एक ऐसी राजकुमारी जो देश को आज़ाद करवाने के लिए तपस्वी बन गयी, एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता बनी, महात्मा गाँधी से प्रभावित हो कर आज़ादी के आंदोलन से जुडी, जेल गई। आज़ादी के बाद हिमाचल से सांसद चुनी गई और दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रही। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान भी उन्हें प्राप्त है। वो महिला थी राजकुमारी अमृत कौर। ये बहुत कम लोग जानते है की अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बनाने में राजकुमारी अमृत कौर का बड़ा हाथ है। शिमला के समर हिल में एक रेस्ट हाउस है, राजकुमारी अमृत कौर गेस्ट हाउस जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के स्टाफ के लिए है। देशभर में सेवाएं दे रहे एम्स के डॉक्टर, नर्स व अन्य स्टाफ यहाँ आकर छुट्टियां बिता सकते है, वो भी निशुल्क। दरअसल, ये ईमारत 'मैनरविल' स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर का पैतृक आवास थी। इसे अमृत कौर ने एम्स को डोनेट किया था। आज निसंदेह एम्स देश का सबसे बड़ा और सबसे विश्वसनीय स्वास्थ्य संस्थान है। इस एम्स की कल्पना को मूर्त रूप देने में राजकुमारी अमृत कौर का बड़ा योगदान रहा रहा है। उनके स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए ही एम्स बना, वे एम्स की पहली अध्यक्ष भी बनाई गई। उस दौर में देश नया - नया आज़ाद हुआ था और आर्थिक तौर पर भी पिछड़ा हुआ था। तब एम्स की स्थापना के लिए राजकुमारी अमृत कौर ने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमेरिका जैसे देशों से फंडिंग का इंतजाम भी किया था। एम्स की वेबसाइट पर भी इसके निर्माण का श्रेय तीन लोगों को दिया गया है, पहले जवाहरलाल नेहरू, दूसरी राजकुमारी अमृत कौर और तीसरे एक भारतीय सिविल सेवक सर जोसेफ भोरे। एम्स की ऑफिसियल वेबसाइट पर लिखा है कि भारत को स्वास्थ्य सुविधाओं और आधुनिक तकनीकों से परिपूर्ण देश बनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू का सपना था और आजादी के तुरंत बाद उन्होंने इसे हासिल करने के लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार किया। नेहरू का सपना था दक्षिण पूर्व एशिया में एक ऐसा केंद्र स्थापित किया जाए जो चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को गति प्रदान करे और इस सपने को पूरा करने में उनका साथ दिया उनकी स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने। राजपरिवार में जन्मी, करीब 17 साल रही महात्मा गांधी की सेक्रेटरी लखनऊ, 2 फरवरी 1889, पंजाब के कपूरथला राज्य के राजसी परिवार से ताल्लुख रखने वाले राजा हरनाम सिंह के घर बेटी ने जन्म लिया, नाम रखा गया अमृत कौर। बचपन से ही बेहद प्रतिभावान, इंग्लैंड के डोरसेट में स्थिति शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से स्कूली पढ़ाई पूरी की। किताबों के साथ -साथ खेल के मैदान में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। हॉकी से लेकर क्रिकेट तक खेला। स्कूली शिक्षा पूरी हुई तो परिवार ने उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड भेज दिया। शिक्षा पूरी कर 1918 में वतन वापस लौटी और इसके बाद हुआ 1919 का जलियांवाला बाग़ हत्याकांड। इस हत्याकांड ने राजकुमारी अमृत कौर को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने निश्चय कर लिया कि देश की आज़ादी और उत्थान के लिए कुछ करना है, सो सियासत का रास्ते पर निकल पड़ी। राजकुमारी अमृत कौर महात्मा गाँधी से बेहद प्रभावित थी। उस समय उनके पिता हरनाम सिंह से मिलने गोपालकृष्ण गोखले सहित कई बड़े नेता आते थे। उनके ज़रिए ही राजकुमारी अमृत कौर को महात्मा गांधी के बारे में अधिक जानकारी मिली। हालांकि उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो आज़ादी की लड़ाई में भाग लें, राजकुमारी अमृत कौर तो ठान चुकी थी। वे निरंतर महात्मा गांधी को खत लिखती रही। 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की शुरुआत की और बाद में इसकी प्रेसिडेंट भी बनीं। इसी दौरान एक दिन अचानक राजकुमारी अमृत कौर को एक खत मिला, ये खत लिखा था महात्मा गांधी ने। उस खत में महात्मा गांधी ने लिखा, 'मैं एक ऐसी महिला की तलाश में हूं जिसे अपने ध्येय का भान हो। क्या तुम वो महिला हो, क्या तुम वो बन सकती हो? ' बस फिर क्या था राजकुमारी अमृत कौर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गईं। इस दौरान दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल भी गईं। वे करीब 17 सालों तक महात्मा गांधी की सेक्रेटरी रही। महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। ब्रिटिश हुकूमत ने लगाया था राजद्रोह का आरोप अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर सन् 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गईं। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार व संवैधानिक सुधार के लिए गठित ‘लोथियन समिति’ तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-संस्थापक महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना की गई। कौर इसकी सह-संस्थापक थीं। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ‘ऑल इंडिया विमेंस एजुकेशन फंड एसोसिएशन’ के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का सदस्य भी बनाया, जिससे उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह ‘अखिल भारतीय बुनकर संघ’ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। कौर 14 साल तक इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की चेयरपर्सन भी रहीं। देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनी कौर जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। राजकुमारी अमृत कौर सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं। वे लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं। वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं। इससे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी। यही नहीं इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं। स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर, ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया, राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग, और सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट। इन सभी के अलावा नई दिल्ली में एम्स की स्थापना में अमृत कौर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। टाइम मैगज़ीन ने दी वुमन ऑफ द ईयर लिस्ट में जगह दुनिया की मशहूर टाइम मैगज़ीन ने 2020 में बेटे 100 सालों के लिए वुमन ऑफ द ईयर की लिस्ट ज़ारी की थी। भारत से इस लिस्ट में दो नाम हैं, एक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जिन्हें साल 1976 के लिए इस लिस्ट में रखा गया। लिस्ट में शामिल दूसरा नाम है राजकुमारी अमृत कौर का, जिन्हें साल 1947 के लिए इस लिस्ट में जगह दी गई है।
वंशवाद भारत की राजनीति में किस हद तक हावी है, इसका नमूना अब करीबन हर राज्य और अधिकतर राजनीतिक दलों में दिखाई पड़ रहा है। लोकतंत्र के समानांतर राजशाही की झलक भी मिलने लगी है। हिंदुस्तान में वंशवाद को बढ़ाने का आरोप सबसे पहले नेहरू गांधी परिवार पर लगता है क्योंकि इस परिवार के तीन सदस्य, पंडित जवाहर लाल नेहरू, बेटी इंदिरा गांधी और इंदिरा के बेटे राजीव गांधी, देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। आज भी कांग्रेस में गांधी परिवार ही हावी है। राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी, बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका वाड्रा कांग्रेस की इस परंपरा को आगे बढ़ाने में जी जान से जुटे हैं। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस की आलोचना करने वाले लगभग सभी राजनीतिक दल भी वंशवाद से गुरेज नहीं करते। आज वामपंथियों को छोड़ लगभग सभी दलों ने इसे बेझिझक वंशवाद को अपना कर एक नई प्रथा सी कायम कर दी है। हालहीं में एम के स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने हैं, जिनके पिता एम करूणानिधि भी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे हैं। इनके अतिरिक्त भी देश में कई पिता - पुत्र की जोड़ियां रही हैं जिन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपने -अपने राज्यों में सत्ता भोगी हैं। जम्मू-कश्मीर : तीन पीढ़िया पहुंची सत्ता के शीर्ष पर अब केंद्र शासित प्रदेश बन चूका जम्मू कश्मीर देश का एकलौता ऐसा राज्य रहा हैं जहाँ तीन पीढ़ियां सत्ता के शीर्ष पर पहुंची हैं। अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढ़ियों ने मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य हासिल किया। शेख अब्दुल्ला 2 बार मुख्यमंत्री रहे और 1982 में उनके हटने के तुरंत बाद उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बन गए। वह तीन बार सीएम बने। इसके बाद फारुख के बेटे उमर अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री बने। मध्यप्रदेश : प्रथम मुख्यमंत्री के बेटे भी बने मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश में प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के बाद उनके पुत्र श्यामाचरण शुक्ल दो बार सीएम बने। दिलचस्प बात ये हैं कि रविशंकर शुक्ल 1 नवंबर 1956 से 31 दिसंबर 1956 तक सिर्फ 61 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। इसी तरह उनके पुत्र श्यामाचरण शुक्ल भी एक बार 308 दिन के लिए और एक मर्तबा 128 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। ओडिशा : पिता दो बार सीएम रहे, तो बेटा पांचवी बार नॉट आउट ओडिशा में भी इस समय जो मुख्यमंत्री हैं वो भी पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए मुख्यमंत्री बने। राज्य में नवीन पटनायक इस समय मुख्यमंत्री हैं और उनसे पहले उनके पिता बिजू पटनायक भी मुख्यमंत्री रहे। नवीन पिछले 21 साल से राज्य में मुख्यमंत्री हैं। वे लगातार पांचवीं बार सत्ता में हैं, जबकि उनके पिता भी दो बार मुख्यमंत्री रहे। उत्तर प्रदेश : यादव पिता - पुत्र की जोड़ी रही हैं मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश देश के जिक्र के बिना सियायत की हर चर्चा अधूरी हैं। इस राज्य में भी पिता-पुत्र की जोड़ी मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में कामयाब रही। मुलायम सिंह यादव के बाद उनके बेटे अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने, मुलायम सिंह 3 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। वहीं अखिलेश अब तक एक बार मुख्यमंत्री रहे हैं। झारखंड : राजनीतिक वंशवाद को धार दी सोरेन परिवार ने झारखंड में भी पिता के बाद बेटे ने राज्य की कमान संभाली और राजनीतिक वंशवाद को नई ऊंचाई दी। शिबू सोरेन के बाद उनके बेटे हेमंत सोरेन भी मुख्यमंत्री बने। हेमंत सोरेन वर्तमान में भी मुख्यमंत्री हैं और इससे पहले एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वहीं शिबू 3 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। हरियाणा : देवी लाल दो बार, ओम प्रकाश चौटाला पांच बार रहे सीएम हरियाणा की सियासत में भी वंशवाद हावी रहा है। यहां भी देवी लाल के परिवार को दो पीढ़ियों ने सत्ता सुख हासिल किया। देवी लाल के बाद ओम प्रकाश चौटाला भी राज्य के मुख्यमंत्री बने। यहां देवी लाल की तुलना में ओम प्रकाश काफी कामयाब रहे और 5 बार राज्य के सीएम पद पर रहे। देवी लाल दो बार मुख्यमंत्री रहे थे। दिलचस्प बात ये हैं कि देवी लाल कि चौथी पीढ़ी के दुष्यंत चौटाला वर्तमान में हरियाणा के उप मुख्यमंत्री हैं। कर्नाटक : पीएम बनने के लिए देवेगौड़ा ने दिया था इस्तीफा, बेटा भी रहा सीएम कर्नाटक में एचडी देवेगौड़ा एक बार सीएम बने तो उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं। रोचक बात ये हैं कि पिता और पुत्र दोनों ही बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। हालांकि एचडी देवेगौड़ा देश के प्रधानमंत्री भी रहे हैं और पीएम पद ग्रहण करने हेतु उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री इस्तीफा दिया था। अरुणाचल प्रदेश : खांडू पिता-पुत्र रहे सीएम अरुणाचल प्रदेश में वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी राजनैतिक वंशवाद को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके पहले उनके पिता दोरजी खांडू अरुणाचल के सीएम रह चुके हैं। दोरजी खांडू वर्ष 2007 से 2011 तक सीएम रहे। दिलचस्प बात ये हैं कि पेमा खांडू तीन बार अलग - अलग राजनीतिक दलों से सीएम बने हैं। महाराष्ट्र : शंकरराव चव्हाण के बाद बेटे अशोक चव्हाण भी बने सीएम महाराष्ट्र में चव्हाण परिवार की ओर से पिता के बाद बेटे ने मुख्यमंत्री पद संभाला। कांग्रेस के शंकरराव चव्हाण के बाद उनके बेटे अशोक चव्हाण ने राज्य की कमान संभाली। शंकरराव चव्हाण दो बात महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे, जबकि अशोक चव्हाण अब तक एक बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। आंध्रप्रदेश : पिता कांग्रेस से तो बेटा अपनी पार्टी बनाकर बना मुख्यमंत्री आंध्रप्रदेश में बड़े नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी दो बार मुख्यमंत्री बने तो उनके पुत्र वाईएस जगन मोहन रेड्डी आज की तारीख में वहां के मुख्यमंत्री हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता रहे वाईएस राजशेखर रेड्डी 2004 में पहली बार मुख्यमंत्री बने और 2009 में लगतार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। पर सितम्बर 2009 में एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गई। उनके बाद उनके पुत्र वाईएस जगन मोहन रेड्डी मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने उन्हें सीएम नहीं बनाया। जगन मोहन रेड्डी ने वाईएसआर कांग्रेस के नाम से नई पार्टी बनाई और 2019 में मिली शानदार जीत के बाद मुख्यमंत्री बन गए। मेघालय : पीए संगमा के बाद बेटा भी बना मुख्यमंत्री मेघालय के वर्तमान मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के पिता पीए संगमा भी मेघालय के मुख्यमंत्री रहे थे। पीए संगमा लोकसभा अध्यक्ष भी रहे और उन्होंने 2012 में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था। कोनराड की बहन अगाथा संगमा पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार-2 में मंत्री थीं। अगाथा संगमा 15वीं लोकसभा में सांसद चुनी गई थीं। कोनराड के भाई जेम्स संगमा भी विधानसभा सदस्य हैं। तमिलनाडु : एम करुणानिधि के बाद बेटे स्टालिन ने संभाली सत्ता तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में डीएमके को मिली भारी जीत के बाद पार्टी अध्यक्ष मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन ने हाल ही में मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली हैं। स्टालिन पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं। जबकि उनके पिता एम करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। जम्मू - कश्मीर : मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा रहे सीएम देश की राजनीति में एक उदहारण ऐसा भी है जहां पिता और बेटी मुख्यमंत्री रहे। जम्मू - कश्मीर के राज्य होते हुए मुफ्ती मोहम्मद सईद दो बार सीएम बने और उनके बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती भी मुख्यमंत्री बनी। बाप - बेटी की ये एकलौती जोड़ी हैं जो हिंदुस्तान में मुख्यमंत्री रही हैं। पिता उत्तर प्रदेश, तो बेटा उत्तराखंड में सीएम बना हेमवती नंदन बहुगुणा दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वे मूलरूप से वर्तमान उत्तराखंड से ताल्लुक रखते थे, पर उनके दौर में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था। जब उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया तो उनके पुत्र विजय बहुगुणा उत्तराखंड लौट आये। विजय बहुगुणा 2012 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने।
2007 का विधानसभा चुनाव चल रहा था, कसौली निर्वाचन क्षेत्र से वीरभद्र सरकार के पशुपालन मंत्री और पांच बार के विधायक रघुराज मैदान में थे और उनका मुकाबला था भाजपा के डॉ राजीव सैजल से। 36 साल के सैजल का ये पहला चुनाव था। पर कसौली की जनता ने रघुराज पर डॉ राजीव सैजल को वरीयता दी और डॉ सैजल चुनाव जीत गए। दिलचस्प बात ये है कि पहली बार कसौली का कोई नेता मंत्री बना था, रघुराज कसौली से पहले ऐसे नेता थे जिन्हे मंत्री पद मिला था, पर वह जनता की अपेक्षों पर खरे नहीं उतरे। माना जाता है कि मंत्री बनने के बाद लोगों की रघुराज से अपेक्षाएं काफी बढ़ गई थी और जब वो उन पर खरे नहीं उतरे तो जनता ने नए और कम अनुभवी डॉ राजीव सैजल पर वोटों का प्यार बरसाया। वहीँ डॉ राजीव सैजल तीन चुनाव लगातार जीतने के बाद अब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बन चुके है। जाहिर है डॉ सैजल से भी लोगों को खूब उम्मीद है और विशेषकर कोरोना काल में तो लोग अपने मंत्री विधायक से एक्सट्रा आर्डिनरी उम्मीद बांधे हुए है। अब 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग डेढ़ वर्ष बचा है, ऐसे में यकीनन कोरोना संकट के इस कठिन समय में स्वास्थ्य मंत्री डॉ सैजल के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र का सियासी स्वास्थ्य दुरुस्त रखना बेहद मुश्किल होने वाला है। जनता की उम्मीद टूटती है तो डॉ राजीव सैजल का सियासी तिलिस्म भी टूटना तय है। बड़ी मुश्किल से पिछले डॉ चुनाव जीते है सैजल 2007 में अपने पहले चुनाव में डॉ राजीव सैजल ने 6374 वोट से शानदार जीत दर्ज की थी। पर अगले दोनों चुनाव में डॉ राजीव सैजल बमुश्किल अपनी सीट बचा पाए। 2012 में वे महज 24 वोट से जीते तो 2017 में अंतर 442 वोट का रहा। इन दोनों ही मौकों पर कांग्रेस की अंतर्कलह उनके लिए संजीवनी सिद्ध हुई। सुल्तानपुरी अभी से चार्ज बीते दो चुनाव में डॉ राजीव सैजल को कड़ी टक्कर देने वाले कांग्रेस नेता विनोद सुलतानपुरी अभी से 2022 के लिए चार्ज दिख रहे है। माना जाता है कि आम जनता से सुलतानपुरी की दुरी और कांग्रेस का भीतरघात पिछले चुनावों में उन पर भारी पड़ा, पर अब सुल्तानपुरी सक्रीय भी है और निरंतर लोगों के बीच भी। साथ ही कांग्रेस में उनके विरोधी खेमे का दमखम भी अब पहले जैसा नहीं दिखता। कई नेताओं की हसरत मन में ही रह गई 1977 से अस्तित्व में आया कसौली निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में से है जो हमेशा आरक्षित रहे है। ऐसे में कई कद्दावर नेताओं की विधायक-मंत्री बनने की हसरत कभी पूरी नहीं हुई। कुछ की उम्र संगठन की सेवा में बीत गई, तो कुछ को सत्ता सुख के नाम पर बोर्ड -निगमों में एडजस्ट कर दिया गया। ऐसे में माना जाता है कि सामान्य वर्ग के आने वाले कई नेताओं ने कई मौकों पर अपनी पार्टी प्रत्याशी की राह में ही कांटे डाले ताकि उनकी कुव्वत बनी रहे।
घटता जनाधार, सिमित संसाधन और लचर नेतृत्व, इस पर भरपूर अंतर्कलह। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से हिमाचल कांग्रेस की ये ही तस्वीर दिखती आ रही है। ऐसा इसलिए भी है क्यों कि अर्से से कांग्रेस के प्राइम फेस रहे वीरभद्र सिंह को उम्र और सेहत ने सक्रिय राजनीति कुछ दूर रखा हुआ है, और पार्टी में उनका विकल्प कोई दिखता नहीं। इस पर कभी लंच डिप्लोमेसी तो कभी पोस्टर पॉलिटिक्स जैसे सियासी प्रकरण कांग्रेस को और विभाजित करते दिख रहे है। 2022 का विधानसभा चुनाव अब नजदीक है और डगर फिलवक्त कठिन है। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के तीन खेमे माने जाते है, वीरभद्र गुट, पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू का गुट और पूर्व मंत्री जीएस बाली का गुट। वीरभद्र की असक्रियता में निसंदेह बाकी नेता संभावनाएं तलाशते दिखे है। इस बात का इल्म वीरभद्र सिंह के ख़ास सिपहसालारों को भी है, सो वक्त रहते न सिर्फ कुनबे को सँभालने की कवायद शुरू हो गई, बल्कि पुराने निष्ठावानों को भी साथ लिया जा रहा है। वीरभद्र खेमे ने गियर बदल लिया है, तस्वीरों में नेताओं के गीले-शिकवे मिटते दिख रहे है और फोटो पॉलिटिक्स से शक्ति प्रदर्शन हो रहा है। संदेश स्पष्ट है कि बेशक वीरभद्र सिंह असक्रिय हो पर सर्वेसर्वा वे ही है। चाहे मुख्यमंत्री कोई भी बने पर उन्हीं के फेस पर चुनाव लड़ा जायेगा। दावा है कि कुल 68 में से 50 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में वीरभद्र खेमे को समर्थन है। पर यक्ष प्रश्न ये है कि क्या जितनी नजदीकी और एकजुटता तस्वीरों में दिखी है उतनी दिलों में भी है ? या फिर वीरभद्र सिंह के सियासी रसूख के सहारे नेता अपना कारज सिद्ध करना चाहते है। न्यूटन का गति का तीसरा नियम है, हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती। एक्शन में दिख रहे कांग्रेस के एक धड़े के जवाब में बाकी दिग्गज क्या रिएक्शन देते है ये देखना रोचक होगा। दावा, वैसे ये है कि मिशन 2022 के लिए पूरी पार्टी एकजुट होकर एक मंच पर आएगी, पर इन दावों में कितनी हकीकत है ये जल्द पता चलेगा। जानकार मानते है कि इस एक्शन का रिएक्शन निश्चित तौर पर होगा। प्रत्यक्ष निशाना भाजपा, अप्रत्यक्ष कई 31 मई को पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने एक फोटो पोस्ट किया था। फोटो में तीन लोग थे, खुद सुधीर शर्मा, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और वरिष्ठ नेता आशा कुमारी। कैप्शन डाला गया 'एक मुलाक़ात, नई शुरुआत।' वीरभद्र सिंह के इन तीन करीबियों की बैठक ऊना में हुई थी, जिसके बाद से ही कांग्रेस में नए समीकरण बनने के कयास लगने लगे थे। जैसा कैप्शन में सुधीर शर्मा ने लिखा था, होता भी ऐसा ही दिखा। तीन जून को शिमला में एक और बैठक हुई। इस बैठक में पांच लोग शामिल हुए, इन तीनों के साथ वीरभद्र सिंह के पुत्र व शिमला ग्रामीण विधायक विक्रमादित्य सिंह तो उपस्थित थे ही, पर ख़ास बात रही वरिष्ठ कांग्रेस नेता कौल सिंह ठाकुर की मौजूदगी। माना जा रहा है समय काल परिस्थिति के अनुसार कौल सिंह ठाकुर भी वीरभद्र खेमे के साथ हो लिए है। अगले ही दिन यानी चार जून को इन पाँचों नेताओं ने संयुक्त पत्रकार वार्ता भी कर दी। प्रत्यक्ष तौर पर तो निशाना भाजपा पर था लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर ये संयुक्त पत्रकार वार्ता कई निशाने साध गई। समानांतर गुटों की राजनीति से हमेशा ग्रसित रही कांग्रेस नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है। अतीत में झांके तो हिमाचल कांग्रेस बीते कई दशकों से हमेशा समानांतर गुटों की राजनीति से ग्रसित रही है। डॉ यशवंत सिंह परमार के दौर में ठाकुर रामलाल का गुट हावी हुआ और नतीजन डॉ परमार को हटा कर उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया। वहीं वीरभद्र सिंह के दौर में कभी पंडित सुखराम, तो कभी विद्या स्टोक्स के गुट के साथ उनकी खींचतान रही।1998 से पहले यदि पंडित सुखराम ने अलग पार्टी नहीं बनाई होती और भाजपा का साथ नहीं दिया होता तो तब भी कांग्रेस रिपीट करती। इसी तरह पिछली सरकार के वक्त से ही सुखविंदर सिंह सुक्खू और जी एस बाली के साथ भी वीरभद्र सिंह की तल्खियां चर्चा में रही है। वहीँ, कौल सिंह ठाकुर 2012 में मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन वीरभद्र केंद्र की राजनीति से प्रदेश में लौट आये और कौल सिंह के अरमान पूरे नहीं हुए। हालांकि लंबे वक्त तक कौल सिंह वीरभद्र सिंह के करीबी रहे। वर्चस्व की ये जंग दशकों से पार्टी में चली आ रही है। हालांकि वीरभद्र सिंह के तिलिस्म के आगे कभी बाकी गुटों की ज्यादा चली नहीं। लचर संगठन: क्या फेरबदल पार्टी की जरुरत प्रदेश कांग्रेस का संगठन लचर है। संगठन की कमान कुलदीप राठौर के हाथ में है लेकिन अब तक राठौर बेअसर रहे है। लचर कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि उनके कमान संभालने के बाद कई ज़िलों में जिला व ब्लॉक स्तर पर संगठनात्मक बदलाव हो चुके है और अभी भी अधिकांश स्थानों पर स्तिथि बदतर है। राठौर निरंतर पत्रकार वार्ता कर सरकार पर हमला बोलते जरूर है पर कांग्रेस को ऐसे नेतृत्व की दरकार हैं जो सड़क पर उतर कर मुद्दों की सियासत करें, बंद कमरों की सियासत से तो पार्टी का भला होना मुश्किल है। माना जा रहा है कि पार्टी का एक बड़ा गुट भी 2022 से पहले संगठन में व्यापक फेरबदल का पक्षधर है और मुमकिन है की चुनाव से पहले राठौर की विदाई हो जाए।
जुब्बल - कोटखाई, वो विधानसभा क्षेत्र जहाँ कमल खिलाना बड़े -बड़े दिग्गजों के लिए एक सपना सा था। कभी इस सीट को कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीटों में माना जाता था। कारण था पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल का इस सीट से संबंध । कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह यहाँ से विधायक रह चुके थे। ये हिमाचल की एकलौती सीट है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, और दोनों कांग्रेसी ही थे। पर 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ये गढ़ ढह गया, और कांग्रेस के इस अभेद किले को फ़तेह करने वाले थे स्व. नरेंद्र बरागटा। दिलचस्प बात ये है कि इससे पहले नरेंद्र बरागटा 1998 में शिमला सीट से विधायक बने थे। तब वे धूमल सरकार में बागवानी मंत्री थे। बतौर बागवानी मंत्री उन्होंने हमेशा बागवानों के मुद्दों को आवाज दी, बागवानों का दर्द समझा। यही कारण है कि 2003 में उन्हें भाजपा ने जुब्बल - कोटखाई सीट से मैदान में उतारा। हालांकि वे चुनाव हार गए, लेकिन विपक्ष में रहते हुए भी वे पांच साल जुब्बल - कोटखाई की आवाज बने रहे। नतीजन 2007 में उन्हें जुब्बल - कोटखाई की जनता ने वोट रुपी आशीर्वाद दिया और पहली बार इस सीट पर भाजपा विजयी हुई। भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र बरागटा के कद का अंदाजा इसी बात से पता चलता है कि 1998 में पहली बार विधायक बनते ही उन्हें धूमल सरकार में बागवानी राज्य मंत्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। इसके बाद प्रेम कुमार धूमल की सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट दर्जा दिया गया। बागवानी विभाग के अलावा तकनीकी शिक्षा विभाग का जिम्मा दिया गया था। 2012 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर राजीव बिंदल के त्यागपत्र देने के बाद स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा भी उन्हें सौंपा गया था। 2017 में नरेंद्र बरागटा तीसरी बार विधायक बने और प्रदेश में जयराम सरकार बनी। भाजपा की बदली हुई सियासत ने उन्हें मंत्रिपद से तो वंचित रखा गया, लेकिन उन्हें पूरी तरह दरकिनार करना भी मुमकिन नहीं था, सो उन्हें मुख्य सचेतक बनाकर कैबिनेट दर्जा दिया गया। बेहद रोचक है जुब्बल - कोटखाई सीट का इतिहास जुब्बल - कोटखाई पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। वे यहाँ से 1967 से 1982 तक लगातार चार चुनाव जीते। इस दौरान वे मुख्यमंत्री भी रहे। इसके बाद 1985 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद जुब्बल - कोटखाई से मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। फिर आया 1990 का चुनाव और मैदान में थे सीएम वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल ठाकुर। तब तक ठाकुर रामलाल कांग्रेस से किनार कर चुके थे जनता दल से मैदान में थे। दो मुख्यमंत्रियों के इस चुनावी घमासान में वीरभद्र सिंह पस्त हो गए। खेर 1993 का चुनाव आते -आते ठाकुर रामलाल की घर वापसी हो चुकी थी और इसके बाद 1993 और 1998 में वे कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते। 2003 के चुनाव में ठाकुर रामलाल की मृत्यु के बाद उनके पोते रोहित ठाकुर ने परिवार की सियासी विरासत को संभाला और जुब्बल - कोटखाई से मैदान में उतरे और एक बार फिर ये सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। पर 2007 में नरेंद्र बरागटा ने कांग्रेस और ठाकुर रामलाल के इस तिसिस्म को तोड़ दिया। अपनी ही सरकार को दिखाया था आईना सत्ता में हाे या फिर विपक्ष में, स्व. बरागटा प्रदेश के बागवानों के हर मसले की आवाज बने। विधानसभा सदन से लेकर केंद्र सरकार तक बागवानों की आवाज बुलंद करने में उन्होंने काेई कमी नहीं छाेड़ी। वर्तमान जयराम सरकार में वे मुख्य सचेतक थे और विधानसभा के हर सत्र में वे बागवानाें के हितों की बात करते दिखते थे। सेब पर कमीशन हाे या फिर फसल बीमा कंपनियों की ओर से भ्रष्टाचार का मसला, इन सभी एजेंडों पर स्व. बरागटा ने सरकार के समक्ष ठाेक-बजा कर बागवानाें का पक्ष रखा। यहां तक की देश की विभिन्न मंडियाें में बिकने वाले विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का मुद्दा भी स्व.बरागटा उठाते रहे। 1998 की धूमल सरकार में बागवानी मंत्री रहते हुए नरेंद्र बरागटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष भी ये मामला उठाया था, ताकि प्रदेश के बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। इसके बाद अगली धूमल सरकार में भी वे बागवानी मंत्री थे ओर यूपीए सरकार के सामने ये विषय रखा। जब भी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते बागवानों की फसल नष्ट होती, ताे उस समय एक ही नेता सामने आता रहा, वह थे नरेंद्र बरागटा। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद स्व. बरागटा ने प्रदेश सरकार से मांग की थी कि वह तुरंत सेब क्षेत्रों में टीमें भेजे और बागवानों किसानों को तुरंत मुआवजा प्रदान करे। अपनी ही सरकार को आईना दिखाते हुए उन्होंने कहा था कि केवल आंकलन करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि पिछले साल हुए नुकसान पर भी सरकार केवल आंकलन ही करती रह गई थी।
हिमाचल प्रदेश एनीमिया नियंत्रण में देश भर में अग्रणी राज्यों में शामिल है। राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों और नीतियोें के प्रभावी कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक 2020-21 की राष्ट्रीय रैंकिंग में प्रदेश ने 57.1 स्कोर के साथ तीसरा स्थान हासिल किया है।राज्य सरकार प्रदेश में एनीमिया मुक्त कार्यक्रम के अन्तर्गत रणनीति तैयार कर कार्य कर रही है और प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने की दिशा में कारगर कदम उठाए गए हैं। बच्चों को एनीमिया मुक्त करने के लिए रोग निरोधी आयरन और फाॅलिक एसिड की खुराक प्रदान की जा रही है। स्कूल जाने वाले बच्चों की नियमित रूप से डीवर्मिंग की जा रही है। मृदा संचारित कृमि का प्रसार 3 वर्षों में 29 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत हो गया है, जो कार्यक्रम की प्रभावशीलता और कार्यान्वयन को दर्शाता है। लोगों को एनीमिया के बारे में जागरूक करने के लिए वर्ष भर जागरूकता अभियान चलाने के अतिरिक्त इस अभियान के अन्तर्गत एनीमिया परीक्षण और उपचार पर भी विशेष बल दिया जा रहा है। सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयरन और फाॅलिक एसिड फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का अनिवार्य प्रावधान किया गया है। राज्य सरकार द्वारा एनीमिया के प्रसार को कम करने के लिए बनाई गई व्यापक रणनीति के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक के स्कोर कार्ड में हिमाचल प्रदेश वर्ष 2018-19 में 18वें स्थान पर था, लेकिन सरकार के निरंतर प्रयासों से इस रैंकिंग में सुधार हुआ है और हिमाचल प्रदेश अब देश भर में तीसरें स्थान पर पहुंच गया है। वर्तमान में भारत एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में एनीमिया वाले देशों में से एक है। देश की लगभग 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, पांच वर्ष से कम उम्र के 59 प्रतिशत बच्चे, 54 प्रतिशत किशोरियां और 53 प्रतिशत गैर-गर्भवती गैर-स्तनपान करवाने वाली महिलाएं एनीमिक हैं। गर्भावस्था के दौरान एनीमिया प्रसवोत्तर रक्तस्राव, न्यूरल ट्यूब दोष, जन्म के समय कम वजन, समय से पहले जन्म, मृत जन्म और मातृ मृत्यु से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में एनीमिया से जुड़ी माॅबिडिटी और मृत्यु दर जोखिम इस स्वास्थ्य समस्या के समाधान के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है। एनीमिया की व्यापकता में कमी से मातृ एवं शिशु जीवित रहने की दर में सुधार लाया जा सकता है। वर्ष 2005 से 2015 तक एनीमिया की कमी में धीमी प्रगति यानी एक प्रतिशत सालाना से भी कम को देखते हुए भारत सरकार ने समग्र पोषण के लिए प्रधानमंत्री की व्यापक योजना के तहत एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) कार्यक्रम शुरू किया है और प्रति वर्ष 3 प्रतिशत एनीमिया को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस कार्यक्रम में 6-59 महीने के बच्चों, किशोरों, 15-49 वर्ष की प्रजनन आयु की महिलाओं के आयु वर्ग को शामिल किया गया हैं। एनीमिया मुक्त भारत का उद्देश्य सभी हितधारकों को ट्रिप्पल सिक्स (6-6-6) रणनीति रणनीति को लागू कर 6 लक्षित लाभार्थी, 6 इंटरवेंशन और 6 संस्थागत तंत्रों के माध्यम से निवारक और उपचारात्मक तंत्र प्रदान करना है। राज्य सरकार द्वारा प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने के उदेश्य से विभिन्न स्थानों पर इस संबंध में जागरूकता अभियान चला कर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा हैं। प्रदेश को एनीमियामुक्त बनाने में राज्य सरकार के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। एनीमियामुक्त भारत सूचकांक में प्रदेश को अग्रणी स्थान प्राप्त होना राज्य सरकार के सफल प्रयासों को इंगित करता है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने आज नई दिल्ली में केन्द्रीय पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान से भेंट की। राज्य में कोविड की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य को इस महामारी से लड़ने के लिए हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय मंत्री ने राज्य के लिए 1000 डी-टाइप ऑक्सीजन सिलेंडर स्वीकृत किए हैं, जिनमें से 500 सिलेंडर प्रदेश को चुके हैं, जबकि 500 शीघ्र पहुंच जाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश के अस्पतालों में स्थापित करने के लिए आधा टन क्षमता वाले 10 क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंक और कारपोरेट सामाजिक दायित्व निधि के अन्तर्गत प्रदेश को 300 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर मिलेंगे, जिससे प्रदेश की ऑक्सीजन क्षमता को बल मिलेगा। उन्होंने कहा कि यदि आवश्यकता हुई तो शीघ्र ही बी-टाइप ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने के प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय मंत्री ने राज्य के लिए 60 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से स्टेट ऑफ आर्ट माॅडर्न अस्पताल स्वीकृति करने का आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय मंत्री ने राज्य में हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के माध्यम से 200 करोड़ रुपये के निवेश से 200 के.एल. क्षमता का इथेनाॅल संयंत्र स्थापित करने का आश्वासन दिया है। इथेनाॅल संयंत्र द्वारा अनाज से इथेनाॅल बनाया जाता है, जिसे पेट्रोल और डीजल में मिश्रित करने से प्रदेश में वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषण में कमी आएगी, इससे प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण में सहायता मिलेगी। मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव जे.सी. शर्मा बैठक में मुख्यमंत्री के साथ उपस्थित थे। उप आवासीय आयुक्त पंकज शर्मा भी उपस्थित थे।
ग्रामीण विकास एवं पशुपालन मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने आज यहां पशुपालन विभाग के अधिकारियों के साथ आयोजित बैठक में विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न गतिविधियों व योजनाओं की समीक्षा की। इस अवसर पर वीरेन्द्र कंवर ने अधिकारियों को विभाग के कार्य नर्बाध रूप से जारी रखने के लिए हर संभव प्रयास करने को कहा ताकि विभिन्न योजनाओं का लाभ पात्र लाभार्थियों तक पहुचांया जा सके। पशुपालन मंत्री ने हिमाचल की सड़कों को बेसहारा गौवंश मुक्त करने को समयबद्ध कदम उठाने के लिए अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि पशुपालकों के लिए शीघ्र ही एक समर्पित हेल्पलाइन नम्बर जारी किया जाना चाहिए ताकि प्रदेशवासियों को आवश्यक जानकारी विभाग की हेल्पलाइन के माध्यम से आसानी से प्राप्त हो सके। उन्होंने अधिकारियों को पशुपालकों के एनिमल हेल्थ कार्ड का कार्य शीघ्र पूरा करने के भी निर्देश दिए। वीरेन्द्र कंवर ने प्रगतिशील डेयरी फार्मर्स को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए कार्य योजना बनाने को कहा। इससे पशुपालन के तौर तरीकों में आशातीत सुधार होगा और प्रदेश के पशुपालक लाभान्वित होंगे। उन्होंने गौशालाओं व गौ अभ्यारण्य के विकास व इनमें प्रदान की जाने वाली सुविधाओं को और सशक्त करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
पूर्व बागवानी मंत्री व विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा का रविवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो गया। कोटखाई स्थित बरागटा के पैतृक गांव टहटोली स्थित श्मशानघाट में संस्कार किया गया। शनिवार देर शाम पार्थिव देह गांव पहुंचा दी थी। 68 वर्षीय बरागटा 13 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए थे। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ था। सांस में दिक्कत के कारण पीजीआइ चंडीगढ़ में इलाज चल रहा था। इस दौरान शनिवार सुबह उनकी देहांत हो गया। नरेंद्र बरागटा तीन बार विधायक का चुनाव जीते थे व दो बार मंत्री रहे। इस मौके पर शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज सहित अन्य मंत्री, विधायक व नेताओं ने भी नरेंद्र बरागटा को अंतिम श्रद्धांजलि दी।
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में शनिवार देर शाम हुई 20 मिनट की भारी बारिश ने तबाही मचा दी। बारिश से ग्राम पंचायत जांघी स्थित नाले के जलस्तर ने रौद्र रूप धारण कर लिया। जलस्तर बढ़ने से मलबा साथ लगते देवेंद्र के मकान में घुस गया। वहीं, दर्जन भर अन्य ग्रामीणों ने परिवार सहित घरों से भाग कर अपनी जानें बचाईं। गनीमत रही कि ग्रामीण समय रहते घरों से खेतों और खुली जगह पर भाग गए अन्यथा बड़ी मानवीय क्षति हो सकती थी। सूचना मिलने के बाद उपायुक्त ने एसडीएम और राजस्व विभाग की टीमों को मौके के लिए रवाना किया। चंबा जिले के जांगी नाले में शनिवार देर शाम करीब सात बजे के करीब भारी बारिश के बाद नाले का जलस्तर काफी बढ़ गया। जांघी नाला मलबे से लबालब होने और नाले के किनारों पर क्रेट वाल न होने से मलबा और कीचड़ लोगों के घरों में जा पहुंचा। अचानक घरों में आए मलबे और कीचड़ को देख लोगों ने वहां से भाग कर अपनी जान बचाई। प्रभावित देवेंद्र, अशोक कुमार, नितिन ठाकुर, अजय कुमार, राजू, अंजू देवी, बोधराज, सोनू, जन्म सिंह, विपिन और नितिन ने बताया कि वर्ष 2019 में भी इसी प्रकार से नाले का जलस्तर बढ़ने से मलबा उनके घरों में घुस गया था। मलबे और कीचड़ से सारा सामान खराब हो गया। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और सरकार से कई बार इस समस्या का समाधान करने की मांग उठाई। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने सीएम हेल्पलाइन नंबर और पंचायत से दो बार प्रस्ताव बनाकर जिला प्रशासन को प्रेषित किए हैं। बावजूद इसके अभी तक इस दिशा में कोई भी उचित कदम नहीं उठाया गया है। प्रभावितों ने बताया कि शनिवार देर शाम भारी बारिश के बाद 200 मीटर लंबा और 7 फीट चौड़ा मलबे और कीचड़ का ढेर नाले में जमा हो गया है। उन्होंने चेताया है कि अगर प्रशासन ने लोगों की समस्या का हल नहीं किया तो एनएच जाम कर दिया जाएगा।
राजधानी दिल्ली में राशन की घर-घर राशन योजना को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। सख्त अंदाज में अपनी बात रखते हुए उन्होंने इस वार्ता के माध्यम से सीधे प्रधानमंत्री मोदी का अभिवादन किया और कहा कि आज मैं आपसे बात करना चाहता हूं। केजरीवाल ने इस योजना के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं को लेकर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि आज मैं बेहद व्यथित हूं। दिल्ली में अगले सप्ताह से घर-घर राशन योजना शुरू होने वाली थी। मतलब अब लोगों को लाइन में खड़े होकर धक्के नहीं खाने पड़ते, बल्कि सरकार अच्छे तरीके से बढ़िया राशन पैक करके उनके घरों तक पहुंचा देती। इसकी सारी तैयारी हो चुकी थी बस अगले हफ्ते से यह क्रांतिकारी कदम शुरू होने वाला था और अचानक दो दिन पहले आपने इसे रोक दिया। क्यों सर? उन्होंने कहा कि हमने इस योजना के लिए केंद्र सरकार से एक नहीं पांच बार अनुमति ली, लेकिन इसके बावजूद इसकी शुरूआत से एक सप्ताह पहले इसे खारिज कर दिया। कानूनी तौर पर हमें केंद्र की मंजूरी की जरूरत नहीं है, लेकिन हमने शिष्टाचार के चलते ऐसा किया। केजरीवाल ने बार-बार केंद्र सरकार से इस योजना पर रोक लगाने का कारण पूछा। उन्होंने कहा कि जब हाईकोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई तो आप कैसे लगा सकते हैं। इस देश में जब पिज्जा, बर्गर, स्मार्टफोन और कपड़ों की होम डिलीवरी हो सकती है तो गरीबों के घरों में राशन क्यों नहीं? केंद्र सरकार के कुछ अधिकारियों का कहना है कि राशन केंद्र का है और इस योजना को लागू करके केजरीवाल सरकार अपनी वाहवाही लूटना चाहती है। मेरा यकीन मानिए मैं इस योजना को श्रेय के लिए जरा भी लागू नहीं करना चाहता। मुझे इसे लागू करने दीजिए। यह राष्ट्रहित में है। आज तक राष्ट्रहित के सभी कामों में मैंने आपका साथ दिया है। इस योजना को लागू करने में आप भी मेरा साथ दीजिए। अब तक की सरकार ने देश के गरीबों को 75 साल तक राशन की लंबी कतारों में खड़ा रखा। इन्हें और 75 साल तक कतारों में खड़ा मत रखिए नहीं तो ये हमें कभी माफ नहीं करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि इस देश में अगर स्मार्टफोन, पिज्जा की डिलीवरी हो सकती है तो राशन की क्यों नहीं? आपको राशन माफिया से क्या हमदर्दी है प्रधानमंत्री सर? उन गरीबों की कौन सुनेगा? केंद्र ने कोर्ट में हमारी योजना के खिलाफ आपत्ति नही की तो अब खारिज़ क्यों किया जा रहा है? कई गरीब लोगों की नौकरी जा चुकी है। लोग बाहर नही जाना चाहते इसलिए हम घर-घर राशन भेजना चाहते हैं।" उन्होंने कहा कि इस वक्त देश बहुत भारी संकट से गुजर रहा है। ये वक्त एक-दूसरे का हाथ पकड़कर मदद करने का है। ये वक्त एक-दूसरे से झगड़ने का नहीं है। लोगों को लगने लगा है कि इतनी मुसीबत के समय भी केंद्र सरकार सबसे झगड़ रही है।
जयराम सरकार में मंत्री की कुर्सी न मिलने से भी संतुष्ट रहने वाले पूर्व मंत्री एवं चीफ व्हिप नरेंद्र सिंह बरागटा प्रदेश के सेब बागवानाें काे सदमा देकर दुनिया से चले गए। सत्ता में हाे या फिर विपक्ष में, स्व.बरागटा ने प्रदेश के बागवानाें की आवाज काे विधानसभा सदन से लेकर केंद्र सरकार तक बुलंद करने में काेई कमी नहीं छाेड़ी थी। हालांकि प्रदेश सरकार में हर बार गावानी मंत्री का पद हाेता है, लेकिन आज तक उनका दर्द समझने वाले काेई भी नेता नहीं दिखे। वर्तमान की जयराम सरकार में चीफ व्हिप के पद पर हाेने के बावजूद विधानसभा के हर सत्र में बागवानाें के हिताें की बात करते दिखे। सेब पर कमीशन हाे या फिर फसल बीमा कंपनियाें की ओर से भ्रष्टाचार, इन सभी एजेंडाें पर स्व. बरागटा ने सरकार के समक्ष ठाेक-बजा कर बागवानाें का पक्ष रखा। यहां तक कि देश की विभिन्न मंडियाें में बिकने वाले विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का दम भी स्व.बरागटा रख चुके हैं। जो मंत्री या विधायक बागवानों के हितों के लिए हमेशा लड़ाई लड़ता रहा वह अचानक दुनिया से चला जाए ताे हर किसी की आंखे नम हाेना लाजिमी है। गाैरतलब है कि विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने के लिए नरेंद्र बरागटा ने तत्कालीन धूमल सरकार के समय पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी से मामला उठाया था, ताकि प्रदेश के बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। हर साल बरसात और बेमाैसमी बारिश और ओलावृष्टि के दाैरान बागवानाें की फसल नष्ट हाे जाती थी, ताे उस समय एक ही नेता सामने आता रहा वह सिर्फ नरेंद्र बरागटा। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद स्व. बरागटा ने प्रदेश सरकार से मांग की थी कि वह तुरंत सेब क्षेत्रों में टीमें भेजे और बागवानों किसानों को तुरंत मुआवजा प्रदान करे। उन्होंने कहा था कि केवल आकलन करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि पिछले साल हुए नुकसान पर भी सरकार केवल आकलन की करती रह गई थी। हमेशा यही कहते थे मैं संगठन का सच्चा सिपाही हूं स्व. बरागटा हमेशा यही कहते थे कि मैं संगठन का एक सच्चा सिपाही हूं। जयराम सरकार बनी ताे मंत्री की कुर्सी नहीं दी। उसके बाद सरकार ने उन्हें चीफ व्हिप नियुक्त किया गया। हालांकि पिछले साल जब मंत्रीमंडी विस्तार हुआ ताे उनका नाम कहीं पर भी नहीं आया। बावजूद इसके उन्हाेंने सरकार और संगठन के लिए बेहतरीन भूमिका निभाई। पूर्व की बात करें ताे नरेंद्र बरागटा तत्कालीन धूमल सरकार के दोनों कार्यकाल में बागवानी मंत्री रहे। पहले कार्यकाल में बागवानी राज्य मंत्री थे लेकिन उन्हें स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया था। इसके बाद प्रेम कुमार धूमल की सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट दर्जा दिया गया। बागवानी विभाग के अलावा तकनीकी शिक्षा विभाग का जिम्मा दिया गया था। उस समय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर राजीव बिंदल के त्यागपत्र देने के बाद स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा भी उन्हें सौंपा गया था। वर्ष 1998 से 2000 तक रही सरकार में नरेंद्र बरागटा को बागवानी विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया था। राजधानी से किया था चुनावी जीत की सफर पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा की सक्रिय राजनीति में शुरुआत शिमला सीट से हुई थी। वर्ष 1998 में उन्होंने पहला चुनाव जीता था। उसके बाद उन्हें प्रदेश सरकार में मंत्री पद मिला। उसके बाद वह जुब्बल कोटखाई विधानसभा चुनाव से सियासत करते रहे। 2007 में जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से दूसरा चुनाव जीते। पूर्व भाजपा सरकार में मंत्री बने। उसके बाद 2017 में तीसरी बार चुनाव जीतकर विधानसभा में लौटे थे और चीफ व्हिप का पद मिला। हालांकि चीफ व्हिप काे भभ कैबिनेट रैंक दिया गया है। स्व.बरागटा के राजनीति जीवन की बात करें ताे 1978 से 1982 तक युवा मोर्चा का दायित्व संभाला। उसके बाद 1983 से 1987 तक भाजपा जिला महामंत्री रहे। वे राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए 1993 से 1998 तक भाजपा किसान मोर्चा की कमान संभाली। इस दौरान फल उत्पादक संघ और एचपीएमसी बोर्ड में बागवानों का प्रतिनिधित्व करते रहे। ठियोग-हाटकाेटी सड़क के लिए किया था सत्याग्रह पूर्व मंत्री एवं चीफ व्हिप नरेंद्र बरागटा ने ठियोग-हाटकाेटी सड़क निर्माण में तेजी लाने के लिए सत्याग्रह आंदोलन शुरु किया था। हालांकि तत्कालीन धूमल सरकार ने इस सड़क का निर्माण करने के लिए चाइनिज कंपनी काे टेंडर दिया था, लेकिन 2012 में वीरभद्र सरकार बनते ही भारतीय कंपनी सीएंडसी कंपनी काे ठेका दे दिया था। काम में तेजी नहीं हाे रही थी, ताे नरेंद्र बरागटा उस वक्त पूर्व विधायक थे, ताे भाजपा कार्यकर्ताओ समेत स्थानीय जनता काे साथ लेकर जुब्बल-काेटखाई से शिमला तक सत्याग्रह आंदोलन शुरु किया था।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लॉकडाउन को 14 जून सुबह 5 बजे तक बढ़ाने की घोषणा की है। उन्होंने लॉकडाउन की पाबंदियों में कई सारी रियायतों की भी घोषणा की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि इस हफ्ते दिल्ली में क्या खुला रहेगा और क्या बंद रहेगा। केजरीवाल ने जानकारी दी है कि अगर आगे भी केस कम होते चले गए तो लॉकडाउन में और ढील दी जाएगी। लेकिन यदि केस बढ़े तो फिर से लॉकडाउन में सख्ती आ सकती है। इस दौरान सीएम ने कहा कि अब दिल्ली में 400 के करीब केस आ रहे हैं और 0.5 प्रतिशत ही संक्रमण दर बची है। इसी बाबत आगे भी लॉकडाउन जारी रहेगा लेकिन लॉकडाउन चलते काफी रियायतें दी जा रही हैं। सभी बाजार और मॉल ऑड-ईवन के आधार पर खुलेंगी। सुबह 10 बजे से शाम 8.00 बजे तक दुकानें अपने नंबरों के हिसाब से खुलेंगी। दिल्ली मेट्रो 50 प्रतिशत सीट क्षमता के साथ चलेगी। दिल्ली के सरकारी दफ्तरों में ग्रुप ए के अफसर 100 प्रतिशत और उसके नीचे वाले 50 प्रतिशत ही काम करेंगे। निजी दफ्तर 50 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ खुलेंगे। स्टैंड अलोन शॉप और इसेंशियल सर्विस की दुकानें रोजाना खुलेंगी। आने वाले हफ्तों में यदि स्थिति काबू में रही तो और रियायत दी जाएगी। साथ अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम थर्ड वेव की पूरी तैयारी करें। उन्होंने कहा कि हमें अब एक्सपर्ट की राय के अनुसार 37000 की पीक के लिए तैयारी करनी है। ऐसा नहीं है कि अब पीक नहीं आएगी लेकिन अगर हम इस बेस के साथ तैयार हो गए तो मामले बढ़ने पर हम और तैयारी कर सकेंगे। दिल्ली में एक पीडिएट्रिक टास्क फोर्स अलग से बनाई गई है जो तय करेगी कि कितने आईसीयू बेड होने चाहिए, उसमें से कितने बच्चों के होने चाहिए और बच्चों के लिए भी किस तरह के बेड होने चाहिए। इसके साथ ही उनके लिए सबकुछ अलग होगा। अरविंद केजरीवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि ऑक्सीजन की कमी को लेकर इस बार लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन जब तक हमें ऑक्सीजन मिली तब तक दिल्ली में त्राहि-त्राहि मच गई। हम नहीं चाहते कि अगली वेव में ऐसा हो। हम दिल्ली में 420 टन ऑक्सीजन स्टोरेज की क्षमता तैयार कर रहे हैं। इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड से बात कर 150 टन ऑक्सीजन प्रोडक्शन के लिए कहा गया है। इस बार दिल्ली में ऑक्सीजन टैंकर नहीं थे, इसके लिए अब 25 ऑक्सीजन टैंकर खरीदे जा रहे हैं। दिल्ली में 64 छोटे ऑक्सीजन प्लांट लगकर तैयार हो जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय पेट्रोलियम परिवहन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस कार्यक्रम में मौजूद रहें। इस दौरान पीएम मोदी ने इथेनॉल को 21वीं सदी को भारत की प्रथमिकता बताया। इस वर्ष के कार्यक्रम का विषय बेहतर पर्यावरण के लिए जैव ईंधन को बढ़ावा देना है। अपने संबोधन से पहले प्रधानमंत्री ने देश के अलग-अलग राज्यों के किसानों से इथेनॉल पर भी बात की। इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री भारत में 2020-2025 के दौरान इथेनाल सम्मिश्रण से संबंधित रोडमैप के बारे में विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जारी की। इस मौके पर पीएम ने पुणे में तीन स्थानों पर ई 100 के वितरण स्टेशनों की एक पायलट परियोजना का भी शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है। पीएम ने कहा कि क्लाइमेट चेंज की वजह से जो चुनौतियां सामने आ रही हैं, भारत उनके प्रति जागरूक भी है और सक्रियता से काम भी कर रहा है। उन्होंने कहा 6-7 साल में रिन्यूएबल एनर्जी की हमारी क्षमता में 250 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। इंस्टॉलड रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता के मामले में भारत आज दुनिया के टॉप-5 देशों में है। इसमें भी सौर ऊर्जा की क्षमता को बीते 6 साल में लगभग 15 गुना बढ़ाया है। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के लिए भारत सरकार ई -20 अधिसूचना जारी कर रही है जिसमें तेल कंपनियों को 1 अप्रैल, 2023 से 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचने का निर्देश दिया गया है। इन प्रयासों से देश भर में मिश्रित ईंधन उपलब्ध कराने के लिए समयसीमा प्रदान की जाएगी। यह वर्ष 2025 से पहले इथेनॉल उत्पादक राज्यों और आसपास के क्षेत्रों में इथेनॉल की खपत को बढ़ाने में भी मदद करेगा।
मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा के निधन के चलते होटल पीटरहॉफ में आज प्रस्तावित हिमाचल मंत्रिमंडल की बैठक को स्थगित कर दिया गया है। सचिव सामान्य प्रशासन देवेश कुमार ने इसकी पुष्टि की है। इस बैठक में अनलॉक पार्ट-2 में कई रियायतें दी जानी थीं। साथ ही प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की 12वीं की परीक्षा रद्द कर छात्रों को प्रमोट करने, कोरोना कर्फ्यू भी 15 जून तक बढ़ाने, दुकानें खोलने की छूट पांच बजे तक करने आदि पर फैसला होना था। वहीं नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद भाजपा ने अपने सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं। महामंत्री त्रिलोक जमवाल की ओर से बताया गया है कि पार्टी के सारे कार्यक्रम आगामी आदेशों तक स्थगित रहेंगे। पार्टी के राज्य, जिला और मंडल स्तर पर सभी कार्यक्रम रद्द किए गए हैं। बरागटा प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष भी रहे। उनके देहांत के बाद जुब्बल कोटखाई क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। गौरतलब है कि जुब्बल कोटखाई के विधायक एवं पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा का निधन हो गया है। बरागटा पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती थे और कल ही हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने उनकी कुशलक्षेम पूछा था। बरागटा ठाकुर सरकार में मुख्य सचेतक भी थे। मालूम हो कि बरागटा कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद पोस्ट कोविड अफेक्ट से जूझ रहे थे। वो 20-25 दिनों से पीजीआई में भर्ती थे। उनकी दूसरी बीमारी डायग्नोज नहीं हो पा रही थी और उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। सीएम जयराम ठाकुर ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा है। वहीं इस बीच वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट में पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाली जगह अब ममता बनर्जी ने अपनी फोटो लगा दी है। पश्चिम बंगाल में तीसरे चरण के वैक्सीनेशन कार्यक्रम की शुरुआत होती ही ममता की फोटो वाले वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट 18-44 वर्ष की उम्र के लोगों के दिए जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान भी वैक्सीनेशन के सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर को लेकर टीएमसी ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी। तृणमूल ने आरोप लगाया था कि कोविड-19 टीकाकरण प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर होना चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है। इतना ही नहीं, ममता केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति पर भी सवाल उठा चुकी हैं।
ट्विटर ने रिस्टोर किया उपराष्ट्रपति एम वेकैंया नायडू के पर्सनल अकाउंट का ब्लू टिक, जानिए क्या थी वजह
ट्विटर ने शनिवार को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ब्लू टिक बैज हटाने के बाद फिर से उसे रिस्टोर कर दिया है। ट्विटर ने ब्लू टिक हटाने के पीछे अकाउंट के इनएक्टिव होने की दलील दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के अनुसार, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के पर्सनल ट्विटर अकाउंट से ब्लू टिक बैज अकाउंट के इनएक्टिव होने की वजह से हटाया गया था। उनका अकाउंट जुलाई, 2020 से इनएक्टिव था। हालांकि कुछ ट्विटर यूजर्स ने ऐसे स्क्रीनशॉट शेयर किए हैं, जिन अकाउंट से ब्लू टिक बैज 1 साल से ज्यादा समय से इनएक्टिव होने के बावजूद नहीं हटाया गया है। ट्विटर की पॉलिसी के मुताबिक, ट्विटर कभी भी किसी भी शख्स का ब्लू टिक बैज हटा सकता है। ट्विटर शख्स की पोजिशन के बारे में ध्यान नहीं देता है। ब्लू टिक बैज से पता चलता है कि अकाउंट वेरिफाइड है और समाज के लिए वह महत्वपूर्ण शख्स का अकाउंट है। बता दें कि ट्विटर अकाउंट वेरिफाई करवाने के लिए अकाउंट एक्टिव, वास्तविक और समाज के लिए किसी महत्वपूर्ण शख्स का होना चाहिए। ट्विटर पर इस वक्त 6 प्रकार के अकाउंट मौजूद हैं। इनमें सरकारी कंपनियों, ब्रॉन्ड्स, एनजीओ, न्यूज चैनलों, पत्रकारों, मनोरंजन और खेल से जुड़े लोगों, एक्टिविस्ट, ऑर्गनाइजर्स और दूसरे महत्वपूर्ण लोगों के अकाउंट शामिल हैं। ट्विटर के अनुसार, किसी अकाउंट से ब्लू टिक बैज बिना कोई नोटिस दिए किसी भी समय हटाया जा सकता है। अगर किसी अकाउंट का यूजरनेम बदला जाता है या अकाउंट इनएक्टिव हो जाता है या फिर कोई शख्स अपने पद पर नहीं रहता है, जिसके लिए उसका अकाउंट वेरीफाई किया गया था तो ब्लू टिक बैज हटाया जा सकता है। इसके अलावा ट्विटर अकाउंट से ब्लू टिक बैज तब भी हटाया जा सकता है जब कोई बार-बार ट्विटर के नियमों का उल्लंघन करता है। इसमें हिंसा लिए उकसाना, गाली देना, हिंसा को ग्लोरिफाई करना, फेक न्यूज फैलाना और संप्रभुता को नुकसान पहुंचाना आदि शामिल है।
प्रदेश सरकार द्वारा जिला किन्नाैर के बागवानाें काे सेब काेल्ड स्टाेर निर्माण की घाेषणा के बाद कांग्रेस और भाजपा नेताओं में सियासी जंग भी छिड़ गई है। हालाँकि कांग्रेस सेब काेल्ड स्टाेर का विरोध नहीं कर रही है, लेकिन जिस लाेकेशन में प्रस्तावित है उसके खिलाफ है। बताया गया कि सरकार ने जिला मुख्यालय रिकांगपिओ में सेब काेल्ड स्टाेर निर्माण करने का निर्णय लिया है। जाे बागवानाें के लिए विपरीत दिशा में है। कारण यह है कि अप्पर किन्नौर यानी पवारी से ऊपर वाले सेब उत्पादक क्षेत्राें के बागवानाें काे रिकांगपिओ काेल्ड स्टाेर पूरी तरह से विपरीत दिशा में पड़ेगा। यानी सेब की पेटियाें काे काेल्ड स्टाेर करने के लिए एनएच-5 से वापस रिकांगपिओ जाना पड़ेगा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव सत्यजीत नेगी ने जिले के सभी बागवानाें के दर्द काे समझते हुए सेब काेल्ड स्टाेर पाेवारी के समीप बनाने के बारे में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर काे पत्र भी लिखा है। उन्हाेंने कहा कि सेब के कोल्ड स्टोर को रिकांगपिओ की बजाए पाेवारी के पास नेशनल हाईवे-5 पर स्थापित किया जाना चाहिए। जिससे सभी लोगों को फायदा मिल सके, क्योंकि सेब तो एनएच से हाेकर देश की मंडियाें में जाना है। इसलिए रिकांगपिओ की बजाए नेशनल हाईवे पर इसे स्थापित किया जाए तो बहुत अच्छा रहेगा। सत्यजीत नेगी ने कहा कि मेरा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से निवेदन है कि इस कोल्ड स्टोर को रिकांगपिओ की बजाए एनएच-5 पोवारी के निकट कहीं पर भी स्थापित करें। जिससे पूह, कल्पा और निचार ब्लॉक के सभी बागवानाें काे को लाभ मिल सके।
कोरोना के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अपनी बोर्ड की परीक्षा रद्द कर दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में हुई बैठक के बाद यह फैसला लिया गया। विद्यार्थियों को आंतरिक मूल्यांकन के जरिए पास किया जाएगा। गौरतलब है कि यूपी बोर्ड पहले ही दसवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द कर चुका है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीबीएसई की बारहवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द करने की घोषणा की थी। इसके बाद से सभी राज्यों के बोर्ड पर बारहवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द करने का दबाव बढ़ गया था। गुरुवार को सूबे की सरकार ने बारहवीं कक्षा की परीक्षा को रद्द करने की घोषणा की। इस साल यूपी बोर्ड की इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए 26 लाख 10 हजार 316 परीक्षार्थी पंजीकृत हुए हैं। अब इन सभी विद्यार्थियों को आंतरिक मूल्यांकन पद्धति के जरिए पास किया जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र के इस फैसले के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश समेत कई बोर्ड ने अपनी परीक्षाएं रद्द कर दी थीं और अब यूपी बोर्ड ने भी परीक्षा रद्द करने का फैसला ले लिया।
हिमाचल प्रदेश के जिला मुख्यालय कुल्लू के ब्यासा मोड़ में गुरुवार सुबह तीन मंजिला भवन में आग भड़क गई। आग भवन में बने एक स्नूकर हाल में लगी। इससे बाजार में लोगों के बीच अफरातफरी का महौल बन गया। लोगों ने आग पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन स्नूकर में ताला लगा होने से नाकाम रहे। अग्रिकांड में एक लाख रुपये की संपत्ति जलकर राख हो गई है। जबकि 50 हजार की संपत्ति और साथ लगती आधा दर्जन दुकानों को आग की चपेट में आने से बचाया गया है। जानकारी के मुताबिक गुरुवार सुबह पौने आठ बजे ब्यासा मोड़ में स्थित तीन मंजिला भवन में बने एक स्नूकर में आग लगी। आग लगने की सूचना लोगों ने दमकल विभाग को दी। सूचना मिलते ही विभागीय टीम ने मौके पर पहुंची। लेकिन स्नूकर में ताला लगा होने के कारण आग पर काबू पाने में मशक्कत करनी पड़ी। भवन में बनी अन्य दुकानों को बचाने के लिए दमकल कर्मियों को स्नूकर का दरवाजा तोड़ा। जिसके बाद आग पर काबू पाया जा सका। इस अग्रिकांड की घटना में गगन सोनी पुत्र कुलदीप सोनी की दुकान आग की भेंट चढ़ी है। जिसमें एक लाख का की संपत्ति जलकर राख हुई है। मामले की पुष्टि करते हुए फायर अधिकारी दुर्गा सिंह ने कहा कि सूचना मिलने के बाद त्वरित कार्रवाई करते हुए दमकल कर्मियों ने आग पर काबू पाकर 50 हजार की संपत्ति व साथ लगती आधा दर्जन दुकानों को बचाया है।
प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में बेहतर व निर्बाध इंटरनेट नेटवर्क सेवाएं उपलब्ध करवाने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया है। याचिका में विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के निवासियों के लिए इंटरनेट सेवाओं की दुर्दशा का उल्लेख किया गया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने कहा कि कोरोना महामारी के चलते इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच का महत्व बढ़ गया है। वर्चुअल प्लेटफार्म पर शैक्षिक पाठ्यक्रमों, सम्मेलनों, अदालती कार्यवाही के संचालन के लिए पर्याप्त नेटवर्क की उपलब्धता समय की मांग है। गौरतलब है कि एक लाख से अधिक पंचायतों को जोडऩे के लिए कार्य पहले ही किया जा चुका है और द्वितीय चरण के अंतर्गत शेष पंचायतों को जोड़ा जा रहा है। भारत नेट फेज-एक, सीएससी ई-गवर्नेंस इंडिया को पांच-फाइबर प्रविधान का कार्य सौंपा गया है। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पत्र के अनुरूप उठाए कदमों की वस्तुस्थिति के संबंध में जवाब शपथपत्र के माध्यम से न्यायालय के समक्ष दाखिल करने का आदेश दिया।
बॉलीवुड एक्टर टाइगर श्रॉफ और दिशा के खिलाफ कोविड नियमों का उल्लंघन करने के लिए मामला दर्ज किया गया है। उन पर बिना किसी जरूरी काम के बेवजह यहां-वहां घूमने के लिए मामला दर्ज किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने कहा कि मुंबई में दोपहर 2 बजे के बाद बिना किसी कारण लोगों के इधर-उधर घूमने पर पाबंदी है, लेकिन टाइगर श्रॉफ और दिशा इसके बावजूद शाम तक बांद्रा बस स्टैंड के निकट घूमते पाए गए। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया गया है। जानकारी के मुताबिक दोनों अपने जिम से निकलकर बैंडस्टैंड के चक्कर लगा रहे थे। मालूम हो कि कोविड के चलते मुंबई पुलिस अभी बेहद सख्त है और इसी बीच टाइगर श्रॉफ पर ये कार्रवाई हुई है। बात दें कि टाइगर श्रॉफ और दिशा पाटनी दोनों ही बॉलीवुड फेवरेट कपल में से एक हैं। दोनों साथ में फिल्म 'बाघी 2' और 'बाघी 3' में नजर आए थे। इसके अलावा दोनों म्यूजिक वीडियो में भी साथ काम कर चुके हैं।
14 हजार करोड़ के बैंक घोटालेबाज़ और भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी को डोमिनिका में कोई राहत नहीं मिली है। तीन घंटे लंबी चली सुनवाई के बाद डोमेनिका कोर्ट ने मेहुल की जमानत अर्जी खारिज कर दी। मजिस्ट्रेट के सामने पेशी के दौरान चोकसी ने डोमेनिका में अवैध घुसपैठ के आरोपों को पूरी तरह नकार दिया। अब इस मामले में अगली सुनवाई 14 जून को होगी। चोकसी व्हीलचेयर पर बैठकर मजिस्ट्रेट के सामने पहुंचा था। प्रत्यार्पण करने के मामले में आज डोमिनिका की हाई कोर्ट में फिर सुनवाई होगी। कोर्ट मेहुल के भारत प्रत्यर्पण का फैसला सुना सकता है। डोमिनिका की हाई कोर्ट की न्यायाधीश बर्नी स्टीफेंसन ने चोकसी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर करीब तीन घंटे तक सुनवाई करने के बाद उसे मजिस्ट्रेट अदालत में पेश किए जाने का आदेश जारी किया था। चोकसी ने दावा किया था कि उसे एंटीगुआ एंड बारबुडा से अपहरण कर जबरन कैरीबियाई द्वीप देश में लाया गया। बता दें कि चोकसी 23 मई को एंटीगुआ से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था, जहां वह 2018 से एक नागरिक के रूप में रह रहा था। उसे पड़ोसी डोमिनिका में अवैध रूप से प्रवेश करने पर हिरासत में लिया गया था। वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ संभवत: कथित रोमांटिक तरीके से भागा था। उसकी गर्लफ्रेंड को लेकर बड़ी अफवाह है। हालांकि चौकसी की पत्नी प्रीति ने कहा कि जिस महिला की चर्चा की जा रही है, वह उनके पति की गर्लफ्रेंड नहीं है। प्रीति के अनुसार महिला चोकसी की परिचित थी और वह उसके साथ घूमने जाती थी। उन्होंने कहा कि चोकसी को भारतीय जैसे दिखने वाले लोगों एवं एंटीगुआई लोगों ने उस समय अगवा किया जब वह उस महिला से मिलने गए थे।
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले की चेरी के दामों ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। कोटगढ़ के बागवानों की चेरी को दिल्ली में 600 से 700 रुपये प्रतिकिलो रेट मिले हैं। आमतौर पर चेरी 300 से 350 रुपये प्रति किलो बिकती है लेकिन कोराना काल में विटामिन-सी से भरपूर चेरी को भारी मांग के चलते बेहतरीन रेट मिल रहे हैं। अच्छे रेट मिलने से चेरी उत्पादक भी उत्साहित हैं। पिछले साल चेरी के रेट 300 से 350 रुपये थे। इस साल चेरी का साइज बड़ा होने के चलते अच्छे रेट मिले हैं। पिछले दिनों कुल्लू की चेरी को दिल्ली में 300 रुपये प्रति किलो रेट मिले थे। बुधवार को शिमला की फल मंडी में चेरी अधिकतम 230 रुपये बिकी।
प्रदेश में सरकारी नौकरी का काफी समय से इंतजार कर रहे प्रशिक्षितों के लिए खुशखबर है। हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में बंपर भर्तियां निकली हैं। मिशन में एक साथ कम्यूनिटी हेल्थ अफसर के 940 पद भरे जा रहे हैं। आवेदन की अंतिम तिथि 21 जून है। आवेदन करने वाले अभ्यर्थी के पास ब्रिज प्रोग्राम फॉर सर्टिफिकेट इन कम्यूनिटी हेल्थ का डिप्लोमा होना जरूरी है। यह डिप्लोमा बीएससी नर्सिंग के बाद होना चाहिए या फिर इंटरग्रेटिड कोर्स ऑफ मिड लेबल हेल्थ प्रोवाइडर बीएससी नर्सिंग के बाद होना अनिवार्य है। एनएचएम से मिली जानकारी के मुताबिक इन अफसरों की तैनाती फील्ड में होगी। प्रदेश में कोरोना काल में एनएचएम के पास स्टाफ कम है। ऐसे में इन अफसरों को सैंपल लेने फील्ड में भेजा जाएगा। प्रदेश में कोरोना की संभावित तीसरी लहर की तैयारियों को लेकर प्रदेश सरकार ने कमर कस ली है। हालांकि नर्सों ने भर्ती के लिए रखी गईं शर्तों का विरोध किया है। एनएचएम की ओर से जारी अधिसूचना में जो योग्यता इन पदों के लिए अंकित है, उसके विरोध में नर्सों ने एनएचएम के मिशन निदेशक को पत्र लिखा है। नर्सों का कहना है कि जो शर्तें लगाई गई हैं, वे आर्टिकल 14 और 16 का उल्लंघन हैं। इसमें ये भी हवाला दिया गया है कि जब 2019-2020 में एनएचएम हिमाचल प्रदेश ने 500 से ज्यादा कम्यूनिटी हेल्थ अफसर के पद भरे थे। उन्होंने कहा कि एनएचएम को पुराने तरीके से इन पदों की भर्ती करनी चाहिए।
पिछले साल काेराेना काल में प्रदेश भाजपा के कैप्टन की ज़िम्मेवारी सांसद सुरेश कश्यप काे मिली थी और इसे एक साल से अधिक का समय हो चुका है। इस दाैरान सरकार और संगठन में कई बदलाव भी हुए, जिसमें मंत्रीमंडल विस्तार से लेकर बाेर्ड-निगमाें में उपाध्यक्ष के पदाें की नियुक्तियां प्रमुख हैं। पच्छाद विधानसभा सीट से 2017 में चुनाव जीतने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सुरेश कश्यप काे शिमला संसदीय सीट से टिकट दिया गया और जीत भी गए। मई 2020 में काेराेना काल के दौरान हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य घोटाला सामने आया तो डा. राजीव बिंदल काे प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी हाईकमान ने सांसद सुरेश कश्यप को प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए काबिल समझा और उन्हें ये महत्वपूर्ण दायित्व मिल गया। बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनके अब तक के सफर, मिशन 2022 और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने सुरेश कश्यप से विशेष बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश... सवाल: पिछले साल काेराेना संकट के बीच आपको संगठन की कमान सौंपी गई, बतौर प्रदेश अध्यक्ष अब तक आपने किन चुनौतियों का सामना किया? जवाब: 22 जुलाई 2020 को राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा द्वारा भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये जाने के बाद पूरी पार्टी को साथ लेकर चलना और सभी नेताओं को अपने अपने क्षेत्र में सकारात्मक रूप से कार्य में लगना हमारी प्राथमिकता रही है। इस दौरान पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव भी हुए जिनमें भारतीय जनता पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। पंचायती राज चुनाव में 75 प्रतिशत से ज्यादा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष भाजपा के जीत के आए और उसके उपरांत जिला परिषद चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को अधिकतम समर्थन मिला। नगर निगम चुनाव में भी धर्मशाला में भारतीय जनता पार्टी के महापौर एवं उप महापौर बने जहां कांग्रेसी नेताओं का राज था। हमने मंडी में भी नगर निगम बनाई है, लगातार भाजपा का प्रत्येक चुनाव में अच्छा प्रदर्शन रहा है। भाजपा एक कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल है और सभी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना और सब की बात को सुनना और समझना हमारे लिए प्राथमिक कार्य है। सवाल: काेराेना संकट में संगठन ने सरकार के साथ मिल कर प्राथमिक तौर पर क्या काम किया और केंद्र से कितना सहयोग मिला ? जवाब: जयराम सरकार प्रदेश में इस संकट की घड़ी में उत्तम कार्य कर रही है। सरकार एवं संगठन पूरे प्रदेश में मिलकर काम कर रहे है, दोनों में बेहतर तालमेल है जिससे जनकल्याणकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाया जा रहा है। भाजपा का हिमाचल प्रदेश में एक मजबूत संगठन है जिसका लाभ आमजन को राहत पहुंचाने में मिल रहा है। हाल ही में सेवा ही संगठन भाग-2 के अंतर्गत हमारे चारों संसदीय क्षेत्रों की बैठक संपन्न हुई है और यह बैठक मंडल अनुसार ली गई है। इसमें जिस प्रकार का भी फीडबैक आ रहा था वह सरकार को भेजा गया है और सरकार लगातार इसके अनुसार निर्णय ले रही है। सरकार द्वारा पूरे प्रदेश में कोरोना के समय किसी भी प्रकार की कमी नहीं आने दी है चाहे वो बेड कैपेसिटी हो, ऑक्सीजन, ऑक्सीमीटर, वेंटिलेटर, कॉन्सेन्ट्रेटर हो। सभी मंत्री व विधायक में संगठन के साथ अच्छा तालमेल बना कर कार्य कर रहे है। केंद्र में भी हमारे पास कुशल नेतृत्व है जहाँ हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा है वहीं केंद्र वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर है। सभी नेता हिमाचल के संगठन के साथ लगातार संपर्क में है किसी भी प्रकार के सहयोग एवं सहायता के लिए तत्पर रहते है। हाल ही में हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपने एमपी लैड फंड से हिमाचल प्रदेश कोविड 19 सोलिडेरिटी फण्ड में 2 करोड़ की राशि दी है, साथ में वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भी संगठन के माध्यम से प्रदेश के बारे में वे निरंतर फ़ीडबैक लेते है। इसी तरह केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक जिले को राहत सामग्री प्रदान की है। सवाल: विपक्ष का आरोप है कि सरकार और संगठन में तालमेल की कमी है? क्या वास्तव में ऐसा है? जवाब: वास्तव में विपक्ष एक सकारात्मक भूमिका निभाने में विफल रहा है। विपक्ष में आज तक नेतृत्व की खींचतान चली आ रही है और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची है। आज विपक्ष नेतृत्वहीन हो चुका है। उनके पास ना तो नीति है और ना नेता। माने तो कांग्रेस आज के समय में एक क्षेत्रीय दल से भी नीचे का राजनीतिक दल बन के रह चुका है। अन्य प्रदेशों में देखे तो कांग्रेस की जमीन खिसक चुकी है। उनके पास अपना वोट बैंक तक नहीं रहा है। देश के कई राज्यों में तो कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पा रही है। सरकार और संगठन में तालमेल का जो आरोप और विपक्ष लगाता है वह निराधार है और तथ्यों के बिना है। हाल ही में आपने देखा होगा किस प्रकार से पोस्टर फाड़ने की राजनीति कांग्रेस पार्टी में हुई है और उसको संभालने में ही कांग्रेस का अधिकतम समय चला गया है। आपदा के समय भी कांग्रेस केवल एक ड्राइंग रूम की पार्टी बन कर रह गई, बंद कमरों में बैठकर महामारी के बारे में टिप्पणी करना उनका कार्य बन गया है। जब इन लोगों ने प्रदेश द्वारा लिए गए हेलीकॉप्टर मामले को भी उठाया था तो उस पर भी उनकी पार्टी दो फाड़ हुई दिखाई दी थी। विपक्ष स्वयं यू टर्न वाला विपक्ष बन गया है। पहले वह एक निर्णय लेते हैं और उसके बाद उसी निर्णय के बारे में नकारात्मक टिप्पणियां करते हैं, क्या यह एक सकारात्मक विपक्ष की भूमिका है? कुलदीप राठौर, मुकेश अग्निहोत्री, जीएस बाली, काैल सिंह, सुखविंदर सिंह सुक्खू, सुधीर शर्मा सब अपनी अपनी राजनीति में व्यस्त है। देखा जाए तो वास्तव में जमीनी स्तर पर विपक्ष बेहद कमजोर है। शायद विपक्ष अपना प्रतिबिंब देख भाजपा पर टिप्पणियां कर रहा है। सरकार और संगठन मिलकर बढ़िया कार्य कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप आज कोविड-19 के सक्रिय मामले पूरे प्रदेश भर में नीचे की ओर आ रहे हैं। सवाल: अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, इसमें सुरेश कश्यप की क्या भूमिका रहेगी ? क्या विधानसभा में लौटने का इरादा है या संगठन में ही आगे काम करना है ? जवाब: वर्तमान में मैं सांसद के रूप में शिमला निर्वाचन क्षेत्र से चुनकर गया हूं और हाल ही में मुझे प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। तो मेरा मन है कि मैं संगठन की सेवा कर भारतीय जनता पार्टी को और मजबूत किया जाएं। हमारा लक्ष्य है और हमें यकीन है कि पूर्ण मजबूती के साथ हम 2022 में एक बार फिर हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की शुद्ध सरकार बनाएंगे और एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की प्रथा को समाप्त करेंगे। सवाल: मंडी संसदीय सीट और फतेहपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव भी होना है, तो संगठन की ओर से क्या तैयारियां हैं? जवाब: मंडी संसदीय सीट और फतेहपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव जब भी घोषित होंगे उसके लिए भाजपा तैयार है। हमने फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए भी समन्वयक एवं प्रभारी, सह प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं और हमारी कई बैठकें इन चुनावों को लेकर हो चुकी है। इसी प्रकार हमने मंडी संसदीय सीट के लिए भी समन्वयक, प्रभारी एवं सह प्रभारी नियुक्त कर दिए है। भाजपा का संगठनात्मक स्वरूप विराट है और जिस प्रकार से हम बूथ स्तर पर कार्य करते हैं, किसी भी प्रकार का चुनाव हो पार्टी तैयार है और निश्चित तौर पर हमें जीत मिलेगी। हमारे बूथ अध्यक्ष एवं बूथ त्रिदेव लगातार अपने कार्य में लगे हैं जिनकी मेहनत से हम आने वाले चुनाव निश्चित रूप से जीतेंगे। मंडी संसदीय क्षेत्र में जिस प्रकार से स्वर्गीय पंडित रामस्वरूप ने कार्य किया है वह अपने आप में एक कीर्तिमान स्थापित करता है और लोगों को उनकी कमी हमेशा महसूस होगी। सवाल: काेराेना काल और विधानसभा सदन में कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका में आप किस तरह देखते है? जवाब: आज के समय में अगर देखा जाए तो कांग्रेस नाम का विपक्ष है, कांग्रेस को किस प्रकार से विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए उसका प्रशिक्षण लेना चाहिए। इस बार विधानसभा में तो कांग्रेस ने पूरी हिमाचल प्रदेश को शर्मसार कर दिया, जब उन्होंने राज्यपाल महोदय के काफिले को रोका और उनके अफसरों के साथ धक्का-मुक्की भी की, उससे आप सब अवगत हैं। कांग्रेस केवल राजनीति में विश्वास रखती है, हिमाचल प्रदेश की छवि को क्या होता है उससे उनका कोई लेना देना नहीं है। विधानसभा में भी अगर गौर किया जाए तो भले ही विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री हैं पर कई विपक्ष के नेता और भी है जो उनसे सहमति नहीं रखते। जब भी प्रदेश हित का मामला आता है तो वह वाक आउट करते हैं, जो कि प्रदेश हित में नहीं है। सवाल: इन दिनों कांग्रेस में पोस्टर फाड़ाे अभियान शुरु हो चुका है, इस पर आप क्या कहेंगे? जवाब: यह कांग्रेस पार्टी का निजी मामला है पर इस प्रकार की राजनीति एक बार फिर उनकी मानसिकता को दर्शाती है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पूर्व में भी कांग्रेस में आपसी लड़ाई देखने को मिली है। एक बार आपको याद होगा कि कांग्रेस दफ्तर में तो कई मुद्दों पर एक दूसरे के सिर भी फोड़ दिए गए थे, वहां के टेबल कुर्सियों को लेकर भी उनके कार्यकर्ता आपस में हमलावर हुए थे। इस प्रकार की राजनीति पूर्ण रूप से स्पष्ट करती है कि कांग्रेस में आपसी प्रतिस्पर्धा चल रही है। जो पार्टी अपने कुनबे को नहीं संभाल कर रख सकती वह पूरे प्रदेश को क्या संभालेगी। जयराम ने ऊपरी और निचली हिमाचल की राजनीति पर विराम लगाया : प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने कहा कि जब से प्रदेश में जयराम सरकार बनी है उसी दिन से निचली और ऊपरी हिमाचल के नाम पर होने वाली राजनीति समाप्त हाे गई है। पूरे प्रदेश यानी 68 विधानसभा क्षेत्र और सभी 12 ज़िलों का एक समान विकास करवाना जयराम सरकार की पहली प्राथमिकता है। दिसंबर 2017 से लेकर अब तक लगातार प्रदेश में हर क्षेत्र का विकास हाे रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, राेजगार, उद्याेग, टूरिज्म, जलशक्ति, सड़क, तकनीकी शिक्षा समेत हर क्षेत्र में चहुंमुखी विकास कार्य हुए हैं। जबकि कांग्रेस सरकार में भाजपा विधायकों वाले क्षेत्राें से भेदभाव होता था, मगर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राजनीतिक द्वेष काे दरकिनार कर हर एक विधानसभा क्षेत्र को उसका हक़ दिया है।
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम ऐसे राज्य है जहाँ वर्तमान में भाजपा की सरकार है। पर इन तीनो में एक और बात समान है। दरअसल, इन तीनों राज्यों में ऐसे नेता मुख्यमंत्री है जो कभी कांग्रेस में हुआ करते थे। कांग्रेस ने न कद्र की और न तवज्जो दी, तो ये नेता समर्थकों सहित भाजपा में चले गए। आज तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। बीते एक दशक की राजनीति पर गौर करें तो काफी संख्या में कांग्रेस के नेता भजपा में शामिल हुए है। इनमे से कई मंत्री बने है, कई मुख्यमंत्री, तो कई को भाजपा में जाकर विशेष तवज्जो मिली है। जिस तेजी से भाजपा में कांग्रेस के नेता शामिल हुए हैं उससे यह कलई भी खुलती है कि भाजपा कैडर आधारित पार्टी है। फिलहाल अगर हम एक पार्टी के रूप में भाजपा पर इसके प्रभाव देखें तो इसका सबसे ज्यादा बुरा असर कार्यकर्ताओं पर पड़ता है। भाजपा कार्यकर्ता अपने आप को छला महसूस करता है। उन्हें लगता है कि लंबे समय तक पार्टी के लिए मेहनत वो करें और दूसरी पार्टी से कोई भी नेता आकर चुनाव जीत जाएगा, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री की कुर्सी भी पा लेगा। बड़ा सवाल ये है कि भले ही कई राज्यों में भाजपा सत्तासीन हो जाये लेकिन क्या पार्टी का संगठन तैयार हो पाएगा ? या यूँ कहे आर्गेनिक संगठन तैयार हो पायेगा। हालांकि राजनीति में ये आम बात है, किसी ज़माने में कांग्रेस इस तरह से जीत हासिल करती थी। फिर जनता दल-जनता पार्टी ने कांग्रेस का अनुसरण किया और आज भाजपा भी उसी राह पर है। 6 महीने में ही भाजपा ने बना दिया था सीएम मार्च 2017 में पूर्वोत्तर के मणिपुर में एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही पहली बार भाजपा की सरकार बनी थी। दिलचस्प बात ये है कि एन बीरेन सिंह अक्टूबर 2016 में ही कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा से जुड़े थे। बीरेन कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में मंत्री पद संभाल चुके थे। बावजूद उसके भाजपा ने उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि भाजपा विधायक थोंगम विश्वजीत भी इस पद के दावेदार थे, पर आखिरकार बाजी बीरेन सिंह के हाथ लगी। एन बीरेन सिंह ने वर्ष 2002 में डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी कैंडिडेट के तौर पर पहला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बीरेन सिंह मंत्री बने। वर्ष 2007 में वह कांग्रेस के टिकट पर जीते और फिर सरकार में मंत्री बने। अक्टूबर, 2016 में बीरेन सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ बगावत करते हुए मणिपुर विधानसभा और कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे। 33 विधायकों सहित भाजपा में गए थे और सीएम बन गए खांडू अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी कांग्रेस में रह चुके हैं। 2010 में कांग्रेस के तवांग जिलाध्यक्ष पद से करियर शुरू करने वाले पेमा खांडू, वर्ष 2011 में पिता की सीट मुक्तो से निर्विरोध विधानसभा चुनाव जीते थे। कांग्रेस सरकार में 37 वर्ष की उम्र में 17 जुलाई 2016 को खांडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। पर नाराजगी के बाद 16 सितंबर 2016 को पेमा खांडू पार्टी के 43 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बनाई। इसे लेकर जब पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल ने खांडू के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो 31 दिसंबर 2016 को वह पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल के 33 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और सरकार बना ली। 2019 में हुए अरुणाचल प्रदेश विधानसभा की 60 सीटों पर हुए चुनाव में बहुमत हासिल करते हुए 41 सीटों पर जीत दर्ज की, जिसके बाद फिर पेमा खांडू फिर मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस से नाता तोड़ पूरा हुआ सीएम बनने का सपना कभी कांग्रेस में रहते हुए असम का मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले हिमंता बिस्वा सरमा का सपना भाजपा में जाकर पूरा हुआ। कहते है 20 साल पहले उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि वे एक दिन सीएम बनेंगे, तब वे कांग्रेस में हुआ करते थे। जुलाई 2014 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद भाजपा का दामन थामा था। तब वह कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री थे और मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। उनके साथ करीब 38 विधायक भी थे, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी मांग नजरअंदाज कर दी थी। तब हिमंता बिस्वा सरमा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए इस्तीफा दे दिया था और भाजपा में शामिल हुए थे। इसके बाद साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद तो वह मुख्यमंत्री बनने में सफल नहीं हुए, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में उनकी मेहनत को देखते हुए पार्टी ने निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।
सियासत में निष्ठा, समर्पण और विचारधारा की बातें बेमानी हैं। नेताओं का दल बदलना आम बात है और जब नेताओं को अपने वर्तमान राजनीतिक दल में तवज्जो न मिले या निजी सियासी अरमान पुरे न होते दिखे ताे वे विरोधी दल के साथ हाथ मिलाने से भी गुरेज नहीं करते। जिन्हें गालियां देते रहे हो उनका झंडा उठाने से भी नेता गुरेज नहीं करते। यह राजनीति है, कुर्सी हथियाने के लिए हमारे माननीय कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे सड़कों उदहारण जहाँ दल बदलने से नेताओं की किस्मत चमक गई।हिमाचल की राजीनीति में भी दल बदलने की परंपरा काफी पुरानी है। अभी वर्तमान सरकार में बैठे मंत्रियों, विधायकों की बात करें तो जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर सबसे अधिक बार राजनीतिक दल बदलने वालों में से हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम व उनके पुत्र अनिल शर्मा भी कांग्रेस - भाजपा और हिमाचल विकास कांग्रेस में रहे। आपको बताते है हिमाचल प्रदेश के ऐसे कुछ नेताओं के बारे में जिन्होंने दल बदले और वर्तमान में सक्रिय भी है। घाट- घाट का पानी पीकर महेंद्र सिंह को भाजपा रास आई जयराम सरकार में जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की राजनीति एक आजाद प्रत्याशी से शुरू हुई थी और आज वह भाजपा में सीएम के बाद पहले वरिष्ठ नेता बन गए। बता दें कि महेंद्र सिंह ठाकुर 1990 में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार विधानसभा चुनाव जीते। इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव से पूर्व वे कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीते। तदोपरांत 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, फिर 2003 में वामपंथियों से हाथ मिलाकर हिमाचल लाेकतांत्रिक माेर्चा से चुनाव लड़े और जीत भी गए। इसके बाद महेंद्र सिंह भाजपा में शामिल हो गए और 2007 से लेकर अब तक भाजपा टिकट से चुनाव जीतते आ रहे हैं। पंडित सुखराम एंड फैमिली : कभी यहां, कभी वहां पंडित सुखराम कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे है। उनके पुत्र अनिल शर्मा की राजनीति भी कांग्रेस से शुरू हुई थी। बाद में कांग्रेस के भीतर गुटबाजी हावी हुई ताे पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया। अनिल शर्मा भी पंडित सुखराम के साथ चले। हिमाचल विकास कांग्रेस की मेहरबानी से ही 1998 में धूमल सरकार बनी और पुरे पांच साल चली भी। इसके बाद सुखराम परिवार फिर कांग्रेस में आ गया। 2012 के चुनाव में वीरभद्र सरकार में अनिल शर्मा मंत्री भी बने। पर 2017 के चुनाव से पहले सुखराम परिवार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया और अनिल शर्मा भाजपा टिकट पर चुनाव जीत फिर मंत्री बन गए। तदोपरांत वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पंडित सुखराम पोते आश्रय शर्मा के साथ कांग्रेस में चले गए और आश्रय ने कांग्रेस टिकट से चुनाव लड़ा। दादा और पोते के कांग्रेस में जाने के चलते अनिल शर्मा को जयराम कैबिनेट में मंत्री पद भी गवाना पड़ा। बहरहाल, अभी पंडित सुखराम और आश्रय कांग्रेस में है और तकनीकी तौर पर अनिल शर्मा अभी भी भाजपा विधायक है। हिमाचल विकास कांग्रेस से कांग्रेस में आये शांडिल आर्मी अफसर के पद से रिटायर हाेते ही 1999 के लाेकसभा चुनाव में कर्नल धनीराम शांडिल राजनीति में आये और हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर शिमला संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ संसद पहुंचे। उसके बाद उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस स किनारा कर 2004 में कांग्रेस टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ा और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे। हालंकि 2009 का लाेकसभा चुनाव वे हार गए, पर उसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट से जीते भी और मंत्री भी बने। वर्तमान में भी वे सोलन निर्वाचन क्षेत्र से विधायक है। भाजपा में ही लौट आये महेश्वर मंडी संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद रहे कुल्लू के नेता महेश्वर सिंह ने भी दल बदल चुके है। हालांकि उनका अधिकांश राजनीतिक सफर भाजपा में गुजरा है, पर 2012 में जब उनकी पार्टी में नहीं बनी तो उन्होंने हिमाचल लोकहित पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत भी गए। बहरहाल, महेश्वर फिर भाजपा में लौट आये हैं और मंडी लोकसभा उप चुनाव के लिए टिकट के दावेदार है। तवज्जो नहीं मिली तो पवन नैयर ने बदल डाली टीम चंबा सदर से भाजपा विधायक पवन नैयर ने पिछले कई वर्षों तक कांग्रेस के लिए तन-मन और धन से काम किया। पर जब विधानसभा टिकट की बात हाेती है ताे उन्हें ठेंगा दिखाया जाता। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाया। उन्हें टिकट भी मिल गया और वे जीत भी गए। पवन नैयर राजनीति से पहले क्रिकेट के मैदान में चमकते सितारे रह चुके हैं। कांग्रेस से भाजपा में आ गए नरेंद्र ठाकुर हमीरपुर से भाजपा विधायक नरेंद्र ठाकुर 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस में रहे हैं। बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र ठाकुर कांग्रेस से चुनाव लड़े थे और अनुराग सिंह ठाकुर से हार गए थे। इस साल कांग्रेस ने इंटरनेशनल क्रिकेटर मदनलाल को टिकट दिया तो विरोध शुरू हुआ। संगठन ने नरेंद्र ठाकुर की सिफारिश की और टिकट में बदलाव किया गया। हालांकि नरेंद्र ठाकुर लोकसभा का चुनाव हार गए। 2017 के चुनाव से पहले नरेंद्र भाजपा में शामिल हो गए और वर्तमान में वे हमीरपुर सीट से विधायक हैं। नरेंद्र ठाकुर के पिता स्व. ठाकुर जगदेव चंद जनसंघ समय से भाजपा के कद्दावर नेता रहे थे। वह पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। जगदेव चंद ठाकुर की पुत्रवधू उर्मिल ठाकुर भी दो बार भाजपा विधायक और सीपीएस पद पर रह चुकी हैं। उर्मिल ठाकुर नरेंद्र ठाकुर की भाभी है। अब नरेंद्र भी भाजपाई है। हिविकां में रहकर मंत्री बने, अब भाजपा में आकर भी मंत्री है मारकंडा प्रदेश के जनजातीय विकास मंत्री डा. रामलाल मारकंडा की राजनीति एनएसयूआई से हुई थी और शुरुआती दौर में वे कांग्रेस के लिए काम करते रहे। बाद में 1998 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत कर मंत्री भी बन गए। उसके बाद 2003 से लेकर अब तक के वे भाजपा में ही है और इस वक्त जयराम सरकार में मंत्री हैं। भाजपा छोड़ी, फिर भाजपा के सीएम फेस को ही हरा दिया सुजानपुर विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल काे पराजित कर जयराम ठाकुर की राह में लक्की साबित हाेने वाले कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह राणा की सियासत बीजेपी से शुरु हुई थी। पूर्व में जब प्रेम कुमार धूमल सीएम रहे ताे राजेंद्र राणा उनके करीबी थे। उसी कार्यकाल में हाेटल वुडविल प्रकरण सामने आया ताे उसके बाद राजेंद्र राणा ने भाजपा से नाता ताेड़ दिया और सुजानपुर विधानसभा सीट पर निर्दलीय चुनाव जीते। उसी दाैरान 2014 के लाेकसभा चुनाव में विधायक पद से इस्तीफा देकर हमीरपुर संसदीय सीट से भाजपा के अनुराग ठाकुर के खिलाफ कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा, मगर जीत नहीं मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव में सुजानपुर सीट पर कांग्रेस टिकट से चुनाव लड़े और प्रेमकुमार धूमल को हराकर कांग्रेस के राइजिंग स्टार बन गए। भाजपा के दिग्गज रहे, अब बना ली अपनी पार्टी एक दौर में भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे डॉ राजन सुशांत ने भी दल बदलने से गुरेज नहीं किया। 1982 के विधानसभा चुनाव में वे सबसे कम उम्र के विधायक बने थे और पांच बार भाजपा टिकट पर जीतकर विधायक बने। 1998 से 2003 तक धूमल सरकार में मंत्री भी रहे और 2009 का लोकसभा चुनाव भी भाजपा टिकट पर जीता। पर सांसद बनते - बनते प्रदेश भाजपा और उनके बीच दूरियां आ गई थी। तब प्रदेश में भाजपा सरकार थी और सुशांत अपनी ही सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे। 2011 में भाजपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया। इसके बाद सुशांत आम आदमी पार्टी में गए और 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा। तब राजन सुशांत तीसरे पायदान पर रहे। इसके बाद आम आदमी पार्टी में भी उनकी नहीं जमी और वे वहां से भी बाहर हो गए। वर्तमान में उन्होंने 'अपनी पार्टी हिमाचल पार्टी' के नाम से नया राजनीतिक दल बनाया है।
कोरोना के इस मुश्किल दौर में खाद्य तेलों के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है। सरकारी आंकड़े भी तस्दीक करते है कि खाद्य तेलों के दाम पिछले एक दशक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं। बढे दामों के बीच आम लोगों का जमकर गुस्सा निकल रहा है, खासतौर से सोशल मीडिया पर। स्टेट सिविल सप्लाईज डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार देश में रिटेल में खाद्य तेल के मासिक औसत दाम जनवरी 2010 से अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं। ये आंकड़े उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं। प्राप्त डाटा के अनुसार, मई के महीने में सरसों के तेल के औसत दाम करीब 165 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए, जो कि पिछले साल में मई के महीने से तक़रीबन 39 प्रतिशत अधिक है। मई 2020 में सरसों के तेल का औसत दाम 118.25 रुपये प्रति किलोग्राम था। मई 2010 में सरसो तेल का दाम सिर्फ 63.05 रुपये प्रति किलोग्राम था। पाम ऑयल का भी भारत के कई घरों में इस्तेमाल होता है। मई माह में इसके औसत दाम 131 रुपये प्रति किलोग्राम के करीब है जो कि पिछले साल के मुक़ाबले लगभग 49 प्रतिशत अधिक है। मई 2020 में पाम ऑयल के औसत दाम 88.27 रुपये प्रति किलोग्राम थे। वहीं अप्रैल 2010 में इसके दाम 49.13 रुपये प्रति किलोग्राम था। मूंगफली के तेल के औसत दाम 175.55 रुपये, वनस्पति के 128.7 रुपये, सोयाबीन तेल के 148.27 रुपये और सनफ्लावर तेल के 169.54 रुपये प्रति लीटर पहुंच गए हैं। मई 2020 के मुकाबले इन तेलों के औसत दाम में करीब 20 से 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इसी तरह वनस्पति घी के दामों में भी करीब 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आयात होता है 60 प्रतिशत से अधिक खाद्य तेल पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमत के मुकाबले भारत में इसके दामों में कहीं अधिक बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। इस पर केंद्र सरकार भी अपनी चिंता जाहिर कर चुकी है। भारत में खाद्य तेल का 60 प्रतिशत से अधिक का आयात विदेशों से होता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय कीमतों के साथ इसको जोड़कर देखा जाता है। पर दामों में बेहिसाब इजाफा तर्कसंगत नहीं है। दाल और एडिबल ऑयल्स के दाम और बढ़ सकते है : आरबीआई बीते कुछ वक्त में दालों के भाव में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। अरहर की दाल 30 रुपए प्रति किलो महंगी हो गई है। उड़द, मूंग व मसूर के रेट भी आसमान छू रहे हैं। ऐसे में खाने का जायका फीका पड़ने लगा है। अनाज पर महंगाई की मार पड़ गई है। महामारी से बचने के लिए औद्योगिक इकाइयों से मजदूरों का पलायन जारी है। ऐसे में उत्पादन प्रभावित हो रहा है। 27 मई को जारी आरबीआई की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक मांग और आपूर्ति में अंतर के चलते दाल और एडिबल ऑयल्स जैसे फूड आइटम्स के भाव पर दबाव बना रहेगा और इनके भाव बढ़ सकते हैं। हालांकि 2020-21 में बंपर उत्पादन के चलते अनाज के भाव में नरमी आ सकती है।
देश और प्रदेश में बढ़ती महंगाई के खिलाफ विपक्ष आवाज उठा रहा है ताे सत्तापक्ष कांग्रेस राज याद दिला रहा है। इस मुद्दे पर दाेनाें प्रमुख राजनैतिक दल आमने -सामने है और बढ़ती महंगाई के बीच सस्ती सियासत हो रही है। पर निसंदेह बढ़ती महंगाई पर विपक्ष को जनता का साथ मिल सकता है। जयराम सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग काे सफाई पेश करने की नाैबत आ गई है। पर हैरानी की बात है कि मंत्री पूर्व की यूपीए सरकार की खामियाें काे गिनवा रहे है। राजेंद्र गर्ग का कहना है कि कांग्रेस के नेता कोरोना महामारी के दौरान भी ओछी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। एक तरफ प्रदेश सरकार जहां संकट के इस दौर में लोगों को हर संभव मद्द प्रदान कर रही है, वहीं कांग्रेस के नेता उल-जलूल आरोपों की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने के अवसर तलाश रहे हैं। गर्ग का कहना है कि कांग्रेस नेता हर पल महंगाई का राग अलापते रहते हैं लेकिन जब देश में यूपीए की सरकार के समय खाद्यान्न की कीमतें आसमान छू रही थीं और दालें 150-300 रुपये प्रति किलो के भाव से बाजार में मिलती थी, तब उन्हें महंगाई नजर नहीं आती थी। आज कोरोना महामारी के संकट के दौरान भी उस समय की तुलना की जाए तो खाद्य पदार्थों के भाव बहुत कम हैं। प्रदेश सरकार खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से प्रदेश की जनता को सब्सिडी प्रदान करके राहत प्रदान कर रही है। वहीं विपक्ष के नेता दुष्प्रचार करके आम लोगों को गुमराह करने का प्रयास कर रहा हैं, परन्तु जनता व्यावहारिक रूप से सब देख रही है। बाजार की कीमत से तुलना कर रहे है मंत्री प्रदेश सरकार के मंत्री राशन कीमत की बाजार से तुलना कर रहे हैं। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग ने कहा कि उचित मूल्य की दुकानों में खाद्य आपूर्ति निगम बीपीएल परिवारों को उड़द, मलका और मूंग साबूत दालें बाजार मूल्य से लगभग 30 रुपये प्रति किलो सस्ती तथा एपीएल परिवारों को बाजार मूल्य से 20 रुपये प्रति किलो सस्ती दर पर मुहैया करवाई जा रही है। बीपीएल परिवारों को चीनी 13 रुपये प्रति किलो व एपीएल को 30 रुपये के हिसाब से उपलब्ध कराई जा रही हैै। इसके अतिरिक्त, सरसों का तेल बाजार मूल्य से 20 से 30 रुपये सस्ता और बीपीएल परिवारों को रिफाइंड तेल बाजार मूल्य से लगभग 35 रुपये सस्ता मुहैया करवाया जा रहा है। आटा व चावल पर सभी राशन कार्ड धारकों को सब्सिडी प्रदान की जा रही है। महंगाई पर श्वेत पत्र जारी करें जयराम सरकार : मुकेश नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का आरोप है कि काेराेना संकट में लाेगाें काे सस्ता राशन देना चाहिए था, लेकिन डबल इंजन की सरकार ने सब कुछ चौपट कर दिया। जयराम सरकार इस महंगाई पर श्वेत पत्र भी जारी करें। जब हम आवाज उठाते हैं तो सरकार के मंत्री पुरानी कहानी तैयार करते हैं, हम चाहते हैं कि बढ़ती महंगाई पर वर्तमान स्थिति पर सरकार दें। देश और प्रदेश में हालात यह है कि वैक्सीनेशन के नाम पर भी कहीं न कहीं कालाबाजारी हो रही है, आने वाले समय में सब सामने आएगा।
हिन्दुस्तान की सियासत और महंगाई के सम्बन्ध का ज़िक्र प्याज के बगैर अधूरा है। ऊंचे दामों से आम जनता को रुलाने वाला प्याज सियासतगरों को भी रुलाता रहा है। आम तौर पर उपेक्षित-सा रहने वाला प्याज अचानक उठता है और सरकारों की नींव हिला देता है। भले ही इसके पीछे मौसम या फसल-चक्र की मेहरबानी रही हो, लेकिन इतिहास पर नज़र डाले तो प्याज ने सरकारें भी गिराई हैं। अतीत में झांके तो आपातकाल के बुरे दौर के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। यूँ तो यह सरकार अपने ही अंतर्विरोधों से लड़खड़ा रही थी, पर विपक्ष में बैठी इंदिरा गांधी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं था जिससे वो सरकार पर हमलावर हो सके। पर तभी अचानक प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी और बैठे बिठायें इंदिरा गाँधी को एक मुद्दा मिल गया। कांग्रेस ने इस मुद्दे का बेहद नाटकीय ढंग से इस्तेमाल किया। प्याज की बढ़ती कीमतों की तरफ ध्यान खींचने के लिए कांग्रेस नेता सीएम स्टीफन तब संसद में प्याज की माला पहन कर गए। देखते -देखते इस मुद्दे का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा। 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी प्याज की माला पहनकर प्रचार करने गईं। चुनावी नारा भी बना कि ' जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं।' चुनावी नतीजे आए तो जनता पार्टी की हार हुई और कांग्रेस ने सरकार बनाई। माना जाता है कि जनता पार्टी की सरकार भले ही अपनी वजहों से गिरी हो, लेकिन कांग्रेस की सत्ता वापसी में प्याज का भी अहम् योगदान रहा। हालांकि सत्ता में लौटी कांग्रेस भी इसकी कीमतों का बढ़ना नहीं रोक पाई और एक साल बाद फिर प्याज ने रुलाना शुरू कर दिया। इस बार विपक्ष ने प्याज का नाटकीय इस्तेमाल किया। तब लोकदल नेता रामेश्वर सिंह प्याज का हार पहन कर राज्यसभा में गए, पर बात नहीं बनी और सभापति एम हिदायतुल्ला ने उन्हें खरी-खोटी सुना दी। वर्ष 1998 में केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो प्याज की कीमतों ने फिर रुलाना शुरू कर दिया। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा भी कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है, शायद उनका इशारा था कि कीमतों का बढ़ना राजनैतिक षड्यंत्र है। तब दिल्ली प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव दस्तक दे रहे थे। तब एक बार फिर कांग्रेस ने प्याज का जबरदस्त राजनीतिक इस्तेमाल किया और इस मुद्दे पर भाजपा को जमकर घेरा। नतीजन जब चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और इसके बाद भी लगातार दो बार उनकी सरकार बनी। पर 15 साल बाद प्याज ने उन्हें भी रुलाया। अक्तूबर 2013 में प्याज की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज ने टिप्पणी की थी कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा। हुआ भी ऐसा ही, भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा चुनाव में बदलाव का साक्षी बना। दिल्ली में भाजपा ने तीन सीएम बदले थे 1998 में दिल्ली में भाजपा की सरकार थी और मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री थे। पर प्याज की कीमतें बढ़ीं और विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू किया। जनता में रोष था और दबाव इतना बढ़ा कि खुराना को हटाकर साहिब सिंह वर्मा को कमान सौंपी, पर कीमतें फिर भी नहीं घटीं। भाजपा ने फिर सीएम बदला और सुषमा स्वराज को मौका दिया गया। पर वे भी असफल रहीं। सीएम को मिठाई के डिब्बे में भेजे थे प्याज 1998 की दिवाली में महाराष्ट्र में प्याज की भारी किल्लत थी और प्याज की कीमत आसमान पर। तब कांग्रेसी नेता छगन भुजबल ने इस पर तंज कसने के लिए महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को मिठाई के डिब्बे में रखकर प्याज भेजे थे। कहते है इससे शर्मिंदा होकर मनोहर जोशी ने राशन कार्ड धारकों को 45 रुपए की प्याज 15 रुपए प्रति किलो में उपलब्ध करवाई।
देश पिछले डेढ़ साल से कोरोना संकट से जूझ रहा है, जिसके चलते आर्थिक रफ्तार सुस्त पड़ गई है और असंगठित क्षेत्र की हालत पतली है। इसका असर पर कैपिटा इनकम (प्रति व्यक्ति आय) पर भी पड़ा है और हालत ये है कि इस साल बांग्लादेश भी भारत से आगे होने का दावा कर रहा है। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए बांग्लादेश की पर कैपिटा इनकम 2227 डॉलर है, जबकि भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय 1947 डॉलर रही है। तकनीकी तौर पर बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय अब भारत की प्रति व्यक्ति आय से ज्यादा हो गई है। बांग्लादेश के प्रति व्यक्ति आय की तुलना में यह 280 डॉलर कम है। यह रिपोर्ट बांग्लादेश के प्लानिंग कमीशन की तरफ से जारी की गई है। मसला सिर्फ बांग्लादेश से पिछड़ने का नहीं है, चिंता ये है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय गिरी है। 2019-20 के लिए भारत की पर कैपिटा इनकम 2064 डॉलर थी, जो 2020 -21 में गिरकर करीब 1947 डॉलर प्रति व्यक्ति रह गई है। कोरोना संक्रमण से भारत में आर्थिक गतिविधियों से लगे झटके ने देश की अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान पहुंचाया है। लॉकडाउन और पाबंदियों की वजह से इकोनॉमी की रफ्तार में धीमेपन को प्रति व्यक्ति आय में कमी का जिम्मेदार माना जा रहा है।
पिछले दो महीने से देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी। इसलिए, पिछले महीने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होने के बावजूद देश में पेट्रोल-डीजल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। बल्कि, इस बीच कच्चा तेल सस्ता होने के बाद चार किस्तों में पेट्रोल-डीजल के दाम घटे थे। तब पेट्रोल 77 पैसे प्रति लीटर और डीजल 74 पैसे प्रति लीटर सस्ता हुआ था। पर जैसे ही चुनाव प्रक्रिया संपन्न हुई दाम बढ़ने शुरू हुए हैं। चुनाव के बाद ठहर-ठहर कर पेट्रोल 3.30 रुपये प्रति लीटर से अधिक महंगा हो चूका है। जबकि डीजल के दाम करीब 3.85 रुपये प्रति लीटर बढ़ चुके है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने बीते 26 फरवरी को अधिसूचना जारी की थी। इसके बाद सरकारी तेल कंपनियों ने अंतिम बार 27 फरवरी 2021 को डीजल के दाम में 17 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी। इसके बाद दो महीने से भी ज्यादा दिनों तक इसके दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। पर चुनाव बीतने के बाद अब रूक-रूक कर डीजल का दाम 3.85 रुपये प्रति लीटर महंगा हो चुका है। डीजल के दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्ट महंगा हुआ है जिसका सीधा असर उत्पादों की लागत पर पड़ रहा है। ऐसे में डीजल के दाम बढ़ना भी महंगाई का बड़ा कारण है।
" महंगाई की तहलील में जब जिस्म टटोला, मालूम हुआ हम तो कमर भी नहीं रखते " सय्यद ज़मीर जाफ़री का ये शेर आज हर आम आदमी का किस्सा है। एक तो कोरोना और इस पर बढ़ती महंगाई, गरीब और मध्यम वर्गीय वर्ग यदि कोरोना से बच भी रहा है तो महंगाई कमर तोड़ रही है। लॉकडाउन ने रोजगार ठप कर दिए है। आमद है नहीं और महंगाई है कि रुकने का नाम नहीं ले रही। सरकार को इस मुश्किल दौर में राहत पहुंचानी चाहिए लेकिन सरकार को तो मानो आम लोगों की तकलीफ से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है। जब देश में चुनाव होते है तो महंगाई पर थोड़ा ब्रेक जरूर लगता है, फिर चुनाव खत्म और दाम बढ़ना शुरू। जब सियासी फायदे के लिए महंगाई पर ब्रेक लग सकता है, तो कोरोना के इस मुश्किल दौर में आमजन को राहत देने के लिए क्यों नहीं ? मानो सरकार असंवेदनशील हो चुकी है। आम आदमी लाचार है और सरकार से आस लगाए हुए है कि वह कुछ करेगी, वहीं सरकार है कि सिर्फ जनता को दिलासा देने के अलावा कुछ नहीं कर रही। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि सरकार की नीतियों से महंगाई बढ़ती जा रही है, सरकार खुद भी आए दिन पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर और अपनी इस करनी को देश के आर्थिक विकास के लिए जरूरी बताकर आम आदमी के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही है। थोक महंगाई (WPI) के मोर्चे पर भी सरकार को बड़ा झटका लगा है। देश में अप्रैल के महीने में थोक महंगाई में रिकॉर्ड तोड़ तेजी देखने को मिली है। अप्रैल, 2021 में थोक महंगाई दर बढ़कर 10.49 फीसदी पर रही है, जो ऑल टाइम हाई है। जबकि मार्च में यह 7.29 फीसदी पर रही थी, जो 8 साल में सबसे ज्यादा थी। फरवरी में थोक महंगाई दर 4.17 फीसदी पर थी। फिलहाल अप्रैल में महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। 2021 में 115 रुपये बढ़े रसोई गैस के दाम वर्ष 2021 में घरेलू गैस की कीमत में बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। जनवरी में इसकी कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ। पर 4 फरवरी को कीमत 694 रुपए से 25 रुपए बढ़कर 719 रुपए हो गई। उसके बाद 15 फरवरी को कीमत में 50 रुपए की तेजी आई और यह 769 रुपए का हो गया। फिर 25 फरवरी को 25 रुपए के उछाल के साथ यह 794 रुपए का हो गया। 1 मार्च को इसकी कीमत में फिर 25 रुपए की तेजी आई और यह 819 रुपए का हो गया। अप्रैल में कीमत में 10 रुपए की गिरावट आई और यह 809 रुपए का हुआ। मई में घरेलू गैस की कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ। क्या बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी है कारण ! बेकाबू महंगाई के पीछे एक तर्क ये दिया जा रहा है कि पिछले साल मानसून कमजोर रहा या पर्याप्त बारिश नहीं हुई, जिसके चलते खाद्य सामग्री के दाम बढ़े है। पर सवाल ये है कि क्या इसका असर सभी चीजों पर एकसाथ पड़ा है। कीमत इतनी ज्यादा होने के बावजूद बाजार में किसी भी आवश्यक वस्तु का अकाल-अभाव दिखाई नहीं पड़ता, पर जब आपूर्ति कम होती है तो बाजार में चीजें दिखाई नहीं पड़ती हैं और उनकी कालाबाजारी शुरू हो जाती है। मूल सवाल ये है कि क्या बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी ही तो बेकाबू महंगाई का कारण नहीं है। सरकार को बाजार पर योजनाबद्ध तरीके से अंकुश लगाना चाहिए। उत्पादन लागत के आधार पर चीजों के विक्रय दाम तय होने चाहिए। जब सरकार कृषि उपज के समर्थन मूल्य तय कर सकती है तो वह बाजार में बिकने वाली चीजों की अधिकतम कीमत क्यों नहीं तय कर सकती?
18 से 44 वर्ष तक के आयु वाले युवाओं के लिए काेविड वैक्सीन लगवा पाना अब किसी लक्ज़री से कम नहीं रहा। वैक्सीन लगवाने के लिए अपॉइंटमेंट लेने की प्रक्रिया इतनी जटिल है की घंटो इंतज़ार और कड़ी जद्दोजहद के बाद भी स्लॉट बुक होता है या नहीं ये आपकी किस्मत और ऑनलाइन एक्सपर्टीज पर निर्भर करता है। कोरोना के इस काल में जहां वैक्सीन को कोरोना से लड़ाई का एकमात्र हथियार माना जा रहा है, वहीं हिमाचल के युवाओं को कब आसानी से वैक्सीन लगेगी ये एक बड़ा सवाल है। केंद्र सरकार द्वारा तो जनता की सहूलियत के लिए ऑनसाइट रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया गया मगर हिमाचल प्रदेश में वैक्सीन की कमी के चलते ये व्यवस्था लागु नहीं की गई थी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा ये स्पष्ट किया गया था कि हिमाचल में वैक्सीन की वेस्टेज नहीं हो रही है और न ही यहां वैक्सीन की अधिक खेप उपलब्ध है, इसीलिए हिमाचल में ऑनसाइट रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा सकता। हालाँकि अब नेशनल हेल्थ मिशन के डायरेक्टर डा. निपुण जिंदल ने बताया है कि भारत सरकार के 18 से 44 वर्ष तक के आयुवर्ग के लिए ऑनसाइट पंजीकरण तथा अप्वाइंटमेंट की सुविधा के निर्णय को हिमाचल में लागू करने के बारे में जल्द निर्णय लिया जा सकता है। उन्होंने कहा की भारत सरकार ने स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर ऑनसाइट पंजीकरण को खोलने के निर्णय को राज्य सरकारों तथा केन्द्र शासित राज्यों को सौंपा है, जिस पर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। बता दें की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) से हिमाचल प्रदेश को सीमित टीके की ही आपूर्ति हो पाई है। राज्य में अब तक लगभग 19 लाख लोगों को कोविशील्ड की पहली खुराक दी जा चुकी है। हिमाचल में फिलहाल सिर्फ कोविशील्ड वैक्सीन ही लोगों को दी जा रही है, बाकि दो वैक्सीन की खरीद अभी नहीं की गई। हालांकि एसआईआई से कोविशील्ड की आपूर्ति धीमी होने की संभावना है, इसलिए स्वास्थ्य विभाग अन्य निर्माताओं से स्पुतनिक और कोवैक्सिन खरीदने पर विचार कर रहा है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने ने वैकल्पिक टीकों की खरीद की लागत पर काम किया है लेकिन सबसे बड़ी बाधा बड़ी धनराशि की आवश्यकता है। बता दें की 72 लाख कोवैक्सिन खुराक प्राप्त करने की लागत 600 रुपये प्रति खुराक की दर से 432 करोड़ रुपये होगी। वहीं, स्पुतनिक की 72 लाख डोज 948 रुपये प्रति डोज की दर से खरीदने पर राज्य को 682 करोड़ रुपये और व्यय करने होंगे। इंटरनेट नहीं चलता तो कैसे बुक होगा स्लॉट शिमला जिले के सुदूर डोदरा-क्वार क्षेत्र में, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है, टीकाकरण (18-44 आयु वर्ग) के लिए 90 प्रतिशत से अधिक स्लॉट बाहरी लोगों द्वारा बुक किए गए हैं। लगभग 8,000 की आबादी वाले इस क्षेत्र में इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी है, इसलिए प्रशासन ने कोविन पोर्टल पर स्थानीय लोगों को पंजीकृत करने की जिम्मेदारी ली है। पर इससे पहले की स्थानीय लोगों की बुकिंग हो पाती है अन्य क्षेत्रों के लोगों ने स्लॉट बुक कर लेते है। स्थिति को देखते हुए बीते दिनों रोहड़ू के एसडीएम ने भी सभी बाहरी लोगों से अपने स्लॉट रद्द करने का अनुरोध किया ताकि स्थानीय आबादी टीकाकरण से वंचित न रहे। प्रशासन चाहता है कि यहां के लोगों का जल्द से जल्द टीकाकरण हो, इसका एक और कारण यह है कि ऊंचे इलाकों में बर्फबारी होने पर यह इलाका महीनों तक बंद रहता है। अन्य कई क्षेत्रों में भी इसी तरह की परेशानी है।
काेराेना महामारी ने देश और प्रदेश में इस वर्ष होने वाली जनगणना की प्रक्रिया को राेक दिया है। प्रदेश सरकार की ओर से इसके लिए पिछले साल दिसंबर माह में तैयारियां भी शुरु कर दी गई थी, लेकिन इस वर्ष जनगणना संभव हो पाना काफी कठिन लग रहा है। कारण यही है कि पूरा देश इस वक्त काेराेना से लड़ रहा है, हालाँकि कोरोना से जंग पूरी तरह जीतने के बाद शायद जनगणना की प्रक्रिया शुरु हाे जाए। प्रदेश सरकार ने जनगणना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राज्यस्तरीय समन्वय समिति भी बना दी है। हिमाचल प्रदेश में जनगणना कार्य में पारदर्शिता और सही जानकारी के संकलन के लिए मोबाइल एप भी बनेगा। इसके माध्यम से राज्य में जनगणना 2021 का अधिकतम कार्य संपादित करवाया जाएगा। जानकारियों का संकलन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकेगा। बीते फरवरी व मार्च माह में उपायुक्तों और जिले के अन्य अधिकारियों को जनगणना के कार्य का विस्तृत प्रशिक्षण दिया गया है। निदेशक जनगणना के मुताबिक जनगणना कार्यालय द्वारा हिमाचल में 18 मास्टर ट्रेनर को पिछले साल नवंबर में प्रशिक्षण दिया गया था। ये मास्टर ट्रेनर मार्च में सभी जिलों में लगभग 418 फील्ड ट्रेनर को प्रशिक्षण देने वाले थे। इनके द्वारा अप्रैल में राज्य के लगभग 19500 प्रगणकों व पर्यवेक्षकों को जनगणना का कार्य करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना था, लेकिन काेराेना के बढ़ते केस काे देखते हुए ऐसा संभव नहीं हाे पाया। बताया गया कि जनगणना से पहले प्रगणक अपने मोबाइल फोन का उपयोग कर मोबाइल एप के माध्यम से जनगणना का कार्य संपादित करेंगे। मोबाइल फोन के माध्यम से जनगणना कार्य करने वाले प्रगणकों को लगभग 25 हजार और पेपर पर कार्य करने वाले प्रगणकों को लगभग 17 हजार रुपये मानदेय भी दिया जाना है। 16 मई से 30 जून तक हाेना थी मकानाें की गणना जनगणना विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में प्रथम चरण में 16 मई से 30 जून तक मकानों की गणना कर उन्हें सूचीबद्ध किए जाने का शेडयूल तैयार कर दिया है। उपरोक्त कार्य के साथ-साथ राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर को भी अपडेट किया जाएगा। जनगणना के संपूर्ण कार्य का पर्यवेक्षण वेब पोर्टल के माध्यम से किया जाएगा। पर अभी इसके लिए हिमाचल के काेराेना मुक्त हाेने का इंतजार करना पड़ेगा।
काेराेना संकट के दौरान स्कूली बच्चों की फीसों में भारी वृद्धि के खिलाफ संघर्ष दूसरे साल भी जारी है। हिमाचल प्रदेश में जहां एक तरफ कोरोना कर्फ्यू ने लोगों कि आर्थिक स्थिति बिगाड़ दी है तो वहीं प्रदेश के निजी स्कूल अभिभावकों से मनचाही फीस वसूल उनकी जेब पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा रहे है। सरकार ने प्राइवेट स्कूलाें की फीसाें पर कंट्राेल करने के लिए कानून बनाने का दावा तो किया था, लेकिन अब तक ये दावा हकीकत नहीं बन पाया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल चुप्पी साधे हुए है । प्रदेश में एकमात्र छात्र अभिभावक मंच पिछले साल यानी पहले दिन से ही ये जंग लड़ रहा है। मंच की ओर से अकेले ही सरकार और शिक्षा विभाग के खिलाफ संघर्ष जारी है। छात्र अभिभावक मंच ने उच्चतर शिक्षा निदेशक से निजी स्कूलों द्वारा वर्ष 2020 व वर्ष 2021 में अभिभावकों का जनरल हाउस किये बगैर ही की गयी 15 से 50 प्रतिशत भारी फीस बढ़ोतरी को वापिस लेने की मांग की है। मंच ने कोरोना काल के इन दो वर्षों में की गई फीस वृद्धि को गैरकानूनी करार दिया है व इसे सम्माहित करने की मांग की है। मंच ने इस संदर्भ में तुरन्त अधिसूचना जारी करने की मांग की है। मंच ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि निजी स्कूलों में बगैर जनरल हाउस की अनुमति के वर्ष 2020 व 2021 में की गयी भारी फीस बढ़ोतरी को अगर वापिस न लिया गया तो छात्र अभिभावक मंच आंदोलन तेज करेगा। मंच के संयोजक विजेंदर मेहरा ने कहा कि अभिभावकों के निरंतर संघर्ष के बाद शिक्षा विभाग का दयानंद स्कूल के संदर्भ में जारी किया गया लिखित आदेश तभी मायने रखता है अगर शिक्षा अधिकारी 5 दिसम्बर 2019 के आदेश को अक्षरशः लागू करवाने में सफल होते हैं। उन्होंने कहा है कि ऐसा ही आदेश सभी निजी स्कूलों के लिए तुरंत जारी होना चाहिए ताकि भारी फीस पर लगाम लग सके। उन्होंने शिक्षा निदेशक से मांग की है कि वह तुरन्त सभी निजी स्कूलों में पांच दिसम्बर 2019 की शिक्षा निदेशालय की अधिसूचना को लागू करवाएं। यह अधिसूचना वर्ष 2019 में जारी हुई थी व इसमें स्पष्ट किया गया था कि वर्ष 2020 व उसके तत्पश्चात कोई भी निजी स्कूल अभिभावकों के जनरल हाउस के बगैर कोई भी फीस बढ़ोतरी नहीं कर सकता है। इसके बावजूद भी निजी स्कूलों ने वर्ष 2020 में भारी फीस बढ़ोतरी की। वर्ष 2021 में भी सारे नियम कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए टयूशन फीस में भारी-भरकर बढ़ोतरी करके सीधे पन्द्रह से पचास प्रतिशत तक फीस बढ़ोतरी कर दी गयी। 20 हजार रुपए तक बढ़ा दी फीस: मेहरा छात्र अभिभावक मंच के संयोजक विजेंदर मेहरा ने बताया कि पिछले दो वर्षों में शिमला शहर में निजी स्कूलों ने 12 हजार से 20 हज़ार रुपये तक की फीस बढ़ोतरी की है। इन स्कूलों ने बड़ी चालाकी से अब टयूशन फीस को भी कई गुणा बढ़ा दिया है व कुल फीस का मुख्य हिस्सा ही टयूशन फीस में बदल दिया है। अब कुल फीस का 80 से 90 प्रतिशत टयूशन फीस ही बना दिया गया है ताकि कोई ट्यूशन फीस के नाम पर फीस बढ़ोतरी पर प्रश्न चिन्ह न खड़ा कर सके। यह सीधी व संगठित लूट है तथा इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सरकार व शिक्षा विभाग की इस मामले पर खामोशी व निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रही है। उन्होंने कहा है कि पिछले दो वर्षों में हुई भारी फीस बढ़ोतरी पूर्णतः छात्र व अभिभावक विरोधी कदम है। दो वर्षों में असहनीय फीस वृद्धि की निजी स्कूलों ने विजेंद्र मेहरा ने कहा कि पिछले दो वर्षों में जो फीस बढ़ोतरी की गई है वो कोरोना काल में असहनीय है। स्कूल न चलने से निजी स्कूलों का बिजली,पानी,स्पोर्ट्स,कम्प्यूटर,वार्षिक कार्यक्रमों,स्कूल का रखरखाव,सफाई व्यवस्था,निर्माण व मिसलेनियस चार्जेज़ आदि पर खर्च लगभग शून्य हो गया है लेकिन इसके बावजूद भी हज़ारों रुपये की फीस बढ़ोतरी समझ से परे है। निजी स्कूलों के खर्चों की कटौती के कारण छात्रों की फीस लगभग पच्चीस प्रतिशत तक कम होनी चाहिए थी, परन्तु इन स्कूलों ने इसके विपरीत पन्द्रह से पचास प्रतिशत तक की फीस बढ़ोतरी कर दी। सरकार, निजी स्कूलों की मनमानी लूट व भारी फीसों को संचालित करने के लिए कानून बनाने व रेगुलेटरी कमीशन स्थापित करने के लिए लगातार आनाकानी कर रही है जिस से स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार द्वारा ही निजी स्कूलों की मनमानी लूट को संगठित व पोषित किया जा रहा है।
हिमाचल काडर के आईएएस अफसराें का पलायन हर साल हाेते जा रहा है। पहले से ही अफसराें की कमी से जूझ रहे हिमाचल काे आईएएस अफसराें के डेपुटेशन की चिंता हमेशा सताने लगती है। प्रदेश में 123 के काेटे में 102 अफसराें से ही काम चल रहा है। हालांकि बीते दिनों 1997 बैच के आईएएस अफर सुभाशीष पांडा डेपुटेशन से वापस लाैट चुके हैं, लेकिन उनके अलावा अभी 21 अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्त पर सेवाएं दे रहे हैं। बताया गया कि प्रियतु मंडल और शाइना जल्द ही हिमाचल वापस लाैटेंगे। 2006 बैच के आईएएस अधिकारी प्रियतु मंडल वर्तमान में इंटर कैडर डेप्युटेशन पर पश्चिम बंगाल में हैं। वह जल्द लौट रहे हैं। इनके अलावा 2007 बैच की अफसर शाइना मोल भी आने वाली हैं। वह वर्तमान में स्पाइस बोर्ड कोची में डायरेक्टर फाइनांस हैं। प्रदेश सरकार के मुताबिक प्रतिनियुक्ति पर सेवाएं दे रहे हिमाचल काडर के आइएएस अफसरों को वापस बुलाने के लिए हिमाचल सरकार ने पिछले साल काम शुरू किया था। उस समय प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया था कि प्रतिनियुक्ति पर गए किसी भी अफसर को अब एक्सटेंशन नहीं दी जाएगी। इन अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की अवधि पांच वर्ष है, लेकिन कई सालों से ये बाहर ही डटे हैं। सूत्राें से मिली जानकारी के मुताबिक 10 आइएएस अफसराें को राज्य से बाहर गए 7 साल का समय हो रहा है। ये एक्सटेंशन 2021 में खत्म हो रही है। जिन अधिकारियों का प्रतिनियुक्ति कार्याकाल खत्म हो गया है उनमें अधिकतर अधिकारी केरल, झारखंड व चेन्नई में व भारत सरकार में नई दिल्ली स्थित विभिन्न मंत्रालयों में सेवाएं दे रहे हैं। 7 एचएएस अधिकारियाें की टली इंडक्शन कोरोना महामारी के कारण एचएएस से आईएएस की इंडक्शन भी टल गई है। हिमाचल प्रशासनिक सेवा के सात अधिकारियों की इंडक्शन आईएएस कैडर में होनी हैं। इनमें अश्वनी राज शाह, कुमुद सिंह, विनय सिंह, हरंबस ब्रैस्कॉन, रीमा कश्यप, शुभकरण और सुमित खिमटा शामिल हैं। इस बारे में यूपीएससी के चेयरमैन का शिमला दौरा भी तय हो गया था। बताया गया कि शिमला के पीटरहाफ में 5 अप्रैल को ये डीपीसी तय हुई थी, लेकिन कोरोना पर पीएमओ से जारी प्रोटोकॉल के बाद इसे अब टाल दिया गया है। फिलहाल ये इंडक्शन कब होगी, ये तय नहीं है। इस इंडक्शन के बाद हिमाचल सरकार को आईएएस कैडर में ज्यादा अफसर मिल जाएंगे। हिमाचल काडर के ये आईएएस हैं सेंट्रल डेपुटेशन पर अफसर बैच प्रतिनियुक्ति स्थान संजीव गुप्ता 1995 दिल्ली तरुण कपूर 1987 दिल्ली ए.रजा रिजवी 1988 दिल्ली के. संजय मूर्ति 1989 दिल्ली अनुराधा ठाकुर 1994 दिल्ली भरत खेड़ा 1995 दिल्ली आरडी नजीम 1995 दिल्ली मनीष गर्ग 1996 दिल्ली अमनदीप गर्ग 1999 दिल्ली पुषपेंद्र राजपूत 1999 दिल्ली आर सेलवाम 2001 चेन्नई नंदिता गुप्ता 2001 दिल्ली अभिषेक जैन 2002 चंडीगढ़ एम सुधा देवी 2003 तमिलनाडू प्रियंका वासू 2004 काेलकात्ता मीरा माेहंती 2005 पीएमओ दिल्ली रिजेश चाैहान 2005 दिल्ली प्रियतू मंडल 2006 पश्चिम बंगाल शाइना मोल 2007 दिल्ली कदम संदीप 2008 महाराष्ट्रा आशीष सिंघमार 2008 झारखंड
हिमाचल में बंदरों के आतंक पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार ने दो साल पहले राज्य की 91 तहसीलों में बंदरों काे मारने की अनुमति दी थी, जिसकी अवधि पूरी हो चुकी है। ऐसे में अब हिमाचल में बंदरों को मारने पर प्रतिबंध लग गया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य की 91 तहसील व उप तहसीलों में बीते अप्रैल महीने तक ही इन्हें मारने की इजाजत दे रखी थी। लिहाजा अब यदि कोई बंदरों को मारता है तो वह अपराध माना जाएगा। वहीं राज्य के वन विभाग ने सभी फील्ड अधिकारियों से पूछा है कि यदि किसी ओर क्षेत्र में बंदरों को वर्मिन घोषित करवाना है तो जल्द मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा जाए। इसके बाद वन विभाग के माध्यम से केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा। इसमें बंदरों को दोबारा एक साल के लिए वर्मिन घोषित करने का आग्रह किया जाएगा। प्रदेश में बंदर हर साल करोड़ों रुपए की नगदी फसलें तबाह कर जाते है। इन्होंने किसानों का जीना दूभर कर रखा है। शहरी क्षेत्रों में भी लोगों के लिए बंदर परेशानी का सबब बने हुए है। शिमला में तो कई बार बंदर लोगों की जेबें भी तलाश करते देखे गए है। यही वजह है कि राज्य सरकार बीते कुछ सालों से केंद्र से बंदरों को वर्मिन घोषित करवाती रही है, ताकि फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले बंदरों को किसान मार सके। केंद्र भले ही कई सालों से बंदरों को मारने की इजाजत देता आया है, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रदेश में अधिकतर लोग बंदरों को नहीं मार रहे है। इसके पीछे कारण चाहे धार्मिक हो या फिर इन्हें मारने के लिए असले की कमी हो। किसान सभा सालों से मांग करती आई है कि वन विभाग अपने प्रशिक्षित शूटरों से बंदरों को शूट करवाए या फिर किसानों को कारतूस उपलब्ध कराए। वहीं वन विभाग ने बंदरों को मारने पर इनाम की घोषणा कर रखी है। बंदरों की संख्या में ऐसे आई कमी राज्य में बंदरों की संख्या में लगभग 33.5 फीसद की कमी आई है। यह आंकड़े राज्य वन विभाग के सर्वेक्षण में सामने आए है। माना जा रहा है कि वन विभाग द्वारा बंदरों की नसबंदी जैसे कदमों के परिणामस्वरूप इनकी संख्या कम हुई है। प्रदेश में इस समय 1 लाख 36 हजार 443 बंदर हैं। जबकि साल 2015 में 2 लाख 67 हजार बंदर थे। इनका घनत्व हॉट स्पॉट भी 263 से घटकर 226 रह गया है। हिमाचल में फिलहाल बंदरों काे मारने पर रोक लगी है, बंदरों को फिर से वर्मिन घोषित करने का आग्रह हम केंद्र सरकार से करेंगे। इसे देखते हुए फील्ड के अन्य अधिकारियों से भी इस तरह के प्रस्ताव मांग रखे है। इसके बाद केंद्र को प्रस्ताव भेजकर बंदरों को वर्मिन घोषित करवाने का आग्रह किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं पर फैसले को लेकर सुनवाई शुरू होते हीं स्थगित हो गई है। केंद्र सरकार ने अपना फैसला साझा करने के लिए कोर्ट से दो दिन का समय मांगा है। इस पर मामले को स्थगित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, सीबीएसई से कहा है कि अगर उसने परीक्षा को आगे बढ़ाने का फैसला किया है और परीक्षा रद्द करने के लिए अपनी पिछले वर्ष की नीति का पालन नहीं करने का इरादा है तो उसके लिए उचित कारण भी बताएं। सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन के समय पर सहमति जताते हुए केंद्र और सीबीएसई से गुरुवार तक अपना फैसला साझा करने को कहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह पिछले साल की नीति के अनुरूप निर्णय की उम्मीद कर रहा है, जब बोर्ड ने परीक्षा रद्द कर दी थी। सीबीएसई ने 26 जून, 2020 को सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहस के बाद लंबित कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय प्रस्तुत किया था।
कोरोना महामारी बीच दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वालों पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने कहा कि ये कोई पीआईएल नहीं है। यह एक मोटिवेटेड पेटिशन है। याचिका में मांग की गई थी कि कोरोना की सेंकेंड वेव के मद्देनजर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाई जाए। याचिका में ये भी कहा गया था कि कोरोना के दौरान किसी भी ऐसे प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। याचिका में दलील दी गई थी कि इस प्रोजेक्ट की वजह से महामारी के दौर में कई लोगों की जान खतरे में है। क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट? दिल्ली में इंडिया गेट के पास राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को सेंट्रल विस्टा कहा जाता है। इसमें राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाका आता है। सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के इस पूरे इलाके को रेनोवेट करने की योजना को कहा जाता है। इसी प्रोजेक्ट के तहत नए संसद परिसर का निर्माण किया जाना है।
हिमाचल प्रदेश के लाखों बागवानों को सीजन में सेब पैकिंग सामग्री महंगी मिलेगी। कोविड काल में पिछले साल भले ही कार्टन के रेट नहीं बढ़ाए गए थे, लेकिन इस साल बागवानों को कार्टन खरीदने के लिए और जेब ढीली करनी पड़ेगी। इस साल सेब की करीब तीन करोड़ पेटी सेब की पैदावार होने का अनुमान लगाया जा रहा है। कार्टन उत्पादकों ने प्रदेश के सेब बागवानों की मांग के कार्टनों की एडवांस बुकिंग भी शुरू कर दी है। इस बार खुले बाजार में मिलने वाले सेब कार्टनों के रेट में 12 से 14 रुपये की वृद्धि की गई है। पिछले साल बागवानों को बीस किलो का कार्टन 40 से 58 रुपये में बेचा गया था। इस बार बागवानों को वही कार्टन 52 से 70 रुपये में मिल रहा है। इन कार्टनों के कागज की गुणवत्ता के हिसाब से दाम वसूले जा रहे हैं। कई कंपनियां अपने हिसाब से कार्टन के दाम वसूलते हैं जबकि ये कंपनियां सरकारी एजेंसियों के माध्यम से कार्टन बेचने से परहेज करते रहे हैं। इसी तरह से सेब पैकिंग की सौ ट्रे के बंडलों में भी उत्पादकों ने सौ रुपये तक बढ़ोतरी की है। जो सेब पैकिंग ट्रे का बंडल पिछले साल 525 रुपये में बेचा जा रहा था, उसी ट्रे का बंडल इस बार बागवानों को 625 से 650 रुपये में बेचा जा रहा है। सेब उत्पादक बागवानों का कहना है कि कार्टन उत्पादक दलील दे रहे हैं कि उनको पहले सस्ती दरों में कार्टन और पैकिंग ट्रे बनाने के लिए सस्ती दरों में कागज मिल जाता था, लेकिन इस बार यह कागज महंगा मिल रहा है। हिमाचल प्रदेश सब्जी एवं उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान कहते हैं कि सेब सीजन 15 जून से आरंभ हो जाएगा। इस बार कार्टनों और पैकिंग ट्रे महंगे दामों पर मिल रहे हैं। उत्पादक दलील दे रहे हैं कि कच्चा माल महंगा हो गया है।
देश की राजधानी दिल्ली में संपूर्ण लॉकडाउन बार फिर बढ़ा दिया है। अब राज्य में 7 जून की सुबह 5 बजे तक पाबंदियां जारी रहेंगी। हालांकि DDMA ने सोमवार से कुछ लोगों को बाहर निकलने और काम पर जाने की सशर्त अनुमति दे दी गई है। दिल्ली में आवश्यक गतिविधियों को छोड़कर लोगों की आवाजाही पर रोक रहेगी। इसके अलावा कंटेनमेंट जोन के बाहर, औद्योगिक क्षेत्रों में कंस्ट्रक्शन और मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को संचालन के लिए अनुमति दी गई है। हालांकि इस दौरान सभी को सख्ती के साथ कोविड प्रोटकॉल का पालन करने का निर्देश दिया गया है।गौरतलब है कि पिछले 24 घंटे में दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण के 956 नए मामले सामने आए, जो लगभग पिछले दो महीने में दर्ज किए गए मामलों में संख्या के लिहाज से सबसे कम रहे। वहीं महामारी से 122 और मरीजों की मौत हुई, जबकि संक्रमण दर घटकर 1.19 प्रतिशत हो गई। दिल्ली में 22 मार्च को इस संक्रमण के 888 मामले दर्ज किए गए थे और इसके बाद से पहली बार एक दिन में एक हजार से कम मामले सामने आए हैं।
IMA और स्वामी रामदेव के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रह है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, उत्तराखंड ने स्वामी रामदेव को बहस करने की चुनौती दी है। आईएमए ने उनसे से ये सवाल भी पूछा है कि किस एलोपैथिक हॉस्पिटल में पतंजलि की दवाएं इलाज के लिए दी गईं। आईएमए ने स्वामी रामदेव से खुली बहस करने के लिए कहा है। गौरतलब है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की तरफ से स्वामी रामदेव को कानूनी नोटिस भी भेजा जा चुका है। इस पर स्वामी रामदेव ने दावा किया कि एलोपैथी ने महज 10 फीसदी गंभीर मरीजों का इलाज किया, वहीं बाकी 90 फीसदी संक्रमित योग और आयुर्वेद से ठीक हुए। स्वामी रामदेव ने कहा कि कोरोना संकट में लोगों को नेचुरोपैथी और योग की सबसे ज्यादा जरूरत है। इस कोरोना महामारी से लाखों लोगों की जान डॉक्टरों ने नहीं बल्कि नेचुरोपैथी और योग ने बचाई है। उन्होंने कहा कि ये एलोपैथी के खिलाफ मोर्चाबंदी नहीं है, बल्कि यह बीमारी को ठीक करने के लिए है। कमजोर लिवर-हार्ट, कमजोर फेफड़े, कमजोर नर्वस सिस्टम, कमजोर इम्यून सिस्टम और कमजोर इच्छाशक्ति इस बीमारी के बड़े कारण हैं, लेकिन एलोपैथी के पास इसका कोई इलाज नहीं है। वो सिर्फ सिम्प्टोमैटिक ट्रीटमेंट करते हैं।
हिमाचल प्रदेश कोरोना कर्फ्यू को अब 7 जून तक बढ़ा दिया गया हैं। इसी बाबत अब हिमाचल प्रदेश में पांच जून तक परिवहन सेवाएं बहाल नहीं होंगी, लेकिन सरकार ने परिवहन विभाग से एसओपी और परिवहन निगम से तैयारी कर रखने के लिए कहा है। पांच जून को होने वाली कैबिनेट की बैठक में इस पर निर्णय लिया जाएगा। बताया जा रहा है कि विभाग 50 फीसदी ऑक्यूपेंसी के तहत बसें चलाने के नियम तैयार किये जा रहे है। बरहाल सरकार अभी बाहरी राज्यों के लिए बसें नहीं चलाना चाहती है। वंही, करोड़ों के घाटे में डूबे परिवहन निगम की माली हालत है। निगम के कोष में पैसा नहीं है। सरकार कर्मचारियों को तनख्वाह देने में असमर्थ है। बसें न चलने से निगम को प्रतिदिन डेढ़ करोड़ का घाटा उठाना पड़ रहा है। इस समय परिवहन निगम के बेड़े में 3400 बसें हैं। इनमें 2900 बसें सड़कों पर दौड़ती हैं। परिवहन मंत्री बिक्रम सिंह ने बताया कि प्रदेश और बाहरी राज्यों के लिए अभी बसें नहीं चलाई जा रही हैं। कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा। दूसरी और गौर करें तो हिमाचल प्रदेश में निजी बस ऑपरेटर पहले से ही सरकार से खफा हैं। यूनियन प्रदेश सरकार की ओर से विशेष पथकर माफ करने की मांग कर रही है। इन ऑपरेटरों ने प्रदेश में कर्फ़्यू लगने से पहले ही बसें खड़ी कर दी थीं।
केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश के लिए कोविशील्ड वैक्सीन का कोटा बढ़ा दिया है। यह कोटा 18 से 44 साल और 45 साल से ऊपर के दोनों वर्गों के लिए बढ़ाया गया है। हिमाचल सरकार ने केंद्र से पहले 1,19,760 डोज मांगी थी। केंद्र सरकार ने इसमें 47,420 डोज बढ़ाकर हिमाचल को 1,67,180 डोज देने का फैसला लिया है। यह डोज़ जून महीने के लिए जारी की गई है। इसी तरह केंद्र सरकार ने 45 साल से ऊपर के लोगों के लिए भी डोज बढ़ा दी है। इसमें 2,52,770 के अलावा 46,630 डोज बढ़ाई है। अब यह कोटा 2,99,400 कर दिया है। यह वैक्सीन एक सप्ताह के भीतर आ सकती है। 45 साल से ऊपर के आयु वर्ग के लिए यह डोज हिमाचल को केंद्र से निशुल्क मिलेगी। यह वैक्सीन जून के पहले पखवाड़े के लिए जारी की गई है। हिमाचल सरकार ने प्रदेश की कुल जनसंख्या के 27.4 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगा दी है। 18 साल से ऊपर की पात्र जनसंख्या के 34 प्रतिशत और 45 साल से ज्यादा उम्र के 89.4 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगाई गई है।
कोरोना के खिलाफ जारी जंग में स्वास्थ्य विभाग की टीमें अपनी जान जोखिम में डालकर अदृश्य वायरस को हराने में जुटी हुई हैं। विकासखंड करसोग की अतिदुर्गम पंचायतों में वैक्सीनेशन करने के लिए हेल्थ विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी रही है। यहां शुक्रवार को दूरदराज की सरतेयोला पंचायत में चलने फिरने में असमर्थ बुजुर्गों को कोरोना की वैक्सीन लगाने के लिए हेल्थ विभाग की टीम ढांक पार कर जेसीबी की बकेट में बैठकर पंचायत भवन पहुंची। आजादी के सात दशक बाद भी अभी तक सरतेयोला पंचायत सड़क सुविधा से नहीं जुड़ी है। हालांकि घरद्वार पर कोरोना वैक्सीन लगाने से बुजुर्गों ने राहत की सांस ली। स्वास्थ्य विभाग ने कठिन भौगोलिक स्थिति को देखते हुए सरतेयोला पंचायत के बुजुर्गों को पंचायत में टीकाकरण करने का निर्णय लिया था। ज़िसके लिए लोगों ने स्वास्थ्य विभाग का आभार प्रकट किया है। सरतेयोला पंचायत में वैक्सीन लगाने पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम में रमेश वर्मा फार्मासिस्ट माहूनांग, फीमेल हेल्थ वर्कर कुनहों कला ठाकुर व याचना हेल्थ सब सेंटर चिंडी शामिल थे। इसके लिए स्थानीय प्रधान तिलक वर्मा ने बीएमओ करसोग सहित हेल्थ विभाग की टीम का आभार प्रकट किया है। प्रधान तिलक वर्मा ने बताया कि दूरदराज की पंचायत सरतेयोला में वैक्सीनेशन किया गया। ये पंचायत अभी तक सड़क सुविधा से नहीं जुड़ी है। स्वास्थ्य विभाग ने इस दुर्गम पंचायत में वैक्सीनेशन के लिए टीम भेजी। ऐसे में चलने फिरने में असमर्थ बुजुर्गों को घरद्वार पर ही टीका लगा। उन्होंने भविष्य में भी टीकाकरण के लिए पंचायत में टीम भेजे जाने का आग्रह किया है। ताकि दूरदराज के लोगों को वैक्सीन के लिए परेशानियों का सामना न करना पड़े। इस काम के स्वास्थ्य विभाग की टीम के जज्बे की सराहना की जा रही है।
पैराग्लाइडिंग के लिए विश्व प्रसिद्ध बीर बिलिंग घाटी से जनवरी माह में लापता हुए पैराग्लाइडर पायलट रोहित भदोरिया का शव मिल गया है। जालसू पास और बड़ा भंगाल की पहाड़ियों के बीच में एक संकरे पहाड़ के निकट शव मिलने की सूचना है। हालांकि, आधिकारिक रूप से पुलिस ने इसकी अभी तक कोई पुष्टि नहीं की है। लेकिन सर्च अभियान में जुटी टीम ने यह सूचना बीर में दी है। जहां शव मिला है, उसी स्थान में पिछले महीने रोहित का काफी सामान भी मिला था। रोहित को ढूंढने के लिए लगातार एक बड़ा सर्च अभियान चल रहा था। इस दौरान अप्रैल में उसका कुछ सामान जालसू जोत के समीप मिला था। उसी क्षेत्र में अब बर्फ कम होने के बाद रोहित का शव मिलने की सूचना मिली है। मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले 48 वर्षीय रोहित भदोरिया काफी समय से बीड़ में रह रहे थे। इसी साल 8 जनवरी को रोहित ने बिलिंग से उड़ान भरी थी। कुछ घंटों की उड़ान के बाद उतराला से ऊपर की पहाड़ियों से अचानक रोहित लापता हो गए थे।
पांवटा की एक फार्मा कंपनी से पुलिस ने ओपिओइड्स की 30.2 लाख नशीली गोलियां पकड़ी हैं। मार्केट में इसकी कीमत करीब 15 करोड़ रुपये बताई जा रही है। सिरमौर पुलिस, अमृतसर पुलिस, ड्रग इंस्पेक्टर सिरमौर ने मिलकर इस कार्रवाई को अंजाम दिया। पुलिस का यह अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त ऑपरेशन बताया जा रहा है। पंजाब पुलिस ने खेप कब्जे में ले ली है। पांवटा के दवा उद्योग में पुलिस व ड्रग विभाग ने रातभर रिकॉर्ड खंगाला। अमृतसर में नशीली दवाएं मिलने के मामले में पंजाब पुलिस ने यह कार्रवाई की है। बताया जा रहा है कि एक ट्रक में भर कर नशीली दवा की खेप पंजाब पुलिस की टीम साथ ले गई है। हिमाचल की पांवटा पुलिस का सहयोग लेकर पंजाब पुलिस टीम ने कंपनी परिसर में छापामारी की थी। अमृतसर में बड़ी मात्रा में नशीली दवा पकड़ी गई थी। दवा में पांवटा की एक कंपनी का नाम पता लिखा था।
सीबीएसई और आईसीएसई की 12वीं की परीक्षा रद्द करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई सोमवार, 31 मई के लिए टाल दी गई है। कोर्ट ने दोनों बोर्ड से मामले पर पक्ष रखने के लिए कहा. साथ ही याचिकाकर्ता से कहा कि वह याचिका की कॉपी सीबीएसई और आईसीएसई के वकीलों को सौंपे। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार, सीबीएसई और सीआईएससीई को निर्देश दिया जाए कि वह कोरोना के मद्देनजर 12वीं का पेपर रदद् करें। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि तय समय सीमा में ऑब्जेक्टिव मैथोडोलॉजी के बेसिस पर रिजल्ट घोषित किया जाए।गौरतलब है कि 12वीं क्लास के करीब 300 छात्रों ने भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना को एक पत्र भेजा था, जिसमें कोरोना वायरस महामारी के बीच ऑफलाइन परीक्षा आयोजित करने के केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के फैसले को रद्द करने की मांग की थी। छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को छात्रों को वैकल्पिक मूल्यांकन योजना उपलब्ध कराने का निर्देश देने की भी मांग की थी।


















































