा है। गरीब कर्मचारी से ठेकेदार मनमाना कार्य करवाते है तथा वेतन की अदायगी कई महीनों तक नहीं करते है। उन्होंने कहा कि गरीब कर्मचारी वर्ग को इस महंगाई के दौर में मुश्किलों का समना करना पड़ रहा है। सेवाप्रदाता कंपनिया सदैव आउटसोर्स कर्मियों का शोषण करती आई है। कंपनी कर्मचारी के वेतन से ESI के पैसे तो काट लेती है, परंतु ESI Card देने से कतराती है। गौरतलब है कि आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा इस कोरोना-काल में फ्रंटलाइन पर नाममात्र के वेतन पर दिन-रात सेवाएं दे रहें है। अतः महासंघ, वर्तमान में कार्यरत जयराम सरकार से आउटसोर्स कर्मचारी के हित में एक बड़ी घोषणा की उम्मीद करता है।
हिमाचल के सरकारी स्कूलों में सिफारिश के आधार पर तबादलों का खेल आखिर कब खत्म होगा ? कब हिमाचल में शिक्षकों के तबादले सही तरीके से किसी ठोस नीति के आधार पर हो पाएंगे ? ये सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में सेवाएं दे रहे शिक्षकों का सबसे बड़ा सवाल है। हिमाचल में शिक्षा विभाग में स्थानांतरण की प्रक्रिया इतनी खराब है की लोग अब शिक्षा विभाग को तबादला विभाग कहने लगे है। आरोप आम है कि इस विभाग में बिना सिफारिश के स्थानांतरण नहीं होते। फिलवक्त हिमाचल में शिक्षकों के तबादलों के लिए न तो कोई स्थाई नीति है और न ही कोई कानून, जो हो रहा है वो सब सरकार की मर्ज़ी से। व्यवस्था खराब है और प्रदेश का शिक्षा विभाग सुस्त। फरवरी 2020 में खबरें सामने आई थी की हिमाचल में सॉफ्टवेयर से शिक्षकों के तबादले किये जाएंगे। कहा गया की हिमाचल प्रदेश में शिक्षकों की ट्रांसफर को लेकर 2018 से बन रही ट्रांसफर पॉलिसी बनकर तैयार है। उस दौरान दावा किया गया कि आगामी कैबिनेट बैठक में इसे स्वीकृति प्रदान कर दी जाएगी। कहा गया था कि राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में जिला शिमला के सेंटर हेड टीचर (सीएचटी) और हेड टीचर (एचटी) कैडर पर सॉफ्टवेयर से तबादले करने का ट्रायल किया जाएगा। जिला कैडर के शिक्षकों के डमी तबादले कर मंत्रियों को प्रस्ताव से बैठक में अधिकारी अवगत कराएंगे। इस बात को हुए एक साल से ज्यादा वक्त बीत गया है मगर अब तक ऐसी कोई भी पॉलिसी हिमाचल में लागू नहीं हुई। आज भी इस पॉलिसी का इंतज़ार है। बहरहाल अब शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर का कहना है कि राज्य के अध्यापकाें के लिए ट्रांसफर पालिसी तैयार हाे चुकी है परन्तु इसे लागू हाेने में थाेड़ा समय लग सकता हैं। काेराेना संकट के कारण यह पॉलिसी लागू नहीं हो सकी। एनआईसी यानी नेशनल इन्फाॅर्मेटिक सेंटर ने साॅफ्टवेयर काे लगभग तैयार कर दिया है। उत्तराखंड और हरियाणा राज्य की तर्ज पर ये सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। टीचर्स की सेवानिवृति मसला भी इसमें तय हाेगा। ट्रांसफर पॉलिसी में अध्यापकाें की सेवानिवृति 31 मार्च फिक्स करने का प्रावधान किया जा रहा है। दावा है कि आने वाले दिनों में कैबिनेट से मंजूरी मिलने के तुरंत बाद ट्रांसफर पॉलिसी लागू हाेगी। अब ये आने वाले दिन कब आएंगे इसका इंतज़ार ज़ारी है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का कहना है कि हिमाचल में शिक्षकों के ट्रांसफर के लिए कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है। पहले शिक्षकों के तबादले कम से कम 25 किलोमीटर की दूरी पर किए जाते थे परन्तु भाजपा सरकार के आने के पश्चात एक किलोमीटर दूर भी शिक्षकों के तबादले हो रहे है। ऐसे में जो शिक्षक शहरों में अपनी सेवाएं दे रहे है वो शहर के स्कूल में ही स्थानांतरित हो जाते है और जो बेचारे प्रदेश के दूर दराज़ क्षेत्रों में है वो कभी भी बेहतर क्षेत्रों में नहीं आ पाते। पिछले साढ़े तीन साल से हिमाचल सरकार पॉलिसी की बातें कर रही है मगर ज़मीनी स्तर पर तो कोई पॉलिसी नहीं दिखाई देती। संघ का कहना है कि प्रदेश की सत्ता पर काबिज होते ही भाजपा सरकार ने सॉफ्टवेयर के माध्यम से शिक्षकों के तबादले करने की नीति बनाने की घोषणा की थी। बीते साढ़े तीन साल के दौरान इसको लेकर कई बैठके हुई। पड़ोसी राज्यों के मॉडल को स्टडी भी किया गया लेकिन प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ सका। हिमाचल में कम से कम कोई ऐसी पॉलिसी तो हो जिसमें तबादलों के दौरान उचित दूरी का ख्याल रखा जाए। अपने चेहतों का ख्याल रखती हैं सरकार : वीरेंद्र चौहान हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान का कहना है कि सरकार तबादलों के दौरान अपने चेहतों का ख्याल रखती है जो अन्य अध्यापकों के साथ नाइंसाफी है। ये जो नई पॉलिसी बनाने की बात सरकार कर रही है वो भी शिक्षकों के हित में नहीं है। चौहान का कहना है कि पहले शिक्षकों के तबादले कम से कम 25 किलोमीटर की दूरी पर किए जाते थे परन्तु भाजपा सरकार के आने के पश्चात एक किलोमीटर दूर भी शिक्षकों के तबादले हो रहे है। जो शिक्षक शहरों में अपनी सेवाएं दे रहे है वो शहर के स्कूल में ही स्थानांतरित हो जाते है और जो बेचारे प्रदेश के दूर दराज़ क्षेत्रों में है वो कभी भी बेहतर क्षेत्रों में नहीं आ पाते। पारदर्शी ट्रांसफर नीति की दरकार : कैलाश ठाकुर हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रेस सचिव कैलाश ठाकुर का कहना है कि हिमाचल में शिक्षकों के ट्रांसफर की व्यवस्था बिलकुल आधारहीन व्यवस्था है। यहां कभी भी किसी को भी कहीं भी ट्रांसफर कर दिया जाता है। पूर्व शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने हिमाचल में शिक्षा पॉलिसी लाने का पहल ज़रूर की थी परन्तु शिक्षा मंत्री बदलते ही ये मसला ठंडे बास्ते में चला गया। एक किलोमीटर के अंदर तबादले का कोई अर्थ नहीं है। हम चाहते है की हिमाचल में कोई पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी लाई जाए ताकि सभी शिक्षकों को इसका बराबर लाभ मिल सके। ये स्पष्ट होना बेहद ज़रूरी है कि किस आधार पर शिक्षकों के तबादले किए जा रहे है। स्थानांतरण के लिए कानून तैयार करे सरकार : अरुण गुलेरिया हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के मुख्य संरक्षक अरुण गुलेरिया का कहना है कि हिमाचल में शिक्षकों के तबादले के लिए एक स्थाई नीति का होना अति आवश्यक है। बेहतर होगा कि सरकार नीति की बजाए स्थानांतरण के लिए कोई कानून तैयार करे जिसके आधार पर हिमाचल में शिक्षकों के तबादले किए जाए। फिलवक्त तबादलों के लिए कोई मापदंड नहीं है जो बहुत दुखद है।