शिव दंगल मेला कमेटी हार तालाब पट्टा की बैठक की गई। इसकी अध्यक्षता मेला कमेटी अध्यक्ष गुरचरण सिंह ने की। इस बैठक में मेला कमेटी ने निर्णय लिया कि हार तालाब पट्टा में एक व दो अक्टूबर को मेले का आयोजन किया जाएगा। कमेटी अध्यक्ष ने बताया कि 1 अक्टूबर को छोटे बच्चों की कुश्तियों का आयोजन 5:00 बजे के पश्चात होगा। वह बड़ी कुश्तीयों का आयोजन 2 अक्टूबर को 3:00 बजे के पश्चात होगा। कमेटी प्रधान ने बताया की हार तलाब के पास व कॉलोनी में लोगों को पार्किंग के लिए जगह बनाई गई है। मेलें के अंदर सभी दुकानदार अपना डस्टबिन साथ रखें व स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखें। मेलें को देखने के लिए उद्योग एवं श्रम मंत्री विक्रम ठाकुर भी उपस्थित रह सकते है। मेलें में मुख्य अतिथि डीके इलेक्ट्रॉनिक्स के मालिक होंगे। इस मेलें का मुख्य आकर्षण लड़कियों की कुश्ती होती है। मेलें में औरतों के बैठने का भी अलग से प्रबंध किया गया है। इस मेले में लड़कियों की कुश्ती के अलावा पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल, नेपाल के थापा पहलवान कुश्ती के जौहर दिखाएंगे।
कांगड़ा की उप-तहसील परागपुर के समीप पड़ने वाली ग्राम पंचायत हार में आसमानी बिजली गिरने से एक मकान की दीवारों में दरारें आयी है ।बताते चलें कि पंचायत हार निवासी जीत सिंह अपने कच्चे रिहायशी मकान में जब परिवार सहित सोए हुए थे तब अचानक चमकती हुई आसमानी बिजली उनके मकान के अंदर से होकर गुजरी।गनीमत रही कि किसी प्रकार का बड़ा हादसा नही हुआ। लेकिन उनके रिहायशी मकान में दरारें आ गयी और वहां रखे हुए कई साधन जिसमें फ्रिज, टीवी, पंखा, डिश व वायरिंग खराब हो गए। वहीं स्थानीय पंचायत उपप्रधान विनोद कुमार व हल्का पटवारी सुनीता घटना स्थल पर पहुंचे और घटना का जायजा लिया वहीं इस संदर्भ में हल्का पटवारी अनिता ने बताया कि, हुए नुकसान की रिपोर्ट तैयार कर राजस्व विभाग देहरा में तहसीलदार को आगामी कार्यवाही हेतु प्रेषित कर दी है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत परागपुर के बालहर स्थित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के वेद ब्यास परिसर में हिंदी पखवाड़े का समापन किया गया। इसमें राजकीय महाविद्यालय देहरी के प्राचार्य डॉ. अक्षित मिश्र ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। वहीं सेंट्रल बैंक परागपुर के शाखा प्रबंधक विजय कुमार बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। मंगलाचरण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मुख्यातिथि ने अपने भाषण में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने पर बल दिया। वहीं अपने अध्यक्षीय भाषण में परिसर प्राचार्य प्रो. लक्ष्मी निवास पांडे ने कहा कि देश के समस्त नागरिकों को हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार करना चाहिए। इस अवसर पर परिसर के समस्त विभागाध्यक्ष, शिक्षक, गैर शिक्षक कर्मचारी व समस्त छात्र छात्राएं मौजूद रही।
हिमाचल प्रदेश के मशहूर हास्यकलाकर प्रिंस गर्ग का गाना ‘नूरपूरे दी नेहा' 27 सितम्बर को लांच किया जाएगा। प्रिंस गर्ग का कहना है कि लोगों के प्यार और दुआओं के कारण ही उनका यह गाना जल्द ही लॉच होने जा रहा है। इस गाने की शूटिंग कांगड़ा जिले के नूरपुर में की गई है। बता दें कि इससे पहले भी प्रिंस गर्ग द्वारा गाए एक गाने ‘मेहनतान’ को जनता का अच्छा खासा प्यार मिला था। प्रिंस गर्ग हिमाचल प्रदेश की वो शख्सियत हैं जिन्होंने अपनी हास्य की कलाकारी से देश -प्रदेश में नाम चमकाया हुआ है और अब गर्ग एक संगीतकार के रूप में भी उभर रहे हैं। वैसे तो प्रिंस गर्ग अपनी हास्य कलाकारी से मशहूर हैं परंतु उनकी संगीत में दिलचस्पी के कारण उन्होंने यह गाना गाया है। इस गाने के लांच के लिए गर्ग और उनकी पूरी टीम खासी उत्साहित दिख रही है।
आर्मी वेलफेयर एजूकेशन सोसायटी ने आर्मी पब्लिक स्कूलों में रिक्त पड़े पीजीटी, टीजीटी और पीआरटी शिक्षकों के आठ हजार पदों को भरने के ऑनलाइन आवेदन मांगे हैं। बेरोजगार प्रशिक्षित अध्यापकों के लिए आर्मी स्कूलों में नौकरी पाने का सुनहरा मौका है। आवदेन करने की अंतिम तिथि 21 सितंबर तय की गई है। देशभर में 137 के करीब आर्मी पब्लिक स्कूल हैं। शिक्षकों के पदों को आर्मी वेलफेयर एजूकेशन सोसायटी लिखित परीक्षा के आधार पर भरेगी। आर्मी वेलफेयर एजूकेशन सोसायटी ने प्रारंभिक परीक्षा के लिए देशभर में 70 परीक्षा केंद्र बनाए हैं। हिमाचल प्रदेश में सोलन और कांगड़ा जिले में परीक्षा केंद्र होंगे। आवेदनकर्ता पूरी जानकारी आर्मी वेलफेयर सोसाइटी की वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं। 17 विषयों के पदों पर पीजीटी की होगी भर्ती: अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान, गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, बॉयोटेक्नोलॉजी, सायकोलॉजी, कॉमर्स, कंप्यूटर साइंस, गृह विज्ञान और शारीरिक शिक्षा सहित 17 विषयों के पदों पर पीजीटी की भर्ती होगी। प्रशिक्षित कला स्नातक में अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान, गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान व बॉयोलॉजी सहित 10 विषयों में नियुक्तियां होंगी। पीआरटी शिक्षक भी नियुक्त होंगे। योग्यता: पीटीजी- 50 फीसद पोस्ट ग्रेजुएट में अंक तथा बीएड का होना अनिवार्य किया गया है। टीजीटी- ग्रेजुएशन में 50 फीसद अंक और बीएड का होना जरूरी है। आवेदन करने वाला अभ्यर्थी सीटेट/टेट पास होना चाहिए। आवेदन करने के लिए अभ्यर्थी की आयु 50 वर्ष से कम होनी चाहिए। पीआरटी शिक्षक को बीएड या फिर दो वर्ष का डिप्लोमा तथा आयु सीमा 40 वर्ष से कम होनी चाहिए। सभी पदों के आवेदन के लिए फीस 500 रुपये निर्धारित की गई है। 19 और 20 अक्टूबर को लिखित परीक्षा होगी। परीक्षा का परिणाम 30 अक्टूबर को निकलेगा।
वो 14 फरवरी 1980 का दिन था। तब तक शांता कुमार के 22 विधायक ठाकुर रामलाल के खेमे में जा चुके थे और शांता कुमार समझ चुके थे कि अब हाथ पैर मारने का फायदा नहीं है। सो उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया था। अपने कार्यालय से उन्होंने अपनी पत्नी को फ़ोन किया, उन्हें बुलाया और दोनों सिनेमा देखने चले गए। फिल्म थी जुगनू। इस्तीफा देकर फिल्म देखने जाने वाला मुख्यमंत्री हिन्दुस्तान के इतिहास में शायद ही दूसरा कोई हो। दूसरा कोई हो भी नहीं सकता, शांता सिर्फ एक ही हो सकते है। शांता के राजनैतिक करीयर का आगाज़ वर्ष 1964 में हुआ। शांता ने पंचायत चुनाव लड़ा और पंच बन गए। ये बस शुरुआत थी। वर्ष 1967 आया और शांता ने जिला कांगड़ा के पालमपुर से अपना पहला चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव हार गए। पर इसके बाद धीरे धीरे शांता विपक्ष का चेहरा बनते गए। 1972 का साल आया और शांता एक बार फिर विधानसभा चुनाव के रण में उतरे। इस बार क्षेत्र था जिला कांगड़ा का खेरा। इस मर्तबा शांता चुनाव जीत गए और विधानसभा में विपक्ष की आवाज़ के तौर पर उन्हकी पहचान स्थापित हो गई। कुछ समय बाद देश में इमरजेंसी लगी और राजनैतिक हालात बदल गए। शांता कुमार को भी नाहन जेल में बंद कर दिया गया जहाँ उनका साहित्यकार अवतार देखने को मिला। जेल में रहते हुए शांता कुमार ने कई उपन्यास लिखे, जिसका श्रेय वे कांग्रेस को देते है। 1977 का साल आया और हिमाचल में एक बार फिर विधानसभा चुनाव हुए। जनता पार्टी को 53 सीटों पर प्रचंड जीत मिली और शांता कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने। इस मर्तबा वे जिला कांगड़ा की सुलह सीट से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे थे। बतौर मुख्यमंत्री अपने पहले कार्यकाल में शांता कुमार ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये। अंत्रोदय योजना के जरिये उन्होंने गरीबों के बीच अपनी पैठ बनाई। गांव- गांव तक पानी के हैंडपंप पहुंचाए और पानी वाला मुख्यमंत्री कहलाये। सब कुछ ठीक चल रहा था, पर पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल भला चुप बैठने वाले कहाँ थे। रामलाल की तिगड़मबाज़ी रंग लाई और फरवरी 1980 में शांता के 22 विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया। अतः शांता कुमार को इस्तीफा देना पड़ा। वर्ष 1980 में ही भारतीय जनता पार्टी का गठन भी हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, भैरों सिंह शेखावत के साथ शांता कुमार ने उस दौर में पार्टी में मुख्य चेहरों में शुमार थे। इसके बाद 10 वर्षों तक शांता कुमार ने भाजपा को हिमाचल में खड़ा करने का काम किया। 1989 में वे संसद भी पहुंचे और उसके बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में भजपा का सीएम फेस रहे। चुनाव में भाजपा को प्रचंड जीत मिली और शांता एक बार फिर मुख्यमंत्री शांता हो गए। दिसंबर 1992 में बावरी काण्ड के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने शांता की सरकार को बर्खास्त कर दिया जिसके बाद 1993 में फिर चुनाव हुए। 1990 में जिस भाजपा को प्रचंड जीत मिली थो वो 1993 में मजह 8 सीटों पर सिमट कर रह गई। खुद शांता कुमार भी चुनाव हार गए। हार का कारण ये नहीं था कि उन्होंने काम नहीं किया, बल्कि शांता अपने काम की वजह से ही हारे। कांग्रेस के रोटी-कपडा- मकान के घिसे पीटे नारे को लोगों ने शांता के आत्मनिर्भर हिमाचल के नारे पर तरजीह दी। इसका कारण था कर्मचारियों की नाराज़गी। हिमाचल में आज भी सत्ता का रास्ता कर्मचारियों के वोट तय करते है। शांता कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री निजी क्षेत्र को प्रदेश में हाइड्रो प्रोजेक्ट लगाने की अनुमति दी थी। तब किन्नौर के बापसा में एक हाइड्रो प्लांट लगा था। इसी के विरोध में सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। शांता भी उसूलों के पक्के थे सो नो वर्क नो पे का फ़रमार जारी कर दिया। 29 दिन चली इस हड़ताल का पैसा कर्मचारियों को नहीं दिया गया। साथ ही इस दौरान करीब 350 कर्मचारियों को उन्होंने बर्खास्त कर दिया। सो जब अगला चुनाव आया तो कर्मचारियों ने भी शांता कुमार से बराबर बदला लिया। हिमाचल प्रदेश को हर वर्ष करीब दो हज़ार करोड़ रुपये पानी की रॉयल्टी से मिलते है। ये शांता कुमार की ही देन है। जब पहली बार उन्होंने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया था तो विपक्ष ने जमकर खिल्ली उड़ाई थी। पर कांग्रेस की केंद्र सरकार को ये बात समझ आ गई और हिमचाल को उसका हक़ मिला। मोदी की पसंद नहीं थे शांता 1993 चुनाव की हार के बाद शांता कुमार प्रदेश की सियासत में वापसी नहीं कर सके।1998 चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी हिमाचल के प्रभारी थे जिनसे शांता की बनती नहीं थी। मोदी की पसंद प्रो प्रेम कुमार धूमल थे और चुनाव से पहले भाजपा ने धूमल को सीएम फेस घोषित कर दिया। इसके बाद पंडित सुखराम के समर्थन से धूमल ने पांच वर्ष सत्ता सुख भोगा। शांता कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच हमेशा एक लकीर रही है। गोधरा दंगों के बाद शांता कुमार ने नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था कि अगर मैं गुजरात का मुख्यमंत्री होता तो त्यागपत्र दे देता।
भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिन्हें देखकर हमें ऐसा महसूस होता है कि बस अब यहीं रुक जाएं, इसके आगे कोई सुकून ही नहीं है। यहां आकर आपके मन को शांति मिलती है और हर तनाव को भूल जाते हैं। बस हमारा मन कहता है कि यह ऐसी जगह है जहां आपको सबसे ज्यादा सुकून मिलेगी। कई चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें देखकर हमारी पूरी थकान उतर जाती है। ऐसा ही एक मंदिर है जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे है। जी हां उत्तर भारत में एक ऐसा मंदिर है जो 15 चट्टानों को काटकर बना हुआ है। जिसे देखकर आप इस बात पर विश्वास नहीं कर पाएंगे कि क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है। आखिर इतनी अच्छी नक्काशी भी कहीं हो सकती है। हम बात कर रहे है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसरूर गांव में स्थित रॉक कट टेम्पल हैं। इसके नाम से ही पता चल रहा है कि यह चट्टानों को काटकर बनाया गया है। आठवीं शताब्दी में बना ये मंदिर महाभारत के पांडवों का रहस्यमयी इतिहास भी अपने अंदर संजोये हुए है। हिमालयन पिरामिड के नाम से मशहूर ये रॉक कट टेम्पल अपने आप में एक अनोखा इतिहास समेटे हुए है। मसरूर का यह मंदिर कुरुद्वारा के नाम से पूजनीय है। वास्तव में यह भगवान् श्री राम को समर्पित है और वैष्णव धर्म का द्योतक है। मुख्य मंदिर के भीतर भगवान राम , लक्ष्मण और सीता की प्रतिमाएं स्थापित है जो पत्थर को नक्काश कर बनाई गई है। मूलतः ऐसा प्रतीत होता है कि यह भगवान् शिव को समर्पित था लेकिन समय के उतार चढ़ाव के साथ साथ बाद में यहाँ वैष्णव धर्म का प्रादुर्भाव होने से इसे विष्णु भगवान को समर्पित कर दिया गया। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि ऐसी नक्काशी पत्थरों में करना बहुत ही मुश्किल काम होता है। इसे करने के लिए दूर से करीगर लाए गए थे लेकिन वास्तव वे कारीगरी किसने की इस बारे में आजतक कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है। इस मंदिर के सामने ही मसरूर झील है जो मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाती है। सदियों से चली आ रही दन्त कथाओं के मुताबिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था और मंदिर के सामने खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए बनवाया गया था। काँगड़ा घाटी के हरिपुर कसबे से लगभग 3 किलोमीटर की दुरी पर और समुद्रतल से 2500 फुट कि ऊँचाई पर एक रेतीली पहाड़ी पर स्थित है। गग्गल हवाई पट्टी स यहाँ तक की दुरी 20 किलोमीटर है। इसकी लम्बाई 106 फुट के करीब और चोडाई 105 फुट है। इस तरह का विशाल पत्थर को कार कर बनाया मंदिर भारत में शायद ही कहीं हो। वास्तुकला की अद्भुत अविस्मरनीय पत्थर का यह स्तंभ सपाट और शिखर शैली में बनाया गया है । पुरातात्विक विभाग के संरक्षण में यह प्राचीन कला और इतिहास का मूक साक्षी है । इसके बाहर भीतर जिस तरह की मूर्तियाँ पत्थर पर तराशी गई है वह महाबलीपुरम में छठी और इलोरा के मंदिरों में दसवीं सदी की याद दिला देती है। बहुत कुछ इन प्राचीन मंदिरों की कला से मिलता जुलता है ।इस मंदिर के मूल मंदिर के साथ कुल 15 के करीब छोटे बड़े शिखराकार मंदिर है । इनमें से कुछ मंदिरों के भाग टूट चुके है। काँगड़ा में 1905 को आये भूकंप के कारण भी इन मंदिरों को काफी क्षति पहुंची थी। मंदिर के सन्दर्भ में कोई प्रमाणिक ऐसा दस्तावेज उपलब्ध नही है जिस से इसके निर्माण काल का सही अनुमान लगाया जा सके । यह बताया जाता है कि इसका निर्माण पांडवों द्वारा ही किया गया है। आश्चर्य है कि यहाँ प्राचीन काल में कोई यात्री भी नहीं पहुंचा जिसने इस मंदिर का उलेख किया हो । कहा जाता है कि केवल सन 1913 में पुरातात्विक विभाग ने इसकी वास्तुकला का गहरायी से निरिक्षण किया।
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं श्री बृजराज मंदिर के बारे में। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा नूरपुर में स्थित यह मंदिर अपनी ख़ास विशेषता के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। नूरपुर के किला मैदान में स्थापित श्री बृजराज मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मन्दिर है जिसमें काले संगमरमर की श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ अष्टधातु से निर्मित मीराबाई की मूर्ति श्री कृष्ण के साथ विराजमान है। इस मन्दिर के बारे में एक रोचक कथा है कि जब नूरपुर के राज जगत सिंह (1619—1623) अपने पुरोहित के साथ चित्तौड़गढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए, तो उन्हें रात्रि विश्राम के लिए जो महल दिया गया उसके साथ ही एक मंदिर था। वहां रात को सोते समय राजा को घुंघरुओं की आवाजें सुनाई दी। राजा ने जब मंदिर में बाहर से झांककर देखा तो एक औरत मंदिर में स्थापित कृष्ण की मूर्ति के सामने गाना गाते हुए नाच रही थी। राजा को उसके पुरोहित ने उपहार स्वरूप इन्हीं मूर्तियों की मांग करने का सुझाव दिया। इस पर राजा द्वारा रखी मांग पर चितौड़गढ़ के राजा ने ख़ुशी-ख़ुशी उन मूर्तियों को उपहार में दे दिया। राजा ने इसके साथ ही एक मौलश्री का पेड़ भी राजा को उपहार में दिया जो आज भी मंदिर प्रांगन में विद्यमान है। इन मूर्तियों को भी राजा ने किले में स्थापित किया था लेकिन जब आक्रमणकारियों ने किले पर हमला किया तो राजा ने इन मूर्तियों को रेत में छुपा दिया गया। लंबे समय तक यह मूर्तियाँ रेत में ही रहीं। एक दिन राजा को स्वप्न में कृष्ण ने कहा कि अगर हमें रेत में रखना था तो हमें यहां लाया ही क्यूँ गया। इस पर राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मन्दिर का रूप देकर उन्हें वहां स्थापित किया। नूरपुर किले के अंदर बृज राज स्वामी मंदिर, भगवान कृष्ण की 16 वीं शताब्दी का ऐतिहासिक मंदिर है। नूरपुर को प्राचीनकाल में धमड़ी के नाम से जाना जाता था लेकिन बेगम नूरजहाँ के आने के बाद इस शहर का नाम नूरपुर पड़ा। यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जहाँ भगवान कृष्ण और मीरा की मूर्ति की पूजा की जाती है। नूरपुर के छोटे से शहर में स्थित इस मंदिर में सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है। मंदिर स्थानीय लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है, लोगों की इस मंदिर से आस्था जुड़ी है। मंदिर समिति द्वारा एक वार्षिक भोज का आयोजन किया जाता है जहाँ पारंपरिक हिमाचली तरीके से स्थानीय व्यंजन परोसे जाते हैं।
मूसलाधार बरसात के बाद प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर की धन्नी पंचायत में लोगों पर मुसीबत का पहाड़ टुटा है। इस क्षेत्र में हुए भारी भूस्खलन के बाद जब्बर खड्ड का पानी रुक गया है और करीब एक किलोमीटर का क्षेत्र में झील में तब्दील हो चूका है। यहाँ बने घरों के जमींदोज होने का खतरा बना हुआ है और स्थानीय लोगों को यहाँ से पलायन करना पड़ रहा हैं। मौके पर एनडीआरएफ, लोनिवि, होमगार्ड के जवान डेट हुए है और पानी का बहाव मोड़ने की कोशिश ज़ारी हैं। फिलहाल निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा टल गया है। हालंकि पडाड़ के दरकने का सिलसिला जारी है, जिससे आने वाले वक्त में मुश्किलें और बढ़ सकती है।
मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है। इस मंदिर में माता महालक्ष्मी के दर्शन मात्र से ही चित्त भाव-विभोर हो जाता है। यहाँ महालक्ष्मी के अतिरक्त महाकाली और महासरस्वती की प्रतिमाएं भी स्थापित है। तीनों प्रतिमाओं का श्रृंगार सोने के नथ, सोने की चूड़ियां एवं मोतियों के हार सहित बहुमूल्य आभूषणों से किया गया है। महालक्ष्मी की वास्तविक प्रतिमा को आवरण से ढंक दिया जाता है जिसके चलते अधिकांश दर्शनार्थी वास्तविक प्रतिमा के दर्शन नहीं कर पाते। रात के लगभग 9.30 बजे वास्तविक प्रतिमा से आवरण हटाया जाता है, जिसके 10 से 15 मिनट के बाद पुन: प्रतिमा के ऊपर आवरण चढ़ा दिया जाता है। महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी छुपी है। कहा जाता है कि बहुत समय पहले मुंबई में वर्ली और मालाबार हिल को जोड़ने के लिए दीवार का निर्माण कार्य चल रहा था। सैकड़ों मजदूर इस दीवार के निर्माण कार्य में लगे हुए थे, मगर नित दिन नई- नई बाधा आने से कार्य पूरा नहीं हो पा रहा था। सब परेशान थे, तभी प्रोजेक्ट के मुख्य अभियंता को एक सपना आया। सपने में मां लक्ष्मी प्रकट हुईं और कहा कि वर्ली में समुद्र के किनारे मेरी एक मूर्ति है, उसे वहां से निकालकर समुद्र के किनारे ही मेरी स्थापना करो। मुख्य अभियंता ने मजदूरों को स्वप्न में बताए गए स्थान पर जाने को कहा और मूर्ति ढूंढ लाने का आदेश दिया। आदेशानुसार कार्य शुरू हुआ और महालक्ष्मी की एक भव्य मूर्ति मिल गई। तदोपरांत समुद्र किनारे ही उस मूर्ति की स्थापना की गई और छोटा-सा मंदिर बनवाया गया। मंदिर निर्माण के बाद वर्ली-मालाबार हिल के बीच की दीवार भी आसानी से खड़ी हो गई। तब ब्रिटिश अधिकारियों को भी दैवीय शक्ति पर भरोसा करना पड़ा और इसके बाद तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी। वर्ष 1831 में धाकजी दादाजी नाम के एक व्यवसायी ने छोटे से मंदिर को बड़ा स्वरूप दिया एवं इसका जीर्णोद्धार कराया गया। यहां महालक्ष्मी के अलावा महाकाली व माता सरस्वती की भव्य प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर में एक दीवार है, जहां आपको बहुत सारे सिक्के चिपके है। भक्तगण अपनी मनोकामनाओं के साथ सिक्के चिपकाते हैं यहां।
भारत मां जो आजाद कराणे तायीं मावां दे पुत्र चढ़े फांसियां हंसदे-हंसदे आजादी दे नारे लाई.. मैं कुण, कुण घराना मेरा, सारा हिन्दुस्तान ए मेरा भारत मां है मेरी माता, ओ जंजीरां जकड़ी ए. ओ अंग्रेजां पकड़ी ए, उस नू आजाद कराणा ए.. कांशीराम जिन्द जवाणी, जिन्दबाज नी लाणी इक्को बार जमणा, देश बड़ा है कौम बड़ी है. जिन्द अमानत उस देस दी ये वो दौर था जब हिंदुस्तान के हर कोने में आजादी के लिए नारे लग रहे थे। क्रांतिकारी देश को आज़ाद करवाने के लिए हर संभव प्रत्यन कर रह थे। पुरे मुल्क में हजरत मोहनी का लिखा गया नारा इंकलाब जिंदाबाद क्रांति की आवाज बन चूका था। उसी दौर में हिमाचल की शांत पहाड़ियों में एक व्यक्ति पहाड़ी भाषा और लहजे में क्रांति की अलख जगा रहा था। वो गांव-गांव घूमकर अपने लिखे लोकगीतों व कविताओं से आम जन को आजादी के आंदोलन से जोड़ रहा था। नाम था कांशी राम, वहीँ काशी राम जिन्हे पंडित नेहरू ने बाद में पहाड़ी गाँधी का नाम दिया। वहीँ बाबा काशी राम जो 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे। वहीँ बाबा कशी राम जिन्हें सरोजनी नायडू ने बुलबुल-ए-पहाड़ कहकर बुलाया था। और वहीँ बाबा काशी राम जिन्होंने कसम खाई कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, वो काले कपड़े पहनेंगे। 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशी राम के बदन पर काले कपड़े थे और मरने के बाद उनका कफ़न भी काले कपड़े का ही था। ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’ यानी अंग्रेज सरकार का सूर्यास्त होने वाला है, जैसी कई कवितायेँ लिख पहाड़ी गाँधी ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था। मुल्क आज़ाद हो गया लेकिन ये विडम्बना का विषय है कि सियासतगारों ने पहाड़ी गाँधी को भुला दिया। बस कभी -कभार, खानापूर्ति भर के लिए पहाड़ी गाँधी को याद कर लिया जाता है। उनका पुश्तैनी मकान भी पूरी तरह ढहने की कगार पर है, मानो एक तेज बरसात का इन्तजार कर रहा हो। 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीरभद्र सरकार को पहाड़ी गाँधी की याद आई और डाडासिबा में उनके पुश्तैनी घर को कांशीराम संग्रहालय बनाने का वादा किया गया। खेर चुनाव के बाद सरकार बदल गई और जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2018 में बाबा काशीराम की जयंती पर 11 जुलाई को जयराम ठाकुर ने भी काशीराम संग्राहलय बनाने की घोषणा की, किन्तु एक वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। बाबा कांशी राम की शादी 7 साल की उम्र में हो गई थी। उस वक्त पत्नी सरस्वती की उम्र महज 5 साल थी। साल 1905 में कांगड़ा घाटी में आये भूकंप में करीब 20 हजार लोगों की जान गई और 50,000 मवेशी मारे गए। तब लाला लाजपत राय की कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुंची जिसमें बाबा काशी राम भी शामिल थे। उनकी ‘उजड़ी कांगड़े देश जाना’ कविता आज भी सुनी जाती है। लाहौर में कांशी राम की मुलाकात मशहूर देश भक्ति गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लिखने वाले सूफी अंबा प्रसाद और लाल चंद ‘फलक’ से हुई जिसके बाद कांशी राम संगीत और साहित्य के माध्यम से आजादी का लड़ाई में रम गए। 1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त बाबा कांशी राम भी अमृतसर में थे।इसके बाद ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत के जुर्म में कांशीराम को 5 मई 1920 को लाला लाजपत राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया। 1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी मिलने के बाद उन्होंने प्रण लिया कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, तब तक वो काले कपड़े पहनेंगे।उन्हें ‘स्याहपोश जरनैल’ भी कहा गया। वर्ष 1937 में जवाहर लाल नेहरू ने होशियारपुर के गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करते हुए बाबा कांशीराम को पहाड़ी गांधी कहकर संबोधित किया था, जिसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया। बाबा काशी राम ने 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं। 23 अप्रैल 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांगड़ा के ज्वालामुखी में बाबा कांशी राम पर एक डाक टिकट जारी किया था। काशी राम के नाम पर हिमाचल प्रदेश से आने वाले कवियों और लेखकों को अवॉर्ड देने की भी शुरुआत हुई थी, पर पिछले कुछ सालों से ये अवार्ड नहीं दिया जा रहा है। बाकी कांशीराम के नाम से उनके गांव में एक सरकारी स्कूल बना है, जो पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने बनवाया था। दरअसल, हिमाचल बनने से पहले बाबा कशी राम का गृह क्षेत्र पंजाब में आता था।
- कसौली से धधकी थी क्रांति की ज्वाला हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में हिमाचल प्रदेश का योगदान भी कम नहीं रहा। देवभूमि हिमाचल वीर योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों की जन्म और कर्म भूमि भी रहा है। वर्ष 1857 में जब देशभर में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह प्रखर हुआ तो पहाड़ों की शांतवादियों में भी क्रांति की ज्वाला धधक उठी। करीब चार महीने में देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के लिए लगभग 50 देशभक्त फांसी के फंदे में झूल गए थे। इसकी शुरुआत हुई थी कसौली से। 20 अप्रैल, 1857 को ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ हिमाचल में विद्रोह की चिंगारी कसौली अंग्रेज सैनिक छावनी से भड़की थी। तब 6 भारतीय सैनिकों ने कसौली पुलिस थाने को फूंक दिया था। देखते ही देखते विद्रोह की ये चिंगारी कसौली से डगशाई, सुबाथू, जतोग व कालका छावनियों में फैल गई। तब सिर्फ 45 हिन्दुस्तानियों ने करीब 200 अंग्रेज़ों को परास्त किया था। कसौली की तत्कालीन एडिशनल कमिश्नर पी. मैक्सवेल ने इस घटना के बारे में लिखा कि ये हैरत की बात थी कि कैसे सिर्फ 45 भारतीय सैनिकों ने 200 अंग्रेज सैनिकों को हराया था। उधर, जतोग में गोरखा रेजिमेंट ने सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में छावनी व खजाने पर कब्जा कर लिया। वहीँ, एक गोरखा सैनिक ने अपनी खुखरी से शिमला बाजार में एक अंग्रेज अधिकारी की गर्दन उड़ा दी।आलम ये था किफिरनगी अपनी जान बचाकर भागने लगे। इस दौरान बुशहर के राजा ने ब्रिटिश हुकूमत को नजराना सहित अन्य सहायता बंद कर दी और क्रांतिकारियों का खुलकर सहयोग किया। हालांकि बिलासपुर सहित कुछ अन्य शासकों ने अंग्रेजों का साथ दिया। इंग्लैंड के समाचार पत्रों में इस घटना का जिक्र Shimla Terror (शिमला आतंक) के तौर पर किया। 1857 की पहली क्रांति का विद्रोह कांगड़ा, कुल्लू-सिराज, चंबा व मंडी-सुकेत तक में हुआ। 11-12 मई के मेरठ व दिल्ली विद्रोह की सूचना कांगड़ा सहित आसपास के पूरे क्षेत्र में फैल गई थी, जिससे ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने क्षेत्रों की सुरक्षा के उपाय कर लिए। 19 मई को ऊना-होशियारपुर में क्रांतिकारियों व देशी पुलिस ने भयानक विद्रोह कर दिया। सुजानपुर टीहरा के राजा प्रताप चंद अपने किले में क्रांति की तैयारियां करते रहे, लेकिन इसकी भनक अंग्रेजों को हो गई और महल में ही नजरबंद कर दिया गया। उधर, जसवां, गुलेर, हरिपुर, नौदान, नूरपुर, पठानकोट सहित अन्य क्षेत्र के लोग भी कंपनी के खिलाफ हो गए। नालागढ़ में भी क्रांतिकारियों ने मलौण किले से अंग्रेजों के हथियार कब्जे में ले लिए और 10 जून को जालंधर के दस्ते ने नालागढ़ पहुंचकर वहां के खजाने को लूट लिया। 30 जुलाई को कांगड़ा में विभिन्न स्थानों पर देशी सैनिकों व क्रांतिकारियों की अंग्रेजों के साथ मुठभेड़ हुई और कई ने सुरक्षा के बावजूद शहर में प्रवेश कर लिया। क्रांतिकारी ब्रिगेडियर रमजान को नूरपुर में फांसी दे दी गई, कांगड़ा में पांच व धर्मशाला में छह देशभक्त व क्रांतिकारी फांसी पर चढ़ाए गए। कुल्लू के युवराज प्रताप सिंह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ खूब लोहा लिया, लेकिन अपने कुछ साथियों के पकड़े जाने के बाद वह भी गिरफ्तार कर लिए गए और तीन अगस्त को उन्हें व उनके साथी बीर सिंह को फांसी दी गई। मंडी के राजा विजय सेन केवल 10वर्ष के थे और सुकेत रियासत में आपसी गृहयुद्ध के कारण क्रांतिकारियों ने यहां अधिक सहयोग नहीं मिल पाया, लेकिन जनता में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। ऐसे में अगस्त 1857 तक पहाड़ों में फैले विद्रोह को शांत कर लिया गया था I
कहा, मजबूत विपक्ष न होना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं नेहरू परिवार की गुलामी करने से कांग्रेस का तेजी से पतन हो रहा है। उम्मीद थी कांग्रेस किसी युवा को नेत्तृत्व देंगी लेकिन कांग्रेस नेहरू परिवार से बाहर नहीं निकलती दिख रही। पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने सोलन में पत्रकारों से बात करते हुए ये बात कही। उन्होंने कहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को बेशक बहुत बड़ी जीत मिली है लेकिन लोकतंत्र कमजोर हो गया। देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल कांग्रेस का 18 प्रदेशों में सफाया हो गया, बावजूद इसके कांग्रेस ने सबक नहीं लिया।शांता कुमार ने कहा कांग्रेस के मजबूत होने से देश को अच्छा विपक्ष मिल सकता है लेकिन ऐसा है हो रहा। इस दौरान पूर्व सीएम ने कई मसलों पर अपनी बेबाक राय रखी। उद्योग और पर्यटन नीति को सराहा शांता कुमार ने जयराम सरकार की उद्योग और पर्यटन नीति को भी सराहा। उन्होंने कहा सरकार ने नीति में जो बुनियादी बदलाव किये है उससे प्रदेश में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा नई नीति के तहत करार होने के बाद सरकार को 6 माह में आवश्यक कागज़ी कार्यवाही पूरी करनी होगी। साथ ही परियोजना शुरू होने के बाद उद्योग द्वारा सरकार को कोई भुगतान नहीं करना होगा। भाजपा के गले की फांस बने 69 राष्ट्रीय राजमार्ग 69 एनएच का कार्य शुरू नहीं होने पर शांता कुमार कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके। उन्होंने ये कहते हुए सरकार का बचाव किया कि ये कठिन काम है और उम्मीद है जल्द कार्य शुरू होगा। बता दें कि करीब तीन साल पहले तत्कालीन केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हिमाचल को 69 एनएच की सौगात दी थी। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में भी इसे बड़ी उपलब्धि करार दिया और पूर्व कांग्रेस सरकार को इसके कार्य में विलम्ब के लिए दोषी ठहराया। अब प्रदेश में बीते 20 माह से भाजपा की सरकार है किन्तु काम अब तक शुरू नहीं हुआ। धर्मशाला उपचुनाव से पहले भाजपा के भीतर मची अंतर्कलह को शांता कुमार ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा मतभेद दूर होने चाहिए और वे इस तरह की खींचतान का बचाव नहीं करते। शांता कुमार ने कहा सरकार की कोई पार्टी नहीं होती पार्टियों की सरकार होती है। सभी दलों को विकास के मुद्दों पर एक साथ होकर कार्य करना चाहिए। विरोध के लिए विरोध नहीं होना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई की धारा 370 की तरह ही सरकार को जनसँख्या नियंत्रण के लिए भी सख्त कदम उठाना चाहिए । जम्मू -कश्मीर व उत्तर पूर्वी राज्यों की तर्ज पर हिमाचल को केंद्र सरकार द्वारा विशेष पैकेज नहीं दिए जाने पर शांता कुमार ने कहा कि इसके लिए प्रयास किये जायेगे। धारा 118 के मसले पर शांता कुमार ने कहा कि जहाँ जरुरत होगी वहां राहत दी जाएगी। किन्तु ये सुनश्चित किया जाना चाहिए कि हिमाचलियों का शोषण न हो।
पुलिस थाना ज्वाली के डीएसपी को 45 हजार रुपये रिश्वत लेते हुए विजिलेंस टीम ने रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। मिली जानकारी के अनुसार डीएसपी एससी-एसटी एक्ट के एक मामले को दबाने की एवज में रिश्वत ले रहा था। जानकारी के मुताबिक डीएसपी ज्वाली ज्ञान चंद को इन दिनों नूरपुर के कार्यकारी डीएसपी का कार्यभार दिया है। पुलिस थाना जवाली के तहत पिछले दिनों एक एससी-एसटी एक्ट का मामला दर्ज हुआ था, जिसे दबाने के लिए आरोपी ज्ञान चंद ने 50 हजार रुपये की मांग की थी। इस संबंध में आरोपित ने विजिलेंस में शिकायत की थी। शिकायतकर्ता के नौसार डीएसपी ज्ञान चंद ने उन पर झूठा केस बनाया है और 50 हजार रुपये मांग रहा है। डीएसपी को पांच हजार रुपये एडवांस दिए जा चुके थे और सोमवार बकाया 45 हजार रुपये का भुगतान होना था। बकाया राशि के के साथ शिकायतकर्ता को डीएसपी कार्यालय नूरपुर में बुलाया था। पर विजिलेंस टीम वहां मौजूद थी, जिसके बाद डीएसपी को 45 हजार रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ लिया गया। मामले की पुष्टि एसपी विजिलेंस उत्तरी क्षेत्र अरुल कुमार ने की है।
बढ़ती जनसंख्या-घटते संसाधन पर संगोष्ठी आयोजित पूर्व केन्द्रीय मंत्री, हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने कहा कि हमारे देश में जनसंख्या की नियमित वृद्धि ने विकास के लाभों को बेअसर कर दिया है और अब जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाना आवश्यक हो गया है। शांता कुमार आज सोलन में ‘बढ़ती जनसंख्या घटते संसाधन’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। इस संगोष्ठी का आयोजन प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा जनसंख्या नियंत्रण जन जागरण मंच द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। शांता कुमार ने कहा कि आज बढ़ती जनसंख्या हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। स्वतंत्रता के समय जहां भारत की जनसंख्या 34 करोड़ थी वहीं आज हमारी जनसंख्या लगभग 141 करोड़ हो चुकी है। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन हमारी जनसंख्या में 50 हजार की बढ़ोत्तरी हो रही है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या की यह वृद्धि दर देश की अनेक समस्याओं का कारण है। हमें यदि आज भुखमरी सहित घटते संसाधन, प्रदूषण, पर्यावरण क्षरण एवं कम होती कृषि योग्य भूमि का सामना करना पड़ रहा है तो इसका कारण जनसंख्या की वृद्धि है। आज हम विश्व में गरीबी सूचकांक पर 103वें क्रमांक पर हैं जबकि कुछ वर्ष पहले हम 97वें क्रमांक पर थे। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी एवं कुपोषण के कारण मृत्युदर के मूल में जनसंख्या की बढ़ोत्तरी है। कुपोषण के कारण होने वाली मृत्यु का एक तिहाई भारत में है। उन्होंने कहा कि भारत के सशक्त नेतृत्व की अगुवाई में आज हम आर्थिक क्षेत्र में तीव्र एवं सत्त विकास कर रहे हैं। आर्थिकी के मजबूत होने के उपरांत भी हमें बढ़ती जनसंख्या के कारण विभिन्न क्षेत्रांे में समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। भारत की प्रति व्यक्ति आर्थिकी 2 हजार डाॅलर है। जबकि अमेरिका की 55 हजार डाॅलर है। जनसंख्या की बढ़ोत्तरी के कारण ही वर्तमान में देश के 20 हजार करोड़ से अधिक लोग मात्र 5 हजार रुपये प्रतिमाह पर गुजारा कर रहे हैं उन्होंने कहा कि बढ़ते अपराध के मूल में भी जनसंख्या बढ़ोत्तरी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी एवं गरीबी है। जनसंख्या की वृद्धि के कारण हमारे संसाधनों पर भी विपरित असर पड़ रहा है। देश में उपलब्ध लगभग 70 प्रतिशत जल पीने योग्य नहीं बचा है। पेयजल के मामले में हम 122 देशों में से 120वें स्थान पर है। शांता कुमार ने सभी से आग्रह किया कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की तरह देश में जनसंख्या नियंत्रण का माहौल भी तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि जनसंख्या को नियंत्रित कर ही हम भारत की वास्तविक क्षमताओं को उभार पाएंगे। उन्होंने आशा जताई कि अपनी तरह की इस प्रथम संगोष्ठी से जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में बेहतर कार्य करने का अवसर मिलेगा। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री विपिन सिंह परमार ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि केन्द्र तथा प्रदेश सरकार इस ज्वलंत समस्या को लेकर गंभीर है और यह प्रयास किया जा रहा है कि सर्वप्रथम लोगों को लड़का-लड़की की समानता एवं लिंगानुपात के विषय में जागरूक बनाया जाए। उन्होंने कहा कि हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के कारणों में से एक कारण लड़के की चाह भी है। उन्होंने कहा कि देश तथा प्रदेश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जा रहा है। इनके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। विपिन सिंह परमार ने कहा कि आशा कार्यकर्ता एवं स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी जनसंख्या नियंत्रण के विषय में जमीनी स्तर पर लोगों को जागरूक बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस दिशा में शत-प्रतिशत सफलता जन सहयोग पर ही निर्भर है। उन्होंने संगोष्ठी के आयोजन के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा जनसंख्या नियंत्रण जन जागरण मंच को बधाई दी। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा सहकारिता मंत्री डाॅ. राजीव सैजल ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण आज न केवल समय की मांग है अपितु घटते संसाधनों एवं पृथ्वी पर बढ़ते दबाव के दृष्टिगत इसे अपनाया जाना आवश्यक भी है। उन्होंने इस सम सामायिक विषय पर लोगों को जागरूक करने के लिए शांता कुमार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि शांता कुमार को स्वच्छ एवं ईमानदार राजनीति के पर्याय के रूप में जाना जाता है और ऐसे ओजस्वी वक्ता से देश की सबसे बड़ी समस्या को नियंत्रित करने के बारे में जानकारी प्राप्त करना सभी के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। उन्होंने बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न परिस्थितियों तथा भविष्य की चुनौतियों से रूबरू करवाने के लिए इस संगोष्ठी में शांता कुमार का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी में जिला सोलन की आशा कार्यकर्ताओं ने भारतीय मजदूर संघ की अध्यक्षता में स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार को अपनी मांगों के संबंध में ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर एक संतान वाले सोलन जिला के 10 अभिभावकों को भी सम्मानित किया गया। इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना के तहत रिया, भानू ठाकुर, मुस्कान तथा अर्चना को 12,500-12,500 की एफडी तथा वंशिका को 35 हजार रुपये की एफडी प्रदान की गई। जनसंख्या नियंत्रण जन जागरण मंच के स्वागत अध्यक्ष डाॅ. राजेश कश्यप ने सभी का स्वागत किया और संगोष्ठी के आयोजन के कारणों पर प्रकाश डाला। पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर शांता कुमार की धर्मपत्नी संतोष शैलजा, दून विधानसभा क्षेत्र के विधायक परमजीत सिंह पम्मी, पूर्व सांसद प्रो. वीरेंद्र कश्यप, पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत, पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा, भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रश्मिधर सूद, बघाट बैंक के अध्यक्ष पवन गुप्ता, नगर परिषद सोलन के अध्यक्ष देवेंद्र ठाकुर, उपाध्यक्ष मीरा आनंद, पार्षगण, भाजपा प्रवक्ता एवं राज्य सुपरवाईजरी बोर्ड की सदस्य रितु सेठी, एपीएमसी सोलन के अध्यक्ष संजीव कश्यप, पूर्व जिला भाजपा अध्यक्ष डाॅ. श्रीकांत शर्मा, भाजपा पंचायत चुनाव प्रकोष्ठ के प्रभारी एचएन कश्यप, व्यापार मंडल सोलन के अध्यक्ष मुकेश गुप्ता, डाॅ. धर्म सिंह गुलेरिया, भाजपा के विभिन्न प्रकोष्ठों के पदाधिकारी, सोलन के प्रख्यात समाजसेवी, अन्य गणमान्य व्यक्ति तथा बड़ी संख्या में लोग इस अवसर पर उपस्थित थे।
धर्मशाला में प्रशासन की मोबाइल ऐप-जीपीएस सिस्टम से लैस बाइक चलाने की योजना हिमाचल प्रदेश की पहली स्मार्ट सिटी को जल्द ही मोबाइल ऐप से चलने वाली स्मार्ट बाइक्स मिलेंगी। इन बाइक्स में जीपीएस सिस्टम भी लगा होगा। बताया जा रहा है कि धर्मशाला शहर में बाइक शेयरिंग सिस्टम के तहत लोगों को यह सुविधा प्रदान की जाएगी। जैसे ही शहर से बाहर बाइक को ले जाया जाएगा, वह वहीं बंद हो जाएगी। बाइक शेयरिंग मोबाइल ऐप में किलोमीटर के हिसाब से पैसे कटेंगे। धर्मशाला स्मार्ट सिटी प्रशासन ने इस बाइक के लिए टेंडर प्रकिया शुरू कर दी है।
सरकार का दावा : जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य करगिल में उग्र प्रदर्शन: करगिल के पूर्व विधायक हाजी असगर का दावा है कि करगिल में काफी हंगामा हो रहा है, धारा 144 के बीच करगिल में उग्र प्रदर्शन हो रहा है। धारा 144 बरकरार, ढील के बीच रोजमर्रा के सामान के लिए सड़कों पर निकले लोग बौखलाया पाकिस्तान, उलजुलूल बयानों का सिलसिला ज़ारी अभी भी श्रीनगर में हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल राजयसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद को श्रीनगर एयरपोर्ट पर रोका गया
आज हम आपको दर्शन करवाने जा रहे हैं भागसू नाग मंदिर की। यह मंदिर लोकप्रिय प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो मैक्लोडगंज के मुख्य शहर से लगभग 3 किमी पूर्व और धर्मशाला से लगभग 11 किमी दूर स्थित है। प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता में बना यह मंदिर भागसू नाग की रोचक कथा लिए हुए है।इस मंदिर का निर्माण राजा भागसू द्वारा भगवान शिव और स्थानीय देवता भागसू नाग के समर्पण में बनाया गया था। भागसु नाग मंदिर समुद्र तल से 1770 मीटर की ऊंचाई पर है और यहां साल भर बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। ये है इतिहास: यहां के शिलापट्ट पर महंत गणेश गिरी के हवाले से 1972 में लिखे वर्णन के अनुसार अजमेर का दैत्य राजा भागसू के नाम से जाना जाता था। वह मायावी और जादूगर था। उसके राज्य में एक बार भारी जल संकट हो गया। लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। प्रजा को इस संकट से मुक्ति दिलाने के लिए राजा ने कमंडल उठाकर चल पड़ा। वह धौलाधार पर्वत श्रृंखला में 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित नाग डल अर्थात नाग झील पर पहुंचा। यहाँ पहुँच कर राजा ने झील के पवित्र जल को माया से अपने कमंडल में समेटा और लौट चला अपने देश। इसके कुछ देर बाद नाग देवता जब अपनी झील पर आए तो उन्होंने देखा कि झील का सारा पानी सूख गया है। राजा भागसू के पदचिह्नों का उन्होंने पीछा किया और आज के भागसू नाग मंदिर वाले स्थान पर नाग देवता ने उसे पकड़ लिया। दोनों में भयानक युद्ध हुआ। मायावी राजा भागसू मारा गया और कमंडल का जल बिखर गया। नाग देवता के डल में फिर से जल भर गया और युद्ध वाले स्थान पर पवित्र जल का चश्मा बहने लगा। किन्तु मरते वक्त राजा भागसू ने नाग देवता से अपने और अपने राज्य के कल्याण की प्रार्थना की तो नाग देवता प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से तू केवल भागसू नहीं बल्कि भागसू नाग के नाम से प्रसिद्ध होगा और देवता के रूप में इसी स्थान पर तेरी पूजा अर्चना होगी। विशेषताएं भागसुनाथ मंदिर मैकलोडगंज का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। भागसुनाथ मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। पवित्र तीर्थस्थल अपने दो पूलों के लिए प्रसिद्ध है, जिनके बारे में माना जाता है कि उनमें उपचार के गुण हैं। इसके अलावा, मंदिर में प्रतिष्ठापित मूर्तियों को अविश्वसनीय शक्तियों का अधिकारी माना जाता है। भागसु नाग मंदिर स्थानीय गोरखा और हिंदू समुदाय द्वारा अत्यधिक पूजनीय है। भागसू नाग मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय वार्षिक मेले के दौरान होता है जो सितंबर के महीने में यहां लगता है। मंदिर परिसर में दो मंजिला विश्राम गृह है जहां मंदिर के दर्शन करने वाले भक्त रह सकते हैं। डल झील, कोतवाली बाजार और भागसू फॉल इस पवित्र मंदिर के आसपास के मुख्य आकर्षण हैं। भक्त इस मंदिर में सड़क मार्ग, रेल मार्ग, वायु मार्ग द्वारा पहुंच सकते हैं।
यहाँ माँ शक्ति की नौ ज्वालाएँ प्रज्ज्लित हैं और माना जाता है कि देवी सती की जीभ इसी जगह गिरी थी। हम बात कर रहे है ज्वाला माता मंदिर की। ज्वाला देवी का मंदिर देवी के 51 शक्ति पीठों में से एक है।ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है। इस मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर (Jwalamukhi Mandir) के नाम से भी जाना जाता है। यह हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में शामिल है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। यहाँ धधकती ज्वाला बिना घी, तेल दीया और बाती के लगातार जलती रहती है। यह ज्वाला पत्थर को चीरकर बाहर निकलती आती है। ज्वाला देवी की उत्पत्ति से संबंधित कई कथाएं लोगों के बीच बहुत प्रचलित हैं। प्रचलित कथाएं भक्त गोरखनाथ के इंतज़ार में जल रही ज्वाला ज्वाला माता से संबंधित गोरखनाथ की कथा इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। कथा है कि भक्त गोरखनाथ यहां माता की आरधाना किया करता था। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माता आग जलाकर बैठ गयी और गोरखनाथ भिक्षा मांगने चले गये। इसी बीच समय परिवर्तन हुआ और कलियुग आ गया। भिक्षा मांगने गये गोरखनाथ लौटकर नहीं आये। तब ये माता अग्नि जलाकर गोरखनाथ का इंतजार कर रही हैं। मान्यता है कि सतयुग आने पर बाबा गोरखनाथ लौटकर आएंगे, तब-तक यह ज्वाला यूं ही जलती रहेगी। मान्यता है कि पवित्र देवी नीली लौ के रूप में खुद प्रकट हुईं थीं और यह देवी का चमत्कार ही है कि पानी के संपर्क में आने पर भी ये लौ नहीं बुझती। “पंजन पंजवन पंडवन तेरा भवन बान्या” इस मंदिर के पीछे एक और पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा यह है कि, कई हजार साल पहले एक चरवाहे ने पाया कि उसकी एक गाय का दूध नहीं बचता था। एक दिन उसने गाय का पीछा किया और वहां एक छोटी सी लड़की को देखा, जो गाय का पूरा दूध पी जाती थी। उन्होंने राजा भूमि चंद को इसकी सूचना दी, जिन्होंने अपने सैनिकों को पवित्र स्थान का पता लगाने के लिए जंगल में भेजा, जहां मा सती की जीभ गिरी थी क्योंकि उनका मानना था कि छोटी लड़की किसी तरह देवी का प्रतिनिधित्व करती थी। कुछ वर्षों के बाद, पहाड़ में आग की लपटें पाई गईं और राजा ने इसके चारों ओर एक मंदिर बनाया। यह भी कल्पित है कि पांडवों ने इस मंदिर का दौरा किया और इसका जीर्णोद्धार किया। लोक गीत “पंजन पंजवन पंडवन तेरा भवन बान्या” इस विश्वास की गवाही देता है। अकबर क चढ़ाया छत्र मां ने नहीं किया कबूल मुगल बादशाह अकबर और देवी मां के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी कथा खास प्रचलित है। हिमाचल निवासी ध्यानु भगत काफी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था। एंटनी बड़ी संख्या देखकर सिपाहियों ने चांदनी चौक (दिल्ली) पर उन्हें रोक लिया और बंदी बनाकर अकबर के दरबार में पेश किया। बादशाह ने पूछा, तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानू ने उत्तर दिया, मैं ज्वाला माई के दर्शन के लिए जा रहा हूं। मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माताजी के भक्त हैं और यात्रा पर जा रहे हैं। अकबर ने कहा यह ज्वाला माई कौन है, वहां जाने से क्या होगा। ध्यानू ने कहा कि ज्वाला माई संसार का पालन करने वाली माता हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं। इस पर अकबर ने कहा, अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता अवश्य तुम्हारी इज्जत रखेगी। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिंदा करवा लेना। इस प्रकार, घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानू ने बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ध्यानू की बात मानते हुए उसे आगे की यात्रा की अनुमति दे दी। ध्यानु साथियों के साथ माता के दरबार में पहुंचा। उसने प्रार्थना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। माना जाता है कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को फिर से जिंदा कर दिया। यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया। इसके बाद अहंकारी अकबर ने अपनी सेना के साथ मंदिर की तरफ चल पड़ा। मंदिर पहुंचने पर सेना से मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे मां की महिमा का यकीन हुआ। उसने माता के आगे सिर झुकाया और सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया। कहा जाता है कि वह छत्र गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। जिसे आज भी मंदिर में देखा जा सकता है। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वाला देवी मंदिर वास्तुकला की एक इंडो-सिख शैली का अनुसरण करती है। ज्वाला देवी मंदिर एक लकड़ी के मंच पर बनाया गया है और शीर्ष पर एक छोटा गुंबद है। मंदिर के गुंबद और शिखर को सोने से ढका गया था जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने उपहार में दिया था। मुख्य द्वार से पहले एक बड़ा घंटा है, इसे नेपाल के राजा ने प्रदान किया था। कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है। इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। मंदिर में विशालकाय चाँदी के दरवाज़े हैं। इसका गुंबद सोने की तरह चमकने वाले पदार्थ की प्लेटों से बना है। पूजा के लिए मंदिर का आंतरिक हिस्सा चौकोर बनाया गया है। मौसम के अनुसार मंदिर के खुलने और बंद होने के समय में बदलाव कर दिया जाता है। गर्मियों में जहां मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है, वहीं सर्दी के दिनों में सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन के लिए खुलता है। भक्त अपनी भक्ति की निशानी के रूप में देवी को रबड़ी, मिश्री, चुनरी, दूध, फूल और फल अर्पित करते हैं। यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता है जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है। मंदिर में पुजारियों द्वारा की जाने वाली आरती मंदिर का मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर में दिन के दौरान पांच आरती और एक हवन किया जाता है। मुख्य हॉल के केंद्र में संगमरमर से बना एक बिस्तर है जिसे चांदी से सजाया गया है।
प्रदेश सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को गम्भीर रोग की स्थिति में त्वरित सहायता पंहुचाने के उद्देश्य से ‘सहारा’ योजना आरम्भ हो गई है। योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के रोगियों को शीघ्र सहायता प्रदान की जाएगी। सहारा योजना पूरे प्रदेश में 15 जुलाई, 2019 से आरम्भ कर दी गई है। योजना के तहत कैंसर, पार्किंसनस रोग, लकवा, मस्कुलर डिस्ट्राफी, थैलेसिमिया, हैमोफिलिया, रीनल फेलियर इत्यादि ये ग्रस्त रोगियों को वित्तीय सहायता के रूप में 2000 रुपए प्रतिमाह प्रदान किए जाएंगे। योजना के तहत किसी भी आयुवर्ग का इन रोगों से ग्रस्त रोगी आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकता है। इस योजना के तहत बीपीएल परिवार से सम्बन्धित रोगियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। रोगी को अपना चिकित्सा सम्बन्धी रिकाॅर्ड, स्थाई निवासी प्रमाण पत्र, फोटोयुक्त पहचान पत्र, बीपीएल प्र्रमाण पत्र अथवा पारिवारिक आय प्रमाण पत्र तथा बैंक शाखा का नाम, अपनी खाता संख्या, आईएफएससी कोड से सम्बन्धित दस्तावेज प्रदान करने होंगे। चलने-फिरने में असमर्थ रोगी के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी जीवित होने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। सहारा योजना का लाभ उठाने के लिए पात्र रोगी को अपना आवेदन सभी दस्तावेजों सहित मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में जमा करवाना होगा। आशा कार्यकर्ता व बहुदेशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी रोगी के सभी दस्तावेज खण्ड चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में जमा करवा सकते हैं। खण्ड चिकित्सा अधिकारी इन दस्तावेजों को मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय को प्रेषित करेंगे। योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए आवेेदन पत्र जिला स्तर के अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा हेल्थ वेलनेस केन्द्रों में 03 अगस्त, 2019 से उपलब्ध होंगे। जिला चिकित्सा अधिकारी सोलन डाॅ. आर.के. दरोच ने सहारा योजना के विषय में अधिक जानकारी देते हुए कहा कि इस महत्वाकांक्षी योजना से जिला के सभी लोगों को अवगत करवाने के लिए विभाग ने आशा कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर जागरूक बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि सहारा योजना के तहत पात्र रोगियों को 2000 रुपए प्रतिमाह की वित्तीय सहायता आरटीजीएस के माध्यम से ही उपलब्ध करवाई जाएगी। उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि सहारा योजना के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करें ताकि आवश्यकता के समय विभिन्न गम्भीर रोगों से पीड़ित रोगियों के परिजनोें को जानकारी देकर लाभान्वित किया जा सके। उन्होंने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी सोलन के कार्यालय के कक्ष संख्या 132 में योजना के सम्बन्ध में सम्पर्क किया जा सकता है। डाॅ. आर.के. दरोच ने कहा कि सहारा योजना आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने एवं उनकी देखभाल की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगी।
राज्यसभा में बुधवार को मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित हो गया। यह न केवल एक मोटर वाहन अधिनियम है, बल्कि एक सड़क सुरक्षा बिल भी है। इस बिल का मकसद सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाना है, इसके लिए नियमों को और कड़ा किया गया है। वहीं जुर्माने में भी वृद्धि की गई है। जानिए क्या है मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 में यातायात नियमों और विनियमों के उल्लंघन के लिए न्यूनतम जुर्माना 100 रुपए से बढ़ाकर 500 रुपए कर दिया गया है। कई अपराधों के लिए अधिकतम जुर्माना 10,000 रुपए तय किया गया है। बिना लाइसेंस के वाहन चलाने के मामले में जुर्माना 500 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए कर दिया गया है। सीट बेल्ट नहीं पहनने पर 1,000 रुपए का जुर्माना लगेगा। यह अब तक केवल 100 रुपए था। शराब पीकर वाहन चलाने के मामलों में जुर्माना 2,000 रुपए से 10,000 रुपए तक का है। खतरनाक ड्राइविंग के लिए जुर्माना 5,000 रुपए है। इमरजेंसी वाहनों को पास नहीं देने पर 10 हजार रुपए जुर्माना के रूप में लगेगा। पिछले कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। ओवर-स्पीडिंग के मामलों में चालक को हल्के मोटर वाहनों जैसे कारों के लिए 1,000 रुपए और भारी वाहनों के लिए 2,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। रेसिंग में लिप्त पाए जाने पर चालक को 5,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। यदि आपके वाहन का बीमा कवरेज समाप्त हो गया है और आप अभी भी इसे चला रहे हैं, तो आपको 2,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। जुर्माने में हर साल 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। मौजूदा कानून के तहत हिट-एंड-रन मामलों में क्षतिपूर्ति 25,000 रुपए है। इसे बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया गया है। चोटों के मामलों में, मुआवजा 12,500 रुपए से बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया गया है। सभी सड़क उपयोगकर्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज और सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए केंद्रीय स्तर पर एक मोटर वाहन दुर्घटना निधि बनाई जाएगी।
हिमाचल में स्क्रब टायफस बीमारी से निपटने की तैयारी व नियंत्रण को लेकर अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) आरडी धीमान की अध्यक्षता में समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। आरडी धीमान ने कहा कि स्क्रब टायफस बीमारी की जांच व इलाज की सुविधा सरकारी अस्पतालों में निशुल्क उपलब्ध है और सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में इसके इलाज के लिए दवाइयों भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में जनवरी, 2019 से अब तक स्क्रब टायफस के 220 मामले दर्ज किए गए हैं। बिलासपुर में सर्वाधिक मामले दर्ज हुई हैं। आरडी धीमान ने कहा कि पिछले चार सालों में स्क्रब टायफस के मामलों में वृद्धि हुई हैं। स्क्रब टायफस फैलाने वाला पिस्सू शरीर के खूले भागों को ही काटता है। इसके लिए उन्होंने लोगों को सलाह दी घरों के आसपास खरपतवार आदि न उगने दें व शरीर की सफाई का विशेष ध्यान रखें। उन्होंने बताया कि 104 से 105 डिग्री का तेज बुखार, सिर व जोड़ों में दर्द व कंपकंपी, शरीर में ऐंठन, अकड़न या शरीर टूटा हुआ लगना आदि स्क्रब टायफस के लक्षण हैं। यदि ये लक्षण दिखाई दें तो तुरंत नज़दीकी अस्प्ताल में संपर्क करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थान पर माता सती के चरण गिरे थे और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई।हम बात कर रहे है चामुंडा देवी मंदिर की, जहाँ आने भर से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।प्रसिद्ध शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मनमोहक हिल स्टेशन पालमपुर में स्थित है। बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है।चामुंडा देवी का ये मंदिर समुद्र तल से 1000 मीकी ऊंचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार भगवान् शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे। इसलिए पड़ा चामुंडा देवी नाम दुर्गा सप्तशती’ के सातवें अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया। माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरूप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में ‘चामुंडा’ के नाम से विख्यात हो जाओगी। मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरूप को चामुंडा रूप में पूजते हैं। चामुण्डा देवी मंदिर के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करता है। चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है। भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना माँ की कृपा पाने के लिए सबसे सरल तरीका है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है। मंदिर के समीप एक छोटा-सा तालाब मिलेगा, जिसके पानी को बहुत ही शुद्ध माना जाता है। मंदिर परिसर में ही कई देवी-देवताओं के चित्र भी देखने को मिलते हैं। मंदिर परिसर में ही एक खोखली जगह है, जो देखने पर शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। यात्री पहाडी सौन्दर्य का लुफ्त उठाते हुए चामुण्डा देवी तक पहुंच सकते हैं। इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है, जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूती करता है। पर्यटक सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है और इन्हें भगवान शिव के आदि-अनन्त रूप के प्रतीक के तौर पर पूजा जाता है।ज्योतिर्लिंग में स्वयं शिव का वास होता है। पुराणों के अनुसार इन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, पूजन, आराधना और नाम जपने मात्र से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद किनारे स्थित है भगवान् सोमनाथ का मंदिर। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है। मान्यता है कि चंद्रमा ने भगवान शिव को आराध्य मानकर पूजा की थी, इसलिए उसी के नाम पर इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा। महादेव के करोड़ों भक्तों के लिए सोमनाथ का विशेष महत्व है।पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने यदु वंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थी। ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को भेद डाला था। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। इसके दर्शन से सात्विक मनोकामनाएं पूरी होती हैं और दैहिक, दैविक और भौतिक पाप नष्ट हो जाते हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से लोगों के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं। यह परम पवित्र ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में है। इसे प्राचीन साहित्य में अवन्तिका पुरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान महाकालेश्वर का भव्य ज्योतिर्लिंग विद्यमान है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर है। यह मध्य प्रदेश के शिवपुरी में स्थित है। यहाँ दो ज्योतिर्लिंगों की पूजा की जाती है, ओंकारेश्वर और अमलेश्वर। यही केवल एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि ये तट ॐ के आकार का है। यहाँ प्रतिदिन अहिल्याबाई होल्कर की तरफ से मिट्टी से निर्मित 18 शिवलिंग तैयार करके नर्मदा नदी में विसर्जित किये गए हैं। यह ज्योतिर्लिंग पंचमुखी है। मान्यता है कि भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके यहाँ विश्राम करते हैं। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के उत्तराखंड राज्य में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। श्री केदारनाथ को ‘केदारेश्वर’ भी कहा जाता है, जो केदार नामक शिखर पर विराजमान है। इस शिखर से पूर्व दिशा में अलकनन्दा नदी के किनारे भगवान श्री बद्री विशाल का मन्दिर है। जो कोई व्यक्ति बिना केदारनाथ भगवान का दर्शन किए यदि बद्रीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है, तो उसकी यात्रा निष्फल अर्थात व्यर्थ हो जाती है। भीमशंकर ज्योतिर्लिंग इस ज्योतिर्लिंग का नाम ‘भीमशंकर’ है, जो डाकिनी पर अवस्थित है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में भीमाशंकर का स्थान छठा है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किमी दूर सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमशंकर मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन यहां के कुछ भाग का निर्माण नया भी है। इस मंदिर के शिखर का निर्माण कई प्रकार के पत्थरों से किया गया है। यह मंदिर मुख्यतः नागर शैली में बना हुआ है। मंदिर में कहीं-कहीं इंडो-आर्यन शैली भी देखी जा सकती है। विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग सप्तम ज्योतिर्लिंग काशी में विराजमान ‘विश्वनाथ’ को सप्तम ज्योतिर्लिंग कहा गया है। कहते हैं, काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। इसे आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र तथा काशी आदि अनेक नामों से स्मरण किया गया है। काशी साक्षात सर्वतीर्थमयी, सर्वसन्तापहरिणी तथा मुक्तिदायिनी नगरी है। निराकर महेश्वर ही यहाँ भोलानाथ श्री विश्वनाथ के रूप में साक्षात अवस्थित हैं। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग अष्टम ज्योतिर्लिंग को ‘त्र्यम्बक’ के नाम से भी जाना जाता है। श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग तीन छोटे-छोटे लिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रतीक स्वरूप, त्रि-नेत्रों वाले भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रायः शिवलिंग दिखाई नहीं देता है, गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। सुवह होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग नवम ज्योतिर्लिंग ‘वैद्यनाथ’ हैं। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त के संथाल परगना में जसीडीह रेलवे स्टेशन के समीप में है। पुराणों में इस जगह को चिताभूमि कहा गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे ‘वैद्यनाथधाम’ कहा जाता है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग नागेश नामक ज्योतिर्लिंग जो गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के समीप है। इस स्थान को दारूकावन भी कहा जाता है। मान्यता है कि सावन मास में इस प्राचीन नागेश्वर शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंगों की एक साथ पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। मंदिर में इन अद्भुत शिवलिंगों के दर्शन व पूजन के लिए दूर-दूर से श्रद्घालु आते हैं। सावन में विशेष रूप से सोमवार को खासी भीड़ रहती है। मान्यता है कि भगवान शिव के निर्देशानुसार ही इस शिवलिंग का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा। रामेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के प्रमुख तीर्थों में से एक रामेश्वरम को भगवान श्रीराम ने शिवलिंग निर्माण के लिए चुना था। इसलिए इसका नाम रामेश्वर पड़ गया। रामेश्वरम को पुराणों में गंधमादन पर्वत कहा जाता है, यह बंगाल की खाड़ी एवं अरब के सागर के संगम स्थल पर स्थित है। रामेश्वरतीर्थ को ही सेतुबन्ध तीर्थ कहा जाता है। यह स्थान तमिलनाडु के रामनाथम जनपद में स्थित है। यहां समुद्र के किनारे भगवान रामेश्वरम का विशाल मन्दिर शोभित है। यह हिंदुओं के चार धामों में से एक धाम है। घृश्णेश्वर ज्योतिर्लिंग घृश्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र क्षेत्र के अन्तर्गत दौलताबाद से लगभग अठारह किलोमीटर दूर ‘बेरूलठ गांव के पास है। इस स्थान को ‘शिवालय’ भी कहा जाता है। घृश्णेश्वर को लोग घुश्मेश्वर और घृष्णेश्वर भी कहते हैं। घृश्णेश्वर से लगभग आठ किलोमीटर दूर दक्षिण में एक पहाड़ की चोटी पर दौलताबाद का क़िला मौजूद है।इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवाया गया था। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल के हिन्दू मानते हैं कि उपरोक्त 12 ज्योतिर्लिंग धड़ हैं और काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर इसका सर है।
पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर की थी महाकाल की आराधना पालमपुर से 16 किमी की दूरी पर स्थित बैजनाथ मंदिर लाखों शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है। द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास ने दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। कहते हैं कि मंदिर बनवाने के बाद पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर महाकाल की आराधना की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहुक एवं मनुक नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है। भगवान शिव ने रावण को दिए थे दो शिवलिंग बैजनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग के स्थापना की कथा रावण से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव की तपस्या की थी। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें ज़मीन पर न रखना। रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह बैजनाथ के नाम से जाना गया। सप्तऋषियों ने स्थापित किए थे सात कुंड मान्यता यह भी है कि सप्तऋषि जब इस क्षेत्र के प्रवास पर थे, तब सात कुंडों की स्थापना की गई थी। इनमें से चार कुंड- ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड और सती कुंड आज भी मंदिर में मौजूद हैं। तीन कुंड- लक्ष्मी कुंड, कुंती कुंड और सूर्य कुंड मंदिर परिसर के बाहर हैं। जाने बैजनाथ मंदिर के बारे में यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के चामुंडा देवी मंदिर से 22 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां शिवलिंग पर चढ़ने वाला पानी या दूध कहीं भी बाहर निकलता नजर नहीं आता। इस मंदिर को अघोरी साधकों और तंत्र विद्या का केंद्र माना जाता है। इसका पुराना नाम कीरग्राम था, परन्तु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम बैजनाथ पड़ गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है। पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। श्रद्धालु रेलमार्ग,हवाई सेवा, बस या निजी वाहन व टैक्सी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश की हरियाली बढ़ाने के लिए यूं तो वन विभाग हर साल हर संभव प्रयास करता है। पर अब नई योजना से यह जन अभियान बन सकेगा। अब नवजात कन्या के नाम पर बूटा लगाकर हिमाचल प्रदेश में हरियाली बढ़ाई जाएगी । हिमाचल इस तरह की अनूठी पहल करने जा रहा है। प्रदेश में जहां भी बेटी पैदा होगी, उस परिवार को वन विभाग पौधा भेंट करेगा। इसे संबंधित क्षेत्र में रोपा जाएगा। कन्या कहां पैदा हुई, इसका पता लगाने की जिम्मेदारी वन रक्षक की रहेगी। वह पंचायतों से लेकर तमाम विभागों से संपर्क में रहेगा। किस प्रकार की भूमि में कौन से पौधे रोपे जाएंगे, यह जल्द ही तय होगा। इस सिलसिले में सरकार ने प्रारंभिक खाका खींच लिया है। इस योजना का नाम ‘एक बूटा बेटी के नाम’ होगा। इसे मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा। रोपे पौधे की देखभाल बेटी के मां-बाप करेंगे। बजट सत्र में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने नई योजना शुरू करने का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव तैयार किया गया है। जैसे ही सरकार स्वीकृति देगी, यह धरातल पर उतरेगी।
बगलामुखी मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रहा है। कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बे में स्थित माँ श्री बगलामुखी का सिद्ध शक्तिपीठ है। वर्ष भर यहाँ श्रद्धालु मन्नत माँगने व मनोरथ पूर्ण होने पर आते हैं। माँ बगलामुखी का मंदिर ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर वनखंडी नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। बगलामुखी मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। पांडुलिपियों में माँ के जिस स्वरूप का वर्णन है, माँ उसी स्वरूप में यहाँ विराजमान हैं। माता बगलामुखी पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। बगलामुखी जयंती पर यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी। सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की गई थी। इसके अतिरिक्त द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। कहा जाता है कि नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ। लोगों का अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती हैं। रावण की ईष्टदेवी हैं मां बगलामुखी मंदिर के पुजारी दिनेश बताते हैं कि मां बगलामुखी को नौ देवियों में 8वां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। ऐसी मान्यता है कि एक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे जल में कोई मनुष्य या देवता न मार सके। इसके बाद वह ब्रह्मा जी की पुस्तिका ले कर भाग रहा था। तभी ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया। मां बगलामुखी ने राक्षस का पीछा किया तो राक्षस पानी में छिप गया। इसके बाद माता ने बगुले का रूप धारण किया और जल के अंदर ही राक्षस का वध कर दिया। त्रेतायुग में मा बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। त्रेतायुग में रावण ने विश्व पर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। इसके अलावा भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्ति के लिए मां बगलामुखी की आराधना की। इसलिए विशेष है माँ बगलामुखी मंदिर... बगलामुखी शब्द बगल और मुख से आया है, जिनका मतलब क्रमशः लगाम और चेहरा है। मां को शत्रुनाशिनी माना जाता है। पीला रंग मां प्रिय रंग है। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है। यहां तक कि प्रसाद भी पीले रंग ही चढ़ाया जाता है। मंदिर में बस या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर में दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां तक की नेताओं से लेकर अभिनेता भी मां के दर्शन पाकर,शुत्रओं के नाश की कामना करने मंदिर आते हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी मां के दरबार में शीश झुकाया था। मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहाँ लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं। कांगड़ा के बगलामुखी मंदिर में देशभर से श्रद्धालु आते हैं। बगलामुखी जयंती पर मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है। श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं। मंदिर में हवन करवाने के लिए बाकायदा बुकिंग करवानी पड़ती है। पहले यहां एक ही हवन कुंड था तो आलम यह था कि कई महीने हवन करवाने के लिए इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब यहां हवन कुंडों की संख्या बड़ा दी गई है। माँ बगलामुखी के हैं तीन मंदिर भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर हैं, जो क्रमशः दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं। तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का एक मंदिर आगरमालवा जिला में नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे है। मां बगलामुखी रावण की ईष्टदेवी हैं।
बिजली खपत पर रहेगी निगरानी अब आप जल्द ही मोबाइल फ़ोन के ज़रिये अपने घर और कार्यालय में हो रही बिजली की खपत में नज़र रख सकेंगे। इसके लिए हिमाचल सरकार सभी पुराने मीटरों को बदल कर स्मार्टबिजली मीटर लगाने जा रही है। राज्य बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक जे पी कालटा ने बताया कि स्मार्ट मीटर लगाने का काम जल्द शुरू होगा। एक मोबाइल एप्लीकशन करनी होगी डाउनलोड स्मार्ट बिजली मीटर लगने के बाद उपभोक्ताओं को एक मोबाइल ऐप्प अपने फ़ोन पर डाउनलोड करनी होगी। इसकी मदद से उपभोक्ता किसी भी समय यह जान सकेंगे कि उन्होंने कितनी बिजली इस्तेमाल की। इस मीटर को उपभोक्ता प्री-पेड मीटर के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकेंगे। प्री-पेड मीटर मोबाइल फ़ोन की तरह ही इस्तेमाल होंगे। इसके अलावाउपभोक्ताओं को बिल जमा करवाने का विकल्प भी मिलेगा। अब रीडिंग लेने के लिए उपभोक्ताओं के घर नहीं जायेंगे बिजली बोर्ड कर्मचारी स्मार्ट बिजली मीटर लगने के बाद बिजली बोर्ड कर्मचारियों को उपभोक्ता के घर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इस मीटर से ऑनलाइन रीडिंग ले ली जाएगी। लो वोल्टेज, बिजली बंद होने और बिजली चोरी होने की भी कण्ट्रोल रूम में जानकारी पहुंचेगी। बिल जमा न करने पर कंट्रोल रूम से ही कनेक्शन काट लिया जाएगा। मीटर लगाने के लिए उपभोक्ताओं को भी चुकाना होगा शुल्क एक स्मार्ट बिजली मीटर 2800 से 3000 रूपए में पडेगा। इसके लिए केंद्र करीब 1200 रूपए प्रति मीटर सब्सिडी देगा। शेष खर्च राज्य बिजली बोर्ड और उपभोक्ताओं को उठाना पडेगा। पुराने बिजली मीटरों की राशि उपभोक्ताओं के शेयर में एडजेस्ट करने की भी योजना है। 2022 तक लगेंगें प्रदेश में 24 लाख स्मार्ट बिजली मीटर पहले चरण में शिमला और धर्मशाला दोनों शहरों में इस साल 1.35 लाख मीटर बदले जायेंगें। इसके बाद पुरे प्रदेश में साल 2021-22 तक 24 लाख स्मार्ट बिजली मीटर लगाने का लक्ष्य है।
शीला दीक्षित कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक थी। उनके ससुर उमा शंकर दीक्षित इंदिरा सरकार में देश के गृह मंत्री रहे थे। शीला ने अपने ससुर की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाया। वे राजीव गाँधी सरकार में मंत्री रही और तीन बार दिल्ली की सीएम बनी। उनका निधन कांग्रेस के लिए एक बड़ी क्षति हैं। आईये जानते हैं शीला दीक्षित के बारे में :- शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ। शीला दीक्षित की शादी स्वतंत्रता सेनानी और देश के पूर्व गृह मंत्री उमा शंकर दीक्षित के बेटे से हुई थी। शीला दीक्षित ने राजनिति के गुर अपने ससुर उमाशंकर दीक्षित से ही सीखे थे। शीला के पति विनोद दीक्षित IAS थे। उनकी और विनोद की मुलाकात उस वक्त हुई थी जब वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से प्राचीन इतिहास की पढ़ाई कर रही थी। उनके 1 बेटा और बेटी हैं, बेटे संदीप दीक्षित सांसद रह चुके हैं। शीला दीक्षित ने अपना पहला चुनाव 1984 में लड़ा था। तब वे कन्नौज सीट से जीतकर संसद पहुंची थी। राजीव गांधी की कैबिनेट में उन्हें संसदीय कार्य मंत्री के रूप में जगह मिली। वे प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री भी बनीं। 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। वे लगातर तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही। वह 3 दिसंबर, 1998 से 4 दिसंबर, 2013 की मुख्यमंत्री बनी रहीं, जो एक रिकॉर्ड है। उनके समय किए गए दिल्ली के विकास के कामों को आज भी लोग याद करते हैं। दिल्ली में कई सारे काम उनके समय ही शुरू किए गए थे जो अब पूरे हो रहे हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में शीला कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतरीं, पर चुनाव हार गईं।
ये वो दौर था जब पहलवानी जगत में हंगेरियन मूल के ऑस्ट्रेलिआई पहलवान किंग कोंग का डंका बजता था। करीब 201 किलोग्राम वजनी किंग कोंग को हराना किसी करिश्मे से कम नहीं था, पर देखते ही देखते करीना कपूर के दादा ने किंग कोंग को उठाकर रिंग से बाहर फेंक दिया। यहां हम शो मेन राज कपूर की बात नहीं कर रहे, हम बात कर रहे हैं फिल्म जब वी मेट में करीना के दादा बने दारा सिंह की। रुस्तम ए हिन्द दारा सिंह रन्धावा का जन्म 19 नवम्बर 1928 को अमृतसर (पंजाब) के गांव धरमूचक में हुआ था। 500 से ज्यादा फाइट लड़ी, कभी नहीं हारे दारा सिंह ने अपनी जिंदगी में 500 से ज्यादा फाइट लड़ी जिसमें वह एक भी मुकाबला नहीं हारे। उन्होंने 29 मई 1968 को फ्री स्टाइल कुश्ती के वर्ल्ड चैंपियन का खिताब जीता था। साथ ही चैंपियन ऑफ मलेशिया, नेशनल रेस्लिंग चैंपियन, रुस्तम-ए-हिंद और रुस्तम-ए-पंजाब जैसे कई अन्य खिताब भी उन्होंने अपने नाम किये। 4 लाख प्रति फिल्म थी फीस कुश्ती के बाद दारा सिंह ने बॉलीवुड में भी किस्मत आजमाई और उन्हें खूब शौहरत और सफलता भी मिली। उन्होंने फिल्मों में एक्टर, निर्देशक, निर्माता के तौर पर काम किया और दर्शकों के दिलों पर छाए रहे। दारा सिंह ने 148 फिल्मों में काम किया। दारा सिंह 60 के दशक में हर फिल्म के लिए 4 लाख रुपये लेते थे, जो बड़े बड़े अभिनेताओं को भी नहीं मिलती थी। 'फौलाद', 'मर्द','मेरा नाम जोकर','कल हो ना हो' और 'जब वी मेट' जैसी फिल्में काफी पसंद की जाती है। वर्ष 1970 में दारा सिंह ने पहली बार पंजाबी फिल्म 'नानक दुखिया सब संसार' को प्रोड्यूस किया। पर दारा का सर्वश्रेष्ठ आना तो अभी बाकी था। हनुमान के किरदार ने कर दिया अमर 1980 के दशक में रामानंद सागर ने रामायण बनाने का निर्णय लिया और हनुमान जी के रोल के लिए भला दारा सिंह से बेहतर कौन हो सकता था। दारा सिंह ने 60 साल की उम्र में 'रामायण' में 'हनुमान' के किरदार को बखूबी निभाया। उस दौर में आलम ये था कि उन्हें देखकर लोग जय श्री राम के नारे लगाना शुरू कर देते थे और आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरणों में गिर जाते थे। उनमें लोगों को साक्षात पवन पुत्र हनुमान दिखते थे। रामानंद सागर की रामायण में निभाए गए बजरंबली हुनुमान के किरदार ने दारा सिंह को सदा के लिए अमर कर दिया। 12 जुलाई 2012 को जबरदस्त कद काठी, फिल्मों में एक्टिंग के मास्टर और टेलीविजन इंडस्ट्री में हनुमान, दारा सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
मोदी सरकार भाग दो का पहला बजट शुक्रवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया है। बजट में पेट्रोल-डीजल पर एक रूपया सेस बढ़ाने की घोषणा की गई है जिससे आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ सकती है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई पर आने वाला खर्च बढ़ जाएगा, जिसका प्रभाव लगभग हर सामान की कीमत पर होना तय माना जा रहा है।बजट में सोना पर शुल्क 10 फीसद से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। साथ ही ये भी घोषणा की गई है कि आने वाले दिनों में तंबाकू पर भी अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। सरकार ने इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को भी प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया हैं। बजट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जीएसटी रेट 12 पर्सेंट से घटाकर 5 पर्सेंट कर दिया गया। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने हेतु लिए गए लोन पर चुकाए जाने वाले ब्याज पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त इनकम टैक्स छूट भी देने का एलान किया है। मुख्य बिंदु... ''हर घर जल, हर घर नल'' के तहत 2024 तक हर घर में नल से होगी जल की आपूर्ति। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण में 1,25,000 किलोमीटर लंबी सड़क को अगले पांच सालों में अपग्रेड किया जाएगा। मार्च 2020 तक 45 लाख रुपये तक की घर खरीद पर ब्याज के पुनर्भुगतान पर 1.5 लाख की अतिरिक्त छूट मिलेगी। 114 दिनों में जरूरतमंदों को घर बनाकर देने का लक्ष्य। 1.95 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य। सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक की नकदी निकासी पर अब दो फीसदी टीडीएस। सोने के आयात शुल्क पर 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी की है। सालाना 2-5 करोड़ रुपये की कमाई वाले व्यक्तियों के सरचार्ज में 3 फीसदी व 5 करोड़ रुपये से अधिक की आय पर सरचार्ज में सात फीसदी का इजाफा। 400 करोड़ रुपये तक के रेवेन्यू वाले कंपनियों को अब 30 फीसदी के मुकाबले 25 फीसदी कॉरपोरेट टैक्स देना होगा। ये हुआ सस्ता - साबुन, शैंपू, हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, डिटरजेंट वाशिंग पाउडर, बिजली का घरेलू सामानों पंखे, लैम्प, ब्रीफकेस, यात्री बैग, सेनिटरी वेयर, बोतल, कंटेनर, रसोई में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों के अलावा गद्दा, बिस्तर, चश्मों के फ्रेम, बांस का फर्नीचर, पास्ता, मियोनीज, धूपबत्ती, नमकीन, सूखा नारियल, सैनिटरी नैपकिन, ऊन खरीदना सस्ता हुआ।